tag:blogger.com,1999:blog-36468223317924985422024-02-20T13:16:21.071-08:00कि मैं कुछ कहूँVijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.comBlogger28125tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-28596278021529157102022-09-18T00:52:00.766-07:002022-10-01T02:28:19.701-07:00'च' से चन्दन (भाग ३ )<p>मैं तो क्या, कोई भी चन्दन को पहचान सकता था | क्या मुश्किल थी इसमें ? भीड़ हजारों की हो या लाखों की - चन्दन अलग ही नज़र आएगा | </p><p>कुल टोटल इसी अदम्य विश्वास के साथ मैं दुर्ग स्टेशन गया था | चन्दन से आखिरी मुलाकात कोई अट्ठाइस वर्ष पूर्व हुई थी | मेरे हाथ में जो मोबाइल फोन था, वह स्मार्ट हरगिज नहीं था | फर्क क्या पड़ता है आखिर ? जब दिल दूसरे दिल को पुकारे तो 'लोकेशन' की जरुरत नहीं पड़ती | जब मस्तिष्क में बसी तस्वीर धुंधली नहीं होती, तो 'सेल्फी' का आदान प्रदान करने की भला आवश्यकता ही क्या थी ? अति आत्मविश्वास का एक और कारण था | अगर मैं चन्दन को नहीं ढूंढ़ पाता तो चन्दन मुझे खोज ही लेता | कैसे ? अरे वैसे ही, जैसे दशकों पूर्व उसने भिलाई विद्यालय में किया था |</p><p>-------------------</p><p><i> मैं तो था छठवीं के वर्ग 'ड' में और वह था वर्ग 'अ' में | | बाकी सारे के सारे शाला क्रमांक आठ के मित्रों का जमघट वर्ग 'स' में था | </i></p><p><i>दाखिले में जल्दबाज़ी के कारण वह और लेट लतीफी के कारण मैं - एक ही सज़ा भुगत रहे थे | वर्ग 'ड'' में मैं खोज रहा था - कोई एक तो परिचित चेहरा दिख जाए | करीब </i><i>करीब</i><i> प्रत्येक छात्र का कोई न कोई प्राथमिक शाला का सहपाठी उस कक्षा में था | अजनबियों के इस समूह में मुझे कोई भी अपना नज़र </i><i>नहीं </i><i>आ रहा था | पहले दिन प्रार्थना के बाद, कक्षा में घुसते ही लोग अपने अपने साथियों के साथ इंतज़ार कर रही खाली डेस्कों की ओर लपक पड़े | मुझे कुछ ऐसे स्वर सुनाई दे रहे थे ,"अबे, इसके साथ में बैठूंगा | तू उसके साथ बैठ जा | जा, जा | तीसरी से पांचवी तक हम लोग साथ साथ बैठते थे | ये हम दो लुच्चे लफंगों की बेच है | तुम लोग आगे कहीं बैठो | "</i></p><p><i>जब सब बैठ गए तो भी मैं इधर उधर नज़रें दौड़ा रहा था - किसी बेंच में कोई अकेला लड़का तो दिखे, जिसके साथ जाकर में बैठ जाऊं | तभी कक्षा शिक्षक आ गए | अब यहाँ प्राथमिक शाला की तरह "खड़े हो, नमस्ते" तो था नहीं | अभिवादन के लिए लोग खड़े हुए और फिर बिना इंतज़ार किये बैठ गए | शिष्टाचार के ये नियम वे विद्यालय में कदम रखने के पूर्व ही जानते थे | किसी के सिखाने की जरुरत नहीं पड़ी | </i></p><p><i>काश, मैं भी वर्ग 'स' में होता | </i></p><p><i>एकाकीपन तब और काटने दौड़ता, </i><i>जब कोई </i><i>पीरियड ख़तम होता और दो शिक्षकों के जाने-आने के मध्य शून्य काल होता | मेरी बेंच पर साथ बैठा सहपाठी भी उठकर अपने परिचित मित्रों से बतियाने उनके पास चले जाता | गर्मी की छुट्टी में बातों का अम्बार जो जमा हो गया था | </i></p><p><i>कोई परिचित चेहरा तो दिख जाए | </i></p><p><i>और वह परिचित चेहरा दरवाजे पर दिख गया | </i></p><p><i>"चन्दन |" मैं दरवाजे की ओर लपका | </i></p><p><i>"तू यहाँ बैठा है ?" वह बोला ,"और कौन है तेरी कक्षा में ?" </i></p><p><i>"कोई नहीं यार | " मैंने मरी आवाज़ में कहा | </i></p><p><i>"सारे के सारे 'स' में भर गए ?"</i></p><p><i>"तेरी कक्षा कहाँ है ?" </i></p><p><i>"वहां | दो कमरे छोड़ के | सीढ़ी के उस पार | " अचानक वह भाग खड़ा हुआ क्योंकि नया शिक्षक हमारी कक्षा की ओर बढ़ रहा था | </i></p><p><i>आधी छुट्टी को हम सारे दोस्त मिले | 'स' वालों के पास तो बातचीत का पिटारा था | "ये सर ऐसे हैं | वो ऐसे |" और सारे हँस पड़ते | </i><i>हिंदी वाली मेडम का नाम राजीव जावले ने पहले ही दिन 'बसंती' रख छोड़ा था </i><i>चन्दन भी अपने कक्षा "अ " के गणित के सर की मिमिक्री करता | और मैं ?</i></p><p><i>मेरे पास कहने के लिए कुछ नहीं होता | </i></p><p><i>फिर वह क्रम केवल कुछ दिनों तक ही चला | मैं तो जरूर 'स' वालों से मिलता, पर अब चन्दन ने आना कम कर दिया था | वर्ग 'अ' में ही उसने अपना अस्तित्व स्थापित कर लिया था | </i></p><p><i>मैं किसी तरह, जोड़ तोड़ लगाकर, मिन्नतें करके वर्ग 'स' में पहुँच गया , तब जाकर मानो मेरा नया जीवन शुरू हुआ | तब तक तो वर्ग 'अ' में ही चन्दन ने ढेरों दोस्त और नोक-झोंक करने वाले नए दुश्मन बना लिए थे | वह वहीँ जम गया था | </i></p><p><i>मुझ में </i><i>और चन्दन में ये फर्क तो था | </i></p><p>---------------------------</p><p>"कहाँ है बे ?" मोबाइल से चन्दन की आवाज़ गूँजी |</p><p><i>कहाँ था मैं ? चालीस साल पूर्व के भिलाई विद्यालय के गलियारों में !</i></p><p>"मैं स्टेशन में ही हूँ यार |" मैंने कहा , "बस, अभी अंदर ही आ रहा हूँ |" </p><p>मैंने प्लेटफार्म टिकट जेब में डाला और अंदर चले गया | </p><p>अंदर मैंने प्लेटफार्म का एक चक्कर लगाया | उस अति-आत्मविश्वास का क्या हुआ ? राम जी, चन्दन तो कहीं दिखाई नहीं दे रहा है | कहीं वो मुझे तो नहीं खोज रहा है ? यक़ीनन वही बात है | </p><p>..<i>. समय गुजरते रहा | वो चन्दन , जो शाला नंबर आठ में भिलाई विद्यालय के लिए बड़ी दलीलें दिया करता था , यारों की भीड़ के सिवाय कहीं नज़र नहीं आया | मुझे लगता था, वह चन्दन जो हम लोगों को प्राथमिक शाला में फुटबॉल सिखाया करता था, फुटबॉल के मैदान में मदारी का डमरू बजा देगा | आधे मुरम , आधे घास के उस मैदान में कहीं नहीं था | चन्दन कोई 'धक्का' खिलाड़ी तो था नहीं , जिसे मैदान में उतारने के लिए हवा भरनी पड़ती थी | फुटबॉल देखते ही उसकी बांछें खिल जाती थी | फिर उसे पिंजरे में भला बंद किसने कर दिया ?</i></p><p><i>शाला नंबर आठ में तो चन्दन भिलाई विद्यालय के लिए दलीलें देते समय एन. सी. सी. को परचम की तरह लहराता था | भिलाई विद्यालय में एन. सी. सी. के द्वार नवीं में खुलने वाले थे | </i></p><p><i>जब छठवीं में स्काउट में जिसे कई लोग एन. सी. सी. का विकल्प मानते थे ; जिसमें अंगारे सर की प्रेरणा से वर्ग 'अ' वालों ने धमाल मचा दिया था ; वह किसी कतार में कहीं नहीं था | सच है कि स्काउट और एन. सी. सी. में मूलभूत अंतर तो था | गोली चलाने और रस्सी की गाँठ लगाने में काफी फरक था | यह भी सच है कि कई उत्कृष्ट छात्र स्काउट में सम्मिलित नहीं हुए थे , लेकिन चन्दन जैसे उत्साही छात्र भी काफी संख्या में, स्काउट में गोते लगा रहे थे | फिर चन्दन को क्या हुआ ?</i></p><p><i>तो क्या चन्दन नवीं में एन. सी. सी. में आया ?</i></p><p><i>एन. सी. सी. आर्मी विंग में - नहीं | </i></p><p><i>एन. सी. सी. एयर विंग में - कदापि नहीं |</i> </p><p>कहाँ रह गया चन्दन ?</p><p><i>सतपुड़ा सदन की तरफ से मंच पर वाद विवाद में कौशलेन्द्र ठाकुर, आशीष पुरंदरे और मुरली दहाड़ते थे | न कोई अभिनय के क्षेत्र से चन्दन कभी जुड़ा , न गायन में, न चित्रकारी में | </i></p><p><i>कहाँ था चन्दन ?</i></p><p><i>-------------------</i></p><p>"कहाँ है यार चन्दन ?" मैंने फोन लगाया | </p><p>मैं अभी भी प्लेटफार्म पर चन्दन को खोज रहा था | </p><p><i>जब हम लोग दसवीं में थे तो चन्दन एक दिन मुझे घर में ले गया | उसने मुझे एक पारितोषिक शील्ड दिखाया | </i></p><p><i>"क्या है ये ?" मैंने पूछा | </i></p><p><i>"तूने क्रिकेट बैलेट देखा था न ? हम लोगों के सदन का ?"</i></p><p><i>कुछ देखा कुछ नहीं देखा | उस समय सदन रात्रि में ऐसी भीड़ रहती थी कि पूरा हाल शिक्षकों,मेहमानों और उनके परिवार जनों , कक्षा कप्तानों और व्यस्थापकों से भरा रहता था | बाकि सब छात्रों को पीछे खड़े रहना पड़ता था और वह भीड़ हॉल के बाहर निकल जाती थी | अनुशासन ? ये कौन सी चिड़िया का नाम था ? लम्बे चौड़े लड़के आगे खड़े रहते थे | जो अभी मंच पर दिख रहा हो, कोई जरुरी नहीं, वो अगले पल दिखे | सामने कोई न कोई आ ही जाता था | </i></p><p><i>तो चन्दन के सदन ने "क्रिकेट बैले" किया था | वैसे "क्रिकेट बैले" एक साल पूर्व ही उनके ही सदन के वरिष्ठ छात्रों ने किया था जिनमें से अधिकतर उच्चतर माध्यमिक की शिक्षा पूरी करके भिलाई विद्यालय से जा चुके थे | तो नए कलाकारों को मौका मिल गया था और उनमें चन्दन भी एक था | </i></p><p><i>"आज तक मुझे एक बार भी ईनाम नहीं मिला था ",चन्दन बोला ,"पहली बार मंच पर चढ़ा और उसके लिए भी जम कर गालियां पड़ी |"</i></p><p><i>"क्यों ? क्या हुआ था ?"</i></p><p><i>"कुछ नहीं , बैटिंग करने के समय मुझे गेंद 'प्लेट' करना था | पचासों बार रिहर्सल किया था | फिर भी मैं इतना घबराया हुआ था, कि मैंने गेंद पर शॉट लगा दिया | बाकी किसी को समझ नहीं आया कि अब क्या करना है ? जल्दी में अंपायर ने भी 'फोर' का सिग्नल दे दिया | इस कारण हम लोगोँ का ग्रुप डांस सेकंड आ गया | "</i></p><p>"<i>होते रहता है यार |"</i></p><p><i>"हाँ यार | पहली बार स्टेज पर चढ़ा था |"</i></p><p><i>उसके बाद चन्दन तो स्टेज पर कभी नहीं चढ़ा, लेकिन ज़िन्दगी भर नाटक ने उसका पीछा नहीं छोड़ा | इतना ही नहीं , उसकी स्वाभाविक हरकतों को भी लोग नाटक ही समझते रहे | </i></p><p>-----------</p><p>दुर्ग स्टेशन पर वजन करने की वह मशीन बरसों से लगी हुई थी | जब कभी हम दुर्ग स्टेशन जाते, उसके पायदान में जरूर खड़े होते, भले जेब में सिक्का हो या न हो | चकरी गोल गोल घूमती और जब थमती तो हम जेब टटोलते | अगर किसी कोने में सिक्का होता तो उसमें एक रूपये का सिक्का डालते | सफ़ेद रंग का, रेलगाड़ी के टिकट की तरह कार्डबोर्ड का एक टिकट बाहर आता और हम अपना वज़न देखकर कभी खुश होते और कभी उदास | साथ में एक औघड़ सी लेकिन दिलचस्प भविष्यवाणी भी छपी होती थी | </p><p>वज़न मशीन के उसी पायदान पर चन्दन बैठा हुआ था | हाँ, वही तो था | मैंने कहा था न, कोई भी उसे कहीं भी पहचान सकता था | </p><p>वज़न की मशीन के चकरी के इर्द गिर्द छोटी-छोटी बत्तियां झिलमिला रही थी | चकरी धीरे धीरे इधर उधर डोल रही थी | चन्दन अगर उस पर खड़ा हो जाता तो पता नहीं, चकरी कितने चक्कर लगाकर कब रूकती | अगर चन्दन सिक्का डालता तो अपना वज़न देखकर चन्दन के चेहरे पर ख़ुशी या गम, कौन से भाव आते, पता नहीं - पर इस वक्त उसका चेहरा भावहीन था | पता नहीं, भविष्यवाणी उसके लिए क्या कहती - क्योंकि भविष्यवाणी में केवल चमचागिरी भरे शुशनुमा वाक्य ही छपे होते थे | चन्दन के लिए भविष्यवाणी करने के लिए शायद मशीन भी हाथ ऊपर उठा देती | यह बात भी उतनी ही अनिश्चित थी कि चन्दन को उन बातों पर कितनी दिलचस्पी होती | उसका भावहीन चेहरा डरावना सा लग रहा था | शायद मुझे देखते ही वह उछल पड़ता, पर वह तो मुझे घूरते यूँ ही बैठे रहा | क्या वह चन्दन था ?</p><p>"चन्दन?" मेरी पुकार में थोड़ी बहुत शंका समाविष्ट थी | </p><p>"हाँ |" उसने कहा , "इतनी देर कहाँ था बे ?"</p><p>----------</p><p>यह शायद केवल भारत में ही संभव था | चन्दन ने अचानक भीड़ भरी सड़क पर , दाहिनी ओर की द्रुतगामी पक्ति पर अचानक कार रोक दी | </p><p>इसका अर्थ क्या हुआ ? पीछे की सारी कारों को लेन बदलकर चन्दन की कार के बायीं ओर से गुज़रना पड़ा- बस इतना ही | मेरे दिल में जरूर थोड़ी हलचल सी मच गयी | मगर चन्दन इतना आश्वस्त और बेफिक्र था कि वह आराम से दाहिनी ओर का दरवाजा खोल कार से बाहर कूद पड़ा |</p><p>चन्दन ने ऐसा क्यों किया ? अगर उसे रोकना ही था तो क्या वह कार को सड़क के बाये किनारे पर खड़ा नहीं कर सकता था ? सड़क के डिवाइडर से चिपकाकर कार खड़ी करने से क्या उसकी लॉटरी लगने वाली थी ?</p><p>" दो मिनट रुक | " उसने इतना ही कहा | और तो और - उसकी तरफ की कार का डैना खुला ही हुआ था | इसलिए डिवाइडर के दूसरी और से विपरीत दिशा से आने वाली कारों को भी थोड़ी सतर्कता से गुजरना पड़ रहा था |</p><p>सड़क के मध्य में सफ़ेद काले रंगों से बने ईंटों की विभाजन रेखा थी, जिसे फुर्ती से लांघकर वह सड़क के दूसरी ओर गया और दूसरी दिशा से आने वाले ट्रैफिक के मध्य से गुजरते हुए सड़क के दूसरी ओर सड़क के किनारे सामान बेचने वालों की भीड़ में खो गया | </p><p>सड़क किनारे के उन विक्रेताओं ने कच्चे-पक्के शेड बना लिए थे | जहाँ तक मैं देख पा रहा था, उसमें से एक शेड के अंदर वह घुस गया जिसके सामने छोटे बड़े गमलों का ढेर लगा हुआ था | हाँ, वही 'ग' से गमला | चन्दन अंतर्ध्यान जरूर हो गया था, लेकिन उसकी आवाज़ अभी भी छन-छनकर आ रही थी | शायद किसी गमले को लेकर वह मोल-भाव कर रहा था |</p><p>अगले बीस मिनट तक कार में मैं दम साधे बैठा रहा | आशंका तो थी ही कि अमेरिका की तरह कोई ट्रैफिक पुलिस की गाडी बीन बजाते हुऐ पीछे आ जाएगी | ठीक है, यह भारत है | तो फिर क्या पता पीछे से कोई बिगड़ैल सवा सेर आ जाये और सड़क पर बखेड़ा खड़ा कर दे | वैसा कुछ भी नहीं हुआ | लोग शांति से खड़ी कार से किनारा करके बायीं ओर से निकलते रहे | एक शंका सी जरूर मन में उठी - क्या सड़क पर चलने वालों को चन्दन की कार का नंबर कंठस्थ हो गया है ?</p><p>जब चन्दन कुटिया के बाहर निकला तब स्पष्ट हो पाया कि चन्दन ने सड़क के बीचों-बीच विभाजन रेखा के बगल में कार क्यों खड़ी की थी | उसके पीछे- पीछे एक बच्चा हाथ में एक भारी भरकम गमला उठाये आ रहा था | विभाजन रेखा के बगल में कार खड़ी करके चन्दन ने उसे एक दिशा से तेज़ रफ़्तार से आते हुए ट्रैफिक को पार करने से बचा लिया था | पर 'डिवाइडर' के दूसरी ओर से, सामने आने वाले ट्रैफिक का क्या किया जाए ? </p><p>चन्दन तो फुर्ती से सड़क के इस पार आ गया, लेकिन वह लड़का सड़क के उस ओर ही ठिठका खड़े रहा | </p><p>"अबे, वहीँ अटका हुआ है ?" चन्दन ने उसे झिड़का , "चल जल्दी आ |"</p><p>लड़का एक कदम आगे बढ़ता और फिर पीछे हट जाता | चन्दन के पास धैर्य की कमी तो हमेशा से ही थी | </p><p>"अबे डर रहा है क्या ?" वह चिल्लाया और फिर सडक के दूसरी ओर के ट्रैफिक को लाँघ कर वह लड़के के पास जा पहुंचा ,"चल मेरे साथ चल |" </p><p>क्या वह अपना चिर परिचित पुराना चन्दन नहीं था ? दुर्ग स्टेशन से अब तक चन्दन के बगल में उसकी कार में बैठकर मैं थोड़ा असहज महसूस कर रहा था | क्या समय के थपेड़ों ने चन्दन को नम्य , कमजोर, रहस्य्मय बना दिया है ? अभी तो वह मुझे अपने घर ले जा रहा था, पर कितने देर मैं उस अजनबी को झेल पाऊँगा ?</p><p>अब पुराने चन्दन को देखकर मैंने राहत की साँस ली | </p><p>चन्दन अब सड़क के बीचोंबीच खड़े हो गया और उसने सामने से आने वाले ट्रैफिक का प्रवाह रोक पूरी तरह रोक दिया | </p><p>"जल्दी जा बे |" उसने ठिठकते हुए गमले वाले लड़के को आवाज़ दी," कार की डिक्की खुली है | जल्दी कर ||"</p><p>------------</p><p> एक-एक सीढ़ी चढ़कर हम चन्दन के द्वार तक पहुंचे किन्तु अंदर नहीं घुसे | चन्दन ने बाहर की बत्ती जला दी थी और प्रांगण में गमलों पर उगे पौधे स्पष्ट दिखने लगे | वो मुझे एक-एक पौधों के बारे में काफी रूचि लेकर बता रहा था | मैं सोच रहा था, चन्दन का यह वनस्पति प्रेम कब से जागृत हुआ ? मुझे फ़ूल -पत्तों की कोई खास जानकारी तो नहीं थी | बताते-बताते अचानक वह रुक गया और मेरी ओर देखने लगा | </p><p>"क्या सोच रहा है ?"</p><p>"सोच रहा हूँ कि यार, नए गमले को कहाँ रखूं ?" प्रांगण तो पूरी तरह गमलों से भरा हुआ था | </p><p>"कहीं भी |" मेरे मुँह से अनायास ही निकला और ये जवाब चन्दन को बिलकुल पसंद नहीं आया | </p><p>उसके चेहरे के भावों से मैंने भांप लिया कि मेरा जवाब चन्दन को पसंद नहीं आया | आखिर चन्दन कब से सुनियोजित , सुव्यवस्थित हो गया ? फिर वह मुझे बताने लगा, उस गमले में वह क्या लगाना चाहता है ? उसकी बेलें कहाँ तक फैलेगी ? उसे कितनी धूप की जरुरत पड़ेगी | </p><p>अगर मेरी पहली सलाह बेस्वाद थी, जिसे उसने किसी तरह आत्मसात कर लिया था, तो दूसरी सलाह तो नीम के काढ़े की तरह कड़वी निकली ,"यार, फिर तो कुछ पौधों को हटाना पड़ेगा |"</p><p>चन्दन ने किसी तरह इस सलाह को भी आत्मसात किया ," यार मैंने इन सब पौधों को बड़े जतन से लगाया है | एक पत्ता भी सूखता है तो मुझे लगता है कि क्या हो गया ? मेरे बच्चों को सारे के सारे पौधे प्यारे हैं | "</p><p>कुछ क्षण योन ही ख़ामोशी छायी रही | वह वाक्य मानो तीव्र प्रकाश से जगमगा उठा - "जो तस्वीरें चन्दन के दिल के करीब होती हैं, उन पर थोड़ी सी खरोंच भी चन्दन बर्दाश्त नहीं कर पाता था | " किसी भी क्षण वह ठेस गुस्से में बदल सकती थी | </p><p>अब मैंने काफी सोच समझकर कहा ,"फिर तो बच्चों से पूछना ही बेहतर है |"</p><p>यह गनीमत रही कि यह बात चन्दन को जँच गयी और मेरे साथ उसने भी राहत की साँस ली | </p><p>"एक गलती हो गयी यार |" वह बोला ,"गमला थोड़े दिनों बाद लेना था | आज छोटी लड़की को भी स्टेशन में छोड़ कर आया हूँ | अब घर में कोई नहीं है | "</p><p>-----------</p><p>घर में वाकई में शायद कोई भी नहीं था | जब चन्दन ने अंदर घुसकर सामने के कमरे की बत्ती जलाई, तब कहीं जाकर घर में रौशनी आयी | अब मैं किसी से कभी पूछता तो हूँ नहीं कि श्रीमती जी कहाँ हैं ? कहीं भी हो सकती हैं - मायके से लेकर ब्यूटी-पार्लर तक | जाहिर है, अभी कुछ मिनट पहले बरामदे मं जो कुछ हुआ, मैं इस स्थिति में था भी नहीं | </p><p>"तू चाहता क्या है ? " शुक्र है, चन्दन ने काम की बात छेड़ी ,"सूर्य का फ़ोन आया था | तू लोगों से मिलना चाहता है | क्या करना चाहता है ?"</p><p>"कुछ नहीं , सोचता हूँ, एक बार लोगों से मिल लिया जाए | बस !"</p><p>"क्या बोलते है उसको - गेट टुगेदर ?" </p><p>"हाँ, कुछ वैसे ही समझ ले |"</p><p>"प्राथमिक शाला नंबर आठ ?"</p><p>"हाँ | या तो फिर भिलाई विद्यालय |"</p><p>"पहले प्राथमिक शाला के बारे में सोचते हैं यार |" चन्दन बिलकुल सही पटरी पर चल रहा था | </p><p>चन्दन ने मुझे कागज़-कलम पकड़ा दिया और एक छोटी डायरी निकाली ,"लिख - प्रमोद मिश्रा .. ."</p><p>"ठीक है |" मैंने उसका नाम लिखा | </p><p>"उससे बात करेगा ? उससे भी तुझ" बहुत सारे नंबर मिल जायेंगे |"</p><p>और मेरे 'हाँ' या 'न' कहने के पहले ही उसने प्रमोद मिश्रा को फोन खडका दिया | पहले उसने खुद ही उससे बात की ,"तेरे पास कालकर बहनजी की कोई खबर है क्या ? " फिर उसने बात आगे बढ़ाई ,"मेरे पास विजय सिंह बैठा है | ले उससे बात कर |"</p><p>ना जाने कितने वर्षों बाद - शायद भिलाई विद्यालय से निकलने के बाद पहली बार - मैं प्रमोद मिश्रा से बातें कर रहा था | वही प्रमोद, जो प्राथमिक शाला में मेरे साथ बेंच पर बैठा करता था | </p><p>"विजय, कालकर बहन जी की उम्र काफी हो गयी है |" प्रमोद मिश्रा ने कहा ," अभी कहाँ रहते हैं, पता नहीं | उसका लड़का अपने साथ पढता था न ?"</p><p>"संदीप ?"</p><p>"हां संदीप | उससे दो तीन बार मुलाकात हुई थी | उसने ही बताया था | शायद उसका नंबर भी होगा कहीं | देखता हूँ |"</p><p>--------------</p><p>"तू चाय पियेगा ?" चन्दन ने पूछा ,"चल मैं चाय बनाकर लाता हूँ |"</p><p>"छोड़ यार चन्दन | मैं चाय तो पीता नहीं |"</p><p>"तो क्या पियेगा ? कॉफ़ी ?"</p><p>"कॉफी भी मैं नहीं पीता |"</p><p>"तो फिर क्या ?" </p><p>"कुछ नहीं | पानी ठीक है |" </p><p>अगले पांच मिनटों में जो कुछ हुआ उसने मुझे तो क्या , चन्दन को भी चौंका दिया | </p><p>अभी तक मैंने आश्वस्त था कि चन्दन के घर में कोई नहीं है | हम दोनों मित्र करीब करीब उसी भाषा में बात कर रहे थे जैसे हम प्राथमिक शाला में करते थे | अब वह भाषा कई बार शालीनता की सीमा लाँघ जाती थी मैं वैसे ही उच्छृंखल ठहाके लगा रहा था और चन्दन की भी ओढ़ी हुई प्रौढ़ता को काटने की कोशिश कर रहा था | हालाँकि चन्दन जरूर काफी संयत था | </p><p>एकाएक पर्दा हिला और चन्दन की धर्मपत्नी ने एक ट्रे में पानी लेकर कमरे में प्रवेश किया | सर्वथा अनपेक्षित था यह | परिकल्पना के एकदम विपरीत ! मुझे काटो तो खून नहीं | </p><p>विषम परिस्थिति में पड़े चन्दन ने किसी तरह उनका परिचय कराया | </p><p>"नमस्ते |" मेरे मुँह से निकला ,"मैं चन्दन का बचपन का दोस्त हूँ | मेरा नाम विजय है |" किसी तरह कुछ शब्दों को संयोजित करके मैंने वाक्य बनाया | </p><p>"नमस्ते |" उन्होंने कहा | </p><p>""कैसे हैं आप ?" मैंने पूछा | मुझे एक अपराधी-भाव सा महसूस हो रहा था | </p><p>"ठीक | बिस्किट लीजिये न | " </p><p>अब मेरा ध्यान ट्रे की ओर गया जहाँ पानी के गिलास के साथ कुछ बिस्किट भी थे | अपराधी भाव अब भी मेरे मन में समाया हुआ था | मुझे पता ही नहीं चला कि कब श्रीमती दास कमरे के बाहर चले गयी और मैं और चन्दन स्तब्धता की एक भारी परत से दबे हुए थे | बातचीत का वह क्रम पूरी तरह छिन्न भिन्न हो गया था | </p><p>"चल, जूस पीकर आते हैं |" अंततः चन्दन ने कहा | </p><p>सीढ़ियों से हम नीचे आये | तब चन्दन से मैंने शिकायत के लहजे में कहा, "यार तूने बताया ही नहीं कि ... मुझे लग रहा था , घर में हम दोनों ही हैं ... "</p><p>रास्ते में चन्दन से जो बातें हुई, मैंने उसे गंभीरता से नहीं लिया | कितने लोगों से मिल चुका था मैं | उम्र के इस पड़ाव पर आते-आते छोटी-मोटी पारीवारिक समस्याएं तो लगी रहती है | </p><p>"छोड़ न यार चन्दन | ये सब तो लगे रहता है | "</p><p>मेरी अनिच्छा को देखकर उसने भी हथियार डाल दिए | क्या वह कुछ कहना चाहता था ? क्या वह दिल खोलना चाहता था ? मगर नहीं | मेरे सामने नहीं | मैं इस मामले में कोई सलाह देने के योग्य नहीं था | </p><p>ओह, तो कितने सारे तो दोस्त थे चन्दन के | उसकी डायरी में अनगिनत लोगों के नंबर थे | क्या किसी और से चन्दन ने बात की ? या फिर वो एक भीड़ में अकेला ही था ? </p><p>बस, केवल इतना ही विचार मेरे मन मेँ आया | इस सन्दर्भ में संजीदगी का पूर्ण अभाव था | </p><p>-------------</p><p>मुझे पता ही नहीं चला कि पिछले वर्षों में, बल्कि दशकों में सिविक सेंटर का स्वरुप कितना बदल गया था | लेकिन हम सिविक सेण्टर की चकाचौंध करने वाली बत्तियों में नहीं, वरन उसके साये में बैठे थे - यानी कि सेन्ट्रल एवेन्यू के दूसरी ओर - जहाँ अँधेरे का साम्राज्य था | </p><p>और उस अँधेरे में चन्दन फल के रस बेचने वाले को हड़का रहा था , "अँधेरा है, तो ये मत समझना मैं अंधा हो गया हूँ | जूस में पानी बिलकुल मत मिलाना | समझे न |"</p><p>और वे चन्दन को छू-छू कर कसमें खा रहे थे , "नहीं साहब | हम तो जूस में कभी पानी मिलाते ही नहीं | "</p><p>"उस दिन मेरे सामने मिलाया था | मिलाया था न ? " फिर वह हादसा मुझे बताने लगा, "उस दिन क्या हुआ था - मैं अपने सामने जूस निकलवा रहा था | मुझे कोई भरोसा नहीं है इन पर - बिलकुल नहीं | ऊपर पेड़ में कोई कौवा बोला | ये बोलै,"देखो सर कौवा रात में बोल रहा है | जैसे ही मैंने ऊपर देखा, उसने फट से पानी मिला दिया | फट से ... एकदम फट से पानी मिला दिया ... | " </p><p>चन्दन की बातें सुनकर आपको लग रहा होगा, उस समय मुझे हँसी आ रही होगी | नहीं - मेरा दिल आशंका से धड़कने लगा | चन्दन की ये बातें मुझे बहकी- बहकी सी लग रही थीं | अभी तक तो चन्दन ठीक से बातें कर रहा था और हम जूस की ही दुकान में दाखिल ही हुए थे | अचानक चन्दन को क्या हो गया ?</p><p>मैंने बातों को पटरी पर लाने के लिहाज से कहा, "ठीक है भैया | पानी मिला देना, पर साफ़ पानी मिलाना | "</p><p>फलों के रस की उस दुकान पर अगले एक घंटे सिर्फ रस्साकशी ही चली | </p><p>भले चन्दन ने यहाँ भांप लिया था कि उसकी तत्कालीन परिस्थिति में मेरी कोई रूचि नहीं है | फिर भी मुझे लगता था, उसे किसी संजीदा व्यक्ति की सख्त आवश्यकता थी | उसे मुझमें एक आशा की किरण दिख रही थी, क्योकि शायद उसे रिश्तो की गली में मेरी परिस्थिति का ज्ञान था और उसने मुझे हमदर्द मान लिया था | दूसरी तरफ मैं उस वार्तालाप में संलग्न होने से बचना चाहता था, क्योंकि कभी न कभी उसकी उंगली मेरी ओर भी उठेगी | वो सवाल उठेंगे जिसके जवाब देते देते मैं इतना थक गया था कि हर परिचित से , जो लम्बे समय बाद मिल रहा हो, मैं मिलने से कतराता था | और वह समस्या का अंत हुआ कहाँ था ? वह एक नए रूप में मेरे सामने खड़ी थी , जिसके संघर्ष का उल्लेख मैं किसी से करना नहीं चाहता था | </p><p>तो चन्दन बातचीत के जिस क्षेत्र में मुझे खींच रहा था , उसके ठीक विपरीत दिशा में मैं उसे खींच रहा था - बचपन के वे सुनहरे दिन , वो प्राथमिक शाला और भिलाई विद्यालय , वो दोस्त , वो शिक्षक, वे दिन | यह वह क्षेत्र था, जहाँ चन्दन से बात करने में मैं सुविधाजनक और आश्वस्त महसूस कर रहा था |</p><p>अँधेरे में शायद चेहरा नहीं दिख रहा था , इसलिए हम एक दूसरे के चेहरे के भाव पढ़ नहीं पा रहे थे | यह अच्छी बात थी | </p><p>"क्या हुआ था ?" चन्दन ने पूछा | </p><p>कब तक मैं इसी बात का जवाब देते रहूँगा ? मैंने अति संक्षेप में चन्दन को बात बताई | दो क्षण चुप्पी सी छायी रही, मैंने उस झुलसते हुए क्षेत्र से छलांग मारने की कोशिश की ," राजीव सिंह की कोई खबर है ?"</p><p>"उसका भाई मिलते रहता है यार | " चन्दन बोला ,"घर चलकर उसको फोन लगाता हूँ | " </p><p>एक दो क्षण की ही खामोशी और दिल में उथल पुथल ....| मैं सोच ही रहा थी कि अगला प्रश्न क्या पूछा जाये ताकि बातचीत का तारतम्य इस क्षेत्र में ही बना रहे | आशंका यह भी थी कि इस रिक्तता पर वह अधिकार न जमा ले | छोटा सा जवाब और फिर वही भयावह स्तब्धता... ! इससे पहले कि अगला बम फटता , शुक्र था कि जूस वाला फलों का रस लेकर उपस्थित हो गया | </p><p>"विनोद धर का क्या हाल है ?" मैंने पूछा | </p><p>"बहुत दिनों से मिला नहीं यार उससे | उसका नंबर भी मेरे पास है | भिलाई में कब आता है, कब जाता है , कुछ पता नहीं चलता | " </p><p>"क्यों ? कहाँ काम करता है ? "</p><p>"काम तो अच्छा ही है | नोट भी अच्छा कमाता है | कभी-कभी प्लांट में भी दिखता है |" फिर वह बड़बड़ाया,"बड़ा आदमी बन गया है साला |"</p><p>तो ऐसा नहीं था कि वर्तमान से कहीं दूर, सुनहरे दिनों के उस क्षेत्र में चन्दन परम शांति महसूस नहीं कर रहा था | वह भी यादों में खो जाता था | बस, यही तो मेरी भी इच्छा थी | क्या फर्क पड़ता है बाकी बातों से | हमारी दुनिया वही तो थी | </p><p>एक बार फिर भयावह रिक्तता मुँह बाए खड़ी थी | इससे पहले कि चन्दन मुझे वापिस रिश्तों की भूलभुलैया वाली गली में घसीट लाता, जूस वाला फिर हाज़िर हो गया ,"सर, कुछ और चाहिए ?"</p><p>"तू जा बे |" चन्दन चिल्लाया ,"पता नहीं क्या, ये अमेरिका से आया है ?"</p><p>-------------------------</p><p>और चन्दन ने 'वन वे ' वाली सेन्ट्रल एवेन्यू में उलटी दिशा में अंधाधुंध कार दौड़ा दी | उसके या भारत के यातायात अनुशासन का एक नमूना तो मैं सायं देख ही चुका था | किन्तु इस बार मेरी सांस ही अटक गयी | द्रुतगामी कार, उलटी दिशा में - क्या होगा अगर कोई दूसरी ओर से यातायात के नियमों पर चलते हुए कोई वाहन आ जाये ..... | </p><p>"चन्दन", मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गयी ,"क्या हुआ ?"</p><p>चन्दन ने कोई जवाब नहीं दिया | चौराहे पर सड़क का विभाजक भी ख़त्म हो गया | अब चन्दन जरूर सड़क के बांयी ओर आएगा | पर यह क्या ? चौराहा ख़त्म करके भी चन्दन उलटी दिशा में ही चलते रहा | सड़क का विभाजक पुनः प्रारम्भ हो गया | </p><p>"चन्दन, हम लोग 'रॉंग साइड' में नहीं चल रहे हैं ?"</p><p>चन्दन ने कोई जवाब नहीं दिया | शायद उसने मेरी बात का जवाब देना भी उचित नहीं समझा | क्या वह मुझ पर ही क्रोधित तो नहीं है ?</p><p>----------------------</p><p>नहीं, चन्दन क्रोधित तो नहीं था | </p><p>"तो राजीव सिंह के भाई से बात करना है ?" घर पहुँचते ही चन्दन ने पूछा | </p><p>"गुल्लू ?" राजीव सिंह के भाई का मुझे वही नाम याद आता है | जब हम लोग शाला नंबर आठ में थे तब वह हम लोगों से तीन कक्षा पीछे पढता था | शांत स्वभाव के राजीव सिंह के विपरीत वह अव्वल दर्जे का शैतान और दुस्साहसी था - उसके चेहरे से शरारत हरदम टपकते रहती थी | और उसका पक्का दोस्त था, कालकर बहनजी का सबसे छोटा लड़का बॉबी , जो उससे भी ज्यादा शैतान था | </p><p>"हाँ, वही | प्लांट में अक्सर मिलते रहता है | "</p><p>चन्दन ने फोन लगाया | रिंग बजते रही | चन्दन झल्ला गया ,"साला, फोन नहीं उठा रहा है |" उसने दुबारा कोशिश की और फिर तिबारा | लेकिन असफलता ही उसके हाथ लगी | </p><p>तभी किसी का फ़ोन आया | </p><p>"प्रमोद मिश्रा |" वह बोला | फिर उसने फ़ोन मुझे थमा दिया | </p><p>"विजय, अभी मेरी कालकर बहन जी के लड़के से बात हुई है |" प्रमोद मिश्रा की आवाज़ में एक पल का विराम लगा ,"कालकर बहनजी का देहांत हो गया है |"</p><p>"ओह |" इससे ज्यादा उदगार प्रकट करने के लिए शब्द ही नहीं सूझ रहे थे | फिर शांति छा गयी | एक युग का अंत ... | </p><p>सुनकर चन्दन भी काफी देर तक खामोश बैठे न जाने क्या सोचते रहा | फिर बोला ,"पता नहीं | साहू सर कहाँ होंगे ? और बिजोरिया बहनजी ?"</p><p>अचानक फोन की घंटी बजी | राजीव सिंह का भाई गुल्लू था | </p><p>"कहाँ है बे ? फोन क्यों नहीं उठाता ?" चन्दन जिस लहजे में बोला, उसमें झिड़की से ज्यादा आत्मीयता का पुट था | </p><p>गुल्लू शायद कोई सफाई दे रहा था | फिर चन्दन ने पूछ लिया ,"राजीव सिंह कहाँ है ?"</p><p>उसका जवाब सुनकर उसने शायद कोई बात दोहराई ,"तो वो नहीं आ सकता ?"</p><p>उस फोन के बाद एक बात तो तय हो गयी | </p><p>"न तो कालकर बहनजी है , न राजीव सिंह ही |"</p><p>"हाँ यार |" चन्दन ने कहा ,"प्राथमिक शाला का "गेट टुगेदर" बाद में कभी कर लेंगे | पहले 'भिलाई विद्यालय' का कर लेते हैं |"</p><p>भिलाई विद्यालय के दोस्तों की सूची बनाना अपेक्षाकृत आसान था | शाला क्रमणक आठ की अपेक्षा भिलाई विद्यालय के कम मित्र ही धुंधलके में अंतर्ध्यान हुए थे | बाकि सब, इधर उधर अक्सर चन्दन से टकराते रहते थे | फिर लड़कियाँ भी तो नहीं थी | </p><p>"कौशलेन्द्र याद है ?" चन्दन ने पूछा | </p><p>"झा सर का लड़का ?"</p><p>"हाँ , वही | सेक्टर ९ अस्पताल में बहुत बड़ा डॉक्टर है |"</p><p>-------------------------------------</p><p><i>भिलाई विद्यालय में कौशलेंद्र को भला कौन भूल सकता था ? </i></p><p><i>तिलक जयंती हो, शिक्षक दिवस हो, सम्भाषण हो या वाद-विवाद | अगर कौशलेन्द्र मंच पर न दिखे तो लोग पहले आँखें मलते थे, फिर सर खुजलाते थे | छोटा कद, घुटा हुआ सर, जिसमें एक चोटी परिलक्षित होती थी | ऐसा चेहरा-मोहरा उन दिनों काफी कम देखने में आता था | मुझे याद है, जब दादा और दादी की मौत हुई थी और मेरा मुंडन हुआ था, मैं गाँधी टोपी या काली टोपी पहन कर शाला जाता था | लेकिन कौशलेन्द्र को इसमें कोई भी असुविधा नहीं थी | उस पर कोई कुछ भी कहे, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था | और जब वह मंच पर आता था, तो लोग दम साधे उसकी बाते सुनते ही रहते थे | </i></p><p><i>अचानक झा सर के खुशहाल परिवार पर एक गाज़ सी गिरी | कौशलेन्द्र की बड़ी बहन की डॉक्टरों की लापरवाही के कारण अकाल मृत्यु हो गयी थी | </i></p><p><i>"...कौशलेन्द्र आजकल बहुत उदास रहता है। ..|" चन्दन ने बताया था ,"डेस्क में सर छुपाकर कुछ-कुछ संस्कृत के श्लोक कहते रहता है | तू बात करेगा उससे ?"</i></p><p><i></i></p><p><i>तब तक कौशलेन्द्र से थोड़ी बहुत बातचीत जरूर थी | इस दुखद समाचार को घर में बाबूजी ने खुद ही बताया था | मेरी बड़ी बहन भी उन्हीं की कक्षा में पढ़ती थी | इस तरह इस दुखद समाचार की मुझे जानकारी अवश्य थी, लेकिन किसी मित्र को, जिसने अपना परिजन खोया हो, सांत्वना देने का ये मेरा प्रथम प्रयास था | ऊपर से कौशलेन्द्र से आज तक मैंने कभी आमने-सामने बात ही नहीं की थी | था भी तो वह था चन्दन के वर्ग 'अ' में | इसलिए कभी मुलाकात की गुंजाइश आधी छुट्टी या पांच मिनट के लघु अवकाश में ही हो सकती थी कौशलेन्द्र स्वाभाव से काफी हँसमुख लड़का था | उसके चेहरे पर मैंने हरदम हँसी ही देखी थी | कई बार मुझे लगता था कि सख्त झा सर ने अपने घर में हँसने पर प्रतिबन्ध लगा रखा है, इसलिए कौशलेन्द्र अपनी हसरत विद्यालय में ही निकालता था | उसके आलावा कौशलेन्द्र मंच पर हमेशा छाया रहता था, इसलिए काफी लोकप्रिय था | ऐसे लोग हमेशा मित्रों से घिरे रहते हैं | ऐसा हो ही नहीं सकता था कि आप ऐसे लोगों से बातचीत करें और बातचीत में तीसरा, चौथा और कई बार कोई पाँचवां सम्मिलित न हो | </i></p><p><i>बाहर तेज़ बारिश हो रही थी | दूसरी मंज़िल के कोने वाले कक्ष में सातवीं 'अ' की कक्षा लगती थी | चन्दन ने मुझे छोर की दीवार के पास इंतज़ार करने का इशारा किया | </i></p><p><i>"बात करेगा ? दो मिनट रुक | मैं बुला कर लाता हूँ |" </i></p><p><i></i></p><p><i>पाँच</i><i> मिनट का लघु अवकाश था | भिलाई विद्यालय की नई इमारत की वह दूसरी मंज़िल थी | चन्दन कौशलेन्द्र को बुलाकर लाया जरूर ,पर वह खुद खिसक गया | </i></p><p><i>"सुनकर बड़ा दुःख हुआ |" मैंने शब्द पिरोने की कोशिश की , "कैसे हो गया ?"</i></p><p><i>ये वो शब्द थे , जो न जाने मैंने कितने बार सुने और खुद भी दोहराये थे | </i></p><p><i>...सात तरु मार्ग और सेन्ट्रल एवेन्यू बारिश में चांदी की तरह चमक रहे थे | जिस जगह वे मिल रहे थे, उस चौराहे पर २५ मिलियन टन का प्रतीक चिन्ह लगाया गया था | </i></p><p><i>बरसती वर्षा की पृष्टभूमि के सम्मुख कौशलेंद्र की आंखों में मैंने उस दिन दृढ संकल्प, उद्देश्यों का निर्धारण और अदम्य , अटूट निश्चय की एक झलक देखी थी | </i></p><p><i>--------------------------</i></p><p>मेरे कुछ कहने के पूर्व ही चन्दन ने डॉक्टर कौशलेन्द्र को फोन लगा दिया | रिंग बजते रही और फिर बंद हो गयी </p><p>"तू उससे बाद में बात कर लेना | ले, नंबर नोट कर ले |" </p><p>"अब कौन ?"</p><p>"चल, तुझे मुरली से मिलाता हूँ |" चन्दन ने कहा | वही तो वे शब्द थे, जो उसने मुझसे वर्षों पहले कहे थे |</p><p>एक मिनट .. एक मिनट ... सीधे मुरली क्यों ? बीच का एक बड़ा सा खाना मुझे रिक्त दिखा | </p><p>------------------</p><p></p><p><i>मुरली कौन ?</i></p><p><i>मुरली ने जब भिलाई विद्यालय में कदम रखा तो एक तहलका सा मच गया था | </i></p><p><i>"अबे , उसने वाजपेयी सर को भी चैलेंज कर दिया |" चन्दन की आँखों में चमक थी | </i></p><p><i></i></p><p><i>सातवीं कक्षा के वर्ग 'अ' में वाजपई सर अंग्रेजी के सबसे ज्यादा सम्मानित शिक्षक थे | वर्ग 'ब' के अंग्रेजी शिक्षक लम्बे चौड़े सिख - शेर सिंह रंधावा सर थे और हमारे अंग्रेजी के शिक्षक मज़ेदार , लेकिन कड़क गोस्वामी सर थे | </i></p><p><i>मुरली के सम्बन्ध में कई तरह भ्रांतियां और किंवदंतियां हवा में तैर रही ी, जो थमने का नाम नहीं ले रही थी | सबसे पहले ये सुनने में आया कि उसके पिताजी "स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड" पर एक बहुत बड़े पद पर थे और स्थानांतरित होकर आये थे | घर में अंग्रेजी का माहौल था | मुरली फर्राटेदार नहीं, बल्कि झन्नाटेदार अंग्रेजी बोला करता था | कुछ किस्से ऐसे थे कि पहले मुरली को सेक्टर ४ और सेक्टर १० के अंग्रेजी विद्यालयों में प्रविष्टि दिलाने की कोशिश की गयी, लेकिन अँगरेज़ के बेशरम वंशज नियम और कायदे कानून दिखाने लग गए | तब मुरली के पिताजी ने ताल ठोंककर कहा, ठीक है, मेरा लड़का हिंदी माध्यम में पढ़कर ही तुम्हे आइना चमकाएगा | </i></p><p><i>और आते ही साथ मुरली ने डंका बजाना शुरू किया | अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय भी अपने यहाँ अंतर-शालेय सम्भाषण , वाद विवाद की प्रतियोगिताएं रखा करते थे | जाहिर है, उनकी प्रतियोगिताएं अंग्रेजी में ही होती थी | वे खानापूरी के लिए हिंदी माध्यम की शालाओं में भी आमंत्रण भेजते थे | और खानापूरी के लिए ही हिंदी माध्यम वाले अपने प्रतियोगी भेजा करते थे | उच्चतर कक्षाओं में अंग्रेजी के एकाध वक्त जरूर थे, लेकिन माध्यमिक कक्षाओं में दूर दूर तक कोई नहीं था | अब इन सब बातों का जवाब मुरली था | </i></p><p><i>१९७७-७८ को भारत का ऑस्ट्रेलिया दौरा चल रहा था | जेफ़ थॉमसन को संसार का तेज़ गेंदबाज़ माना जाता था | </i></p><p><i>चन्दन बहुत उत्साहित था "अबे | लोग बोलते हैं, उसकी बॉल नहीं दिखती | बैट्समेन लोग बॉल की धूल देखकर मारते हैं | "</i></p><p><i>दूसरा कहता, "बेदी तक की बॉल नहीं दिखती | इतनी तेज़ बॉल आती है | साइट स्क्रीन में देखना पड़ता है |"</i></p><p><i></i></p><p><i>बात चल ही रही थी कि चन्दन ने मुझे एक ओर खींचा | </i></p><p><i>"चल, तुझे मुरली से मिलाता हूँ |" चन्दन बोला | मन के एक कोने से आवाज़ उठी,"क्यों ,क्यों, क्यों ? मैं वैसे ही ठीक हूँ | "</i></p><p><i>"ठीक है |"मरी आवाज़ में मुँह से यही निकला | </i></p><p></p><p><i>चंदन मुरली को लेकर आया | </i></p><p><i></i></p><p><i>तो ये मुरली है | दुबला पतला, थोड़ा सामने झुका हुआ | यानी थोड़ी सी कूबड़ निकली हुई | करीने से इस्तरी किये हुए वस्त्र | मैंने तपाक से हाथ बढ़ाया ,"मुरली मियां | बढ़ाओ दोस्ती का हाथ |" </i></p><p><i>तो जब मुरली ने अंग्रेजी माध्यम की शालाओं में विभिन्न प्रतियोगिताओं में झंडे गाड़ने शुरू किये तो भिलाई विद्यालय के अंग्रेजी विभाग में नए जीवन का संचार हुआ | अब मुरली के जोड़ीदार की तलाश शुरू हुई जो अंग्रेजी के वाद-विवाद में मुरली के साथ मिलकर भिलाई विद्यालय की चुनौती पेश कर सके | उनको ज्यादा दूर जाने की आवश्यकता नहीं पड़ी | उन्हें मुरली के टक्कर का तो नहीं, पर उतना प्रबल वक्ता </i><i>तो </i><i>मिल ही गया जो मुरली के साथ वाद-विवाद का दूसरा पक्ष संभाल सके | </i></p><p><i>मुरली की इस सफलता ने दूसरे वर्ग के लोगों को भी प्रोत्साहित किया | वर्ग 'ब' में अंजय और शरद निगम को शेर सिंह सर ने चाभी भरी | वे भी मैदान में आये, लेकिन मुरली और उसकी जोड़ी बदस्तूर जमी रही | लेकिन वह तो न केवल अंग्रेजी वरन हिंदी का भी अच्छा वक्ता था | </i></p><p>"और आशीष ?आशीष पुरंदरे ? " मैंने पूछा | </p><p></p><p>"आशीष तो ख़तम हो गया |" चन्दन ने जवाब दिया | </p><p>-------------</p><p>"चल, मैं बाकी सब से बात कर लूंगा |" चन्दन ने थोड़ी ख़ामोशी के बाद कहा | कहीं न कहीं से टपकती कोई बुरी खबर से वह भी परेशान हो गया | </p><p>तभी दरवाजे पर खटखट हुई | चन्दन ने दरवाजा खोला | </p><p>"अभी आ रहा है बे ?" चन्दन बोला,"तीन दिन से खटिया तोड़ रहा था ? वो तो हॉस्टल भी चले गयी | चल, बहाना बना फ़टाफ़ट |"</p><p></p><p>"सर, मैं बस आ ही रहा था | " दाढ़ी वाले ने हँसते हुए कहा | </p><p>"कौन है ये ?" मैंने पूछा | </p><p>"इंटरनेट वाला |" चन्दन बोला ,"बहुत लूटते हैं साले | अपने को तो पता नहीं चलता | जब बच्चे आते हैं तो बोलते हैं, पापा इंटरनेट बहुत धीमा है | सेल, पैसे लेंगे राकेट का और स्पीड देखो तो बैलगाड़ी की |" </p><p>"नहीं सर, स्पीड तो अच्छी ही है |"</p><p>"चुप बे | " </p><p>"अभी टेस्ट कर लेते हैं |" मैंने कहा ,"चन्दन, किधर है तेरा कंप्यूटर ?"</p><p>कमरे के एक कोने में एक डेस्कटॉप था | जिसके मॉनिटर पर धूल से बचाने के लिए कवर लगा था | चन्दन ने कपड़ा हटाते हुए कहा ,"अमेरिका से मेरा दोस्त आया है | अभी पता चल जायेगा |"</p><p>कम्प्यूटर के चालू होने में ही बहुत समय लग गया | </p><p>"आपका कम्प्यूटर ही पुराना है सर |" </p><p>"चुप बे | बच्चों के पास लैपटॉप है |" चन्दन ने डपट दिया | </p><div><div>घरेलू कामों के लिए कम्प्यूटर का 'कॉन्फिगरेशन' कोई बुरा नहीं था | 'ए. एम. डी.' का प्रोसेसर था | रेम भी चार जी. बी. का था | </div><div><br /></div><div>"ठीक है | 'यू ट्यूब' चालू कर |" मैंने कहा | </div><div><br /></div><div>"क्या ?" चन्दन कुछ समझा, कुछ नहीं , "तू इधर आ | बैठ इधर |"</div></div><div><br /></div><div><div>उसने मुझे डेस्कटॉप के सामने बैठा दिया | दिसंबर की ठण्ड में उसने एक मिनट के पंखा चालू किया और फिर बंद कर दिया | मैंने इंटरनेट चालू किया और पुरानी अमिताभ बच्चन वाली "डॉन" का गाना खोजकर चलाने की कोशिश की | गाना थोड़ा 'बफर' हुआ, चला, फिर रुक कर बाकी हिस्सा 'बफ़र' होने लगा | </div><div><br /></div><div>"देख लो भइया |" मैंने इंटरनेट सर्विस वाले को कहा | </div></div><div><br /></div><div><div>"सर आपका कम्प्यूटर पुराना हो गया है |"</div><div><br /></div><div>इससे पहले मैं कुछ कहता, चन्दन भड़क गया | मैंने बात संभाली,"ए. एम. डी. प्रोसेसर और चार जी बी 'रेम' ... | "</div><div><br /></div><div>चन्दन ने भी सुर बदला,"अबे, मेरा दोस्त अमेरिका से आया है |"</div><div><br /></div><div>"सर, आपके कंप्यूटर में 'मालवेयर' होगा |"</div><div><br /></div><div>"वो सब हम बाद में देख लेंगे | तुम अपनी 'स्पीड चेक' कर लो | या हम इस 'पुराने' कम्प्यूटर पर 'स्पीड टेस्ट' करें ?"</div><div><br /></div><div>उसने आखिरी दांव खेला,"सर, आपका प्लान इतने का ही है | आप ऊँचा वाला प्लान ले लो |"</div></div><div><br /></div><div><div>चन्दन ने कागज़ पत्र खंगाले और सर्विस एग्रीमेंट निकाल लाया | घरेलु उपयोग के लिए वह पर्याप्त था | </div><div><br /></div><div>"इसमें जितने एम्.बी.पी.एस. लिखा है, उतनी स्पीड दिखाओ |" मैंने कहा | </div><div><br /></div><div>"सर, ये तो सबसे ज्यादा स्पीड है | ऊपर नीचे तो होते रहता है | जैसे आप गाड़ी खरीदते हैं तो जितना माइलेज लिखा रहता है, उतना ... "</div><div><br /></div><div>"कहाँ की बात कहाँ भिड़ा रहे हो यार ?"</div><div><br /></div><div>अब चन्दन को शह मिल गयी ,"चल तो बे , अपने मालिक को फोन लगा | जबान लड़ाता है ?"</div><div><br /></div><div>हारकर इंटरनेट वाले ने स्पीड चेक की | वाकई काफी धीमी स्पीड निकली | </div></div><div><br /></div><div>-----------</div><div><br /></div><div><div>इंटरनेट वाले के अकस्मात् आगमन का फल यह हुआ कि बातचीत की दिशा ही बदल गयी | </div><div><br /></div><div>"तू 'फेसबुक' उपयोग करता है ?" चन्दन ने पूछा ,"करता ही होगा |"</div><div><br /></div><div>"हाँ |", मैंने कहा | </div><div><br /></div><div>"बड़ी लड़की ने मेरा अकाउंट बनाया है |" चन्दन बोला | </div><div><br /></div><div>"ओह अच्छा | तब तो हम दोनों को दोस्त बन जाना चाहिए - 'फेसबुक' में |"</div><div><br /></div><div>"एक मिनट रुक | मैं तुझे अपना एकाउंट नाम बताता हूँ | मैंने संभाल कर रखा है |" चन्दन डायरी के पन्ने उलटने लगा | </div><div><br /></div><div>"उसकी जरुरत नहीं है | मैं तुझे खोज लेता हूँ |" मैंने कहा | </div><div><br /></div><div>मैंने 'फेसबुक' के 'सर्च बार' पर "चंदनदास + भिलाई " टाइप किया | दो-तीन चेहरे फुदककर बाहर आये | उसमें चन्दन का प्रोफाइल एक था | </div></div><div><br /></div><div><div>"ये तू है ?" मैंने चन्दन पूछा | </div><div><br /></div><div>चन्दन हैरानी से मेरी ओर देख रहा था ,"तूने ये कैसे किया ? हाँ , हाँ | मैं ही हूँ |"</div><div><br /></div><div>मैंने चन्दन को एक 'फ्रेंड रिक्वेस्ट' भेजी ,"मैं तुझे एक 'फ्रेंड रिक्वेस्ट' भेज रहा हूँ | जब तू 'लॉग ऑन' करेगा तो मेरा 'रिक्वेस्ट' 'एक्सेप्ट' कर लेना |"</div><div><br /></div><div>"क्या करना है ?"</div><div><br /></div><div>"कुछ नहीं | 'एक्सेप्ट' बटन दबा देना |"</div><div><br /></div><div>"उससे क्या होगा ?"</div><div><br /></div><div>"कुछ नहीं | हम दोनों दोस्त बन जायेंगे - 'फेसबुक' में | "</div><div><br /></div><div>ओह, मैं स्क्रीन पर देखते हुए उससे बातें किये जा रहा था | मुझे उसका चेहरा तो एक बार देख लेना था, जहाँ पहेलियों का अम्बार जमा हो गया था | </div><div><br /></div><div>"ठीक है | एक काम करते हैं |" मैंने कहा,"तू अपना "युसर नाम और पासवर्ड लेकर आ और यहाँ बैठ |"</div></div><div><br /></div><div>-------------</div><div><br /></div><div><div>"आजकल बच्चे लोग भी कहाँ बताते हैं यार ?" चन्दन भुनभुना रहा था | </div><div><br /></div><div>"क्या ?" मैं चन्दन की बात सुनी-अनसुनी कर रहा था ,"देख भाई | बच्चों ने ही तो तेरा 'फेसबुक' अकॉउंट बनाया है | हाँ या नहीं ? "</div><div><br /></div><div>क्या ये वही चन्दन था ? चन्दन तो कभी लचर नहीं था | </div><div><br /></div><div>"कुछ नहीं रखा इन सब में चन्दन भाई | अरे, जब त्रिकोणमिति, क्षेत्रमिति , गुणात्मक और हरात्मक श्रेणी के भारी-भरकम सवाल हल कर डाले हैं अपन ने तो ये बटन दबाना कौन सी बड़ी बात है ? मैं हूँ न | तू मुझे बता, तू चाहता क्या है ? मैं तुझे अभी तोप बना देता हूँ | " </div></div><div><br /></div><div>"तू लोगों को खोज कैसे लेता है ?"</div><div><br /></div><div>"देख वो खाली डब्बा दिख रहा है ? वही जिसके बगल में आवर्धक लैंस की तस्वीर बानी है ? वहां कोई भी नाम टाइप कर |"</div><div><br /></div><div>"कोई भी नाम ? "</div><div> </div><div>"हाँ | लेकिन उसका फेसबुक में खाता भी तो होना चाहिए |"</div><div><br /></div><div><div>अब चन्दन थोड़ा सोच में पड़ गया | वैसे भी वह एक-एक अक्षर खोज खोज के एक उंगली से टाइप कर रहा था | उसने जो दो चार अक्षर टाइप किये थे, उसे मिटा दिया और कुंजी-पटल मेरी ओर खिसकाते हुए बोलै,"तू टाइप कर यार |"</div><div><br /></div><div>"क्या टाइप करूँ ?"</div><div><br /></div><div>"जो बोल रहा हूँ , टाइप कर .... एन. ए. एन... | "</div><div><br /></div><div>मैं काँप गया | </div><div><br /></div><div><i>राजीव जावले बचपन का दोस्त था | प्राथमिक शाला से ही चन्दन और वह सहपाठी थे | भिलाई विद्यालय में भले अलग-अलग वर्ग में थे, लेकिन जब कोचिंग-कक्षाएं प्रारम्भ हुई तो चन्दन और वो फिर एक छत के नीचे आ गए | आगे दुर्ग पॉलिटेक्निक में भी साथ में थे | तो दूसरे वर्ष के शुरू में रैगिंग लेने के दौरान चन्दन ने राजीव जावले को जम कर पीटा | प्रत्यक्षदर्शी कहते हैं कि चन्दन के सर पर मानो खून सवार हो गया था | </i></div></div><div><br /></div><div><div><i>जो मुझे कारण पता चले, उसमें मुझे चन्दन की लेशमात्र भी गलती नहीं दिखी | चन्दन की जगह मैं , आप या कोई और भी होता तो अगर हाथापाई नहीं तो कम से कम कहा-सुनी अवश्य हो जाती | और चन्दन तो वह था, जो दिल के पास रखी तस्वीरों पर हलकी सी खरोंच भी बर्दाश्त नहीं कर पाता था | </i></div><div><br /></div><div><i>हुआ यह कि रैगिंग के दौरान सेक्टर चार के अंग्रेजी माध्यम विद्यालय से एक छात्र दुर्ग पॉलिटेक्निक में आया था | यह सामान्य सी बात है कि रैगिंग के दौरान लोग खूबसूरत लड़कियों की बातें बीच में ले ही आते हैं और फिर जूनियर के चेहरे पर उतरते-चढ़ते भावों को देखकर प्रफुल्लित होते हैं | जब उसको पता चला कि पंछी सेक्टर चार अंग्रेजी माध्यम विद्यालय से पंख फड़फड़ाकर आया है तो उस आशिक मिज़ाज़ी राजीव जावले ने बातों-बातों में पूछ लिया ,"तू एन. डी. को जानता है ?" और रैगिंग लेने वाले लड़कों की उस छोटी सी भीड़ में चन्दन भी था .... | </i></div></div><div><br /></div><div><div>नाम टाइप करते समय मेरी उंगलियां मानो जवाब दे रही थी | मेरे सर पर वह बब्बर शेर खड़ा था जिसने जावले का भुर्ता बना दिया था | किसी तरह टाइप करके मैंने 'इंटर' की कुंजी दबाई | काश, उसकी प्रोफाइल ना हो | जितने भूले भटके चेहरे सतह पर उभरे , मैं उन्हें ऊपर सरकाते जा रहा था | </div><div><br /></div><div>"रुक | रुक.... | अबे रुक बे ...| हाँ, उस फोटो पर क्लिक कर .... |"</div><div><br /></div><div>वह एक क्षण फोटो देखते रहा | फिर मुझसे बोला ," तू अमेरिका में कहाँ पर रहता है ?"</div><div><br /></div><div>"मैं ? कैलिफ़ोर्निया एक प्रदेश है ... |"</div><div><br /></div><div>"ये भी कैलिफोर्निया में रहती है | तू कौन से शहर में रहता है ?"</div><div><br /></div><div>"मैं तो प्लीसैंटॉन में रहता हूँ |"</div><div><br /></div><div>"फ्रीमोंट वहां से कितनी दूर होगा ?"</div><div><br /></div><div>"मैं प्लीसैंटॉन में रहता हूँ और ऑफिस सांता क्लारा में है | दोनों के बीच में फ्रीमोंट है |"</div><div><br /></div><div>"ये मेरे चाचा की लड़की है |"</div><div><br /></div><div>मेरे मुँह से निकला ,"मैं जानता हूँ |" फिर तुरंत संभल कर बोला ,"हाँ | तूने मुझे स्कूल के दिनों में बताया था |"</div><div><br /></div><div>"हाँ-हाँ | सेक्टर चार में थी | "</div></div><div><br /></div><div><div>चन्दन के जीवन में किसी ने गहरा प्रभाव डाला था , बल्कि एक उद्दंड बालक के मन में पढ़ाई के प्रति रुझान अगर किसी ने उत्पन्न किया था , तो वही थी जिसकी प्रोफ़ाइल सामने खुली थी | चन्दन बोले जा रहा था, " पति- पत्नी ने मिलकर एक कंपनी खोली है | तूने '...... ' का नाम तो सुना ही होगा ?"</div><div><i><br /></i></div><div><i>चन्दन कुछ बोल रहा था, मुझे कुछ और याद आ रहा था | शायद दसवीं में चन्दन मुझसे भौतिक के 'कारण बताओ' जैसे कुछ प्रश्न पूछता था और मैं उनके जवाब दे दिया करता था , क्योंकि वे प्रश्न रुसी पुस्तक 'मनोरंजक भौतिकी' से होते थे , जो मैं बीच बीच में पढ़ लिया करता था | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>चन्दन को कई बार आश्चर्य होता ,"तुझे कैसे मालूम ?"</i></div><div><i><br /></i></div><div><i>"पता नहीं यार | जिसने तुझे प्रश्न दिया और तू जिससे वह प्रश्न पूछ रहा है, हो सकता है, दोनों ने एक ही किताब पढ़ी हो |"</i></div></div><div><i><br /></i></div><div><div>चन्दन ने आगे पूछा, " नहीं सुना ?"</div><div><br /></div><div>"हाँ | हाँ , सुना है यार |" मैंने कहा, " सिलिकॉन वैली' में बड़ा नाम है | तेरी तरफ से इसको 'फ्रेंड रिक्वेस्ट' भेज दें ?"</div><div><br /></div><div>-----------------</div></div><div><br /></div><div><div>अगर इस 'सर्च' से मुझे पांव के नीचे से ज़मीन खिसकती महसूस हुई थी तो चन्दन के अगले 'सर्च' की फरमाइश ने तो मुझे चारों खाने चित्त कर दिया | </div><div><br /></div><div>चन्दन एक-एक अक्षर बहुत ही सावधानी से धीरे धीरे बोल रहा था , मानो दीवारों के भी कान होते हों | हो सकता है, दीवारों के भी कान होते हों | मुझे क्या पता था ?</div><div><br /></div><div><i>"यार, घर में हम लोग सब काले हैं |"</i></div><div><i><br /></i></div><div><i>"अरे छोड़ न यार चन्दन |" मैंने तत्काल प्रतिवाद किया , "क्या फरक पड़ता है यार ?"</i></div><div><i><br /></i></div><div><i>"नहीं यार | चाचा के बच्चे देखो | कैसे गोरे- चिट्टे हैं, रशियन जैसे | इसलिए पिताजी चाहते हैं कि हम लोगों की शादी गोरी लड़की से हो ताकि हमारे बच्चे भी गोरे हों | "</i></div><div><i><br /></i></div><div><i>अब भिलाई विद्यालय में वयः संधि की उम्र थी | सपने देखने पर कोई टैक्स तो था नहीं | पर मुझे क्या मालूम था, बल्कि यूँ कहूं कि मुझ अनजाने को छोड़कर सारे जहान को मालूम था कि चन्दन भाई मुहब्बत की गिरफ्त में फँस चुके हैं | </i></div><div><i><br /></i></div><div><div>पता नहीं, मुहब्बत में शायद वो शक्ति होती है जो किसी को भी या तो काफी सबल बना देती है या काफी कमज़ोर | यह काफी हद तक संभव था कि वह चन्दन के लिए उन दिनों किसी प्रेरणा शक्ति का काम करते रही |</div><div> </div><div>मगर अब ? इस समय ? हाँ | संयोग से वह प्रोफाइल भी 'फेसबुक' में दिख गया | </div><div><br /></div><div>न तो मैंने कुछ पूछा , न उसने कुछ कहा | एक आशंका सी रही कि वह कहीं 'फ्रेंड रेकवेस्ट' भेजने न कह दे | अगर वह कहता तो भी मैं मना कर देता | दीवाना वह था, मैं नहीं | </div><div><br /></div><div>हो सकता है, मैं कुछ ज्यादा ही सोच रहा था | </div><div><br /></div><div>क्या रस्साकशी में चन्दन जीत गया था ?</div><div><br /></div><div>-------------</div></div><div><br /></div><div><div>वे विलुप्त लोग, अदृश्य हुई छाया , खोयी हुई छवि ....</div><div><br /></div><div>क्या सब आएंगे ? के कोई आएगा भी ? क्या कुछ लोग आएंगे और कुछ संकोच की जंजीरें तोड़ नहीं पाएंगे ?</div><div>क्या लोगों के चेहरे बदल गए होंगे ? क्या चेहरे वही होंगे और आवाज़ बदल गयी होगी ? या आवाज़ ही पहचान होगी ? हो सकता है, चेहरे और आवाज़ दोनों बदल गए होंगे | </div><div><br /></div><div>सब से पहले भौला गिरी मिला , जिसकी न तो आवाज़ बदली थी और न ही चेहरा |</div><div><br /></div><div>भिलाई विद्यालय में एक-एक करके सारे मित्र इकठ्ठा होने लगे | </div></div></div><div><br /></div><div><div>समय तो दिया गया था नौ बजे और मैं नौ बजे पहुँच भी गया | लोग तो नहीं आये , हाँ किसी किसी के फोन जरूर आ रहे थे, "कितने लोग आये ? क्या सब लोग आ गए ? कितने बजे शुरू होगा ?" अंत में , "मैं बस अभी निकल ही रहा हूँ |"</div><div><br /></div><div>एक मिनट - क्या वो भोला गिरी है ? हाँ , वह भोला गिरी ही तो था | प्राथमिक शाला में उसकी गतिविधियां देखकर कोई भी भविष्यवाणी कर सकता था कि वह बांका कसरती जवान होगा | पर ये क्या ? भोला तो दुबला पतला .. ऊंचाई भी कोई ख़ास नहीं बढ़ी | चेहरे और चेहरे की मुस्कान देखकर ही ज्ञात होता था कि यह भोला ही है | </div></div><div><i><br /></i></div><div><div>मैं और भोला एक कमरे में बैठे थे | उस चौगड्डे का एक प्रमुख सदस्य - भोला , लगता था , किसी बोझ से दबे जा रहा था | उसके पास बताने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था | उसके पास पूछने की भी शक्ति तो नहीं थी | वह केवल सुनना चाहता था | </div><div><br /></div><div>जिस तरह मेरा मन पीछे भाग रहा था, शायद उतनी ही तेज़ी से उसका मन भी अतीत में कुछ टटोल रहा था | </div><div style="font-style: italic;"><br /></div></div><div><div>"विजय भाई, पिछले दिनों मैंने अखबार में एक खबर पढ़ी थी | किसी शाला के कुछ लोग पैंतीस साल बाद एक दूसरे से मिले |"</div><div><br /></div><div>"चालीस साल तो अपने को भी हो गया है यार - प्राथमिक शाला से निकले |" </div></div><div><br /></div><div><div>"क्यों न हम लोग भी अपने प्राथमिक शाला का सम्मिलन आयोजित कर लें ? मज़ा आ जायेगा गुरु || "</div><div><br /></div><div>"पहले मैंने और चन्दन ने वही सोचा था कि पहले प्राथमिक शाला के लोग ही मिल लें | लेकिन राजीव सिंह तो अभी यहाँ है नहीं | उसके बिना कोई कार्यक्रम आयोजित करने की सोच भी नहीं सकते |"</div><div><br /></div><div>राजीव सिंह का नाम सुनते ही उसकी आँखों में चमक आ गयी | चन्दन का उल्लेख आते ही उसके हाथों में हरकत सी हुई | लग रहा था, मन के किसी कोने में प्रसुप्त बालक भोला गिरी अंगड़ाई ले रहा है | </div><div><br /></div><div>"विनोद धर कहाँ है विजय भाई ? प्रमोद मिश्रा तो कभी कभी दिख जाता है | एक बार मनमोहन को दूर से देखा था | बहुत लम्बा हो गया है |"</div></div><div><br /></div><div>भोला के साथ बातें करते-करते समय का पता ही नहीं चला | नीचे भिलाई विद्यालय के लॉन में, जिसमें हमें बागवानी के पीरियड में घास उखाड़ने का अनुदेश मिलता था,, एक कोलाहल सा हुआ और फिर हम लोगों की तन्द्रा टूटी | </div><div><br /></div><div><div>ढेर सारे लोग इकठ्ठा हो गए थे | कुछ लोग पहचान में आ रहे थे , कुछ नहीं | अंगारे सर की बात याद आ रही थी,"जिनके बाल पकते नहीं, उनके बाल झड़ जाते हैं | </div><div>हाथ में पट्टी बाँधे सुरेश बोपचे खड़ा मुस्कुरा रहा था | विनोद धर किसी के साथ ठिठोली कर रहा था | भोला गिरी को देखते ही दोनों उसकी ओर लपके | अचानक भोला के उत्साह से बढे कदम कुछ धीमे पड़ गए | </div><div><br /></div><div>पर चन्दन कहाँ था ?</div></div><div><br /></div><div><div>न जाने कितने चिर परिचित चेहरे इतने वर्षो के बाद दिख रहे थे | शरद निगम, प्रदीप पाटिल, अंजय, राणा प्रताप, वज़ी, सूर्य, इंद्रजीत , रामवृक्ष, अप्पाराव , अनिल नारखेडे, कृष्णेश्वर, अजय कौशल, गौर, मनमोहन ... | </div><div><br /></div><div>पर चन्दन कहाँ था ? </div><div><br /></div><div>उसको फोन लगाया पर उसका फोन 'ऑफ' था | </div><div><br /></div><div>जब हर्षोल्लास थोड़ा सा शांत हुआ, तब प्रतीक ने कहा," चलो, झा सर को लेकर आते हैं |" जो कार लेकर आये थे, उन्होंने अपनी कार की पेशकश की | अब तय हो रहा था कि किसकी कार इस कार्य के लिए सर्वोत्कृष्ट है | </div><div><br /></div><div>तभी अचानक जोर का कोलाहल हुआ और चन्दन आ गया | </div></div><div><br /></div><div><div>चन्दन के आते ही मानो महफ़िल में नया रंग छा गया | सब के सब चन्दन पर टूट पड़े | </div><div><br /></div><div>लम्बे अंतराल के बाद चौगड्डा आज फिर इकठ्ठा हुआ था - भोला गिरी, सुरेश बोपचे , विनोद धर और चन्दन | प्लास्टर बंधे हाथ को हिलाकर सुरेश बोपचे ने किलकारी भरी | चन्दन अपनी मुस्कान छिपाने की भरपूर कोशिश कर रहा था | ख़ुशी किसी भी क्षण फूट कर बाहर आने ही वाली थी | </div><div><br /></div><div>ठिठोली की मुद्रा में बाहें फैलाये, विनोद धर नाटकीय अंदाज़ में आगे बढ़ा ,"कालू मेरे दोस्त |"</div><div><br /></div><div>अचानक सब कुछ ठहर सा गया | चन्दन के आँखें गुस्से से लाल हो गयी | उसके कदम ठिठक गए थे | </div><div><br /></div><div><i>मेरे लिए यह दृश्य कोई नया नहीं था | प्राथमिक शाला में अनेकों बार इसकी पुनरावृत्ति हुई थी | अब चन्दन विनोद धर को कस के मुक्का जमायेगा | विनोद धर खींसे निपोरेगा और इधर उधर भागेगा | भोला गिरी बीच बचाव करेगा , सुरेश बोपचे चन्दन के गले में हाथ डालकर समझायेगा | विनोद धर बेशर्मी से हँसते ही रहेगा और फिर चन्दन भी मुस्कुरा देगा | बिलकुल यहीहोने वाला है ... | एक, दो, तीन... !</i></div></div><div><i><br /></i></div><div>ऐसा कुछ नहीं हुआ | विनोद धर जरूर बेशर्मी से हँसते रहा | चन्दन की मुट्ठियां भीजी जरूर | लेकिन यह क्या ? भोला गिरी मानो सकपकाया सा खड़ा था | माना कि सुरेश बोपचे का हाथ जरूर टूटा था, पर वह निर्विकार सा खड़े रहा | </div><div><br /></div><div><div>क्या इन दशकों में इनके बीच इतनी ऊँची-ऊँची अदृश्य दीवारें खिंच गयी हैं ?</div><div><br /></div><div>-------</div><div><br /></div><div><i>"तू कहना क्या चाहता है ?" सूर्य प्रकाश ने मुझसे पूछा | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>काफी समय बाद हम इस बात की विवेचना कर रहे थे | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>"मुझे मालूम है यार | विनोद धर मज़ाक ही तो कर रहा था | अरे वैसे ही यार, जैसे हम स्कूल में ... "</i></div><div><i><br /></i></div><div><i>"टूल्लू , एक बात कहूं ? " सूर्य बात काटकर बोला ,"अब हम लोग प्राथमिक शाला में नहीं है | और यही सच्चाई है |"</i></div><div><i><br /></i></div><div><i>हाँ, यही तो सच्चाई थी | उन चारों में भोला गिरी सबसे पीछे छूट चुका था | अगर विनोद धर अभी भी बच्चा ही था तो क्या , चन्दन को परिस्थितियों ने प्रौढ़ बना दिया था | और सुरेश बोपचे ने फैक्टरी चलाते-चलाते इतना तो सीख ही लिया था कि अपने काम से ही काम रखना चाहिए | </i></div></div><div><i><br /></i></div><div><i>-------------</i></div><div><i><br /></i></div><div><div>तो सम्माननीय शिक्षक झा सर थे | कौशलेन्द्र के पिताजी , संस्कृत वाले झा सर नहीं, रसायन वाले झा सर | </div><div><br /></div><div> शिक्षक की कुर्सी पर झा सर बैठे थे | एक-एक करके छात्र आते और भिलाई विद्यालय से सम्बंधित अपने अनुभव सुनाते | प्रतीक भोई ने शुरुआत की | अजय पोफली ने उसे आगे बढ़ाया | हर वक्ता के वक्तव्य ख़त्म होने पर मांग उठती -"'चन्दन', 'चन्दन' | कहाँ है चन्दन ?"</div><div><br /></div><div>कहाँ था चन्दन ? मैं अपना वीडियो कैमरा शूटिंग के लिए ले गया था और चन्दन कैमरे के पीछे छिप गया था | वह शूटिंग कर जरूर रहा था, लेकिन अपने-आपको जरुरत से ज्यादा व्यस्त भी दिखा रहा था |</div><div><br /></div><div>हर जाने वाले वक्त के साथ "चन्दन", "चन्दन" की आवाज़ जोर पकड़ते जा रही थी | और झा सर भी मुस्कुरा देते थे | क्या झा सर के मुस्कुराने और चन्दन के मंच पर ना जा पाने में कोई तार-तम्य था ?</div><div><br /></div><div style="font-style: italic;">-------------</div></div><div style="font-style: italic;"><br /></div><div><i>अगर किसी को बंदूक से गोली दागनी हो तो चन्दन का कन्धा हमेशा हाज़िर रहता था | ग्यारहवीं कक्षा ऐसी थी जब हर छात्र , या यूँ कहा जाये तो विज्ञानं- और खासकर गणित पढ़ने वाला एक मध्यम श्रेणी का छात्र - तीन विषय - भौतिक, रसायन और गणित कम से कम दो शिक्षकों से पढता था | एक- कक्षा के अंदर और दूसरा कक्षा के बाहर | गणित के लिए सिन्हा सर और त्रिपाठी सर इस सन्दर्भ में विख्यात और कुख्यात थे | संयोग से दोनों अच्छे मित्र भी थे | वैसे देखा जाए तो गणित के ही गनी सर की अलग ही धाक थी | </i></div><div><br /></div><div><div><i>कक्षा के अंदर शिक्षक अपनी नौकरी बजाते थे और कक्षा के बाहर वे ट्यूशन पढाते थे | ट्यूशन के मामले में त्रिपाठी सर और सिन्हा सर दोनों पक्के व्यवसायी थे और इसलिए त्रिपाठी सर का तबादला राजहरकी शाला में कर दिया गया | लेकिन त्रिपाठी सर तिकड़म भिड़ाकर भिलाई वापिस आ गए थे | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>तो ट्यूशन को इज़्ज़तदार नाम देने के लिए त्रिपाठी सर ने कृष्णा कोचिंग सेंटर की स्थापना कर दी | प्रारम्भ में उसमें दो ही शिक्षक थे | त्रिपाठी सर खुद गणित और भौतिक पढ़ाते थे और उनके छोटे भाई, रसायन पढ़ाते थे | </i></div></div><div><br /></div><div><div><i>तो हमारी कक्षा के कई छात्रों ने कृष्णा कोचिंग में प्रवेश लिया | त्रिपाठी सर की ख्याति हिंदी माध्यम शालाओं में- खासकर भिलाई विद्यालय में काफी ज्यादा थी | राजीव जावले, रवींद्र कर्मकार,अजय कौशल, ललित -सब कृष्णा कोचिंग में थे | चन्दन तब तक पढ़ाई को लेकर काफी गंभीर हो गया था | सबके साथ बहते हुए उसने भी कृष्णा कोचिंग में दाखिला ले लिया | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>अब आता है, कढ़ी में उबाल | हुआ यह कि त्रिपाठी सर भौतिक और गणित भले ही अच्छा पढ़ाते हों, लेकिन उनके भाई रसायन के उतने अच्छे शिक्षक नहीं थे || फलतः छात्रों में असंतोष बढ़ते गया | यह स्वाभाविक भी था | पिताजी के खून पसीने की कमाई का पैसा था और चन्दन जैसे छात्रों के लिए तो ये बहुत ही मायने रखता था | </i></div></div><div><i><br /></i></div><div><div><i>जब असंतोष काफी बढ़ गया तो निश्चय लिया गया कि क्यों न त्रिपाठी सर से ही सीधे बात की जाये | लेकिन बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे ? एक सम्मिलित मोर्चा बनाने के लिए भी छात्र तैयार नहीं थे | एक ही तो छात्र था, जिसमें हवा भरी जा सकती थी | वह खड़ा भी हो गया और सब उसकी आड़ में छिप गए | </i></div><div><br /></div><div><i>त्रिपाठी सर से एकांत में मिलकर चन्दन ने छात्रों की व्यथा उनसे बयान कर दी | कुछ भी कारवाही करने के बजाय त्रिपाठी सर बिफर गए | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>"अगर तुम्हें लगता है कि कृष्णा कोचिंग से तुम्हें अच्छी सेवाएं नहीं मिल रही हैं तो तुम बाहर जाने के लिए स्वतंत्र हो | मैं तुम्हारा पैसा वापिस कर दूंगा |" </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>और एक व्यावसायिक दृष्टिकोण रखने वाले त्रिपाठी सर ने, इससे पहले कि कोई विद्रोह भड़के, चन्दन को कृष्णा कोचिंग से मुक्त कर दिया | इतना ही नहीं, उन्होंने भिलाई के सबसे अच्छे रसायन के शिक्षक सेक्टर १ के वर्मा सर और भौतिक के लिए भिलाई विद्यालय के ही हल्दकार सर को अनुबंधित कर लिया | </i></div></div><div><br /></div><div><div><i>त्रिपाठी सर के प्रतिद्वंदी थे- सिन्हा सर | लेकिन उनके अच्छे मित्र भी थे | चन्दन तैश में भी था और अति आत्मविश्वास में भी | खुले आसमान पर उड़ने वाले चन्दन को उस वक्त धरती घूमती हुई नज़र आयी जब सिन्हा सर ने उसे गणित के लिए ट्यूशन देने से मना कर दिया | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>त्रिपाठी सर ने चन्दन को सन्देश भिजवायाथा कि अगर वह चाहे और आगे पंगे न लेने का आश्वासन दे तो कृष्णा कोचिंग के द्वार उसके लिए अब भी खुले हैं | मगर चन्दन के स्वाभिमान ने उसे पलटना नहीं सिखाया था | उसका दृढ निश्चय था कि अगर जरुरत पड़ेगी तो वह खुद ही, अकेले तैयारी करेगा | चन्दन की इस हठधर्मिता से मानो भगवान भी नए पुल बनाने पर मज़बूर हो गए | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>संयोग यह कि उन्हीं दिनों रसायन के झा सर, गणित के गनी सर और भौतिकी के त्रिपाठी सर ने मिलकर अपनी कोचिंग संस्था खोल ली | </i></div><div><br /></div><div><i>चन्दन के लिए यह वरदान ही था कि वह कक्षा के अंदर भी झा सर और गनी सर से पढता था और कक्षा के बाहर भी | अतएव भ्रम की कोई स्थिति नहीं थी | उस साल प्री -इंजिनीयरिंग में गिने चुने लोगों को दाखिला मिला था | जब परिणाम निकला तो चन्दन ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था ," पी. ई. टी. में तो नहीं हुआ पर पी. पी. टी. में हो गया ... | " वाकई एक ही शिक्षकों से पढ़ने का सुअवसर देकर भगवान् ने उसकी मदद ही की थी | </i></div></div><div><i><br /></i></div><div>------------</div><div><br /></div><div><div>तो सार यह था - वह चन्दन ही था जिसने सब लोगों को मिलाने का कार्य किया था | लेकिन जहाँ सब लोग जमा हुए, वह स्वतः अलग हो गया | </div><div><br /></div><div>दिन के सम्मिलन के बाद सबने योजना बनाई कि सब मित्र शाम को पुनः मिलेंगे | कौशलेन्द्र किसी कारणवश सुबह आ नहीं पाया था | इसलिए उसने ही शाम को 'भिलाई क्लब' में, जिसका वह अध्यक्ष था, फिर से मिलने की पेशकश की | </div><div><br /></div><div>ऐसा नहीं था कि सारे लोग, जो सुबह मिले थे, शाम में भी आये | बहुतों ने मना कर दिया | मना करने वालों के अपने-अपने दर्द थे | कुछ लोगों ने पारिवारिक कारण बताया क्योंकि यह कोई पारिवारिक सम्मिलन नहीं था | वैसे भिलाई विद्यालय के छात्रों का पारिवारिक सम्मिलन कभी हो भी नहीं सकता था | वैसे कुछ लोगों का मानना था कि 'भिलाई क्लब' में सांध्य - मिलन का कार्यक्रम आयोजित करना एक गलती की , क्योकि अधिकांश भिलाई विद्यालय के मित्र भिलाई इस्पात संयंत्र में अफसर नहीं थे | सामान्य दिनों में भिलाई क्लब के द्वार अफसरों के लिए ही खुलते थे | इसलिए, वे मित्र असहज महसूस कर रहे थे | </div></div><div><br /></div><div>चन्दन के न आने का कारण सबसे जुदा था | चन्दन अफसर श्रेणी में भी था, उसका कोई पारिवारिक कारण भी नहीं था और वह कौशलेन्द्र के काफी करीब था - भिलाई विद्यालय के दिनों से ही | उस समय भांप पाना कठिन था, लेकिन सच तो यह था कि विनोद धर के मज़ाक से, जिसे वह प्राथमिक शाला में किसी तरह आत्मसात कर लेता था, वह काफी आहत हुआ था | </div><div><br /></div><div><div>जब रात के अँधेरे में, भिलाई क्लब के एक कोने में बैठे मित्र पुराने दिनों की चीर-फाड़ कर रहे थे , यह असंभव था कि चन्दन का उल्लेख न आये | कुछ अति उत्साही लोगों ने आशा नहीं छोड़ी थी | जब भी चन्दन का उल्लेख आता , उसे फोन खड़का देते थे | धाक के तीन पात - चन्दन का फोन शाम से ही बंद था | </div><div><br /></div><div>"छोड़ न यार, चन्दन को |"</div><div><br /></div><div>और लोग चन्दन को छोड़ देते | मगर फिर बेताल की तरह चन्दन महफ़िल में लौट आता | जिनको चढ़ चुकी थी , वे अपने किस्से सुना रहे थे | जो नहीं पी रहे थे, वे उन किस्सों में सच्चाई और 'फोक' का प्रतिशत निर्धारित करते थे | </div><div>बात मारपीट पर आयी | डी. मधु ने एक किस्सा सुनाया कि कैसे उसने तीन सर लोगों की एक साथ पिटाई की थी | मारपीट के वार्तालाप के इस दौर में चन्दन का लौटना स्वाभाविक था | तब उसने चन्दन का एक किस्सा सुनाया ... | यकीन मानिये, लोग दम साधे सुनते रहे ... | जो चौथे आसमान में उड़ रहे वे भी, सातवीं आसमान वाले भी और जो धरातल पर थे वे भी ... | किस्सा ख़त्म होने के बाद भी कुछ समय तक ख़ामोशी छायी रही | </div></div><div><br /></div><div>-------------</div><div><br /></div><div>विनोद धर वहीँ नहीं रुका | उसके अंदर का बच्चा हमेशा सक्रिय रहा | सम्मिलन के बाद सूर्य ने सभी छात्रों के फोन नंबर लिए और विद्यालय के मित्रों का एक व्हाट्स -एप ग्रुप बना डाला | सूर्य खुद ही उसका संचालक बन गया | चन्दन के प्रति विनोद धर की चुहल जारी थी | संचालक होने के नाते सूर्य ने अनेकानेक बार विनोद को टोका, पर विनोद अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था | कई बार उसके इन चिढ़ाने वाले सन्देश में आत्मीयता और अंतरंगता झलकती थी ,"कालू मेरा भाई है| " एक बार उसने रंग पर न चिढ़ने के लिए चन्दन को नसीहत दे डाली," अरे गर्व से कहो, हम काले हैं तो क्या हुआ, दिल वाले हैं | तुम हम पर भरोसा कर सकते हो, क्योंकि हम काले रंग नहीं बदलते हैं |"</div><div><br /></div><div>विनोद को समझाने वाले सूर्य ने कुछ समय बाद खुद ही ग्रुप छोड़ दिया, लेकिन सब कुछ बर्दाश्त करके भी चन्दन जमे रहा | वैसे सूर्य के ग्रुप छोड़ने के पीछे चन्दन के अलावा दूसरा कारण भी था | कई लोग सांप्रदायिक और विद्वेष फैलाने वाले सन्देश ग्रुप में प्रेषित करते थे | उनकी संख्या दिन दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रही थी | कुछ सन्देश तो इतने ज्यादा उद्वेलित करने वाले थे कि मैंने भी लोगों को मना किया | और एक दिन अटकलों का भण्डार पीछे छोड़कर स्वयं संचालक ने ही ग्रुप छोड़ दिया | </div><div><br /></div><div>सूर्य के जाने के बाद विनोद ने चन्दन के प्रति व्यक्तिगत टिप्पिणी करना करीब करीब बंद कर दिया | हाँ, अब वह भी सांप्रदायिक सन्देश भेजने वालों की सूची में शामिल हो गया | बल्कि कुछ ही दिनों पश्चात् वह सांप्रदायिक विद्वेषपूर्ण सन्देश भेजने में सबको मीलों पीछे छोड़कर काफी आगे निकल गया | </div><div><br /></div><div>चन्दन के सन्देश ज्यादातर अग्रेषित ही होते थे, जिनमें संयंत्र की अलग-अलग गतिविधियों का जिक्र होता था | ज्यादातर सन्देश अफसरों के कार्यक्रम, कार्यवाही और क्रियाकलाप के ही होते थे, जो मेरे कभी पल्ले नहीं पड़ते थे | शायद जो लोग भिलाई इस्पात संयंत्र के बाहर थे, उनमें से किसी को भी उन खबरों से न तो कोई सरोकार था और न ही कोई दिलचस्पी | मगर बिना पढ़े सन्देश मिटाने के लिए प्रयास ही कितना पड़ता है ? वैसे चन्दन को किसी ने टोका तो नहीं, मगर मैं किसी भी दिन टपकने वाली मुसीबत स्पष्ट देख रहा था | </div><div><br /></div><div>-------</div><div><br /></div><div><div>देखते ही देखते एक साल और गुज़र गया | जब मैं सर्दियों में भारत आया तो मन में एक उत्साह सा था कि एक बार फिर पिछले साल की तरह सम्मिलन आयोजित किया जाए | पिछले वर्ष कई ऐसे मित्र थे जो सम्मिलित नहीं हो सके थे | इस बार सारे लोग मिलते हैं | फिर दूसरा विचार यह भी मन में आया कि शाला क्रमांकआठ के सहपाठी ही मिल लेते हैं | </div><div><br /></div><div>इन कर्यकलापों के लिए एक ही संपर्क सूत्र मेरे दिमाग में था - चन्दन | पिछली बार की तरह वही सबकी खोज खबर ला सकता है | अगर शाला नंबर आठ के मित्र मिल पाएं तो अति उत्तम, वरना भिलाई विद्यालय का आयोजन तो कहीं गया नहीं है | </div></div><div><br /></div><div>दांतों के दर्द ने मुझे अमेरिका में काफी परेशान किया था | इस बार मैंने सोचा था कि भारत के ही किसी दन्त चिकित्सक को दिखा दिया जाए | अगर शल्य क्रिया की आवश्यकता पड़ी, तो वह भी करा लिया जाए | अभी डॉक्टर दंपत्ति को आने में थोड़ा समय था | दूसरी तरफ की सीढ़ियों के पास खड़े होकर मैंने चन्दन को फोन लगाया | मैंने तो दोस्त चन्दन को फ़ोन लगाया था, लेकिन दूसरी तरफ से बिफरे हुए शेरू की आवाज़ सुनाई दी | </div><div><br /></div><div>-----------------</div><div><br /></div><div>मुझे पूरा विश्वास था कि चन्दन भले भिलाई विद्यालय के पुनर्मिलन के लिए न माने, लेकिन प्राथमिक शाला क्रमांक आठ के लिए अवश्य मान जायेगा | उसे मैं मना लूंगा | उसे समझा लूंगा कि विनोद के मन में कोई दुर्भाव नहीं है | उसके मन में शाला क्रमांक आठ का शरारती बच्चा अभी भी बैठा है | अगर वह चन्दन का मज़ाक उड़ाता था तो उसमें उसका प्यार भी शामिल था | साथ मुझे सूर्य प्रकाश की ये बात भी ध्यान में थी कि "शाला क्रमांक आठ काफी पीछे छूट गया है | वो जो हम थे, वो अब नहीं हैं |" इस गलत-फहमी को दूर करने का पहला और आखिरी मौका भिलाई विद्यालय के पिछले वर्ष का 'गेट-टुगेदर' ही था, जब इस मन मुटाव ने जन्म ही लिया था | मैंने उसे हलके में लिया था | अब उसे मिटाने का एक ही तरीका था कि दोनों की आमने-सामने मुलाकात करा दी जाये | और इसके लिए शाला क्रमांक आठ का पुनर्मिलन आवश्यक था | शायद उस इमारत की छाया में, शायद खेल के मैदान के घास की खुश्बू में, शायद राजीव सिंह की उपस्थिति में बात बन जाए | </div><div><br /></div><div>---------------------</div><div><br /></div><div><div>लेकिन चन्दन की कार में हम कहाँ जा रहे थे ?</div><div><br /></div><div>"यहाँ भिलाई इस्पात संयंत्र के बड़े-बड़े अधिकारी रहते हैं | "सी ईओ, एम डी, इ डी ... | कभी आया था यहाँ ?"</div><div><br /></div><div>अगल-बगल बड़े अधिकारियों के बड़े-बड़े बंगले थे | सच बात तो यह थी कि मुझे यह भी पता नहीं था कि ऐसा कोई क्षेत्र भी भिलाई मेँ है | इन गलियों से तो मैं कभी गुजरा नहीं था | लेकिन चन्दन कब से इन गलियों से गुजर रहा है ? जितना मैं उसको जनता था, ये तो कभी भी उसके स्वाभिमान और स्वच्छंद प्रकृति से मेल नहीं खाता था | </div><div><br /></div><div>कार चलाते-चलाते चन्दन ने मुझे झकझोरा | </div><div><br /></div><div>"अबे, बोल तो - हाँ या ना ?"</div><div><br /></div><div>"क्या ? क्या हुआ ?"</div></div><div><br /></div><div><div>मैं हड़बड़ाकर बोला | चन्दन कुछ पूछ रहा था | </div><div><br /></div><div>"पांडेय सर से मिल लें ?"</div><div><br /></div><div>"कौन पांडेय सर ?"</div><div><br /></div><div>"प्लांट के ई. डी. | तुझसे मिल कर खुश हो जायेंगे | उनकी लड़की भी अमेरिका में है |"</div><div><br /></div><div>"पर वो तो समय लेना पड़ेगा ? नहीं?"</div><div><br /></div><div>"अरे तू क्या बात कर रहा है बे ? ज्यादा अँगरेज़ बन गया है | " </div></div><div><br /></div><div>-----------</div><div><br /></div><div><div>उसने गाड़ी एकदम गेट के पास खड़े की और बंद दरवाजे के एकदम पास चले गया | दरबान चन्दन को देखकर देखकर मुस्कुराया ,"साहब तो अभी गाड़ी लेकर निकल गए हैं |"</div><div><br /></div><div>"कहाँ ?"</div><div><br /></div><div>"नौ बज गया सर | प्लांट ही गए होंगे |"</div><div><br /></div><div>चन्दन को थोड़ी निराशा जरूर हुई | फिर वापिस आकर उसने गाड़ी बढ़ाई , "चल, तुझे सेनगुप्ता से मिलता हूँ |"</div><div><br /></div><div>" छोड़ यार चन्दन | तेरी लड़की की ट्रेन का टाइम हो रहा है |"</div><div><br /></div><div>"चल | पांच मिनट बैठेंगे | सेनगुप्ता से अपने फॅमिली जैसे सम्बन्ध हैं |"</div><div><br /></div><div>यह तो बहुत अच्छा हुआ कि सेनगुप्ता सर दिल्ली गए हुए थे | मैंने चन्दन को फिर उसकी पुत्री की रेलगाड़ी की याद दिलाई | </div></div><div><br /></div><div>--------</div><div><br /></div><div><div>चन्दन से यह सवाल पूछने की प्रबल इच्छा हुई थी कि उसके व्यवहार में इस तरह का काया-कल्प अचानक कैसे हो गया ? क्या उसने अपने व्यवहार में आमूलचूल परिवर्तन ही स्वीकार किया है या ये उसका बाह्य रूप ही है ? ये दोनों ही विकल्प मेरे लिए काफी आश्चर्यजनक थे | चन्दन जैसे अंदर था, वैसे ही बाहर था | जो दिल में बात होती थी, वही जुबान पर होती थी | और जो जुबान पर होती थी, वह व्यवहार में होता था | बचपन से ही चन्दन ऐसा था | </div><div><br /></div><div>तो क्या उसने यह परिवर्तन ही आत्मसात कर लिया है ? पर कैसे ? अपने स्वाभिमान को चन्दन ने कहाँ रखा होगा ? वह तो इतना बड़ा था कि छुपाये नहीं छुप सकता था ? अचानक ये कैसे हो गया ? </div></div><div><br /></div><div>अचानक मुझे पिछले वर्ष 'भिलाई क्लब' में डी. मधु की बताई हुई घटना याद आ गयी .... | </div><div><br /></div><div>-------</div><div><br /></div><div><i> जब से चंदन अधिकारी वर्ग में आया था, कोई न कोई अपशकुन उसके पीछे लगा ही हुआ था | अब जब से वह "स्टील मेल्टिंग शॉप -१" में आया था, यह अफवाह जोरों पर थी कि एस. एम. एस. -१ अंतिम साँसें गिन रहा है | किसी भी दिन इसे बंद किया जा सकता है | ऐसा नहीं था, कि अगर यह हो जाता तो चन्दन की नौकरी चले जाती | उसे किसी अन्य डिपार्टमेंट भेज दिया जाता | लेकिन अब वह इधर से उधर फुटबॉल की तरह स्थान्तरित किये जाने से थक चुका था | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i><div>ऊपर से एस. एम. एस. -१ में उसका पाला केसरी साहब से पड़ गया जो उसे फूटी आँखों नहीं सुहाते थे | चन्दन के उग्र स्वभाव के विपरीत केसरी साहब बड़े ही शांत स्वभाव के थे | इतने शांत स्वभाव के कि उनके मातहत उन्हें "गऊ" समझते थे | और यही सब चन्दन को बिलकुल पसंद नहीं था | भला शांत स्वभाव वाला अधिकारी काम कैसे करा सकता था ? तिस पर उनकी मुस्कान - 'आ हा हा" , क्या कहने ? हर बात का जवाब एक मुस्कान ... | कई बार उसके मन में आया , घुमा के एक झापड़ दे | </div><div><br /></div><div>एस. एम. एस. -१ में मधु भी था | हालाँकि मधु का 'हाउस कीपिंग' से दूर दूर तक कोई लेना-देना नहीं था | चन्दन का कार्य क्षेत्र हाउस कीपिंग तक ही सीमित था | वैसे "एस. एम. एस." जैसी जगह में वह भी कोई कम थकाने वाला काम नहीं था | गरमागरम धातु का छलकना आम बात थी | जिस पात्र में पिघली धातु डाली जाती थी, उस पात्र, "लैडल" का पंक्चर हो जाना आम बात थी | ऊपर से चन्दन चुप बैठने वाला इंसान नहीं था | किसी काम में अनुमान से ज्यादा समय लगने पर उसका पारा चढ़ जाता था | </div><div><br /></div><div>अगर उसके अंतर्गत काम करने वाले कर्मचारी उसकी तुलना केसरी साहब से करते थे तो कोई गलत नहीं था | लेकिन उनकी कानाफूसी चन्दन के गुस्से में आग में घी का ही काम करती थी | एक न एक दिन टकराव होना ही था | </div><div><br /></div><div>शुरू के दिनों में चन्दन को जब मधु ने पुकारा तो चन्दन ने कोई ध्यान नहीं दिया | उसके अभिवादन को भी वह नज़रअंदाज़ कर देता था | मधु को थोड़ा अजीब लगता था, लेकिन इन सब बातों की उसे आदत सी हो गयी थी | चन्दन कोई अकेला नहीं था और मधु कोई तोप भी तो नहीं था, जिसके अभिवादन का कोई अधिकारी जवाब भी दे | भिलाई विद्यालय की दोस्ती अब सिर्फ याद ही बन कर रह गयी थी | </div><div><br /></div><div>फिर धीरे धीरे मधु से चन्दन ने वार्तालाप करना प्रारम्भ किया | जब उसे पता चला कि मधु ट्रेड यूनियन से जुड़ा है, तब वह उससे थोड़ी बहुत बातें करने लगा | वैसे भी मधु उसके अंतर्गत कार्यरत नहीं था और चन्दन को अपनी कुश्किल कहने के लिए किसी अंधे कुएँ की तलाश थी | शाला की दोस्ती में वह अदृश्य ताकत होती है जो किसी भी कृत्रिम भेदभाव को अंततः पिघला ही देती है | </div><div><br /></div><div>एक दिन 'एस. एम. एस. -१' में एक लैडल का हत्था टूट गया और ढेर सारी पिघली धातु फर्श पर बिखर गयी | सुरक्षा पर जब प्रश्न चिन्ह तो लगे ही , यह तय था कि अगले कई दिनों तक बड़े-बड़े अधिकारियों का ताँता "एस. एम. एस. -१" में लगे रहेगा | यानी "एस. एम. एस. -१" की कार्यशाला एक दर्पण की तरह चमकनी चाहिए | </div><div>और केसरी साहब मुस्कुराये जा रहे थे | चन्दन ने उनसे क्रेन माँगी | भारी भरकम लैडल को हाथ से तो नहीं सरकाया जा सकता था | अब जैसे चन्दन को अपना इलाका चमकाना था, वैसे ही केसरी साहब को भी अपने क्षेत्र की सफाई करनी थी | </div><div><br /></div><div>"लंच के बाद दे दूँ तो चलेगा ?"</div><div><br /></div><div>"ऐसा कौन सा पहाड़ हटा रहा तू ? " चन्दन बोला | </div><div><br /></div><div>अब केसरी फिर मुस्कुराया तो चन्दन भुनभुनाते हुए चले गया | </div><div><br /></div><div>लांच के बाद चन्दन फिर हाजिर हो गया | हवा में अफवाह तैर रही थी कि दिल्ली से भी कोई टीम आने वाली थी | </div><div>केसरी साहब ने इधर-उधर देखा, फिर मुस्कुराते हुए बोला ,"अरे वर्कर अभी सुस्ता रहा है |"</div><div><br /></div><div>"कितने बजे मिलेगी क्रेन ?" चन्दन उसकी मुस्कान से अच्छा खासा परेशान था | </div><div><br /></div><div>"तीन बजे तक खाली हो पायेगा |" </div><div><br /></div><div>"और चार बजे छुट्टी हो जाएगी ?"</div><div><br /></div><div>जब चन्दन अपने क्षेत्र में लौटा तो देखा, उसके कर्मचारी ताश खेल रहे थे | उसे देखते ही आनन-फानन में लोग खड़े हो गए | उनकी गलती ही क्या थी ? क्रेन तो मिली नहीं थी | </div><div><br /></div><div>"अबे चार बजे के पहले आज कोई हिलेगा नहीं |"</div><div><br /></div><div>"ओवरटाइम मिलेगा बॉस ?" एक कामगार थोड़ी हिम्मत जुटाकर बोला |</div><div><br /></div><div>चन्दन ने बड़ी मुश्किल से अपना गुस्सा काबू किया | </div><div><br /></div><div> </div><div>...और दिन के ठीक तीन बजकर दो मिनट पर ज्वालामुखी फट पड़ा | </div><div><br /></div></i><div><i>"साले तू अपने आदमियों से काम नहीं करा सकता ? हरामखोरी करता है ?" चन्दन ने एक फौलादी मुक्का केसरी को जड़ दिया |</i></div><div><i> </i></div><div><i>चन्दन की गमगमाती आवाज़ से डी. मधु वैसे भी चन्दन को शांत कराने उसकी ओर बढ़ ही रह था | अब जब उसने चन्दन को घूंसा जमाते देखा तो डी. मधु सरपट भागा | वैसे डी. मधु शाला के दिनों में हमारी अजेय १०० मीटर रिले रेस टीम का सदस्य था , फिर भी जब तक वह चन्दन तक कुछ सेकण्ड में पहुँच पाता , चन्दन ने दो भारी भरकम घूँसे और जड़ दिए | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>"चंदन | क्या कर रहा है यार ?" डी. मधु ने उसे कस कर पकड़ लिया | अब तक आस-पास के जो कर्मचारी तमाशा देख रहे थे या हतप्रभ थे या पद का लिहाज़ करके किंकर्तव्यविमूढ़ थे, उनकी चेतना लौटी और उन्होंने दोनों गुत्थमगुत्था हुए अधिकारियों को अलग किया | </i></div></div><div><i><br /></i></div><div><i>चन्दन की आँखों से अब भी अंगारे बरस रहे थे | वह बार-बार मधु की गिरफ्त से अपने आप को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i><div>मधु उसे अपने साथ लेकर श्रमिक कक्ष के अंदर घुसा | पीछे-पीछे श्रमिकों के झुण्ड के साथ मधु के बॉस पांड्या साहब भी कमरे में चले आये | </div><div><br /></div><div>"चन्दन, पानी पियेगा ? " मधु ने उसे बिठाते हुए पूछा | </div><div><br /></div><div>"पानी लाओ रे | मेरे रूम से ठंडा पानी लाओ | " चन्दन के जवाब का इंतज़ार किये बिना पांड्या जोर से चिल्लाया | </div><div><br /></div><div>"रिलैक्स सर |क्या हुआ सर ? " पंड्या साहब ने नरमी से पूछा | </div></i><i><div><br /></div><div>"सर वो हमको काम के लिए क्रेन नहीं दे रहे थे | " चन्दन का एक श्रमिक बोला | </div><div><br /></div><div>"अरे सर | हमको बोलना था | हमारा क्रेन ख़ाली था |" पांड्या बोला ," हम कोई बाहर के थोड़ी हैं सर |"</div><div><br /></div><div>"सर, ये मेरे स्कूल का दोस्त है |" मधु बोला ,"बहुत अच्छा स्टूडेंट था सर | और जो हुआ, काम को लेकर ही हुआ सर | क्यों चन्दन ?"</div><div><br /></div><div><div>तब तक एक कामगार ट्रे में कांच के गिलास में पानी लेकर आया |</div><div><br /></div><div>"ले , पानी पी चन्दन |" मधु ने चन्दन को पानी का गिलास दिया, "बाहर जाओ रे , चलो बाहर | पंड्या सर आप भी बाहर जायेंगे सर ? मैं एक मिनट चन्दन से बात करना चाहता हूँ | प्लीज सर |"</div></div><div><br /></div><div><div>जब सब बाहर निकल गए तब मधु चन्दन के सामने आकर बैठ गया | अब तक चन्दन का पारा कुछ नीचे जरूर गिरा था , लेकिन दिमाग अभी भी गरम था , "साले , सब नौटंकी करते हैं | कौन उनको अधिकारी बना देता है बे ? मुझे बोल | शॉप में एक्सीडेंट हो गया, उसको दिखाई नहीं देता ? "</div><div><br /></div><div>मधु चुपचाप उसके सामने बैठकर चन्दन की बातें शांति से सुनते रहा | फिर वह नरमी से बोला ,"चन्दन, अपने भाई की एक बात मानेगा ?"</div><div><br /></div><div>चन्दन उसकी ओर नज़र उठाकर देखा | एक पल खामोशी छायी रही | उसने भांप लिया कि क्रुद्ध चन्दन के सोचने-समझने की शक्ति धीरे-धीरे वापिस आ रही है | अब उससे व्यवहारिकता की बातें की जा सकती हैं | कुछ सोचकर फिर मधु बोला ,"तू उससे माफ़ी मांग ले |"</div></div><div><br /></div><div><div>चन्दन बिफर गया ," क्यों? क्यों माफ़ी मांगू ? क्या गलती है मेरी ?अबे, तू पागल हो गया है क्या ?"</div><div><br /></div><div>"हाँ यार चन्दन | मैं पागल हो गया हूँ | तू माफ़ी मांग ले यार |" </div><div><br /></div><div>"क्यों ?"</div><div><br /></div><div>फिर ख़ामोशी छायी रही | मधु बोला , "तूने देखा न, मैंने सब लोगों को इस कमरे से बाहर भेजा | अपने बॉस को भी | जानता है क्यों ?"</div><div><br /></div><div>चन्दन ने उसकी ओर प्रश्नवाचक नज़रों से देखा | </div><div><br /></div><div>"क्योंकि ये बात मैं उनके सामने नहीं बोल सकता था, जो अब बोल रहा हूँ |"</div><div><br /></div><div>"कि मैं उससे माफ़ी मांग लूँ ?" चन्दन ने आधे व्यंग्य से कहा | </div><div><br /></div><div>"हाँ | माफ़ी मांग ले और मामला ख़तम कर |"</div><div><br /></div><div>"इन्क्वारी बैठती है तो बैठने दे | मैं डरता नहीं हूँ | क्यों माफ़ी मांगूं ?"</div><div><br /></div><div>मधु थोड़ा आगे झुककर धीमी आवाज़ में बोला ,"क्योंकि वो 'जाति' वाला है |"</div><div><br /></div><div>-------------</div></div><div><br /></div><div>जाति' एक ऐसा ब्रह्मास्त्र था , जिसने चन्दन को भी सन्न कर दिया | हिंदुस्तान में 'अनुसूचित जाति' एक ऐसा शब्द है, जिससे लोग थर्रा उठते हैं | चाहे कैसी भी जांच कमिटी बैठे , चाहे उसमें धर्मराज युधिष्ठिर ही क्यों न सम्मिलित हो जाएँ , अगर उसमें एक ओर , केवल एक ही ओर कोई अनुसूचित जाति का व्यक्ति बैठा हो, सबको ज्ञात होता है कि न्याय का पलड़ा किस और झुकेगा ? और ये तो मारपीट का वह मामला था, जिसमें चन्दन चाहे कितना भी कर्तव्यनिष्ठ क्यों न हो , मामले की शुरवात उसने ही की थी | शुक्र था, कि केसरी के सम्बन्ध में जिस बात से एक विभाग में रहते हुए भी वह अनभिज्ञ था, वो अन्तर्यामी मधु को ज्ञात थी | </div><div> </div><div><div>अगले दस मिनटों में लोगों ने 'गऊ' केसरी को भी मना लिया | </div><div><br /></div><div>"अब कुछ नहीं होगा |" सारे श्रमिक खड़े थे | मधु ने केसरी का एक हाथ पकड़ा और चन्दन की ओर बढ़ा दिया | केसरी की मुस्कान पूरी तरह गायब थी | जब दोनों ने हाथ मिलाया तो उसमें गर्मजोशी का पूरी तरह से अभाव था |</div><div> </div><div>"अरे ऐसे क्या मुर्दे जैसे हाथ मिला रहे हो ? मर्द जैसे मिलाओ |" एक मज़दूर पीछे से चिल्लाया | </div><div><br /></div><div>अगले ही क्षण दोनों की पकड़ मज़बूत हुई | </div><div><br /></div><div>"फोटो खींचो रे |" एक मज़दूर चिल्लाया ," गले भी मिल लो साहेब |"</div><div>और अगले ही क्षण दोनों गले मिल रहे थे | मज़दूरों ने जोर से 'हो, हो' की आवाज़ की सारे गले शिकवे धुल रहे थे | कुछ लोग काल्पनिक कैमरे से तस्वीर लेने का अभिनय कर रहे थे | अचानक चन्दन को जोश आ गया | उसका वह जोश शाला नम्बर आठ के उस जोश से मिलता जुलता था, जब नाराज़ चन्दन को भोला गिरी या सुरेश बोपचे मनाते थे और वह विनोद धर को हवा में उठा लेता था | </div><div><br /></div><div>ठीक वैसे ही चन्दन ने अभी किया | जैसे होली में दोस्त एक दूसरे को जोश में उठा लेते हैं वैसे ही चन्दन ने केसरी को जोश में उठा लिया | </div><div><br /></div><div>...और तभी, ठीक उसी क्षण , एक भूकंप आया जिसने चन्दन की ज़िन्दगी की चूलों को हिला दिया ... | </div></div><div><br /></div></i></div><div>--------</div><div><br /></div><div>प्राथमिक शाला क्रमांक आठ के प्रमोद मिश्रा की तो आप भूले नहीं होंगे | (देखें ,<a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2021/11/blog-post.html"> 'च' से चन्दन - भाग १</a> , <a href="http://tullubhilai.blogspot.com/search/label/JustMemories">भाग-२</a> )</div><div><br /></div><div><div><i>दिन भर का काम ख़तम करके प्रमोद मिश्रा घर जाने की तैयारी कर ही रहा था कि उसके फोन की घंटी घनघना उठी | दूसरी तरफ से मधु की घबराई हुई आवाज़ थी | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>"क्या कहा ? चन्दन ने पटक दिया ? " प्रमोद मिश्रा कुछ समझा नहीं | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>"नहीं यार | जान बूझकर नहीं पटका | समझौता होने के बाद कुछ ज्यादा जोश में आ गया था | ख़ुशी से उसने केसरी को हवा में उठाने की कोशिश की | मगर केसरी भारी था |चन्दन भी तो मोटा ही है | चन्दन खुद भी गिरा और केसरी को भी पटक दिया |"</i></div><div><i><br /></i></div><div><i>"और केसरी का पाँव टूट गया ?"</i></div><div><i><br /></i></div><div><i>"उसने सब कुछ कागज़ पर लिखकर छावनी थाना में एफ. आई. आर. के लिए फैक्स कर दिया है यार | 'एफ. आई. आर. के बाद चन्दन बुरी तरह फँस जाएगा |"</i></div></div><div><i><br /></i></div><div><div><i>"हाँ यार | केस लम्बा खिंच जाएगा |"</i></div><div><i><br /></i></div><div><i>"केसरी 'जाति' वाला है |"</i></div><div><i><br /></i></div><div><i>"क्या ?" प्रमोद को मानो बिच्छू ने डंक मारा हो | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>"' हाँ यार | केसरी' </i><i>जाति' </i><i>वाला है | अगर कोर्ट केस हो गया तो ... "</i></div><div><i><br /></i></div><div><i>आगे कुछ भी कल्पना कर पाना मुश्किल था | प्रमोद तुरंत घटना स्थल के लिए निकल गया | </i></div><div><i><br /></i></div><div>------------------</div></div><div><br /></div><div><i>चन्दन के दो भाई याद हैं आपको या भूल गए ? चन्दन और विजन ? जिन्होंने उसे पहली कक्षा में बहुत बड़े संकट से बचाया था ( </i><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2021/11/blog-post.html"> 'च' से चन्दन - भाग १</a> )<i>? कहना मुश्किल है कि वह संकट ज्यादा गहरा था या यह संकट ?दोनों ही मौकों 'विशेष ' लोग ही चन्दन के क्रोध का शिकार हुए थे | पर एक बार फिर दोनों भाइयों के कन्धों पर बहुत भारी जिम्मेदारी आ गयी थी | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>ट्रेड यूनियन में सक्रिय होने के कारण प्रमोद मिश्रा की भी बड़े-बड़े अधिकारियों से जान पहचान थी | उसने भी मामले को ठंडा करने के लिए पूरी जान लगा दी | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i><div>दोनों भाई तरक्की की सीढ़ी पर एक -एक कदम रखते हुए काफी ऊँचे पहुँच गए थे | इतने ऊपर कि मैनेजमेंट में उनकी अच्छी साख थी - ठीक वैसे ही साख, जैसे प्राथमिक शाला में बड़ी बहनजी के सम्मुख थी | </div><div><br /></div></i><i><div>लेकिन काम उतना आसान भी नहीं था | पुलिस तो भिलाई इस्पात संयंत्र के प्रबंधन के अंतर्गत नहीं आती थी - वह कार्यवाही करने को स्वतंत्र थी | बात अभी तक 'जाति' वालों की संस्थाओं तक नहीं पहुंची थी | समय बहुत कम था | अगर सूचना-माध्यम के ठेकेदारों को भनक भी लग जाती तो बवाल मचना स्वाभाविक था | पूरे क्षेत्र में बात फ़ैल जाती और हो सकता था कि इसकी आंच राज्य की सीमायें लांघकर राष्ट्र तक पहुँच जाती | 'जाति' से सम्बंधित मुद्दे स्वतः ध्यान आकृष्ट कर लेते हैं | चाहे समाचार प्रकाशित-प्रसारित करने वाले हों, राजनीतिक दल हों या समाज सेवी संस्थाएं | </div><div><br /></div><div>विपत्ति का समय था और 'गऊ' केसरी टस से मस नहीं हो रहे थे | पांव से ज्यादा उनके दिल पर चोट लगी थी | </div></i></div><div><i><br /></i></div><div><i><div>उसको इस बात से कोई मत्तमतलब नहीं था कि किस स्तर की जाँच कमिटी बनती है | उसकी नज़र में यह जाँच का विषय था ही नहीं | इतने सारे प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य थे तो 'नाटक' की क्या जरुरत थी ? चन्दन को तत्काल बर्खास्त करके जेल भेजा जाए | </div><div><br /></div><div>चन्दन को बर्खास्त तो नहीं किया गया, पर तत्काल प्रभाव से लम्बे अवकाश पर भेज दिया गया | प्रमोद मिश्रा ने अपने निजी संपर्क का उपयोग करके छावनी थाना पर एफ. आई. आर. दर्ज होने से रुकवा दिया | अपने 'ट्रेड यूनियन' के कार्यकर्ताओं को सचेत करके रखा कि वे अखबार के संवाददाताओं पर निगाह रखें और अगर कोई आस-पास फटकता नज़र आये तो उसे तुरंत सूचित करें | 'ट्रैड यूनियन' में संलग्नता के कारण प्रबंधन के कई उच्च अधिकारीयों से उसकी जान-पहचान थी | उनसे वह चन्दन की बात रखने गया | उसके मिलने के पूर्व ही दीपक और विजन उनसे मिल चुके थे | इसलिए उसे चन्दन की उत्कृष्ट छवि रखने में आसानी ही रही | </div><div><br /></div><div><div>अब 'गऊ केसरी' को मनाना था | 'दंड' और 'भेद' का यहाँ काम नहीं था | 'साम' का उपयोग करके उसे बताया गया कि चन्दन उसके समानांतर कार्य नहीं करेगा | उसका स्थानांतरण किया जा रहा है | अगर केसरी चाहे तो उसे दूसरे स्टील प्लांट भेजा जा सकता है पर उसकी दो छोटी बच्चियां हैं | </div><div><br /></div><div>फिर 'दान' का उपयोग किया गया | भिलाई इस्पात संयंत्र में पदोन्नति एक बहुत बड़ा प्रलोभन होता है | केसरी को कहा गया कि उसकी त्वरित पदोन्नति की जायेगी | और न जाने क्या क्या ? </div></div><div><br /></div></i></div><div>-----------</div><div><br /></div><div><i>एक लम्बे अंतराल के बाद चन्दन काम पर लौटा | केसरी को दिए आश्वासन के अनुसार उसका विभाग अब बदल दिया गया था | प्रमोद मिश्रा ने अनुरोध किया था कि उसकी अन्य परेशानियां देखते हुए उसे कोई 'हलके' विभाग में डाल दिया जाए | अब वह सुरक्षा विभाग में था | उसे अब सब कुछ नया नया और खोया खोया सा लग रहा था | 'एस. एम. एस. -१' में वह अपना सामान लेने आया था | उसके अंतर्गत जो कर्मचारी थे, वे अभी किसी और के नीचे काम कर रहे थे | सभी अपने काम में व्यस्त थे | कोई उससे नज़रें नहीं मिला रहा था, या यूँ कहा जाए, चोरी छिपे नज़रों से देख रहा था और उसके मार्ग से अलग हट जाता था | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i><div>कोई तो उसे पुकारे | कोई तो उसका हाल-चाल पूछे | </div><div><br /></div><div>"चन्दन", दूर से मधु ने आवाज़ दी | </div><div><br /></div><div>------------------</div><div><br /></div><div>एक बार फिर मधु के कर्मचारी कक्ष में मधु और चन्दन अकेले ही बैठे थे | चन्दन सुबह से अलग-अलग लोगों की अलग-अलग बातें सुन रहा था | किन्हीं की बातों में नसीहत थी तो किन्हीं की बातों में धमकी | चन्दन के लिए दोनों तरह की बातें अस्वीकार्य थी पर उसने कड़वे घूँट की तरह उन्हें पी लिया था ,क्योंकि वे सब शीर्ष अधिकारी थे | पहली बार कोई निचले स्तर का व्यक्ति उससे बात कर रहा था | </div><div><br /></div><div>"जाने दे यार चन्दन | अब अपना काम कर | पर काम के लिए जान मत दे दे | और किसी के मुँह क्या लगना भाई ? अब तू अधिकारी वर्ग का है यार | ये सब क्यों करता है ? ऐसी-वैसी को बात हो तो हमको बता न भाई | हम लोग किस लिए हैं ? देख, हम लोग तो मज़दूर थे , मज़दूर हैं और एक दिन मज़दूर रह कर ही रिटायर भी हो जायेंगे | है कि नहीं ? हम लोगों को कोई डर नहीं, कुछ ऊपर नीचे हुआ तो हमारे पीछे यूनियन खड़ी है | इसलिए हम चिंता नहीं करते | मगर तू अपना देख ले भाई | तेरे पीछे कौन खड़ा है ? "</div><div><br /></div><div><div>पीछे ... कौन .... खड़ा .... है ....?</div><div>कौन .... खड़ा .... है ....?</div><div>कौन .... ?</div></div><div>.....??</div><div><br /></div><div><div>चन्दन ने महसूस किया | हाँ, वह अकेला ही तो खड़ा था | उसके सामने एक लम्बा रास्ता है | पर वह अकेला नहीं खड़ा है | उसके एक ओर उसकी छोटी लड़की है और दूसरी ओर बड़ी लड़की | और पीछे ? पीछे तो कोई नहीं है | </div><div><br /></div><div>अचानक चन्दन को अपने कन्धों पर दर्द महसूस हुआ | उसके कंधे पर मानो कई टन भार रखा है | वह अहसानों के बोझ से दबा हुआ है | शीर्ष प्रबंधन के कई अधिकारियों के अहसानों का बोझ !! </div></div><div><br /></div></i></div><div>----------------</div><div><br /></div><div>तो चन्दन के अगल-बगल खड़ी दो बच्चियों में से एक, अपने बैग के साथ हमारे साथ स्टेशन जा रही थी | चन्दन कार चला रहा था | चन्दन की सुपुत्री सूचना तकनीकी में स्नातक की पढ़ाई कर रही थी | क्रिसमस और नए वर्ष की छुट्टी के पश्चात् वह छात्रावास वापिस जा रही थी | चन्दन ने मुझसे कहा था कि मैं उसे भविष्य के लिए कुछ मार्गदर्शन दे दूँ | मैं भी उससे बीच बीच में पढ़ाये जाने वाले विषयों में सम्बन्ध में पूछ रहा था | सूचना तकनीकी ऐसा क्षेत्र है , जिसमें अभी तक स्थावित्व नहीं आया है | किसी भी विषय के अप्रचलित होने में वक्त नहीं लगता | चन्दन का भय अपनी जगह सही था | बच्चों को वो विषय न पढ़ाने जाने चाहिए | यदि पढ़ाये जाते हैं तो बच्चे उन विषयों से दूर रहें | और अगर बाकी बच्चे वे विषय ले रहे हैं तो अपने बच्चे सजग रहें | मैं उससे कुछ पूछ रहा था और उसका जवाब सुनकर बीच -बीच में चन्दन कुछ प्रश्न करता तो हम दोनों उसे समझाने की कोशिश करते | </div><div><br /></div><div><div>आधा रास्ता निकल चुका था | अचानक चन्दन की सुपुत्री ने कहा,"पापा, मैं अपने कमरे की चाभी भूल गयी | "</div><div><br /></div><div>"ओह", चन्दन ने बहुत ही प्यार से पूछा ,"क्या करें बेटा ?"</div><div><br /></div><div>वह काफी सकपकाई हुई थी | </div><div><br /></div><div>"वापिस चलें ?" चन्दन ने पूछा | </div><div><br /></div><div>कोई जवाब नहीं ....| </div><div><br /></div><div>"कहीं रेलगाड़ी न छूट जाये | "मैंने सलाह दे डाली ,"रूममेट के पास तो होगी न चाभी ? वहाँ पहुंचकर डुप्लीकेट बनवा लेना |"</div></div><div><br /></div><div>कोई जवाब नहीं ...| </div><div><br /></div><div><div>चन्दन ने घड़ी में समय देखा और आगे के चौक से गाडी मोड़ ली | फिर विपरीत दिशा में तेज़ गति से गाडी दौड़ा दी | </div><div>घर पहुँचकर चन्दन ने कहा, "जाओ तो बेटा | देखो तो चाबी कहाँ है ? अगर पाँच मिनट में न दिखे तो लौट आना |"</div><div><br /></div><div>चन्दन की बात ख़तम होने के पहले ही वह अंदर दौड़ पड़ी और अगले ही क्षण चाभी लेकर आ गयी | </div><div><br /></div><div>"मिल गई पापा |"</div></div><div><br /></div><div><div>चन्दन ने कुछ नहीं कहा और तेजी से गाड़ी स्टेशन की ओर दौड़ा दी | देखते ही देखते हम लोग स्टेशन पहुँच गए | </div><div>गाडी स्टैंड पर लगाकर चन्दन ने बेटी का बैग पकड़ा और पार्किंग का टिकट लिए बिना प्लेटफार्म की ओर लपका | मैं देख कर हैरान था | इतने मोटे चन्दन में यह फुर्ती और ऊर्जा कहाँ से आ गयी | </div></div><div><br /></div><div><div>सूचना पटल पर ट्रेन के प्रस्थान समय में कोई अंतर नहीं था | </div><div><br /></div><div>"मैं पलटफोर्म टिकट लेकर आता हूँ |" मैंने कहा | </div><div><br /></div><div>चन्दन ने मेरी बात सुनी-अनसुनी की और वह तेज़ी से स्टेशन के अंदर चले गया | </div><div><br /></div><div>मैं दो प्लेटफार्म टिकट लेकर अंदर पहुंचा | सीढ़ियां चढ़ते उतरते जब ट्रेन के पास पहुंचा तो एक डिब्बे के बाहर चन्दन पसीना पोंछते दिख गया | उसने हाथ उठाकर मुझे आवाज़ दी | </div><div><br /></div><div>उसने अपनी सुपुत्री से काफी कोमलता से इतना ही कहा ,"ऐसा नहीं करते बेटा |"</div><div><br /></div><div>थोड़ी ही देर में मंथर गति से ट्रैन चल दी | चन्दन उदास आँखों से उसे जाते हुए देखता रहा | क्या ये वही चन्दन नहीं था जो बचपन में उस दिन बिजोरिया बहनजी की बिटिया की रुलाई नहीं देख पाया था ?</div><div><br /></div><div>करीब एक वर्ष पूर्व मैं चन्दन से इसी रेलवे स्टेशन पर एक लम्बे अंतराल के बाद पहली बार मिला था | आज मैं चन्दन के साथ उसी प्लेटफार्म में चलकर वापिस जा रहा था | मुझे थोड़ा भी गुमान नहीं था, कि ये मेरी चन्दन के साथ आखिरी मुलाकात है | </div></div><div><br /></div><div><div>"ठीक है यार चन्दन |" मैंने कहा,"मैं टेम्पो पकड़ कर जाता हूँ |"</div><div><br /></div><div>"अरे चल बैठ |" चन्दन बोला ,"तुझे मैं छोड़ देता हूँ |"</div><div><br /></div><div>"नहीं यार |" मैंने कहा, "तुझे भी प्लांट जाना है | मैं निकलता हूँ |"</div><div><br /></div><div>"ठीक है |" चन्दन ने ज्यादा प्रतिवाद नहीं किया ,"अपन फिर मिलेंगे | अब मैं जाऊँ ?"</div><div><br /></div><div>और चन्दन निकल गया - अपने चिर-परिचित रास्तों पर | </div></div><div><br /></div><div>-------------------</div><div><br /></div><div><div>चिर-परिचित रास्तों पर - वे शुरू में चन्दन के लिए अनजान ही थे | जिन रास्तों पर चन्दन ने चलना शुरू किया , वह कोई गैर कानूनी नहीं था | न ही किसी दृष्टि से अनैतिक था | सवाल सिर्फ इतना ही था कि क्या वह चन्दन की स्वच्छंद और स्वाभिमानी प्रकृति से मेल खाते थे | </div><div><br /></div><div>मधु ने चन्दन को अहसास करा दिया था कि उसके पीछे कोई नहीं है | श्रमिक वर्ग का ख्याल तो श्रमिक संगठन रख लेते हैं | जो लोग सीधे प्रबंधन वर्ग में आते हैं उनका अपना ही वर्ग रहता है | ठीक है, उनमें जबरदस्त प्रतिद्वंदिता रहती है , लेकिन वे एक दूसरे का हाथ पकडे रहते हैं | एक साथ तैरते हैं, एक साथ डूबते हैं, एक साथ उबरते हैं | ठीक सिन्हा सर और त्रिपाठी सर जैसे !</div><div><br /></div><div> लेकिन जो परिश्रम करके अपने सामर्थ्य के बल पर अधिकारी बनते हैं, उनका कोई नहीं होता | न तो वे श्रमिक जिनके बीच से वे ऊपर उठते हैं, उनके अपने होते हैं और न ही ऊपर से टपके अधिकारियों का वर्ग उन्हें स्वीकारने को तैयार होता है | उन्हें अपना रास्ता खुद बनाना पड़ता है | चन्दन ने यह देख ही लिया था | सिर्फ संपर्क की वजह से वह एक दुष्चक्र में फंसने से बचा था | अब उसे उन संपर्कों को और प्रगाढ़ करना था | </div><div><br /></div><div>भारत में प्रबंधन में जमे लोगों को ऐसे ही वर्ग की तलाश रहती है | उनके कार्य कलापों की सूची में एक कार्य हरदम जुड़ा रहता है - राजनीति | </div></div><div><br /></div><div><div>उन्हें ऐसे पदोन्नति प्राप्त अधिकारियों की सख्त आवश्यकता होती है जो श्रमिकों और उनके बीच एक सेतु का काम कर सकें | ताकि वे उनकी आवाज़, लक्ष्य, मंसूबे श्रमिकों तक पहुंचा सकें और श्रमिकों की भावनाएं , समस्याएं ,'मूड' उन तक पहुँचा सकें | क्योंकि पदोन्नति से बने अधिकारी श्रमिकों के बीच से ही ऊपर उठते हैं , उनके संवाद और सूचनाएं ज्यादा विश्वसनीय होती हैं | </div><div><br /></div><div>लेकिन होता यही है कि फिर उनकी खुद की छवि संशय के दायरे में आ जाती है | उनकी कोई भी उपलब्धि को उपहास के चश्मे से देखा जाता है | </div><div><br /></div><div>लेकिन मधु ने ठीक ही तो कहा था | अगर सीढ़ी में ऊपर चढ़ना है तो नीचे नहीं देखना चाहिए | चढ़ते सूरज को नमस्कार करने वाले लोगोँ की याददाश्त बहुत कमज़ोर होती है | </div></div><div><br /></div><div>---------------</div><div><br /></div><div><div>एक दिन ये होना ही था | </div><div><br /></div><div>अमेरिका के पश्चिमी तट पर उस दिन सुबह ही हुई थी | भारत में शाम हो रही थी | उठकर एक आदत सी बन गयी है | भगवान से पहले "व्हाट्स -एप" याद आता है | जैसे ही मैंने "भिलाई विद्यालय" के सन्देश देखे, तो चौंक गया | संदेशों का एक बड़ा पुलिंदा मेरी नज़रों के सामने था | अब भी तीव्र गति से सन्देश आ रहे थे | मैं संदेशों को सरकाते हुए जड़ तक जा पहुँचा | दरअसल चन्दन ने किसी अधिकारी से सम्बंधित कोई सन्देश अग्रेषित किया था | </div></div><div><br /></div><div>कोई बहुत अजूबा हो ऐसी बात नहीं थी | चन्दन अक्सर ऐसा करते रहता था | मैं ही नहीं, अधिकतर लोग बिना पढ़े ही मिटा देते थे | लेकिन इंदरजीत ने कोई टिप्पिणी कर दी और चन्दन को वह बात नागवार गुज़री | चन्दन ने चाहे जितना अपने आपको परिवर्धित किया हो, अपनी चमड़ी मोटी नहीं कर पाया था | उसने अपनी तरफ से चुभने वाला कोई उत्तर दिया जो न केवल इंदरजीत बल्कि कई अन्य लोगों को चुभ गया | बस फिर क्या था ? सब चन्दन पर टूट पड़े थे | बाकी सब तो कुछ देर में हट गए, लेकिन चन्दन और इंदरजीत का द्वंद्व चलते रहा | जैसे जैसे मैं संदेशों के ढेर में नीचे उतरते गया, मैंने देखा अब वह कीचड उछालने से ज्यादा निचले स्तर पर उतर गया था | अब वह पद के अभिमान, जलन से नीचे उतर कर "औकात" और "बेलचागिरी" पर आ गया था | हालाँकि ये दोनों अपने-आप में भारी भरकम शब्द थे और सामान्य सार्वजानिक वार्तालाप में कम ही प्रयोग में आते हैं , लेकिन अभी तो धड़ाधड़ उछल रहे थे | मसलन दोनों एक दूसरे को 'औकात' दिखा रहे थे | </div><div><br /></div><div>"क्या कर रहे हो यार ? क्यों लड़ रहे हो ? तुरंत बंद करो |" मैं बीच में कूदा | </div><div><br /></div><div>प्रतीक भोई उस समय भिलाई विद्यालय ग्रुप का संचालक था | वह भी तुरन्त हरकत में आया | </div><div><br /></div><div>"गलत बात मित्रों | " प्रतीक भोई ने लिखा ,"कृपया संयम बरतें |" </div><div><br /></div><div>वहाँ जहाँ गोलियां चल रही हों, वहाँ शांति की अपील भला कितनी प्रभावशाली होती | </div><div><br /></div><div>"एडमिन यार | इन्हें कुछ समय के लिए बाहर कर दो |" मैंने सुझाव दिया | </div><div><br /></div><div><div>तुरंत चन्दन का जवाब आया,"विजय भाई | मुझे बाहर निकालो | ये सब मेरी तरक्की से जलते हैं @#@$ |"</div><div><br /></div><div>अगले ही क्षण प्रतीक भोई ने चन्दन को बाहर कर दिया | </div><div><br /></div><div>"चुप बे @#$@ |" इंदरजीत ने अपनी रौ में जवाब दिया | और अगले ही क्षण प्रतीक भोई ने इंदरजीत को भी बाहर कर दिया | </div></div><div><br /></div><div><div>ग्रुप में सुई-पटक सन्नाटा छा गया | उसके बाद चन्दन से पूरी तरह संपर्क टूट गया | काफी दिनों बाद इंदरजीत तो ग्रुप में वापिस आया लेकिन चन्दन ने मना ही कर दिया | बीच बीच में विनोद धर जरूर मांग करता था, "यार मेरे दोस्त चन्दन को वापिस ले आओ | " शायद चन्दन का चुप रहना उसे भी खल रहा था | लेकिन चन्दन वापिस नहीं आया | </div><div><br /></div><div>एक दिन वह ग्रुप ही समाप्त हो गया | जिस तरह से खतरनाक राजनैतिक सन्देश उसमें आया करते थे, किसी भी दिन उसका दम निकलना स्वाभाविक था | </div><div><br /></div><div>उसके बाद मुरली ने एक दिन सबको इकठ्ठा कर लिया | और एक नया ग्रुप बनाया | चन्दन को भी किसी तरह उसने मना लिया | इंदरजीत भी उसमें था और विनोद भी | </div></div><div>-------------</div><div><div>चन्दन जिस पर जान छिड़कता था, उससे उसका भरपूर लगाव होता था | याद है, दिल के करीब की तस्वीरें ?</div><div>और डॉक्टर कौशलेन्द्र उसका सबसे करीबी मित्र था | डॉक्टर कौशलेन्द्र चुनाव में खड़े हुए थे | चन्दन ने उनका पोस्टर एक दिन "व्हाट्स-एप" ग्रुप में डाला | फिर दूसरे दिन और फिर तीसरे दिन ... | यह तो निश्चित था कि हमारे ग्रुप के सारे लोग, जिन्हें मताधिकार प्राप्त था , डॉक्टर कौशलेन्द्र को ही अपना मत देते | वोट कहीं जा भी नहीं सकते थे | डॉक्टर कौशलेन्द्र को हम लोग भिलाई विद्यालय के दिनों से जानते थे | कोई भी प्रत्याशी उससे ज्यादा कर्मठ और ईमानदार हो ही नहीं सकता था | </div><div><br /></div><div>लेकिन चन्दन था कि डॉक्टर कौशलेन्द्र का विज्ञापन व्हाट्स-एप में प्रतिदिन डाले ही जा रहा था | </div><div><br /></div><div>एक दिन मैंने चन्दन के पोस्टर को टैग करके मज़ाक में लिख मारा ,"देख लेना | चुनाव के बाद कौशलेन्द्र बदल जायेगा |"</div></div><div><br /></div><div><div>और चन्दन मुझ पर बरस पड़ा ,"विजय तुम दोस्त हो या दुश्मन ? तुरंत अपना पोस्ट डिलीट करो |"</div><div><br /></div><div>अब चन्दन का गुस्सा तो जग जाहिर था | मैंने हँसते-हँसते पोस्ट हटा भी दिया | </div></div><div><br /></div><div>दिल में सिर्फ यही कसक रही, ये चन्दन के साथ मेरा आखिरी संवाद था | पता भी नहीं चल पाया कि चन्दन ने माफ़ किया या नहीं | </div><div><br /></div><div>---------------</div><div><br /></div><div><div>महाप्रयाण के मात्र चार दिन पूर्व मुरली और अजय कौशल की चन्दन से मुलाकात हुई थी | </div><div><br /></div><div>न तो कोई प्रयोजन था और न कोई उद्देश्य | बस, घूमते फिरते चन्दन के घर जा पहुँचे | घर में अन्धकार था | मुरली ने घंटी बजाई | फिर एक बार घंटी बजाई | तीसरी घंटी में उसकी श्रीमती जी ने दरवाजा खोला | </div><div><br /></div><div>"शायद अपने भाई के घर गए हैं |" उन्होंने सूचित किया | </div><div><br /></div><div>वे घर से निकलने ही वाले थे | फिर सोचा उससे फोन पर ही बात कर ली जाये | तब जाने किस अँधेरे कोने से चन्दन प्रकट हुआ | </div></div><div><br /></div><div><div>वे तो उस चन्दन से मिलने गए थे जो सामान्य परिस्थितियों में जिंदादिल था | ठीक है, वह ठहाके नहीं लगाता था, लेकिन उसकी बातें हमेशा दिलचस्प लगती थी | मगर उस दिन चन्दन बुझा-बुझा सा लग रहा था | उसकी बातें इस कदर नैराश्य से भरी थी कि एक क्षण अजय कौशल को लगा कि चन्दन मज़ाक कर रहा है | </div><div><br /></div><div>"यार, अब मैं बहुत मोटा हो गया हूँ |" किसी सन्दर्भ में चन्दन बोला | </div><div><br /></div><div>""कोई जिम ज्वाइन कर ले |" अजय ने सुझाव दिया | </div><div><br /></div><div>"जिम सब दूर दूर है यार |"</div><div><br /></div><div>"सायक्लिंग कर न | अब तो बारिश भी ख़तम हो गयी है|" मुरली ने सलाह दी | बहुत से लोग साइक्लिंग करते हैं - विनोद, सुबोध .. |"</div><div><br /></div><div>"नहीं यार मुरली | मैं साइकिल नहीं चला सकता | मैं साइकिल तोड़ दूंगा |"</div><div><br /></div><div>"अरे नहीं भाई | तू इतना भारी भी नहीं है |" अजय बोला ,"तो एक ट्रेक सूट खरीद और रनिंग चालू कर दे |"</div></div><div><br /></div><div><div>"नहीं यार मैं दौड़ नहीं सकता |" चन्दन का जवाब था | </div><div><br /></div><div>"तो ठीक है | पहले वाकिंग करना शुरू कर दे |"</div><div><br /></div><div>"नहीं यार , मैं चल नहीं सकता | जल्दी थक जाता हूँ |"</div><div><br /></div><div>के ये वही चन्दन था जो पहली कक्षा में एक बेंच से दूसरे बेंच उछल उछल कर दौड़ते हुए पूरी कतार ख़त्म कर देता था ? वही चन्दन है जो सुरेश बोपचे के साथ त्रि-टंगी दौड़ दौड़ता था ? अगर मैं रहता तो मैं उसे जरूर याद दिलाता | </div><div>"तो थोड़ा-थोड़ा चल | फिर बढ़ाते जाना | पहले सौ कदम , फिर दो सौ |"</div><div><br /></div><div>"नहीं यार मैं चल ही नहीं सकता |"</div><div><br /></div><div>"अच्छा, दस कदम ?" </div><div><br /></div><div>"एक कदम भी नहीं |" हठीले बच्चे की तरह चन्दन ने कहा | </div></div><div><br /></div><div><div>"डॉक्टर क्या कहते हैं ? किसी डॉक्टर को दिखाया ?"</div><div><br /></div><div>"डॉक्टर कहते हैं हरी सब्जी खाओ |"</div><div><br /></div><div>"तो फिर हरी सब्जी खाओ - पालक, मेथी, टिंडा, लौकी | क्या परेशानी है ?"</div><div><br /></div><div>"कौन पकायेगा यार ?"</div><div><br /></div><div>"श्रीमती जी | "</div><div><br /></div><div>"अरे नहीं | वो नहीं पकाएगी |"</div><div><br /></div><div>"तो फिर तू खुद पका ले | क्या परेशानी है ?"</div><div><br /></div><div>"नहीं यार | मुझे खाना बनाना नहीं आता |"</div><div><br /></div><div>"तो एक खाना बनानेवाली रख ले |"</div><div><br /></div><div>"खाना बनानेवाली मिलती कहाँ है ?"</div><div><br /></div><div>"बोल | तो मैं खोज के रखता हूँ |"</div><div><br /></div><div>"नहीं यार |"</div><div><br /></div><div>ऐसे नकारात्मक उत्तरों की पूरी श्रृंखला चल रही थी कि अजय कौशल को लगने लगा, चन्दन बड़ी गंभीरता से मज़ाक कर रहा है | </div></div><div><br /></div><div>ये वो चन्दन था जो किसी भी ग़मगीन माहौल में भी ख़ुशी खोज़ लेता था | कितने ऐसे मौके आये थे | कक्षा की जान था वह | कभी किसी को निराश नहीं देख पाता था | नहीं - चन्दन जरूर मज़ाक कर रहा था | </div><div><br /></div><div>---------------</div><p>सूरज अस्त जरूर हो चुका था लेकिन लालिमा अभी भी बिखरी हुई हुई थी | अक्टूबर का दूसरा सप्ताह अभी शुरू ही हुआ था | कैलेंडर के अनुसार शिवनाथ नदी का बहाव काफी तेज़ था | बल्कि नदी उफन रही थी | चन्दन यंत्रचालित क़दमों से नदी की ओर बढ़ रहा था | आज उसके मन में न कोई उलझन थी और न ही कोई झिझक | न तो कोई डर था , न कोई मोह | </p><p>कोई उसे पुकारने वाला भी तो नहीं था | अब न तो बिजोरिया बहनजी की लड़की ही थी जिसकी आवाज़ से चन्दन पलटकर देखे | शांत चित्त . . . सतत अग्रसर पग ..</p><p>. अगर कोई पुकारता तो शायद उसे जवाब मिलता ," कहीं और जा के खोज बे | मैं चन्दन नहीं हूँ |" </p><p>वह नव-दुर्गा का प्रथम दिवस था और लगता था, मानो माँ दुर्गा ने ही उसे बुलाया था | वह तर्पण के लिए निकला था - पुरखों को आहुति देने .... </p><p>---------------------------</p><p>"तुझे विश्वास नहीं होगा विजय |" सूर्य प्रकाश फोन पर बोल रहा था, "जब चन्दन का क्षत-विक्षत शरीर मिला तो कोई उसे पहचान नहीं पा रहा था |"</p><p>...............</p><p>...............</p><p>मन अचानक भारी हो गया | </p><p>जीते-जी भी चन्दन को भला कौन पहचान पाया था ?</p><p>-----------</p><p><b>(समाप्त)</b></p><p><b>साभार</b> - अजय कौशल, प्रमोद मिश्रा , डी. मधु </p><p><br /></p><p><b>काल</b> - १९७६-८२ , १९८६ , अज्ञात, २०१५-२०२१ </p><p><br /></p><p><b>और देखें </b>- </p><p><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2021/11/blog-post.html"><i>'च' से चन्दन (भाग १ )</i></a></p><p><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2021/12/blog-post_29.html"><i>'च' से चन्दन (भाग २ )</i></a></p><p><i><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2021/12/blog-post.html">चोरी में साझेदारी</a> </i></p><p><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/01/blog-post_23.html"><i>राजीव सिंह की 'शोले '</i></a></p><p><br /></p>Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-47276446795216962592022-08-30T11:30:00.003-07:002022-09-24T00:48:40.811-07:00मारुति का पर्वत उत्तोलन <p><i> हर एक हिन्दू के घर में किसी भगवान् की कोई मूर्ति या चित्र हो या न हो, किन्तु एक प्रतिमा या तस्वीर पूजा गृह में अवश्य मिल जाएगी | इसमें हनुमान जी एक हाथ में पर्वत उठाये गमन करते नज़र आते हैं | जब भारत ने कोरोना का टीका ब्राज़ील को भेजा था , तब ब्राज़ील के आभार पत्र में वही छवि अंकित थी | सदियों से यह तस्वीर हिन्दुओं को संकट की घडी में प्रेरणा देते आयी है | </i></p><p><i>यह एक तरह से रामायण का न्यूनतम बिंदु था, जहाँ आशा की एक किरण भी दिखाई नहीं देती थी | सब कुछ ठहर सा गया था | अधर्म की विजय स्पष्ट थी | तब हनुमान जी के इस पराक्रम से मानो धर्म में नवजीवन का संचार हुआ था | </i></p><p><i>राम कथा को कई महाकवियों ने महाकाव्य के रूप में परिणित किया है | तुलसी रामायण की कहानी काफी अलग है | बाकी तीनों रामायण की कहानी और घटनाएं काफी कुछ मिलती हैं | अर्थात कम्ब रामायण और कृत्तिवास रामायण वाल्मीकि रामायण से काफी प्रभावित </i><i>हैं </i><i> | राम और लक्ष्मण के साथ सारी वानरसेना बेसुध होती है | विभीषण बचे रहते हैं | जांबवान रास्ता दिखाते हैं | चार औषधियों का जिक्र होता है | और अंत में राक्षसों और वानरों की मृत्यु का अंतर स्पष्ट किया गया है | </i></p><p><i>अब कवियों की कल्पना ने इस घटना के वर्णन को नए आयाम दिए हैं | उनका तुलनात्मक अध्ययन अपने आप में एक रोचक दिग्दर्शन कराता है | </i></p><p><b><u><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post.html">वाल्मीकि रामायण </a></u></b></p><p><i>माना जाता है कि वाल्मीकि रामायण छह शताब्दी ईसा पूर्व के कालखंड में लिखी गयी थी | इसलिए इसे आदि काव्य भी कहते हैं | इस रामायण के अनुसार मेघनाद के ब्रह्मास्त्र के असर से श्री रामचंद्र जी भी अछूते नहीं थे |</i></p><p>*********</p><p><b><u><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post_30.html">राम चरित मानस (तुलसीदास)</a></u></b></p><p><i>तुलसीदास जी की इस रामायण में यह प्रसंग सबसे अलग है | इसमें केवल लक्ष्मण ही मूर्छित होते हैं | एक गुप्तचर का उल्लेख है | छल कपट है | फिर भारत की महिमा का वर्णन है जिसका उल्लेख किसी और रामायण में नहीं है |</i></p><p>********</p><p><b><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post_46.html">कृत्तिवास रामायण</a> </b></p><p><i>बांग्ला में लिखी कृत्तिवास रामायण का बंगाल में वही दर्जा है जो उत्तर भारत में तुलसी रामायण - "रामचरित मानस" का है | यह ग्रन्थ बंगाल के भक्त कवि कृत्तिवास ओझा ने पंद्रहवी शताब्दी में लिखा था - तुलसीदास जी के 'राम चरित मानस' से करीब एक सदी पहले | चारों रामायणों के वृत्तांत में इस रामायण में यह प्रसंग सबसे ज्यादा विस्तृत और नाटकीयता से भरपूर है | और तो और - इस रामायण के अनुसार हनुमान जी पूरा पर्वत उठाकर नहीं लाते, अपितु पर्वत की ही मदद से औषधियां चुन कर लाते हैं | </i></p><p><b>***********</b></p><p><b><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post_88.html">कम्ब रामायण </a></b></p><p><i>कम्ब रामायण तमिल के सुप्रसिद्ध कवि कम्बन द्वारा बारहवीं शताब्दी में लिखा गया है | इस प्रसंग के पूर्व कम्ब खर के पुत्र के पराक्रम का उल्लेख करते हैं जो किसी रामायण में नहीं है | उनके वर्णन के हिसाब से हनुमान जी यहाँ सबसे लम्बी दूरी लांघते हैं | उनके वृत्तांत में श्री रघुनाथ जी घायल नहीं होते, किन्तु लक्ष्मण के वियोग के कारण मूर्छित जरूर हो जाते हैं | हनुमान जी के संजीवनी बूटी लाने के पूर्व ही उनकी मूर्छा टूट जाती है | </i></p><p>*********</p><p>और देखें -</p><p><b><u><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post.html">वाल्मीकि रामायण </a></u></b></p><p><b><u><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post_30.html">राम चरित मानस (तुलसीदास)</a></u></b></p><p><b><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post_46.html">कृत्तिवास रामायण</a> </b></p><p><b><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post_88.html">कम्ब रामायण </a></b></p><p><b><br /></b></p><p><br /></p><p><br /></p>Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-80911373391383797422022-08-30T09:58:00.003-07:002022-09-24T00:53:58.895-07:00मारुति का पर्वत उत्तोलन - वृत्तांत १ - वाल्मीकि रामायण <p> <i>आदि कवि महर्षि वाल्मीकि ने इस घटना की अनूठी पृष्ठभूमि तैयार की है | </i></p><p>एक ही दिन में देवान्तक ,नरान्तक, त्रिशिरा , अतिकाय, महोदर और महापार्श्व को खोने के बाद रावण विषाद के सागर में डूब गया | प्रचंड पराक्रमी मेघनाद से पिता का यह दुःख देखा नहीं गया | उसने रावण को दिलासा दी,"पिताजी, अभी आपका पुत्र जीवित है | जब उसने देवराज तक को परास्त किया है तो क्षुद्र मानवों की बात ही क्या है ?"</p><p>रावण से आशीर्वाद लेकर मेघनाद ने रणभूमि की ओर प्रस्थान किया | उसके साथ विभिन्न वाहनों पर सवार होकर उत्साही राक्षसों का समूह भी चल पड़ा |</p><p> <i>इससे पहले जब सुन्दरकाण्ड में मेघनाद हनुमानजी से युद्ध करने चला था, तब रावण ने उसे अपने साथ सेना ले जाने के लिए मना किया था ,"सेनाएं या तो समूह में भाग जाती हैं या मारी जाती हैं |" </i></p><p><i>किन्तु इस समय रावण ने मेघनाद को सेना के साथ जाने से रोका नहीं |</i></p><p> उन भयंकर राक्षसों से घिरा इंद्रजीत रणभूमि पहुंचा | रणभूमि पहुंचकर इंद्रजीत ने एकाएक रथ रोक लिया | राक्षस सेना का समूह उनके चारों ओर एकत्र होकर प्रश्वाचक दृष्टि से उनकी ओर देखने लगा | राक्षस योद्धाओं की भीड़ में इंद्रजीत रथ से उतरकर भूमि पर बैठ गया और उसने पवित्र अग्नि प्रज्ज्वलित की | </p><p>अग्नि में मेघनाद ने एक बकरे की बलि चढ़ाई और अग्निदेव का आव्हान किया | साक्षात् अग्निदेव प्रकट हुए | अग्निदेव ने स्वयं मेघनाद के रथ , अस्त्र शास्त्रों और कवच को ब्रह्म मन्त्र से अभिमंत्रित किया | अब दुगने उत्साह से मेघनाद रथ पर सवार हुआ और वानरों का संहार करने निकल पड़ा | </p><p>उस दिन रणभूमि में मेघनाद ने त्राहि-त्राहि मचा दी | गवाक्ष, गंधमादन, नील, द्विविद आदि वानरों को तो उसने बड़ी आसानी से क्षत विक्षत कर दिया | अब वह आकाशमार्ग में उड़ चला और अदृश्य हो गया | आकाश से ही उसने ब्रह्मास्त्र से वानर सेना पर प्रलयंकारी प्रहार करना प्रारम्भ किया | दुर्दांत शरों की बौछार करके उसने जांबवान, सुग्रीव और अंगद को भी धराशायी कर दिया | उस दिन उसका क्रोध और तेज इतना भयंकर था कि बजरंगबली भी बुरी तरह घायल हो गए | </p><p><i>लेकिन हनुमान जी पर उसके पहले मेघनाद एक बार ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर चुका था जब सीता का पता लगाने हनुमान जी लंका आये थे | किसी व्यक्ति पर दूसरी बार ब्रह्मास्त्र का प्रयोग उतना असरकारी नहीं रहता| दूसरे, हनुमानजी को खुद ब्रह्माजी से वर प्राप्त था कि ब्रह्मास्त्र का असर उन पर एक घडी से ज्यादा नहीं रहेगा | </i></p><p>मारुति रक्तरंजित अवश्य हो गए थे , लेकिन अचेत या धराशायी नहीं हुए | फिर भी मेघनाद अदृश्य होकर युद्ध कर रहा था, इसलिए पवनपुत्र को भी कुछ सूझ नहीं रहा था | </p><p>आसमान से मानो शरों की वर्षा हो रही थी | मेघनाद दिखाई तो नहीं देता था, किन्तु उसका अट्टहास कभी इस छोर से तो कभी उस छोर से सुनाई देता था | </p><p>श्री रामचंद्र जी ने लक्ष्मण से कहा ,"लक्ष्मण | बाणों की तीव्रता से यह स्पष्ट है कि इंद्र शत्रु ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया है | जगत के सृजनकर्ता के इस अस्त्र से मैं और तुम भी इन वानरों की तरह अचेत हो जायेंगे - यह निश्चित है | उसके पश्चात् ही यह राक्षस लंका चले जायेगा |" राम जी की बात पूरी होते-होते लक्ष्मण जी अचेत होकर भूमि पर गिर पड़े | अगले ही क्षण राम जी भी सुध-बुध खो बैठे | </p><p>ब्रह्मास्त्र का प्रभाव दिन के चार प्रहर तक रहा | पांचवें पहर, अर्थात सायंकाल के होते-होते उसका प्रभाव कम होने लगा | देखते ही देखते अँधेरा छा गया | उस अन्धकार में मशाल हाथ में लिए विभीषण अपने साथियों को पुकारते हुए घूमने लगे | <i>आश्चर्य की बात यह थी कि विभीषण, जो कि श्री रघुनाथ जी द्वारा लंकापति घोषित किये जा चुके थे, आखिर मेघनाद के प्रकोप से कैसे अछूते रह गए ? महाकवि वाल्मीकि ने इस सन्दर्भ में कुछ लिखा नहीं | संभव है, विभीषण को मेघनाद की माया का पूर्व ज्ञान हो | </i></p><p>वही विभीषण जब अपने साथियों को पुकार रहे थे , तब उन्हें घायल अवस्था में उनकी पुकार का उत्तर देने वाले मारुति मिल गए | फिर क्या था ? एक से दो भले | अब हनुमान जी ने भी अपने हाथ में एक मशाल ले ली और वे सबको पुकारते हुए चले | विभीषण बताते जा रहे थे कि राम और लक्ष्मण सिर्फ मूर्छित हुए हैं | वे अभी जीवित हैं | ऐसा प्रतीत होता था, मानो उनकी बात सिर्फ मारुति ही सुन रहे हैं | कहीं कोई आर्तनाद या पीड़ा का स्वर भी नहीं सुनाई पड़ता था | यहाँ वहाँ रक्त से लथपथ वानरों के शरीर पड़े हुए थे | </p><p>युद्ध स्थल पर उन्हें बाणों से बिंधे हुए जांबवान जी मिल गए | </p><p>"जांबवंत जी, | आप जीवित तो हैं ?" विभीषण ने पुकारकर पूछा | </p><p>जांबवान की उन्हें दुर्बल सी वाणी सुनाई दी ,"राक्षसराज, मैं आपकी वाणी तो सुन पा रहा हूँ , किन्तु आपको देख नहीं पा रहा हूँ | इंद्रजीत ने बाणों से मेरा अंग-अंग बींध दिया है | मैं आँखें भी नहीं खोल सकता | आपने हनुमानजी को कहीं देखा है ? क्या हनुमानजी जीवित हैं ?"</p><p>विभीषण जी आश्चर्यचकित रह गए ,"ऋक्षराज, न आपने राम या लक्ष्मण के सम्बन्ध में कुछ पूछा, ना वानरराज सुग्रीव या युवराज अंगद के बारे में | जान पड़ता है , हनुमानजी के सम्बन्ध में आपका स्नेह कुछ ज्यादा ही है |"</p><p>जांबवान, जो बड़ी मुश्किल से ही कुछ कह पा रहे थे, उन्होंने लम्बे चौड़े तर्क देने के बजाय संक्षेप में कुछ ही शब्दों में विभीषण को समझाने की कोशिश की ,"विभीषण, जिन परिस्थितियों में हम पड़े हैं, उस अवस्था से हमें अगर कोई निकाल सकते हैं तो वो बजरंगबली ही हैं | यदि बजरंगबली जीवित हैं तो उनमें हम सब निर्जीव लोगों को पुनर्जीवित करने की शक्ति है | अगर वे खुद ही प्राण खो बैठे हैं तो हम अगर जीवित भी हैं तो इस परिस्थिति में मरे के समान ही हैं |"</p><p>भाव विभोर हुए हनुमानजी से अब नहीं रहा गया | उन्होंने जांबवान के चरणों में प्रणाम किया | उनकी आवाज़ सुनकर जांबवान ने राहत की साँस ली | जांबवान खुद ब्रह्मा जी के पुत्र माने जाते हैं } इसलिए वृद्ध होने के बावजूद और तीरों से बिंधे होने के बाद भी वे बात कर पा रहे थे | </p><p>"केवल एक ही जगह ये औषधि उपलब्ध है |" जांबवान , जो सबसे बुजुर्ग थे, जिनका अनुभव और ज्ञान विस्तृत था, कह रहे थे ," दूर हिमालय में जाना पड़ेगा | वहां कैलाश पर्वत और ऋषभ पर्वत के मध्य एक और पर्वत है जो सामान्यतः नज़र नहीं आता | उस पर्वत के शिखर पर चार जड़ीबूटियां हैं - मृतसंजीवनी, विशल्यकरणी, सुवर्णकरणी और संघानी | हे महावीर , तुम तुरंत प्रस्थान करो और सागर के उस पार सहस्त्र योजन दूर जाकर तत्काल वे बूटियां लेकर आओ | तब ही हम सबके प्राण बच सकते हैं |"</p><p><i>मारुति एक बार फिर एक लम्बी यात्रा पर निकल पड़े | जब वे सीता का पता लगाने लंका में आये थे, तब उन्होंने शत योजन समुद्र लांघा था | यह उससे दस गुनी लम्बी, सहस्त्र योजन की यात्रा थी | पिछली यात्रा के समय हनुमानजी तरोताजा थे | इस समय वे स्वयं घायल थे | यह बात सही थी कि सागर पर सेतु बंध चुका था और हनुमानजी अगर चाहते तो कम से कम सागर पार करने का कार्य सेतु से पूरा कर सकते थे | लेकिन उसमें समय ज्यादा लगता और यात्रा की दूरी भी बढ़ जाती | </i></p><p>पुनः एक बार लंका में स्थित मलय पर्वत को हनुमान जी का उत्पीड़न सहना पड़ा | जब हनुमान जी सीता की खोज में लंका आये थे, तो अपने विशालकाय शरीर के साथ मलय पर्वत पर ही उतरे थे | फिर लंका से वापिस जाने के समय उन्होंने मलय पर्वत से ही छलांग भरी थी | एक बार फिर वे मलय पर्वत से छलांग लगाने को आतुर थे | इस बार की यात्रा बहुत लम्बी थी - सहस्त्रों योजन की | साथ ही एक एक क्षण बहुमूल्य था | युद्ध के जीत और हार का सारा दारोमदार अब इस यात्रा पर निर्भर करता था | हनुमान जी ने शरीर को संकुचित किया, मन को एकाग्र किया और वे औषधि लेने उड़ चले | </p><p>शीघ्रगामी हनुमान जी ने कुछ ही क्षणों में खतरनाक मत्स्य और सर्पों से भरे महासागर को लांघ लिया | अब वे वनों, सरोवरों, नदियों, समृद्धशाली जनपदों ग्राम और नगरों के ऊपर से उड़ रहे थे | </p><p>कुछ घडी उड़ने के पश्चात उन्हें ब्रह्मर्षियों के विशाल आश्रम दिखने लगे | देखते ही वे समझ गए कि वे हिमालय के समीप आ गए हैं | वहां उन्हें वनों के बीच सुरम्य झरने , कन्दराएँ और ऊँचे ऊँचे वृक्षों और हिम से आच्छादित पर्वत शिखर दिखाई देने लगे | ब्रह्मा जी के निवास स्थान को पार करके वे कैलाश पर्वत के समीप पहुँच गए | कैलाशऔर ऋषभ पर्बतों के मध्य उन्हें औषधियों से भरपूर जगमगाता हुआ वह पर्वत दिखाई दिया, जिसका वर्णन जांबवान ने किया था | </p><p>आनन्-फानन में वे पर्वत के ऊपर चढ़ गए और शिखर की ओर लपके जहाँ जांबवान की बताई हुई चार औषधियां होने की सम्भावना थी | अचानक औषधियों को भान हुआ कि कोई उन्हें उखाड़कर ले जाने आया है | डर के मारे सारी औषधियों की आभा जाती रही और पर्वत पर अन्धकार छा गया | </p><p>लक्ष्य के इतने पास पहुंचकर इस अकस्मात् बाधा से हनुमानजी को बहुत क्रोध आया | सारा दोष उन्होंने पर्वत पर ही निकाला | उनकी आँखें क्रोध से लाल हो गयीं और उन्होंने गर्जना की," "नगेंद्र | श्री रघुनाथजी का भला करने में भी तुम्हें परेशानी हो रही है | मैं अपने बाहुबल से अभी तुह्मारा दर्प चूर चूर कर देता हूँ |"</p><p>बलपूर्वक मारुति ने वह पर्वत उखाड़ लिया | समय भी कम था | वापसी यात्रा भी लम्बी थी | तीव्र गति से चलते हुए हनुमानजी सूर्योदय होने के पूर्व ही पर्वत के साथ लंका जा पहुंचे | </p><p>उन औषधियों की सुगंध का ही यह प्रभाव था कि राम और लक्षमण की मूर्छा जाती रही और वे जाग गए | इतना ही नहीं, सारे वानर, जो क्षत विक्षत हो चुके थे , आँखें मलते हुए उठ खड़े हुए | उनके अंगों से सारे बाण निकल गए | </p><p><br /></p><p>अंत में वाल्मीकि जी एक रोचक तथ्य का उल्लेख करते हैं | जब से युद्ध शुरू हुआ था, तब से रोज राक्षस और वानर - दोनों मारे जाते थे | लेकिन रावण की आज्ञा से मरने वाले हर राक्षसों को रात के अँधेरे में समुद्र में डाल दिया जाता था ताकि वानरों को अनुमान न लग सके कि कितने राक्षस मारे गए थे | </p><p>तात्पर्य यह कि औषधियां तो आखिर औषधियां थीं | वे वानरों और राक्षसों में भेद नहीं कर सकती थीं और एक औषधि के रूप में उन्हें भेद करना भी नहीं चाहिए था | जरा कल्पना कीजिये कि प्रमुख वानरों की तरह देवान्तक, नरान्तक, महापार्श्व, त्रिशिरा और महोदर के शरीर भी रण भूमि में पड़े होते और उन्हें औषधियों की सुगंध मिल गयी होती तो फिर क्या होता ? </p><p>***************</p><p>और देखें -</p><b><u><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post_59.html">मारुति का पर्वत उत्तोलन</a></u></b><br /><p><b><u><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post_30.html">राम चरित मानस (तुलसीदास)</a></u></b></p><p><b><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post_46.html">कृत्तिवास रामायण</a> </b></p><p><b><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post_88.html">कम्ब रामायण </a></b></p>Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-34017080893482869152022-08-30T09:56:00.003-07:002022-09-24T00:57:06.795-07:00मारुति का पर्वत उत्तोलन - वृत्तांत २ - तुलसी रामायण <p> राक्षसों की सेना की अपार क्षति देखकर रावण विक्षुब्ध हो गया | तब बूढ़े मंत्री माल्यवान ने उन्हें सीता को वापिस करके राम से संधि कर लेने सुझाव दिया | मेघनाद वहीँ खड़ा था | उसने माल्यवान को डपट दिया | रावण भी आग बबूला हो गया | उसने माल्यवान को ऐसी झाड़ पिलाई कि माल्यवान ने वहां रुकना उचित नहीं समझा और घर चले गया | मेघनाद ने रावण से निवेदन किया ,"पिता जी, मुझे आज्ञा दीजिये | कल मैं युद्ध स्थल पर राक्षस सेना की बागडोर हाथ में लेना चाहता हूँ | इंद्र से जीता हुआ वह रथ, जो मैंने आपको भी नहीं दिखया था, उसका प्रयोग मैं कल करूँगा |"</p><p>मेघनाद की वह बात कोरा आश्वासन नहीं था | अगले दिन रणभूमि में वह काल बनकर छा गया | पहले वह अपने सामान्य रथ पर ही किले से उतरकर रणभूमि में गया और वानर सेना को अस्त-व्यस्त कर दिया | नल, नील, जांबवान और यहाँ तक कि अंगद - कोई उनके सामने टिक नहीं सका | तब हनुमानजी उनसे जा भिड़े और दोनों में भीषण युद्ध छिड़ गया | एक विशाल चट्टान फेंककर हनुमानजी ने मेघनाद के रथ को चकनाचूर कर दिया | </p><p>चट्टान के रथ तक पहुँचने से पहले ही मेघनाद फुर्ती से रथ से बाहर कूद पड़ा और आकाश में उड़ चला | हनुमानजी उसे बार बार ललकारते थे पर वह पास नहीं आता था | क्योंकि अब वह अदृश्य मायावी रथ पर सवार हो चुका था | उसने ऐसी माया रची कि वानर सेना दिग्भ्रमित हो गयी | आकाश में ऊँचे चढ़कर वह बहुत से अंगारे बरसाने लगा | पृथ्वी में जहाँ तहाँ जल की धाराएं प्रकट होने लगी | पिशाच पिशाचियाँ प्रकट होकर 'मारो-काटो' का हो-हल्ला मचाने लगे | किसी को कुछ नहीं सूझा | सभी दसों दिशाओं में भाग चले | समय व्यर्थ न गंवाते हुए अब वह श्री रघुनाथ जी से ही भिड़ गया और अपनी माया से उन्हें प्रभावित करने का प्रयास करने लगा | जैसे कोई मनुष्य साँप का बच्चा हाथ में लेकर गरुड़ को डराए | उस सारी माया को काटने में राम जी को केवल एक ही बाण की आवश्यकता पड़ी | सारा मायाजाल बिखर गया और वानरों को सब कुछ स्पष्ट दिखाई देने लगा | </p><p>लक्ष्मण जी अत्यंत क्रोधित हो गए | मेघनाद के दुस्साहस पर विराम लगाने की उन्होंने राम जी से आज्ञा मांगी और अंगद आदि वीरों के साथ मेघनाद से युद्ध करने निकल पड़े | उधर मेघनाद के इर्द गिर्द प्रबल राक्षस भी इकठ्ठा हो गए | रणभूमि में वानर और राक्षस अपने अपने प्रतिद्वंदी चुनकर उनसे भिड़ गए | रक्त की धाराओं से गड्ढे भर गए और उन पर भयंकर युद्ध से उड़ने वाली धूल जमा होने लगी, मानो अंगारों के दे र पर राख छा रही हो | लहूलुहान योद्धा फूले हुए पलाश के वृक्षों की तरह सुशोभित हो रहे थे | </p><p>लक्ष्मण और मेघनाद के बीच भीषण युद्ध छिड़ गया | कुछ ही समय में मेघनाद का रथ लक्षमण ने चूर चूर कर दिया, घोड़े और सारथि मार गिराए | मेघनाद को अपनी मृत्यु स्पष्ट दिखाई देने लगी | उस घातक अस्त्र को चलाने का सही समय आ गया था - जिसका नाम था - वीरघातिनी | उस अमोघ शक्ति के छाती पर लगते ही लक्ष्मण रणभूमि में मूर्छित होकर गिर पड़े | </p><p>अब तक मौत को सामने देखने वाले मेघनाद में इतनी निर्भीकता आ गयी कि वह बेधड़क लक्ष्मण के पास चले आया | इतना ही नहीं, उसने लक्ष्मण को उठाकर लंका ले जाने का निर्णय लिया ताकि अपने पिताजी के क़दमों पर उन्हें एक भेंट के रूप में प्रस्तुत कर सकें | पर लक्ष्मण जी तो साक्षात् शेषनाग ठहरे , जिन्होंने खुद ही पूरी पृथ्वी का भार उठा रखा था | करोड़ों मेघनाद भी आ जाते तो उन्हें हिला नहीं सकते थे | वह जीतकर भी अपमानित होकर लंका लौट गया | </p><p>संध्या के समय दोनों ओर की सेनाएं लौटने लगी और सेनापति अपने योद्धाओं की खोज खबर लेने लगे | लक्ष्मण को न आते देखकर चिंतित हो हनुमान जी ने पूछा , "लक्ष्मण कहाँ है ?"</p><p>तभी जिस लक्ष्मण को मेघनाद थोड़ा भी नहीं हिला पाया था, उन मूर्छित लक्ष्मण का शरीर कंधे पर उठाये हनुमान जी प्रकट हुए | यह दृश्य देखकर राम जी समेत सारी वानरसेना सदमे में आ गयी | परन्तु यह समय शोक करने के बजाये पूरे जागृत मन से त्वरित कार्यवाही करने का था | जांबवान ने सुझाया, "लंका में विख्यात वैद्य सुषेण रहते हैं |" आनन् फानन में मारुति घर समेत वैद्य सुषेण को लंका से उठाकर ले आये | </p><p>सुषेण ने श्री रघुनाथ जी के चरणों में सर नवाया, लक्ष्मण की हालत देखी और उस औषधि का नाम और पता बताया जो सुदूर पर्वत पर स्थित थी | श्री रघुनाथ जी के चरणों में सर नवाकर हनुमानजी वह औषधि लेने निकल पड़े | </p><p>उधर रावण के गुप्तचर भी सक्रिय थे | उनकी सूचना मिलते रावण को ज्ञात हुआ कि औषधि तो सुबह तक पहुंचनी चाहिए | अब उसने हनुमानजी की यात्रा में व्यवधान के लिए एक योजना बनाई | अब मारीच इस संसार में नहीं था | फिर भी मायावी राक्षसों की कमी नहीं थी | उसने कालनेमि को पकड़ा | </p><p><i>फिर वही दृश्य, जो रावण के साथ अलग अलग समय पर अलग अलग पात्र कर चुके थे, फिर एक बार दोहराया गया | </i>कालनेमि ने रावण को मूर्खतापूर्ण कृत्य न करने की सलाह दी | जिसने उनका नगर जला दिया , जो खुद कालसर्प का भक्षक है, उसका मार्ग अवरुद्ध करना ? और रावण ने किससे शत्रुता मोल ली है ? पर उसके उन सुझावों का एक बार फिर वही हश्र हुआ | रावण का क्रोध सातवे आसमान पर जा पहुंचा | कालनेमि ने भी वही निर्णय लिया जो अतीत में इसी नाटक के अन्य पात्र ले चुके थे - इस मूर्ख के हाथों मरने से तो बेहतर है, उनके हाथों मृत्यु आये जो स्वयं जगदीश्वर के दूत हैं | </p><p>कालनेमि ने हनुमान की यात्रा के अंतिम चरण के पथ पर एक सुन्दर आश्रम बनाया जिसके चारों ओर सुन्दर उपवन और एक सरोवर था | उनका अनुमान सत्य निकला | यात्रा के अंतिम पड़ाव तक पहुँचते-पहुँचते हनुमान जी को प्यास लग आयी | आश्रम देखकर उन्होंने सोचा कि मुनि से पूछकर थोड़ा जल पी लूँ | </p><p>मुनि के आश्रम में चरण रखते ही उनके विस्मय की सीमा नहीं रही | उन्हें अपनी ही धुन में मग्न एक ऋषि के दर्शन हुए जो रामधुन गा रहे थे | </p><p>"स्वागत है राम सेवक | औषधि लेने जा रहे हो ?" छद्म ऋषि ने पूछा | </p><p>हनुमानजी को आश्चर्यचकित देखकर उसने बात आगे बढ़ाई ,"विस्मय का कोई कारण नहीं वत्स | मैं दिव्य दृष्टि से राम-रावण युद्ध देख रहा हूँ | "</p><p>"इस कष्ट से घबराओ मत | भला धर्म की लड़ाई में अधर्म भले संशय डाल दे, पर वह जीत कैसे सकता है ? "</p><p>हनुमान जी के मन में कई सवाल भी उठे | ऋषि के प्रति आदर का भाव भी उमड़ आया | फिर भी उन्हें अपने लक्ष्य का ध्यान था | उन्होंने सीधे पीने के लिए जल मांग लिया | </p><p>"कमंडल में जल पड़ा है वत्स |" छद्म ऋषि ने कहा | </p><p>"भला इतने से जल से इस विशाल शरीर का क्या होगा ?" हनुमान जी ने कहा ," क्या मैं सरोवर का जल पी सकता हूँ ? फिर उन्होंने अपना संदेह व्यक्त कर दिया ," आपको दूर- दूर तक देखने वाली यह ज्ञान दृष्टि कैसे प्राप्त हुई ?"</p><p>"तुम भी प्राप्त करना चाहते हो ?" ऋषि ने कहा, "ज्यादा मुश्किल नहीं है | तुम जैसे कुशाग्र बुद्धि को तो बिलकुल समय नहीं लगेगा | जाओ, सरोवर में स्नान कर आओ | अभी दीक्षा दे देता हूँ |"</p><p>हनुमान जी जब सरोवर की ओर चले तो उनके मन में थोड़ा असमंजस था | एक ओर उनका मन कह रहा था, समय नहीं है | तुरंत पानी पीकर निकल लो | दूसरी ओर उन्हें लग रहा था, अगर समय ज्यादा न लगे तो यह विद्या सीख ली जाए | युद्ध में शत्रुओं की गतिविधियों पर नज़र रखने में काफी काम आएगी | </p><p>उन्होंने सरोवर में कदम रखा ही था कि एक मगरमच्छी ने उनके कदम पकड़ लिए | हनुमानजी ने पलक झपकते उसका वध कर डाला | पर यह क्या ? वह तो शापजनित अप्सरा निकली जो अब शापमुक्त होकर दिव्य स्वरुप धारण करके आकाश को चली | जाते जाते उसने हनुमानजी को सावधान कर दिया ,"वो कोई ऋषि नहीं, कपटी राक्षस है |"</p><p><br /></p><p>"स्नान कर आये वत्स ?"</p><p>"गुरूजी, पहले आप गुरु दक्षिणा लीजिये, फिर मुझे मन्त्र सिखाइये |" हनुमानजी बोले |</p><p>"गुरुदक्षिणा तो दीक्षा पूरी होने के पश्चात् दी जाती है वत्स |" ऋषि ने कहा | </p><p>"हमारे वानर कुल में पहले गुरु दक्षिणा दी जाती है, फिर शिक्षा ली जाती है | " हनुमानजी बोले | </p><p>"बाद में दे देना | जल्दी क्या है वत्स ?" कालनेमि बोले | </p><p>किन्तु हनुमानजी को तो जल्दी थी | एक एक क्षण कीमती था | उन्होंने नाटक के पटाक्षेप का निश्चय किया और कालनेमि के गले में पूंछ का फंदा डालकर बोले ,"आप गुरुदक्षिणा लेंगे या नहीं ?"</p><p>पोल खुलते देख कालनेमि के मुंह से सिवाय 'राम-राम' के कुछ नहीं निकला | हनुमान जी ने उसका वध तो किया पर मरते समय उसके मुंह से राम नाम सुनकर वे हर्षित हो गए | </p><p>जब हनुमानजी पर्वत के पास पहुँचे तो वे औषधि की पहचान न कर सके | वैसे भी कालनेमि ने उनका काफी समय व्यर्थ कर दिया था | समय ज्यादा कीमती था | हनुमान जी ने वह पर्वत ही उखाड़ लिया और वे उसे आकाश मार्ग से ले चले | </p><p>श्री रामचन्द्रजी के नाम से अयोध्या का राज-काज चलाने वाले भरत हमेशा सजग रहकर स्वयं नगर की रक्षा करते थे | सहसा रात्रि के समय भरत ने देखा, कोई विशालकाय प्राणी एक पर्वत को लेकर अयोध्या के ऊपर से उड़ा जा रहा था | उसके राक्षस होने की सम्भावना उन्हें लगी | तत्क्षण उन्होंने एक बाण उस प्राणी की ओर मारा | हालाँकि वह बाण बिना फल का था, किन्तु उस बाण में इतनी शक्ति थी कि वह प्राणी मूर्छित होकर नीचे गिर पड़ा | लेकिन भरत जी हतप्रभ रह गए | उन्होंने स्पष्ट रूप से उसके मुख से निकले शब्द -'राम राम रघुपति' सुने थे | </p><p>भरत जी स्तब्ध रह गए | वह कोई राक्षस भी नहीं था | वह तो एक विशालकाय वानर था | अब वह मूर्छित था | भरत जी ने उसे ह्रदय से लगाया और अनेकों उपाय से उनकी मूर्छा दूर करने की कोशिश की | परन्तु हनुमानजी की मूर्छा दूर नहीं हुई | विधाता के इस विधान से भरत जी बहुत व्याकुल हो गए | एक बार फिर, भगवान ने उनके द्वारा अनायास ही राम के विरुद्ध एक और कार्य करवा दिया | आखिर किस वजह से ये वानर पर्वत लेकर जा रहा था ? उसके मुख से जिस प्रकार राम नाम निकले थे, उससे यह स्पष्ट था कि वह राम जी को जानता था और शायद उनका ही कोई कार्य कर रहा था | वह वानर अब गहरी मूर्छा में था | आँखों में आंसू भरकर भरत जी बोले, "यदि मन , वचन और शरीर से मेरा श्री रामचंद्र जी में निश्छल प्रेम हो तो ये वानर स्वस्थ होकर होश में आ जाए |"</p><p>इधर भरतजी विधाता को कोस रहे थे तो दूसरी ओर मनुष्य की लीला करते जगदीश्वर स्वयं विधि के विधान पर करुण विलाप कर रहे थे ,"अर्धरात्रि बीत गयी | कपि का कहीं कोई पता नहीं है | "</p><p>मूर्छित लक्ष्मण को हृदय से लगाकर श्री राम कह रहे थे ," भाई, तुम कभी भी मुझे दुखी नहीं देख सकते थे | मेरे लिए तुमने माता, पिता को छोड़ दिया और वन में हिम, गर्मी, तेज हवाएं सहते रहे | वह प्रेम अब कहाँ चले गया मेरे भाई ? मेरे व्याकुल वचन सुनकर अब उठते क्यों नहीं ?</p><p>हजारों योजन दूर अयोध्या में भरत जी भी हनुमान के उठ जाने के लिए प्रार्थना कर रहे थे ,"यदि राम जी के प्रति मेरा प्रेम सच्चा है, तो हे विधाता, यह कपि उठ जाए |"</p><p>श्री राम जी के शब्दों की ही वह महिमा थी कि हनुमान की मूर्छा टूट गयी | जब उन्हें ज्ञात हुआ कि वे कहाँ हैं और किस कार्य के लिए निकले हैं तो वे एकदम जाने के लिए उद्यित हो उठे | किन्तु सामने राम जी के ही अपने छोटे भाई बैठे थे | उनके पास से ऐसी सहजता से चले जाना भी भरत जी का अपमान होता | संक्षेप में, काम से काम शब्दों में हनुमान जी ने सारा विवरण कह सुनाया | भरत जी बड़े ही दुखी हुए ," सब कुछ मेरे कारण ही हो रहा है | मैं इस संसांर में ही क्यों आया ? मेरे कारण प्रभु को इतने कष्ट हुए |"</p><p>हनुमान जी को जाने के लिए आतुर देखकर भरत जी को आत्मग्लानि सी हो रही थी कि उनके कारण इतना समय निकल गया | उन्होंने हनुमानजी को सुझाव दिया ,"तात, समय बहुमूल्य है | प्रभात के पहले न पहुँच पाने पर कार्य बिगड़ जाएगा | तुम मेरे इस बाण पर बैठ जाओ | मैं पल भर में तुम्हें श्री रामचन्द्रजी के पास पहुंचा देता हूँ | </p><p>हनुमान जी के स्वाभिमान को ठेस पहुंची | फिर उन्हें लगा कि मेरे और इस पर्वत के भार से भला ये बाण क्या चलेगा ? तब उन्हें प्रभु के प्रताप का स्मरण हो आया | फिर भी उन्हें अपने आप पर ही ज्यादा विश्वास था | वे विनम्रतापूर्वक भरत के चरणों को छूकर बोले,"प्रभु | आपका प्रताप ही मेरे लिए शक्ति है | मुझे और कुछ भी नहीं चाहिए | आज्ञा दीजिये |"</p><p>भरत जी के शील और स्वाभाव की प्रशंसा करते हुए हनुमान जी तुरंत वहां से निकल गए | </p><p>उधर श्री रामचंद्र जी का करुण विलाप बढ़ते ही जा रहा था ," भाई | अगर मुझे ज्ञात होता कि तुम्हें खोना पड़ेगा तो शायद मैं वनवास से भी मना कर देता | पुत्र, स्त्री, धन , घर - ये सब इस संसार में खो जाने के बाद दूसरे मिल जाते हैं, किन्तु सगा भाई कभी नहीं मिलता | तुम्हारे बिना मेरा जीवन वैसे ही होगा जैसे पंख बिन पक्षी का, मणि बिन सर्प का और सूंड बिन गजराज का होता है | "</p><p>"अब मैं अवध कौन सा मुंह लेकर जाऊंगा ? लोग तो कहेंगे - देखो, कैसा व्यक्ति है ? स्त्री के लिए उसने भाई खो दिया | इस बदनामी से तो अच्छा था मैं वो बदनामी झेलता, जब लोग कहते, इस कायर को देखो | अपनी स्त्री की रक्षा नहीं कर सका | कम से कम तुम तो मेरे साथ रहते |मैं तो किसी तरह अपयश और तुम्हारा विछोह सह लूंगा पर सुमित्रा माता को कैसे समझाऊंगा ? भाई , कुछ तो बोलो | क्या जवाब दूंगा उनको ?"</p><p>प्रभु के इस प्रलाप से सारी वानर सेना हतोत्साहित हो चुकी थी | सभी शोक सागर में डूबे हुए थे | </p><p>तभी हनुमान जी का वहां आगमन हुआ | मानो करुण रस के मध्य अचानक वीर रस का अभ्युदय हो गया हो | </p><p>वानरों के हर्ष का ठिकाना नहीं रहा | हनुमान जी को श्री रघुनाथ जी ने गले लगा लिया | वैद्य सुषेण तत्काल औषधि बनाने के कार्य में जुट गए | कुछ ही क्षणों की बात थी , जब लक्ष्मण जी उठ बैठे , मानो गहरी नींद से जागे हों | </p><p>कार्य संपन्न होते ही हनुमान जी ने वैद्य सुषेण को उनके घर समेत गंतव्य पर पहुंचा दिया | </p><p>*********</p><p>और देखें - </p><p><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post_59.html">मारुति का पर्वत उत्तोलन</a></p><p><b><u><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post.html">वाल्मीकि रामायण </a></u></b></p><p><b><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post_46.html">कृत्तिवास रामायण</a> </b></p><p><b><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post_88.html">कम्ब रामायण </a></b></p><p><br /></p>Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-21379663323199458802022-08-30T09:55:00.002-07:002022-09-24T01:02:05.214-07:00मारुति का पर्वत उत्तोलन - वृत्तांत ३ - कृत्तिवास रामायण <p> एक ही दिन में देवान्तक, नरान्तक, त्रिशिरा, अतिकाय, महापार्श्व , महोदर आदि वीरों के संहार का समाचार सुनकर रावण शोक-सागर में डूब गया | दूतों और गुप्तचरों के कहे वचनों पर उसे यकायक विश्वास ही नहीं हुआ | एक-एक वीरों की शूरता की गाथा याद करके उसका चित्त विचलित हो रहा था | इंद्रजीत से यह देखा नहीं गया | </p><p>"पिताजी, मुझे केवल आपके चरणों की धूल चाहिए |" इंद्रजीत ने कहा ,"मैं आज ही राम और लक्ष्मण का संहार कर दूंगा | आपने मेरे रहते उन दिग्गज वीरों को रणभूमि में भेजकर गलती की | उनके प्राण बच सकते थे | खैर, आज मैं वानर सेना का संहार करूँगा | सुंग्रीव, अंगद, हनुमान, नल, नील - कोई नहीं बचेगा | जांबवान को तो मैं समुद्र के पानी में डुबाकर मारूंगा | "</p><p>इंद्रजीत के वचनों से रावण को थोड़ी सांत्वना मिली | इंद्रजीत अभी भी बोले जा रहा था,"पिताजी, आपके प्रताप से तो देवता भी कांपते हैं | ये नर और वानर जैसे तुच्छ प्राणियों से आप घबरा गए ? मैं आज ही राम और लक्ष्मण को बांधकर लाता हूँ | "</p><p>इंद्रजीत के जोशीले शब्दों से रावण का आत्मबल शनैः -शनैः पुनः हरा भरा हो गया | </p><p>कुछ ही समय पश्चात् इधर रावण अपने हाथों से मेघनाद का आभरण कर रहा था, उधर मेघनाद ने सारथि को आवाज़ दी और रथ को जल्दी सुसज्जित करने का आदेश दिया | </p><p>सारथि पर्वतीय घोड़ों से जुते रथ को लेकर आ गया | उसके साथ तेईस अक्षौहिणी सेना चली | सेना के पदचाप से ही पृथ्वी डोलने लगी | अचानक मेघनाद को याद आया, "माँ का आशीर्वाद तो लिया ही नहीं | यदि माँ से बिना पूछे रणभूमि में गया तो माँ अन्न जल त्याग देगी | "</p><p>मेघनाद को यह भी भली भांति ज्ञात था कि मां उससे क्या कहने वाली है ? हुआ भी कुछ वैसा ही | </p><p>मंदोदरी दो लाख विधवा नारियों से घिरी हुई थी | ये वो नारियां थी, जिनके पतिदेव युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे | मंदोदरी भगवान शिव जी से अपने पति और पुत्र की कुशलता के लिए पूजा कर रही थी | रह-रह कर उन विधवाओं का क्रंदन होने लगता था | </p><p>मंदोदरी उसे देखते ही उठ खड़ी हुई और उसने अपने पुत्र का आलिंगन किया | बोली,"बेटा , मैं गंगाधर शिवजी की पूजा करती हूँ, जिसने मुझे तुम जैसा पुत्र दिया | फिर भी देखो तो, ये कैसा संकट आया है | तेरे बाप ने तो परायी स्त्री का हरण करके लंका को विनाश की और धकेल दिया है |बेटा, राम कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं, साक्षात् विष्णु के अवतार हैं | जो भी युद्ध भूमि में उनसे लड़ने जाता है, जीवित नहीं लौटता | तुम राम जी को सीता लौटा दो और उनसे मित्रता कर लो | तुम्हारे बाप से अच्छे तो तुम्हारे चाचा विभीषण निकले, जिन्होंने राम का स्वरुप पहचान कर उनसे मित्रता कर ली | तुम भी उनके विरुद्ध युद्ध में मत जाओ | अपने पिता से कहकर परायी नारी को वापिस कर दो और लंका को बचा लो |"</p><p>अभिमान में चूर मेघनाद किसी तरह बड़ी मुश्किल से हँसी दबाकर बोला," माँ , ये तुम क्या कर रही हो ? पति निंदा तो महा पाप है | पिताजी ने आठों दिग्पालों को हराया है | मैंने इंद्र को पराजित किया है | जितने वैभव से इन्द्र की पत्नी रहती है, उससे सौ गुना ज्यादा ऐश्वर्य से तो तुम रहती हो | फिर परायी स्त्रियों के साथ ऐसा करना तो बलशाली पुरुषों के लिए कोई बड़ी बात नहीं है | इंद्र को देख लो | वे देवराज हैं | गौतम के शिष्य होकर भी उनको अपने गुरु की पत्नी से ऐसा कृत्य करते उन्हें शर्म नहीं आयी | चन्द्रमा तो ब्राह्मणों का देवता माना जाता है | उसने अपने गुरु बृहस्पति की पत्नी का हरण किया और आज संसार में प्रकाश देता है | </p><p>फिर आप पिता को दोष क्यों देती हो ? खर दूषण का वध करके राम ने पहले ही हमसे शत्रुता मोल ले ली थी | उसके बाद शूर्पणखा का अपमान - पिताजी ने क्या गलत किया है ?"</p><p>दो लाख विधवाएं बिलखने लगी | सब मेघनाद से अपनी करुण गाथाएं कहने लगीं | मेघनाद ने सबको सांत्वना देते हुए कहा," बस | आज ही राम और लक्ष्मण का वध करके मैं तुम लोगों का बदला पूरा करूँगा | अब रोओ मत | माता, अब मुझे आज्ञा दो | मुझे निकुंभला का यज्ञ करना है | इष्टदेव की अर्चना मैं पहले ही इतना विलम्ब हो चुका है | "</p><p>ऐसा करके मेघनाद ने मां से विदा ली और यज्ञशाला में चले गया | </p><p>रकवस्त्र , लाल पुष्पों की मालाएं , रक्त चन्दन , सरकंडे के पत्ते, घी के घड़े लाये गए | उसके बाद लाये गए - काले बकरे | मंत्रोच्चार के साथ अग्नि प्रज्ज्वलित की गयी और एक के बाद दूसरे, काले बकरों की आहुति दी जाने लगी | यज्ञ की ज्वाला मंत्रोच्चार के साथ बढ़ते चले गयी | अंततः साक्षात् अग्निदेव प्रकट हुए और खुद यज्ञ में दी जाने वाली आहुति का सेवन करने लगे | </p><p>इंद्रजीत ने जो वर माँगा , वह अनायास ही मिल गया | प्रफुल्लित इंद्रजीत अपनी सेना का सञ्चालन करने कूदकर रथ पर जा बैठा | सर पर चंड - मुण्ड छात्र थामे खड़े थे | आनन्- फानन में वह पूर्वी दरवाजे पर पहुँच गया | पूर्वी दरवाजे पर आक्रमण की बागडोर नील के हाथ में थी | इंद्रजीत को आते देखकर वानर सेना में भगदड़ मच गयी | वानर कुछ ही दिनों पूर्व इंद्रजीत के कोहराम को झेल चुके थे, जब गरुड़ ने नागपाश से राम लक्ष्मण समेत समस्त वानरों को नया जीवन दिया था | वही भयावह इंद्रजीत उनके सम्मुख था | तितर - बितर होते हुए वानर सेना को नील ने सम्हाला | उसने इंद्रजीत को ललकारा | इंद्रजीत तुरंत ही बादलों की आड़ में छिप गया और वहीँ से वानर सेना पर बाण चलाने लगा | </p><p>तीखे बाणों से सारी वानर सेना धराशायी होने लगी | नील भी कब तक टिकता | जल्दी ही उसका लहूलुहान शरीर धरती पर गिर पड़ा | </p><p>पूर्वी द्वार पर जीत प्राप्त करने के पश्चात इंद्रजीत दक्षिणी द्वार की और बढ़ा | अंगद सहित वानर वीर वहां दिन भर के युद्ध बाद आराम कर रहे थे | इंद्रजीत का सिंहनाद सुनकर वे झटपट उठ खड़े हुए | शरभ , देवेंद्र महेंद्र के साथ अंगद ने मेघनाद पर वाक्बाणों की बौछार सी कर दी | मेघनाद जरा भी विचलित नहीं हुआ | वह भी दुर्वचन कहता हुआ फिर बादलों के पीछे जाकर छिप गया और वानर सेना पर अमोघ बाण बरसाने लगा | उसने ब्रह्मास्त्र का भी प्रयोग कर दिया | वानर सेना भला कब तक टिकती ?</p><p>अब बारी उत्तरी द्वार की थी जहाँ वानरों के राजा सुग्रीव मोर्चा सम्हाले थे | दिन के युद्ध के पश्चात् वे भी विश्राम कर रहे थे | शिविर के रात्रि रक्षक के रूप में धूम्राक्ष सजग थे | इंद्रजीत ने ललकार कर पूछा ," कौन कौन जाग रहा है ? पिछली बार तो तुम लोग लोग बच गए थे | गरुड़ ने बचा लिया था | देख लो, इस बार काल से तुमको कौन बचाता है |" धूम्राक्ष ने उलटकर जवाब दिया ,"अपने चाचा कुम्भकरण और भाइयों का हश्र देख चुके हो न ? छद्म युद्ध बार बार नहीं चलता | हम सब लोग जाग रहे हैं | जब तक तेरे पिता को मारकर विभीषण को राजा न बना दें , हम चैन की नींद नहीं सोयेंगे |"</p><p>अट्टहास करता हुआ इंद्रजीत एक बार फिर बादलों के पीछे अदृश्य हो गया | वहां से वह तीखे बाण छोड़ता हुआ वानरों को क्षत विक्षत करते रहा | आखिर उसने ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया | औरों के साथ राजा सुग्रीव भी बेसुध होकर धरती पर गिर पड़े </p><p>बाकी रह गया पश्चिमी द्वार | वहां राम लक्ष्मण के साथ हनुमान भी थे } उस समय हनुमान जी ही रात्रि रक्षक थे | मेघनाद ने बादलों के पीछे से अदृश्य रहकर व्यंग्य से पूछा ,"पश्चिमी द्वार पर कौन कौन जग रहा है ?" मेघनाद था तो अदृश्य , किन्तु हनुमानजी भला उसकी आवाज़ पहचानने में कैसे चूक सकते थे | क्रोध से बोले," सब जाग रहे हैं मेघनाद और तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहे हैं | जब तक तुम्हारे पिता का वध नहीं हो जाता और विभीषण के सर पर राजछत्र सुशोभित नहीं होता, तब तक आराम वर्जित है |"</p><p>अदृश्य रहकर ही मेघनाद ने हनुमान को अपशब्द कहे और उनकी ओर ध्यान न देकर सीधे राम को ललकारा ,"जीवित अयोध्या लौटोगे ? भूल जाओ | मेरा नाम इंद्रजीत है |" और फिर वह अदृश्य रहकर राम और लक्षण को ही बाणों से बींधने लगा | राम जी पर असंख्य बाण छोड़ने के बाद उसने लक्ष्मण को सम्बोधित किया, "इसको झेल के देखो|" देखते ही देखते लक्ष्मण राम के बगल में गिर पड़े | क्षुरपार्श्व और अर्द्धचन्द्र नामक दो बाणों से आहत हो राम भी धरती पर गिर पड़े | वानर सेना में हाहाकार मच गया | </p><p>इंद्रजीत ने थोड़ा रूककर इस बार ये सुनिश्चित किया कि राम और लक्ष्मण पिछली बार की तरह बच ना पाएं | उसने चारों द्वारों पर वानर सेना को बुरी तरह पस्त किया था | </p><p>निश्चित रूप से विजय पताका फहराने के बाद मेघनाद को पारितोषिक मिलना तय था | अधीर होकर वह राजमहल चले गया | पिता के चरणों में तीन बार प्रणाम करने बाद उसने युद्ध की स्थिति के बारे में रावण को अवगत कराया | राम और लक्ष्मण से शुरू हुई एक लम्बी सूची ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी - सुग्रीव, हनुमान, अंगद , जांबवान शरभ, नील , सुषेण, गंधमादन .... | मेघनाद को पर्याप्त राजप्रासाद प्राप्त हुआ || विचित्र रत्नमुकुट, माणिक्य, रत्न और सहस्त्रों विद्याधरी कामनियाँ - सब मेघनाद को मिलीं | केवल नया छत्र और दंड नहीं दिया गया | पारितोषिक प्राप्त करने के पश्चात् मेघनाद अंतःपुर में गया और नारी मंडली के साथ पांसे खेलने बैठ गया | </p><p>चारों द्वारों पर राम लक्ष्मण सहित वानर सेना गिरी पड़ी थी | ब्रह्मा का वरद-हस्त होने के कारण केवल विभीषण और हनुमानजी बचे थे | हाथ में दीपक लेकर मंथर गति से दोनों वानर सेना का निरीक्षण करने लगे - कोई तो जीवित बचा हो | </p><p>असंख्य योद्धाओं के साथ उत्तरी द्वार पर सुग्रीव पड़े हुए थे | हाथ में वृक्ष लिए सेनापति नील पूर्वी द्वार पर पड़े थे | दक्षिणी द्वार पर बाणों से बिंधा पड़ा अंगद का धराशायी शरीर पड़ा था | पचिमी द्वार पर स्वयं राम और लक्ष्मण निश्चेष्ट पड़े थे | पास ही बाणों से बिंधे हुए जांबवान भी पड़े थे | आँखें खुल नहीं रही थी | </p><p>विभीषण की आवाज़ को उन्होंने पहचाना | जब विभीषण ने उनसे परामर्श माँगा तो उन्होंने कहा," मैं देख नहीं पा रहा हूँ | शरीर में लाखों बाण चुभे हुए हैं | क्या तुम पवनपुत्र हनुमान जी को कहीं देख पा रहे हो ?" </p><p>विभीषण को बड़ा आश्चर्य हुआ | उन्होंने कहा, " लगता है, इंद्रजीत के बाणों से तुम्हारी मति मारी गयी है | जगत के पूज्य श्री राम और लक्ष्मण मूर्छित हैं | हमारे महाराज सुग्रीव जी रण भूमि में पड़े हैं | लगता है, पवनपुत्र हनुमानजी के सिवाय संसार में तुम्हारा कोई मित्र ही नहीं है |"</p><p>जांबवान ने कहा,"इस समय मेरा मस्तिष्क काम नहीं कर रहा है | आप केवल हनुमानजी को बुला दो | अगर वे जीवित हैं तो वे ही राम लक्ष्मण सहित सारे वानरों को जीवनदान दे सकते हैं | "</p><p>हनुमानजी ने जांबवान के चरणस्पर्श कर अपना परिचय दिया | जांबवान ने मद्धिम आवाज़ में कहा ,"तुम तुरंत आकाश मार्ग से जाओ | हिमालय पर्वत लांघोगे , तो आगे धवन वर्ण का ऋष्यमूक पर्वत है | उसके दक्षिण पूर्व में कैलाश पर्वत है | ऋष्यमूक पर्वत पर चार तरह की औषधियां मिलेंगी | उनके नाम हैं, विशल्यकरणी , मृत संजीवनी, अस्थिसंचरणी और सुवर्णकरणी | ये चारों औषधियां जल्दी से ले आओ | "</p><p>हनुमानजी ने तुरंत पूँछ ऊपर की, दोनों कान खड़े किये और वे आकाश में उड़ चले | </p><p>पल भर में वे समुद्र लांघ गए | कितनी ही नद-नदियां , पर्वत , जंगल उन्होंने रात में ही पार कर ली | वे अनवरत चलते ही गए | एक ही रात में वे बारह वर्षों का पथ पार कर गए | हिमालय पर्वत भी वे लांघ गए | कैलाश पर्वत के पास उन्हें धवल वर्ण का ऋष्यमूक पर्वत दिखाई पड़ा | आनन फानन में वे पर्वत पर चढ़ गए | अब दुविधा औषधियों को पहचानने की थी | औषधियां वे पहचान नहीं सके | रात बहुत बीत गयी और चार तो क्या, एक भी औषधि नहीं मिली | हनुमानजी को जांबवान पर क्रोध आया - "इंद्रजीत का बाण खाकर उनकी बुद्धि कुंठित हो गयी | और मैं भी एक जल्दबाज़ मूर्ख की तरह उनकी बातों में आकर कष्ट उठाकर यहाँ आ गया | फिर उन्होंने अपने आपको संयत किया | उनके मन में विचार आया, जांबवान अनुभव और बुद्धि के सागर हैं | लोग उन्हें व्यर्थ ही बुद्धिमान महामंत्री नहीं कहते | इस पर्वत ने ही वे औषधियां छुपाकर रखी हैं | इंद्र ने यों ही इन पर्वतों के पंख नहीं काटे थे | ये महादुष्ट होते हैं | "</p><p>हनुमानजी नीति के ज्ञाता थे | सबसे पहले उन्होंने हाथ जोड़कर पर्वत की वंदना की," पर्वत राज, रणभूमि में राम और लक्ष्मण घायल पड़े हैं | उनके लिये कितने ही नदियों, और वनों को लांघकर मैं यहाँ पहुंचा हूँ | कृपा कीजिये | तुम तो सुमेरु हो | बड़ा हृदय दिखाकर औषधि का दान करो तो सबके प्राण बच जायेंगे | "</p><p>जब साम से काम नहीं बना तो हनुमान जी सीधे दंड पर उतर आये ," पर्वतराज, मेरी बात सुनना तो दूर, तुम मेरा उपहास करते हो ? लो, अब देखो |" हनुमानजी ने पर्वत को पकड़कर खींचा तो पर्वत उखड़ने लगा | लताएं, टूटने लगी | आर्तनाद करते हुए जानवर इधर उधर भागे | यक्ष पुकारने लगे,"ईश्वर , रक्षा करो |" अंततः स्वयं पर्वतराज एक ऋषि का वेश बनाकर हनुमान जी के सम्मुख उपस्थित हुए | </p><p>"हे महावीर, तुम कौन हो ? पर्वत से खींचतान क्यों कर रहे हो ? "</p><p>पीछा छुड़ाने के अंदाज़ में हनुमानजी ने संक्षेप में उत्तर दिया , "रावण के साथ युद्ध करते हुए अभी राम और लक्ष्मण युद्ध भूमि में मूर्छित हुए पड़े हैं | उनके लिए ही मैं औषधि लेने आया हूँ | मेरा नाम हनुमान है | इस अभिमानी पर्वत ने ठिठोली करते हुए औषधियां छुपकर रख दी हैं | कोई बात नहीं, मैं इसे उखाड़कर लंकापुरी ले जाऊंगा | "</p><p>"शांति रखो वत्स |" मुनिवर बोले,"मेरे साथ चलो | अभी मैं तुम्हें औषधि वाले वन दिखता हूँ |"</p><p>वे हनुमान जी का मार्गदर्शन करते हुए उन्हें उस स्थान पर ले गए जहाँ वांछित औषधियां थीं | </p><p>हनुमान जी ने चारों प्रकार की औषधियों की प्रचुर मात्रा इकठ्ठा की | वह एक छोटा-मोटा पर्वत ही बन गया | उसे उठाकर फिर उन्होंने कान सीधे किये , पूँछ ऊपर की और पलक झपकते ही लंकापुरी पहुँच गए | </p><p>सबसे पहले वे औषधि लेकर पश्चिमी द्वार गए | "मृत संजीवनी" की सुगंध पाते ही राम और लक्ष्मण सहित सारे वानरों की मूर्छा दूर हो गयी | अस्थि संचारिणी से वानरों के कटे फटे अंग अपने आप जुड़ गए | "सुवर्णकरणी' की सुगंध से उनका पूर्व स्वरूप वापिस आ गया - सारे घाव भर गए | वे उत्तरी द्वार गए और वनराज सुग्रीव सहित सब वानरों को औषधि सुंघाई | वे मानो नींद से जागकर उठ बैठे | दक्षिणी द्वार पर अंगार और सरे वानर और उत्तर द्वार पर नील - सब स्वस्थ हो गए और श्री रामचन्द्रजी की जयघोष करने लगे | </p><p>************</p><p>और देखें -</p><p><b><u><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post_59.html">मारुति का पर्वत उत्तोलन</a></u></b></p><p><b><u><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post.html">वाल्मीकि रामायण </a></u></b></p><p><b><u><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post_30.html">राम चरित मानस (तुलसीदास)</a></u></b></p><p><b><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post_88.html">कम्ब रामायण </a></b></p><p><b><br /></b></p><p><b><br /></b></p><p><b><br /></b></p>Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-30844943383145909532022-08-30T09:53:00.002-07:002022-09-24T01:04:24.372-07:00मारुति का पर्वत उत्तोलन - वृत्तांत ४ - कम्ब रामायण <p> खर का एकमात्र पुत्र था - मकरन्न | पिता की मृत्यु के प्रतिशोध की अग्नि में झुलसता हुआ वह रणभूमि में राम जी के वध के लिए निकला | काफी वीरता दिखाई और एक समय उसने सम्पूर्ण वानर सेना की व्यूह रचना को छिन्न भिन्न कर दिया था | फिर भी परिणीति वही हुई जो अपेक्षित थी | अंततः वह राम जी के हाथों वीरगति को प्राप्त हुआ | </p><p>जब रावण को यह समाचार प्राप्त हुआ तो उसके क्रोध और शोक की कोई सीमा नहीं थी | उसने सीधे इंद्रजीत को बुलाया | इस युद्ध में एक वही था, जो हमेशा उसके साथ खड़े रहा | यही नहीं, वह एक बार रावण को करीब करीब विजय भी दिलवा चुका था | </p><p>इंद्रजीत तत्काल वहां आ पहुंचा | उसने अपने पिता को ढाढस बँधाया, "पिताजी , आप चिंता मत कीजिये | आज ही के दिन आप देखेंगे , सीता देखेगी और अनगिनत देवता देखेंगे - वानरों के शवों का एक विशाल अम्बार, जिनके ऊपर दोनों धनुर्धर भाइयो का मृत शरीर पड़ा होगा | " यह कहकर उसने तीन बार अपने पिता की प्रदक्षिणा की, पाँव छुए और रणभूमि के लिए निकल पड़ा | </p><p>इंद्रजीत जब रणभूमि में पहुँचा तो राक्षसों के शवों को देखकर अचंभित और क्रोधित हो गया | राक्षसों के मृत शरीरों का अम्बार मानो आकाश छू रहा था | एक ओर टूटे हुए रथों और मरे हाथियों का ढेर लगा था | "वे दो मानव ", उसने गुस्से से दांत पीसे ,"उन्होंने धनुष बाण का उपयोग किया ? या फिर किसी माया या इंद्रजाल का प्रयोग किया ? इतने लोगों का वध वे कैसे कर सकते हैं ? आज मैं उनके इस कृत्य पर पूर्ण विराम लगाता हूँ |"</p><p>दूसरी ओर प्रतीकार की अग्नि किसी और के मन में भी धधक रही थी | इंद्रजीत को रणभूमि में आते देखकर लक्ष्मण ने तत्काल राम से अनुमति मांगी, " भैया | आज्ञा दीजिये | आज हिसाब बराबर करने का सुनहरा अवसर है | वर्ना मैं जीवनपर्यन्त अपयश और उपहास का पात्र बने रहूँगा | लोग कहेंगे, देखो इस योद्धा को | नागपाश से अपनी रक्षा नहीं कर पाया तो भला दूसरों को क्या सुरक्षा प्रदान करेगा ? उस दिन नागपाश से वीर गति को प्राप्त हो गया होता तो कहीं ज्यादा अच्छा होता | अब जीवित हूँ तो अपयश के उस दाग को धोने के लिए मुझे इस राक्षस का वध करना पड़ेगा | वार्ना मौत आने पर यमदूत नहीं, कुत्ते मेरे शरीर को ले जायेंगे |"</p><p>राम की आज्ञा मिलते ही लक्षमण ने शंखनाद किया और सीधे इंद्रजीत पर टूट पड़ा | देखते ही देखते उसने इंद्रजीत की सेना को अस्त-व्यस्त कर दिया किन्तु इंद्रजीत अविचलित था | उसने पुकारकर कहा ,"तुम्हारा भाई कहाँ है ? क्या तुम दोनों एक साथ नहीं, एक-एक करके मरना पसंद करोगे ? तुम्हारी इच्छा |"</p><p>"किस तरह का युद्ध पसंद करोगे इंद्रजीत ?" लक्ष्मण ने प्रत्युत्तर में पुकार कर कहा, " तीर, कमान , तलवार या और कोई हथियार ? कहो तो मल्ल युद्ध हो जाये ? आज तो तुम बच कर नहीं जा पाओगे |"</p><p>"अरे हटो | मैं पहले तुम्हें मृत्युलोक भेजूँगा और फिर तुम्हारे भाई को | मुझे चाचा कुम्भकर्ण समझने की भूल मत करना | मैं इंद्रजीत हूँ | अब तक मेरे जितने भाई , रिश्तेदार मारे गए हैं, तुम दोनों भाइयों के रक्त से उनका तर्पण करूँगा |"</p><p>"तुम्हारे पूरे कुनबे के लिए विभीषण तर्पण करेगा |" लक्ष्मण ने क्रोध से कहा | </p><p>पल भर में वह वाक्युद्ध धनुर्युद्ध में परिवर्तित हो गया | </p><p>इंद्रजीत ने राम, लक्ष्मण और वानरसेना के ऊपर बाणों की झड़ी लगा दी | किन्तु जैसे असंख्य झूठ भी एक सत्य के समक्ष ठहर नहीं सकते , लक्ष्मण ने उन बाण वर्षा को काट डाला | राम लक्ष्मण के पीछे जरूर खड़े रहे, किन्तु उन्होंने लक्ष्मण और मेघनाद के युद्ध में कोई हस्तक्षेप नहीं किया | </p><p>युद्ध चलता ही रहा | दोनों योद्धा एक दूसरे से जूझते रहे | क्रोधवश लक्ष्मण ने राम से निवेदन किया," भैया , अब समय आ गया है कि इस राक्षस पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया जाये | "</p><p>राम एक क्षण हतप्रभ रह गए , फिर तत्काल उनके मुंह से निकला,"ये क्या कह रहे हो लक्ष्मण ? ब्रह्मा जी का अस्त्र क्या यों ही चला दिया जाता है ? उसके कुछ नियम होते हैं | कितना विनाश होगा, तुम्हें कुछ अंदाज़ भी है ? वे सब निरपराध सैनिक , जो अपने स्वामी की युद्ध में रक्षा कर रहे हैं, एक क्षण में भस्म हो जायेंगे |हो सकता है, हमारी वानर सेना के भी कुछ वानर चपेट में आ जाएँ | भूल जाओ ब्रह्मास्त्र को | ऐसे ही युद्ध करते रहो |"</p><p>तब तक मेघनाद अदृश्य हो चुका था | उसने सारी बातें सुन ली और सीधे रावण के पास चले गया | उसके जाने पर देवता बड़े खुश हो गए | वानरों ने भी राहत की साँस ली | उन्होंने क्रोधवश मेघनाद को मनचाहे अपशब्द सुनाये और अस्त्र शस्त्र इधर उधर फेंककर बेखबर से हो गए |</p><p>"पिताजी, क्या मैं ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करूँ ?" मेघनाद ने रावण से पूछा | </p><p>रावण ने प्रतिवाद तो नहीं किया, किन्तु उपदेश जरूर सुना दिए," पुत्र, तुमने विचार तो किया है कि ब्रह्मास्त्र के प्रयोग का परिणाम क्या होगा ? ये कोई ऐसा अस्त्र तो है नहीं, जिसे हलके में लिया जाए |"</p><p>"पिताजी, विद्वान कहते हैं कि मरने से बेहतर है कि मार दिया जाए | यदि उन्हें मेरे प्रयोजन का पता चला तो वे मुझे पहले मार देंगे , चाहे उन्हें स्वयं ब्रह्मास्त्र का प्रयोग ही क्यों न करना पड़े | मैं अदृश्य रहकर बाण का संधान करूँगा ताकि लक्ष्य चुनने में व्यवधान न हो | उसके प्रयोग के पूर्व मैं पूजा कर लेना चाहता हूँ | "</p><p>"पिताजी, जब तक मैं पूजा करूँ, थोड़ी सी सेना युद्ध क्षेत्र में भेज दीजिये | ताकि वानर सेना को थोड़ी सी भी भनक न हो |"</p><p>रावण ने बड़े पेट वाले महोदर को थोड़ी सी सेना के साथ युद्ध क्षेत्र में भेज दिया | वानर सेना बिना इंद्रजीत के सेना आते देख अचरज में पड़ गयी | </p><p>"कहाँ है इंद्रजीत ? जरूर वह अदृश्य होकर युद्ध करेगा | सम्हल कर रहना | " सब एक दूसरे से कहते रहे | </p><p>इंद्रजीत था कहाँ ?</p><p>वह यज्ञ की अग्नि में सामने बैठा था | राई और धतूरे के फूल चढाने के बाद काले बकरे की बलि दी गयी | उसके सींग और सारे दांत सुरक्षित रखकर उसका सर धड़ से अगल कर दिया गया और घी से साथ उसकी यज्ञ की अग्नि में आहुति दे दी गयी | मंद सुगन्धित वायु ने यज्ञ की सुगंध सब ओर फैला दी | प्रसन्न चित्त इंद्रजीत ने इसे शुभ शकुन ही माना | अब ब्रह्मास्त्र उठाकर वह अदृश्य होकर रणभूमि में चले गया | </p><p>और आकाश में अदृश्य रहकर उसने वह ब्रह्मास्त्र चला ही दिया | </p><p>सबसे पहले लक्ष्मण आकाश से बरसते बाण से धराशायी हुए | देखकर हनुमानजी को बड़ा क्रोध आया ,"इंद्र की ये मजाल ? ऐरावत समेत मैं उसे मटियामेट कर दूंगा | " अगले ही क्षण असंख्य शरों से बिंधकर वे भी भूमि पर गिर पड़े | सुग्रीव कुछ समझ पाते, इससे पहले बाणों की वर्षा से वे भी अचेत हो गए | अंगद, जांबवान, नील - सबका वही हाल हुआ | </p><p>"तो छोटे भाई तो वानर सेना के साथ मटियामेट हो गए | " इंद्रजीत ने अपना शंख बजाया | </p><p>अब वह यह समाचार देने रावण के पास चले गया | </p><p>"क्या राम भी मारा गया ?" रावण ने सीधे प्रश्न किया | </p><p>"नहीं पिताजी | वह वहां नहीं था | वर्ना उसका भी वही हश्र होता जो उसके भाई और मित्रों का हुआ | " इस उद्घोषणा के बाद इंद्रजीत प्रसन्नचित्त होकर अपने महल में चले गया | </p><p>श्री रामचन्द्र जी थे कहाँ ?</p><p>उधर रणभूमि में त्राहि-त्राहि मची थी | राम , जिन्होंने अभी अस्त्रपूजा संपन्न ही की थी , अपने साथियों का साथ देने रणभूमि में पहुंचे | उन्होंने जो दृश्य देखा, वे किंकर्तव्यमूढ़ हो गए | जहाँ तक दृष्टि जाती थी, निर्जीव शरीर पड़े हुए थे | सबसे पहले उन्होंने वानरराज सुग्रीव को पहचाना | पास ही हनुमान जी का पार्थिव शरीर देखकर वे भावुक हो गए , "पवनपुत्र, तुम वही हो न - मेरे लिए जिसने सागर लांघा , लंकापुरी तहस नहस की , सीता को ढांढस बंधाया | और अब तुम इस अवस्था में पड़े हो | देवताओं का वर, ऋषियों की मंगलकामनाएं, सीता का आशीर्वाद - कुछ भी तुम्हारे काम नहीं आया | क्या मेरे पापों का बोझ इतना भारी है ? मेरे कारण पिताजी ने प्राण त्याग दिए | मेरी सहायता करते करते जटायु मृत्यु को प्राप्त हुए और अब मेरे ये मित्र - इस अवस्था में .. मेरा जन्म ही लोगों को दुःख देने के लिए हुआ है | "</p><p>तभी सबसे बड़े सदमे से उनका सामना हुआ | शवों के ढेर के ऊपर लक्ष्मण जी का पार्थिव शरीर पड़ा हुआ था | </p><p>रघुनाथ जी के मुख से एक शब्द भी नहीं निकला और अगले ही क्षण वे कटे हुए वृक्ष की भांति मूर्छित होकर गिर पड़े| |</p><p>न तो कोई उन्हें सम्हालने वाला ही बचा था, न कोई सांत्वना देने वाला | रणभूमि में लाल आँखों वाली कुछ राक्षस नारियां ही थीं, जो अपने पतिदेव को खोज रही थी | सियार हर्ष से ऊँची आवाज़ में बोलियां बोल रहे थे | देवता ही नहीं, पाप और मक्कारी भी मूर्त रूप धारण कर शोक में आंसू बहा रहे थे | </p><p>कुछ समय पश्चात् श्री रघुनाथ जी की मूर्छा टूटी | लक्ष्मण को गले लगाकर वे आर्तनाद करने लगे | </p><p>उन्हें अपने दुखों का अंत होता नहीं दिख रहा था | विलाप करते करते वे फिर मूर्छित हो गए | </p><p>इसी बीच विभीषण , जो सेना के लिए भोजन का प्रबंध करने निकले थे , वापिस आ गए | किन्तु अब भोजन की आवश्यकता किसे थी ? सारी सेना तो मृतप्राय थी | विभीषण ने सबसे पहले श्री रघुनाथ जी को ढूँढना प्रारम्भ किया | जल्दी ही उन्होंने लक्ष्मण के बगल में उनका शरीर देखा | ध्यान से देखने पर उन्होंने पाया कि उनके शरीर पर एक भी बाण नहीं लगा है | विभीषण ने राहत की सांस ली | </p><p>"राम जी सदमे से मूर्छित जरूर हैं, लेकिन जीवित हैं | वे होश में आ जायेंगे |" आशावादी विभीषण ने सोचा | उनकी आशावादी सोच तो वहां तक थी कि वे सोचने लगे, "जब ये सारी वानरसेना नागपाश के फंदे से निकल सकती है तो इस अस्त्र से मुक्ति क्यों नहीं पा सकती ? जरूर सब लोग स्वस्थ हो जायेंगे | लेकिन पहले देखता हूँ कि आखिर और कौन कौन से लोग जीवित हैं |"</p><p>वे मशाल लेकर खोजते रहे | जल्दी ही उन्होंने बाणों से बिंधे हुए हनुमानजी को खोज निकाला | उनकी नाड़ी वगैरह टटोलने के पश्चात् वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि हनुमान जी जीवित हैं | वे तत्काल शीघ्रता किन्तु सावधानी से हनुमानजी के शरीर से एक एक करके बाण निकालने लगे | </p><p>फिर वे थोड़ा सा जल ले आये और उसे हनुमानजी के चेहरे पर छिड़का | </p><p>"राम |" कराहते हुए हनुमान जी के मुख से निकला | विभीषण की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा | शनैः - शनैः हनुमानजी कुछ बोलने की स्थिति में आ गए | </p><p>"हमारे स्वामी कुशल से तो हैं ?" उन्होंने पूछा | </p><p>"अभी वे लक्ष्मण जी के पास गहरी मूर्छा में पड़े हैं | जब उन्हें होश आएगा, तभी हम लोग जान सकेंगे कि हमारे लिए अगला कदम क्या होगा ?" विभीषण ने कहा | </p><p>हनुमानजी समय की कीमत जानते थे | वे यह भी जानते थे कि इस संकट की घडी में मार्ग कौन प्रशस्त कर सकता है | </p><p>"जांबवान जी कहाँ हैं ? " उन्होंने पूछा | </p><p>"पता नहीं | " विभीषण ने कहा ," मैं अभी आया हूँ |"</p><p>हनुमानजी और विभीषण मिलकर जांबवान को खोजने लगे | </p><p>"मृत्यु उनके पास भी नहीं फटक सकती | उन्हें जल्दी ढूंढ निकालना आवश्यक है | वे ही उन दोनों भाइयो को मूर्छा से बाहर निकालने का उपाय सुझा सकते हैं | "</p><p>बाणों से बिंधे हुए जांबवान जी आखिर मिल गए | </p><p>"निस्संदेह इंद्रजीत ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया है |' जांबवान ने कहा,"किन्तु कोई भी अस्त्र श्री रघुनाथजी का कुछ नहीं बिगाड़ सकता |"</p><p>आप ठीक कहते हैं |" विभीषण ने कहा , "वे इस समय लक्ष्मण जी के पास मूर्छित अवस्था में पड़े हैं |"</p><p>"कोई आश्चर्य की बात नहीं है | " जांबवान ने कहा,"उनके प्राण अलग अलग थोड़े ही हैं ?</p><p>फिर जांबवान हनुमानजी की ओर मुड़े,"हनुमान , तुमसे ही आशा है | यह समय व्यर्थ गंवाने का नहीं है | तुम तत्काल औषधि लेकर आओ |"</p><p>हनुआनजी कुछ समझे नहीं। "कौन सी औषधि ? कहाँ से ?"</p><p>"तुम उत्तर दिशा की ओर नौ हज़ार योजन जाओ | तुम हिमालय पर्वत पर पहुँच जाओगे, जिसकी चौड़ाई दो हज़ार योजन है | वहां से तुम्हें फिर नौ हज़ार योजन आगे जाना है | वहां तुम्हें स्वर्ण पर्वत मिलेगा | वहां से भी नौ हजार योजन आगे बढ़ने पर लाल रंग का निदत पर्वत मिलेगा | बिना विश्राम किये बढ़ते जाना | नौ हजार योजन और आगे बढ़ने पर मेरु पर्वत मिलेगा | अविरत चलते जाना मारुति ! नौ हजार योजन के पश्चात् नील पर्वत मिलेगा | अगले चार हजार योजन के पश्चात् मेघ की तरह श्याम पर्वत मिलेगा | यही तुम्हारी मंज़िल होगी | वह काला पर्वत औषधियों का भण्डार है | "</p><p>"तुम्हें कुल चार औषधि लानी है | पहली औषधि मृत शरीर में जान फूँक देगी | दूसरी औषधि शरीर की टूटी अस्थियां तुरंत जोड़ देगी | तीसरी औषधि शरीर में चुभे हुए सारे अस्त्र-शस्त्र पल भर में निकाल देगी और चौथी औषधि सारे घावों को भरकर काया पूर्वावस्था में ले आएगी |"</p><p>उन्होंने हनुमान को उन चार औषधियों की पहचान बताई | </p><p>"हनुमान, उन औषधियों की जड़ें समुद्र तक हैं | उनकी उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय समय हुई थी | "</p><p>विभीषण और हनुमान को आश्चर्य में पड़े देखकर जांबवान ने आगे कहा, "तुम्हें लग रहा होगा, ये सब मैं कैसे जानता हूँ ? जब आदियुगीन देवता पृथ्वी का भ्रमण करते हुए नापजोख कर रहे थे तो नगाड़ा बजाते हुए मैं उनके आगे आगे चल रहा था | तब मैंने इन औषधियों को देखा और जिज्ञासावश उनसे पूछ लिया | उन्होंने जो उत्तर दिया , वह युगों युगों से ऋषिगण जानते हैं | परन्तु सावधान रहना | अनगिनत रक्षक तीक्ष्ण हथियार लिए उसकी रक्षा करते हैं | चिंता मत करो | जैसे ही उन्हें ज्ञात होगा, तुम किस प्रयोजन से आये हो, वे तुम्हारे लिए रास्ता छोड़ देंगे |"</p><p>हनुमान को अपनी शक्तियों का पता तब चलता था, जब उन्हें उसका आभास कराया जाता था | अब वह प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी | जांबवान ने उन पर पूरा विश्वास जताया था कि वे ही यह दुर्गम कार्य कर सकते हैं | </p><p>"यदि मृतकों में प्राण फूंकने के लिए इतना सा ही कार्य है तो मैं अवश्य उसे पूर्ण करूँगा | अब आज्ञा दीजिये |" हनुमानजी ने जांबवान को प्रणाम किया और लम्बी यात्रा पर निकल गए | </p><p>देखते ही देखते हनुमानजी का शरीर बढ़ने लगा | उनका सर मानो आकाश छूने लगा | कंधे मानो बादल की तरह फ़ैल गए | उनकी पूँछ गोलाकार हुई , भुजाये सामने फैली | दीर्घ सांस लेकर हनुमान ने जैसे ही छलांग भरी , लंका एक नौका की भांति डगमगाने लगी | </p><p>सागर में उथल पुथल मचाते हुए, बादलों को चीरते हुए, देखते ही देखते हनुमान जी हिमालय के ऊपर पहुँच गए | वहां रहने वाले ऋषियों ने आशीर्वाद दिया ,"तुम्हारा मनोरथ पूर्ण हो हनुमान |"</p><p>अगले ही क्षण वे कैलाश के ऊपर से गुजर रहे थे | शिव जी को देखते ही उन्होंने प्रणाम किया और शिवजी ने मुस्कुराते हुए उनका अभिवादन स्वीकार किया | फिर पार्वती को पुकारकर हनुमान जी की ओर संकेत किया, "देखो, वे रामदूत पवनपुत्र हैं |"</p><p>पलक झपकते ही हनुमान निदत पर्वत के ऊपर पहुँच गए | विष्णु भगवान के चक्र की गति से चलते हुए वे मेरु पर्वत तक जा पहुंचे जो पृथ्वी और स्वर्ग में दूरी मापने के लिए स्वीकार्य मापक माना जाता था | </p><p>अब वे उस द्वीप के ऊपर से गुजरे जिसमें जम्बू वृक्ष लगा था वहीं पर्वत के शिखर पर उन्हें ब्रह्माजी के दर्शन हुए | उन्होंने ब्रह्माजी को प्रणाम किया | </p><p>मेरु पर्वत को पार करते ही हनुमानजी हताश हो गए | सामने सूरज अपनी किरणे बिखेर रहा था | </p><p>"अब कुछ नहीं हो सकता |" हनुमानजी दुःख के सागर में डूब गए ,"औषधि सुबह होने के पूर्व पहुंचनी थी और सुबह हो चुकी है |"</p><p>अचानक उन्हें याद आया, " अरे, मेरु पर्वत के बाद तो समय परिवर्तित हो जाता है | यानी, अभी लंका में रात ही होगी | " उन्होंने राहत की साँस ली और आगे बढ़ गए | </p><p>अब वे श्याम पर्वत के पास पहुँच गए | वह पर्वत इतना काला था कि रात्रि भी शर्मा जाए | </p><p>हनुमान जी पर्वत पर कूद पड़े | देखते ही देखते वे तीक्ष्ण हथियारों से लैस रक्षकों से घिर गए | </p><p>"कौन हो तुम?" एक रक्षक दहाड़ा," क्या चाहिए तुम्हें ?'</p><p>हनुमानजी कुछ कहते, इसके पूर्व ही विष्णु का चक्र प्रकट हुआ और हनुमान जी के चारों ओर घूमने लगा | अब हनुमानजी से कुछ पूछना रक्षकों को बेमानी लगा | </p><p>"ठीक है , जो तुम्हें चाहिए, ले जाओ |" रक्षकों ने कहा ,"लेकिन याद रहे | इस स्थान को कोई क्षति नहीं पहुँचनी चाहिए |" </p><p>किन्तु हनुमान जी कहाँ मानने वाले थे ? रक्षकों के अदृश्य होने की देर थी कि हनुमान जी ने पूरा पर्वत उखाड़ लिया | </p><p>"औषधियों को भला कहाँ ढूंढते फिरूं ?" हनुमानजी ने मन ही मन सोचा ,"समय महत्वपूर्ण है |" और देखते ही देखते पर्वत के साथ वे लंका की ओर उड़ चले | </p><p>इधर हनुमान जी औषधि लेने निकले, उधर लंका में विभीषण और लड़खड़ाते हुए जांबवान लक्ष्मण के पास मूर्छित पड़े हुए राम जी के पास पहुंचे | उनकी सांस चल रही थी | दोनों ने राम जी के चरणों की मालिश की | धीरे धीरे राम जी ने आँखें खोली, विभीषण और जांबवान को पहचाना | उन्होंने अपने आसपास पड़े मृत शरीरों को देखा, लक्ष्मण की ओर देखा और शोक सागर में डूब गए | </p><p>"सब कुछ नष्ट हो गया मित्रों | देखो तो , इतने सारे मृतक शरीर पड़े हैं | क्या दोष था इनका ? यही न, कि इन लोगों ने मेरे पराक्रम पर विश्वास करके मेरे कार्य को संपन्न करने के लिए मेरा साथ देना स्वीकार किया ?"</p><p>"मेरा सम्पूर्ण जीवन ही गलतियों से भरा है | सब कुछ जानते हुए, कि यह छल कपट है, सीता की प्रीत के कारण उसकी बात मानते हुए मैंने छद्म मृग का पीछा किया | भाई लक्ष्मण की बात नहीं मानी और आज देखो - उस मूर्खतापूर्ण कार्य के कारण कितने लोग काल के गाल में चले गए |"</p><p>"याद आता है तुम्हें उस दिन का भीषण युद्ध जो मेरे और रावण के बीच हुआ था ? उस दिन विजय श्री मेरे सामने खड़ी थी | चाहता तो मैं उसका वध कर सकता था | क्या सोच कर मैंने उसे छोड़ दिया ? और अब परिणाम देखो | मृतकों को गिनना मुश्किल है |"</p><p>उस राक्षस के ब्रह्मास्त्र के प्रयोग के पूर्व लक्ष्मण ने स्वयं मुझसे ब्रह्मास्त्र के प्रयोग की अनुमति मांगी थी और मैंने नीति का अनुसरण करते हुए मना कर दिया | और उस राक्षस ने उचित-अनुचित का विचार किये बिना ही ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया | अब गलती किसकी मानोगे ?" </p><p>"उसके बाद अपने भाई के साथ खड़े रहने के बजाये मैं शस्त्र पूजा करने चले गया | जब लौट के आया तो सब वानरों के साथ मेरा भाई भी चिरनिद्रा में सोया हुआ था |"</p><p>"भाई तो चले गया | इंद्रजीत का वध करने का उसका प्रण अधूरा रह गया | अब मैं जीकर क्या हासिल करूँगा ? राक्षसों का समूल नाश करके मुझे क्या मिलेगा ? कौन सा यश मिलेगा ? भरत मुझे राज सौंप देगा तो लेकर मैं क्या करूँगा ? क्या सत्य की राह पर चलने वाला आदर्श बनकर ही रह जाऊंगा ? जिसने नीति के लिए अपना भाई खो दिया ?"</p><p>"लोग तो यही कहेंगे न, अपने पिता तुल्य जटायु को खोया, मित्रों को खोया और अपने भाई को भी खो दिया , इस तृण के बने इंसान ने - किसलिए ? अपनी पत्नी के लिए |"</p><p>"ऐसे मिथ्या जीवन से तो मृत्यु ही अच्छी है | " राम जी विलाप करने लगे | </p><p>जांबवान से रहा नहीं गया | वे उसके चरणों में गिरकर बोले, "प्रभो, कुछ करने के पहले मेरी एक बात सुन लीजिये | आप कौन हैं, क्या हैं - ये मेरे कहने की न तो आवश्यकता है और न ही इसकी अनुमति है | इतना ही कहूंगा भगवन ! थोड़ा सोचिये | जिस ब्रह्मास्त्र से हम सब की ये दशा हुई, जिससे वानर, राक्षस - कोई नहीं बच सकता, उससे आपको तनिक भी क्षति नहीं हुई | लक्ष्मण जी और ये सब वानर मृतप्राय अवश्य हैं, इसमें संदेह नहीं, किन्तु मृत नहीं हैं | इनके प्राण वापस आ जायेंगे | हनुमान जी औषधि लेकर आने ही वाले हैं | उनमें से एक औषधि मृत-संजीवनी है जो इन सब के प्राणों की रक्षा करेगी | दूसरी इनकी अस्थियों को जोड़ देगी | तीसरी औषधि , हे प्रभु, इनके शरीर से सारे बाण निकाल देगी | चौथी औषधि इनके सारे घाव भर देगी और शरीर पहले की तरह हो जायेगा | "</p><p>ये बातें अभी हो ही रही थी कि समुद्र के उत्तरी तट पर ऊँची-ऊँची लहरें उठने लगी , जैसे मानो भयंकर तूफान आ गया हो | आसमान में सितारे भटक गए | जंगल में मादा हिरणों ने मानो नर हिरण की छवि चन्द्रमा में देख ली हो और वे भयभीत होकर इधर उधर भागने लगी | </p><p>अगले ही क्षण पर्वत के साथ हनुमानजी सामने खड़े थे | </p><p>पर यह क्या ? वह दैवीय पर्वत ने मानो लंका की अपवित्र भूमि को स्पर्श करने से ही मना कर दिया | वह अधर में ही लटके रहा | </p><p>पवनदेव ने ही वह छोटा सा संकट दूर किया | </p><p>उन औषधियों को, जिन्हें हनुमान जी पहचान न सके, खोजने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी | वायु के संचरित होने से ज्यों ज्यों उन औषधियों की सुगंध सब योद्धाओं के नथुनों में घुसी , वे एक एक करके उठने लगे , मानो गहरी नींद से जाग रहे हों | लक्ष्मण सुग्रीव और सारे वानरवीर - सब स्वस्थ हो गए | </p><p>किन्तु वहां वानर सेना ही मृत संजीवनी से लाभान्वित हुई | राक्षस सेना के मृत शरीर तो रावण की आज्ञा से समुद्र में बहा दिए जाते थे | </p><p>***********</p><p>और देखें -</p><p><b><u><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post_59.html">मारुति का पर्वत उत्तोलन</a></u></b></p><p><b><u><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post.html">वाल्मीकि रामायण </a></u></b></p><p><b><u><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post_30.html">राम चरित मानस (तुलसीदास)</a></u></b></p><p><b><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/08/blog-post_46.html">कृत्तिवास रामायण</a> </b></p><p><b><br /></b></p><p><b><br /></b></p><p><br /></p>Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-49925981188053618162022-01-23T12:03:00.001-08:002022-01-23T12:08:27.875-08:00राजीव सिंह की 'शोले ' <p> "क्या तूने 'शोले' देखी है? नहीं देखी ? अबे साले, इसने 'शोले' नहीं देखी |" </p><div><div><i>पूरे भारत की तरह 'शोले' भिलाई में भी दबे पाँव आयी और फिर जान मानस पर छा गयी | उन दिनों कोई भी फिल्म पूरे भारत में एक साथ प्रदर्शित होती नहीं थी | पहले महानगरों और कुछ गिने चुने बड़े शहरों में इसे प्रदर्शित करके लोगों का मन टटोला जाता था | अगर चलचित्र डब्बा है तो बात वहीँ ख़तम हो जाती थी वर्ना दे दनादन प्रतिलिपियां बनाकर छोटे शहर में बड़े दामों में बेचा जाता था | इस तरह भिलाई जैसे शहर की बारी दो-तीन सप्ताह बाद आती थी | </i></div><div><i>हमारी सड़क में फिल्मों का एकमात्र समालोचक और ज्ञानी मनमोहन का पडोसी दीपक नायक था | जब हम पांचवीं पहुंचे तो वह शाला क्रमांक आठ छोड़कर भिलाई विद्यालय चले गया था, वर्ना शाला आते जाते वो हमारे ज्ञान में वृद्धि करता था | वैसे घर से शाला नंबर आठ का रास्ता ही कितना था | अब वह खेल के मैदान में ही मिला करता था | फिल्म में भिलाई के आने के पूर्व उसके हिसाब से 'शोले' धर्मेंद्र और हेमा मालिनी की एक और फिल्म थी, जिसमें संजीव कुमार भी था | यानी 'सीता और गीता' जैसा कुछ | और अमिताभ बच्चन को तो बड़ी फिल्मों में कहीं भी फिट किया जा सकता है - जैसे 'रोटी कपडा और मकान' में चिपकाया गया था | उसकी इस विवेचना पर किसी को कोई आश्चर्य नहीं था, क्योकि वह वैसे भी धर्मेंद्र का सच्चा भक्त था | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>हमारे बीच फिल्मों का दूसरा बड़ा जानकार हमारी कक्षा का सूर्य प्रकाश था जो रहता तो मंदिर वाली सड़क चार में था, पर शाम को खेलता हमारे साथ था | इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं थी | मंदिर के आसपास की सड़कों (३,४,५,६) के बच्चे परंपरागत रूप से फिल्मों के जानकार होते थे | परिवेश ही कुछ वैसा था | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>तो एक दिन सूर्य प्रकाश खेलने नहीं आया | दूसरे दिन जब वह आया तो दीपक के आते ही उसने घोषणा कर दी कि वह 'शोले' देख कर आया है | और दीपक की विवेचना के अनुसार वो बेशक धर्मेंद्र और हेमा मालिनी की एक और फिल्म थी, पर बात उससे कहीं आगे थी | बस फिर क्या था ? उस दिन खेल के पूरे समय दीपक और उसके बीच 'शोले' की ही चर्चा चलते रही | मैं सी टीम ने कितने रन बनाये, कौन आउट हुआ, किसका ओवर ख़तम हुआ, सब बातें गौण हो गयी | अपनी गेंदबाज़ी करते समय सूर्य दो गेंदों के बीच में 'शोले' से सम्बन्धित किसी प्रश्न का उत्तर देता या कहानी आगे बढ़ाता | कई बार एक-एक ओवर में वो आठ या नौ गेंद भी दाल देता | तब सुबोध और मिलिंद को शक होता कि ओवर कुछ लम्बा खिंच गया है | (अम्पायर तो थे नहीं | फील्डिंग भी कॉमन फील्डिंग होती थी |), खलनायक कौन है, उसे पता नहीं था - उसका नाम गब्बर सिंह था | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>संयोग की बात ये कि अगले एक साल तक सारे भारत में लोग उस अभिनेता को गब्बर सिंह के नाम से ही जानते थे | ---------------</i></div><div><i><br /></i></div><div>लड़कियों का तो पता नहीं, लेकिन लड़कों में मैं , मेरा मेज सहभागी प्रमोद मिश्रा और रमेश मिश्रा - कक्षा में केवल हम तीन ही थे, जिन्होंने 'शोले' नहीं देखी थी | वैसे मुझे 'शोले' देखने का मौका जरूर मिला था | मेरे सामने नारियल फोड़े गए थे, मिन्नतें की गयी थी - लेकिन मैं 'शोले' देखने नहीं गया | </div><div><br /></div><div>सेक्टर २ का , हमारी शाला का पार्क उन दिनों नया नया ही बना था | कहने का मतलब, फव्वारे तोड़े नहीं गए थे | बैठने की, पत्थर की बानी हलकी गुलाबी कुर्सियां ज्यों की त्यों थी | फव्वारे के हौज़ के चारों तरफ लगाईं गई फूलों की क्यारियां रौंदी नहीं गयी थी | सी-सा झूले की कुर्सियां पटक-पटक कर तोड़ी नहीं गयी थी | फिसल पट्टी के ऊपर के प्लेटफार्म की लकड़ी की पट्टियां हटाई नहीं गयी थी | यानि वो अभी तक अक्षुण्ण ऐसा उद्यान था जहाँ जाकर मन प्रफुल्लित हो जाता था | कई बार शाला छूटने के बाद, कई बार खेल ख़तम होने के पश्चात्, मैं उस उद्यान में जाकर यूँ ही बैठे रहता था | उस दिन भी वही हुआ | शाम को जब घर पहुंचा तो घर में कोई भी नहीं था और माँ के साथ जीजाजी बैठे मेरा इंतज़ार कर रहे थे | </div><div><div>कहाँ गए सब लोग ?</div><div>"अरे विजय बाबू | कहाँ चले गए थे ? संजीवनी रामलीला मैदान में देखकर आयी | तुम वहां नहीं थे | "</div><div><br /></div><div> जीजाजी कब आये ? </div><div><br /></div><div>"चलो, जल्दी करो | फिल्म शुरू होने वाली है |"</div><div>" कहाँ ?"</div><div>"सब लोग नई बसंत में तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे हैं | "</div><div>अच्छा.... 'शोले' |... अब समझा | </div><div><br /></div><div>"नहीं | मैं नहीं जाऊंगा |" मैंने कहा | </div><div>'क्या हुआ ?" </div></div><div><div>"बस | नहीं जाना है |"</div><div>"अरे चलो भी | टिकट कट चुकी है |"</div></div><div><br /></div><div>उस समय घर में केवल मैं और माँ ही बैठे थे बाकी घर के सारे सदस्य जीजाजी के साथ छह से नौ 'न्यू बसंत' में 'शोले' देख रहे थे | माँ को तो वैसे भी नहीं जाना था - वर्ना खाना कौन बनाता ? आजकल के फैशन के विपरीत उन दिनों बाहर खाना खाना सख्त वर्जित था | माँ तो आज भी - भले भूखे रह ले, पर बाहर का खाना नहीं खाती | लेकिन मेरे न जाने से माँ को अपने दिल की भड़ास निकालने के लिए कोई तो मिल गया था | </div><div><br /></div><div>हुआ यह था कि बाबूजी और माँ के अच्छे पारिवारिक मित्र के घर एक हादसा हो गया था | उनके घर गाँव से बहुत से मेहमान आये थे | हमारे ही घर की तरह सारे लोग और मेहमान 'शोले' देखने गए थे | घर में केवल दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली लड़की ही थी | जब वे फिल्म देखकर तीन घंटे बाद लौटे तो पाया कि उनकी किशोर बालिका ने आग के शोलों में आत्मदाह कर लिया है | सारा शरीर जल गया था | </div><div>माँ को 'शोले' का अर्थ मालूम था या नहीं, पर वे मेरे सामने बड़बड़ाते रही ,"अच्छा किया बेटा | तू देखने नहीं गया | बड़ी ही दुष्ट फिल्म है | लोग जल जाते हैं | फूल सी बेटी ... उसका भी नाम सुधा था - तेरी बहन (बेबी) की तरह ... | और ये लोग कुछ समझते ही नहीं | अरे आधी रात को नाचने गाने का शौक है तो सिविक सेंटर चले जाओ | कोई और फिल्म नहीं मिली" ..... आदि इत्यादि | </div><div><br /></div><div> मेरे ना-नुकर का कारण लोगों ने उस समय पूछा | मैंने आज तक किसी को नहीं बताया | आज आपके सामने राज़ खोल रहा हूँ | </div></div><div><br /></div><div>दरअसल बचपन से सुनते आये थे, फ़िल्में देखना बुरी बात है | बच्चे बिगड़ जाते हैं | पिछले साल यानी १९७४ में मैंने 'रोटी, कपड़ा और मकान' देखी थी | उसको एक साल पूरा होने में दो सप्ताह बचे थे | मैंने निश्चय किया था कि एक साल का रिकॉर्ड किसी हालत में बना ही लिया जाए |</div><div><br /></div><div> क्या ये संयम की परीक्षा थी ? मुझे तो नहीं लगता | दरअसल 'शोले' के संवाद, कहानी, गाने इस कदर हवा में तैर रहे थे कि रहस्य रोमांच कुछ भी बाकी नहीं रह गया था | गणेश पूजा के समय मंदिर वालों की गणेश पूजा कमेटी ने भोंपू पर पूर्ण ध्वनि-सामर्थ्य के साथ एल. पी. में 'शोले' के संवाद सुना ही दिए थे | राम लीला के मैदान में क्रिकेट खेलते समय बस कान उधर लगाने की आवश्यकता थी | फिर हर जगह जहाँ देखो वहां , गब्बर सिंह के संवाद की चर्चा होती | यहाँ तक कि दिलीप ने भी उसे अपनी 'मिमिक्री' में अपना लिया -"ये हाथ नहीं बिल्ली का बच्चा है" | </div><div><br /></div><div>प्रमोद मिश्रा का किस्सा दूसरा था | वह अपनी माँ के साथ 'जय संतोषी माँ' देखकर आया था और उसके ही रंग में रँग गया था | जहाँ राजीव जावले रमेश मिश्रा को 'शोले' की गौराव गाथा सुना रहा होता ,"अबे, अमिताभ बच्चन का क्या 'नेम' (निशाना) दिखाया गया है| एक डाकू पुल के नीचे से झांकता है | बस, इत्तु सा छेदा होगा | और अमिताभ बच्चन की गोली सीधे टन्न से उसकी खोपड़ी में लगती है |" वहीँ प्रमोद मिश्रा संतोषी माता के चमत्कारों से मुझे अवगत कराता | संतोषी माता का व्रत - सोलह शुक्रवार वाला - अक्सर कोई न कोई रखता ही था | मेरी माँ ने भी एक ज़माने में रखा ही था और कई बार वो मुझसे कथा बाँचने भी कहती थी - इसलिए प्रमोद मिश्रा का महात्म्य वर्णन मुझे कहीं ज्यादा प्रासंगिक लगता था | </div><div><br /></div><div>वैसे ये मैं अभी तक अपनी बातें कर रहा था - राजीव सिंह की नहीं | कुछ लोगों के दिलो-दिमाग पर 'शोले' ने जबरदस्त प्रभाव डाला था | राजीव सिंह उनमें से एक था | उसने स्वतः की काल्पनिक 'शोले' की दुनिया रच ली थी और बीरु का किरदार आत्मसात कर लिया था | एक दिन आधी छुट्टी में उसने बड़ी बहनजी की खिड़की के पीछे स्थित सूखी पानी की टंकी पर चढ़ने की कोशिश की | मुश्किल यह थी कि वह रवींद्र मुंशी की तरह छरहरा नहीं , बल्कि थोड़ा सा स्थूलकाय था | फलतः सफल नहीं हो पाया | तब उसने प्रार्थना स्थल पर लगे झंडोत्तोलन के मंच से ही संतोष किया और ऊपर चढ़ कर चिल्लाया,"कूद जाऊंगा, फांद जाऊँगा, मर जाऊँगा |"</div><div><br /></div><div><div>जय के रूप में मनमोहन था ही , हालाँकि लम्बाई की हिसाब से उन दिनों वह लम्बा नहीं छोटा था | उसका घर का नाम ही 'छोटा' था | उसके गले पर हाथ डालकर वह गाना गाता,"ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे |" एक दिन कक्षा में ही वह अनमोहन के गले में हाथ डालकर बैठा था | व्याख्यान बीच में रोककर कालकर बहनजी बोली,"बहुत प्यार आ रहा है |"</div><div>मेरे नाम के कारण उसकी नज़र में लिए केवल एक ही रोल था | राजीव जावले को असरानी का रोल पसंद था और रवींद्र मुंशी सांभा बनकर पाठशाला के मुख्यद्वार के पास बने सीमेंट के बुर्ज पर चढ़ने को राजी था | </div><div><br /></div><div>गब्बर के रोल के लिए तो इतने लोग एक पांव पर ऐसे खड़े कि राजीव सिंह के लिए सरदर्द पैदा हो गया कि कौन इस पात्र का हकदार होगा | </div><div><br /></div><div>इंतज़ार, कमी, तलाश थी तो बस, एक अदद बसंती की | </div></div><div>---------------</div><div><i>'शोले' नयो बसंत में चल रही थी | उससे ही लोगों का मन नहीं भरा था | मैंने बताया कि गणेश पूजा के दौरान मंदिर वाले भोंपू पर 'शोले' के संवाद वाले एल. पी. लगा देते थे | तैंतीस मिनट की उस एल. पी. में साढ़े तीन घंटे की कहानी सिमटी हुई थी | क्या कहा मैंने ? साढ़े तीन घंटे ? शुरू से ही 'शोले' को लेकर ये विवाद रहा कि 'शोले' कितने रील की फिल्म थी | मनमोहन का भाई रमेश और दीपक नायक झगड़ा करते कि 'शोले' इक्कीस रील की है या चौबीस रील की | दीपक नायक दवा ठोंकता कि बम्बई में चौबीस रील की शोले दिखाई जा रही है और उसने वो खबर 'स्क्रीन' में पढ़ी है | रमेश कहता, 'शोले' इक्कीस रील की फिल्म है | वैसे न्यू बसंत में काट पीट और खींच तान कर सत्रह रील की फिल्म दिखाई जा रही थी | </i></div><div><br /></div><div><div><i>तो उस दिन मिलिंद को खेलने के लिए बुलाने उसके घर गए | </i></div><div><i>"एक मिनट | अभी धर्मेंद्र गब्बर के अड्डे पर पहुंचा है | अभी आता हूँ |" यह कहकर वह फिर अंदर चले गया | </i></div><div><i>स्पीकर की आवाज़ बाहर तक आ रही थी | हम सब समझ गए, अंदर क्या चल रहा है ? </i></div><div><i>सब मन्त्र मुग्ध से अंदर चले गए | ग्रामोफ़ोन के टर्न टेबल पर एक थाली के आकार का एल.पी. घूम रहा था | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>"वो वादा मेरे दोस्त ने किया था | मैं करता तो तोड़ देता |"</i></div></div><div><br /></div><div><div><i>मिलिन्द के सामने वाले कमरे में बहुत से लोग पहले ही विराजमान थे | मिलिंद के चाचा, धनञ्जय के पिताजी, और कई लोग - सब पूरी तन्मयता से संवाद सुन रहे थे | हमारी भीड़ के अंदर घुसने में किसी ने कोई आपत्ति नहीं जताई | किसी के हाथ में बात, किसी की हाथ में विकेट, किसी के हाथ में बॉल | </i></div><div><i>मिलिंद सच कह रहा था | फिल्म का अंत नज़दीक आ रहा था | एल. पी. की सुई का दायरा छोटा और छोटा होते जा रहा था | अंत में पुलिस भी पहुंची और -</i></div><div><i>"बीरु, मैं तुम्हारा दर्द बाँट तो नहीं सकता, पर समझ जरूर सकता हूँ |"</i></div><div><br /></div><div><i>रेलगाड़ी की आवाज़ और 'शोले' की सांकेतिक धुन .. | रिकॉर्ड ख़तम हुआ | </i></div><div><i>"अंकल, शुरुर से एक बार और लगाएंगे क्या ?" ऐसा कहने की हिम्मत दीपक ही कर सकता था | </i></div><div><i>"पहले खेल कर आओ |" और मिलिंद के पिताजी ने हम सबको मैदान की राह दिखा दी | </i></div></div><div><br /></div><div>---------------</div><div><br /></div><div>बोर्ड परीक्षा का अजीब सा हौव्वा था | प्रश्न पत्र बाहर से बन कर आएंगे | परीक्षक भी बाहर से ही आएंगे और उत्तरपुस्तिका की जांच भी बाहर की किसी शाला में होगी | मेरी समझ में नहीं आता था कि फिर इसमें इतना हाय तौबा मचाने वाली क्या बात है ? अव्वल तो मुझे उस दिन तक पता नहीं था कि प्रश्नपत्र कहाँ से बन कर आते हैं ! कहीं से भी बन कर आएं, फर्क क्या पड़ता है | पाठ्य पुस्तक तो वही थी | परीक्षक बाहर से आएंगे तो क्या उखड जायेगा ? ऐसा नहीं कि हमारी कक्षा के शिक्षक परीक्षा में हमें नक़ल करने देते थे या खुद प्रश्न पत्र हल करते थे | और बाहर के शिक्षक प्रश्न पत्र की जांच करेंगे तो क्या उनके लिए २+२= ५ होगा? कालकर बहनजी को उन छात्रों की चिंता थोड़ी ज्यादा थी जो पढ़ाई में कमजोर थे | इसलिए उन्होंने सीटों की व्यवस्था में फेरबदल किया | जो थोड़े से सुस्त और फिसड्डी छात्र थे, उनको भी आगे बैठने का मौका दिया | वैसे एक कतार में राजीव सिंह और मनमोहन पहली सीट पर कायम रहे, पर मैं चौथी सीट पर सरक गया | मुझे उससे कोई फरक नहीं पड़ता था | बाद में धीरे धीरे ये दूरी पहले एक दरार और फिर एक खाई में तब्दील होने लगी |</div><div><br /></div><div>उसी के साथ अचानक हमें अहसास होने लगा कि अब हमें इस शाला को छोड़कर जाना पड़ेगा | ये हमारा आखिरी साल है | </div><div><br /></div><div>चन्दन कहता ,"यार, हम लोग इतने छोटे-छोटे हैं कि भिलाई विद्यालय वाले लड़के बोलेंगे कि ये लोग तो अपने जूतों के नीचे दब जाएंगे | "</div><div><br /></div><div>रवीन्द्र मुंशी तुरंत बोला ,"तो क्या भिलाई विद्यालय में राक्षस पढ़ते हैं ?"</div><div><br /></div><div>चन्दन का जवाब हाज़िर था ,"निप्पल चूसने वाले बच्चों के लिए तो सेक्टर छह स्कूल बना है |"</div><div><br /></div><div>यह तो सिर्फ मुख्यपृष्ठ था| आने वाले कुछ दिनों में यह विषय एक गंभीर बहस में बदलने वाला था | </div><div>-------------</div><div><i>ईमानदारी से कहूं तो मुझे याद नहीं पड़ता कि भिलाई में 'शोले' की पहली पारी में टेम्पू लेकर कोई भी प्रचार किया गया | ( दूसरी पारी पांच साल बाद श्री वेंकटेश्वर में खेली गयी, जब टाकीज के मालिक ने चार महीने तक शोले चलाई और जीर्ण- शीर्ण पड़ी श्री वेंकटेश्वर टॉकीज की काया पलट हो गयी |) ना ही सुपेला चौक , जिसे आजकल हम लोग घडी चौक कहते हैं, में 'शोले' के विशालकाय पोस्टर लगाए गए | उससे बड़े पोस्टर तो 'गीत गाता चल' या 'ज़ख़्मी' के होते थे | लेकिन जंगल के आग की तरह 'शोले' ने भिलाई के लोगों के मन मस्तिष्क को जकड लिया | और भिलाई ही क्यों, पूरे भारत ने 'शोले' की आंच महसूस की | सुबह शाम अल्युमिनियम की पेटी उठाकर शाला क्रमांक आठ जाने वाले 'आपके आज्ञाकारी' को ये कैसे पता चला ? </i></div><div><i><br /></i></div><div><div style="font-style: italic;">भिलाई में हॉकी की एक राष्ट्रीय प्रतियोगिता होती थी - 'मोहन कुमार मंगलम हॉकी टूर्नामेंट' | इस प्रतियोगिता के बारे में विस्तार से फिर कभी - लेकिन यहाँ ये कह दूँ कि इसमें भाग लेने पूरे भारत के कोने कोने से टीमें आती थी - बिहार रेजिमेंट सेण्टर, दानापुर, सिख रेजिमेंट सेण्टर, रामगढ़ , सदर्न रेलवे मद्रास, इंडियन नेवी बॉम्बे, एम. पी. पोलिस, भोपाल - यानी समझ लीजिये भारत के हर कोने कोने से टीम पहुंचा करती थी | </div><div style="font-style: italic;"><br /></div><div>उस दिन कॉर्प्स ऑफ सिग्नल जालंधर और विदर्भ हॉकी असोसिएशियन , नागपुर के बीच मुकाबला था | </div></div><div><br /></div><div><div>शाम को जिनके साथ हॉकी खेलते थे, इक्कीस और बाइस सड़क के उन लड़कों के साथ मैं भी था - अजय कौशल का भाई संजू, शंकर, गुड्डा, मनमोहन का भाई रमेश - हम सब पंत स्टेडियम के सामने की सड़क से स्टेडियम की ओर जा रहे थे | भिलाई इस्पात संयंत्र की हरे रंग की चमचमाती बस से जालंधर के खिलाडी उतर रहे थे | मेरे पास तो दो रूपये वाला सीजन पास था | बाकी लोगों को लाइन में लग कर टिकट लेना था | इसलिए हम टिकट खिड़की की ओर बढ़ रहे थे | मैदान के अंदर भोंपू में 'शोले' का गण बज रहा था - </div><div>"तूने ये क्या किया ... बेवफा बन गया .. "</div><div><br /></div><div>हमारा जत्था करीब करीब खिलाडियों के साथ ही चल रहा था | जालंधर के एक खिलाड़ी ने भावुक होकर कहा,"यार, बड़ा अच्छा गण है |"</div><div>"हाँ , हाँ |" शंकर बोला | </div><div><div>अपनी ही धुन में खोया खिलाडी बोले जा रहा था ,"यार | जब वो मर जाता यही तो आँख में आंसू आ जाते हैं |"</div><div><br /></div><div>"हाँ, हाँ |" शंकर फिर बोला | </div><div><br /></div><div>अब खिलाडी की तन्द्रा भंग हुई | उसे महसूस हुआ कि वह किस्से बातें कर रहा है | वह झेंपकर तेज़ क़दमों से चलता हुआ अपने साथी खिलाडियों के दाल में जा घुसा और शंकर हमारे साथ आ गया | </div><div>"क्या बोल रहा था बे सरदार तेरे साथ ?" </div><div>"कुछ नहीं | 'शोले' की तारीफ कर रहा था |"</div></div></div><div><i><br /></i></div><div><i>------------</i></div><div><i><br /></i></div><div>अब तक कक्षा में एकमात्र प्रामाणिक आशिक था - दिलीप ; जिसे शाह बहनजी ने एक साल पहले बड़ी तबीयत से पीटा था (<i>देखें - 'च' से चन्दन - भाग २</i>) | दिसंबर के अंत में एक नयी लड़की ने कक्षा में कदम क्या रखा , आधे से ज्यादा लड़कों पर आशिकी का भूत सवार हो गया | ऐसा भूकंप आया कि राजीव सिंह की आँखें खुल गयी | </div><div><br /></div><div>अगर माला खूबसूरत थी तो उसमें उसकी कोई गलती नहीं थी | वह रंग रूप तो उसे भगवान ने दिया था | संयोग ऐसा कि उसी भगवान् ने उसे बाइस सड़क में भेजा, जिसमें मैं, मनमोहन और सुबोध जोशी रहते थे और उसी शाला के उसी वर्ग में भेजा, जहाँ हम तीनों पढ़ते थे | </div><div><br /></div><div>ऐसा नहीं था कि सिर्फ हमारी कक्षा में ही लड़कों पर दीवानगी का सुरूर छाया था | उसके आते ही सड़क में उसके पीछे एक हंगामा हो गया, जिसमें मेरा पडोसी, सोगन , जो पांचवी 'ड' में था, उसका भी नाम आ गया | उसके बाद सड़क के हम सब लड़कों को बुलाकर दीपक नायक की माँ ने एक लम्बा लेक्चर पिलाया | वो कहानी फिर कभी | अभी कक्षा पांचवीं 'स' की ओर वापिस लौटते हैं | </div><div><br /></div><div>अभी तक केवल दिलीप और भोला ही सांकेतिक भाषा में बातें करते थे | या यूँ कहें, उनकी शब्दावली ही अलग थी| रातों रात पूरी कक्षा ने उस शब्दावली को मानो आत्मसात कर लिया | अब ऐसी शेरोशायरी हवा में उड़ने लगी, जो कभी कभार आते जाते प्रातः पाली के कुछ छात्रों के मुखारविंद से सुनने को मिल जाती थी | पिछले साल चन्दन दिलीप पर बौखलाया था | अब तो सभी उस धारा में बह चले थे | दूसरे, अब राजीव सिंह, जो पहली कक्षा से ही सबका प्रिय था, खुद नेतृत्व की भूमिका में था | लगता था, चन्दन ने उस ओर कुछ सोचना ही छोड़ दिया था | शायद बोर्ड परीक्षा का जो डरावना खाका कालकर बहनजी ने खींचा था, उसी दिशा में उसका दिमाग व्यस्त था | </div><div><br /></div><div>राजीव सिंह तो पूरी तरह से पक्के रंग से सराबोर हो गया था | एक साल पूर्व राजीव जावले सेक्टर एक के उसी स्कूल से आया था, जहाँ से माला स्थानांतरित होकर आयी थी | राजीव सिंह के लिए इतना ही काफी था | अपने ठीक पीछे वाली सीट, जिसमें कालकर बहनजी ने सुबोध नंबर दो और महेंद्र को बिठाया था, राजीव सिंह ने खाली करवा ली और और रवींद्र मुंशी और राजीव जावले वहाँ चौकड़ी जमा कर बैठ गए | </div><div><br /></div><div>अब तक मैं अछूता था | हालाँकि ये सब बातें मुझे भी थोड़ी परेशान जरूर करती थी, फिर लोगों की दीवानगी पर थोड़ी हँसी आती थी | चंद महीने तो रह गए हैं इस शाला में | उसके बाद तो लड़कियाँ बगल वाली उच्चतर माध्यमिक कन्या शाला में चले जाएँगी और हम कहीं और | </div><div><br /></div><div>करीब करीब यही बातें मैं बगल में बैठे प्रमोद मिश्रा से कहा रहा था कि हवा में तैरता हुआ एक कागज़ का गोला मेरे डेस्क पर आकर गिरा | आजकल गोपनीय बातें ऐसे ही होती थी | मैं कागज़ के गोले के आने की दिशा में देख रहा था | मेरे आगे संदीप कालकर और नवनीत दवे, बहनजी के दो लड़के बैठते थे | उसके आगे राजीव जावले और रवींद्र मुंशी | ये चारों तो सामने देख रहे थे \ सबसे आगे राजीव सिंह और मनमोहन बैठते थे | उसमें राजीव सिंह ही पीछे देख रहा था | </div><div><br /></div><div><div>तो ठीक है | ये राजीव सिंह का सन्देश था | कालकर बहनजी कक्षा में थी नहीं | इसलिए तो इतना शोर गुल हो रहा था | मैंने पीछे जाकर कागज़ खोल कर देखा | उसमें लिखा था - </div><div>"डिपार्टमेंट नंबर १ - राजीव + माला </div><div>डिपार्टमेंट नंबर २ - मनमोहन + ..... </div><div>डिपार्टमेंट नंबर ३ - विजय + ......"</div><div><br /></div><div>मुझे एक झटका सा लगा | कहाँ तक पहुँच गयी है ये बात ? उसने बसंती के साथ साथ जय के लिए राधा भी खोज ली | इतना ही नहीं, मुझे भी लपेटे में ले लिया | </div></div><div><br /></div><div>तभी आधी छुट्टी का घंटा टनटनाया | राजीव सिंह मुझे लेकर खेल के मैदान की और बढ़ गया | मैंने भी कोई प्रतिरोध नहीं किया | उससे दो-टूक बात करना बेहद जरूरी था | </div><div><br /></div><div><div>"ठीक है न ? " उसने पूछा | </div><div>मुझे लगा , इस अच्छे दोस्त से सीधे पंगा न लेकर क्यों न लोकतंत्र का सहारा लिया जाए | मुझे पक्का यकीन था कि मनमोहन इसे साफ़ नकार देगा और मैं और मनमोहन उसे समझा-बुझा सकते हैं | </div><div>"मनमोहन से बात करें ?" मैंने कहा | </div><div>"उसके साथ ही बैठकर तो ये लिस्ट बनाई है |" राजीव सिंह ने मेरे विश्वास के दो टुकड़े कर दिए | मुझे सहसा विश्वास नहीं हुआ | क्या उसने वाकई मनमोहन से बात की है ? अभी प्रतिवाद का समय नहीं था | </div><div><br /></div><div>मुझे सोच में पड़ा देखकर उसने फिर पूछा ,"ठीक है न ?"</div><div><br /></div><div>क्या हो गया था राजीव सिंह को आज ? क्या वह उस दिन की घटना भूल गया जब शाह बहनजी ने दिलीप को पीटा था ?क्या उसे ये पता भी है कि जिसको लेकर उसने डिपार्टमेंट एक बनाया है, हमारी सड़क में उसको लेकर एक हंगामा हो ही चुका है ? पिछले बार "चोरी में साझेदारी" मामले में मैंने निश्चय किया था कि ऐसा कोई काम नहीं करूँगा जिससे बाबूजी को परेशानी हो | पिछले एक साल से परिवार बहुत ही परेशानी भरे दौर से गुजर रहा है | क्या उनकी परेशानी और बढ़ाना जायज है ?</div></div><div><br /></div><div><div>"क्यों? ठीक है न ?" उसने तीसरी बार ये सवाल दोहराया | </div><div><br /></div><div>"नहीं | ये ठीक नहीं है |"</div><div><br /></div><div>राजीव सिंह कुछ और सोच रहा था,"देख यार | उससे अच्छी लड़की कक्षा में नहीं है | तुझे भी मालूम है | और वो तेरे डिपार्टमेंट वाली छत्तीसगढ़िया भी है | तेरे लिए ..|"</div><div><br /></div><div>अगर मैं चन्दन होता तो अब तक उलटे हाथ का दोहत्थड़ दे चुका होता | </div><div><br /></div><div>अब मैंने इस अच्छे मित्र को दूसरे तरीके से समझाने की कोशिश की | </div><div><br /></div><div><div>"मेरी छोटी बहन भी यहाँ पढ़ती है यार | " मैंने शांति से कहा | </div><div><br /></div><div>मेरी बात काटकर वह बोला ,"मेरी भी छोटी बहन यहाँ पढ़ती है |"</div><div><br /></div><div>"मगर मेरी छोटी बहन तेरे डिपार्टमेंट नंबर १ की सहेली भी है | उसके साथ स्कूल आती जाती है |" </div><div><br /></div><div>मेरी बात सुने बिना अपनी रौ में वो बोले जा रहा था ," मेरा छोटा भाई भी पढ़ता है | मेरी माँ भी यहाँ पढ़ाती है |" </div><div><br /></div><div>कक्षा एक से साथ पढ़े इस अच्छे दोस्त की आँखों में ये कैसा चश्मा चढ़ गया था | आज तो यह कुछ सुन ही नहीं रहा है | इतने वषों में हम कई बार किसी बात पर राजी हुए, कई बार नहीं - पर ऐसा धर्मसंकट , ऐसे अप्रिय निर्णय लेने का क्षण कभी नहीं आया था | </div></div><div><br /></div><div>"मुझे इससे अलग रखो यार |" मेंसे साफ़ कह दिया | </div><div><br /></div><div>"तू साले डरपोक है |" ताना मारकर उकसाने का ये बहुत पुराना हथियार था | वह उग्र हो उठा | </div><div><br /></div><div>"मुझे माफ़ कर यार | मुझे लफूटगिरी नहीं करना है |"</div><div>----------------</div></div><div><br /></div><div>कभी मैं सोचता हूँ कि अगर मैं 'हाँ' भी कर देता तो भला क्या फर्क पड़ जाता ? क्या हम तीनों लड़कियों के सामने नाचते, जैसे दिलीप नाचता था ? या वह ये सिध्द करना चाहता था कि वह अकेला नहीं है | उस हमाम में सब नंगे हैं | राजीव सिंह आखिर चाहता क्या था ? लेकिन उस 'न' की मुझे आने वाले दिनों में बड़ी भारी कीमत चुकानी पड़ी | </div><div><br /></div><div>रोज कुछ न कुछ ताने मेरी ओर उछाले जाते थे | कुछ का मतलब समझ में आता और कुछ का नहीं | जिनका मतलब समझ में नहीं आता, वे कहीं ज्यादा चुभते थे | उनके अर्थ की खोज में मेरे मन में मंथन चलते रहता | घर क्रमांक से लेकर अक्षर विज्ञानं तक - सब कुछ चलता था | कई बार तो ऐसा भी होता कि पहली बेंच से राजीव सिंह पीछे मुड़कर रवींद्र मुंशी और राजीव जावले से कुछ कहता और वे दोनों मेरी ओर देखकर मुस्कुराने लगते | उधर मेरे मन में उधेड़-बन शुरू हो जाती - न जाने कौन स बात है !</div><div><br /></div><div><div>इन सब से ज्यादा आहत करने वाली बात तो यह थी कि राजीव सिंह और मनमोहन की दोस्ती और प्रगाढ़ होती चली गयी | मैं और मनमोहन तब के मित्र थे जब हम शाला नंबर ८ में पढ़ते भी नहीं थे | मैं स्पष्ट देख रहा था कि नौनिहाल के समय का मेरा मित्र अब मुझसे छिना जा रहा है | इतना सब चलते रहने के बाद भी मैं और मनमोहन रोज सुबह शतरंज की एक बाजी खेलते थे | शाम को अन्य सब मित्रों के साथ मिलकर रामलीला मैदान में हॉकी या क्रिकेट खेलते थे | लेकिन शाला में वे पांच घंटे बिताना मेरे लिए इतना दुष्कर हो चला था कि एक बार तो मैं शाला क्रमांक १५ जाने की सोचने लगा | फिर खुद ही अपने आप को सांत्वना देता कि ये कुछ दिनों की ही तो बात है | मैंने मनमोहन से कभी भी "डिपार्टमेंट" वाली बात का उल्लेख नहीं किया | हो सकता है, वो बात झूठ हो - जैसा मैं मान कर कर चल रहा था | मगर वो बात सच हुई तो ?</div><div><br /></div><div>अब तक मैं और मनमोहन साथ साथ शाला आते थे | अब राजीव सिंह बजाये सड़क इक्कीस के, हमारी सड़क यानी सड़क बाइस से शाला आता , सुरेश के घर से मुन्ना के घर तक "बांये देख" करता और फिर मनमोहन के घर चले जाता , जहाँ से वे दोनों साथ शाला आते थे | </div></div><div><br /></div><div><div>घर जाने के समय रवींद्र मुंशी, राजीव जावले, राजीव सिंह और मनमोहन साथ ही, समय और अवसर देखकर निकलते | मैं जान बूझकर थोड़ी देर के लिए बगल के नवनिर्मित पार्क में चले जाता ताकि उनकी जुमलों और निगाहों के व्यंग्य से बच सकूँ | किसी बेंच पर बैठकर तालाब में छूटते फव्वारे की ओर देखा करता | उस समय मेरे कानों में राज कपूर की हाल में रिलीज़ हुई फिल्म "धरम करम" के गाने की पंक्तियाँ गूंजती ,"अनहोनी पथ में कांटे लाख बिछाए, होनी तो फिर भी बिछड़ा यार मिलाये|" मेरी आँखों में आंसू आ जाते | </div><div>---------</div></div><div><br /></div><div><div><i>खेल के मैदान में जाते समय रोज एक न एक नयो बात का पता चलता | </i></div><div><i>"ये सेवेंटी एम. एम क्या होता है ?" मैंने एक दिन सूर्य से पूछ ही लिया | वो हर एक बात का धैर्यपूर्वक जवाब दिया करता था | </i></div><div><i>"समझ ले कि जैसे माचिस का डिब्बा है |"</i></div><div><i>"ठीक" </i></div><div><i>"और एक सिगरेट का डिब्बा है | माचिस का डिब्बा , ३५ एम्. एम्. और सिगरेट का डिब्बा सत्तर एम्.एम्. | मतलब फिल्म की रील ज्यादा बड़ी होती है | "</i></div><div><i>" तो पर्दा भी ज्यादा बड़ा होगा | ने बसंत में है इतना बड़ा पर्दा ? आधी पिक्चर तो छत पर दिखती होगी | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>दीपक नायक को मुझ परतरस आया , "सब फिट हो जाता है यार |"</i></div><div><i><br /></i></div><div><i>जब हम खेल के मैदान में पहुंचे तो इक्कीस सड़क वाले पहले ही खेल रहे थे | चौका मारकर निशिकांत इतना खुश हो गया कि बैट को ही गिटार की तरह बजाकर गाने लगा ,"मेहबूबा, मेहबूबा .. |" अब उसकी खैर नहीं | किसी भी वक्त उस पर हेलन का लेबल चिपक सकता है | साथ में राजू गाने लगा ,"फूल बहारों से निकला। .. चाँद सितारों से निकला ...|"</i></div></div><div>--------------</div><div><br /></div><div><div><div>हर गुजरने वाले दिन के साथ लोगों को यह अहसास होने लगा था कि उस शाला में , जहाँ उन्होंने एक एक अक्षर पर उंगली रखकर शब्द ज्ञान लिया था, अब गिनती के दिन रह गए हैं| यह बहस दिनोंदिन तूल पकड़ते जा रही थी कि भिलाई विद्यालय अच्छा है या सेक्टर ६ की उच्चतर माध्यमिक शाला | </div><div><br /></div><div> "भिलाई विद्यालय? सड़ा स्कूल | " रवींद्र मुंशी हाथ झटककर कहता | </div><div><br /></div><div>क्या खासियत है सेक्टर ६ स्कूल में ? </div><div><br /></div><div>"वहां पढ़ाई अच्छी होती है |" ये उसका पहला और अक्सर आखिरी तर्क होता | वह तर्क जिसका कोई आधार नहीं था | जिसको खरोंच कर देखो तो अंदर कुछ है भी या नहीं - पता नहीं | </div></div><div><br /></div><div>मैं भिलाई विद्यालय के सम्बन्ध में तब से सुन रहा था, जब मैंने किसी शाला में कदम भी नहीं रखा था | मेरा सबसे बड़ा भाई वहीँ पढता था | उन दिनों भिलाई विद्यालय के प्राचार्य, बाबाजी का पूरे भिलाई में दबदबा था ((देखें -"<i>बोला पकड़, बोला पकड़ टंगस्टन की तार</i>") | मंझला भाई बबलू अभी वहां पढ़ ही रहा था और प्रतिदिन कोई न कोई रोचक किस्सा सुनने को मिलता ही था | इसलिए मेरे मन में यही तरंग हिलोरे भर रही थी कि मुझे भिलाई विद्यालय ही जाना है | </div><div><br /></div><div>मेरे लिए स्वाभाविक था कि मैं भी इस बहस में कभी न कभी कूद ही पड़ता | </div><div><br /></div><div>"अच्छा ?" मैंने पूछा, "हर साल कितने लोग मेरिट में आते हैं ?"</div><div><br /></div><div><div>राजीव सिंह ने मेरे व्यंग्य को मेरा अज्ञान समझा ,"अरे यार, अभी तो ग्यारहवीं की कक्षा शुरू नहीं हुई है | अभी तो स्कूल बना है |"</div><div><br /></div><div>"ओह | अभी स्कूल बना है और पढ़ाई अच्छी होने लगी |" यानी पूत के पाँव लोगों ने पालने में ही देख लिए थे | </div></div><div><br /></div><div>"हाँ | अच्छी होती है |" रवींद्र मुंशी ताल ठोंककर बोला,"</div><div><br /></div><div><div>चन्दन के घर के सामने से नाला बहता था | नाले के ही उस पार भिलाई विद्यालय था | </div><div>"भिलाई विद्यालय के खेल का मैदान देखा है ? हॉकी का अलग, फुटबॉल का अलग | बास्केटबॉल व्हालीबॉल - सब है |"</div><div>रवींद्र मुंशी बोला ,"क्रिकेट है ?"</div><div><br /></div><div>"हॉकी और फुटबॉल का मैदान मिलाकर क्रिकेट का मैदान बन जाता है | और लगता क्या है बे ?" </div><div><br /></div><div>"बहुत कुछ लगता है | तेरे को मालूम है, पिच क्या होती है ? है क्रिकेट का मैदान ?"</div><div><br /></div><div>इस प्रश्न का उत्तर प्रश्न से ही दिया जा सकता था | मैं बीच में कूद पड़ा,"सेक्टर ६ में है क्रिकेट का मैदान ?"</div><div><br /></div><div>मुंशी निरुत्तर हो गया | मैंने हमला जारी रखा ,"भिलाई विद्यालय में एन. सी. सी. है | सेक्टर ६ में है एन. सी.सी. ?"</div><div><br /></div><div>राजीव सिंह ने प्रतिवाद किया ,"हाँ, है |" शायद उसने आते जाते विद्यालय के बाहर एन. सी.सी. का बोर्ड लगा देखा होगा | </div><div><br /></div><div>"एयर विंग है?" , मैंने फौलादी घूँसा मारा | </div><div><br /></div><div>इस सवाल का कोई जवाब नहीं था | जब जवाब नहीं सूझता तो लोग व्यंग्य पर उतर आते हैं | रवीन्द्र मुंशी बोलै ,"ओह | तो तू हवाई जहाज उड़ाएगा | अच्छाSSS |" </div><div><br /></div><div>राजीव सिंह ने उसके कान में कुछ कहा और दोनों हँसने लगे | मुंशी जोर से बोला, "वो भी नीचे से हिलायेगी - हाथ |"</div></div><div><br /></div><div><div>इस सब नोक-झोंक के बीच मनमोहन हरदम शांत रहकर सुनते भर रहता था | उसका भी सबसे बड़ा भाई -विजय- भिलाई विद्यालय से निकला था | बल्कि हायर सेकेंडरी में उसे अच्छे अंक लाने के लिए स्वर्ण पदक भी मिला था | उसका भी मंझला भाई, रमेश , अभी भिलाई विद्यालय में पढ़ रहा था | पता नहीं, मनमोहन के मन में क्या था ? </div><div><br /></div><div>एक दिन शतरंज खेलते-खेलते मैंने उसका मन टटोला ,"पता नहीं यार, भिलाई विद्यालय में जाने के बाद क्या होगा? क्या हम लोगों को कभी शतरंज खेलने का मौका मिलेगा ?"</div><div><br /></div><div>ऊँट को आगे सरकाते हुए वह बोला ,"सेक्टर ६ में पढ़ाई अच्छी होती है यार |"</div></div><div>--------------</div><div><br /></div></div><div><div style="font-style: italic;">'और सिनेमास्कोप क्या होता है ?" विकेट गाड़ते गाड़ते मैंने दीपक से पूछा | </div><div style="font-style: italic;">"'शोले' सिनेमास्कोप नहीं है |" दीपक ने कुछ दूसरा ही जवाब दिया | </div><div style="font-style: italic;">"है | सिनेमास्कोप |" मनमोहन का भाई रमेश बोला | </div><div style="font-style: italic;">"नहीं है | लगी पांच पांच की शर्त (पैसे नहीं, रूपये) ?" दीपक पूरे आत्मविश्वास के साथ बोल रहा था ,"जी.पी. सिप्पी ने अमीन सायनी पर मुकदमा ठोंक दिया है |"</div><div style="font-style: italic;"><br /></div><div style="font-style: italic;">बात किसी और दिशा में मुद गयी और मेरा प्रश्न गौण हो गया | </div></div><div><div>-------------</div><div><br /></div><div><div>परिणाम के एक दिन पहले शाम को जो खबर उडी, उसके सम्बन्ध में आप "<i>चोरी में भागेदारी</i>" में पढ़ ही चुके हैं | मनमोहन के घर के पड़ोस में दीपक नायक रहता था | उसकी मम्मी खुद एक शिक्षिका थीं और हमारी शाला के बगल में उसी कन्या शाला में पढ़ाती थीं जो हमारी नज़रों के सामने, हमारी ही प्राथमिक शाला की जमीन काटकर बनाई गयी थी | </div><div><br /></div><div>"हमें पता चला है कि छोटा (मनमोहन) और राजीव सिंह - दोनों प्रथम आये हैं और टुल्लू (यानी मैं ) दूसरा |"</div><div>वे किसी से भी बातें कर रही हों, लेकिन उनकी आवाज़ इतनी ऊँची थी कि अपने घर दोपहर में ऊँघने वाले, मेरे कान में पड़ गयी | तो ये तो निश्चित था कि मेरे घर वलों को तो पता चल ही जाता | </div><div><br /></div><div> ये कोई नयी बात नहीं थी | पहली से लेकर अब तक वार्षिक में मैं द्वितीय ही आया था और दूसरी में तो तीसरे नंबर पर खिसक गया था | लेकिन मेरे घर वाले मेरे पिछले छह आठ महीनों की हरकतों से परेशान थे | मैं घर से बाहर जाता तो घंटों बाहर रहता | घर में भी रहता तो खोया ही रहता | </div></div><div><br /></div><div><div>घर वालों ने मुझे इस बात को लेकर ऐसा सुनाया कि मेरी आँखों में आंसू आ गए | </div><div><br /></div><div>परिणाम वाले दिन मेरा शाला जाने का कोई मन नहीं था | वहाँ मुझे "ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे" वाला दृश्य फिर से देखने को मिलेगा | मनमोहन और राजीव सिंह गले में हाथ डालकर मेरी ओर देखकर ये गाना जाएंगे | अफ़सोस कि मुझे हिसाब चुकता करने का कोई अवसर नहीं मिलेगा , क्योंकि मनमोहन और राजीव सिंह दोनों गले में हाथ डालकर सेक्टर ६ स्कूल जाने वाले थे | </div></div><div><br /></div><div>काफी अनिच्छा से मैं घर से बाहर निकला | </div><div><br /></div><div><div>मनमोहन अपने घर के घर के बाहर फाटक के पास खड़ा था | </div><div><br /></div><div>"राजीव सिंह नहीं आया अब तक ?" मैंने पूछा | </div><div><br /></div><div>मनमोहन मेरे साथ हो लिया , "रमेश ने उसको सड़क बाइस में घुसने के लिए मना कर दिया है |"</div><div><br /></div><div>मैं हतप्रभ रह गया | </div><div><br /></div><div>"क्या? क्यों? कब?" इसमें से शायद 'क्यों' ज्यादा महत्वपूर्ण था | लेकिन मनमोहन ने 'कब' का जवाब दिया ,"थोड़ी देर पहले | मेरे घर आया था | "</div><div><br /></div><div>"क्यों?" मैंने पूछा | </div><div><br /></div><div>"तुझे तो मालूम ही है |" उसने कहा | यह जवाब जवाब न होते हुए भी सब कुछ कह रहा था | </div><div><br /></div><div>"हाँ यार | मुझे लगता है, कुछ ज्यादा हो रहा था |" मैंने कहा | </div><div><br /></div><div>ये वो ज़माना था जब सड़क के बड़े लड़के सड़क की लड़कियों की हिफाजत अपनी जिम्मेदारी समझते थे | आँखें बंद करके याद कीजिये | आपके भी सड़क में , आस-पास कोई न कोई लड़ाई झगड़ा, मार पीट जरूर हुई होगी जिसमें आपके सड़क के लड़कों ने बाहर के किसी लड़के को सड़क की किसी लड़की के लिए चक्कर लगाते देखा होगा और घमासान छिड़ गया होगा | </div></div><div><br /></div><div><div>अगर रमेश ये काम नहीं करता तो शायद मेरा भाई बबलू कर देता | या सुमित्रा का बड़ा भाई गौतम ये प्रतिबंध लगा देता | देर सबेर ये होना ही था | </div><div><br /></div><div>हम दोनों काफी महीनों बाद और आखिरी बार एक साथ तार लॉंघकर शाला क्रमांक आठ की परिसर के अंदर घुसे | ----------------</div></div><div><br /></div><div>राजीव सिंह मुझे खींचकर कक्षा के बाहर एक ओर ले गया | </div><div><br /></div><div><div>"एक बात करना था यार |" राजीव सिंह बोला | </div><div>"ठीक है |" </div><div>"तू मेरा दोस्त बनेगा ?"</div><div>में समझा नहीं ,"मैं तो तेरा दोस्त हूँ यार | पहली कक्षा से तेरा दोस्त हूँ | सब तो तेरे दोस्त हैं |"</div><div>"वैसे नहीं | दोस्त ... पक्का दोस्त |"</div><div>"पक्का दोस्त मतलब ?" </div><div><br /></div><div>राजीव सिंह अब थोड़ा सा उदास सा हो गया थोड़ा सोचते हुए बोला ,"पक्का दोस्त मतलब ... मतलब...."</div><div>"'ये दोस्ती' वाला दोस्त ?" मैंने उसकी मदद की | </div><div>"हाँ | 'ये दोस्ती' वाला दोस्त |" राजीव सिंह ने तत्काल मेरी बात का अनुमोदन किया | </div><div>"वो तो मनमोहन है ही ?" मैंने कहा ,"तुम दोनों एक दूसरे के गले में बाहें डालकर गाना गाते थे ,'ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे' |"</div><div><br /></div><div>"यार मनमोहन के भाई ने तुम्हारी सड़क में मुझे आने से मना कर दिया | मैं भी देख लूँगा | सेक्टर ६ वाले लड़कों से पिटवाता हूँ उसको |"राजीव सिंह के नथुने फड़क उठे | </div></div><div><br /></div><div><div>"क्यों मना किया ?" मैंने पूछा | </div><div>"पता नहीं यार | उसके बाप की सड़क है क्या ? "</div><div>"बिलकुल | पर तू हमारी सड़क आता क्यों था ? मतलब सेक्टर ६ के सारे लड़के तो सड़क इक्कीस से कर आते जाते हैं | विनोद धर, सतीश खैरे , जे. मोहन... |"</div><div><br /></div><div>"नहीं यार | सड़क बाइस में ही तो अपनी क्लास के सारे दोस्त है - तू है, मनमोहन है। ... |" वह कुछ सोचा | मैंने उसकी सहायता की,"सुबोध जोशी है |"</div><div>"हाँ, सुबोध जोशी है |" </div><div>"वैसे सुमित्रा भी तो हमारे ही सड़क में है |" मैंने कहा ,"और ......|" मैंने बात अधूरी छोड़ी | आगे मैं उसके मुंह से सुनना चाहता था , जिसके कारण उस पर सड़क में प्रवेश के लिए प्रतिबन्ध लगाया गया था | वह अभी भी नहीं बोल रहा था | मैंने उसे कोंचा,"वो डिपार्टमेंट नंबर १?'</div><div>"हाँ यार |" वो थोड़ा सा झेंपा ,"शायद ये बात उसके भाई को बुरी लगी |"</div></div><div><br /></div><div><div>अब मैं समझ गया कि वह मुझे अपना पक्का दोस्त क्यों बनाना चाहता है ? ताकि मुझसे मिलने के लिए उसका सड़क में आना बदस्तूर जारी रहे | वह मेरे लिए तो नहीं आना चाहता था , किसी और के लिए ... | परिणाम ? रमेश, मनमोहन के साथ साथ सड़क के सब लड़के मेरे ही दुश्मन हो जायेंगे | </div><div><br /></div><div><i>".... तेरे लिए ले लेंगे .. . सब से दुश्मनी ... "</i></div><div><br /></div><div>"बोल , बनेगा यार मेरा पक्का दोस्त ?" उसकी आवाज़ में दर्द टपक रहा था | </div><div><br /></div><div>"तू एक काम कर | तुझे सड़क बाइस में हम लोगों से मिलने आना ही है तो डिपार्टमेंट १ वाली को ही पक्का दोस्त बना ले | बात ख़तम | " आज मेरा दिन हो ना हो, यह मौका जरूर मेरा था | </div><div><br /></div><div>गुस्से से उसका चेहरा लाल भभूका हो गया हो गया ,"कैसी बातें कर रहा है बे ?'</div><div><br /></div><div>"ऐसी ही तो बातें तुम लोग मेरे लिए छह महीनों से कर रहे हो |" मेर अंदर इतने दिनों का जमा हुआ आक्रोश फट पड़ा |</div></div><div>--------------</div><div><br /></div><div>आज शाला का आखिरी दिन था | चारों वर्ग वाले, सुबह वाले और दोपहर वाले भी - कतार बना कर बड़ी बहनजी के कार्यालय के सामने वाली जगह पर बैठे थे | जो कुछ मैंने थोड़ी देर पहले राजीव सिंह को कहा था, उसका मुझे दुख हो रहा था | लेकिन अभी स्थिति बदलने वाली थी | प्रथम आते ही वह वापस गौरवान्वित महसूस करेगा | </div><div><br /></div><div><div>बड़ी बहनजी हाथ में फाइलें लेकर आयी \ पता नहीं कहाँ से चलते हुए जिला शिक्षा अधिकारी, जिसे हम "टी.टी. गार्ड का तोतला" कहते थे, आ गया था | ये वही अधिकारी था जिसने हमें थोड़े दिनों पहले "एक लड़की जो प्रधानमन्त्री बनी" पर निबंध लिखने कहा था | </div><div><br /></div><div>बड़ी बहनजी ने चश्मा सम्हालकर एक छोटा सा भाषण दिया | अगर महिमा मंडान और चापलूसी भरे शब्दों को छोड़ दिया जाए तो सार ये था कि इस वर्ष पांचवीं बोर्ड की परीक्षा में कोई अनुत्तीर्ण नहीं हुआ है | मेरे लिए यह एक सुखद बात थी | वर्ना मैं सोच रहा था, अगर हममें से कोई फेल हो जाए तो उसे कितना बुरा लगेगा | उसके सारे साथी तो शाला छोड़कर जा चुके होंगे उस पर क्या बीतेगी ? | वो फिसड्डी लड़की मीना , वो बड़े सर वाला बुड्ढा राजेश - सब पास हो गए थे | </div><div><br /></div><div>फिर प्रधानाध्यापिका ने घोषणा की ,"इस बार हमारी शाला से दो लोग प्रथम आये हैं |" फिर उन्होंने मनमोहन का नाम लिया | मनमोहन सबके बीच से उठकर बड़ी बहनजी के पास गया | "टी.टी. गार्ड का तोतला' मानो उसका ही इंतज़ार कर रहा था | उसने पहले ही मनमोहन के बारे में घोषणा कर दी थी,"लम्बी नाक वाले लोग बुद्धिमान होते हैं |" मनमोहन के पहुँचते ही उसने उससे तपाक से हाथ मिलाया | </div><div><br /></div><div>"और विजय सिंह ...|"</div></div><div><br /></div><div><div>मैं बड़े आराम से बैठा था | मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ | पीछे से जे. मोहनराव ने कोंचा | सामने से चन्दन ने झकझोरा | कालकर बहनजी ने पुकारा | असमंजस में पड़ा मैं खड़ा होकर किसी तरह लड़खड़ाते हुए सामने पहुंचा | </div><div><br /></div><div>तालियों की गड़गड़ाहट के बीच क्या किसी ने सिसकियों की आवाज़ सुनी ?</div><div><br /></div><div>"..और दूसरे स्थान पर राजीव सिंह. .... |"</div><div><br /></div><div>राजीव सिंह जब खड़ा हुआ तो उसकी आँखों से आंसू निकल रहे थे | वह बड़ी बहनजी के पास पहुंचा | बड़ी बहनजी ने सहानुभूति से उसके कंधे पर हाथ रखा ही था कि राजीव सिंह रो पड़ा | </div></div><div>--------------------</div><div><br /></div><div><div>सारा माहौल ग़मगीन हो गया | कालकर बहनजी और बड़ी बहनजी राजीव सिंह को बड़ी बहनजी के दफ्तर में गए | उसके बाद बड़ी बहनजी तो लौटी नहीं, लेकिन कालकर बहनजी थोड़ी देर बाद सभी वर्गों के परिणाम की फाइलें लेकर लौटी और उन्होंने सभी शिक्षिकाओं को वे फाइलें थमा दी | मेरे और मनमोहन के अठ्यासी प्रतिशत अंक थे और राजीव सिंह के छयासी प्रतिशत | शाह बहनजी की चहेती माधुरी वैद्य को ८४% अंक मिले थे | </div><div><br /></div><div>अब अंग्रेजी वर्णमाला के नाम के हिसाब से कालकर बहनजी ने नाम पुकारना शुरू किया | प्रत्येक से वह एक-एक दो-दो मिनट बातें करतीं | लगता था, वक्त ठहर सा गया हो | </div><div><br /></div><div>राजीव सिंह बड़ी बहनजी के कार्यालय से हाथ में परिणाम पत्रक और एक संतरा लेकर निकला | बजाय सामने से जाने के, वह बड़ी बहनजी के दफ्तर के पीछे से निकला और पानी की सूखी टंकी के बगल से होते हुए लम्बी राह पर निकल गया | अब उसकी पीठ ही दिख रही थी | जब तक वह आँखों से ओझल न हो गया , हम उसे जाते देखते रहे | </div></div><div>----------------------------------------</div></div><div><div><div>गर्मी की छुट्टियों के वे सुनहरे दिन | शाम के चार बजते बजते ढलती हुई धूप में हम निकल पड़ते और तब तक खेलते रहते, जब तक बॉल दिखनी बंद न हो जाए | अभी हम लोग छोटी पुलिया के पास से सड़क पार कर ही रहे थे कि बहुत बुरी खबर लेकर चन्दन आ गया | </div><div><br /></div><div>"पर ऐसा हो कैसे सकता है ?" मुझे यकीन नहीं आ रहा था | </div><div><br /></div><div>"माँ कसम |" चन्दन बोला | </div><div><br /></div><div>"तुझे किसने बताया बे ?" सूर्य प्रकाश ने पूछा | वैसे वह रहता तो था मंदिर के पास सड़क चार में, पर अब वह सड़क बाइस की हमारी टीम का स्थायी सदस्य बन गया था | हुआ यह कि पिछले वर्ष हमने डबल स्टोरी वालों से मैच लिया था और उसे "उधारी" खिलाया था | सूर्य तब तक क्रिकेट में पूरे सेक्टर २ में नाम कमा चुका था | डबल स्टोरी वालों ने हो-हल्ला मचाया | उसके बाद हम लोगो ने उसे अपनी सड़क में प्रतिदिन आकर खेलने की बात कही और उसने स्वीकार भी कर लिया | </div><div><br /></div><div>चन्दन के बुरे समाचार से हम चारों प्रभावित थे मैं , मनमोहन, सूर्य और सुबोध | </div></div><div><br /></div><div><div>"चन्दन, तू खुद सोच | भिलाई विद्यालय सेक्टर २ में है कि नहीं | ऐसा कैसे हो सकता है कि सेक्टर २ के लड़कों को वहाँ एडमिशन नहीं मिले ?"</div><div><br /></div><div>"मुझे नहीं मालूम यार |" चन्दन बोला,"जसवंत खुद देखकर आया | वहां के क्लर्क से मिलकर आया |"</div><div><br /></div><div>"और वो कह रहे थे, शाला नंबर आठ के लड़कों को भिलाई विद्यालय में प्रवेश नहीं मिलेगा? एक नंबर का गपोड़ा है यार जसवंत भी |" मुझे उसकी बात पर यकीन नहीं हो रहा था | </div><div><br /></div><div>"तो सेक्टर २ के लड़के किस स्कूल में जाएंगे ?"</div><div><br /></div><div>"सेक्टर ६ |" अपने इस जवाब से चन्दन खुद काफी निराश था | </div></div><div><br /></div><div><div>"सेक्टर ६ " सुनते ही मुझे ४४० वोल्ट का करंट लगा | सेक्टर ६ मतलब फिर राजीव सिंह | देर-सबेर राजीव सिंह से सुलह होगी ही और फिर से वही नौटंकी शुरू होगी जो पिछले छह महीनों से मेरे साथ चल रही थी | </div><div><br /></div><div>अगले दिन खुद सच्चाई का पता लगाने मैं भिलाई विद्यालय चले गया | एक लम्बी सी कतार लगी थी, जो प्राचार्य के कक्ष के पास से होकर बगल के कमरे मैं अस्थायी बने कार्यालय में जाती थी | प्राचार्य कक्ष के पास रखे सूचना पट पर साफ़ साफ़ उन शालाओं के नाम लिखे थे, जिनके लड़कों को प्रवेश दिया जा रहा था | मैंने तीन बार ऊपर से लेकर नीचे तक सारी शालाओं की सूची पढ़ डाली जिन्हें प्रवेश दिया जा रहा था | अगर मैं दस बार भी पढता तो भी नतीजा वही रहता | प्राथमिक शाला क्रमांक आठ का नाम नदारद था | फिर भी मैं मंथर गति से चलती उस कतार में खड़े रहा | क्या पता, भूल-चूक से मुझे प्रवेश दे दें | </div><div><br /></div><div>लेकिन लिपिक वर्ग को तो दस्तावेज देखने के ही पैसे मिलते हैं | मेरा स्थानांतरण पात्र देखते ही वह बोला ,"बाहर लगा बोर्ड नहीं पढ़ा ?"</div><div><br /></div><div>"कौन सा बोर्ड?" मैंने अनभिज्ञ होकर पूछा | उसने बात को ज्यादा बढ़ाना उचित नहीं समझा और मुझसे बोला ,"सेक्टर ६ के स्कूल जाओ |"</div><div><br /></div><div>अब क्या होगा ? मेरी आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा | </div><div>----------------------</div></div><div><br /></div><div>क्या राजीव सिंह से बात करनी पड़ेगी ? जिस तरह वह शाला क्रमांक आठ से निकला , यह निश्चित था, उसके मन में बदले की भावना धधक रही होगी | उससे संवाद कैसे स्थापित किया जाए ? मेरा स्वाभिमान अभी भी ये स्वीकार करने को तैयार नहीं था | क्या गलती थी मेरी ?</div><div><br /></div><div><div>ये सब बातें चन्दन से कही जा सकती हैं, पर भला वह भी क्या कर सकता था ? ज्यादा से ज्यादा राजीव सिंह से बात कर सकता था | पर रवींद्र मुंशी वहां होगा और बाकी सब उसके अनुचर भी वहीँ होंगे |</div><div><br /></div><div>दूसरी तरफ भिलाई विद्यालय के गौरवशाली अतीत के सम्बन्ध में मैं अपने बड़े भाई कौशल के समय से सुन रहा था | मंझले भाई बबलू से साथ ऐसी कहानियों में इज़ाफ़ा भी हुआ | मनमोहन का भाई रमेश , इक्कीस सड़क के शंकर, राजू , गुड्डा- सब तो यही बात करते रहते थे | </div><div><br /></div><div>अफ़सोस कि उन कहानियों का मैं हिस्सा नहीं बन पाउँगा | </div><div><br /></div><div>और जल्दबाज़ लोगों ने तो दाखिला लेना शुरू भी कर दिया था | </div><div><br /></div><div>सड़क तीन के शुरू में , जहाँ कभी बेबी की सहेली अंजलि रहती थी, अब रमेश मिश्रा रहता था | एक दिन वह अपने घर के बाहर गेट पर ही खड़ा मिल गया | </div><div><br /></div><div>"क्यों रमेश मिश्रा?" मैंने पूछा ,"दाखिले के बारे में क्या सोचा है ?"</div><div><br /></div><div>"सोचना क्या है ? मैंने तो सेक्टर छह में एडमिशन भी ले लिया |"</div><div><br /></div><div>"क्या?" मुझे झटका लगा ,"कब?"</div><div><br /></div><div>दो दिन पहले | पहले भैया भिलाई विद्यालय गए | पर भिलाई विद्यालय वाले तो सेक्टर दो वालों को प्रवेश दे नहीं रहे हैं | भैया ने सोचा, कहीं सेक्टर छह का एडमिशन भी ख़तम मत हो जाए |"</div><div><br /></div><div>और यही जवाब विजय पशीने का भी था | सेक्टर छह में दाखिला लेने के पीछे उसका भी यही तर्क था, "कहीं दाखिला ख़तम न हो जाए |"</div><div><br /></div><div>लड्डू बँट रहे थे | लपक लो | </div><div><br /></div><div>एक तरीका था - क्यों न बाबूजी से बात की जाये ?</div><div><br /></div><div>-------</div><div>मुश्किल यही थी कि सारी बातें बाबूजी को बताई भी नहीं जा सकती थी | मैंने गौरवशाली अतीत का हवाला दिया | नेहरू जी ने भिलाई विद्यालय का उद्घाटन किया था | बाबाजी को राष्ट्रपति पुरस्कार मिला था | बाबूजी सुनते रहे | फिर बोले, "इतनी सी बात है या और कुछ है ?"\</div><div><br /></div><div>"और कुछ नहीं | भिलाई विद्यालय में एन. सी. सी. है |"</div><div><br /></div><div>"एन. सी.सी. तो मेरे ख्याल से हर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में होगा |"</div><div><br /></div><div>"पर एयर विंग नहीं है | भिलाई विद्यालय में खेल के अच्छे मैदान हैं |"</div><div><br /></div><div>बाबूजी कुछ सोच कर बोले ,"ठीक है | ऐसा करो , तुम अपना स्थानांतरण प्रमाणपत्र और परिणाम पत्र की एक प्रति मुझे दे दो | मैं पटेरिया सर से बात करता हूँ | एक आवेदन पत्र भी लिख देना | "</div><div><br /></div><div>उन दिनों सहाय सर ग्रेट ब्रिटैन की यात्रा पर थे | पटेरिया सर भिलाई विद्यालय के प्प्रभारी प्राचार्य थे | बाबूजी ने "प्रति" कहा था, 'सत्य प्रतिलिपि' नहीं | इसलिए "अनिल डेरी " के बगल वाली ताइपिंग शॉप से टाइप कराने से ही काम चल गया | हालाँकि बाद में उन्हीं प्रतियों को 'सत्य प्रतिलिपि' बनाने मुझे सेक्टर १ डाक घर जाकर मुख्य डाक अधिकारी के हस्ताक्षर लेने पड़े थे | ऐसे पापड़ सब को बेलने पड़े थे | </div><div><br /></div><div>वैसे बाबूजी को अब भी संदेह था कि कुछ तो कारण जरूर है, जिसकी वजह से मैं किसी हालत में सेक्टर ६ की शाला में नहीं जाना चाहता था | शाम कोउन्होंने कहा,"मैंने तुम्हारे स्थानांतरण प्रमाणपत्र और परिणाम की प्रति पटेरिया सर को दे दी है | तुम अकेले जाना चाहते हो या कोई और दोस्त भी भिलाई विद्यालय में जाने के इच्छुक हैं ?"</div><div>"शायद कुछ और लोग भी होंगे |" (पहले मेरा तो हो जाये |</div><div><br /></div><div>"ठीक है | उनके नामों की एक सूची बनाकर मुझे दो |" उनसे कहो कि स्थानांतरण प्रमाणपत्र कहीं और जमा न कराएं | वार्ना मुश्किल हो जायेगी |"</div><div><br /></div><div>बाकी सब दोस्त तो शाम को खेल के मैदान में मिलते ही थे , पर चन्दन ? उससे बात करने तो उसके घर जाना पड़ेगा | वैसे बाबूजी की बातों में आश्वस्ति झलक रही थी | लग रहा था, ये कोई बड़ी बात नहीं है | </div><div>------------</div><div><br /></div><div>जिस नाटक का पर्दा चंदन के उठाया था, उसने ही उसका पटाक्षेप भी किया | </div><div><br /></div><div>गर्मी में दिन वैसे भी लम्बे होते हैं | जैसा मैंने ऊपर लिखा है, खेल के मैदान में हम तब तक डटे रहते थे, जब तब गेंद दिखनी बंद न हो जाए | थक कर चूर हो जाते थे | गला सूख जाता था | तब सेक्टर २ के पश्चिमी-उत्तर कोने पर, चौराहे के पास प्याऊ में पानी पीने जाया करते थे | गुरुद्वारा समिति द्वारा हर वर्ष गर्मी के दिनों में उस जगह स्टाल लगाकर पानी पिलाया जाता था | सूखे गले में घड़े के ठन्डे पानी का संगम किसी अलौकिक अनुभव से कम नहीं था | </div><div><br /></div><div>उस दिन जा ही रहे थे कि पीछे से चन्दन अकस्मात् टपक पड़ा | </div><div><br /></div><div>"भिलाई विद्यालय में अपने को एडमिशन मिल रहा है | जाओ, जाओ | जल्दी करो |" उत्तेजना से भरी उसकी आवाज़ ही ऐसी थी कि भोंपू ही जरुरत नहीं थी | </div><div><br /></div><div>उसके उत्साह का कोई पार नहीं था | हम सब ये भी भूल गए कि इस समय तो दुनिया का कोई दफ्तर खुला नहीं होगा | </div><div><br /></div><div>"क्या? हमारे स्कूल वालों को एडमिशन मिल रहा है ?" सूर्य ने पूछा |</div><div> </div><div>"हाँ | सेक्टर २ वालों को एडमिशन मिल रहा है |"</div><div><br /></div><div>रातों-रात अचानक ये उलटफेर कैसे हो गया ? निर्णय बदल कैसे गए ?</div><div><br /></div><div>अगले दिन सुबह से, मेरे सिवाय सारे के सारे दोस्त प्रवेश लेने भिलाई विद्यालय के दफ्तर के बाहर लगी कतार में खड़े हो गए | आश्चर्य, घोर आश्चर्य ..... वहां उन्हें राजीव जावले भी मिल गया | </div><div><br /></div><div>"तू भिलाई विद्यालय में ?" सुबोध के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा ,"सेक्टर ६ स्कूल ..?"</div><div><br /></div><div>"चुप बे | सेक्टर ६ स्कूल कोई स्कूल है ?" तो राजीव सिंह के खेमे में राजीव जावले कभी था ही नहीं ?</div></div></div><div>------------</div><div><div>कैसे बयान करूँ कि मैं किस मुसीबत में फंस गया था | </div><div><br /></div><div>मेरा स्थानांतरण प्रमाणपत्र बाबूजी ने पटेरिया सर को दे दिया था | जब मैंने बाबूजी को बताया कि भिलाई विद्यालय में अब सेक्टर २ वालों को दाखिला मिल रहा है | अब पटेरिया सर के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं रही | क्या मुझे मेरा स्थानांतरण प्रमाणपत्र मिल सकता है ?</div><div><br /></div><div>बाबूजी और सब कामों में व्यस्त रहे | उस दिन वो भूल गए | </div><div>दूसरे दिन पटेरिया सर मिले नहीं | </div><div>तीसरे दिन जाकर मुझे स्थानांतरण प्रमाणपत्रमिला, तब तक प्रवेश कार्यालय बंद हो चुका था | </div><div>चौथे दिन जाकर मुझे प्रवेश मिला , लेकिन इस गलती की सज़ा मुझे मिली | </div><div><br /></div><div>सारे के सारे मित्र, एक चन्दन को छोड़कर, वर्ग 'स' में थे | देरी की वजह से मुझे वर्ग 'द' मिला | वर्ग 'द' से 'स' में जाने के लिए मुझे बाबूजी के सामने मिन्नतें करनी पड़ीं | किस तरह वर्ग 'स' में आया तो उस वक्त तक मैं वर्ग 'द' में नए दोस्त बना चुका था | </div></div><div>----------</div><div><br /></div><div>जिन्हें भिलाई विद्यालय चाहिए था, उन्हें भिलाई विद्यालय मिल गया | जिन्हें सेक्टर ६ जाना था, उनके साथ भी कोई जोर जबरदस्ती नहीं हुई | शाला क्रमांक आठ की पुस्तक हमारे लिए बंद हो चुकी थी, किन्तु अंतिम पृष्ठ पर एक बड़ा दाग लग गया था | नया विद्यालय था , नए मित्र थे , नयी चुनौतियां थीं | किन्तु राजीव सिंह की याद हरदम आते रहती थी | सप्त वृक्ष सड़क, जो वृत्तखंड २ को वृत्तखंड ६ से अलग करती थी, मानो अंतर्राष्ट्रीय सीमारेखा बन गयी, जिसके एक ओर राजीव सिंह का देश था और दूसरी ओर हमारा | जिस तरह सेक्टर २ के लड़के- मुंशी अशफाक , विजय पशीने , रमेश मिश्र सेक्टर ६ के उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में पढ़ने उसी तरह सेक्टर ६ के छात्र - विनोद धर , मनोज , गणेश, राकेश, रविकांत - सेक्टर ६ से भिलाई विद्यालय में पढ़ने आते थे | जब भी नए विद्यालय में नए मित्र और नयी चुनौतियाँ दिखती, राजीव सिंह की याद हरदम आती थी | </div><div><br /></div><div>हिम्मत जुटाने में पूरा एक साल लग गया | जिस चुनाव का मुंह हमने शाला क्रमांक आठ में प्रवेश के पूर्व १९७१ में देखा था, छह साल बाद वही लोकसभा के आम चुनाव १९७७ में संपन्न हुए | जब हमारी छठवीं की परीक्षा का आखिरी परचा था, उस दिन चुनाव के परिणाम आने शुरू हुए | उन दिनों वोटों की गिनती मानवीय तरीक से होती थी और उसमें समय तो लगता ही था | परिणाम आने में करीब तीन दिन लगे | उस ऐतिहासिक और अप्रत्याशित चुनाव परिणाम ने कांग्रेस की चूलें हिला दी | प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी और उनके पुत्र संजय गाँधी सहित कांग्रेस के बड़े- बड़े दिग्गज धराशयी हो गए | </div><div><br /></div><div>ऐसे में लाजिमी था कि सभी प्रमुख पात्र पत्रिकाओं के मुख्य पृष्ठ पर चुनाव की ही ख़बरें छपती | और वह घटना कोई सामान्य घटना तो थी नहीं | धीरे धीरे आपातकाल की ज्यादतियां बाहर आने लगी | सत्तारूढ़ होने के कुछ ही दिन बाद जनता पार्टी ने नौ राज्यों की विधानसभा बंग कर दी | कारण ? कांग्रेस शासित वे सरकारें जनता का विश्वास खो चुकी थी | </div><div><br /></div><div><div>ऐसे में सारा देश राजनीति की चर्चा में डूब गया | अगले कई हफ़्तों तक समाचारों पर आधारित साप्ताहिक के मुख्य पृष्ठ पर राजनीतिक सुर्खिया ही छाई रहीं | </div><div><br /></div><div>ऐसे माहौल में जहाँ भी मैं किताबों और पत्रिकओं की दुकानें देखता, मेरे कदम ठिठक जाते | काम से काम सुर्खियां तो पढ़ ही सकते थे | सेक्टर २ में ऐसे पुस्तकों या पत्रिकाओं की कोई दुकान नहीं थी | उसके लिए या तो सेक्टर ४ जाना पड़ता था या सेक्योर ६ | ऐसे में उन्हीं दिनों सेक्टर २ के बाजार में सर्वोदय बुक डेपो खुली | </div></div><div><br /></div><div><div>जेब में इतने पैसे थे नहीं कि मैं सर्वोदय की दुकान से रस्सी पर टंगी धर्मयुग खरीद सकूँ | फिर भी मैं उसका मुख्यपृष्ठ देख रहा था जिस्मने मोरारजी देसाई के मंत्री राजघाट पर शपथ ले रहे थे | मुझे मालूम था कि किसी भी वक्त सर्वोदय का मोटू मालिक मुझे खिसकने का संकेत देने वाला सन्देश देगा,"क्या चाहिए?" उसका सन्देश तो आया नहीं, लेकिन दूकान में शाह बहनजी आ गयी | </div><div><br /></div><div>अब मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम | काश वे पांच सेकंड बाद आती , तब तक मुझे खिसकने का सिग्नल मिल गया होता | काश मैं दूकान में रुकता ही नहीं | अब मैं आँख बचाकर सरकने ही वाला था कि शाह बहनजी ने मुझे पुकार लिया ,"विजय" | </div></div><div><br /></div><div><div>रुकने के सिवाय कोई चारा नहीं था | किसी तरह मैंने हाथ जोड़े पर मुंह से एक शब्द नहीं निकला | </div><div>शाह बहनजी ने मुझसे कुछ प्रश्न पूछे | वो क्या पूछ रही थी, मुझे कुछ पता नहीं चल रहा था | बस, मेरे दिमाग के सामने से शाला क्रमांक आठ की स्मृतियों पर डाला हुआ पर्दा अचानक तेज़ हवा के झोंके के साथ उड़ गया | मैं अपने आप को रोक बहिन पाया | राजीव सिंह के घर जाना ही होगा | </div></div><div>------------</div><div><br /></div><div><div>उस शाम को नौ राज्यों की विधानसभा के परिणामों की घोषणा हो रही थी | राजीव् सिंह सेक्टर छह सड़क पांच के एक तल्ले पर रहता था | अँधेरी सीढ़ियों पर चढ़ते हुए मैं दूसती मंजिल पर पहुंचा | </div><div><br /></div><div>सेक्टर छह के घर कितने बड़े होते हैं, आपसे कुछ छिपा नहीं है | राजीव सिंह के घर का दरवाजा तो खुला था | उसके घर मैं कई बार आ चुका था | उन दिनों लगभग सभी के घर में पहले कमरे के बाद, जिसे हम लोग हमारे घर में 'बैठक' कहते थे, के बाद कपडे का एक पर्दा लगा होता था जिसके आगे जाना वर्जित था | मेहमान आते और पहले कमरे में ही बैठते थे | परदे की लक्ष्मण रेखा अलंघ्य थी इसलिए उसके अंदर क्या है - मुझे पता नहीं था | </div></div><div><br /></div><div>मैं पहचानने की कोशिश कर रहा था कि राजीव सिंह के घर में मेरी पिछली उपस्थिति के बाद अब तक बदला क्या है ? वो सोफा सेट, जिसके जादुई प्रभाव से भोला गिरी हतप्रभ हो गया था, वो ज्यों का त्यों था | भला क्या था जादुई प्रभाव ? जब हम तीसरी में थे तो एक बार भोला गिरी राजीव सिंह के घर गया था | जीवन में पहली बार वह स्प्रिंग वाले सोफे पर बैठा था | </div><div><br /></div><div><div>"अरे बाप रे !" वह कक्षा में उत्तेजित शब्दों में बयान कर रहा था ,"जैसे ही मैं गद्दे वाली कुर्सी पर बैठा, ऊपर उछाल गया | मेरा सर पंखे से टकराते टकराते बचा | फिर वापिस सोफे पर गिरा, फिर उछल गया | फिर नीचे आया तो राजू सिंह ने बड़ी मुश्किल से पकड़ा | मैं फिर भी उसको लेकर उछला। ...| </div><div>साड़ी कक्षा हँसते-हँसते लोटपोट हो गयी थी | वो भी क्या दिन थे !</div></div><div><br /></div><div>बचपन में हम लोग 'पराग', 'नंदन', 'चंदामामा' जैसी पत्रिकाएं पढ़ते थे तो राजीव सिंह 'शावक' नाम की पत्रिका पढता था | पता नहीं, कहाँ से लाता था | क्योंकि बाजार, रैलवे स्टेशन, बस स्टैंड पर 'चम्पक', 'लोटपोट', 'पराग', 'नंदन', 'चंदामामा' जैसी बच्चों की पत्रिकाएं जरूर दिखती थी पर 'शावक' कहीं नहीं मिलती थी | तो भोला गिरी के जादुई उछाल और 'शावक' की जिज्ञासा मुझे पहली बार राजीव सिंह के घर खींच लाई | </div><div><br /></div><div><div>मैं दरवाजे पर खड़ा ही था कि वह हो गया, जिसके लिए सामान्य दिनों में मैं मैं मन ही मन न होने की फ़रियाद करता था, पर आज जब वह हुआ तो एक तरह से उसने मेरे मन से बड़ा सा बोझ उतार दिया | </div><div><br /></div><div>राजीव सिंह से मिलने से पहले मेरा सामना उसकी माँ से हो गया | </div><div><br /></div><div>"नमस्ते बहनजी |" मैंने हाथ जोड़कर कहा | वैसे भिलाई विद्यालय में जाने के पश्चात बहनजी कहना करीब करीब छूट चुका था | अब हम शिक्षिकाओं को 'मैडम' कहते थे | </div><div><br /></div><div>मोठे तगड़े राजीव सिंह की पतली दुबली मां ने मुझे फ़ौरन पहचान लिया ,"विजय सिंह, बाहर क्यों खड़े हो ? अंदर आओ | "</div><div><br /></div><div>"कुछ नहीं बहनजी | राजीव सिंह से मिलना था | घर में यही क्या ?"</div></div><div><br /></div><div>"अरे | अंदर तो आओ |" फिर उन्होंने राजीव सिंह के छोटे भाई को आवाज़ दी ,"जा तो बेटा गुल्लू | मुन्ना को बुला ला | बोलना विजय सिंह आया है |"</div><div><br /></div><div>"रहने दो बहनजी | मैं फिर कभी आ जाऊंगा |" मैंने पिंड छुड़ाने का भरसक प्रयास किया | सिंह बहनजी के सामने एक एक पल भारी हो रहा था | खासकर, यह निश्चित था कि जब तक राजीव सिंह नहीं आता , तब तक उनके सामने बैठना पड़ेगा | उसमें से अधिकतर पल बोझिल खामोश पल होंगे | यादों की पार्टी खुलते जाएँगी और जिस तरह मैं शाह बहनजी की किसी भी बात को सुनकर या बिना सुने कोई जवाब नहीं दे पाया था, शायद कुछ वैसा ही सिंह बहनजी के सामने भी होने वाला था | </div><div><br /></div><div><div>"वैसे तुम भिलाई विद्यालय में पढ़ते हो ?" राजीव सिंह की मान ने पूछा | </div><div><br /></div><div>"हाँ बहन जी |" मैंने कहा | </div><div><br /></div><div>"रिजल्ट निकल गया ?" </div><div><br /></div><div>सारे जहान में परिणाम तीस अप्रैल को ही निकल जाता है यार |</div><div><br /></div><div>"हाँ बहन जी | निकल गया | मैं पास हो गया | "</div><div><br /></div><div>तब तक राजीव सिंह आ गया | मोटा, थोड़ा और मोटा हो गया था | </div><div><br /></div><div>"कैसा रहा रिजल्ट?" राजीव सिंह ने पूछा ,"मनमोहन?"</div><div><br /></div><div>"मनमोहन पूरे स्कूल में दूसरा आया है |"</div><div><br /></div><div>"शाबास | बहुत अच्छे |" राजीव सिंह की मां बोली | </div><div><br /></div><div>"और तू?" राजीव सिंह ने पूछा |</div><div><br /></div><div>"मैं पहला आया हूँ |" </div></div><div><br /></div><div>अब राजीव सिंह की माँ बिफर गयी | उलाहना देते हुए बोली,"फर्स्ट आये हो और क्या बड़े बूढ़े जैसे बातें कर रहे हो ? 'मैं पास हो गया' |"</div><div><br /></div><div>"तू भी तो सेक्टर ६ में फर्स्ट आया होगा |" मैंने राजीव सिंह को हलके से घूँसा मारा |</div><div><br /></div><div>तभी राजीव सिंह के घर कुछ मेहमान आ गए | राजीव सिंह की माँ अंदर चले गयी | </div><div><br /></div><div>जाते- जाते उन्होंने रेडियो में समाचार लगा दिया | विधान सभा के चनाव परिणाम आ रहे थे | जनता पार्टी तेजी से बहुमत की ओर बढ़ रही थी | जादुई आंकड़ा फिर भी बहुत पीछे था | राजीव सिंह की माँ मिठाई लेकर आयी | </div><div><br /></div><div><div>"सकलेचा बन गया मुख्यमंत्री |" राजीव सिंह की माँ बोली | मेहमानों ने तुरंत अनुमोदन कर दिया | उन्होंने मेरी ओर भी मिठाई की प्लेट बढ़ाई लेकिन मैंने मना कर दिया | एक मेहमान थोड़ा रुष्ट होकर मुझसे बोलै,"जब कोई प्यार से मिठाई दे तो ले लेना चाहिए |" </div><div><br /></div><div>यानी वो 'न नुकर' जो चम्पक के 'अच्छे बच्चे, प्यारे बच्चे' में शिष्टाचार के रूप में सिखाया गया था , यहाँ एक अशिष्ट नखरे से बढ़कर ज्यादा कुछ नहीं था |</div><div><br /></div><div>उससे भी ज्यादा अफ़सोस मुझे इस बात के लिए हो रहा था कि वीरेंद्र कुमार सकलेचा कौन थे, कहाँ से टपके थे - मुझे कतई पता नहीं था | अखबार पढ़ने के आधार पर मेरे राडार में कैलाश जोशी और सिर्फ कैलाश जोशी थे | ज्यादा से ज्यादा कुशाभाऊ ठाकरे और सुंदरलाल पटवा के बारे में थोड़ा बहुत जनता था और बाकी मेरा ज्ञान स्थानीय नेताओं, पवन दीवान , दिनकर डांगे जैसे लोगों तक सीमित था | अपने अज्ञान पर मुझे हीनता का बोध हो रहा था | ऐसा क्या हुआ कि सकलेचा जैसे नेता मेरे राडार में नहीं थे और इस ग्रुप के हिसाब से वही मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे | </div></div><div><br /></div><div><div>राजीव सिंह सिंह ने कुछ दूसरा राग छेड़ा,"जनता पार्टी को अभी बहुमत नहीं मिला है | कांग्रेस वापिस आ जाएगी |"</div><div>सभी लोगों ने उसे बालक का अति आशावाद समझ कर हवा में उदा दिया | मेरे मुंह से निकला ,"यार शाला नंबर ८ में तू तो जयप्रकाश नारायण का भक्त था |"</div><div><br /></div><div>"नहीं यार |" वो हंसा, "जो विपक्ष में होता है, हम उसी का साथ देते हैं |"</div></div><div>----------</div><div><br /></div><div><div>ये तो निश्चित था कि बड़ों के बीच , उस छोटे से घर में, वह भी चुनाव नतीजों के उस माहौल में, हम अपने दिल की बात नहीं कर सकते थे | जितनी देर मैं राजीव सिंह के घर के अंदर रुका, उससे कहीं ज्यादा देर , हम उसके घर के बाहर, जब वो मुझे छोड़ने नीछे आया था, तब बात करते रहे | बिजली के जलते बुझते बल्ब के पास, जहाँ मेरी साइकिल कड़ी थी, हम बातें ही करते रहे | बिजली का बल्ब जब जगता, उसके आँखों की चमक बताती कि वे गीले शिकवे धुल रहे हैं | अगले ही क्षण हम दोनों अँधेरे अँधेरे में डूब जाते | </div><div><br /></div><div>"और मुंशी? कैसा ही है ? विजय पशीने ?"</div><div><br /></div><div>जब लोगों की बात निकलनी थी तो यह तय था की उसकी बात भी होती | पर मेरे पास कोई जवाब तो था नहीं | वो चाहे लाख आरोप लगाए कि मैं बहाने बना रहा हूँ, पर वही सच्चाई थी | </div><div><br /></div><div>फिर बातें किसी और दिशा की ओर मुड़ी | कुछ पल हम खामोश रहे | </div><div><br /></div><div>"यार, एक बात कहूं ? मैं भी भिलाई विद्यालय में आ जॉन क्या ?" अचानक उसने वह प्रश्न दागा | </div></div><div><br /></div><div><div>मैं स्तब्ध रह गया | काटो तो खून नहीं | इस प्रश्न की मैंने सपने में भी अपेक्षा नहीं की थी | लगा कि गिले शिकवे कुछ कुछ ज्यादा ही धुल गए हैं | मेरी आँखों के सामने पांचवी के वे दिन तैरने लगे जब मेरे और मनमोहन के बीच में दूरियां काफी बढ़ गयी थी | कह दूँ 'ना'?</div><div><br /></div><div>"बोल आऊं क्या ?"</div><div><br /></div><div>मेरे मन में विचार कौंधा,"और <i>ये दोस्ती....</i> गाना गाऊं क्या ?" </div><div><br /></div><div>"नहीं यार, तू मत आ |" मैंने कह हिम्मत कर के कह ही दिया | </div><div><br /></div><div>"क्यों?" उसने सवाल किया | </div><div><br /></div><div>जवाब ये था कि तू मेरे और मनमोहन के बीच फिर से दरार डालेगा | जवाब ये था कि तू हमारी सड़क में आएगा और वही कहानी आगे बढ़ेगी जो पांचवीं के रिजल्ट के दिन किसी तरह थम गयी थी | उसे फिर हमारी सड़क में आने से कोई कब तक रोकेगा ? </div><div><br /></div><div>"नहीं यार | तू मत आ | सेक्टर ६ स्कूल भी तो अच्छा स्कूल है | वहां पढ़ाई अच्छी होती है |" मेरे हिम्मत की सीमा वहीँ तक थी | वो गिले - शिकवे, जिसने मुझे पिछले साल परेशान किये थे और जिन्हें धोने के लिए ही मैं आया था , लग रहा था, कुछ ज्यादा ही धुल गए थे | इतने ज्यादा कि उलझन मेरे लिए पैदा हो गयी थी | फिर भी दो टूक जवाब देकर हमारी ये मुलाकात मैं निरर्थक नहीं करना चाहता था | अगर मेरे जवाब से फिर उसी जगह दुबारा चोट लगी तो वह घाव पिछले घाव से भी भयंकर होगा | </div></div><div><br /></div><div>"क्यों? तेरा पहला नंबर चले जाएगा - इसलिए ? है न ? ऐसा बोल ना बे |" </div><div><br /></div><div><div>इस तोहमत से मुझे पीड़ा तो हुई, जो अँधेरे में डूबे रहने के कारण राजीव सिंह देख नहीं सका | मैंने कोई जवाब नहीं दिया | लेकिन यह दर्द उस टीस से काफी कम था, जो सही जवाब देकर हम दोनों को मिलता | </div><div><br /></div><div>राजीव सिंह के शोले बुझ तो गए थे , लेकिन वक्त की राख के नीचे अंगार अब तक सुलग रही थी | </div></div><div><br /></div><div><br /></div><div><div>वर्ष - १९७५-७७ </div><div>स्थान - भिलाई </div></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div>Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-33289139619808733462022-01-19T21:01:00.001-08:002022-01-19T21:03:30.550-08:00कोहली के सामने विकल्प ही क्या थे ?<p> दक्षिण अफ्रीका से तीसरे टेस्ट हारने की टीस क्रिकेट प्रेमियों के मन से हटी ही नहीं थी कि कोहली के कप्तान पद त्याग देने का समाचार आ गया | कोई और मौका होता तो शायद उनके इस निर्णय को दक्षिण अफ्रीका से मिली हार से जोड़कर देखा जाता | लेकिन इस अवसर पर किसी को कई बहुत ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ | अगर भारत ये टेस्ट और श्रृंखला जीत भी जाता तो भी कोहली कप्तानी छोड़ ही देते | आखिर एक म्यान में दो तलवारें कैसे रह सकती हैं ? हाँ, जीत के बाद पद त्याग से उनके मन में परम संतोष अवश्य होता | लेकिन यह करीब करीब तय था कि अगर कोहली ऊँगली ना दिखाते तो अगला जरूर ऊँगली उठा देता | </p><p>बात जब तलवारों की ही निकली है तो बाइबिल में प्रभु ईसा ने कहा ही है - "जो तलवारों से जीता है, उसे तलवारों से ही मरना पड़ता है | " अपने खेल जीवन में मैदान के अंदर और मैदान के बाहर भी कोहली काफी आक्रामक रहे हैं | उनके इस आक्रामक रवैये की तुलना केवल एक ही पूर्व खिलाडी से की जा सकती है | संयोग से भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की बागडोर उसी के हाथ में है | वे हैं - सौरव गांगुली | भारत में प्रधानमंत्री के बाद कोई और पद अगर बहुचर्चित और शक्ति, गरिमा और दायित्व का प्रतीक होता है तो वह है भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान | ऐसा नहीं कि दोनों सर्वोच्च पद हैं | लेकिन जहाँ राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को किसी भी तरह नियंत्रित करने में अक्षम हैं वहीँ क्रिकेट कट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष , क्रिकेट टीम के कप्तान को पूरी तरह कंट्रोल करते हैं | ये अलग बात है कि राष्ट्रपति की ही तरह वे भी विरले ही कप्तान के कामकाज में दखल करते हैं | उसके बावजूद समय समय पर कुछ ऐसे अप्रिय और विवादस्पद निर्णय से बोर्ड क्रिकेट खिलाडियों को यह अवगत कराते रहता है कि भले वे कितने भी महान क्यों न हो , उन्हें किसी और के सामने सर झुकाना ही पड़ता है | उदाहरण के बहुत दूर, बिशन सिंह बेदी तक जाने की जरुरत नहीं है - जब १९७४ में अनुशासनहीनता के मामले में उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया था | खुद भारतीय क्रिकेट बोर्ड के सर्वेसर्वा सौरव गांगुली एक खिलाडी के बतौर इसे झेल चुके हैं | </p><p>मैदान के बाहर कोहली की आक्रामकता , जो कभी अनुशासनहीनता के रूप में झलकती है , पीढ़ियों के अंतर से स्पष्ट समझी जा सकती है | जीवन के हर पहलू में यह अंतर स्पष्ट देखा जाता है | पहले जहाँ लोग बुजुर्गों का सम्मान उनके अनुभव से अर्जित ज्ञान और सलाह के लिए करते थे, आज के इस गूगल दौर में उनकी कोई अहमियत नहीं रह गयी है | बल्कि नयी पीढ़ी बुजुर्गों किसी भी ऐसी सलाह को पहले खुद सूचना माध्यम की कसौटी पर परखती है | क्रिकेट भी इससे अछूता नहीं रहा है | आविष्कार और अन्वेषण ने भी क्रिकेट को कहाँ से कहाँ तक पहुंचा दिया है | आजकल बल्लेबाज़ ऐसे शॉट खेलकर रन बटोरते हैं, दस पंद्रह साल पहले उनकी कल्पना ही की जा सकती है | गेंदबाज़ ऐसी गेंदें फेंकते हैं, उनकी गेंदबाजी में इतनी विविधता होती है , जो पहले कभी देखी नहीं गयी | और तो और, आज के खिलाड़ी क्षेत्ररक्षण के लिए मैदान में कहीं ज्यादा फिट है | आज अगर कोई कैच छूटता भी है तो बात बहुत दूर तक निकल जाती है | </p><p>क्या कमी है नयी पीढ़ी के खिलाडियों के पास? पैसा, शोहरत , हर तरह के मनोरंजन, चाहने वालों की भीड़ सब कुछ तो है | जो थोड़ी बहुत कसर थी वो आई. पी. एल. जैसी प्रतिस्पर्धाओं ने पूरी कर दी | फिर भला वे बुजुर्गों का सम्मान क्यों करें ? आखिर उन्होंने देश को मान सम्मान दिलाने में कोई कमी नहीं रखी | फिर थोड़ा बहुत अनुशासनहीन होने में क्या बुराई है ? </p><p>कोहली इसी पीढ़ी के प्रतीक हैं | जो मैदान के अंदर जान लगा देता है , पर मैदान के बाहर आज़ादी चाहता है | लेकिन ऐसे लोग भूल जाते हैं कि ऐसा करके वे एक बड़े वर्ग की सहानुभूति खो देते हैं जो उनकी तब सहायता कर सकते हैं, जब उनको उसकी सख्त जरुरत हो | आज हरेक पद के लिए एक एक नहीं कई दावेदार हैं | होड़ लगी है | ऐसे में जब प्रदर्शन थोड़ा भी ढीला होता है तो लोग ऐसी हर गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित कर देते हैं, जिसका खेल से कोई लेना-देना नहीं होता | फिर भी लोग समीकरण बिठा बिठाकर ये दिखाने की कोशिश करते हैं कि स्तर में गिरावट की असली वजह क्या है ?</p><p>कोहली का बल्ला अभी खामोश नहीं हुआ है | कल के एक दिवसीय मैच मैं उन्होंने ५१ रन की महत्वपूर्ण पारी खेली है | वे थोड़े भावुक भी हैं और पूरे दिल से, पूरी लगन से खेलते हैं | कप्तान के रूप में उन्होंने भारत को अगले स्तर पर पहुंचा दिया है | बतौर कप्तान उनका कोई विकल्प निकट भविष्य में नहीं दिखता | या तो लोग काफी युवा हैं, या काफी पुराने | फिर टीम में उस खिलाड़ी की जगह स्थायी भी तो होनी चाहिए | उसे अपने खुद के प्रदर्शन से लोगों को उत्साहित करने की क्षमता तो होनी चाहिए | माइक ब्रेयरली का ज़माना तो है नहीं | </p><p>ऐसे मैं कोहली विवादों से दूर, एक खिलाड़ी के रूप में पूरी सक्षमता के साथ टीम को संकट से उबारते रहें तो उनकी छवि और भी निखर जायेगी | कोई जरूरी नहीं कि हर कोई राम हो | टीम में हनुमान की भी जरुरत होती है | ख़ामोशी से यह कार्य तेंदुलकर वर्षों से करते आये थे | </p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-89944449789190650972022-01-03T08:35:00.002-08:002022-01-03T09:50:24.592-08:00कोहली की कप्तानी में आखिर खराबी क्या है ?आज भारत और दक्षिण अफ्रीका के मध्य दूसरा टेस्ट शुरू हुआ और विराट कोहली पीठ के दर्द के कारण खेल नहीं रहे हैं | बहुत से लोग ये शंका ज़ाहिर करेंगे कि कहीं कोहली जानबूझकर तो ऐसा नहीं कर रहे हैं | आखिर पिछले चार महीनों से कप्तानी को लेकर जो विवाद चल रहा है, उसने लोगों को एक ऐसी सूक्ष्मदर्शी पकड़ा दी है, जिसके द्रारा वे कोहली से जुडी छोटी से छोटी बात की भी वे विवेचना कर सकें और कहीं न कहीं कप्तानी विवाद से जोड़ सकें | <div><br /></div><div>कोहली आखिर कैसे कप्तान हैं, उसे समझने से पहले ये समझाना आवश्यक है कि कोहली कैसे इंसान हैं | दस साल पहले २०११-१२ को भारतीय टीम ऑस्ट्रेलियाई दौरे में ४-० से बुरी तरह परास्त हुई थी | एडिलेड के चौथे टेस्ट में कोहली शतक से दो रन दूर थे| दूसरे छोर पर इशांत शर्मा थे | वैसे तो इशांत शर्मा ने उनका अच्छा साथ दिया था, लेकिन किसी भी क्षण पारी का अंत हो सकता था | कोहली ने गेंद मिड विकेट की और धकेली | पहला रन तेज़ी से पूरा किया | दूसरा रन, यानी शतकीय रन दौड़ते- दौड़ते ही उन्होंने उल्लास में भरकर बल्ला उठा दिया | तब इयान चैपल कमेंटरी कर रहे थे | उनके मुंह से निकला, "क्या कोहली रन पूरा करने के बाद अपनी प्रफुल्लता व्यक्त नहीं कर सकते थे ?"</div><div><br /></div><div>वास्तव में वो बहुत ही मुश्किल दौरा था | भारतीय टीम के पास ऐसा कुछ भी नहीं था, जिससे टीम को कभी मुस्कुराने का मौका भी मिले | ऐसे में कोहली के दिमाग पर उनके दिल की भावनाएं हावी हो गयी | वे अपने दिल के विचार कभी भी अपने अंदर नहीं रखते, बल्कि उसे जाहिर कर ही देते हैं | चाहे वो स्टीव स्मिथ का एल. बी. डब्ल्यू। के रिव्यू लेने के पहले पेवेलियन की ओर देखकर संकेत की प्रतीक्षा का मामला हो या फिर करूण नायर के तिहरे शतक के बाद भी प्रेस में रहाणे को उनके ऊपर तरजीह देने की बात | और अभी कुछ दिन पहले दक्षिण अफ्रीका जाने के पूर्व की प्रेस कांफ्रेंस ने तो हंगामा खड़ा कर दिया | </div><div><br /></div><div>किसी ज़माने में रोहित शर्मा उनके सबसे अच्छे दोस्त रहे | पता नहीं, किस अनबन को मीडिया ने इतना तूल दे दिया | बात दो बीवियों की एक दूसरे को अपने सोशियल मीडिया अकाउंट से 'अनफ्रेंड' करने से हुई और समाचार बनाने वालों को मसाला मिल गया | रवि शास्त्री ने ठीक ही कहा था कि लगता है, मैदान के अंदर खिलाड़यों के प्रदर्शन से ज्यादा मैदान के बाहर महिलाओं की अनबन में मीडिया को ज्यादा दिलचस्पी है | ऐसे मौकों पर रवि शास्त्री कोहली के साथ ही खड़े नज़र आते रहे | क्या बुराई है इसमें ? किसी प्रशिक्षक का काम टीम तोडना तो नहीं होता | </div><div><br /></div><div>कुंबले के साथ उनकी तकरार नए ज़माने की नयी सोच का ही नतीजा था | आज खिलाडी कोई तपस्वी नहीं होता कि खेल के सिवाय उनकी कोई और ज़िन्दगी न हो | कि एक मैच ख़त्म होते ही वह दूसरे मैच की तैयारी की मानसिकता बना ले | जीत हो या हार, मैदान में पूरा ध्यान लगाने के पश्चात वह थोड़ी आज़ादी चाहता है | वह जानता है कि खुली हवा में सांस लेने के पहले ही अगला दौरा या मैच आ जायेगा | अगर चुना जाए तो भी तनाव, न चुना जाये तो भी कुण्ठा | </div><div><br /></div><div>वैसे खेल के दौरान समर्पण की भावना खिलाडियों में कूट-कूट कर भरी है और इस मामले में कोहली उनका नेतृत्व करते नज़र आते हैं | यही कारण है कि शुरू से ही उन्होंने पांच गेंदबाजों की जो रणनीति बनाई, उससे कभी पीछे नहीं हटे | इतना ही नहीं, वे पांच गेंदबाजों के दल भी पिच और श्रृंखला , स्पिन लेने वाली एशियाई पिचों वाली या उछाल भरी तेज़ पिच के हिसाब से बदलते रहे | ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था | </div><div><br /></div><div><div>शायद यही कारण है कि उन खिलाडियों को , जो आंकड़ों की किताबों में सर्वोत्तम थे , पर पिच के हिसाब से उतने प्रभावी नहीं हो सकते थे जितना एक पिच के अनुकूल गेंद करने वाला नौसीखिया हो सकता था , बाहर बैठना पड़ा | उनके गले यह बात नहीं उतरी कि कोहली के लिए जीत ही सर्वोपरि थी और है | अगर वह टीम में कोई फेरबदल या बदलाव चाहता है तो वह विपक्षी की रणनीति को पलटने या उनकी ही बिल्ली की पूँछ मरोड़ने के लिए होता है, जिससे वह उन्हें ही 'म्याऊं' कर सके | </div><div><br /></div><div> जीत के इस महत्त्व को उन्होंने खुद पर भी लागू किया | पिछले वर्ष आई. पी. एल. के दौरान अपनी कप्तानी छोड़ दी | टी. २० की कप्तानी छोड़ने के पीछे भी उन्होंने वही तर्क दिया | जो खिलाड़ी अपने प्रदर्शन से टीम का प्रेरणास्त्रोत न बन सके, उसके लिए बेहतर है कि पहले अपने प्रदर्शन पर ध्यान दे, ताकि टीम के अंदर और बाहर कोई उस पर उंगली ना उठा सके | </div></div><div><br /></div><div>अगर अश्विन को उन्होंने सफ़ेद गेंद वाले मैचों से बाहर रखा तो वह एक रणनीति के तहत था | ताकि टेस्ट मैचों के दौरान वे फिट और ऊर्जा से भरपूर रहें , सफ़ेद गेंदों की गेंदबाजी की आवश्यकता और प्रदर्शन उनके टेस्ट मैचों की गेंदबाजी को प्रभावित न करे और वे "ओवर एक्सपोज़ " न हों ताकि उनकी गेंदबाज़ी की धार टेस्ट मैचों में बरकरार रहे | </div><div><br /></div><div><div>ऐसा नहीं लगता कि कोई उनका पसंदीदा खिलाडी था या है | जो फिटनेस टेस्ट पास न कर पाए, चाहे वह ऋषभ पंत हो या रोहित शर्मा, टीम में उनके लिए जगह नहीं है | अगर उनके लिए टीम सर्वोपरि नहीं होती तो शिखर धवन अब भी तीनों फॉर्मेट में खेलता, इशांत की जगह हर टेस्ट में पक्की रहती और चहल सफ़ेद गेंदों वाले मैच के साथ साथ टेस्ट टीम के भी स्थायी सदस्य रहते | एक-दो अपवादों को छोड़कर नए खिलाड़ियों को मौका देने में उन्होंने कभी देर नहीं लगाईं | </div><div><br /></div><div>विजय शंकर के बारे में काफी कुछ कहा गया | हर कप्तान का स्वप्न होता है कि उनकी टीम में , खासकर एक दिवसीय टीम में ज्यादा से ज्यादा हरफनमौला खिलाडी रहे | इसलिए अगर उन्होंने रायडू के बदले विजय शंकर को चुना तो कोई गलत नहीं किया | </div></div><div><br /></div><div>आलोचकों ने सुर में सुर मिलाया कि पिछले वर्ष के ऑस्ट्रेलियाई दौरे ने ये दर्शा दिया कि कोहली के बिना भी टीम जीत सकती है | किन्तु उस जीत के पीछे कोहली की दूरदर्शिता को सबने नज़रअंदाज किया | सामान्य परिस्थितियों में नटराजन और वाशिंगटन सुन्दर को टी २० के बाद भारत लौट जाना चाहिए था | लेकिन टीम मैनेजमेंट ने उन्हें साथ रखा | सैनी कई विदेशी दौरों से भारतीय टीम की नेट गेंदबाज़ी का हिस्सा रहे थे | ये एक तरह कोहली की ही दूरदर्शिता थी, जो उन्होंने नेट गेंदबाज़ों के रूप में उन गेंदबाज़ों को भी साथ ले जाने का फैसला किया जो भविष्य में कभी भी टीम का हिस्सा बन सकते थे | </div><div><br /></div><div><div>अफ़सोस की बात ये है कि कोहली के खिलाफ उन खिलाड़ियों ने बिगुल फूंका जिन्हें कोहली ने बहुत ज्यादा, बल्कि जरुरत से ज्यादा ही लम्बी रस्सी दी | सूत्रों की मानें तो रहाणे और पुजारा ने सितम्बर में ही भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को पत्र लिखकर बगावत का बिगुल फूँक दिया था | उनका कोहली ने इस कदर समर्थन किया कि आज कोई भी उनका उदाहरण देकर कोहली पर पक्षपात का आरोप लगा सकता है | हो सकता है, उस समय कोहली ने उन्हें अपने प्रदर्शन सुधारने को कहा हो और उनके मन में असुरक्षा की भावना आ गयी हो | आज तो कोहली टीम में नहीं थे | उसके पूर्व भी न्यूज़ीलैंड के खिलाफ एक मैच में कोहली टीम में नहीं थे | उन पर कोई दबाव नहीं था | फिर क्यों उनका प्रदर्शन उत्कृष्ट नहीं रहा ? उन्हें किस किस्म का कप्तान चाहिए या फिर उन्हें खुद कप्तानी करनी है ?</div><div> </div><div>इन तीन खिलाडियों के सिवाय शायद बाहर बैठे तीन खिलाडी कोहली को अपने खेल जीवन के लिए कोस सकते हैं - कुलदीप यादव, रायड़ू और करुण नायर | उम्र अभी भी कुलदीप के साथ है | वे वापसी कर सकते हैं | भारतीय टीम से बाहर होने के बाद करुण नायर को भारत 'ए' टीम में काफी मौके मिले | हाँ , रायड़ू जरूर दुर्भाग्यशाली रहे | </div></div><div><br /></div><div>तो जिस कोहली को एक खिलाड़ी के रूप में समझने के लिए इयान चेपल की उपरोक्त पक्तियां काफी हैं, कोहली की कप्तानी का सार उन्हीं इयान चेपल की ये पंक्तिया बयान करती हैं ,"आज तक मैंने क्रिकेट के किसी भी कप्तान को विरोधी खिलाड़ी के आउट होने पर कभी इतना उल्लास मनाते नहीं देखा |"</div><div><br /></div><div>बिलकुल, कहे के मैदान में वे डूब आते है उनकी नज़र लक्ष्य पर ही होती है | </div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /><div><br /></div><div><br /></div></div>Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-27351684907804085062021-12-29T08:17:00.069-08:002022-09-24T01:12:45.081-07:00'च ' से चन्दन (भाग २)<b>चन्दन देति जराय </b><div><div>जब यह दोहा लिखा गया, तब लिखा गया | तीसरी कक्षा में जब पढ़ाया गया तो रट लिया , समझ लिया | यह जान लिया कि अति परिचय से महत्व या दूसरे शब्दों में दबदबा कैसे कम हो जाता है | </div><div><br /></div><div>जब कवि की कलम चली तब मलयगिरि चन्दन का घर था | चन्दन की लकड़ी के लिए दुनिया तरसती रही हो, पर मलयगिरी की भीलनी के लिए तो चूल्हा जलाकर खाना बनाना ज्यादा जरूरी था | सो, वह चन्दन की लकड़ी चूल्हे में फूँक देती थी | </div></div><div><br /></div><div>दूसरी कक्षाओं के लिए चन्दन का अभी भी खौफ रहा हो, पर हमारी कक्षा के लोगों के लिए चन्दन वह "दो गज की दूरी" वाला चन्दन नहीं था | उसके गले में बाहें डालते समय राजीव सिंह को कभी पहली कक्षा की वह घटना याद नहीं आती होगी | वैसे भी उन दिनों गलबहियां प्रगाढ़ मित्रता की निशानी समझी जाती थी | तीन साल से पांच पांच घंटे रोज़ साथ बिताने के के बाद पत्थर भी पिघल जाता है तो वह तो चन्दन था | बड़े भाई दीपक की वाक्पटुता और परिहास की छवि कुछ कुछ चन्दन में दिखने लगी थी | </div><div><br /></div><div> वही चन्दन सुबह की पाली वालों के लिए खूंखार हो उठता था | सुबह की पाली पौने बारह बजे ख़तम होती थी और दोपहर की पाली बारह बजे शुरू होती थी | उस पंद्रह मिनट के संक्रमण काल में सुबह वाले बाहर जा रहे होते थे और दोपहर वाले अंदर आ रहे होते थे | चट्टान जब टकराएं तो चिंगारी निकलना स्वाभाविक था | गाली गलौच, धक्का-मुक्की , गाहे-बगाहे पत्थरबाज़ी - सब कुछ उस पँद्रह मिनट के अंतराल में देखने को मिलता था | बालकों की सृजनात्मकता का अच्छा परिचय मौलिक, अनूठी गालियों में सुनने को मिलता था | कभी इत्मीनान से बैठकर सुनने में हँसी आती थी | उन गालियों में कभी डायनोसौर भड़भड़ाता हुआ आता था तो कभी रेलगाड़ी सरपट भागती थी | अभी सिलाई मशीन उछाली जाती थी तो कभी वेल्डिंग का हत्था हत्थे चढ़ जाता था | यह सिलसिला तब तक चलते रहता था , जब तक सुबह वाले स्कूल के बाहर की नाली और फिर सड़क पार करके इक्कीस सड़क में दाखिल होकर सेक्टर छह की राह ना पकड़ लें | </div><div><br /></div><div><div>इस सारी कटुता की पृष्टभूमि में दो प्रमुख कारण थे | </div><div><br /></div><div>पहला - सुबह वालों के साथ कबड्डी के मैच में हमारी दोपहर पाली की टीम हर बार हार जाती थी | जीत भी कैसे सकते थे ? आखिर हमारी टीम में कौन थे - विनोद धर की चौकड़ी के सदस्य - विनोद धर, भोला गिरी, चन्दन दास और सुरेश बोपचे और वर्ग 'ड' के एकाध दो लड़के - दुर्गाराव , बलदेव आदि | और सुबह की टीम में ? एक से एक कद्दावर और छंटे हुए लड़के - हमीद, प्रमोद, बासत, जसवंत, कृष्णा रेड्डी , श्याम नारायण ! अगर कोई अपवाद था तो मुस्कुराते चेहरे वाला इक्कीस सड़क का अजय कौशल | वर्ना इन सब की कहानियां शाला प्रांगण के बाहर भी दूर दूर तक फैली थी | एक बार तो बासत रंदे से बर्फ घिसकर आइसक्रीम बनाने वाले के ठेले से पूरी शरबत की बोतल उठाकर भाग गया था | कबड्डी का मैच जीतना एक बात थी | लेकिन उसके बाद जो विजयोल्लास होता था उससे हम सब जल भुन जाते थे | अब हम तो दर्शक थे, भला खिलाड़ियों पर क्या बीतती होगी - जरा कल्पना करके देखिये | </div></div><div>हर हार के बाद हम बीते समय के दोपहर की पाली के महान खिलाडियों को याद करते - कुंजीलाल , बृंदा , उदय | एक बार मेरे मुंह से निकल गया ,"यार, वो यदि फेल होकर यहीं रहते तो ..|" और कक्षा "ड" के शरद निगम ने मुझे झिड़क दिया," किसी के फेल होने की दुआएं क्यों करते हो यार?" ये मैं नहीं मेरी खीज बोल रही थी जो हर हार के बाद वही दृश्य देखकर बड़ी - और बड़ी हो गयी थी | </div><div><br /></div><div>दूसरा प्रमुख कारण था, लड़कियों से छेड़छाड़ | प्रातः पाली वाले अपनी कक्षा की लड़कियों के साथ जो कुछ करें, उससे हमें कोई सरोकार नहीं था | पर उनकी मजाल थी कि दोपहर के पाली की लड़कियों पर एक जुमला भी कस दें | ज्वालामुखी के रूप में चन्दन फट पड़ता था | </div><div><br /></div><div>ये मैंने क्या कह दिया ? आप भी सोच रहे होंगे, हमारी उम्र ही क्या रही होगी उस समय ?आठ साल ? नौ साल? या दस साल? वक्त से पहले बड़े हो गए थे ? मेरे हुजूर, अभी आगे तो पढ़िए | </div><div>---------------</div><div><br /></div><div><div>"माचिस की खाली डिब्बी? कितनी लगेगी ? " चन्दन ने मुझसे पूछा | </div><div>मैंने मन ही मन गणना की और कहा, "सात"}</div><div>"चाभी छाप या घोडा छाप ?" चन्दन ने दूसरा सवाल दागा | </div><div>"दोनों चल सकती है | बस, आकार समान होना चाहिए | "</div><div><br /></div><div>वैसे यही सवाल थोड़ी देर पहले प्रमोद मिश्रा ने पूछे थे | चन्दन मेरा दूसरा ग्राहक था | </div><div><br /></div><div>ग्राहक ? हाँ अब दिल को बहलाने के लिए कुछ तो सोचना पड़ेगा | </div><div><br /></div><div>बात तीसरी कक्षा की है || हुआ ये था कि कालकर बहन जी ने कोई "मॉडल" बना कर लाने को कहा था | बस, कह दिया, न तो परिभाषित किया और न ही कोई विवरण दिया | कारण यही था कि उन्हें पता था, वे किनके आगे बीन बजा रही हैं | कोई फायदा तो होने वाला नहीं, क्योंकि कोई कुछ करेगा नहीं | उनका मतलब वैज्ञानिक 'मॉडल ' से था, जिसे शायद सिविक सेण्टर के बाल मेला की प्रदर्शनी में रखा जा सके | उन दिनों घर में एक पत्रिका आती थी - धर्मयुग | उसके किसी अंक के बाल जगत के कोने में माचिस के खाली डब्बों से कुत्ते के 'मॉडल' बनाने का विवरण था | </div></div><div><br /></div><div><div>क्या क्या नहीं किया मैंने | माचिस के जिन डिब्बों में तीलियाँ थी, उनसे वे तीलिया निकालकर दूसरे भरे माचिस के डब्बों में ठूंसा | मुन्ना की मां से खाली माचिस मांग कर लाया | माचिस के डिब्बों से ढांचा बन जाने के बाद घुटना पेपर के सफ़ेद भाग को चिपकाकर , डॉट पेन से उसकी आँखें बनाई , फिर लाल झिल्ली कागज़ से लपलपाती जीभ बनाई |</div><div><br /></div><div>जब मैंने उसे पूरे आत्मविश्वास के साथ कालकर बहनजी की मेज पर रखा तब चेहरे से यही टपक रहा था - हाँ, हम भी कुछ कर सकते हैं | कालकर बहनजी ने उसे उलटा-पलटा कर देखा और वापिस करते हुए कहा,"अच्छा है |"</div><div><br /></div><div>बैरंग वापस ...| भला 'मॉडेल ' का अर्थ और क्या होता है ?"</div><div><br /></div><div>"तू ऐसा मेरे लिए बना देगा?" प्रमोद मिश्रा ने पूछा | </div><div><br /></div><div>दिल को थोड़ी सांत्वना मिली - कहीं से तो कोई प्रोत्साहन आया | </div><div>"हाँ , जरूर | तू माचिस के खाली डब्बे ले आ |"</div><div>"तू मुझे सीखा देगा ?" वह उम्र ही वैसी थी, जब दूसरों से काम करवाने की अपेक्षा स्वतः सीखने की ललक ज्यादा थी | प्रमोद मिश्रा का यह प्रश्न स्वाभाविक था | </div><div>"ठीक है | पूरी छुट्टी के बाद तू मेरे घर आ जाना |"</div><div><br /></div><div>प्रमोद मिश्रा मेरे घर आया और घर की सीढ़ियों पर बैठकर मैंने उसे बनाना सिखाया | </div><div><br /></div><div>मगर चन्दन का हिसाब-किताब ही दूसरा था ,"पूरी छुट्टी के बात तू मेरे साथ मेरे घर चलेगा | समझे?"</div><div><br /></div><div>इन शब्दों में अनुग्रह, अनुदेश और धौंस - सब कुछ समाहित था | </div><div>-------------------------</div></div><div><br /></div><div><div>पूरी छुट्टी के बाद मैं दौड़ भागकर घर गया | आनन् फानन में शाला की पेटी एक कोने में फेंकी, माँ के सामने हाजिरी लगाईं और चन्दन के साथ हो लिए | चल पड़े तो चलते ही जा रहे थे | अयप्पा मंदिर पार किया, पूछताछ दफ्तर के बगल से निकले | सत्रह सड़क के बाद 'अबे नू ' ( एवेन्यू - पार मार्ग ) तक पहुँच गए | उसके आगे ज़िन्दगी में पहली बार मैंने कदम रखा था | टीन के छत वाले घरों की कतार बड़ी तिलस्मयी लग रही थी | ऐसे ही एक घर पर पहुँच कर चन्दन ने दरवाजा खटखटाया | </div><div><br /></div><div>"अरे विजय सिंह |" चन्दन के भाई दीपक ने दरवाजा खोलते ही कहा | </div><div><br /></div><div>उनका नाम तो शाला क्रमांक आठ के सब लोग जानते थे , पर उन्हें मेरे नाम का पता कैसे चला ? संभव है, चन्दन ने पूर्व सूचना दे रखी हो | लेकिन इससे ज्यादा बड़ी बात ये थी कि उनकी आवाज़ को क्या हुआ ?</div><div><br /></div><div>जैसे कि उन दिनों हुआ करते थे | परिवार या आवश्यकताएं बड़ी थी और घर छोटे होते थे | फलतः समझदार लोग आगे पीछे दाएं बांये - एकाध दो कमरे बना लेते थे | चन्दन के घर में भी वैसे ही एक कमरा सामने बना था , जिसमें हम लोग बैठे | वो माचिस की डिबिया लेकर आया | पर अब उसकी आवाज़ को क्या हो गया ? उसकी आवाज़ भी बहुत धीमे हो गयी | क्या मुझे भी धीमे ही बोलना चाहिए ?</div></div><div><br /></div><div><div>हुआ कुछ वैसा ही | </div><div><br /></div><div>"इसको उल्टा घुसा |" मैंने सामान्य आवाज़ में कहा | चन्दन ने तुरंत आवाज़ धीमे करने का इशारा किया | </div><div><br /></div><div>मैंने चन्दन को एक बार बनाकर दिखाया और फिर सब डिब्बे अलग करके उससे जोड़ने को कहा | तब तक रात काफी हो गयी थी | </div><div><br /></div><div>"चल तुझे छोड़कर आता हूँ | रास्ते में कुत्ते बहुत हैं - असली कुत्ते | "</div><div><br /></div><div>"पूछताछ दफ्तर तक छोड़ दे | फिर मैं चले जाऊंगा |" अब मैं भी जल्दी निकल जाने की फ़िराक में था | </div></div><div><br /></div><div><div>"चक्कर क्या है यार ?" ट्यूबलर शेड की अँधेरी सड़कों में चन्दन मेरे आगे आगे चल कर यह सुनिश्चित कर रहा था कि कोई कुत्ता अँधेरे में तो नहीं बैठा है | 'अबे नू ' के आते ही सड़क की बत्तियां दिखने लगी और हम अब समानांतर चलने लगे | </div><div><br /></div><div>"कैसा चक्कर?" चन्दन ने पूछा | </div><div><br /></div><div>"घर में तुम लोग इतना धीमे क्यों बोल रहे थे ?"</div><div><br /></div><div>"बाबा की रात की ड्यूटी है |" चन्दन बोला ,"उनका कहना है, मैं आठ घंटे भट्टियों की आवाज़ में रहता हूँ | घर में मुझे शांति से सोने दो |"</div><div>-------------</div></div><div><br /></div><div><div>आधी छुट्टी और खेल के पीरियड में फर्क ये होता था कि आधी छुट्टी के वक्त पूरी शाला बाहर होती थी , जबकि खेल के पीरियड में एक या दो वर्ग के लोग ही बाहर होते थे | बाकी काम हम वही करते थे - जो मन चाहे | अगर शिक्षिकाओं की बात मानते तो 'रूमाल चोर' खेलते रहते , जैसे वर्ग 'ड' की आज्ञाकारिणी लड़कियां इस वक्त खेल रही थी | या फिर दौड़ भाग वाले खेल खेलते और फिर बेतरतीब इधर उधर बैठ जाते | या तो विनोद धर कोई 'फोक' सुनाता और हम लोग इस तलाश में कुत्ते की तरह कान लगाकर सुनते कि कोई मौका भर मिले और हम उसका 'फोक' पकड़ कर उलटा लटका दें | या सूर्य प्रकाश किसी तेलुगू चंदामामा के नए अंक की कोई कहानी सुना रहा होता | तेलुगू चंदामामा हिंदी की चंदामामा से एक महीने आगे चलती थी | इसलिए धारावाहिक 'विचित्र जुड़वां' या 'वीर हनुमान' में अगले महीने क्या होने वाला है - यह जिज्ञासा वही शांत करता | </div><div><br /></div><div>या तो मैं किसी बाल पॉकेट बुक्स की कहानी सुना रहा होता| जैसे इस वक्त सुना रहा था ,"राक्षस ने वह हड्डी राजकुमारी को देते हुए कहा ," ये हड्डी किसी आदमी के सर के ऊपर तीन बार घुमा देना | वह चूहा बन जायेगा |"</div><div>कहानी अभी अपने चरम उत्कर्ष पर ही पहुंची थी कि विनोद धर बोल पड़ा ,"और फिर जब राक्षस सो जाता होगा तो राजकुमारी वह हड्डी राक्षस के सर के ऊपर घुमा देती होगी |" आगे कहने के लिए कुछ बचा ही नहीं था | कहानी के रहस्य का ही कचूमर निकल गया | </div></div><div><br /></div><div>अब भोला गिरी ने फिल्म "मधुमति" की कहानी शुरू की जो उसके पिताजी एक दिन पहले जबरदस्ती पकड़कर ले गए थे | ठीक है, उसके पिताजी के दिनों में वह 'सुपर डूपर हिट' रही होगी पर भोला गिरी के लिए वह किसी उत्पीड़न से कम नहीं था | यह बात भी उतनी ही सही है कि परिहास भी उत्पीड़न के पश्चात् ही उत्पन्न होता है | वह फिल्म की व्याख्या कर रहा था और हम हँस-हँस कर लोटपोट हो रहे थे | </div><div><br /></div><div>तो जो वर्ग 'ड' को आज्ञाकारिणी बालाएं, जो अभी घेरा बनाकर रुमालचोर खेल रही थी, उनके लिए जरूर आधी छुट्टी और खेल के पीरियड में फर्क था | आधी छुट्टी के समय वे अपने वर्ग के उन सहपाठियों पर नज़र रखती थीं जो तार के बाहर जाते थे | शाह बहनजी आधी छुट्टी के बाद ऐसे लड़कों की पूजा करती थी | </div><div><br /></div><div><div>कभी कभी खेल के पीरियड में हम लोग जूते की कतार लगाकर पाला बना लेते और कबड्डी खेलते | छुआ छुई तो सदाबहार खेल था | लट्टू या गेंद लाना तब वर्जित था | यानी संसाधन के अभाव में भी क्रियाकलापों की कोई कमी नहीं थी | </div><div><br /></div><div>पूरे तीसरी और चौथी के शुरुवाती महीने मेंतब तक यही सब चलते रहा जब तक पटल पर दिलीप का आगमन नहीं हो गया | उसके बाद सब कुछ बदल गया - हमारे लिए भी और उन आज्ञाकारिणी लड़कियों के लिए भी | </div></div><div>---------</div><div><br /></div><div>इसे 'आह' कहें या नज़र (शायद कालकर बहनजी की ) कि विनोद धर , भोला गिरी , चन्दन दास और सुरेश बोपचे व वह चौगुट जो तीसरी के अंत तक इतना सुदृढ़ लगता था कि उनके बीच से हवा भी नहीं पार हो सकती थी, चौथी के अंत तक तिनके की तरह बिखर गया | </div><div><br /></div><div><div> एक ही साल में एक नहीं, दो दो बड़े बड़े कहर टूटे | मानों वे भगवान् ने उन चौगुटों को तोड़ने के लिए ही भेजे हों </div><div><br /></div><div>वैसे पहले कहर का नाम दिलीप था | </div></div><div>---------------</div><div><br /></div><div><div>इन तीन सालों में हमारी कक्षा के छात्र इस कदर घुलमिल गए थे कि जब भी कोई नवांगतुक आता तो उसे भी अपने रंग में रँग डालते | यकीन नहीं आये तो सुबोध जोशी या राजीव जावले (जो आज इस संसार में नहीं है) पूछ लेते | </div><div><br /></div><div>फिर भी कुछ नयी प्रविष्ठियां ऐसी हुई कि उन्होंने हमें ही अपने रंग में रँगना शुरू किया | कुछ इस तरह कि एक तरह से न केवल तीन सालों की कार्यशैली बदली, बल्कि कई बार हम आत्म मंथन पर भी विवश हो गए | </div><div><br /></div><div>याद है, वो "समय से पहले बड़े होने" वाला जुमला ? कुछ नहीं था उसमें - कुछ भी नहीं | अगर चौगुटे के सदस्य या कुछ इक्के दुक्के और को छोड़ दें तो बाकि लड़के तो लड़कियों से बात से कतराते थे | न जाने वो क्या सोच ले ? न जाने वो किससे शिकायत कर दे | यह वह समय था जब फ़िल्में देखना बुरा समझा जाता था क्योंकि फ़िल्में बुरी बातें सिखाती थी | </div><div><br /></div><div>और उन्हीं फिल्मों के परदे से उतरकर सीधे कक्षा चौथी 'स' में अवतरित हुआ था दिलीप | </div></div><div><br /></div><div>नहीं, वह हमारे दायरे में शामिल नहीं हुआ | बल्कि उसने खुद अपना दायरा बनाना शुरू किया | आधी छुट्टी और खेल के पीरियड में जब हम खेल कूद या अपनी संगोष्ठी में संलग्न रहते थे, तो दिलीप मिमिक्री करता था | जाहिर है, मिमिक्री ने लोगों का ध्यान अपनी ओर ज्यादा आकर्षित किया | अब तक जो भी हम इन खाली समय में करते थे, वो लोगों को बेमानी लगने लगा | उसकी मिमिक्री से मंत्रमुग्ध होकर 'हा', 'हा' , 'ही', 'ही' करने वाले लोगों की संख्या बढ़ने लगी | हमारा दायरा संकुचित होते गया और उसका दायरा बढ़ते गया | एक दिन ऐसा हुआ कि राजीव सिंह खुद हमारे बीच से उठकर उस वृत्त की परिधि का हिस्सा बन गया, जिसके केंद्र पर खड़ा दिलीप हीरोइनों की नक़ल कर रहा था और लोग ठहाके लगा रहे थे | </div><div><br /></div><div>यहाँ तक सब कुछ ठीक था | अगर कुछ जलने की बू आ रही है तो ये आपके रसोईघर से ही होगी | </div><div><br /></div><div><div>लेकिन वह मिमिक्री किनके लिए करता था ? क्या उनके लिए जो उसके इर्द गिर्द बैठकर ठहाके लगा रहे होते थे ? उसका लक्ष्य थोड़ी और दूर था | और दूर .. . | जहाँ कक्षा चौथी 'ड' की लड़कियां बैठती थीं | इस बात से भले शुरू में लोग थोड़े अनभिज्ञ रहे हों, पर भोला गिरी ने इसे तत्काल भांप लिया | और ये कुछ ही दिनों की बात थी, जब भोला गिरी उसका शागिर्द बन गया |</div><div><br /></div><div>भांपने वालों में चन्दन का दूसरा नंबर था | वह समझ गया कि दिलीप के लक्ष्य क्या हैं | वो 'वक्त से पहले बड़े होने' वाली बात को एक स्तर क्या, कई स्तर आगे ले जाना चाहता है | </div><div><br /></div><div>पता शायद उन लड़कियों को भी चल गया था | इसलिए आधी छुट्टी और खेल के पीरियड के समय वे निरंतर अपना स्थान बदल लेती थी | पर वे जहाँ भी जाती, दिलीप उसके आसपास अपनी मिमिक्री लेकर पहुँच जाता | </div></div><div><br /></div><div>अब दिलीप एक साइकिल लेकर आता था जो वो रामलीला मैदान में ही कहीं छुपकर रखता था | आधी छुट्टी और खेल के पीरियड पर वो साइकिल लेकर आ जाता | ये देखकर काफी दुःख हुआ कि उसके डंडे पर बैठकर भोला गिरी पैदल मारता था | वो भोला गिरी , जिसकी खुद की अपनी पहचान थी | जो कक्षा एक से हमारा अच्छा दोस्त था | चौगुटे का सदस्य होना तो एक बात थी , वो बोरा दौड़ और कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी था | वो भोला गिरी बांका भोलागिरी अब मजनूं नहीं, मजनूं का चेला बन गया था | वो दिलीप का सहभागी नहीं, अनुचर हो गया था | </div><div><br /></div><div><div>और चन्दन का गुस्सा एक दिन फटना ही था | भोला गिरी के रातोंरात आमूलचूल परिवर्तन से उससे रहा नहीं गया | वैसे भी वह देख रहा था कि हमारा दायरा निरंतर संकुचित होते जा रहा है | और दिलीप और भोला गिरी जो कर रहे थे, उसे सामान्य भाषा में 'लफूटगीरी' कहा जाता था | </div><div><br /></div><div>आधी छुट्टी के समय उसने सीधे दिलीप का कॉलर पकड़ लिया, "तू साले लड़कों को बिगाड़ रहा है ... बर्बाद कर रहा है |"</div></div><div><br /></div><div><div>अप्रत्याशित मसाला मशीन की कुटाई शुरू होते देख भोला गिरी, विनोद धर और सुरेश बोपचे बीच बचाव में कूद पड़े ,"चन्दन सुन तो भाई | सुन तो यार | जान दे यार | छोड़ दे भाई | चन्दन... चन्दन... |" चन्दन के बाएं हाथ का घूँसा सीधे दिलीप का जबड़ा हिला देता अगर भोला गिरी बीच में नहीं आ जाता | अगले ही क्षण भोला गिरी अपना कंधा सहला रहा था | देवदास की तरह भोली सूरत बना कर दिलीप हक्का बक्का लग रहा था | किसी तरह विनोद धर, सुरेश बोपचे और भोला गिरी चन्दन को खींचते हुए एक ओर ले गए | </div></div><div><br /></div><div><div>और दिलीप भी कोई कच्चा खिलाडी नहीं था | फिर भी अगले चौबीस घंटों में जो हुआ, उसने इस मामले को एक नया मोड़ दे दिया | </div><div>-------</div><div><br /></div><div>अब आपको भी लगता होगा, बहनजी लोग भला खेल के पीरियड में करते क्या थे ? जवाब यही है कि कुछ नहीं करते थे | स्टाफ कक्ष में बैठकर चाय पीते थे , गप मारते थे | अगर कुछ करते तो यह असंभव था कि दिलीप मैदान में वर्ग 'ड' की लड़कियों का पीछा कर रहा होता और शिक्षिकाओं को पता ही नहीं लगता | शाह बहनजी जरूर कभी कभार मैदान में आती थी | एक बार उन्होंने रुमाल चोर खेलती लड़कियों ये हिदायत दी कि रुमाल में एक कंकड़ बांच दिया जाए ताकि जब चोर को रुमाल पड़े तो उसे भी पता चले | कभी कभार वह लड़कों को जबरदस्ती 'खो खो' खिलवाने पहुँच जाती थी | पर वह उसी दिन होता था जिस दिन गलती से सूरज पश्चिम से निकलता था | कालकर बहनजी की उपस्थिति तो नहीं के बराबर थी | </div></div><div><br /></div><div><div>अगले दिन खेल के पीरियड में कालकर बहनजी ने राजीव सिंह को अपने पास बुला लिया और उसे लेकर बड़ी बहनजी के कमरे की ओर ले गयी | थोड़ी देर बाद राजीव सिंह बाहर आया आवाज दी, "चन्दन तुझे बहनजी बुला रही है |"</div><div><br /></div><div> दौड़ते भागते चन्दन राजीव सिंह के साथ गायब हो गया | मन में एक खटका हुआ- कहीं कल की घटना तो बहनजी को पता नहीं चल गयी ? और एक न्यायाधीश की तरह वो मामले का निपटारा करेगी? यानी दिलीप को भी बुलाया जायेगा और उसका पक्ष भी सुना जायेगा | पर दिलीप तो कहीं दिखाई नहीं दे रहा था | </div><div><br /></div><div>तो चन्दन अंदर एक न्यायाधीश के पास बैठा था और अचानक साइकिल पर सवार मैदान में दूसरा न्यायधीश अवतरित हुआ | मैदान पर आते ही उस दंडाधिकारी ने अपना फैसला सूना दिया,"कहाँ है बे वो तोपचन्द ?"</div></div><div><br /></div><div><div>बात कहने के लहजे से ये एक फैसला ही था | दिलीप का भाई था वह | जिस 'तोपचन्द' को सज़ा देने के लिए वो खोज रहा था वह बड़ी बहनजी के दफ्तर में शायद दूसरे न्यायाधीश के पास बैठा था | दिलीप के भाई को समझाने का जिम्मा भोला गिरी ने अपने ले लिया | सुरेश बोपचे भोला गिरी का साथ देने लग गया | वे इस कोशिश में लग गए कि चन्दन दिल का साफ़ है और वो किसी ग़लतफ़हमी का शिकार हो गया है | सारे लड़के दिलीप के भाई की सायकल घेरकर खड़े हो गए | पिछले चक्के के पास सूर्यप्रकाश झुका और उसने धीरे से वाल्ट्युब का ढक्कन ढीला कर दिया | जब तक दिलीप का भाई मैदान में दहाड़ते रहा, सायकल के हैंडल पर हाथ मारकर धमकाते रहा, पिछले चक्के की हवा धीरे धीरे निकलती रही | अचानक दिलीप के मुंह से निकला ,"कालकर बहनजी |"</div><div><br /></div><div>कालकर बहनजी के साथ राजीव सिंह और चन्दन दास मुस्कुराते हुए आ रहे थे | </div><div><br /></div><div>अगर नीयत साफ़ होती तो दोनों न्यायाधीश आपस में बैठकर निपटारा कर लेते | लेकिन वहां वस्तुस्थिति यह बनी कि दिलीप के भाई ने खिसक जाने में ही भलाई समझी | उसका पिछले टायर ज़मीन से चिपक गया था | आनन्-फानन में दिलीप के भाई ने रामलीला मैदान की ओर बिना हवा वाली खड़-खड़ करती सायकल दौड़ा दी | </div><div><br /></div><div>चन्दन के हाथ में वह वस्तु चमक रही थी | वह थी - रशियन फुटबॉल जो मैंने आज तक केवल सर्कस में ही देखी थी | </div><div>---------------</div></div><div><br /></div><div><div><i>आज तक मैंने रशियन फुटबॉल को ठोकर नहीं मारी थी | कैसी होती थी रशियन फुटबॉल ? </i></div><div><i>[1] रशियन फ़ुटबॉल गोल होती थी -पूर्णतः गोल | क्या कहा ? फ़ुटबॉल तो गोल ही होती है | अगर आपने कभी उन दिनों की सामान्य फ़ुटबॉल देखी हो तो आपको याद होगा कि सामान्य फ़ुटबॉल में ब्लेडर था जिसमें पम्प से हवा भरते थे | इसकी वजह से उस हिस्से के कारण , जहाँ ब्लेडर की टोंटी होती थी और उसे तस्मों से बाँधा जाता था, फुटबॉल पूर्णतः गोल नहीं होती थी | वैसे छर्रे वाले ब्लेडर भी आ गए थे, जिनमें टोंटी की जगह एक छोटा सा छेद होता था, फिर भी उसे घुसांने और निकालने के लिए जगह तो चाहिए थी | जबकि रशियन फुटबॉल में ब्लेडर ही नहीं होता था | अगर होता भी था, तो हमें दिखाई नहीं देता था | जब ब्लेडर ही नहीं था तो टोंटी कहाँ से होती ? और जब टोंटी नहीं थी तो तस्मों के कारण फुटबॉल बेडौल नहीं होती थी | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>[2] रशियन फ़ुटबॉल चमड़े के मज़बूत छोटे छोटे टुकड़ों से मिलकर बनती थी जिनका रंग क्रमानुसार एक काला एक सफ़ेद होता था | यूँ समझें कि एक शतरंज की बिसात को गोलाकार रूप दे दिया गया हो | इससे उसकी खूबसूरती बढ़ जाती थी | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>[3] रशियन फुटबॉल में हवा भरने का सुराख़ खोजने उसे पूरा घुमाना पड़ता था, कई बार तो एक से अधिक बार | तब कहीं जाकर छोटा सा सुराख़ नज़र आता था | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i>[4] रशियनफुटबॉल बहुत जल्दी पंक्चर नहीं होती थी | नुकीले पत्थरों, कांटेदार झड़ियों और नाखून वाले पांवों की ठोकर का कोई असर नहीं पड़ता था | जबकि सामान्य फुटबॉल का ब्लेडर पंक्चर हो जाए तो उसे आटा चक्की के पास की साइकिल की दुकान में ले जाकर पंक्चर ठीक कराना पड़ता था | अगर बाहर के चमड़े के खोल में कोई दरार आ जाये तो आम के पेड़ के नीच बैठे राजा मोची से सिलवाना पड़ता था | वो सब नखरे रशियन फुटबॉल के नहीं थे | </i></div></div><div><i><br /></i></div><div><div> रशियन फुटबॉल के आने से एक स्पष्ट फायदा यह हुआ कि जो भीड़ दिग्भ्रमित होकर खेल के मैदान को छोड़कर दिलीप के पीछे पीछे जा रही थी, वह रशियन फुटबॉल से सम्मोहित होकर वापिस खेल के मैदान में लौट आयी | खेलकूद से बेहतर मनोरंजन भला कुछ और होता है ? जो नहीं आया था , वो भोला गिरी था | वह अब भी दिलीप का साया बनकर उसके साथ साथ वर्ग 'ड' की लड़कियों के चक्कर काटता | उन दोनों को लोगों ने उनके हाल पर छोड़ दिया था, क्योंकि उनकी महत्ता नगण्य हो गयी थी | </div><div><br /></div><div>सवाल यह जरूर उठ सकता है की दिलीप वर्ग 'ड' की लड़कियों के ही चक्कर क्यों काटता है ? जवाब में यही कहा जा सकता है कि ये नज़र का मामला है | जिसे जो पसंद आ जाये | यह सही है कि वर्ग 'डी' की लड़कियां हमारी कक्षा की लड़कियों से ज्यादा खूबसूरत तो थी पर बढ़ी चढ़ी और नकचढ़ी भी थीं | जबकि हमारी कक्षा की लड़कियाँ सामान्य थी | किरण थोड़ी चंचल जरूर थी, पर उससे ज्यादा कुछ नहीं | पर दिलीप और भोला गिरी की ये हरकतें निहायत खतरनाक भी थीं | दिलीप तो खैर, नया नया ही आया था , पर क्या भोला गिरी को आभास नहीं था कि वे दीवानगी की बीन किनके आगे बजा रहे हैं? एक दिन तो भोला गिरी ने हद ही कर दी | पूरी छुट्टी के बाद लड़कियों का पीछा करते-करते वह अपनी कमीज उतारने लगा | लड़कियां डर कर वापिस स्कूल की और भागी | पीछे पीछे शाह बहनजी आ रही थी | अब डर कर भागने की बारी दिलीप और भोला गिरी की थी | </div><div><br /></div><div>फुटबॉल के मैदान में चन्दन का एकछत्र राज्य था | वह खिलाड़ी भी था, प्रशिक्षक भी और रेफरी भी | बस, मुंह में सीटी नहीं थी | वह जो कहता, नियम वही होते | न कहने का कोई कारण नहीं था, क्योंकि सबसे अच्छा खिलाड़ी और जानकार भी वही था | खेल के मैदान में अब किस्से कहानियां चलती तो वह भी फुटबॉल से ही सम्बंधित होती | पता चल गया कि कलकत्ता में 'मोहन बागान', 'ईस्ट बंगाल' और 'मोहम्डन स्पोर्टिंग' फुटबॉल के बड़े क्लब हैं और अब गोवा में 'डेम्पको स्पोर्ट्स क्लब' और 'चर्चिल ब्रदर्स' धूम मचा रहे हैं | ये सब जानकारियाँ अक्सर मनमोहन लेकर आता था, क्योंकि उसके घर 'नवभारत टाइम्स' (नवभारत नहीं) समाचार पत्र आता था | </div><div><br /></div><div>लेकिन फुटबॉल के लोमहर्षक किस्से तो चन्दन ही सुनाया करता था | पेले की कहानियां सुनाते समय उसकी आँखों में विशेष चमक आ जाती थी | </div><div><br /></div><div>"पेले बड़ा चालू (चालाक) खिलाडी था |" खेल का पीरियड ख़तम होने की घंटी बजी थी | फुटबॉल वापिस करके हम अभी कक्षा में घुसे ही थे | कालकर बहनजी के आने में थोड़ा समय था | </div><div><br /></div><div><div>मैं मनमोहन, सुबोध, सूर्य , सुरेश - सब ध्यानमग्न होकर उसकी बात सुन रहे थे | किसी को अपनी डेस्क की ओर बढ़ने की जल्दी नहीं थी | </div><div><br /></div><div>"एक बार चार खिलाडी उसको गार्ड करके खड़े थे ", चन्दन ने बात आगे बढ़ाई ,"ऊपर से बॉल आयी | पहले पेले उछला तो उसको गार्ड करने वाले सारे खिलाडी भी उछले | फिर पेले ने धीरे से उछल कर बॉल गोल में 'हेड' कर दी |"</div><div><br /></div><div><div>मेरे पल्ले खुछ ख़ास नहीं पड़ा ,"कैसे? कैसे? जब पेले ऊपर उछला तो सारे खिलाडी भी उछले ?" </div><div>"हाँ उछले |" चन्दन बोला | </div><div>"तब तक बॉल कहाँ थी ? कितने दूर थी ?" मैं अभी भी दूरी और समय का गणित बिठा रहा था | </div><div>"हवा में थी |" चन्दन ने जवाब दिया | </div><div>"पेले उछला तो सब उछले | फिर सब ज़मीन पर आ गए |" मैं अब भी गुत्थी ही सुलझा रहा था | </div><div>चन्दन को मुझ पर तरस आया ,"सुरेश, इधर आ बे | विनोद धर, वहीँ खड़े रह | सूर्य, तू पीछे आ जा | समझ कि मैं पेले हूँ |"</div><div><br /></div><div>चन्दन ने अपनी बिसात बिछाई और दरवाजे की तरफ इशारा करते हुए बोला ,"समझो उधर से बॉल आ रही है .. |"</div><div><br /></div><div>उधर से बॉल तो नहीं आयी, लेकिन हाथ में हरे बेशरम की मोटी सी सोंटी लेकर शाह बहनजी ने प्रवेश किया | हम सब अपने - अपने बेंचों की ओर लपके | </div><div><br /></div><div>पर शाह बहनजी ने वह सब अनदेखा किया | उन्हें किसी और की तलाश थी | </div></div><div><br /></div><div><div>"दिलीप !" शाह बहनजी छड़ी घुमाते-घुमाते बोली ,"इधर आ |"</div><div>थोड़ा सहमा सा, थोड़ा भौंचक्का ( हो सकता है ये उसका जीवंत अभिनय था ) , दिलीप शाह बहनजी के पास पहुंचा | जैसे ही वह बेशरम की सोंटी के दायरे में पहुंचा, शाह बहनजी ने ताबड़तोड़ प्रहार प्रारम्भ किया | </div><div><br /></div><div>सड़ाक ....... सड़ाक ....... सड़ाक ....... !!!</div><div><br /></div><div>हम सब सन्न | किस अपराध की सज़ा मिल रही है ? जो वह कर रहा था, वह तो कई दिनों से जारी था | कोई न कोई अकस्मात कारण तो रहा होगा ? </div><div><br /></div><div>तड़ाक ..... तड़ाक ..... तड़ाक ..... !!!</div><div><br /></div><div>शाह बहनजी के मुंह से बीच बीच में अस्पष्ट से शब्द निकल रहे थे, "लड़कियों के बीच नाच रहा था | बेशरम ...|"</div></div><div><br /></div><div>सांय .... सांय .... सड़ ... फड़.... रटाक ..... !!! </div><div><br /></div><div><div>इससे तो बेहतर था कि उस दिन चन्दन से हुई भिड़ंत को वह थोड़ी गंभीरता से लेता | सब सन्न रह गए थे | कालकर बहनजी भी दरवाजे पर ठिठकी खड़ी थी | उसके पीछे मैंने वर्ग 'ड' की चुगलखोर लड़कियों को झांकते हुए देखा था | बेशरम की डंडी तो अंधी थी और परवश थी | दिलीप के किन अंगों को चोट लग रही है , कहाँ चोट लग रही है, कैसी चोट लग रही है, उसे कोई परवाह नहीं थी | छड़ी टूट कर आधी हो गयी तो आधी छड़ी से शाह बहनजी ने पीटना जारी रखा, जब तक छड़ी उनके हाथ से न छूट गयी | </div><div><br /></div><div>मुझे अंदेशा था, अगला नंबर भोला गिरी का है जो सहमा सा बैठा था | पर तब उसके भगवान के रूप में कालकर बहनजी, जो अब तक दरवाजे पर ठिठकी थी, ने कक्षा में प्रवेश किया | कालकर बहनजी के आगमन से मानो शाह बहनजी की तन्द्रा भांग हुई और वे तेज़ क़दमों से बाहर चले गयीं | </div><div><br /></div><div>वह विषय ही शायद कुछ ऐसा था कि इस घटना पर कालकर बहनजी ने एक शब्द भी टिप्पणी नहीं की | वे चक हाथ में लिए श्यामपट की ओर बढ़ गयीं मानो कुछ हुआ ही ना हो | </div></div><div>-------------</div><div><br /></div><div><div>तो दिलीप था, पहला कहर था, जिसके कारण भोला गिरी चौगड्डे से टूटकर अलग हो गया | दूसरे तूफान ने न केवल चौगड्डे को तोड़ डाला, बल्कि कक्षा की ही चूलें हिला डाली | कई लोगों पर उस घटना ने दूरगामी प्रभाव डाला | </div><div>पूरे प्रकरण के सम्बन्ध में आप "चोरी में साझेदारी" में विस्तार से पढ़ चुके हैं | चन्दन का बाल -बाल जाना संयोग कम और दैवयोग ज्यादा था |</div><div><br /></div><div> पीतल के घंटे पर काठ के हथौड़े से प्रहार करके जब चपरासी ने आधी छुट्टी की घंटी बजाई, चन्दन अपने घर की ओऱ रवाना हो गया | उसके घर पूजा थी - माता ने ही उसे बुला लिया था और उसके दामन में बदनामी के छींटे नहीं लगे | कालकर बहनजी ने तो मान ही लिया था, "अगर चन्दन होता तो वह भी शामिल होता |"</div><div><br /></div><div>अपनी तरफ से चन्दन ने चौगड्डे को बचाने के प्रयास भी किये | दिलीप से सीधे तकरार का कारण कक्षा एक से पुराने सहपाठी भोला गिरी को वापिस लाना था | </div><div><br /></div><div>पर भोला गिरी अब अलग राह पर काफी दूर निकल गया था | </div></div><div>----------------</div><div><br /></div><div><div>यह मेरी आदत सी बन गयी थी कि पूरी छुट्टी के बाद मैं बड़ी बहनजी के दफ्तर और पानी की बरसो से सूखी पड़ी बड़ी टंकी के बीच की संकरी जगह से गुजरता था | आँखें ज़मीन पर तिकी होती थी | एक दिन चन्दन ने मुझे देख लिया | </div><div><br /></div><div>"क्या खोज रहा है बे ?" उसने पूछा | </div><div>"कुछ नहीं यार |" </div><div><br /></div><div>पर चन्दन कहाँ आसानी से छोड़ने वाला था | उसने वादा किया कि वह किसी को नहीं बताएगा | </div><div>"डाक टिकट .. . |"</div><div>"डाक टिकट? स्टैम्प ?" </div><div><br /></div><div>डाक टिकट जमा करने का शौक मुझे मनमोहन के भाई रमेश ने लगाया था | घर में जो चिट्ठियां आती थी, उनमें वही एक ही तरह के टिकट लगे रहते थे | वही वीणा वाले , शेर, हिरण या नटराज की मूर्ति वाले | </div><div><br /></div><div>मैंने बाबूजी से पूछा, "कॉलेज में आने वाली चिट्ठियों के लिफाफों का क्या करते हैं ?"</div><div>उनका जवाब था, "कूड़े का और क्या करेंगे?"</div><div>"तो क्या आप डाक टिकट फाड़कर ला सकते हैं ?"</div></div><div><br /></div><div><div>उस दिन से बाबूजी लिफाफे से डाक टिकट वाला हिस्सा मेरे लिए फाड़कर लाने लगे | मैंने कह्सूस किया , कॉलेज में पंजीकृत पत्र काफी आते हैं | शायद कुछ पार्सल भी आते होंगे क्योकि कुछ टिकटों की कीमत पत्रों के हिसाब से कुछ ज्यादा ही थी | </div><div><br /></div><div>अब मेरी तृष्णा बढ़ी | अचानक ये विचार मेरे मन में कौंधा कि पत्र तो शाला में भी आते होंगे | बड़ी बहनजी भी लिफाफा फाड़कर फेंकती ही होगी | उनके दफ्तर में एक ही तो खिड़की है | मैं उस रास्ते से नियमित रूप से गुजरने लगा | एक बार वीणा वाली टिकट लगा लिफाफा क्या मिला , दफ्तर और टंकी के बीच की संकरी जगह मेरे घर वापिस लौटने के रास्ते में शामिल हो गयी | हालांकि यह मैं काफी सावधानी से करता था | किसी को पता चले तो लोग हँसेंगे, जैसे आप अभी हँस रहे हैं | </div></div><div><br /></div><div><div>चन्दन ने मेरी बातें धैर्यपूर्वक सुनी | फिर उसके मुंह से निकला,"पहले क्यों नहीं बोला बे ?"</div><div>"क्या?"</div><div>"कि ये तू फालतू के काम करता है - टिकट, विकट | खैर, मैं तेरे लिए स्टैम्प लेकर आता हूँ |"</div><div>"तू कहाँ से लाएगा ?" मैंने पूछा | </div><div>शायद चन्दन ने इसे अपना अपमान माना,"अबे, मेरे घर भी चिट्ठी आती है |"</div><div>"पर कोई, अगर ... | रहने दे यार |" </div><div>"क्या रहने दे? कौन क्या बोलेगा ? और कोई बोलेगा भी तो ... तूने मुझे कुत्ता बनाकर दिया था ना ?"</div><div><br /></div><div>उन दिनों बचपन की दोस्ती में अहसान-वहसान जैसा कुछ नहीं होता था | हम एक दूसरे की मदद बिना कोई अपेक्षा किये करते थे और भूल जाते थे | दोनों को ख़ुशी होती थी और हमारी दोस्ती और सुदृढ़ हो जाती थी | माचिस के कुत्ते वाली घटना को तो मैं भूल ही चुका था | </div></div><div>-----------</div><div><div>पहले पहल चन्दन को समझाना पड़ा,"देख भाई, स्टैम्प काटते समय ये कोशिश अरे कि किनारा न कटे | बेहतर है कि तू काट मत, उतना हिस्सा फाड़ के ले आ |"</div><div>"तो तू स्टैम्प निकालेगा कैसे ?"</div><div>"पानी में डालकर |" मैंने कहा ," मैं कर लूंगा |"</div><div><br /></div><div>तीसरे दिन वो एक अजीब सा टिकट लाया | उसमें 'भारत' कहीं नहीं लिखा था - बांग्ला में कुछ लिखा था | "ये क्या लिखा है चन्दन?" </div><div>ये लिखा है - बांग्ला देश |"</div><div>"क्या?" मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा | </div><div><br /></div><div>अब तक रमेश विदेशी डाक टिकटों की काफी डींग हांका करता था | मनमोहन के पिताजी सोवियत संघ में प्रशिक्षण लेकर आये थे | इसलिए उनके पास ढेरों विदेशी टिकट थे | इसके आलावा रमेश ने बताया था कि वोरा ने भी उसे कुछ विदेशी टिकट दिए थे | </div><div><br /></div><div>चन्दन ने मुझे पहला विदेशी टिकट दिया था | आखिर बांग्लादेश विदेश ही तो है | </div><div><br /></div><div>"तेरे पास ये स्टैम्प आया कहाँ से ?" मैंने पूछा | </div><div><br /></div><div>"मेरे अंकल बांग्लादेश में रहते हैं | "</div></div><div><br /></div><div><div>"तो तेरे पास उनकी और भी चिट्ठी होगी ?"</div><div><br /></div><div>अगले दिन चन्दन किसी पोस्टकार्ड का कोना काट कर ले आया | जैसे हमारे यहाँ के पोस्टकार्ड में टिकट की जगह शेर की तस्वीर होती है, वैसे ही बांग्लादेश के पास्टकार्ड का कोना था वह, जिसमें कुछ हरे नारियल जैसे फल की तस्वीर थी | कीमत , नाम वगैरह सब कुछ लिखा जरूर था पर वह डाक टिकट नहीं था और मेरे किसी काम का नहीं था | </div><div><br /></div><div>"चन्दन ये स्टैम्प नहीं है यार |" मैंने कहा,"वो जो पोस्टकार्ड अंतर्देशीय या लिफाफे में पहले से छाप के आता है, वो स्टैम्प नहीं होते |"</div></div><div><br /></div><div><div>चन्दन थोड़ा सा मायूस हो गया ,"यार, बांग्लादेश वाले अंकल तो पोस्ट कार्ड ही ज्यादा भेजते हैं | लिफाफा तो कभी कभी आता है |"</div><div>"शायद उनके पास करने को ज्यादा बात न हो |"</div><div>"मैं उनको बोलूं कि लिफाफे में चिट्ठी भेजें और ऊपर से स्टैम्प लगा के ?"</div><div>------------------------</div></div><div><br /></div><div>पांचवी कक्षा में ढेर सारे नए छात्र आ गए | इतने सारे कि कक्षा में बेंचों की संख्या कम हो गयी | </div><div>दो बहनजी के लड़के - राजीव सिंह और प्रेम पराग पाठक तो पहले से ही थे | तीसरे बहनजी का लड़का, राम का भाई भारत ( देखें - 'च' से चन्दन - भाग १ ) जो तीन वर्षों से बिछुड़ गया था, एक बार फिर पांचवीं में वापिस आया | हद तो तब हो गयी, जब कालकर बहनजी खुद अपने लड़के संदीप कालकर को कक्षा में ले आयीं | एक तरह से कक्षा के लिए ये एक उपलब्धि थी क्योंकि संदीप कालकर क्रिकेट का बेहतरीन बल्लेबाज़ था | दो और क्रिकेट के धुआंधार खिलाडी, फुर्तीला रवींद्र मुंशी और सत्यव्रत भी हमारी कक्षा में आ धमके | सत्यव्रत को कौन नहीं जानता था | अपने बड़े भाई सुब्रत के नक़्शे-कदम पर चल कर मुक्केबाजी और फुटबॉल में वह भी नाम कमा रहा था | </div><div><br /></div><div><div> फुटबॉल, यानी चन्दन के एकछत्र राज्य को खतरा ? आगे देखेंगे | </div><div><br /></div><div>इन चारों के सिवाय और भी नवागंतुक थे | कक्षा में एक सरदार की कमी थी | सो महेंद्र सिंह आ गया | रमेश मिश्रा और विजय पशीने भी इस सूची में थे | एक आशंका सी थी कि कहीं दूसरा दिलीप न आ जाये और ऐसा कोई भी नहीं आया | तो क्या कोई लड़की भी आयी ?</div><div>.... ....... ...... ?/?</div><div>पहले आधे साल नहीं, पर जब .. ... </div><div>-------------------------------------</div></div><div><br /></div><div><div>यह तय था कि अगर हम सुबह की पाली वालों से क्रिकेट का मैच लेते तो उनकी जबरदस्त मिट्टी पलीद करते | सूर्य प्रकाश के रूप में एक बेहतरीन हरफनमौला हमारे पास पहले ही था और अब सत्यव्रत, रवींद्र मुंशी और संदीप कालकर और जुड़ गए थे | सुबह की पाली में ले देकर एक अजय कौशल था और उसे ये चारों मिलकर सम्हाल सकते थे | लेकिन शाला में तो कबड्डी ही होती थी और वही होनी थी | हमने कालकर बहनजी से कहा भी कि अगर क्रिकेट नहीं तो फुटबॉल मैच ही करवा लिया जाए | आखिर फुटबॉल सुबह वाले भी तो खेलते हैं | उनका जवाब सुनकर आप हँसेंगे| उन दिनों इन्हें "विदेशी खेल" माना जाता था | तो बात कबड्डी से आगे बढ़ी ही नहीं | </div><div><br /></div><div> पहले कहा, कबड्डी में अब तक ये चौगड्डे के सदस्य , विनोद धर, भोला गिरी , चन्दन दास और सुरेश बोपचे स्थायी सदस्य थे | अब पहले कहर का मारा भोला गिरी , उसकी कबड्डी में कोई दिलचस्पी नहीं रह गयी थी | दूसरे कहर के बाद विनोद धर भी पूर्णतः निष्क्रिय हो गया था | कहने को तो सत्यव्रत और रवींद्र मुंशी उनकी जगह भर सकते थे , लेकिन चन्दन अभी भी लगा हुआ था | उसने विनोद धर को धर दबोचा,"तू क्यों नहीं खेलेगा बे ?"</div></div><div><br /></div><div><div>"नहीं चन्दन यार | मुझे छोड़ दो |"</div><div>"तू खेलेगा | साले ए क मुक्का दूँगा| |दाँत तोड़कर हाथ में दे दूंगा | तू खेलेगा |"</div></div><div><br /></div><div><div>विनोद धर के चेहरे पर क्षीण मुस्कान की रेखा दिखी | वह जानता था कि ये चन्दन का गुस्सा नहीं, प्यार बोल रहा है | लेकिन उसने अपने आप को मानो हर तरह की गतिविधियों से अलग कर लिया था | </div><div><br /></div><div>चन्दन यहीं नहीं रुका | उसने कालकर बहनजी से बातें की | कालकर बहनजी ने दोनों को बुलाकर कुछ समझाया | </div><div><br /></div><div>यह देखकर ख़ुशी हुई कि विनोद धर भी मैदान में उतर पड़ा | उसका पुराना जोश साफ़ झलक रहा था | एक आक्रामक के रूप में रवींद्र मुंशी और फिर सत्यव्रत की उपस्थिति ने टीम में नयी जान फूँक दी | एक बार जब विनोद धर 'आक्रामक' के रूप में गया तो दूसरे पाले की 'क्रासिंग' रेखा तक पहुँचते-पहुँचते वह सब ओर से घिर गया | हमीद, प्रमोद, जसवंत , श्याम नारायण से घिरा वह कहीं दिखाई भी नहीं दे रहा था | अचानक वह वह हवा में उछला और घेरा तोड़कर तीन तीन खिलाडियों को साथ लिए उसने मध्य रेखा छू ही दी | </div><div><br /></div><div> सब कुछ करने के बावजूद हम वो मैच हार ही गए | हार का अंतर जरूर काफी कम हो गया था | फिर भी ये मलाल हमेशा रहा कि सुबह की पाली से हम कभी भी जीत नहीं पाए | </div><div>------------</div></div><div>पांचवी कक्षा मेरे लिए सबसे मुश्किल साल था | परिवार पर मुसीबतों का आसमान फट पड़ा था | लेकिन साल के उत्तरार्ध में कक्षा के अंदर ही मुझे मानसिक तनाव के दौर से गुजरना पड़ा ( देखें राजीव सिंह की 'शोले') | समझ में नहीं आता था कि आज कौन सा दोस्त मेरा साथ छोड़ देगा | </div><div><div><br /></div><div>मेरे अब गिनती के ही मित्र बचे थे | रोज मैं जेब में हाथ डालकर मित्र निकालकर गिनती करता | चन्दन किस तरफ है - मेरी कुछ समझ में नहीं आता | राजीव सिंह जैसे पुराने और अच्छे मित्र से भला कोई कैसे दूर हो सकता है ?</div><div>--------------</div></div><div><br /></div><div><div>"जागो मोहन प्यारे, जागो ,</div><div>जागो नवयुग चूमे नैन तिहारे |"</div><div><br /></div><div>चन्दन पूरे मूड में था | उसके बाद मानो उस पर मिरमी का दौरा पद गया हो | पूरे जोश से वह हर दिशा में हाथ पांव फेंकता हुआ चिल्लाया ,"जागो रे जागो जग जाइया जागी | जागो रे जागो जग जाइया जागी | जागो रे जागो रे जागो रे | जागो रे जागो रे जागो रे |"</div><div><br /></div><div>सारी कक्षा हँस- हँस के लोटपोट गयी थी | पर ना जाने क्यों मुझे लगा, चन्दन सिर्फ मुझे ही हँसाने की कोशिश कर रहा था | बार-बार उसकी आँखें मुझ पर ठहर जाती थी | उसे लगा कि शायद वह अपने प्रयास में असफल रहा तो उसने एक बार और कोशिश की | </div></div><div><br /></div><div><div>"सत्यव्रत के घर में सब बॉक्सर हैं | उसका बड़ा भाई बॉक्सर, उसका छोटा भाई बॉक्सर, उसके पिताजी बॉक्सर, उसकी माँ बॉक्सर |"</div><div><br /></div><div>सारी कक्षा ठहाके लगा रही थी | सत्यव्रत की हँसी रुक नहीं रही थी | हालाँकि सत्यव्रत के आने के बाद चन्दन का फुटबॉल के मैदान में प्रभाव बँट गया था, लेकिन दोनों के बीच में कडुवाहट कभी देखने को नहीं मिली | चन्दन ने फिर मेरी ओर देखा | फिर वह आगे बढ़ गया -"उसका कुत्ता भी बॉक्सर - भौं-भौं-भौं.... | "</div></div><div><br /></div><div>-------------------</div><div><br /></div><div>खेलकूद के नाम पर शाला नंबर में क्या-क्या प्रतियोगिताएं होती थी - बोरा दौड़ , त्रिटंगी दौड़, कुर्सी दौड़, जलेबी दौड़, चम्मच दौड़ और लड़कियों के लिए विशेष सुई धागा दौड़ और रस्सी दौड़ | एक सामान्य सी सौ मीटर की दौड़ भी होती थी - जिसमें करीब-करीब सभी बच्चे दौड़ते थे और दो चार टकराकर और फिसलकर गिरते भी थे | फिर भी वर्ग 'ड' की विमला लड़कियों में और दुर्गाराव लड़कों में बेहतरीन धावक थे | हमारी कक्षा से चन्दन और सुरेश बोपचे त्रिटंगी दौड़ में स्थायी खिलाडी थे | भोला गिरी और विनोद धर - निष्क्रिय होने के पूर्व बोरा दौड़ के जादूगर थे </div><div><br /></div><div>अफ़सोस कि ये सब प्रतिस्पर्धाएं ओलम्पिक में नहीं होती थी | आपातकाल का वक्त था और ओलम्पिक का साल | जिला युवा कांग्रेस को न जाने क्या सूझी कि प्राथमिक शाला के बच्चों के अंतर-शालेय ओलम्पिक कराये जाएँ | कम से कम ट्रेक एन्ड फील्ड तो कराये जा सकते है | अब भिलाई के प्राथमिक शालाओं में - गोला, भाला, चक्का भला कहाँ से आता | ये निश्चय किया गया कि हमारी शाला से उन धावकों की टीम तो भेजी जा सकती है, जिसमें संसाधनों की जरुरत नहीं पड़ती - जैसे १०० मीटर दौड़ , ऊँची कूदम लम्बी कूद | एक-एक खिलाडी ही तो भेजना है, हर स्पर्धा के लिए | </div><div><br /></div><div>जब कालकर बहनजी ने प्रतियोगिता के चयन के लिए नाम मांगे तो मैंने ऊँची कूद के लिए नाम दे दिया | कालकर बहनजी को भी थोड़ा अचम्भा जरूर हुआ पर उन्होंने बिना कुछ पूछे नाम लिख लिया | कौन कितने पानी में है, ये तो शाला की टीम का चयन करने वाले निकाल ही लेंगे | </div><div><br /></div><div><div>चन्दन ने पूछ ही लिया, "ऊँची कूद ? पहले कभी किया है ?"</div><div>"हाँ |" </div><div>"कब से ?" उसे विश्वास दिलाना थोड़ा मुश्किल था | </div><div>"दूसरी से|"</div><div><br /></div><div>इक्कीस और बाइस सड़क के बीच एक खेल का मैदान था | ठीक वैसे ही जैसे १७ और १८ के बीच, १९ और २० के बीच और २३ और २४ के बीच | १९७१-७२ में लोग ज्यादा हो गए और खेलों का कोई महत्त्व नहीं रह गया था | इसलिए भिलाई इस्पात संयंत्र ने उन खेल के मैदानों में गृह निर्माण का फैसला किया |</div></div><div><br /></div><div>बाइस सड़क के अंत में, जहाँ बड़ी पुलिया थी, उसके आगे और सात वृक्ष मार्ग के बीच में खाली जगह बहुत थी | वहाँ बेतरतीब गड्ढे , धतूरे की झाड़ियां और कुछ पगडंडियां थी | पुलिया के पास ही बबलू भैया ने एक चौकोर गड्ढा खोदना शुरू किया | बाकी सब लड़कों ने हाथ लगाया | जब अनिल के पिताजी की नज़र पड़ी तो उन्होंने उन ट्रक वालों से , जो घर बनाने के लिए रेत के ढेर इधर उधर लगाते थे, बातें करके थोड़ी थोड़ी रेत उस गड्ढे में डलवाई और वहां ऊँची कूद का अखाडा तैयार हुआ |वहां दो लड़के लट्टू की रस्सी पकड़ लेते और लोग एक एक करके आते और कूद लगाते | </div><div><br /></div><div>मुश्किल यही थी कि हम लोग टीम खेल में - हॉकी , क्रिकेट या फुटबॉल में ज्यादा रूचि लेते थे और उसके लिए रामलीला मैदान जाना पड़ता था जो उस अखाड़े के ठीक विपरीत दिशा , यानी शाला क्रमांक आठ की ओर था |नतीजा यह हुआ कि ऊँची कूद का वह अखाडा उजाड़ हो गया | इस बीच दो वर्ष और गुजर गए | अब रामलीला मैदान में खेल के मैदान के पास कन्या शाला बन रही थी तो ईंट और रेत के ढेर इधर उधर लगे रहते थे | </div><div><br /></div><div> एक दिन हॉकी के खेल के बाद हॉकी घर में रख कर अँधेरे में मैं, मनमोहन, बबलू भैया और रमेश फिर रामलीला मैदान लौटे | एक रेत के ढेर के पास बबलू भैया ने मुझे और मनमोहन को लट्टू की एक रस्सी पकड़ने को कहा | पहले बबलू भैया ने छलांग भरी | फिर रमेश ने | उसके बाद उन दोनों ने रस्सी पकड़ी और मुझे और मनमोहन से छलांग लगाने को कहा | </div><div><br /></div><div>समय के साथ साथ मेरा आत्मविश्वास बढ़ने लगा | अब मैं करीब-करीब उतनी छलांग लगाने लगा जितनी कि रमेश लगाता था | दुर्भाग्य से कुछ दिनों के बाद में बबलू और रमेश का झगड़ा हो गया और ऊँची कूद का वह अभ्यास भी छूट गया | फिर मन में आत्मविश्वास तो था ही | </div><div><br /></div><div><div>जब मैंने चन्दन को ये वृत्तांत सुनाया तो वह उछल पड़ा ,"तब तो तू जसवंत को हरा देगा |"</div><div><br /></div><div>"कौन जसवंत ?" मैंने पूछा | </div></div><div><br /></div><div><div>"अरे, मेरे घर के पास रहता है | बहुत बड़ी-बड़ी फेंकता है | बहुत हवा भर गयी है साले में |" </div><div><br /></div><div>मुझे तो अपने प्रतिद्वंदियों का कुछ पता ही नहीं था |मुझे इतना पता था कि मैं क्या कर सकता हूँ | वो क्या कर सकता है - मुझे उसका कोई अंदाजा तो था नहीं | लेकिन पता नहीं, उसके मन में कहाँ से इतना विश्वास भर गया जो मेरे आत्मविश्वास से दस गुना ज्यादा बढ़ गया | मैंने कोई बढा -चढ़ाकर मनगढंत कहानी नहीं सुनाई थी | फिर चन्दन का यह भरोसा कहाँ से आ गया ?</div></div><div><br /></div><div><div>इतना ही नहीं, चन्दन ने मुझे हिदायत दी ,"कल तू स्कूल थोड़ा जल्दी आ जा |"</div><div><br /></div><div>ये मेरी समझ से परे था | दूसरे दिन जब मैं स्कूल पहुंचा तो चन्दन मानो मेरा ही इंतज़ार कर रहा था | सुबह वालों की छुट्टी हुई और सब चन्दन के अगल-बगल से से कुछ न कुछ उड़ाते जाने लगे \ आज चन्दन उनकी बातों को अनसुना कर रहा था | उसकी आँखें किसी को खोज रही थीं | अचानक उसने आवाज़ दी, "अबे, सरदार सुन |"</div><div>एक लंबा सा सांवला सिख मुस्कुराता हुआ हम लोगों के पास आ गया | अरे, ये तो वही कबड्डी वाला जसवंत है | चन्दन ने मेरा परिचय कुछ इस तरह दिया -</div><div>"इसको जानता है बे ?"</div><div>"हाँ, देखा है |" जसवंत बेफिक्री से बोला | </div><div>"मेरी कक्षा का है | तेरे को लम्बी कूद में हरा देगा | समझा न ?"</div><div><br /></div><div> ये चल क्या रहा था ? जसवंत ने कुछ कहा नहीं | वह बस मुस्कुराये जा रहा था | अगर चन्दन उस पर किसी तरह का कोई दबाव बनाना चाहता था, तो उससे ज्यादा दबाव उसने मेरे ऊपर बना दिया था - उम्मीदों का दबाव, विश्वास का दबाव | उस प्रतिकार की भावना का दबाव जो हर कबड्डी मैच के बाद उसके हृदय में सुलगती थी | </div></div><div>-----------</div><div><br /></div><div><div>मैं तो समझता था , ऊँची कूद, लम्बी कूद जैसी स्पर्द्धा में गिने चुने लोग ही होंगे | एक दिन आधी छुट्टी के समय पांचवी 'ड' का रवि , शैलेन्द्र वाजपेयी को बोल रहा था ,"अपना तोरण लाल क्या ऊँची कूद कूदता है यार |" उसने अपने कंधे तक हाथ लाकर कहा , इतना इतना कूद जाता है | सुबह वालों को तो आराम से हरा देगा |"</div><div><br /></div><div>चलो | एक प्रतिद्वंदी का तो पता चला | हालाँकि रवि जो ऊंचाई का दावा कर रहा था, मुझे कुछ ज्यादा लगा | रवि खुद लम्बा था | </div><div><br /></div><div>मेरी शंका को शैलेंद्र वाजपेयी ने मुखरित किया ,"तू 'फोक' मार रहा है | इतना ऊँचा कोई कूद सकता है ?"</div></div><div><br /></div><div><div>और नतीजा यह हुआ कि तोरण लाल को खोज निकाला गया | वैसे स्कूल था ही कितना बड़ा और वर्ग 'ड' वाले तो वैसे भी तार के बाहर नहीं जाते थे | सामान्य सा मुस्कुराता हुआ चेहरा , माथे पर बीचों बीच अर्ध चंद्र के आकार में एक काट का निशान, जो लगता था, मानो प्राकृतिक तिलक लगा हो | ऊंचाई कोई बहुत ज्यादा नहीं थी | मुझसे थोड़ा सा ही लम्बा था | </div><div><br /></div><div>आनन् फानन में जितेंद्र गेट के पाद उगी झाड़ियों से एक डंडी तोड़कर ले आया | रवि उसे पकड़कर खड़े हो गया | लेकिन वहीँ रेत तो थी नहीं , हाँ, दूसरी और हरी घास जरूर थी | क्या उसे चोट का डर नहीं है ? तोरण लाल ने जूते उतारे | पानी के सूखे हुए नल के पास से वह तेज़ी से दौड़कर आया और हवा में उछला | ऊपर से गुजरते हुए डंडी से उसका पाँव छू गया | लेकिन उसके उस पार पहुँच कर वह गिरा नहीं, बल्कि लम्बा होकर लुढ़कते रहा | तो उसकी तकनीक इतनी सधी हुई थी कि उसे रेत की इतनी आवश्यकता नहीं थी | </div><div>"धत", 'फाउल' होने के कारण वह खुश नहीं हुआ,"एक कोशिश और करते हैं |"</div><div><br /></div></div><div>जसवंत का तो पता नहीं, लेकिन तोरण लाल की वह छलांग देखकर लगने लगा कि तोरण लाल से मैं जीत नहीं पाउँगा | पर यह सब चन्दन से कैसे कहा जाए ? मैंने उसे अप्रत्यक्ष रूप से समझाने की कोशिश की ,"चन्दन, दोपहर की पाली का कोई और जसवंत को हरा सकता है |"</div><div><br /></div><div>"चुप बे | गोले मत दे |" चन्दन ने झिड़क दिया , "तू जीतेगा |"</div><div>--------------</div><div><br /></div><div>स्पर्धा थी भी तो फरवरी के पहले सप्ताह में | ठण्ड के दिन ख़तम हुए | मौसम गर्मी में बदल रहा था और ऐसे में मुझे अजीब किस्म का जुकाम हुआ | वह भी स्पर्धा के एक दिन पहले | रात भर मैं सो नहीं पाया और ऐन स्पर्धा के दिन सुबह सुबह मैंने उलटी कर दी | एक बार तो मुझे लगा कि में स्पर्धा में हिस्सा ही न लूँ | क्या फायदा ? एक ही खिलाडी का चयन होना है और तोरण लाल निश्चित रूप से मुझसे बेहतर कूद सकता है | लेकिन चन्दन की उम्मीदों का बोझ कुछ इस कदर भारी था कि इस तरह पीछे हट जाना मुझे कायरता लगी | </div><div><br /></div><div>दोपहर को शाला जाने के पहले माँ ने मुझे बार्ली बनाकर दी | सुबह से वही मेरा आहार था | </div><div><br /></div><div>स्पर्धा दोपहर के दो बजे से होने वाली थी | पौने दो बजे ही कालकर बहनजी से कहकर मैं कक्षा से बाहर निकल गया | मेरे पीछे-पीछे चन्दन भी निकल आया | </div><div><br /></div><div><div>"तू स्वेटर क्यों पहना है बे ?" चन्दन ने पूछा | </div><div><br /></div><div>"मेरी तबीयत आज ठीक नहीं है यार |" मैंने कहा | </div><div><br /></div><div>"ठीक है | सब ठीक है | उसने मेरी बात को हवा में उदा दिया ,"चल स्वेटर मुझे दे दे |"</div></div><div><br /></div><div><div>शाला टीम में चयन के लिए धावकों की परीक्षा कहाँ ली जाए ? </div><div><br /></div><div>शाला के दक्षिणी छोर पर तालाब के चारों ओर पार्क बन गया था | उसके उत्तर पश्चिमी किनारे पर टेलीविजन का कक्ष था | जिसमें एक खिड़की थी, जो उस समय बंद थी | उस खिड़की के पीछे ही टेलीविजन रखा था | पास ही अमरीकी उपग्रह से आने वाले सिग्नल को पकड़ने के लिए एक बड़ा सा कटोरे के आकर का एक एंटीना लगा था | </div></div><div><br /></div><div>टेलीविजन कक्ष और पार्क के बीच खाली जगह में रेत का अम्बार लगाकर एक अस्थायी अखाडा बनाया गया था | अब वहां तक कैसे पहुंचा जाए ? शाला की दक्षिणी सीमा, जो पार्क की उत्तरी सीमा थी,उसमें ऊँच ऊँचे जालीदार तारों की एक बाड़ लगा दी गयी थी | वैसे पार्क के हर दिशा में एक एक दरवाजे थे और इसलिए उत्तर दिशा का द्वार हमारी शाला के परिसर में ही खुलता था | किन्तु बड़ी बहनजी को ये मंजूर नहीं था कि स्कूल के छात्र उस द्वार से होकर पार्क में जाएँ, इसलिए कांटेदार बाद लगाकर वह द्वार बंद कर दिया गया था | अब उस अखाड़े तक पहुँचने का एक ही रास्ता था कि पार्क के अयप्पा मंदिर वाले द्वार से घूम कर जाया जाये | </div><div><br /></div><div><div>मैं और चन्दन शाला के गेट से बाहर निकल ही रहे थे कि पीछे से तोरणलाल आ गया |</div><div> </div><div>"अरे विजय सिंह तुम ?" उसे भी आश्चर्य हुआ कि मैं कक्षा के बाहर कैसे घूम रहा हूँ | </div><div><br /></div><div>"जिसके लिए तुम जा रहे हो | ऊँची कूद |" मैंने कहा | </div><div><br /></div><div>चन्दन को उसका साथ होना पसंद नहीं आया | अयप्पा के पास के द्वार पर चन्दन को सामने से जसवंत आते दिखा और वह ठहर गया | तोरणलाल अंदर चले गया | </div><div><br /></div><div>"क्यों बे सरदार ? हारने आ गया ? देखना , आज ये तुझे बताएगा, ऊँची कूद क्या होती है ?" चन्दन बोला | जसवंत के सांवले चेहरे पर मुस्कान दौड़ गयी | </div><div><br /></div><div>मेरे तोरणलाल और जसवंत के सिवाय सुबह की पाली से दो प्रतियोगी और थे | </div><div><br /></div><div>निर्मलकर सर हाथ में कागज़ लिए खड़े थे | रेत के ढेर के पहले सुबह की पाली की दो बहनजी लट्टू की लम्बी सी रस्सी लिए खड़ी हो गयीं | निर्मलकर सर ने मापक टेप से ऊंचाई मापी और एक एक करके प्रतियोगियों को बुलाना प्रारम्भ किया </div><div>| </div><div>चन्दन एक और मेरा स्वेटर थामे खड़ा था | निर्मलकर सर ने जो स्तर लगाया था , मैं आश्वस्त था कि मैं उसे आसानी से पार कर जाऊंगा | मेरा नंबर दूसरा था , जसवंत का तीसरा और तोरणलाल का पांचवां | जब मेरा नंबर आया तो मैं चन्दन के चेहरे पर तनाव स्पष्ट देख रहा था | तेजी से दौड़कर लक्ष्य के पास मैंने छलांग लगाईं | जैसे ही लक्ष्य के उस पार पहुँच कर मैंने फिर चन्दन के चेहरे की और देखा, तो वह तनाव एक राहत में बदल गया था | </div></div><div><br /></div><div><div>अब जब सारे प्रतिस्पर्धियों ने पहला स्तर आसानी से पार कर लिया तो निर्मलकर सर ने लघुमार्ग अपनाने का निश्चय किया | उन्होंने बाधा का स्तर एकदम से काफी बढ़ा दिया | उतना, जितना अभ्यास के समय मनमोहन का बड़ा भाई रमेश कूदा करता था | नंबर एक प्रतिस्पर्धी उसे फांद नहीं पाया और रस्सी को साथ लिए ही रेत पर धराशयी हो गया | दूसरा नंबर मेरा था | निर्मलकर सर ने मापक टेप से माप कर पुनः स्तर का निर्धारण किया | मैंने दौड़ना शुरू किया और हताशालक्ष्य के पास पहुँच कर पूरी सामर्थ्य से छलांग लगाईं | रेत पर गिरने के बाद मैंने चन्दन का चेहरा देखा | उसके चेहरे पर अब निराशा स्पष्ट दिखाई दे रही थी | जब मैंने रस्सी की ओर देखा तो वह धीरे धीरे हिल रही थी | एक हताशा सी छा गयी | जसवंत ने वह लक्ष्य सफलतापूर्वक लाँघ लिया | उसके बाद का धावक भी बुरी तरह असफल रहा | सब से अंत में तोरणलाल ने भी वह स्तर लांघ लिया | </div><div><br /></div><div> हम तीनों असफल धावकों को एक एक मौका और दिया गया | </div><div><br /></div><div>पहले नंबर के धावक वही कहानी फिर दोहरा दी | रस्सी से उलझकर वह रेत के ढेर में जा गिरा | दूसरा नंबर मेरा था | मैंने पुनः एक बार पूरे जोश से ताकत लगाईं और मुड़कर मैंने पहले रस्सी की और देखा | वह स्थिर थी | </div><div><br /></div><div>ओह , मेरा ये प्रयास सफल रहा | फिर मैंने चन्दन की ओर देखा | उसके चेहरे पर निराशा भी नहीं थी और न ही कोई हर्ष था | असफल होने वाले तीसरे धावक ने दौड़ना शुरू किया पर वह बीच में ही रुक गया | फिर वह अपने प्रारंभिक बिंदु पर वापस गया | वह एक क्षण ठिठका और फिर अलग हट गया | अब मैदान में मैं, जसवंत और तोरणलाल बच गए थे | </div><div><br /></div><div>अगले चक्र में निर्मलकर सर ने लक्ष्य इतना ऊपर लगाया कि शायद बबलू भैया को भी उसे लांघने में मुश्किल होती | हुआ वही - दो बार कोशिश करके भी मैं लक्ष्य पार करने में असफल रहा , जबकि जसवंत और तोरणलाल पहले ही प्रयास में उसे पार गए | जब मैं दूसरी बार रेत पर गिरा, तो मैंने चन्दन की ओर देखा | पर चन्दन तो वहां था ही नहीं | वह मेरा स्वेटर लिए अयप्पा गेट की तरफ बढ़ रहा था | </div><div><br /></div><div>उसके विश्वास को ठेस पहुंची थी | उसके दिल के करीब की तस्वीरों पर खरोंच आयी थी | </div><div><br /></div><div><div>मैंने जल्दी जड़ी जूते पहने और उसकी ओर दौड़ा | </div><div>"चन्दन, चन्दन |" </div><div>वह रूककर मेरी ओर प्रश्नवाचक नज़रों से देखने लगा | </div><div>"आज ठीक से कर नहीं पाया यार |" मैंने कहा | फिर मैंने जो कहा, वह वस्तुस्थिति तो थी, पर मुझे लगा, जैसे मैं सफाई पेश कर रहा हूँ ,"आज तबीयत भी थोड़ी खराब थी |"</div><div>"चुप बे |" वह बोला और चुपचाप चलने लगा | </div><div><br /></div><div>मैं रूककर देखने लगा | अगले चक्र में निर्मलकर सर ने लक्ष्य का स्तर इतना ऊपर किया कि जसवंत और तोरणलाल दोनों ही लक्ष्य को पार नहीं कर पाए | अब उन्हें एक मौका और दिया जा रहा था | अगर इस बार भी दोनों असफल रहते तो लक्ष्य थोड़ा नीचे करके परखा जाता | दूसरी कोशिश में भी जसवंत नाकाम रहा | अब सारी नज़रें तोरणलाल पर टिकी थी | मैं धीरे धीरे चलते हुए बाहर से देख रहा था | अब मैं बीस सड़क के पास, टेलीविजन कक्ष के करीब करीब समानान्तर आ गया था | अगर थोड़ा और आगे बढ़ता तो कुछ भी नहीं देख पाता | मैं वहीँ रूककर देखने लगा | इस बार तोरणलाल ने जो छलांग लगाईं तो वह बिना छुए रस्सी के उस पार पहुँच गया | </div><div>मैं तेज़ी से चन्दन की और दौड़ा | मैंने मन ही मन निर्धारित कर लिया कि चन्दन यह समाचार किस रूप में देना है ?</div><div><br /></div><div>"चन्दन, जसवंत हार गया चन्दन |" </div><div><br /></div><div>चन्दन ने कुछ कहा नहीं, वह चुपचाप चलते रहा | </div><div><br /></div><div>उसके लिए किसी की हार ही नहीं , किसी की जीत भी महत्वपूर्ण थी | </div></div><div>----------------</div><div><br /></div><div>आखिरकार वह बोर्ड परीक्षा आ ही गयी , जिसका इंतज़ार था | कुल चार प्रश्नपत्र थे - भाषा (हिंदी ), गणित, भूगोल और विज्ञान| | एक दिन में सुबह और दोपहर एक एक पर्चे होते थे | इस तरह दो ही दिनों में चारों पर्चे निपट गए | मैं 'ट्रिपल टेस्ट' की पन्नी नंबर १५३ की तलाश में फिर जुट गया | आखिरी परचा होने के बाद भी मैं रुका रहा; हालाँकि मेरा पेपर बहुत पहले समाप्त हो गया था और मैं परचा जमा करके बाहर आ गया था (मैं उन लोगों में नहीं था जो परचा ख़तम करके भी समय समाप्त होने तक अंदर ही बैठे रहते थे |) | </div><div><br /></div><div><div>नुझे चन्दन का इंतज़ार था | जब वह बाहर आया तो मैंने उसे बताया कि मैं 'ट्रिपल टेस्ट' के पन्नी नंबर १५३ की खोज कर रहा हूँ | पहले तो उसे समझाना पड़ा, कि 'ट्रिपल टेस्ट' की १८० पन्नियों में से मुझे १७९ मिल चुकी है , पर १५३ अभी तक नहीं मिली | उसका वही जवाब था -"पहले क्यों नहीं कहा ?" </div><div><br /></div><div>"ठीक है |" वह बोला ,"देखता हूँ- घर के आस पास तेरे जैसा कोई पागल जमा करता हो तो|"</div><div><br /></div><div>कोशिश उसने भी की | कभी वह १६४ नंबर (गोदना) ले आता था तो कभी १६८ (भूमिगत रेल) | <br />| </div><div>"नहीं यार, मुझे १५३ नंबर चाहिए | गगनचुम्बी ईमारत |" मैंने कहा ,"तू इस कड़ी धूप में इतनी दूर से आता है |" </div><div>"१-५-३?"</div><div>"हाँ, १-५-३| दूसरा बिलकुल नहीं | बल्कि तेरे किसी दोस्त को और कोई नंबर चाहिए और वह अदला-बदली के लिए तैयार हो जाए तो मुझे बताना | मुझे चाहिए १-५-३|"</div></div><div><br /></div><div>और इसी बीच परिणाम का दिन आ गया | </div><div>-------------</div><div>परिणाम के दिन जो कुछ हुआ, समय ने कैसे पलटा खाया, ये आप "चोरी में हिस्सेदारी" और "राजीव सिंह की 'शोले'" में पढ़ ही चुके हैं | राजीव सिंह की रुलाई से सारा माहौल ग़मगीन हो गया था | </div><div><br /></div><div><div>अब अंग्रेजी वर्णमाला के नाम के हिसाब से कालकर बहनजी ने नाम पुकारना शुरू किया | प्रत्येक से वह एक-एक दो-दो मिनट बातें करतीं | लगता था, वक्त ठहर सा गया हो | </div><div><br /></div><div>उन्होंने चन्दन का नाम पुकारा और चन्दन तेजी से दौड़कर उनके पास पहुंचा | रिजल्ट देखते ही उसे मुख में मुस्कान आ गयी | किसी तरह जबरदस्ती अपनी आतंरिक ख़ुशी छुपकर एक आज्ञाकारी छात्र की तरह वो कालकर बहनजी की बातें सुनते रहा और सर हिलाता रहा | फिर वह परिणाम पत्रक लेकर उसे देखते हुए लौटा | बीच बीच में वो रूक जाता और फिर चल पड़ता | </div><div><br /></div><div>----------------------------------------</div></div><div><div>भिलाई विद्यालय में जाने के पूर्व एक नाटक और हुआ | सेक्टर २ के बच्चों के लिए शाला क्रमणक आठ के दरवाजे ही बंद थे | </div><div><br /></div><div>फिर जब दरवाजे खुले तो हमने सरपट दौड़ लगाईं (देखें राजीव सिंह की 'शोले'") | </div></div><div><br /></div><div><div>चन्दन ने जल्दबाजी की, उसको छठवीं वर्ग "अ" में जगह मिली | </div><div><br /></div><div>मैंने देर लगाईं | दाखिले की जो पर्ची मुझे थमाई गई उसमें छठवीं "ड" लिखा हुआ था | </div><div><br /></div><div>बाकी सब, जावले, सुबोध, सूर्य, मनमोहन - वर्ग 'स' में घुस गए क्योंकि सबने तकरीबन एक ही समय दाखिला लिया था | </div><div><br /></div><div>तो संयोग ऐसा कि चन्दन के साथ एक ही छत के नीचे अध्ययन या कार्य करने का अवसर फिर कभी मिल नहीं पाया | </div><div>--------</div><div>(क्रमशः )</div></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>काल - १९७१-७६ </div><div><br /></div><div>और देखें - </div><div><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2021/11/blog-post.html">'च' से चन्दन (भाग १ )</a></div><div><br /></div><div><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/09/blog-post.html">'च' से चन्दन (भाग ३ )</a></div><div><p><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2021/12/blog-post.html">चोरी में साझेदारी</a> </p><p><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/01/blog-post_23.html">राजीव सिंह की 'शोले '</a></p></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div style="font-style: italic;"><br /></div></div><div><i><br /></i></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div>Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-77938340051703081862021-12-22T23:51:00.058-08:002022-01-23T12:11:31.398-08:00चोरी में साझेदारी<div><i>यकीन मानिये, पाठशाला परिसर काफी बड़ा था - आधिकारिक और अनधिकृत - दोनों ही दृष्टिकोण से | </i></div><div><i>आधिकारिक रूप से तार का एक घेरा था | किसी ज़माने में कंक्रीट के उन छोटे स्तम्भों में तार ऊपर तक तने हुए थे जो उसे एक घेरे का रूप देते रहे होंगे | लेकिन हमने उन्हें हमेशा ज़मीन चूमते हो देखा था | यानी वो ज़मीन पर शाला परिसर का सीमांकन जरूर करती थीं , किन्तु सीमा का निर्धारण नहीं | पूर्व में रामलीला मैदान था और दक्षिण में एक तालाब, जिसके आगे बाज़ार था | उत्तर की सीमा, बिजली के ट्रांसफॉर्मर कक्ष तक फैली थी| यानी वे तार करीब करीब सड़क तीन को छूते थे | </i></div><div><i>'अनधिकृत' इसलिए, क्योंकि शाला के समय वैसे तो हमें तार के बाहर जाना मना था | लेकिन चना मुर्रा वाली बाई, खोमचे वाला दौलत और आइसक्रीम के दो तीन ठेले , रेवड़ी और मूंगफल्ली वाले तार के बाहर ही बैठे रहते थे और आधी छुट्टी में हमें आशा भरी नज़रों से देखते थे | आधी छुट्टी को इस नियम का उल्लंघन करने वालों की कमी नहीं थी | जैसे खेमचंद बिहारीलाल - जो अपनी अचूक निशानेबाजी का कमाल दिखाकर तालाब के किनारे के वृक्षों से हर्रा तोडकर लाता था | </i></div><div><i>तालाब के किनारे आम के पेड़ों पर लगे मौर छोटे छोटे अमियों में क्या तब्दील होते थे कि लड़कों के झुण्ड पत्थर हाथ में लेकर चांदमारी पर उतर आते थे | 'तार के बाहर' वाले नियम अब भी थे | राजीव सिंह सहित कक्षा के कप्तानों को हिदायत थी कि नियम का उल्लंघन करने वाले बच्चों की सूची बनाकर नियमित रूप से बड़ी बहनजी को दें | मुश्किल ये थी कि सब तो गलबहियाँ यार थे | चना मुर्रा , रबड़ी या मूंगफली बांट कर खाते थे | और इसके बावजूद कोई क़ानूनची कप्तान निकलता था तो पूरी छुट्टी के बाद उसे पीटकर हिसाब चुकता कर लिया जाता था | </i></div><div><i>शायद यही सब भांप कर शाह बहनजी ने चुगलखोर लड़कियों की फ़ौज बनाई थी | अब भला लड़कियों से कौन उलझे ? लेकिन 'स' वर्ग कप्तान , राजीव सिंह , प्यारा दोस्त था और आप लोगों को याद होगा ही कि ,उसकी वानर सेना का हनुमान कौन था ('च' से चन्दन - भाग १)? </i></div><div>------------</div><div><div>परिवर्तन प्रकृति का नियम है | लेकिन जो बदलाव हमारी आँखों के सामने होना शुरू हुआ, वह सखदायी हरगिज नहीं था | दक्षिणी सीमा पर पत्थर की एक दीवार बनने लगी | और बड़े बड़े पत्थरों के ढेर हमारे उन खेल के मैदान में लगने लगे, जहाँ हम रशियन फुटबॉल को ठोकरें मारा करते थे | उड़ती सी खबर आने लगी कि दक्षिणी छोर पर तालाब के आसपास एक उद्यान बनने वाला है | पूर्वी छोर पर आधिकारिक सीमा में कोई परिवर्तन तो नहीं था था, मगर हाँ - रामलीला मैदान की सीमा पर भी पत्थरों का ढेर स्पष्ट दिख रहा था | </div><div>उत्तरी छोर की सीमा , तो सड़क तीन तक फैली हुई थी , अचानक सिमटने लगी | हवा में यह समाचार उड़ने लगा कि वहाँ एक कन्या शाला बनने जा रही है | हमने आँखें मल मल कर देखा - कंक्रीट के वे छोटे खम्बे अब शाळा की खिड़कियों के बिलकुल पास आ गए थे | </div><div>और रोष, खिन्नता, क्रोध, विद्रोह की भावना की चिंगारी वहीँ से ही पनप उठी | </div></div><div>-----------------------</div><div><div>ऐसा नहीं था, लड़के ही नए आते थे | अब कक्षा में लीलावती और नसीम गयी तो एक नयी चंचल लड़की आयी - किरण | शैतानी में तो वो कलवंत से भी दो कदम आगे थी | उसके चेहरे पर हर समय शरारत भरी मुस्कान छायी रहती थी | जहाँ बाकी लड़कियां दो चोटी कर के आती थी (मुक्ता मिश्रा को छोड़कर, जिसकी एक बीमारी के कारण सारे बाल झाड़ गए थे और वह सर पर रुमाल बांधकर आती थी | अपवादस्वरूप कलावती के भी शुरू से छोटे छोटे बाल थे |), वहीँ किरण के बाल 'बॉब कट'नहीं, बल्कि 'बॉय कट' थे | अगर वो लड़का होती तो जरूर विनोद धर गैंग का पाँचवाँ सदस्य होती, पर लड़की होकर भी लड़कों के वो कान काटती थी | विनोद धर और उसके बीच जबरदस्त छींटाकशी होती थी | विनोद धर ने उसका नाम 'नाक चपटी ' रख छोड़ा था | </div><div>किरण काफी बेबाक थी | दो साल बाद, जब हम लोग पांचवीं में थे - तब एक बार सड़क छह में मेरी साइकिल पंचर हो गयी थी | मैं साइकिल लुढ़काते हुए पंचर दुकान खोज ही रहा था कि किसी ने मुझे आवाज़ दी ,"विजय सिंह" | मैंने देखा तो अपने घर के गेट पर किरण खड़ी मुस्कुरा रही थी | उसकी मां बरामदे में बैठी गेहूं साफ़ कर रही थी | आज ये बातें सामान्य सी लग सकती हैं, पर उन दिनों जब किसी लड़की से बात करना ही बहुत बड़ी बात मानी जाती थी - अपनी मां की नाक के नीचे किरण ने ही मुझे बताया कि साइकिल की दूकान कहाँ पर है | </div><div><br /></div><div>एक दिन विनोद धर को न जाने क्या सूझा , उसने किरण के जूते के अंदरूनी हिस्से में लगा सोल का लाइनर निकाल कर छुपा दिया | इस कारस्तानी को कार्यरूप देने के लिए विनोद धर कोई विशेष प्रयास नहीं करना पड़ा | आधी छुट्टी में हम लोग जूते उतार कर नंगे पाँव ही दौड़ भाग करते थे | छोटी मुरम वाले में मैदान में चमड़े के जूते पहन कर भाग दौड़ना , यानी चोट लगने को दावत देने जैसे था | फिसले तो घुटना फ़ूट जाता था, कोहनी छील जाती थी , कमीज भी फट जाती थी | </div><div><br /></div><div> किरण जब वापिस आयी तो परेशान | जूते का लाइनर कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी | परेशानी की वज़ह ये थी कि शरारत आख़िर किसने की ? उसे जो अंदेशा था, उसकी पुष्टि होने में ज्यादा समय नहीं लगा | आधी छुट्टी ख़तम होने के बाद विनोद धर कक्षा में आया , अपने डेस्क के खोके से उसने लाइनर निकाला और बुरा सा मुंह बनाकर जोर से चिल्लाया,"किसका है ये ?"</div><div><br /></div><div>दो उँगलियों से पकड़कर लाइनर हवा में कहराते हुए वो बोला ,"किसका है ये ? ले जाओ | बदबू मार रहा है | "</div><div><br /></div><div>फिर जानबूझकर किरण से पूछा ,"नाक चपटी , तेरा है ?"</div><div><br /></div><div>"नहीं तो |" किरण भी भोलेपन से बोली | </div><div><br /></div><div>"अपना जूता उतार के देख |" इंदिरा उसके बगल में बैठी थी | "इंदिरा, उसके जूते में देख तो |"</div><div><br /></div><div>अब किरण को हार मानने के सिवाय कोई चारा नहीं था | </div><div><br /></div><div>"ठीक है | मेरा है |" </div><div><br /></div><div>"तो आकर ले जा |" विनोद धर ने उसे डेस्क में पटक दिया | </div><div><br /></div><div>"तू दे दे |"</div><div><br /></div><div>"तू ले जा |"</div><div><br /></div><div>दो तीन बार ऐसी "तू -तू " के बाद अंततः विनोद धर ने कहा,"ठीक है | ले पकड |" उसने लाइनर इस तरह उछाल के फेंका मानो मरा हुआ चूहा फेंका हो | </div><div><br /></div><div>"तुझे कैसे मालूम ये मेरा था ?" किरण को अब भी संदेह था | </div><div><br /></div><div>"बाप रे बाप ! क्या जोर से बदबू मार रहा था |" विनोद धर ने उसकी शंका का निवारण किया | </div></div><div>---------------</div><div><br /></div><div><div>"बहनजी , मैं 'नॉन बी. एस. पी. हूँ |" ये मेरे लिए तिनके का सहारा था | लेकिन कालकर बहनजी ने बड़ी निष्ठुरता से वह तिनका छीन लिया ,"बी.सी.जी. का टीका बी. एस. पी.,, नॉन बी. एस. पी., ऑफिसर सब को लगेगा | चलो, लाइन में खड़े हो जाओ | "</div><div>मन मारकर मैं भी लाइन में खड़े हो गया | सबके चेहरे लटके हुए थे | बहन जी के पीछे पीछे वे चींटी की चाल से चलते हुए मानो मौत के मुंह की और बढ़ रहे थे | छुट्टी के घंटे के पास से होते हुए सब बहनजी के दफ्तर के पास पहुंचे वहीं पक्के घाघ की तरह मुंह में कपडे बांधे हुए कम्पाउण्डर और डॉक्टर खौलते हुए पानी के पास खड़े थे, जिसमें इंजेक्शन गरम हो रहे थे | </div><div>लड़कियों की कतार में सबसे आगे राजकुमारी खड़ी थी और लड़कों की कतार में सबसे आगे उदास मुंह वाला लम्बा विष्णु खड़ा था | उसके ठीक पीछे चन्दन था जो बार- बार विष्णु के पीछे से उबलती हुई देगची में झांककर देख रहा था | राजकुमारी ने अपनी बांह आगे की और आँख मूंद ली | अगले ही क्षण वो जोर से चिल्लाई | दहशत के वो बादल दस गुने ज्यादा घने हो गए | </div><div>विष्णु न चीखा, न चिल्लाया | लेकिन वो तो वैसे ही सुख-दुःख से ऊपर उठ चुका प्राणी था | </div><div> विनोद धर का चेहरा देखकर बगल में लड़कियों की लाइन में खड़ी किरण की मुस्कान और चौड़ी हो गयी | उन दोनों लाइनों में केवल किरण ही मुस्कुरा रही थी | </div><div>"डर लग रहा है ?" उसने विनोद धर से अनावश्यक प्रश्न पूछा | </div><div>"मुझे इंजेक्शन से हमेशा डर लगता है |" विनोद धर थूक निगलते हुए बोला | </div><div>अगला नंबर चन्दन का था | विष्णु के निर्विकार मुख से कुछ पता नहीं चला था | दर्द का परीक्षण चन्दन के अनुभव से ही होने वाला था | चन्दन दूसरी और देख रहा था | वह न चीखा , न चिल्लाया | डॉक्टर ने सुई निकालकर उसकी बांह में रूई का फोहा लगाया और कहा,"जाओ |"</div><div>"हो गया ?" चन्दन को सहसा विश्वास नहीं हुआ | </div><div>"हाँ | अब जाओ |" डॉक्टर ने उसके पीछे खड़े जीवन लाल की बांह थाम ली | </div><div>"देखा?" किरण बोली," नर्स लोग इतने आराम से इंजेक्शन लगाते हैं कि पता भी नहीं चलता |"</div><div>चन्दन बगल से गुजर रहा था | विनोद धर को देखकर रुक गया ,"डर क्यों रहा है बे ?"</div><div>"दर्द हुआ?" विनोद धर ने पूछा | चन्दन बोला ,"ऐसे लगा, जैसे लाल चींटी काटी हो |"</div></div><div>--------------</div><div><div><div> <i>घर में परछी में बाबूजी ने एक बोर्ड लगा रखा था , जिस पर लिखा था,"सदा सच बोलो |"बस, केवल एक ही वाक्य !</i></div><div><i><br /></i></div><div><i>भाषा , गणित भूगोल और विज्ञानं - ये तो मुख्य विषय थे | इसके अलावा दो दो विषय और पढ़ाये जाते थे - स्वास्थ्य शिक्षा और नीति शिक्षा | जहाँ स्वास्थ्य शिक्षा विद्यार्थियों के बाह्य स्वास्थ्य के लिए आवश्यक थी, वहीँ नीति शिक्षा आतंरिक स्वास्थ्य के लिए | नीति शिक्षा का मुख्यपृष्ठ कुछ ऐसा था - मानो दिवाली के दिन कोई चकरी चल रही हो | नीति शिक्षा कहानियों का संग्रह हुआ करती थी | तीसरी से लेकर आठवीं तक हमें नीति शिक्षा पढाई जाती थी | हर वर्ष विद्यार्थियों के बौद्धिक विकास के साथ साथ कहानियों की जटिलता भी बढ़ते जाती थी | </i></div><div><i><br /></i></div><div><i> किन्तु हर कहानी में एक प्रश्न जरूर होता था - इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?</i></div></div><div>--------------</div></div><div><br /></div><div>शाम ढल चुकी थी | अब प्राथमिक शाला नंबर आठ का परिसर उत्तरी सीमा पर सिकुड़ चुका था | उस खाली जगह नयी दीवारें, इमारत खड़ी हो रही थी | जगह जगह ईंट, रेत , गिट्टी , सीमेंट का ढेर लगा रहता था | लोहे की मोटी , पतली छड़ें भी इधर उधर पड़ी थी | हम लोग नंगे पॉव ही खेलने जाते थे, क्योंकि रामलीला मैदान छोटी मुरम वाला मैदान था | कई बार हमारे पैरों से लोहे की छड़ के छोटे छोटे, चार छह इंच के, टुकड़े टकराते जो कि किसी काम के नहीं थे | उलटे अगर उनका वो सिरा, जो छैनी से काटा जाता था , किसी के पांव में चुभ जाय तो भयंकर दुष्परिणाम हो सकते थे | </div><div>------------</div><div><div>आगे बढ़ने से पहले कुछ बातों पर एक बार फिर नज़र दौड़ा लें | </div><div><br /></div><div>पाठशाला में परिसर के बाहर चने मूंगफली, रबड़ी , खोमचे और आइसक्रीम वाले बैठे रहते थे | वो हमें आशा भरी नज़रों से देखते थे और हम इनके डब्बों को ललचाई नज़रों से | </div><div><br /></div><div>उत्तरी सीमा सिकुड़ गयी थी, क्योंकि एक भवन का निर्माण प्रारम्भ हो गया था | </div><div><br /></div><div>तार के बाहर जाना मना था | </div></div><div><br /></div><div><div>हालाँकि इस नियम का उल्लंघन काफी कुछ मान्य हो चूका था, क्योकि यह भारत था | फिर भी नियम तो नियम था | ये बात अलग है कि अच्छे बच्चे, जो अधिक की संख्या में थे, (जिनमें मैं भी एक था), इस नियम का अक्षरशः पालन करते थे | बाहर जाने की आवश्यकता ही क्या थी ? जेब में पैसे तो थे नहीं - किसी के भी जेब में नहीं | पांच दस पैसे भी बड़ी रकम थी हमारे लिए | कटे-फटे अमरुद, मक्खी भिनभिनाते हुए मुर्रे के लड्डू, पता नहीं, कहाँ के गंदे पानी से बनी आइसक्रीम खाकर बीमार पड़ने से तो अच्छा था कि उस और झाँका ही न जाए | </div><div><br /></div><div>बात ये थी कि अंगूर खट्टे थे | </div></div><div><br /></div><div><div>सबसे पहले सुरेश बोपचे ने इसका तोड़ खोजा | </div><div><br /></div><div>एक दिन वह बड़ी शांति से आइसक्रीम चूसते मिला | </div><div><br /></div><div>"आइसक्रीम ?" विनोद धर ने प्रश्नवाचक निगाहों से देखा | </div><div>"अबे, बहुत आसान है | आइसक्रीम वाले को लोहे की 'रॉड' का टुकड़ा दे दे | जितनी बड़ी रॉड होगी, उतनी आइसक्रीम |" </div><div>यानी उसके कहने का तात्पर्य यह था कि अगर एक बित्ता लोहे का टुकड़ा मिल जाए तो एक आइसक्रीम | </div></div><div><br /></div><div><div>फिर क्या था ? </div><div><br /></div><div>अगले दिन से चन्दन, विनोद धर , भोला गिरी और कुछ और लड़को का ये शगल बन गया | अब आधी छुट्टी में खेल कूद सब बंद | करीब करीब पूरी आधी छुट्टी में वे लोहे के टुकड़े की तलाश में परिसर की सीमा लाँघ कर उत्तरी छोर पर निकल जाते, जहाँ भवन निर्माण का कार्य चल रहा था | कहीं न कहीं से लोहे का कोई न कोई टुकड़ा तो मिल ही जाता था | भोला गिरी को जब आइसक्रीम मिलती तो वह जान बूझकर 'ड' कक्षा की लड़कियों को दिखा दिखाकर खाता - जो करना है, कर लो | हम आशिक हैं, हम नहीं सुधरेंगे | </div></div><div>जब इन्हें लोहे का अतिरिक्त टुकड़ा मिलता, तो वे अतिरिक्त आइसक्रीम सबसे पहले राजीव सिंह को देते | रिश्वत? अरे नहीं, उन दिनों रिश्वत वगैरह की बात दिमाग में आती ही कहाँ थी ? यह विशुद्ध प्रेम था | राजीव सिंह कक्षा में अव्वल आता था और वह सबसे लोकप्रिय था | घमंड उसे छू तक नहीं गया था | दूसरी आइसक्रीम लोग श्रद्धानुसार कभी मनमोहन, कभी अशोक या कभी मुझे भी दे देते थे | उसके बाद भी लोहे का कोई और टुकड़ा मिल जाता तो सूर्य, प्रमोद, विवेक, सुबोध - कितने सारे दोस्त थे | कई बार ऐसा भी होता कि एक ही लोहे का टुकड़ा मिलता और फिर लोग आइसक्रीम को नुकीले पत्थर से तोड़कर आपस में बाँट लेते | </div><div>==================</div><div><div>अजीब सा संयोग था कि उस दिन चन्दन आधी छुट्टी का घंटा बजते ही घर के लिए निकल गया | कारण मुझे याद नहीं , पर शायद उसके घर में कोई पूजा थी | अर्थात संयोग दैवयोग में बदल गया | </div><div><br /></div><div>वह तस्वीर भूले नहीं भूलती | उत्तर पश्चिमी सीमा, जहाँ शाला के भवन की आखिरी कक्षा, पांचवी 'स' का कमरा था, उसके बगल से विनोद धार की नाटी लेकिन बलिष्ट काया प्रगट हुई | चेहरे पर शरारत भरी कम, सफलता की द्योतक ज्यादा, चौड़ी मुस्कान, बेतरतीब बाल, कमीज के सामने का वह हिस्सा तो पोशाक के नियमानुसार पैंट में खोंसे होना चाहिए, आधा अंदर और आधा बाहर , दौड़ते हुए क़दमों में चपलता .. !</div><div><br /></div><div>... और दोनों हाथों से कार के स्टीयरिंग की तरह झूलाते हुए एक लोहे की छड़ साफ़ परिलक्षित हो रही थी | छड़ करीब करीब विनोद धर की कुल ऊंचाई के आधे से भी ज्यादा थी | यानी करीब साढ़े तीन फुट !!</div></div><div><br /></div><div><div>वह दृश्य विस्मयकारी, आल्हादकारी, लोमहर्षक होने के साथ साथ काफी भयावह भी था | इतनी बड़ी रॉड पर 'चोरी' का ठप्पा साफ़ साफ़ लगा था | लेकिन शाला परिसर के संकुचित होने का जो आक्रोश सबके दिल में समाया था, उसने उस गुनाह को मानो धो डाला | </div><div><br /></div><div>अब समस्या उस लोहे की छड़ को आइसक्रीम वाले तक ले जाने की थी जो पूर्वी छोर पर बैठे रहते थे | शाला भवन अंग्रेजी के 'एफ' अक्षर की तरह था | यदि भवन के पीछे से पूर्वी छोर पर जाएँ तो उन लोगों की नज़र अवश्य उस छड़ पर पड़ेगी, जहाँ से विनोद धर उसे उठा कर लाया था | यदि भवन के सामने जाएँ तो निश्चित रूप से आधी छुट्टी के समय बाहर खेलते कूदते शोर मचाते बच्चों के बीच से जाना पड़ेगा | छड़ इतनी बड़ी थी कि उसे सूर्य की तरह छिपाया नहीं जा सकता था | ना केवल बच्चों का समूह कौतहालवश पीछे लग सकता था, अपितु वह शिक्षकों का भी ध्यान आकृष्ट कर सकता था |</div><div> </div></div><div>चन्दन था नहीं | भोला गिरी पहले ही छिटक चुका था | अब लोहे की छड़ को आइसक्रीम में परिवर्तित करने की जिम्मेदारी विनोद धर और सुरेश बोपचे के हाथ में थी | खतरा दोनों और से था, लेकिन फिर उन लोगों ने सामने से ही जाना पसंद किया | </div><div>-------</div><div><br /></div><div><div>एक दो नहीं, पूरी आठ आइसक्रीम .. | सुरेश बोपचे ने लड़ झगड़कर एक आइसक्रीम और भी ले ली | वे सारे दोस्त, जो नुकीले पत्थर से एक आइसक्रीम के चार टुकड़े करके खाते थे, अब एक-एक पूरी आइसक्रीम हाथ में पकडे थे | लाल, पीली, हरी आइसक्रीम ! वैसे आइसक्रीम हाथ में आई ही थी कि आधी छुट्टी के ख़तम होने का घंटा बज गया | यानी लुत्फ़ उठाने का समय ही नहीं बचा | मैंने ठंडी ठंडी आइसक्रीम दांत से काटी, किसी तरह निगला और कक्षा के अंदर सरक गया | </div><div><br /></div><div>पर सारे ऐसे नहीं थे | सुरेश बोपचे तो इतमिनान से आइसक्रीम चूसते हुए कक्षा की और बढ़ा | फल यह हुआ कि एक तरफ से वह कक्षा की और बढ़ रहा था और दूसरी तरफ- सामने से कालकर बहनजी आ रही थी | पता नहीं, आइसक्रीम में ऐसा क्या स्वाद था कि उसने आइसक्रीम फेंकी भी नहीं, बस चूसते रहा | यहाँ तक कि कक्षा के बाहर खड़े होकर भी चूसते रहा | जब आइसक्रीम ख़तम हुई तब वह कक्षा के अंदर घुसा | </div></div><div><br /></div><div><div>कालकर बहनजी उसी का इंतज़ार कर रही थी | </div><div>"तुमने आइसक्रीम खाई ?"</div><div>"जी बहन जी |" उसने बिना किसी लाग लपेटे के स्वीकार कर लिया | </div><div>"यहाँ खड़े हो जाओ | " कालकर बहनजी ने शिक्षिका के डेस्क के बगल में इशारा किया | </div><div><br /></div><div>"और जिन-जिन लोगों ने आइसक्रीम खाई, सब यहाँ आ जाओ |" कालकर बहनजी ने आदेश दिया |</div></div><div><br /></div><div>इतना कहकर कालकर बहन जी तो कक्षा के बाहर चले गयी, लेकिन इस ब्रह्म वाक्य ने मुझे बहुत बड़े धर्मसंकट में डाल दिया | </div><div><i><br /></i></div><div><div><i>हमें नीति शिक्षा क्यों पढ़ाई जाती है ?</i></div><div><i>बाबू जी ने बोर्ड पर क्यों लिखा था- सदा सच बोलो ?</i></div><div><i>जब सत्य की ही विजय होती है और 'साँच को आंच नहीं तो सत्य से रु-ब-रु होने से घबराना कैसा ?</i></div><div><i><br /></i></div><div>अगर सच की जीत होगी तो किस रूप में होगी ? क्या कालकर बहनजी हमारी ईमानदारी से खुश होकर हमें माफ़ कर देंगी ?</div><div><br /></div><div>और अगर सजा मिली तो भी जिन दोस्तों ने कार्य को अंजाम दिया था, उनको ही क्यों सज़ा मिले ? उन्होंने निःस्वार्थ भाव से सबको आइसक्रीम बांटी तो थी | अगर इन्हें मार भी पड़ेगी तो भी ये कभी हम लोगों का नाम नहीं बताएँगे | तो क्या नैतिकता का तकाज़ा नहीं है ये कि मार और अपमान का दर्द सहने में उनका भागीदार बना जाये ?</div></div><div><br /></div><div><div>सतत और पैने विचार की इन तेज़ धाराओं में मैं ऐसे बह गया कि मेरे कदम मुझे वहाँ ले गए, जहाँ सुरेश बोपचे खड़ा था | झेंपती मुस्कान के साथ मैं इधर-उधर देखते, कभी हाथ बांधकर, कभी स्वेटर खींचते खड़े रहा | </div><div>विनोद धर को आना ही था और अगले ही क्षण वो आकर मेरे बगल में खड़े हो गया | </div></div><div><br /></div><div>मुझे ऐसी कोई भी आशंका नहीं थी कि मेरी ईमानदारी कोई दूरगामी असर छोड़ेगी | पर अगले ही क्षण राजीव सिंह और फिर मनमोहन मेरे साथ आकर खड़े हो गए | राजीव सिंह का आना जो हुआ, फिर तो कतार सी लग गयी | आइसक्रीम खाने वाले जो लोग हिचकिचा रहे थे , उन सबको अंतरात्मा की आवाज़ कचोटने लगी | वे स्वतः उस छोटी भीड़ का हिस्सा बन गए | आधे से ज्यादा लड़के कालकर बहनजी की डेस्क के पास खड़े थे | जो लोग नहीं थे, उनमें थे, भोला गिरी , दिलीप, अशोक भोपले और एकाध अन्य | </div><div><br /></div><div><div>लड़कियों के पल्ले कुछ पड़ा, कुछ नहीं | </div><div><br /></div><div>तभी कालकर बहनजी ने कक्षा में प्रवेश किया | पहले तो उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आया कि इतने लोग उनकी मेज के पास क्यों खड़े है ! और कौन हैं वे सब ? कक्षा के कप्तान , उपकप्तान , ज्ञानी, ईमानदार, बदमाश ,फिसड्डी - सब कंधे से कंधा मिलाये | फिर सुरेश बोपचे को देखकर उन्हें सब याद आ गया | </div><div><br /></div><div>"अरे भगवान् |" उनका वक्तव्य एक बुदबुदाहट से शुरू हुआ | उनको अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था | "तो तुम सब लोगों ने आइसक्रीम खाई |" उन्होंने अपने आप को संयत किया ,"तुम लोगों को मालूम है ना कि जब स्कूल चल रहा हो तो तार के बाहर जाना मना है ? और खोमचेवालों से खरीदकर खाने में पूरी तरह पाबन्दी है | क्यों राजीव सिंह ? तुम तो कक्षा के कप्तान हो , तुम्हें तो पता होना चाहिए | अरे, तुम्हारा तो काम था, ऐसे लोगों की लिस्ट बनाते |" फिर वे एक क्षण के लिए रुकी , मानो इतने लड़कों की भीड़ से संतुष्ट नहीं थी। "और कौन कौन था ? '"</div></div><div><br /></div><div><div>विनोद धर बोला ,"अशोक तू भी तो था|"</div><div>अशोक भोपले ने साफ़ मना कर दिया,"मैंने आइसक्रीम वापिस तो कर दी थी | याद है? सुरेश बोप्चे को पकड़ाया था ?"</div><div>कालकर बहनजी की आवाज़ फिर धीमी हुई "आइसक्रीम के लिए तुम लोग को पैसे कौन देता है ? तुम्हारे माँ बाप ? पालक-शिक्षक समिति की मीटिंग में तो सब अभिभावकों को कह दिया गया था - बच्चों के हाथ पैसे मत भेजो | और किसने आइसक्रीम खाई ?"</div><div>दिलीप की मुस्कान कभी चौड़ी होती, कभी सिमटती | बीच बीच में वो भोलेपन से लड़कियों की और देखता | भोला गिरी आराम से बैठा था | अचानक सुरेश बोपचे बोल पड़ा, "भोला गिरी, तूने भी तो ..| "</div><div><br /></div><div>भोला उसकी बात काटकर बोला ,"मैं अपनी 'रॉड' खुद लेकर आया था |"</div></div><div><br /></div><div><div>स्वावलम्बी और स्वाभिमानी भोला के इस वाक्य ने इस पूरी घटना की दिशा और दशा ही बदल दी | </div><div><br /></div><div><i>अब तक की सूचना के आधार पर मामला कुछ इस प्रकार बन रहा था -</i></div><div><i>(१ ) कुछ या सारे लड़के शाला के नियम का उल्लंघन करके तार के बाहर गए थे | </i></div><div><i>संभव है , राजीव सिंह जैसे अच्छे लड़के इसमें शामिल न हों | विनोद धर या सुरेश बोपचे जैसे शरारती लोगों ने यह भूमिका निभाई हो | </i></div><div><i>(२) खोमचे वालों से सामान खरीद कर खाना वर्जित था | इसके बावजूद इन लड़कों ने आइसक्रीम खाई | </i></div><div><br /></div><div>ये अपराध कोई बहुत संगीन नहीं थे | और इसमें शामिल लड़कों की संख्या और गुणवत्ता देखते हुए इसकी गंभीरता और भी कम हो जाती थी | यह एक अनुशासनहीनता का मामला ज्यादा था | कालकर बहनजी सबको एक-एक दो-दो लड्डू और सख्त चेतावनी देकर अपने स्तर पर ही इसे निपटा सकती थी | कक्षा का मामला कक्षा में ही दफ़न हो जाता | </div><div><br /></div><div>लेकिन भोला गिरी का उत्तर सुनकर कालकर बहनजी के कान खड़े हो गए | </div></div><div><br /></div><div>कैसी छड़ ? कौन सी छड़? भोला कहाँ से छड़ लाने की बात कर रहा था ? उसका आइसक्रीम से क्या सम्बन्ध था ? भोला अपनी छड़ खुद लेकर आया था तो बाकी लोगों की छड़ कौन लेकर आया था ? </div><div><br /></div><div><div>कालकर बहनजी को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी | अगले दस मिनटों में जब भांडा फूटा तो कालकर बहनजी सकते में आ गयी | </div><div><br /></div><div>सरासर चोरी थी वो ! </div><div><br /></div><div>मामला इतना भारी भरकम था कि कालकर बहनजी खुद नहीं सम्हाल पायी | वर्ग 'ड' से वह शाह बहनजी को बुला लाई |</div><div><br /></div><div>"मैंने सिर्फ पूछा", कालकर बहनजी शाह बहनजी को शांत स्वर में बता रही थी," और किसने किसने आईस्क्रीन खाई | और ...", बात अधूरी छोड़कर उन्होंने हमारी और इशारा किया | </div><div><br /></div><div> "लड़कों की संख्या और गुणवत्ता" एक तरफ और मामले की भयावहता दूसरी तरफ - शायद उन्हें उम्मीद रही होगी कि लड़कों को कूटने के काम में शाह बहनजी उनकी मदद करेगी | शायद उन्हें उम्मीद रही होगी कि शाह बहनजी उन्हें सलाह दे कि आगे क्या किया जाए ? लेकिन शाह बहनजी ने धुलाई करके अपने हाथ गंदे नहीं किये | बल्कि ऐसे तीखे व्यंग्य बाण छोड़े कि कम से कम मैं तो मानो ज़मीन में गड गया | कैसी जीत थी ये सच्चाई और ईमानदारी की !</div></div><div><br /></div><div><div>लेकिन अब जो कुछ हुआ था उसका खामयाज़ा तो भुगतना ही था | </div><div><br /></div><div>"इनको बड़ी बहनजी के पास ले जाओ |" सलाह के नाम पर शाह बहनजी ने कालकर बहनजी को यही सुझाया | </div><div><br /></div><div>तो मामला अब कक्षा के बाहर निकल चुका था | सारे के सारे अभियुक्त लड़के कक्षा से निकलकर कालकर बहनजी के साथ बरामदे से गुजरे | 'ड' वर्ग के सामने से गुजरते समय शाह बहनजी ने जले पर नमक छिड़का ,"ऐ शूरवीरों, कतार बनाकर जाओ | "</div><div><br /></div><div>मेरी और राजीव सिंह की बहनें निचली कक्षाओं में थीं | क्या उन्होंने देखा था कि उनके अपराधी भाई किस तरह बड़ी बहनजी के कक्ष की और जा रहे हैं ? क्या राजीव सिंह की मां सिंह बहनजी को इसकी खबर मिल चुकी है ? </div></div><div><br /></div><div><div>हमारे पक्ष में शायद जोई तर्क नहीं था | यह भी नहीं कि हमें मालूम नहीं था कि वो चोरी है | मैंने पहले ही लिखा था, शाम को रामलीला मैदान में हॉकी या क्रिकेट खेलने जाते समय कई बार वे लोहे की छोटी छड़ें, जो 'स्क्रैप' से ज्यादा कुछ नहीं थे, हमारे पाँव से टकराते | एक बार मिंटू ने छोटे भाई निक्कू के पांव से तो खून ही निकल गया था, क्योंकि हम लोग नंगे पाँव खेलने जाते थे | इस तर्क का भी कोई सर-पैर नहीं था कि हमारे मन में आक्रोश था कि हमारी शाला की सीमा सिकुड़ रही थी |</div><div><br /></div><div>अगर कोई तर्क होता भी तो किसमें हिम्मत होती कि बड़ी बहनजी के सामने उसे प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत कर सके | और बड़ी बहनजी भला क्यों सुनती ? फैसला तो आ ही चुका था , केवल उसे सजा में परिणित करना ही शेष था |</div><div><br /></div><div>ये वही बड़ी बहनजी थी, जिसने दाखिले के समय घडी दिखाकर मुझसे समय पूछा था और पांच के पहाड़े के सहारे मैंने उन्हें सही समय बता दिया था | उसके बाद ये किन परिस्थितियों में दूसरी बार आमना सामना हो रहा था | बड़ी बहन जी के मोटे रूलर के बारे में बहुत सुना था | उससे सब से पहले उन्होंने मुख्य अभियुक्त विनोद धर की जमकर धुलाई की | उसकी उसकी विरल विकराल और दर्दनाक पिटाई देखकर सबके कलेजे दहल उठे |</div><div><br /></div><div>सजा देने का उनका तरीका अनूठा था | पूरी पिटाई की दौरान उन्होंने एक शब्द नहीं कहा | सिर्फ रूलर से वे इशारा करती थीं कि कौनसा हाथ आगे करना है या पीछे मुड़ना है और फिर "सड़ाक ,सड़ाक... | </div><div> </div></div><div>मुझे लगा कि कालकर बहनजी ने जान बूझकर गुणवत्ता के हिसाब से कतार बनाई थी | राजीव सिंह और मनमोहन सबसे पीछे खड़े थे | मैं भी कतार में काफी पीछे था | जब तक मेरा नंबर आया, बड़ी बहनजी कुछ हद तक थक चुकी थीं | उन्होंने रूलर से पहले मेरे बांये हाथ की और इशारा किया | और फिर दाहिने हाथ की तरफ - मैं तो </div><div><div>दोनोँ हाथ में एक-एक लड्डू लेकर बगल में हट गया | हथेली पर मानों जलते अंगारे रख दिए गए थे | </div><div><br /></div><div>जब सब को पीट दिया गया - राजीब सिंह और मनमोहन को भी - तब बड़ी बहनजी दहाडी,"अपने गार्जियन (अभिभावक) को बुला कर लाना - तब तक कक्षा में मत घुसना |" </div></div><div>--------------</div><div><br /></div><div>सब की आँखों से आंसू निकल रहे थे | और विषय क्या था - नीति शिक्षा | हमेशा कालकर बहनजी किसी को खड़ा करके पाठ पढ़ने कहती थी | लेकिन उस दिन किसी लड़के की मनःस्थिति ऐसी नहीं थी कि वे खड़े होकर पाठ पढ़ सकें | फलतः उस दिन लड़कियों को अतिरिक्त भार उठाना पड़ा | पहले मिथिला ने एक पैराग्राफ पढ़ा | फिर अनु गुप्ता ने | उसके बाद कौन पढ़े ? फिर बारी आयी इंदिरा और सरिता की | फिर कालकर बहनजी ने किरण को पकड़ा | किरण की आवाज़ भी भर्राई हुई थी | ऐसे लग रहा था कि कहीं दूर से कोई कुछ कह रहा है,</div><div>"फांसी के तख्ते पर चढ़ने से पहले उसकी माँ उसे मिलने आगे आगे बढ़ी, पर वह पीछे हटा ,"माँ , तुमने ही मुझे चोर बनाया है | अगर उस दिन तू ...."</div><div>-</div><div><div>वातावरण काफी भारी हो गया | अब कालकर बहनजी ने किरण को बैठ जाने के लिए इशारा किया | वे कुछ सोची, फिर कहना शुरू किया ,"गलती हर इंसान से होती है और हुई है | गलतियाँ एक सबक तो सिखाती ही हैं | बड़े बड़े महापुरुष। जिनके पाठ हम किताबों में पढ़ते हैं, सबने अपने बचपन मेँ , या उसके बाद कुछ न कुछ गलती की | पर क्या वे रुक गए? क्या उनके लिए जीवन ठहर गया ...... ?</div><div>----------------</div></div><div><br /></div><div>एक लड़का जरूर था, जिसके लिए ज़िन्दगी थम बल्कि जम गयी थी - विनोद धर | उस दिन की मार-कुटाई के बाद कालकर बहनजी के सामने सबने विनोद धर के सर पर ही ठीकड़ा फोड़ दिया | लोगों ने कालकर बहनजी से यहाँ तक कहा कि उनके आइसक्रीम खाने की कोई इच्छा नहीं थी | विनोद धर ने जबरदस्ती उनके हाथ में आइसक्रीम पकड़ाई | ज्यादा परेशान वे लोग थे, जिनकी अभी तक साफ़ सुथरी छवि थी | मगर उन लोगों को भी, जो आये दिन मार खाते थे, इतना बड़ा झटका कभी नहीं लगा था | किसी के पिताजी को बुलाने की नौबत - मेरे ख्याल से न तो पहले और न ही बाद में कभी - आयी थी | </div><div><br /></div><div>उस दिन के बाद से हमने विनोद धर की छाया ही देखी -विनोद धर नहीं | अब विनोद धर से खुद लोग कतराते थे और विनोद धर खुद अपने आप को औरों से दूर रखता था | सुरेश बोप्चे अब भी उसके साथ बैठता था | चन्दन अभी भी उससे बात करता था , पर अब वह पहले जैसी गर्मजोशी नहीं थी | </div><div>------</div><div><br /></div><div>मुझे महसूस हुआ कि किसी भी बच्चे के लिए अपने माता पिता से यह कहना कि उसके अपराध के लिए शाला में उन्हें शिक्षक ने बुलाया है - कितना कठिन होता है | </div><div><br /></div><div>सबसे पहले तो उचित वक्त का इंतज़ार करना पड़ता है | जब पिताजी अच्छे मूड में हों | जब उनके आसपास घर का कोई सदस्य न हो | फिर यह भी सुनिश्चित करना होता था कि उनके पास पर्याप्त समय हो, ताकि वे धैर्यपूर्वक बात सुनें और भविष्य में ऐसा न होने के संकल्प को सुनिश्चित कर सकें | </div><div><br /></div><div>उस दिन शाम को मैंने उनसे कोई चर्चा नहीं की | क्योंकि शाम और रात का समय ही वैसा होता है, जब सब लोग घर में रहते हैं | कोई न कोई कुछ न कुछ उनसे बात करते ही रहता है | अगले दिन माँ नहा रही थी , बबलू और बेबी स्कूल जा चुके थे </div><div><br /></div><div><div>बाबूजी पूजा कर रहे थे | उनसे ज्यादा तन्मयता से भगवान् से प्रार्थना मैं कर रहा था | किसी तरह बात बन जाए | उनकी पूजा ख़तम होते ही मैं बोलै ," बाबूजी|"</div><div><br /></div><div>"क्या है ? उन्होंने मुझसे पूछा | अब मुश्किल यही थी कि संबाद की कठिनाई का वह तीसरा पक्ष - पर्याप्त समय - उनके पास नहीं था | उन्हें जल्दी कॉलेज जाना था | फल यह हुआ कि बातचीत का वह क्रम , जो मैंने एक दिन पूर्व रात में सोच रखा था, बेतरतीब हो गया | कम समय में अपनी बात रखने के चक्कर में सब गड्ड -मड्ड हो गया | मैंने संकल्प पहले उड़ेल दिया | </div></div><div><br /></div><div><div>फिर पूरी बात सुनाई | अपनी तरफ से कोशिश की कि मैं निर्दोष हूँ | बाबूजी को कुछ समझ में आया, कुछ नहीं || बाबूजी ने दो तीन संक्षिप्त प्रश्न पूछे | </div><div>"तो वह छड़ चोरी की गई थी ?"</div><div>"बाबूजी, मैंने चोरी नहीं की थी |"</div><div>"तुमने आइसक्रीम खाई थी ? हाँ या नहीं ?"</div><div>"हाँ, बाबूजी | मगर वो चोरी नहीं थी | ऐसी छड़ों के टुकड़े ... |"</div><div>"अगर रास्ते में यूँ ही पड़े रहते हैं तो आइसक्रीमवाले खुद क्यों नहीं उठा लेते? तुम बच्चों से क्यों ये सब काम करवाते हैं ?"</div><div>"बाबूजी, हमारे स्कूल का मैदान छोटा हो रहा है |"</div><div>"तुम्हें उस बात का गुस्सा है ? पर इससे तो इस कार्य को न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता | कितनी कीमत होगी आइसक्रीम की ?"</div><div>"पांच पैसे|"</div><div>"तो ठीक है | अगर अपने ऊपर संयम नहीं रख सकते तो मुझसे पांच पैसे ले लिया करो | " वे कागज़ के टुकड़े पर कुछ लिखते लिखते बोले ,"ये गलत है बेटे | अपने दोस्तों को भी कहो | बहुत गलत है | "</div></div><div><br /></div><div><div>वे कागज़ का टुकड़ा मेरे हाथ में देकर बोले,"बेटे, मैं तो आज रायपुर जा रहा हूँ | युनिवेर्सिटी में मीटिंग है | ये चिट्ठी बहनजी को दे देना |"</div><div>"पर बाबूजी, उनका कहना है कि जब तक आप उनसे नहीं मिलेंगे, वे मुझे कक्षा में नहीं बैठने देंगे |"</div><div>"तो मत जाना कक्षा में | " वे ठण्डे लहजे में बोले | उनके कहने का यही मतलव था, अगर यही सब सीखना है तो फर्क क्या पड़ता है ? वे घर से निकलने लगे | मैं पीछे पीछे गया | स्कूटर में किक मारते मारते वे बोले "ठीक है, अगर आज कक्षा में नहीं बैठने देंगे तो कल देखेंगे | "</div><div><br /></div><div>सामान्य सा वार्तालाप, कोई नाटकीयता नहीं | फिर भी इतना स्पष्ट हो गया कि मामला जितना मैं समझता था ,बाबूजी के लिए उससे ज्यादा गंभीर था | मैं कभी उनको जाते हुए देखता तो कभी कागज़ की ओर | </div></div><div><br /></div><div><div>उस दिन मैं डर के मारे मनमोहन के घर शतरंज खेलने भी नहीं गया | यह निश्चित था कि अगर उसके पिताजी घर में होंगे तो मुझसे वही , वैसे ही सवाल पूछेंगे | </div><div><br /></div><div>स्कूल में प्रार्थना के बाद, जब विद्यार्थियों की कतार अंदर जाने लगी तो कालकर बहनजी ने उन सबको रोक लिया जिनके पिताजी मिलने नहीं आये थे | केवल तीन ही लोग थे | दो के पिताजी "फर्स्ट शिफ्ट" गए थे , इसलिए दो बजे के बाद आने वाले थे | तीसरा मैं था | मैंने कागज़ का टुकड़ा आगे किया तो कालकर बहनजी ने पूछा,"ये क्या है ?"</div><div>"जी बहनजी ,जी , मेरे पिताजी जरुरी काम से रायपुर जाने वाले थे जी | उन्होंने ये चिट्ठी भेजी है जी |"</div><div>"बड़ी बहनजी से बात करो |" कालकर बहनजी ने मुझे बड़ी बहनजी के दफ्तर का रास्ता दिखा दिया | </div></div><div><br /></div><div><div>ऑफिस के दरवाज़े पर मैं बांया हाथ आगे करके खड़ा हो गया | </div><div>बड़ी बहनजी सर झुकाये कुछ लिख रही थी | जब दो मिनट तक उन्होंने नहीं देखा तो मैंने पूछा ,"जी बहनजी , जी मैं अंदर आ सकता हूँ क्या जी ?"</div><div>बड़ी बहनजी ने अंदर आने का इशारा किया | </div><div>मैंने वह चिट्ठी उनके सामने रख दी | उन्होंने गोल ढांचे वाले चश्मे के पीछे से प्रश्नवाचक नज़रों से मेरी और देखा | </div><div><br /></div><div>"जी बहन जी, जी, पिताजी नहीं आ सकते हैं जी | उन्होंने ये चिट्ठी भेजी है जी |"</div><div><br /></div><div>बड़ी बहनजी ने चिट्ठी खोली | मुझे लगता है, बाबूजी ने जान बूझकर चिट्ठी अंग्रेजी में लिखी थी | शायद दो कारण थे | पहला - इस शक की कोई गुंजाइश न रह जाए कि चिट्ठी मैंने अपने हाथ से लिखी थी , क्योंकि हमें तो अंग्रेजी ही छठवीं से पढ़ाई जाती थी | दूसरा, उसमें क्या लिखा है - वो मैं न समझ सकूँ |</div><div><br /></div><div>वैसे इस विश्वास की सामान्यतः कोई जरुरत नहीं पड़नी चाहिए थी | हर साल बड़ी बहनजी पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर आने वाले विद्यार्थियों को पारितोषिक देती थी | इसलिए शायद उन्हें मुझे पहचान तो जाना चाहिए था और मान लेना चाहिए था कि फर्जी चिट्ठी लिखने का काम मैं नहीं करूँगा | पर यह भी कटु सत्य था कि कल की घटना के बाद बड़े बड़े विश्वास धराशायी हो चुके थे | बड़ी बहनजी और पिताजी खुद प्राचार्य थे | उन्हें ज्ञात था कि विसयार्थियों को बदलते देर नहीं लगती है | </div></div><div>----------</div><div><br /></div><div><div>जब मैं कक्षा में घुसा तो कालकर बहनजी ने हाज़िरी के रजिस्टर में मेरे नाम के आगे लिखे "ए" (अनुपस्थित) को कलम से दो तीन बार दोहराकर "पी " (उपस्थित) किया | </div><div><br /></div><div>फिर बोली,"ठीक है | बड़ी बहनजी ने कहा है तो बैठ जाओ | " फिर सब लड़कों पर निगाह डालकर बोली,"चन्दन, कल कहां थे ?"</div><div><br /></div><div>"जी बहनजी जी मेरे घर में पूजा थी जी |" चन्दन खड़े होकर अपनी हाफ पेण्ट खींचता हुआ बोला | </div><div><br /></div><div>"अगर चन्दन होता तो वो भी इसमें होता | " पूरी तरह से आश्वस्त, कुछ नैराश्य , कुछ परिहास से कालकर बहनजी ने कहा | </div><div><br /></div><div>....क्यों.....?</div><div>-----------</div></div><div><br /></div><div><div>सारी दुनिया में ढिंढोरा पीट दिया गया था और लोगों ने मान भी लिया था कि विनोद धर ही दोषी है | आखिर फंसे हुए सारे विद्यार्थियों ने ठीकरा उसके सर पर ही फोड़ा था | उसने जबरदस्ती एक एक का कॉलर पकड़कर आइसक्रीम उनके मुंह में ठूंसी जो थी | </div><div><br /></div><div>केवल एक ही लड़का था, जिसकी राय सबसे जुदा थी | </div><div><br /></div></div><div><div>तो चन्दन ही था जिसकी नज़रों में इस मामले का दोषी विनोद धर नहीं, बल्कि सुरेश बोपचे था | वैसे अगर उसे दोषी नम्बर दो ठहराना होता तो वह मुझे ही ठहराता क्योंकि मैं ही वह उत्प्रेरक था, जिसने सायकिल स्टैंड में खड़ी साइकिलों को लात मारी थी और श्रृंखला अभिक्रिया का श्रीगणेश कर दिया था | </div><div><br /></div><div>आधी छुट्टी का घंटा बजते ही कक्षा के बाहर आकर चन्दन ने सुरेश बोपचे का कॉलर पकड़ लिया ,"क्यों बे ? कालकर बहनजी के सामने तेरे को आइसक्रीम खाने की क्या पड़ी थी ?" </div><div><br /></div><div>"चन्दन, सुन तो यार | अबे सुन तो | आधी छुट्टी ख़तम होने की घंटी बज गयी थी यार और आइसक्रीम ख़तम नहीं हुई थी |"</div><div><br /></div><div>"तो फेंक नहीं सकता था साले ?" चन्दन आग बबूला था | </div><div><br /></div><div>सुरेश बोपचे बस मुस्कुरा रहा था | विनोद धर सर दूर देखते चुपचाप खड़ा था | </div><div><br /></div><div>चन्दन को इस बात पर गुस्सा था कि अच्छे अच्छे लड़के भी इसमें फंसे थे और कक्षा की अच्छी खासी छीछालेदर हुई थी | इस सब के लिए सुरेश बोपचे का बेवकूफाना कार्य ही जिम्मेदार था | </div><div><br /></div><div>"अकल है कि नहीं बे तेरे पास ? कि घास चरने गयी थी बे ? ?"</div><div>----------------</div></div><div><br /></div><div><div>विनोद धर को लापता हुए पूरे डेढ़ साल गुज़र गए | उसका साया कक्षा में आते रहा और सारा दिन सबसे अलग-थलग रह कर वापिस घऱ चले जाता था | पांचवी में ढेरों नए लड़के आये और सब से घुल मिल गए - विजय पशीने, रमेश मिश्रा, महेंद्र सिंह , सुबोध नंबर २, कालकर बहनजी का ही लड़का संदीप कालकर, सत्यव्रत, रवींद्र मुंशी | राजीव जावले चौथी में इस घटना के बाद ही आया था | कोई भी विनोद धर को अपना अंतरंग मित्र नहीं बना पाया | बहनजी का लड़का नवनीत दवे, जब पांचवीं में वापिस आया तो उसने मुझसे दबे स्वर में पूछा ,"ये विनोद धर है न?"</div><div>पांचवीं के दूसरे हिस्से में कक्षा में आशिकी का जो तूफान उठा , उसमें विनोद धर अछूता ही रह गया | इस घटना के बाद वो सेक्टर ६ के अन्य लड़कों के साथ नहीं आता था | न ही सुबह वाले लड़कों के साथ रोज़ की गाली गलौच और कभी कभार की पत्थरबाज़ी में उसकी कोई भूमिका होती थी | चन्दन के मज़ाक पर भी वह कभी कभार ही हँसता था | </div><div><br /></div><div>तो डेढ़ साल बाद वह दिन आ ही गया जिस दिन हमें प्राथमिक शाला नंबर ८ को 'सलाम' कह देना था | उस एक दिन में बहुत कुछ घटित हो गया | मेरे, मनमोहन और राजीव सिंह के लिए तो काफी कुछ | </div></div><div><br /></div><div>ऐसी पहली खबरें छन कर बाहर आयी थी और हमारी सड़क बाइस में फ़ैल गयी थी कि मनमोहन और राजीव सिंह शाला में प्रथम आये हैं और मैं दूसरे नंबर पर था | मेरे घर वाले मेरी घर से घंटों बाहर रहने की आदत से परेशान थे | उन्हें मेरी परेशानी का अंदाज़ नहीं था जो कक्षा में मेरे साथ हो रहा था | मुझे तो लगता था राजीव सिंह ने बचपन का दोस्त, मनमोहन मुझसे 'छीन' लिया है | साथ ही 'आशिकी' के उस माहौलमें न शामिल होने की सज़ा मुझे 'मखौल' के रूप में मिल रही थी | कुछ जुमले, कुछ फिकरे - जिनके स्त्रोत राजीव सिंह की बेंच के इर्द गिर्द ही होते थे , रोज़ मेरा पीछा करते | घर से दूर रहने की वजह यह भी थी कि 'ट्रिपल टेस्ट' चॉकलेट के अल्बम में १८० खाने थे , जिसमें से १७९ तो कब के भर गए थे, पर १५३ नंबर, "गननचुम्बी इमारत", की पन्नी अभी तक नहीं मिली थी | उसकी खोज में मैं न जाने किन किन लोगों से मिलता - दोस्त के दोस्त के दोस्त के दोस्त - पर कहीं भी वह नहीं मिली | तो परिणाम निकलने के एक दिन पहले निकले परिणाम ने घर में मेरी हवा निकाल दी थी | इसके पहले के वर्षों की वार्षिक परीक्षा में भी प्रथम तो मैं कभी भी नहीं आया था - दूसरे नंबर पर ही था | बल्कि दूसरी में तो तीसरे स्थान पर था | लेकिन उन दिनों वे सब आदतें मेरे साथ नहीं जुडी थी | </div><div><br /></div><div>----------------</div><div><div>कौन कहता है, चमत्कार नहीं होते | चमत्कार तो दूर, ये तो हिंदी फिल्मों के सुखद अंत जैसा ही था | </div><div><br /></div><div>अगले दिन वही हुआ | मेरे लिए जो खबर एक दिन पहले शाम को उडी थी, वह गलत साबित हुई | मैं और मनमोहन दोनों संयुक्त रूप से प्रथम आये थे और राजीव सिंह दूसरे स्थान पर सरक गया था | देखा जाए तो पिछले तीन वर्षों से हम तीनों में से ही कोई प्रथम द्वितीय या तृतीय आते रहा था | छ महीने पहले ही अर्धवार्षिक परीक्षा में मनमोहन और राजीव सिंह संयुक्त रूप से प्रथम आये थे और मैं दूसरे नंबर पर था | ( बल्कि मैं तो तीसरे नंबर पर लुढ़क गया था | दूसरे नंबर पर संयुक्त रूप से अनु गुप्ता और मिथिला थे | लेकिन जब मैंने उत्तर पुस्तिका देखी तो पता चला, एक प्रश्न का उत्तर कालकर बहनजी ने जांचा ही नहीं था | जब मैंने उन्हें दिखाया और उन्होंने अंक दिए, तब मैं दूसरे नंबर पर आ गया })</div><div><br /></div><div>लेकिन राजीव सिंह को अचानक ना जाने क्या हुआ, वो रो पड़ा | सबके सामने, बड़ी बहनजी के पास जब हम तीनों जिला शिक्षा अधिकारी, जिसे हम "टी टी गार्ड का तोतला " कहते थे, के साथ खड़े थे, तो राजीव सिंह की रुलाई फूट पड़ी | </div></div><div>------------</div><div><br /></div><div><div>......स्कूल ख़तम | अब हम सबको कहीं और जाना था | सामने वह मंच था जहाँ वार्षिकोत्सव होते थे | मंच के उस पार ही तो थी हमारी कक्षा पहली वर्ग 'स' | कैसे गुजर गए पांच साल ?</div><div><br /></div><div>दरवाजे पर अभी ताला लटक रहा था | मैंने अंदर झांक कर देखा ,"मुझे आवाज़ सुनाई दी, जो अभी भी कमरे में गूँज रही थी | </div><div><span> <span> </span> </span>"हम हैं नन्हे, नन्हे सैनिक छोटे और मटोले |</div><div><span> </span><span> </span>इसी भारत माँ के हम गोद में ही खेलें |"</div><div><br /></div><div>पांच साल पहले - वो भारत पाकिस्तान की लड़ाई के दिन थे | छोटी बड़ी कक्षा के कुछ बच्चों को लेकर इस कोरस की पूर्वाभ्यास कराया जाता था , जिसे चंद्रावती ने गौर से देखा था | जब कक्षा में साहू सर नहीं होते , तो चंद्रावती कुछ बच्चों को पकड़कर वह रिहर्सल करवाती | उनमें राजीव सिंह भी एक था | </div><div><br /></div><div>राजीव सिंह, जो चन्दन का मुक्का खाकर कक्षा एक में रोया था | आज आखिरी दिन फिर एक बार उसकी रुलाई वापस आ गयी | मेरा मन खिन्न हो गया | </div><div><br /></div><div>नहीं, राजीव सिंह एक बहुत अच्छा मित्र था | आखिरी दिन उससे इस तरह अलग होना मुझे अच्छा नहीं लग रहा था | </div><div><br /></div><div>केवल एक ही शख्स मेरी मदद कर सकता था - राजीव सिंह का हनुमान | अरे हाँ, विनोद धर | उसे कैसे भूल गए ? उससे मिलकर एक बार तो कह लें कि गिले शिकवे भूल जा ऐ मित्र | फिर राजीव सिंह की बात करके उसको मनाने की रणनीति बनाई जाए |</div><div><br /></div><div>पर मन मैं अभी भी एक हिचक थी | </div></div><div><br /></div><div><div>राजीव सिंह को बड़ी बहनजी ने एक संतरा दिया था | संतरा हाथ में लेकर, वह रोते - रोते घर जा चुका था | "टी टी गार्ड का तोतला" अभी भी मनमोहन से घुल मिलकर बातें कर रहा था मानो वे लंगोटिया यार हों | लोग तीन तीन चार चार के ग्रुप में बातचीत में मशगूल थे | </div><div><br /></div><div>पर विनोद धर कहाँ था ?</div></div><div><br /></div><div><div>विनोद धर से बात करने के लिएए मेरे मन में भले ही अभी भी हिचक रही हो, पर उसके मन में कोई हिचक नहीं थी | मैंने देखा, किरण और विनोद धर बातें कर रहे थे | मैंने कुछ क्षण दूसरी कक्षा के पास खड़े होकर इंतज़ार किया, पर मुझे लगता था , वह इंतज़ार काफी लम्बा हो सकता है | </div><div><br /></div><div>तो वो दूसरी कक्षा का कमरा था | एक बार पंखों से चट-चट की आवाज़ के साथ चिंगारियां निकलने लगी थी और बिजोरिया बहनजी घबरा गयी थी | वही तो वह कक्षा थी, जब विनोद धार एक दिन कक्षा में ही लट्टू लेकर आ गया था | कारण यह था कि उसने भोला गिरी से शर्त लगाई थी कि वह "ऊपरी-ऊपर " कर सकता है | आधी छुट्टी में सबको वह खेल के मैदान में ले गया, लट्टू में रस्सी बाँधी और जोर से खींचा | भनभनाहट के साथ लट्टू हवा में तीव्र गति से घुमा | विनोद धर ने हथेली बधाई और वह लट्टू एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह उसकी हतेली में घूमने लगा | </div><div><br /></div><div>मैंने पीछे मुड़कर देखा, विनोद धर और किरण अभी भी बातें कर रहे थे | मैं तीसरी कक्षा के कमरे की और बढ़ा | अंदर झांककर देखा | विनोद धर के बेंच बजाने की आवाज़ सुनाई दे रही थी | उसकी पसंदीदा धुन होती थी, बेंच पर रेलगाड़ी की अलग-अलग धुन निकलना | जब रेलगाड़ी स्टेशन से चलती है, जब गति पकड़ती है, जब पटरी बदलती है , जब पुल के ऊपर से गुजरती है | </div></div><div><br /></div><div><div>मैंने पीछे मुड़कर देखा | विनोद धर अभी भी किरण से बातें कर रहा था | लगता था, मानो उनकी बात कभी ख़तम नहीं होगी | भीड़ अब तक काफी छंट चुकी थी | मनमोहन भी घर जा चुका था | मैं चौथी कक्षा के कमरे की और बढ़ गया | </div><div><br /></div><div>यही तो वह वर्ष था जब सुबोध जोशी और राजीव जावले आये थे | पर रह रह कर वही घटना याद आ जाती थी | और वही घटना फिर मेरे मन में घूम गयी | वही तो है, कालकर बहनजी तो टेबल , जिसके बांयी और हम सब लड़के खड़े थे | नज़रें नीचे, शाह बहनजी के व्यंग्य बाण छूट रहे थे | बस, और मैं ज्यादा सोच नहीं सका | </div><div><br /></div><div>मैंने पीछे मुड़कर देखा, विनोद धर अब गायब हो चुका था | </div><div><br /></div><div>विनोद धर तो उसी दिन गायब हो गया था | मैं किसका इंतज़ार कर रहा था ?</div><div>-----------------</div></div><div><br /></div><div><div>भिलाई विद्यालय में जाने के बाद सारे दोस्त मिले | चौकड़ी के तीन सदस्य तो थे ही- विनोद धर का पता नहीं था | </div><div><br /></div><div>चन्दन तो खैर चन्दन था | अगर तुम उसे नहीं खोज पाते तो वह तुम्हें खोज लेता | ज्यादा दूर नहीं, कक्षा छठवीं 'बी' में ही वह था | </div><div><br /></div><div>सुरेश बोपचे भी मुस्कुराते हुए दिख ही जाता था | </div><div><br /></div><div>भोला गिरी ने तो कमाल ही कर दिया | छठवीं में नाट्य स्पर्धा में उनके 'डी' वर्ग ने एक नाटक किया था,"भक्त और भगवान् " | उसमें भोला गिरी ने भक्त की ऐसी सजीव भूमिका की कि न केवल वह नाटक प्रथम आया , बल्कि भोला गिरी को श्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार भी मिल गया | </div></div><div><br /></div><div>पर विनोद धर कहाँ छुपा था ? </div><div>-----------------</div><div><br /></div><div><div>एक दिन अचानक बिजली कड़की और विनोद धर दिख गया | </div><div>वही पुराना विनोद धर !!</div><div><br /></div><div>अब भिलाई विद्यालय में भला बोरा दौड़ जलेबी दौड़ कुर्सी दौड़ होते तो क्यों होते | वहाँ वही प्रतिस्पर्धाएं होती थी , जो ओलिंपिक में शामिल होती थीं | 'खो खो' और कबड्डी तो वैसे हमेशा से अपवाद रहे हैं | </div><div><br /></div><div>कक्षा सातवीं में थे तब हम लोग | </div></div><div><br /></div><div>ऐसी ही एक दौड़ थी - ११० मीटर बाधा दौड़ | भिलाई विद्यालय के पास शायद बाधाओं की ( यानी उन स्टेण्ड की, जिनके ऊपर से कूद कर जाना पड़ता था) की संख्या सीमित थी | इसलिए और दौड़ीं की तरह अगल-बगल कई ट्रैक बनाने के बजाय , ताकि सभी प्रतिस्पर्धी एक साथ भाग सकें, एक ही ट्रैक बनाया जाता था | सारे प्रतिस्पर्धी का एक एक करके नाम पुकारा जाता था | जिसका नाम पुकारा जाता था, वो स्टार्टिंग लाइन पर आकर खड़ा होता था | बंदूक दागी जाती थी | विराम घडी का बटन दबाया जाता था और वह धावक दौड़ प्रारम्भ करता था | </div><div><br /></div><div><div>उद्घोषणा की माइक पर झा सर बैठे थे | वे एक एक नाम पुकारते और प्रतिस्पर्धी प्रारंभिक बिंदु पर आकर खड़ा होता था | </div><div>मैदान काफी बड़ा था उसके समानांतर उस वक्त और भी प्रतिस्पर्धाएं जारी थी | तब गोला फेंक चल रहा था और मैं वही देख रहा था | </div><div><br /></div><div>अचानक बाधा दौड़ के एक नाम ने मेरे दिमाग में घंटियां बजा दी, "विनोद धर द्विवेदी"| </div><div>नाम वही था | ऐसा नाम किसी और का हो ही नहीं सकता - ये केवल मेरा ही मानना नहीं था | मैं तुरंत गोला फेंक छोड़ कर बाधा दौड़ की ओर लपका | </div><div><br /></div><div>हाँ, वही था | ठिंगना लेकिन मज़बूत कद, तेज़ आँखें, सुदृढ़ मांसपेशियों वाले पाँव | </div><div><br /></div><div>लेकिन सामने जो बाधाये थी, वे तो काफी ऊंचाई पर थी | धावक की ऊंचाई के हिसाब से बाधाओं को समायोजित करने का कोई नियम तो था नहीं | वे विनोद धर के सीने से थोड़ी सी नीचे थी | कहा जाए तो विनोद धर के लिए ऊँची कूद के लक्ष्य की तरह थी | </div></div><div><br /></div><div><div>किन्तु ऊँची कूद में तो एक ही बाधा होती थी | यहाँ तो बाधाओं की कतार सी लगी थी - हर दस मीटर में एक नयी बाधा | विनोद धर क्या कर पायेगा ?</div><div>लेकिन वह पुराबा विनोद धर था - पहली कक्षा वाला विनोद धर | जब वे एक ओर रखे बेंचों पर एक बेंच से दूसरी बेंच पर छलांग मारते थे | </div><div><br /></div><div>बंदूक दगी , विराम घडी का बटन दबा और विनोद धर ने दौड़ना शुरू किया | एक बाधा उसने आसानी से पार की, दूसरी बाधा , तीसरी बाधा ... | सब चकित थे | माइक पर झा सर कह रहे थे , "इस बालक के लिए ये बाधाएं कोई बाधाएं नहीं, केवल उम्र ही एक बाधा है .. |" झा सर की बात से असहमत होने की कोई वजह नहीं थी | उम्र के साथ विनोद धर की ऊंचाई बढ़ेगी ही | तब इन बाधाओं के ऊपर से छलांगें भरने में उसे कोई मुश्किल नहीं होगी | </div><div><br /></div><div>लेकिन इतना स्पष्ट था कि विनोद धर की गति एक के बाद एक बाधाएं पार करने पर कुछ धीमी हो रही है | </div></div><div><br /></div><div><div>अचानक किसी ने आवाज़ दी , "नीचे से निकल जा ओये |" स्पष्टतः विनोद धर इस नियम से अनभिज्ञ था और आठवीं बाधा पर वह नीचे से निकला | </div><div>"ये नियम विरुद्ध है बेटे|" झा सर की आवाज़ गूँजी | </div><div>विनोद धर ने अपनी गलती सुधारी और अगली दो बाधाओं के ऊपर से उसने छलांग भर कर कर दौड़ पूरी की | शिक्षक , विद्यार्थी, कर्मचारी - सब तालियाँ बजाने पर विवश थे | </div><div>जब वह इतनी बाधाएं पार कर सकता था , तो वह एक बाधा क्यों नहीं पार कर सकता ? जो उसके मन में बैठी है ?</div><div><br /></div><div>अच्छे समय के बावजूद विनोद धर की दौड़ अमान्य गयी क्योकि वह एक बाधा के नीचे से जो गुजरा था, जो कि नियम विरुद्ध था | मेरे ख्याल से उसे ज्ञात नहीं था कि ऐसा करना नियम विरुद्ध है | ज्ञात तो मुझे भी नहीं था | </div><div><br /></div><div>क्या उसे उस दिन ज्ञात था , कि वह जो कर रहा है , वह जियम विरुद्ध था ?</div><div>---------------</div></div><div><br /></div><div><div>एक झलक दिखलाकर विनोद धर फिर से गायब हो गया | </div><div><br /></div><div>समय का पहिया घूमते रहा | कई वर्ष गुजर गए | भिलाई विद्यालय से बाहर निकलते समय मुझे ये तो मालूम था कि चन्दन कहाँ जा रहा है - क्योंकि चन्दन छुपाये नहीं छुपता था | सुरेश बोपचे का भी थोड़ा बहुत आभास था | भोला गिरी कहाँ था, पता नहीं और विनोद धर की खबर तो किसी के पास नहीं थी | </div></div><div><br /></div><div><div>इंजीनियरिंग कॉलेज की 'मिड सेमेस्टर' छुट्टियां थी | जब भी मैं उन दिनों भिलाई आता, साइकिल लेकर नगर घूमने निकल जाता था | देखता, इन चंद महीनों में ये शहर कितना और बदल गया है | वही पुराने पार्क, मैदान, मंदिर - सिविक सेंटर | जहाँ किसी मैदान में क्रिकेट का मैच चलते रहता , मैं वहीँ ठहर जाता | </div><div>सेक्टर १ में नेहरू सांस्कृतिक भवन के पास एक मैच चल रहा था | मैं वहीँ खड़े होकर मैच देखने लगा | दूरदर्शन पर मैच देखकर मन में बार बार ये ख्याल आता था - आखिर क्या है, उन खिलाड़ियों में और भिलाई के इन खिलाड़ियों में जो वे तो भारत की ओर से खेलते हैं और ये अभी भी गुमनामी के अँधेरे में रास्ता तलाश रहे हैं | तकनीक वही , शारीरिक डील डॉल वही | </div><div>पिच को छोड़कर पूरा मैदान छोटी मुरम का बना हुआ था जो भिलाई के अधिकतर मैदानों की खासियत थी | उसमें भी ये देखकर अच्छा लगता था कि फिर भी क्षेत्ररक्षक कलाबाजियां खाने से हिचकिचा नहीं रहे थे | मैदान के बीच में एक बिजली का खम्बा भी था | अगर कोई क्षेत्ररक्षक उसे टकरा जाए तो ?</div></div><div><div>"विजय सिंह |" किसी ने मुझे आवाज़ दी | मैंने पीछे मुड़ कर देखा, विनोद धर खड़ा था | </div><div>मैं उसकी और बढ़ा और उसके आसपास रोकती हुई अदृश्य दीवारों से टकरा गया | इतने वर्षों बाद भी वह दीवार पूरी तरह से से ढह नहीं पायी थी | लेकिन एक शक्तिशाली चुम्बक भी तो था, जो मुझे उससे दूर जाने नहीं दे रहा था | बचपन की दोस्ती के अदृश्य तार रास्ता खोज रहे थे | </div><div>परिणामस्वरूप हमारा वार्तालाप कुछ इस तरह का था - </div><div>"उस लड़के को देख रहा है ?" विनोद धर ने एक क्षेत्ररक्षक की और इशारा किया जो बिजली के खम्बे के पास मोर्चा सम्हाले था | </div><div>"हाँ", मैंने कहा | </div><div>"वो सैय्यद है | याद है, भिलाई विद्यालय वाला सैय्यद |"</div><div>तभी संयोग से एक कैच उड़ता हुआ सैय्यद के पास आया | तेज़ी से बॉल सैय्यद से दूर जा रही थी | भागकर सैय्यद ने पकड़ने की कोशिश की | अंतिम क्षणों में छलांग भी लगाईं, पर कैच कर नहीं पाया | </div></div><div><br /></div><div><div>"कैच छोड़ दिया यार |" विनोद धर ने सर पीटा , "और बोलेंगे, हमें बी. एस. पी. में खेलना है |"</div><div>"कोशिश तो अच्छी की यार |" मैंने कहा | </div><div>तो जिस वार्तालाप को जो गर्मजोशी से हाथ मिलकर, "तू कहाँ है, क्या कर रहा है, ये कैसा है, वो कैसा है, इतने साल क्या किया", उस दिशा में जाना चाहिए था, वह किसी और दिशा में बढ़ गयी थी | </div><div>"एल.बी. डब्ल्यू. का नया रूल जनता है ?" अचानक वह बोला ," अब अगर बॉल लेग स्टम्प के बाहर टप्पा खायेगी तो अम्पायर 'एल. बी.' दे नहीं सकता | अपने बॉलर मनिंदर और शिवराम कृष्णन तो वहीँ कट गए |"</div><div><br /></div><div>"यार, ये रूल तो पहले भी था | नहीं ?" मैंने पूछा | </div><div>----------------------------------------</div></div><div><br /></div><div>जीवन काफी आगे निकल आया था | एक दो नहीं, पूरे तीस साल वर्ष और गुजर गए | </div><div>पर इस बार जो विनोद धर मिला, वो पुराना विनोद धर निकला | भिलाई विद्यालय में भोला गिरी , चन्दन दास, सुरेश बोपचे और विनोद धर फिर एक बार इकठ्ठा हुए | भिलाई विद्यालय के उच्चतर माध्यमिक के साथी बरसों बाद मिल रहे थे | सुरेख बोपचे के एक हाथ में प्लास्टर चढ़ा था | चन्दन और मोटा हो गया था | और विनोद धर? हाँ, वही पुराना विनोद धर , जिसने चन्दन को चिढ़ाना शुरू किया | मनमोहन से वह भिलाई इस्पात संयंत्र के प्रबंधन को लेकर लम्बी बहस में उलझ गया |बिलकुल वही पुराना विनोद धर था वह | अब न तो कोई अदृश्य दीवार थी और न कोई हिचकिचाहट | पुरानी गप्पेबाजी का नया सिलसिला चालू हो गया | </div><div><br /></div><div><div>देखकर काफी अच्छा लगा कि पुराना विनोद धर अंततः लौट आया | </div><div> सुबोध जोशी, प्रमोद मिश्रा , मनमोहन , सूर्य प्रकाश , सत्यव्रत, चौगड्डे के वे सारे सदस्य, जिनके लिए बरसों पहले जिस विनोद धर ने आइसक्रीम का इंतज़ाम किया था , शाला क्रमांक आठ के उन दोस्तों के लिए शाम को "भिलाई क्लब" में उसी विनोद धर ने पार्टी रख दी | </div><div>"मैं नहीं आ सकता यार |" मैंने कहा | </div><div>"क्यों नहीं आ सकता ?"</div><div>"मेरे पास वाहन नहीं है |"</div><div>"मैं आ रहा हूँ तुझे लेने |" पुराना विनोद धर छोड़ने वाला नहीं था | </div><div><br /></div><div>घर में बैठकर शाम होने से पहले मैं यही सोचते रहा | पुराना विनोद धार लौट आया | पर यह सम्पूर्ण , आमूलचूल रूपांतरण हुआ कैसे ?</div></div><div><br /></div><div><div>क्या कमी थी विनोद धर के पास अब ? इस्पात संयंत्रों के लिए भट्टियों के अंदर रिफ्रैक्टरी लाइनिंग बनाने वाली एक एक बड़ी सी कंपनी का वह सेल्स का बड़ा अधिकारी था | उसका अधिकतर समय विभिन्न ग्राहकों के पास यात्रा में ही गुजरता था - भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, केन्या, कज़ाकिस्तान के ग्राहकों को उसे ही सम्हालना पड़ता था | </div></div><div><br /></div><div><div>शाम को विनोद धर की कार से हम लोग भिलाई क्लब के लिए निकले | पुराने मित्र, पुराने संस्मरणों का पिटारा एक बार फिर खुला | अचानक विनोद धर ने पूछा ,"विजय, तुझे, किरण याद है ?"</div><div>-------------</div></div><div><br /></div><div>जिस पद पर विनोद धर था, वैसे लोगों का रक्तचाप ऊपर नीचे होना कोई अस्वाभाविक घटना नहीं है | भिलाई के सबसे बड़े अस्पताल, सेक्टर ९ के अस्पताल के एक केबिन में विनोद धर बिस्तर पर लेते थे | </div><div><div>दरवाजा खुला और नर्स अंदर आयी | विनोद धर ने चैन की सांस ली क्योंकि वो कोई युवा नर्स नहीं थी जो आनन्-फानन में फुर्ती से काम निपटा कर आंधी तूफान की तरह निकल जाए | बालों में कहीं इधर उधर से हलकी फुलकी सफेदी जरूर झांक रही थी पर वह नर्स किसी एयर होस्टेस से ज्यादा फिट लग रही थी | </div><div>न जाने क्यों वह नर्स उसे जानी पहचानी लग रही थी | नर्स ने टेबल पर रखा उसका रिकॉर्ड उठाया और देखने लगी | अचानक उसने विनोद धर को गौर से देखा | फिर इंजेक्शन तैयार करने लगी | </div><div>"एक इंजेक्शन लगाना है |" वह बोली और विनोद धर की बांह से कमीज हटाने लगी | </div><div>"इंजेक्शन ? मुझे इंजेक्शन से डर लगता है |"</div><div>"अब भी डर लगता है ?"</div></div><div><div>विनोद धर चौंक पड़ा और नर्स की और गौर से देखने लगा | </div><div>" तुम कितने भी बड़े हो जाओ, मैं तो देखते ही पहचान गयी थी |" नर्स बोली, "और जब नाम देखा तो अंदेशा पूरे विश्वास में बदल गया } दुनिया में ऐसा नाम किसी और का हो ही नहीं सकता - विनोद धर द्विवेदी | चिंता मत करो | ऐसे इंजेक्शन लगाऊँगी कि तुम्हें पता भी नहीं चलेगा | "</div><div>वह विनोद धर की बांह में रुई मलने लगी | </div><div>इतने वर्षों से खड़ी हुई समय की वह दीवार भरभरा कर गिरने लगी | विनोद धर के मुंह से अस्फुट स्वर निकला , "क ... क.... कि... "</div><div>"क्या शाहरुख़ खान की तरह क... क .. कर रहे हो ?" उसकी चंचल शरारती मुस्कान वैसी ही थी जैसे, चालीस साल पहले थी,"हाँ बाबा | मैं किरण हूँ |"</div></div><div><br /></div><div>--------------</div><div><br /></div><div><div><i>वर्ष - १९७४, १९७८, १९८६, २०१५ </i></div><div><i>स्थान - भिलाई </i></div></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>-</div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>"</div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div>Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-36276285086403570192021-11-03T09:55:00.009-07:002022-09-24T01:11:43.148-07:00'च' से चन्दन (भाग १ )<p><b>चन्दन सा बदन </b></p><p>इस बात को पूरे पचास साल गुजर गए | आधी शताब्दी पहले बालकों की शाला में पिटाई आम बात थी | पहली और दूसरी के बच्चों के बास्ते में स्लेट पट्टी भी होती थी | साहू सर जैसे शिक्षक साइकिलों में आते थे तो शिक्षिकाएं या तो पैदल आती थीं या रिक्शे में | तब ऑफिसर का लड़का अशोक भोपले, बहन जी का लड़का नवनीत दवे , २४ यूनिट में रहने वाले निहायत सामान्य कामगार का लड़का भोला गिरी ,सेक्टर २ के बाजार के पान वाले पंडित का लड़का और उसका चचेरा भाई , रेल पटरी के उस पार सुपेला से आने वाली सब्जी वाले की लड़की चंद्रावती और कल्याण कॉलेज के प्राचार्य का लड़का विजय सिंह - यानी मैं एक ही कक्षा में पढ़ते थे | कक्षा १ 'स' में एक दरी थी जो, इधर उधर से कहीं कटी फटी , कहीं उधड़ी थी - उस पर हम कतार में बैठा करते थे | दो कतारें लड़कों की और दो लड़कियों की | </p><p>कुछ याद आया ? या बातें अजीब सी लग रही हैं ? अगर याद आया तो क्या याद आया ? कुछ भी याद न आया हो पर फिर भी कुछ तो याद आया होगा | कोई तो याद आया होगा ? कुछ चेहरे ऐसे होते ही हैं जो कभी भुलाये नहीं भूलते | </p><p>--------------</p><p>"चन्दन सा बदन , चंचल सी किरण ( चितवन)" ,ईमान से कहूं तो ये गाना मैंने उसको चिढ़ाने के लिए ही गुनगुनाया था |गाना वैसे भी आड़ा तिरछा , कहीं के शब्द कहीं , या 'हूँ हूँ हूँ ' मिश्रित था, पर पूरी तन्मयता और गांवहीरता से गया गया था | और कुछ न हो, उसमें चिढ़ाने के लिए आवश्यक तत्वों का समावेश पर्याप्त मात्रा मैं था | अगर किसी को चिढ़ाना हो तो सामान्य सा नियम है, उसकी और देखे बिना गाओ | अगले ही क्षण मेरी वो पीठ ,, जो उसकी ओर थी, अचानक गरम हो गयी | मैंने पीछे मुड़कर देखा, उसका सांवला सा चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था | पतले दुबले उस लड़के की मुट्ठी , जो मुक्के के रूप में मेरी पीठ पर दनदना के पड़ी थी , अभी भी भींजी हुई थी | आँखों से मानो अंगारे टपक रहे थे | वह शायद मेरे जितना ही दुबला पतला था, लेकिन उस दमदार मुक्के से ही पता चल गया था की उसकी हड्डियों में कितनी ताकत है | </p><p>मैं तो दर्द के मारे धनुष बन गया था, पर आधी छुट्टी के समय आस पास चुहलबाजी करते लड़के ठठाकर हँस रहे थे | अब लोगों ने चन्दन की दुखती राग पकड़ ली | </p><p>"चन्दन सा बदन", दवे बहन जी के लड़के नवनीत दवे ने सुरक्षित दूरी बनाकर वही तान छेड़ी | आ बैल मुझे भी मार | </p><p>""चंचल चितवन |" पीछे से लंगड़ू विवेक चिल्लाया ,"धीरे से तेरा ये मुस्काना" | अब कोरस शुरू हो गया | </p><p>चन्दन आगे पीछे मुड़कर सबको देख रहा था | शायद सबसे कमजोर शिकार खोज रहा था जो सरपट भाग न सके | </p><p>"पर चन्दन तो सफ़ेद होता है बे |" राजू (राजीव) सिंह ने अपनी विद्वता जाहिर कर दी | चन्दन का गुस्सा चरम सीमा पर पहुँच चुका था | शायद उसके सोचने-समझने की शक्ति लेशमात्र भी बाकि रहती तो ... </p><p>पलक झपकते मानो बिजली सी चमकी और अगले ही क्षण , हम सब से हट्टा कट्टा राजीव सिंह नाक पकड़ कर बैठा हुआ था | </p><p>उसकी नाक से खून बह रहा था | </p><p>चन्दन वहां से भाग खड़ा हुआ | बहन जी के लड़के को पीटने के बाद, वो भी खून निकलने के बाद - देखा जाए तो उसके पास और कोई चारा ही क्या था ?</p><p>--------------------</p><p>राजू सिंह के नाक में फिनाइल की बदबू वाली अजीब सी दवाई लगी थी | रुक रुक कर वह अब भी सिसक रहा था | अफ़सोस मुझे हो रहा था कि जो चिंगारी मैंने सुलगाई थी, वह केवल न आग में परिवर्तित हो गयी, बल्कि भयंकर विस्फोट भी हो गया | सिंह बहन जी अभी एक शिक्षिका के रूप में नहीं, बल्कि माँ की भूमिका में थीं | </p><p>"सुबह से मेरे बच्चे ने कुछ नहीं खाया |" आँचल से राजू सिंह के आंसू पोंछते हुए वे साहू सर से कह रही थीं , "सिर्फ दो ब्रेड के टुकड़े ...- दूध भी नहीं पिया |"</p><p>साहू सर की चिंता कुछ और थी | </p><p>"तुम लोगों ने देखा, चन्दन किस और भागा ? मंदिर की तरफ ? रेल पटरी की तरफ ?"</p><p>"जी सर जी |" जीवन लाल बोला ," उस तरफ |"</p><p>"तब ठीक है | " साहू सर ने राहत की साँस ली | जीवन ने जिस और इशारा किया था, वह न तो रेल पटरी की और जाता था, न मंदिर की ओर | साहू सर ने उस दिशा से चन्दन को कई बार आते देखा था | फिर भी तसल्ली के लिए उन्होंने सिंह बहन जी से पूछा ,"पुलिस में रिपोर्ट की जाए?"</p><p>पुलिस का नाम सुनते ही हम सब सकते में आ गए | क्या बात इतनी आगे बढ़ गयी थी ? सिंह बहन जी ने भी वही समझा | </p><p>"नहीं मास्टर जी |" सिंह बहन जी बोली, " बच्चे तो हैं | थोड़ी बहुत लड़ाई , मर पीट तो चलते रहती है |" </p><p>राजीव सिंह को अपनी माँ का यह शिक्षिका स्वरुप शायद अच्छा नहीं लगा | वह और जोर से सिसका | </p><p>"नहीं | वो बात नहीं है |" साहू सर बोले,"अगर वो घर भाग गया है तो ठीक ही है | मगर अगर कहीं भटक गया तो - आजकल बांगला देश से आये बच्चा चुराने वाले लोग घूम रहे हैं | "</p><p>----------</p><p><i>अब कुछ लोगों के मन में जरूर जिज्ञासा होगी कि भानुमति के उस पिटारे के रत्नों में से एक - आखिर चन्दन की पृष्ठभूमि क्या थी ? सेक्टर २ में, मुझे मालूम था - सड़क २२, २१, २०, १९, १८, १७ के बाद जो सड़क थी, वो बहुत दूर दूर तक जाती थी | बड़ा अजीब था उसका नाम - अबे नु (एवेन्यू ) कुछ कुछ | उसके आगे एक दूसरी दुनिया शुरू हो जाती थी जिसमें टीन की छत वाले घर थे | गर्मी के दिन में भट्टी की तरह तपने वाले उन घरों में भिलाई इस्पात संयंत्र के लिए खून पसीना एक करके , अदम्य शारीरिक कार्य करने वाले मेहनतकश कामगार रहते थे | वहीँ धमनभट्टी में काम करने वाले चन्दन के पिताजी रहते थे | </i></p><p><i>चन्दन के दो भाई भी तो थे - उसी, शाला क्रमांक ८ में | </i></p><p>---------------------</p><p>"आम या इमली ?" मोटा दलपत जोर से चिल्लाया | </p><p>दलपत कंचे के खेल में जिसे पदा रहा था, उसकी शकल चन्दन से काफी मिलती जुलती थी - क्योंकि वह चन्दन का भाई ही था - दीपक | </p><p>"आम" - दीपक बोला | </p><p>दलपत झल्ला गया | वो काफी देर से दीपक को पदा रहा था | कंचे के प्रहार करते करते उसकी बीच की उंगली में शायद दर्द होने लगा था | यानी पढ़ाने का मज़ा जा चुका था और अब सिर्फ जिद ही बची हुई थी | </p><p>"तू एक बार इमली कह दे तो तुझे अभी छोड़ दूंगा |" दलपत चिल्लाया | </p><p>"तू चाहे दिन भर पदा , मैं इमली नहीं बोलूंगा |"</p><p>मेरे पल्ले कुछ नहीं पद रहा था | हिंदी वर्णमाला की पुस्तक में आम की फोटो भी बनी थी और इमली की भी | क्या फर्क पड़ता है ?</p><p>--------------</p><p>तीन दिन गुजर गए थे | साहू सर ने "क" वर्ग के सारे अक्षर सिखा दिए थे और अब "च" वर्ग चल रहा था | किन्तु चन्दन, जो भागा था, वह आज भी नहीं आया था | शनिवार को आधा दिन था और बड़ी बहन जी के दफ्तर के बाहर पहली से लेकर पांचवी तक के बच्चे 'बाल सभा' के लिए बैठते थे | चन्दन के भाई दीपक ने उस बाल सभा में एक चुटकुला भी सुनाया | सब खूब हँसे | </p><p>चन्दन का अपेक्षाकृत शांत- दूसरा भाई विजन, अक्सर वाचाल दीपक के आसपास ही रहता था |इसके आगे उनके बारे में हम लोग कुछ जानते भी तो नहीं थे | कहाँ हम लोग पहली में और कहाँ वे पांचवीं में | </p><p>शायद उनका ही प्रयास था कि सोमवार को भोला गिरी ने आधी छुट्टी के समय मानो भूत देख लिया | </p><p>आधी छुट्टी के समय जो वर्जित था, वह था, तार के बाहर जाना | शाला की सीमा पर कांटेदार तार के बाड़ लगे थे जो समय के साथ गिरकर ज़मीन चूम रहे थे | उसके बाहर जाने अलावा कुछ भी किया सकता था - शाला के लोहे के फाटक पर चढ़ कर झूले का मज़ा भी | भोला गिरी वही कर रहा था | वह सब से ऊपर चढ़ गया था और प्रमोद मिश्रा धक्के दे रहा था | अचानक वह ऊपर से नीचे कूद पड़ा | </p><p>"च.. च.. चन्दन आ रहा है |"</p><p>जैसे ही उसके पाँव जमीन पर पड़े, वह कक्षा की और सरपट भागा | </p><p>सब सकते में थे | तभी अचानक आधी छुट्टी ख़तम होने का घंटा बजा और हम अपनी अपनी कक्षाओं की और भागे|</p><p>-----------</p><p>आधी छुट्टी के पंद्रह बीस मिनट तक साहू सर कक्षा में नहीं आये | दबी जुबान में हम लोग बातें करते रहे कि बड़ी बहनजी के ऑफिस में चन्दन को लड्डू मिल रहे हैं | जिनके कानों में रोज रात को सोने से पहले एक दो बून्द सरसों का तेल डाला जाता था, वे 'सड़' 'सड़' , 'फड़ -फड़' की आवाजें सुन रहे थे | सामान्यतः शिक्षिकाएं बच्चों को खड़ी स्केल से मारती थी पर बड़ी बहनजी के ऑफिस में एक लम्बा, मोटा रुलर था- जो खास इसी काम के लिए रखा गया था | </p><p>अंततः साहू सर आये और उन्होंने पढ़ाना शुरू किया , "'च' से चरखा, 'छ' से छतरी, 'ज'' से जहाज , 'झ ' से झरना | " वे एक-एक अक्षर बोलते गये और विद्यार्थी दोहराते चले गये | फिर उन्होंने छड़ी 'च' पर वापिस रखी ,"'च' से ....|"</p><p>दरवाजे पर चन्दन दास खड़ा था | </p><p>-------------</p><p>वो अब कोई दूसरा चन्दन था | नहीं , अंदर से शायद वही चन्दन था | अब वह भीड़ का हिस्सा था, पर अंदर से अब भी बिलकुल अकेला था | अब वह अपने भाई दीपक की तरह हँसी - ठिठोली करता था, लेकिन उसके अंदर आक्रोश कूट-कूट कर भरा था | हँसते हुए चन्दन की मुट्ठियाँ कब तन जाए, कह पाना बड़ा मुश्किल था | वह शायद और सब लोगों के लिए 'कुछ' था, लेकिन मेरे लिए एक पहेली था | बरसों तक सोचने के बाद यही निष्कर्ष निकाला कि वह एक स्वतंत्र था | कोई रिश्ता , कोई दोस्ती, कोई भाईचारा उसे बांध नहीं सकता था |जिनसे वह स्नेह परता था, बेपनाह करता था | लेकिन उनकी जो बातें बुरी लगती थी, मुंह पर कह देता था | जिनसे वह कट जाता था, उनके लिए उसके दरवाजे बंद हो जाते थे | फिर अचानक कोई खिड़की खुलती और चन्दन का हँसता हुआ चेहरा निकलता -"हा ", "हा ", "हा " | जब उसे लगता कि उसके हृदय के पास रखी तस्वीरों पर किसी ने खरोंच लगाई हो तो ज्वालामुखी फट जाता था | </p><p>विनोद धर भी एक अजूबा था | अब वो सेक्टर ६ से आता था| सेक्टर ६ के सारे लोग संयोगवश प्रातः पाली में थे | राजू सिंह भी वैसे त्तो सेक्टर ६ से ही आता था, पर वह अपनी माँ के साथ ही आता था -कम से कम पहली कक्षा में | तो विनोद धर गजब का गपोड़ी था | उसकी बातें ;फोक' होते हुए भी इतने आत्मविश्वास से कही जाती थी कि लोग मुंह खोले सुनते रहते थे | शक की गुंजाईश ही कहाँ थी मेरे भाई ? </p><p>शाला में लकड़ी के कुछ डेस्क आये थे जो ऊँची कक्षा को पहले दिए गए | फिर भी कुछ डेस्क बच गए , तो हमारी कक्षा में पूर्वी कोने में डेस्क की एक कतार लगाई गयी -केवल एक ही कतार | अनार सीमित थे और दरी पर महीनों से बैठने वाले बीमार तो सारे ही लोग थे | फल यह हुआ कि लोग एक दूसरे तो धकियाते हुए टूट पड़े और बेंचों पर जम गए | विनोद धर ने इतना सुनिश्चित किया कि एक सीट राजू सिंह को मिल जाए -मुझे लगा , वो उसका सेक्टर भाई जो ठहरा | पर एक कारण और भी था | अब जब राजू सिंह बेंच पर बैठा तो उसके बगल में दूसरे बहन जी का लड़का नवनीत बैठा | विनोद धर और गपोड़ी नंबर दो - भोला गिरी उसके पीछे बैठे | मुझे न तो सीट मिलनी थी और ना ही मिली | मैं यथावत दरी में ही विराजमान था | </p><p>विनोद धर ने आज एक नयी कला सीखी थी - हाथ देखने की कला | उसने राजू सिंह का हाथ पकड़ कर गौर से देखा और बोला ,"तू राम है | "</p><p>अब सारे लोग विनोद धर के इर्द गिर्द जमा हो गए थे | सब अपना अपना हाथ विनोद धर को दिखाने के लिए आतुर थे | उसने नवनीत का हाथ देखा और कहा, "तू भरत है |" फिर उसने सूर्य प्रकाश का हाथ देखा और कहा,"तू सुग्रीव है |"</p><p>अजीब बंदरबांट थी | उसने भोला गिरी का हाथ देखकर घोषणा की,"तू जटायु है |"</p><p>"फिर हनुमान कौन है?" प्रमोद मिश्रा ने पूछा | उसको विभीषण की पदवी मिल ही चुकी थी | </p><p>विनोद धर के मुंह पर मुस्कान चौड़ी हो गयी | और चौड़ी और गहरी | जब उसने गोल-गोल आँखें घुमाई और मुंह फुग्गे की तरह फुलाया तो सब समझ गए- हनुमान कौन है ?</p><p>"और मैं क्या हूँ?" मैंने अपना हाथ आगे किया | </p><p>"तू कृष्ण है |"</p><p>"कृष्ण ?" यानी कि मैं रामायण से ही बाहर हो गया | मुझे बड़ी निराशा हुई | मैंने कहा,"ठीक से देख | मैं लक्ष्मण हूँ |"</p><p>" लक्ष्मण अशोक है |" उसके आत्मविश्वास की कोई सीमा ही नहीं थी | </p><p>"नहीं | मुझे लगता है, मैं लक्ष्मण हूँ |"</p><p>उसने मेरी और देखा, मनो कह रहा हो, तेरे चाहने से क्या होता है बे? फिर भी उसने धीरज से कहा, "अशोक के हाथ में चक्र है|"</p><p>"कहाँ है चक्र?" मैं नहीं, मेरी निराशा बोल रही थी | </p><p>"अशोक हाथ दिखा बे |" अशोक भोपले ने हाथ आगे कर दिया | </p><p>"देख |" मेरे साथ उसने सबको अशोक की उंगली दिखाई| उसकी उंगली के सिरे पर वह अपनी ऊँगली फिर कर बोला ,"देख, ये है चक्र |"</p><p>मैंने अपने हाथ की उंगली देखी | मेरी उंगली में भी चक्र था ,"मेरी उंगली में भी चक्र है |"</p><p>चक्र किसकी उंगली में नहीं होता?</p><p>उसने बात अनसुनी कर दी,"तू कृष्ण है यार |"</p><p>अब लड़कियों के हाथ देखना वर्जित था - उस पचास साल पहले के जीवन में | वरना लोग पूछते,"कौशल्या कौन है? कैकयी कौन है ?" सुमित्रा तो थी ही क्लास में | सीता के सम्बन्ध में कोई विवाद ही नहीं था | भारती अग्रवाल के सिवाय भला सीता कौन हो सकती थी? वही भारती अग्रवाल , जो तिमाही में राजू सिंह और मेरे बाद तीसरे नंबर पर आयी थी | जब दरी पर बैठते थे तो लड़कों की आखिरी कतार में सबसे आगे राजू सिंह और लड़कियों की पहली कतार में सबसे आगे भारती बैठा करती थी - यानी करीब अगल बगल | </p><p>एक दिन राजू सिंह ने अपना पाँव हवा मैं लहराया और जूता दिखाकर हँसते हुए बोला ,"मेरे जू जू जूते का हाल देखो |" उसके जूते का तलवा जूते का साथ छोड़ चुका था | भारती ने भी पाँव ऊपर कर अपना जूता हवा में लहराया ,"ओ ओ ओ , मेरे जूते का हाल देखो |" उसका जूता भी तलहटी छोड़ रहा था | दोनों की खिलखिलाहट से सारे लोग चौंक पड़े | </p><p>अरे मैं कहाँ भटक गया यार?</p><p>अभी तो विनोद धर का हाथ देखना ख़तम नहीं हुआ था | अब चन्दन दास ने अपना हाथ दिखाया | सबकी जिज्ञासा बढ़ गयी - चन्दन क्या है ?</p><p>विनोद धर की आँखें चन्दन का पूर्णतः श्याम हाथ अपने भूरे हाथ में लेने से पहले ही मुस्कुरा उठी | अब हाथ देखते ही वह बिना कुछ बोले जोर से हँसा | उसके साथ के सारे लोग ठठाकर हँस पड़े मानो बिना कुछ कहे ही सब कुछ समझ गए | अगर अब तक न समझा हो तो अब उनकी हँसी देखकर चन्दन के मस्तिष्क तक भी सन्देश पहुँच गया | </p><p>मामला फिर से गरमा जाता और शायद एटम बम भी फ़ूट जाता - अगर भोला गिरी ने तुरंत मामले को भटका नहीं दिया होता ,"बेल्ट लड़ायेगा बे?"</p><p>चन्दन चमड़े की मोटी बेल्ट पहन कर आता था | भोला गिरी भी बेल्ट पहनता था | </p><p>"ठीक है |" चन्दन मान गया ,"पूरी छुट्टी के बाद |"</p><p>--------------------</p><p>जिस समय चन्दन और भोला गिरी बेल्ट भांज रहे थे , उस समय मैं और सतीश खैरे पेटी से लड़ाई कर रहे थे | वह शायद पहला वर्ष था, जब बस्ते की जगह एल्युमिनियम की पेटियां लोकप्रिय हो गयी थी | चन्दन और भोला गिरी की ओर सतीश खैरे की पीठ थी , पर वे मेरे दृष्टि परास में पूर्णतः आ रहे थे | भोला गिरी और चन्दन के हाथ में बेल्ट सर्पिणी की तरह लपलपा रही थी | शुरू में चन्दन ने बेल्ट की पूंछ पकड़कर धातु वाला बकल हवा में लहराना शुरू किया | </p><p>भोला गिरी चिल्लाया ,"अबे, बेल्ट उल्टा पकड़ | लोहे वाली चीज हाथ में | सर फोड़ेगा क्या?"</p><p>आखिर बेल्ट लड़ाई के भी नियम तो थे ही -अलिखित ही सही | "चटाक" - चन्दन का एक वार सीधे भोला गिरी की पीठ पर पड़ा | अब भोला भी तैश में आ गया और तेजी से बेल्ट घुमाने लगा | </p><p>मेरी तन्द्रा जब भंग हुई तो बहुत देर हो चुकी थी | मौका देखकर सतीश खैरे ने मेरी पेटी के ढक्कन पर वो करारा वार किया कि ढक्कन में एक गहरा पिचकाव आ गया | वो निशान पूरे पांचवी तक पेटी के ढक्कन पर बना रहा | </p><p>----------</p><p>साहू सर को ये बिलकुल रास नहीं आ रहा था कि कुछ लड़के बेंच पर बैठें और बाकी दरी पर | फल यह हुआ कि बेंचे तो रही, पर अब उनमें कोई बैठता नहीं था | साहू सर का मन तो यहाँ तक था कि बारिश ख़तम होने के बाद उन्हें बाहर रख दिया जाए | </p><p>एक बार १ 'द' की पशीने बहनजी ने कक्षा में झांक कर देखा | उनका अचम्भा अस्वाभाविक नहीं था | </p><p>"मास्साब, इन डेस्कों पर कोई बैठता नहीं ?" उन्होंने साहू सर से पूछा |</p><p>"अब क्या बताएं बहनजी ?" साहू सर बोले, " बड़ी क्लास के बड़े बड़े डेस्क दे दिया और बालक हैं छोटे- छोटे से | डेस्क पर पुस्तक रखते हैं तो उनकी नाक तक पहुँचती है | हाथ पूरा ऊपर उठा कर लिखना पड़ता है | आपको चाहिए तो आप ले जाइए |"</p><p>पशीने बहनजी खिसयानी हंसी हँसते हुए बोली,"सर , हमारे यहॉँ भी कुछ पड़े हुए हैं | वैसे आप ठीक कहते हैं | </p><p>पर हमारे लिए वो बेंच बड़े ही काम के थे | आधी छुट्टी में समय, जब बारिश हो रही हो और बाहर निकलना मुमकिन न हो , वो नदी पहाड़ खेलने के काम आते थे | </p><p>विनोद धऱ , चन्दन , भोला उनको खिड़की के पास से बेंचों पर छलांग मारने , एक ही छलांग में डेस्क के ऊपर चढ़ जाने , एक डेस्क से उछलकर दूसरे डेसक, दूसरे से तीसरे में जाने में कोई डर नहीं लगता था | शिवशंकर, खेमचंद , गोपाल और लंगड़ू विवेक भी उन कारनामों को दोहराने की कोशिशें करते थे | लेकिन किसी की ऊंचाई कम थी, कोई उतना फुर्तीला नहीं था, किसी के मन में शंका थी और विवेक तो लंगड़ाकर चलता था | </p><p>एक दिन अचानक हमें अनायास ही डेस्क के नए उपयोग का पता चला | </p><p>आधी छुट्टी में तीसरी कक्षा का कोई लड़का तेजी से आया और डेस्क की कुर्सी के नीचे छिप गया | हमें तो कुछ पल्ले नहीं पड़ा | अब तीसरी का लड़का था | गुस्सा आने पर मार भी सकता था | अचानक, तीसरी का कोई और छात्र आया | उसके कदमों में सतर्कता थी | वह बड़ी सावधानी से इधर उधर देख रहा था | अचानक डेस्क की कुर्सी के नीचे से वह लड़का तेजी से निकला और उस लड़के की पीठ पर धौल जमाकर बोलै "रेस" | </p><p>ओह हो | तो ये 'रेस-टीप' यानी लुका छिपी का खेल खेल रहे थे | धन्यवाद - जो आपने हमें एक 'छिपने' की जगह बता दी | </p><p>पता नहीं, क्या हुआ? साहू सर , जो नियमित रूप से आते थे, अचानक उनकी निरंतरता भंग होनी शुरू हो गयी | वे बीच बीच में एकाध दिन के लिए गायब हो जाते थे और तब पूरी कक्षा में मानो दहशत छा जाती थी | कारण यह था की हमें बगल वाली पशीने बहन जी की कक्षा में जाना पड़ता था | तब हमें युद्ध बंदी की परिभाषा मालुम नहीं थी | अब साहू सर बच्चों से जितने सहज थे, पशीने बहन जी उतनी ही सख्त थी | उस कक्षा में बैठने की कोई जगह मिलती नहीं थी | दरी के बाहर , इधर उधर , कुछ सिमटकर, कुछ चिपककर धूल भरी जमीन पर बैठना पड़ता था </p><p>अब हम कक्षा में सर झुकाये उस होनी की प्रतीक्षा कर रहे थे जो कभी भी टपक सकती थी | १ 'द ' की 'मॉनिटर' मीनू या निहायत गोरी चिट्टी भारतीय-रुसी लड़की हेलन कभी भी टपक सकती थी | </p><p>मीनू ने कक्षा में झाँका और वह भयानक संदेसा सुना दिया,"पशीने बहनजी तुम लोग को बुला रही है | ऐसे नहीं, सब लाइन से आओ |"</p><p>आँख बचाकर चन्दन और विनोद धर खिड़की के बाहर कूद गये | मैं और सूर्य प्रकाश डेस्क की कुर्सी के नीचे दुबक गए | ठीक वैसे ही, जैसे उस दिन 'रेस -टीप' वाला लड़का दुबका था | अब पशीने बहनजी को थोड़ी आशंका हुई कि सारे बच्चे शायद नहीं आये हैं | वह खुद खाली कक्षा में आयी | सूर्य प्रकाश ने अपने मुंह पर उंगली रख कर मुझे चुप रहने का इशारा किया | पशीने बहन जी ने शिवशंकर को दरवाजे के पीछे छिपे देखा और उसका कान पकड़कर वो उसे धकियाते हुए ले गयी | वो ठीक हमारे उस डेस्क के पास से गुजरी | मेरे दिल की धड़कने इतनी तेज़ हो गयी थी कि अगर पशीने बहनजी एकाध क्षण रूकती तो उन्हें 'धक्-धक्' साफ सुनाई देती | नतीजा ये हुआ कि जैसे ही बहन जी शिवशंकर को लेकर अगले दरवाजे और बढ़ी, मैं पिछले दरवाजे से भाग कर १ 'ड' के पिछले दरवाजे से ही अंदर घुस गया | </p><p>खेमचंद्र प्रकाश के बगल में एकाध फुट की जगह खाली थी | मैं वहीँ फिट हो गया | इधर पशीने बहनजी पढ़ा रहीं थी ," 'क' कमल का, 'ख' खरगोष का , 'ग' गमले का...| </p><p>अरे वाह , 'ग' गमले का पहली बार सुना था | अब तक तो 'ग' गन्ने का, 'ग' गधे का या 'ग' गणेश का सुना या देखा था | वैसे नवनीत के पास एक पुस्तक थी , जिसमें 'क' कबूतर का था | उसमें एक कबूतर की तसवीर भी थी , जो एक गाँव में किसी झोपड़ी के पास बैठा था | मेरे दिमाग मैं यही कुछ चल रहा था | खेमचंद की नज़रें बाहर ही लगी हुई थी | अचानक खेमचंद ने मुझे झकझोरा ,"देख, देख साहू सर आ गए हैं |"</p><p>शायद उसने बात कुछ जोर से कह दी थी | तुरंत हमारी कक्षा के बच्चों की निगाहें दरवाजे के बाहर देखने लगी | साहू सर गलियारे से रजिस्टर लेकर आ रहे थे | फिर अचानक वे रुक कर किसी बहन जी से बात करने लगे लगे | मानो उनको अपने देर से आने का कारण समझा रहे हों | कक्षा में किसी का भी ध्यान नहीं रहा | सब एक एक पल गिन रहे थे |</p><p>--------------- </p><p>जैसे - जैसे दिन बीतते गए, चन्दन खुलते चले गया | अब उसका जो स्वरुप सामने आया , वो उसके गरमा-गरम लोहे वाली छवि के एकदम विपरीत था | उसमें उसके हँसमुख भाई दीपक की छवि दिखती थी - शांत विजन की नहीं | न ही लड़कियों से बात करने से वह कभी कतराता था | साहू सर मुक्ता मिश्रा को स्नेह से 'शक्कर मिश्री' कहते थे | चन्दन ने भी उसे 'शक्कर मिश्री' कहना शुरू कर दिया | </p><p>प्राथमिक शाला की सबसे खराब बात यह थी कि वहां के मूत्रालय काफी गंदे होते थे | फल ये होता था कि लड़के तो बाहर , इधर-उधर जहाँ एकांत दिखे, या दीवार की आड़ हो (जैसे कक्षा १ ड के पीछे की दीवार) या हैज़ की झाड़ियां हो, वहां नज़र बचाकर धार छोड़ देते थे पर लड़कियों की बड़ी मुश्किल होती थी | पता नहीं, शायद उन्होंने पांच घंटे अपने आप को रोक रखने आदत बना ली हो | </p><p>अब पेशाब की छुट्टी मांगने के लिए लड़के किस ऊँगली का इशारा करते थे और लड़किया किन उँगलियों को आगे करती थी, मैं इस विषय में ज्यादा नहीं कहूंगा - आपको याद ही होगा | जैसा मैंने कहा, लड़कियां , एक शैतान कलवंत कौर को छोड़कर, शायद ही कभी साहू सर के सामने अपनी उँगलियाँ सामने करती थी | लड़के तो जब घूमने का मन करे, साहू सर के आगे छोटी उंगली तान देते थे | मुझे याद है, दूसरी कक्षा में इन सब से निजात पाने के लिए बडी बहनजी, गाँधी बहन जी ने एक पांच मिनट के लघु अवकाश भी लागू करने की घोषणा की जो दो पीरियड के बाद मिलती थी | पीरियड - पहली कक्षा में - हा... हा.. हा...| </p><p>उस दिन चन्दन तो पानी पीने का बहाना बनाकर कक्षा से बाहर निकल गया | उद्देश्य साफ था - शाला प्रांगण की एक परिक्रमा करना | सबके साथ शायद साहू सर को भी आश्चर्य हुआ होगा, जब पतली-दुबली, गोरी चिट्टी भूरे काले आँखों वाली मुक्ता मिश्रा ने दो उंगली आगे कर दी | </p><p>"जाओ|" साहू सर ने कहा | </p><p>अगले ही क्षण कलवंत कौर भी स्कर्ट समेटे, बुरा सा मुंह बनाये साहू सर के सामने दो उंगली करके खड़ी हो गई | </p><p>"एक-एक करके जाओ |" साहू सर भन्नाये | </p><p>तभी चन्दन दास दौड़ते हुए अंदर आया ," सर शक्कर मिश्री रो रही है |"</p><p>"क्या हुआ ?" साहू सर झट से अपनी कुर्सी से उठे | </p><p>शायद वह संडास की गन्दगी या बदबू थी कि मुक्ता मिश्रा ने संडास के बाहर ही उलटी कर दी थी और सफाई कर्मचारी कोंडैय्या , जो हरदम खाकी कमीज पहने, सर पर साफा बंधे घुमा करता था, मुक्त मिश्रा को डाँट रहा था | साहू सर को बताने के पहले चन्दन ने मुक्ता मिश्रा का पक्ष लेने की कोशिश की तो उसने चन्दन को ही घुड़क दिया | </p><p>----------</p><p>अब तस्वीर थोड़ी- थोड़ी बनने लगी थी | सुरेश बोपचे , चन्दन दास , विनोद धर और भोला गिरी की चौकड़ी धीरे धीरे आकार लेने लगी थी | चारों के चारों किसी भी भिड़ जाने वाले, उछल कूद में तेज़, गली गलौच से न कतराने वाले थे | हालाँकि उन समान विचारधारा के सहपाठियों अगर कोई थोड़ा बहुत अलग था तो वह चन्दन था | उसे पुस्तकों से उतना परहेज नहीं था | उसे अपनी सीधी बात मेज पर पटकने में कोई परहेज नहीं था - भले वह किसी के भी विरद्ध जाए | साथ ही कुछ और था, जो अक्सर कभी न कभी, किसी न किसी प्रसंग के रूप में सामने आ जाता था | जिसके कारण चंदन अपने आप को अकेला महसूस करने लगता था | जिसका निवारण काफी हद तक दो साल बाद कालकर बहनजी ने किया था | अक्सर वह प्रसंग कहीं और से नहीं, पुस्तकों से ही बाहर टपक पड़ता था | सब से पहले विनोद धर हँसता था और फिर दबे रूप से या खुलकर और लोगों की हंसी छूट जाती थी | </p><p>अब बाल भारती में एक कहानी थी , जिसमें विपरीत दिशा से आते दो बकरे नदी पार करना चाहते थे और नदी पर लकड़ी का एक संकरा पुल था | अब कहानी में बकरों के नाम कुछ भी हो सकते थे - चक्खन , मक्खन, सोहन मोहन, राम श्याम - कुछ भी | </p><p>फिर उनका नाम लालू और कालू रखने का क्या तुक था ?</p><p>------------</p><p><b>चन्दन चाचा के बाड़े में -</b></p><p><i>३० अप्रैल को रिजल्ट निकला और भारती अग्रवाल, जो तिमाही में तीसरे और छमाही में दूसरे नंबर पर आयी थी - वह वार्षिक में पहले नंबर पर पहुँच गयी | वो राजू (राजीव) सिंह, जो तिमाही और छमाही में शीर्ष स्थान पर था, वार्षिक में तीसरे स्थान पर खिसक गया | मैं तिमाही में दूसरे स्थान पर था और छमाही में तीसरे स्थान पर लुढ़क गया | उसके बाद जिन लोगों ने वार्षिक में भारती के पहले आने की भविष्यवाणी की थी, उन्हीं लोगों ने यह आशंका जताई थी कि उसी तर्ज़ पर मैं चौथे स्थान पर खिसक जाऊंगा | मेरी मां ने कहा, तू सेक्टर दो वाले हनुमान जी से 'सच्चे मन' से प्रार्थना कर | अब मैं वापिस दूसरे स्थान पर तो आ गया पर यह जानकर बड़ा क्षोभ हुआ कि भारती ने हम दोनों -मुझे और राजीव - को पीछे धकेल दिया था | </i></p><p>चन्दन कोई ऊपर की श्रेणी में तो कहीं नहीं था पर वह इस बात से बड़ा प्रसन्न था कि वह भोला गिरी, सुरेश बोपचे और विनोद धर से ऊपर आया है |</p><p>अब प्रतिशोध की जो ज्वाला हृदय में भभकी, उसके प्रतिकार का कोई अवसर नहीं प्राप्त हुआ, क्योंकि जुलाई में जब स्कूल खुला तो भारती अग्रवाल गायब थी | पता नहीं कहाँ चले गयी | अब साहू सर भी शाला में नहीं थे | कक्षा अध्यापक की भूमिका बिजोरिया बहनजी ने सम्हाल ली जिन्हें बड़ी कक्षा के शरारती छात्र मोटी बहनजी कहते थे | अब जब कहते थे तो कोई न कोई कारण तो होगा ही | </p><p>तो दरी में बैठने की अवधि भी संपन्न हो गयी, क्योंकि नए कक्ष में डेस्कों की चार कतारें थी | मनमोहन, जो कि एक साल पहले तक आर्यसमाज शाला में पढता था, वो हमारी शाला में और हमारी कक्षा में ही आ गया | पहले दिन उसे पहचानना मुश्किल नहीं था | क्योंकि, सारे बच्चे यूनिफार्म वाली आसमानी कमीज पहने थे और वह हरी कमीज , जिसकी जेब में तितली बानी हुई थी - पहन कर आया था | </p><p>"क्या हुआ मनमोहन ? " बिजोरिया बहनजी ने पूछा | </p><p>"जी बहन जी , जी, दरजी ने अभी तक पोशाक सिल कर नहीं दी है जी |"</p><p>बिलकुल हु-ब-हु यही उन दिनों हम लोगों के बात करने का तरीका था | शिक्षकों से वार्तालाप करते समय किसी भी वाक्य में चार से कम 'जी' लगाना बे-अदबी मानी जाती थी | </p><p>------------</p><p>भिलाई में सब्जी के दो बड़े बाजार लगते थे - बोरिया और सुपेला | सुपेला तो घर ज्यादा दूर नहीं था | मार्केट भी रविवार को भरता था | इसलिए वह ज्यादा सुना हुआ था | लेकिन बोरिया तो अच्छा खासा दूर था | बावजूद इसके वहां से भी लम्बा लक्ष्मण यादव और रवींद्र पढ़ने के लिए पैदल चलकर शाला क्रमणक ८ आएं - आज ये सोचकर हैरानी होती है | </p><p>एक तरफ वे दो थे तो दूसरी तरफ ठेकेदार का लड़का मोटू प्रदीप अग्रवाल था | वो और उसका बड़ा भाई अनूप, जो पांचवी में आया - कोहका से आया करता था जिसके बारे में तो कभी सुना भी नहीं था | प्रदीप ने ही बताया था कि सुपेला के भी आगे था - कोहका | मगर दोनों भाई अलग अलग साइकिलों पर आया करते थे | </p><p>क्या तुमने हाथी के बच्चे को साइकिल चलाते देखा है ? </p><p>समझ रहे हैं, मैं क्या बोल रहा हूँ ? जाहिर है, जब कोई इतना मोटा हो तो मित्रों को चिढ़ाने के लिए एक नया लक्ष्य मिल गया था | पर चन्दन की तरह प्रदीप मोटे को गुस्सा नहीं आता था - कभी नहीं | वह हरदम हँसते रहता था | </p><p>अब चन्दन और उसकी गाढ़ी छनने लगी | </p><p>बिजोरिया बहन जी को पान कहने का बहुत शौक था | जाहिर है, उसके लिए वो पान वाले पंडित जी के बेटे या उसके चचेरे भाई को ही भेजता थी | अब पंडित के दोनों लड़के शाला में अनियमित होने लगे थे | तब वो पान लाने के लिए भोला गिरी को भेजती थी | </p><p>"जी बहन जी, मैं भी जाऊँ ?" चन्दन दास पूछता | </p><p>"हाँ, जाओ |" बिजोरिया बहनजी पान का विवरण कागज़ पर लिखते हुए कहती | संभव है, पान बहुत भारी होते थे, शायद एक बच्चा उठा न पाए | या एक बच्चा विवरण का कागज़ सम्हाले और दूसरा पैसे या पान | बहन जी को उनकी ईमानदारी पर पूर्ण विश्वास था | वैसे भी बच्चे ईमानदार होते ही हैं | शैतानी को ईमानदारी से नहीं जोड़ा जा सकता | </p><p>बहन जी को आलू गुंडे खाने का भी बहुत शौक था | उसके लिए वह सुरेश बोपचे को भी भेज देती थी, क्योंकि आलू गुंडे वो अपने लिए ही नहीं, एकाध और बहन जी के लिए भी मंगाती थी | इस कार्य के लिए चन्दन का सहायक की भूमिका के लिए अनुमति लेना आसान था | मुझे लगता था, शाला की चहरदीवारी में चन्दन का दम घुटता था | जब मुंह में पानी लाने वाली खुशबू फैलाते हुए आलू गुंडे आते, बिजोरिया बहनजी हमें शुद्धलेख या कोई लम्बा सा काम पकड़ा देती और फिर दो या तीन (चटोरी) बहन जी घर परिवार की बातें करते | आराम से आलू गुंडा खाते | इस बात का मुझे हरदम मलाल रहा कि बहन जी ने कभी मुझे आलू गुंडा लाने नहीं भेजा | मुझे भी खुली हवा का झोंका अच्छा लगता था | शायद उन्हें मेरे पैसों के लेनदेन पर मुझ पर भरोसा नहीं था | शायद उन्हें लगता था कि मैं गरमागरम आलू गुंडा नीचे गिरा दूंगा | शायद दुकानदार मुझे ठंडा और बासी आलू गुंडा पकड़ा देगा और मैं चुपचाप ले आऊंगा | ऐसे कार्यों के लिए तो दबंग लड़कों की आवश्यकता पड़ती है | | </p><p>एक दिन बहन जी अपनी छोटी सी बच्ची को कक्षा में ले आयी | </p><p>काफी छोटी सी बच्ची, जो घुटनों के बल ही चल सकती थी | अब मैं कामकाजी शिक्षिकाओं की परेशानी समझ सकता हूँ | हो सकता है, घर में कोई आया या भृत्य हो - जो आज छुट्टी पर हो | हो सकता है, सास बच्ची को सम्हालती रही हो जो आज खुद बीमार पड़ गयी हो | जो भी हो - कक्षा के सारे बच्चे उस छोटी सी बच्ची को देखकर खुश हो गए- खासकर लड़कियां | अब बच्ची एक हाथ से दूसरे हाथ किसी गुड़िया की तरह लड़कियों की पंक्ति में घूमती रही | </p><p>चन्दन को यह सब बिलकुल रास नहीं आ रहा था | बिजोरिया बहनजी की कक्षा में उपस्थिति उसने ख़ारिज कर दी | एक नन्ही सी बच्ची पर अत्याचार ?</p><p>उसने वहीँ खड़े खड़े लड़कियों को हिदायत दी, "ठीक से पकड़ो | अरे बच्ची को चोट लग सकती है | जुमा, ऐसे मत पकड़ो | रेजीना , नाख़ूग से खरोच लग जाएगी | " फिर उसने सरिता को डाँटा ,"गर्दन मुड़ जाएगी | सम्हाल के पकड़ो |" जब भी वह कुछ कहता ,वह बच्ची गर्दन घुमाकर उसकी ओर ध्यान से देखने लगती | शायद चन्दन भी वही चाहता था | जब बच्ची उसकी और देखती तो वह अजीब सी 'टी ट ट " आवाज़ निकालता | फिर वह बच्ची उसकी और देखकर मुस्कुराने भी लगी | </p><p>छोटे बच्चों की मुस्कान कितनी निश्छल और निर्मल होती है, मैं पहली बार देख रहा था | थोड़ी बहुत चन्दन से ईर्ष्या भी हो रही थी, लेकिन आश्चर्य तो कई गुना ज्यादा हो रहा था | चन्दन का ये मैं एक नया ही रूप देख रहा था | उसके शुष्क ह्रदय में वात्सल्य का ऐसा भाव छिपा होगा, मैंने सोचा भी नहीं था || हालाँकि उसके निर्देश पूर्णतः व्यावहारिक थे, लेकिन लड़कियां तो लड़कियाँ , खुद बिजोरिया बहनजी एक बार सहम सी गयी | चन्दन ठीक ही तो कह रहा था | इन अति उत्साही नादान बच्चियों का क्या भरोसा ? शायद कोई जोर से पकडे और बच्ची की त्वचा लाल हो जाये | शायद कोई सम्हाल न पाए और बच्ची गिर पड़े | </p><p>दूसरा कारण यह था कि कक्षा तो आखिर चल ही रही थी | बच्चों को कुछ पढ़ाना भी तो था | बिजोरिया बहन जी ने बच्ची को अपनी बड़ी सी मेज के बीचों बीच लिटा दिया और वह श्याम पट की और बढ़ गई - तीन अंकों का गुणा भाग सिखाने लगी | पूरी कक्षा का ध्यान शायद श्याम पर ही लगा था | बच्ची कब उठकर डेस्क में ही इधर उधर चलने लगी, किसी को कोई पता ही नहीं चला | </p><p>अचानक बिजोरिया बहनजी को लगा कि आसपास कोई हलचल हुई है | अगले ही क्षण चन्दन दास डेस्क के नीचे से निकला ," जी बहन जी , जी ये छुटकी की पायल | " उसके हाथों में बच्ची की चाँदी की पायल थी | </p><p>वो बच्ची बीच से, घिसट घिसट कर घुटनों के बल चलती हुई मेज के एक छोर तक पहुँच चुकी थी | उसने वहां से नीचे झाँका और शायद ऊंचाई या गहराई का अन्दाजा लगते ही वह रोने लगी | </p><p>अगले ही क्षण वह चन्दन की गोद में थी | बहन जी की अनुमति लिए बिना वह उस रोती हुई बच्ची को कक्षा से बाहर ले गया | जैसी अस्पष्ट आवाज़ आ रही थी , उससे इतना तो स्पष्ट था कि बच्ची का रोना बंद हो गया था और चन्दन उसे शाला के पीतल के बड़े घंटे के पास बनी छोटी सी वाटिका में फ़ूल दिखा रहा था | </p><p>-------------------</p><p>राजीव सिंह का "मेरे जू जू जू जूते का हाल देखो" तो याद ही होगा | और मनमोहन की हरी कमीज और "जी बहन जी, जी दरजी ने सिलकर नहीं दिए जी |" तो याद होगा | भिलाई इस्पात संयंत्र यानी 'बी. एस. पी. को ऐसे बच्चों का काफी ख्याल था | इसीलिये तो वे हर साल बच्चों को नए जूते और नए कपडे बाँटा करते थे | </p><p>अब कोई पूछे कि १९७१ में , यानी जब हम पहली में थे, क्यों नहीं बाँटे ? जाहिर सी बात है, बांगला देश से शरणार्थी आये थे | अब दूसरी में एक दिन बिजोरिया बहनजी ने पूछा, "विजय , (साहू सर विजय सिंह से बिजोरिया बहनजी ने मुझे काट छांट कर विजय बना दिया था |), तुम ( यानी बाबूजी) नाम बी एस पी (नॉन बी एस पी ) हो या ऑफिसर ? </p><p>बड़ा दुविधाजनक प्रश्न था | ऑफिसर तो सारे डबल स्टोरी में रहते थे - जैसे कि अशोक भोपले के पिताजी या फिर बड़ी बहनजी खुद | अब मैं "नाम बी एस पी " भी नहीं हो सकता | क्यों ? ये उद्बोधन मैंने पहले कहीं सुना था | हाँ, घर में बिसाहू आया था और वो सर पर रूमाल बांधे था | वो दिहाड़ी मज़दूर था और क्रेन चलाता था | रामनाथ ने उससे पूछा तो उसने बताया था कि वो "नाम बी एस पी " था | अब बाबूजी तो कभी सर पर रुमाल बांधते नहीं थे | </p><p>"ऑफिसर" मैंने कुछ सोचकर जवाब दिया लेकिंन बिजोरिया बहनजी मेरे जवाब से संतुष्ट नहीं हुई | </p><p>"घर से पूछ कर आना |" उन्होंने मुझसे कहा | </p><p>घर में बड़ों में शशि दीदी ही घर पर थी | मैंने उनसे पूछा,"हम लोग ऑफिसर हैं या नाम बी एस पी ? </p><p>मेरी आशाओं पर सैकड़ों घड़े पानी पड़ गया | "नाम बी एस पी |" उन्होंने और बेबी ने एक साथ जवाब दिया | </p><p>"नाम बी एस पी?" मुझे सहसा विश्वास बही हुआ | </p><p>"नाम नहीं | नॉन .. नॉन बी एस पी |"</p><p>"हाँ वही | नान बी एस पी |"</p><p>उस दिन से 'नाम बी एस पी ' का वो ठप्पा मेरी पीठ पर पूरे शालेय जीवन में चिपका रहा | कहीं न कहीं, कभी न कभी, किसी न किसी रूप में वह बेशर्मों जैसे "हें ", "हें", "हें" करता हुआ प्रकट हो ही जाता था | </p><p>----------------</p><p>तो फिर परिणाम क्या हुआ ?</p><p>कपडे की खेप बड़े बड़े कार्डबोर्ड के भूरे डिब्बों में आयी थी | कपडे बाँटने वाले तीन लोग उन कपड़ों के साथ बड़ी बहनजी के कार्यालय के पास खड़े थे | हमारी कक्षा के छात्र फूले नहीं समा रहे थे ,"आज कपडा मिलेगा |" सेक्टर ५ में 'महिला समाज' था | मनमोहन की सुचना के आधार ये कपडे वहीँ से सिलकर आते थे | </p><p>यह तय हुआ कि सारे बच्चों को एक साथ न बुलाया जाये | अनुक्रमांक के हिसाब से तीन तीन बच्चों को कक्षा से भेजा जाना था | बिजोरिया बहनजी कपड़ों के ढेर के पास कुर्सी में जम गयी | </p><p>चन्दन का रोल नंबर था - १२, मेरा १३ और जे मोहन राव (वल्द जे टाटा ) का १४ | </p><p>सबको धनुष से निकले तीर की तरह भागने की जल्दी पड़ी थी | जिन तीन बच्चों का अनुक्रमांक पुकारा जाने वाला था, वे बेंच से बाहर निकलकर डेस्क की दो कतारों के बीच के गलियारे में खड़े रहते, थोड़ा आगे झुके , एक पांव आगे , घुटने मुड़े हुए | वैसे हमारे रजिस्टर का क्रमांक तीन से शुरू होता था, जो विष्णु का था | रोल नंबर एक पर बाबा सिंह था , जिसका नाम पहली कक्षा में ही कट गया था - शायद चोरी के इल्जाम में - वो बाल सुधार गृह {नाबालिग जेल) में था | दो पर शायद कोटि था, जिसने कुछ दिनों में ही शाला छोड़ दी थी | </p><p>कहने का तात्पर्य यह, कि चन्दन (१२), मैं (१३) और जे मोहन राव (१४) और बच्चों की तरह आगे झुके, घुटने मोड़े तैयार खड़े थे | </p><p>"रोल नंबर १२" और चन्दन ऐसे सरपट भागा जैसे बहनजी ने सौ मीटर की दौड़ शुरू होने की सीटी बजाई हो | </p><p>अब आप मेरे दिल की धड़कन सुन सकते थे | कक्षा में अब गिनती के लोग बाकी बचे थे अगर मैं मुड़कर देखता तो मुझे प्रदीप अग्रवाल दिख जाता जो हाथ बांधे शांति से बैठा था | लेकिन मैं तो आगे देख रहा था | </p><p>लिस्ट देखकर, दरवाजे पर खड़ा 'कपडे वाला' आदमी चीखा,"रोल नंबर १४"| और मेरे पीछे से जे. मोहन राव, मुझे धकियाते हुए, बेंचों से टकराते हुए, उड़न छू हो गया | वैसे भी "छुआ छुई" के खेल में जे. मोहन सबसे फुर्तीला था | </p><p>मुझे काटो तो खून नहीं | मैं कुछ देर तक घुटने पर हाथ रखे खड़े रहा | फिर जाकर 'कपड़े वाले' आदमी से पूछा ,"मेरा रोल नंबर नहीं बुलाया ?"</p><p>"क्या नंबर है ? " </p><p>"तेरह |"</p><p>"तुम्हारा नंबर नहीं है | " उसने सूचित किया | </p><p>-----------</p><p>गिनती के तो लड़के बचे थे | एक अशोक भोपले , जो दूसरी बेंच पर बैठा था | और सबसे पिछली कुरसी पर प्रदीप अग्रवाल शांति से हाथ बंधे बैठा था | मैं तो रुआंसा हो गया था | आंसू बस अब टपके, तब टपके मगर प्रदीप के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी | </p><p>"मेरा नाम नहीं बुलाया प्रदीप ?"</p><p>कोई तो था, जिससे मैं दुःख बाँट सकता था | अब अशोक भोपले भी आ गया | खेमचंद बिहारीलाल खिड़की के पास खड़े होकर बाहर, दूर रेल पटरी की और देख रहा था | </p><p>"तू नहीं गया प्रदीप ?"</p><p> मेरे इस प्रश्न को पूछने के पीछे उद्देश्य यह था कि वह कहे, तू भी तो नहीं गया | फिर बातचीत का सिलसिला शुरू हो | </p><p>"मैं तो नॉन बी एस पी हूँ |" प्रदीप ने शांत स्वर में कहा | </p><p>ओह | अब राज़ खुल गया कि मेरा नाम क्यों नहीं बुलाया गया | </p><p>"और मेरे पिताजी ऑफिसर हैं | " अशोक भोपले ने अपनी सफाई दी | </p><p>बड़े आश्चर्य की बात थी | उनको कैसे मालूम हुआ ये सब ? यानी जो उनको मालूम था, मुझे क्यों मालूम नहीं था ?</p><p>"तो तुम्हे मालूम था ? कैसे ?" मैंने पूछा | </p><p>---------</p><p> उनको मालूम था, क्योंकि उनके बड़े भाई और बहन ऊँची कक्षाओं में पढ़ते थे | </p><p>थोड़ी देर में ही बच्चे वापिस आने शुरू हुए | किसी के चेहरे पर ख़ुशी थी | किसी के चहरे पर गम | प्रमोद मिश्रा ख़ुशी से फुला नहीं समा रहा था | राजीव सिंह , मिश्री लाल, खेमचंद प्रकाश , सब दो दो जोड़ी कपडो के बण्डल उठाये "हा हा ही ही" कर रहे थे | </p><p>मैंने कहा , कुछ बच्चे दुखी थे | और चन्दन का मुंह तो एकदम फूला हुआ था | </p><p>और इधर उधर कहीं ना रुक कर वह सीधे प्रदीप अग्रवाल के बेंच पर गया और उसने कपड़ों का बण्डल उसके टेबल पर पटक दिया | </p><p><i>प्रदीप सबसे पीछे बैठा करता था | उसकी डेस्क की टेबल और कुर्सी आपस में जुडी हुई नहीं थी | मेज भी नत समतल होने के बजाए सपाट थी | प्रदीप लम्बा तगड़ा कम, मोटा ताज़ा ज्यादा था | उसके पांव और बच्चों के मुकाबले लम्बे और मोटे थे | देखा जाए तो वह जुडी टेबल कुर्सी पर फिट भी नहीं हो पाता - के कॉर्क की तरह उसका फंस जाना निश्चित था | संबसे पीछे बैठकर इस बेंच को वह सुविधानुसार आगे पीछे खिसका सकता था और साँस ले सकता था |</i></p><p>"ये कपडे तू ले ले बे |" चन्दन ने कपडे उसकी मेज पर पटककर कहा | </p><p>"क्या हुआ? " प्रदीप मुस्कुराया | </p><p>"खोल इसका साइज देख | मैं दसवीं में भी पहुँच जाऊंगा तो इन कपड़ों में फिट नहीं हो पाऊंगा | तू रख ले | " चन्दन गुस्से से उबल रहा था | </p><p>"मेरे पास वैसे ही बहुत कपडे हैं भाई |" </p><p>"तो साइकिल पोंछने का कपड़ा बना लेना |"</p><p>प्रदीप और उसका बड़ा भाई अनूप दोनों कोहका से साइकिल चलाकर आते थे | </p><p>ठीक उसी समय बिजोरिया बहनजी ने कक्षा में प्रवेश किया | शायद उन्होंने चन्दन की बात सुन ली थी | </p><p>"सब लोग अपनी जगह पर जाओ |" अगर वे आदेश नहीं भी देती तो भी लोग भागकर अपनी डेस्क पर जाकर बैठ जाते और अच्छे बच्चों की तरह मुंह में उंगली रख लेते | </p><p>क्रोधी चन्दन भी बेमन से अपनी जगह पर जाकर बैठ गया | </p><p>"किन किन बच्चों को अपने साइज़ का कपडा नहीं मिला ?"</p><p>दान की बछिया के दांत गिनने वालों की संख्या काफी थी | </p><p>इस देश में बहुत से लोगों को पहनने के लिए कपड़ा नहीं मिलता ...|" बहन जी के कहने का आशय कुछ ऐसा था कि - भई , इन कपड़ों को पहनकर तो तुम्हें स्कूल आना है, फैशन परेड में तो जाना नहीं है | फिर झोला हो या लंगोटी , क्या फरक पड़ता है ? ज्यादा हो तो दरजी तो है ही | दो चार हाथ लगा देगा | </p><p>चन्दन फिर भी नहीं माना | अंततः बहनजी को कहना पड़ा,"ठीक है | सुबह की पाली वाले बच्चों को कपड़ा नहीं मिला है | जब उनका डब्बा खुलेगा तो सबसे पहले , जिन बच्चों का साइज़ गड़बड़ है, उनके कपडे बदल देंगे | तब तक बण्डल खोलना मत | कल सुबह नौ बजे ...|" </p><p>---------------------------</p><p>वैसे चन्दन से मिलने के लिए स्कूल का इंतज़ार नहीं करना पड़ता था | इधर-उधर, कहीं से भी जानी पहचानी आवाज़ सुनाई देती, "विजय सिंह" | पीछे मुड़कर देखो तो चन्दन का मुस्कुराता हुआ चेहरा दिख जाता | उसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं थी | आश्चर्य की बात तो यह थी कि वो बाड़े के उस पार था और मैं इस पार | भूरी हरी चमचमाती नयी कमीज पहने - वो अंदर कैसे पहुँच गया ?</p><p>गणेश भगवान की मूर्ति तो गणेश पूजा के समय सेक्टर २ बाजार मैं बैठाई जाती थी लेकिन दुर्गा पूजा में मूर्ति सेक्टर २ मंदिर के प्रांगण में (मंदिर परिसर में नहीं ) प्रतिस्थापित की जाती थी | मंदिर परिसर में घुसने के पहले दो तीन कमरे बने थे | एक में संध्या के समय वर्षों से कोई होम्योपैथिक चिकित्सक बैठा करते थे | एक मंच के लिए जगह थी , जहाँ गर्मियों में राम लीला होती थी | वहीँ पर अभी दुर्गा की मूर्ति विराजमान थी | लेकिन स्टेज के चारों तरफ बाड़ा लगा दिया जाता था ताकि लोग माँ दुर्गा के दर्शन के दूरी से करें | </p><p>तो प्रश्न ये था, कि चन्दन बाड़े के अंदर कैसे पहुँच गया ?</p><p>"तू अंदर अंदर कैसे पहुंचा बे ?" मैंने पूछा | </p><p>"क्यों ? क्या हुआ ? जिसको माँ चाहती है, बुला लेती है | " उसने सहजता से जवाब दिया | </p><p>"मतलब दुर्गा माँ हम लोगों को नहीं चाहती ?" मेरे साथ में सड़क के बचपन का दोस्त मुन्ना था | वो भी एक नंबर का मुंहफट था ," केवल बंगाली लोग को चाहती है | अबे हम लोगों ने भी चंदा दिया है | " </p><p>मुझे लगा, अभी चन्दन फट जायेगा और बाड़े से कूदकर बाहर आ जायेगा | लेकिन वह सिर्फ मुस्कुरा दिया | शायद मूड अच्छा था | मुन्ना ने फिर पूछा,"तो तुम लोग कोई ओर्केस्ट्रा वगैरह करवा रहे हो या ...|"</p><p>"हम लोग का जात्रा होता है न |" </p><p>तभी किसी ने चन्दन को अंदर से आवाज़ दी और चन्दन अंतर्ध्यान हो गया | बात अधूरी रह गयी | सामने केवल माँ की प्रतिमा ही रह गयी थी | </p><p>-------------</p><p>"खड़े हो |"</p><p>"नमस्ते |"</p><p>"बैठ जाओ |"</p><p>"थैन्चू |"</p><p>धत तेरे की | कालकर बहनजी ने फिर सर पकड़ लिया | उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि इन बच्चों को अच्छे गुण कैसे सिखाये जाये , जो कि अति आवश्यक थे |</p><p>आखिरी का जुमला ही सारा खेल बिगाड़ रहा था | </p><p> पहले उन्होंने 'खड़े हो, जय हिन्द, बैठ जाओ " और "धन्यवाद" की कोशिश की | लेकिन "धन्यवाद" के बदले बच्चों में मुंह से "धनबाद" ही निकल रहा था | </p><p>"तुम लोग धन्यवाद बोलना चाहोगे या 'थैंक यू' बोलोगे?" उन्होंने पूछा | चलो, 'थैंक यू ' की कोशिश करते हैं |"</p><p>जब "थैंक यू " कोशिश की तो चन्दन दास की ऊँची आवाज़ ने सबकी आवाज़ दबा दी ,"थैन्चु" | </p><p><i>तीन सालों में ये हमारी तीसरी शिक्षक/शिक्षिका थी | लेकिन अगले तीन वर्षों तक वो हमारे साथ रही | </i></p><p><i>अब विद्यार्थियों का समूह भी तो बदल गया था | प्रदीप पता नहीं, कहाँ चले गया | पंडित के दोनों लड़के अंतर्ध्यान हो गए | कोई कहता था, फ़ैल हो गए, पर उसकी सम्भावना कम थी | क्योंकि दूसरी तक अगर कोई बच्चा फ़ैल होता भी था, तो भी उसे ऊपर की कक्षा में चढ़ा दिया जाता था | चंद्रावती नहीं दिखी तो लोगो ने (लड़कियों ने) दबी जुबान में कहना शुरू किया कि उसकी शादी हो गयी है |साइकिल दुकान वाले की लड़की नसीम नहीं थी और डाकिये की बेटी लीलावती भी नज़र नहीं आयी , हालाँकि कलावती अब भी क्लास में थी | जीवन गायब था | तालाब के किनारे महुआ के पेड़ों पर अचूक निशाना लगाकर फल तोड़ने वाला खेमचंद बिहारीलाल गायब था | </i></p><p>बहुत ही जल्दी कालकर बहनजी ने पहचान लिया था कि कक्षा के सबसे उधमी बच्चे कौन से हैं और उन चौगड्डे में सबसे अलग कौन है ? जाहिर है, चन्दन ही सबसे अलग था | कहने को तो राजीव सिंह कक्षा का कप्तान था - पहिली कक्षा से ही - क्योंकि वही प्रथम आता था | लेकिन पहले दिन से ही बहन जी ने देख लिया था कि वह कितना निष्क्रिय है | बहन जी कक्षा के बाहर गयी नहीं कि दे हल्ला गुल्ला, धौल धप्पड़, छुआ छुई धड़ल्ले से चालू हो जाता था | </p><p>एक दिन पता नहीं, क्या सोचकर, कालकर बहनजी ने झल्लाकर कह दिया ,"अगर चन्दन पढ़ाई में थोड़ा और अच्छा होता, तो मैं उसे ही मॉनिटर बनाती |"</p><p>इसमें चन्दन का जितना सम्मान छुपा था, उससे ज्यादा राजीव सिंह के लिए आँख खोलने की हिदायत छिपी थी | इसका दूसरा अर्थ ये निकiला जा सकता है कि कप्तान बनने के लिए तुम्हें कक्षा में अव्वल आना पड़ेगा | </p><p>तो "खड़े हो" , यह हिस्सा राजीव सिंह को बोलना था | "नमस्ते" - सारे सुर में सुर मिलाकर कहते | "बैठ जाओ " ये हिस्सा आगंतुक को कहना था | मुश्किल यह थी कि अगर वो न कहे तो ? फिर कब तक खड़े रहना है?</p><p>और बैठने वाले हिस्से का जो चन्दन की ऊँची आवाज़ में "थैन्चू" था, उसमें कालकर बहनजी को अपनी भद्द पिटती नज़र आयी | </p><p>बहनजी ने श्याम पट पर 'धन्य' लिखा | फिर 'अलग से 'वाद' लिखा | </p><p>---------</p><p>"एक पहलवान अम्बाले का, </p><p>एक पहलवान पटियाले का |</p><p>दोनों दूर विदेशों में, लड़ आये हैं परदेशों में ...|"</p><p>कालकर बहनजी ने काव्यांश का ये हिस्सा मुझे पढ़ने सौंप दिया और खुद दरवाजे पर खड़े होकर 'ड' वर्ग की शाह बहनजी से बातचीत में मशगूल हो गयी | उन्हें मेरी परेशानी का जरा भी अंदाजा नहीं था | मैं बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोक पा रहा था | कारन यह था कि मेरे एक एक वाक्यांश पर सुरेश बोपचे और भोला गिरी डेस्कों की दो कतार के बीच 'मूक अभिनय' कर रहे थे | जब पहलवानों का ज़िक्र आता तो मूछों पर ताव देते | जब अखाड़े पर उतरने का जिक्र आता तो ताल ठोंकते | हद तो तब हो गयी , जब मैंने कहा,"चन्दन चाचा के बाड़े में |" </p><p>यकीन मानिये, कक्षा में शोर मच गया , जबकि कालकर बहनजी दरवाजे पर ही खड़ी थी | वह तुरंत उलटे पांव अंदर आयी और सब शांत | मैं भी शांत | आप सोच सकते हैं, उनका डायलॉग क्या होगा ? हर प्राथमिक शाला की शिक्षिका के तरकश में यह तीर जरूर होता था | </p><p>"मच्छी बाजार है क्या ये ?"</p><p>------------</p><p>क्या चन्दन को अब गुस्सा नहीं आता था ? जरूर आता था | उसके दिल के करीब कुछ तस्वीरें थी | कोई भी उन्हें छूता तो चन्दन का पारा थर्मामीटर फोड़ देता था | लेकिन अब उसके सामने होते कौन थे ? वे ही लोग जिनसे वह खुद को अलग भी नहीं कर पाता था | और बाकी लोगों को भी चन्दन को पिनकाने में खास मज़ा आता था </p><p>इन सब मामलों में विनोद धर बहुत शरारती था | </p><p>वैसे शाला की पुस्तकें भी कहीं न कहींसे कोई मौका जरूर दे देती थी | एक दिन कक्षा में गुरु नानक जी पर एक पाठ पढ़ाया जा रहा था | अभी पाठ शुरू ही हुआ था | प्रमोद मिश्र पढ़ रहा था "...और उनके पिता का नाम .." अगले ही क्षण रोकते रोकते भी विनोद धर की हंसी छूट ही गयी | </p><p>"रुको | " कालकर बहनजी ने हँसते हुए विनोद धर को खड़ा किया। "क्यों हंस रहे विनोद ?"</p><p>विनोद धर के पास कोई जवाब हो तो दे | वो बेचारा तो अब भी अपनी हंसी रोकने की कोशिश कर रहा था | दूसरी ओर बहन जी ने चन्दन का तमतमाया चेहरा देख लिया था | </p><p>एक क्षण तो बहनजी को शायद कुछ समझ में नहीं आया कि क्या कहे ? लेकिन अब करीब करीब सब बच्चों के दूध के दांत गिर चुके थे | यह बिलकुल उपयुक्त समय था बच्चों को सिखाने का कि उन्हें किस बात पर हंसना चाहिए और किस बात पर नहीं | </p><p>"क्या कोई आदमी अगर काला है तो हमें उस पर हॅंसना चाहिए ? क्यों हॅंसना चाहिए ? क्या काला इंसान मूर्ख होता है ? क्या वो कमजोर होता है ? कौन कहता है वो बदसूरत होता है ? वैसे तो किसी मूर्ख , कमजोर या बदसूरत पर हॅंसना अपने आप में ही सबसे बड़ी बेवकूफी है | </p><p>सब सर झुकाये सुन रहे थे | </p><p>"रंग और रूप तो भगवान् का दिया हुआ है | इसका मतलब तुम भगवान् पर हॅंस रहे हो | जिसने सारी दुनिया बनाई , उस पर हँस रहे हो ? तुमने राम और कृष्ण की तो बहुत कहानियां पढ़ी हैं | राम का रंग क्या था ?"</p><p>मनमोहन ने दबी जुबान में उत्तर दिया ,"सांवला" | </p><p>बहनजी ने उसकी बात सुनी अनसुनी कर दी ,"काला | राम जी का रंग काला था | और कृष्ण जी का रंग ?"</p><p>कक्षा में सन्नाटा था ,"कृष्ण जी का रंग भी काला था | अब वे तो भगवान् के अवतार थे | चाहते तो उनका रंग गोरा चिट्टा भी हो सकता था | फिर क्यों उनका रंग काला था ?"</p><p>सच कहा जाये तो उस दिन तक मैंने राम या कृष्ण की कोई भी ऐसी फोटो या प्रतिमा नहीं देखी थी जिनमें उनको काला दिखाया गया हो | और तो और, चंदामामा की कहानियों में भी उनका रंग नीला ही दिखाया गया था | कालकर बहनजी की ये बात गले नहीं उतर रही थी | लेकिन सच्चाई ये भी तो थी कि कभी नीले रंग का इंसान नहीं देखा था | </p><p>उस समय कालकर बहनजी बहुत क्रोधित थी | ये सवाल जरूर मन में कौंधा , कि अगर वे काले थे तो उनको नीला क्यों दिखाया जाता है ? क्या चित्रकार् को उन्हें काला दिखाने में शर्म आती है ? बहनजी का गुस्सा देखकर ये सवाल मैंने भविष्य के गर्भ में दबा दिया जो वहीँ दबा रह गया | न तो कभी कोई प्रसंग उठा और ना ही अगले अढ़ाई सालों में मुझे कभी याद आया | </p><p>कायदे से चन्दन को चिढ़ाना इस घटना के बाद एकदम बंद हो जाना चाहिए था | वह काम जरूर हुआ लेकिन पूर्ण विराम नहीं लगा | वही लोग चन्दन को पिनकाते और चन्दन उनसे अलग नहीं हो पाता | </p><p>तभी तो चौथी कक्षा में जब बम फूटा और चन्दन बाल-बाल बच गया तो कालकर बहन जी के मुंह से बरबस निकल पड़ा ,"चन्दन होता तो वो भी जरूर होता |"</p><p> ----------</p><p> ( क्रमशः )</p><p><br /></p><p><br /></p><p>काल - १९७१ -७६ </p><p>और देखें - </p><p><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2021/12/blog-post_29.html">'च' से चन्दन (भाग २ )</a></p><p><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/09/blog-post.html">'च' से चन्दन (भाग ३ )</a></p><p><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2021/12/blog-post.html">चोरी में साझेदारी</a> </p><p><a href="http://tullubhilai.blogspot.com/2022/01/blog-post_23.html">राजीव सिंह की 'शोले '</a></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-79335000846794350532021-01-19T03:23:00.002-08:002021-11-03T10:13:01.411-07:00सिराज, सैनी, नटराजन , शार्दुल, वाशिंगटन - गौरव गाथा का अंत ?<p> कभी भी देखी या सुनी है ऐसी कहानी ? कप्तान टीम के साथ नहीं ! सारे मुख्य गेंदबाज अनफिट ! मैच शुरू होने के पहले जो नए पांच गेंदबाज टीम में थे, उन्होंने कुल मिलाकर तेरह विकेट लिए थे | जब मैच शुरू हुआ तो उनमें से भी एक गेंदबाज और अनफिट हो गया | एक गेंदबाज को पिछले मैच में रंगभेदी अपशब्दों से अलंकृत किया गया था | यानी मनोबल तोड़ने की पूरी कोशिश थी | </p><p>टेस्ट क्रिकेट के १४३ साल के इतिहास में ऐसी कोई मिसाल है ?</p><p>शायद नहीं | </p><p>पर अब - सब कुछ समाप्त हो गया | कारवां का गुबार कुछ दिनों में बैठ जायेगा | जयमाला के फूल मूरझा जायेंगे | तब न चाहते हुए भी यथार्थ से आँखें मिलाना पड़ेगा | </p><p>निर्विवाद रूप से इनमें से कुछ खिलाड़ी एक दिवसीय मैचों में या फ़टाफ़ट बीस ओवर वाले मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे | इसमें कोई शंका नहीं है | पर क्या इस टोली का कोई भी खिलाड़ी क्या भारत के लिए कोई और टेस्ट मैच खेल पायेगा ? शायद नहीं | </p><p><br /></p><p>भारत का अगला दौरा घरेलू मैदान पर है | ले देकर भारत अधिक से अधिक दो तेज गेंदबाज शामिल करेगा | यदि बुमराह फिट होंगे तो वो तो रहेंगे ही | दूसरे गेंदबाज उमेश, इशांत या अगर शमी फिट हो जाएँ तो वो रहेंगे | ये भी हो सकता है कि भारत हार्दिक को बुला ले | आप खुद सोचकर देखिये - शार्दुल या हार्दिक- आप किसे चुनेंगे ?</p><p>सवाल वही है | वाशिंगटन स्पिनर हैं | यह ज़रूर है कि भारत तीन स्पिनर्स के साथ खेलेगा | लेकिन वाशिंगटन या आश्विन - घरेलु मैदान में आप किसे चुनेंगे? दोनों एक जैसे ऑफ़ स्पिनर्स हैं | फिर आपके पास अगर जडेजा फिट हों तो वे या फिर कुलदीप दूसरे स्पिनर के रूप में खेलेंगे | फिर नदीम ने क्या गुनाह किया कि अच्छे प्रदर्शन के बाद आप उसे भुला देंगे? </p><p>भारत का अगला दौरा घरेलू मैदान पर है | ले देकर भारत अधिक से अधिक दो तेज गेंदबाज शामिल करेगा | यदि बुमराह फिट होंगे तो वो तो रहेंगे ही | दूसरे गेंदबाज उमेश, इशांत या अगर शमी फिट हो जाएँ तो वो रहेंगे | ये भी हो सकता है कि भारत हार्दिक को बुला ले | आप खुद सोचकर देखिये - शार्दुल या हार्दिक- आप किसे चुनेंगे ?</p><p>सवाल वही है | वाशिंगटन स्पिनर हैं | यह ज़रूर है कि भारत तीन स्पिनर्स के साथ खेलेगा | लेकिन वाशिंगटन या आश्विन - घरेलु मैदान में आप किसे चुनेंगे? दोनों एक जैसे ऑफ़ स्पिनर्स हैं | फिर आपके पास अगर जडेजा फिट हों तो वे या फिर कुलदीप दूसरे स्पिनर के रूप में खेलेंगे | फिर नदीम ने क्या गुनाह किया कि अच्छे प्रदर्शन के बाद आप उसे भुला देंगे? </p><p>भारत में घरेलू मैदान में स्पिनरों की कमी नहीं है | अक्षर , जयंत , जलज सब कतार में हैं | फिर आप कभी चहल को भी टेस्ट क्रिकेट में आजमाना चाहेंगे | </p><p><br /></p><p>तेज गेंदबाज़ों के लिए मौका तभी बनता है जब भारत की टीम उपमहाद्वीप से बाहर निकलती है | अफ़सोस की बात है कि ऐसे दौरे मीक़ात भविष्य में होने वाले नहीं हैं | तब तक मुख्य गेंदबाज़ फिट हो जायेंगे | लोगों की याददाश्त भी कमज़ोर होती है | सच कहा जाए तो वाशिंगटन सुंदर के अलावा बाकी सारे खिलाडी पच्चीस पार कर चुके हैँ | कुछ ही दिनों में इन्हें युवा खिलाड़ियों की नयी खेप से मुकाबला करना पड़ेगा | </p><p>काश - ऑस्ट्रेलिया की यह श्रृंखला कुछ और लम्बी होती | </p><p><br /></p><p><br /></p>Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-21050076151974065822015-10-03T01:38:00.002-07:002022-01-19T22:15:06.743-08:00गंगा अवतरण <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<i>कभी चमकी फिर हुई लुप्त,</i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>स्मृति पटल से वह गाथा । </i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>करो स्पष्ट धुंधला चित्र, भरो </i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गागर में सागर हे ज्ञाता । </i><br />
<br />
<b> [1] कारुण्य</b><br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>बीत गए कई युग ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>लौ रही अब थरथरा |<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>डूबी आकंठ निराशा में ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>आत्मा थामे तृण आसरा |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पीढ़ियाँ आये गुजर जाये ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हर यत्न हो चला भोथरा |<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>बूंद को तरसे भगीरथ ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>कब लाओगे तुम जल धारा ?<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>आती जाती पवन कह रही ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>तप हो गया तुम्हारा सफल |<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>यूँ तो कट गए वर्ष कोटि -कोटि ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span> भारी हो गया एक पल |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मुक्ति द्वार अब भी अवरुद्ध ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>आत्मा हो चली विकल |<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>अब विलम्ब क्यों हे प्रौपुत्र ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>ले आओ अंजुरी भर जल |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><i>आशा किरण कभी थिरकती ,</i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>कभी नैराश्य मेघ छा जाता । </i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>करो स्पष्ट धुंधला चित्र, भरो </i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गागर में सागर हे ज्ञाता । </i><br />
<br />
<b>[2] अनिश्चितता </b><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>धधक रही ज्वाला ह्रदय में,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पुरखों की हो कैसे मुक्ति ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>चले हिमालय त्याग राजसुख,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>घोर तपस्या ही थी युक्ति ।<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पत्ते, भस्म, जल , पवन,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>सूर्य किरणे - यही था खान ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>वर्ष सहस्त्र घोर तप नंतर ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>प्राप्त हुआ ब्रम्ह वरदान ।<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>अमृत जल राशि से पूर्ण,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गंगा जब हो अवतरित ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>नर्क से मुक्ति सहज मिले,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पुरखे हो तब पाप रहित ।<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पर गंगा ठहरी स्वर्ग नदी ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मृत्यु लोक से क्या प्रयोजन ?<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>करें कैसे प्रोत्साहित चंचला को,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>सृष्टि निर्माता यही करें चिंतन ।<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>अठखेलियां करे चपला से,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>नव नृत्य हो अप्सराओं संग ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>विसरित स्मृति की,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>स्वर्गिक आमोद के विविध रंग |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>अक्षरशः उतरी आशंका,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>रोष, कोप, पुरजोर प्रतिरोध ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>अंतिम शस्त्र परिजन स्मृति<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मानो शांत हुआ तब क्रोध ।<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गंगा मनुहार हुआ सफल,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हटी बाधा , पर मार्ग नहीं प्रशस्त ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हुई अनावृत्त बड़ी चुनौती,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>सिहर उठा ब्रह्माण्ड समस्त |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><i>गंगा वेग पर कौन संभाले,</i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>संकेत मात्र करें सृष्टि निर्माता । </i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>करो स्पष्ट धुंधला चित्र, भरो </i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गागर में सागर हे ज्ञाता । </i><br />
<br />
<b>[3] आक्रांत </b><br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>किसके रोके रुका समय,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>शीतल रात्रि या धूप कड़ी ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गिरते पड़ते चलते रुकते ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>आ ही गयी विपद घडी |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>चारण , सिद्ध देवगण, ऋषि <br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>अस्पष्ट शब्द, अव्यवस्थित आवृति, <br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>कांपे चरण अष्ट दिग्पालों के ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>ओंठों पर थी वही स्तुति |<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>कार्तिक , बाल गणपति थामे आँचल ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पूछे माँ गौरी से पल पल ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>क्लिष्ट है उत्तर , बाल सुलभ प्रश्न सरल ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>क्या धरा चली आज रसातल ?<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>प्रचंड प्रलय पवन सम प्रश्न ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>होता प्रतिध्वनित पग पग ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>सुर असुर यक्ष ,गण , बलिष्ठ नाग ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गन्धर्व वानर , मानव खग मृग |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पखारती चरण लक्ष्मी उद्धिग्न,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हुआ प्रश्न मुखरित अनायास,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>करती व्यक्त वही आशंका,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>उत्तर पाने का विफल प्रयास |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>विश्राम मुद्रा में लीन जगदीश<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>काश - लेती पढ़ वह मन्दहास |<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>सरल प्रश्न , तो सहज ही उत्तर ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>आस न निराश, गूढ़ न उपहास |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><i>हो प्रलय आसन्न तब ,</i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>नाम एक ही मुख पर आता । </i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>करो स्पष्ट धुंधला चित्र, भरो </i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गागर में सागर हे ज्ञाता । </i><br />
<br />
<b>[3] अभ्युदय </b><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>किया सहज ही गरल पान ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>जिसने तब तारी थी सृष्टि , <br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>सहेज पाएंगे क्या अमृत प्रवाह ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>उन पर है आज सर्व दृष्टि |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>होता दीप्तमान कैलाश शिखर ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>प्रदीप्त हो जाता मान सरोवर ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>जटा जूट भी स्वर्णमय होता ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>सुशोभित करता जो शिव शंकर |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पर रश्मिरथी रवि कहाँ<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हो चला रहस्मयी ढंग से लोप,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>अपरान्ह की उस कठिन बेला<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>में छाया तिलस्मयी घटाटोप |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मेघ आवरण से आच्छादित आकाश, <br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>करें पृथक भुवन से भूतल |, <br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पृथ्वी रक्षा का बाल प्रयास,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पर हुई अगोचर अंतरिक्ष हलचल |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>नंदी और मरुद्गण संग ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>लिए हाथ त्रिशूल और दंड,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>प्रतीक्षारत शम्भू निहारे ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मेघाच्छादित आकाश खंड |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>प्रति क्षण तीव्र कर्कश ध्वनि,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मानो शिलाएँ होती चूर ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>अगले क्षण क्षीण हो जाती ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मानो अश्व दल जाए दूर |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><i>आशाओं के केंद्र बिंदु पर,</i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>बने कैलाशपति भाग्य विधाता,</i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>करो स्पष्ट धुंधला चित्र, भरो </i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गागर में सागर हे ज्ञाता । </i><br />
<br />
[<b>4] पराकाष्ठा</b><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>नीरवता सर्वत्र विराजित ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>जमी वायु है शांत गगन,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>न हलचल , न कोई ध्वनि ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>क्या चंचल गंगा का लड़कपन ?<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>प्रतीक्षारत पथराई आँखें,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>उहापोह और तर्क वितर्क<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>कहाँ हो बेटी गंगा ?<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>शंकर करें मानसिक संपर्क |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>वेग सहेजो बेटी गंगा ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>क्षुब्ध शम्भो की हुंकार क्रुद्ध,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मृत्यु लोक यह ,देवलोक नहीं ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>बसते यहाँ मानव क्षुद्र |<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>लघु जीवन ,त्रुटि की मूर्तियां ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>निर्बल मन पाप संलिप्त ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पुरखों को दें तर्पण ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>आशा है उनकी संक्षिप्त |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>स्नान करें तेरे जल से<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हो पाप मुक्त अनायास ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span> कृषक सींचें खेत धारा से ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>बुझाएं वनचर अपनी प्यास |<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हो तू सुगम यातायात साधन ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पाएं जलचर तुझमें निवास |<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>माँ की ममता पाकर तुझसे ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>करें समृद्धि और विकास |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हो कल्याण तेरा गंगे ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हो जीवन दायिनी पतित पावन | .<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मृत्युलोक की मरुभूमि में,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>कर दे तू नव जीवन सृजन |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><i>आशा दीप कर दे प्रज्ज्वलित, </i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>शिव विमर्श गगन गुंजाता । </i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>करो स्पष्ट धुंधला चित्र, भरो </i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गागर में सागर हे ज्ञाता ।</i><br />
*******************<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>अकस्मात् गिरी उल्काएं,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गुंजायमान तड़ित अगणित ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>तिरस्कारिणी, इतराती ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span> गंगा वाणी हुई प्रतिध्वनित । <br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>प्रकृति से बंधी हूँ मैं,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>क्षमा करें मुझको त्रिपुरारी<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>नियम बंधन के सृजनकर्ता ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>विपरीत अनुदेश क्यों अपरम्पारी ?<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>न कोई आरोह अवरोह स्वर्ग में ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>न कोई पापी संसारी ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>न कृषक करें मार्ग अवरुद्ध ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>न प्यासे वनचारी जलचारी ।<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हूँ उन्मुक्त स्वच्छंद अबला,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>प्रकृति नियम से बेबस नारी ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>युगों से विलग मैं परिजन से ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>विरह अग्नि समझें हे त्रिपुरारी |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>उच्छृंखलता मेरी क्षमा करें प्रभो<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span> इन लहरों पर कैसा बंधन |<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हो सके सम्भालो वेग मेरा,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>प्रतीक्षारत हैं मेरे स्वजन |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हुआ कोलाहल क्रमशः तीव्र <br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>छोड़ा गगन पथ , चली द्रुत गति । ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>ज्यों ज्यों आवर्धित प्रचंड शब्द ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>त्यों त्यों प्रखर हुई स्तुति |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><i>तुषारापात गंगा का यह ,</i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>शिव शक्ति का उपहास उड़ाता । </i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>करो स्पष्ट धुंधला चित्र, भरो </i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गागर में सागर हे ज्ञाता । </i><br />
<br />
<b> [5] संघर्ष</b><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मेघाच्छादित सा निस्तब्ध नभ ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>ध्वनि दिलाये अस्पष्ट आभास ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>शम्भू करें स्थिति संवरण,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span> क्षीण त्रुटि हो भीषण विनाश ।<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हुआ प्रचंड घोर शब्द ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>तब देखा जगत ने अकस्मात् ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>प्रकट हुआ मेघ मध्य ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>भीषण श्वेत प्रलय सा प्रपात |<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>नारी का अभिमान था वह,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>या चिर विरह की पीड़ा ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>देव नदी का प्रबल आवेग ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>या थी उच्छृंखल क्रीड़ा |<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>छोड़ चली गंगा देवलोक ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>श्वेत शक्ति पुंज सी जलधार |<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>त्वरित गति , अथाह जल ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>त्रिभुवन कर उठा हाहाकार |<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><i>स्तुति शब्द मध्य अमृत </i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>जल मृत्यु राग सुनाता । </i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>करो स्पष्ट धुंधला चित्र, भरो </i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गागर में सागर हे ज्ञाता । </i><br />
<i> *************</i><br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>आँखें मीचे होड़ लगाए ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>लहरें शिखर पर उतर पड़े ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>सतह स्पर्श होते ही दर्प से <br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span> चूर, मोती जैसे बिखर पड़े |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>था नहीं वह कठोर धरातल ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मखमली बिछौने सा सौम्य |<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>तीव्र जल राशि दबाव के सम्मुख,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>श्याम सघन वन हो चला नम्य ।<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>शक्ति विकट लहरों पर लहरें,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>तलहीन कुण्ड में जाए धंसती ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>श्याम रज्जु के जाल में<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>,निमिष मात्र में जाएँ फंसती ।<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>अकस्मात् खो बैठी नियंत्रण,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मानो यंत्रवत कठपुतलियां<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>संचालक खींचे अब डोर,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>बंधी समस्त मुक्त अठखेलियाँ ।<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मजबूत वृक्ष सघन वन,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हर धारा सहस्त्र धारा में विभक्त ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गति मंद बल हुआ क्षीण,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>विकराल लहरें हुईं अशक्त ।<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>नीलकंठ का जटाजूट वह,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>तिलस्म और रहस्य से पूर्ण ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>भूलभुलैया, अगणित कंदराएँ ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>विस्तृत निकास कहीं, कहीं संकीर्ण ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>कहीं आरोह, कहीं अवरोह ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>कहीं घुमाव, क्षणिक कहीं ठहराव |<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>भंवर पार कहीं लहरें मिलतीं,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पल भर में पुनः अलगाव ।<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><i>तलहीन ताल हैं यत्र तंत्र ,</i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>जिसमें सम्पूर्ण नीर समाता । <span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span></i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>करो स्पष्ट धुंधला चित्र, भरो </i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गागर में सागर हे ज्ञाता । </i><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><br />
<b> [6] समर्पण </b><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>अंतहीन दुर्गम सुरंगमयी पथ ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>अतिकाय लहरों ने ठानी ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>स्वर्गिक लहरें , ये दुर्गति ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>करें इतिश्री यह कहानी |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>बूँद बूँद में नयी स्फूर्ति,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>संयोजा लहरों ने शेष बल ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>किया संकल्प बहा दें बाधाएं,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>कर दें इस वन को समतल ।<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>लहरों ने थामा लहरों को,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>बना संगठन हुआ विलय,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>चट्टान भेदी प्रहार पर प्रहार,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>जागृह हुआ प्रसुप्त प्रलय |<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>शालीन श्याम वृक्ष हुए नम्य ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गहरी जमी रही , पर जड़ ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>अगले क्षण फिर खड़े हो गए,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पड़ी लहरों को उलटी थपड ।<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>होश खो बैठी लहरें,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हुआ संगठन पल में विघटित ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>करने लगे प्रहार अंधाधुंध,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>दर्प होने लगा कुछ खंडित |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>जटाजूट जल द्वंद्व मध्य ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>शिव स्तुति जाप प्रभाव जमाता ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>करो स्पष्ट धुंधला चित्र, भरो<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गागर में सागर हे ज्ञाता ।<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>समतल करने की कौन कहे ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>सरपट भागने का खोजें मार्ग ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>वही तिलस्म , और भूलभलैया,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मुंह से निकलने लगी अब झाग |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>होने लगी लहरें अब पस्त<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span> यत्न निष्फल , नैराश्य ह्रदय |<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>ओंठों पर आई वही स्तुति ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>समर्पण भाव का हुआ उदय |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>ले लो मुझे छत्रछाया में ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हुई प्रभु मैं शरणागत ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>करो मुक्त इस जंजाल से,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>रहूँ सदा आपसे सहमत |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><i>हुई परिवर्तित कातरता हर्ष में ,</i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>शब्द वही पृथक भाव दर्शाता । </i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>करो स्पष्ट धुंधला चित्र, भरो </i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गागर में सागर हे ज्ञाता । </i><br />
<br />
<b> [6] प्रयाण </b><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>स्तुति से गुंजायमान व्योम,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span> पिछले पैरों पर नंदी खड़े।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>यक्ष, देव ऋषि गन्धर्व,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>करें स्तुति हाथ जोड़े ।<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>शंख ध्वनि , पुष्प वृष्टि चहुँ ओर ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>स्वर्ग नदी अब हुई समर्पित ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>छोड़ी तब एक धार शम्भू ने,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>किया उसे धरा को अर्पित |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>स्वागत स्वागतम् सुस्वागतम ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हे नन्ही बालिका सुस्वागतम,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>तैयार खड़े श्वेत अश्व , कांतिमय स्वर्ण रथ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मृत्यु लोक की अनजान डगर अनजान पथ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मार्ग प्रशस्त को तत्पर भगीरथ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>ऋषि मुनि राजा रंक - सब हैं प्रतीक्षारत<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हर वाद्य पर एक ही सरगम ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>स्वागत स्वागतम् सुस्वागतम |<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पाँव थिरक थिरक जाये रे मितवा ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मन मुदित भरमाये रे मितवा ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>तन पुलकित हर्षाये रे मितवा ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>लहर लहर जहाँ लहराए रे मितवा ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>नर नारी तहँ तहँ गाये रे मितवा ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>क्यारी फुलवारी मुस्काये रे मितवा |<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>अगणित दीप जगमगाये रे मितवा |<br />
<br />
<b> [7]भरतवाक्य </b><br />
साठ सहस्त्र सुत सगर के ,<br />
हुए दग्ध कपिल कोप दृष्टि से ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span> अस्थिर आत्माएं, अतृप्त पिपासा ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span> न हो शांत किसी वृष्टि से |<br />
<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>स्थित पाताल में भस्म अवशेष ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>उद्विग्न हो उठे भगीरथ.|<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>स्वर्ग से धरती से पाताल ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गंगा चलती रही अविरत ।<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मृतप्राय पक्षी समूह मरू भूमि में,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>झुलसे पंख मूँदते नेत्र ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>जलती भूमि , धूल भरे बवंडर ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>सदियों से शापित शुष्क क्षेत्र ।<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पड़ी शीतल फुहार, अकस्मात ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>दृश्य सम्पूर्ण परिवर्तित पल में ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>करे किल्लोल आल्हादित खग दल,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>भस्म अवशेष समाहित जल में ।<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>नूतन पंख, परिपूर्ण उमंग ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>नील गगन का खुला आमंत्रण ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>होते ओझल देखें निर्निमेष <br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>भरी आँखें खो बैठी नियंत्रण |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>छलके आंसू विलीन हुए,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>निर्झर निर्मल जल धार में ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>देते तर्पण भार मुक्त भगीरथ,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>लौट आये तिलस्मी संसार में |<br />
<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><i>कभी देखें मुड़ भगीरथ प्रयत्न,</i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>अथाह मनोबल की गौरव गाथा ।</i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>करो स्पष्ट धुंधला चित्र, भरो </i><br />
<i><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गागर में सागर हे ज्ञाता । </i></div>
Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-37519053532872133842012-08-18T15:53:00.003-07:002021-11-03T10:06:41.004-07:00बिलसपुरिहा करिया मोटर में भरा के ..... - ३ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
अच्छी आदतें सीखने में थोड़ी परेशानी होती है | लोग बुरी आदतें जल्दी सीख लेते हैं |<br />
<br />
व्यास के घर जाना काफी आसान था | सेक्टर २ और सेक्टर ६ के बीच "सात वृक्ष" (सेवन ट्रीस) सड़क थी | अब वह "सात वृक्ष" क्यों , ये तो यही जाने , जिसने यह नाम दिया , क्योंकि वृक्षों की संख्या कहीं ज्यादा ही थी | एस "सात वृक्ष " सड़क सेक्टर दो को सेक्टर छः से अलग करती थी - इस चौराहे से उस चौराहे तक | जब कभी फूफा आते , तो वो तो किसी साइकिल के ख़ाली होने का इन्जार करते , यो तो फिर बाबूजी या कौशल, कोई उन्हें व्यास के घर छोड़ आते | पर फूफू (बुआ) से कभी इन्जार नहीं होता था |<br />
<br />
"ले थोडा आराम कर | फिर चले जाना |" माँ खाना खाने के बाद उन्हें हमेशा कहती | तात्पर्य यही होता कि तब तक बाबूजी आ जायेंगे और उन्हें स्कूटर में छोड़ देंगे | पर फूफू क़ी बेचैनी शांत नहीं होती थी |<br />
<br />
"नंदू से मिलना है |" हमेशा उनकी रट होती थी |<br />
<br />
नंदू यानी लक्ष्मी भैया | तब माँ कई बार खुद , कई बार किसी और को उनके साथ कर देती | अगर मैं खेलते रहता तो मैं दौड़ कर आता ,"फूफू,व्यास के घर जा रही हो ? मैं भी चलूँ ?"<br />
<br />
तब माँ कहती ,"जा तो बेटा | इनको छोड़ आ | " फिर फूफू से कहती ," इसको रास्ता मालूम है |" रास्ता भला कौनसा कठिन था | सड़क के अंत तक जाजो | सड़क ख़तम भी हो जाये तो भी चलते रहो | बीच का मैदान पर करो | "सात वृक्ष" सड़क आएगी | उसके साथ साथ चलते रहो , सेक्टर पांच की और - जब तक चौराहा ना आ जाये | चौराहा आने के बाद भी उस सड़क पर चलते रहो, अस्पताल पार करो | फिर दाहिने सड़क पर मुड़ो<br />
, अस्पताल के पीछे जाओ ....|<br />
<br />
.. और मेरे पाँव में पंख लग जाते | मैं दौड़कर आगे निकल जाता और फिर रूककर उनकी प्रतीक्षा करता | जब वो पास आते तो फिर दौड़कर जाता और फिर रूककर उनकी प्रतीक्षा करता |<br />
<br />
यहाँ तक सब कुछ ठीक था |<br />
<br />
फिर आती सात वृक्ष रोड | चाहें तो उसके बाएं और चलते रहें चाहे दाहिनी ओर ....| दूर तक वैसे ही चलते जाना था | चप्पल न मेरे पांव में होती और न फूफू के | माँ जरुर चप्पल पहन कर चलती - खटर खटर खटर ...| बीच बीच में हांक लगाती ,"बेटा, सड़क पर मोटर गाड़ी चल रही है | दौड़ो मत ....|" या जैसे ही कोई ट्रक गुजरता , माँ लपक कर मेरा हाथ पकड़ लेती ओर मैं फिर उनके साथ चलने लगता ....|<br />
<br />
यहाँ तक भी सब कुछ ठीक था ....|<br />
<br />
सात वृक्ष सड़क के चाहे दाहिनी ओर चलो या बांयी ओर ... सड़क के किनारे दूर तक चले जाओ | <br />
पर कभी तो सड़क पार करना होता | व्यास का घर सड़क के दाहिनी ओर था |<br />
<br />
...बस यहीं कुछ गड़बड़ था |<br />
<br />
माँ सबको रोकती, पहले दाहिनी और देखती, फिर बांयी और ... | कोई मोटर साईकिल, या कर या स्कूटर आता देखती तो सबको हाथ फैलाकर रोकती |<br />
<br />
यहीं सब गड़बड़ था |... | इधर माँ हाथ फैलाकर रोकती और मैं फैले हाथ के नीचे से सरपट भागकर सड़क पार कर लेता ....|<br />
<br />
...पता नहीं , कार या मोटर साइकिल के और मेरे बीच कितना फासला रहता ...| मैं तो देखता नहीं था | बस अंधाधुंध दौड़ पड़ता ....| पर जब हांफते हुए माँ और फूफू सड़क पार करते तो उनका कलेजा मुंह में आ चूका होता ...|<br />
"तू ठीक तो है न बेटा ...| हे राम... | मेरा बेटा कितने तेज भागता है ....| मैं तो डर ही गयी थी ....| ठीक तो है न ... | राम राम राम ...|"<br />
<br />
आने के समय फिर उनकी चेतावनी सुनकर अनसुनी करते हुए मैं दौड़कर सड़क पार कर लेता ....|<br />
<br />
.. और घर आने के बाद फूफू यह कारनामा घर में सबको सुना देती ,"मेरी तो जान ही निकल गयी थी ...| कितने तेज भागता है ...| गाड़ियों के आने के पहले ही उस पार ....|"<br />
<br />
यहाँ तक सब ठीक था , पर मुझे क्या पता था कि मेरे कारनामों ने किसी और को भी प्रोत्साहित किया है ....|<br />
<br />
तो उस दिन व्यास लोगों को फिल्म 'आराधना' दिखाने ले जाने वाले थे कोई रोक टोक नहीं थी | शर्त यही थी कि जिन्हें फिल्म देखना हो वो व्यास के घर दो बजे के आसपास एकत्र हों ताकि चित्रमंदिर सिनेमाघर में तीन से छः का शो देखा जा सके | जिनका दोपहर का स्कूल था, उनका जाना संभव नहीं था | थोड़े दिन पहले मैं व्यास , माँ और अन्य लोगों के साथ चित्र मंदिर में 'आन मिलो सजना' देखकर आया था | ज्यादा फ़िल्में देखने से बच्चों की आँखें खराब होती हैं - इसलिए मेरा पत्ता कट गया |<br />
फूफू , शकुन और संजीवनी उसी 'सेवन ट्रीज़ ' के किनारे किनारे चलते हुए व्यास के घर जा रहे थे | एक जगह रुक कर लोग हाथ पकडे, सड़क पार करने केलिए इधर उधर देख रहे थे कि अचानक हाथ छुड़ाकर संजीवनी अंधाधुंध सड़क पार करने भाग खड़ी हुई | तेज़ रफ़्तार से आती मोटर साईकिल के चालक ने होर्न बजाय तो वह और घबरा गयी | ब्रेक मारते मारते और मोटर साईकिल का हेंडल मोड़ते मोड़ते भी आखिर ठोकर लग ही गयी |<br />
<br />
डामर की पक्की सड़क पर संजीवनी गिर पड़ी |<br />
<br />
"फूफू " संजीवनी रोये जा रही थी | सर से खून निकल रहा था |<br />
<br />
मोटर साईकिल वाले ने तुरंत मोटर साईकिल रोकी और संजीवनी को गोद में उठा लिया ," नहीं बच्ची, सड़क पर ऐसे नहीं दौड़ते |" आनन् फानन में उसने जेब से रुमाल निकाला और संजीवनी के सर पर बांध दिया |<br />
<br />
"मैं इसको सेक्टर पांच के अस्पताल ले जा रहा हूँ , माई |" वह फूफू से बोला , "आप चलेंगे तो अच्छा रहेगा | नहीं तो मैं वहीँ इन्जार करूँगा |"<br />
<br />
************<br />
<br />
"आपको देखकर मोटर साइकिल चलाना चाहिए | ऐसा थोड़े कि गद्दी पर बैठे और 'भों' अंधाधुंध एकसीलेटर घुमा दिया | आंये - बाएं घोड़े दौड़ाये जा रहे हैं ...|" व्यास मोटर साईकिल वाले पर बरसते रहे और मोटर साईकिल वाला सर झुकाए उसके शांत होने का इंतज़ार करते रहा | ज्यादा गहरी चोट नहीं लगी थी | डाक्टर ने सर पर पट्टी बाँध दी थी | जब व्यास के शब्दों क़ी बौछार शांत हुई तो मोटर साइकिल वाले ने कहा ,"ठीक है भाई | मुझसे गलती हो गई | पर बच्ची को भी ऐसे नहीं दौड़ना चाहिए ...| आप उसे सिखा दो |"<br />
"क्या सिखा दूँ ? क्या गलती है इसकी ? आपको देखकर मोटर साइकिल चलाना चाहिए | बच्ची को क्या मालूम है, सड़क पर क्या आ रहा है क्या नहीं ?"<br />
<br />
लोग चलते चलते बाहर आने लगे | मोटर साइकिल वाला पान क़ी दुकान के पास रुका |<br />
"हाँ, आप ठीक कह रहे हैं | पान खायेंगे आप ?"<br />
पान खाते खाते उसने एक कागज़ पर अपना पता लिख कर दिया ,"ये मेरा पता है ..| कोई ऐसी वैसी बात हो तो खबर कर दीजिये |" फिर फूफू क़ी और इशारा करके पूछा ,"ये आपकी ...|"<br />
"माता जी ...|" व्यास ने कहा |<br />
"माता जी प्रणाम |" वह बोला , "और ये बच्ची आपकी ..."<br />
"बहन ..." व्यास ने जवाब दिया |<br />
<br />
",ममेरी बहन ? है न ? " व्यास को उलझन में पड़े देखकर वह बोला, "दरअसल जब ये गिरी तो इसने आवाज़ दी 'फूफू ' ....|"<br />
<br />
*************<br />
<br />
घर में अफरा तफरी मची थी | कोई तैयार हो रहा था, कोई तैयार होने में मदद कर रहा था | कोई इसलिए मुंह फुलाए बैठा था कि उसे जाने के लिए मौका नहीं मिल रहा था | कारण यह था कि परीक्षा सर पर थी | न तो मुझे परीक्षा देनी थी, न संजीवनी को | शायद हम जा सकते थे |<br />
<br />
"माँ , मैं जा रहा हूँ ?" मैंने पूछा |<br />
<br />
"हाँ |" अलमारी से अपना भारी भरकम करधन निकालते माँ बोली |<br />
"और संजीवनी ?" <br />
"क्या भीड़ बटोरकर ले जा रहे हो मामी ?" व्यास झुझलाते हुए बोले ,"और जाने का फायदा ही क्या है ?"<br />
<br />
व्यास सर पर भुनभुनाते हुए खड़े थे | फूफू अलग तैयार हो रही थी |<br />
<br />
मैं बैठक में गया, जहाँ एक कोने पर शकुन चुपचाप बैठी हुई थी |<br />
"तुम भी चल रही हो नंदिनी ?" मैंने धीमे आवाज़ में पूछा |<br />
"नहीं |" वैसे पूछना बेमानी था - वर्ना शकुन भी तैयार होने वालों क़ी कतार में शामिल होती |<br />
"क्यों ? परीक्षा है क्या ?" मैंने माँ को बेबी को मना करते समय परीक्षा क़ी गुहार लगाते सुना था |<br />
शकुन कुछ नहीं बोली | <br />
<br />
*********<br />
<br />
पावर हाउस से नंदिनी तक जाने वाली बस में जबरदस्त भीड़ थी | हम लोग खड़े रहे | व्यास का सर करीब करीब बस की छत को छू रहा था | बस डगमगाते हुए बढ़ी और थोड़ी ही दूर पर एक जोर क़ी छींक मारी | मैं माँ क़ी साडी पकडे हुए खड़ा था | पर कब तक ? पाँव जवाब देने लगे और मैं जमीन पर बैठ गया |<br />
<br />
एक सज्जन ने तरस खाकर सीट छोड़ी और अपनी धर्म पत्नी के बगल में माँ को बैठने का इशारा किया | अगर माँ बैठती तो मुझे फायदा ये होता कि मैं माँ क़ी गोद में बैठ जाता | पर माँ ने फूफू क़ी ओर देखा | फूफू भी न नुकर करते रही | सज्जन बेचारे असमंजस खड़े के खड़े रहे |<br />
<br />
खैर , थोड़ी ही दूर चलने के बाद एक तीन लोगों क़ी लम्बी सीट खाली हुई | शशि दीदी खिड़की के पास वाली सीट पर बैठी , फिर माँ और फिर फूफू | मैं माँ क़ी गोद में बैठकर इधर उधर देखने लगा | कंडक्टर पास आया | <br />
<br />
"कितने लोग हैं ?" कंडक्टर ने पूछा |<br />
"चार |" व्यास ने बटुए से पाँच का नोट निकालते हुए कहा | <br />
"चार या साढ़े चार ? ये बच्चा कितने साल का है ? "<br />
"पाँच ....| " बस में लिखा था, पाँच से बड़े बच्चे का आधा टिकट लगेगा | <br />
"पांच ? ये तो बड़ा लगता है ...|"<br />
" तो गोद में भी तो बैठा है ...|" व्यास ने अपना सारा गुस्सा कंडक्टर के सर पर उड़ेल दिया |<br />
<br />
पता नहीं कब तक मैं सोते रहा | बस तो चलते ही रही - शाम रात में बदल गयी | <br />
माँ ने मुझे झकझोरा |<br />
"ट्रिंग " शशि दीदी ने रस्सी खींचकर घंटी बजाई |<br />
थोड़ी देर चलने के बाद बस रुक गयी |<br />
<br />
जहाँ बस रुकी , घुप्प अंधकार छाया था | फूफू, जो बस में भी व्यास को समझाते आई थी, अभी भी रुक रुक कर उन्हें कुछ न कुछ हिदायत देते जा रही थी |<br />
<br />
गाँव था या क़स्बा या शहर - कुछ भी पता नहीं | सड़क थी या नहीं, पता नहीं - बस, हम लोग सम्हल-सम्हल<br />
कर चल रहे थे |<br />
"ये ही घर होना चाहिए |" व्यास ने कहा |<br />
वही घर था - एक अधेड़ उम्र के सज्जन हमारे स्वागत के लिए घर के बाहर तैयार खड़े थे | माथे पर तिलक, होठों पर व्यापारिक मुस्कान ... |<br />
<br />
***************<br />
<br />
नंदिनी की जामुल यात्रा के बाद सबने शकुन की शादी के लिए हामी भर दी | सबने -केवल व्यास को छोड़कर |<br />
"मामा , वो मेरी सगी बहन है ...|" व्यास ने मानो ब्रह्मास्त्र चलाया | बाबूजी के भरसक समझाने पर भी व्यास टस से मस नहीं हो रहे थे |<br />
"तो हम लोग दुश्मन थोड़ी हैं भाई | समझो बातों को |" बाबूजी ने फिर समझाया<br />
फूफा और फूफू ने मनाया | रमा ने समझाया |<br />
"ठीक है, अगर आप लोग ने निर्णय ले ही लिया है , तो .....|" व्यास के दिल में आग सुलगते ही रही |<br />
<br />
***********<br />
<br />
'टूटी फ्रूटी' -
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">एक</span> स्वादिष्ट
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">चॉकलेट</span> थी |
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">चॉकलेट</span> के ऊपर में पीले रंग की पन्नी लगी होती थी - प्लास्टिक की नहीं कागज़ की | पन्नी बड़ी ही सावधानी से खोलना पड़ता था | नहीं , नहीं -
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">चॉकलेट</span> खाकर पन्नी तो वैसे भी हम लोग सहेज कार ही रखत थे - फेंकते नहीं थे | पर 'टूटी फ्रूटी' की पन्नी अलग होती थी | उसके पीछे एक अंक लिखा होता था और डायनोसौर की फोटो बनी होती थी |
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">चॉकलेट</span> थोड़ी महँगी थी - दस पैसे की एक | फोटो एक अल्बम में लगाना पड़ता था | कौशल भैया एक एक करके फोटो जोड़ते जा रहे थे | कुल नव्वे फोटो चिपकाने थे | अब उनके इस प्रोजेक्ट में बबलू भैया भी जुड़ गए थे | दोनों अक्सर मिल क़र अल्बम देखते रहते - कितनी तस्वीर और बाकी रह गयी है ...| कई बार एक नंबर कई कई बार निकल जाता - कई बार लड़के एक विशेष नंबर के लिए तरस जाते |<br />
<br />
"अडतीस नंबर बहुत मुश्किल से निकलता है |" बबलू भैया बोले | उनके अल्बम में अडतीस नंबर की जगह अभी भी खाली थी |<br />
"तुझे किसने कहा ?" कौशल ने पूछा |<br />
"शंकर कह रहा था |"<br />
"वो ? सड़ा दाँत ? उसके पास अडतीस नंबर भर - भर के होगा | इसलिए सबको उल्लू बना रहा है , ताकि लोग हडबडा कर उससे अडतीस नंबर बदली क़र लें |"<br />
<br />
कौशल भैया ने मेज की दराज खोली और "डुप्लीकेट" की गड्डी निकाली जिसे वे प्लास्टिक के रबर बेन्ड में करीने से लगाकर रखे हुए थे |<br />
<br />
"इतने सारे डुप्लीकेट ...? देख जरा तिरसठ नंबर कितना सारा है - एक, दो तीन , चार ... |तीन सैंतीस नंबर, बीस - दो... अठारह - दो .. आठ, सतहत्तर , उन्सठ - सब डुप्लीकेट ... | क्यों न एक अल्बम और शुरू क़र दें ? " कौशल भैया बोले |<br />
"लकी नंबर निकलना तो चाहिए |" 'लकी नंबर ' को सेक्टर छह
की एक दूकान में अल्बम में बदला जा सकता था |<br />
<br />
"इससे अच्छा तो चिकलेट च्विंगम के झंडे जमा करना है |" बबलू भैया बोले ," केवल पैंतालिस देशों के झंडे...|"<br />
"<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">तुझे करना हो तो कर | </span>मुझे नहीं करना ...| कौन खाए च्विंगम ? पहले मीठा मीठा लगता है, फिर चबाते रहो रबड़ को | सब बकवास है |"<br />
<br />
एक-एक करके वे तस्वीरें इकठ्ठा क़र रहे थे | फिर किसी छुट्टी के दिन बैठकर आटे क़ी लेई बनाते और फोटो के चरों कोने पर सावधानी से लेई लगाकर चिपका देते |<br />
<br />
मैं गोंद लाऊं ?" एक दिन मैंने बुद्धिमानी दिखाई |<br />
"गधे | कितनी गोंद खर्चा करेगा | पता है, गोंद क़ी बोतल कितने क़ी आती है ?"<br />
"फोटो के केवल कोने में गोंद क्यों लगाते हो ? " मैंने पूछा |<br />
"ताकि निकालने में आसानी रहे |"<br />
"मतलब, अगर गलत नंबर पर गलत फोटो लगा दी तो ?" <span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">मुझे तो वही सूझा |</span><br />
"और भी कई
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">कारण </span> है | कई बार साफ़ फोटो मिल जाती है, वो चिपका दो |" डुप्लीकेट की अदला बदली में - जो कि किसी से भी हो सकती थी, दोस्त, दोस्त के दोस्त , दोस्त के दोस्त के दोस्त या किसी अजनबी से भी - अक्सर गन्दी , तुड़ी मुड़ी फोटो मिलती थी |<br />
<br />
"पूरी फोटो में गोंद लगाओ तो पृष्ठ
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">मुड़</span> जाता है | " बबलू ने समझाया |<br />
<br />
"ऐसे जानवर - कहाँ रहते हैं ?"<br />
<br />
"ये डायनोसौर थे | सब चले गए , इस संसार से | इस धरती पर मेहमान बनकर आये थे | थे तो लम्बे चौड़े, पर मेहमान चाहे कितना बड़ा क्यों ना हो, एक दिन उसे जाना ही पड़ता है |"<br />
<br />
<br />
घर में मेहमानों कि संख्या में अचानक बढ़ोत्तरी हो गयी थी - काफी ज्यादा बढ़ोत्तरी ... | अक्सर कई लोग बाहर सोते थे | माँ ने अलमारी,
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">अटैची </span> से ऐसी -ऐसी चादरें और दरियाँ निकाली, जो
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">मैंने </span> कभी देखी न थी | हो सकता है - मेरे जन्म
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">से </span> पहले की हों | उन प्रगैतेहसिक काल के बिछौनों के बावजूद बिछौने कम ही पड़ जाते थे |<br />
उन मेहमानों से कौशल , बबलू या मुझे कोई परेशानी नहीं थी | जाते- जाते वे मुझे दस पैसे ,
बबलू को चवन्नी और कौशल को अठन्नी या रुपया पकड़ा कर जाते | कई बार ये रकम - कम से कम - मेरे लिए थोड़ी ज्यादा हो जाती |<br />
"क्यों न हम एक और अल्बम शुरू कर दें |" कौशल भैया हरदम सलाह देते |<br />
'लकी नंबर ' पाने का एक अच्छा तरीका ये था कि 'टूटी-फ्रूटी' का एक बक्सा ही खरीद लिया जाये | बक्से में पच्चीस 'टूटी फ्रूटी ' होते थे और वो दो रूपये का आता था | बक्से में ढेर सारे डुप्लीकेट तो होते थे, पर एक और कई बार दो दो लकी नंबर निकल आते थे |<br />
बबलू भैया अपने सिक्के डॉक्टर धोते के दिए अल्युमिनियम के डिब्बे में डाल देते | मैं अपने पोरहे की झिर्री से उसे अन्दर घुसा देता | मेहमानों के जाने के बाद वे हर बार सिक्के गिनते |<br />
"बस पच्चीस पैसे और ....|" एक दिन कौशल भैया ने कहा ,"फिर एक बक्सा खरीद कर लायेंगे ...|"<br />
"एक चवन्नी ... |" अब मुझसे रहा नहीं गया | मैंने अपने पोरहे की झिर्री से झाँका | उसे उल्टा किया | ढेरों सिक्के नज़र आये | कई बार उल्टा - पलटा | छन..
छन ..
सिक्के बजते रहे | काश, मेहमानों के जाने के बाद मैं तुरंत सिक्के पोरहे में न डाले होते ....|<br />
क्या जैसे सिक्के अन्दर घुसे, वैसे बाहर नहीं निकल सकते ?<br />
मुझे एक तरकीब सूझी | मैंने माँ के स्वेटर बुनने की सलाइयाँ ली और पोरहे को उल्टा करके सिक्के जिर्री में सिलाई डालकर सिक्के निकालने की कोशिश करने लगा | काफी मशक्कत के बाद एक चाचा नेहरु छाप बीस पैसे का सिक्का निकल ही गया | चलो, कम से कम इतना सही, मैं पैसे लेकर कौशल भैया की कुटिया में गया |<br />
<br />
"ये सिक्का ?" वो कुछ समझे नहीं |<br />
"टूटी फ्रूटी का बक्सा खरीदने के लिए ....|" मैंने थूक निगलते हुए कहा |<br />
"तुझे टूटी फ्रूटी अच्छी लगाती है ? ज्यादा चॉकलेट मत खाया कर | दांत
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">सड़</span> जायेंगे |"<br />
"नहीं, मैंने सोचा, लक्की नंबर निक्ल ....|"<br />
"तुझे लक्की नंबर की पड़ी है ?" कौशल भैया बोले ,"कहाँ से लाया पैसे ?"<br />
"पोरहे से |"<br />
कौशल भैया हतप्रभ ... ," जा वापिस पोरहे में डाल दे | अरे जा न भोकवा ... | तू तो डांट खिलवाएगा बाबूजी से ...| "<br />
<br />
<br />
****************************<br />
<br />
<br />
देर रात मेरी नींद खुली | गला सूख गया था | सावधानी से चलते हुए मैं उठा | परछी में अँधेरे में टटोल टटोल कर गया - लोग दरी में सोये होते हैं - किसी को ठोकर न लगे | <br />
<br />
टटोलकर स्टोर रूम के दरवाजे के पास पहुंचा और पंजे के बल खड़े होकर सावधानी से परछी की लाइट जलाई | <br />
परछी तो सूनी थी - कोई भी नहीं था |<br />
लक्ष्मी भैया तो अब व्यास के साथ सेक्टर ५ के घर में रहने लगे थे | और शकुन ?<br />
<br />
<em>"महलों का राजा मिला, रानी बेटी राज करेगी |</em><br />
<em>ख़ुशी - ख़ुशी कर दो बिदा , तुम्हारी बेटी राज करेगी |"</em><br />
<br />
शकुन की शादी हो गयी थी | | रानी बेटी <span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">का महल </span>कितना भव्य था , वह हमने उस दिन की अपनी नंदिनी बस यात्रा पर देखा ही था | | राजा - याने रामानुज - जामुल की सीमेंट फैक्टरी में निहायत सामान्य कामगार थे | चेहरे पर चेचक के दाग, काली मूछें - गठा हुआ शरीर ....| व्यास को तो वो फूटी आँखों ना सुहाए | तिस पर शादी के समय और फिर बाद में विदाई के वक्त - दूल्हे के तेवर - जो अक्सर भारत में देखने को मिल जाते हैं | ना भी हो - तो भी पूर्वाभास जो मन में समाया रहता है , उससे सामान्य सी हरकतें भी नखरा लगने
लगती हैं | ऊपर से आग में घी का का कर रही थी , ससुर जी का व्यवहार ....| पर अब वही शकुन का घर था - सास , ससुर, देवर , ननद - यही तो शकुन का संसार था | वही उसकी अब ज़िन्दगी थी |<br />
<br />
दूर सुपेला में ग्रामोफोन में टूटती आवाज़ में गाना अब भी बज रहा था -<br />
<br />
<em>बेटी तो है, धन ही पराया , पास अपने कोई कब रख पाया |</em><br />
<em>भारी करना न अपना जिया , तुम्हारी बेटी राज करेगी |</em><br />
<br />
*********<br />
<br />
मुन्ना, क्या टेम्पो चार पैसे का आता है ?" मैंने मुन्ना से पूछा |<br />
<br />
"भग बे ... | चार पैसे में तो उसकी फोटो भी नहीं मिलेगी |" मुन्ना ठहाका लगा कर हँसा |<br />
<br />
शकुन और व्यास की शादी आगे पीछे ही हुई - उन में थोडा बहुत ही अंतराल रहा होगा, ज्यादा नहीं |<br />
<br />
मुझे तो व्यास की शादी में जाने का मौका नहीं मिला , लेकिन जो लोग गए, वो अपने साथ ढेर सारी कहानियां लेकर आये | जैसे, औरतों की उलाहना भरी 'गारी' या 'गाना' ,"चार पइसा के टेम्पो लाने , जर गे तोरे नाक हो ..." या "लडुआ पप्ची ' इतने कड़े कि उन्हें खाने के लिए लोगों को हथौड़ी से फोड़ना पड़ा | कहानियाँ सुन कर हँसते हँसते हम लोगों के तो पेट में बल पड़ गया |<br />
<br />
किन्तु जो नहीं हँसे , वो शख्स और कोई नहीं खुद व्यास थे |<br />
<br />
व्यास बहुत ज्यादा गंभीर हो गए | वैसे भी व्यास के गुस्से से हम सब को काफी डर लगता था | शादी को लेकर व्यास थोड़े ज्यादा तनाव ग्रस्त हो गए थे | और पता नहीं क्यों, लोगों को ये लगा कि वो शादी से नाखुश हैं | <br />
<br />
जब वो गुस्से में होते थे तो या तो माँ बात कर सकती थी, या बाबूजी | दोनों के बात करने का अंदाज़ अलग था | माँ का अंदाज़ थोडा छेड़छाड़ वाला था | वो छेड़छाड़ का अंदाज़ आग में घी डालने का नहीं, बल्कि ठंडी फुहार का काम करता था |<br />
<br />
" तो कब ला रहे हो अपनी दुल्हन को ?" माँ ने उन्हें छेड़ते हुए कहा |<br />
" मत याद दिला मामी | एकदम बेंदरी ( बंदरिया ) है वो |" व्यास खीजकर बोले |<br />
<br />
व्यास को गुस्से में देखकर मैं खिसक जाने में ही अपनी भलाई समझता था | खिसक के कहीं दूर भाग जाओ | पर 'बेंदरी' सुनकर मेरे कदम थम गए | मुझे मदारी और बंदरों का नाच याद आया | <br />
<br />
"वाह भाई वाह | " माँ बोली ,"सुन्दर तो है | और परियाँ तो आसमान में रहती हैं | नाक नक्श तो अच्छे हैं | क्या खराबी है भला ?"<br />
" मामी | मैं चेहरे मुहरे की बात नहीं कर रहा | बेहद जिद्दी है | पता नहीं, कितने बड़े घर के बेटी है | बस, मुझे अपने साथ लेकर चलो | साथ लेकर चलो .. साथ लेकर चलो ..|"<br />
"तो ठीक ही तो है | 'पठौनी' करवा के यहाँ ले आओ | यहाँ आकर खाना बनाएगी | कपडे धो देगी | "<br />
"मामी, तुमको समझाना ही मुश्किल है | मुझे थोडा बड़ा घर तो मिलने दो | उस छोटे घर में लक्ष्मी कहाँ रहेगा और हम लोग कहाँ रहेंगे ?" <br />
"इतनी सी बात ? लक्ष्मी को यहीं छोड़ दो |"<br />
" इतने दिन से तो यहीं, इसी घर में था मामी | नहीं, अब मेरे साथ रहेगा | मेरा भाई है - सगा भाई |"<br />
<br />
माँ निरुत्तर हो गयी | फिर बोली ," हाँ बेटा | तुम लोग पढ़ लिख गए | अब कमाने वाले हो गए हो | मुझे ज्यादा तो समझ में आता नहीं | बस इतना जानती हूँ कि शादी के बाद लड़की के लिए घर बदल जाता है | उसे ले आओ , जल्दी ...|"<br />
"अरे मामी, मैं घर खोज ही रहा हूँ |तब तक सब्र करना चाहिए या नहीं ? घर मिलने तो दो | फिर जब वो आएगी तो आप सब को खाने पर बुलाऊंगा ...|"<br />
<br />
********************<br />
<br />
परछी दिन में कई रूप बदलती थी | खाने के समय वह एक भोजन गृह बन जाता था - जहाँ जगह जगह लोग पीढ़े में बैठकर बातें करते हुए या रेडियो सुनते हुए खाना खाते थे | रात को किसी न किसी आगंतुक के लिए खाट लग जाती थी | दिन में माँ कभी मसाला कूटती थी तो कभी चावल चुनती थी | लेकिन जब सब कुछ खाली हो जाता था , मैं और संजीवनी माँ से चिरौरी करते थे और माँ ऊपर से लोहे की छड़ों से बने हुक निकालकर लकड़ी का झूला लगा देती | खासकर, जब कोई मेहमान सपरिवार आता , यानी जिसमें छोटे बच्चे भी होते <br />
तो हमारी दरख्वास्त का वज़न बढ़ जाता था ," माँ, मनोज को झुलना झूला दें ? " झूला काफी बड़ा था, जिसमें कम से कम चार छोटे बच्चे आसानी से बैठ सकते थे |<br />
पर मैंने कहा "छोटे बच्चे " - मैं भला छोटा बच्चा थोड़ी था | जैसे - जैसे बड़ा होते जा रहा था , मेरी शैतानियाँ बढ़ते जा रही थीं | झूले की लकड़ी की चहर दीवारी के अन्दर शराफत से बैठना मुझे पसंद नहीं था | मैं झूले में खड़े होकर, इधर उधर लटक कर झुलाने का काम किया करता था | कभी चहर दीवारी के पटर में खड़ा हो जाता था, कभी लोहे की छड पर ही लटक जाता था | कभी सीधे दोलन करते झूले को इधर उधर डगमगा देता था, तो कभी चक्कर खिला देता था |<br />
उस दिन मैं जोश में आकर पटरे पर चढ़कर लोहे की छड पकड़कर झूला जोर से झूला रहा था | अचानक लोहे की छड के हुक झूले से खुल गया और मैं औंधे मुंह गिरा | लेकिन लोहे की छड मैं <span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;"> कस</span> <span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">कर </span> पकडे था | डगमगाता हुआ लकड़ी का झूला मेरे माथे से टकराया और जोर से कडकडाते हुए एक और झुक गया |<br />
माँ रंधनी खड़ से भन्नाते हुए आई |<br />
"हाँ, हाँ टुरा , अउ सत्ती जा ( हाँ छोकरे, और बदमाशी कर) | " माँ गुस्से से चिल्लाई | शायद एक झापड़ भी जड़ देती, पर रुक गयी |<br />
"माँ, इसके सर से खून निकल रहा है |" संजीवनी बोली |<br />
माँ साडी से खून रोकने की कोशिश कररही थी , पर खून की
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">धारा</span> बहते ही जा रही थी .. |<br />
<br />
"मामी, मैं घुठिया जा रहा हूँ | कुछ कहना है ?"<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">कोई दरवाजे पर खड़ा था ...</span> व्यास ... <span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">|</span> अचानक - <span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">इस समय ...?</span><br />
मगर जब उन्होंने
माँ को मेरे माथे का खून रोकते देखा तो वह यात्रा तत्काल रद्द हो गयी |<br />
इसे तो अस्पताल ले जाना पड़ेगा ...| जल्दी ...|<br />
<br />
********<br />
<br />
<i>झूलना के झूल , कदम के फूल ,</i><br />
<i>नवा कोठी उठत हे , जुन्ना कोठी फूटत हे ...|</i><br />
<i><br /></i>
....तड, तड तड ... धडाम ....|<br />
मेरे कान में अभी भी वह कर्कश स्वर गूंज रहा था | मैं एक बेंच पर लेता हुआ था और कमरे में तेज रौशनी हो रही थी |<br />
"तुम उठ गए ? क्यों उठ गए ? चुपचाप लेते रहो ...| " मोटे चश्मे वालेडॉक्टर ने हिदायत दी |<br />
मैं चुपचाप आँखें बंद किये लेटे रहा |<br />
<br />
मुझे डॉक्टर के क़दमों की आवाज़ बाहर जाते सुनाई दी |<br />
" हड्डी तो नहीं टूटी | पर टांका लगाना पड़ेगा |"<br />
"ठीक है | " ये शायद व्यास की आवाज़ थी | शायद नहीं, उनकी ही आवाज़ थी | वही तो मुझे लेकर आये थे | हाँ, याद आया |<br />
<br />
"टांका - याने टंकी, जिसमें हम लोग पानी भरते है ? " मैंने सोचा |<br />
अरे, मैंने चोरी चोरी , जरा सी आँखें खोली | उसके हाथ में तो सुई और धागा है | अच्छा ठीक है - कपड़ा सिलने वाली सुई नहीं है तो बोरा सिलने वाला सूजा है | अच्छा ठीक है - बोरा सिलने वाला सूजा नहीं तो जूता सिलाई वाली सुई है - पक्का | कुछ तो है ...|<br />
<br />
उसने धातु की चिमटी से चोट कुरेदी और तेज़ दर्द की टीस उठी | <br />
"चिल्लाओ मत | स्कूल जाते हो ? नहीं जाते ? कमाल है | इतने बड़े बच्चे हो ...|"<br />
दर्द के मारे मेरी आवाज़ भी नहीं निकल रही थी |<br />
"अच्छा, दो और दो कितने होते हैं ....|" उसने सुई त्वचा में घुसा दी ....|<br />
"अआह .... चार ....|"<br />
"शाबास | और चार और दो .....?"<br />
<br />
*******<br />
<br />
कायदे से तो पहले पर्ची कटवाना चाहिए था , तभी हम डॉक्टर से मिलने जा सकते थे | लेकिन मेरे सर से इतनी तेज़ी से खून निकल रहा था की नर्स मेरी बांह पकड़ कर सीधे डॉक्टर के पास ले गयी थी | पर अब पर्ची तो कटवानी थी |<br />
<br />
पर्ची काटने वाला शकल से ही घाघ लग रहा था | <br />
"तुम बी. एस. पी में काम करते हो ?' उसने बिना किसी लाग लपेट के, व्यास से सीधे मतलब की बात पूछी |<br />
"हाँ| " व्यास ने जवाब दिया |<br />
"ये कौन है ?" उसने कियां नज़रों से मुझे घूरा |<br />
"ये मेरा भाई है |" व्यास ने कहा |<br />
"तुम्हारा अपना भाई है ?" <br />
<br />
गनीमत तो ये थी कि लाइन में तीन या चार लोग ही पीछे खड़े थे | वर्ना 'हो, हो' का शोर मच गया होता |<br />
<br />
"हाँ |" व्यास ने कहा |<br />
"मेडिकल कार्ड दिखाओ|" <br />
"मेडिकल कार्ड अभी तो है नहीं | घर में है |"<br />
"बिना मेडिकल कार्ड के पर्ची कैसे काटूँ बाबू साहेब ? तुम्हारा भाई है | चोट घर में लगी थी | कार्ड घर में है | कार्ड लेकर आना चाहिए |" तीन चार वाक्य वह लगातार बोल गया <br />
|उसने फिर पूछा , "तुम्हाहरा भाई है न ? अपना भाई ?' इस बार उसने 'अपना' शब्द पर जोर दिया |<br />
"हाँ , मेरा भाई है |" व्यास को अब तक तो गुस्सा आ जाना चाहिए था , पर वे शांत ही रहे |<br />
"मतलब कि, कार्ड पर इसका नाम है न ?"<br />
व्यास ने कोई जवाब नहीं दिया |<br />
"कार्ड पर इसका नाम है ना ? तुम्हारा सगा भाई है तो नाम तो होना चाहिए | जरुर होना चाहिए |"<br />
"नहीं, मेरा सगा भाई नहीं, मामा का लड़का है |"<br />
<br />
"वही तो हम इतनी देर से पूछ रहे थे बाबू साहेब |" ज़रा उसकी चौड़ी मुस्कान तो देखो | मानो, उसने हवलदार ने किसी चोर को पकड़ा हो ." हम पूछ रहे थे न | अपना भाई - अपना याने सगा भाई ...| इतनी हिंदी आती ना है आपको ? तो क्या आपके मामा बी. एस. पी. में हैं ?"<br />
बी .एस पी . याने भिलाई स्टील प्लांट - जिसकी चिमनियाँ अहर्निश धुआं उगलते रहती हैं | अस्पताल, विद्यालय, घर ,सड़कें - सब बी एस पी की ही तो हैं | व्यास तो बी. एस. पी में थे मगर बाबूजी नहीं ... |<br />
<br />
*******<br />
<br />
वह संदूक अपेक्षकृत कुछ भारी था | इतना भारी कि सेक्टर ५ के चौक तक पहुंचते - पहुँचते आधी दूरी श्यामलाल ने साइकिल चलाई और व्यास पीछे संदूक पकड़कर बैठे | फिर व्यास ने साइकिल चलाई और श्यामलाल पीछे संदूक पकड़कर बैठे | उस टीन के संदूक में व्यास का अंजार पंज़र सामान , जो उन दिनों से सेक्टर २ के घर में पड़ा था , जब से वे वहां रहते थे - पुस्तकें, कपडे , कम्बल और न जाने क्या-क्या ..... | अब शायद उन्हें गलती का अहसास हो गया होगा कि मुझ लटकन को उन्होंने क्यों साथ ले लिया होगा | मैं किसी काम का तो था नहीं, बस साइकिल के आगे के डंडे पर बैठा हुआ था | मैं बस, लक्ष्मी भैया से एकाध कहानी सुनने के लोभ से चले आया था | कई दिनों से वे सेक्टर २ के घर में आये नहीं थे |<br />
<br />
सेक्टर ५ के चौक के पास पहुँच कर दोनों का दम फूल गया | दोनों
साइकिल से उतर गए | अब घर वैसे भी पास में ही था |संदूक को केरियर पर रखा और तीनों पैदल चलने लगे | <br />
अब अँधेरा हो चुका था | दूर दूर लगी सड़कों क़ी बत्तियां जल रही थी | सेंट्रल एवेन्यू के ट्यूब लेत पर बड़े बड़े पतंगे खेल रहे थे |<br />
साइकिल एक और हम तीन ... ! लेकिन तीनों पैदल चल रहे थे और संदूक साइकिल के
केरियर पर रखा था | व्यास और श्यामलाल हाल के दिनों की घटनाओं की चर्चा कर रहे थे और मैं बोर हो रहा था , क्योंकि न तो मुझे कोई सरोकार था और न ही मेरे पल्ले कुछ पड़ रहा था | अचानक श्यामलाल ने पूछा ," और शकुन ? ठीक लग रहा है नया घर ?"<br />
<br />
श्यामलाल ने जान बूझकर या अनजाने में , मानो व्यास की दुखती रग पर हाथ रख दिया | शादी के बाद से, बल्कि शादी के पहले से, कोई न कोई बात को लेकर अनबन बनी ही थी | अगर व्यास गुस्से वाला था तो वे<br />
तो लड़के वाले थे | उनकी अकड़ स्वाभाविक थी |<br />
<br />
"रामानुज ? अरे, क्या कहूँ ? एकदम बेंदरा (बन्दर) है ....|"<br />
रामानुज थोड़े दिन पहले साइकिल के करियर पर ढेर साड़ी मूली भाजी लेकर आये थे - माँ को देने | तब मैंने पहली बार देखा था | चहरे पर हलके चेचक के दाग, गांठ हुआ शरीर ,चेहरे पर मुस्कान ...| उसके जाने के बाद माँ ने बताया था कि वो शकुन के 'घरवाले' हैं |<br />
<br />
'बन्दर' तो वो किसी दृष्टिकोण से नहीं नज़र आये पर व्यास क़ी परिभाषा कुछ अलग ही होती थी | मैं ठहाका लगा कर हँसा ,"हा .., हा... , हा...!<br />
अब शायद उनको ध्यान आया कि मैं भी उनके साथ चल रहा हूँ |<br />
<br />
"क्या हुआ टुल्लू ?" श्यामलाल मामा बोले, "बड़े जोर से हँसी आ रही है |"<br />
"कुछ नहीं ...ही ही ही ... |" मेरी हँसी नहीं रुक रही थी ," बेंदरा , बेंदरी ....|"<br />
"बेंदरा ? कौन बेंदरा ?" श्यामलाल ने लीपापोती के लिहाज़ से पूछा |<br />
"बेंदरा यानी रामानुज - शकुन के घरवाला | है न ?"<br />
"और बेंदरी ?"<br />
" व्यास की घरवाली |"<br />
और व्यास सन्न रह गए | मानो गुस्से में उन्होंने जो पत्थर फेंका था, वह अचानक वापिस मुड़कर उन्हें लगा हो |<br />
"तुझे किसने बताया मटमटहा ?" श्यामलाल मामा ने पूछा |<br />
"उस दिन व्यास माँ से बात कर रहे थे ....|"<br />
<br />
"वाह !" श्यामलाल मामा बोले ," बच्चों के सामने बातें करना बड़ा खतरनाक है भाई | अच्छा टुल्लू, चल एक गाना सुना ...|"<br />
"कौन सा ?"<br />
"कोई भी, जो घर के आने तक चले ...|"<br />
<br />
मैंने कुछ सोचा फिर गाना शुरू किया ,<br />
" <i>इकतारा बोले तुन तुन ... | इकतारा बोले , क्या कहे वो तुमसे , तुन तुन तुन .. |</i><br />
<i>बात है लम्बी मतलब गोल , खोल न दे कोई इसकी पोल | तो फिर उसके बात | उ हूँ , हूँ हूँ ... </i>!"<br />
<br />
<br />
******<br />
<br />
रामलाल मामा की मांढर सीमेंट प्लांट में नौकरी लगी और वो हमेशा के लिए भिलाई छोड़कर चले गए |<br />
वैसे भी रामलाल मामा की शादी हो गयी थी | अब वो हमारे घर में नहीं रहते थे | रेल पटरी के उस पार , सुपेला में कहीं झोंपड़ी किराए में लेकर रहते थे | जिस छोटी सी फैक्टरी में वे काम करते थे , वह भी सुपेला में ही थी | फिर भी उनका घर आना जाना लगा ही रहता था | खासकर रविवार के दिन तो बदस्तूर आया करते थे |<br />
वही किस्सा व्यास का था | अब वो सेक्टर ५ में एक छोटा घर किराए में लेकर रहते थे | घर निहायत ही छोटा था , फिर भी इतना बड़ा जरुर था -की वो और लक्ष्मी भैया वहां रह सकें | फिर भी वे रविवार को जरुर कभी लक्ष्मी भैया को लेकर कभी घर में छोड़कर - हमारे घर आया करते थे |<br />
<br />
दोनों के रविवार आगमन का एक उद्देश्य जरुर होता | वे माँ से उन सब्जियों की लिस्ट मांगते, जो हफ्ते भर की जरुरत के लिए पूरी होती | या यूँ कहें कि पूरी होनी चाहिए थे, पर अक्सर किसी न किसी मेहमान के अकस्मात् आगमन से गड़बड़ा जाती थी |<br />
लेकिन उनके वहां रहने का एक फायदा यह हुआ कि एकाध मेहमान वहां भी टिक सकता था |<br />
<br />
कभी फूफू (बुआ) गाँव से आती थी तो मैं या संजीवनी उन्हें व्यास के घर छोड़ देते थे | रास्ते में एक मेन रोड पड़ती थी - वही 'सेवन ट्रीस '(सात वृक्ष)|| मेन रोड इस लिए कि उसमें स्कूटर, मोटर या मोटर साईकिल चलती थी | और हाँ, टेम्पो - टेम्पो जरुर चलते थे |<br />
<br />
रामलाल मामा के <span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">भिलाई </span> से जाने के बाद समय का एक टुकड़ा यादों के गर्त में समा गया |<br />
<br />
अब श्यामलाल मामा थोड़े हताश से हो गए | वो मुंह अँधेरे घर से निकल जाते और देर रात गए आते | बाबूजी ने उन्हें एकाध बार समझाया कि देर सबेर
नौकरी तो लगेगी ही | निराशा क़ी क्या बात है ?<br />
<br />
और एक दिन वो अखबार वाले पर ही बरस पड़े |<br />
<br />
घर में तीन पेपर आते थे - "नव भारत" - जो व्यास भैया के हिसाब से कांग्रेसी पेपर था, "युगधर्म" - जो जनसंघी था और 'नई दुनिया " - जो बेपेंदी का लोटा था | 'बेपेंदी का लोटा' - याने जब जहाँ कहीं लुढ़क जाए | ये तीन पेपर वर्षों से आते थे | शायद बाबूजी संतुलित विचारधारा के पक्षधर थे - पता नहीं |<br />
<br />
जो भी हो - 'नई दुनिया' के पेपर बांटने वाले को बड़ी जल्दी पड़ी रहती थी | अक्सर वह चलती साइकिल से ही - बड़ी अदा से पेपर घुमाकर फेंका करता था | साइकिल क़ी रफ़्तार में रत्ती भर का फरक नहीं पड़ता था |<br />
<br />
एक दिन उसने घुमाकर पेपर फेंका और वह श्यामलाल मामा क़ी खोपड़ी से टकराया | गनीमत थी कि अखबार कागज में छपते थे , पत्थर पर नहीं |<br />
<br />
"हाँ , हाँ ," श्यामलाल मामा चिल्लाकर बोले , "अपने दूकान से फेंक दिया करो | घर में पहुँच जाएगा |"<br />
... और पेप्पर वाला ऐसा शर्मिंदा हुआ , ऐसा शर्मिंदा हुआ कि अगले दिन से साइकिल रोककर, पेपर करियर से निकल कर, गेट खोलकर, दस कदम चल कर, पञ्च सीढियां चढ़कर, घर <br />
के अन्दर आता और पेपर करीने से टेबल पर सजाकर रख देता ...|<br />
<br />
***************<br />
<br />
एक -एक तिनका, एक एक तिनका, एक एक तिनका .....<br />
न जाने कितने बार मैंने कितनी सारी चिड़ियों को घोंसला बनाते देखा था | और तो और, ज्यादा दूर जाने की जरुरत भी नहीं , घर में ही ढीढ गौरय्या , न जाने कब , कहाँ से सबकी नज़रें बचाकर तिनके बटोर लाती थी और गांधीजी की तस्वीर , जो दीवार पर एक कोण बनाते तंगी थी, उसके पीछे घोसला बना लेती |<br />
और देखते ही देखते एक जोर क़ी आंधी आई और सारे के सारे तिनके बिखर गए | मानो एक वज्रपात हुआ और घर बसने के पहले ही उजड़ गया |जन्म जन्मान्तरों का नहीं - चार महीने, केवल चार महीने का ही साथ था वह |<br />
शादी के बाद, व्यास अक्सर घुठिया चक्कर लगा लिया करते थे | ज़िन्दगी के संतुलन बनाने का यह एक रास्ता था | जब भी कभी दो तीन दिन किछुत्तियां हो, छुट्टी अगर न भी हो तो भी छुट्टी लेकर वो गाँव चले जाते थे | वैसे भी भिलाई से घुठिया जाने में बमुश्किल चार पांच घंटे लगते थे - बशर्ते लगी लगाईं बस या रेल मिल जाए |<br />
<br />
एक दिन वो गाँव गए और अगले ही दिन एक तार वाला टेलीग्राम पकड़ा गया | बाबूजी घर में थे नहीं | स्कूल से आकर जब कौशल ने एक पंक्ति का तार बांचा तो मानो गाज गिर पड़ी |<br />
<br />
कुछ दिन पहले, केवल कुछ ही दिन पाले तो लोग शादी में गए थे | शादी की हल्दी अभी छूटी भी नहीं होगी और अब सब लोग फिर एक बार सफ़र की तयारी करने लगे - अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए ....|<br />
<br />
अचानक कैसे हो गया यह सब ?<br />
फूफा खेत गए थे | फूफू मंदिर गयी थी | व्यास नहाने के लिए तालाब की और जा रहे थे | अभी वो तालाब के पास पहुंचे ही थे कि पीछे से कोई आदमी दौड़ते दौड़ते आया |<br />
<br />
"जल्दी ... जल्दी ... |" वह हांफते हुए बोला ,"जल्दी घर जाओ | तुम्हारी घरवाली आग में जल रही है ...|"<br />
व्यास तुरंत दौड़ते हुए घर गए | घर के सामने भीड़ लगी थी | वे भीड़ चीरते हुए अन्दर घुसे |उनकी आँखों के सामने सब कुछ भस्म हो चुका था - सब कुछ .... | सब कुछ समाप्त हो चुका था |<br />
<br />
**********<br />
<br />
नाम रखना तो कोई बबलू से सीखे |<br />
जैसे कि माँ के शत्रुघ्न कका (काका) गाँव से नौकरी क़ी तलाश में भिलाई आये | काफी जवान थे | अगर चेहरे से थोड़े बहुत चेचक के दाग हटा दिए जाएँ और सांवले रंग में थोडा सा पानी मिला दिया जाए तो शकल सूरत भी अच्छी थी - राजेश खन्ना से मिलती जुलती | बहुत थोडा सा - कभी कभी हकलाते भी थे | उनकी छत्तीसगढ़ी पर, जो कि अपने आप में एक आंचलिक बोली थी, पर भी स्थानीय प्रभाव था | उनकी छत्तीसगढ़ी को शब्दावली में 'मोका' (मुझे) , 'तोका' ( तुम्हें ) जैसे शब्द थे | पत्नी क़ी अकस्मात् मृत्यु से व्यास थोड़े से खिन्न रहते थे | उन्होंने व्यास के घर को ही अपना डेरा बना लिया |<br />
थोडा अजीब नहीं लगता, कि उम्र में वे माँ से छोटे थे , फिर भी रिश्ते में माँ से बड़े थे ! हिंदुस्तान में ऐसा होना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी | देखा जाए तो रिश्ते में मैं भी तो रंजना का मामा लगता था , पर उनसे उम्र में छोटा था |<br />
<br />
जब व्यास कभी घुठिया जाते थे तो साइकिल शत्रुघ्न काका के पास होती थी | तब कपडे धोने का सोडा मिलता था - लोग उसे बायसठ कहते थे | ठीक वैसे ही , जैसे लोग लोकल ट्रेन को 'चार डबिया' कहते थे, क्योंकि उसमें चार डिब्बे होते थे | एक दिन शत्रुघ्न काका ने व्यास की साइकिल को बायसठ से धो डाला |<br />
<br />
और बबलू ने उनका नाम बायसठ रख डाला | बायसठ से धुलने के बाद जैसे साइकिल चमचमा गयी , ठीक वैसे ही ये नाम भी चमक उठा | पता नहीं क्यों, ये नाम इतना लोकप्रिय हो गया कि बरसों लोग उन्हें इसी नाम से जानते थे |<br />
<br />
वैसे नाम में क्या रखा है | उनके खुशमिजाज स्वभाव से एक फायदा यह हुआ कि व्यास का सदमा, उनकी मायूसी काफी हद तक दूर हो गयी | दोनों ही हमउम्र नौजवान थे और कुछ हद तक फिल्मों के शौकीन थे |<br />
हालाँकि उनके साथ लक्ष्मी भैया रहते थे, जो अक्सर उनके किस्से सुनाया करते थे |<br />
<br />
उन दिनों लोग फोटो - फोटो स्टुडियो में खिंचाया करते थे | श्वेत-श्याम फोटो का ज़माना था | फोटो खींचने के पहले फोटोग्राफर पूछ लिया करता था ," कितनी कॉपी चाहिए ?" <br />
<br />
पासपोर्ट फोटो की लोग चार, आठ या सोलह फोटो मांगते थे | उतनी संख्या में फोटो बनाकर थमा देने के बाद फोटोग्राफर का कार्य संपन्न हो जाता था | फोटो लेते समय आपके पास एक मौका और होता था | अगर आपको अपना चौखटा पसंद आया तो आप चार या आठ फोटो और बनाने का आर्डर दे सकते थे | उतनी और प्रतियाँ बनाने के बाद फोटो स्टुडियो वाले उस फोटो के 'निगेटिव' का क्या करते थे ? कुछ 'स्टुडियो' वाले - जैसे कला स्टुडियो वाला, उसे चार छह महीने, या साल भर तक सम्हाल के रखता था - ताकि इस बीच आपको और प्रतियों की जरुरत पड़े तो आप बिना फोटो खिंचवाए बना सकें | इस तरह उसका धंधा भी चलता था और आपका भी काम सस्ते में निपट जाता था | कुछ -"कौन सरदर्द मोल ले " कहकर उन निगेटिव को कचरे के डिब्बे में फेंक देते थे | वे क्या करते थे , यह निर्णय नितांत उनका हुआ करता था | बुद्धिमानी इसी में होती थी, और बुद्धिमान लोग वही किया करते थे, कि फोटो लेते समय वे फोटो की नेगेटिव भी मांग लेते थे , ताकि भविष्य में किसी भी स्टुडियो से फोटो बनवा सकें | शुरू में तो फोटोग्राफर सहर्ष मुफ्त ही वो निगेटिव दे देते थे |<br />
फिर जब बुद्धिमानों की संख्या बढ़ने लगी और अप्रत्यक्ष रूप से फोटोग्राफरों के धंधे को चोट पहुँचने लगी तो उन्होंने निगेटिव के भी चवन्नी या अठन्नी मांगने शुरू कर दिए | <br />
<br />
अब काम की तलाश में आवेदन करते समय सब से जरुरी चीज फोटो ही थी | शत्रुघ्न काका ने सुपेला में किसी स्टुडियो में फोटो खिचाई और फिर एक सामान्य बुद्धिमान की तरह उन्होंने निगेटिव की मांग कर डाली | अब वे गाँव से नए नए आये थे | फोटो लेने और पैसे देने के बाद वे इंतज़ार करते खड़े रहे |<br />
<br />
"अब क्या चाहिए ?" दाढ़ी वाले दक्षिण भारतीय फोटोग्राफर ने पूछा |<br />
"नेगोटी " शत्रुघ्न काका ने जवाब दिया |<br />
"लंगोटी ?" दक्षिण भारतीय फोटोग्राफर कुछ समझा नहीं ," हम कपड़ा नाहीं बेचता |"<br />
"कपड़ा नहीं चाहिए|" शत्रुघ्न काका बोले ,"निगोटी दे दो |"<br />
कुल गर्मागर्म आधा घंटा लग गया शत्रुघ्न काका को अपनी बात समझा पाने में |<br />
<br />
**************<br />
<br />
श्यामलाल ने माँ के पाँव छुए और कहा ,"दीदी , मैं जा रहा हूँ |"<br />
<br />
माँ कुछ नहीं बोली | चुपचाप खड़े रही | श्यामलाल ने फिर कहा ," दीदी , मैं भी मांढर ही जा रहा हूँ | "<br />
<br />
रामलाल मामा की कुछ दिन पूर्व मांढर के सीमेंट फैक्टरी में लोको मेकेनिक की नौकरी लगी थी | वो भिलाई छोड़कर, यानी सुपेला के घर को छोड़कर जा चुके थे | "मैं भी" से श्यामलाल का यही तात्पर्य था |<br />
<br />
श्याम लाल ने फिर पूछा," चलूँ दीदी ? लोकल का टाइम हो रहा है | कल से नौकरी पकड़नी है |"<br />
<br />
कई दिनों से मामा लोग नौकरी की तलाश कर रहे थे | नौकरी मिली भी तो कहाँ - मांढर में, जहाँ सीमेंट कारपोरेशन का नया सीमेंट प्लांट खुला था | जब तक वे नौकरी खोज रहे थे , माँ उनकी नौकरी को लेकर दुखी रहती थी | अब जब उन्हें नौकरी मिली, तो माँ .....|<br />
<br />
"तीजा पोरा में आओगे न ? " माँ के मुंह से यही बोल फूटा |<br />
<br />
"कैसी बात कर रहे तो दीदी ? तीजा , पोरा या राखी तो बहुत दूर है | तो क्या मैं त्यौहार में ही आऊंगा ? चार डबिया तो सीधे चलते रहती है, यहाँ से मांढर | है कि नहीं ? मैं तो जब माँ करेगा आते रहूँगा | क्यों टुल्लू ?"<br />
<br />
*********<br />
<br />
नन्हा मनोज और उसकी माँ ही आखिरी मेहमान बचे थे - घर में | वे दोपहर का खाना खा चुके थे और बाहर बरामदे में बैठे इंतज़ार कर रहे थे | मनोज की माँ बार - बार आभार व्यक्त कर रही थी
कि वे इतने दिन आराम से रहे और माँ को काफी तकलीफ दी | और माँ कह रही थी कि उसमें तकलीफ कैसे - ये तो उनका कर्तव्य था | यानी बातें काफी औपचारिक दौर से गुजर रही थी |<br />
आकाश में बादल छाये थे और बारिश होने क़ी आशंका थी | फिर भी बरिश तुरंत हो, ऐसा नहीं लग रहा था |<br />
<br />
आखिरकार बलदाऊ आये - माँ के बलदाऊ काका | हमेश मुस्कुराने वाले और "कैसे टुल्लू , क्या चल रहा है ?" करके बात शुरू करने वाले | माँ ने उन्हें भी 'दो कौर' खाने के लिए आमंत्रित किया | वे भी बोले कि वे भोजन करके आये हैं और पेट में थोड़ी भी जगह नहीं है | यानी बातें फिर एक बार औपचारिक दौर से गुजरीं |<br />
<br />
"अच्छा पार्वती | मैं चलूँ |" महिला ने विदाई ली | किसने किसके पाँव छुए , ये तो याद नहीं है - हाँ , इतना याद है कि मनोज अपने माँ की साडी चबाने लगा | साडी चबाता मनोज बड़ा प्यारा लग रहा था |<br />
<br />
"देखो इसे | " मनोज की माँ बोली | <br />
"शायद इसके दांत निकल रहे हैं | इसलिए मुंह में खुजली हो रही है | " माँ बोली |<br />
<br />
आखिर नन्हे मनोज को लेकर उसकी माँ और बलदाऊ काका पावर हॉउस स्टेशन की ओर चल पड़े |<br />
<br />
माँ उन्हें जाते हुए देखते रही | फिर अचानक उन्हें लगा , मैं क्या कर रहा हूँ ? मनोज की स्टाइल में मैं भी माँ की साड़ी चबा रहा था | वह तो बड़ा प्यारा लग रहा था | मुझे लगा, माँ हँसेगी, पर हुआ कुछ उल्टा |<br />
<br />
" हाँ, हाँ | ओर आदतें सीख | " माँ साडी छुड़ाती हुई बोली ,"तू क्या दूध पीता छोटा बच्चा है ?"<br />
<br />
झेंपकर में वापिस स्कूटर के घर में चले गया , जहाँ पकडे गए पतंगों के अस्तबल में एक पतंगा बिलकुल हिलडुल नहीं रहा था - शायद मर गया था |<br />
<br />
*********<br />
<br />
छोटे मनोज और उसकी माँ के जाने के बाद ? <br />
तो अब घर में हम छः भाई बहन ही बचे थे - माँ रसोई में थी और बाबूजी ? कभी भी आ सकते थे |<br />
'नयी पीढ़ी की मासिक पत्रिका ' - 'नन्दन' कौशल भैया के हाथ में थी | एक तरफ बेबी और दूसरी तरफ बबलू दोनों उन दो तस्वीरों को ध्यान से देख रहे थे |<br />
<br />
"इस फोटो में इसकी नाक नुकीली है और इसमें चपटी |" बेबी ने एक गलती और खोजी |<br />
"हाँ, ये तो गलती है |" सामने से शशि देख रही थी |<br />
<br />
"चार |" कौशल भैया बोले , "अभी छः और बाकी है |"<br />
मैं भी उन तस्वीरों को देखने की कोशिश कर रहा था और संजीवनी भी | लक्ष्मी भैया ने मुझे बताया था कि गलती खोजना बहुत मुश्किल है | बड़े बड़े लोग गलती नहीं खोज पाते | मैं किसी तरह इधर उधर से उछल उछल कर दोनों तस्वीर देख रहा था | कम से कम एक गलती तो मिल जाए |<br />
<br />
फिर मैंने पढना शुरू किया |<br />
"आप कितने बू बू बुध बुद्ध ..."<br />
"बुद्धिमान ... " शशि दीदी बोली |<br />
<br />
"आप कितने बुद्धिमान हैं ....| हू ब हू तस्वीर बनाते समय चित्रकार ने कुछ गलतियाँ कर दी हैं | कुल दस गलतियाँ | ... दस गलतियाँ खोजने वाला जिन्सन |"<br />
<br />
"जिन्सन नहीं जीनियस ...|" बेबी बोली |<br />
<br />
"दस गलतियाँ खोजने वाला जीनियस ... सात से नौ गलतियाँ खोजने वाला बुद्धिमान ... चार से छः गलतियाँ खोजने वाला - औसत बुद्धि - और चार से कम गलतियाँ खोजने वाला - आप खुद ही फैसला करें उसे क्या कहा जाए ?"<br />
<br />
"मन में पढ़ ...|" बबलू भैया झल्लाए |<br />
<br />
बहुत मुश्किल था भाई गलतियाँ खोजना - बच्चों के बस का तो हरगिज नहीं था ... |<br />
<br />
मैं विचारों में खो गया | अचानक लगा , दो तो तस्वीरें हैं , सगे और गैर -सगों की | कितनी समानता है - एकदम हू बी हू तस्वीरें ... |<br />
<br />
फिर भी अंतर है | और अंतर खोज पाना ? <br />
<br />
... शैल निर्विवाद रूप से जीनियस है |<br />
<br />
वो डाकिया और कंपाउंडर .... ? वो बुद्धिमान थे |<br />
<br />
वो मोटर साइकिल वाला - .... शायद औसत बुद्धि ....|<br />
<br />
पर कुछ लोग तो ऐसे थे जो सगों और गैर सगों की उन तस्वीरों में कभी अंतर नहीं कर पाए .... | चार गलतियाँ खोजना तो दूर की बात , अगर वो अंडा भी फोड़ दें तो बहुत बड़ी बात होगी |<br />
<br />
ऐसे लोगों को भला आप क्या कहेंगे ?<br />
<br />
***********<br />
<br />
(समाप्त)<br />
<br />
काल - १९७०-७१ <br />
स्थान - भिलाई <br />
<br />
<br /></div>
Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-9541497103806422122012-08-17T23:33:00.001-07:002021-11-03T10:06:13.934-07:00बिलसपुरिहा करिया मोटर में भरा के ..... - २ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">ऐसा होना लाजिमी था | कोई आश्चर्य को बात नहीं थी !</span>
<br />
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;"><br /></span>
शायद मुझे लगा माँ का व्यवहार एकदम बदल गया |<br />
शायद मुझे लगा ....! शायद ...!!<br />
उस दिन के बाद से माँ ने सौंफ की उस ट्रे के बारे में कोई बात नहीं की | ना तो मुझसे और ना ही किसी और से उसका कोई जिक्र किया | घर में मेहमान आते रहे | और वो सौंफ की ट्रे पंखाखड़ में तख़्त के नीचे, तीने की पेटी के ऊपर रखी धूल चाटते रही !<br />
<br />
"माँ " दोपहर के समय घर में कोई भी नहीं था | सब विद्यालय गए थे | संजीवनी भी फूफू के साथ व्यास के घर गयी थी | परछी में लगे झूले में झूलते झूलते सो गया | जब आँखें खुली, तो घर में सन्नाटा छाया था |<br />
"माँ" , मैंने एक बार फिर आवाज़ दी | कोई जवाब नहीं |<br />
चलते - चलते मैं बैठक में आया | दरवाजा बंद था और ऊपर की चिटखनी लगी थी | इपर की चिटखनी, जहाँ तक मेरा हाथ नहीं पहुँच सकता था | मैं केवल अख़बार रखने वाली छोटी टेबल ही सरका सकता था या टीन की कुर्सी खोल कर दरवाजे पर लगा सकता था | मगर उनके ऊपर भी मैं चढ़ जाऊं और पंजे के बल खड़े भी हो जाऊं तो भी मेरा हाथ ऊपर की चिटखनी तक नहीं पहुँच सकता था |<br />
<br />
"माँ", मैं गला फाड़कर चिल्लाया |<br />
<br />
कोई आवाज़ नहीं | कोई प्रतिक्रिया नहीं |<br />
<br />
अब अकेले, खाली सूने घर में मुझे थोडा डर लगने लगा | कहाँ चले गए सब लोग ? कम से कम माँ तो रहती थी | वो तो मुझे छोड़कर नहीं जाती थी | कहीं ऐसा तो नहीं , माँ मुझसे गुस्सा होकर चले गयी ? <br />
<br />
मैं चलते चलते परछी के छोर तक पहुंचा , जहाँ आँगन में जाने का दरवाजा था | मैंने उसे खींच कर देखा , वो भी बंद था |<br />
अब मैं फँस गया | मैं कहीं नहीं जा सकता था | फिर भी अगर परछी का दरवाजा लगा हो तो माँ या तो बाथरूम में होगी या नहानी में कपडे धो रही होगी | पर मुझे कपडे की छपक छपक तो सुनाई नहीं दी | अगर माँ आँगन में बड़ी बना रही हो तो ,,, पर माँ आंगन में कोई काम करते समय तो परछी का दरवाजा बंद नहीं करती थी |<br />
<br />
"माँ, माँ, माँ " मैं चीखा | साथ ही मैं परछी का दरवाजा पकड़ कर जोर जोर से हिलाने लगा |<br />
<br />
अब मुझे भय के साथ-साथ गुस्सा आने लगा , जो शनैः-शनैः ग्लानि में बदल गया | लगता है , माँ के मन में गुस्सा भरा हुआ है और आज उसने म्ह्झे सजा देने का निश्चय किया है |<br />
"माँ, माँ माँ, ओ माँ , माँ वो , माँ कहाँ हो माँ ? " अब मेरी पुकार ने कुछ कुछ भिखारियों की गुहार का सा रूप ले लिया था | दरवाजा हिलाते हिलाते हाथ दुखने लगा और आंसू निकल आये |<br />
<br />
थक कर मैं परछी के पास वाले दरवाजे पर बैठ गया | आंसू बह बह कर सूख गए थे |तब कहीं जाकर मुझे आँगन का दरवाजा खुलने आवाज़ सुनाई दी - या वो मेरा वहम था ? नहीं , ये माँ के क़दमों की आहट ही थी | जैसे किसी प्यासे को पानी नज़र आये , मैं फिर पुकारने लगा ," माँ , माँ |"<br />
<br />
परछी का दरवाजा खुला और माँ नज़र आई | मेरी जान में जान तो आई , पर माँ का रौद्र रूप देखकर मैं सहम गया |<br />
"चिल्ला | और जोर से चिल्ला | क्या हो गया ? घर में कोई चोर आया है या साँप घुस गया ? तेरी आवाज़ गुड्डा के घर तक आ रही थी | दो मिनट सब्र नहीं हो सकता तुझसे ? पिछवाड़े में ही तो है गुड्डा का घर ? बड़ी ताकत आ गयी है | दरवाजा चौखट से उखाड़ देगा क्या ?"<br />
<br />
उसके अगले ही दिन - दोपहर के समय माँ कपडे धो रही थी | मैं माँ के सामने जाकर खड़ा हो गया |<br />
"क्या है ?" माँ ने पूछा |<br />
"मैं आ गया हूँ |"<br />
"तो ?" माँ ने अनमने ढंग से पूछा |<br />
" तो , आज मुझे नहलाओगी नहीं ?"<br />
"देख नहीं रहा , मैं कपडे धो रही हूँ ?" मैं वहीँ खड़े रहा |<br />
"अब तू बड़ा हो गया है | जा नहानी में जाकर खुद नहा ले |"<br />
मैं वहीँ का वहीँ खड़े रहा |<br />
"जा न ?"<br />
"मुझे नहाना नहीं आता |"<br />
"कुछ नहीं , साबुन लगाओ और पानी डालो | उसके लिए कौन सा भला पंडित का पोथा पढने की जरुरत है ?"<br />
मैं घिसटते हुए नहानी गया और फिर वापिस आ गया |<br />
"अब क्या हुआ ?"<br />
"साबुन रोशनदान के पास रखा है | मेरा हाथ नहीं पहुँच सकता |"<br />
माँ झल्ला कर उठी | नहानी के रोशनदान से जाकर बड़ी सी जाली वाली साबुनदानी निकाली और ज़मीन पर पटक दी | फिर वापिस आँगन चले गयी |<br />
साबुन दानी में तीन साबुन रखे थे | हरे रंग की हमाम , गहरे लाल रंग की लाइफबॉय और मोटर साइकिल छाप साबुन की बट्टी |<br />
किससे नहाया जाये ? हरे रंग का हमाम घुल कर छोटा सा रह गया था | लाल रंग का लाइफबॉय गीला और लिजलिजा लग रहा था | हाँ, मोटर साइकिल छाप साबुन की बट्टी बहुत बड़ी थी | उसे धागे से काटकर आधा किया गया था, फिर भी बहुत बड़ी थी | मैंने उठा कर देखा, पत्थर की तरह भारी थी | बहरहाल, पीले मक्खन की साबुन की बट्टी लेकर मैंने मलना शुरू किया | पहले पाँव ... | ओह, पाँव जलने लगे ....|<br />
<br />
"माँ , माँ |" मैं चिल्लाया | पाँव जल रहे हैं |"<br />
पहले तो माँ को लगा मैं बहाने बना रहा हूँ | मैंने तुरंत दो मग पानी उड़ेल दिया | फिर भी पाँव जल रहे थे | <br />
"माँ , मेरे पाँव |"<br />
माँ भागकर आई ," क्या कर रहा था ? कौन सा साबुन लगा रहा था ?"<br />
"मोटर साइकिल छाप |" मैंने कहा |<br />
"वाह रे टूरा ! वो तो कपडे धोने का साबुन है |"<br />
अब माँ ने साबुन लगाना चालू किया | लाइफबॉय मेरे चेहरे पर इतनी तेजी से मला की आँख में साबुन चले गया |<br />
"माँ , आँख में साबुन चले गया | आँख जल रही है माँ |"<br />
इस बार माँ ने मेरी गुहार अनसुनी कर दी | पानी तभी डाला , जब साबुन लगाना ख़तम हुआ |<br />
<br />
माँ गुस्सा थी .... शायद ....|<br />
<br />
***********<br />
<br />
<i>"मेरी बिल्ली बड़ी चिबिल्ली,</i><br />
<i>घर घर में घुस जाती है |</i><br />
<i>घूम घूम कर सूंघ सूंघ कर,</i><br />
<i>सब कुछ चट कर जाती है |"</i><br />
"हा, हा, हा |' रामनाथ हँसा ,"शाबास | शाबास | बहुत अच्छे | " उसने पहली कक्षा की "बाल भारती" बंद की और कहा ," अब सुनाओ |"<br />
"मेरी बिल्ली बड़ी चिबिल्ली ...घर घर में घुस जाती है ....|"<br />
बिसाहू पास में ही बैठा हुआ था | बरामदे में केवल हम तीन लोग ही बैठे थे| मैं समकोण बनाते हुए खोखले चबूतरे में बैठा था | मेरे बगल में ही बिसाहू बैठा था और रामनाथ कुर्सी पर बैठा था |<br />
"अब ये पढो | "रामनाथ ने दूसरा पन्ना खोला |<br />
<br />
ना जाने क्यों, आजकल वह कविता मुझे अच्छी नहीं लग रही थी |<br />
<br />
<i>"बड़ी भली है अम्मा मेरी |</i><br />
<i>ताज़ा दूध पिलाती है |</i><br />
<i>मीठे मीठे फल ले लेकर ,</i><br />
<i> मुझको रोज़ खिलाती है |"</i><br />
<br />
बिसाहू खुश हो गया ,"किस कक्षा में पढ़ते हो ?"<br />
"मैं शाला थोड़ी जाता हूँ |" मैंने कहा |<br />
रामनाथ ने मेरी बात का अनुमोदन किया ,"अभी स्कूल नहीं जाता | इस साल जाएगा |" फिर उसने बिसाहू से पूछा, "और आपका काम कैसे चल रहा है ?"<br />
<br />
एकदम फस्ट किलास भैया | बिसाहू बोला ,"बड़े मज़े का काम है | क्या है कि पर छज्जे में बैठे रहो | मशीन नीचे लगी है |"<br />
कितनी बड़ी मशीन है ? " रामनाथ ने पूछा |<br />
"बहुत बड़ी मशीन है |मैं छज्जे पर बैठता हूँ तो नीचे आदमी चिरई (चिड़िया) जैसे दीखता है | अरे, पत्थर को पूरा चूरा चूरा करके पिसान (आटा ) बना देती है | काम क्या है ? नीचे से सुपरवाइजर चिल्लाएगा ,"मशीन चालू करो जी | " एक हत्था नीचे करो और दो बटन दबा दो | बटन नीचे मशीन चालू ...| फिर टीने की कुर्सी पर बैठ के सो जाजो ....| फिर नीचे से कोई चिल्लाएगा ,"मशीन बंद कर दो जी ...मशीन बंद कर दो ...| " उठ के बटन दबाओ और फिर सो जाओ | जब तक वो लोग ' डिराम ' (ड्रम) से चूरा निकालेंगे , सोते रहो |<br />
फिर बोलेंगे ,"मशीन चालू करो हो .... | फिर से बटन दबा दो ...और सो जाओ | फिर बोलेंगे ,"बंद करो जी ... | बटन दबा के मशीन बंद कर दो | क्या हुआ ? खाने की छुट्टी हो गयी | <br />
खाना खाने जाओ, ताश पत्ती खेलो | घंटे भर बाद वापिस आ जाओ | दो बार और मशीन चालू बंद करो | दिन ख़तम | साइकिल उठा के घर चलो | ऐसा आराम गाँव की खेती किसानी में कहाँ भैया ?"<br />
<br />
बिसाहू ने कुछ दिन पहले ही सर मुडवाया था | अब उसने गंजे सर पर छोटे छोटे बालों में, जो गर्मी के पसीने से भींग गए थे, हाथ फेरा और सर पर फिर रुमाल बाँध लिया |<br />
<br />
जब तक बिसाहू को व्याख्यान जारी था, मुझे पढने से एक तरह से छुट्टी मिल गयी थी | मेरी आँखों के सामने वह कविता घूम रही थी | "बड़ी भली है अम्मा मेरी " - फिर उस दिन माँ को क्या हो गया था , जब संजीवनी और बेबी के नाक कान छिदा रहे थे ?माँ उस दिन बिलकुल निष्ठुर हो गयी थी | "ताज़ा दूध पिलाती है |" दूध नहीं , चाय - डेरी के दूध की चाय ....| "मीठे मीठे फल ले लेकर ...|" हाँ, केले वाली से केला या "पूना का मुसाम्मी , मुसम्मी माँ मुसम्मी ..." मुसम्मी वाली से मुसम्मी जरुर लेती है , फिर लकड़ी के लाल हत्थे वाले रस निकालने वाले से रस निकाल कर देती है | कब ? जब कोई बीमार पड़ता है -तब | हालाँकि रोज़ तो नहीं, पर वो मुसम्मी वाली या केले वाली रोज़ घर के सामने आकर रूकती थी और पूछती थी ," मुसम्मी माँ , मुसम्मी |" या "केला , बाई केला ...|" और माँ मना भी करती थी तो उनसे दो बातें करने के बाद ....|<br />
<br />
पर अब जो भी हो - मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा - माँ मुझसे गुस्सा है | मुझे अभी वो कविता वाली भोली माँ नहीं, तलवार वाली दुर्गा माँ दिख रही थी | क्या किया जाए ?<br />
<br />
तभी मेरी तन्द्रा भंग हुई | अचानक रामनाथ ने एक सवाल पूछ डाला ," बी. एस. पी . या नाम ( नॉन) बी एस पी . ?"<br />
बिसाहू के चेहरे की मुस्कान अचानक काफूर हो गयी ," नाम बी. एस. पी. भैया | अपनी किस्मत कहाँ ? भैया से इसीलिए बात करने आया हूँ | पर आजकल बी एस पी में मेट्रिक पास ही ले रहे हैं | आठवीं पास को कौन पूछता है ?"<br />
<br />
यानी भिलाई में उन दिनों नॉन बी एस पी हो एक अभिशाप से कम नहीं था | ऐसा अभिशाप, जो मेरे मन में वर्षों बैठा रहा | कई बार अभी भी कचोटता है |<br />
<br />
********<br />
<br />
"कुकड़ूकू ....| कुकड़ूकू .... |"<br />
सोगा के घर की मुर्गियां माँ क सर दर्द थी - जबरदस्त सर दर्द ...| वो मुर्गियां सोगा के घर तो रहती थी नहीं, क्योंकि सोगा के घर में कोई वनस्पति उगती नहीं थी | वो अक्सर बीच के हैज़ की बाद लांघकर हमारे घर आ जाया करती थी और क्यारी में जो कुछ भी उगा रहता, चोच मारकर, पांवों से खोदकर सब कुछ बराबर कर देती | माँ की बड़ी इच्छा थी कि घर में धनिया , मेथी या पालक लगाए, पर ये मुर्गियां कुछ उगने दें तब न | मैं कई बार मुर्गियों के पीछे भागता, पर मुर्गियां तो मुर्गियां, चूजे भी बड़े फुर्तीले होते | कभी हाथ में आते ही नहीं थे |<br />
<br />
"कुकड़ूकू ....| कुकड़ूकू .... |" <br />
<br />
"सोगा , अपनी मुर्गियों को समझा दे ...| " एक दिन तैश में आकर मैंने सोगा को धमकाया |<br />
"क्या समझा दूँ ?" मगिंदर बीच में कूद पडा |<br />
मैं निरुत्तर हो गया | भैसों के तबेले में बीन बजाने का कोई फायदा तो था नहीं |<br />
गाय हो तो उसको रोकने के लिए घर के चारों और घेरा होता है | भला मुर्गियों को कैसे रोका जाए ? वो तो हैज के नीचे नीचे से अपना शारीर सिकोड़ कर छोटी सी जगह से भी अन्दर घुस जाते थे | और घुसते थे तो सीधे क्यारियों में धावा बोलते थे | अब उनकी हिम्मत यहाँ तक बढ़ गयी थी कि वे घर के सामने से होते हुए पीछे के घेरे में घुस जाया करते थे | नज़र चुकी नहीं, कि वे घेरे में नज़र आते थे |<br />
<br />
और एक दिन उन्हें भगाते -भगाते मैंने देखा, घेरे में एक झाड़ी के पास दो मुर्गी के अंडे पड़े हुए हैं |<br />
उन अण्डों को उठाकर मैं सीधे माँ के पास लेकर गया |<br />
<br />
"अंडे ? कहाँ से मिले तुझे ?" माँ ने पूछा | <br />
"सोगा की मुर्गियों ने घेरे में दिए हैं |"<br />
"उनकी मुर्गियाँ घेरे में ? तूने भगाया नहीं ? "<br />
"भगा रहा था, तभी ये अंडे दिखे | वापिस कर दें ?"<br />
"वापिस ? " माँ भड़क उठी ,"दिन भर क्यारियों का सत्यानाश करते रहते हैं तो कुछ नहीं | अपने घर में तो बबूल की एक झाडी नहीं लगाईं है और हमारे घर की क्यारियों को चारागाह बना रखा है | अंडा इधर ला |"<br />
मैंने डरते डरते अंडा माँ को दिया | कहीं गुस्से में मुझे फेंक कर मत मारे |<br />
माँ ने एक गिलास लिया , उसमें पहला और फिर दूसरा अंडा फोड़ा | फिर दूध डाला और एक चम्मच शक्कर | फिर मुझे देकर कहा , "पी जा इसे |"<br />
<br />
मैं कभी माँ की और देखता, कभी गिलास की ओर |<br />
माँ गुस्से से बोली," देख क्या रहा है ? आँख बंद कर और गटागट चुपचाप पी जा |"<br />
मैंने माँ की आज्ञा का अक्षरशः पालन किया | आँखें बंद की और 'गट - गट ' की आवाज़ निकालते पी गया |<br />
माँ बोली," अब जा और सोगा को बोलकर आ | तेरी मुर्गी ने हमारी क्यारियां उजाड़ी | धनिये के बीज का चारा बनाकर खा गयी | उससे जो अंडा पैदा हुआ , मैंने दूध में घोंटकर पी <br />
लिया | जा, अभी बोलकर आ |"<br />
इस बार बार माँ की आज्ञा का मैं पालन नहीं कर पाया | सन्देश ही इतना बड़ा और भरी भरकम था कि घर से बाहर निकलते - निकलते मैं सब कुछ भूल चुका था |<br />
माँ क्या अभी भी मुझसे गुस्सा है ? शायद हाँ | शायद नहीं ...|<br />
<br />
*******<br />
<br />
दुर्गा माँ के एक हाथ में तलवार थी | दुर्गा माँ शेर पर सवार थी | शेर कि आँखें चमकीली और दांत बड़े बड़े और नुकीले थे | उसके पंजे से उस राक्षस का खून टपक रहा था जिस पर उसने अभी अभी वर किया था और जिसकी छाती पर दुर्गा माँ का त्रिशूल टिका हुआ था |<br />
<br />
उन दिनों मंदिर जाना कम से कम बच्चों के लिए एक तीर्थ से कम नहीं था | शाला नंबर आठ के पीछे एक बहुत बड़ा रामलीला मैदान था इतना बड़ा कि उसका और छोर ही दिखाई नहीं देता था | न तो कोई चाहर दीवारी थी और न ही उच्चार माध्यमिक कन्या शाला उन दिनों बनी थी | उस मैदान में राम लीला होती थी और रावण जलाया जाता था | कभी - कभार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ क़ी शाखा लगती थी , कभी पहलवानों क़ी कुश्तियाँ होती थी | उस मैदान के दूसरी ओर था - मंदिर | उन दिनों केवल दो ही मंदिर थे - हनुमान जी का ओर दुर्गा माता का | मंदिर जाने के लिए कई बार माताओं का पूरा दल निकलता था ओर बच्चे साथ हो लेते थे | जैसे, दीपक, गिरीश , छोटा ओर अनिल क़ी माँ | ओर फिर उनके साथ बच्चे - उछलते - कूदते हुए | कभी दौड़कर बहुत आगे निकल जाते , फिर वापिस दौड़कर अपने दल में मिल जाते |<br />
<br />
<i>"या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण ...... नमस्तस्यै नमो नमः ...|"</i><br />
<br />
कान का कच्चा बटुक पंडित मन्त्र पढ़े जा रहा था | जिन्हें प्रार्थना आती थी, वे साथ में गा रहे थे | जिन्हें नहीं आती थी, वे हाथ जोड़े आँख मूंदकर खड़े हुए थे | मैं बीच बीच में आँखें खोलकर देखता तो निगाहें सीधे दुर्गा माँ से टकराती ओर मुझे तुरंत उस भीड़ में कहीं खड़ी माँ का ख्याल आ जाता | भीड़ इतनी ज्यादा थी कि माँ मुझे दिखाई नहीं दे रही थी | इतना पक्का था कि दुर्गा माँ जरुर माँ को मेरी बेअदबी के बारे में बताएंगी | ये ख्याल आते ही मैं आँखें ओर कस कर मूंद लेता | माँ वैसे ही गुस्सा है |<br />
<br />
आरती अंततः समाप्त हुई | अब बच्चे प्रसाद के लिए टूट पड़े | प्रसाद क्या होता था | नारियल के गीर को जितना महीन से महीन कटा जा सके - वो टुकड़ा ओर फिर एक चम्मच नारियल के पानी का ही बनाया चरणामृत | जो भी हो - बच्चे प्रसाद के लिए झूम ज्जाते थे ओर बच्चों कि धक्का मुक्की , बेताबी से बटुक का पारा चढ़ जाता था |<br />
ऊपर से दीपक क़ी धृष्टता देखो | एक बार, दो बार नहीं, तीन बार उसने प्रसाद लिया | धक्का मुक्की में अक्सर मैं पीछे चले जाता था | ओर जब भी मेरा नंबर आता, या तो मोटा गिरीश या दीपक एक बार फिर हाजिर हो जाता |<br />
<br />
जब मेरा नंबर आया तो बटुक बौखला गया |<br />
"कितने बार प्रसाद लोगे बचुआ ?" उसने मेरा गला पकड़ लिया |<br />
मैं हडबडा गया ये सच था क़ी मैं बहुत देर से कोशिश कर रहा था, पर प्रसाद मुझे मिला नहीं था | ऊपर से ये इलज़ाम, वो भी गला पकद्पर ...|<br />
<br />
...और माँ एक सिंहनी क़ी तरह गरज उठी |<br />
"पंडित जी, छोडो उसको | " माँ आक्रोश से चिल्लाई | बटुक ने सहम कर मेरा गला छोड़ दिया |<br />
"क्या हुआ , मुझे बताओ |"<br />
"क.. कुछ नहीं माता जी | बच्चे तो शरारत करते हैं ...|<br />
<br />
माँ क्या अभी भी मुझसे गुस्सा है ? शायद हाँ | शायद नहीं ...|<br />
<br />
***********<br />
<br />
<i>"पोशम्पा भई पोशम्पा |</i><br />
<i>डाक खिलौने क्या क्या ?</i><br />
<i>सौ रुपये की घडी चुराई |</i><br />
<i>अब तो चोर पकड़ा गया |"</i><br />
<br />
ज़रा इन पंक्तियों पर गौर फरमाइए |<br />
तब लोग डाक से भी खिलौने मंगाते थे |<br />
तब घडी काफी महँगी आती थी | उन दिनों के सौ रूपये की कीमत का अंदाजा है आपको ? थोडा तो लग ही गया होगा , जब मैंने कहा - पोस्टकार्ड पांच पैसा ,अंतर्देशीय दस पैसा और लिफाफा पंद्रह पैसे ... नमक - आधा किलो का पेकेट - दस पैसे, माचिस पांच पैसे आदि आदि | उस हिसाब से घडी की कीमत, वह भी टेबल घडी - जो ठण्ड में तेज और गर्मियों में सुस्त हो जाती थी - पेंडुलम के न होने के बावजूद ... जिसका टिर्र्रर्र्र का अलार्म पूरी तरह से चाभी एँठने के बाद भी बमुश्किल आधा मिनट बजता था - उसकी कीमत सौ रूपये थी |<br />
और तब चोरों को घड़ियाँ चुराने में शर्म नहीं आती थी | महँगी चीज़ जो ठहरी | और तो और, उन दिनों चोर पकडे भी जाते थे |<br />
हालाँकि चोरों को पकड़ना तो ये महज लड़कियों क खेल नहीं था , जिसमे दो लड़कियां दोनों हाथ पकड़कर हवा में वह फंदा उठाये कड़ी रहती थी | बाकी लड़कियां ये पंक्तियाँ लयबद्ध दोहराते हुए उस हाथ के फंदे के नीचे से गुजराती थी | जैसे ही ये पंक्तियाँ ख़तम होती, हवलदार लड़कियां फंदा नीचे करती थी और कोई ना कोई लड़की उसमें फँस जाती थी |<br />
पर अभी बात चोरों की नहीं, घडी की हो रही थी | और मैं और कौशल भैया घडी खरीदने सुपेला बाज़ार में व्येंकेटेश्वर टाकीज की ओर जाने वाली सड़क के किनारे की नीलामी की दुकान के पास खड़े थे |<br />
**************<br />
हे भगवान्, वहां तो अंजर पंजर सामान ज़मीन पर बिखरा पड़ा था | टेबल लैम्प , स्टोव ,
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">फूलदानी </span> , मच्छरदानी, एक नहीं , पांच पांच रेडियो , चाकू का सेट , खिलौने की बन्दूक ,मछली पकड़ने का कांटा , छोटा गलीचा, पानी का जग ....|<br />
"तुझे अलार्म घडी दिखी ? वो रही ....|" कौशल भैया ने कहा |<br />
लाइन से तीन चार अलार्म घडी दिख रही थी | और ये चमत्कार से कम नहीं था कि सभी घड़ियाँ समान समय बता रही थी और चल भी रही थी | <br />
"ज़रा उस अंकल से टाइम पूछना ...|" कौशल ने मुझे चुपके से हिदायत दी |<br />
आप पास के खड़े लोगों में कम के हाथ में ही कलाई घडी थी | कलाई घडी तो और भी महँगी आती थी - शायद चार सौ या पांच सौ रूपये में | कौशल भैया ने वह अंकल इस लिए चुना शायद कि वे थोड़े उदार नज़र आ रहे थे |<br />
"टाइम कितना हुआ अंकल ?" मैंने पास जाकर पूछा |<br />
<br />
" चार रुपया एक .. चार रुपया दो ......| " नीलामी वाला तन्मयता और लगन से
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">अपना </span> काम कर रहा था | वो लकड़ी की मोड़ने वाली आराम कुर्सी - आराम कुर्सी ही कहते हैं न उसे, जिसमें पीठ टिकाने और बैठने की जगह पर पटिया की जगह ढीला, मजबूत कपड़ा लगा होता था - हवा में उठाकर एलान किये जा रहा था |<br />
"साढ़े चार रुपया ...|" पीछे से किसी ने आवाज़ दी |<br />
"साढ़े चार रुपया एक , साढ़े चार रुपया दो ... |" नीलामी वाले ने बोली का अनुमोदन किया |<br />
<br />
"अंकल टाइम ...| " मैंने दोहराया |<br />
"अरे हाँ | टाइम ? पौने बारह ...|"<br />
"पौने बारह ...| " मैंने कौशल भैया के पास जाकर दोहराया |<br />
कौशल भैया ने अलार्म घड़ियों पर निगाह डाली ,"तब तो ठीक ही हैं ...| तीनों की तीनों ...|"<br />
<br />
अब मुझे नीलामी का दस्तूर समझ में आने लगा था | तो नीलामी वाला एक एक सामन उठाता , कोई सस्ता दाम बताता और फिर खड़े लोगो में से कोई एक उसका दाम बढ़ा देता | <br />
नीलामी वाला कई बार " एक" और उससे भी अनेकों बार " दो" दोहराता | लोग दम साढ़े उसके तीन बोलने इंतज़ार करते | जैसे ही वह तीन कहता , बोली लगाने वाला
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">फू</span>ल कर कुप्पा हो जाता और लपककर सामान उठा लेता | नीलामी वाले को याद दिलाना पड़ता क़ि उसे पैसे भी देना है |<br />
<br />
खिलौने की बन्दूक देखकर मेरा मन ललचा रहा था | बबलू भैया मेले से एक बन्दूक खरीद कर लाये थे , जिसका प्लास्टिक का हत्था निकालकर पीछे लकड़ी का हत्था लगा दिया गया था | ये खिलौने की बन्दूक उससे कहीं ज्यादा बड़ी और अच्छी भी थी | नीलामी पांच पैसे से शुरू हुई | यह तो दौलत की दुकान से भी ज्यादा ललचाने वाली थी | नीलामी वाले ने उसमें दीवाली की टिकली लगाकर कर फोड़ा भी और दुनाली से ढेर सारा धुआं निकलने लगा | और धुआं बंद होते होते वह दुनाली बन्दूक चवन्नी में बिक भी गयी | मेरा दिल बैठ गया |<br />
आखिकार नीलामी वाले ने एक अलार्म घडी उठाई | उसमें बारह बजे का अलार्म लगाया और जोर से चिल्लाया ," बारह बज गए |" देखते ही देखते घडी का अलार्म बजने लगा | <br />
<br />
सरदारजी के चेहरे पर मुस्कराहट गयी | <br />
"एक रुपया ...|" पहला आदमी चिल्लाया |<br />
"बस एक रुपया ?" नीलामी वाला बोला,"सरकार का माल है |"<br />
"पांच रुपया ..| " दूसरा आदमी चिल्लाया |<br />
" पाँच रुपया एक ... |" <br />
"सात रुपया ...|"<br />
"दस रुपया...|"<br />
देखते ही देखते घडी का दाम बढ़ने लगा | ऐसे लगा क़ि रमा दीदी क़ी तरह घडी क़ी जरुरत सभी को है | <br />
फिर भी तीस रूपये पार करने के बाद बोली लगाने वालों की गुहार मद्धिम पड़ गयी | अब नीलामी वाले को "पैंतीस रुपया एक, पैतीस रुपया दो, पैंतीस रुपया दो, ..." और ये दो दो कई बार दोहराना पड़ता | कौशल भैया फिर भी चुपचाप ही खड़े थे | एक बोली भी नहीं लगाईं उन्होंने | मैंने उनके पैरों में एक दो बार कोहनी से मारा भी |<br />
"चुप ....|" उन्होंने मुझे संकेत किया |<br />
किसी तरह घिसटते घिसटते कीमत ने पचास पार किया और अन्ठावन रूपये में घडी बिक गयी | अन्ठावन - साथ से भी दो कम ....|<br />
नीलामी वाले ने दूसरी घडी उठाई ,"यह घडी पहली घडी की जुड़वाँ बहन है |"<br />
"पांच रुपया ...." एक ग्राहक चिल्लाया |<br />
"पच्चीस रुपया ....|"<br />
सीधे बीस रूपये की छलांग देखकर बाकी ग्राहक तो एक तरफ, खुद एक बारगी तो नीलामी वाला सकते में आ गया ,"हाँ भाई, खरीदना है ना ? मजाक तो नहीं है ? पच्चीस रूपया एक ... पच्चीस रुपया दो ...|"<br />
इतनी लम्बी छलांग देखकर लोगों को भी सम्हलने में समय लगा |<br />
पहली घडी तो अन्ठावन रूपये में बिकी थी | दूसरी घडी सिर्फ पच्चीस रूपये में ? कौशल भैया चुप क्यों बैठे है ? क्या उन्हें रमा दीदी के लिए घडी नहीं खरीदनी है ? <br />
"सत्ताईस रुपया ....|" अचानक मेरे मुंह से निकल गया -वो भी जोर से ....| इतने जोर से कि सबने स्पष्ट सुन लिया ... | नीलामी वाले ने भी |<br />
इस बार सन्न रहने की बारी कौशल भैया क़ी थी | किसी तरह दांत पीसकर वे बडबडाये ,"गधे ...."<br />
<br />
ज़ाहिर था, वे खुश तो नहीं हुए - पर पैसे तो उनके ही पास थे |<br />
"सत्ताइस रुपया एक ... सत्ताइस रुपया दो ... |" कीमत सत्ताइस रूपये पर क्या अटकी , मेरी सांस ही अटक गयी | दिल जोर जोर से धड़क रहा था | और ग्राहकों के विपरीत मैं भगवान् से दुसरी ही प्रार्थना कर रहा था ,"हे भगवान्, मुझे इस मुसीबत से निकाल ...|"<br />
"तीस रुपया ...|" भगवान् ने मेरी सुन ली और मेरी जान में जान आई |<br />
दूसरी घडी ने पचपन रूपये में दम तोड़ दिया | कौशल भैया को क्या हो गया ? एक बोली भी नहीं लगाईं उन्होंने तो ...|<br />
दूसरी घडी की कीमत और भी कम होने के बाद नीलामी वाले ने
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">वस्तु</span> ही बदल दिया | तीसरी नीलामी घडी वहीँ की वहीँ पड़ी थी और नीलामी वाले ने ट्रांसिस्टर रडियो उठा लिया ,"हाँ तो साहेबान |ये पाच बंद का ट्रांजिस्टर है ...| चार बैटरी वाला ...|"<br />
"बैटरी फ़ोकट में ?" एक ग्राहक चिल्लाया |<br />
"हाँ ,
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">सरकारी </span> माल है | बिल्ली छाप लाल लाल चार एवरेडी बैटरी फ़ोकट में ....|"<br />
"रेडियो सीलोन लगाओ |" एक ग्राहक चिल्लाया |<br />
ट्रांजिस्टर तो बिक गया | उसके बाद हवा भरने वाला स्टोव भी बिक गया | भीड़ अब छंटने लगी थी | चूँकि दोपहर और गरम हो चली थी, नए ग्राहक भी इक्का दुक्का ही जुड़ रहे थे | <br />
नीलामी वाले की आवाज़ में भी थकावट झलकने लगी थी |<br />
"लगता है , घडी आज नहीं मिलेगी |" कौशल भैया अपने आप से बोले |<br />
मैं उलझन में पड़ गया | घडी तो तभी मिलेगी , जब आप बोली लगायेंगे | बगैर मुंह खोले तो कुछ मिलने से रहा |<br />
अंततः नीलामी में ढील आते देख नीलामी वाले ने फिर एक बार
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">अलार्म </span> घडी उठा ली |<br />
अब ग्राहक भी कम हो गए थे | कीमत को पच्चीस पार करने में ही सदियाँ गुजर गयी और तभी वह हुआ , जिसकी इतनी देर से मैं प्रतीक्षा कर रहा था |<br />
"तीस रुपया |" कौशल भैया ने आवाज़ लगाईं |<br />
"तीस रुपया एक... तीस रुपया दो ....|"<br />
"बत्तीस रूपया ...|" एक और ग्रह चिल्लाया |<br />
"पैतीस रुपया |" नीलामी वाले को कुछ बोलने का मौका दिए बगैर कौशल भैया ने आवाज़ लगाईं |<br />
"हाँ तो साहेबान, पैतीस रूपया एक .. पैतीस रुपया दो ...|"<br />
"सैतीस रुपया |" वही ग्राहक , जिसने
बत्तीस की आवाज़ लगाईं थी , नीलामी वाले के दो तीन
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">बार </span> दोहराने के बाद बोला |<br />
"चालीस रुपया |" कौशल भैया छूटते ही हुंकार उठे |<br />
अब इस घुडदौड में दो ही घोड़े रह गए थे और अड़तालीस रूपये में घडी हमारी झोली में आ गयी थी ....|<br />
<br />
********<br />
<br />
शायद उस दिन मैं काफी कुछ सीख गया होता - अलार्म घडी क़ी सम्बन्ध में | अगर मैं भी वहाँ बैठा होता तो | मैं केवल आवाज़ सुन सकता था | आँखों के सामने तो एक मोटा पर्दा था | यानी मैं परदे के पीछे खड़ा था | दिल आज भी उसी तेज़ी से धड़क रहा था , जैसे उस थीं अचानक धड़का था |<br />
<br />
कौशल भैया रमा को समझाए जा रहे थे ,"दो तरह क़ी चाभी है | देखो, इस चाभी के बगल में घंटी क़ी फोटो बनी है | मतलब ये अलार्म क़ी चाभी है | और ये दूसरी चाभी घडी क़ी चाभी है |"<br />
रमा ने पूछा," ये तीर का निशान कैसा है ?"<br />
"जिस दिशा में तीर का निशाना है, उसी दिशा में चाभी घुमाना है ...| और ये टाइम ठीक करने क़ी घुंडी है ...| कई बार गर्मी में घडी धीमे चलने लगेगी औत ठण्ड में तेज़, तो ये जो सबसे नीचे नुक्की है, उसे इधर घुमाओ तो घडी तेज़ चलने लगेगी और उधर ...|"<br />
अचानक परदे के उस पार से माँ पर्दा हटाकर तेज़ी से आई और मुझसे टकरा गयी | मेरे हाथ में कस कर पकड़ी ट्रे छूटकर गिरते - गिरते बची ...|<br />
"तू यहाँ क्या कर रहा है ?" वह बौखला गयी ...| फिर उसकी नज़र मेरे हाथ पर पड़ी जिसमें वो लॉटरी वाली ट्रे, वो बेल बूटे वाली खूबसूरत सी ट्रे थी | माँ समझ गयी सब
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">बात </span> |<br />
"ला, मैं इसकी धूल साफ़ कर दूँ |"<br />
<br />
**********<br />
<br />
"और क्या - क्या मिलता है भाई नीलामी में ?" रमा काफी उत्साहित थी |<br />
" काफी कुछ | टेबल लेम्प, अटैची, रेडियो ...|"<br />
"रेडियो भी ?"<br />
"हाँ | ट्रांजिस्टर रेडियो | तीन बैंड वाला चार बैंड वाला ...|"<br />
"...अगली बार ट्रांजिस्टर ले आना भाई ...|"<br />
<br />
मेरे दिल पर रखा एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया था |<br />
रमा जब घर से निकली तो उसकी ख़ुशी जरुर दो गुनी हो गयी होगी | वो तीन गुनी होती , अगर मैं झिझकता नहीं ...| माँ गेट पर कड़ी उसे जाते हुए देख रही थी | मैंने माँ क़ी साडी खिंची ," माँ, माँ ...|"<br />
"क्या ?"<br />
"क्यों न हम सिगरेटदानी भी रमा को दे दें ? हमारे घर में कोई सिगरेट नहीं पीता | लेकिन भांटों तो ....|"<br />
"पहले क्यों नहीं याद दिलाया ?" फिर माँ ने वहीँ से हांक लगाईं ,"रमा , रमा हो ...|"<br />
<br />
************<br />
<br />
गाँव से जो मेहमान आते थे , वे सारे के सारे नौकरी क़ी तलाश में नहीं आते थे | कुछ सामाजिक जिम्मेदारियाँ भी होती थी | जैसे कि - शादी |<br />
हाँ, काफी लोग अपने जवान लड़के या लड़कियों की शादी लगाने आया करते थे | ऐसा नहीं था कि बाबूजी को इन मामलों के लिए उनके जैसे फुर्सत हो | ज्यादा से ज्यादा वे राय दे सकते थे और उनकी राय काफी मायने रखती थी, क्योंकि वे काफी पढ़े लिखे थे और महाविद्यालय के प्राचार्य थे | गाँव से निकलकर रायपुर या बिलासपुर आना आसान था, क्योंकि वहां हमारे काफी रिश्तेदार थे | पर भिलाई में आकर भाग्य आजमाना, बसना और अपनी एक छवि बनाना बहुत बड़ी बात थी | उन दिनों छत्तीसगढ़ियों के लिए भिलाई एक तरह से एक अजूबे से कम नहीं था , जहाँ दैत्याकार चिमनियाँ धुआं उगलती थी | नल खोलो तो पानी आता था | सडकों पर बिजली के खम्बों
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">पर </span> बत्तियां लगी थी | <span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">मैत्री बाग़ में बड़ा सा चिड़ियाघर था |</span>बड़ी बात तो ये थी कि वहाँ लोग छत्तीसगढ़ी बोल या समझ नहीं पाते थे |<br />
<br />
दूसरी बात , बाबूजी राय दें या न दें, दोनों पक्षों के लिए मिलने के लिए, भिलाई और हमारा घर काफी सुगम जान पड़ता था | अक्सर ऐसा होता था कि कोई धोती कुरता पहने छत्तीसगढ़ी बोलता देहाती रह भटक जाता था तो लोग उसके हाथ का तुड़ा मुड़ा पुर्जा पढ़े बिना ही उसे हमारे घर ले आते थे | उसकी बांछें खिल जाती थी, क्योंकि यही तो उनकी मंजिल होती थी |<br />
<br />
"माँ , ये कौन हैं ?" मैंने माँ से चुपके से पूछा |<br />
"गंगाराम |"<br />
"गंगा राम ? यानी कि गंगा रा म ?"<br />
"हाँ|"<br />
मैं गुनगुनाने लगा ,"<i>एक खबर आई सुनो एक खबर आई | होने वाली है , गंगा राम की सगाई |</i>"<br />
<br />
माँ वैसे ही जब तब अनपेक्षित काम बढ़ जाने से झल्ला जाती थी | अब उसे शरारत सूझी |<br />
"तू और जोर से नहीं गा सकता ?"<br />
"और जोर से ?"मैंने गला फाड़ा ,"<i>एक खबर आई ...</i>|"<br />
"अरे , मैंने गला फाड़ने को नहीं कहा | जा, रंधनीखड़ (किचन ) से बाहर निकल और बैठक में गा ...|"<br />
बैठक में ही वो सज्जन बैठे थे | मैंने परछी से गाना शुरू किया ,"<i>एक खबर आई सुनो एक खबर आई | क्या</i> ?"<br />
फिर तेज क़दमों से बैठक से गुजरा ,"<i>होने वाली है गंगा राम की सगाई </i>|"<br />
<br />
मैंने इस बात का ख्याल रखा कि ये लाइन बैठक से बाहर निकलने के पहले पूरी हो जाए और मैं उन सज्जन को ना देखूं |<br />
जब उनकी और से कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखी , तो मुझे थोड़ी सी निराशा जरुर हुई | कहीं ऐसा तो नहीं क़ी उन्होंने कुछ सुना ही ना हो | थोड़ी देर बार मैंने धड़कते दिल को थामा और फिर यही गाना गाते हुए , इस बार थोडा धीरे क़दमों से अन्दर घुसा |<br />
इस बार मिसाइल ने लक्ष्य को भेद ही दिया |<br />
<br />
"सुनना बेटा जरा ....|"<br />
इसका ही तो मुझे इंतज़ार था | मैं थोडा ठिठक गया |<br />
" तुम तो अच्छा गाते हो | ये गाना कहाँ से सीखा ?"<br />
"रेडियो से |" मैंने जवाब दिया |<br />
"अच्छा ? और भी गाना आता होगा तुमको ?"<br />
"हाँ,, आता तो है ...|"<br />
"तो एक काम करो बेटा | ये गाना मत गाना | कोई और गाना गाओ तो अच्छा रहेगा |"<br />
बड़ों से जुबान लड़ाना बुरी बात है | सो मैंने पूछा तो नहीं कि यह गाना नहीं तो क्यों नहीं ? क्या खराबी है इस गाने में ? <br />
<br />
मैंने एक शरीफ बच्चे की तरह सर हिलाया और उनकी बात मान ली |<br />
अब शादी ब्याह का मामला भला एक मुलाकात में तो तय होता नहीं | कई बार अलग अलग लोगों से मिलना पड़ता है |उनका लड़का हुलास दुर्ग के पालीटेक्निक में पढ़ रहा था | लक्ष्मी भैया के अनुसार वो थोडा नादान था |<br />
"सुनो क्या बोल रहा था ? अगर पाकिस्तान से लड़ाई हुई तो ये पुलिस वाले लड़ने जायेंगे ... | हा .. हा.. हा... | पुलिस और सेना में फर्क नहीं मालूम ... | हां ... ह़ा ... हा... |" लक्ष्मी भैया की हँसी रुक नहीं रही थी |<br />
फर्क तो मुझे भी नहीं मालूम था , पर लक्ष्मी भैया का साथ देने मैं भी हँसा , "हा.., हा.. ,हा...|" <br />
<br />
एक शाम को मैं सड़क से घूम- घाम के आया और बरामदे में मोंगरे के पास बैठकर झूम झूम के गाने लगा |<br />
"<i>वो परी कहाँ से लाऊं ? तेरी दुल्हन जिसे बनाऊं ...| ... ये गंगाराम क़ी समझ में ना आये ... |</i>"<br />
<br />
अन्दर से बाबूजी ने आवाज़ लगाईं , "टुल्लू , बेटा ... |"<br />
मैं अन्दर गया और भौंचक रह गया | बाबूजी के साथ वही सज्जन - माँ के गंगाराम काका - बैठे मुस्कुरा रहे थे |<br />
"इन्हें जानते हो ? नहीं जानते ? चलो पाँव छुओ और बाहर दूर जाकर खेलो ....|"<br />
मन ही मन मुझे हँसी आ रही थी | मन में आया कि उन्हें बोलूं कि वो 'पुराना' गाना नहीं, वादे के मुताबिक दूसरा गाना गा रहा था | और जो गा रहा था , वह महज़ संयोग ही था .... <br />
संयोग , और कुछ भी नहीं - ईमान से ....|<br />
<br />
********<br />
<br />
"<i>चारू चन्द्र की चंचल किरणे , खेल रही थी जल थल में ...</i>|"<br />
अपनी कुटिया में , ज़मीन पर गद्दा बिछाए, मच्छरदानी लगाए, कौशल भैया बैठे थे | भिलाई विद्यालय से आकर, वे सीधा वहीँ चले जाते थे | घर में लोग जब ज्यादा हो जाते, तो शांति की तलाश में मैं वहीँ चले जाता | मैं वहाँ गया, तो उन्होंने मुझे बुला लिया |<br />
<br />
पुस्तक के ऊपर लिखा था, "मधु संचय"|<br />
<br />
"चारू याने साफ़ ...|" फिर अचानक उनकी नज़र मेरे पाँव पर पड़ी ,"तेरे पाँव साफ़ हैं ?"<br />
"खेल कर आने के बाद मैंने पाँव तो धोये थे |" मैं कुछ समझा नहीं |<br />
"ठीक है, दिखा जरा ...|"<br />
मैंने अपने पांव दिखाए |<br />
"बाहर ही नहीं, घर में भी धूल रहती है |"<br />
"माँ झाड़ू तो लगाती है ...|"<br />
"झाड़ू क्या दिन भर लगाती है ? खिड़की दरवाजे तो दिन भर खुले रहते हैं बिस्तर में घुसने के पहले पाँव झाड़ लेना चाहिए ...|"<br />
मैं अपराधी भाव से पांव मच्छरदानी के बाहर निकालकर झाड़ने लगा |<br />
<br />
"पाँव ऐसे साफ़ होना चाहिए, जैसे दर्पण ...|"<br />
मैं काफी देर तक तलुआ झाड़ते रहा ...|<br />
"चेहरा दिख रहा है ?"<br />
"नहीं |" मैं अभी भी पांव झाड़ रहा था |<br />
"चल , ठीक है | अब पांव अन्दर कर ले ...| तो चारू यानी साफ, चन्द्र याने चाँद, चंचल यानी ... मतलब उछल कूद मचाने वाली ...| किरणे यानी ... |" फिर उन्हें लगा , मानो मैं बोर हो रहा हूँ | वो बोले, "बाहर जाकर देख | चन्द्रमा निकला है या नहीं ? "<br />
<br />
मैंने कुटिया के बाहर जाकर देखा, बड़ा स, गोल चन्द्रमा आकाश पर मुस्करा रहा था |<br />
" हाँ निकला तो है |" मैंने कहा |<br />
"वैसे ये कविता थोड़ी मुश्किल है ... | चलो , दूसरी कविता पढ़ते हैं ...| " उन्होंने पन्ने उलटे और एक और कविता निकाली ,"<i>मैया मैं तो चन्द्र खिलौना लैहों</i> | देखो, कृष्ण जी जब छोटे <br />
थे , तो एक दिन वो अपनी माँ यशोदा से जिद करने लगे - माँ मुझे तो चन्द्रमा ही चाहिए ...|"<br />
"पर चन्द्रमा तो ऊपर आकाश में होता है ...|"<br />
"तो यशोदा ने मनाने की कोशिश की , पर कृष्ण जी ने जिद पकड़ ली | तब यशोदा ने एक थाली में पानी भरा तो चन्द्रमा की परछाईं उस पर पड़ने लगी | तब यशोदा मैया बोली, <br />
लल्ला, यह है चन्द्रमा | कृष्ण जी ने हाथ से उसे पकड़ने की कोशिश की | चन्द्रमा की परछाई हिलने लगी | यशोदा बोली, लल्ला, ये चाँद तुझसे डर रहा है ....|"<br />
मैं चुपचाप सब सुन रहा था |<br />
"क्या सोच रहे हो ?"<br />
"ट्रांजिस्टर लेने कब चलेंगे ?" मैंने पूछा |<br />
<br />
**********<br />
<br />
व्यास का गुस्सा बड़ा ही खतरनाक था भाई | <br />
अक्सर ऐसा होता कि परछी पर दरी बिछाकर वे लक्ष्मी भैया को पढाते थे | कई बार में दूर से उन्हें देखता था | सच तो ये था कि मैं देखना नहीं चाहता था | पढ़ाते पढ़ाते किसी न किसी बात वे लक्ष्मी भैया भड़कते रहते थे | काफी कष्टप्रद था यह देखना, क्योंकि लक्ष्मी भैया ऐसे थे जिनसे मैं कोई भी बात कभी भी पूछ सकता था | वे जवाब भी सोच समझ कर मुझे अच्छे से समझाकर देते थे | कोई उन्हें डांटे , यह मैं देख नहीं सकता था | पर कर भी क्या सकता था ? बैठक में तो बाबूजी किसी मेहमान के साथ बैठे बातें कर रहे हैं | रात हो गयी है और सब लोग घर चले गए हैं - इस लिए बहार जाकर खेल भी नहीं सकता |
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">पंखाखड</span> में शशि दीदी एटलस से नक्शा ट्रेस कर रही है | रसोई घर में माँ खाना बना रही है | कहाँ जाऊं ? वहां खड़े रहना मज़बूरी थी |<br />
<br />
"तुझसे से ये भी नहीं बनता ,ढपोर शंख, गोबर ...|" और गुस्से में व्यास ने लक्ष्मी भैया को तड़ाक से एक झापड़ जड़ दिया |<br />
उसकी गूंज इतनी थी कि बाबूजी बैठक से उठकर चले आये |<br />
"क्या बात है व्यास ? क्यों मार रहे हो ?"<br />
" नहीं मामा जी | कुछ नहीं ...|"<br />
"मैंने झापड़ की आवाज़ सुनी |" <br />
"अरे नहीं मामा | यहाँ मच्छड बैठा था | उसको मारा | क्यों लक्ष्मी ?" उन्होंने लक्ष्मी भैया से पूछा |<br />
सकपकाए चेहरे से लक्ष्मी ने आज्ञाकारी की तरह सर हिलाया |<br />
"ठीक है | मच्छर दानी लगाकर उसके अन्दर बैठो |" जाते - जाते बाबूजी बोले ," पर उसे मारो मत |"<br />
<br />
*************<br />
<br />
थोड़े दिनों पहले ही तो मैं कला स्टूडियो आया था | मेरे बाल काफी बड़े बड़े हो गए थे और मुझे सरदारों की तरह जूड़ा बनाना पड़ता था | झालर उतरवाने के पहले रामलाल मामा को पता नहीं क्या सुझा ,"टुल्लू क़ी एक फोटो खिंचवा लेते हैं ...|"<br />
कला स्टूडियो वाले ने मेरे हाथ में प्लास्टिक के फुल पकड़ा दिए और मुझे एक लंबी सी बेंच पर, जिसमें बड़े बड़े फूलों वाली चादर बिछी थी, बैठा दिया | अगल बगल
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">की </span> दो बड़ी बड़ी लाइटें जला दी | इतनी तेज रौशनी थी कि मेरा सर गरम हो गया | एक बड़े से कैमरे में , जिस पर चादर बिछी थी , फोटोग्राफर ने शुतुरमुर्ग क़ी तरह अपना सर घुसा लिया और फिर कहा,"मुन्ना इधर देखो ....| हुर्र ...."<br />
<br />
चिड़िया विडिया तो कुछ निकली नहीं, मेरी फोटो जरुर खिंच गयी | जिसे लकड़ी के छोटे फ्रेम में मढ़ा कर बैठक में टांग दिया गया ....|<br />
<br />
उन्हें तो कोई "इधर देखो ...हुर्र वगैरह कहने वाला नहीं था | उस दिन मुझे लगा था कि परदे के सामने बैठने के लिए इतनी बड़ी बेंच रखने क़ी क्या जरुरत थी ? जब उनकी फोटो खींच कर आई तो लगा क़ी वो बेंच छोटी पड़ गयी है और एक लड़की को तो खड़ा होना पड़ गया है |<br />
<br />
शशि दीदी , शकुन, शशि दीदी की कुछ अन्य सहेलियाँ जिनमें शैल भी शामिल थी , हाँ बातूनी शैल भी उस फोटो में थी |<br />
पता नहीं, उन दिनों शायद दाँत निकाल कर हँसना लड़कियों के लिए बेशर्मी मानी जाती थी | सब केवल मुस्कुरा रहे थे |<br />
उन दिनों फोटो किसी प्रयोजन के लिए खिंचवाई जाती थी | फोटोग्राफी महँगी जो थी | उद्देश्य कुछ भी हो सकते थे | यादें संजोने से लेकर शादी ब्याह लगाने तक ...|<br />
<br />
*************<br />
<br />
तो नीलामी में खरीदे ट्रांजिस्टर को लेकर कौशल और मैं रमा के घर गए | कौशल भाई ने नया नया स्कूटर सीखा था | उन्हें पसंद नहीं था कि कोई स्कूटर पर सामने खड़े हो | सो <br />
मुझे पीछे ही बैठना पड़ा |शाम करीब करीब रात में बदल गयी थी | फिर भी रमा के घर में अँधेरा छाया था |<br />
"ये है ट्रांजिस्टर | पांच बैंड वाला |"<br />
"पांच बैंड वाला ?"<br />
"हाँ पाँच बैंड वाला | सेल से भी चलेगा और बिजली से भी | सेल डालना हो तो चार सेल डालो | या तो बिजली से जोड़ दो | चलाकर देखें ?"<br />
"लाईट नहीं है |" रंजना बोली |<br />
"अरे | क्या हुआ ? कब से लाईट गयी है ?"<br />
"सुबह से | 'पूछताछ दफ्तर' में इसके पापा रिपोर्ट करने गए थे तो दफ्तर खुला ही नहीं था | उसके बाद पता नहीं | 'मूड' होगा तो फिर गए होंगे | रमा शिकायत के स्वर में बोली |<br />
"एक मिनट देखूं जरा ?"<br />
कौशल भैया टीन क़ी कुर्सी पर चढ़ गए | 'फ्यूज़ बॉक्स' खोलकर एक फ्यूज़ निकाला |<br />
"अरे, ये तो 'फ्यूज़' उड़ा हुआ है | हीटर वगैरह तो नहीं जलाया था ? एक वायर देना जरा |"<br />
वायर के अन्दर से कौशल भैया ने एक पतला सा तार निकाला और घिस कर एक दम महीन कर दिया |<br />
"जब तक इलेक्ट्रिशियन आता है , ऐसे ही काम चलाओ | अँधेरे में कहाँ बैठे रहोगे ?"<br />
और अगले ही पल कमरे में उजाला हो गया ...|<br />
कौशल भैया ने ट्रांजिस्टर जोड़ा, बैंड बदले | काँटा इधर उधर घुमाया |<br />
सब कुछ काफी अच्छा था | ट्रांजिस्टर ने रमा के घर क़ी काफी लम्बी सेवा क़ी | गाना सुनाया ,
भांटो को चुनाव के नतीजे सुनाये | जसदेव सिंह क़ी आवाज़ में कमेंट्री सुनाई | १९७२-७३ में इंग्लॅण्ड पर भारत को जीत दिलाई |<br />
फिर एक सुखद सपने क़ी तरह उसका भी स्वाभाविक अंत हुआ | १९७४ में इंग्लैण्ड के खिलाफ भारत क़ी टीम ४२ रन पर लुढ़क गयी | कई भावुक खेल प्रेमियों ने इमारतों से कूदकर जान दे दी | भांटो ने ट्रांजिस्टर ज़मीन पर दे मारा |<br />
<br />
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Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-85576941485405224952012-08-17T22:51:00.001-07:002021-11-03T10:05:45.205-07:00बिलसपुरिहा करिया मोटर में भरा के .... -१ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
शक की दवा तो हाकिम लुकमान के पास भी नहीं थी | मैं तो साढ़े पांच साल का बच्चा था !<br />
चंद्राकर किराना स्टोर के सामने की सड़क से चलते जाओ तो वह सेक्टर दो की एवेन्यू बी से मिल जाती थी | भिलाई के भूगोल की परिभाषा के अनुसार 'एवेन्यू' याने लम्बी सड़क जो सेक्टर के आर पार जाती हो | खैर, तो जहाँ पर मार्केट की वह सड़क एवेन्यू बी से मिलती थी, वहाँ एक बस का स्टॉप था | किस बस के लिए - मुझे नहीं मालूम - क्योंकि भिलाई शहर में बसें या तो स्कूल की होती थी या भिलाई इस्पात संयंत्र की | जो भी हो - सायेदान जरुर गर्मी से राहत देता था | और वहीँ तो उसके ही एक स्तम्भ पर लाल डिब्बा टंगा था | <br />
सर्दी, गर्मी, बरसात - सब सहते बरसों से टंगा था और बरसों तक टंगे रहा |<br />
" मैं डालूं चिट्ठी ?" मैंने पूछा |<br />
"तेरा हाथ नहीं पहुंचेगा |" बेबी ने कहा |<br />
फिर पता नहीं, उसे क्या सूझा , उसने मुझे चिट्ठी पकड़ाई और हवा में उठा लिया |<br />
"वो जो सामने का ढक्कन है ...?"<br />
"कौन सा ढक्कन ?" पता नहीं, बेबी क्या कह रही थी? ढक्कन तो डब्बे के ऊपर लगा होता है |<br />
"अरे वही जो हिल रहा है | उसे उठा और चिट्ठी अन्दर डाल दे |"<br />
अच्छा , सामने की झिर्री पर एक जंग खाया ढक्कन झूल रहा था | मैंने उसे उठाया तो दरार स्पष्ट नज़र आई | मैंने झिर्री में चिट्ठी अन्दर डाल दी |<br />
बेबी ने मुझे नीचे उतारा | फिर डिब्बे को इधर उधर हिलाया |<br />
"ऐसे क्यों हिला रहे हो ? " मैंने पूछा |<br />
"ताकि चिट्ठी कहीं डिब्बे में फँस न जाए |"<br />
<br />
देखा - शक महाशय झटपट, बिना बताये मेरे नन्हे से दिमाग में घुस गए |<br />
<br />
"ये भी तो हो सकता है कि फूफा ने चिट्ठी डालने के बाद डिब्बा नहीं हिलाया हो ?" मैंने पूछा |<br />
"पता नहीं, पर उनके बाद जो चिट्ठी डालने गया होगा , उसने तो डिब्बा हिलाया होगा | कुछ नहीं, ये पोस्टमैन बड़े बदमाश होते हैं |"<br />
<br />
लाल डिब्बे को देखते हुए मैं सोचने लगा - पोस्टमैन बड़े बदमाश होते हैं | लाल डिब्बे के नीचे लगे एक दरवाजे पर एक ताला नज़र आया |<br />
"हो सकता है, कोई ताला खोलकर चिट्ठी निकाल कर ले गया हो ?"<br />
"कैसे ले जाएगा ? चाभी तो पोस्टमैन के पास होती है |"<br />
<br />
शक अब विश्वास में बदलने लगा था कि पोस्टमैन बड़े ही बदमाश होते हैं | फिर भी, ये तो जानना जरुरी था कि कहाँ के पोस्टमैन ने ये काम किया |<br />
<br />
" तो फूफा ने घुठिया के लाल डिब्बे में चिट्ठी डाली होगी | फिर ?"<br />
" घुठिया का पोस्टमैन उसे लेकर बैतालपुर आया होगा |" <br />
"फिर ?"<br />
"बैतालपुर के डाकघर में डाकिये ने मुहर मारी होगी , फिर उसे गाड़ी में भरकर बिलासपुर लाया होगा |"<br />
"बिलासपुर ? फिर ?"<br />
"बिलासपुर के पोस्टमैन ने उसे डाक वाली रेलगाड़ी में डाला होगा |"<br />
"फिर ? क्या रेलगाड़ी में भी पोस्टमैन बैठा होगा ?"<br />
"फिर दुर्ग में जब गाड़ी रुकी होगी तो दुर्ग का पोस्टमैन उसे भिलाई के डाकघर लाया होगा | वहाँ फिर डाकिये ने एक और मुहर मारी होगी |"<br />
"फिर वहाँ से एक पोस्टमैन हमारे घर लेकर आया होगा ...|" मैंने जोड़ा |<br />
"वही तो नहीं लाया | यही तो गड़बड़ है | अब इतने सारे पोस्टमैन में से किसने बदमाशी क़ी , क्या मालूम ?"<br />
एक डाकिये से दूसरा डाकिया ....दूसरे से तीसरा ...<br />
<br />
मैं फिर सोचने लगा | थोड़े दिन पहले , मैंने चंदामामा से एक शब्द सीखा था - 'डाकू' | अब मुझे 'डाकू' और 'डाकिया' भाई भाई लगने लगे |<br />
<br />
तभी डाक की गाडी आ गयी | आनन् फानन में लोग एक कतार में खड़े हो गए | कौन पहले आया था, कौन नहीं - पता नहीं | किसी को उतनी जल्दी भी नहीं थी - सिवाय मेरे | डाक वैन की खिड़की खुली और खाकी कपडा पहने पोस्टमैन ने खोल के अन्दर कछुए की तरह अपना सर बाहर निकाला ,"मनी ऑर्डर फोरम ख़तम हो गया भाई | "<br />
ऐसा लगा, जैसे कोई बम गिरा हो | लाइन में लगे कई लोग कानाफूसी करने लगे | कुछ लोग तो वापिस जाने लगे |<br />
"क्या ? तो हम लोग पैसे कैसे भेजेंगे ?" लाइन में खड़े एक सज्जन ने हुँकार भरी |<br />
"बड़े पोस्ट ऑफिस में ही ख़तम हो गया , साहब |" पोस्टमैन ने लाचारी भरे स्वर में तटस्थता का पुट मिलाते हुए कहा |<br />
"मालूम है न , राखी के दिन हैं | सरकार को ज्यादा मनी ऑर्डर फोरम छापना चाहिए |"<br />
"आप ठीक कहते हैं | " पोस्टमैन ने हाँ में हाँ मिलाई | उसी में उसकी भलाई थी | वह मामले को तूल पकड़ने से बचाने की हर संभव कोशिश कर रहा था |<br />
"तो हम लोग पैसे कैसे भेजें ? लिफाफे में डालकर ?"<br />
"ऐसा मत कीजिये साहब | पोस्टमैन लोग चोर होते हैं | " एक दूसरे सज्जन ने उसे शांत करने की कोशिश की |<br />
<br />
मैं उसकी बात से सहमत था | <br />
तैश में आने के बजाय डाक गाड़ी के अन्दर बैठे पोस्टमैन ने बात अनसुनी करना ही बेहतर समझा ," साहब, लिफ़ाफ़े में पैसे भेजना गैर कानूनी है |"<br />
"तो क्या करें - हम लोग ?" सज्जन ने अपनी आस्तीन चढ़ाई |<br />
डाकिया कुछ देर सोचता रहा , फिर मरी आवाज़ में उसने संक्षिप्त सा जवाब दिया ,"इंतज़ार |"<br />
उस ज़माने में लोग चिट्ठियां लिखा करते थे | वही तो संचार का सबसे सुलभ साधन था | डाकघर दूर दूर होते थे | जैसे, एक बड़ा डाकघर सेक्टर एक में था | सबके लिए, हर एक दिन डाकघर जाना संभव भी नहीं था | इसलिए, वैसी डाक गाड़ी सप्ताह में तीन दिन शाम को विभिन्न स्थानों पर आती - ताकि लोग डाक सामग्री खरीद सकें ...|<br />
<br />
,,, और अपने दिल की भड़ास निकाल सकें |<br />
<br />
जैसी कि आशंका थी - बेबी पोस्टमैन से लड़ पड़ी |<br />
"नहीं बेबी .... | " आखिर उसे बेबी का नाम कैसे पता चला ? " नहीं, ऐसा मत सोचो | पोस्टमैन लोग जान बूझकर कोई चिट्ठी गायब नहीं करते |"<br />
"तो ऐसा कैसे हो सकता है ?" बेबी बोली ," जो चिट्ठी सेक्टर ५ के पते मर भेजी, वो तीन दिन पहले मिल गयी | और उसी व्यक्ति ने ने उसी दिन उसी समय जो चिट्ठी सेक्टर दो के पते पर भेजी , वो आ तक नहीं मिली | सरे आम बदमाशी है ये |"<br />
"चिट्ठी में क्या राखी आने वाली थी ?"<br />
"हाँ |" बेबी बोली |<br />
"अच्छा , ये बोलो | सेक्टर पांच में उनके ... मेरा मतलब है ... सगे लोग रहते हैं ?"<br />
"हाँ | तो फिर ?"<br />
"यही तो बात है बेबी |" पोस्टमैन ने मानो गुत्थी सुलझा ली ," एक बात कहूँ - राखी के दिनों में सगों क़ी चिट्ठी समय पर पहुँच जाती है | बाकि रिश्तेदारों को थोडा इंतज़ार करना पड़ता है ...बस थोडा सा | " बात टालने के बाद बात पलटते हुए उसने कहा ," और कुछ लेना है आपको ?"<br />
वापिस आते आते मेरे मन में सवाल घूम रहा था - सगा या साग - 'सगे' शब्द से मेरे आँखों के सामने 'साग' क़ी तस्वीर बन रही थी | बेबी से मैंने पूछा ," साग खाने वाले लोग सगे होते हैं क्या ? साग तो हम लोग भी ....|"<br />
बेबी अलग भुनभुना रही थी ," पोस्टमैन को भला कैसे मालूम चलेगा कि चिट्ठी सगे क़ी है या ...| जब तक वो खोल के ना पढ़े ...| ,,, और फूफू तो बाबूजी क़ी सगी बहन है ...!<br />
<br />
************<br />
<br />
कई दिनों बाद, उस घटना के कई महीनों बाद मुझे उसका नाम पता चला - जब मुझे प्राथमिक शाला क्रमांक आठ में दाखिला मिल गया था | <br />
<br />
"वो ? वो तो दौलत है | चलना है उसके पास ?" दीपक मुझे करीब करीब खींचते हुए शाला नंबर आठ के तार के पास ले गया | तार, जो कि शाला नंबर आठ की चहर-दीवारी निर्धारित करती थी | उसे लांघना वर्जित था |<br />
<br />
तार के बाहर , उस पार, दौलत मुस्कुरा रहा था - मानो लड़कों को लक्ष्मण रेखा लांघने के लिए आमंत्रित कर रहा हो , या ललकार रहा हो | दौलत तो हरदम मुस्कुराते रहता था , पर ना जाने क्यों, उस दिन की घटना के बाद , मुझे लगता था कि मुझे देखकर उसकी मुस्कान और चौड़ी हो जाती थी | <br />
<br />
<br />
मगर वह घटना तो तब हुई थी जब मैं शाला जाता भी नहीं था | जब भी माँ मुझे कोई छोटी मोटी चीज, नमक या माचिस लेने बाज़ार भेजती, मैं हमेशा तालाब के किनारे से जाता जो कि शाला के दक्षिणी छोर पर पड़ता था | जहाँ दौलत अपना ठेला लगाकर सुबह से शाम तक शाला के बच्चों क़ी प्रतीक्षा करते रहता था | सांवला सा चेरा, पतला दुबला शरीर , दो अंगुल क़ी दाढ़ी जो घनी नहीं हुई थी | उसके ठेले में ढेर साड़ी चीजें होती थी | चना, मटर, रेवड़ी और मूंगफली तो हर ठेले वाले के पास होती थी | उसके पास और कुछ भी था | रंग बिरंगी प्लास्टिक क़ी छोटी छोटी चकरी, तुतरू, सीटी - इतना ही नहीं, मैंने लूडो का बोर्ड, रेल का इंजन भी उसके पास देखा |कौन खरीदता होगा उन्हें ? वे सब तो महंगे आते हैं |<br />
<br />
जल्दी ही वह राज खुल गया |<br />
<br />
उस दिन मेरी लॉटरी निकल गयी |<br />
सचमुच ? ... हाँ सच्ची मुच |<br />
<br />
जब भी मैं बाज़ार से माँ के लिए कभी नमक , कभी माचिस तो कभी जीरा लेकर जाता , तो मेरी जेब में कभी पाँच तो कभी दस पैसे होते | तब मेरे पाँव दौलत के ठेले के पास से गुजरते समय अक्सर धीमे हो जाते मैं हर बार असमंजस में रहता कि कांच के जार में बंद चूरन क़ी खट्टी मीठी गोलियां लूँ या पीपरमेंट क़ी संतरे के फांक के आकर वाली नारंगी चूसनी | दोनों ही पाँच पैसे क़ी पाँच मिलती थी | फिर माँ का गुस्से से भरा चेहरा ख्याल आते ही मैं आगे बढ़ जाता था |<br />
<br />
उस दिन दो विद्यार्थी उसके पास खड़े थे |<br />
"आज लॉटरी निकलेगी |" एक लड़का बोला ,"लूडो का चार नंबर है न ?"<br />
अब मैं थोड़ी दूरी पर खड़ा होकर देखने लगा |<br />
एक लड़के ने पाँच पैसे का चौकोर सिक्का दौलत को पकडाया |<br />
दौलत ने उसे रंग बिरंगे कागज क़ी चौकोर पुडिया पकडाई | उस लड़के ने धीरे से पुडिया फाड़ी | उसका दोस्त नज़रें गडाए देख रहा था उसने नंबर देखा ,"बारह ...|" उसके मुंह से निकला , "धत तेरे क़ी .... |" <br />
दौलत उसे प्लास्टिक क़ी एक हरे रंग क़ी गुडिया पकड़ा रहा था |<br />
गुडिया उसके दोस्त ने ली | छोटी सी गुडिया के पाँव के पास सीटी लगी थी | उसके दोस्त ने सीटी बजाई ,"सीं , सूँ , सीं |"<br />
"तू रख ले बे | " उसका मन खिन्न हो गया था ," लीला को दे देना | खुश हो जाएगी | मेरी तो कोई बहन नहीं है |"<br />
उसने चूरन क़ी पुडिया से चूरन मुंह में उड़ेल लिया |<br />
<br />
उसकी हो ना हो - मेरी तो बहनें थी | बड़ी भी और छोटी भी | पर मेरा मन रेल के इंजन के लिए ललचा गया | राग बिरंगा, छोटा सा, चाभी वाला इंजन ...| उसका नंबर सात था ...|<br />
<br />
"लॉटरी कितने क़ी है ?" मैंने पूछा | हालाँकि उस लड़के को मैंने पाँच पैसे देते देखा था, फिर भी, कहीं वो ठग ना ले }<br />
"पंजी |" दौलत ने कहा |<br />
मैंने उसे पाँच का सिक्का पकडाया | उसने मुझे वैसे ही कागज़ क़ी एक चौकोर पुडिया पकड़ाई | धड़कते दिल से मैंने पुडिया खोली |<br />
"आठ नंबर |" मैंने थूक निगलते हुए कहा | वह नंबर मुझे आज तक याद है |<br />
आठ नंबर कुछ खिलौनों के और पिपरमेंट के जार के पीछे छिपा था | दौलत ने मुझे चमचमाती हुई पीतल क़ी सौफ क़ी ट्रे पकड़ा दी |<br />
एक पल तो मैं सकपका गया | इतनी सुन्दर ट्रे - किनारे किनारे हरे और लाल रंग के बेल बूटे बने हुए थे | बीच में गोल - गोल, कुछ नक्काशी उकेरी गयी थी | घर के सौफ के ट्रे से वह छोटी जरुर थी , पर उससे कहीं ज्यादा खूबसूरत थी |<br />
सिर्फ पाँच पैसे में .... लॉटरी इसी का तो नाम है ....| <br />
<br />
पर अब मुझे पसीना आने लगा | जितना सोचता, घबराहट उतनी ही बढती जाती | | अगर माँ ने पूछा, बेटा, मैंने तुझे दस पैसे देकर भेजा था | नमक तो पाँच पैसे का था | बाकी पाँच पैसे कहाँ हैं , तो फिर क्या जवाब दूंगा ? नहीं, इस ट्रे को छुपाना फ़िज़ूल है | माँ से कह दूंगा, मैंने पाँच पैसे में ख़रीदा है | पर माँ ने पूछा कि भला पाँच पैसे में कहाँ से ट्रे मिलती है - तो फिर ?<br />
<br />
"माँ, आज मेरी लॉटरी निकली है |" मैंने धडकते दिल से आखिरकार सच ही कहा - पूर्ण सत्य था यह - लेशमात्र भी मिलावट नहीं |<br />
<br />
"लॉटरी ? मतलब ? " माँ कुछ समझी नहीं |<br />
मैंने माँ को चमचमाती ट्रे दिखाई ,"पाँच पैसे क़ी लॉटरी |"<br />
<br />
***********<br />
हर सड़क में मकानों की आमने - सामने दो कतारें होती थी ( कौन सी बड़ी बात है ?) | एक कतार छोटी और एक बड़ी | पीछे वाली सड़क की छोटी कतार की पीठ, अगली सड़क के छोटी कतार की पीठ से मिलती थी | और इस तरह दो छोटी कतारों की बगल की खाली जगह एक मैदान का रूप धारण कर लेती थी | सब रुसी लोगों के बुद्धि की उपज थी | उन्होंने मैदान के लिए जगह तो दी, पर उससे ज्यादा कुछ नहीं | बाकी लोगों की कल्पना शक्ति पर छोड़ दिया | चाहे फुटबाल खेलो या होंकी | क्रिकेट खेलो या कबड्डी | साइकिल सीखो या पतंग उडाओ | नाव चलाओ या होली जलाओ |<br />
परिणाम ? इक्कीस और बाइस सड़क के लोगों में स्वाभाविक भाईचारा था | रोज सुबह शाम मिलते थे, हंसते खेलते थे, गालियाँ देते , गाना गाते , लड़ाई करते , मजाक उड़ाते | उसके मुकाबले सड़क तेईस, जी हाँ , बाइस सड़क की अगली ही सड़क, एक परदेश की तरह लगती थी |<br />
<br />
शैल का घर तेइस सड़क के कोने में था | और शैल शशि दीदी की पक्की सहेली थी | उन दिनों लड़कियों का चश्मा पहनना एक अभिशाप माना जाता था | समझा जाता था कि इससे सुन्दरता घटती है और लड़कियों क़ी सुन्दरता एक अनिवार्य गुण माना जाता था | शैल चश्मा जरुर पहनती थी , वो भी मोटे फ्रेम का चश्मा | पर उसने उसके बातूनीपन पर कोई असर नहीं पडा था |चपड़ - चपड़ बातें करना, छेड़ना उसकी आदत में शुमार था | और इसी बात से मुझे घबराहट होती थी | कई बार वह ऐसी बात पूछ बैठती , जिसका मेरे पास कोई जवाब नहीं होता |फिर या तो शशि दीदी मेरी मदद करती, या मैं धरती फटने का इंतज़ार करता |<br />
<br />
राखी का दिन था वो | जो स्कूल जाते थे उनकी छुट्टी थी | जो नहीं जाते थे , उनकी तो ....खैर |<br />
"चल, घूम के आते हैं | " शशि दीदी ने मुझसे कहा |<br />
"पैदल या साइकिल में ? " मैंने पूछा |उनकी लेडीज़ साइकिल में सामने डंडा तो था नहीं , इसलिए पीछे करियर में ही बैठने को मिलता |<br />
"आलसी राम, ज्यादा दूर नहीं , पास में ही जाना है |"<br />
जब हम पुलिया पार करके तेइस सड़क में मुड़े तो मेरा माथा ठनका |<br />
"शैल के घर जा रहे हैं ? " मैंने पूछा |<br />
" हाँ | "<br />
मैं ठिठक गया |<br />
"क्यों ? क्या हुआ ?"<br />
"कुछ नहीं, मुझे नहीं जाना |"<br />
"अरे , चल | " शशि दीदी ने मेरा हाथ पकड़ कर खींचा ,"क्या हुआ ? तुझे क्या करना है ? बस, चुपचाप खड़े रहना |"<br />
वो मुझे चुपचाप खड़े रहने दे तब न | कोई चुपचाप खड़े रहे - ये उसे फूटी आँखों नहीं सुहाता था | उसकी दुनिया में, हर किसी को हर वक्त बोलना चाहिए, चाहे कोई सुनने वाला हो या नहीं | जो भी हो, मैं एक अनुशासित सिपाही की तरह शून्य की ओर निहारते उलटी गिनती गिनते शांत भाव से खड़ा था |<br />
"इतनी सारी राखी ? " उसने पूछ ही लिया |<br />
मेरे दोनों हाथ राखी से भरे हुए थे | अब उन दिनों बड़ी - बड़ी फूल वाली राखियाँ हुआ करती थी | एक से बढ़कर एक, डिजाइन वाली | जब राखियाँ बड़ी हों और हाथ छोटे हों तो जाहिर है , हाथ राखियों से भर जायेंगे | और जब एक हाथ भर जाएँ तो दूसरा हाथ ...|<br />
<br />
"तेरी कितनी बहनें हैं ?" भौहें सिकोड़ कर उसने पूछा |<br />
मैंने मन में गिनती शुरू क़ी, "बेबी एक , शशि दो , शकुन तीन , शांता चार , रमा ... फिर मुझे कुछ सूझा | मैंने पहले दाहिना हाथ सामने किया , फिर बांया हाथ | तात्पर्य यह कि गिन लो - जितनी राखी , उतनी बहनें |<br />
<br />
"अच्छा ? इतनी सारी बहनें ? तू तो किस्मत वाला है रे | जब तुझे मार पड़ती होगी तो ये बहनें तुझे बचाती होंगी |"<br />
मुझे उम्मीद तो थी कि शशि दीदी मुझे बचाएंगी इस बातूनी अफलातून से , पर वो तो बस मुस्कुरा रही थी |<br />
"और जब तू बड़ा होगा तो फिर तुझे इनको बचाना पड़ेगा | सब क़ी सब तेरी सगी बहनें हैं ?"<br />
<br />
"हाँ |" मुझे क्या पता था, सगी याने क्या ? मैंने सोचा , जो साग बना सके वो सगी | साग तो सभी बना सकते हैं - संजीवनी भी सीख जाएगी |<br />
"नहीं , नहीं |" शशि ने तुरंत प्रतिवाद किया ,"नहीं रे, इसे सगी का मतलब नहीं मालूम |"<br />
शैल क़ी मुस्कान और चौड़ी हो गयी | खैर, अब मेरे मन में गुडगुड होने लगी , सगी का मतलब क्या ? कौन सगी है और क्यों ? जो नहीं है, तो क्यों नहीं ? वह सवाल का कीड़ा, जो उस दिन बेबी की डाकिया से लड़ाई के बाद मेरे दिमाग में घुसा था, , अचानक जागकर कुलबुलाने लगा |<br />
<br />
"मेरी कितनी सगी बहनें हैं ? " आते समय मैंने पूछ ही लिया |<br />
"तीन | " शशि दीदी ने जवाब दिया |<br />
"कौन ? आप , शकुन और ...."<br />
"नहीं, शकुन नहीं |"<br />
"क्या ? क्यों ? " मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा | शकुन ने भी तो मुझे वी ही राखी बंधी थी, जैसे सबने | ठीक है, रमा और शांता हम लोगों के घर में नहीं रहते , शायद वो सगे नहीं हों | पर शकुन ...|<br />
"सगी मतलब क्या ?"<br />
अब शशि दीदी सोच में पड़ गयी | कैसे समझाया जाये .....|<br />
"तुझे कैसे बताऊँ ? एक तरह से सोच कि जिनके माँ और बाबूजी एक ही हों | वो सगा |"<br />
"पर कैसे पता चलेगा , कि ...शकुन तो ..."<br />
"शकुन बाबूजी को क्या कहती है ? " शशि दीदी झल्ला सी गयी |<br />
"मामा "<br />
"और तू ?"<br />
"मैं ? बाबूजी |"<br />
"और मैं ?"<br />
"बाबूजी |"<br />
"और बेबी ?"<br />
"बाबूजी ....|"<br />
<br />
****************-<br />
<br />
शैल के घर क़ी घटना मेरे दिमाग के किवाड़ खोल दिए | इसका मतलब हमारे घर में जो लोग हैं, सब के सब सगे नहीं हैं | वो तो एक सामान्य सदस्य की तरह रहते हैं | न तो कभी उनके साथ कोई भेदभाव हुआ, न उन लोगों ने कभी हमारे साथ भेदभाव किया | सब तो एक साथ प्यार से मिलजुल कर रहते थे | इतना ही नहीं, कितने लोग आते थे, कुछ दिन रहते थे और फिर चले जाते थे |कुछ लोग थोडा रुकते थे, कुछ लोग ज्यादा |<br />
<br />
मुन्ना के घर में उसके दो चाचा लोग रहते थे , पर वे आँगन में मिटटी क़ी कुटिया में रहते थे | कौशल भैय भी तो आँगन में अपने लकड़ी के कमरे में ही रहते हैं | जबकि व्यास शकुन और लक्ष्मी भैया घर में रहते हैं |<br />
<br />
जब व्यास सेक्टर ५ चले गए, तो लक्ष्मी भैया भी उनके साथ ही चले गए | फिर भी, वे अक्सर आते रहते थे - खास कर रविवार के दिन ,"मामी , सुपेला बाज़ार से क्या क्या लाना हैं ?" और वो एक छोटा कागज़ और पेन्सिल लेकर बैठ जाते | जब तक उनके लिए चाय गरम होती, माँ बताते रहती , "आलू ? उस दिन कौशल लाया था | यह सप्ताह भर चल जायेगा |"<br />
कभी कभी वे कौशल या रामलाल या श्यामलाल को लेकर सुपेला बाज़ार जाते |<br />
पर अचानक उनका आना जाना कम तो नहीं, पर अनियमित होने लगा | पता नहीं क्यों ? अक्सर छुट्टी के दिन वो अपने गाँव घुठिया भी जाने लगे | तब सुपेला बाज़ार की ज़िम्मेदारी कौशल निभाते |<br />
तभी कुछ लोग और रायपुर से भिलाई रहने के लिया आये | उनका घर सेक्टर दो में था, पर दूसरे छोर में | पर तब जीवन की एकरसता को एक नया आयाम मिल गया |<br />
<br />
************-<br />
<br />
"चलो तो भाई .... चलो तो बेटा ....|" पिताजी कौशल भैया से बोले ,"चलो तुमको रमा का घर दिखा दूँ , फिर अगले बार खाने पर बुलाने के लिए तुम ही जाना ....|"<br />
"सबको खाने के लिए बुलाना ..| सब ...|" माँ कुछ बोल रही थी कि बाबूजी ने उनकी बात बीच में ही काट दी ,"हाँ , हाँ ...| सबको बुलाऊंगा | पर ...| " उनको कुछ सूझा नहीं ,"उसको घर में भी तो ... | " उन स्वर कुछ अस्पष्ट सा था |<br />
मैंने बाबूजी को स्कूटर की किक मारते देखा तो सड़क पर चक्का चलाना छोड़कर दौड़े दौड़े आया ,"कहाँ जा रहे हो बाबूजी ...| मैं भी चलूँ ?"<br />
"ठीक है, ठीक है ...| बाबूजी अनमने ढंग से बोले ,"जा | माँ को बोल कंघी कर दे ...|"<br />
मैं नहानी में गया और जल्दी से चेहरे पर पानी डाला | भय था कि कहीं बाबूजी चल न दें | भागते भागते आया और लपक कर स्कूटर के सामने सवार हो गया |<br />
"अरे मैंने कहा था कंघी करवा के आना | ठीक है, ऐसे ही चल ....|"<br />
<br />
बाबूजी रास्ते में कौशल को बोले जा रहे थे ," चलो अच्छा हुआ | रमा लोग भी यहीं आ गए ...| कॉलेज भी यहीं है | फिर व्यास और लक्ष्मी लोग भी यहीं हैं ...|"<br />
बाबूजी कुछ कुछ बोले जा रहे थे | मेरे पल्ले कुछ पड़ रहा था, कुछ नहीं | रमा कौन है ? नाम तो कई बार सुना है ...| हाँ, एक राखी उनकी भी तो आती थी ... | कहीं वही तो नहीं ? <br />
कई सवाल उठ रहे थे , पर पूछने क़ी हिम्मत नहीं हो रही थी ...|<br />
यही तो घर होना चहिये ...| बाबूजी बुदबुदाए ,"पर इतनी भीड़ क्यों लगी है ?"<br />
देखा जाये तो वह सेक्टर २ का सड़क नंबर १ ही था - लेकिन डबल स्टोरी वाला नहीं | सेक्टर दो की दो सड़कें बहुत लम्बी थी १ और २ | इत्तेफाक से एक और दो में ही डबल स्टोरी घर भी थे - पर शुरू के हिस्से में नहीं | <br />
<br />
सड़क १ के एक और मैदान भी था | अरे वाह, कितनी अच्छी सड़क है | यह तो रेल पटरी के कितने पास है ...| यहाँ से तो रेलगाड़ी साफ़ दिखाई देती होगी ....|<br />
भीड़ इतनी ज्यादा थी कि बाबूजी को स्कूटर घुमाकर वापिस मोड़ना पड़ा | वे आगे जा ही नहीं सकते थे | वे स्कूटर घुमाकर सड़क के दुसरे छोर से घुसे | किसी तरह वे उनके घर के पास पहुंचे |<br />
<br />
घर का दरवाजा तो खुला था , पर कोई था ही नहीं ...|<br />
तभी दो लड़कियां , -एक कोई सात साल साल की और दूसरी चार साल की - भागते हुए आई |<br />
मैंने उन्हें देख हो, याद नहीं पड़ता -|<br />
"रंजना, तुम्हारी माँ कहाँ है ?"<br />
"बगल के घर में ...| बुलाऊं ?"<br />
वो तो चले गयी | दूसरी लड़की - बबली वहीँ खड़े रही |<br />
"अरे मामाजी ...|" जो नाटे कद की महिला जल्दी जल्दी चलते हुए आई , वही रमा थी ....|<br />
"बैठिये न ....|"<br />
घर में एकमात्र आराम कुर्सी रखी हुई थी | आराम कुर्सी, यानी वो कुर्सी, जिसमें सिर्फ एक चादर लगी होती थी | मुझे नहीं लगता, बाबूजी उसमें बैठने के आदी होंगे | वो खड़े ही रहे |<br />
"तुम्हारी मामी ने सबको खाने के लिए बुलाया है ...| 'सबको' ...|" बाबूजी ने 'सबको पर जोर दिया ,"वो कहाँ हैं ?"<br />
"वो ? क्या बताऊँ मामाजी | आज फिर रायपुर निकल गए | उनको तो घर की कोई चिंता है नहीं | फुटबाल मैच था ...|"<br />
अरे ...| तो रात तक आयेंगे ?"<br />
"पता नहीं | बोल रहे थे , टीम हार गयी तो दस बजे तक वापिस आ जायेंगे | जीत गयी तो अगला मैच खेलने वहीँ रुक जायेंगे ... घर से ज्यादा तो वो मैदान में रहते हैं ...|"<br />
" तो चलो मेरे साथ | अकेले यहाँ बच्चों के साथ कैसे होगा ?"<br />
"नहीं मामाजी, रह लेंगे हम लोग | और फिर टीम हार गयी तो वो वापिस आ जायेंगे | चाबी तो उनके पास है नहीं | "<br />
"ठीक है | बाबूजी सोच में पड़ गए ...,"ये बाहर भीड़ कैसे लगी थी ?"<br />
"कुछ नहीं | झगडा हो गया ...|"<br />
"राजदेव के पापा को पुलिस पकड़ कर ले गयी ..|" रंजना बोली |<br />
"धीरे बोल |" रमा ने झिड़का ,"वो हमारे बगल वाले हैं न ...| पडोसी ...| पता नहीं , क्या झगडा हुआ ...| पुलिस आ गयी ....|"<br />
"सब बिलसपुरिहा करिया मोटर में भरा के चले गयी ....|" अचानक छोटी लड़की बबली बोल पड़ी ...|<br />
अरे नहीं मामाजी | रमा बोली ," कोई जुर्म नहीं है | ऐसा राजदेव की माँ बोल रही थी | पुलिस वाले बस ऐसे पकड़ के ले गएहैं ...|"<br />
<br />
****************<br />
<br />
उस रात मैने एक सपना देखा ...|<br />
घर के बाहर मेहंदी के पेड़ के नीचे एक बिलसपुरिहा काली मोटर कड़ी हुई है ...| कतिपय पुलिस वाले कुछ पूछ रहे हैं ... मुझे कुछ खास नहीं सुनाई दे रहा था ... बस यही कि ;"बी. एस.. पी का घर ... सगे रह सकते हैं ...| "<br />
<br />
मैं दरवाजे के पीछे छुप रहा था ...| एक पुलिस वाले ने मुझे देख लिया ,"ये ?" पता नहीं , कहाँ से शैल क़ी आवाज़ आई ,"ये तो सगा भाई है ...|" वो भी पलिस क़ी वर्दी में ...? हाथ में डंडा ...| पता नहीं, कौन कौन , किसीका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था ... | एक एक करके पुलिस की बिलसपुरिहा काली मोटर में समाते <br />
गए ...|<br />
"कोई जुर्म नहीं ...|" शैल की आवाज गूंजी,"पुलिस बस ऐसे ही .... |"<br />
जब घरघराते हुए मोटर चले गयी, तो उस घर में हम आठ लोग ही बच गए | छह 'सगे' भाई बहन और माँ और बाबूजी ....|<br />
<br />
******************<br />
<br />
माँ ने करीब करीब हर दिन हर आने वाले मेहमानों को वह ट्रे दिखाई |<br />
"टुल्लू को लॉटरी में मिली है |"<br />
उस ट्रे को जिस कोण से देखा जाता, वह उतना ही चमकदार दिखता | वैसे तो ख़ुशी मनचाही वास्तु के मिल जाने पर आधी और कुछ ही दिनों में चौथाई रह जाती है, लेकिन मेरी ख़ुशी को हर बार माँ का नए नए लोगों के सामने बखान करने एक नया जीवन मिल जाता था |<br />
<br />
"क्या ?" कल्याणी ने उसे उलट पलट कर देखा ,"पांच पैसे की लॉटरी ?"<br />
"सचमुच ? " कांता बोली ,"वह , टुल्लू की तो किस्मत तेज़ है |"<br />
"कितनी सुन्दर ट्रे है |" गुड्डा की माँ बोली |<br />
मोटी मिसराइन तो कुर्सी से लुढ़कते - लुढ़कते बची ." ऐसी ट्रे ? पांच पैसे में ?"<br />
<br />
अभी तो और कई लोग बाकी थे | डाक्टरनी, उर्मिला , बन्छोरिन - पता नहीं वो क्या कहेंगे ?<br />
मुझे गलत मत समझिये , मगर इन तारीफों ने मुझमें वो हवा भर दी कि मैं हवा में उड़ने लगा | गनीमत थी कि मेरी जेब खाली थी - हलाकि मैं अगले मौ के का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था |<br />
<br />
कुछ ही दिनों बाद फूफा घर पर आये और जाते- जाते मुझे दस पैसे पकड़ा गए | मेरे क़दमों में मानो पंख लग गए | मैं फिर दौलत के खोमचे की ओर भागा | आशंका यह भी थी कि आज दौलत आया है या नहीं | कहीं ऐसा तो नहीं कि आकर घर चले गया हो | स्कूल में दोपहर की पाली की खाने की छुट्टी अढाई से तीन बजे के बीच होती थी | उसके बाद इक्का दुक्का छात्र ही आते थे और दौलत अक्सर खोमचा समेत कर घर चले जाता था |<br />
<br />
दौलत उसी जगह, तालाब के किनारे बैठा उदासीन आँखों से शाला नंबर आठ की ओर टकटकी लगाए देख रहा था | आधी छुट्टी समाप्त हो चुकी थी | दुस्साहसी लड़के उसके खोमचे से खा पीकर जा चुके थे |<br />
मुझे देखकर वह मुस्कुराया |<br />
<br />
"एक लॉटरी देना |" मैंने आपराधिक स्वर से कहा | पता नहीं, क्यों मुझे ग्लानि हो रही थी | मन में आशंकाएँ रह-रह कर घुमड़ रही थी कि कहीं कुछ नहीं निकला तो क्या होगा ?<br />
मैंने कांपते हाथों से चूरन की पुडिया खोली और चूरन फांकने के पहले अन्दर की छोटी पुडिया फाड़कर नम्बर निकाला |<br />
<br />
"तीन" मैंने धडकते दिल से कहा |<br />
दौलत ने तीन नंबर पर टँगी एक प्लास्टिक की तुतरू मुझे पकड़ा दी |<br />
तुतरू ? मेरा दिल बैठ गया |एक क्षण तो तुतरू हाथ में लिए मैं सोचते रहा | हरे रंग की प्लास्टिक की , बित्ते भर की तुतरू ....|<br />
<br />
"बजाकर देखो ...| " दौलत बोला,"नहीं बजी तो बदली कर देंगे ...|"<br />
मैंने हवा अन्दर खिंची, तो भी तुतरू बजी | फिर जब फूंक मारी, तब भी ....| मेरी आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा | तुतरू ... पाँच पैसे की ...|<br />
पर हारे हुए जुआरी का वह नशा, जो उसे जेब की आखिरी कौड़ी भी दांव पर लगा देने के लिए प्रेरित करता है , मुझ पर हावी हो गया | वापिसी के मेरे कदम न केवल थम गए, बल्कि विपरीत दिशा में उन्हीं पद चिन्हों पर चल पड़े | मेरी जेब में पाँच पैसे और भी थे |<br />
इस बार छः नंबर ...| और दौलत ने मुझे टीने के डब्बे जैसी एक चमकदार चीज पकड़ा दी, जिसके बीच में एक अँधा छिद्र था |<br />
"यह क्या है ?"<br />
काश, शायद मैं ये सवाल ना पूछता | और अगर पूछता तो वह ना बताता - टाल जाता |<br />
"सिगरेटदानी |" वह ईमानदारी से बोला ,"सिगरेट पीकर उसकी राख इसमें झाड़ते हैं ...|"<br />
<br />
*********<br />
<br />
जिसका डर था, आखिरकार वही हुआ |<br />
"यह क्या है ?" माँ ने पूछा |<br />
"सिगरेटदानी |" जो दौलत ने कहा , मैंने वही दोहरा दिया |<br />
"क्या ?" माँ कुछ समझी नहीं |<br />
"सिगरेट पीकर राख इसमें झाड़ते हैं | " मैंने अपराधी भाव से कहा और अपना सर सामने कर दिया |<br />
<br />
समझदारी भरी इस बात पर मुझे जन्नाटेदार झापड़ की उम्मीद थी ,पर माँ का मिजाज़ अच्छा था |<br />
"इसे क्यों लाया है ? हमारे घर में सिगरेट कौन पीता है ?"<br />
"लॉटरी में यही निकला माँ |"<br />
अब माँ की त्यौरियां चढ़ गयी |<br />
"तूने फिर लॉटरी खरीदी ?"<br />
मैं चुप | क्या जवाब दूँ ?<br />
"क्यों खरीदी ?"<br />
"मुझे लगा सौंप के ट्रे जैसा कुछ निकलेगा |"<br />
"और निकल गया सिगरेटदानी | क्यों ? पता नहीं | लॉटरी वाले का भी दिमाग ख़राब है | बच्चों की लॉटरी में सिगरेटदानी | अरे,कोई खिलौना होता तो भी बात समझ में आती |"<br />
"तुतरू भी निकला है माँ , दूसरी लॉटरी में |" <br />
<br />
अब माँ का गुस्सा भड़क उठा |<br />
****************<br />
<br />
ऐसे लोग गली कूचों में हाँक लगाते कम ही आते थे | केले वाली , ब्रेड वाले या फेरी वाले तो रोजाना दिख जाते थे , लेकिन ...|<br />
" पार्वती वो ...." वह महिला मेहमान आँगन में जाकर माँ को बोली ," देख तो, वो क्या हाँक लगा रहा है ?"<br />
महिला की गोद में वो अंगूठा चूसती छोटी सी बच्ची थी | आँगन में सिल बट्टे पर गीली उड़द दाल दलती माँ एक पल के लिए रुकी | भला मेहमान की बात कैसे टाल सकती थी | तब तक वे लोग हाँक लगाते हुए थोड़े दूर निकल गए थे | दूसरे ही पल माँ बोली, "टुल्लू, जा तो बेटा | उनको बुला कर ला ...|"<br />
<br />
मैं तुरंत सड़क में भागा | वे लोग अभी भी सड़क में ही थे, पर काफी दूर निकल गए थे | पगड़ी पहने एक आदमी, लम्बे लम्बे बालों वाला एक लड़का और एक औरत ... तीनों एक छोटा ठेला धकेलते हुए चले जा रहे थे ... करीब करीब वे लोग सदानंद के घर के पास पहुँच गए थे | ये तो शुक्र था क़ि वे लोग मैदान पार करके इक्कीस सड़क नहीं गए थे | वर्ना उनकी आवाज़ का पीछा कर पाना काफी मुश्किल काम होता ....|<br />
<br />
हाँक लगाने का काम महिला और उस लड़के ने सम्हाल रखा था | पगड़ी वाला आदमी बस अपनी धोती सम्हाले आशा से इधर उधर देखते चले जा रहा था |<br />
"हफ़ ... हफ़ .... नाक कान छिदाने वाले ...| माँ बुला रही है |"<br />
"कहाँ है तुम्हारी माँ ?"<br />
"वो उधर ...| वो मेहंदी के पेड़ दिख रहे हैं न ....|"<br />
<br />
अब वे 'नाक कान छिदाने ' वाले पलटे |<br />
हे भगवान, वे लोग वापसी में भी हाँक लगाए जा रहे थे |<br />
जैसे - जैसे मैं घर के पास पहुँचते गया,मेरा कौतूहल बढ़ते गया | कौन हैं वे लोग ? माँ उन्हें क्यों बुला रही है ? क्या करेंगे वे लोग ?<br />
<br />
जब मुझे मालूम चला कि वे लोग क्या करने वाले हैं - तो रोंगटे खड़े हो गए | फिर जब अपनी आँखों से प्रत्यक्ष देखा तो कलेजा दहल गया |<br />
"का भाव हे भैया ?" माँ ने पूछा |<br />
"किसका नक् कण छिदाना है माई ? बच्चे का कि बड़े का ?" पगड़ी वाले ने पूछा |<br />
"लईका के |" माँ ने कहा |<br />
"बच्चे का - कान आठ आना , नाक एक रुपया |"<br />
"बने बता भैया | " माँ बगैर मोल भाव के मान ले - कदापि संभव नहीं था | <br />
"कितना कान , कितना नाक छिदवाना है माँ ?" <br />
माँ ने महिला की ओर देखा |<br />
<br />
"नहीं नौनी छोटे हे | खाली (केवल) कान छिदा दो |"<br />
वो बच्ची अपनी माँ से और चिपट गयी |<br />
"ठीक है | दो नाक और छह कान | ले अब वाजिब बता |"<br />
वह पग्गड़धारी जब तक 'वाजिब' भाव सोचते रहा , मेरा दिमाग दूसरे ख्यालों में खो गया - दो नाक और छह कान ?<br />
"ठीक है माई | पांच रूपया बनता है | आप आठ आना कम दे देना |"<br />
"नहीं चार रुपया ...|"<br />
"दो कान फ़ोकट में ?" उस आदमी ने अपने साथ की स्त्री से बात की ,"ठीक है माई | लकड़ी कोयला आप को देना पड़ेगा |"<br />
<br />
लकड़ी कोयला ? क्या वो आग जलाएगा ?<br />
<br />
माँ ने मुझे एक बार फिर दौड़ाया ," जा तो बेटा, बेबी को बुलाकर लाना |"<br />
बेबी लंगड़ी-बिल्लस खेल रही थी | जब मैं बेबी को लेकर घर पहुँचा , धौंकनी में लकड़ी का कोयला गरम हो रहा था | एक हाथ में छोटा सा पुट्ठा लेकर लम्बे बालों वाला लड़का बार - बार धौंकनी में हवा करने लगता और लकड़ी कोयले अंगार और दहक जाते | जो मुझे नहीं दिखाई दिया , वो थी दो पतली सुइयों की तरह सलाखें |<br />
जब वो बाहर निकली तो सुर्ख लाल हो गयीं थी |<br />
<br />
माँ ने बेबी को क्यों बुलाया था ?<br />
तो सबसे पहले बेबी का ही नंबर आया |<br />
उस औरत ने बेबी का सर पकड़ा - हलके से ...| पगड़ी वाले ने एक शीशी से कुछ द्रव्य निकला और बेबी के कान में दोनों तरफ लगा दिया | लम्बे बाल वाले लड़के ने एक चिमटीनुमा जुगाड़ लिकला , जिसके दोनों पल्लों में कार्क लगा था | उसे बेबी के एक कान में फँसा दिया गया | <br />
<br />
अब तक तो सब ठीक था | लोग दम साधे देख रहे थे |<br />
अचानक पगड़ी वाले ने एक पतली सलाख आग से निकाली और एक संड़सी से पकड़कर एक सिरा लोहे के हत्थे में घुसा दिया | फिर तेजी से बेबी के कान में फंसे चिमटे की ओर लाया | बेबी के सर पर उस औरत की पकड़ सख्त हो गयी और अगले ही पल बेबी की चींख हवा में गूंज उठी ....|<br />
<br />
दो और लडकियाँ सहमी हुई सी देख रही थी | एक तो नोनी थी | दूसरी ?<br />
दूसरी संजीवनी ... | मुझे थोडा भी भान नहीं था कि माँ के दो नाक और छः कान के हिसाब किताब में एक नाक और दो कान संजीवनी के थे !<br />
दूसरे कान छेदते तक बेबी रोने लगी ,"नहीं न माँ, नहीं न |"<br />
"बस हो गया बेबी |" पगड़ी वाला आदमी बोला ,"बस , चींटी काटी और कुछ नहीं |"<br />
उसे बेबी का नाम कैसे पता चला भला ?<br />
<br />
बेबी के कान और नाक से खून निकल रहा था और संजीवनी सहमी सी देख रही थी |अगली बारी उसकी ही थी |<br />
उस औरत ने एक हाथ से संजीवनी का सर पकड़ा कस के | दूसरे हाथ से उसके दोनों छोटे छोटे हाथ पकड़े | जरुरी भी था | सब जानते हैं, जब बच्चों को दर्द महसूस होता है तो उनकी ताकत चार गुना बढ़ जाती है और वे कुछ भी कर बैठते हैं | बेबी अभी भी सिसक रही थी | संजीवनी कातर नज़रों से माँ को देख रही थी | जब लम्बे बाल वाले लड़के ने संजीवनी के एक कान में जुगाड़ फंसाया तो आशंका से संजीवनी छटपटाने लगी लेकिन उस औरत ने संजीवनी को कस कर पकड़ा था |<br />
"माँ , माँ ...| संजीवनी ने आवाज़ लगाईं |<br />
माँ निर्निमेष नेत्रों से सिर्फ देख रही थी | और पगड़ी वाले ने दहकती सलाख संजीवनी के कान की लौ में घुसा दिया ....|<br />
"माँ SSS ....|" पता नहीं, कितने जोर से चीखी संजीवनी ....| इतने जोर से क़ि मैं अन्दर तक दहल गया ....| पर माँ ? उसके चेहरे पर कोई भाव ही नहीं थे | मैंने माँ की साडी खिंची |<br />
"माँ , ओ माँ ...|"<br />
माँ ने कोई जवाब नहीं दिया | मैंने और जोर से साडी खिंची ,"माँ , संजीवनी को छोड़ दो ना माँ | "<br />
और संजीवनी क़ी जोरों क़ी ह्रदयविरादक करुण पुकार फिर हवा में गूंजी ,"माँ SSS ....|"<br />
दूसरी महिला, जिसकी संजीवनी से भी छोटी बच्ची माँ क़ी गोद में चिपटी थी , उसने संजीवनी को दिलासा दी ," बस बेटी बस | घबरा मत | हो गया ...|औरत जात को तो ज़िन्दगी में बहुत दर्द सहना पड़ता है ...| "<br />
<br />
माँ उसके जैसे कोई बड़ी दार्शनिक नहीं थी | माँ क़ी साडी हिलाते मैं जो कुछ बोल रहा था, वह शायद संजीवनी के रोने और चीख पुकार में खो गया था | या तो फिर माँ जान बूझकर मेरी विनती पर कोई कान नहीं दे रही थी |<br />
<br />
जब संजीवनी के नाक और कान दोनों में छेद हो गए थे तो माँ ने उसे गोदी में लिया |<br />
नोनी के कान में छेद हो जाने के आड़ माँ को पैसे देना था , जो माँ के आँचल को छोर में बंधा था | आँचल क़ी गाँठ खोलने के लिए माँ ने संजीवनी को उतारना चाहा | तब तक संजीवनी माँ क़ी गोद में ही सो गयी | इतने दर्द और शोर गुल के बीच | नाक और कान से बहता खून जम गया था |<br />
"छेद में कोई काँटा दाल देना माई ...| नहीं तो मुंद जाएगा ...| " पैसे लेते - लेते पगड़ी वाला हिदायत दे रहा था |<br />
<br />
तो इसमें तो अब शक की कोई गुंजाइश नहीं बची थी कि राखी की पहली परीक्षा में मैं फेल हो गया था |<br />
मुझे क्या मालूम था कि अभी इससे भी कडा इम्तिहान समय के गर्भ में छुपा हुआ है |<br />
<br />
***********<br />
<br />
'ओ यार धीरे धीरे " "ओ यार होले होले ".....<br />
हरेक घर के गेट के बाहर, गेट से सड़क तक, पानी की नाली के ऊपर, पत्थर की एक पटरी रखी होती थी | उसी पटरी पर मदारी एक छोटी सी छड़ी पीट रहा था और उसके सामने पटरी पर ही एक छोटा स बन्दर नाच रहा था ,"ओ यार धीरे धीरे ... ओ यार होले होले ....|" <br />
बन्दर ने चमकीले हरे रंग की एक जैकेट्नुमा खुली कमीज़ पहन रखी थी और एक लाल रंग की चमकीली लंगोट | छड़ी की ताल पर वह उछल उछल कर थिरक रहा था ....| हम सारे के सारे लोग मदारी को घेरे बन्दर का नाच देख रहे थे | पिछले दस मिनट में कई बार हम वही नाच देख रहे थे , पर अब भी मन नहीं भरा था | मदारी एक घर से दूसरे घर, जिसकी पटरी सपाट और सलामत हो और जहाँ उसे भिक्षा मिलने की उम्मीद हो - जा रहा था <br />
और हम मंत्र मुग्ध से उसके पीछे जा रहे थे |<br />
अब उसने पिंजरे से एक बंदरिया भी निकाली जिसने लाल रंग का लहंगा पहन रखा था | उसके भी नाक में रस्सी बंधी थी | अब उसने दोनों को थोड़ी देर तक नचाया , फिर बंदरिया रूठ कर एक कोने में बैठ गयी |<br />
<br />
"यह तो बता तोर घरवाली मनटोरा रिसा (गुस्सा) जाही तो कईसे मनाबे ..." हम लोग ध्यान से देख रहे थे | बन्दर एक लकड़ी पर छोटी सी पोटली बाँध कर बंदरिया के पास गया, पर बंदरिया फिर भी मुंह फेरे बैठे रही | अब बन्दर रोने का नाटक करने लगा | बंदरिया पास आ गयी | और फिर दोनों छड़ी की ले पर नाचने लगे |<br />
<br />
फिर उसने बन्दर से कहा ," ये तो बता हनुमान जी समुन्दर ला लाँघ के लंका कईसे कुदिस ?" उसने लकड़ी ऊपर उठाई और बन्दर ने छलांग मारकर लकड़ी पार की |<br />
ये तमाशा तो मैं कई बार देख चूका था, पर अब पता नहीं क्यों, मुझे लगा कि बन्दर उदास से हैं | माँ एक कटोरे में चावल लेकर आई और उसने मदारी क़ी फैली हुई झोली पर चावल डाल दिया | बन्दर ने हाथ माथे रखकर सलामी दी और मदारी सैकड़ों दुआएं देते चले गया | माँ वहीँ खड़ी उन्हें जाते देखती रही | मेरे सारे दोस्त भी मदारी के पीछे पीछे चल दिए | मैं वहीँ माँ के पास खड़े रहा |<br />
<br />
"माँ , माँ | बन्दर क्या इतने छोटे होते हैं ? रामायण में तो कितने बड़े बड़े बन्दर थे |"<br />
"कुछ बन्दर छोटे होते हैं बेटा | कुछ बड़े ... | बड़े बन्दर को मदारी थोड़ी पकड़ सकता है ....|"<br />
"और उन्हें नचा भी नहीं सकता ....|" फिर मैंने हिम्मत करके पूछा ," माँ, वो इतने उदास क्यों रहते हैं ?"<br />
"कौन उदास रहते हैं ?"<br />
"बन्दर ...."<br />
"पता नहीं बेटा ..| माँ सोच में पड़ गयी |<br />
उसके बाद यह सवाल मैंने किसी से नहीं पूछा | किसी से भी नहीं | एक बीज की तरह , जो ज़मीन पर कहीं दब जाता है - एक तरह से वह सवाल मैं भूल ही गया था | मगर थोड़ी फुहार पाकर जैसे बीज अंकुरित होकर समय के साथ बढ़कर आँखों के सामने झूमने लगता है - वैसे ही सर्व शक्तिमान समय राज ने वक्त आने पर मुझे इस सवाल का जवाब दे दिया - गिरेबान पकड़कर !<br />
<br />
*********************<br />
<br />
सारी दुनिया एक तरफ , मामी और भांजी दूसरी तरफ .... | <br />
<br />
मामी और भांजी - यानी माँ और रमा में बहुत पटती थी | रमा जब भी घर आती तो दुखड़ों का पिटारा खोलकर बैठ जाती ,"क्या बताऊँ मामी ? उन्हें तो घर क कोई चिंता ही नहीं है | बस , खाली मैच इधर तो मैच उधर - उनके लिए दुनिया नहीं, फुटबाल ही गोल है | बस, चार खिलाडी दोस्त मिल जाएँ - फिर न घर की चिंता और न दुनियादारी से कुछ लेना |"<br />
"ठीक है | " माँ कहती, " मैं तुम्हारे मामा से कहूँगी, वो उनको थोडा समझाए |"<br />
"समझते तो कितना अच्छा होता | अब घर में कुर्सी हो तो आप लोगों को बैठने के लिए बुलाऊं ...|"<br />
माँ ठहाका लगाकर हँसी ,"कुर्सी तो आ ही जाएगी , खैर ...|"<br />
<br />
... और सचमुच कुछ दिनों में टीने की कई फोल्डिंग कुर्सियाँ रमा के घर की शोभा बढाने लगी ...|<br />
<br />
"... क्या बताऊँ मामी ? हमेशा सोचती हूँ , कभी आप लोग को भी खाने पर बुलाऊं | पर उतने बरनी , बर्तन, थाली , कोपरा हैं कहाँ ?"<br />
"अरे , अभी तो शुरुवात है ...| बर्तन का क्या है ? आते रहेंगे ...|"<br />
<br />
**************<br />
<br />
फिर एक दिन आ ही गया , मेरी अग्नि परीक्षा का दिन ....|<br />
तो हुआ यह कि .... नहीं , नहीं, कुछ भी असामान्य नहीं वही सामान्य सा दिन था | या हो सकता है , कोई त्यौहार रहा हो - जैसे तीजा | जो भी हो - माँ ने रमा को खाने पर बुलाया था | खाने के बाद पाँव पसारकर गप शप मरना, निंदा या शिकायत करना - सब कुछ सामान्य ही था | खाने के बाद सौंफ पेश करना - ये तो नितांत भारतीय परंपरा है |<br />
माँ ने सौंफ क़ी प्लेट रमा के आगे की |<br />
"क्या बताऊँ मामी, बड़ी शर्म आती है |" रमा बोली , " मेरा भी मन करता है , अपनी मामी को खाना खाने पर बुलाऊं | पर बर्तन तो दूर, एक सौंफ क़ी ट्रे भी नहीं है | घर में कोई मिलने आये तो सौंफ भी नहीं दे सकते |"<br />
<br />
अचानक माँ को कुछ याद आया | बात पुरानी होकर भी नयी ही थी |<br />
<br />
माँ उठकर पंखा खड़ में आई | जब वह लौटी तो उसके हाथ में चमचमाती हुई सौंफ की ट्रे थी | वही चमकीली सौंफ की ट्रे , जिसमें हरे बेल बूते बने थे | हाँ, वही तो थी, जो ...<br />
<br />
"टुल्लू ने लॉटरी में जीती है |" माँ ने गर्व से कहा |<br />
"अरे वाह मामी, कितनी सुन्दर ट्रे है | " रमा ने हाथ में लेकर उलट- पलट कर देखा ,"कितनी अच्छी डिजाइन बनी है | थोड़ी भारी भी है | स्टील की है मामी ?"<br />
"पता नहीं |" माँ बोली , " अच्छी है ? पसंद आई ?"<br />
"बहुत सुन्दर है मामी | बहुत महँगी होगी |" मैं पास में ही खड़ा नज़रें चुरा रहा था ," कितने की है भाई ?"<br />
"पता नहीं |" मैंने कहा, " मेरी पाँच पैसे की लॉटरी लगी थी |"<br />
"पाँच पैसे ?" रमा आश्चर्य चकित रह गयी |<br />
"हाँ, पाँच पैसे की लॉटरी |"<br />
"अरे वाह मामी, मेरा भाई कितना किस्मत वाला है | भारी भी है , मजबूत भी | और कितनी सुन्दर है | दस रूपये से कम में नहीं मिलेगी ऐसी ट्रे |"<br />
"तुझे पसंद है ?" माँ सामान्य भाव से बोली ,"तो तू रख ले | "<br />
"अरे नहीं मामी |" रमा झिझकी ,"इतनी महँगी ट्रे ....|"<br />
"तो क्या हुआ ? रख ले | " माँ बोली , "हमारे घर में वैसे ही एक ट्रे है | ये तो पता नहीं, किस कोने में पड़े रहती है | चलो , कम से कम तुम्हारे काम आयेगी |"<br />
रमा अभी भी असमंजस में पड़ी थी ,"नहीं मामी | टुल्लू की ट्रे है |"<br />
"तो क्या हुआ ?" माँ बड़े विश्वास और गर्व से बोली , "टुल्लू इतनी छोटी सी चीज नहीं देगा अपनी बहन को ?"<br />
<br />
हे भगवान्, कितनी बड़ी मुसीबत में डाल दिया तूने ? इसका मतलब, ये ट्रे, ये खुबसूरत ट्रे, अब मेरी नहीं रहेगी ? न तो दान, न बलिदान - मुझे किसी शब्द का वास्तविक अर्थ नहीं मालूम था ....|<br />
इसका मतलब यही हुआ कि माँ अब किसी से इस ट्रे क़ी तारीफ नहीं कर पाएगी ....|<br />
"क्यों टुल्लू ?" माँ पूछ रही थी |<br />
"टुल्लू ...|" माँ ने फिर पूछा |<br />
"टुल्लू भाई ...|" रमा बोली ...."क्या सोच रहे हो ?"<br />
... पता नहीं मैं क्या सोच रहा था ? मगर मेरा दिल इतने जोर से धड़का कि मैं वहाँ से भाग खडा हुआ ......|<br />
<br />
************<br />
<br />
तीन चार घंटे बाहर यूँ ही चहल कदमी, भाग दौड़ , सुनील के घर में पिछवाड़े के डबरे में यूँ ही पत्थर फेंकने के बाद शाम को मैं दबे पाँव घर लौटा | अब इससे ज्यादा बहर रह भी नहीं सकता था |घर में ना तो माँ दिखी , न रमा | वैसे भी जब रमा आती थी तो माँ उसे रामलीला मैदान के पार, मंदिर तक छोड़ कर आती थी |<br />
<br />
पंखाखड़ में तख़्त के नीचे, पेटी के ऊपर - जहाँ वह सौंफ की ट्रे कई दिनों से रखी थी - ताकि माँ को उसे प्रदर्शन के समय निकालने में आसानी रहे - मैंने झाँक कर देखा | सौंफ की ट्रे वैसे ही रखी हुई थी | गर नहीं होती तो मुझे शायद दुःख होता | पर उसे उस जगह में रखे देख कर ख़ुशी नहीं हुई , बल्कि एक टीस सी उठी |<br />
<br />
राखी की इस परीक्षा में भी मैं फेल हो गया | <br />
<br />
********<br />
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Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-68934502421056028792011-11-06T20:19:00.000-08:002011-11-06T20:25:31.705-08:00बोला पकड़ बोला पकड़ बोला टंगस्टन की तार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div>बैठक का वातावरण काफी गंभीर था | तीनों खामोश बैठ थे | माहौल इतना बोझिल था कि उन्हें ये भी ख्याल नहीं था कि मैं , जिसे चाय देने क़ी जिम्मेदारी सौंपी गयी थी, ट्रे पकड़ कर वहीँ खड़ा हुआ हूँ | आखिर बाबूजी के दोस्त, लक्ष्मी नारायण शर्मा ने वह प्रश्न उछाल ही दिया जिसके समाधान के लिए शायद बाबूजी ने उन्हें बुलाया था |<br />
"रिजल्ट मिकल गया |" उन्होंने मोटे चश्मे से बाबूजी और कौशल भैया को देखा ," फर्स्ट डिविजन भी है | नंबर अच्छे हैं | आगे क्या करना चाहते हो ?"</div><div>सवाल काफी आसान था | अगर यह सवाल किसी और से पूछा जाता तो शायद कुछ 'हाँ हूँ ' भी होती, पर कौशल भैया के लिए जवाब तो सहज ही नहीं, प्राकृतिक भी था | </div><div>लेकिन नहीं, यह प्रश्न जितना आसान दिखता था, दरअसल उतना ही जटिल था | इतना उलझा हुआ था कि बाबूजी कई बार नींद से अचानक जाग जाते और फिर दोबारा सो नहीं पाते | सवाल इतना भारी भरकम था कि बाबूजी को लगा कि उसका बोझ उठाने में उन्हें किसी की सहायता चाहिए | और इसके लिए लक्ष्मी नारायण शर्मा से बेहतर कोई हो ही नहीं सकता था |</div><div><br />
************</div><div></div><div>इसे महज संयोग ही कहा जाये कि राजेश खन्ना और तमाल सेन के भाव एक साथ ही एकदम से बढ़ गए | वैसे राजेश खन्ना का भाव बढाने में तमाल का क्या योगदान था, पता नहीं, किन्तु तमाल के भाव को राजेश खन्ना ने जरुर प्रभावित किया था | वैसे जानकार मानते हैं कि तमाल देव आनंद से कहीं ज्यादा प्रभावित था, फिर भी राजेश खन्ना ने अच्छे अच्छों क़ी चूलें हिला दी थी तो तमाल के भाव पर उसका असर निश्चित रूप से देखा जा सकता था |</div><div>पर तमाल में आये इस परिवर्तन से सभी चकित थे | <br />
तमाल और उसका छोटा भाई बिच्छू दोनों ही फुटबॉल के बेहतरीन खिलाडी थे | कोई आश्चर्य क़ी बात नहीं थी | बंगालियों का फुटबॉल प्रेम जग जाहिर है | उनके पिताजी , कभी कभी खुद लुंगी कमर पर चढ़ाकर बच्चों के साथ फुटबॉल खेलने उतर जाते थे | तो दोनों भाइयों को फुटबॉल प्रेम विरासत में मिला था | बिच्छू इतना अच्छा फुटबॉल खेलता था कि वह सातवीं कक्षा में ही था जब उसे वरीय फुटबॉल टीम में शामिल कर लिया गया था | सोचिये ज़रा ... वरीय टीम में कोई भी दसवीं से पहले अगर आ जाता तो उसे बेहतरीन खिलाडी माना जाता था | बिच्छू नंगे पाँव खेलता था और अच्छे अच्छों को नचा देता था | उस ज़माने में नंगे पाँव खेलना गुनाह नहीं माना जाता था | एक मैच के दौरान एक खिलाडी ने बिच्छू का पाँव अपने स्पाइक वाले जूते से कुचल डाला | तब लहुलुहान बिच्छू को तमाल अपनी बाँहों में उठाकर लाया था | तमाल खुद फुटबॉल का दिग्गज खिलाड़ी था | अपने स्कूल की टीम का वह एक स्तम्भ मन जाता था , जिसे दूसरे स्कूल वाले भी अच्छे से जानते थे |</div><div>अब आप क्या पूछेंगे , मुझे पता है | यही न, राजेश खन्ना का फुटबॉल से कितना नाता था ? ईमान से , मुझे पता नहीं | फिर ? भला परदे का कलाकार एक प्रतिभाशाली खिलाडी को कैसे प्रभावित कर सकता है ? </div><div>मुझे बात पूरी करने का मौका दीजिये | तमाल के साथ सबसे बड़ी समस्या ये थी कि वह बहुमुखी प्रतिभा का धनी था | ना केवल खेल के मैदान में, बल्कि पढ़ाई में भी वह अव्वल था | न केवल पढ़ाई में, बल्कि चित्रकारी में वह औरों से चार कदम आगे था | और सुनाऊं ? आगे के वर्षों में वह एक ऑर्केस्ट्रा में किशोर कुमार के गाने गाया करता था ,"मैं हूँ झुम झुम झुम झुमरू ....|"</div><div><br />
**************</div><div><br />
चाकलेट की पन्नी के अन्दर एक रंग बिरंगी आकृति निकलती थी | करना सिर्फ इतना था कि उसे पानी से गीला करो और किसी कमीज़ के जेब के ऊपर रख कर इस्तरी चला दो | बस, वह आकृति जेब पर छप जाती थी और तब तक छपी रहती थी, जब तक कमीज़ चार पांच बार पछाड़ कर न धोई जाए | वो आकृतियाँ कुछ भी हो सकती थी | आपकी किस्मत में होता था कि चाकलेट की पन्नी के पीछे क्या छिपा है | वह '007 ' भी हो सकती थी, जिसमें '7 ' को भेदती एक बंदूक दिखती और जेम्स बोंड (मुझे कई सालों बाद पता चला ) सिगरेट फूंकते नज़र आता | या तो फिर ढोल बजाता चूहा या लाल रंग की लम्बी इम्पाला कार | बबलू भैया को ऐसी तस्वीरों से बेहद लगाव था | </div><div>उस जमाने में सब लड़कों की शाला की कमीज़ नीली नीली ही होती थी | बड़े लोग सब अपने कपडे खुद इस्तरी करते थे | माँ ने धूप में सुखाये कपड़ों का गट्ठर ज़मीन पर पटक दिया और लोहे की इस्तरी में लकड़ी के कोयले ड़ाल दिए | फिर रसोई घर से एक जलाता अंगारा इस्तरी में ड़ाल क़र अपने कर्तव्य से इतिश्री क़र ली | </div><div>जब तक इस्तरी गरम होती , आनन् फानन में बबलू भैया ने अपने संकलन से एक आकृति चुन ली | एक कप में पानी भरकर उसमें उसे डुबाया और झटपट तैयार हो गए | जैसे ही इस्तरी गरम हुई , फ़टाफ़ट एक नीली कमीज़ गट्ठर से निकाली , पानी छिड़का ,वह आकृति कमीज़ की जेब के ऊपर लगाईं और इस्तरी से उसे दबा दिया | "झूँ ..." की आवाज़ और उड़ती भाप के बीच थोड़ी ही देर में उन्हें शक हुआ क़ि कमीज़ का आकार कुछ बड़ा है ......|</div><div>कौशल भैया शांत रहे | सागर क़ी तरह शांत स्वर में माँ से बोले, " देख रहे हो माँ , तुम्हारे लाडले ने क्या किया है ?"</div><div>"क्या किया है ? फुल और तितली छाप दी ? अच्छा तो है |" माँ को भी हंसी सूझी ,"आज तू छप्पे वाली कमीज़ पहन क़र भिलाई विद्यालय चले जा |"</div><div>कौशल भैया उस मज़ाक से जरा भी प्रभावित नहीं हुए ," हाँ हाँ, वहां बाबाजी बैठे हैं ना , मेरी आरती उतारने ...|"</div><div></div><div>*****************</div><div><br />
भिलाई विद्यालय में किसी ज़माने में दादा जी का राज था | दादा जी के बाद पता नहीं , कौन आया और कौन गया , जिन दिनों की मैं बात कर रहा हूँ उन दिनों बागडोर बाबाजी के हाथ में थी | मैं उतना खुश किस्मत तो नहीं था कि मैं बाबाजी का ज़माना देख पापा | मैंने केवल उस पीढ़ी क़ी एक ही शिक्षिका को देखा था , जो जब तब भिलाई विद्यालय में प्रकट हो जाती थी - नानी मैडम ...| नानी मैडम के बारे में फिर कभी .... जरुर .... |</div><div>तो उन दिनों भिलाई विद्यालय में बाबाजी क़ी तूती बोलती थी | </div><div>कल्याण कोंलेज बाबूजी के टेलीफोन क़ी घंटी घनघनाई ,"ठाकुर साहब नमस्कार |"<br />
बाबू जी ने तुरंत आवाज़ पहचानी ,"अरे सर | कैसे हैं आप ?"<br />
दूसरी तरफ से बाबाजी क़ी आवाज़ गूंजी ," इस समय आपके सुपुत्र कौशलेन्द्र सिंह मेरे सामने खड़े हैं | घबराने की कोई बात नहीं है | मैं केवल ये बताना चाहता था कि उनके पाँवों में चप्पल शोभायमान है |"<br />
बाबूजी सकते में आ गए | उन्हें कुछ नहीं सूझा कि क्या कहें , क्या न कहें |<br />
फोन रखने के बाद बाबा जी ने कुटिल निगाहों से कौशल भैया को घूर कर देखा |</div><div>प्रार्थना होने के बाद, छात्र कतार में अपनी अपनी कक्षाओं में जाते थे | विद्यालय का कप्तान, पी टी के शिक्षक और एन सी सी के इन चार्ज, तीनों एक एक छात्र पर नज़र दौडाते थे | उनकी निगाहें हरेक छात्र का सर से लेकर पाँव तक, बल्कि यूँ कहा जाए तो केवल सर और पाँव का ही निरीक्षण करती थी | क्या उसके बाल बड़े हैं , या उसके पाँव में चप्पल है |नानी मैडम को छात्रों के बालों से विशेष प्रेम था | बड़े बाल उन्हें बरबस आकर्षित करते थे | उन्हें पकड़ कर वे प्यार से खींचती ,"अबे ...." और फिर दे धनाधन ...|</div><div>कई बार हमारे ज़माने में तो वे कैंची लेकर भी आई और बालों को आड़े तिरछे ढंग से काट डाला | उसके बाद छात्रों के पास सर मुडवाने के सिवाय और कोई चारा नहीं बचता था | वैसे कई छात्रों ने उन्हें कहते सुना था कि उनका बस चले तो वे विद्यालय को गुरुकुल कांगड़ी बना देना चाहेंगी , जहाँ विद्यार्थी सर घुटा कर आयें |</div><div>विडम्बना ये , कि उनके खुद के बाल फैशनेबल अंदाज़ में बॉब कट कटे होते थे |</div><div>.... तो कौशल भैया का ये अपराध था कि उनके पाँवों में चप्पल थी | </div><div>कुछ न चाहते हुए भी कुछ हो ही जाता है | भौतिक की प्रयोगशाला में वाष्प की गुप्त ऊष्मा निकालते - निकालते कौशल भैया एक तापमापी तोड़ ही चुके थे | उन्हें थर्मामीटर तोड़कर बाहर निकले हुए पारे वाली तापमापी एक लकड़ी के खोल में सप्रेम भेंट की गयी और उनके नाम के आगे बीस रूपये का दंड दर्ज कर दिया गया | तिस पर तुर्रा ये चप्पल पहन कर जाने का जुरमाना ... | इतना ही होता तो गनीमत थी | किन्तु बाबाजी तो पूरी फजीहत पर उतर आये थे |<br />
लड़कों से निपटने का बाबाजी का तरीका अनूठा था | उनका नाम लड़कों ने "बाबाजी" यूँ ही नहीं रखा था | उनका असली नाम कम ही लोग जानते थे | मेरे जैसे लोग, जो काफी छोटे थे और भिलाई विद्यालय में उनके सेवा निवृत्त होने के छः बरस बाद गए थे , उनके लिए तो ये निहायत मुश्किल ही है, कि उनका नाम याददाश्त के किसी कोने से खोज के निकाला जाए | उन्हें आदर्श शिक्षक का राष्ट्रपति पुरस्कार मिल चूका था | घुटने और एडी के बीच उनका पजामा कहीं ख़तम होता था और एक हाथ में होती थी छड़ी, जिसे घुमाते ही वे बड़े से बड़े शेर को बिल्ली बना देते थे, वो भी कडकडाती ठण्ड में घड़े के पानी से भीगी हुई बिल्ली |</div><div>.....बारिश हो रही थी | सप्पन और उसके दो तीन चेले-चपाटे पीरियड गोल करके यूँ ही मटर गश्ती करते हुए दूर निकल गए | अब आप सोच सकते हैं, बारिश के दिन जब बाहर निकलने के बारे में सोचते ही छींक आने लगती है, तब उद्दंड लड़के पीरियड गोल करके छतरी लेकर खुली हवा क़ी पुकार सुनकर, बारिश में गाना गाने सड़कों पर निकले थे | नाले तक जाकर वापिस आ रहे थे | सेक्टर ५ का चौक, यानी भिलाई विद्यालय के पास का वो चौक जहाँ सेक्टर २ , सेक्टर ४, सेक्टर ५ और सेक्टर ६ क़ी सीमाएं मिलती थी , वहां से बाबाजी टेम्पो से उतरते दिखे | लड़के सन्न .... बाबाजी को इस समय भिलाई विद्यालय के दफ्तर में होना चाहिए था, यहाँ कहाँ से टपक पड़े ? सप्पन का दिमाग फिर भी काम कर रहा था | उसने झटके से छाता खुला छाता आगे झुका लिया ...( ऊपर की वर्षा की अपेक्षा सामने की बारिश खतरनाक थी) और फट से लड़के उसकी आड़ में हो गए |<br />
बाबाजी ने कुछ नहीं देखा , किसी को भी नहीं | वे तो अपनी ही धुन में भिलाई विद्यालय के दफ्तर क़ी ओर बढ़ गए |</div><div>लड़कों क़ी जान में जान आई | अनिष्ट-देव क़ी कोप निगाहों से बाल- बाल बचे !</div><div>अगले दिन, प्रार्थना के बाद , बाबाजी ने एक संशिप्त सा व्याखान दिया जो हर प्राचार्य का प्रतिदिन का कार्य था | उसके पश्चात उन्होंने घोषणा क़ी ," कक्षा दसवीं के तीन छात्र , जिनके मैं नाम पुकारूँगा, कृपया यहीं रुक जाएँ | उनके नाम हैं ....... "</div><div>.... एक -एक छात्र का नाम वे जानते थे | कौन कहाँ से आता है, उन्हें सब पता था | लड़के सिनेमा हाल में जाते तो सीट में बैठने के बाद भी चोरी चोरी एक नज़र आगे- पीछे क़ी पंक्तियों पर ड़ाल लेते - कहीं छड़ी वाला ज़ालिम तो नहीं बैठा है |</div><div>लेकिन उनका दिल एक बच्चे क़ी तरह साफ़ था | गरीब छात्रों क़ी वे हर संभव मदद करते थे | एक ओर वे होनहार छात्रों क़ी पीठ थपथपाते तो दूसरी ओर शिक्षकों से कह कर कमज़ोर विद्यार्थियों के लिए अतिरिक्त कक्षाएं लगवाया करते थे | इसके बावजूद फेल होने वाले विद्यार्थियों क़ी असफलता को अपनी असफलता मानते थे और शिक्षकों से अगले वर्ष उनके बारे में निरंतर पूछा करते थे | </div><div>और शिक्षक ? उनकी मनोभावनाओं का वे पूरा ख्याल रखते थे ...| एक बार शिक्षकों की लिस्ट से गलती से नानी मैडम का नाम ही गायब हो गया | नानी मैडम सीधे धडधडाते हुए प्राचार्य के कमरे में घुसी | पर जब उन्होंने बात शुरू की तो भावनाओं का तूफ़ान उमड़ पड़ा - जी हाँ आँखों के रास्ते ...| वो गुस्से और शिकायत की मिली जुली रुंधी आवाज़ थी ," सर , मैंने भिलाई विद्यालय की दस साल से सेवा की है - एक करियर टीचर के रूप में मेरी भी कोई भूमिका है सर ....| पर मुझे क्या मिला ?"<br />
बाबाजी हक्के बक्के ... | कुछ समझ में नहीं आया कि ये गंगा जमुना का उद्गम कहाँ से है ? तुरंत चपरासी को बुलाकर ठंडा पानी लाने को कहा और शांति से पूछा ," मैडम, मुझसे क्या गलती हो गयी ?"<br />
"नहीं, सर, आपसे कोई गलती नहीं हुई | मैं ही बेबस हूँ, जो भिलाई विद्यालय कि इतनी सेवा करने के बाद भी आज मेरी पहचान एक शिक्षक के रूप में भी नहीं है |"<br />
"अरे नहीं नहीं, आप तो भिलाई विद्यालय के स्तम्भ हैं ...|बल्कि प्रकाश स्तम्भ हैं ...|"<br />
"कहाँ सर, शिक्षकों की लिस्ट से मेरा नाम गायब है !"<br />
"आप भी कमाल करती हैं मैडम | आपको भला कोई भूल सकता है ? चपरासी, जरा नोटिस बोर्ड से लिस्ट निकाल कर लाना ...| लीजिये मैडम , तब तक पानी पीजिये | "<br />
बाबाजी ने लिस्ट ध्यान से देखी ,"ओह मैडम, ये अनहोनी हो गयी ....| कोई बात नहीं, अभी ठीक कर देते हैं ...|" और उन्होंने लिस्ट के सबसे ऊपर से अपना नाम काटकर नानी मैडम का नाम लिख दिया ," आनंद मैडम ..., लीजिये आपका नाम सबसे ऊपर .... | अब तो सब ठीक है न ?"</div><div>यह कोई ताज्जुब की बात नहीं कि जब उनके रिटायर होने के छह वर्ष पश्चात मैंने भिलाई विद्यालय में कदम रखा तो उनकी किंवदंतियाँ उसी तरह जीवंत थी, मानों कल की ही बात हो |</div><div>तो यह ज़ाहिर था कि उनके प्रिय विद्यार्थियों की सूची में कौशलेन्द्र हो या ना हो, सप्पन जरुर था ....|</div><div></div><div>***************</div><div></div><div>खिड़की के शीशे टूटना कोई नयी बात नहीं थी | उन दिनों भी लड़के क्रिकेट खेलते थे और आँख बंद करके बैट घुमाते थे | कई बार तेज हवा के झोंकों से खिड़की झटके से बंद होती और काँच में दरार पड़ जाती | कुछ नहीं, पूछताछ दफ्तर में जाकर एक रपट लिखानी पड़ती थी और टूटे हुए शीशे के चौखट में पुट्ठा या पतला प्ल़ाइ वुड काटकर फिट कर दो , ताकि ठंडी हवा या कीड़े अन्दर ना आयें | दो तीन सप्ताह तक इंतज़ार करने के बाद कोई आदमी साइकिल पर आता था ,"आपने खिड़की के काँच टूटने की रपट लिखाई थी ?"</div><div>खिड़की के शीशे लगाने वाला खिड़की के आयताकार फ्रेम से बड़ा शीशा लाया करता था | पहले फ्रेम को नापता और कांच पर एक पेन्सिल से निशान लगाता | फिर काँच काट कर बची हुई पट्टी सम्हाल कर बाहर फेंक देता था |</div><div>"मत फेंको इसको |" कौशल भैया ने बची हुई पट्टी माँग ली |<br />
"किसी के हाथ पाँव में गड जाएगा | क्या करोगे इसका ? "</div><div>क्या किया कौशल भैया ने ?</div><div>भौतिक की किताबों में ढेर सारे प्रयोग, उपकरणों , यंत्रों का वर्णन होता था | अब या तो उन्हें पढ़ लो, घोंट लो , परीक्षा पास कर लो और खुश रहो या फिर कुछ और सोचो | कौशल भैया का रुझान हमेशा उन उपकरणों को समीप से देखने का, उन्हें अपने हाथ से बनाने का रहा था | रेडियो ठीक से नहीं बज रहा, वे पेंच क़स से उसे खोल डालते | घडी का अलार्म कैसे बजता है ? उन्होंने घडी खोलकर देख डाली | इसे समय वे ध्यान से एक एक पुर्जा खोलते और उसे अलग अलग रखते , ताकि बाद में वापस जोड़ने में परेशानी ना हो | साइकिल ठीक करना तो उनके बाँये हाथ का खेल था | चक्का खोलना, छर्रे में ग्रीस लगाकर वापिस जोड़ना , चैन ठीक करना ; और ब्रेक और पैडिल से तो मानो उन्हें कभी संतुष्टि ही नहीं होती | </div><div>उस उम्र के लड़कों में वे अकेले नहीं थे | अधिकतर किशोरों के दिमाग में ये फितूर समाया होता था | जो चीज सबसे सुलभ थी वो थी , साइकिल , पंखा , घडी और रेडियो | रेडियो , फिर भी थोडा अजूबा ही था , आखिर हवा से आवाज़ एक बक्से में कैसे आ जाती है | न तो भौतिक की किताबों में उसके बारे में कुछ विस्तार से लिखा होता था | किन्तु घडी और साइकिल तो मानो किशोरों के लिए खिलौने होते थे | व्यास ने बी टी आई की कार्यशाला से लोहे की चद्दरों से दो तीन ट्रे बनाकर दिए थे | उनमें पाने , पेंचकस, फ़ाइल, जम्बो , नट बोल्ट भरे होते थे - घर में | ठोंक पीटकर कौशल ने लकड़ी की एक पेटी बना ली थी | कभी खोलकर तो देखो - अन्दर पूरा कारूँ का खजाना था | हथौड़े, पेंट, कील , बिजली के तार , जम्बो , प्लायर ,छेनी ,सुतली और सूजा , बंधना तिकोनी महीन फाइल , जिसके हत्थे में एक लट्टू लगा था और ना जाने क्या- क्या थे | फिर भी ये कम ही पड़ता था | कई बार बड़ा हथौड़ा माँग कर लाने मुझे मुन्ना के घर दौड़ाया जाता था, जहाँ उसके राजा चाचा के पास लगभग उतना बड़ा, वैसा ही खजाना था - तो कभी छोटा के घर नुकीला प्लायर मांगने, जहाँ छोटे का बड़ा भाई विजय भी कभी कभार कुछ ठोंका पीटी करता था |<br />
कौशल भैया ने कांच की तीन पतली-पतली पट्टियाँ लीं | उन्हें आपस में जोड़कर एक तिकोनी चोंगेनुमा आकृति बनाई और उन्हें धागे से क़स कर बाँध दिया | फिर उसके चारों तरफ भूरा मोटा कागज़ चिपका दिया | तिकोनी आकृति के अन्दर रंग बिरंगी काँच की चूड़ियाँ डाल दी | फिर एक ओर काला कागज़ और दूसरी ओर एक पारदर्शी प्लास्टिक का कागज़ चिपका दिया |</div><div>जब वे उसे घुमा घुमाकर देख रहे थे तो हमसे रहा नहीं गया |<br />
पता नहीं अन्दर क्या था ? सब दम साधे देख रहे थे | <br />
"ठीक है | बन गया .... |" उन्होंने संतुष्टि से कहा और उसे शशि के हवाले कर दिया |<br />
एक -एक करके सभी उसे घुमा-घुमाकर देख रहे थे | सबको मौका दिया गया |<br />
अन्दर क्या था ?<br />
क्या शानदार डिजाइन थी | रंग बिरंगी आकृति ..... अभी मैं एक डिजाइन में खोया हुआ ही रहा था कि कौशल भैया ने चोंगे को घुमाया और लो , अन्दर की आकृति बदल कर एक और खुबसूरत डिजाइन में बदल गयी | जितना घुमाओ , उतनी नयी डिजाइन ....| मैं घुमाते ही जा रहा था ...|</div><div>बरसों बाद भौतिकी क़ी कक्षा में मैंने पढ़ा - वो क्लाइडिस्कोप था - प्रकाश के परावर्तन पर आधारित ... |</div><div>"अब संजीवनी को भी देखने दे ...|"दूर कहीं से आवाज़ आई ...| लेकिन उसे अनसुना कर मैंने क्लाइडिस्कोप एक बार फिर घुमाया ....| </div><div></div><div>**************</div><div><br />
.... क्लाइडिस्कोप के अन्दर का दृश्य बदल गया ...|</div><div></div><div>"अभिनन्दन है अभिनन्दन है |<br />
अभिनन्दन है मुस्टंडों का,<br />
लाठी , गोली और डंडों का ,<br />
बिन पढ़े पास हो जाओगे , <br />
ये कहने वाले पंडों का,<br />
अभिनन्दन है |<br />
अभिनन्दन है हडतालों का ...|<br />
भारत माता के लालों का... |<br />
चाहे जब लटके दरवाजों पर <br />
बिन चाबी के उन तालों का ...|<br />
अभिनन्दन है अभिनन्दन है |"</div><div>बच्चों के लोकप्रिय मासिक "पराग" में कविता की ये कुछ पंक्तियाँ थी | मासिक बच्चों का था - बड़ों का नहीं | फिर भी किशोर और युवा पीढ़ी पर ये अक्षरशः खरी उतरती थी | <br />
भिलाई विद्यालय के बीचों बीच जो उद्यान था, वहां ग्यारहवीं के लड़के एक ओर बैठे थे | बाबाजी छड़ी लेकर उषर से निकले ,"क्या ग्यारहवीं के छात्र हड़ताल पर हैं ?" वे मुस्कराए ,"क्या मांग है भाई उनकी ?"<br />
"सर , वे कहते हैं, उनकी कक्षा के फर्नीचर पुराने हैं और टूट फुट गए हैं | उन्हें नया फर्नीचर चाहिए |"<br />
"वाह भाई वाह ... | बड़े लाट साहब हैं |" बाबाजी बोले |</div><div>अभी वे कुछ कहते, उसके पहले उन्होने देखा, दसवीं कक्षा के लड़के भी बाहर आकर एक ओर मुंह फुलाकर बैठ गए |<br />
"कमाल है |" बाबाजी बोले ,"क्या दसवीं के छात्र भी हड़ताल पर हैं ? अब इनकी क्या मांग है महाशय जी ?" उन्होने एक वर्ग के कक्षा शिक्षक तिवारी जी को बुलाया ,"आपके बच्चों क़ी क्या मांग है ?"<br />
"अभी पता करता हूँ सर |" तिवारी जी बोले |<br />
थोड़ी ही देर में वे छात्रों से बात करके लौटे ,"सर वे बोल रहे हैं, जब ग्यारहवीं कक्षा को नए फर्नीचर मिलेंगे तो पुराने फर्नीचर उन पर थोप दिए जायेंगे | उन्हें ग्यारहवीं के नहीं, बल्कि नए फर्नीचर चाहिए |"</div><div>ऐसी हड़तालें तो उन दिनों आम बात थी ...| जवान होती किशोर पीढ़ी के खून में था उन दिनों यह ...| जहाँ कोई स्वप्न भंग होते दिखता , जहाँ उन्हें उनकी आँखों में अन्याय नज़र आता , जहाँ उन्हें अपना हक़ छिनता नज़र आता - बस, बगावत पर उतर आओ ...| सच्चाई तो यह थी, कि देश के इतिहास का वह दौर था, जब युवा पीढ़ी अपने आप को दिशाहीन महसूस कर रही थी | दिशा दिखाने वाले न तो वो नेता रहे और न ही उनके आदर्श ...| ये समस्या विश्व व्यापी थी | अमेरिका को देखो | जहाँ उन्होंने पहला आदमी चाँद पर भेजा, वहीँ , उसी समय एक हिप्पी जमात ने जन्म लिया | ... और उन मुओं को देखो - कहीं और नहीं, राम और कृष्ण को हरा करते हुए उन्होंने सीधे हिंदुस्तान क़ी ओर रुख किया | और हिंदुस्तान ? बापू क़ी जन्म सदी मनाने के पहले ही दल बदल और नक्सलवाद ने जन्म ले लिया ...| युवा पीढ़ी दिग्भ्रमित ना हो तो भला क्या हो ?</div><div>बाबाजी ने लड़कों को बुलाया | घुट्टी पिलाई | इतिहास दिखाया | हकीकत समझाई | देश क़ी वस्तुस्थिति बताई, कई गाँव ऐसे हैं जहाँ फर्नीचर तो दूर, शिक्षक भी नहीं हैं | उन्हें अपने कर्तव्यों से अवगत कराया | फिर बोले, "मैं वादा तो नहीं करता, कोशिश जरुर कर सकता हूँ | जब तक बी एस पी से नए फर्नीचर नहीं आ जाते , आप सब दरी पर बैठेंगे | आप के साथ मैं भी दरी पर बैठकर काम करूँगा ....|"</div><div>वहीँ, उसी समय , उसी जगह हड़ताल क़ी कमर टूट गयी |</div><div></div><div>***********</div><div><br />
मैंने इस बार क्लाइडिस्कोप घुमाया और मुझे बाबूजी का परेशान चेहरा दिखाई दिया ...!<br />
हाँ वो बाबूजी ही तो थे ...|<br />
बाबूजी इतने परेशान क्यों हैं ? मगर नहीं .., कोई और भी है | वो हँसता मुस्कुराता चेहरा किसका है ? हँसता मुस्कुराता ? नहीं, बेशर्मी से हँसता ... ! खून जमाने वाले ठहाके लगाता, बाबूजी की आँखों के सामने ..| उससे नज़र फेरने के लिए बाबूजी जहाँ निगाहें घुमाते, उछलकर वह वहीँ दृष्टि के सामने आ जाता ...| ...|<br />
उस सवाल का रूप तो विश्व भर की उन समस्याओं से जुदा था ...|<br />
कभी भी कहीं से भी , वह प्रश्न उनके सामने आकर खड़ा हो जाता था ... कभी उजड्ड ढंग से से दाँत दिखाता, कभी बेताल की तरह उड़कर गायब हो जाता और फिर अगले क्षण विक्रम के कंधे पर सवार .... |<br />
बाबूजी क़ी समस्या अजीब थी | एक अतीत क़ी परछाईं एक भविष्य पर सीधे पड़ रही थी | उससे बेखबर वर्तमान अपनी ही साधना में लगा था | सामने एक पहाड़ खड़ा था | पीछे से घर में बाबूजी और शाला में बाबाजी क़ी नज़रें बराबर हांके जा रही थी ." वीर तुम बढे चलो, धीर तुम बढे चलो | सामने पहाड़ हो, सिंह क़ी दहाड़ हो ... |"</div><div></div><div>**************</div><div></div><div>.... आखिर क्यों घुमाया क्लाइडिस्कोप ? अन्दर एक नयी आकृति उभर कर सामने आ गयी ! </div><div>बाबूजी भोपाल गए थे | रात के करीब सात - आठ बजे किसी ने दरवाजा खटखटाया | कौशल भैया ने दरवाजा खोला |</div><div>"प्रिंसिपल साहब हैं ?" दरवाजे पर एक बूढ़ा , काफी बूढ़ा गंजा सा आदमी खड़ा था | <br />
"पिताजी तो भोपाल गए हैं |" कौशल भैया बोले |<br />
वह बूढ़ा चिंता मग्न काफी देर तक वहीँ खड़ा रहा , फिर पूछा ,"कब तक आयेंगे ?"<br />
"परसों तक |"<br />
"अच्छा , वाइस प्रिंसिपल कौन हैं ? मोटवानी साहब ?"<br />
"जी हाँ |"<br />
"उनका घर जानते हो ?"<br />
"जी | जानता तो नहीं | सेक्टर ७ में कहीं रहते हैं |"<br />
वह बूढ़ा बोझिल क़दमों से जाने के लिए मुड़ा | औपचारिकता वश कौशल भैया ने पूछा ," आपका नाम ? उन्हें कोई मेसेज देना हो तो बोलिए |"</div><div>वह बूढ़ा क्षण भर के लिए रुका "तुम्हें मालूम है, आज मरोड़ा टैंक में कल्याण कॉलेज के बारह छात्र डूब कर मर गए हैं ...| मरने वालों में मेरा पोता भी एक था ...|"</div><div>काफी ह्रदय विदारक घटना थी ये | पिकनिक पर गए छात्रों को प्रोफेसरों ने साफ़ मना किया था कि पानी में ना उतरें | मरोदा टेंक से भिलाई शहर को पेयजल की आपूर्ति होती थी | इसलिए जगह जगह बोर्ड भी लगे थे कि कपडे धोना , नहाना मना है | उद्दंड छात्रों का कुतर्क था, नहाना मना है, तैरना मना नहीं है | प्रोफेसरों ने सख्त हिदायत दी पर वे छात्र फिर भी नज़र बचाकर फिसल गए | ताल का नीला पानी उन्हें उत्प्रेरित कर रहा था, या ये उनकी मौत थी जो उन्हें बुला रही थी ? पानी काफी गहरा था और आगे पानी के अन्दर इस्पात क़ी जालियाँ लगी थी, ताकि मगरमच्छ और बड़ी मछलियों को रोका जा सके | तैराकी के लिए होड़ लगाते छात्र उन जालियों में फंस गए ....|<br />
क्या वही थी वह युवा पीढ़ी थी वो युवा पीढ़ी - जो ऊर्जा से भरपूर थी ?वह ऊर्जा जो बड़े बड़े दुस्साहस पूर्ण कार्य करने से हिचकिचाती नहीं थी | ऐसी ऊर्जा जो अगर ठीक दिशा में संचालित न क़ी जाए तो वह आत्म विनाश का कारण बन जाती थी |</div><div></div><div>************</div><div></div><div>क्लाइडिस्कोप .... इतनी जल्दी कैसे छोड़ दूँ मैं ? सब आवाजें अनसुनी करके मैंने एक बार और घुमाया ..... |</div><div></div><div>बेचारे मेंढक ...., दार्दुर भैया अगर ना गायें तो मारे ख़ुशी के उनका पेट फट जाए | और अगर गायें तो मुसीबत ...| ये वही बरखा का मौसम होता है , जब साँपों के बिल में पानी घुस जाता है और वे बेघर भटकते हैं | उन्हें भूख भी लगती है और तिस पर ये मेंढक ....जले पर नमक छिडकते हुए तराना छेड़ देते है ...|<br />
अब मेंढकों की मुसीबतों का यहीं अंत नहीं हो जाता ....| मैं चीन की बात नहीं कर रहा जहाँ के रसोईघर उनका जीवन सार्थक बना देते हैं ; भारतवर्ष में बारिशों का मौसम स्कूल खुलने का मौसम होता है | स्कूल के सारे के सारे बंद दरवाजे खुल जाते थे - कक्षाओं के, दफ्तर के, स्टाफरूम के , लाइब्रेरी के , क्रीडा कक्षों के और हाँ ... प्रयोगशालाओं के भी ....|<br />
रात के करीब दस बज रहे होंगे ....| ऐसी धुआंधार बारिश, अब बाहर गेट में ताला लगाने कौन जाए ? सब एक दुसरे पर टाल रहे थे | कुल दस कदम तो चलना था- बरामदे से गेट तक ...| कौन जाए ताला लगाने ... भला किस चोर की मजाल जो आज रात ड्यूटी बजाने की हिम्मत करे ? वो भी आज रात चादर ओढ़कर सो जायेगा ....|<br />
अचानक गेट खुला ...| हाँ ये गेट खुलने की आवाज़ थी | सिर्फ एक टॉर्च की रौशनी दिखी और दो लोग अन्दर घुसे ....| दिल की धडकनें तेज हो गयीं ...| खिड़की से किसी तरह हिम्मत बटोरकर झांक कर देखा ...| वे लोग घेरे की और बढ़ गए ....| एक ने रेन कोट पहन रखा था | तीव्र प्रकाश वाली चार सेल की टॉर्च उसके हाथ में थी और दूसरे के हाथ में छतरी थी जिसका इस बारिश में होना न होना बराबर था | बजाये घर के आसपास आने के, वे पिछवाड़े की ओर बढ़ गए |<br />
चप्पल की चरम चूं तो जानी पहचानी सी लगी | कहीं वो ... हाँ, अरे छतरी वाले को देखो | वो मुन्ना के राजा चाचा तो हैं | उनके साथ टॉर्च वाला ? वो तो शरद है |इक्कीस सड़क वाला शरद ....| बाबूजी ने लाईट जलाई |<br />
"अंकल, वो मोटा मेंढक इधर आया था क्या ? मोटा मेंढक ...?"<br />
क्या बेतुका सवाल था | मगर ये उनके प्रयोजन को स्पष्ट करने के लिए काफी था |<br />
और मेंढक राम ? कहते हैं ना, डर लगे तो गाना गा ...|" वह पिछवाड़े में फिर एक बार टर्राया और दोनों भूखे शेर की तरह भागे | थोड़ी देर में जब वे पिछवाड़े से आये, फंदे में मोटा मेंढक लटका बुरी तरह तड़प रहा था .... उसकी एक टांग फंदे में फंसी थी ...|<br />
"...अच्छा हुआ मैंने बाइलोजी नहीं ली माँ ...|" कौशल भैया बोले ,"आदमी को खोलने के पहले मेंढक के पीछे दौड़ो, पकड़ो और काटो ....|"<br />
कई कई लोग तो , खासकर कुछ लड़कियां , प्रयोगशाला में उलटी कर देते थे , मेंढक काटते समय ...| ,,, पर चिकित्सक बनने की तो ये पहली परीक्षा थी | और कुछ नहीं, कलेजा मजबूत करो और आँख खोलकर मेंढक काटो |</div><div></div><div>***************</div><div></div><div>बाहर क़ी लाइट जल चुकी थी , मतलब यह देर शाम का समय था | घर के बरामदे में उन लोगों ने एक पेपर बिछा दिया और चारों ओर झुण्ड बना कर बैठ गए - तमाल, सप्पन, मुन्ना का राजा चाचा , कौशल | उनके पास क्या था - कुछ फ्यूज़ बल्ब | क्या कर रहे थे वे ? सावधानी से बल्ब की टोपी पर पेंच कस रख कर धीरे धीरे छोटी हथौड़ी से चोट मार रहे थे | इतनी सावधानी से कि वे बात भी धीरे धीरे कर रहे थे | यदि काँच का खोल तड़क जाता तो सारी मेहनत मिट्टी में मिल जाती | <br />
उद्देश्य यही था कि ऊपर का लाख का कवच धीरे से तोडा जाए और अन्दर फिलामेंट सावधानी से निकाला जाए | एक तो टंगस्टन का फिलामेंट वैसे ही छोटा होता था , फिर फ्यूज़ बल्ब में तो उसके दो टुकड़े हो जाते थे | इतने छोटे से टंगस्टन के टुकड़े के टुकड़े को वे सावधानी से जमा कर रहे थे | अखबार इसीलिए तो बिछाया था ताकि टंगस्टन अखबार में ही रहे | फिर भी हुआ यह कि एक टंगस्टन का टुकड़ा अख़बार से लुढ़क पड़ा |</div><div>तमाल चिल्लाया , "अबे , पकड़ | टंगस्टन को पकड़ |"</div><div>सप्पन को कुछ समझा नहीं आखिर वह क्या चिल्ला रहा है ? तमाल फिर चीखा ,"टंगस्टन क़ी तार पकड़ बे |" वह खुद छलाँग लगाकर अखबार के दूसरी ओर भागा | तब तक टंगस्टन का तार अखबार से लुढ़क कर अँधेरे में विलुप्त हो गया |<br />
"टॉर्च ला बे टॉर्च ला |" कौशल भैया अन्दर से एक छोटा टॉर्च लेकर आये |<br />
"अरे पेन्सिल टॉर्च नहीं बड़ा टॉर्च लेकर आ |"<br />
और कौशल भैया अन्दर से दो सेल वाला टॉर्च लेकर आये |</div><div>खोजबीन में तमाल ने पूरी उथल पुथल मचा दी | अखबार के टुकड़े के नीचे , जूतों के पीछे , मनीप्लांट पौधों के गमले के पास ... | जब वहां कुछ नहीं दिखा तो नीचे मोंगरे क़ी जड़ों तक चला गया | <br />
"कौशल, तेरे पास बड़ा टॉर्च नहीं है बे ? चार सेल वाला ? "<br />
"नहीं , इतना ही बड़ा है |"<br />
तमाल ने गहरी सांस ली | वो निराशा में डूब गया ,"कहाँ गया यार टंगस्टन क़ी तार ? " फिर वो सप्पन पर बरस पड़ा , "बोला पकड़, बोला पकड़ , .... | बोला पकड़ टंगस्टन की तार ....| पकड़ा क्यों नहीं ?"<br />
सप्पन को अब भी समझ में नहीं आ रहा था क़ि आखिर वो बोल क्या रहा है ?<br />
"क्या नहीं पकड़ा बे ?"<br />
"टंगस्टन की तार ?"<br />
"टंगस्टन की तार ? तू तो ऐसे चिल्ला रहा है जैसे तेरा सोने का गहना ग़ुम गया हो | कहाँ था वो .... वो .... 'वो' तार ?"<br />
" टंगस्टन की तार | " राजा ने उसकी मदद की |<br />
"हाँ , टंगस्टन की तार | कहाँ था वो ? मैंने तो नहीं देखा |"<br />
"वो बल्ब के अन्दर था | "<br />
"तो ठीक है | यह भी तो बल्ब है | इसके अन्दर से फोड़ के निकालते हैं | यह भी कम पड़ा तो सड़क में बल्ब जल रहा है | वो फोड़ देंगे | तू उसका क्या करेगा ?"</div><div>टंगस्टन के तार का तमाल क्या करता, ये तो पता नहीं | वैसे भी वह ढेरों अनुसंधान किया करता था | हाँ , बल्ब के खोल का कौशल भैया ने क्या किया , यह मुझे मालूम है |<br />
एक बहुत ही पतला तार लिया | अब बल्ब के होल्डर में , जहाँ उसे लटकाने वाली खूंटी थी, आर पार दो छोटे छिद्र बन गए थे | उसमें पतले तार घुसा , तारों के छोर आपस में मिलाकर एँठ दिए | फिर उस खोल में रंगीन पानी भर कर बैठक की दीवारों पर टांग दिया |</div><div>लेकिन यह सब काम उन्होंने किया - बाद में , उनके जाने के बाद |</div><div>उस समय तो तमाल और सप्पन की नोक झोंक चल रही थी |<br />
"तुझे मालूम है , टंगस्टन की तार क्या होती है ?"<br />
"जरुरत नहीं है , जानने की |"<br />
"हाँ, तुझे क्या जानने की जरुरत ? तू तो आर्ट्स वाला है | "<br />
बात सप्पन को कुछ चुभ गयी ," तो तू साइंस वाला है तो तोप हो गया ?"<br />
कौशल भैया ने बीच बचाव किया ,"बस करो बे | सुबह खोज लेंगे |" </div><div>साइकिल की खरोंच पर रंग करने के लिए कौशल भैया काला पेंट लेकर आये थे | पेंट के डिब्बे में अभी कुछ थोडा बहुत पेंट बाकी था | कौशल भैया ने उस ब्रुश को सामने की खिड़की पर आड़ा तिरछा रगडा और देखते ही देखते एक झोपड़ी की तस्वीर तैयार हो गयी |</div><div>अचानक तमाल की निगाह उस पर पड़ी | <br />
जैसे एक रोते हुए बच्चे का ध्यान झुनझुने क़ी रुन झुन से बँट जाता है, वैसे ही तमाल का ध्यान बँट गया |<br />
"अरे वाह, शाबास | क्या झोपड़ी बनाई है ? अब इधर देख मेरा कमाल ...|" उसने कौशल भैया को धक्का दिया ,"एक मिनट, मुझे करने दे | देख ...."<br />
उसने मोटा ब्रश लेकर उसे पेंट में डुबाया और खिड़की पर रगड़ने लगा |<br />
"क्या कर रहा है बे ?" कौशल भैया कुछ बोलता उससे पहले ही तमाल तस्वीर पर पिल पड़ा ,"मुझे बनाने दे|"<br />
पीछे से सप्पन "वाह वाह" कर रहा था | तमाल ने बादल बनाने क़ी कोशिश क़ी ,लेकिन तब तक पेंट सूख चुका था | उने पेंट के डब्बे में पूरा रगडा, लेकिन किस्मत अच्छी थी कि पेंट सूख चुका था |</div><div>मौसम बदलते रहे | देखते देखते दिन ,महीने, साल और दशक गुजर गए | एक नयी पीढ़ी ही घर में मेहमान बनकर आ गयी | लेकिन वो तस्वीर, उसी जगह, वहीँ रही | एक झोपड़ी और साथ में तमाल के बनाये हुए अधूरे बादल ....|</div><div></div><div>************</div><div></div><div> तन्गप्पन आदत से मजबूर था | वो हरदम हँसते रहता था | उसमें कुछ बात ज़रूर थी कि जब भी वह आता, हम लोग भी हँसते रहते | अब उसका नाम ही देख लो , कोई उसे "तन्खा पन " कहता था, तो कोई " तंगा बन" | हिंदी का व्याकरण वैसे ही थोडा आड़ा तिरछा है | पुल्लिंग और स्त्रीलिंग को लेकर बड़े - बड़े लोग गच्चा खा जाते हैं तो तन्गप्पन तो बेचारा अहिन्दीभाषी था | न केवल वो अहिन्दीभाषी था, बल्कि अ-हिंदी प्रदेश में पैदा हुआ , बड़ा हुआ | अगर अपने भाई सदानंदन अंकल के बुलावे पर वह भिलाई नहीं आता तो उसकी ज़िन्दगी शायद केरल में ही गुज़र गयी होती | </div><div>बड़े सुरेश से मेरी कोई अच्छी खासी दोस्ती नहीं थी, लेकिन उसके काका तन्गप्पन और कौशल भैया में गाढ़ी छनने लगी | आखिर यह दोस्ती हुई कैसे ? क्या थी उसकी जड़ ? मुझे नहीं मालूम | मुझे नहीं लगता कि वो कभी भिलाई विद्यालय गया था | अगर गया होता तो बाबा जी उसकी हिंदी सुधारते - सुधारते खुद बिगड़ जाते और वह शर्तिया तौर पर और किसी विषय में नहीं तो हिंदी में जरुर फेल हुआ होता | जब वो भिलाई विद्यालय में नहीं था तो कौशल भैया का दोस्त कहाँ से बना ? शायद तमाल का पडोसी होने के कारण ? </div><div>जो भी हो, वो साइकिल की सीट पर सीना तानकर बैठता | ठीक वैसे ही , जैसे सदानंदन अंकल कभी स्कूटर पर और कभी मोटर साइकिल पर सीना तानकर बैठते | नहीं, नहीं, सदानंदन अंकल के पास कोई पचास गाड़ियाँ नहीं थी | एक समय में उनके पास एक ही गाडी होती - नया स्कूटर या नया मोटर साइकिल - जिसे वे कुछ दिन चलाते और फिर बेच देते | ये कैसा शौक था ? अजी शौक नहीं, पैसा कमाने का अच्छा तरीका था | उन दिनों स्कूटर के लिए सालों नंबर लगाना पड़ता था | तो शो रूम से बाहर आते ही स्कूटर की कीमत एकदम से बढ़ जाती | चार छः महीने में उसकी कीमत घटती नहीं , बशर्ते कि आप टक्कर ना मारो | और जिस रफ़्तार से सदानंदन अंकल गाड़ी चलाते थे, लोग पचास मीटर दूर से ही रस्ते से हट जाते | यदि हम लोग सड़क पर खेलते रहते तो पुलिया के पास उनका स्कूटर देखते ही नाली में कूद जाते |</div><div>तो तन्गप्पन साइकिल में तन कर बैठता | सर ऊँचा , सीना बाहर और दाँत भी बाहर | हमारे घर के पास आकर वो पूछता ,"कौशल है क्या ? क्या ? पढने गयी है ? कहाँ ? स्कूल - अच्छा - मतलब ..." वो कुछ सोचता फिर कहता," मतलब शाला गई है | ठीक है न ? बोलना , तन्गप्पन ..." फिर वो हाथ हिलाता | समुद्र से शब्द खोजने के लिए हाथ पाँव मारता | उसकी हालत देखकर हम लोग सहायता करने लग जाते ,"आया था ? तन्गप्पन आया था ?"</div><div>"नहीं" वो इनकार में सर हिलाता, फिर सोचता ," याद गया था |"<br />
"तन्गप्पन ने याद किया था ?"<br />
"हाँ", उसकी बत्तीसी पूरी बाहर निकल जाती,"हाँ | वोइच्च ...| एक बार फिर से बोलना ?"<br />
"तन्गप्पन ने याद किया था |"<br />
"वंडरफुल |" और वो साइकिल चलाकर आगे निकल जाता |</div><div></div><div>************</div><div></div><div>बाबूजी अब थोड़े से चिंतित दिखने लगे थे | वही वेताल चिंता उन्हें सता रही थी | वैसे देखा जाए तो एक नहीं अनेकों समस्याएँ और समस्याएँ लिए लोग उनसे टकराते रहते थे | अलग-अलग तरह के लोग - अलग-अलग तरह की समस्याएँ | कई बार ऐसा भी होता कि समस्याओं का समाधान खोजने बाबूजी के पास आये लोग ही एक दूसरे की समस्याओं का हल खोज डालते थे |</div><div>और उस अतीत क़ी छाया से भविष्य को बचाने के लिए ही उन्होंने एक दिन एक काफी अप्रिय निर्णय ले लिया जो क़ि दूरगामी सिद्ध हुआ |<br />
एक दिन अचानक .....!<br />
एक दिन अचानक ऐसे लगा, मानो अंगरेजी के पाँव उखड जायेंगे | सारे देश में 'अंग्रेजी हटाओ ' आन्दोलन ने जोर पकड़ लिया था | बात १९६७-६८ की है | तब अंगरेजी विरोध इस सीमा तक जा पहुंचा था कि लोगों ने 'लोहपथगामिनी' ,' द्विचक्रवाहिनी' जैसे शब्दों का उपयोग करना शुरू कर दिया | <br />
उस उग्र आन्दोलन का असर काफी क्षेत्रों में काफी कुछ हुआ | जैसे दुकानों के साइन बोर्ड से अंग्रेजी ऐसे गायब हुई जैसे गधे के सर से सींग | लोगों ने नामों का संक्षिप्तीकरण हिंदी में करना शुरू किया | जैसे - "जे एन यू यूनिवर्सिटी " , जिसे हिंदी में "जे एन यू विश्वविद्यालय " कहा जाता था, बन गया - जलाने विश्वविद्यालय" | हिंदी के समाचारों में 'आई. के. गुजराल' कि जगह कहा जाने लगा ,"इन्कु गुजराल " | <br />
अब यह आन्दोलन क्यों शुरू हुआ, कैसे आग की तरह फैला ये बातें इतिहास के पन्नों में किसी कोने में दफ़न हैं | लेकिन बाबूजी का सजग दिमाग जानता था कि इसका राजनैतिक अंत क्या होने वाला है | पर उस समय तो लोगों के दिलों में "माँ के सम्मान" को लेकर सागर हिलोरे मार रहा था | उस समय कक्षा नवमी में विषयों का चयन करना पड़ता था | दो विषय भाषा के भी होते थे - एक विशिष्ट और एक सामान्य - जिसे लोगों ने उच्च और निम्न का नाम दे डाला | प्रायः उन दिनों लोग 'उच्च हिंदी' और निम्न अंग्रेजी लिया करते थे | आन्दोलन का ऐसा भयंकर असर हुआ कि मध्य प्रदेश में लोग उच्च हिंदी और निम्न संस्कृत लेने पर आमादा हो गए | अब भला संस्कृत के शिक्षक पेड़ों में थोड़े ही फलते हैं | मंदिरों के पुजारियों में भी अधिकतर को संस्कृत नहीं आती थी, क्योंकि वो पेशा विरासत में मिला होता था, जिसमें शिक्षा प्राप्ति क़ी आवश्यकता ही अनावश्यक थी | फल यह हुआ कि मध्य प्रदेश शिक्षा निगम ने निर्णय ले लिया कि विद्यार्थी चाहें तो विशिष्ट हिंदी और सामान्य हिंदी - दोनों ले सकते हैं |</div><div>सारे छात्रों क़ी तरह कौशल भैया ने भी विशिष्ट हिंदी और सामान्य हिंदी लेने का निश्चय किया | लेकिन बाबूजी के मन में कुछ और था | वे चाहते थे क़ि कौशल भैया सामान्य अंग्रेजी लें | जब दिल में आन्दोलन क़ी हिलोरे उठ रही हों तो समझाना बुझाना बेकार था | फिर भी बाबूजी ने वह कोशिश भी क़ी ,"बेटा, विश्व में अंग्रेजी ही चलती है |"</div><div>"कहाँ अंग्रेजी चलती है ? कितने देश हैं जो फ्रेंच, स्पनिश , अरबी बोलते हैं |"</div><div>"अच्छा , कितने देश हिंदी बोलते हैं ? भारत, नेपाल, और .....? इन देशों का नाम काफी सुना है - सूरीनाम, फिजी ? दुनिया के नक़्शे में देखोगे तो एक बिंदु से भी छोटे दिखाई देंगे | मैं ये नहीं कहता क़ि अमेरिका में जाकर रहो | इंगलैंड में काम करो | पर जब कोई तुमसे अंगेजी का रौब ज़माना चाहे तो तुम आँखें न झपकाओ | इतनी अंग्रेजी तो आनी चाहिए |"</div><div>"मुझे कहीं नहीं जाना है |"<br />
" यहीं रहो | देश क़ी सेवा करो | इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है | पर अपने आसपास ही देख रहे हो ना ? कितने लोग अभी भी इंग्लिश मीडियम पढ़ रहे हैं | तमाल को देख लो ...| दक्षिण भारत में लोग हिंदी के नाम में आत्महत्या कर रहे हैं | तुम्हें क्या लगता है ? नेता चुपचाप तमाशा देखेंगे ? वो तो अपनी रोटी सेंकने के लिए आग को और हवा देंगे | कल उन्हीं दक्षिण भारतीय लोगों के साथ तुम्हें काम करना पड़ेगा तो ? और इंजीनियरिंग और मेडिकल क़ी पढ़ाई हिंदी में ? कम से कम मेरी ज़िन्दगी में तो होने से रही | हिंदी के दुश्मन कोई बाहर वाले नहीं हैं | इस देश के लोग, अपने ही लोग हिंदी के शत्रु हैं | फिर मैं तुम्हें उच्च अंग्रेजी लेने को तो नहीं बोल रहा | उच्च हिंदी तुम ले ही रहे हो |"<br />
अगले दिन , विषय लेने के पत्र पर अभिभावक के हस्ताक्षर के लिए कौशल भैया ने उसे बाबूजी के सामने पेश किया और बाबूजी बिफर गए |</div><div>"ये क्या है ? विशिष्ट हिंदी और सामान्य हिंदी ? दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा ? कल इतनी देर से बड़ बड़ कर रहा था , सब बेकार ?" अब वो डांट डपट पर उतर आये ,"क्यों लिखा तुमने ये ? क्यों ? सामान्य हिंदी ? बदलो इसको | करो सामान्य अंग्रेजी | अभी मेरे सामने |"</div><div>"बाबूजी , सब लोग विशिष्ट हिंदी और सामान्य हिंदी ले रहे हैं |"<br />
"सब लोग कुँए में कूदेंगे तो तुम भी कूदोगे ?" बाबूजी ने पत्र फेंक दिया |<br />
"???"<br />
"अगर सामान्य अंग्रेजी नहीं लेना है तो कल से स्कूल नहीं जाओगे | घर में बैठो | "<br />
फिर थोडा संयत होकर बोले,"अगर बाबाजी से बात करनी है तो मैं कल फोन लगाता हूँ |"<br />
बाबाजी का नाम सुनते ही मरी आवाज़ में कौशल भैया बोले ," ठीक है बाबूजी | सामान्य अंग्रेजी ठीक है |"<br />
बाबूजी देर तक चिंतामग्न रहे | अतीत की वो काली छाया , वो पदचाप उन्हें साफ़ सुनाई दे रही थी | उनकी दूर दृष्टि देख रही थी क़ि इस आन्दोलन का परिणाम क्या होगा ? नेता जब निर्णय नहीं लेना चाहते तो वो आश्वासनों के ढेर लगा देते हैं और निर्णय को कल के लिए टाल देते हैं | आज तो कल के सुनहरे सपने संजोये सो जाता है, पर कल कभी नहीं आता | </div><div><br />
लेकिन जलती हुई आग में रस्सी पर चलता उतना आसान नहीं था | कौशल भैया को आठों दिशाओं से व्यंग्य बाणों का सामना करना पड़ा | जहाँ देखो, जहाँ चलो -खेल के मैदान में, पीने के पानी के नल पर, प्रयोगशाला में, पुस्तकालय में, एन सी सी की परेड में - कहीं न कहीं से बेशर्मों की तरह हँसता व्यंग्य मूर्त रूप ले ही लेता था | बात केवल सहपाठियों तक ही सीमित होती तो कोई बात थी | </div><div>"आइये श्रीमान जी ....|" सामान्य अंग्रेजी के शिक्षक कुमार सर ने कौशल भैया का कक्षा में स्वागत किया - एक विद्रूप सी व्यंग्य भरी मुस्कान के साथ | कक्षा के अन्दर कौशल भैया ने देखा, पूरी की पूरी कक्षा खाली थी | केवल एक सामने की बेंच पर उनका एक साथी बैठा था | वह भी सहमा सा , घबराया हुआ | पूरे अंतराल में कुमार सर के व्यंग्य बाण चलते रहे |</div><div>और पुस्तकें ? सामान्य अंग्रेजी की पुस्तकें बाज़ार से ही गायब थी | अफवाह थी कि छात्रों ने जबलपुर में अंग्रेजी की पुस्तकों को जमा करके आग लगा दी थी , जिससे कोई भी दुकानदार उन पुस्तकों को रखने से कतरा रहा था |</div><div>कुमार सर की बातें सुनकर बाबूजी आग बबूला हो गए |</div><div>"वो कौन होते हैं ऐसी बातें कहने वाले ? क्या चाहते हैं वे ? बिना पढाये मुफ्त में तनखाह मिले (उन दिनों नौकरी तो किसी की जाती नहीं थी|) ? हमारा लड़का है | हम जो चाहेंगे पढ़ाएंगे उसे ....|"<br />
बाबाजी से की गयी शिकायत का असर यह हुआ कि कुमार सर को पढ़ाने से ही विरक्ति हो गयी ,"तुम्हें जो पढना है, अपने आप पढो ...|"<br />
जैसा बाबूजी ने सोचा था, वैसे ही हुआ | थोड़े दिन में ही तूफान धीरे धीरे शांत हो गया | देश क़ी गाड़ी उन्हीं पटरियों पर चलने लगी | स्टेशन तो स्टेशन, अदने से सिग्नल भी नहीं बदले ....| कौशल भैया को मुंह अधेरे, जब सब लोग सोये होते थे, बाबूजी ने अंग्रेजी पढाना शुरू किया | अब उन्हें थोड़ी सी हिम्मत बंधी कि अतीत के उस साए से निपटा जा सकता है | देखते ही देखते दो साल निकल गए |<br />
फिर भी वह अतीत की छाया - जबकि यह कौशल की स्कूल की पढ़ाई का आखिरी साल था - बाबूजी को जब तब परेशान करने लगी थी .....| </div><div></div><div>************</div><div></div><div>"तीन अक्षर का मेरा नाम , उल्टा सीधा एक समान |"</div><div>कोई मुश्किल पहेली तो थी नहीं | उत्तर भी एक नहीं अनेक हो सकते थे ....| जैसे - सारसा - जो सोगा की बहन थी | जैसे याहिया - जो पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे और अक्सर भारत को कच्चा चबा जाने के सपने देखते थे | या फिर .... जैसे डालडा .....|</div><div>----- डालडा ....| वनस्पति घी .....| यानी कि वनस्पतियों से - जैसे कि घास पत्ती, पेड़ पौधे , कंद मूल से बना घी | शुद्ध घी तो लोगों की पहुँच के बाहर होते जा रहा था - बल्कि हो चुका था | आम आदमी के लिए डालडा का ही सहारा था | उसे लेकर काफी मजाक भी बने - नयी पीढ़ी को कोसना हो तो -"डालडा की पीढ़ी ", सच में अगर मिलावट का अंदेशा हो तो - "थोडा डालडा मिला हुआ था " , सींकिया पहलवान के लिए - "डालडा पहलवान" ... और ना जाने क्या क्या ? उस ज़माने में और उसके बाद वनस्पति घी के और भी ब्रांड आये , लेकिन सब को डालडा ही कहा गया | यानी डालडा उत्पादक नहीं, उत्पाद हो गया |<br />
तो डालडे का पीला डब्बा होता था, जिस पर ज्यादा कुछ नहीं, मोटे शब्दों में अंग्रेजी में डालडा लिखा होता था और एक खजूर के पेड़ की तस्वीर बनी होती थी - बस | ढक्कन खोलो तो अन्दर एक टीन की एक पतली सी परत लगी होती थी | यूँ तो किसी भी डब्बा बंद उत्पाद, अमूल दूध पाउडर या बार्ली में भी टीन की पत्ती लगी होती थी, किन्तु एक फरक था | दूध पाउडर या बर्ली के डब्बों से पूरी परत काटने की जरुरत नहीं पड़ती थी | एक बड़ा सूराख बनाओ और काम हो गया | लेकिन डालडा के डब्बे से वो पूरी की पूरी परत काट के निकालना पड़ता था | उसे तेज धार वाले किसी चाक़ू या अन्य औज़ार से सावधानी से किनारे किनारे धीरे धीरे करके काटना पड़ता था |<br />
ज़ाहिर है, घर में ये काम कौशल भैया के ही सुपुर्द था | मेरी यह समझ में नहीं आ रहा था कि टीन कि पन्नी काटकर , वे उसे सावधानी से क्यों सम्हाल कर रख रहे थे ? जैसा हमारे लिए कोका कोला या गोल्ड स्पॉट का ढक्कन था, कहीं ऐसा ही उनके लिए वो कीमती तो नहीं था ? वे उसका क्या करेंगे ?<br />
राज खुलने में थोडा समय लगा |<br />
घर में जब तब या तो कोई नयी खाट बनती थी, या पुरानी खाट की मरम्मत होती थी | बसूला ,बिंधना, खुर्ची , आरी, रंदा से खुरा-पाटी अक्सर बनते रहती थी | देखने में काफी लोमहर्षक लगता था, जब श्याम लाल या राम लाल, नयी खाट के लिए खुरा पाटी बनाते , उन्हें आपस में जोड़ते और फिर नारियल बुच की रस्सी लेकर खाट की बुनाई करते | और जब काट पीट के उपकरणों क़ी धार कुंद होने लगती थी, तो धार तेज करने वाला काला पत्थर भी था | पत्थर को पानी से भिगाओ और कुंद धार को उसमें रगडो | धार एक बार फिर तेज हो जाती थी |<br />
ऐसे ही एक खुरे के टुकड़े से कौशल भैया ने एक चकती का आधार बनाया और उसके चारों और डालडा के कवर को मोड़ मोड़कर जल चक्र की कटोरियाँ बना ली | उस चक्र के आर पार मोटी कील घुसा कर उसकी धुरी बनाई और दोनों और उस धुरी को फंसाने के लिए जुगाड़ बनाया |<br />
पनचक्की तैयार थी |<br />
ऊपर से पानी डालने से ही पहिया तेजी से घूमने लगता था |<br />
कौशल भैया संतुष्ट नहीं थे | डालडे की पन्नियों की बनी जल चक्र की कटोरियों को न जाने कितनी बार मोड़ माड़कर उसका आकार बदला होगा | ध्येय यही था कि टरबाइन तेज, और तेज घूमे | उसके लिए महत्तम कोण क़ी उन्हें तलाश थी | दोनों तरफ के जुगाड़ों में साइकिल के पैडिल क़ी छर्रे वाली बियरिंग लगी थी जिसमें उन्होंने ग्रीस डाला, ताकि घर्षण कम से कम हो |फिर उस पनचक्की के एक ओर एक चक्का लगाया | उसमें रबड़ का एक पट्टा फंसाया और दुसरे सिरे को आटाचक्की के चोंगे से जोड़ दिया और वहां एक पंखा लगा दिया | पहले उनका इरादा एक जनरेटर बनाने का था , जिसके लिए उन्होंने व्यास से एक चुम्बक भी माँगा | पर जब वह चुम्बक नहीं मिला तो एक सामान्य आटाचक्की से ही उन्हें संतोष करना पड़ा | <br />
बाबूजी देखकर खुश हो गए |<br />
"वाह !" उनके मुंह से निकला |<br />
उसके बाद उन्होंने एक नियम सा बना लिया | सुबह जब बरामदे में बैठकर वे शेव बनाते, उसके बाद एक मग पानी उस पन चक्की में जरुर उड़ेलते | घुमती चक्की से जुड़ा पंखा हवा फेंकने लगता और उनका मन प्रफुल्लित हो उठता | इससे बेहतर दिन क़ी शुरुवात भला क्या हो सकती थी ?</div><div></div><div>************</div><div></div><div>... अब समय आ गया था कि मैं क्लैडिस्कोप किसी और के हवाले कर दूँ ....| मगर एक मिनट ... | जरा ये देखने दो | कौन हैं ये ?</div><div>कुछ लोग ऐसे थे, सड़क छोड़ने के बाद भी कर्भी उनसे सड़क छूटी नहीं थी | शाम को वे खेलने वहीँ आ जाया करते थे | उनका दिल अभी भी इक्कीस बाइस सड़क के मैदान पर धडकता था और शाम होते ही कदम खुद ब खुद उन्हें खींच लाते थे |<br />
प्रभात उनमें से एक था | वे डबल स्टोरी में चले गए थे, पर अक्सर वह मैदान में बैट घुमाते और हकलाती आवाज़ में कुछ न कुछ पुकारते, चिल्लाते हिदायत देते दीख जाता था | और विभाष और विवेक ?<br />
और वे दोनों भाई? उन्हें भी तो सड़क छोड़े काफी दिन हो गए थे |यकीन आता है क्या कि वे कभी सड़क से कट गए थे - कदापि नहीं | हरगिज नहीं ...|<br />
गुड्डू और पप्पी दो भाई थे - पांडे जी के लड़के | किसी ज़माने में वे हमारी सड़क में रहा करते थे | कभी दिनों तक रहे | माँ ने तब से देखा था, जब घुटनों के बल चलते थे | वे अब बड़े- बड़े घोड़े हो गए थे , किन्तु माँ के लिए अब भी गुड्डू और पप्पी ही थे | उम्र में कौशल भैया से वे बड़े थे | अच्छे खासे ह्रष्ट पुष्ट |</div><div>एक दिन दोनों घर पर आये | माँ को नमस्ते किया | माँ ने चाय के लिए पूछा तो शिष्टाचार के मारे ना नुकर करने लगे | फिर पप्पी ने पूछा, "कौशल किधर है ?"</div><div>कौशल भैया ट्यूशन पढ़ने गए थे | जब तक वे नहीं आये, दोनों भाई वहीँ बैठे रहे और इधर उधर की हांकते रहे | बातें ख़तम होने का नाम ही नहीं ले रही थी | दोनों भाई गपोडे थे | एक बात का एक सिरा कहीं ख़तम होता तो वहीँ से दूसरी बात का सिरा शुरू हो जाता |</div><div>लेकिन जब कौशल भैया आये तो वे बमुश्किल पांच मिनट बैठे होंगे - उससे ज्यादा नहीं | क्योंकि उन्हें लम्बे सफ़र की तैयारी करनी थी |</div><div>पाकिस्तान के साथ युद्ध की छाया मंडरा रही थी | देश नौजवानों को सेना में भरती के लिए पुकार रहा था | अगर लड़ाई ना भी हो तो भी सेना की नौकरी नौजवानों को हमेशा आकर्षित करती थी - और वो तो एक तनावपूर्ण दौर था | दोनों भाई वायु सेना में भरती के लिए परीक्षा देने जा रहे थे | उसके लिए कौशल से उसके एन. सी. सी. के जूते लेने आये थे | थोडा बहुत बड़ा हो तो सामने रुई ड़ाल देते | थोडा छोटा हो तो किसी तरह सह लेते | वायु सेना में भरती के लिए रौब दाब , चरमराते जूते की जरुरत थी | एक जोड़ी जूता तो मिल गया और अब उन्हें दूसरी जोड़ी की तलाश थी ......|</div><div>दो सप्ताह बाद वे जूते वापिस करने आये | फिर से माँ के साथ बैठकर "हा हा ही ही " .... | दोनों के दोनों भाइयों ने परीक्षा में अच्छा किया | लिखित परीक्षा पास की , दौड़ भाग में अव्वल रहे | लेकिन जब शारीरिक माप का समय आया तो दोनों भाई फेल हो गए | गुड्डू की ऊँचाई ठीक थी, लेकिन सीना एक सेंटीमीटर कम था | पप्पी का सीना ठीक था, लेकिन ऊँचाई एक सेंटीमीटर कम हो गयी | और सेना वाले गुणवत्ता के मामले में कोई समझौता नहीं करते | ये देश की रक्षा का सवाल था, किसी के सपने टूटे तो क्या ? लेकिन लगता नहीं था कि वे हताश हुए हों | जीवन के हज़ार रास्ते और खुले थे , उनके सामने | </div><div><br />
**************</div><div><br />
"सवेरे वाली गाडी से चले जायेंगे ...| सवेरे वाली गाडी से चले जायेंगे | "<br />
"जाना है तो जाओ, मनाएंगे नहीं ....|"</div><div>हमारा पैतृक गाँव तो छत्तीसगढ़ में ही था - भिलाई से करीब साठ पैंसठ किलोमीटर दूर | हमें तो कहीं दूर जाना था नहीं | सच्चाई तो यह है कि जब मैंने पहली बार रेल के डिब्बे में कदम रखा , तब मैं छठवीं में पढता था | गर्मी की छुट्टियाँ आते ही - जिसे देखो वही - जब तब - जहाँ तहाँ - यह गाना गाते दिख जाता था ,"सबेरे वाली गाडी से चले जायेंगे ...| सबेरे वाली गाडी से चले जायेंगे ...|" चाहे वो सिन्धी राजू हो या बंगाली सडा दाँत शंकर | बिहारी बाबू अनिल हो मराठी' बंडू | उस समय उनके चेहरे से झलकती ख़ुशी बता देती थी कि वे 'देस' जाने वाले हैं | 'परदेस' में रहते थे ना बेचारे ! </div><div>तो जब भिलाई विद्यालय से शैक्षिक भ्रमण पर जाने का पैगाम कौशल भैया ने बाबूजी को दिखाया तो एक पल भी सोचे बिना बाबूजी बोले ,"चले जाओ तुम भी | यात्रा करके आओ |" न तो उन्होंने ये पूछा कि आने जाने और ठहरने क़ी क्या व्यवस्था है और ना ही कि कौन कौन और कितने लोग जा रहे हैं |</div><div>अब भला दक्षिण भारत का भ्रमण दस दिनों में क्या हो पाता ? हैदराबाद, मैसूर और मद्रास | कोई ज्यादा सामान भी नहीं - केवल एक लाल रंग के एयर बैग में कुछ कपडे और ओढने बिछाने क़ी चादरें |</div><div>लेकिन दस दिन बाद वे आये तो काफी सामान लेकर आये | तजुर्बों क़ी भारी भरकम टोकरी और ढेर सारी कहानियों को अगर एक तरफ रखा जाए तो भी और भी बहुत कुछ था जिसने सबका ध्यान खींच लिया |</div><div>"ये क्या है ?" माँ ने दो बगुलों क़ी जोड़ी को पकड़ कर उठाया |<br />
"माँ , मत छू माँ | मत छू | लो, मना करने पर भी छू लिया | आप छुआ गए | अब जाओ , नहा कर आओ | "<br />
"ये है क्या ?"<br />
"भैंस के सींग से बना कोकड़ा (बगुला ) |"</div><div>'सींग' सुनते ही माँ के हाथ से बगुलों क़ी जोड़ी ज़मीन पर गिर पड़ी | न केवल बगुले, अपितु उनके खड़े होने का स्टैंड भी भैंस के सींग से बना था | और तो और - उनके सामने एक 'नांद ' या चारे क़ी टोकरी भी सींग से बनी थी जो कागज़ क़ी पतली पतली पत्तियों से भरी हुई थी | कौशल भैया ने बगुलों को स्टैंड पर खड़ा किया , उनके सामने चारे क़ी टोकरी लगाईं और उन्हें 'बैठक' के सामने क़ी अलमारी पर रख दिया | बरसों तक वही उनका घर रहा - लम्बी टांग और लम्बी गर्दन वाले, सींग से बने, पॉलिश किये हुए - बगुलों क़ी वह जोड़ी - वहीँ खडी रही |</div><div> और वो हाथ पंखा ? उसका आकार कितना छोटा सा था, लेकिन जब उस घुमाकर खोला गया तो - वह क्या शानदार डिजाइन थी | और आकार भी कितना बड़ा हो गया | उसे हिलाने से अफ़ी हवा आएगी | खूबी यह थी कि वामावर्त और दक्षिणावर्त घुमाने में ही दो अलग अलग डिजाइन बन जाती थी |</div><div>तार के बने उस जालीदार ढांचे को देखते ही माँ के मुँह से अनायास निकला ,"ये टुकना कहाँ से उठा लाये ? घर में टोकरी कम है क्या ?"<br />
माँ का सवाल बेवजह नहीं था | रसोई घर में ही बाँस की बनी दो टोकरियाँ थी, जिनमें आलू , प्याज़ और दूसरी सब्जियाँ रखी होती थी | ये सवाल तो सभी लोगों की जुबान पर था कि आखिर यह है क्या ? तार की टोकरियाँ सब्जी दुकानों पर अक्सर दिख जाती थी, जिनमें अंडे रखे होते थे - पर वे तो आकार में काफी छोटे होते थे |<br />
"ये टुकना है ?" कौशल भैया हिकारत से बोले |<br />
"तो क्या है ?" </div><div>कौशल भैया उसे तोड़ते मरोड़ते रहे आकार बदलते रहे , लेकिन किसी को उसकी कोई उपयोगिता समझ में नहीं आई | लोगों ने उसे कौशल भैया की दूरदर्शी आँखों से देखा ही नहीं था ....|</div><div></div><div>*************</div><div><br />
"मेरे बेरी के बेर मत तोड़ो | मेरे बेरी के बेर मत तोड़ो तुम्हें कांटा चुभ जाएगा ...|"<br />
ये गाना आपने आशा भोंसले की आवाज़ में सुना होगा | मगर जिन लोगों ने छोटे के बड़े भाई विजय को ये गाना तरंग में आकर गाते सुना होगा, उन्हें शर्तिया आशा भोंसले की आवाज़ भूल गयी होगी | विजय यों तो गाता कम था, पर जब गाता था तो गीत अमर हो जाते थे |<br />
ये बात तो स्वीकारना पड़ेगा कि छोटे लोगों के आने के बाद सड़क की शब्दावली काफी बदल गयी | सबके घर के तीन ओर लोग ज़मीन को लकड़ी , या काँटेदार तार से घेर देते थे | ज़मीन का वो टुकड़ा उनका अपना हो जाता था, ताकि वे साग सब्जी , बेल फूल , कंद मूल फल - जो मन में आये उगा सकें |अब उन लकड़ी के पल्लों या काँटे दार घेरे को आप क्या कहेंगे ? "घेरा" - जी हाँ | इक्कीस और बाइस सड़क के सब लोग "घेरा" ही कहते थे | छोटे लोगों ने उसे "बाड़ी" का नाम दिया और देखते ही देखते सारे लोग "घेरे" को "बाड़ी" कहने लगे | पिताजी को वे लोग "पिता" कहते थे | हाफ पेंट को 'निक्कर' कहते थे |</div><div>वैसे ही उनका दिया हुआ एक नाम काफी प्रचलित हो गया |</div><div>ये वो दिन थे, जब त्यौहार मरे नहीं थे | ना तो उनका स्वरुप विकृत हुआ था | ना वे इतने "शालीन" और "सभ्य" होते थे | न लोगों को पर्यावरण के संरक्षण की चिंता थी | वे काफी सरल होते थे | जब पोला का त्यौहार आता था , जो लोग मिटटी के बैल नहीं बना सकते थे , वे लोग सुपेला बाज़ार से खरीद लाते थे | शाम ढलते ढलते लोग अपने अपने बैलों के ऊपर एक मोम बत्ती लगा देते और अँधेरे में उसकी डोर खींचते हुए बाइस से इक्कीस सड़क की परिक्रमा करते | कई बार तो चार छः दोस्त अपने अपने बैलों को एक साथ मिलाकर एक काफिला सा बना लेते | नाग पंचमी के दिन कोई ना कोई संपेरा सड़क पर जरुर आता और घर घर जाता | कितने लोग थे जो साँप को दूध पिलाते | शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में लोग आसमान से बरसते अमृत बटोरने के लिए छत पर दूध से भरा कटोरा रख देते |</div><div>वैसे ही, जब रामलीला मैदान में रावण जलता और लोग सोन की पत्ती का आदान प्रदान करते , उसके अगले दिन से ले कर तुलसी पूजा के दिन तक ....?<br />
शाम का धुंधलका पाँव पसारते जा रा था | अँधेरे के उस साम्राज्य को चुनौती देता एक दीप आकाश की और बढ़ते जा रहा था | जैसे जैसे कौशल भैया लम्बे बांस के छोर पर लगी घिरनी से लिपटी रस्सी खींचते , वह टिमटिमाता, लहराता हुआ कुछ और ऊपर चढ़ जाता .... आकाश छूने को आतुर ... जब तक वह बांस के छोर तक नहीं पहुँच जाता ...|<br />
आकाश का दीप ? आकाशदीप ?? ये नाम भी तो छोटे लोगों का ही दिया हुआ था | छोटे के भाई विजय के "आकाशदीप" कहने से पहले लोग उसे "कंदील" के नाम से जानते थे |</div><div></div><div>************</div><div><br />
तो आकाशदीप या कंदील बनाने में लोगों की रचनात्मकता चरम सीमा तक पहुँच जाती थी | सबसे आसान होता था, बाँस की खपच्चियों से षटकोण बनाना | और तो और - वो बाज़ार में भी मिल जाता था | उसे विकसित कर लोग अष्टकोण भी बनाते थे | कुछ लोग केवल त्रिकोण से ही संतुष्ट थे | कुछ लोग डब्बा बनाते थे तो कुछ लोग मटका | कुछ लोग उसे रॉकेट की शकल दे देते तो कुछ लोग एटम बम की | उसके चारों <br />
ओर रंग बिरंगे झिल्ली कागज़ चिपका कर खोल बना लेते थे | उसके अन्दर लोग बिजली का बल्ब लगा देते थे | गाँव में लोग उसके अन्दर दीया रख देते थे | बाँस का खम्बा , जितना ऊँचा हो सके, मानो वो नाक की लम्बाई हो , लेकर उसके एक छोर पर घिरनी लगा दी जाती थी और आकाशदीप को रस्सी के सहारे रोज आकाश में लटकाया जाता था |</div><div>बात रचनात्मकता की हो रही थी |<br />
वो तार का बना 'टुकना' कौशल भैया इसी लिए तो लाये थे |</div><div>काफी आसान था, उसे तोड़ मरोड़ कर विभिन्न आकृतियाँ बनाना | पहले साल दो मिनट में ही उन्होंने उसे मटके का रूप दे डाला | दुसरे साल, चपटा करके चक्की बना दी | तीसरे साल 'मटके के ऊपर मटका" ... | चौथे साल एक डमरू ... | पांचवे साल ...., छठवें साल .... सातवें साल ....|</div><div>सालों साल यही क्रम चलते रहा | कौशल भैया जहाँ कहीं भी होते, दीवाली में घर जरुर आते और लकड़ी की पेटी के किसी कोने से तार का वो ढांचा निकाल लेते | कुछ मिनट सोचते और मोड़कर किसी आकृति का रूप दे देते | सालों साल वो तुच्छ 'टुकना' दीवाली के समय घर की छत पर जगमगाता रहा |</div><div><br />
*********</div><div><br />
"चल मेरे घोड़े टिक ... टिक .. टिक ..."</div><div>वो सफ़ेद रंग का लकड़ी घोडा मेरे लिए ही तो बना था | कान के पास दो हत्थे लगे थे, जिन्हें पकड़ कर ऊपर नीचे मैं झूल रहा था |</div><div>अचानक मुझे मीना , मधु ,छोटी और बंडू के रमेश चाचा दिख गए .....|<br />
लकड़ी के झूमते घोड़े से मैं कूद कर भागा ... लेकिन गेट पास तक पहुँचते ही मैं ठिठक गया |<br />
हाँ, वो रमेश चाचा ही तो थे | <br />
वे जेल से कब छूट कर आये ? बढ़ी हुई दाढ़ी, सुखा हुआ सा मुँह ...बेतरतीब बाल ...| कहाँ गयी उनके चेहरे की मुस्कान ?<br />
अचानक उन्होंने मेरी ओर देखो और उनके चेहरे की वो मुस्कान वापिस आ गयी |</div><div>"टुल्लू ...|" उन्होंने इतना ही कहा | मैं कुछ पूछना चाहता था, पर शब्द गले पर आकर अटक गए | अच्छा हुआ, आते- आते अटक गए | वे भी शायद कुछ कहना चाहते थे, पर शब्द लगता था, उनके गले पर आकर अटक गए थे | फल यही हुआ क़ि हम दोनों में से किसी ने कुछ नहीं कहा और वे चलते हुए आगे निकल गए ....|</div><div></div><div>**********</div><div></div><div>जब- जब सप्पन घर में आता था, तो घर का माहौल ही बदल जाता था | उसका मुँह हमेशा खुला रहता था | या तो वो कोई मनोरंजक बात लपेटते रहता था, या फिर हँसते रहता था - कभी स्वच्छंद हँसी , कभी शरारत भरी चौड़ी मुस्कान ... | उस ज़माने में लोग कोलेज में जाने के पहले तक हाफ पेंट पहनते थे | सप्पन कभी कभी फूल पेंट जरुर पहनता था, पर अक्सर वो लम्बी हाफ पेंट पहन कर आया करता था | फिर भी उसकी ताकतवर जांघ क़ी मांस पेशियाँ पेंट में मानो समाती नहीं थी | उन्हें देखकर केवल आवाज़ गूंजा करती थी ," कबड्डी, कबड्डी, कबड्डी ...|" शाम को जब बड़े लोग मैदान में कबड्डी खेलते , तो सप्पन विरोधी पाले में एक बिफरे सांड की तरह घुस जाता ,"कबड्डी, कबड्डी, कबड्डी ...." | लोग लगभग ज़मीन तक झुके हुए उसके पाँव की ओर देखते रहते ... | उसे पकड़ने के लिए या उससे बचने के लिए ... सप्पना को उसकी परवाह नहीं होती ...|फिर वह अचानक हवा में पाँव घुमाता और लगभग ज़मीन तक झुके लोग अपना थोबड़ा बचाते नज़र आते | फिर वह शान से धीरे धीरे 'कबड्डी' 'कबड्डी' कहते अपने पाले में लौट आता | हाँ, कई बार लौटने के पहले वह अचानक पलट जाता और फिर लात घुमाता | एक बार राजकुमार के मुंह में उसकी लात लगी और नाक से खून की धारा फूट पड़ी ...|</div><div>कौशल भैया और सप्पन बरामदे में टीन क़ी कुर्सियों पर बैठे थे |<br />
"सुना है , रमेश जेल से छूट कर आ गया ?" सप्पन ने थोड़ी धीमी आवाज़ में कहा |<br />
इससे पहले कि कौशल भैया कुछ कहते, मैं बीच में कूद पड़ा ,"हाँ, हाँ | मैंने उन्हें सुबह देखा था | मैं पूछने वाला था , रमेश, तू जेल क्यों गया था ?"<br />
मैंने सोचा नहीं था, इतने जोर से ठहाका लगेगा | सप्पन क़ी तो हँसी ही नहीं रुक रही थी ,"क्या? तू क्या पूछने वाला था ? ओ टुल्लू हा... हा... हा.. |"<br />
रमेश जेल क्यों गया था , वह तो सबको मालूम था - मुझे भी और उन्हें भी | अब वे थोडा धीमी आवाज़ में अटकलें लगा रहे थे क़ि रमेश जेल से बाहर कैसे आया ? उनकी आवाज़ मद्धिम हो गयी और मेरे कान खड़े हो गए | मन में एक विचार आता था कि दूर चले जाऊं | बड़ों की बातें ... मुझे क्या करना है ? व्यापार के खेल में तो पांसों में तीन बार बारह आते ही खिलाडी जेल में चले जाता था | और वह तब तक जेल में रहता था, जब तक कि अगले बार बारह न आ जाये | पर वह तो एक खेल था | ज़िन्दगी क़ी कहानी इतनी सरल थोड़ी थी !</div><div>"लगता है , सरदार जी (मंजीत के पिताजी ) ने केस वापिस ले लिया ...|" सप्पन का विचार था |<br />
क्या केस ? कैसा केस ? मंजीत के पिताजी ने क्यों दिया और किसे दिया ? फिर वापिस क्यों ले लिया ? मेरी उत्सुकता और बढ़ गयी |<br />
"हो सकता है | मुझे लगता है , छोटा केस था | छह महीने क़ी सज़ा हुई होगी | छः महीने हो गए |"<br />
अबे छ महीने हो गए ? " सप्पन उँगलियों में गिनने लगा ," सितम्बर, अक्टूबर , नवम्बर .... | हाँ , यार ...| "वो जांघ पर हाथ मारकर बोला ,"छः महीने हो गए | पर आदमी तो शरीफ था | क्या हो गया ? और जब चुराना ही था तो पूरा स्कूटर चुराता | खली पीली चक्का चुरा रहा था | पर यार , जेल में बड़ी मार पड़ती है |"</div><div>"नहीं बे, मार थाने में पड़ती है | जेल में कुछ नहीं होता | काम करो और खाना खाओ | मगर थाने में ? हड्डी पसली तोड़ देते हैं ....|"<br />
सच्चाई तो यह थी कि रमेश के जेल जाने क़ी घटना ने इक्कीस और बाइस सड़क क़ी जवान होती किशोर पीढ़ी को झकझोर कर रख दिया था | सबके लिए एक सबक था | एक भूकंप था , जिसने न केवल पाँव के नीचे से ज़मीन हिला दी थी, बल्कि मस्तिष्क को झकझोर दिया था | एक अंकुश था, एक आईना था | न जाने इस घटना ने कितने लोगों को फिसलने से पहले रोक लिया |</div><div><br />
************</div><div><br />
जब मेरी नींद खुली तो सुबह के आठ बज रहे थे |<br />
अरे, इतनी देर तक मैं कैसे सोये रहा ?</div><div>अचानक मुझे कुछ 'बुद बुद' की आवाज़ आई | ये आवाज़ कहाँ से आ रही है ?<br />
किसकी आवाज़ है ये ?</div><div>आवाज़ का पीछा करते हुए मैं आँगन में पहुंचा | वहाँ से नहानी की और मुड़ा | सामने जो दिखा, मैं देखते ही रह गया |</div><div>घर की टंकी में पानी भरा हुआ था और उसमें एक खिलौने का पानी जहाज चल रहा था ..... हरे रंग का टीने का जहाज जिसमें टीन का ही लाल रंग का झंडा लगा था |</div><div>"माँ , माँ |" मैं रसोई घर में गया ,"वो पानी का जहाज टंकी में चल रहा है ...|"<br />
"मुझे पता है |" माँ बोली,"कल रात को कौशल मेले से लाया था |"<br />
मुझे तो पता ही नहीं चला ... | क्योंकि तब तक मैं सो चुका था |</div><div>मैं वापिस टंकी के पास भागा , जहाँ पानी का जहाज अभी भी 'बुद बुद' करके चल रहा था ....| मैंने देखा, अन्दर एक छोटी सी मोम बत्ती जल रही थी दो पतली पतली पाइपें पीछे की ओर निकली हुई थी | <br />
थोडा थोडा धुआं भी निकल रहा था , वस्तुतः उस छोटी मोमबत्ती का ही धुआं था |</div><div>वह जहाज टंकी में ही गोल- गोल घूमते रहा और मैं पानी की टंकी के पास खड़े उसे निहारता रहा , जब तक उसकी मोम न ख़तम हो गयी और वो ठहर न गया |</div><div>चाबी वाली रेल गाड़ी के बाद ये दूसरा खिलौना था, जिसके साथ मेरी कल्पनाएँ पंख लगाकर उडती थी और मुझे दूर ले जाती थी ... सात समुन्दर पार ... चंदामामा और लक्ष्मी भैया की कई कहानियाँ जहाज के साथ ही साकार होते जाती थी | कभी चलते जहाज की देखकर मैं सोचता, उसमें सिंदबाद बैठा है ....| कभी लगता था, सामने से समुद्री डाकुओं का जहाज आएगा | कभी सोचता, उसे चार बौने चला रहे हैं | कभी लगता है, वो गुलीवर का जहाज है |</div><div>शाम को मैं खेलने भी नहीं गया और कौशल भैया का इंतज़ार करते रहा | भिलाई विद्यालय से वो आये और बिना बात के परछी में खूंटी पर टंगी लेझिम उतार और बजा बजाकर हाथ पांव हिलाने लगे |<br />
"जहाज कब चलाओगे ?" मेरे सब्र का बाँध टूट ही गया |<br />
"जहाज ? अरे हाँ ....|" उन्होंने परछी में पानी के ड्रम के पास आले पर रखा जहाज उठाया | टंकी के पानी को माँ ने बाहर के पौधों को सींचने के लिए काली पाइप से जोड़ दिया था, इस लिए उसका स्तर घटते जा रहा था | कौशल भैया ने एक कोने में पड़ा कोपरा उठाया और उसमें पानी भर दिया | फिर पानी के उस जहाज को टेढ़ा करके उसकी नली में हथेली से पानी डालने लगे | फिर परछी के आले में पड़ी मोमबत्ती को ब्लेड से काटा और जहाज के अन्दर का छोटा सा चम्मच निकालकर उसमें मोमबत्ती जमाई और माचिस से मोमबत्ती लगा दी |<br />
जहाज चलते रहा | आँगन मैं माँ की सिगड़ी सुलग गयी और माँ अन्दर खाना बनाने लगी | आँगन के आम के पेड़ पर पंछी कलरव करके शांत हो गए | आँगन मैं किसी ने लाइट नहीं जलाई लेकिन परवाह किसे थी ? मेरी आँखें उस जहाज पर टिकी थी , जो अँधेरे में मोमबत्ती का प्रकाश फेंकते कोपरे में घूम रहा था | मेरी कल्पना में नमक की चक्की की कहानी चल रही थी | बड़ा भाई छोटे भाई की नमक की चक्की चुराकर जहाज में अँधेरी रात में बैठकर भाग रहा था ...| अब जहाज वालों को नमक की जरुरत पड़ी और .....|<br />
एक झटके में कौशल भैया ने मोमबत्ती बाहर निकली और फूंक मारकर उसे बुझा दिया |<br />
इतना ही नहीं, उन्होंने आँगन की लाइट भी जलाई और उसे ध्यान से देखते रहे |</div><div>उसके बाद उन्होंने ऊपर का कवर निकाला और अन्दर की उभरी हुई छोटी सी कटोरी देखने लगे, जहाँ दोनों नलियाँ आकर जुडी हुई थी | कोई दांते या पेंच नहीं, कोई मशीन नहीं ....|</div><div>"ये चलता कैसे है ?" मैंने पूछा |<br />
"वही तो देख रहा हूँ | " कौशल भैया बोले," भाप से ...|"<br />
" भाप से ?"<br />
"हाँ , वैसे ही जैसे रेल का इन्जिन चलता है |"<br />
"पर वो तो कोयले से चलता है |"<br />
" नहीं, भाप से | कोयले से भाप बनती है | भाप से चक्का घूमता है |"<br />
" भाप तो हवा में उड़ जाती है | उससे चक्का कैसे घूमेगा ?"<br />
उड़ने के पहले चक्का घुमाती है | पर इसमें तो भाप निकालने क जगह नहीं है |" वे ध्यान से देखते हुए बोले |<br />
"वो नली से निकलती होगी ?" मैंने अटकल लगाई ,"तभी तो बुद बुद करती है |"<br />
"अरे, वहां से निकलते निकलते ठंडी हो जाएगी | हो सकता है, भाप नहीं निकलती | पानी ही निकलता होगा |"<br />
"तब तो वो टंकी खाली हो जाएगी | "<br />
"अरे नहीं , पानी निकला, खाली जगह भरने के लिए पानी फिर अन्दर घुस जाता होगा |"<br />
उसी नली से पानी निकलेगा, उसी से घुसेगा ?" मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था |</div><div>अब कौशल भैया ने मुझसे बात करना मुनासिब नहीं समझा | कहाँ मैं छः साल का 'जकला' और कहाँ वो | वे अन्दर गए | घर में फुटबाल में हवा भरने का हैण्ड पम्प था | उसे खोलकर देखने लगे | कभी उसे देखते, तो कभी जहाज को | फिर एक कागज़ लिया और पेन्सिल से चित्र बनाकर उसे देखने लगे ....| फिर उसे वापिस जोड़ा | हैण्ड पम्प को भी जोड़ा |</div><div>काफी देर तक माथा पच्ची करते रहे |<br />
वे पता नहीं कब तक अटकलें लगाते | जरुरत ही क्या थी ? मुझे मालूम था उसका जवाब | कौन चलाता है वो जहाज ? चार बौने ? अरे नहीं मैं मज़ाक नहीं कर रहा | <br />
अचानक बाहर से आती आवाज़ ने उनकी तन्द्रा भंग की ," कौशल ....|"<br />
.... ये तो तमाल की आवाज़ थी .. | काफी दिनों बाद ..... |अचानक ... देर शाम में ? कौशल भैया के आगे आगे तो मैं भागा .... | फिर ठिठक गया ...| कहीं वो टंग्स्टन के तार के बारे में तो पूछने नहीं आया - मिला या नहीं ? </div><div>अँधेरे में भी तमाल ने रंगीन चंश्मा पहना था | मुन्ने के राजा चाचा तो गेट पर ही खड़े रहे पर तमाल बरामदे पर खड़ा था | उसका एक हाथ सामने की जेब के अन्दर था | वह खड़ा भी एक ही पाँव पर था | दूसरा पांव तो बस यूँ ही ज़मीन पर रखा था |<br />
"कौशल, एक जरुरी बात करनी है |"<br />
"जरुरी बात ? " मेरे भी कान खड़े हो गए .....|<br />
मैं बैठक में इतनी खड़े रहा कि तमाल को जरुरी बात करने में परेशानी ना हो और वो जरुरी बात मेरे कानों तक भी पहुँच जाए |<br />
"कौशल , तू उसको समझा दे .....|"<br />
किसको ? मैं तो सिर्फ सोच रहा था , कौशल भैया ने तो पूछ ही डाला |<br />
मगर वो जरुरी बात अधूरी ही रह गयी |<br />
अचानक वातावरण में खतरे का सायरन गूंजा | बाबूजी का स्कूटर पुलिया के पास अहुंच चुका था |<br />
"तमाल बाद में बात करेंगे |" कौशल भैया लपक कर अन्दर भागे और बाबूजी के आने के पहले जहाज को झटके से जोड़ा .. | चित्र वाले कागज़ का गोला बनाया और अपनी कुटिया में घुस गए ....|<br />
कोपरे का पानी फेंकना तो वो भूल ही गए .... | चाँद क़ी परछाईं सीधा उस पर पड रही थी | अब मुझे याद आया वो सवाल - हाँ, जहाज कौन चलाता है ?<br />
वही जो लक्ष्मी भैया के अनुसार सारी दुनिया चलाता है | जब वो सारा संसार चलाता है तो एक नन्हा सा जहाज उसके लिए क्या था !!</div><div>********<br />
"दिन भर खेल ... दिन भर , दिन भर ...| चल इधर आ |" कौशल भैया ने मुझे डपटा | कौशल भैया पीछे का घेरा ठीक करने के लिए लकड़ी के फ़ट्टे ठोंक रहे थे | जब तब गाय घुस आती थी | दो फट्टों के ऊपर एक फट्टा रखकर वे कील ठोंकने लगे ,"कस के दबाकर रख | खाना नहीं खाया क्या ? पाँव से भी दबा ... चल उसके ऊपर खड़ा हो जा, हिलना नहीं चाहिए ....|"<br />
उज्जवल के पिताजी साईकिल से उधर से गुजरे ,"क्या कौशल , हेल्पर मिल गया आज ?"<br />
"हेल्पर ?" कौशल भैया बड़बडाये ,"ये तो मेरा सुपरवाइजर है ...|"<br />
तभी सुबह के साफ़ आसमान में तेज़ बिजली कडकी, घटाटोप अँधेरा छा गया और दसों दिशाओं से आवाज़ प्रतिध्वनित हुई ,"जिनको मिलना है, वो मिल के रहेंगे ...|"<br />
.... सामने खींसे निपोरता हुआ तन्गाप्पन खड़ा था ...|<br />
वो फ़ट्टे, हथौड़ी , कील , आरी सब गेट के पास ही छूट गए और तन्गाप्पन को लेकर कौशल भैया बैठक में ले आये |<br />
तन्गाप्पन, जो कि मिलने के बाद से हँस रहा था , गेट पार करके, दस कदम चल कर, पांच सीढ़ियाँ चढ़ कर, चप्पल उतार कर बैठक में आने तक हँस ही रहा था |</div><div>उसकी बांछें अभी तक खिली हुई थी | दो मिनट और हँसने के बाद , तन्गाप्पन ने फिर पूछा ,"पंखा कहाँ है ?"<br />
"ये तो है | तेरे सामने | " कौशल भैया बोले |</div><div>तन्गाप्पन ने इधर उधर देखा | मैं समझ गया , वो क्या खोज रहा है | छलांग मारकर पेपर रखने वाली छोटी टेबल पर चढ़ गया, क्योंकि मेरा हाथ बिजली के बटन बोर्ड तक नहीं पहुँच सकता था | मैंने पंखे के प्लग वाला बटन दबाया | तन्गाप्पन मुस्कुराया और उसने पंखे क़ी घुंडी घुमाई | पंखा हवा फेंकने लगा | तन्गापन ने घूमते हुए पंख के सामने चेहरा किया , मानो दर्पण देख रहा हो | पंखे क़ी हवा अपने नारियल तेल चपड़े बालों पर महसूस क़ी और बोला ,"कौशल, हवा तो अच्छा मारती है यार | पर खड खड़ जादा करते हैं | मैं ठिक करेगा इसको | और क्या तकलीफ है ?"</div><div>पंखा अपने आप करीब एक सौ अस्सी अंश घूमता था और शून्य , नव्वे और एक सौ अस्सी अंश पर थोड़ी थोड़ी देर रुकता था, ताकि सब को हवा मिल सके | अगर उसे एक ही दिशा में स्थिर रख कर घुमाना हो तो पीछे के गुमड़े में उभरी टोंटी खींच दो | वह एक जगह ठहर जाता था | अब समस्या यह थी क़ि आजकल वह पूरी ताकत लगाकर घूमने की कोशिश तो करता था , पर घूम नहीं पाता था |</div><div>कौशल भैया ने गुमड़े का खोल खोलकर अन्दर झाँका और करीब आधा पाव धूल भी निकाली पर समस्या ज्यों की त्यों रही | <br />
तन्गाप्पन ने चमड़े का, हरे रंग का बैग खोला | महीन पेंचकस और पतली नोक वाला प्लायर निकाला और भिड़ गया |</div><div>"और क्या क्या ठीक करना सिखा रहे हैं ?" कौशल भैया ने पूछा |<br />
"अभी तो पंखा सीख रहा हूँ | पक्का होने पर रेडियो ..... तोडूंगा , नहीं, खोलूँगा ....|"<br />
"रेडियो मुश्किल है थोडा ... | है न ? "<br />
"कुछ मुश्किल नहीं | एक बार बिजली का झटका लगा कि गाना चालू ...|"<br />
"और खुद को झटका लगा तो खेल ख़तम ...|"<br />
तन्गाप्पन दाँत दिखाकर हँसा , " अच्छा है | एलजेबरा नहीं, ट्रिगनोमेट्री नहीं | " फिर उसने कहा ," बगल के घर में तमाल .. तो रेडियो क़ी जरुरत नहीं ...| फ़ोकट में गाना मिलेगा ...|"</div><div>उस महीन से पेंचकस से तन्गाप्पन ने पता नहीं, क्या क्या खोल डाला | अब नारियल के बूच क़ी तरह अन्दर ढेर सारे तांबे के तार दिखने लगे | एक - एक पेंच तन्गाप्पन सम्हाल क़र कागज़ पर रख रहा था | अनायास ही उसने उसने एक मासूमियत भरा सवाल क़र डाला,"तमाल कैसा लड़का है ?"<br />
कौशल भैया तो जवाब खोजते रहे, तन्गाप्पन ने खुद अपने सवाल का जवाब दिया और लपेटते ही चले गया ,"बाल कटाते नहीं ....| कालर का बटन लगाते है ...|बेल्ट देखो चौड़ा बेल्ट .......| काला चश्मा....| हीरो बन गयी है न ?" फिर बत्तीसी दिखाकर बोला , "नहीं , नहीं | गाना अच्छा गाते है ,"तुम बिन खाऊं कहाँ ?" ... अब तो गिटार बी बजाते है ..| "</div><div>इधर कौशल भैया चुप बैठे सुन रहे थे और उसका रिकार्ड चालू था ,"गाना तो गाते है, पर क्या है यार - कभी भी गाते है | रात दिन .... कभी भी ...|"</div><div>... आखिर तन्गाप्पन तमाल का ऐसा पडोसी था कि उनके घर की एक दीवार मिलती थी | इसलिए तमाल के गाने से प्रभावित हुए बिना रहा नहीं जा सकता था ...|</div><div>" एक दिन तो भाई (सदानंदन) को गुस्सा आ गया ...| गुस्से से बोला, किसी दिन छोकरे को पकड़ के पीटेगा ....| हिप्पी बन रहे है साला ...|"</div><div><br />
**********</div><div><br />
तमाल सेन के बाल बढ़ गए थे - लेकिन बेतरतीब नहीं थे | करीने से काढ़े गए थे | तमाल सेन ने रंगीन चश्मा पहनना शुरू कर दिया था | कॉलेज में जाने के पहले, बहुत पहले ही तमाल सेन ने फुल पेंट पहनना शुरू कर दिया था | तमाल सेन अब टेरीलीन और टेरीकॉट की बेहतरीन कमीजें पहनने लगा था | तमाल सेन ... अरे वो देखो रे, साइकिल के करियर पर , हाँ करियर पर बैठकर तमाल सेन कितने स्टाइल से साइकिल चला रहा है ...| पहले जब वो एक हाथ से हेंडल पकड़कर साइकिल चलाता था , तो गुनगुनाता था | अब वो दोनों हाथ छोड़कर साइकिल चलाता है , तो गाता है ," गीत गाता हूँ मैं ...|" या कभी मुन्ने का राजा चाचा पीछे सीट पर बैठ होता तो ,"हमारे सिवाय , तुम्हारे और कितने दीवाने हैं ..|" और राजा चाचा लड़की क़ी आवाज़ में आवाज़ मिलाते ,"कसम से किसी को नहीं मैं जानती ...|"</div><div>.... तमाल सेन का भाव ....|<br />
"तमाल को क्या हो गया है बे ?" कौशल और सप्पन बरामदे में सीढ़ियों के पास बैठे बतिया रहे थे |<br />
"कुछ नहीं | उसका भाव बढ़ गया है ..|" सप्पन हिकारत से बोला |<br />
परछी में मैं दरवाजे के ठीक बाज़ू में पीढ़े पर बैठकर, खाना खा रहा था | सप्पन की बात सुनकर मेरे मुँह से निकला ,"पहले चार आना था, अब आठ आना हो गया .....|"</div><div>सप्पन ठहाके लगाकर हँसा , " हा , हा, हा टुल्लू ...| हा.. हा.. हा... , पहले चार आना था अब आठ आना हो गया ....|"</div><div>जब तक मेरा खाना ख़तम होता , वे इधर - उधर की बातें करके जा चुके थे | मैं खिड़की के कांच पर बनी वो झोपड़ी की तस्वीर देखने लगा | ये तस्वीर कौशल भैया ने सूखते हुए ब्रुश को यु ही रगड़ कर बनाई थी | ... और उसके ऊपर तमाल ने बादल बनाने क़ी कोशिश क़ी थी | झोपड़ी को देखो तो तस्वीर पूरी थी, मगर अगर ऊपर देखो बादलों को देखो तो तो अधूरी लगती थी ....|तस्वीर अधूरी रह गयी थी क्योंकि ब्रुश का रंग सूख गया था ... ...|</div><div>मेरे कानों में आवाज़ गूंजी ,"बोला पकड़, बोला पकड़.... बोला टंगस्टन की तार ...|" साफ ज़ाहिर था कि दोस्तों का वह समूह जो उस दिन इसी जगह बैठा था , अब बिखरते जा रहा है | लेकिन क्यों ?</div><div></div><div>*********</div><div><br />
ऐसा नहीं था कि कौशल भैया के इंजीनियरिंग फितूरबाजी ने हमेशा कामयाबी के झंडे गाड़े हों ... | कभी कभार शहसवार मैदाने जंग में .....|</div><div>.... उस समय महिलाओं को काफी कुछ आता था | </div><div>ठण्ड के दिन .... | स्वेटर ना पहनो तो सहमत | स्वेटर पहनो तो भी शामत ....|</div><div>"टुल्लू इधर आ ...|" </div><div>कभी गिरीश की माँ , गुप्ता आंटी तो कभी मोटी शर्मा आंटी या कभी कोई और आंटी .....| वे स्वेटर पकड़कर खींचते , डिजाइन देखते फिर पूछते ,"किसने बनाया है ? शशि ने ? तेरी माँ ने ? "</div><div>ठण्ड शुरू होते ही क्या घरेलू महिलाएं, क्या शिक्षिकाएं - क्या लड़कियां क्या बुढिया - सब के हाथ में ऊन का गोला और स्वेटर बुनने की सिलाइयां नज़र आती |किसी के हाथ में दो, किसी के हाथ में तीन और कोई कोई चार सिलाइयो का उपयोग करते दिखाई देते | काफी धीरज का काम होता वो | कई बार काफी कुछ बुन लेने के बाद पता चलता कि एक फंदा गलत पड़ गया है | फिर तो उस बिंदु तक क़ी सारी बुनाई उधेड़ दी जाती | लड़कियां खेलते रहती, "एक सिलाई , दो सिलाई तीसरा बोले लेफ्ट राईट ... " आदि आदि |</div><div>कई बार माँ बबलू के लिए स्वेटर बुनना शुरू करती और वह जाड़ा ख़तम होते तक पूरा नहीं हो पाता | फिर वह कुछ दिन अलमारी क़ी शोभा बढ़ता और अगले साल वो ढीला ढला स्वेटर मुझे पहनना पड़ता क्योंकि बबलू क़ी उंचाई बढ़ जाती और स्वेटर छोटा पड़ जाता | </div><div>कौशल भैया को मैंने हमेशा हलके हरे रंग का, आधी बांह का स्वेटर पहने देखा | </div><div>स्वेटर क़ी सिलाई ही अकेली सिलाई नहीं थी | लोग कुरुशिये क़ी सिलाई लेकर जब तब कुरुशिये क़ी डिजाइन बनाते रहते थे | कभी टेबल क्लाथ में तो कभी बच्चों क़ी कमीज पर | और कुछ नहीं मिला तो रुमाल पर ही कारीगरी दिखा देते | वो भी कोई आसान काम नहीं था | ट्रेस पेपर पर पहले पेन्सिल से डिजाइन बनाओ , फिर कार्बन लगाकर उसे कपडे में छापो | फिर अलग अलग नंबर क़ी सिलाई से अलग लग जगह कढाई करो |</div><div>इसके आलावा सबके घर में सिलाई मशीन थी | छोटा , मुन्ना , सोगा - सब के घर हाथ वाली सिलाई मशीन थी | मैं मन्त्र मुग्ध होकर देखता ,"खड़ .. खड ... खड ....| क्या जल्दी कपड़ा सिल जाता था | </div><div>मेरे घर सिलाई मशीन क्यों नहीं है ?</div><div>पता नहीं | लगता है, माँ को मशीन में कभी भी तनिक भी दिलचस्पी नहीं रही | पर होनी तो चाहिए सिलाई मशीन ....| </div><div>एक दिन भगवान ने मेरी सुन ही ली और जब मैं सड़क पर चक्का चला रहा था तो एक वें मेरे सामने आकर रुकी | इससे पहले क़ि मैं जान बचाने के लिए भाग खडा होता और कहीं छिप जाता , ड्राइवर फुर्ती से उतरा , "ऐ लड़के , इधर आ |"</div><div>उसने मुझे कागज़ का परचा थमाया |<br />
"ये घर कहाँ पर है ?"<br />
ये तो मेरा ही घर था ....| पुर्जे पर लिखा था ,"१० ब /२२/ २"<br />
थोड़े ही देर में वह सामान मेरे घर पर उतारा जा रहा था ....|<br />
लेकिन इतना बड़ा डब्बा / हाथ क़ी मशीन तो छोटी होती है ....|</div><div>और पता चला , वो हाथ वाली नहीं , पाँव वाली सिलाई मशीन थी | वैसी , जैसे मैंने दर्जियों के पास सेक्टर २ के बाज़ार में देखी थी |<br />
जब तक मैं सड़क पर ढिंढोरा पीटने गया , कौशल भैया ने मशीन से तौबा - तौबा बुलवा ली ...|<br />
डिब्बे को चाकू से काटा गया और उसके अन्दर से दुधिया रंग की पांव वाली मशीन लिकली |<br />
दो बातों से मैं एक तरफ खुश हुआ तो दूसरी तरफ उदास भी | पहली बात - ये हाथ नहीं , पांव से चलने वाली मशीन थी, जो किसी के घर में नहीं थी | दूसरी बात, सबके घर में काले रंग की मशीन थी | ये दूध की तरह उजली | अगर हाथी काले होते हैं तो ये ऐरावत था !<br />
बस, मेरे दिल के बैठ जाने का कारण भी यही ही था | मुझे मालूम था कि जहाँ लोगों को पता चला , वहां बहस छिड़ जाएगी कि हाथ की मशीन बेहतर हा या पाँव की | चूँकि सबके घर में हाथ की मशीन थी, मुझे किसी से भी कोई सहायता मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी | फिर, सबके सब बोलेंगे कि मशीन का रंग काला होता है और काला ही होना चाहिए |<br />
मशीन के साथ उषा मशीन का एक तकनीकी आदमी भी था | उसने ये बताने क़ी कोशिश क़ी कि मशीन में कहाँ धागा डालना है , कैसे खोलना है ,क्या करना है | उन्होंने कौशल भैया के धैर्य क़ी<br />
<br />
परीक्षा ले डाली |कौशल भैया का उतावलेपन पर अब तक लगाया गया अंकुश छूटा जा रहा था |<br />
"ये सब बुकलेट में लिखा है न ?"<br />
" हाँ सर लिखा तो है |"<br />
"तो ठीक है | हम लोग पढ़ लेंगे |"<br />
उस तकनीशियन ने पानी मांग ही लिया | फिर पानी पीते-पीते उसने कागज़ पर नंबर लिखा और कुशल भैया को पकड़ा दिया ,"सर , ये दुकान का नंबर है | अगर जरुरत पड़े तो फोन कर लेना |"<br />
सड़क पर एक ही तो फोन था - शर्मा आंटी के घर | दूसरा अगर कोई फोन हमें मालूम था तो वो बाबूजी का फोन , जो कॉलेज में था | तात्पर्य यह कि उसे फोन करने क़ी सम्भावना नगण्य थी | अभी ट्रक के जाने क़ी धुल बैठी भी नहीं थी कि कौशल भैया पिल पड़े | कपड़ा भी नहीं, मेज पर पड़े मोटे कागज़ का टुकड़ा उठाया और 'खटर्र .... खट खट खट ...... चालू हो गए | थोड़ी देर में मशीन ने भी जवाब दे दिया और कगज सिलने के बजाय धागे गुत्थम गुत्था हो गए ....| माँ और शशि दीदी सिर्फ देख रहे थे - एक मूक दर्शक बन कर | पर जब मशीन ने आगे बढ़ने से साफ़ इनकार कर दिया तो मान के मुंह से निकला ,"हो गयी ,' नाऊ सियानी ' ( नौसिखियापन ) ? "<br />
अब कौशल भैया धागों क़ी गुत्थियाँ सुलझाने में लग गए | वो गुत्थियाँ , जो और उलझती ही गयी | पता नहीं, धागे और कहाँ कहाँ से निकल रहे थे | ना केवल ऊपर से, बल्कि नीचे से भी ....|<br />
अब ट्रक भी इतने दूर जा चुका था कि पीछे भागकर वापिस बुलाना नामुमकिन था | माँ ने मुझे दौड़ाया,"जा तो बेटा , मुन्ना क़ी माँ या गुप्तानी को बुला ला |"<br />
माँ को इन थोनोन पर ज्यादा भरोसा था | और जिनके पास मशीन थी - सोगा क़ी माँ से तो माँ वैसे ही खार खाती थी | छोटे क़ी माँ पर भी उतना भरोसा नहीं था |<br />
माँ ने कहा था "या" लेकिन वह हुआ "और" .... और थोड़ी ही देर में दोनों माएँ एक साथ हाज़िर हो गयी |<br />
"तुम्हें क्या मालूम है मशीन के बारे में बेटा ?" गुप्त आंटी ने बड़े प्यार से पूछा |<br />
अरे, सुई तो टूट गयी है ...|" मुन्ना क़ी माँ ने घोषणा कर दी | <br />
और भी तो सुई दी होगी ना ? दराज में देखो |"<br />
दराज से ब्लेड के डिब्बे के जितना बड़ा एक सफ़ेद , पतला सा डिब्बा था | इतना चमकदार था क़ि मेरी आँखें चुंधिया गयी | अन्दर खांचों में तीन सुइयां थी|<br />
"बबीन केस खोलो |" मुन्ने क़ी माँ ने आदेश दिया |<br />
मशीन को एक अक्ष पर टेढ़ा किया गया | अन्दर के सारे कल पुर्जे साफ़ दिखाई देने लगे |<br />
सच मानो तो मशीन चलाना कोई मुश्किल काम नहीं था | सिर्फ आधा घंटा लगा और कौशल के साथ साथ शशि ने भी उन दोनों से मशीन चलाना सीख लिया | मैंने भी सीख लिया , फर्क सिर्फ इतना था कि मैं चोरी छिपे , जब कोई आस पास ना हो, मशीन के पैदल पर पांव मार लिया करता था |और तब मेरी ठुड्डी मशीन के बोर्ड तक पहुँचती थी |</div><div>************</div><div><br />
कोई यंत्र बिगड़ा हो और कौशल भैया हाथ न लगाएं ?<br />
घर में एक कैमरा था , जो लकड़ी की अलमारी में एक कोने में पड़ा रहता था | बड़ा था, भारी भी था | मैंने बड़ों को उसका शटर खोलते देखा था और अन्दर फिर झांक कर भी देखा | जैसे बिस्कुट के बड़े डब्बे से ऊपर का कवर खोलते हैं, वैसे ही खुलता था | अन्दर के चमकदार दर्पण में सामने का दृश्य दिखता था | एक बार में बारह फोटो खिंची जा सकती थी | कुछ कुछ रील में सोलह भी | <br />
व्यास जब कलकत्ता की ट्रेनिंग से वापिस आये तो एक कैमरा भी साथ लेते आये | उन्होंने कई अच्छी फोटो भी खिची | माँ की , नल में पानी भरते हुए टेढ़ी फोटो सबको काफी पसंद आई | बाद में मेरी और बबलू की की बबा (दादाजी) के साथ घर के घेरे में फोटो खिंची जो आज भी किसी पुरानी अल्बम में दिख जाएगी |</div><div>"कुछ नहीं है इसमें |" एक दिन वो शशि दीदी को फोटोग्राफी के गुर बता रहे थे ," कुछ नहीं है इसमें | ये दर्पण में देखो , क्या दिख रहा है | सामने वाले से बोलो , न हिले | सांस रोको और बटन दबा दो | बस ...|"</div><div>अब घर का कैमरा यूँ ही बिना काम पड़ा रहे कौशल भैया को ये गवारा नहीं था | उन्होंने इसकी, उसकी, इधर की, उधर की फोटुएं खींच डाली | बारह की गिनती होती ही क्या है ? चाहो तो एक बार में ही सांस रोक कर पूरी रील ख़तम की जा सकती है | फिर जब उन्होंने रील कला स्टूडियो में धुलने के लिए दी और तीन दिन बाद गए तो उन्हें ४४० वोल्ट का झटका लगा |</div><div>"क्या ? एक भी फोटो नहीं आई ? एक भी नहीं ? ऐसा कैसे हो सकता है ? टुल्लू, बोलो, ऐसा कसे हो सकता है ?"</div><div>मुझे तो रील का प्लास्टिक का आधार ज्यादा पसंद आया था | काले रंग का, मानो दो चक्के आपस में जुड़े हों | इससे तो एक बैल गाड़ी बनाई जा सकती है | पहिया लुढ़काते हुए मैंने कहा ," आपको फोटो खींचते समय साँस रोकना था |"</div><div>"सांस रोकना था ...|" कौशल भैया बड़बड़ाये ," मैं भी जानता हूँ , सांस रोकना था | अरे भाई , आड़ी तिरछी, टेढ़ी मेढ़ी , कुछ तो फोटो आती | सब कुछ कोयले जैसा काला काला ... |"</div><div>"आप काला स्टूडियो में फोटो बनने मत दो | वो काला काला ही बनायेंगे |"</div><div>"अरे वो काला नहीं , कला है - कला |"</div><div>"कला ? कला क्या होता है ?"</div><div>कौशल भैया ने जवाब नहीं दिया , पर एरी बात उन्हें भी थोड़ी सी जँच गयी | हो सकता है, स्टूडियो वाले ने ही डेवलप करते समय फोटो बिगाड़ दी हो |</div><div>बाबूजी ने सुना ," क्या एक भी फोटो ठीक नहीं आई ? जर्मन कैमरा है | चार साल पहले ही खरीदा है | उस संयतो फोटो अच्छी आई थी ...| हो सकता है | कैमरे में कुछ गड़बड़ी हो | ज्यादा दिन तक उपयोग नहीं करने से कोई पुर्जा जम गया होगा | मैं देखता हूँ कोई मैकेनिक ...|"</div><div>काले अल्बम में माँ ने मुझे एक बार तस्वीरें दिखाई थी | बाबूजी की तस्वीरें शायद उस कैमरे से खिंची गयी थी | वे तस्वीरें तो ठीक क्या, काफी सुन्दर आई थी |</div><div>पर बाबूजी की बातों ने कारणों का एक नया ही पिटारा खोल दिया | मैकेनिक की क्या जरुरत है ? कौशल भैया इस निष्कर्ष पर पहुंचे | कैमरे में रखा ही क्या है ? कोई मशीन तो है नहीं | कोई घूमने वाली घिरनी या खासी मुश्किल दांते नहीं है | ना तो मैंने फ्लेश लाईट लगाई | वो तो ज्यों की त्यों अलमारी में पड़ी थी | वो तो अखबार के संवाददाताओं के लिए है, जो अँधेरे में फोटो खींचते हैं | मैंने तो दिन के उजाले में फोटो खिंची | और अन्दर है ही क्या ?<br />
उन्होंने कैमरे का अन्दर, बाहर - अच्छे से मुआयना किया | क्या पता रील घूमी न हो | मुझे खाली आधार लेकर उन्होंने ढिबरी घुमाकर देखा | जब 'कट' से आवाज़ आई , तो फिर बरन दबाकर देखा } आगे तो बढ़ी थी ये | हो सकता है, रौशनी फिल्म तक पहुंची ही ना हो | यानि की शटर खुला ही नहीं ? पर नहीं, कहली शटर उन्होंने दो तें बार दबाकर देखा ... | लगता तो है झटके से खु रहा है | हो सकता है, रौशनी ज्यादा पहुची हो | यानि शटर जल्दी बंद न होता हो | ये भी तो हो सकता है , कि रौशनी कहीं और से रील तक पहुँच रही हो ...| हाँ, ये सम्भावना भी थी ....| उन्होंने कैमरा खोलकर पूरी छान मरी | कपडे से साफ़ किया , इधर उषर फूंक मारी | अंत में ये निश्चय किया कि एक बार फिर कोशिश क़ी जाए | इस बार फोटो बनने 'कला स्टूडियो; हरगिज़ नहीं ... तौबा तौबा ...|<br />
गिनती एक बार फिर बारह तक पहुंची | एक बार फिर लोगों को मुस्कुराना पड़ा | एक बार फिर कागज के फूलों के गुलदस्ते से धूल झाड़ी गयी | </div><div>जब बारह फोटुएं खिंच गयी तो कौशल भैया से रहा नहीं गया | मामले क़ी तह तक पहुंचना जरुरी था |</div><div>बाबूजी के पास हरे रंग क़ी एक पेन्सिल टोर्च थी, जो गाँव जाने के समय काम आया करती थी | उसमें पेन्सिल जैसी अगर कोई बात थी, तो ये कि उसमें पेन्सिल सेल डालते थे | हालाँकि उसका आकार एक बिस्कुट जितना था |</div><div>"कोई अन्दर मत आना |" कौशल भैया पंखाखड (शयन कक्ष ) में घुसते हुए बोले |</div><div>अन्दर घुसकर उन्होंने चिटकिनी लगा दी | एकमात्र खिड़की भी बंद कर ली और परदे चढ़ा लिए |</div><div>यानि कि अन्दर घुप्प अन्धकार ? पता तो चले वो अन्दर क्या कर रहे हैं ?</div><div>चमड़े के कवर में सामान्य तौर पर लकड़ी की अलमारी में आराम फरमाता वह कैमरा अब एक अबूझ पहेली बन गया था | कौशल भैया का मानना था कि उसे ठीक कराने में ही काफी खर्चा आएगा और ठीक करेगा कौन ?</div><div>पंखाखड़ की चिटकनी लगाने के बाद उन्होंने एकमात्र खिड़की भी बंद कर ली और पर्दा चढ़ा लिया |जब दरवाजा अन्दर से बंद हो तब कौतुहल जगना स्वाभाविक था | सामान्य मानसिक प्रतिक्रिया है ये | बेबी ने दरवाजे के चारों तरफ एक एक हलकी सी झिर्री में आँख लगा कर देखा | उधर बबलू स्टूल पर चढ़कर खिड़की से वही कोशिश कर रहा था | बेबी ने धीरे से कहा ," कौशल भैया कम्बल के अन्दर घुस कर, अपने को पूरा कम्बल से ढँक कर अन्दर कुछ देख रहे हैं ....|"</div><div>कौशल भैया जब बाहर निकले, लोगों ने यही पूछा ," कुछ पता लगा ? फोटो ठीक आई है ना ? मैं कैसा दिख रहा हूँ ?"</div><div>कौशल भैया कुछ बोले नहीं - चित या पट ; आर या पार ; कुछ भी नहीं | फोटो फिर धुलने के लिए दी | इस बार 'कला स्टूडियो' को नहीं , सेक्टर ४ के दुसरे स्टूडियो को | मगर नतीजा ? वही ढाक के तीन पात |</div><div>कौशल भैया निराश जरुर हुए फिर भी आशा नहीं छोड़ी | लोग तीसरी बार भी मुस्कुराने को तैयार थे | मगर बाबूजी ने वीटो का इस्तेमाल करके सब उम्मीदों पर तुषारापात कर दिया ," जाने दो बेटा | पढ़ाई में मन लगाओ | मैट्रिक की परीक्षा है ...|"</div><div><br />
**************</div><div></div><div>खट, खट , खट ....|<br />
तालाब के किनारे कुल्हाड़ी की आवाज़ दूर -दूर तक गूंज रही थी | कुल्हड़ी की आवाज़ से ही लगता था कि वे पेशेवर लकडहारा नहीं थे ....|<br />
फिर उस सांवले चेहरे वाले ने अधकटी डाल में रस्सी फंसाई और फिर वह पेड़ से नीचे कूद पड़ा |<br />
नीचे एक लम्बा लड़का और दो और लड़के थे | चारों ने मिलकर रस्सी से उसे खींचना प्रारंभ किया, मगर डाल फिर भी नहीं टूटी |<br />
"और काटना पड़ेगा यार उस डाल को | " सांवले चेहरे वाले ने पसीना पोंछते हुए निराशा से कहा |<br />
"लगता है ,डाल सुखी नहीं है, जैसे दिख रही थी | अन्दर से हरी है |"<br />
"नहीं बे, कुल्हाड़ी क़ी धार ख़तम हो गयी है | धार पत्थर पर रगड़ने से काम नहीं चलेगा | मशीन से धार कराने सुपेला जाना पड़ेगा |"<br />
"तब तक कोई और सड़क वाला काट कर ले जाएगा |"<br />
"किसकी हिम्मत है बे ?" सांवले चेहरे वाले को तैश आ गया ....|</div><div><br />
.... सवाल ये है कि होली परीक्षा के ऐन पहले क्यों आती है ? </div><div>लेकिन क्या फर्क पड़ता है ?</div><div>सप्पन से पूछ लो | वो तो यह भी कह सकता है, कोई हो न हो , फर्क क्या पड़ता है ?</div><div>मसलन इस बार की होली की तैयारी में तमाल नहीं था | कम से कम अग्रिम पंक्ति से तो वह नदारद हो गया था | उसके साथ साथ राजा चाचा भी उतने सक्रिय नहीं थे | तो क्या हुआ? सप्पन ने मंजीत और अन्य लोगों को ज्यादा जिम्मेदारी सौंप दी | जिम्मेदारी क्या थी - हल्ला कर के घरों से चंदा जमा करना , चंदे के उस पैसे से लकड़ी टाल से कुछ लकड़ियाँ खरीदना और उतनी ही लकड़ियाँ चुराना | उन दिनों पेड़ों के काटने पर उतनी पाबन्दी नहीं थी , सो वे आवारा पेड़, झड झंखाड़ , इधर उधर , तालाब के किनारे, सड़क के पिछवाड़े या जिसका घर ख़ाली हुआ हो, उस घर से काट लिया करते थे | बल्कि ये काटा-पिटी कुछ दिनों से चलती थी, ताकि लकड़ियाँ समय पर सूख जाएँ | </div><div>उसके आलावा एक बहुत ही बड़ी जिम्मेदारी थी जो सप्पन ने खुद अपने सर पर ले रखी थी |</div><div><br />
************</div><div><br />
इक्कीस और बाइस सड़क के बीच के मैदान में एक उथला सा गड्ढा था | जब बारिश बहुत ज्यादा हो, तो वह एक डबरे का रूप ले लेता था , जहाँ मेंढक टर्राते नज़र आ जाते | वर्ना उसकी उपयोगिता सिर्फ होली के दिन ही पता चलती थी |</div><div>अभी वहां एक विशालकाय दानव खड़ा था | वो सूखी, अधसूखी लकड़ियाँ, जो इतने दिनों से म्हणत से काटी जा रही थी, वो लकड़ी ताल से कुछ खरीदी और कुछ हरे लकड़ियाँ, वो किसी के घेरे के सड़े गले लकड़ी के फट्टे , वो आम, अमरुद और जामुन के सूखे पत्ते , जिनका काम खुद जलकर उन मोती लकड़ियों को आग पकडाना होता था , उन सबको इकठ्ठा करके होली का रूप दे दिया गया था |चारों और झिल्ली कागज़ के बन्दनवार से उसे सजाया जरुर गया था | ऊपर - ऊपर कुछ साइकिल के कुछ टायर मुकुट की तरह लटके हुए थे | उन टायरों की भी अपनी ही भूमिका थी | आग धारण करके लम्बे समय तक जलते रहना और इस प्रक्रिया में उनकी ही सहायता से ही अधसूखी लकड़ियाँ आग पकड़ती थी |</div><div>इतनी देर से डालडा के कनस्तर पीटते पीटते हमारे हाथ दर्द करने लगे थे |</div><div>मगर इन्जार था तो किस बात का ?</div><div>इंतज़ार करते करते बड़े बूढ़े, जैसे दीपक के बब्बा तो उबासियाँ लेते घर चले गए थे |</div><div>गिरीश, अनिल और बड़े सुरेश के पिताजी (सदानंदन अंकल) एक तरफ खड़े होकर बात कर रहे थे | सालों साल, उनका होली का उत्साह कभी कम नहीं हुआ | वे बच्चे बन जाते थे | </div><div>तो आखिरकार वे अवतरित हुए , मंजीत, राजकुमार, विमल, राजा चाचा , तमाल और सप्पन - हाँ , तमाल और सप्पन - दो बंगाली दादा एक साथ | चाहे जितनी भी कडुवाहट क्यों न हो, होली का त्यौहार दुश्मनों को भी साथ मिला देता है - फिर उनमें तो थोडा बहुत ही मन मुटाव था |</div><div>"लगता है, लड़के पिक्चर देख कर आ रहे हैं |" अनिल के पिताजी धीरे से बोले ,"ठीक है | इतने दिनों से लकड़ी काट रहे थे ...| "</div><div>सप्पन ने होली के पास आकर ज़मीन पर हाथ टिका कर एक गुलाटी मारी | वो गुनगुना रहा था ,"तू हमारी थी , जान से प्यारी थी ...|"</div><div>"का बबुआ, होली काहे नहीं जला रहे हो ? " अनिल के पिताजी ने पूछा |</div><div>सप्पन खिसयानी हँसी हँसा ,"बस अंकल जी | आप में से पूजा कौन करेगा ?"</div><div>"हम तो पंडित नहीं हैं भाई|" अनिल के पिताजी बोले |</div><div>पूजा की थाली में जलते दिए को लेकर होली की परिक्रमा की गयी | हम लोग दम साधे देख रहे थे | फिर एक लम्बी सी डंडी में कपड़ा लपेटकर उसमें कनस्तर से सप्पन ने कुछ छिड़का | वातावरण में मिटटी के तेल की बदबू फ़ैल गयी | फिर उसने दिए के सामने वह डंडा रखा और 'भक्क' से आग लग गयी | </div><div>सप्पन का सांवला चेहरा उस आग में चमक रहा था | उसने होली का एक चक्कर लगाया और जलती हुई लकड़ी को होली की और उछाल दिया |<br />
देखते ही देखते होली तेजी से जलने लगी | हमारे थके हाथों में फिर से नयी शक्ति आ गयी .....|<br />
"होली है ....|" हम और जोर जोर से कनस्तर पटने लगे ....| <br />
"कौशल कहाँ है टुल्लू ?" तमाल ने मुझसे इतना ही पूछा |<br />
"पता नहीं | जब मैं आया था तब वो घर में नहीं था |"<br />
होली जलने के बाद भीड़ छंटने सी लगी | अंकल लोग विदा ले ही चुके थे | <br />
बबलू भैया भी अपने हम उम्र दोस्तों के साथ दूसरी जगहों की होली देखने निकल गए थे | अब केवल मैं और कुछ और छोटे लोग - मुन्ना , बबन, छोटा - हम लोग ही बचे थे |<br />
होली की आग थोड़ी धीमी होते ही अब आग बड़ों के लिए खेल बन गयी थी | वे जलती लकड़ी होली से निकल कर हवा में घुमाते हुए अलग अलग आकृतियाँ बना रहे थे | फिर लकड़ी को हवा में उछाल कर फिर पकड़ रहे थे | जब जलती हुई लकड़ियाँ चरमरा कर गिर पड़ी और होली की उंचाई कम और चौड़ाई ज्यादा हो गयी, तो बड़े लोगों को एक और खेल सूझा | अब वे आग में आर-पार कूदने लगे | इस पार से उस पार ...| सबसे पहले सप्पन तेजी से दौड़कर आया | होली के पास ठिठका , फिर रफ्तार और तेज करके छलांग लगा ही दी ....| देख देखी तमाल भी दौड़ कर आया , पर फुल पेंट का लिहाज कर ठिठक गया | बीस सड़क का कन्ना भी देख रहा था | उसे भी जोश आया , पर वो भी ठिठक गया | मंजीत ने जरुर अपनी लम्बी टांगों से छलांग लगा दी ...|<br />
आग कुछ कम होने लगी | अब गिने चुने लोग ही रह गए थे | <br />
अब तमाल और राजा भी घर चले गए | संजीवनी मुझे तीसरी बार बुलाने आई |<br />
"आग बुझ रही है बे ... |" मंजीत बोला | <br />
संकेत ... | क्या ये कोई संकेत था ?<br />
बाहर रहकर इतनी रात मैं ने शायद पहली बार देखी थी | फिर भी मेरा मन मुझे पीछे खींच रहा था | अकेले घर जाते जाते मैं मुड़ मुड़ कर पीछे देख रहा था |<br />
अछानक एक काला साया पीछे से आया ....| अँधेरे में वो राक्षस की तरह दिख रहा था ...| एक पल के लिए मेरी घिग्घी बंध गयी ....| लेकिन जब मैंने उसकी शक्तिशाली जांघों को देखा तो आवाज़ गूंजने लगी ,"कबड्डी, कबड्डी, कबड्डी ....|"<br />
.... और भला सप्पन को कौन नहीं पहचान सकेगा - चाहे कितना ही अँधेरा क्यों ना हो | सोगा के घर के पास पहुँच कर एक क्षण के लिए वह रुका | सप्पन ने उछल कर गेट को लात मारी | दो ही लात में लकड़ी का गेट चरमरा कर टूट गया | तुरंत उसने गेट हवा में उठाया और जैसे शेर शिकार को दांतों में दबा कर मांद की ओर भागता है, वह होली की ओर दौड़ पड़ा | उसने गेट होली में फेंक कर सिंहनाद किया ,"होली है ..."<br />
दूसरी और से मंजीत भी इक्कीस सड़क के कोने वाले घर से बाड़ी की लकड़ी उठाये आ रहा था | उसने भी बाड़ी की लकड़ी होली में फेंक कर हुंकार भरी ,"होली है ...|" मुझसे उनका तांडव नहीं देखा गया ....|<br />
इक्कीस और बाईस सड़क से इन दोनों लोगों ने चंदा नहीं दिया था | उन लकड़ियों से बुझती हुई होली को एक नया जीवन मिला और मैंने देखा , शोला भभक कर फिर आसमान क़ी ओर बढ़ चला ..... |</div><div></div><div>***********</div><div><br />
"होली है ... होली है ....|"</div><div>अगले दिन सब ओर रंग ओर गुलाल उड़ रहा था | सोगा के घर के चौखट से गेट ही गायब था - ऐसे जैसे जबड़े से एक दांत गायब हो जाए ...| रात की घटना कोई सपना नहीं थी | सोगा कहीं नहीं दिखाई दे रहा था | मुझे थोडा दुःख भी हो रहा था | हँसी के साथ गुस्सा भी आ रहा था | आने वाले वर्षों में मैंने देखा, ये तो होली का सामान्य सा अंग बन गया है |हर वर्ष कोई न कोई चंदा देने से इनकार करता था और उनका यही हश्र होता था | होली की हुडदंग में सब कुछ डूब जाता था |</div><div>और सप्पन ? मानो कुछ हुआ ही ना हो | वह हल्ला गुल्ला मचाता सड़क में हाज़िर हो गया | पहले उसने छोटे के भाई विजय को रंग दिया और फिर तमाल और राजा के साथ सड़क में ही रंगों की गंगा बहाने लगा |</div><div>"कौशल कहाँ है टुल्लू ? बुला उसको |" वो गुलाल की पुडिया उड़ाता बोला |</div><div>क्यों ? आखिर क्यों परीक्षा के ठीक पहले होली आती है |</div><div>बाकी सब वर्षों में तो सब ठीक था, पर ये तो मेट्रिक की परीक्षा थी |</div><div>"ठीक है | घंटे दो घंटे होली खेलकर आ जाना |" एक रात पहले बाबूजी ने हिदायत दी थी, "ज्यादा रंग और पानी से मत खेलना | इतना खेलो क़ि बीमार मत पडो |"</div><div>"हाँ बेटा | साल भर का त्यौहार है |" माँ ने कहा था |</div><div>पर भला कहीं होली का त्यौहार, एक बार घर के बाहर निकलो तो क्या घंटे दो घंटे में वापिस आ जाओगे ? क्या आप इतनी सावधानी बरत सकते हैं क़ि रंग और पाने से बच सकें ? वो तो जादूगर ही हो सकते हैं जो अंतर्ध्यान हो सकें, आने वाले रंग क़ी बौछार को हाथ के इशारे से मोड़ लें , रंग भरे गुब्बारे को हवा में ही जमा दें | और अगर बात रंग और गुलाल तक सीमित रहे तो भी कोई बात थी | कीचड, राख, गोबर, सिल्वर पेंट, डामर ....| ...... कौशल भैया ने निश्चय किया था, वे निकालेंगे जरुर , लेकिन तब, जब सब कुछ शांत हो जाए | पर नाते रिश्तेदारों का क्या करें ? वो तो आयेंगे ही | </div><div>सोगा तो घर से नहीं निकला | हम लोग आपस में खेले और खूब खेले | सप्पन को भी रंग से नहलाया | कोई आगे से रंग डालता कोई पीछे से | झल्ला कर वो छोटे सुरेश के पीछे दौड़ा , फिर चार कदम दौड़कर शांत हो गया | </div><div>सोगा तो नहीं, मगिंदर शाम को घर से निकला |</div><div>"मेरे पिताजी नाईट शिफ्ट में गए थे | नहीं तो पकड़ के पीटते उन लोग को | बदमाश | मेरे पिताजी पुलिस में रिपोर्ट करेंगे ....|</div><div><br />
***************</div><div><br />
मैट्रिक क़ी परीक्षाओं के ठीक पहले बाबाजी रिटायर हो गए | उन दिनों भिलाई में काम करने वाले हज़ारों कर्मचारियों क़ी तरह, बाबाजी ने कभी भिलाई में अपना घर बनाने क़ी कोशिश नहीं क़ी | कैसा शहर था | जब तक काम करो, एक घरोंदा रहता था, जिसमें पूरा परिवार सर छिपाता था | जिस दिन रिटायर हुए, वह घर अचानक बेगाना हो जाता था और झोली डंडा उठाकर जहाँ से आये , वहीँ चले जाओ |</div><div>"बाबा जी रिटायर हो गए ... | बाबाजी रिटायर ... क्या ? बाबा जी रिटायर हो गए ... |" आग की तरह खबर छोटे से नगर में फ़ैल गयी | </div><div>लगता था, मानो सारा शहर बाबा जी वो विदाई देने भिलाई स्टेशन पर एकत्र हो गया था | क्या शिक्षक, क्या विद्यार्थी , क्या अभिभावक जिसने भी सुना अवाक् रह गया |बाबाजी पसेंजर पकड़ कर बिलासपुर जायेंगे और वहां से इलाहबाद के लिए गाडी पकड़ लेंगे | उद्दंड छात्र , सामान्य छात्र, पढ़ाकू छात्र ... सब की आँखें नम थी | शायद ऐसा कोई भी छात्र नहीं था, जिसे बाबाजी ने अनुशासित नहीं किया हो | किसी को छड़ी से, किसी को बातों से, किसी को सिर्फ आँखों से | वहां उपस्थित हरेक छात्र का नाम उन्हें मालूम था | उस समय छात्र जरुर उनकी उपस्थिति से थर्रा जाते थे , लेकिन वे जानते थे, बाबाजी ये उनकी ही भलाई के लिए कर रहे थे | </div><div>आखिर धुआं उड़ाते हुए पैसेंजर स्टेशन पर आई | लोगों ने उनका सामान चढाने में मदद क़ी |गाड़ी ने सिटी बजाई और बच्चों के खेल क़ी तरह छक, भक करते हुए चल दी | बाबाजी दरवाजे पर खड़े हाथ हिलाते हुए लोगों के अभिवादा का जवाब दे रहे थे | स्टेशन पर खड़े लोग तब तक हाथ हिलाते रहे , जब तक बाबाजी आँखों से ओझल ना हो गए |</div><div>बाबाजी कोई नेता , मंत्री, अफसर या प्रख्यात शक्सियत नहीं थे | भिलाई से जाने के बाद वे कहाँ रहे , शायद कोई नहीं जान आया | लेकिन उनके जाने से एक युग का अंत हो गया | अपने प्राचार्य काल में उन्होंने भिलाई विद्यालय को एक पहचान दी | उनके जाने के बाद भी, बरसों लोग उनको याद करते रहे | भिलाई विद्यालय के मानो एक एक दीवार के पत्थर पर उनके हस्ताक्षर थे |</div><div><br />
***************</div><div></div><div>जैसे जैसे परीक्षा की तारीख नज़दीक पहुंचाते जा रही थी, बाबूजी की चिंता के थर्मामीटर का पारा भी बढ़ते जा रहा था | कई बार उठकर देखते कि आँगन की कुटिया की लाईट जल रही है |<br />
" कौशल ? बेटा, अभी तक पढ़ रहे हो ?"<br />
" हाँ बाबूजी | बस , आधा घंटा और |"<br />
"सो जाओ बेटा , बीमार पड जाओगे | क्या फायदा - देर रात तक पढने का ? सुबह जल्दी उठ कर पढ़ लेना ...|"</div><div>आखिर चिलचिलाती धूप में मेट्रिक या हायर सेकेंडरी की परीक्षाएं प्रारंभ हुई | कौशल भैया सबह सुबह परीक्षा देने गए | लग रहा था, मानो जंग में जा रहे हों | बाबूजी माँ के ऊपर झल्लाए ,"नाश्ता तैयार क्यों नहीं है अब तक ? बिना कुछ खाए ये मैट्रिक की परीक्षा देने जायेगा ?"</div><div>माँ को कोई अंदेशा नहीं था कि ये कैसी परीक्षा है और बाकी सब परीक्षाओं से अलग क्यों है ? आने वाले दिनों में उन्हें धीरे धीरे सब मालूम चलते गया | बाबूजी क़ी झुंझलाहट और गुस्सा रोज रहस्य का कोई न कोई पर्दा उठा देती |</div><div>"ये स्कूल क़ी आखिरी परीक्षा है ....| "<br />
"...परीक्षा में अच्छे नंबर से पास होना बहुत जरुरी है | वर्ना 'अच्छे' कॉलेज में दाखिला नहीं मिलेगा |"<br />
"...पेपर बाहर के लोग जांचेंगे , भिलाई विद्यालय वाले नहीं |"<br />
"रिजल्ट पेपर में छपेगा, हाँ, घर में आने वाले अखबार में |"</div><div>अब माँ भी चिंतित हो गयी .....|</div><div>परीक्षा दस बजे ख़तम हो गयी थी | बाबूजी कॉलेज गए जरुर थे, पर जल्दी वापिस आ गए | बार -बार घडी देखते ," कौशल अभी तक नहीं आया ?"</div><div>आखिकार कौशल भैया आये | चुपचाप जूते उतारने लगे | बाबूजी ने मुरझाया चेहरा देखकर पूछा ,"कैसे हुआ पेपर ?"<br />
कौशल भैया को जवाब देने में हुए विलम्ब और चेहरे के हाव भाव देखते हुए बाबूजी ने दूसरा सवाल दाग दिया ,"मुश्किल था ?"<br />
"हाँ|" कौशल भैया ने जवाब दिया और बाबूजी की हाथ घडी, जो बाबूजी ने परीक्षा पर जाने के पहले उन्हें पहनाई थी, उतारकर देने लगे |<br />
"इसे अपने पास रखो बेटा |" बाबूजी बोले ,"अभी तो और भी पेपर होंगे | आज का पेपर दिखाओ |"<br />
और फिर पेपर हाथ में लेकर बाबूजी ने सवालों की झड़ी लगा दी | सवाल तो वही थे, जो पेपर पर छपे थे , बस बाबूजी के पूछने का अंदाज़ अलग था | पता नहीं, भौतिक विज्ञान बाबूजी को कितना आता था, लेकिन सही उत्तर की उन्हें जरुरत ही नहीं थी, ये पता करने के लिए क़ि पेपर कैसे हुआ |<br />
"...त्वरण का मान निकालो ...| ये आंकिक प्रश्न बनाया ?"<br />
"हाँ | नहीं ...| मतलब कोशिश की |"<br />
"क्या मतलब ? बना बना , नहीं बना नहीं बना ....|"<br />
"आखिर में पहुँच कर थोडा हडबडा गया और ....|"<br />
"और इसी में काफी समय निकल गया | क्यों ?"<br />
"हाँ |" कौशल भैया ने मरी आवाज़ में कहा |</div><div>बाबूजी के सब्र का बाँध टूट गया |<br />
"कितनी बार तुम्हें समझाया बेटा | अरे, कोई प्रश्न नहीं बनता तो वहीँ अटक मत जाओ ...|छोडो उसे और आगे बढ़ो ...|"<br />
"मैंने सोचा कि अभी बन जायेगा |"<br />
" अरे वो कभी नहीं बनेगा | छोड़कर आगे बढ़ो |" बाबूजी गरजे ,"और कुछ बनाया कि नहीं ?"<br />
"वो तीन 'कारण बताओ' बनाया |"<br />
पर पांच बनाना था न ? देखो,तुम ही देखो, लिखा हुआ है -'कोई पांच ' |" <br />
"बाकी दो ठीक से मालूम नहीं था |"<br />
"तो फिर साल भर क्या पढ़ते रहे ? खाक ? जब मालूम नहीं था तो कुछ तो लिखते | एक नंबर नहीं तो कम से कम आधा नंबर तो मिलता | मेट्रिक क़ी परीक्षा है बेटा , कोई हँसी खेल नहीं | एक -एक नंबर दांत से पकड़ना पड़ता है |"<br />
फिर वे अंकों का जोड़ लगाने लगे ,"इसमें कितना मिलेगा ? तीन ? इसमें पाँच - पाँच मिल जायेगा न ? पाँच और तीन आठ ...|"<br />
"पाँच मुश्किल है बाबूजी |" <br />
"तो क्या लिखा है तुमने ? लो, तुम ही बताओ कितना मिलेगा ....|"<br />
सारे अंक जोड़कर बाबूजी ने गहरी सांस ली | थोड़ी देर तक सोचते रहे, फिर बोले ,"अगला पेपर कब है ?"<br />
"कल सुबह | भौतिक द्वितीय |" <br />
"ठीक है, जाओ , खाना खाओ और कल के पेपर की तैयारी करो |"<br />
खाना परोसते परोसते माँ क़ी भी आँखें भर आई | </div><div>पर यह कोई एक दिन क़ी बात नहीं थी | एक के बाद दूसरा, दूसरे के बाद तीसरा .... हर पेपर के बाद कौशल भैया क़ी पेशी होती - लताड़, झिडकियां मिलती - अंक जोड़े जाते और बाबूजी का रक्तचाप और बढ़ जाता |<br />
"अगला प्रश्न किया या नहीं ? या वो भी छोड़ दिया ?"<br />
"नहीं बना बाबूजी |"<br />
"उसके अगले वाला ? किया ?"<br />
"उसका 'अथवा ' किया था |"<br />
"चलो | 'अथवा ' किया ...आठ नंबर और ....|"</div><div>हे भगवान् | कब होंगी ये परीक्षाएं ख़तम ? बाबूजी को मैंने कभी इतने गुस्से में नहीं देखा था |<br />
मैंने कौशल भैया से ही पूछ लिया ,"कब होंगी परीक्षाएं खतम ?"<br />
और लो | उन्होंने मुझे ही घुड़क दिया ,"तुझे क्या करना है ? जाके खेल !"<br />
सच बात है | मुझे क्या करना था भला ? </div><div>रमजान के तीस दिनों के बाद ईद आती है ....| नव रात्रि के उपवास के बाद विजय दशमी आती है | हड्डियाँ कंपा देने वाली ठण्ड के बाद वसंत ऋतू आती है ....| <br />
........फिर अचानक क्या हुआ - मैदान में पतंगों की संख्या धीरे धीरे बढ़ने लगी |<br />
और एक दिन मैदान में अचानक ढेरों पतंग उड़ने लगे ....| जिसे देखो वही चरखी और मंजा धागा लेकर मैदान में पतंग उड़ाने जा रहा था ..... | देर शाम तक ढील, दांव, पेंच चलते रहा | <br />
सबकी परीक्षाएं जो ख़तम हो गयी थी .....|</div><div></div><div>******************</div><div><br />
मैं मानो नींद में चल रहा था | आँख खुली, तो धुंधल धुंधला सा नज़र आया | अरे वाह, घरके खम्भे कैसे नक्काशीदार थे| जैसे चंदामामा की कहानियों में महल के खम्भे होते हैं |</div><div>"आ गए तुम लोग भी ?" एक बूढी औरत , जिसकी कमर करीब नव्वे अंश से झुकी हुई थी , एक मुस्कान लेकर बाहर आई," आ गए तुम लोग भी ?"</div><div>"भी ?' अब मेरी नींद कुछ खुली | हाँ, अब कुछ याद आया | नवागांव से बाबूजी, बबलू और कौशल भैया स्कूटर से आये थे और मैं , माँ , बेबी और संजीवनी बैलगाड़ी से | मई का वह चिलचिलाता महीना था | मुझे इतना याद है, बैलगाड़ी के ऊपर में एक तालपत्री लगा धी गयी थी | पीछे पुआल का ढेर रखा था | उसके ऊपर एक टाट पट्टी की दरी सी बिछा दी गयी थी , फिर भी मुझे पुआल गड रहे थे | बैलगाड़ी बहुत धीरे धीरे लयबद्ध ढंग से चल रही थी और गाड़ीवान कभी बैलों की पूंछ मरोड़ता, तो कभी लाठी से हलके से मारता और कहता ," हो रे , हो रे |" जब वह ऐसा करता, बैल तेजी से भागते और फिर थके क़दमों से चलने लगते | वो भी थक गए थे, क्योंकि उन्हें नवागांव से पिपरहट्टा के दो चक्कर लगाने पड़े थे | मैं भी थक गया था, क्योंकि हम लोग बहुत सुबह भिलाई से चले थे | पर बैल तो बैल होते हैं | उन्हें परिश्रम की और चलने की आदत होती है | मेरे लिए ये पहला अनुभव जो था | फिर बैलगाड़ी की लयबद्ध चर्रम चूँ और और गाड़ीवान के "हो रे हो रे" के बीच मुझे नींद आ गयी |</div><div>अभी आँख खुली भी नहीं थी | माँ ने सबसे पहले दाई (दादी) के पांव छुए, फिर बेबी ने | उनकी देखा देखी मैंने और और संजीवनी ने भी दादी के पांव छुए |</div><div>अब धीरे धीरे याद आया , दिन कैसे शुरू हुआ |</div><div>सुबह सुबह बाबूजी ने मुझे , माँ , कौशल और बबलू को बस में चढ़ाया और हिदायत दी कि रायपुर में विवेकानंद आश्रम में उतर जाएँ और फिर चलकर सतीश विनोद के घर चले जाएँ और वहीँ रुकें | फिर वे खुद बेबी और संजीवनी को स्कूटर में लेकर रायपुर आये | शशि को घर में ही छोड़ा | कोई खास वजह नहीं थी | सिर्फ इतना ही कि जब तक माँ गाँव में है और बाबूजी कॉलेज जाएँ तो कोई तो हो जो खाना बनाए | अगले दिन सुबह वे आने वाले थे | शशि को अकेले 'डर' ना लगे, जो कभी भी, किसी को भी अकेले रहने पर लग सकता था - पर मामा लोग तो थे ही |</div><div>तो जब हम लोग रायपुर में इंतज़ार कर रहे थे तो बाबूजी बेबी और संजीवनी को लेकर आये और फिर दो फेरों में उन्हें नवागांव छोड़ा | फिर मुझे और कौशल भैया को लेकर वे हमें नवागांव की ओर ले चले | बाबूजी ने अपने सर में एक भीगा तौलिया बाँधा और मेरे सर में एक भीगा रुमाल बाँध दिया |</div><div>"तुम भी अपना सर ढँक लो |" उन्होंने कौशल भैया से कहा |<br />
"रुमाल नहीं है बाबूजी |"<br />
"कैसे लड़के हो ? रुमाल रखना चाहिए न ? अच्छा ये लो |" उन्होंने अपना तौलिया उन्हें दे दिया |<br />
रास्ते में वे हमें , मुख्यतः कौशल भैया को कुछ कुछ बताते जा रहे थे | कुछ भूगोल और कुछ इतिहास |<br />
"हम अब ये मंदिर हसौद पहुँच गए | ये हमारे गाँव से सबसे पास का रेलवे स्टेशन है | "<br />
"यहीं से एक लोकल भिलाई जाती है न ?" कौशल भैया ने पूछा |<br />
"हाँ, पहले मैं बैलगाड़ी से यहाँ तक आता था, फिर रेल पकड़कर भिलाई जाता था | बस का तो कोई ठिकाना नहीं | रेल कभी, कितनी भी लेट क्यों न हो, आती तो है |"</div><div>दूर तक वीरान खेत थे | मई के गर्मी के महीने में भला और क्या मिलेगा |<br />
दूर सड़क पर एक तालाब सा दिख रहा था |</div><div>बाबूजी वो तालाब है क्या आगे ?" मैंने पूछा |<br />
"नहीं बेटा, वो मृगा मरीचिका है |"<br />
"मृग मरीचिका ?"<br />
"हाँ | गर्मी के दिन में, ऐसा ही होता है | दूर कहीं तालाब दिखाई देता है, जबकि वहीँ कुछ भी नहीं होता | जंगल में, पानी क़ी तलाश के लिए प्यासे हिरण उस छाया का पीछा करते हैं | "<br />
"च च च ... बेचारे हिरण |" मैंने कहा |</div><div>सूखे वीरान खेतों में कोई गतिविधि नहीं थी | कहीं कहीं से सियार क़ी हुआं हुआं सुनाई पड़ जाती थी |</div><div>अचानक हरियाली सी दिखने लगी | हरे-भरे खेत ... जहाँ सब्जियां उगी थी | पानी के फव्वारे से चल रहे थे |<br />
"ये कृषि महा विद्यालय है | " बाबूजी बोले | एक बड़ा सा बोर्ड साफ़ नज़र आने लगा ,"रविशंकर कृषि महा विद्यालय |"<br />
"ये रविशंकर विश्व विद्यालय से अलग है ?" कौशल भैया ने पूछा |</div><div>"हाँ , ये अपने आप में एक स्वायत महाविद्यालय है | है तो जबलपुर विश्वविद्यालय के अंतर्गत , पर वो सिवाय परीक्षा लेने के कुछ नहीं करते | भारत में गिने चुने कृषि महाविद्यालय हैं | यहाँ खेती से सम्बंधित पढ़ाई और अनुसन्धान होता है | उपज कैसे बढ़ाई जाए | नए बीजो क़ी खोज, नए कृषि उपकरण ...|"</div><div>बाबूजी कुछ बोल रहे थे | मुझे कुछ पल्ले पड़ रहा था, कुछ नहीं | कौशल भैया जरुर " हाँ हूँ" कर रहे थे |</div><div>जब नवा गाँव पहुंचे तो माँ , बेबी , संजीवनी , बेबी और बबलू सड़क के किनारे बरगद के पेड़ के नीचे बैठे इंतज़ार कर रहे थे | सड़क के किनारे एक रेस्टारेंट था, जिसका मालिक आशा भरी निगाहों से कभी कभार उनकी ओर देख लेता था | पर माँ के रहते ये नामुमकिन था कि बच्चे होटल के समोसे या बालूशाही के लिए जिद करें | माँ को बाहर का खाना सख्त नापसंद था |</div><div>"अरे, बैलगाड़ी अभी तक नहीं आई ?" बाबूजी ने पूछा |<br />
"आई थी |" माँ ने बताया , "गाडी वाला बैलों को पानी पिलाने गया है |"<br />
तभी गाडी वाला भी आ गया | अब बबलू , कौशल और बाबूजी स्कूटर में बैठे और हम सब लोग बैलगाड़ी में बैठकर गाँव क़ी ओर चले ....|</div><div>बस, इतनी सी छोटी सी पृष्ठभूमि थी ...|</div><div><br />
*********</div><div><br />
सब थे , लेकिंग कौशल भैया कहाँ थे ?</div><div>ये सवाल मैंने नहीं , बबा (दादाजी) ने शाम को आकर पूछा |</div><div>"कहीं गया होगा , अपने संगवारियों (दोस्तों) से मिलने |" बाबूजी बोले |बचपन के कई साल कौशल भैया ने यहीं दादाजी के साथ गाँव में बिताये थे | बचपन के वो दोस्त - कोई कहीं खेतिहर मजदूर बन गया तो कोई बाप से अलग होकर दूध बेचता था | अधिकतर क़ी शादी तो शादी , बच्चे भी हो गए थे | पर थे तो वे बचपन के ही दोस्त ...|</div><div>बेबी ने जब दादाजी के पाँव छुए तो वे बोले, "लता, तू इतनी बड़ी हो गयी ?"</div><div>बेबी का नाम लता है, मुझे तो किसी ने बताया ही नहीं था | गाँव में तो सब लोग उसे लता ही कहते थे |</div><div>बाहर आँगन में ही चारपाई ड़ाल दी गयी | हम लोग वहीँ पसर गए | बाबूजी बाहर दालान में किसी से बातें कर रहे थे | तब बबलू ने एक राज की बात बताई ," कौशल भैया ने आज स्कूटर चलाना सीख लिया |"</div><div>"क्या ?" <br />
अच्छा इसलिए आज बाबूजी ने मुझे स्कूटर के बदले बैलगाड़ी से आने को कहा और बबलू को स्कूटर से लेकर आये | कहीं कौशल हैया स्कूटर पटक देते तो ?<br />
"हाँ | वो रास्ते में स्कूटर चलाकर लाये | बड़ा मज़ा आया | वो गिअर बदलना ही भूल जाते थे | स्कूटर चढ़ाई में 'धुन धुन करते चढ़ा आर सुईं से नीचे उतरा | फिर अगली चढ़ाई में 'घूं-घूं' कर के चढ़ा और 'सुईं' से उतरा | एक ही गियर में ....|"<br />
"स्कूटर गिरा तो नहीं ?"<br />
"नहीं, पहली बार घोड़े जैसे उछला जरुर | कौशल भैया ने पहले गियर में झटके से एक्सीलेटर छोड़ दिया था ....|"</div><div></div><div>*************</div><div></div><div>सूरज रोज सुबह निकलता था और शाम को डूब जाता था| पतंग उड़ाने के बाद मैदान में लड़के देर शाम तक बैठे आशंकाओं में झूलते रहते थे ....| <br />
पता नहीं अगली सुबह क्या होगा ? कई दिनों की उहापोह के बाद एक दिन ..........|<br />
........ परिणाम एक दिन आखिर निकल ही गया | <br />
.... और उस दिन कौशल भैया सुबह से ही गायब हो गए |<br />
.... कोई वजह नहीं , कोई कारण नहीं ...|<br />
जब हायर सेकंडरी का रिजल्ट पेपर में छपता था , उस दिन प्रायः और कोई समाचार नहीं छपता था पेपर में |<br />
केवल नंबर ही नंबर ....... रोल नंबर ... | अंक ही अंक ...|<br />
और उसके बावजूद एक किसी कोने में लिखा रहता था ,"परिणाम प्रकाशित करने में पूरी सावधानी बरती गयी है | फिर भी किसी भी त्रुटि के लिए प्रकाशक या संपादक जिम्मेदार नहीं है |"<br />
वैसी गलतियाँ अक्सर हो जाती थी | जैसा कि अगले वर्ष छोटे के बड़े भाई विजय के साथ हुआ | <br />
हुआ यह कि उनका नंबर अख़बार से ही गायब था | एक नहीं , तीन हिंदी और एक अंगरेजी के अख़बार से | संयोग से उन दिनों उतने ही अख़बार छत्तीसगढ़ से निकलते थे | यानी कि शक संदेह की सम्भावना नगण्य थी | अब विजय के पास कोई विकल्प बचा ही नहीं था | वो अपना दुखड़ा लेकर विद्यालय के प्राचार्य सहाय सर के पास गए |<br />
बाबाजी के विपरीत सहाय सर एक नंबर के आलसी थे | उन्होंने तो कुछ सुनने से ही इंकार कर दिया |<br />
"बाहर ही खड़े रहो | दिखता नहीं , मैं काम कर रहा हूँ |जब बुलाऊं तो अन्दर आना |"<br />
थोड़ी देर बाद बाहर खड़े विजय से चपरासी ने कहा ,"साहब बुला रहे हैं |"<br />
"क्या बात है ?"<br />
"सर ,मेरा रोल नम्बर पेपर में नहीं है |"<br />
"तो तुम फेल हो गए हो |" वे शांति से बोले |<br />
"पर सर , मेरे पपर तो उतने खराब नहीं हुए थे |"<br />
"हो सकता है , जांचने वाले बेवकूफ हों |" वे फिर शांति से बोले ,"तुम्हारी किस्मत खराब थी |"<br />
"सर , प्लीज़ |"<br />
"मैं क्या कर सकता हूँ ?" वे रुखाई से बोले |<br />
"सर , स्कूल में भी तो लिस्ट आती है |उसमें एक बार चेक कर सकते हैं आप ?"<br />
स्कूलों में उन दिनों लिस्ट आया करती थी |सही सर ने लम्बी लिस्ट निकाली चश्मा चढ़ाया और पूछा ,"बोलो , क्या नम्बर है तुम्हारा ?"<br />
नंबर सुनने के बाद वे शांति से बोले ,"तुम्हारा नंबर ही गायब है | तुम लड़के तो ऐसे नहीं लगते , पर हो जाता है \ तुम ही देख लो ...|"<br />
फिर उन्हें कुछ और नंबर आगे पीछे दिखाई दिए ,"नंबर एक बार फिर से बताना ...|अरे , तुम्हारा नंबर तो यहाँ है | मेरिट होल्डर में |तुम मेरिट में आये हो ...| सॉरी | आई ऍम सॉरी | चपरासी, दो कप चाय लाना जरा ...| पता नहीं, ये अखबार वाले ... धेले भर की अकल नहीं है | "<br />
.... तो ये घटना हुई ठीक एक साल बाद ....|</div><div>पर कौशल भैया का परिणाम तो पानी की तरह साफ़ था | एक अखबार गलत हो सकते हैं, पर तीनों के तीनों अखबार अगर उन्हें प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण घोषित करें तो फिर शक की गुंजाइश भी कहाँ रहती है |<br />
माँ ने राहत की सांस ली | बाबूजी ने दो गिलास ठंडा पानी पिया | पर कौशल ? उसका कोई पता ही नहीं था |</div><div>बाबूजी बड़े चिंतित से घूम रहे थे | दिन में दो बार और कोंलेज से वापिस आये | पूछा , "कौशल आया ? नहीं आया ? कहाँ चले गया ?कहाँ चले गया ? क्या बात है ? फर्स्ट डिविजन तो आया है |"</div><div> बाबूजी एक किलो पेडा ले आये थे और घर में जो भी आता था, उसे पेश कर रहे थे | इसके आलावा वे एक एक पाव के कुछ छोटे डिब्बे भी लाये थे | जो कतिपय लोगों को देना था , जैसे कि उनके गणित के ट्यूशन के शिक्षक को | </div><div>अब जबकि परिणाम निकल चुका था | उन्हें उससे कोई आवश्यक और महत्वपूर्ण बातें करनी थी | पर कौशल भैया जो गायब हुए तो गायब ही रहे |<br />
बाबूजी के सीने से एक बड़ा बोझ तो उतर गया था , पर वह यक्ष प्रश्न ? वह तो मुंह बाए खड़ा था |</div><div>कौशल भैया तो पास हो गए | मैं सोच रहा था, तमाल , राजा और सप्पन का क्या हुआ ? माँ को चिंता थी तो केवल सप्पन की | <br />
अक्सर माँ के कान में बात पड़ते रहती थी ...| "सप्पन चिट मार रहा है |" ये शिकायत भी क़ी थी चुगलखोर लड़कियों ने | बाहर के इनविजिलेटर ने सप्पन क़ी तलाशी ली | उनके हाथ कुछ नहीं लगा | हँसते मुस्कुराते सप्पन को देखकर और लड़कियों क़ी शिकायत से उनका गुस्सा और भड़का | उसे लेकर वे बाथरूम में गए और उसकी पेंट तक उतरवा ली | फिर भी कुछ हाथ नहीं लगा |</div><div>लेकिन फिर ये आये दिन का किस्सा बन गया | गाहे बगाहे उसकी चेकिंग होने लगी .....|</div><div>माँ का दिल बैठा हुआ था | क्या वो पास हो गया ? कौशल तो था नहीं, और कौन बता सकता था उसके बारे में ?</div><div>एक हँसते हुए शैतान क़ी तरह सप्पन खुद ही अवतरित हुआ |<br />
"आंटी कौशल है ?" उसने गेट के बाहर से ही पूछा |<br />
"नहीं है | सुबह से पता नहीं कहाँ गया है |"<br />
"अब फर्स्ट डिविजन आया तो घूमेगा ही आंटी |" सप्पन हँसा | फिर रंग बिरंगे झोले से मिठाई की एक पुडिया माँ को देते हुए बोला," आंटी , मैं भी पास हो गया - थर्ड डिविजन से |"</div><div></div><div>****************</div><div></div><div> और तमाल घर से भाग गया !</div><div>पीछे छोड़ गया ढेरों सवाल .....<br />
कहाँ गया ?<br />
क्यों गया ?<br />
कैसे गया ?<br />
आखिर क्यों ?</div><div>जाने वालों का दर्द तो होता है .... | मैट्रिक की परीक्षा में फ़ैल हो गया तमाल .... | क्या हो गया या या यूँ कहा जाए कि क्या से क्या हो गया एक होनहार किशोर को ? कुछ ही वर्ष पहले तो वो पढ़ाकू और मेधावी लड़कों में गिना जाता था | फिर उसका पतन इतनी तेजी से हुआ कि वह परीक्षा में ही फेल हो गया ? कैसे बहक गया वो मार्ग से ? किसने उसे बहकाया ? क्या सेन साहब को थोड़ी भी भनक नहीं थी कि उनके साहबजादे किस मार्ग पर निकल चुके हैं ?</div><div>फेल होने के बाद तमाल सबसे अलग-थलग हो गया | 'भाव बढ़ने ' क़ी वजह से दोस्तों ने पहले ही कन्नी काटना शुरू कर दिया था | अंतिम दिनों तक तमाल का सड़क इक्कीस और बाइस में शायद ही कोई दोस्त बचा हो | वो दोस्त, जो आंसू पोंछे | वो दोस्त , जो कंधे पर हाथ रखकर कहे , तमाल तुझे क्या हो गया भाई ? तू अब वापिस आ जा | अपने को पहचान | एक ही साल तो गया है ना ? ज़िन्दगी बहुत बड़ी है भाई | चल उठ और धूल झाड़कर खड़े हो जा ...| यहाँ तक क़ि उसका बचा खुचा करीबी दोस्त, मुन्ना का राजा चाचा ... वो भी अब उतना करीब नहीं रहा | राजेंद्र का क्या हुआ - यह बात भी बहुत दिनों तक गुप्त ही रही | लेकिन उसने वह तो कदम नहीं उठाया जो तमाल ने उठाया ....|</div><div>तमाल को ठेस तो लगी थी | ...."रिजल्ट निकलने के बाद वो घंटों रेत में बैठे रहता था | " अनिल ने दबे शब्दों में खुलासा किया | अनिल के घर के पास दो ट्रक रेत डाली गयी थी | क्यों ? वो कहानी फिर कभी ...| हम भी अक्सर वहां खेलते थे |... "रेत में बैठे-बैठे , हाथ से ना जाने क्या क्या लकीरें खीचते रहता था ... | आकाश क़ी और देखकर ना जाने क्या क्या सोचते रहता था ... |" </div><div>क्या कारण था ? क्यों किया उसने ये सब ?<br />
कारण यही था क़ि तमाल बहुमुखी प्रतिभा का धनी था | <br />
,"तमाल तुम कहीं भी हो , जल्दी घर लौट आओ बेटा | तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा | अगर पैसे क़ी जरुरत हो तो चिट्ठी लिखो | तुम्हारी माँ बीमार है ... |"<br />
घर में तीन अखबार आते थे - 'युगधर्म', 'देशबंधु' और 'नवभारत' | उनके दुसरे और तीसरे पृष्ठ पर 'गुमशुदा की तलाश' के विज्ञान आते थे, तस्वीरों सहित, इन्हीं लाइनों पर | पर हम प्रतिदिन बेसब्री से देखते रहे, तमाल सेन का विज्ञापन कभी नहीं आया | क्या सेन साहब इतने टूट चुके थे कि वे उदासीन हो गए ?<br />
पहले पहल सेन साहब ने कई टेम्पो वालों से बात क़ी - क्या वो उनकी टेम्पो में बैठकर गया था ? भला टेम्पो वालों को क्या याद रहता है ? पर एक तार क़ी तलाश थी | जिससे गुत्थी कुछ सुलझे | <br />
फिर उन्हें अंदेशा हो गया था कि तमाल कहाँ गया है |</div><div>राजेश खन्ना के फ़िल्मी दुनिया में उदय ने लाखों किशोरों को प्रेरित किया - खानदान से, रिश्तेदारी से कुछ नहीं होता , प्रतिभा के साथ लगन हो तो कोई भी रुपहले परदे पर छा सकता है | तमाल कोई अकेला उदहारण नहीं था | लाखों किशोर और नवयुवक भटक गए थे |<br />
"मेरे अंकल हैं बम्बई में |" बबन की बहन सुषमा अक्सर डींग हांका करती थी ,"उन्होंने एक फिल्म में टैक्सी ड्राइवर का रोल अदा किया है | फिल्म का नाम है 'सीमा' | नहीं, वो पुरानी 'सीमा' नहीं, नयी 'सीमा' | वो अभी तक पूरी नहीं बनी है ...|"<br />
कई बार हम लोग बबन से पूछते ,"अबे 'सीमा' कब आने वाली है ? तू अपने अंकल को पहचान लेगा ?"<br />
.... और कारण यही था क़ि बम्बई क़ी डगर बहुत ही आसान थी | दुर्ग स्टेशन से एक नहीं , दो - दो द्रुतगामी रेल गाड़ियाँ सीधे बम्बई तक पहुंचा सकती थी | जरुरत थी तो केवल एक निश्चय क़ी | <br />
तो क्या वह वाकई बम्बई गया था ? बड़े बुजुर्गों का अंदाज़ तो यही था | सेन साहब ने अपने परिचितों से पश्चिम बंगाल में पूछताछ कराई | जो गाड़ियाँ बम्बई जाती थी, लौटते हुए वे कलकत्ता तक भी जाती थी | अपने परिचितों को कलकत्ता में तार किया, पत्र लिखे | जब कोई जवाब नहीं मिला तो उन्होंने सुनिश्चित कर लिया |<br />
और बम्बई ? वो तो एक माया नगरी थी - एक भूल भुलैया ....| वहाँ सेन अंकल का कोई भी नहीं था | तमाल क़ी माँ घंटों गेट पकडे घर के बाहर कड़ी रहती थी | डाकिये का इंतज़ार करते रहती थी | अनिल ने दबी ज़बान में यह भी बताया क़ि उसकी माँ अनिल की माँ को कह रही थी क़ि इतने पैसे भी नहीं ले के गया क़ि टिकट खरीदने के बाद ज्यादा दिन तक खा सके | दुर्ग से बम्बई तक बिना टिकट के जाना लगभग असंभव था | डेढ़ दिन लगते थे - कितने टिकट चैकरों को गच्चा देंगे आप ?</div><div>दिन सप्ताह में, सप्ताह महीनों में बदलते गए | कई महीने गुजर गए | तमाल का कुछ पता नहीं चला |</div><div><br />
****************</div><div><br />
क्या था वह प्रश्न जो बार बार वेताल क़ी तरह बाबूजी के कंधे पर सवार हो जाता था .... |</div><div>कुछ ही बरस पहले व्यास को इंजीनियरिंग कोल्लेज में दाखिला मिला था | फूफा ने खेत बेचकर शिक्षण शुल्क जमा किया था | सबको काफी ख़ुशी हुई थी कि अपने ही परिवार का एक कोई लड़का बिरादरी में पहला इंजिनियर बनने जा रहा है | व्यास क़ी बुद्धि काफी तीक्ष्ण थी और वे काफी मेहनती भी थे | फिर भी, जब वे कोलेज गए तो सारी क़ी सारी पढ़ाई अंग्रेजी में थी | प्राध्यापक हिंदी बोलते ही नहीं थे | ऐसा लगा, मानो शिक्षण का माध्यम ही अवरुद्ध हो गया है | उस घुटन भरे माहौल से व्यास एक दिन बोरिया बिस्तर बाँधकर वापिस आ गए | बाबूजी ने काफी समझाया | फूफा ने भी काफी कोशिश की लेकिन व्यास के मन में जो खौफ समाया था, वह दूर नहीं हुआ | वो वापिस नहीं गए | फीस के सारे पैसे मिटटी में मिल गए | सबके सपने टूट गए | वायस ने दुर्ग के पालीटेक्निक में दाखिला ले लिया और उनका करियर बरसों पीछे चला गया |<br />
बाबूजी के मन में यही चिंता समाई हुई थी | कहीं व्यास का दुखद इतिहास कौशल की भी मानसिकता को प्रभावित न करे | जब कौशल का स्वाभाविक रुझान इंजीनियरिंग की और था तो एक भाषा उसके मार्ग को अवरुद्ध न कर दे | परिवार में वह खौफ कहीं अभिशाप न बन जाए | उनकी सारी की सारी चिंता का केंद्र यही था |</div><div>**********<br />
सबकी आँखें कौशल भैया पर ही जमी थी | लक्ष्मी नारायण शर्मा का सांवला चेहरा तटस्थ था | वातावरण इतना गंभीर था कि मैं भी घबरा गया | वहां रहूँ या भाग जाऊं ? चाय तो कोई देख भी नहीं रहा | मैं ट्रे पकड़कर वहीँ खड़े रहा और बाबूजी और लक्ष्मी नारायण शर्मा के साथ साथ कौशल भैया के जवाब क़ी प्रतीक्षा करते रहा |</div><div>थोड़ी चुप्पी के बाद कौशल भैया बोले."बाबूजी, में अपने गाँव के पास वाले कृषि महाविद्यालय में दाखिला लेना चाहता हूँ ....|"</div><div>इस जवाब ने सबको अवाक् के दिया |लक्ष्मी नारायण ने उदासीन भाव से सर झटका , " नहीं बेटे | ऐसा नहीं कहते | ऐसा सोचते क्यों हो ? खेती तो तुम्हारे पुरखे करते ही आये हैं | तुम्हें कुछ आगे सोचना है | भिलाई इस्पात का कारखाना देख रहे हो ? कितनी भारी भरकम मशीनें हैं ? देश को इंजीनियर चाहिए |"</div><div>कौशल भैया खामोश बैठे रहे | मोटे चश्मे के पीछे से रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से केमिकल इंजीनियरिंग में स्नातक और भिलाई इस्पात संयंत्र के वरिष्ठ अभियंता लक्ष्मी नारायण शर्मा की ऑंखें चमक रही थी ,"पता नहीं , लोग क्यों इंजीनियरिंग कॉलेज को खौफ समझते हैं | मुझे तो कुछ भी नहीं लगा | कुछ भी नहीं ... | मेहनत करो और पास हो जाओ | फिर आराम से नौकरी करो |और ...." उन्होने आगे कहा, "सिविल ले न गा (भाई) | सबसे आसान ब्रांच है | हँसते खेलते पास हो जाओ और फिर पैसा ही पैसा ....| ....पैसा ही पैसा ....|"</div><div>अब सबने चाय ले ली | मेरे वहां खड़े रहने का औचित्य भी ख़तम हो गया | और लक्ष्मी नारायण शर्मा ने दिशा तो निर्धारित कर ही दी थी |</div><div>अब हाफ पेंट के दिन ख़तम हो गए | सिंग टेलर ने कौशल भैया के लिए कुछ नयी फुलपेंट सिली | बाबूजी ने उनके लिए एक नयी हाथ घडी खरीदी | और एक दिन, मान के पांव छूकर, तुलसी के पौधे को प्रणाम कर और सामने क़ी खिड़की पर उस दिन बनाए गए झोपड़ी के चित्र को देखते हुए, कौशल भैया जीवन क़ी राहों पर निकल पड़े, फिर कभी न वापिस आने के लिए |</div><div>उनकी कुटिया में ढेर सारे कुछ पूर्ण और कुछ अपूर्ण यंत्र पड़े थे ... | आवर्धक लेंस से बनाया छोटा बाइस्कोप और किसी फिल्म क़ी रील से काटे और सफ़ेद मोटे कागज़ में चिपकाए हीरो हिरोइन क़ी तस्वीरें जो बाइस्कोप के परदे पर दिखती थी , अधूरा बना पेरिस्कोप , जिसके लिए काटे गए दर्पण थोड़े छोटे कट गए थे , उनके जाने के बाद भी उत्तर दिशा दिखाने वाला कुतुबनुमा, बाबाजी का 'सप्रेम भेंट - टूटा हुआ तापमापी , विद्युत् चुम्बक बनाने क़ी कोशिश में लोहे क़ी कील में लिपटे ताम्बे के तार ..... सब वहीँ वैसे ही पड़े थे ....|<br />
<br />
पर तमाल क़ी तरह वे त्रासदी नहीं, एक लीक छोड़कर गए थे ....|</div><div></div><div>**************************</div><div><div>स्थान - भिलाई </div><div>काल - १९७०-७१ </div></div><div></div><div></div><div></div></div>Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-46825009882894184042011-09-03T16:38:00.014-07:002023-01-07T06:55:10.858-08:00हप्पू की बम-बम ४<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">मेरे पास लट्टू आ ही गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
आप ने ठीक अनुमान लगाया | श्यामलाल मामा के सिवाय भला और कौन लट्टू ला सकते थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
माँ ने कहा था , 'चंद्राकर किराना स्टोर' से लट्टू लेने के लिए | मेरी इच्छा थी, सरदार क़ी दुकान से लट्टू लेने क़ी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> जब मैंने श्यामलाल मामा को इच्छा बताई तो उन्होंने पूछा ,"क्यों ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्योंकि उसकी दुकान में बोरा भर के लट्टू है | मैंने देखा है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बोरा भर के हो या दो बोरा - मुझे तो एक ही लट्टू मिलना था | श्यामलाल मामा ने साइकिल वहीँ मोड़ ली | पर सरदार क़ी दुकान बंद थी | दूसरा विकल्प यही था कि जानकी , यानी कि मोटे चश्मे वाले सिन्धी क़ी दुकान "राजेश ट्रेडर्स " से लट्टू ख़रीदा जाए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />" नहीं, वो ठग्गू है | " मैंने कहा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अरे मैं हूँ न | " श्यामलाल मामा बोले |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वो दुकान भी बंद थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"क्या बात है ? आज सब दुकानें बंद है | " उन्होंने दुकान पर लगी तख्ती पढ़ी ,"मंगलवार बंद ? आज कौन सा दिन है ? मंगलवार ? टुल्लू - अरे आज मंगलवार है | आज तो दुकान बंद रहेगी | चल, कल आयेंगे |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मेरा दिल बैठ गया | मैं छोटा जरुर था, पर 'कल' का मतलब जानता था | दूर दूर तक सारी दुकानों क़ी बत्तियाँ बंद थी | कहीं रौशनी क़ी हलकी किरण भी नहीं दिख रही थी | अरे हाँ, उधर रौशनी थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
'गोयल किराना स्टोर' वाला दुकानदार रिक्शे से कुछ सामान उतरवा रहा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बनियान पायजामा पहने , हलकी सी गंजी खोपड़ी, उसने भी पहले मना कर दिया ,"आज दुकान बंद है | कल आइये |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
हम दुकान के बाहर आ रहे थे कि उसने पूछा ,"वैसे क्या चाहिए ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हम कल आ जायेंगे | " श्यामलाल मामा बोले ," कोई जरुरी सामान नहीं ...|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
:लट्टू" उनकी बात काटकर मैं बोला "बस एक लट्टू |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
गोयल क़ी दुकान वाले ने मुस्कुरा कर हमें अन्दर बुला लिया | एक दराज खोली और आठ दस लट्टू सामने टेबल पर फेंक दिये ,"बस, मेरे पास इतने ही लट्टू हैं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वाह , क्या प्यारे प्यारे लट्टू थे | मन तो कर रहा था , सारे लट्टू बटोर लूँ |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />तो जो लट्टू मैंने लिया वह गहरे हरे रंग का था | बीच में हलके गुलाबी रंग क़ी एक पट्टी थी | और जहाँ पर उपरी सतह एक ढलान में बदलती थी, वहां पीले रंग क़ी एक पट्टी थी | लगे हाथों उसके साथ में आधे मीटर क़ी एक लट्टू की रस्सी भी ले ली |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
घर में बबलू भैया ने सबसे पहले उसे चलाकर देखा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
एक बार नहीं, दो बार नहीं, पूरे पांच बार ...|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"बैलेंस ठीक है |" उन्होंने घोषणा कर दी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"परछी" ही मेरा अभ्यास प्रांगण ' बन गया | सबसे पहले कौशल भैया ने लट्टू में रस्सी लपेटना सिखाया | ढीली ढाली रस्सी बाँधने से काम नहीं चलेगा | हर लपेट को खीँच कर बाँधना पड़ता है | 'भुसक' बाँधने से काम नहीं चलेगा |<br />
<br />
*****************</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सिल-बट्टे के सिल से रस्सी का एक छोर कुचल-कुचल कर "घोड़े क़ी पूंछ' निकाली गयी और वहां एक गाँठ बाँध दी गयी | रस्सी के दूसरे छोर पर दो बड़ी गांठ बाँधी गयी | जब कोका कोला या गोल्ड स्पोट का ढक्कन मिल जाये तो उसे वहाँ फँसा देना था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
जब रस्सी बंध जाए तो उसे झटके से खींचना पड़ता है जितने जल्दी खिंचोगे , उतना ही अच्छा लट्टू चलेगा | यह पहला गुरुमंत्र था | </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
यत्र-तत्र कतिपय कुछ और गुरुमन्त्रों के साथ मैंने लट्टू चलाना सीखना शुरू किया | एकलव्य क़ी तरह 'लड़की छाप' चलाने का सतत अभ्यास करता रहा | आखिर एक-डेढ़ घंटे के बाद पहली बार लट्टू पूरे दो चक्कर घुमा | मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"चल गया ?" कौशल भैया आँगन की कुटिया से आकर बोले ," चल , अभी लोगों को खाना खाने दे | फिर बाद में चलाते रहना |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मुझे होश आया कि 'परछी' न केवल मेरा मेरा अभ्यास प्रांगण था, अपितु भोजन कक्ष भी था | शशि दीदी ने पहले वहां झाड़ू लगाया और फिर पीढ़े रख दिए ताकि लोग बैठकर खाना खा सकें |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
खाना खाने के बाद मेरा अभ्यास सतत जारी था | अब लट्टू करीब हर बार चलने लगा था | कई बार कम , कई बार ज्यादा | माँ और शशि दीदी ने बर्तन माँज लिए थे और अब लोग सोने की तैयारी कर रहे थे | आखिर वे कब तक इंतज़ार करते | उन्हें बताना पड़ा कि परछी मेरा अभ्यास प्रांगण ही नहीं, बल्कि, कुछ मेहमानों के शयन का स्थल भी है |<br />
<br />
*****************<br />
<br />
घर के अन्दर चिकने फर्श पर लट्टू चलाना एक बात है और मुरम की उबड़ खाबड़ सड़क पर ? वह एक दूसरा ही अनुभव था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैं परछी के फर्श पर तो अच्छे से लड़की छाप चला लेता था, किन्तु बाहर उबड़ खाबड़ सड़क पर ? ऐसा लग रहा था, मानो लट्टू की नोक सड़क छूते ही बिदक जाती थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"टुल्लू , मैं बताऊँ ?" मुझे पता ही नहीं था क़ि सोगा अपने घर के गेट से देख रहा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
क्या ये मेरा भ्रम था ? हाँ , मेरे कान बज रहे थे शायद | या कमाल हो गया - क्योंकि सोगा मेरी ओर ही देख रहा था |<br />
चलो, किसी ने तो बात क़ी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैंने लट्टू और रस्सी दोनों उसके हवाले कर दी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />रस्सी बांधकर उसने कहा ,"जोर से फेंक और जोर से खींच |" उसने वही किया और लट्टू चल पड़ा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैंने रस्सी बाधी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"जोर से फेंकूं ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ | और रस्सी जोर से खीच |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैंने इतने जोर से लट्टू फेंका कि वह सड़क पार करके मुन्ना की नाली में जा धुसा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
धोखा - मेरी नज़रों का धोखा था ये | नहीं, मैंने नम आँखों से देखा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
लट्टू उठाकर मुझे देने वाला और कोई नहीं मुन्ना था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
लेकिन उसने लट्टू वैसे नहीं दिया | पहले उलट पुलट कर देखा परखा ,"एक भी गूच नहीं, एक भी खरोंच नहीं ....|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"नया लट्टू है |" मैंने गर्व से कहा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मुन्ना ने दूसरा गुरुमंत्र दिया ,"अबे, जोर से लट्टू फेंकने के पहले रस्सी कस के बाँध | लुंज पुंज रस्सी से काम नहीं चलेगा | ताकत लगा के बाँध ....|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
क्या ये चमत्कार नहीं था ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैं तो उनके पुकार की कितने दिनों से प्रतीक्षा कर रहा था | एक निर्जीव लट्टू ने उनको ही पुकार कर बुला लिया और टूटे धागे फिर से जोड़ दिए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बचपन की दोस्ती के धागे ना जाने कितनी बार टूटे और कितनी बार जुड़े | कभी कोई गाँठ ही नहीं पड़ी ...|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सामने की दो उंगलियाँ फैलाये छोटा सुरेश खड़ा था | मैंने भी अपनी दो उंगलियाँ निकाली |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उसकी दो उंगुलियों से अपनी दो उंगलियाँ छुवाई और कहा ,"मिट्ठी"|<br />
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जब लट्टू चलाना , हप्पू करना और हाथ में लेना सीख ही लिया था तो बचा क्या था ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वो हम सब की ज़िन्दगी का पहला 'हप्पू की बम बम' था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"देखो भाई | जो हारेगा , उसकी लट्टू में गूच मारे जायेंगे | रोना मत |" बबन ने निर्धारित किया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"दो दो गूच ...|" सोगा बोला |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
लेकिन खेल हो ही नहीं पाया | किसी कारणवश नहीं, एक ही, केवल एक ही, एकमात्र कारण से |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मैं भी खेलूँगा लट्टू |"मुसीबत की जड़ शशांक कहाँ से टपक गया ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तेरा लट्टू कहाँ है ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
ये है न ?" उसके हाथ में प्लास्टिक का कोई फ्रेम था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ये क्या है ? " सब अचम्भे में पड गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मेरा टॉप ... मेरा लट्टू ...|" वो बोला |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"चलाकर दिखा ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उसने जेब से प्लास्टिक का ही लट्टू टिकाने का ढांचा निकाला | प्लास्टिक की एक दांतेदार डंडी निकाली | वो लट्टू ऐसा आकर्षक था कि सब देखते रहे | उसने लट्टू को फ्रेम में रखा, दांतेदार डंडी फंसकर जोर से खींचा | लट्टू अपने आप फ्रेम से उड़ा , थोड़ी देर हवा में लहराया और तेजी से ज़मीन में घूमने लगा | क्या लट्टू था ? ना तो कोई अभ्यास , न किसी साधना की जरुरत |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
हम सब देखते रह गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अब सब अपना खेल छोड़कर उसके पीछे पड़ गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"दिखा , एक बार दिखा | मुझे चलाने दे ... |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैं थोड़ी दूर खड़ा लोगों को उसकी चिरौरी करते देखता रहा | मुझे तो अपना रस्सी वाला, लकड़ी का लट्टू ही अच्छा लगा | किसी ने उससे नहीं पूछा , किसी ने नहीं, कि उसका 'हप्पू' वो कैसे लेगा ! उस लट्टू को छूकर देखने और चलाने के लालच में बबन ये भी बताना भूल गया कि हारने वाले की लट्टू में दो दो गूच मारे जायेंगे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"दिखा..., मुझे दिखा...., शशांक मुझे चलाने दे .....| नहीं मैं पहले बोला था ...| तेरे बाद मेरा नंबर ....|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मेरे कदम मुझे घर की ओर ले जा रहे थे, पर वे आवाजें मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रही थी |<br />
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उन दिनों कभी-कभी लाइट चले जाया करती थी | हर दिन नहीं, आये दिन नहीं, कभी कभी, बिना बताये या पूर्व सूचना के | जब भी ऐसा होता तो मुझे सोगा के घर की ओर दौड़ाया जाता ,"जा पूछकर आ | उनके घर लाइट है क्या ?" अगर रात का समय होता तो यह काम बिना पूछे हो जाता | बाहर निकल कर देख लो | अगर दिन होता , तो पूछना पड़ता | तब सोगा अपने घर की लाइट जला कर देखता | कई बार ऐसा होता कि मैं जब पूछने उसके घर भागकर जा रहा होता तो वह वही सवाल पूछने मेरे घर क़ी ओर आ रहा होता | फिर दोनों के मुंह से एक ही सवाल बरबस फूट पड़ता,"तेरे घर में लाइट है ?" अगर दोनों के घर में लाइट नहीं होती तो हमारा अगला पडाव मुन्ना का घर होता | फिर अगला कदम होता , बबलू या कौशल पूछताछ दफ्तर में जाकर रिपोर्ट लिखाते और हम इलेक्ट्रिशियन के आने क़ी प्रतीक्षा करते |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
लेकिन कभी कभी ऐसा भी होता, जब पूरे सड़क या पूरे सेक्टर या जहाँ तक निगाह जाए, दूर दूर तक लाइट चले जाती थी और हमें तुरंत पता लग जाता था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
इस तरह जैसे ही लाइट जाती, सड़क में हल्ला मच जाता " हो SSS " | और सुर में सुर मिलाकर "हो SSS " चिल्लाते हम भी बाहर आ जाते | तब सड़क पर कितना प्रकाश होता, यह चाँद और उसकी कला पर निर्भर करता था | ऐसे अँधेरे में माएँ भी घर से बाहर निकल कर सड़क में चहलकदमी करती थी और एक दूसरे से उस दिन बनाई गयी सब्जियों से चर्चा प्रारंभ होकर 'कौन कितनी रोटी खाता है ' से होते हुए दूर, कहीं दूर दूर तक निकल जाती थी | वैसे जाये भले ही कितनी दूर, दायरा हनेशा घर परिवार का ही होता था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
लड़कियां घेरा बनाकर बात करते रहती थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />और हम लोग ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />अँधेरे में चोर पुलिस खेलने का मज़ा ही कुछ और था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तो बत्ती गुल हुई और हम "हो SSS " चिल्लाते हुए सड़क पर भागे | सारी दिशाएं मैदान क़ी ओर मुड़ गयी | अँधेरे में चेहरे पहचान पाने के लिए आँखें अभ्यस्त नहीं हो पायी थी पर "हो sss " से आवाजें तो पहचान में आ रही थी |<br />
लेकिन शशांक के घर में सामने वाले कमरे में मोमबत्ती जल रही थी | साफ़ दिख रहा था कि खिड़की के पास बैठा वह पढ़ाई कर रहा था | वह खुली किताब देखता और एक कॉपी में कुछ लिखते जाता | बबन ने सीटी बजाई ,"फुर्र्र"|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अबे चुप |" मुन्ना ने उसे घुड़की दी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
शशांक ने एक पल बाहर नज़र दौड़ाई , फिर वह एक बार फिर किताबों में खो गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अभी हम देख ही रहे थे कि मोमबत्ती के प्रकाश में एक और साया नज़र आया | वो साया, जो शशांक का ही साया था | जब वह चलता, साया , साथ चलता | अगर साया साथ नहीं होता तो विश्वास मानिये , उसकी आँखें जरुर कहीं आसपास होती और शशांक की निगरानी करती |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
शशांक ने कुछ पूछा और लगता तो यही था कि उसकी मम्मी ने उसे झिड़कते हुए कुछ समझाया | एक समझदार बच्चे की तरह उसने सर हिलाया | उधर हम लोगों ने 'पुगना' चालू किया | हम लोग टोटल सात थे | कायदे से देखा जाए तो आधे चोर बनते और आधे पुलिस ; पर सब के सब चोर बनना चाहते थे | इसमें 'नैतिकता' , 'कलियुग', 'ज़माना', 'चारित्रिक पतन' , 'रसातल में जाती दिग्ब्रमित पीढ़ी ' जैसी कोई बात नहीं थी | ये एक खेल था और चोर बनने का अलग ही मज़ा था | किसी को छकाने की अपेक्षा पकड़ना कहीं ज्यादा मुश्किल काम था | और पकड़ कर चोर को घसीट कर खम्बे तक लाकर खम्बा छुआना होता था | तभी वह 'आउट' माना जाता था और चोर से पुलिस बनकर बाकी पुलिस वालों की मदद करता था | यह 'छुआ छुई' नहीं था कि छू लिया और काम ख़तम | ये 'रेस टीप' भी नहीं था कि देख लिया और हाथ साफ कर लो | पकड़ कर घसीट कर लाने के लिए अनिल जैसे कद्दावर लड़के क़ी जरुरत पड़ती थी | और अगर अनिल खुद चोर बन जाए तो पुलिस वालों के दांतों तले पसीना आता था |<br />
तो हम 'पुग़' रहे थे | तीन तीन करके बच्चे अपनी एक एक हथेली एक के ऊपर एक रखकर हवा में उछालते | उसके बाद हम अपनी मर्जी के मुताबिक या तो हथेली पलट कर 'सफ़ेद' सामने करते या त्वचा वाला 'काला' हिस्सा | अगर दो 'काले' और एक सफ़ेद होता , तो सफ़ेद वाला 'निकल' जाता और फिर उसकी मर्जी होती क़ि वह चोर बने या पुलिस | अगर एक काला और दो सफ़ेद होते तो 'काला' निकल जाता | यह हमने तय किया था , क़ि चूँकि सात लोग हैं और सब के सब चोर बनना चाहते हैं, पुलिस केवल तीन रहेंगे - यानी तीन बदकिस्मत , जो अंत तक बच जाएँ |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अभी हम 'पुग़' ही रहे थे क़ि खींसे निपोरते हुए शशांक आ गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
ज़रा उसकी बत्तीसी तो देखो | अँधेरे में केवल उसके दांत और चश्मा चमक रहे थे | इलास्टिक वाली पेंट ऊपर खींचकर उसने मानो ऐलान कर दिया ,"मैं भी चोर बनूँगा |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
किसने मना किया है मेरे भाई ...| चोर बनना है तो 'पुगो' और निकलो ...| उसकी तकदीर ऐसी कि पहली बार में ही वह निकल गया ...| अब उसकी किलकारियां देखो और अपना सर घुनो ...|<br />
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चोर पुलिस का खेल अभी शुरू होता इससे पहले ही लाइट आ गयी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हो SSS " , जैसे बच्चे , जिस आवाज़ में चिल्लाते हुए लाइट जाने पर आये थे , लगभग उसी आवाज़ में चिल्लाते हुए अपने अपने घरों की ओर भागे | क्या चोर, कौन पुलिस, सब कुछ धुल गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
केवल एक ही बच्चा था, जिसके पाँव में स्प्रिंग नहीं फिट थी | वह धीरे-धीरे, बल्कि ठिठक-ठिठक कर मंथर गति से घर की ओर बढ़ रहा था | उसके घर के बरामदे की लाइट बंद थी पर ध्यान से देखने से साफ़ पता चल रहा था कि उसका साया उसका इंतज़ार कर रहा था |<br />
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हम सब सकते में आ गए | सहसा हमें विश्वास नहीं हुआ पर अविश्वास का कोई कारण नहीं था | आखिर उसके पडोसी बबन के घर की एक दीवार साझे की थी | ठीक वैसे ही, जैसे हमारी और सोगा लोगों के घर की एक दीवार साझे की थी | भले ही वह बिना मिलावट के सीमेंट की बनी थी , पर जब भी मगिंदर को झापड़ पड़ता, उसकी गूंज दीवार फांदकर हम तक पहुँच जाती थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्या सचमुच ?" हमने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मैं झूठ क्यों बोलूँ ?" बबन ने तटस्थता से कहा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"माँ कसम खा |" मुन्ना पक्का कर लेना चाहता था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"माँ कसम ...|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्यों मारा होगा बेचारे को छड़ी से , यार ? वो रो रहा था ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तुझे छड़ी से सडासड़ मार पड़ेगी तो तू नहीं रोयेगा ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उन दिनों बच्चों को मारना पीटना कोई बड़ी बात नहीं थी | हम सब मार खा खाकर ही तो बड़े हुए थे | पर हर मार के पीछे कोई न कोई सबक होता था, कोई न कोई कारण होता था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"क्या कारण था यार ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
कारण जानने का यह सबसे सामान्य प्रश्न बिला वजह नहीं था | सबक सीखने के लिए खुद गलती करना जरुरी नहीं था, दूसरे को मार खाते देख, उसकी गलतियों से हम भी सबक सीख जाते थे | दीपक एक ज्वलंत उदाहरण था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"पता नहीं | लगता है, उसकी मम्मी ने उसे 'होम-वर्क' करके जाने को कहा था और वो बिना 'होम वर्क' किये खेलने भाग आया था |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पर बिचारा मोम बत्ती में बैठकर कर तो रहा था | लाइट तो चले गयी थी | सब तो खेल रहे थे | लाइट आने पर भी तो वो 'होम वर्क' कर लेता ...|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
हौवा कौन सा बड़ा था ? 'होम वर्क' का या उसकी मम्मी का ? मुझे सचमुच 'होम वर्क' से डर लगने लगा | मुन्ना की माँ भी अक्सर उसे 'होम वर्क' के लिए बैठा देती थी| छोटा सुरेश, बड़ा सुरेश सभी 'होम वर्क' को लेकर परेशान रहते थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />फिर अचानक मुझे लगा कि बात शायद 'होम वर्क' नहीं कुछ और है, जिसके लिए उसकी मम्मी परेशान है ......| पर क्या ? <br />
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गुबरैला पकड़ना ? पकड़ के माचिस क़ी डिब्बी में डालना ? कहाँ से टपका यह शौक ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पता नहीं कैसे शुरू हुआ - पर जिसे देखो, सभी वही कर रहे थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मुन्ना हमें सोगा मगिंदर के घर के पीछे क़ी बेशरम क़ी झाड़ी में ले गया - अन्दर - और अन्दर ... |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"देख|" उसने उंगली से इशारा किया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
हमारी आँखें फटी क़ी फटी रह गयी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
डाल पर ढेर सारे गुबरैले बैठे हुए थे | कोई भी हिल नहीं रहा था | कितने खुबसूरत लग रहे थे | मानो बेशरम क़ी डाल में बिल्लोर के छोटे छोटे टुकड़े टंगे हों | ज्यादातर गुबरैले लाल रंग के थे, जिन पर काले काले बिंदु थे | कुछ हलके हरे भी थे और कुछ हरे नीले |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"तुझे पता कैसे चला ?" बबन ने अविश्वास से पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मैंने इक्कीस सडक के सुनील को यहाँ घुसते देखा था | जब वह गया तो मैंने जाकर देखा | यहाँ तो भण्डार है |"<br />
तात्पर्य यह कि बडे हों या छोटे , सब के सब को शौक चर्राया था- गुबरैले पकड्ने का | गुबरैलों की खोज में लोग बेशरम या हैज की झाड़ी या कोइ अन्य , आवारा झाड़ियों में बेधड़क घुसकर ध्यान से देखते थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
लोग गुबरैलों का संकलन अपने जेव में रख्कर घूमते थे और गर्व से एक दूसरे को दिखाते थे | वे आपस में आदान प्रदान भी करते थे ," तू मुझे एक हरा वाला दे दे, मैं तुझे नीला वाला देता हूँ |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
जिन्हें गुबरैलों का संकलन करने में कोइ दिलचस्पी नहीं थी, वह या तो दुल्लु था या शशांक जैस लड़का |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अबे छू के तो देख | " बबन ने माचिस की डिब्बी सामने कर दी,"काटेंगे नहीं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
शशांक अभी भी हिचकिचा रहा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अबे छू ले | तेरे हाथ गन्दे नहीं होंगे |" मुन्ना बोल़ा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
" छू ले | तेरी मम्मी को नही पता चलेगा |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
... और शशांक गम्भीर हो गया | उसने कुछ कहा नहीं | शायद उसे ठेस पहुंची थी | वह पीछे मुडा और चलने लगा | ना तो किसी ने उसे रोकने के लिए पुकार और ना ही उसने पीछे मुड़ कर देखा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उसका हमारे साथ् वह आखिरी दिन था | उसके बाद वह कभी हमारे साथ खेलने नहीं आया | कभी नहीं ...|<br />
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मौसम बदलने लगा | देखते ही देखते आँगन के आम के पेड़ पर मौर लगने लगे | एक दिन माँ के अनुदेश पर छत पर चढ़कर कौशल भैया ने एक नयी 'खरारा बहिरी' (मोटे सींक वाली झाड़ू ) आम के पेड़ के एक डाल पर बाँध दी | बस , फिर क्या था ? देखते ही देखते पूरा पेड़ आम के मौरों से भर गया | गर्मी बढ़ने लगी थी | कुछ ही दिन पहले तो माँ कभी-कभी बाहर धूप में घेरे की लकड़ियाँ बटोर कर चूल्हा जलाती थी | तापक्रम बढ़ने के साथ ही अब वह सब बंद हो गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मच्छर भी, अचानक पता नहीं कहाँ से , भिनभिनाने लग गए | होली के बाद तो गर्मी और भी बढ़ गयी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
रीटू के घर के पीछे, शाला नंबर ८ के सामने से जाने वाली सड़क के बगल में एक पानी का एक डबरा था | देखा जाये तो किसी काम का नहीं था | न तो उसमें लोग कपड़े धोते या धो सकते थे | नहाने का तो सवाल ही नहीं था | इतना गन्दा पानी आदमी तो क्या, जानवर भी नहीं पी सकते थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उसमें मछली भी तो नहीं थी | कीचड़ ही कीचड़ था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उसमें हम पत्थर फेंक रहे थे - मैं और मुन्ना |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
' देख तो तेरा पत्थर पानी से टकराकर डूबना नहीं चाहिए |एक बार टकरा के उछलना चाहिए ? समझे ? चल फिर कोशिश कर }"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अभी वहां बी. एस. पी. की गाड़ी रुकी } मुँह में कपड़ा बाँधे कुछ लोग कूदकर बाहर आये |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सबसे पहले उन्होंने हमें इशारों से दूर जाने को कहा | फिर बंदूक क़ी तरह एक मशीन निकाली और डबरे क़ी तरह मुँह करके मानो गोलियाँ दागने लगे | आवाज़ कुछ वैसे ही थी पर गोलियों के बजाय बदबूदार धुआं निकल रहा था | फिर उन लोगों ने एक बड़ी सी बोतल निकालकर उसका द्रव पानी में मिला दिया | अगले ही मिनट वे जैसे आये थे वैसे ही चले गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सूरज क़ी किरणे पड़ने से डबरे का पानी बहुरंगी दिखने लगा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"फिनाइल डाला है न टुल्लू ? देख फिनाइल क़ी बदबू आ रही है ...|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बदबू इतनी जोरदार थी क़ि वहाँ ठहरना दूभर हो गया था | सारे के सारे मच्छर भिनभिनाते हुए भागे | अपना हाथ पांव खुजलाते हुए हम भी भागे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अभी शाला नंबर आठ के पास पहुंचे ही थे क़ि ,"फट ..." आवाज़ आई और एक चिड़िया ज़मीन पर आ कर गिरी | साथ में दुल्लू के हँसने की आवाज़ आई |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"देखा तूने ... | देखा न मेरे गुलेल का निशाना ....| " वह अपनी गुलेल फटकारता हुआ दौड़े -दौड़े आया ... | साथ में मंजीत ....| मंजीत ने उस मासूम सी चिड़िया को हाथ में उठा लिया ...|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"देख बे , देख ! कैसे देख रही है बेचारी ...|" दुल्लू का प्यार उमड़ आया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पानी पिला बे इसको पानी पिला .. | " उसने उसके सर में प्यार से हाथ फेरा ,"पानी पिला दे बे इसको ..| मरने मत दे ...|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वे उसे लेकर डबरे के पास जा ही रहे थे कि मुन्ना ने चिल्लाकर कहा ," नहीं , डबरे का पानी मत पिलाओ | उसमें दवाई डाली है ...| ये मर जायेगी ... |"<br />
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गुबरैले पकड़ने और पालने का शौक जैसे हवा में उड़कर आसमान छू रहा था, वैसे ही फुस्स होकर सिकुड़ गया और धरती चाटने लगा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पाटिल साब की छोटी लड़की- वही बाहर निकले दांत वाली छोटी - हाथ नचाकर कह रही थी , "सेक्टर नाइन के अस्पताल में तीन बच्चे भरती हो गए | एक , दो नहीं, तीन - तीन बच्चे ...| डाक्टर जैन बोल रहे थे , गुबरैले पकड़ने से बीमारी फ़ैल रही है | जो- जो बच्चे गुबरैले पकड़ने जा रहे हैं, सब के सब बीमार पड़ेंगे | सब के सब ....|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बच्चों में बीमारी वाकई में फ़ैल रही थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />गर्मी इतनी पड़ रही थी कि अब मदार के फूल की झाड़ी के पास जाकर तितली पकड़ना भी मुश्किल सा हो गया | पता नहीं क्यों, उस दिन पीली वाली सदा से फुर्तीली तितली तो दूर की बात, मैं काले पंख में पीले पीले छींटे वाली तितली भी नहीं पकड़ पा रहा था | प्यास लग रही थी | जब मैं घर के अन्दर घुसा तो ढेर सारे बच्चे हाथ फैलाकर घूम रहे थे ...|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अब रुको ..|" शशि दीदी ने कहा ...| संजीवनी, किकी, गुड्डी , पिकलू - सब रुक गए ... | मैं भी उनमें शामिल हो गया ...|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अब घूमो ...|" सब हाथ फैलाये घूमने लगे ...| थोड़ी ही देर में मुझे लगा, मेरे पांव के नीचे जमीन घूम रही है ... |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अब रुको ...| वो बोली ...|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सब रुक गए | हे भगवान्, ज़मीन अभी भी घूम रही थी ....|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अब घूमो... |" सब फिर घूमने लगे ...| पांव ने नीचे जमीन भी घूमने लगी ... फिर पांव के नीचे जमीन इतने जोर से घूमने लगी कि मुझे जाड़ा लगने लगा | ठण्ड से मैं कापने लगा था ...| ज़मीन और तेजी से घूमने लगी और अगले ही पल मैं धडाम से ज़मीन पर गिरा ...| ठण्ड से मैं अब भी कांप रहा था |<br />
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बुखार में मेरा यह पाँचवां दिन था शायद | पाँच दिनों से माँ मेरे लिए जब तब बार्ली और कभी ग्लूकोस का पानी बनाती थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />जब कभी रसोई घर में घुसता, इधर उधर बार्ली के अनेक डिब्बे दिखते | टीन के डिब्बे होते थे | बार्ली ख़तम होने के बाद माँ कभी भी उन डिब्बों को फेंकती नहीं थी | किसी में हींग, किसी में जीरा , किसी में हल्दी तो किसी में मिर्ची का पाउडर डाल देती | किन डिब्बों में क्या है, केवल माँ को ही पता था | मैं तो वैसे भी खाना नहीं बनाता था, लेकिन जो सहायक थे , जैसे शशि या शकुन या बेबी, उनको भी बड़ी मुश्किल होती थी | एक बार माँ अपने मायके यानी बिदबिदा गाँव गयी थी और खाना बनाने की जिम्मेदारी शशि पर आ गयी थी | तब जरुरत का मसाला खोजने पर भी नहीं मिला | दाल गल गयी और बिना घोंटे ठंडी भी हो गयी , पर हल्दी नहीं दिख रही ...| सारे तो बार्ली के पीले या अमूल दूध पाउडर के नीले डिब्बे थे | बाबूजी काफी भन्नाए और फिर सारे डिब्बों पर कागज़ के छोटे छोटे नामांकित लेबल लगा दिये गए -'हींग', 'हल्दी', 'अजवाइन', 'मिर्ची' - और न जाने क्या क्या ? | जब माँ वापिस आई तो उनकी हँसी छूट गयी| उन्हें लेबल वगैरह से कोई खास सरोकार नहीं था | जब महीने का समान चंद्राकर किराना स्टोर से आता तो जो भी डिब्बा खाली होता उसमें मसाला डाल दिया जाता | फल यह हुआ कि दो तीन महीनों बाद फिर से ढाक के टीन पात | जिन डब्बों में हींग लिखा था, केवल माँ को पता था कि उसमें जीरा है |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उस दिन मैं बिस्तर से उठकर किसी तरह चलते हुए आधी नींद में रसोईघर पहुंचा | माँ पीढ़े पर बैठी रोटी बेल रही थी | ऐसी शांति थी घर में, मानो कानों में 'भाँय-भाँय' सीटियां बज रही हों | मेरे और माँ के सिवाय कोई भी नहीं था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"बार्ली बना दूँ ?" माँ ने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मुझे ऐसा लगा, मानो माँ की आवाज़ बहुत दूर से आ रही है |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"बार्ली पिएगा ?" माँ ने फिर पूछा | </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
माँ क़ी बात सुनकर मेरी नज़र बार्ली के डिब्बे पर पड़ी | पीले नारंगी रंग का डिब्बा - एक माँ अपने छोटे से नंग धडंग बच्चे को पुचकार रही थी | उस फोटो में ही माँ और बेटे के बगल में एक बार्ली का डिब्बा रखा था | उस तस्वीर के अन्दर के डिब्बे के में भी वैसे ही एक माँ और बेटे क़ी तस्वीर बनी थी और बगल में एक बार्ली का डिब्बा रखा था | तस्वीर के अन्दर क़ी तस्वीर के अन्दर के बार्ली के डिब्बे में भी माँ और बेटे क़ी तस्वीर ... और हाँ... वहाँ एक बार्ली का डिब्बा रखा था , जिस पर ....| .... मेर सर घूमने लगा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"बार्ली बना दूँ ?" दूर कहीं बहुत दूर से माँ क़ी फिर आवाज़ आई |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"नहीं माँ, कुछ और है खाना कहने के लिए ?" मुझे लगा मेरी भी आवाज़ कुछ उतनी ही दूरी से आ रही है |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"खिचड़ी बना दूँ ?" माँ ने पूछा ,"गरम गरम खिचड़ी और आम का अचार ...?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"माँ , भूख लगी है ...| कुछ और नहीं है ..?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"दूध रोटी खायेगा ...?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
दूध रोटी का मैंने दो कौर ही खाया होगा कि पेट में जोर से उधर पुथल मची और मैंने उलटी कर दी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पानी से भींगा ठंडा कपड़ा मेरे सर पर ठोंकते हुए माँ बड़बड़ा रही थी ,"जरहा (बुखार) का मुँह, सब कुछ कड़ुवा कड़ुवा लगता है | है न ?" <br />
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मलेरिया के उस बुखार में रोज बारह से एक बजे के बीच मुझे जोरसे कंपकपी होती थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
कभी मुझे लगता ये मलेरिया नहीं कुछ और है | कभी लगता, शायद मैं कभी ठीक नहीं हो पाऊँगा | पता नहीं नींद कब आती थी और मैं कब जागते रहता था |मुझे कभी मोटी बिल्ली दिखती तो कभी मुन्ना के भाई का मुस्कुराता हुआ चेहरा नज़र आ जाता था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उस दिन मेरीं नींद शायद दोपहर को खुली | करवट बदल कर मैंने देखा - बाबूजी मेरे पास चिंतित मुद्रा में बैठे थे | <br />
मुझे जागते देखकर उन्होंने लकड़ी के खोल से तापमापी निकाला और उसे झटक कर उसमें अटका हुआ पारा सामान्य करने लगे | इससे पहले कि तापक्रम लेने वे उसे मेरी जीभ के नीचे रखते , मैंने पूछ ही लिया |<br />
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"बाबूजी, नरक में हरदम आग जलते रहती है न ? वहाँ सब को कोड़े से मारा जाता है न ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ बेटा |" बाबूजी धीरे से बोले |<br />
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" बाबूजी, वो मोटी बिल्ली - जो रोज दूध पी जाती थी - वो क्या नरक गयी होगी ? छोटे बच्चे क्या मरने के बाद सीधे स्वर्ग जाते हैं ? क्या मैं भी स्वर्ग जाऊंगा ? बाबूजी, मैं मर जाऊंगा न ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"नहीं बेटे, ऐसा नहीं कहते |" बाबूजी बोले ,"तुम कहीं नहीं जाओगे तुम यहीं रहोगे | तुम जल्दी अच्छे हो जाओगे ...|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पता नहीं, कितनी सुबहों और कितनी रातों के बाद , न जाने कितनी गोलियाँ खाने के बाद मुझे कुछ अच्छा लगने लगा | फिर भी मैं कुछ खा नहीं पाता था | माँ ठीक ही कहती थी ,"' जरहा मुंह (बुखार का मुंह ) कडवा होता है |" कौशल भैया अलग झल्लाते रहते थे ,"घर में आलसी जैसे पड़े रहोगे तो कभी ठीक नहीं होगे | खुली हवा में सुबह शाम घुमो फिरो | ये क्या दिन भर घर में घुसे रहते हो ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैं घर के बाहर निकला, गेट के पास मेहंदी के पेड़ के नीचे खड़े रहा | लड़कियों का 'आमलेट चाकलेट" का खेल देखते रहा | मेरा कोई भी दोस्त नहीं नज़र आ रहा था | क्या गुबरैला पकड़ने के कारण सब बीमार पड़ गए थे ? अपने घर के बाहर छोटा और दीपक प्लास्टिक के बेडमिन्टन से खेल रहे थे | उन्हें देखकर मन और खिन्न हो गया | अब छोटा वह सीधा सादा छोटा नहीं रह गया था | अब उसे दीपक ने बातें बनाना , बातें छिपाना , घमंड करना - सब कुछ सिखा दिया था ,"मेरे घर में मेरा भाई नया 'लोटपोट' लाया है | क्या अच्छी अच्छी कहानियाँ है, मोटू पतलू, चाचा चौधरी , दीपू ....| 'पराग' और 'चंदामामा' से दस गुना अच्छी | जा जा, तुझे कौन दिखायेगा ? मेरा भाई नया 'व्यापार' लाया है | 'व्यापार' मालूम है ? 'सांप सीढ़ी' , 'लूडो' से भी अच्छा खेल | जा जा , मुंह धो के आ | तुझे कौन खिलायेगा ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
यह सब दीपक क़ी भाषा थी, जो अब वह भी बोलने लग गया था | 'पराग' और 'चंदामामा' तो घर में पेपर वाला डाल जाता था | कौशल भैया 'नंदन' भी ले आते थे | कभी बेबी तो कभी लक्ष्मी भैया मुझे कहानियाँ पढ़कर सुना देते थे | अब मुझे लगने लगा, जिसने 'लोटपोट' नहीं पढ़ा , उसने तो कुछ भी नहीं पढ़ा | मेरे घर में 'सांप सीढ़ी' और 'लूडो' एक ही बोर्ड में थे | अब तक मुझे मालूम था कि 'सांप सीढ़ी' सबसे अच्छा खेल है | अब लगने लगा ,"व्यापार" "व्यापार" "व्यापार" - पता नहीं कैसे खेलते हैं - 'सांप सीढ़ी' से लाख गुना अच्छा है |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैं बिस्तर में लेटा छत पर घूमते हुए पंखे की ओर देख रहा था | बाबूजी ने पूछा ," क्या चाहिए बेटा ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"लोटपोट " मैं बोला |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
"लोटपोट ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ लोटपोट |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बाबूजी ने कौशल को आवाज़ दी, उसे पैसे थमाकर बोले ,"लोटपोट ले आना भाई |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
ये तो शाम की बात थी | सुबह तक इरादा बदल गया था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सुबह जब मैं उठा तो बाबूजी कोलेज जाने के लिए स्कूटर निकाल रहे थे | ना जाने मुझमें कहाँ से फुर्ती आ गयी | मैं दौड़कर उनके पास पहुंचा ,"बाबूजी , मुझे 'व्यापार' चाहिए |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"लोटपोट नहीं ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैं फिर असमंजस में पड़ गया | वो बोले,"ठीक है, जो तुम्हें चाहिए , कौशल से बोल दो |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
कौशल ने मुझसे पूछा ,"तुझे 'लोटपोट' चाहिए या 'व्यापार' ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
कोई जवाब नहीं .... |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अरे कुछ तो बोल | दोनों में से एक चुनना पड़ेगा |ठीक है, मैं सेक्टर चार 'ए'-बाज़ार शाम को जाऊंगा | तब तक सोच लेना |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
शाम को भी स्थिति वही थी , जो सुबह ही थी | पर कौशल भैया ने मुझे दुविधा में नहीं डाला | कुछ पूछा ही नहीं |<br />
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जब मेरी नींद खुली तो कमरे में अँधेरा छाया था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
क्या अभी रात है ? मैंने दिमाग पर जोर डाला ....| कहाँ हूँ मैं ? अरे हाँ | ये तो बिस्तर नहीं है | मैं तो लकड़ी के सोफे पर लेटा हूँ | अरे हाँ, यह तो बैठक है ....| पर अँधेरा कैसा ? जब मैं लेटा था .... मैंने याद किया ... तब तो दोपहर थी ...| अगर अभी रात है तो ..... बाबूजी तो यहीं सोते हैं ...|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"खड़ खड़ खड़ खड़ ... छः और छः - बारह .... फिर से चल ....|" किसी ने कुछ कहा ...|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />शरीर बुरी तरह दुःख रहा था | मैंने सावधानी से करवट बदली, ताकि नीचे न गिर पडूँ ...| सोफे की चौड़ाई कम ही थी ....| नीचे ज़मीन पर बबलू, बेबी , कौशल और शशि कुछ खेल रहे थे ...| वे एक नहीं, दो -दो पांसे एक साथ फेंक रहे थे ....| उनके सामने एक मोम बत्ती जल रही थी | मतलब कि लाइट गयी हुई थी ...| पर ये इतनी एकाग्रता से क्या खेल रहे हैं ? रौशनी बोर्ड के ऊपर झिलमिलाई ... बीच में एक पानी का जहाज धुआं उड़ाते जा रहा था और कुछ लिखा था ... "हिंद का व्यापार ...|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अच्छा , तो यह लोग 'व्यापार' खेल रहे हैं |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"'व्यापार' आ गया ....|" मैं जोश में उछलकर उठ बैठा ....|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
किसी ने मेरे उत्साह क़ी ओर ध्यान ही नहीं दिया ...| सबका चित्त तो व्यापार ने हर लिया था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ , आ गया ...|" कौशल भैया ने तटस्थ भाव से जवाब दिया ,"और 'लोटपोट' भी ...|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कहाँ है लोटपोट ?" मैंने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"टेबल पर रखा है ....|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैं अँधेरे में ही टेबल क़ी ओर लपका | ध्यान ही नहीं रहा कि ज़मीन पर व्यापार के कार्ड और बैंकर के नोट रखे हैं ...| एक ठोकर में सब बिखर गए ...|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
ख़ुशी ही नहीं, दुगनी ख़ुशी ...| मैं सड़क में ढिंढोरा पीटने बाहर भागा ... | खासकर छोटे को बताने ....|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
खिलाड़ी ज्यों के त्यों सर झुकाए जमे हुए थे | छोटा सच कहता था ....| 'लूडो' और 'सांप सीढ़ी' से बढ़कर था ये खेल ...|<br />
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हम नंगे पाँव ही चल रहे थे | क्या गर्मी के दिन में ज़मीन पर अंगारे बिछ जाते हैं ? पता नहीं | क्या सूरज आग बरसाने लगता है ? शायद - हो सकता है | 'लू' लग सकती है ... | 'लू' क्या होती है ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
यही मेरा प्रश्न था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
कहाँ जा रहे थे हम ? निरुद्देश्य से ...| पता नहीं, बस, चले जा रहे थे | गर्मी क़ी दोपहर में सब झपकी ले रहे थे और मैं दबे पाँव - किसी के टोकने के पहले ही - बाहर निकल गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सरे राह में चलते चलते मुन्ना मिल ही गया | बस, फिर क्या था - एक से दो भले | मैदान पार करके हम इक्कीस सड़क में घुस गए और चलते रहे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बीच बीच में मुन्ना जेब से कुछ निकाल कर खाए जा रहा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्या खा रहा है , मुन्ना ?" मैंने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"प्याज़ | प्याज़ खाने से लू नहीं लगती |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />"'लू' क्या होती है ?"<br />
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शाला नंबर आठ के पास पहुँच कर उसने टेलेफोन निकाला | टेलेफोन क्या था ? सामान का मोटा धागा , जितना लम्बे से लम्बा हो सके - उसके एक छोर में माचिस क़ी तीली वाला डिब्बा और दूसरे छोर में वही माचिस क़ी तीली वाला दूसरा डिब्बा -जो चोंगे का काम करता था | अब भला सामान का धागा कितना लम्बा हो सकता है | नहीं , नहीं, ऐसा नहीं था कि हम धागा जोड़ जोड़ कर, टेलेफोन का लम्बा 'वायर' बना लेते | गठान बाँधने से आवाज़ 'कट' जाती थी | हमने "वायर" को जितना तान सकते थे , उतना तान दिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />पहले मेरे बोलने क़ी बारी थी | मैंने कहा ,"ट्रिंग ट्रिंग | हेलो, में टुल्लू बोल रहा हूँ | सड़क में लोगों के क्या हाल चाल हैं | हेल्लो ...|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
फिर में मुन्ना को आवाज़ देकर पूछ लिया , "कुछ सुनाई दिया ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ बिलकुल |" वह बोला |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"भगवान् कसम ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"भगवान् कसम | तू पूछ रहा था , सड़क में लोगों के क्या हाल चाल हैं?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अरे वाह | ये तो सच्ची मुच का काम कर रहा है | अब तू बोल, मैं सुनता हूँ |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैंने अपने सिरे का माचिस का डिब्बा कान में लगाया | मुन्ना ने बोलना शुरू किया ,"बबन लोग सड़क छोड़कर जा रहे हैं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्या?" टेलीफोन या बिना टेलीफोन, मुन्ना ने जो बोला वो मुझे साफ़ सुनाई दिया | टेलीफोन का खेल वहीँ खतम हो गया | मैंने पूछा ," बबन लोग सड़क छोड़कर जा रहे हैं | मतलब ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मतलब उनका घर बदली हो रहा है | "<br />
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मंजा धागा ऐसे बनता है ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अंडे को फोड़कर एक कप में डालते हैं | जितने भी फ्यूज बल्ब हैं, सब को फोड़कर चूरा- चूरा कर लेते हैं ...| उस कांच के चूरे को अंडे के घोल में तीन दिन तक डूबा कर रखते हैं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तीन दिन ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ | तीन दिन | फिर दो दिन तक धूप में सुखाते हैं | तब मंजा धागा बनता है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सब कुछ ठीक था | सामान का धागा काफी था | फ्यूज बल्ब भी मिल जायेगा | दुल्लू का गुलेल का शौक परवान चढ़ा था | वो जब तब सड़क के खम्बों के बिजली के बल्ब तोड़ा करता था | केवल जाकर बल्ब के टुकड़े उठाना भर था | मुन्ना ने दो -तीन फूटे बल्ब सम्हाल कर भी रख लिए थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
समस्या थी तो केवल अंडे क़ी | सोगा को पटा रहे थे और वो बात नहीं मान रहा था | आखिर उसके घर क़ी मुर्गियाँ रोज अंडा दे ही रही थीं | एक नहीं, तीन मुर्गियाँ | उसे केवल यह करना था , कि अपनी माँ और बड़ी बहन सारसा की नज़र बचाकर एक अंडा जेब में डालना था और हमारे हवाले करना था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बिना मंजे धागे के हम पतंग ज्यादा ऊपर भी उड़ा नहीं सकते थे ...| कोई भी हमारी पतंग काट सकता था |<br />
सबकी परीक्षाएं हो चुकी थी | शाम होते होते सड़क इक्कीस और बाइस के बीच का मैदान पतंग और पतंगबाजों से भर जाता था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />बबलू के कहने पर व्यास ने बी. टी. आई. की वर्कशॉप में एक स्क्रैप पाइप ली और दो लोहे की चादर के छोटे छोटे टुकड़ों को बगल में वेल्ड करके एक चरखी तैयार कर दी | मैदान में वो अकेला ही लोहे की चरखी वाला था |<br />
हम बच्चों को भला कौन पूछता था | हमारे पास तो चरखी भी नहीं थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
फिर भी हमने हौसला नहीं छोड़ा | छोटे सुरेश ने अखबार के एक टुकड़े और बाँस की दो सींक से , भात के कुछ दानों से चिपका कर हमें एक पतंग बना कर दी | हमने उसके पीछे एक लम्बी सी पूंछ लगाकर और सामान के धागे जोड़कर एक पतंग तैयार कर ली |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />सामान के धागे से ही सुरेश ने कन्नी बाँध ली | कन्नी उठाकर हम तीनों ने बारी बारी से पतंग का संतुलन देखा | ठीक वैसे ही , जैसे हमने सप्पन , राजकुमार, शरद या प्रभात जैसे बड़े खिलाडियों को करते देखा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पर बबन था कहाँ ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />मैं पतंग पकड़कर दूर तो जा रहा था, निगाहें बबन के घर की ओर लगी थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अबे रुक |" मुन्ना डोर के दूसरे छोर को पकड़कर चिल्लाया ,"अब छोड़ |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैंने पतंग हवा में उछाली और फिर बबन के घर की ओर देखने लगा | पतंग ने हवा में दो तीन बार गोता खाया और नाक के बल ज़मीन पर गिरी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सोगा के घर में रेडियो सीलोन पर "आप ही के गीत" में गाना बज रहा था, "मेरी ज़िन्दगी है क्या - इक कटी पतंग है ...|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैंने राहत की सांस ली | चलो , अब जब तक पतंग की मरम्मत होगी फिर से संतुलन परखा जाएगा, तब तक छुट्टी | मैं बबन के घर की ओर चल पड़ा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बी. एस. पी. का ट्रक बबन के घर के सामने खड़ा था | यह तो तीसरा ट्रिप था और घर से सामान निकलते ही जा रहा था | शायद उनको भी नहीं मालूम होगा क़ी घर में इतना सामान होगा | दो लड़के और दो बड़ी लड़कियां - सामान तो होगा ही | जाना कहाँ था ? क्या बहुत दूर ? नहीं, अगली ही सड़क पार - सड़क नंबर २३ ... आज कई बार मैं सोचता हूँ तो समझ नहीं पता क़ी आखिर घर बदलने क़ी वज़ह क्या थी ? बाइस और तेइस सड़क में केवल नंबर का ही अंतर था | घर तो उतना ही बड़ा था | फिर आखिर गृह-परिवर्तन क्यों ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वैसे समय बीतने के साथ साथ वह घर अभिशप्त ही सिद्ध हुआ | कोई भी परिवार वहाँ लम्बे समय तक टिक ही नहीं पाया | एक परिवार आया , जिसकी दोनों लड़कियां गूंगी थी | दूसरा परिवार पांच महीने में ही चले गया और घर लम्बे समय तक खाली रहा | तीसरा परिवार आया | घर के पीछे आम का पेड़ था | अंकल जी पेड़ में चढ़ कर आम तोड़ रहे थे | पाँव फिसला और नीचे आँगन के पक्के फर्श पर गिर पड़े | वहीँ प्राण पखेरू उड़ गए | | भरा-पूरा परिवार उजड़ गया .....|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />जीवन क़ी क्षण भंगुरता ही तो थी वो ...|<br />
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उस समय बबन ट्रक के पास खड़े होकर सामान चढ़ते देख रहा था | हम लोग भी उदास नज़रों से अपने एक दोस्त, एक अच्छे दोस्त को जाते देख रहे थे | लेकिन बबन पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ा | यहाँ तक कि मुन्ना ने उससे पूछा,"बबन, यार, सड़क तेइस तो बगल में है |तू यहाँ हम लोग के साथ खेलने तो आएगा ...|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उसका जवाब मुझे आज तक याद है ,"पता नहीं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />इतनी छोटी सी उम्र के बच्चे के मुंह से ऐसा कूटनीतिक जवाब मैंने बहुत कम सुना है | सच्चाई तो यह थी कि गलियारा बदलते ही बबन भी बदल गया | ना केवल वह हमारी दोस्ती भूल गया , बल्कि उसने हमारा अस्तित्व ही नकार दिया | आगे मैं फिर किसी स्मृति में बताऊंगा कि हमें क्यों और कैसे उसके घर से बेर चोरी करने को बाध्य होना पड़ा था | उसकी बहनें जरुर शशि दीदी और अपनी हम उम्र सहेलियों से मिलने आते रहीं | बड़ा भाई मनोज बाद के वर्षों में कई बार हमारे साथ क्रिकेट खेलने आया | पर बबन ? वह तो खो गया |<br />
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बबन का परिवार तो चले गया था और पीछे वो छोड़ गया था, ढेर सारी यादें | उस जमाने में लोग जाते - जाते गेट निकाल कर ले जाते थे और घर को गायों, 'रेस- टीप' खेलते बच्चों और वर्षा के समय राह चलते फेरीवालों , भिखारियों के लिए खुला छोड़ जाते थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
ऐसे ही उस दिन 'रेस-टीप' हो रही थी और मैं भागकर बबन के खाली घर में घुस गया | थोडा सा मैंने बुद्धिमानी का काम किया | मुझे मालूम था, अनिल, जो दाम दे रहा था , वो अगर खोजते हुए यहाँ आया भी तो बरामदे के आसपास ही खोजेगा | शर्मा आंटी के घर के साथ वाली सीमा में हैज़ नहीं लगी थी | मैं शशांक के घर के साथ वाले घेरे की दीवार में, जहाँ ऊँची ऊँची हैज़ लगी थी, जाकर छिप गया | अब बबुआ खोज के दिखाए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
हैज़ में मुझे दो चीजें दिख गयी | एक पुराना सब्जी काटने का चाक़ू था | उसके फलक में जंग तो नहीं लगी थी, पर हत्था कुछ टूटा हुआ था | मैंने सबकी माँ को चाक़ू से सब्जी काटते देखा था | केवल मेरी एक माँ थी, जो फरसुल से सब्जी काटती थी | पर इस चाक़ू का मैं क्या करूँगा ? ज्यादा से ज्यादा बेशरम की डंडी काट सकता हूँ |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />मेने उसे सम्हाल कर उसी हैज़ की झाड़ी में रख दिया जहाँ औरों की नज़र न पड़े | दूसरी चीज़ जरुर मेरे काम की थी | वह क्या था ? चाभी वाली रेल के इंजन का अंजर पंजर ...| मेने तो कभी बबन के पास चाभी वाली रेल नहीं देखी थी | हो सकता है, किसी ज़माने में कोई बहुत पुरानी रेल गाड़ी होगी, जब शायद संध्या सुषमा या मनोज बच्चे रहे होंगे | उसके चाभी वाले हत्थे को मैंने हाथ से मरोड़ कर देखा - अच्छा , इसका स्प्रिंग ख़राब हो गया है ...... कोई बात नहीं , दाँते तो ठीक ठाक दिख रहे थे | और शाम की किरणों में कितने चमक रहे थे ....| वाह, मैं किसी को बताऊंगा नहीं, ईंट से तोड़ के साइड का कवर निकाल लूँगा | सारे दाँते निकल जायेंगे | फिर उनकी अच्छी चकरी बन जायेगी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैं ये भी भूल गया कि मैं कहाँ हूँ और रेस टीप खेल रहा हूँ |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />मेरी विचारधारा को एक आवाज़ ने भंग किया | एक महिला की कर्कश सी आवाज़ - अरे ये तो पड़ोस के शशांक के घर से आ रही है | शशांक की मम्मी - दूसरे जिस पुरुष की दबी-दबी आवाज़ थी , वो शशांक के पापा थे | मैं हर बार सोचा करता था , शशांक आखिर है क्या ? मद्रासी, पंजाबी, बंगाली मराठी या सिन्धी ? हर बार मेरे अनुमान को उसने हवा में उडा दिया था | कौतूहलवश मैं कान लगा कर सुनने लगा , आखिर भाषा तो पता लगे | वह हिंदी ही तो थी पर उसकी मम्मी जिस तरह हिंदी बोल रही थी, वो सोगा -मगिंदर की माँ के लहजे से काफी मिलता जुलता था | लेकिन उसके पापा का ज़वाब तो ठीक हिंदी में था | हर एक दो वाक्य के बाद उसकी मम्मी अंग्रेजी में उतर जाती थी | उनकी बातचीत का विषय शशांक ही था | लेकिन एक मिनट - केवल शशांक ही नहीं, उस विषय में मैं, हम , हम सब शामिल थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मैं पूछती हूँ, हम यहाँ से कब जायेंगे ? आप को तो कोई परवाह ही नहीं है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कोशिश तो मैं कर ही रहा हूँ |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्या कोशिश कर रहे हैं ? कितने दिन से कोशिश कर रहे है ? मेरी तो सकझ में नहीं आता | लड़का बिगड़ गया है | कभी सर फूटता है तो कभी हाथ से खून निकलता है | जब भी खेल के आता है, कपड़े से कीचड़, कचरे , गोबर की बदबू आते रहती है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"बच्चे तो खेलते ही हैं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"खेलते हैं ? कोई ढंग का खेल खेलें तो समझ में भी आता है | कभी किसी को पकड़ के पीट रहे हैं तो कभी बेशरम की झाड़ी में घुस कर कीड़े पकड़ रहे हैं | किसी दिन साँप काटेगा किसी को | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ, मैं बात करूँगा कुछ बड़े लोगों से ...|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"किससे बात करोगे ? क्या बात करोगे ? कर चुके आप बात | अरे उनके माँ बाप को चिंता होती तो बच्चे भाग कर छोटा मैत्री बाग नहीं जाते ... | भागकर सर्कस नहीं जाते ...| कपडे देखे हैं उन बच्चों के ? किसी का कोई बटन टूटा है तो किसी की पेंट पीछे से सिली है | हाथ पांव ऐसे गंदे कि देखकर उलटी आती है | टेढ़े मेढे पीले पीले दांत | दिन भर खेलना, दिन भर ... | और बात सुनो उनकी ,'बे', 'साले' के बिना तो एक वाक्य नहीं बोल सकते | बड़े होकर आवारा बनेंगे सारे ....|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मेरी बात तो सुनो | मैं कोशिश तो कर रहा हूँ ....| सेक्टर नौ या दस में नया घर नहीं मिलेगा तो डबल स्टोरी में तो मिल ही जाना चाहिए | थोड़े दिनों क़ी तो बात है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हुंह | हर बार वही बात | आप तो चाहते हैं ना आपका लाडला आवारा बने ....|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बस, और मुझसे नहीं सुना गया | मैं उस जगह से बाहर आ गया मानो वहां ढेर सारी लाल चीटियाँ हैं और मेरे हाथ पांव , कपड़ों में रँग रही हैं | दिमाग में वही बात घूम रही थी - आवारा बनेंगे सारे ... | आवारा क्या होता है ? कई बार बड़े लोग जैसे दीपक के बब्बा सप्पन, मंजीत को आवारा कहते थे | पर हर बार तो नहीं, कभी कभी ही - वो भी गुस्से में ....| पर वो लोग अच्छे भी तो हैं ...|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />नहीं नहीं, वो लोग बहुत बुरे हैं | अच्छे बुरे ..., आवारा..., तो क्या हम सब लोग आवारा बनेंगे ? 'बे', 'अबे' ', 'साले' का मतलब क्या होता है ? क्या ये बोलना बुरी बात है ? हम लोग अकेले सर्कस चले गए थे , ये खराब बात थी ? मतलब मैं अभी से गन्दा बच्चा बन गया हूँ | मतलब अगर मर गया तो नरक में जाऊंगा ...|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />मन खिन्न हो गया था ...| मैं सड़क पर चल रहा था | ख्याल ही नहीं रहा कि मैं रेस टीप खेल रहा हूँ | विचारों की तन्द्रा तब टूटी जब अनिल ने मुझे फर्स्ट टीप कर दिया | मेरी खेल में अब कोई दिलचस्पी नहीं रह गयी थी | मैंने सोच लिया था , मैं और नहीं खेलूँगा , भले दाम न देने के बदले में मुझे हरेक से बारह मुक्के खाना पड़े |<br />
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जैसे जैसे गर्मी बढती गयी, मेरे शारीर पर धमोरी भी बढ़ते चली गयी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
दिन भर तो खेल कूद में कुछ ख्याल नहीं रहता, पर शाम होते होते खुजलाहट बढ़ जाती थी | रात को घर लौटने के बाद घड़े के पानी से नहाने के बाद माँ पाउडर लगा देती थी | पर घमौरियां ज्यो की त्यों थी | रात को बाहर मच्छरदानी लगाकर खुले में सोते थे | जब भी नींद खुलती तो खुजलाहट के मारे मैं परेशान हो जाता | गला छाती, पेट पीठ , सब जगह लाल लाल दाने निकल गए थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"ठाकुर साहब, एक बात बताऊँ ", एक दिन अनिल के पिताजी श्रीवास्तव जी बोले," इसे बरफ के पानी से नहला दो | यह बिलकुल ठीक हो जायेगा |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बरफ कहाँ से मिलेगा ? रेल पटरी के पास के चौक पर ढेर सारे गन्ना रस वाले बैठते थे | उनके पास बोरे में धान का खोल भरा होता था और उसमें बरफ की सिल्लियाँ रखी रहती थी | गन्ने के रस के गिलास में वे पहले चाकू से काटकर ढेर सारा बरफ डालते थे और फिर गन्ने का रस ...|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"शाम को दुकान बंद होने के बाद आना |" कौशल भैया को उन्होंने टरका दिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सुपेला में रेल पटरी के उस पार बरफ की फैक्ट्री थी | एक दिन रामलाल मामा बोरे में बाँधकर बरफ ले आये | मेरा ख्याल था, आधी बर्फ तो रास्ते में पिघल गयी होगी | पर जितनी थी उसे एक बाल्टी में डाला गया | मेरे सारे कपड़े उतारे गए और माँ ने बेरहमी से बर्फ का पानी शरीर में डाला |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />बाप रे बाप ... मुझे दिन में तारे दिखाई देने लगे | क्या ठंडा पानी था ...| मेरे दाँत बज रहे थे ...|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वाकई में जब माँ ने तौलिये से शरीर पोंछा तो घमोरियां गायब हो गयी थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पर यह केवल दो ही दिन की बात थी | तीसरे दिन घमोरियां वापिस आ गयी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
रामलाल मामा बोले, "टुल्लू, बारिश होने दे | एक बार बारिश के पानी में नहा ले | सब ठीक हो जायेगा |"<br />
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टुल्लू ... बारिश का इंतज़ार कर ....| <br />
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और एक किसान की तरह, मैं भी खुले नीले आसमान में काले बादल खोजने लगा ...शाम , सबेरे ...| <br />
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शशांक लोगों का जाना भी तय ही था | उस दिन उसके मम्मी और पापा की बातचीत से मेरे नन्हे से दिमाग में जो कुछ समझ में आया वह यही था कि इस धरती पर कुछ और लोग रहते हैं जो हमसे बहुत अच्छे हैं | उनके बच्चे भी अच्छे हैं | क्योंकि वो अंग्रेजी माध्यम में पढ़ते है | क्योंकि वो साफ़ सुथरे कपडे पहनते हैं | क्योंकि वो गालियाँ नहीं बकते -"बे" , "अबे" ,"साले" गालियाँ ही तो थी | क्योंकि वे मारा-पीटी नहीं करते | क्योंकि वे बड़े होकर आवारा नहीं बनेंगे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />सच था - शशांक हम सब से समझदार था | जब भी हम किसी बात को लेकर उलझ जाते , दोनों ही पक्ष शशांक के सम्मुख अपना पक्ष रखते और उसकी बात ध्यान से सुनते | अक्सर कोई नयी बात कहते समय हम क्यों चाहते थे कि शशांक उन बातों की पुष्टि करे ? वह तो ठीक से लट्टू नहीं चला सकता ? वह तो माचिस से आग नहीं जला सकता था ? चक्का चलाने में वह हार जाता था | फिर क्या था उसमें ? <br />
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आखिर झूम के बारिश आ ही गयी | मोटी मोटी बूंदें पड़ने लगी | सिर्फ नीले रंग की हाफ पेंट पहन कर मैं अमरुद के पेड़ के नीचे खड़ा हो गया |जैसे जैसे पानी की बूंदें पड़ने लगी, घमौरियाँ धुलने लगी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />नीले रंग का एक ट्रक मंथर गति से सड़क से गुजर रहा था | उसके साइड के पल्लों पर लिखा था - "बी. एस. पी." यही ट्रक तो कुछ दिन पहले आया था | तब उसे तीन परिक्रमा करनी पड़ी थी | किन्तु इस बार उसे एक ही फेरा करना था | आखिर परिवार भी तो छोटा ही था | कितने सदस्य थे ? जितने भी थे, वे ट्रक के पीछे पीछे अपने खुद के वाहन में चल रहे थे | उन्होंने बरसाती की टोपियाँ भी लगा रखी थी, पर पहचानना मुश्किल नहीं था | फेंटा विलास उनके ही तो पास थी | दोनों ही पड़ोसी एक महीने के अंतराल में बाइस सड़क को अलविदा कह चुके थे | जिस बिरादरी की शशांक की मम्मी की अपेक्षा थी, वह उन्हें मिल चुकी थी | वह ना केवल इस धरती पर मौजूद थी, बल्कि उसके लिए उन्हें कोई बहुत दूर भी नहीं जाना पड़ा था | सेक्टर दो में ही डबल स्टोरी थी , जहाँ बी. एस. पी. के अफसर श्रेणी के लोग रहते थे | जिनके बच्चे वहीँ पहले बाल मंदिर में 'ए','बी','सी','डी' पढ़ते थे फिर कतिपय अंग्रेजी माध्यम की शालाओं में चले जाते थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बबन तो कभी कभी दिखता था,क्योंकि वह भी शाला नंबर आठ में पढता था - प्रातः पाली में, जबकि मैं दोपहर की पाली में था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पर शशांक ? वो अंतर्ध्यान हो गया , हालाँकि बाद के वर्षों में अपने कई मित्रों से मैं गाहे बगाहे उसका जिक्र जरुर सुनता था | किन्तु आमने-सामने की मुलाकात कभी हो नहीं पायी | <br />
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देखते ही देखते समय का पहिया पूरे ग्यारह साल घूम गया | 'पूर्व - इंजिनीयरिंग' की प्रतियोगी परीक्षा की ऊंचाइयों की बाधा लांघकर लोग भोपाल में एकत्र हुए थे - क्षेत्रीय अभियांत्रिकी महाविद्यालयों में प्रविष्टि की औपचारिकताएं पूरी करने के लिए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
शशांक से वहीँ अगली रू-बरू मुलाकात हुई - ज़िन्दगी की 'हप्पू की बम-बम' में ...!<br />
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(समाप्त )<br />
स्थान - भिलाई <br />
समय - १९७०-७१ <br />
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</div>Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-91298214139006002742011-09-03T00:03:00.029-07:002023-01-07T05:09:18.776-08:00हप्पू की बम-बम ३<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">घर के उत्तर पूर्वी कोने में गन्नों का झुरमुट था | सुबह सुबह वहां खुबसूरत रंगी बिरंगी चिड़िया दिख जाती थी | देखो जरा - लाल नारंगी रंग की, छोटी छोटी चिड़िया, जिनकी गर्दन या तो सफ़ेद होती थी या काली | काली चिड़िया के सर पर काले रंग क़ी कलगी होती थी | पता नहीं, गन्नों के झुरमुट के अन्दर कहाँ उनका घोसला होता था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वे गौरैया के आकार से कुछ छोटे होते थे और इधर से उधर फुदकते रहते थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />तो गन्ने के झुरमुट के पीछे कनेर के फूलों के पौधे थे, जिनमें रोज तो नहीं पर अक्सर कनेर के फूल लगते थे | लाबी रंग के, मुलायम पंखुड़ियों वाले कनेर के फूल, जो जल्दी मुरझाते नहीं थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैंने कनेर के पौधे से दो पत्तियां तोड़ी | उनके डंठल से थोडा चिपचिपा दूध निकला , जिसे कमीज़ के छोर से पोंछा | दोनों पत्तों को आपस में जोड़ा और "फड़-फड़ " की आवाज़ की |<br />
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आज स्कूल में छुट्टी थी शायद | मतलब मुन्ना तो घर में होगा | कौशल भैया के उम्र के बड़े लड़के - सप्पन, तमाल, मुन्ना का राजा चाचा , गुड्डू, पप्पी , बिमल , राजकुमार , प्रभात और कई अन्य लोग मैदान में कबड्डी खेल रहे थे -"छल मार - कबड्डी, कबड्डी ... " यह सप्पन की आवाज़ गूंज रही थी | रमेश के घर के सामने बबलू भैया की उमर के लोग - विनोद , छोटा का भाई रमेश - जिसे लोग 'काके' कहते थे , शंकर, राजू, गुड्डा, टीटू, मंजीत का भाई गोगे, बबन का भाई मनोज , बंडू लट्टू खेल रहे थे ...|<br />
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लट्टू - कहानी की शुरुवात लट्टू से ही तो हुई थी ... | कहाँ से कहाँ भटक गए हम ...|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तो कुछ लोग लट्टू खेल रहे थे और कुछ और लोग - जो क़ि उमर में छोटे थे - जो लट्टू सिर्फ घुमा सकते थे, पर खेलने से डरते थे - खासकर बड़े लोग से - जैसे मैं, छोटा, मुन्ना , सोंगा , गिरीश, बबन - थोड़ी दूर खड़े मंत्र मुग्ध से वो खेल देख रहे थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सब लोग लट्टू में रस्सी लपेटे, हथेली में लट्टू पकड़े - दो उँगलियों के बीच रस्सी की गांठ फंसाए दम साधे 'हप्पू की बम बम' के लिए तैयार खड़े थे ...|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
एक मिनट, क्या कहा मैंने - दो उँगलियों के बीच फँसी - लट्टू की रस्सी की गाँठ ! गाँठ अकेली नहीं थी | उसके साथ फँसा था कोका कोला, गोल्ड स्पॉट या फेंटा का ढक्कन ! याद आया मैं क्या कह रहा था ? कोका कोला का बेशकीमती ढक्कन - सरदार की दुकान के बाहर - यह उसका एक और उपयोग था |लट्टू के रस्सी के छोर की गाँठ में ढक्कन लगा देने से रस्सी ऊँगली में अच्छे से फँस जाती थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
शंकर ने कहा ," एक दो तीन..." मेरी आँखें बबलू भैया के हाथ पर टिकी थी | वैसे ही - जैसे बबन की आँखें मनोज के हाथ पर,छोटे की आँखे काके के हाथ पर , मीटू की आँखें टीटू के हाथ पर , अंकू की आँखें शंकर के हाथ पर या टिंकू की आँखें गुड्डा के हाथ पर जमी होंगी | सभी मन ही मन प्रार्थना कर रहे होंगे क़ि उनके भाई 'हप्पू की बम बम' में ना पकडे जाएँ | सबने अपना अपना लट्टू चलाया | घूमते हुए लट्टू के गिर्द लट्टू की रस्सी से दायरा बनाया, दायरा छोटा किया ,नाचते हुए लट्टू को हवा में उछाला और झट से लपक लिया |<br />
<br />
मैं तों बबलू के लट्टू की ओर देख रहा था | औरों ने क्या किया - पता नहीं | तों 'हप्पू' में कौन सबसे फिसड्डी निकला ? निर्विवाद रूप से वह बंडू था |लट्टू चलाते वक्त उसने आनन् फानन में इतने जोर से लट्टू चलाया कि वह 'कतरी' चलता हुआ नाली में जा घुसा | जब उसने लपक कर लट्टू उठाया और दुबारा चलाने की कोशिश की, तब तक काफी देर हो चुकी थी | सब लोग 'हप्पू' ले चुके थे | बीच के गोल घेरे में उसे अपना लट्टू रखना पड़ा |<br />
<br />
अब सब लोग को बारी -बारी से लट्टू इस तरह चलाना था क़ि वह बंडू के लट्टू को, जो क़ि घेरे के अन्दर था, छूते हुए चले और चल कर घेरे से बाहर निकले | अगर वह घेरे के अन्दर ही चलते रह जाता तों बंडू उसे लपककर दबा सकता था | तब उस खिलाडी का लट्टू भी बीच के दायरे में आ जाता | अगर उस खिलाडी का लट्टू बंडू के लट्टू को छू न पाए और दायरे के बाहर ही रहे तों चलते ही चलते वह खिलाडी अपने लट्टू को 'हप्पू' लेकर जान बचा सकता था | अगर वह ऐसा न कर पाए, तब उसका लट्टू भी दायरे के अन्दर बंडू के लट्टू से गलबहियां डाले नज़र आता |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">अरे हाँ | जैसे एक टुल्लू था, वैसे ही उससे चार साल बड़ा, उसके ठीक विपरीत स्वाभाव का दुल्लू भी था | </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अभी खेल शुरू ही हुआ था क़ि बंडू का तारणहार बनकर दुल्लू आ गया | दुल्लू ? हाँ, सप्पन का सबसे छोटा भाई - तीन बदमाश भाइयों में सबसे छोटा - दुल्लू | और उसके पीछे - पीछे उसका 'लटकनिया' - चमचा - दीपक |<br />
उसे पता चला क़ि खेल अभी अभी शुरू हुआ है |<br />
<br />
"फिर से शुरू करो बे|" उसने आदेश दिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
भला किसकी मजाल होती क़ि 'संकेतात्मक प्रतिवाद भी कर सके |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
जहाँ एक नया खिलाडी आया , वहीँ एक नया दर्शक भी आ गया | हमें पता ही नहीं चला क़ि कब शशांक बगल में आकर खड़ा हो गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />लेकिन इस बार 'हप्पू की बम बम ' में दर्शकों की निगाहें अपने भाइयों पर नहीं, दुल्लू के हाथ की ओर लगी थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> सबने जल्दी जल्दी रस्सी अपने लट्टू के इर्द गिर्द लपेटी |शंकर ने जैसे ही ' एक दो तीन ' कहा, सबने अपना लट्टू चलाया | लेकिन दुल्लू ? उसके लट्टू ने जमीन ही नहीं छुआ |उसने जैसे ही रस्सी खिंची, 'सर्र' से लट्टू हवा में लहराया और एक शिकारी बाज की तरह अपने मालिक की फैली हुई हथेली , यानी वापस दुल्लू के हाथ में घूमने लगा |<br />
<br />
" ...उपरी - ऊपर ..." हाँ, यह 'उपरी ऊपर ' था | मतलब लट्टू के बिना जमीन में घूमे ही 'हप्पू' ....| सबके बस का नहीं था ये | काफी मेहनत करनी पड़ती थी |दीपक तो जैसे दीवाना हुआ उसके आगे पीछे नाच रहा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
लेकिन दुबारा हुई 'हप्पू की बम बम' का वही नतीजा निकला | बंडू एक बार फिर पकड़ा गया | उसका लट्टू चला जरुर , लेकिन हप्पू लेते समय रस्सी से उलझ गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तों खेल शुरू हुआ | सब दम साधे देख रहे थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सबसे पहले एक टांग उठाकर , गोले के अन्दर रखे लट्टू को निशान बनाकर विनोद ने लट्टू चलाया | लट्टू चला क्या, वह तो दुल्लू क़ी काली कोल्हापुरी चप्पल को छूते हुए निकल गया |या यूँ कहा जाये क़ि दुल्लू ने फुर्ती से पाँव खींच लिया वर्ना अनर्थ हो गया होता |<br /><br />
"अबे भोंदू |" दुल्लू जोर से चींखा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उस दिन से , हाँ, उस दिन से विनोद का प्यार का नाम "भोंदू" हो गया | हम बच्चों के लिए नहीं, बल्कि उसके हम उम्र दोस्तों के लिए | जब उससे लड़ाई होती थी, तों "भोंदू" शब्द को और भी विकृत करके, एक गाली का रूप दे दिया जाता |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
खींसें निपोरते हुए विनोद ने लट्टू नाली से निकाला और चुपचाप गोले के बीच रख दिया |<br />
<br />
गोगे की बारी आई | अपने जूडे में फंसी कंघी ठीक करके उसने लट्टू चलाया | उसके लट्टू ने बंडू के लट्टू को हल्का सा छुआ | इतना हल्का सा, मनो उसकी हवा लगी हो |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हिलचुल | हिलचुल भाई |" वह जोर से चिल्लाया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अबे सरदार, कोई हिलचुल नहीं, चुपचाप लट्टू बीच में रख दे |" राजू चीखा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"चुप बे , सिन्धी |" गोगे अकड़ गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
हम लोग इंतज़ार कर रहे थे क़ि "सरदार जी क़ी खोपड़ी में बारह अंडे थे ..|" या "चार चवन्नी थाली में, सिन्धी बाबा नाली में ..|" वाला जूमला अब उछला, तब उछला - पर कुछ हुआ नहीं | मामला दुल्लू क़ी अदालत में था | सब दुल्लू क़ी ओर देख रहे थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"चलने दे बे, चलने दे |" दुल्लू ने फैसला सुनाया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बबलू का नंबर जब आया तो लम्बी नुक्की वाला लट्टू एक पतंगे क़ी तरह फड़फड़ाया और दोनों लट्टुओं को छूता हुआ गोले के बाहर निकल गया | किसी भी क्षण वह रुक सकता था | पर दुल्लू को वह लट्टू बहुत पसंद आया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"दिखा, दिखा |" वह बोला | लट्टू पकड़ कर वह ध्यान से देखने लगा , "वाह बेटा, गूच मारने के लिए अच्छा है |"<br />
<br />
गुड्डा और राजू उतने भाग्यशाली नहीं रहे | उनके लट्टू बीच गोले में आ गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अब बारी थी - दुल्लू क़ी | जब उसका लट्टू मुरम क़ी सड़क को चूमा, वह बाग़ में गुनगुनाते भंवरे की तरह 'भन्न' कर रहा था इतने इतनी तेजी से वह घूम रहा था, मानो लग रहा था क़ि अपनी जगह स्थिर हो |नीचे झुककर दुल्लू ने दो उंगलियाँ फैलाई और झटके से हथेली लट्टू के नीचे घुसा दी | अगले ही पल लट्टू उसकी हथेली में नाच रहा था , एक आज्ञाकारी बन्दर की तरह |दीये की लौ की तरह नाचते हुए लट्टू को लेकर वह फुर्ती से दायरे में रखे लट्टुओं की ओर बढ़ा | उसके लट्टू ने झुण्ड में रखे लट्टुओं को इतने जोर से टक्कर मारी क़ि सारे के सारे लट्टू दायरे के बाहर आ गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
घेरे में एक भी लट्टू नहीं बचा |<br />
<br />
"हप्पू की बम बम |" शंकर ने किलकारी भरते हुए घोषणा कर दी | सारे के सारे अपने लट्टू में जल्दी जल्दी रस्सी लपेटने लगे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
इस बार "हप्पू की बम बम " में दुल्लू खुद फँस गया | एक बार फिर "उपरी ऊपर" लेने की कोशिश में उसने लट्टू इतने जोर से घुमाया कि वह हमारे सर के उपर से होता हुआ नाली में जा घुसा | नाली में भी 'घूं' करते हुए उसने हैज़ के कई सूखे पत्तों का कचूमर निकाल दिया | उसका चमचा दीपक तुरंत लट्टू उठाने हमरे बीच से भागा | <br />
अब दुल्लू की निगाह हम पर पड़ी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्या देख रहे हो बे ? यहाँ लड्डू बँट रहा है क्या ? अपना रास्ता नापो |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
थोडा इधर उधर हिलने के बाद हम फिर वहीँ जम गए |खेल तों अभी शुरू हुआ था | दुल्लू का लट्टू अभी गोले के अन्दर था | देखना यह था कि उसे गोले से निकालता कौन है | देखा जाए तों साँप छछूंदर की सी स्थिति थी | अगर उसके लट्टू को निशाना साधकर लट्टू चलाया जाये, तों उसके लट्टू में 'गुच' लगने आशंका थी | उससे बिगाड़ कौन मोल ले ? अगर उसके लट्टू को छुआ ना जाये तों अपना खुद का लट्टू गोले में फँस जाता | और देखते ही देखते तीन और लट्टू गोले में फँस गए |चार के बाद में पाँचवे लट्टू को गोले के अन्दर रखने क़ी जगह ही न थी | अगर सारे के सारे लट्टू गोले में इकठ्ठा हो जाते तों एक बार फिर "हप्पू क़ी बम बम" होती |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
...और जिसकी आशंका थी ,वह कमाल हो ही गया || सबके सब लट्टू बीच के गोल घेरे में आ गए - सिवाय बंडू के लट्टू को छोड़कर | यह महज़ संयोग ही नहीं था, वह दुविधा , जिसका मैंने जिक्र किया था , भी खिलाडियों के दिमाग में छाई थी | बीच का गोला और भी बड़ा किया गया , ताकि सारे लट्टू समां सकें | बंडू ने लट्टू चलाया ,लेकिन वो गोले से दूर चला | अब उसे लट्टू पास लाकर या तो सारे लट्टुओं में से किसी एक से छुआना था, या फिर हप्पू लेना था | सारे गोले तक लाना उसके लिए टेढ़ी खीर थी | लट्टू नाली के कगार पर चल रहा था | उसने बंद होते हुए लट्टू के गिर्द रस्सी का फंदा डाला ही था कि लट्टू फिसल कर नाली में घुस गया | <br />
<br />
"हप्पू की बम बम ....|" शंकर गला फाड़कर चिल्लाया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />भन्न ..., भन्न... , भन्न .... तरकश से निकले तीर की तरह लट्टू एक बार फिर जमीन में घूमने लगे और उनके मालिक आनन् फानन में हप्पू लेने लगे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />इस बार छोटे का भाई रमेश पकड़ा गया | उसने लट्टू गोले में रख दी और बगल में हाथ बांधे मुस्कुराता हुआ खड़ा था | वो तो मुस्कुरा रहा था , लेकिन छोटे का चेहरा उतर गया था | पहली बारी बंडू की थी | उसने रमेश के लट्टू को तानकर अपना लट्टू छोड़ा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />उसका लट्टू गोले के अन्दर ही था क़ि रमेश ने लपक कर उसका लट्टू गोले में दबा दिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />बंडू वैसे भी फिसड्डी ही था -इस खेल में | फिर अपना लट्टू बीच गोले में आना उससे सहन नहीं हुआ |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"तूने मेरा लट्टू क्यों दबाया ?" वो बिफर गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"क्योंकि वो गोले के अन्दर था |" रमेश ने शांति से जवाब दिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"वो अन्दर नहीं था | वो बौंडरी में था |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"नहीं | अन्दर था |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"पिछले गेम में तुम लोगों ने गोला बड़ा किया था | इसलिए ....|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"तो वो तुझे 'हप्पू की बम-बम' के पहले बोलना था | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"मैं नहीं खेलता, तुम लोग चिडिंग खाते हो |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"कौन चिडिंग खा रहा है बे ?" रमेश को तैश आ गया ,"मैंने गोला बड़ा किया था क्या ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />दुल्लू अब तक मुस्कुराता हुआ नमक मिर्ची का वार्तालाप सुन रहा था | अब उसके बीच में कूदने का समय आ गया था | वो बोला ,"कढीचट , लट्टू बीच में रख दे बे |" </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
"मैं नहीं खेलता |" बंडू लट्टू उठाकर जाने लगा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"अबे रुक |" दुल्लू गरजा | बंडू के कदम ठिठक गए , ,"इधर आ .... इधर आ | ऐसे कैसे जा रहा है ? दाम देकर जा |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"काके का लट्टू भी तो है गोले में |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"में तो नहीं जा रहा |" रमेश बोला |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"इस तरह बीच में जाना है तो सब दो दो गूच मारेंगे तेरे लट्टू में | मंजूर है ?" दुल्लू ने फैसला सुनाया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />बंडू रुआंसा हो गया था | थोड़ी ना नुकुर के बाद वो मान गया | नाली में एक डंडी से छोटा सा गड्ढा खोदा गया और उसमें बंडू का लट्टू टिकाया गया | सारे दर्शकों की सहानुभूति बंडू के साथ थी | कुछ खिलाडियों ने भी कहा, "जाने दे बे |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"कैसे जाने दे|" दुल्लू दहाडा ,"तुम लोगों को गूच नहीं मारना है , मत मारो | मैं तो मारूँगा |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"मैं भी मारूंगा |" काके बोला |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"तू क्यों मारेगा ?" लगभग सिसकते बंडू बोला ,"तेरा लट्टू तो गोले में था |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"अबे रोंदू | लट्टू इधर दे | अभी दो फांक करता हूँ |" दुल्लू बोला |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />उसने लट्टू को नाली के गड्ढे में रखकर अपने लट्टू की नोक से एक करारा प्रहार किया | बंडू के लट्टू से लकड़ी का एक छोटा सा टुकड़ा उछल कर बाहर गिरा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"छिलपट |" दुल्लू ने युद्ध घोष किया ,"छिलपट | हा .. हा .. हा... |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />बंडू लट्टू उठाकर जाने लगा कि दुल्लू ने उसका कलर पकड़ लिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />सब लोग सन्न रह गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"अभी एक गूच और बाकी है | अभी तो दो फांक करना है |" उसने निर्दयता से कहा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />उसने दूसरा प्रहार किया और बड़ा 'छिलपट' निकाला | दुल्लू ने पहले से भी बड़ा युद्ध घोष किया | बंडू रो पड़ा | <br />
वह लट्टू उठाकर जाने लगा | सब खिलाड़ी खड़े होकर देखते रहे | किसी ने और कोई गूच मारने क़ी जिद नहीं क़ी | रमेश ने भी नहीं ....|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />जब बंडू घर जा रहा था , तो मैंने देखा , शशांक भी घर जा रहा था - उससे कुछ ही कदम आगे | शशांक के घर के गेट पर उसकी माँ खड़ी थी | शायद इस हल्ले गुल्ले में हमने उनकी पुकार सुनी नहीं थी | पता नहीं, उन्होंने पुकारा भी था या नहीं , या शशांक यूँ ही स्वतः चल पड़ा था | <br />
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*************<br />
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तो यह तय हुआ क़ि छोटे को पीटा जाए | देखा जाये तों छोटे ने कोई विकल्प ही नहीं छोड़ा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
हुआ ये क़ि हम लोग कागज़ का हवाई जहाज उड़ा रहे थे और उसका पीछा कर रहे थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अचानक सड़क की छोटी पुलिया के पास वह अवतरित हुआ | कौन ? वो ...अरे वो ...|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अब क्या कहूँ ? कैसे उसका परिचय दिया जाये ?अगर मैं कहूँ ,"बाइस्कोप वाला " तों आजकल के बच्चे पूछेंगे, " बाइस्कोप ? वो क्या होता है ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अब कैसे बताया जाए, बाइस्कोप क्या होता है ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ऐ शहर के रहने वालों " , वह मूछों वाला , धोती वाला बुड्ढा , देसी घी से बना बदन, लम्बा कद, चौड़ा सीना, पहरावा - धोती कुरता , सर पर गांधी टोपी , डोक्टर राजेन्द्र प्रसाद की तरह करारी मूंछें ...| एक हाथ में बड़ा सा चोंगा, जिसमें वह घोषणा करता ,"आ गया, आपका मनोरंजन करने , आपको घर बैठे दुनिया का सनीमा दिखाने ...| पाँच पाँच पैसे में ... | दारा सिंग की कुश्ती , चाँद पर आदमी,इंदिरा गाँधी का भाषण ... सब देखो ... | पाँच पाँच पैसे में ...| पाँच नए पैसे ... "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वह छोटी पुलिया पार करके, थोड़ी ही दूर में ही ठहर गया था | दीपक के घर के पास भी नहीं पहुंचा था | उतना ही उसके लिए काफी था | ये नहीं क़ि भारी भरकम बाइस्कोप का बोझ कंधे पर उठाये उसे सड़क के एक सिरे से दूसरे सिरे जाना पड़ता | अपितु कारण यह था क़ि इतनी ही दूरी उसके लिए काफी थी | इतनी ही दूरी और देरी में वह बच्चों से घिर जाता था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तों हम लोग छुआ छुई ही खेल रहे थे और छोटा दाम दे रहा था |जैसे ही यह आवाज़ कानों में पड़ी, सब छोड़-छाड़ के वह भाग खड़ा हुआ |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उसके पीछे पीछे हम लोग भी भागे| जहाँ उसे जाना था, वहां हमें भी जाना था | यह दीगर बात है क़ि किसी की भी जेब में पैसे नहीं थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बाइस्कोप क्या था ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
एक हरे रंग का पाँच कोने वाला बक्सा था , जिसमें हीरो , हिरोइन, ताजमहल, कुतुबमीनार, हवाई जहाज , परेड करती भारतीय सेना की तस्वीरें चिपकी थी | पाँच कोने यानी कि पाँच साइड | पीछे के छोर में तों वह बुड्ढा ही खड़ा था | बाकी हर साइड में एक- एक या दो दो अल्युमिनियम के टिफिन के डिब्बे जड़े थे | जी हाँ, वो टिफिन के डिब्बे ही थे | वह बुड्ढा हर बच्चे से पाँच पाँच पैसे वसूलता और एक टिफिन का डिब्बा खोल देता | वह बच्चा डिब्बे के दोनों तरफ हथेलियों से दृश्य छिपाकर अपना सर तिलस्मी दुनिया में घुसा देता था | जो कोई छोटा बच्चा वह नहीं कर पाता तों वह बुढ़ऊ उसे हथेलियों से दृश्य छुपाने में मदद करता | तात्पर्य यह, कि वह ये सुनिश्चत करता कि उसके पास जितने पाँच के सिक्के हैं, उतने ही दर्शक हों |इसके बाद वह ग्रामोफोन पर एक पुराना घिसा हुआ रिकॉर्ड लगा देता और ऊपर लगा हुआ हँडल एक समान गति से घुमाते रहता |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />मुझे याद नहीं पड़ता कि मैंने कभी बाइस्कोप का कोई पूरा शो देखा हो | बाइस्कोप एक तरह से सिनेमा समझा जाता था और सिनेमा देखना उन दिनों लोग बुरी बात मानते थे |कतिपय सिनेमा, जो कि बड़े बुजुर्ग आपस में बात करके तय करते थे , कि बच्चों के देखने लायक है, को छोड़कर बाकी सारे सिनेमा वाहियात क़ी निशानी माने जाते थे | भद्दे भद्दे नाच गाने, बेशरम हीरोइने , चाक़ू , बंदूक और खून खराबा, आवारागर्दी करते हीरो - अरे ये तो बच्चों क़ी पीढ़ी को बर्बाद करने क़ी साजिश है | राम , राम .... तो ऐसे में घर से पैसे मिलने की गुंजाइश ही कहाँ थी ? | हाँ ताक़ -झाँक करके जरुर मैंने कुछ दृश्य देखे थे | एक अजूबा ही था | एक छोटे से बक्से के अन्दर एक पूरा संसार दिखता था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />तों हम भागते हुए बाइस्कोप के पास पहुंचे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
हमारे वहां तक पहुँचते-पहुँचते अच्छी खासी भीड़ इकठ्ठा हो गयी थी | सड़क में छोटे बच्चों की कमी तो थी नहीं | दीपक की दादी "अम्मा" दीपक के छोटे भाई बंटी का हाथ पकड़े खड़ी थी | सड़क के पहले मकान यानी १"अ" में कोई बंगाली परिवार रहता था, जिसके घर मैंने चाभी से, पटरी पर चलने वाली रेल देखी थी | वह आंटी उनींदी सी बच्ची को लिए खड़ी थी | किकी की माँ भी किकी को लिए दूर से आ रही थी | रीटू और संजीव का छोटा भाई इक्कीस सड़क से, अपनी मम्मी के साथ आया था |<br />
<br />
अचानक मुन्ना को क्या सूझा, वह बोला , "देख बे, देख | काला तोता - डिब्बे के पीछे बैठा है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
काला तोता ? आप कहेंगे, तोता भी कहीं काला होता है ? पर मुन्ना ने इतने विश्वसनीय तरीके से संजीदा होकर कहा था कि मन में <span id="6_TRN_55">कौतूहल</span> जग ही गया | पर फिर भी , कदम ज़रा से ठिठके ही थे | जिसके क़दमों पर अंकुश नहीं लगा, वह छोटा ही था | वह काला तोता देखने बाइस्कोप के पीछे चला गया | मुन्ना ताली मारकर हँसा ,"बुद्धू बनाया , लड्डू खिलाया, " असली जुमला होता था, "खड़े खड़े सात जनों को छुओ |" मुन्ना ने उसे मरोड़ कर कहा ," बैठे बैठे सात जनों को छुओ |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
छोटे को गलती का अहसास हो गया | वो उल्लू बन गया था | अब सामान्य जुमले के अनुसार उसे "खड़े खड़े " सात जनों को छूना था | वह बाइस्कोप देखने आये लोगों की ओर लपका ,"एक .. दो.."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मुन्ना बोला, " अबे खड़े खड़े नहीं, बैठे बैठे सात जनों को छुओ |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
भला बाइस्कोप देखने वालों में आपको कौन बैठा हुआ नज़र आएगा ? उस समय तो छोटी पुलिया में भी कोई बैठा नहीं था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />और छोटा वहां से भाग खड़ा हुआ |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पकड़ो, पकड़ो साले को | भाग रहा है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सामने से शशांक अपनी माँ के साथ आ रहा था | छोटा सीधे शशांक से टकराया | दोनों की खोपड़ी 'टन्न' से बज उठी | बदहवासी में भी छोटे ने होश हवास नहीं खोये और झट से रुक कर अपना सर एक बार फिर से शशांक के सर से टकराया - इस बार धीरे से |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
क्यों ? अगर वो ऐसा नहीं करता, तों उनके सर में सींग उग जाते !</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वो फिर भागा | उसके पीछे भागता मगिंदर तो शशांक की मम्मी से टकराते-टकराते बचा | शशांक की मम्मी की आग्नेय दृष्टि से हम सब सहम से गए और सर झुकाकर खिसक गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तुरंत आनन्-फानन में पंचायत बैठी और छोटे के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पास किया गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
" वो हरदम ऐसा ही करता है | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"छुआ छुई हो या रेस टीप |जब दाम देने की बारी आती है , वो घर भाग जाता है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अगर दाम नहीं दे सकते , तो बारह मुक्के खा लो | बात ख़तम ...|"<br />
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बदला लेने का सबसे सहज और सुगम तरीका था कि उसके घर के सामने के हैज की झाड़ी में रात के समय चुपके से "अमर बेल" फेंक दी जाए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अमर बेल ?" हाँ - अमर बेल | वह बेल, जो कभी मरती नहीं, चाहे जितने टुकड़े कर दो | कभी सूखती नहीं, बल्कि जिस झाडी या पौधे पर <span id="6_TRN_55">ड़ाल </span>दी जाए, उसका रस चूस कर उसे ही सुखा देती है | अगर उसे हैज में फेंक दो , तो वह हैज में फैलती ही जाती थी और हैज थोड़े ही दिनों में सुखकर पत्तों से रहित हो जाता था | अमर बेल खोजना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं था | जिसका भी घर खाली होता था , एकाध महीने तक कोई आता नहीं था | उतना समय काफी होता था, अमर बेल के लिये , कहीं से भी प्रकट होने और पनपने के लिए | अनिल ने बताया कि उसके <span id="6_TRN_55">बाजू</span> वाले , यानी कि सड़क के अंतिम छोर पर बड़ी पुलिया के पास वाला घर खाली हुआ था |<br />
<br />
छोटे के पीटने की मूल योजना में मैं भी शामिल था | गुस्सा मुझे भी था | फिर पता नहीं , क्या हुआ , मैं पीछे हट गया | |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्या हुआ बे ?" बबन ने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मुझे अच्छा नहीं लग रहा है | क्यों पीटना किसी को ? लड़ाई झगडा बंद करो | गाँधी जी को याद करो |" मैंने कहा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बबन थोड़ी देर तक मुझे घूरते रहा | फिर बोला ," तू साले डरपोक है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उसके शब्दों में ललकार छुपी हुई थी | शायद में तैश में भी आ जाता | तभी शशांक बोला ," चार लड़के मिलकर एक को पीट रहे हैं | उसमें कौन सी बहादुरी है ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"चुप बे चश्मुद्दीन |" बबन बोला ,"उसने उस दिन तेरा चश्मा तोड़ा | मैं होता तो घुमा के एक हाथ देता |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तोड़ा नहीं, चश्मा थोड़ा सा टेढ़ा हुआ था | तुम लोग तो उसे दौड़ा रहे थे |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बबन कुछ नहीं बोला | लेकिन अगले ही पल उसने छोटी ऊँगली दिखाई | मैंने भी अपनी छोटी ऊँगली निकाली | हम दोनों ने एक दूसरे की छोटी ऊँगलियों को तीन बार टकराया और अब हम "खट्टी" हो गए | यानी हमारी दोस्ती टूट गयी | उसने शशांक से भी "खट्टी" कर ली |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अगले ही क्षण मुन्ना ने भी अपने हाथ की छोटी ऊँगली मेरी ओर बढ़ा दी .... |<br />
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बबन से " खट्टी" करते समय मुझे थोड़ा दुःख तों जरुर हुआ था , पर मुन्ना से "खट्टी" करते समय बहुत ज्यादा दुःख हुआ | जी कड़ा करके मैंने उससे भी "खट्टी" कर ली | उससे तीन बार ऊँगली टकराई ही थी, क़ि मैंने देखा सोगा और मगिंदर भी छोटी ऊँगली निकाले खड़े थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
भारी मन से मैं बाहर आ गया | उस भीड़ से अलग हटकर पत्थर को ठोकर मारने लगा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
हाथ में एक डंडी लेकर उसे गाड़ी की स्टीरिंग की तरह घुमाते अनिल आया | उनकी भीड़ में घुसकर उसने उनसे थोड़ी बहुत बात क़ी होगी | फिर अगले पल वह मेरे पास आया और उसने अपनी छोटी उंगली मेरी ओर बढ़ा दी |<br />
अब मेरे साथ शशांक ही बच गया था | सबने उससे भी "खट्टी" कर ली थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"चल अपन दोनों खेलते हैं |" शशांक ने कहा | उसने मेरे गले में बाहें डाल दी ," अपन दोनों दोस्त | चल पकाएं ग़ोश्त | ग़ोश्त में डाला आलू | अपन दोनों भालू |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पिछले कई दिनों से पता नहीं क्यों, मुझे शशांक अच्छा नहीं लग रहा था |जब भी उससे बातें करता , तो लगता क़ि दूर कहीं से दो जोड़ी आँखें मुझे घूर रही हैं |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"शशांक...|" दूर से किसी ने उसे पुकारा और मैं छिटक कर अलग हो गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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ठीक है, ठीक है | गुस्सा मुझे भी आया था, पर ईमान से कहूँ तो छोटे से मेरी कोई दुश्मनी तो थी नहीं |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"छोटा |" उसके घर के सामने क़ी पटरी पर खड़े होकर मैंने पुकारा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तीन बार आवाज़ लगाने के बाद छोटा सहमता हुआ बाहर आया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"चल, चक्का चलाते हैं |" मैंने कहा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उसने ना में सर हिलाया | उसे घर के अन्दर ही रहना सुरक्षित लग रहा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
किसी के घर जाकर खेलना मुझे कभी अच्छा नहीं लगा | छींको तो मुसीबत , खांसो तो मुसीबत, सोफे में बैठो तो 'सम्हालकर बैठो', पांव गंदे तो समस्या, पेंट से धागा निकल रहा हो तो मुश्किल .... | लेकिन छोटे की हालत देखकर कुछ किया भी तो नहीं जा सकता था | हाथ से बाल संवारते हुए मैं अन्दर घुस गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तुझे पंखा बनाना आता है ?" मैंने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अगले ही क्षण मैंने एक किराने का सामान बाँधने के लिफाफे से कागज की तीन पतली पतली पट्टियाँ काटी , उन्हें बीच से मोड़ा, छोरों को फाड़कर उनके आकार को थोडा छोटा किया | उन्हें एक दूसरे में फंसाया और खींचते गया }</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"एक झाड़ू क़ी डंडी ले आ |" मैंने फुसफुसा कर कहा | उसकी माँ ना सुन ले |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
छोटा चुपके से बांस के झाड़ू से एक सींक निकाल ले आया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैंने सींक में पंखे क़ी नोक फंसाई ओर दौड़ा | अगले ही पल पंखा घूमने लगा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मुझे दिखा, मुझे दिखा | मेरा पंखा है |" छोटा खुशी से उत्तेजित होकर मेरे पीछे दौड़ा | </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
" हाँ बे | तेरा पंखा है | ले ...|" मैंने उसे थमा दिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उसके घर में कोई नहीं था | न तो काके, ना आशा ओर ना ही पढ़ाकू भाई विजय - जिसे मैंने हमेशा आँगन के पास वाली परछाही में कुर्सी लगाकर पढ़ते देखा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तुझे चकमक पत्थर से आग जला के दिखाऊं ?" उसने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्या ? आग ?" मेरे कान खड़े हो गए | आँखों के सामने फिर अस्पताल के बच्चे क़ी तस्वीर घूम गयी ," चकमक पत्थर ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />" हाँ , चकमक पत्थर से आग ...| आजा मेरे साथ ...|" उसने मेरा हाथ पकड़ कर एक ओर खींचा | </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वह मुझे अपने घर के शयन कक्ष , यानि "पंखा खड" , यानी वो कमरा जहाँ छत से लटका पंखा लगा होता है , वहाँ ले गया | वो लकड़ी के तख़्त के नीचे घुस गया ओर फिर मुझे आवाज़ दी , "तू भी आ जा |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मेरा दिल धड़क रहा था | कहीं उसने सचमुच पत्थर से आग जला दी तों ? सारा बिस्तर जल जायेगा | फिर भी , कौतूहलवश मैं अन्दर चले गया | मैंने माचिस क़ी तीली से आग जलती देखी थी | लक्ष्मी भैया ने मुझे "पावर कांच" ( आवर्धक लैंस ) से कागज़ जलाकर दिखाया था |अब छोटा पत्थर से आग जला रहा है .. | </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">उसके हाथ में दो छोटे 'चकमक' पत्थर थे | बाद में जब मैदान में घर बनने शुरू हुए तो उसमें लगने वाले रेत के ढेर में हमें अनेकों 'चकमक' पत्थर मिले | किन्तु उस समय तो वे मेरे लिए एक अजूबा ही थे | क्या इन सफ़ेद, भूरे, मटमैले और थोड़े चमकदार पत्थरों में वाकई आग भरी है ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">मैं दिल थामकर तख़्त के नीचे अन्दर घुस गया | उसने दोनों पत्थरों को आपस में रगड़ा | एक बार ..., दो बार..., तीसरी बार में एक चिंगारी निकली |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"देखा तूने ?" वह उत्साह से बोला |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
ठीक है , वह आग तों नहीं थी, केवल चिंगारी थी | फिर भी यह एक नयी बात थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैंने भी अँधेरे में चकमक पत्थरों को आपस में दो - तीन बार रगड़ा | एक जोर से चिंगारी निकली और थोडा धुआं भी निकला |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
" अरे वाह", बरबस उसके मुंह से निकला,"देखा, थोडा धुआं भी निकला ना |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सामने आले में टीन का एक रंग बिरंगा सूअर रखा था | इतना प्यारा सा खिलौना था कि मैंने पूछ ही लिया , "यह किसका खिलौना है ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ये खिलौना थोड़ी है |" वह बोला , "यह एक बैंक है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"बैंक ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ, , बैंक | बैंक, जिसमें पैसा जमा करते हैं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तुझे कहाँ से मिला ?" मैंने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पिता मुझे एक बैंक में ले गए थे | क्या नाम था उसका ? पंजाब ... पंजाब नेशनल बैंक | वहां से मुझे मिला है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैंने उसे हिलाकर देखा, 'छन छन " कर रहा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />उसके पीठ में एक छेद था , जिसमें वह पैसे डालता होगा | मैंने अन्दर झाँक कर देखा, मुझे कुछ भी नहीं दिखाई दिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कितना पैसा है - खोलकर दिखायेगा ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मैं खोल नहीं सकता | कोई भी खोल नहीं सकता - पिता भी नहीं | चाभी एक सरदार जी के पास है | वो एक महीने में एक बार आते हैं और पैसे निकाल कर ले जाते हैं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कहाँ ? "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"बड़े बैंक में | वहां एक कमरे में बहुत पैसा भरा रहता है | वहीँ डाल देते हैं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पर पैसा तों तेरा है | तुझे क्या मिलता है ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उसे क्या मिलता है, उसे खुद पता नहीं था | इतना पता था क़ि जब वो बड़ा हो जायेगा तों उस पैसे से एक साइकिल खरीद सकता है , या एक घडी खरीद सकता है | अगर पैसे ज्यादा हो गए तों शायद एक स्कूटर भी खरीद सकता है |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
*************<br />
<br />
"हाँ बेटा, पैसे जमा करना चाहिए |" मैंने बाबूजी को बताया तों बाबूजी बोले |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
घर में इतने मेहमान आते थे | कभी कोई जाते समय पांच पैसे दे देता था तों कोई दस पैसे - "खाई - खजाना" के लिए | वो पैसे मैं कभी माँ को दे देता था , कभी-कभार चॉकलेट या चूरन की गोली में उड़ जाते थे | कई बार यूँ ही खेलते - खेलते सुबह होते-होते ही गायब हो जाते थे | एक बार मेने और मुन्ना ने पैसे का पेड़ उगाने की कोशिश भी की | पैसा पिछवाड़े में , एक कोने में गाड़ दिया | शाम को जब माँ पाइप से पौधों को पानी देती थी, तो चुपके से वह जगह मैं भी सींच देता था | पर कोई पेड़ नहीं उगा | बबलू भैया खुशकिस्मत थे | उनको डोक्टर धोटे ने एल्युमिनियम का, दवाई का एक बेलनाकार डिब्बा दिया था | उसमें ही वो सिक्का डाल देते थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अगली बार जब श्यामलाल मामा सुपेला बाज़ार गए तों मेरे लिए मिट्टी का बना , ईंट के रंग का , बेडौल सा गुल्लक ले आये |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"यह क्या है ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पोरहा }" माँ ने बताया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्या ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पोरहा | तू अपने चिल्हर पैसे इसमें ही डालते जाना |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पर इससे पैसे कैसे बाहर निकालेंगे ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
जब भर जाएगा , तों फोड़ देंगे |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मेरा दिल बैठ गया | छोटे के पास रंग बिरंगा गुल्लक था और मेरे पास ये बेगढ़ा मिट्टी का पोरहा | छोटे के सूअर से समानता ये थी क़ि दोनों में पैसे डालने के लिए एक झिर्री बनी थी | बस - उसके आगे समानता का अंत हो जाता था | जो भी हो, अब मेरे पास ये बैंक था |<br />
<br />
*************<br />
<br />
"अपन दोनों दोस्त, चल पकाएं गोश्त, गोश्त में डाला आलू, अपन दोनों भालू ....|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />शशांक ने कहा था न ये ... | और मैं शशांक के घर जा पहुंचा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वैसे शशांक के घर जाना थोडा सा ज्यादा मुश्किल था | छोटे के घर तो पास में था | शशांक के घर तक पहुँचते हुए आधी सड़क पार करना पड़ता था, जिसमें मुन्ना , सोगा मगिन्द्र और बबन के घर शामिल थे | वे अक्सर खेलते रहते थे और उनके ताने और व्यंग्य बाण चलते रहते थे | छोटे सुरेश का घर भी था, पर वह अपेक्षाकृत शांत था | खट्टी उसने भी कर ली थी , पर उसे सिवाय मुस्कुराने या न मुस्कुराने के, कोई सरोकार नहीं था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
आधी सड़क पार भी कर लो तो शशांक के घर की दहलीज लांघना उससे कम बड़ी समस्या नहीं थी | बल्कि आकार में वह उससे कहीं बहुत ज्यादा बड़ी थी | या यूँ कहा जाए कि असली परीक्षा तो यहीं से शुरू होती थी | छोटे के लिए तो उसके घर की पटरी पर खड़े होकर आवाज़ लगाओ, वह आ जाता था | शशांक के लिए आज तक मैंने किसी को आवाज़ लगाकर बुलाते नहीं देखा था | वह स्वयं चलकर हमारे साथ खेलने आता था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैंने हिम्मत करके शशांक की पटरी पर खड़े होकर आवाज़ लगाईं ,"शशांक ...|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
दोबार आवाज़ लगाने के बाद दरवाजा खुला | मेरा दिल जोर से धड़कने लगा | हे भगवान् , अब भी मौका है ... | क्या भाग जाऊं ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />पर पैर मानो पटरी में जम गए थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"क्या चाहिए ?" उसकी मम्मी ने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"आंटी, शशांक है क्या ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
घर में होगा नहीं तो कहाँ जायेगा ? सड़क में तो सबने खट्टी कर ली है |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तुम्हारा नाम क्या है ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"टुल्लू |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
शशांक की मम्मी पता नहीं, किस भाषा में कुछ बोली | अन्दर से शशांक ने कुछ जवाब दिया और वह खुद दरवाजे पर आ गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अन्दर आ जाओ |" उसकी मम्मी बोली |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"टुल्लू, अन्दर आ जा |"मम्मी की अनुमति पर शशांक ने मुहर लगा दी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैं तो शशांक को घर से बाहर निकालने आया था | उसने मुझे ही अन्दर बुला लिया ... | जैसे जैसे मैं अन्दर घुसा, ऐसा लगा मानो हर एक कदम के साथ किले का एक और दरवाजा बंद होते जा रहा है | मुझे अब सिर्फ शशांक दिखाई दे रहा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"शशांक, बाहर खेलने चलें ?" मैंने एक आखिरी कोशिश की |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
कई कारण थे -ऐसा महसूस होने के | अगर दिन भर धूल मिट्टी में नंगे पाँव खेला जाए तो पांव तो गंदे होंगे ही | ऐसे गंदे पाँव लेकर छोटे के घर में घुसना अपेक्षाकृत आसान था |ज्यादा से ज्यादा छोटे की माँ डांट डपट देती और फिर मेरे अन्दर आने के बजाय छोटे को बाहर भेज देती | बात वहीँ ख़तम हो जाती | पर यहाँ ? कभी मैं अपने पाँव की ओर देखता, कभी कमीज, जिसका बटन टूटा था और उस जगह एक सेफ्टी पिन लगा था | फिर मुझे याद आया कि कंघी तो मैंने सुबह की थी शायद |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
फल यह हुआ कि मैं बरामदे में ही ठिठक गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अन्दर आ न ?" शशांक ने आग्रह किया ,"कुछ नहीं होता |" </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कुछ नहीं होता ? क्या हो सकता था ? पर क्यों ? कैसे ?" कुछ सोचता हुआ मैं वहीँ खड़े रहा | कुछ सोचकर बोला, "यहीं ठीक है |" <br />
<br />
वह बाहर आया | मैंने अपने हाथ पीछे कर लिए थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्या है तेरे हाथ में ?" उसने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कुछ नहीं |" मैंने कहा | मेरी मुट्ठी और सख्त हो गयी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"दिखा तो |" वह मेरे पीछे आया | शुक्र है, घर से निकल कर बरामदे तक तो आया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कुछ नहीं बे |" मैंने कहा , "टिकटिकिया है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"टिक क्या ? टिक ... टिक .."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"टिकटिकिया |" मैंने कहा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"वो क्या होता है ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैंने झिझकते हुए उसे 'टिकटिकिया' दिखाया | कोका कोला क़ी ढक्कन को चपटा करके बीच क हिस्से को पीट पीट कर थोडा उभर दिया था | जब उसे दबाते थे , तो वह जोर से 'टिक टिक ' करता था | मैंने उसे 'टिक टिक' करके सुनाया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उसकी बत्तीसी निकल गयी ,"में बजा कर देखूं ?" उसने 'टिक टिक ' फिर 'टिक टिक ' बजाया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अबे, जल्दी जल्दी बजा |" उसने जल्दी करने क़ी कोशिश क़ी ,"और जल्दी | और जल्दी ...|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ऐसी 'टिकटिकिया' मैंने फेरी वालों के पास देखी है | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"फेरी वालों के पास तो बहुत कुछ होता है | यह मैने खुद बनाया है | कोका कोला के ढक्कन को ईंट से पीट पीट के |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कोका कोला का ढक्कन तुझे कहाँ से मिला ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कहीं से मिल जाता है बे | बाज़ार जा | हर दुकान के पास कचरे में कितने ढक्कन पड़े रहते हैं | एक उठा ले |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बात फिर से फेरी वालों पर आ गयी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तू फिरकी बना सकता है ?" उसने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"फिरकी ? क्या ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"वही जो हवा के साथ गोल गोल घूमती है | मुझे बहुत अच्छी लगती है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अच्छा | वो वाला पंखा ? हाँ, मैं भी बना सकता हूँ | पर उसके लिए आल पिन चाहिए | और कागज अच्छे से काटने के लिए कैंची भी चाहिए | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"आल पिन ? अभी लेकर आता हूँ |" वह अन्दर गया | उसने अपनी मम्मी से कुछ बात क़ी , फिर बाहर आकर बोला ," पर आल पिन मेरे पापा ने कहीं रख दी है | थोड़ी देर रुक , वो अभी आ जायेंगे |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"आल पिन छोड़, मैं तुझे अच्छा पंखा बना कर देता हूँ | तू कागज़ और बांस क़ी एक डंडी के आ |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कागज़ ? कैसा कागज़ ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कुछ भी | सामान बाँधने वाला कागज़, नहीं तो सिनेमा के 'फारम', तेरे पास होंगे कि नहीं, नहीं तो पुरानी कॉपी के पन्ने ..."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
ना तो उसके पास सामान बाँधने का कागज़ था, न सिनेमा का 'फारम' | ना तो उसका बबलू, बेबी जैसे भाई बहन थे, जिनकी पुरानी कॉपी होती | उसने फिर से अपनी मम्मी से बात की | जब वह लौटा तो उसके हाथ में तीन-चार 'फॉर्म' थे , पता नहीं किस के | पर हमें आम खाने से मतलब था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैंने कागज़ की तीन पतली पतली पट्टियाँ बनाई, बीच से मोड़ा , आपस में फंसा कर खींचा, छोरों को फाड़कर छोटा किया और पंखा तैयार |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मैं दो पंख और चार पंख वाला भी पंखा बना सकता हूँ |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उसे ज़मीन पर नोक के बल रखकर मैने फूंक मारी | पखा ज़मीन पर ही घूम पड़ा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
"ही .. ही .. ही .. |इसे उड़ायेंगे कैसे ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अबे, उसके लिए डंडी चाहिए होगी | तेरे घर 'खरारा बहिरी' है ?? बांस वाली झाड़ू , जिससे आँगन साफ करते हैं ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पता नहीं, आंगन तो नौकरानी आकर साफ़ करती है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"जाकर उसकी झाड़ू देख | वो बांस वाली झाड़ू होगी | जा उसकी एक सींक निकाल कर ले आ |" मैंने उसमें थोड़ी सी चाबी भरी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वह झाड़ू देखने अन्दर क्या गया , अगले ही पल मानो भूचाल आ गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उसकी मम्मी उस पर जम कर बरस पड़ी | कौन सी भाषा थी, मुझे कुछ पल्ले नहीं पड़ी | एक पल तो मुझे लगा मैं यहाँ चुपके से खिसक जाऊं | पर यह तो गलत होता | मैं भी झाड़ खाने के लिए तैयार हो गया | फिर शशांक बाहर आया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"यार वो झाड़ू तो गन्दी है | उसमें कीड़े होंगे | आँगन साफ़ करते है न उससे |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"चल, हैज की लकड़ी तोड़ते हैं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
हम उसके घर की हैज के पास पहुंचे ही थे कि उसकी माँ ने फिर से आवाज दी और फिर झिड़कियाँ |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
शशांक बोला,"टुल्लू | शाम हो गयी है | हैज में बहुत सारे कीड़े होते हैं | छोड़ यार , पंखी नहीं उड़ाते | कुछ और बनाते हैं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"एक काम करते हैं बे | तेरे पास पेन्सिल होगी ? पेन्सिल की नोक में फंसा कर उड़ाते हैं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
दो बार झिड़कियाँ खाकर शशांक पस्त हो गया था | वह बोला, "पंखा छोड़ दे , टुल्लू | मैं तुझे एक चकरी बनाकर दिखाता हूँ |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
एक भीषण अनिच्छा का बोझ उठाये मैं उसके साथ बैठ गया | उसने कागज मोड़कर एक वर्गाकार टुकड़ा बनाया | फिर उसे बीच से दो बार मोड़ा |पेन्सिल से निशान लगाकर उसे फाड़ा जब उसने कागज़ के मोड़ खोले तो वह करीब गोलाकार टुकड़ा था | उस गोलाकार टुकड़े के किनारे किनारे वह थोड़ी-थोड़ी दूरी पर हल्का सा फाड़ता और नए खंड को एक दूसरे के विपरीत दिशा में मोड़ देता | थोड़ी ही देर में एक चक्का तैयार हो गया | अभी उसने ज़मीन पर रखा ही था कि हवा का एक झोंका आया और चक्का अपने आप तेजी से चल पड़ा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अबे, ये तो भाग रहा है | पकड़ उसको |" हम दोनों उसके पीछे भागे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वह कागज़ का चक्का जहाँ जहाँ जाता, हम उसके पीछे पीछे भागते | न तो उसकी किलकारी रुक रही थी, न मेरी हँसी | अब वह रुका एक साड़ी से टकराकर | <br />
<br />
सामने चश्मा लगाए शशांक की मम्मी गंभीर मुद्रा में खड़ा थी | हम दोनों ठिठक गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तो तेरा नाम टुल्लू है ?" उन्होंने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ , आंटी |" पर नाम तो मैंने पहले ही बताया था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तू भागकर सर्कस गया था ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बात गलत थी | मैं भागकर नहीं चलकर गया था | या चलते भागते गया था | पर बड़ों को जवाब देना गलत बात होती है | मैं चुप रहा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैं ज़मीन क़ी ओर देख रहा था | ज़मीन फट जाती और मैं अन्दर समां जाता |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तू सर्कस क्यों गया था ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"देखने ....| सर्कस देखने ...|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"सर्कस देखने ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"नहीं, सर्कस देखने नहीं ...| सर्कस 'देखने'| " हे भगवान , इस सवाल का कितने बार मैंने खुलासा किया था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> समझाना कितना मुश्किल था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तुझे मालूम है, सर्कस कितनी दूर था ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"नहीं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अकेले गया था ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"नहीं , मुन्ना भी था |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मुन्ना कौन ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मेरा दोस्त | पर अभी दोस्त नहीं है | खट्टी हो गयी |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्या हो गयी ? क्यों ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"खट्टी हो गयी आंटी |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्यों ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैं काफी देर तक चुप रहा | फिर हिम्मत करके बोला ,"वो लोग छोटे को पीटने का 'पिलान' बना रहे थे |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उसकी मम्मी को कुछ समझ में आया , कुछ नहीं | फिर उसने शशांक से उड़म -गुडम में कुछ बातें क़ी फिर बोली ,"तूने उसकी मम्मी को बताया ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"नहीं |" इस बात का औचित्य ही मेरे पल्ले नहीं पड़ा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तू 'अबे' तुबे, बे, साले क्यों बोलते रहता है ? कहाँ से सीखा तूने ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पता नहीं |" मैंने कहा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तुझे मालूम है , ये सब गन्दी बात है ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैं फिर चुप रहा | मुझे लग रहा था, किसी भी क्षण मेरी आँखों से आंसू टपक जायेंगे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
.....भगवान्, मुझे छुटकारा दिला दो प्रभु |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />सच्चे दिल से प्रार्थना करो तो भगवान जरुर मदद करते हैं | खास कर छोटे बच्चे क़ी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />... और तभी शशांक के पापा अपनी फेंटा विलास पर ऑफिस से आ गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
घनी काली मूछें , सर पर पीले रंग का हेलमेट .... | फेंटा विलास की आवाज़ सुनते ही शशांक के कान खड़े हो गए थे | जैसे ही फेंटा विलास रुका, वह गेट की ओर दौड़ा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"पापा आ गए | पापा आ गए |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सबके चेहरे पर ख़ुशी थी | शशांक के, उसके पापा के, उसकी मम्मी के ... और मेरे भी ...|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मेने ठान लिया था कि जब तक ये पारिवारिक प्रसन्नता का माहौल वातावरण में छाया है , चुपके से खिसक लिया जाये | मैं दबे पाँव गेट क़ी ओर बढ़ा | शिष्टाचार, अच्छे बालक के आचरण जाये भाड़ में ... फंसी गर्दन निकालकर भागो | उसके बाद सपने में भी कभी इधर रुख करने की जरुरत नहीं | शशांक अभी भी अपने पापा से अडम-गडम करके कुछ पूछ रहा था | मैंने इतने हलके से गेट खोला कि आवाज़ भी नहीं हुई | एक बार सड़क पर पहुँचते ही मेरे क़दमों में तेज़ी आ गयी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अचानक उन क़दमों पर मानों बेड़ियाँ पड़ गयी |<br />
<br />
"टुल्लू" शशांक ने आवाज़ दी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
इस पुकार की दो प्रतिक्रया हो सकती थी | या तो उस पुकार को अनसुनी कर दिया जाए और क़दमों की रफ़्तार और तेज़ हो जाए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />या तो फिर कदम ठिठकें और थम जाएँ |फिर पीछे मुड़ें औऱ वापिस चले जाएँ |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
हे भगवान | आखिर ऐसा क्यों हुआ ? मेरे कदम वापिस हो गए और मैं फिर शशांक की ओर खिंचा चला आया , पर एक अपराधी भाव लिए.... |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"टुल्लू | कहाँ जा रहा है ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"घर जाना है यार | देख , अँधेरा हो रहा है | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"बस दो मिनट रुक जा | मेरे पापा आल पिन दे रहे हैं | तू फिरकी बनाकर दे दे | फिर चले जाना |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
कोई चारा भी नहीं था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />कागज़ के उस फार्म से मैंने वर्गाकार काटने के लिए हाशिये को अच्छे से मोड़ा और नाख़ून से दबाकर वह उंगली हाशिये में फेरी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />फिर कागज़ फाड़ने लगा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अरे भाई | हाथ से क्यों फाड़ रहे हो ? टेढ़ा-मेढ़ा फट जायेगा | कैंची से काट लो |" मुझे क्या मालूम था, उसके पापा भी हमारी गतिविधियाँ देख रहे हैं |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"नहीं अंकल , ऐसे ही ठीक है |" मैंने कहा और चर्र से कागज़ फाड़कर वर्गाकार टुकड़ा तैयार कर लिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तब तक उसके पापा एक छोटी कैंची लेकर हाजिर हो गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
यह एक तरह से अच्छा ही हुआ | अब इस वर्गाकार कागज़ के कर्ण पर, चारों ओर , कुछ दुरी तक काटना था | शशांक और उसके पापा दोनों देख रहे थे | मैंने कागज़ मोड़ा और कर्ण पर दोनों ओर से दो चीरे लगाए | फिर दूसरे कर्ण पर कागज़ मोड़ा और दोनों ओर से दो चीरे लगाये | कागज़ के चारों खण्डों का एक एक सिरा केंद्र की ओर मोड़ा और पिन घुसा दिया | फिरकी तैयार थी |मैंने आल पिन अपने हाथ में पकड़कर अपनी ही जगह पर जोर से घुमा | फिरकी घूमने लगी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"इसके हेंडल के लिए क्या करोगे ? " शशांक के पापा ने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
" पता नहीं |" फर अचानक मेरे मुंह से बात टपक गयी ,"हम लोग तो सींक वाली झाड़ू की सींक ले लेते हैं | पर वो तो ....|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अरे वाह | अच्छा आइडिया है | " मेरी बात के आखिरी हिस्से को अनसुना कर वे आँगन में गए और जब लौटे तो उनके हाथ में बांस की झाड़ू की मोटी सी सींक थी ....|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
शशांक की मम्मी चाय लेकर आई | शशाक के पाप ने चाय का प्याला लिया | उसकी मम्मी ने शशांक से कुछ कहा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> शशांक के कुछ बोलने से पहले ही उसके पापा बोले ,"चाय पिएगा ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"नहीं अंकल |" ये न केवल शिष्टाचार का तकाजा था, बल्कि ये इंकार मेरे दिल के तह से आई थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्या बात है ? अच्छा , अच्छे बच्चे चाय नहीं पीते | क्यों ? चाय पीने से कान काले हो जाते हैं | फिर क्या पिएगा ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
थोड़ी देर सोचकर मैंने कहा , "एक गिलास पानी |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />अगले घंटे भर तक हम कागजों से खेलते रहे | उल्टा सीधा , उल्टा सीधा - मोड़कर मोर का पंख बनाना तो सबको आता था | मैंने कागज़ का मच्छर बनाकर दिखाया , जिसकी दुम पकड़कर खींचने से पंख हिलते थे | शशांक के पापा खुश हो गए | उन्होंने जेब से पेन निकाली और मच्छर के मोटे मोटे आँख बना दिए | फिर कागज़ को मोड़कर उन्होंने एक गुब्बारा बना दिया | नाव बनाना भी सब को आता था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"अंकल , मैं चक्कू वाली नाव बनाऊं ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"चक्कू वाली नाव ? "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ उसके नीचे में चाकू लगे रहती है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मैंने चाकू वाली नाव बनाई | जहाज बनाने में मेरा आत्मविश्वास कुछ कम था , क्योंकि उसमें बहुत से मोड़ आते थे और मेरा अभ्यास कुछ कम था | फिर भी मैंने कोशिश करके जहाज बना ही दिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तुम कौन से स्कूल में पढ़ते हो भाई ?" उन्होंने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मैं स्कूल नहीं जाता अंकल |" मैंने मद्धिम आवाज़ में कहा ,"अगले साल जाऊँगा |"<br />
<br />
*************<br />
<br />
छोटे का डर थोड़ा कम हो गया था | अब वह मेरे साथ खेलने बाहर भी आने लगा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />सुबह की धूप में मैं , छोटा और शशांक खेल रहे थे | तभी पता नहीं कहाँ से , सोगा और मगिंदर छोटे पर झपट पड़े | हैज के झुरमुट से लपक कर बाहर आ गए | | मुझे और शशांक का अस्तित्व ही उन्होंने नकार दिया | उनका लक्ष्य छोटा ही था | छोटे ने मगिंदर का हाथ काट खाया | उसकी पकड़ ढीली होते ही वो घर क़ी ओर भागा | हरे रंग कमीज़, जिसके छाती पर कुराशिये से एक कीड़े क़ी डिज़ाइन बनी थी , मुन्ना के हाथ लगी और 'चर्र ..' | शायद उसके एक या दो चिपी बटन भी टूट गए |सब कुछ इतने जल्दी हुआ कि एक पल तो मैं और शशांक हतप्रभ रह गए |आवाज़ ही लुप्त हो गयी | हाथों को लकवा मार गया | पाँवों में कील ठुक गयी उस क्षण | अगले ही क्षण पता चला कि मगिंदर अपना हाथ झटक रहा था ,"साले ने काट लिया बे | देख खून निकल रहा है ...| दाँत का छप्पा बन गया है ...|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"चूस ले बे ... चूस ले ...|" जाते-जाते बबन बोल रहा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">**************<br />
<br />
इस घटना ने छोटे को अब बिलकुल अलग थलग कर दिया | अब बुलाने से भी वह आता नहीं था | जब वह बाहर आया तो उसे एक बिलकुल नया दोस्त मिल गया था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
इस घटना के बाद शशांक भी गायब हो गया | अब वो कभी घर से बाहर खेलने आता नहीं था | कई बार उसके घर के दालान में, माँ और बेटा - दो चश्मे वाले बैडमिंटन खेलते दिख जाते थे |<br />
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*************<br />
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दीपक तो था दुल्लू का चमचा ... और दुल्लू था लफंगा, बदमाश , बदतमीज़ ....दीपक के बब्बा के शब्दों में "आवारा " .. | घर वालों की मार पीट का उस पर विपरीत असर पड़ता था और वह दिन पर दिन ढीढ होते जा रहा था | यहाँ तक कि एक दिन उनके सब से बड़े भाई तपन ने उसे नंगा करके बारिश में बाहर खड़ा कर दिया , फिर भी उस पर असर नहीं हुआ |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
दीपक था दुल्लू का लटकन | एक दिन दीपक की दादी 'अम्मा' दीपक को खोजते मैदान में आई | वैसे कोई नयी बात नहीं थी | बच्चे अगर 'खो' जाते तो माता पिता को मालूम था कि वे मैदान में खेल कूद में 'खोये' हुए हैं | मैदान में उन्हें एक नज़र डालने भर की देर होती, वे कहीं न कहीं , किसी कोने में मिल जाते | या तो फिर किसी के घर किसी और बच्चे के साथ खेल रहे होते और सिर्फ एक या अधिक से अधिक दो बार पुकारने की जरूरत पड़ती और बच्चे गिरते पड़ते अपने घर की ओर दौड़ पड़ते | उस दिन दीपक के बब्बा ने हाथ में टॉर्च लेकर मैदान का चक्कर लगाया | दीपक की मम्मी ने कई बार हांक लगाईं | दीपक की अम्मा ने सड़क का चक्कर लगाया | जब बाइस सड़क में वह नहीं मिला और मैदान के दूसरी ओर के इक्कीस सड़क में उसे खोजा गया तो राजी के भाई संजू ने बताया कि उसने उसे शाम को दुल्लू के साथ कहीं जाते देखा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
'कहीं' यानी कि दुल्लू के साथ वह नेहरु हाउस के पास के बाग़, जिसे लोग 'छोटा मैत्री बाग़' कहते थे , वहां गया था | कुछ लोग कहते थे कि वे नेहरु हॉउस में पिक्चर देखने घुस गए थे | बहरहाल , जब वह घर आया तो उसको घर में घुसने नहीं दिया गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />दुल्लू ने उसे खाना जरुर खिलाया लेकिन उसके बाद? मध्य रात्रि के अँधेरे में किसी तरह अपने घर के गेट से वह छलांग मारकर अन्दर घुसा और बरामदे में जाकर सो गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
यह घटना सड़क में सब ओर आग की तरह फ़ैल गयी | सब को पता चल गया ...| सब को ....|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
दीपक के मम्मी पापा को लगा कि इसका मूल कारण ये था कि दीपक अपनी उम्र से बड़े बच्चों के साथ , यानी दुल्लू की सोहबत में बुरी आदतें सीख रहा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />तो इस तरह छोटे को अनायास ही एक दोस्त मिल गया , क्योंकि छोटा ही उसका निकटतम पड़ोसी था | देखा जाए तों छोटे को भी वैसे एक दोस्त की ही तलाश थी | लोग दीपक से खार खाते थे और अब सड़क के बाहर छोटा दीपक के साथ कभी रबर की बैट बॉल खेलता तों कभी बैडमिंटन |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />में नितांत अकेला ही रह गया |<br />
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*************<br />
<br />
मैं अपने घर की पटरी के पास उदास बैठा था | कभी पश्चिम के डूबता सूरज को देखता, कभी आकाश में उड़ते पक्षियों के झुण्ड को |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />कान हमेशा कोई पुकार सुनने को आतुर थे | कोई तो पुकार ले |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"तो तू खेलने नहीं गया ?" शशि दीदी ने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"किसके साथ खेलूं ? मैंने कहा | कोई मेरे साथ नहीं खेलता |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"ठीक है | मैं तेरे साथ खेलूंगी | क्या खेलना है ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"छुआ छुई |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"अरे वाह ! ठीक है | मुझे छू के बताओ |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />मैं अनिच्छा से उठा | शशि दीदी पास में ही खड़ी थी | हाथ बढ़ा के देखा | नहीं | नहीं पुहुँच सकता | हाथ झटक के देखा | नहीं...| अब मैं तेजी से लपका और हाथ झटका | ये क्या ? मेरे हाथ में हवा ही लगी | शशि दीदी फुर्ती से पीछे हट गयी | मैं फिर तेजी से लपका | मुझे लगा कि मैं पास पहुँच गया हूँ | फिर हाथ बढाकर छूने की कोशिश की |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />मगर इस बार भी मेरे हाथ हवा ही लगी | यह क्या बात हुई ? मैं तैश में आ गया | उनकी और फिर लपका | हाथ बढाया - मगर ....ढाक तीन पात ....|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />ताज्जुब की बात क़ि शशि दीदी भाग नहीं रही थी | वो पीछे भी नहीं मुड़ी | एक हाथ से स्कर्ट सम्हाले, सिर्फ फुर्ती से इधर या उधर हट रही थी और मैं इधर उधर भाग रहा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"थक गए ?" मुझे हांफते देखकर उन्होंने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
इन शब्दों में छिपी ललकार ने उत्प्रेरक का काम किया | मैं उन्हें छूने फिर लपका | आखिर मैंने स्कर्ट का एक कोना कहीं से छू लिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैं घुटने हाथ रखकर हांफ रहा था | अब उनकी बारी थी , मुझे छूने की |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तैयार ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हफ़ ... हफ़ .. |" एक मिनट ठहरो | हफ़ ... हफ़ ....|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"वाह | लड़के होकर इतनी जल्दी थक गए ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
इन शब्दों ने फिर उत्प्रेरक का काम किया | और मैं तैयार हो गया | मैं उन से शुरु में ही करीब पाँच मीटर की दूरी पर खड़ा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />फिर भी मैं मुश्किल से दस मीटर दूर अमरुद के पेड़ के पास ही पहुंचा होऊंगा क़ि मैं पकड़ में आ गया | अब बारी तो मेरी थी, पर बड़े लोग अक्सर बड़ा दिल दिखाते हैं | </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"चल , एक बार और भाग ...|" ..... मैं फिर पकड़ा गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अच्छा, चल एक बार और ...| और तू सीधे सीधे क्यों भागता है ? तेजी से इधर उधर मुड़ना सीख ...|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
ओह हो ... | ये तो गुर किसी ने नहीं बताया ....|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
और कितनी जल्दी अँधेरा हो गया ... | माँ ने उन्हें काम करने बुला लिया | खाना बनाने का वक्त हो गया था |<br />
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(क्रमशः )<br />
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</div>Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-82156129884040157922011-08-28T23:37:00.014-07:002023-01-07T01:15:03.139-08:00हप्पू की बम बम 2<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">सबने तो सर्कस देख ही लिया - एक एक करके ...| सिर्फ मैं ही रह गया था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
और तो और, एक दिन फेंटा विलास के पीछे की सीट पर अपनी मम्मी के साथ दुबका हुआ शशांक मुस्कुराता हुआ हम लोगों के सामने से गुजरा | जब वह वापिस आया तो उसकी मुस्कान इतनी चौड़ी हो गयी थी कि ओंठ फाड़कर दांत बाहर निकल रहे थे | ख़ुशी चेहरे में समा नहीं पा रही थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मैंने सर्कस देख लिया |" उसने आते आते दस मीटर की दूरी से ही ऐलान कर दिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
किससे कहूँ ? कैसे कहूँ ? व्यास भैया तो सेक्टर ५ चले गए थे | राम लाल और श्याम लाल मामा भी नौकरी की तलाश कर रहे थे | कभी सायकिल लेकर निकल जाते तो कभी पैदल ही | कौशल भैया तपस्वी की तरह आँगन की कुटिया में जमे हुए थे - विद्यालय की पढाई का आखिरी साल जो था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />आशा की एक क्षीण किरण थी | अगर किसी दिन बबलू भैया बिफर कर अपने गुस्से का झंडा ऊँचा कर दें तो तय था कि उनके साथ साथ हमें भी सर्कस देखने मिल जाएगा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तूने सर्कस देखा बे ?" २१ सड़क के टीटू के भाई मीटू ने एक दिन पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"नहीं |" मैंने कहा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तेरे पिताजी कंजूस हैं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />मुझे बात चुभ गयी और मैं उस पर पिल पड़ा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मुझे लड़ते देखकर मुन्ना और बबन अपना अपना चक्का छोड़कर दौड़े दौड़े आये | उधर अंकू , संजीव और राजी भी भागकर मीटू की सहायता के लिए पहुँच गए | देखा जाये तो इक्कीस और बाइस सड़क के बीच घमासान मच जाता ; पर समय रहते समझदार बड़े बच्चों के हस्तक्षेप से मामला किसी तरह टल गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
हम लोग मैदान के बीच से अपने सड़क की ओर आ रहे थे | हम रह -रह कर पलट कर घुर कर देखते और ये पाते कि वो भी पलट कर देख रहे हैं | मीटू को देखकर मुन्ना बुदबुदाया ," सरदार जी की खोपड़ी में बारह अंडे थे ....|"<br />
<br />
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शाला क्रमांक आठ से चींटी की कतार की तरह बच्चे निकले | कतार के दोनों ओर हाथ में मोटी मोटी सोटियाँ लिए शिक्षिकाएं चल रही थी | बच्चों की वह कतार सड़क तीन के पीछे वाले मैदान से होती हुई डबल स्टोरी के सामने से गुजरी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वे चलते ही रहे और रेल पटरी के पार दूसरी दुनिया में खो हो गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उनके आँखों से ओझल होते ही, मानो मेरी आशा भी धूल में मिल गयी | स्कूल की ओर से सर्कस जाने वाले बच्चों में बबलू भी एक था |<br />
<br />
माँ से मैंने हिम्मत करके पूछा ," माँ , हम लोग सर्कस कब जायेंगे ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
घर में इतने सारे तो लोग आते जाते थे , रहते थे | अधिकतर तो मेहमान ही होते थे | अगर सर्कस जाएँ तो सबको साथ ले जाना पड़ेगा | या पता नहीं, माँ को खुद भी कोई दिलचस्पी नहीं थी | घर के काम से फुर्सत जो मिले |<br />
<br />
आज सोचता हूँ तो लगता है कि माँ के पास उस समय भी ढेरों जवाब हो सकते थे ," तुझे तनी हुई रस्सी पर चलती लड़की देखना है ? मैं चलकर दिखाऊं ?" या फिर ,"सर्कस में क्या देखना है ? करतब दिखाते लोग ? घर में आने जाने वाले लोगों को देखा नहीं तूने ?" अथवा ," गिनना कौन सी बड़ी बात है ? हाथी हो या बच्चा - कोई भी गिन सकता है | उससे बड़ी बाजीगरी है, हिसाब लगाना और हिसाब रखना | अपने बाबूजी से पूछ ..|"<br />
<br />
और गाहे बगाहे, आग में घी डालने , सर्कस के टेम्पो सड़क में चक्कर मारने आ ही जाते थे ," अब देख ही लीजिये | आग उगलती हुई लड़की , दर्पण में देखकर निशाना लगाने वाले निशानेबाज, खूंखार दरिंदों से घिरा रिंग मास्टर ...... ........ ..... दूध की बोतलें गिनने वाला सबका प्यारा हाथी गनपत ..."<br />
<br />
*************<br />
<br />
केवल हम दो ही थे - मैं और मुन्ना ....|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
शाला नंबर आठ से सर्कस की ओर गए बच्चों के क़दमों के निशान मिटे नहीं थे शायद .. | अगर मिट भी गए हों तो क्या - एक अनजान शक्ति हमें खींच रही थी | हम मंत्रमुग्ध से बस चले ही जा रहे थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मुन्ना ने जेब में ढेर सारे कंकड़ भर लिए थे और वह थोड़ी थोड़ी दूर चलने के बाद वह एक एक कंकड़ गिरा देता था | आखिर इतनी दूर जा रहे थे - अकेले | किसी को बिना बताये .... पहली बार ... | मुन्ना का तरीका अच्छा तो था,पर डबल स्टोरी के पास पहुंचते - पहुँचते सारे कंकड़ ख़तम हो गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
डबल स्टोरी के सामने की सड़क भी हम लाँघ गए | अब गड्ढों से भरा के छोटा सा मैदान था , फिर रेल पटरी के समानांतर चलती डामर की चौड़ी सड़क | जैसे जैसे हम लोग रेल पटरी के पास पहुँचने लगे , दिल तेजी से धड़कने लगा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
एक सवाल और एक आशंका जो मेरे मन में बहुत दिनों से बैठी थी , जो हर बार जुबान पर आते आते रुक जाती थी | अब अनजानी आशंका से दिल इतनी तेजी से धड़का कि वह सवाल उछलकर बाहर आ ही गया |<br />
<br />
"मुन्ना , एक बात बता |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
" हाँ , पूछ | " अब हम रेल पटरी के समानांतर चलती सड़क दौड़ कर पार कर रहे थे | उन दिनों इतने वाहन तो थे नहीं - सड़क दूर-दूर तक सूनी थी | डामर की सड़क एक मुख्य सड़क मानी जाती थी और ऐसी सड़क दौड़ कर पार करने की आदत पड़ गयी थी | तेज धूप से सड़क गरम हो गयी थी और नंगे पाँव जलने लगे थे | शायद ये भी एक वजह थी - दौड़ कर सड़क पार करने की | सड़क पार करते ही मैं एक क्षण के लिए रुका और मैंने सवाल पूछ लिया , "तेरा भाई कैसे मर गया मुन्ना ?"<br />
<br />
मुन्ना एक क्षण के लिए उदास हो गया ," रात के सोते समय बिस्तर से लुढ़क कर नीचे गिर गया |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तुझे याद है क्या ?" मैंने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"नहीं | मैं तो बहुत छोटा था |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मरने के बाद सब लोग कहाँ जाते हैं ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पता नहीं | "<br />
<br />
यह तो मुझे भी नहीं मालूम था | आज भी नहीं मालूम है | पता नहीं किसे मालूम है ? लक्ष्मी भैया ने मुझे एक बार स्वर्ग और नरक की कहानी सुनाई थी | मैंने उसका जिक्र मुन्ना से किया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
" मुझे मालूम है | माँ कहती है, मेरा भाई स्वर्ग गया है |" वह कह कर फिर चुप हो गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अगर हम लोग एक बहुत ऊंची सीढ़ी बना लें ,...बहुSSSत ऊँची ... बादल से भी ऊँची | फिर उस पर चढ़ कर हम लोग स्वर्ग जा सकते हैं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
" वो तो बहुत ऊँची सीढ़ी होगी | उसको टिकाना भी पड़ेगा न |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अब मैंने वह बचकाना सुझाव पेश कर ही दिया जो उस दिन से मेरे मन में कुलबुला रहा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अगर हम लोग सर्कस की लाइट पकड़ पकड़ कर चढ़ जाएँ तो स्वर्ग तक पहुँच जायेंगे | पर तेरा भाई तो बड़ा हो गया होगा | तू उसे पहचान लेगा ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पता नहीं | वहां बच्चे तो कम होंगे न ? पर लाईट पकड़ के ऊपर कैसे जायेंगे ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"जैसे पेड़ पर चढ़ते हैं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"सर्कस वाले ने लाईट बंद कर दी तो ?"<br />
<br />
अब रेल पटरी के चढाव पर हम लोग सम्हल सम्हल कर चढ़ रहे थे | दूर दूर तक कोई रेलगाड़ी नहीं दिखाई दे रही थी | अब दो रेल की पातें दिखने लगी - आने और जाने वाली | दोनों पांतों के बीच में थोड़ा फासला था |<br />
<br />
... पर्दा उठा और यह थी रेल पटरी के पार की दूसरी दुनिया ...</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
.... और दूर सर्कस का तम्बू दिखने लगा | रेल पटरी के उस पार - दूर तक खाली मैदान था | उसमें ही दूर , कहीं बहुत दूर एक बड़ा सा तम्बू दिखाई दे रहा था | अभी मुश्किल से ग्यारह बजे थे | सर्कस का शो तो तीन बजे से पहले नहीं शुरू होगा | रेल पटरी के दूसरी ओर की ढलान पर हम लोग नीचे उतर गए और चलते दौड़ते, दौड़ते , उछलते चलने लगे |<br />
तभी रेल के इंजन की सीटी की कर्कश आवाज़ सुनाई दी |वैसे भी हम लोग ढलान से नीचे उतर चुके थे | पर आवाज इतनी तेज थी कि हम बिदक कर और दस कदम दूर भागे |<br />
<br />
पहली बार मैं रेल गाड़ी का ईंजन इतने पास से देख रहा था | विशालकाय काले दानव जैसा - फक फक धुआं छोड़ रहा था | हमारे पास से मंथर गति से चलता हुआ वह निकला | वह एक लम्बी सी रेल गाडी थी | ईंजन की आवाज़ ही ऊँची थी, रफ़्तार तो काफी धीमी थी | इतनी धीमी कि हमें ईंजन की भट्टी साफ़ दिखाई दे रही थी | इतना ही नहीं, भट्टी के पीछे रखा बड़े बड़े टुकड़ों वाला कोयले का ढेर दिखाई दे रहा था | सर पर लाल रंग का रुमाल बाँधे, पसीने से लथपथ , हाथ में बेलचा लिए दो आदमी दिखाई दे रहे थे | वे रुक रुक कर कोयले के ढेर से कोयला निकाल निकाल कर भट्टी में डाल रहे थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
आदत से मजबूर, रेलगाड़ी देखते ही हम दोनों ने हाथ हिलाना शुरू किया | एक खलासी ने हमें हाथ हिलाते देख लिया , उसने भी हाथ हिलाया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
गाड़ी थोड़ी आगे बढ़ी | मुन्ना अभी भी " टा टा " कर रहा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
" यार, हम लोग रेलगाड़ी को 'टा टा' क्यों करते हैं ? " मैंने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"'टा टा' करना चाहिए | क्या पता उसमें हमारा कोई चाचा या मामा बैठा हो |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पर ये तो माल गाड़ी है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"उससे क्या हुआ ? ड्राइवर तो रहता है | गार्ड भी रहता है | हो सकता है , गार्ड के डिब्बे में मेरे दादा जी झंडी लेकर बैठे हों |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बात सच थी | मुन्ना के दादा जी गार्ड थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"वो ड्राईवर तुझे जानता था क्या ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"नहीं|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तो उसने तुझे 'टा टा' क्यों किया ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बेतुके सवालों की झड़ी से मुन्ना भन्ना गया |<br />
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*************<br />
<br />
तो ये रहा सर्कस ....|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
चार घंटे बाद, पहले शो के समय भले ही उधर रेलम-पेल मचने वाली हो, पर इस समय ,जबकि मध्यान्ह भी नहीं हुआ था, सब कुछ शांत था | वे इन्सान और जानवर, जिन्होंने शहर में धूम मचा रखी थी ; वे बड़े-बड़े, काफी विशालकाय पोस्टरों पर मुख्य द्वार और उसके आस पास गोलाकार दीवारों के रूप में दूर तक विराजमान थे ; पर वे मूर्त रूप में थें कहाँ ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वे थे एस्बेस्टस की उन चादरों के पीछे जो सर्कस के प्रांगण की चाहरदीवारी के रूप में बनी थी | वह गोलाकार घेरा मुख्य तम्बू से कुछ अलग हटकर था | शायद सर्कस के कलाकारों के खानाबदोश जीवन में कुछ दिनों के लिए यही उनका डेरा था | इसके अलावा छोटे छोटे तीन चार तम्बू और थे | टिकट खिड़की अभी सूनी थी |<br />
<br />
और वो लाईट के स्त्रोत कहाँ हैं ? कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं |<br />
<br />
तो वे अजूबे, वो कलाकार, वो आकर्षण , वो जादूगर इन पर्दों के पीछे हैं ... | हमारे जैसे कतिपय और बच्चे भी अपने चहेतों की एक झलक पाने के लिए घूम रहे थे | हालाँकि उस दुनिया के बच्चों की पोशाक थोड़ी सी अलग थी | कई बच्चों ने हाफ पेण्ट पहनी थी तो कमीज़ नदारद थी | कुछ बच्चों ने जरुरत से बहुत ज्यादा लम्बी कमीज पहनी थी और फिर पेण्ट की जरुरत नहीं थी | कुछ ने कमीज और पेण्ट दोनों पहने थी पर इधर उधर से फटी होने के कारण धूप में तपी सांवली त्वचा स्पष्ट दिखाई दे रही थी | बाल बेतरतीब ढंग से एक दूसरे से चिपके हुए थे | </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> उनमें से कुछ ने तो एस्बेस्टस की उन शीटों में दरार या सुराख़ भी खोज ली थी और वे चुपके से अन्दर झाँक रहे थे | बाकी , कुछ दूर खड़े उनके हटने की प्रतीक्षा कर रहे थे |ऐसे ही एक बच्चा हटा और मैं टूट पड़ा | मुन्ना को भी बगल के एक झरोखे में मौका मिल ही गया |<br />
<br />
अन्दर क्या था ? सामान्य से लोग ही तो थे वे | लुंगी पहन कर तीन की कुर्सियों में बैठे पता नहीं, किस भाषा में बातें कर रहे थे | शायद छोटा या बड़ा सुरेश या सोगा , मगिन्द्र होते तो समझ सकते थे | चार पांच मोटी मोटी काली कलूटी लड़कियां इधर उधर धूम रही थी | एक आदमी हाथ में डंडा लिए कुत्तों को बॉल पकड़ने की ट्रेनिंग दे रहा था | ओह हो, वो देखो | एक कोने में शेरों के पिंजड़े हैं | शेर अलसाए हुए पाँव पसारे लेटे हुए थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
और हाथी ? वो उस कोने में - तीन छोटे तम्बुओं में से एक में झुण्ड में थे .. उनके सामने चारा फैला हुआ था | पूँछ हिलाते हुए सामने रखा चारा सूंड से उठाकर मुँह में डाल रहे थे | मक्खियाँ भगाने के लिए पाँव भी हिला रहे थे तो ऐसा लग रहा था मानो संगीत की धुन पर थिरक रहे हों |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"सड़ाक ...., " अचानक मेरा पेंदा गरम हो गया ....| अभी कुछ सम्हल पाता कि 'सड़ाक' - दूसरा सोंटा जांघों में पड़ा | बिना कुछ सोचे समझे मैं वहां से सरपट भागा | भागते-भागते मैंने देखा , एक छोटा, बेहद छोटा सा आदमी - हाँ , बच्चा नहीं, सफ़ेद कुरता पायजामा पहने नाटा सा आदमी हाथ में मोटा सोंटा लिए इधर उधर भाग रहा था और दरार या सुराख़ से झांकते बच्चों की पिटाई कर रहा था | सिर्फ उन्हें वहां से भगाना ही उसका ध्येय था | पीछा करने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं थी | दर्शनीय दृश्य था | बच्चे इधर उधर , जहाँ मुँह समाया भाग रहे थे | उस नाटे आदमी की तस्वीर दिल में पैठ गयी |<br />
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*************<br />
<br />
... और हम रास्ता भटक गए |<br />
<br />
मुन्ना ने सड़क पर कंकड़ जरुर गिराए थे, पर वे कंकड़ तो कब के ,कहाँ , किस कूचे में ख़तम हो गए थे | अब तो उन कंकडों तक पहुँच पाना ही एक लक्ष्य था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
इतना हमें मालूम था , हमें रेल पटरी के किनारे किनारे चलते जाना है | पर कितनी दूर तक जाना है ? हे भगवान, सड़क के उस पार डबल स्टोरी की कतारें तो ख़तम होने का नाम नहीं ले रही हैं | क्या बातें करते करते हम लोग इतने दूर आ गए थे ? या कहीं हमारा घर पीछे छूट गया था ?<br />
<br />
"हमारा घर कहाँ है यार ?" मैं चिंता में डूब गया ," लगता है, हम लोग गुम गए हैं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
हम खो गए थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पहले तो डबल स्टोरी कहीं दिखाई ही नहीं दे रही थी | फिर डबल स्टोरी की कतार शुरू हुई तो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"घर कहाँ है यार मुन्ना ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"आ जायेगा | रुक मत, चलते रह |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हम लोग आगे निकल गए यार | या फिर हम लोग उल्टा चल रहे हैं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मुन्ना चौंक गया | फिर बोला ," नहीं, ठीक चल रहे हैं | वो देख, कारखाने की चिमनी दिख रही है ? "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अब हमें महसूस हो रहा था कि चलते चलते हम लोग कितनी दूर आ गए थे | दूसरे शब्दों में, सर्कस कितना दूर था ! प्यास लग रही थी | गला सूख गया था | एक और रेलगाड़ी गुजरी | हम लोग जल्दी से ढलान से उतरकर थके हाथों से 'टा,टा' करने लगे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
"तूने 'बालक' पिक्चर देखी ?" 'बालक' पिक्चर भी करीब-करीब सब ने देख रखी थी - मेरे सिवाय | गाँधी जी की जन्म शताब्दी एक वर्ष पूर्व ही मनाई गयी थी | </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"उसमें वो लड़का कैसे रेल पटरी पर लेट जाता है - मरने के लिए ?" फिर वह गुनगुनाने लगा ,</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">"सुन ले बापू ये पैगाम , मेरी चिट्ठी तेरे नाम... ....<br />
उं.. उं.. उं.. उं.. गुं... गुं.. गुं.. गुं..<br />
तेरी हिंदी के पाँव में अंग्रेजी ने डाली डोर ...<br />
तेरी लाठी ठगों ने ठग ली, तेरी बकरी ले गए चोर |"<br />
<br />
गाना तो अच्छा था | मुन्ना तन्मयता से गा भी रहा था | किसी और मौके में मैं भी मुन्ना के सुर में अपना राग जोड़ देता | मगर उस समय -उसके गाने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी | मेरी आँखों के सामने माँ का, बाबूजी का चेहरा घूम रहा था | घर आखिर गया तों कहाँ गया ? बच्चे पकड़ने वाले लोग घूमते रहते हैं - बोरा लेकर | कहीं मुझे और मुन्ना को बोरे में भर लिया तों ? कहीं पुलिस मिल गयी और पकड़ कर ले गयी तो ?<br />
<br />
तों वही हुआ जिसका डर था | ये रेलवे फाटक तों कहीं आया नहीं था रस्ते में | मुझे अच्छी तरह याद था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मुन्ना" ,मैं चिल्लाया ," गाना बंद कर यार | ये रेलवे फाटक कहाँ से आ गया ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
रेलवे फाटक के पास एक आदमी लाल - हरी झंडी लिए खड़ा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"हमारा घर कहाँ है भैया ?" भगवान्, उसे हमारा घर मालूम हो ... | काश मालूम हो ...|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कहाँ रहते हो ?" उसने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"घर में |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उसने सर पीट लिया ," मतलब सुपेला में या सेक्टर में ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"सेक्टर में |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कौन से सेक्टर में ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"सेक्टर २ |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उसने दांया हाथ उठाया , "यहाँ जाओ |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उस सड़क पर चलते ही सब कुछ याद आ गया | अरे, ये तों बड़ा सा गोल चौक है | कई बार व्यास या रामलाल के साथ सुपेला बाज़ार जाते समय यही तो चौक पड़ता था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मुन्ना जोर से चिल्लाया ," अपना घर मिल गया | चल मेरे पीछे |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पर मुझे मालूम था, घर अभी भी दूर है | हम लोग भागते-भागते गोल चक्कर के पास पहुंचे और रेल पटरी के समानांतर चलती डामर की पक्की सड़क पर मुड़ गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />वहीँ एक सीमेंट का छज्जा बना था, जो अक्सर बस स्टॉप पर बना होता है | क्यों बना था - क्या प्रयोजन था - मुझे आज तक समझ में नहीं आया | उस सड़क पर कोई बस तों चलती थी नहीं | शायद बी. एस. पी. क़ी बस कर्मचारियों के लिए चलती हो | जो भी हो, , वह भीषण गर्मी या बारिश के दिनों में राहगीरों , भिखारियों और आवारा कुत्तों को निजात दिलाता था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
जब हमारी निगाह वहां पड़ी तों सब कुछ थम गया |<br />
<br />
कौशल भैया, मुन्ने के राजा चाचा , शामलाल मामा और सदा इस्तरी किये कपड़े पहनने वाले और हाथ में छड़ी लेकर चलने वाले दीपक के बब्बा हमारा इंतज़ार कर रहे थे |<br />
<br />
*************<br />
<br />
ये सवाल जवाबों का ही नतीजा था कि अगले दिन शाम को मुझे और संजीवनी को श्यामलाल मामा साइकिल पर बिठाकर सर्कस ले जा रहे थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सारे सवाल एक जैसे थे जो अलग अलग रूप में अलग अलग लोगों ने पूछा था | जवाब भी लगभग वही थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"कहाँ गए थे ?"<br />
"सर्कस"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />"क्यों गए थे ?" <br />
"देखने "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"सर्कस देखने ? पैसे कहाँ से आये ?'<br />
"सर्कस देखने नहीं - 'सर्कस 'देखने' गए थे | मतलब कि सर्कस 'देखने' |"<br />
<br />
फिर मिली ढेर सारी झिडकियां - कुछ हो जाता तो ? बच्चा पकड़ने वाले बोरे लेकर घूमते रहते हैं | मोटर गाड़ियाँ चलती है - ड्राइवर लोग शराब पीकर ट्रक चलाते हैं | शराब पीने के बाद आदमी को कुछ पता नहीं चलता वो क्या कर रहा है | रेल गाड़ी का ब्रेक सौ मीटर दूर जाकर लगता है | बंजर मैदान में बड़े बड़े काले साँप रहते हैं | वहां ऐसे ऐसे धतूरे के पौधे उगते हैं कि अगर काँटा चुभ जाए तों सात दिन तक बुखार आता है |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />... सो ये सब जोखिम अनजाने में उठाकर हम लोग अकेले या बल्कि दुकेले सर्कस गए थे !<br />
<br />
*************</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मुझे साइकिल के डंडे पर बैठना एक सज़ा से कम नहीं लगता था | संजीवनी पीछे कैरिअर पर बैठी थी | श्यामलाल मामा बीच बीच में पूछते थे , "संजीवनी, नींद तों नहीं आ रही है |"<br />
<br />
पर सर्कस के तम्बू में घुसते ही सारे गिले शिकवे धुल गए | भयंकर भीड़ थी | काफी देर तक एक ही लाइन थी, | फिर टिकट के रंग के आधार पर लोगों को अलग अलग कर दिया गया | नीले रंग वाले , जिनकी संख्या उंगली पर गिनी जा सकती थी, सामने क़ी गद्दे वाली कुर्सी पर बैठने चले | उसके पीछे टीने की की कुर्सी वाले हरे टिकट वाले चले गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />हमारी लाल टिकट गैलरी क़ी थी | सर्कस के सबसे पीछे लकड़ी के पटरे एक सीढ़ीनुमा ढंग से एक के पीछे एक काफी ऊंचाई तक लगाये गए थे | वे स्टैंड गोलाकार रूप में तम्बू क़ी दीवार के साथ साथ तीन ओर ठोंके गए थे |एक ओर सर्कस के कलाकारों, जानवरों आदि की आवाजाही का रास्ता था | अधिकतर लोग तो गैलरी में ही आ रहे थे| ऐसी भयंकर भीड़ थी , फिर भी लोग एक दुसरे का हाथ पकड़ कर , कस कर हाथ पकडे इधर से उधर जा रहे थे | जरा कल्पना कीजिये, सामने पिताजी, बीच में तीन बच्चे और दुसरे छोर पर माताजी - सब एक दूसरे का हाथ पकडे जगह क़ी तलाश में इधर से उधर जा रहे थे | ऐसे में अफरा तफरी ना मचे तो क्या हो ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अभी पटरे पर टिके ही थे क़ि "किर्र्रर्र्र" क़ी आवाज़ के साथ घंटी बजी और धुन चालू हो गई | यह पहली घंटी थी | रेल पेल और भी बढ़ गयी | शोर थोडा कम जरुर हुआ , पर जिन्हें 'साथ-साथ बैठने क़ी जगह नहीं मिली थी , जिनके बच्चों के सामने कोई टोपी वाला, या पगड़ी वाला सरदार बैठा हो, जिनकी आँखों के सामने खम्बा आ रहा था, या यूँ ही असंतुष्ट लोग या लोगों के ग्रुप अभी भी इधर उधर हो रहे थे |यह घंटी उन लोगों के लिए चेतावनी थी, "जल्दी करो, जल्दी टिको |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
.... "किरर्र" दूसरी घंटी बजी | अब मैंने ध्यान से देखा, मेरीं आँखों के सामने क्या था ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
कहाँ से शुरू करूँ ? ज़मीन से या आसमान से ? आगे से या पीछे से ? बीच के गोलाकार मैदान में दरी बिछी थी | ऊपर छत से बड़ी बड़ी लाइटें लटक रही थी | हमारे देखते ही देखते लाइटों की रस्सी खींचकर उसे और ऊपर उठा दिया गया | पीछे एक बड़े से गेंद के आकर का जालीदार पिजरा था | जानवरों और कलाकारों के प्रवेश द्वार के ऊपर बैठे साजिन्दे धुनें बजा रहे थे |<br />
<br />
अचानक धुनों की आवाज़ तेज हो गयी | रौशनी मद्धिम हुई और लाल पीली बत्तियां झिलमिलाने लगी | जोकरों की एक पूरी पूरी जमात बाहर आ गयी | .... हा ... हा ... हा ... देखो तो कैसे कैसे जोकर हैं ....| नाक में टमाटर लगाए जोकर ... झोले झंगड़ निहायत ढीले रंग बिरंगे पायजामे पहने जोकर .... रंग बिरंगी टोपियाँ पहने जोकर ..... हा.. हां. हा... मोटू जोकर ... हा... हा.. हा... मेरी और संजीवनी की हँसी थम नहीं रही थी ... लम्बू जोकर .... हा ... हा... हा..<br />
<br />
अचानक लोगों की हँसी पांच गुना बढ़ गयी , पर मेरी हँसी जम गयी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />संजीवनी अभी भी और लोगों के साथ जोर जोर से हँस रही थी ..... सामने आ गया 'छोटू जोकर'....<br />
.... हा हा .. हा .. लोग अभी भी हँसी के सागर में गोते लगा रहे थे | छोटू जोकर मटक मटक कर चल रहा था | हा... हा... हा...<br />
<br />
पर मेरे गले में कुछ अटक गया था ...|अरे ये तो वो ही नाटा आदमी है ... | हाँ, वही है ...| लाल पीला पोतने , आड़ी तिरछी दाढ़ी मूंछ लगाने से क्या होता है ? अब लोगों के ठहाके मेरे कानों को चुभने लगे ......|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अब इधर भटकें, उधर भटकें, विचार सारे जहान में भटकें, , सर्कस तो देखना ही था | उसके लिए ही तो इतनी दूर से आये थे | भले ही मज़ा मेरे लिए आधा हो गया था, फिर भी बाकी आधा हिस्सा इतना लोमहर्षक था कि चने मूंगफली के लिए आवाज़ लगाते फेरी वालों पर मुझे खीज आने लगी | जब देखो तब,कान के पास आकर गला फाड़कर चिल्लाने लगते थे | न तो संजीवनी ने किसी चीज़ के लिए जिद पकड़ी, ना मैंने | पर ढेर सारे इतने नालायक बच्चे थे जिन्हें कभी मूंगफली चाहिए होती, तो कभी लेमनचूस |<br />
<br />
हर खेल के बाद नकलची बन्दर जोकर आकर उस खेल की नक़ल करने की कोशिश करते | और उसमें कुछ ज्यादा ही मज़ा आता | लड़कियां साइकिल का करतब दिखकर गयी, तो जोकर अपनी तिपहिया साइकिलें लेकर आ गए जिसका हर पुर्जा अलग हो जाता था | जिमनास्ट अपने करतब दिखाकर गए तो जोकर गद्दा ले आये और उछल कूद मचाने लगे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
जैसे जैसे सर्कस आगे बढ़ता गया और दिलचस्प खेल दिखाए जाने लगे | अब मुझे पता चला कि मुख्य द्वार के पास लकड़ी का इतना बड़ा तिकोना मंच क्यों रखा गया है ? संगीत की लहरियां तेज हो गयी | बाहर से एक जीप तेजी से चलती हुई आई और ऐन मंच के पास रुक गयी | जीप वाला जीप पीछे ले गया | इस बार वो जीप तेजी से चलाकर आया और मंच के बीचों बीच रुक गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वो क्या करना चाहता था ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैंने देखा, करतब के मैदान में करीब पचास फीट की दूरी पर, वैसे ही लकड़ी का दूसरा मंच रखा था | दूरी का मुझे अंदाज़ नहीं है भाई| अगर पाँच कारें आगे पीछे सटाकर रखी जाएँ तो जितने दूरी नपे, उतनी दूरी मान लीजिये | | बीच की सारी जगह खाली थी | तीसरी बार वह दुगनी रफ़्तार से जीप भगाकर लाया | जीप हवा में उछली और दूसरी तरफ के तिकोने मंच पर जा पहुंची | फर्राटे से वह दूसरी ओर के रास्ते में खो गयी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अभी ताली की आवाज़ थमी भी नहीं थी कि जोकर अपनी जीप लेकर आ गए | उनकी जीप देखते ही हंसी आती थी | जिसे कहते हैं न -" 'हॉर्न' के सिवाय सब कुछ बजता था |" उसमें जोकर शलीनता से, कोई आगे, कोई पीछे, कोई इधर मुंह किये , कोई उधर मुंह किये बैठा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />उतरकर लम्बू जोकर ने सारे जोकरों से हाथ मिलाया | सारे के सारे जोकर हाथ हिलाते , सीटी बजाते उसका उत्साह बढाते खड़े हो गए | उसके लिए लकड़ी के दो छोटे छोटे तिकोने रख दिए गए | अभी जीप ने रफ़्तार पकड़ी ही थी कि जोर का धमाका हुआ और चारों के चारों चक्के बिखर गए | जोकर सर पर पाँव रखकर भागे |<br />
<br />
फिर दूसरी तरफ के पिंजरे से एक मोटर साइकिल के चलने की आवाज़ सुनाई दी | सारी बत्तियाँ बुझा दी गयी | सबकी नज़रें पिंज़रे पर टिकी थी | लोग दम साधे देख रहे थे | उद्घोषणा हुई, "कृपया माचिस या लाइटर ना जलाएं | यह कलाकार के लिए घातक हो सकता है|"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पिंजरे के अन्दर मोटर साइकिल की आवाज़ इतनी कर्कश, बल्कि कर्णफाड़ू थी ,मानो रह रहकर छोटे छोटे विस्फोट हो रहे हों | देखते ही देखते मोटर साइकिल पिजरे में घूमने लगी | जब मोटर साइकिल थमी और फिर से रोशनियाँ हुई तो लोगों की जान में जान आई |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
इंतज़ार की घड़ियाँ समाप्त हुई |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />तो बोतलें गिनने वाला गनपत हाथी आया | उसके साथ में उसका रिंग मास्टर भी था | पहले सूंड उठाकर उसने मैदान का एक चक्कर लगाया | एक तरफ नम्बरों की तख्ती रख दी गयी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
फिर बीच मैदान में रिंग मास्टर ने तीन दूध की बोतलें रख दी और वो एक कोने में चुपचाप खड़ा हो गया | <br />
हाथी दूध की बोतलों के पास गया , मानो वो बोतलें गिन रहा हो | उसने सूंड से एक एक बोतलों को छुआ |<br />
<br />
"संजीवनी , कितनी बोतलें हैं ?" श्यामलाल मामा ने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
संजीवनी के कुछ बोलने से पहले ही मैं बोल पड़ा ,"तीन" |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
और वाकई हाथी ने तीन नंबर की तख्ती उठाकर करतल ध्वनि के बीच पहले रिंग का एक चक्कर लगाया , फिर वह तख्ती रिंग मास्टर को सौंप दी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अब रिंग मास्टर ने पाँच दूध की बोतलें रखी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
श्यामलाल मामा के कुछ पूछने के पहले ही मैं बोल पड़ा," पाँच" |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
हाथी ने इस बार पाँच नंबर की तख्ती उठाई | तालियों की गड़गड़ाहटके बीच रिंग का एक चक्कर लगाया और पाँच नंबर की तख्ती रिंग मास्टर को सुपुर्द कर दी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अगली बार उसने आठ बोतलें ठीक ठीक गिनी | लोगों ने दाँतों तले उंगली दबा ली |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बहुत से लोग, जिनमें मैं भी था , यह चमत्कारी हाथी का शो देखने आये थे | वह हाथी अभी मंच से गया ही था कि जोकर अपना छोटा हाथी लेकर आ गए |<br />
<br />
वह छोटा हाथी आखिर था क्या ? जोकरो ने कपडे का बना हाथी का खोल पहन रखा था | साफ़ दिख रहा था - एक जोकर आगे और एक जोकर पीछे | चलते -चलते हाथी की पूँछ गिर पड़ी | शरारत में छोटे जोकर ने लकड़ी की एक स्केल उठाई और हाथी के पेंदे को छुआ | पूँछ की जगह वो स्केल पेंदे से चिपक गया और पूँछ की तरह हिलने लगा | हँसते - हँसते लोगों के पेट में बल पड़ गये - मुझे छोड़कर | छोटा जोकर मेरे लिए आँख की किरकिरी बन गया था | उसके बाद जोकरों के हाथी ने सीटी बजाकर सबको हँसाया | जब वह चले गया तब मुझे थोड़ी राहत मिली |<br />
<br />
*************</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
क्या यह वही मोटी बिल्ली थी ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मेहतर पूंछ पकड़कर, उस निर्जीव बिल्ली को उठाकर ले जा रहा था | वही मोटी बिल्ली - जिसका आतंक पूरे सड़क में छाया था | जिसे देखते ही माँ बेलन सम्हाल लेती थी और उसके बावजूद वह दुस्साहसी जब तब दूध पी जाती थी | आज वह कितनी निरीह लग रही थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मोटी बिल्ली मर गयी बे |" सोगा बोला |उसके घर की मुर्गियों पर भी मोटी बिल्ली ने कई बार आक्रमण किया था | किन्तु सोगा और उसका भाई मगिन्दर, पत्थर लेकर हरदम तैयार रहते थे | </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पता नहीं, कैसे मर गयी ? बबन के अनुसार उसने कोई सडा हुआ चूहा खा लिया था | अनिल ने बात और आगे <br />
बढाई- शायद छछूंदर को चूहा समझकर गटक लिया | | मुन्ना ने आशंका जताई कि हो सकता है - बिजली का नंगा तार छू लिया हो | छोटे को लगता था , उसे रात को साँप ने काट लिया हो | जितने मुंह उतनी बातें | पर वह हम लोगों के पडोसी, नाम्बियार के पटरी के नीचे वह मरी पड़ी मिली | लाल चीटियाँ उस पर टूट पड़ी थी और वह उन्हें अपने बदन से हटा पाने में भी असमर्थ थी - मानो गहरी नींद में सो रही हो | कैसी विडम्बना थी ये !<br />
<br />
"लेकिन कैसे मर गयी ये ? कल तो इसने मेरा रास्ता काटा था |" छोटे को अब भी हैरानी थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"जैसे सब मर जाते हैं | " अनिल बोला |<br />
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कितनी बड़ी बात कह दी उसने |<br />
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कहाँ जाते हैं मरने के बाद ? कहाँ गयी होगी यह बिल्ली ? अगर हम सर्कस की लाईट पकड़ कर स्वर्ग भी चले जाएँ तो जरुरी नहीं कि वहां मिलेगी | इसने काफी पाप किये हैं | बहुत से घर का अनेकानेक बार चोरी चोरी दूध पिया है | यह भी हो सकता है, इसे नरक भेजा जाये |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
नरक कहाँ है ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"जमीन के नीचे |" छोटा सुरेश बोला ," एक बार हमारे केरल के गाँव का आदमी गड्ढा खोदते गया | खोदते गया | चार दिन तक खोदते गया | फिर उसने क्या देखा - राक्षस इधर उधर दौड़ रहे थे | आग जल रही थी | एक आदमी को रस्सी से बांधकर खींच रहे थे और कोड़े मार रहे थे | जल्दी जल्दी वह बाहर आ गया और फटाफट मिट्टी डालकर गड्ढा भर दिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"सच्ची ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
" हाँ सच्ची |" वह छाती ठोंककर बोला |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"नरक जमीन के नीचे ही तो होता है | अगर झूठ है तो शशांक से पूछ लो |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"...शशांक से पूछ लो ..." . "....शशांक से पूछ लो ...." मेरे कान पक गए थे सुनते सुनते ...|<br />
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कलाकारों की नक़ल जोकरों ने उतारी थी और हम सब जोकरों के खेल दुहराने मैदान में इकठ्ठा हुए थे | यह तय था कि मेरी चौपहिया साइकिल जीप का काम करेगी | ऐसी जीप , जिसके चारों पहिये धमाके के साथ निकल जायेंगे | काम आसान लग रहा था , पर उतना आसान था नहीं | पहियों की धुरी पर जंग लगी मोटी कील थी, जिसे ईंट से ठोंक ठोंक के निकालने में लोगों को उनकी नानी याद आ गयी | तो यह तय था कि मैं लम्बू जोकर बनूँगा और जीप चलाकर मैदान की ढलान से आऊंगा | फिर जब जीप के चार चक्के निकलेंगे, तब निकलेंगे - लोग 'धडाम' तभी चिल्लायेंगे | फ़िलहाल लम्बू जोकर का रोल तो मुझे मिल गया था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मैं छोटा जोकर बनूँगा |" शशांक चहका |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
कायदे से देखा जाए तो छोटा जोकर , छोटे को बनना चाहिए था, क्योंकि वो कद में सबसे छोटा था | लेकिन छोटे जोकर का ख्याल आते ही मेरे दिमाग में 'टन्न' से घंटी बजी | बाकियों को कोई ख़ास मतलब नहीं था | मुन्ना और बबन जोकरों के कपड़े वाले हाथी बनने को तैयार हो गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
|मुन्ना के घर एक पुरानी दुपहिया - जावा सुवेगा थी , जो अक्सर पड़े रहती थी | उसे पुरानी चादर से ढँक दिया गया था | मुन्ना वो चादर उठा लायेगा और उसके अन्दर मुन्ना और बबन छुप जायेंगे और जोकर के हाथी बन जायेंगे |<br />
<br />
"...और जब हाथी कि पूँछ गिर जायेगी तो मैं स्केल लटका दूँगा |" शशांक हँसते हुए उछल रहा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
एक तो छोटा जोकर , ऊपर से शशांक - मेर भेजा वैसे ही गरम हो गया था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"फिर तो झूले वाला खेल भी खेलेंगे | वही, जिसमें छोटे जोकर का पजामा हवाबाज पकड़ता है और उसका पजामा निकल जाता है | अन्दर वो लड़कियों की स्कर्ट पहने रहता है |" मैंने मनोभाव छुपाकर ये प्रस्ताव रख दिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"वो छोटा जोकर नहीं, लम्बू जोकर था |" शशांक ने छूटते ही प्रतिवाद किया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"नहीं वो छोटा जोकर था |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"छोटा जोकर इतना छोटू था, वो झूले की सीढ़ी कैसे चढ़ पायेगा ? " उसने तर्क दिया ," वो लम्बू जोकर था |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"नहीं, वो छोटा जोकर था |" मुझे मालूम था कि वो छोटा जोकर नहीं था , पर एक तो मुझे छोटा जोकर फूटी आँखों नहीं सुहाया था - ऊपर से शशांक ....| मैं साफ- साफ बेइमानी पर उतर आया था | ऊपर से चोरी और सीनाजोरी...</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> "अबे तूने सर्कस देखा या सो रहा था ?" </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मुझे लगा था , बबन या मुन्ना , या दोनों मेरा समर्थन करेंगे | दोनों हाथ बाँधे चुपचाप खड़े थे | मैंने मुन्ना से पूछा ," मुन्ना, तू ही बोल, वो छोटा जोकर था न ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मुन्ना ने मध्यम रास्ता अपनाया ," याद नहीं | पर लगता है , ना तो वो छोटा जोकर था, ना लम्बा जोकर | कोई और जोकर था | पर झूले वाला खेल कहाँ खेलेंगे ? किसी के घर पेड़ में जाकर लटकना पड़ेगा | किसके घर ? "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बबन का तर्क और भी जोरदार था, "और फिर लड़की की स्कर्ट ? वो कहाँ से लायेंगे ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
....और मेरी बदकिस्मती कि झूले वाला खेल वहीँ स्थगित हो गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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(क्रमशः)<br />
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</div>Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-5197952518932319552011-08-27T23:37:00.016-07:002023-01-06T23:45:21.134-08:00हप्पू की बम बम १<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div><span class="transl_class" id="0" title="Click to correct">यह</span> <span class="transl_class" id="1" title="Click to correct">बात</span> <span class="transl_class" id="2" title="Click to correct">सोलहों</span> <span class="transl_class" id="3" title="Click to correct">आने</span> <span class="transl_class" id="4" title="Click to correct">सच</span> <span class="transl_class" id="5" title="Click to correct">थी</span> <span class="transl_class" id="6" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="7" title="Click to correct">मेरे</span> <span class="transl_class" id="8" title="Click to correct">मुंह</span> <span class="transl_class" id="9" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="10" title="Click to correct">बत्तीस</span> <span class="transl_class" id="11" title="Click to correct">दाँत</span> <span class="transl_class" id="12" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="13" title="Click to correct">ऐसा</span> <span class="transl_class" id="14" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="15" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="16" title="Click to correct">नन्ही</span> <span class="transl_class" id="17" title="Click to correct">सी</span> <span class="transl_class" id="18" title="Click to correct">उम्र</span> <span class="transl_class" id="19" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="20" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="21" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="22" title="Click to correct">सयाना</span> <span class="transl_class" id="23" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="24" title="Click to correct">गया था </span> <span class="transl_class" id="25" title="Click to correct">और</span> मेरी अक्कल दाढ़ निकल आयी थी | <span class="transl_class" id="32" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="33" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="34" title="Click to correct">दाँतों</span> <span class="transl_class" id="35" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="36" title="Click to correct">संख्या</span> <span class="transl_class" id="37" title="Click to correct">बत्तीस</span> <span class="transl_class" id="38" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="39" title="Click to correct">निश्चित</span> <span class="transl_class" id="40" title="Click to correct">तौर</span> <span class="transl_class" id="41" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="42" title="Click to correct">थी</span> - <span class="transl_class" id="43" title="Click to correct">बल्कि</span> <span class="transl_class" id="44" title="Click to correct">कहीं</span> <span class="transl_class" id="45" title="Click to correct">ज्यादा</span> ...<br />
<br />सेक्टर ९ अस्पताल में दाँतों के वार्ड <span class="transl_class" id="49" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="50" title="Click to correct">बाहर</span> <span class="transl_class" id="51" title="Click to correct">बेंच</span> <span class="transl_class" id="52" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="53" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="54" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="55" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="56" title="Click to correct">बैठे</span> <span class="transl_class" id="57" title="Click to correct">थे | </span><span class="transl_class" id="58" title="Click to correct">बाबूजी</span> <span class="transl_class" id="59" title="Click to correct">कहाँ</span> <span class="transl_class" id="60" title="Click to correct">थे</span> - <span class="transl_class" id="61" title="Click to correct">पता</span> <span class="transl_class" id="62" title="Click to correct">नहीं |</span> <span class="transl_class" id="63" title="Click to correct">इतने</span> <span class="transl_class" id="64" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="65" title="Click to correct">दोस्त</span> <span class="transl_class" id="66" title="Click to correct">थे</span> <span class="transl_class" id="67" title="Click to correct">उनके</span> - <span class="transl_class" id="68" title="Click to correct">सेक्टर</span> <span class="transl_class" id="69" title="Click to correct">९</span> <span class="transl_class" id="70" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="71" title="Click to correct">अस्पताल</span> <span class="transl_class" id="72" title="Click to correct">में</span> !<span class="transl_class" id="73" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="74" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="75" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="76" title="Click to correct">पुराने</span> <span class="transl_class" id="77" title="Click to correct">यार</span> <span class="transl_class" id="78" title="Click to correct">डॉक्टर</span> <span class="transl_class" id="79" title="Click to correct">धोटे</span> <span class="transl_class" id="80" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="81" title="Click to correct">केबिन</span> <span class="transl_class" id="82" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="83" title="Click to correct">बैठे</span> <span class="transl_class" id="84" title="Click to correct">गप्प</span> <span class="transl_class" id="85" title="Click to correct">मार</span> <span class="transl_class" id="86" title="Click to correct">रहे</span> <span class="transl_class" id="87" title="Click to correct">होंगे</span> | <span class="transl_class" id="88" title="Click to correct">बीच</span> <span class="transl_class" id="89" title="Click to correct">बीच</span> <span class="transl_class" id="90" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="91" title="Click to correct">जरुर</span> <span class="transl_class" id="92" title="Click to correct">आकर</span> <span class="transl_class" id="93" title="Click to correct">एकाध</span> <span class="transl_class" id="94" title="Click to correct">चक्कर</span> <span class="transl_class" id="95" title="Click to correct">लगा</span> <span class="transl_class" id="96" title="Click to correct">जाते</span> <span class="transl_class" id="97" title="Click to correct">थे</span> ,"<span class="transl_class" id="98" title="Click to correct">क्या</span> ? <span class="transl_class" id="99" title="Click to correct">अभी</span> <span class="transl_class" id="100" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="101" title="Click to correct">चौथा</span> <span class="transl_class" id="102" title="Click to correct">नंबर</span> ? " <span class="transl_class" id="103" title="Click to correct">जब</span> <span class="transl_class" id="104" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="105" title="Click to correct">आते</span>, <span class="transl_class" id="106" title="Click to correct">मेरा</span> <span class="transl_class" id="107" title="Click to correct">डर</span> <span class="transl_class" id="108" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="109" title="Click to correct">कम</span> <span class="transl_class" id="110" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="111" title="Click to correct">जाता</span> था | <span class="transl_class" id="112" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="113" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="114" title="Click to correct">घडी</span> <span class="transl_class" id="115" title="Click to correct">देखते</span> ," <span class="transl_class" id="116" title="Click to correct">ज़रा</span> <span class="transl_class" id="117" title="Click to correct">पांच</span> <span class="transl_class" id="118" title="Click to correct">मिनट</span> <span class="transl_class" id="119" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="120" title="Click to correct">मदन</span> <span class="transl_class" id="121" title="Click to correct">डॉक्टर</span> <span class="transl_class" id="122" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="123" title="Click to correct">मिल</span> <span class="transl_class" id="124" title="Click to correct">आता</span> <span class="transl_class" id="125" title="Click to correct">हूँ</span> | <span class="transl_class" id="126" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="127" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="128" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="129" title="Click to correct">बोलेंगे</span> ?" <span class="transl_class" id="130" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="131" title="Click to correct">जब</span> <span class="transl_class" id="132" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="133" title="Click to correct">जाने</span> <span class="transl_class" id="134" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="135" title="Click to correct">लिए</span> <span class="transl_class" id="136" title="Click to correct">निकलते </span> , <span class="transl_class" id="137" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="138" title="Click to correct">लगता </span>, <span class="transl_class" id="139" title="Click to correct">मेरा</span> <span class="transl_class" id="140" title="Click to correct">संबल</span> <span class="transl_class" id="141" title="Click to correct">छिन</span> <span class="transl_class" id="142" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="143" title="Click to correct">है</span> | इस बार <span class="transl_class" id="144" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="145" title="Click to correct">पंजों</span> <span class="transl_class" id="146" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="147" title="Click to correct">बल</span> <span class="transl_class" id="148" title="Click to correct">खड़ा</span> <span class="transl_class" id="149" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="150" title="Click to correct">हुआ</span>, <span class="transl_class" id="151" title="Click to correct">उनके</span> <span class="transl_class" id="152" title="Click to correct">पीछे</span> <span class="transl_class" id="153" title="Click to correct">जाने</span> <span class="transl_class" id="154" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="155" title="Click to correct">लिए |</span> <span class="transl_class" id="156" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="157" title="Click to correct">बैठ</span> <span class="transl_class" id="158" title="Click to correct">गया</span> - <span class="transl_class" id="159" title="Click to correct">आतंक</span> <span class="transl_class" id="160" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="161" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="162" title="Click to correct">साए</span> <span class="transl_class" id="163" title="Click to correct">में ...|</span><br />
<br />
<span class="transl_class" id="164" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="165" title="Click to correct">नहीं</span>, <span class="transl_class" id="166" title="Click to correct">मैं</span> दाँतों <span class="transl_class" id="168" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="169" title="Click to correct">डॉक्टर</span> <span class="transl_class" id="170" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="171" title="Click to correct">बंद</span> <span class="transl_class" id="172" title="Click to correct">दरवाजे</span> <span class="transl_class" id="173" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="174" title="Click to correct">बात</span> <span class="transl_class" id="175" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="176" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="177" title="Click to correct">रहा</span> - <span class="transl_class" id="178" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="179" title="Click to correct">कभी</span> <span class="transl_class" id="180" title="Click to correct">खुलता</span>, <span class="transl_class" id="181" title="Click to correct">लोग</span> <span class="transl_class" id="182" title="Click to correct">अन्दर</span> <span class="transl_class" id="183" title="Click to correct">जाते</span> <span class="transl_class" id="184" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="185" title="Click to correct">अधिकतर</span> <span class="transl_class" id="186" title="Click to correct">मुंह</span> <span class="transl_class" id="187" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="188" title="Click to correct">रुमाल</span> <span class="transl_class" id="189" title="Click to correct">लगाकर</span> <span class="transl_class" id="190" title="Click to correct">बाहर</span> <span class="transl_class" id="191" title="Click to correct">आते</span> | <span class="transl_class" id="192" title="Click to correct">बात</span> <span class="transl_class" id="193" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="194" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="195" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="196" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="197" title="Click to correct">बच्चा</span> <span class="transl_class" id="198" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="199" title="Click to correct">घूर</span> <span class="transl_class" id="200" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="201" title="Click to correct">था ...</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="202" title="Click to correct">हाँ</span> <span class="transl_class" id="203" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="204" title="Click to correct">बच्चा</span> .. <span class="transl_class" id="205" title="Click to correct">जिसके</span> <span class="transl_class" id="206" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="207" title="Click to correct">हाथ</span> <span class="transl_class" id="208" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="209" title="Click to correct">प्लास्टर</span> <span class="transl_class" id="210" title="Click to correct">बंधा</span> <span class="transl_class" id="211" title="Click to correct">था</span> .. <span class="transl_class" id="212" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="213" title="Click to correct">आँख</span> <span class="transl_class" id="214" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="215" title="Click to correct">आंसू</span> <span class="transl_class" id="216" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="217" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="218" title="Click to correct">बूंद</span> <span class="transl_class" id="219" title="Click to correct">अब</span> <span class="transl_class" id="220" title="Click to correct">लुढकी</span> <span class="transl_class" id="221" title="Click to correct">तब</span> <span class="transl_class" id="222" title="Click to correct">लुढकी</span> ...<br />
<span class="transl_class" id="223" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="224" title="Click to correct">नजरें</span> <span class="transl_class" id="225" title="Click to correct">हटाकर</span> <span class="transl_class" id="226" title="Click to correct">दूसरे</span> <span class="transl_class" id="227" title="Click to correct">पोस्टर</span> <span class="transl_class" id="228" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="229" title="Click to correct">ओर</span> <span class="transl_class" id="230" title="Click to correct">देखा</span> | <span class="transl_class" id="231" title="Click to correct">उसमें</span> <span class="transl_class" id="232" title="Click to correct">लिखा</span> <span class="transl_class" id="233" title="Click to correct">था</span> ," <span class="transl_class" id="234" title="Click to correct">दो</span> <span class="transl_class" id="235" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="236" title="Click to correct">तीन</span> <span class="transl_class" id="237" title="Click to correct">बच्चे</span> - <span class="transl_class" id="238" title="Click to correct">बस</span> ..." <span class="transl_class" id="239" title="Click to correct">उसमें</span> <span class="transl_class" id="240" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="241" title="Click to correct">आदमी</span>, <span class="transl_class" id="242" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="243" title="Click to correct">औरत</span> , <span class="transl_class" id="244" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="245" title="Click to correct">नीचे</span> <span class="transl_class" id="246" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="247" title="Click to correct">लड़की</span> <span class="transl_class" id="248" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="249" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="250" title="Click to correct">लड़का</span> <span class="transl_class" id="251" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="252" title="Click to correct">उससे</span> <span class="transl_class" id="253" title="Click to correct">नीचे</span> <span class="transl_class" id="254" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="255" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="256" title="Click to correct">छोटे</span> <span class="transl_class" id="257" title="Click to correct">लड़के</span> <span class="transl_class" id="258" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="259" title="Click to correct">तस्वीर</span> <span class="transl_class" id="260" title="Click to correct">बनी</span> <span class="transl_class" id="261" title="Click to correct">थी |</span> <span class="transl_class" id="262" title="Click to correct">यानी</span> <span class="transl_class" id="263" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="264" title="Click to correct">उन</span> <span class="transl_class" id="265" title="Click to correct">दिनों</span> <span class="transl_class" id="266" title="Click to correct">तीन</span> <span class="transl_class" id="267" title="Click to correct">बच्चों</span> <span class="transl_class" id="268" title="Click to correct">वाला</span> <span class="transl_class" id="269" title="Click to correct">परिवार</span> <span class="transl_class" id="270" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="271" title="Click to correct">आदर्श</span> <span class="transl_class" id="272" title="Click to correct">परिवार</span> <span class="transl_class" id="273" title="Click to correct">माना</span> <span class="transl_class" id="274" title="Click to correct">जाता</span> <span class="transl_class" id="275" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="276" title="Click to correct">आजकल</span> <span class="transl_class" id="277" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="278" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="279" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="280" title="Click to correct">बच्चा</span> <span class="transl_class" id="281" title="Click to correct">लोगों</span> <span class="transl_class" id="282" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="283" title="Click to correct">महंगा</span> <span class="transl_class" id="284" title="Click to correct">लगने</span> <span class="transl_class" id="285" title="Click to correct">लगता</span> <span class="transl_class" id="286" title="Click to correct">है |</span></div><div><br /></div><div>
<span class="transl_class" id="287" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="288" title="Click to correct">लाख</span> <span class="transl_class" id="289" title="Click to correct">कोशिश</span> <span class="transl_class" id="290" title="Click to correct">करता</span>, <span class="transl_class" id="291" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="292" title="Click to correct">बार</span> <span class="transl_class" id="293" title="Click to correct">बार</span> <span class="transl_class" id="294" title="Click to correct">मेरी</span> <span class="transl_class" id="295" title="Click to correct">निगाहें</span> <span class="transl_class" id="296" title="Click to correct">परिवार</span> <span class="transl_class" id="297" title="Click to correct">नियोजन</span> <span class="transl_class" id="298" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="299" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="300" title="Click to correct">उलटे</span> <span class="transl_class" id="301" title="Click to correct">तिकोने</span> <span class="transl_class" id="302" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="303" title="Click to correct">हटकर</span> <span class="transl_class" id="304" title="Click to correct">बगल</span> <span class="transl_class" id="305" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="306" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="307" title="Click to correct">पोस्टर</span> <span class="transl_class" id="308" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="309" title="Click to correct">चले</span> <span class="transl_class" id="310" title="Click to correct">जाती</span> <span class="transl_class" id="311" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="312" title="Click to correct">बच्चा</span> <span class="transl_class" id="313" title="Click to correct">वाकई</span> <span class="transl_class" id="314" title="Click to correct">सुबक</span> <span class="transl_class" id="315" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="316" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="317" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="318" title="Click to correct">नीचे</span> <span class="transl_class" id="319" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="320" title="Click to correct">भयावह</span> <span class="transl_class" id="321" title="Click to correct">माचिस</span> <span class="transl_class" id="322" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="323" title="Click to correct">तीली</span> <span class="transl_class" id="324" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="325" title="Click to correct">तस्वीर</span> <span class="transl_class" id="326" title="Click to correct">बनी</span> <span class="transl_class" id="327" title="Click to correct">थी | </span> <span class="transl_class" id="328" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="329" title="Click to correct">नीचे</span> <span class="transl_class" id="330" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="331" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="332" title="Click to correct">लिखा</span> <span class="transl_class" id="333" title="Click to correct">था</span> , <span class="transl_class" id="334" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="335" title="Click to correct">अटक</span> <span class="transl_class" id="336" title="Click to correct">अटक</span> <span class="transl_class" id="337" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="338" title="Click to correct">पढ़ा</span> ,"<span class="transl_class" id="339" title="Click to correct">कृपया</span> <span class="transl_class" id="340" title="Click to correct">आग</span> <span class="transl_class" id="341" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="342" title="Click to correct">ना</span> <span class="transl_class" id="343" title="Click to correct">खेलें |</span>"</div><div><br />
<span class="transl_class" id="344" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="345" title="Click to correct">महसूस</span> <span class="transl_class" id="346" title="Click to correct">हुआ</span> <span class="transl_class" id="347" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="348" title="Click to correct">मेरे</span> <span class="transl_class" id="349" title="Click to correct">बगल</span> <span class="transl_class" id="350" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="351" title="Click to correct">बेंच</span> <span class="transl_class" id="352" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="353" title="Click to correct">काफी</span> <span class="transl_class" id="354" title="Click to correct">जगह</span> <span class="transl_class" id="355" title="Click to correct">खाली</span> <span class="transl_class" id="356" title="Click to correct">है</span> | <span class="transl_class" id="357" title="Click to correct">हमारा</span> <span class="transl_class" id="358" title="Click to correct">नंबर</span> <span class="transl_class" id="359" title="Click to correct">आ</span> <span class="transl_class" id="360" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="361" title="Click to correct">गया</span> | <span class="transl_class" id="362" title="Click to correct">बाबूजी</span> <span class="transl_class" id="363" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="364" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="365" title="Click to correct">अन्दर</span> <span class="transl_class" id="366" title="Click to correct">ले</span> <span class="transl_class" id="367" title="Click to correct">जाने</span> <span class="transl_class" id="368" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="369" title="Click to correct">पहले</span> <span class="transl_class" id="370" title="Click to correct">बोले</span> ," <span class="transl_class" id="371" title="Click to correct">यहीं</span> <span class="transl_class" id="372" title="Click to correct">बैठे</span> <span class="transl_class" id="373" title="Click to correct">रहना</span> <span class="transl_class" id="374" title="Click to correct">बेटा</span> |"<br />
<br />
<span class="transl_class" id="375" title="Click to correct">मेरी</span> <span class="transl_class" id="376" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="377" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="378" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="379" title="Click to correct">समस्या</span> <span class="transl_class" id="380" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="381" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="382" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="383" title="Click to correct">दोनों</span> <span class="transl_class" id="384" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="385" title="Click to correct">दाँत</span> <span class="transl_class" id="386" title="Click to correct">उखड़वाना</span> <span class="transl_class" id="387" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="388" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="389" title="Click to correct">यहीं</span> <span class="transl_class" id="390" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="391" title="Click to correct">समानता</span> <span class="transl_class" id="392" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="393" title="Click to correct">अंत</span> <span class="transl_class" id="394" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="395" title="Click to correct">जाता</span> <span class="transl_class" id="396" title="Click to correct">था |</span> <span class="transl_class" id="397" title="Click to correct">कहने</span> <span class="transl_class" id="398" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="399" title="Click to correct">मतलब</span> <span class="transl_class" id="400" title="Click to correct">ये</span> <span class="transl_class" id="401" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="402" title="Click to correct">ऐसा</span> <span class="transl_class" id="403" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="404" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="405" title="Click to correct">दाँतों</span> <span class="transl_class" id="406" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="407" title="Click to correct">समस्या</span> <span class="transl_class" id="408" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="409" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="410" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="411" title="Click to correct">विरासत</span> <span class="transl_class" id="412" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="413" title="Click to correct">मिली</span> <span class="transl_class" id="414" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="415" title="Click to correct">बल्कि</span> <span class="transl_class" id="416" title="Click to correct">हमारी</span> <span class="transl_class" id="417" title="Click to correct">समस्याएँ</span> <span class="transl_class" id="418" title="Click to correct">एकदम</span> <span class="transl_class" id="419" title="Click to correct">विपरीत</span> <span class="transl_class" id="420" title="Click to correct">थी |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="421" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="422" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="423" title="Click to correct">दाँत</span> <span class="transl_class" id="424" title="Click to correct">उखड़वाना</span> <span class="transl_class" id="425" title="Click to correct">था</span>, <span class="transl_class" id="426" title="Click to correct">क्योंकि</span> <span class="transl_class" id="427" title="Click to correct">उनके</span> <span class="transl_class" id="428" title="Click to correct">दाँत</span> <span class="transl_class" id="429" title="Click to correct">कमजोर</span> <span class="transl_class" id="430" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="431" title="Click to correct">गए</span> <span class="transl_class" id="432" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="433" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="434" title="Click to correct">नीम</span> <span class="transl_class" id="435" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="436" title="Click to correct">टहनी</span> <span class="transl_class" id="437" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="438" title="Click to correct">दातुन</span> <span class="transl_class" id="439" title="Click to correct">करती</span> <span class="transl_class" id="440" title="Click to correct">थी</span> <span class="transl_class" id="441" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="442" title="Click to correct">हम</span> <span class="transl_class" id="443" title="Click to correct">सब</span> ?</div><div><br />
<span class="transl_class" id="444" title="Click to correct">उन</span> <span class="transl_class" id="445" title="Click to correct">दिनों</span> <span class="transl_class" id="446" title="Click to correct">अखबार</span> <span class="transl_class" id="447" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="448" title="Click to correct">दो</span> <span class="transl_class" id="449" title="Click to correct">विज्ञापन</span> <span class="transl_class" id="450" title="Click to correct">प्रतिदिन</span> <span class="transl_class" id="451" title="Click to correct">आते</span> <span class="transl_class" id="452" title="Click to correct">थे</span> - <span class="transl_class" id="453" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="454" title="Click to correct">टुल्लू</span> <span class="transl_class" id="455" title="Click to correct">वाटर</span> <span class="transl_class" id="456" title="Click to correct">पम्प</span> ( <span class="transl_class" id="457" title="Click to correct">यह</span> <span class="transl_class" id="458" title="Click to correct">संयोग</span> <span class="transl_class" id="459" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="460" title="Click to correct">पराकाष्ठा</span> <span class="transl_class" id="461" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="462" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="463" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="464" title="Click to correct">बाद</span> <span class="transl_class" id="465" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="466" title="Click to correct">उसका</span> <span class="transl_class" id="467" title="Click to correct">नामकरण</span> <span class="transl_class" id="468" title="Click to correct">टुल्लू</span> <span class="transl_class" id="469" title="Click to correct">विजय</span> <span class="transl_class" id="470" title="Click to correct">वाटर</span> <span class="transl_class" id="471" title="Click to correct">पम्प</span> <span class="transl_class" id="472" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="473" title="Click to correct">गया</span> |) <span class="transl_class" id="474" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="475" title="Click to correct">दूसरा</span> ---<span class="transl_class" id="476" title="Click to correct">बन्दर</span> <span class="transl_class" id="477" title="Click to correct">छाप</span> <span class="transl_class" id="478" title="Click to correct">काला</span> <span class="transl_class" id="479" title="Click to correct">दन्त</span> <span class="transl_class" id="480" title="Click to correct">मंजन ... ! उस विज्ञापन में एक बन्दर ढोल बजाकर काले दन्त मंजन का प्रचार करते दिखता था | </span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="481" title="Click to correct">हम</span> <span class="transl_class" id="482" title="Click to correct">सब</span> <span class="transl_class" id="483" title="Click to correct">बन्दर</span> <span class="transl_class" id="484" title="Click to correct">छाप</span> <span class="transl_class" id="485" title="Click to correct">काला</span> <span class="transl_class" id="486" title="Click to correct">दन्त</span> <span class="transl_class" id="487" title="Click to correct">मंजन</span> <span class="transl_class" id="488" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="489" title="Click to correct">दाँत</span> <span class="transl_class" id="490" title="Click to correct">साफ़</span> <span class="transl_class" id="491" title="Click to correct">करते</span> <span class="transl_class" id="492" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="493" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="494" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="495" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="496" title="Click to correct">दाँतों</span> <span class="transl_class" id="497" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="498" title="Click to correct">समस्या</span> <span class="transl_class" id="499" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="500" title="Click to correct">बाद</span> <span class="transl_class" id="501" title="Click to correct">हम</span> <span class="transl_class" id="502" title="Click to correct">सब</span> <span class="transl_class" id="503" title="Click to correct">फोरहंस</span> <span class="transl_class" id="504" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="505" title="Click to correct">उपयोग</span> <span class="transl_class" id="506" title="Click to correct">करने</span> <span class="transl_class" id="507" title="Click to correct">लगे |</span> <span class="transl_class" id="508" title="Click to correct">सब</span> <span class="transl_class" id="509" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="510" title="Click to correct">लिए</span> <span class="transl_class" id="511" title="Click to correct">एक-</span><span class="transl_class" id="512" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="513" title="Click to correct">ब्रुश</span> <span class="transl_class" id="514" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="515" title="Click to correct">आ</span> <span class="transl_class" id="516" title="Click to correct">गया</span> | <span class="transl_class" id="517" title="Click to correct">मेरे</span> <span class="transl_class" id="518" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="519" title="Click to correct">संजीवनी</span> <span class="transl_class" id="520" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="521" title="Click to correct">लिए</span> <span class="transl_class" id="522" title="Click to correct">भी</span> ...<br />
<br />
<span class="transl_class" id="523" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="524" title="Click to correct">बाहर</span> <span class="transl_class" id="525" title="Click to correct">आ</span> <span class="transl_class" id="526" title="Click to correct">रही</span> <span class="transl_class" id="527" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="528" title="Click to correct">उनके</span> <span class="transl_class" id="529" title="Click to correct">मुँह </span><span class="transl_class" id="530" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="531" title="Click to correct">खून</span> <span class="transl_class" id="532" title="Click to correct">निकल</span> <span class="transl_class" id="533" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="534" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="535" title="Click to correct">मुँह </span><span class="transl_class" id="536" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="537" title="Click to correct">रुई</span> <span class="transl_class" id="538" title="Click to correct">ठुंसी</span> <span class="transl_class" id="539" title="Click to correct">हुई</span> <span class="transl_class" id="540" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="541" title="Click to correct">बाबूजी</span> ने <span class="transl_class" id="542" title="Click to correct">अपना</span> <span class="transl_class" id="543" title="Click to correct">रुमाल</span> <span class="transl_class" id="544" title="Click to correct">उन्हें</span> <span class="transl_class" id="545" title="Click to correct">दिया</span> ," <span class="transl_class" id="546" title="Click to correct">अरे</span> <span class="transl_class" id="547" title="Click to correct">भई</span> <span class="transl_class" id="548" title="Click to correct">कितनी</span> <span class="transl_class" id="549" title="Click to correct">बार</span> <span class="transl_class" id="550" title="Click to correct">कहा</span> <span class="transl_class" id="551" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="552" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="553" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="554" title="Click to correct">बाहर</span> <span class="transl_class" id="555" title="Click to correct">चलने</span> <span class="transl_class" id="556" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="557" title="Click to correct">समय</span> <span class="transl_class" id="558" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="559" title="Click to correct">रुमाल</span> <span class="transl_class" id="560" title="Click to correct">साथ</span> <span class="transl_class" id="561" title="Click to correct">लिया</span> <span class="transl_class" id="562" title="Click to correct">करो</span> ..." <span class="transl_class" id="563" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="564" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="565" title="Click to correct">बोले</span> ,"<span class="transl_class" id="566" title="Click to correct">चल</span> <span class="transl_class" id="567" title="Click to correct">टुल्लू</span> !"</div><div><br />
<span class="transl_class" id="568" title="Click to correct">जब</span> <span class="transl_class" id="569" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="570" title="Click to correct">अन्दर</span> <span class="transl_class" id="571" title="Click to correct">गया</span> <span class="transl_class" id="572" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="573" title="Click to correct">मोटे</span> <span class="transl_class" id="574" title="Click to correct">चश्मे</span> <span class="transl_class" id="575" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="576" title="Click to correct">पीछे</span> <span class="transl_class" id="577" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="578" title="Click to correct">झांकती</span> <span class="transl_class" id="579" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="580" title="Click to correct">दो</span> <span class="transl_class" id="581" title="Click to correct">आँखे</span> <span class="transl_class" id="582" title="Click to correct">दिखी</span> - <span class="transl_class" id="583" title="Click to correct">ओंठों</span> <span class="transl_class" id="584" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="585" title="Click to correct">कुटिल</span> <span class="transl_class" id="586" title="Click to correct">मुस्कान</span> ... <span class="transl_class" id="587" title="Click to correct">यह</span> <span class="transl_class" id="588" title="Click to correct">दाँतों</span> <span class="transl_class" id="589" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="590" title="Click to correct">डॉक्टर</span> <span class="transl_class" id="591" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="592" title="Click to correct">उसने</span> <span class="transl_class" id="593" title="Click to correct">मेरे</span> <span class="transl_class" id="594" title="Click to correct">दोनों</span> <span class="transl_class" id="595" title="Click to correct">गाल</span> <span class="transl_class" id="596" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="597" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="598" title="Click to correct">हाथ</span> <span class="transl_class" id="599" title="Click to correct">रखकर</span> <span class="transl_class" id="600" title="Click to correct">जोर</span> <span class="transl_class" id="601" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="602" title="Click to correct">दबाया</span> | <span class="transl_class" id="603" title="Click to correct">जैसे</span> <span class="transl_class" id="604" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="605" title="Click to correct">मेरा</span> मुँह <span class="transl_class" id="607" title="Click to correct">खुला</span>, <span class="transl_class" id="608" title="Click to correct">दूसरे</span> <span class="transl_class" id="609" title="Click to correct">हाथ</span> <span class="transl_class" id="610" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="611" title="Click to correct">उसने</span> <span class="transl_class" id="612" title="Click to correct">टॉर्च</span> <span class="transl_class" id="613" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="614" title="Click to correct">प्रकाश</span> <span class="transl_class" id="615" title="Click to correct">मुंह</span> <span class="transl_class" id="616" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="617" title="Click to correct">डाला</span> | <span class="transl_class" id="618" title="Click to correct">उधर</span> <span class="transl_class" id="619" title="Click to correct">बाबूजी</span> <span class="transl_class" id="620" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="621" title="Click to correct">वक्तव्य</span> <span class="transl_class" id="622" title="Click to correct">जारी</span> <span class="transl_class" id="623" title="Click to correct">था</span> ,"<span class="transl_class" id="624" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="625" title="Click to correct">करें</span> <span class="transl_class" id="626" title="Click to correct">डॉक्टर</span> <span class="transl_class" id="627" title="Click to correct">साहब</span> !<span class="transl_class" id="628" title="Click to correct">दूध</span> <span class="transl_class" id="629" title="Click to correct">पीने</span> <span class="transl_class" id="630" title="Click to correct">वाले</span> <span class="transl_class" id="631" title="Click to correct">बच्चे</span> <span class="transl_class" id="632" title="Click to correct">हैं |</span> <span class="transl_class" id="633" title="Click to correct">दूध</span> <span class="transl_class" id="634" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="635" title="Click to correct">दाँत</span> <span class="transl_class" id="636" title="Click to correct">जल्दी</span> <span class="transl_class" id="637" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="638" title="Click to correct">टूटते</span> |" <span class="transl_class" id="639" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="640" title="Click to correct">लगा</span> , <span class="transl_class" id="641" title="Click to correct">बाबूजी</span> <span class="transl_class" id="642" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="643" title="Click to correct">वक्तव्य</span> <span class="transl_class" id="644" title="Click to correct">सुधारूँ</span> ,"<span class="transl_class" id="645" title="Click to correct">दूध</span> <span class="transl_class" id="646" title="Click to correct">नहीं</span>, <span class="transl_class" id="647" title="Click to correct">चाय</span>.." <span class="transl_class" id="648" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="649" title="Click to correct">हिम्मत</span> <span class="transl_class" id="650" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="651" title="Click to correct">पड़ी</span> | <span class="transl_class" id="652" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="653" title="Click to correct">ये</span> <span class="transl_class" id="654" title="Click to correct">मेरी</span> <span class="transl_class" id="655" title="Click to correct">समस्या</span> <span class="transl_class" id="656" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="657" title="Click to correct">मेरे</span> <span class="transl_class" id="658" title="Click to correct">दूध</span> <span class="transl_class" id="659" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="660" title="Click to correct">दाँत</span> <span class="transl_class" id="661" title="Click to correct">टूटने</span> <span class="transl_class" id="662" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="663" title="Click to correct">पहले</span> <span class="transl_class" id="664" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="665" title="Click to correct">नए</span> <span class="transl_class" id="666" title="Click to correct">दाँत</span> <span class="transl_class" id="667" title="Click to correct">उग</span> <span class="transl_class" id="668" title="Click to correct">रहे</span> <span class="transl_class" id="669" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="670" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="671" title="Click to correct">मुश्किल</span> <span class="transl_class" id="672" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="673" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="674" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="675" title="Click to correct">कभी-</span><span class="transl_class" id="676" title="Click to correct">कभी</span> <span class="transl_class" id="677" title="Click to correct">रोटी</span> <span class="transl_class" id="678" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="679" title="Click to correct">टुकड़ा</span> <span class="transl_class" id="680" title="Click to correct">जरुर</span> <span class="transl_class" id="681" title="Click to correct">फंस</span> <span class="transl_class" id="682" title="Click to correct">जाता</span> <span class="transl_class" id="683" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="684" title="Click to correct">खासकर</span> <span class="transl_class" id="685" title="Click to correct">अंगाकर</span> <span class="transl_class" id="686" title="Click to correct">रोटी</span> <span class="transl_class" id="687" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="688" title="Click to correct">सख्त</span> <span class="transl_class" id="689" title="Click to correct">टुकड़ा</span> <span class="transl_class" id="690" title="Click to correct">जरुर</span> <span class="transl_class" id="691" title="Click to correct">दांतों</span> <span class="transl_class" id="692" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="693" title="Click to correct">बीच</span> <span class="transl_class" id="694" title="Click to correct">फंस</span> <span class="transl_class" id="695" title="Click to correct">जाता</span> <span class="transl_class" id="696" title="Click to correct">था</span> , <span class="transl_class" id="697" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="698" title="Click to correct">कुल्ला</span> <span class="transl_class" id="699" title="Click to correct">करो</span> <span class="transl_class" id="700" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="701" title="Click to correct">निकल</span> <span class="transl_class" id="702" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="703" title="Click to correct">आता</span> <span class="transl_class" id="704" title="Click to correct">था |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="705" title="Click to correct">बाबूजी</span> <span class="transl_class" id="706" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="707" title="Click to correct">बात</span> <span class="transl_class" id="708" title="Click to correct">सुनकर</span> <span class="transl_class" id="709" title="Click to correct">डॉक्टर</span> <span class="transl_class" id="710" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="711" title="Click to correct">कुटिल</span> <span class="transl_class" id="712" title="Click to correct">मुस्कान</span> <span class="transl_class" id="713" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="714" title="Click to correct">चौड़ी</span> <span class="transl_class" id="715" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="716" title="Click to correct">गयी</span> | <span class="transl_class" id="717" title="Click to correct">पास</span> <span class="transl_class" id="718" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="719" title="Click to correct">तिपाई</span> <span class="transl_class" id="720" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="721" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="722" title="Click to correct">हीटर</span> <span class="transl_class" id="723" title="Click to correct">रखा</span> <span class="transl_class" id="724" title="Click to correct">था</span>, <span class="transl_class" id="725" title="Click to correct">जिसमें</span> <span class="transl_class" id="726" title="Click to correct">पानी</span> <span class="transl_class" id="727" title="Click to correct">उबल</span> <span class="transl_class" id="728" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="729" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="730" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="731" title="Click to correct">खौलते</span> <span class="transl_class" id="732" title="Click to correct">हुए</span> <span class="transl_class" id="733" title="Click to correct">पानी</span> <span class="transl_class" id="734" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="735" title="Click to correct">डॉक्टर</span> <span class="transl_class" id="736" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="737" title="Click to correct">संड़सी</span> <span class="transl_class" id="738" title="Click to correct">डूबी</span> <span class="transl_class" id="739" title="Click to correct">हुई</span> <span class="transl_class" id="740" title="Click to correct">थी |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="741" title="Click to correct">टी</span> <span class="transl_class" id="742" title="Click to correct">इ</span> <span class="transl_class" id="743" title="Click to correct">इ</span> <span class="transl_class" id="744" title="Click to correct">इ</span> <span class="transl_class" id="745" title="Click to correct">न</span>" <span class="transl_class" id="746" title="Click to correct">ख़ामोशी</span> <span class="transl_class" id="747" title="Click to correct">तोड़ती </span><span class="transl_class" id="748" title="Click to correct">हुई</span> <span class="transl_class" id="749" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="750" title="Click to correct">घंटी</span> <span class="transl_class" id="751" title="Click to correct">बजी</span> | संडसी <span class="transl_class" id="753" title="Click to correct">गरम</span> <span class="transl_class" id="754" title="Click to correct">करने</span> <span class="transl_class" id="755" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="756" title="Click to correct">खानापूरी</span> <span class="transl_class" id="757" title="Click to correct">पूरी</span> <span class="transl_class" id="758" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="759" title="Click to correct">चुकी</span> <span class="transl_class" id="760" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="761" title="Click to correct">डॉक्टर</span> <span class="transl_class" id="762" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="763" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="764" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="765" title="Click to correct">हाथ</span> <span class="transl_class" id="766" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="767" title="Click to correct">मेरे</span> <span class="transl_class" id="768" title="Click to correct">दोनों</span> <span class="transl_class" id="769" title="Click to correct">गाल</span> <span class="transl_class" id="770" title="Click to correct">दबाये</span> | <span class="transl_class" id="771" title="Click to correct">मुंह</span> <span class="transl_class" id="772" title="Click to correct">खुलते</span> <span class="transl_class" id="773" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="774" title="Click to correct">उसने</span> <span class="transl_class" id="775" title="Click to correct">संडसी</span> मुँह <span class="transl_class" id="777" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="778" title="Click to correct">डाली</span> | <span class="transl_class" id="779" title="Click to correct">दर्द</span> <span class="transl_class" id="780" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="781" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="782" title="Click to correct">टीस</span> <span class="transl_class" id="783" title="Click to correct">उठी</span> | <span class="transl_class" id="785" title="Click to correct">उसने</span> संडसी <span class="transl_class" id="787" title="Click to correct">बाहर</span> <span class="transl_class" id="788" title="Click to correct">निकाल</span> <span class="transl_class" id="789" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="790" title="Click to correct">उसमें</span> <span class="transl_class" id="791" title="Click to correct">फंसा</span> दाँत <span class="transl_class" id="793" title="Click to correct">फेंक</span> <span class="transl_class" id="794" title="Click to correct">दिया</span> <span class="transl_class" id="795" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="796" title="Click to correct">दस्ताने</span> <span class="transl_class" id="797" title="Click to correct">उतार</span> <span class="transl_class" id="798" title="Click to correct">दिए |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="799" title="Click to correct">वाश</span> <span class="transl_class" id="800" title="Click to correct">बेसिन</span> <span class="transl_class" id="801" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="802" title="Click to correct">कुल्ला</span> <span class="transl_class" id="803" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="804" title="Click to correct">लो</span> " <span class="transl_class" id="805" title="Click to correct">उसने</span> <span class="transl_class" id="806" title="Click to correct">कहा | </span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="807" title="Click to correct">थोड़ी</span> <span class="transl_class" id="808" title="Click to correct">देर</span> <span class="transl_class" id="809" title="Click to correct">बाद</span> <span class="transl_class" id="810" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="811" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="812" title="Click to correct">मुंह</span> <span class="transl_class" id="813" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="814" title="Click to correct">रुई</span> <span class="transl_class" id="815" title="Click to correct">ठूँसे</span> <span class="transl_class" id="816" title="Click to correct">बाहर</span> <span class="transl_class" id="817" title="Click to correct">आ</span> <span class="transl_class" id="818" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="819" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="820" title="Click to correct">कानों</span> <span class="transl_class" id="821" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="822" title="Click to correct">डॉक्टर</span> <span class="transl_class" id="823" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="824" title="Click to correct">आखिरी</span> <span class="transl_class" id="825" title="Click to correct">बात</span> <span class="transl_class" id="826" title="Click to correct">रह</span> - <span class="transl_class" id="827" title="Click to correct">रह</span> <span class="transl_class" id="828" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="829" title="Click to correct">गूंज</span> <span class="transl_class" id="830" title="Click to correct">रही</span> <span class="transl_class" id="831" title="Click to correct">थी | </span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="832" title="Click to correct">दूसरा</span> <span class="transl_class" id="833" title="Click to correct">दाँत</span> , <span class="transl_class" id="834" title="Click to correct">ठाकुर</span> <span class="transl_class" id="835" title="Click to correct">साहब</span> , <span class="transl_class" id="836" title="Click to correct">अभी</span> <span class="transl_class" id="837" title="Click to correct">छोटा</span> <span class="transl_class" id="838" title="Click to correct">है</span> | <span class="transl_class" id="839" title="Click to correct">ठीक</span> <span class="transl_class" id="840" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="841" title="Click to correct">पकड़</span> <span class="transl_class" id="842" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="843" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="844" title="Click to correct">आएगा</span> | <span class="transl_class" id="845" title="Click to correct">तीन</span> <span class="transl_class" id="846" title="Click to correct">महीने</span> <span class="transl_class" id="847" title="Click to correct">बाद</span> <span class="transl_class" id="848" title="Click to correct">इसे</span> <span class="transl_class" id="849" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="850" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="851" title="Click to correct">ले</span> <span class="transl_class" id="852" title="Click to correct">आइये | </span> <span class="transl_class" id="853" title="Click to correct">तब</span> <span class="transl_class" id="854" title="Click to correct">निकाल</span> <span class="transl_class" id="855" title="Click to correct">देंगे</span> ... "<br />
<span class="transl_class" id="856" title="Click to correct">हे</span> <span class="transl_class" id="857" title="Click to correct">भगवान् !</span> <span class="transl_class" id="858" title="Click to correct">तीन</span> <span class="transl_class" id="859" title="Click to correct">महीने</span> <span class="transl_class" id="860" title="Click to correct">बाद</span> <span class="transl_class" id="861" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="862" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="863" title="Click to correct">बच्चे</span> <span class="transl_class" id="864" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="865" title="Click to correct">सामना</span> <span class="transl_class" id="866" title="Click to correct">करना</span> <span class="transl_class" id="867" title="Click to correct">पड़ेगा</span> .....</div><div><br />
<span class="transl_class" id="868" title="Click to correct">बाहर</span> <span class="transl_class" id="869" title="Click to correct">पेड़ों</span> <span class="transl_class" id="870" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="871" title="Click to correct">ठंडी</span> <span class="transl_class" id="872" title="Click to correct">छाया</span> <span class="transl_class" id="873" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="874" title="Click to correct">केले</span> <span class="transl_class" id="875" title="Click to correct">वालों</span> <span class="transl_class" id="876" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="877" title="Click to correct">ठेला</span> <span class="transl_class" id="878" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="879" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="880" title="Click to correct">बाद</span> <span class="transl_class" id="881" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="882" title="Click to correct">काफी</span> <span class="transl_class" id="883" title="Click to correct">दूर</span> <span class="transl_class" id="884" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="885" title="Click to correct">लगा</span> <span class="transl_class" id="886" title="Click to correct">हुआ</span> <span class="transl_class" id="887" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="888" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="889" title="Click to correct">ठेले</span> <span class="transl_class" id="890" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="891" title="Click to correct">पास</span> <span class="transl_class" id="892" title="Click to correct">स्कूटर</span> <span class="transl_class" id="893" title="Click to correct">खड़ा</span> <span class="transl_class" id="894" title="Click to correct">करके</span> <span class="transl_class" id="895" title="Click to correct">बाबूजी</span> <span class="transl_class" id="896" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="897" title="Click to correct">पूछा</span> ,"<span class="transl_class" id="898" title="Click to correct">केला</span> <span class="transl_class" id="899" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="900" title="Click to correct">भाव</span> <span class="transl_class" id="901" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="902" title="Click to correct">भैया</span> ?"</div><div><br />
<span class="transl_class" id="903" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="904" title="Click to correct">बाबूजी</span> <span class="transl_class" id="905" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="906" title="Click to correct">शिकायत</span> <span class="transl_class" id="907" title="Click to correct">करने</span> <span class="transl_class" id="908" title="Click to correct">लगा</span> ,"<span class="transl_class" id="909" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="910" title="Click to correct">बाबूजी</span> , <span class="transl_class" id="911" title="Click to correct">यहाँ</span> <span class="transl_class" id="912" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="913" title="Click to correct">आयेंगे</span> | <span class="transl_class" id="914" title="Click to correct">सेक्टर</span> <span class="transl_class" id="915" title="Click to correct">१</span> <span class="transl_class" id="916" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="917" title="Click to correct">सेक्टर</span> <span class="transl_class" id="918" title="Click to correct">५</span> <span class="transl_class" id="919" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="920" title="Click to correct">अस्पताल</span> <span class="transl_class" id="921" title="Click to correct">चलेंगे</span> ..."</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="922" title="Click to correct">तीन</span> <span class="transl_class" id="923" title="Click to correct">महीने</span> <span class="transl_class" id="924" title="Click to correct">बाद</span> <span class="transl_class" id="925" title="Click to correct">देख</span> <span class="transl_class" id="926" title="Click to correct">लेंगे</span> <span class="transl_class" id="927" title="Click to correct">बेटा</span> ..." <span class="transl_class" id="928" title="Click to correct">बाबूजी</span> <span class="transl_class" id="929" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="930" title="Click to correct">दिलासा</span> <span class="transl_class" id="931" title="Click to correct">दी</span> ," <span class="transl_class" id="932" title="Click to correct">याद</span> <span class="transl_class" id="933" title="Click to correct">है</span>, <span class="transl_class" id="934" title="Click to correct">डॉक्टर</span> <span class="transl_class" id="935" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="936" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="937" title="Click to correct">कहा</span> ? <span class="transl_class" id="938" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="939" title="Click to correct">सकता</span> <span class="transl_class" id="940" title="Click to correct">है</span>, <span class="transl_class" id="941" title="Click to correct">सामने</span> <span class="transl_class" id="942" title="Click to correct">वाला</span> <span class="transl_class" id="943" title="Click to correct">दाँत</span> <span class="transl_class" id="944" title="Click to correct">अपने</span> <span class="transl_class" id="945" title="Click to correct">आप</span> <span class="transl_class" id="946" title="Click to correct">कमज़ोर</span> <span class="transl_class" id="947" title="Click to correct">पड</span> <span class="transl_class" id="948" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="949" title="Click to correct">टूट</span> <span class="transl_class" id="950" title="Click to correct">जाए</span> <span class="transl_class" id="951" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="952" title="Click to correct">आने</span> <span class="transl_class" id="953" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="954" title="Click to correct">जरुरत</span> <span class="transl_class" id="955" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="956" title="Click to correct">ना</span> <span class="transl_class" id="957" title="Click to correct">पड़े |</span> "</div><div><br />
****************************</div><div><br />
<span class="transl_class" id="958" title="Click to correct">दोपहर</span> <span class="transl_class" id="959" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="960" title="Click to correct">खाना</span> <span class="transl_class" id="961" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="962" title="Click to correct">दस</span> <span class="transl_class" id="963" title="Click to correct">साढ़े</span> <span class="transl_class" id="964" title="Click to correct">दस</span> <span class="transl_class" id="965" title="Click to correct">बजे</span> <span class="transl_class" id="966" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="967" title="Click to correct">बन</span> <span class="transl_class" id="968" title="Click to correct">गया</span> <span class="transl_class" id="969" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="970" title="Click to correct">सिगड़ी</span> <span class="transl_class" id="971" title="Click to correct">करीब</span> <span class="transl_class" id="972" title="Click to correct">करीब</span> <span class="transl_class" id="973" title="Click to correct">बुझ</span> <span class="transl_class" id="974" title="Click to correct">चुकी</span> <span class="transl_class" id="975" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="976" title="Click to correct">अचानक</span> <span class="transl_class" id="977" title="Click to correct">बाबूजी</span> <span class="transl_class" id="978" title="Click to correct">आ</span> <span class="transl_class" id="979" title="Click to correct">गए</span> | <span class="transl_class" id="980" title="Click to correct">आज</span> <span class="transl_class" id="981" title="Click to correct">जल्दी</span> ? <span class="transl_class" id="982" title="Click to correct">क्यों</span> ? <span class="transl_class" id="983" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="984" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="985" title="Click to correct">वे</span> <span class="transl_class" id="986" title="Click to correct">खाना</span> <span class="transl_class" id="987" title="Click to correct">खाने</span> <span class="transl_class" id="988" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="989" title="Click to correct">आये</span> <span class="transl_class" id="990" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="991" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="992" title="Click to correct">को</span> "<span class="transl_class" id="993" title="Click to correct">अच्छा</span> <span class="transl_class" id="994" title="Click to correct">खाना</span> " <span class="transl_class" id="995" title="Click to correct">बनाने</span> <span class="transl_class" id="996" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="997" title="Click to correct">हिदायत</span> <span class="transl_class" id="998" title="Click to correct">देने</span> <span class="transl_class" id="999" title="Click to correct">आये</span> <span class="transl_class" id="1000" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="1001" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="1002" title="Click to correct">मेहमान</span> <span class="transl_class" id="1003" title="Click to correct">आज</span> <span class="transl_class" id="1004" title="Click to correct">दोपहर</span> <span class="transl_class" id="1005" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="1006" title="Click to correct">खाना</span> <span class="transl_class" id="1007" title="Click to correct">खाने</span> <span class="transl_class" id="1008" title="Click to correct">आने</span> <span class="transl_class" id="1009" title="Click to correct">वाले</span> <span class="transl_class" id="1010" title="Click to correct">थे |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="1011" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="1012" title="Click to correct">बनाऊं</span> ?" <span class="transl_class" id="1013" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="1014" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="1015" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="1016" title="Click to correct">सुझाती</span>, <span class="transl_class" id="1017" title="Click to correct">बाबूजी</span> <span class="transl_class" id="1018" title="Click to correct">ख़ारिज</span> <span class="transl_class" id="1019" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="1020" title="Click to correct">देते</span> | <span class="transl_class" id="1021" title="Click to correct">अंत</span> <span class="transl_class" id="1022" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="1023" title="Click to correct">बाबूजी</span> <span class="transl_class" id="1024" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="1025" title="Click to correct">सब</span> <span class="transl_class" id="1026" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="1027" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="1028" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="1029" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="1030" title="Click to correct">छोड़</span> <span class="transl_class" id="1031" title="Click to correct">दिया</span> ," <span class="transl_class" id="1032" title="Click to correct">तुम्हें</span> <span class="transl_class" id="1033" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="1034" title="Click to correct">बनाना</span> <span class="transl_class" id="1035" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="1036" title="Click to correct">बनाओ</span> |" <span class="transl_class" id="1037" title="Click to correct">जाते</span> <span class="transl_class" id="1038" title="Click to correct">जाते</span> <span class="transl_class" id="1039" title="Click to correct">वे</span> <span class="transl_class" id="1040" title="Click to correct">बोले</span> , <span class="transl_class" id="1041" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="1042" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="1043" title="Click to correct">दुम</span> <span class="transl_class" id="1044" title="Click to correct">पीछे</span> <span class="transl_class" id="1045" title="Click to correct">जोड़</span> <span class="transl_class" id="1046" title="Click to correct">दी</span> , "<span class="transl_class" id="1047" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="1048" title="Click to correct">अच्छा</span> <span class="transl_class" id="1049" title="Click to correct">बनाओ</span> |"</div><div><br />
<span class="transl_class" id="1050" title="Click to correct">बाबूजी</span> <span class="transl_class" id="1051" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1052" title="Click to correct">जाने</span> <span class="transl_class" id="1053" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1054" title="Click to correct">बाद</span> <span class="transl_class" id="1055" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="1056" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="1057" title="Click to correct">देर</span> <span class="transl_class" id="1058" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="1059" title="Click to correct">सोचती</span> <span class="transl_class" id="1060" title="Click to correct">रही | आपातकालीन परिस्थितियों में स्टोव की याद आती थी, जो इसी काम के लिए घर में था | </span><span class="transl_class" id="1061" title="Click to correct">माँ ने </span> <span class="transl_class" id="1062" title="Click to correct">हरे</span> <span class="transl_class" id="1063" title="Click to correct">काले</span> <span class="transl_class" id="1064" title="Click to correct">स्टोव</span> <span class="transl_class" id="1065" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1066" title="Click to correct">टंकी</span> <span class="transl_class" id="1067" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="1068" title="Click to correct">माटी</span> <span class="transl_class" id="1069" title="Click to correct">तेल</span> <span class="transl_class" id="1070" title="Click to correct">डाला</span> | <span class="transl_class" id="1071" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="1072" title="Click to correct">जब</span> <span class="transl_class" id="1073" title="Click to correct">माचिस</span> <span class="transl_class" id="1074" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1075" title="Click to correct">डिब्बी</span> <span class="transl_class" id="1076" title="Click to correct">खोली</span> <span class="transl_class" id="1077" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="1078" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="1079" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="1080" title="Click to correct">तीली</span> <span class="transl_class" id="1081" title="Click to correct">बची</span> <span class="transl_class" id="1082" title="Click to correct">थी</span> <span class="transl_class" id="1083" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="1084" title="Click to correct">स्टोव</span> <span class="transl_class" id="1085" title="Click to correct">जलने</span> <span class="transl_class" id="1086" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1087" title="Click to correct">पहले</span> <span class="transl_class" id="1088" title="Click to correct">उसने</span> <span class="transl_class" id="1089" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="1090" title="Click to correct">दम</span> <span class="transl_class" id="1091" title="Click to correct">तोड़</span> <span class="transl_class" id="1092" title="Click to correct">दिया |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="1093" title="Click to correct">झल्ला</span> <span class="transl_class" id="1094" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="1095" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="1096" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="1097" title="Click to correct">माचिस</span> <span class="transl_class" id="1098" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1099" title="Click to correct">डिब्बी</span> <span class="transl_class" id="1100" title="Click to correct">खिड़की</span> <span class="transl_class" id="1101" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1102" title="Click to correct">बाहर</span> <span class="transl_class" id="1103" title="Click to correct">फेंक</span> <span class="transl_class" id="1104" title="Click to correct">दी</span> |<span class="transl_class" id="1105" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="1106" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="1107" title="Click to correct">वक्त</span> <span class="transl_class" id="1108" title="Click to correct">होता</span> <span class="transl_class" id="1109" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="1110" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="1111" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1112" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="1113" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="1114" title="Click to correct">डिब्बी</span> <span class="transl_class" id="1115" title="Click to correct">माँग</span> <span class="transl_class" id="1116" title="Click to correct">लेता</span> <span class="transl_class" id="1117" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="1118" title="Click to correct">अगर</span> <span class="transl_class" id="1119" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="1120" title="Click to correct">फेंकती</span> <span class="transl_class" id="1121" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="1122" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="1123" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="1124" title="Click to correct">लपक</span> <span class="transl_class" id="1125" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="1126" title="Click to correct">उसे</span> <span class="transl_class" id="1127" title="Click to correct">उठाने</span> <span class="transl_class" id="1128" title="Click to correct">चले</span> <span class="transl_class" id="1129" title="Click to correct">जाता</span> | <span class="transl_class" id="1130" title="Click to correct">माचिस</span> <span class="transl_class" id="1131" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1132" title="Click to correct">डिब्बी</span> <span class="transl_class" id="1133" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1134" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="1135" title="Click to correct">आजकल</span> <span class="transl_class" id="1136" title="Click to correct">रेल</span> <span class="transl_class" id="1137" title="Click to correct">बना</span> <span class="transl_class" id="1138" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="1139" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="1140" title="Click to correct">चार</span> <span class="transl_class" id="1141" title="Click to correct">डिब्बे</span> <span class="transl_class" id="1142" title="Click to correct">जुड़</span> <span class="transl_class" id="1143" title="Click to correct">चुके</span> <span class="transl_class" id="1144" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="1145" title="Click to correct">ये</span> <span class="transl_class" id="1146" title="Click to correct">पांचवा</span> <span class="transl_class" id="1147" title="Click to correct">होता</span> | <span class="transl_class" id="1148" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="1149" title="Click to correct">बार</span> <span class="transl_class" id="1150" title="Click to correct">नहीं</span>, <span class="transl_class" id="1151" title="Click to correct">रंधनीखड़</span> (<span class="transl_class" id="1152" title="Click to correct">रसोई</span> <span class="transl_class" id="1153" title="Click to correct">घर</span> ) <span class="transl_class" id="1154" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1155" title="Click to correct">खिड़की</span> <span class="transl_class" id="1156" title="Click to correct">आखिर</span> <span class="transl_class" id="1157" title="Click to correct">अपने</span> <span class="transl_class" id="1158" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="1159" title="Click to correct">के</span> प्रांगण में ही <span class="transl_class" id="1162" title="Click to correct">खुलती</span> <span class="transl_class" id="1163" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="1164" title="Click to correct">कभी</span> <span class="transl_class" id="1165" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="1166" title="Click to correct">जाकर</span> <span class="transl_class" id="1167" title="Click to correct">उठा</span> <span class="transl_class" id="1168" title="Click to correct">लूँगा |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="1169" title="Click to correct">संयोग</span> <span class="transl_class" id="1170" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1171" title="Click to correct">बात</span> <span class="transl_class" id="1172" title="Click to correct">ये</span> <span class="transl_class" id="1173" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="1174" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="1175" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="1176" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="1177" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="1178" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="1179" title="Click to correct">था</span> - <span class="transl_class" id="1180" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="1181" title="Click to correct">जिम्मेदारी</span> <span class="transl_class" id="1182" title="Click to correct">भरा</span> <span class="transl_class" id="1183" title="Click to correct">काम</span> <span class="transl_class" id="1184" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="1185" title="Click to correct">सके |</span> <span class="transl_class" id="1186" title="Click to correct">सुबह</span> <span class="transl_class" id="1187" title="Click to correct">जाने</span> <span class="transl_class" id="1188" title="Click to correct">वाले</span> <span class="transl_class" id="1189" title="Click to correct">लोग</span> <span class="transl_class" id="1190" title="Click to correct">स्कूल</span> <span class="transl_class" id="1191" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="1192" title="Click to correct">थे | </span> <span class="transl_class" id="1193" title="Click to correct">कौशल</span> <span class="transl_class" id="1194" title="Click to correct">भैया</span> <span class="transl_class" id="1195" title="Click to correct">ट्यूशन</span> <span class="transl_class" id="1196" title="Click to correct">गए</span> <span class="transl_class" id="1197" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="1198" title="Click to correct">संजीवनी</span> <span class="transl_class" id="1199" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1200" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="1201" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="1202" title="Click to correct">बड़ा</span> <span class="transl_class" id="1203" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="1204" title="Click to correct">था |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="1205" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="1206" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="1207" title="Click to correct">साडी</span> <span class="transl_class" id="1208" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1209" title="Click to correct">छोर</span> <span class="transl_class" id="1210" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="1211" title="Click to correct">बंधी</span> <span class="transl_class" id="1212" title="Click to correct">गांठ</span> <span class="transl_class" id="1213" title="Click to correct">खोली</span> <span class="transl_class" id="1214" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="1215" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="1216" title="Click to correct">दस</span> <span class="transl_class" id="1217" title="Click to correct">पैसे</span> <span class="transl_class" id="1218" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="1219" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="1220" title="Click to correct">सिक्का</span> <span class="transl_class" id="1221" title="Click to correct">दिया</span> ," <span class="transl_class" id="1222" title="Click to correct">जा</span> <span class="transl_class" id="1223" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="1224" title="Click to correct">बेटा</span> , <span class="transl_class" id="1225" title="Click to correct">चंद्राकर</span> <span class="transl_class" id="1226" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1227" title="Click to correct">दुकान</span> <span class="transl_class" id="1228" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1229" title="Click to correct">माचिस</span> <span class="transl_class" id="1230" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1231" title="Click to correct">डब्बी</span> <span class="transl_class" id="1232" title="Click to correct">ले</span> <span class="transl_class" id="1233" title="Click to correct">आ</span> |"</div><div><br />
<span class="transl_class" id="1234" title="Click to correct">तालाब</span> <span class="transl_class" id="1235" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1236" title="Click to correct">किनारे</span> <span class="transl_class" id="1237" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1238" title="Click to correct">होते</span> <span class="transl_class" id="1239" title="Click to correct">हुए</span> <span class="transl_class" id="1240" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="1241" title="Click to correct">सेक्टर</span> <span class="transl_class" id="1242" title="Click to correct">२</span> <span class="transl_class" id="1243" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1244" title="Click to correct">बाज़ार</span> <span class="transl_class" id="1245" title="Click to correct">जा</span> <span class="transl_class" id="1246" title="Click to correct">पहुंचा</span> | <span class="transl_class" id="1247" title="Click to correct">लेकिन</span> <span class="transl_class" id="1248" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="1249" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1250" title="Click to correct">हिदायत</span> <span class="transl_class" id="1251" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="1252" title="Click to correct">मानना</span> <span class="transl_class" id="1253" title="Click to correct">निहायत</span> <span class="transl_class" id="1254" title="Click to correct">मुश्किल</span> <span class="transl_class" id="1255" title="Click to correct">काम</span> <span class="transl_class" id="1256" title="Click to correct">था</span> |<span class="transl_class" id="1257" title="Click to correct">चंद्राकर</span> <span class="transl_class" id="1258" title="Click to correct">किराना</span> <span class="transl_class" id="1259" title="Click to correct">स्टोर</span> <span class="transl_class" id="1260" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="1261" title="Click to correct">मार्केट</span> <span class="transl_class" id="1262" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1263" title="Click to correct">दूसरे</span> <span class="transl_class" id="1264" title="Click to correct">छोर</span> <span class="transl_class" id="1265" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="1266" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="1267" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="1268" title="Click to correct">मेरी</span> <span class="transl_class" id="1269" title="Click to correct">हिचकिचाहट</span> <span class="transl_class" id="1270" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="1271" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="1272" title="Click to correct">दूसरा</span> <span class="transl_class" id="1273" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="1274" title="Click to correct">कारण</span> <span class="transl_class" id="1275" title="Click to correct">था |</span> <span class="transl_class" id="1276" title="Click to correct">चंद्राकर</span> <span class="transl_class" id="1277" title="Click to correct">किराना</span> <span class="transl_class" id="1278" title="Click to correct">स्टोर</span> <span class="transl_class" id="1279" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1280" title="Click to correct">मालिक</span> <span class="transl_class" id="1281" title="Click to correct">बाबूजी</span> <span class="transl_class" id="1282" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1283" title="Click to correct">दोस्त</span> <span class="transl_class" id="1284" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="1285" title="Click to correct">अक्सर</span> <span class="transl_class" id="1286" title="Click to correct">बाबूजी</span> <span class="transl_class" id="1287" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1288" title="Click to correct">साथ</span> <span class="transl_class" id="1289" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="1290" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="1291" title="Click to correct">उनकी</span> <span class="transl_class" id="1292" title="Click to correct">दूकान</span> <span class="transl_class" id="1293" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="1294" title="Click to correct">जाता</span> <span class="transl_class" id="1295" title="Click to correct">था |</span> <span class="transl_class" id="1296" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="1297" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="1298" title="Click to correct">वे</span> <span class="transl_class" id="1299" title="Click to correct">जरुर</span> <span class="transl_class" id="1300" title="Click to correct">पहचान</span> <span class="transl_class" id="1301" title="Click to correct">लेंगे</span> |<span class="transl_class" id="1302" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="1303" title="Click to correct">पहचानने</span> <span class="transl_class" id="1304" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1305" title="Click to correct">बाद</span> <span class="transl_class" id="1306" title="Click to correct">मुस्कुरा</span> <span class="transl_class" id="1307" title="Click to correct">दिए</span> <span class="transl_class" id="1308" title="Click to correct">तो</span> ? <span class="transl_class" id="1309" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="1310" title="Click to correct">कहीं</span> <span class="transl_class" id="1311" title="Click to correct">पूछ</span> <span class="transl_class" id="1312" title="Click to correct">लिया</span> <span class="transl_class" id="1313" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="1314" title="Click to correct">तुम्हारे</span> <span class="transl_class" id="1315" title="Click to correct">बाबूजी</span> <span class="transl_class" id="1316" title="Click to correct">कहाँ</span> <span class="transl_class" id="1317" title="Click to correct">हैं</span> , <span class="transl_class" id="1318" title="Click to correct">तो</span> ? <span class="transl_class" id="1319" title="Click to correct">हे</span> <span class="transl_class" id="1320" title="Click to correct">भगवान्</span>, <span class="transl_class" id="1321" title="Click to correct">इसका</span> <span class="transl_class" id="1322" title="Click to correct">मतलब</span> <span class="transl_class" id="1323" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="1324" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="1325" title="Click to correct">पहले</span> <span class="transl_class" id="1326" title="Click to correct">उन्हें</span> <span class="transl_class" id="1327" title="Click to correct">नमस्ते</span> <span class="transl_class" id="1328" title="Click to correct">करना</span> <span class="transl_class" id="1329" title="Click to correct">पड़ेगा</span> | <span class="transl_class" id="1330" title="Click to correct">बाप</span> <span class="transl_class" id="1331" title="Click to correct">रे</span> <span class="transl_class" id="1332" title="Click to correct">बाप</span> ! <span class="transl_class" id="1333" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="1334" title="Click to correct">अगर</span> <span class="transl_class" id="1335" title="Click to correct">कहीं</span> <span class="transl_class" id="1336" title="Click to correct">उन्होंने</span> <span class="transl_class" id="1337" title="Click to correct">चॉकलेट</span> <span class="transl_class" id="1338" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="1339" title="Click to correct">पिपरमेंट</span> <span class="transl_class" id="1340" title="Click to correct">पकड़ा</span> <span class="transl_class" id="1341" title="Click to correct">दिया</span> <span class="transl_class" id="1342" title="Click to correct">तो</span> ? <span class="transl_class" id="1343" title="Click to correct">नहीं</span> , <span class="transl_class" id="1344" title="Click to correct">नहीं</span>- <span class="transl_class" id="1345" title="Click to correct">मैने</span> <span class="transl_class" id="1346" title="Click to correct">निश्चय</span> <span class="transl_class" id="1347" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="1348" title="Click to correct">लिया</span> | <span class="transl_class" id="1349" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="1350" title="Click to correct">ये</span> <span class="transl_class" id="1351" title="Click to correct">सब</span> <span class="transl_class" id="1352" title="Click to correct">झंझट</span> <span class="transl_class" id="1353" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="1354" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="1355" title="Click to correct">पड़ना</span> <span class="transl_class" id="1356" title="Click to correct">है |</span></div><div><span class="transl_class" title="Click to correct"><br /></span></div><div> <span class="transl_class" id="1357" title="Click to correct">सरदार</span> <span class="transl_class" id="1358" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1359" title="Click to correct">दुकान</span> - <span class="transl_class" id="1360" title="Click to correct">बस</span>, <span class="transl_class" id="1361" title="Click to correct">तालाब</span> <span class="transl_class" id="1362" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1363" title="Click to correct">छोर</span> <span class="transl_class" id="1364" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="1365" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="1366" title="Click to correct">है |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="1367" title="Click to correct">कितने</span> <span class="transl_class" id="1368" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1369" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="1370" title="Click to correct">ये</span> <span class="transl_class" id="1371" title="Click to correct">माचिस</span> ?" <span class="transl_class" id="1372" title="Click to correct">चाबी</span> <span class="transl_class" id="1373" title="Click to correct">छाप</span> <span class="transl_class" id="1374" title="Click to correct">माचिस</span> <span class="transl_class" id="1375" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="1376" title="Click to correct">हाथ</span> <span class="transl_class" id="1377" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="1378" title="Click to correct">पकड़</span> <span class="transl_class" id="1379" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="1380" title="Click to correct">गौर</span> <span class="transl_class" id="1381" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1382" title="Click to correct">देखते</span> <span class="transl_class" id="1383" title="Click to correct">हुए</span> <span class="transl_class" id="1384" title="Click to correct">पूछा |</span></div><div> <br />
"<span class="transl_class" id="1385" title="Click to correct">पांच</span> <span class="transl_class" id="1386" title="Click to correct">पैसे</span> <span class="transl_class" id="1387" title="Click to correct">की</span> " <span class="transl_class" id="1388" title="Click to correct">सरदार</span> <span class="transl_class" id="1389" title="Click to correct">जी</span> <span class="transl_class" id="1390" title="Click to correct">कहा |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="1391" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="1392" title="Click to correct">घोडा</span> <span class="transl_class" id="1393" title="Click to correct">छाप</span> <span class="transl_class" id="1394" title="Click to correct">माचिस</span> ?"</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="1395" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="1396" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="1397" title="Click to correct">पांच</span> <span class="transl_class" id="1398" title="Click to correct">पैसे</span> <span class="transl_class" id="1399" title="Click to correct">की</span> |"</div><div><br />
<span class="transl_class" id="1400" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="1401" title="Click to correct">सर</span> <span class="transl_class" id="1402" title="Click to correct">हिलाया</span> <span class="transl_class" id="1403" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="1404" title="Click to correct">थोड़ा </span><span class="transl_class" id="1405" title="Click to correct">सोचते</span> <span class="transl_class" id="1406" title="Click to correct">हुए</span> <span class="transl_class" id="1407" title="Click to correct">पूछा</span> ,"<span class="transl_class" id="1408" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="1409" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="1410" title="Click to correct">माचिस</span> <span class="transl_class" id="1411" title="Click to correct">है</span> ?"</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="1412" title="Click to correct">नहीं</span> " <span class="transl_class" id="1413" title="Click to correct">सरदार</span> <span class="transl_class" id="1414" title="Click to correct">जी</span> <span class="transl_class" id="1415" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="1416" title="Click to correct">कहा |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="1417" title="Click to correct">ठीक</span> <span class="transl_class" id="1418" title="Click to correct">है</span> |" <span class="transl_class" id="1419" title="Click to correct">छत</span> <span class="transl_class" id="1420" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1421" title="Click to correct">लटके</span> <span class="transl_class" id="1422" title="Click to correct">सामान</span> <span class="transl_class" id="1423" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1424" title="Click to correct">ध्हगे</span> <span class="transl_class" id="1425" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1426" title="Click to correct">लट्ठे</span> <span class="transl_class" id="1427" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="1428" title="Click to correct">देखते</span> <span class="transl_class" id="1429" title="Click to correct">हुए</span> <span class="transl_class" id="1430" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="1431" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="1432" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="1433" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="1434" title="Click to correct">सयाने</span> <span class="transl_class" id="1435" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1436" title="Click to correct">तरह</span> <span class="transl_class" id="1437" title="Click to correct">सोचने</span> <span class="transl_class" id="1438" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1439" title="Click to correct">मुद्रा</span> <span class="transl_class" id="1440" title="Click to correct">बनाई</span> <span class="transl_class" id="1441" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="1442" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="1443" title="Click to correct">निष्कर्ष</span> <span class="transl_class" id="1444" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="1445" title="Click to correct">पहुंचा</span> ,"<span class="transl_class" id="1446" title="Click to correct">ठीक</span> <span class="transl_class" id="1447" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="1448" title="Click to correct">चाबी</span> <span class="transl_class" id="1449" title="Click to correct">छाप</span> <span class="transl_class" id="1450" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="1451" title="Click to correct">दे</span> <span class="transl_class" id="1452" title="Click to correct">दो</span> |"</div><div><br />
<span class="transl_class" id="1453" title="Click to correct">सामान</span> <span class="transl_class" id="1454" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1455" title="Click to correct">धागे</span> <span class="transl_class" id="1456" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1457" title="Click to correct">लट्ठे</span> <span class="transl_class" id="1458" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="1459" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="1460" title="Click to correct">देखो</span> ! <span class="transl_class" id="1461" title="Click to correct">कितने</span> <span class="transl_class" id="1462" title="Click to correct">करीने</span> <span class="transl_class" id="1463" title="Click to correct">से</span>, <span class="transl_class" id="1464" title="Click to correct">डिजाईन</span> <span class="transl_class" id="1465" title="Click to correct">बनाते</span> <span class="transl_class" id="1466" title="Click to correct">हुए</span> <span class="transl_class" id="1467" title="Click to correct">लटका</span> <span class="transl_class" id="1468" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="1469" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="1470" title="Click to correct">उम्मीद</span> <span class="transl_class" id="1471" title="Click to correct">थी</span> <span class="transl_class" id="1472" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="1473" title="Click to correct">सरदार</span> <span class="transl_class" id="1474" title="Click to correct">जी</span> <span class="transl_class" id="1475" title="Click to correct">माचिस</span> <span class="transl_class" id="1476" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="1477" title="Click to correct">कागज़</span> <span class="transl_class" id="1478" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1479" title="Click to correct">पुडिया</span> <span class="transl_class" id="1480" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="1481" title="Click to correct">बाँध</span> <span class="transl_class" id="1482" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="1483" title="Click to correct">देंगे</span> <span class="transl_class" id="1484" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="1485" title="Click to correct">इस</span> <span class="transl_class" id="1486" title="Click to correct">तरह</span> <span class="transl_class" id="1487" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="1488" title="Click to correct">सामान</span> <span class="transl_class" id="1489" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="1490" title="Click to correct">धागा</span> <span class="transl_class" id="1491" title="Click to correct">मिल</span> <span class="transl_class" id="1492" title="Click to correct">जायेगा</span> | <span class="transl_class" id="1493" title="Click to correct">थोड़ी</span> <span class="transl_class" id="1494" title="Click to correct">निराशा</span> <span class="transl_class" id="1495" title="Click to correct">जरूर</span> <span class="transl_class" id="1496" title="Click to correct">हुई</span> <span class="transl_class" id="1497" title="Click to correct">जब</span> <span class="transl_class" id="1498" title="Click to correct">सरदार</span> <span class="transl_class" id="1499" title="Click to correct">जी</span> <span class="transl_class" id="1500" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="1501" title="Click to correct">माचिस</span> <span class="transl_class" id="1502" title="Click to correct">वैसे</span> <span class="transl_class" id="1503" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="1504" title="Click to correct">पकड़ा</span> <span class="transl_class" id="1505" title="Click to correct">दी</span> | <span class="transl_class" id="1506" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="1507" title="Click to correct">बार</span> <span class="transl_class" id="1508" title="Click to correct">मन</span> <span class="transl_class" id="1509" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="1510" title="Click to correct">आया</span> <span class="transl_class" id="1511" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="1512" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="1513" title="Click to correct">सरदार</span> <span class="transl_class" id="1514" title="Click to correct">जी</span> <span class="transl_class" id="1515" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1516" title="Click to correct">कहूँ</span> , <span class="transl_class" id="1517" title="Click to correct">इसे</span> <span class="transl_class" id="1518" title="Click to correct">पुडिया</span> <span class="transl_class" id="1519" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="1520" title="Click to correct">बाँध</span> <span class="transl_class" id="1521" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="1522" title="Click to correct">दे</span> <span class="transl_class" id="1523" title="Click to correct">दो</span> | <span class="transl_class" id="1524" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="1525" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="1526" title="Click to correct">अपने</span> <span class="transl_class" id="1527" title="Click to correct">अनाड़ीपन</span> <span class="transl_class" id="1528" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="1529" title="Click to correct">परिचय</span> <span class="transl_class" id="1530" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="1531" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="1532" title="Click to correct">देना</span> <span class="transl_class" id="1533" title="Click to correct">चाहता</span> <span class="transl_class" id="1534" title="Click to correct">था |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="1535" title="Click to correct">माचिस</span> <span class="transl_class" id="1536" title="Click to correct">लेकर</span> <span class="transl_class" id="1537" title="Click to correct">जैसे</span> <span class="transl_class" id="1538" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="1539" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="1540" title="Click to correct">सीढ़ी</span> <span class="transl_class" id="1541" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1542" title="Click to correct">नीचे</span> <span class="transl_class" id="1543" title="Click to correct">उतरा</span> , <span class="transl_class" id="1544" title="Click to correct">मेरी</span> <span class="transl_class" id="1545" title="Click to correct">ख़ुशी</span> <span class="transl_class" id="1546" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="1547" title="Click to correct">ठिकाना</span> <span class="transl_class" id="1548" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="1549" title="Click to correct">रहा |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="1550" title="Click to correct">सड़क</span> <span class="transl_class" id="1551" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="1552" title="Click to correct">गोल्ड</span> <span class="transl_class" id="1553" title="Click to correct">स्पॉट</span> <span class="transl_class" id="1554" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="1555" title="Click to correct">नया</span> , <span class="transl_class" id="1556" title="Click to correct">चमचमाता</span> <span class="transl_class" id="1557" title="Click to correct">ढक्कन</span> <span class="transl_class" id="1558" title="Click to correct">पड़ा</span> <span class="transl_class" id="1559" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="1560" title="Click to correct">शायद</span> <span class="transl_class" id="1561" title="Click to correct">किसी</span> <span class="transl_class" id="1562" title="Click to correct">धावक</span> <span class="transl_class" id="1563" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="1564" title="Click to correct">ओलंपिक</span> <span class="transl_class" id="1565" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="1566" title="Click to correct">स्वर्ण</span> <span class="transl_class" id="1567" title="Click to correct">पदक</span> <span class="transl_class" id="1568" title="Click to correct">मिलने</span> <span class="transl_class" id="1569" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="1570" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="1571" title="Click to correct">उतनी</span> <span class="transl_class" id="1572" title="Click to correct">ख़ुशी</span> <span class="transl_class" id="1573" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="1574" title="Click to correct">होती</span> <span class="transl_class" id="1575" title="Click to correct">होगी</span> ....</div><div><br />
<span class="transl_class" id="1576" title="Click to correct">गोल्ड</span> <span class="transl_class" id="1577" title="Click to correct">स्पॉट</span> <span class="transl_class" id="1578" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1579" title="Click to correct">टीने</span> <span class="transl_class" id="1580" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1581" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="1582" title="Click to correct">ढक्कन</span> <span class="transl_class" id="1583" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1584" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="1585" title="Click to correct">होगा</span> ?</div><div><br /></div><div><span class="transl_class" id="1586" title="Click to correct">बहुत</span> <span class="transl_class" id="1587" title="Click to correct">कुछ</span> ... <span class="transl_class" id="1588" title="Click to correct">बहुत</span> <span class="transl_class" id="1589" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="1590" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="1591" title="Click to correct">सकता</span> <span class="transl_class" id="1592" title="Click to correct">था |</span></div><div><br />
<br />
*************<br />
<br />
<span class="transl_class" id="1593" title="Click to correct">उन</span> <span class="transl_class" id="1594" title="Click to correct">दिनों</span> <span class="transl_class" id="1595" title="Click to correct">माचिस</span> <span class="transl_class" id="1596" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1597" title="Click to correct">डिब्बी</span> <span class="transl_class" id="1598" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="1599" title="Click to correct">कागज</span> <span class="transl_class" id="1600" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1601" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="1602" title="Click to correct">छोटी</span> <span class="transl_class" id="1603" title="Click to correct">पन्नी</span> <span class="transl_class" id="1604" title="Click to correct">चिपका</span> <span class="transl_class" id="1605" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="1606" title="Click to correct">सीलबंद</span> <span class="transl_class" id="1607" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="1608" title="Click to correct">किया</span> <span class="transl_class" id="1609" title="Click to correct">जाता</span> <span class="transl_class" id="1610" title="Click to correct">जाता</span> <span class="transl_class" id="1611" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="1612" title="Click to correct">बाद</span> <span class="transl_class" id="1613" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1614" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="1615" title="Click to correct">वर्षों</span> <span class="transl_class" id="1616" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="1617" title="Click to correct">माचिस</span> <span class="transl_class" id="1618" title="Click to correct">बनाने</span> <span class="transl_class" id="1619" title="Click to correct">वाली</span> <span class="transl_class" id="1620" title="Click to correct">कंपनी</span> <span class="transl_class" id="1621" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="1622" title="Click to correct">अहसास</span> <span class="transl_class" id="1623" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="1624" title="Click to correct">गया</span> <span class="transl_class" id="1625" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="1626" title="Click to correct">फैक्ट्री</span> <span class="transl_class" id="1627" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1628" title="Click to correct">बाहर</span> <span class="transl_class" id="1629" title="Click to correct">निकलने</span> <span class="transl_class" id="1630" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="1631" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="1632" title="Click to correct">उपभोक्ता</span> (<span class="transl_class" id="1633" title="Click to correct">जैसे</span> <span class="transl_class" id="1634" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="1635" title="Click to correct">माँ</span> ) <span class="transl_class" id="1636" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="1637" title="Click to correct">पहुँचने</span> <span class="transl_class" id="1638" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1639" title="Click to correct">प्रक्रिया</span> <span class="transl_class" id="1640" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="1641" title="Click to correct">माचिस</span> <span class="transl_class" id="1642" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="1643" title="Click to correct">कई</span> <span class="transl_class" id="1644" title="Click to correct">हाथों</span> (<span class="transl_class" id="1645" title="Click to correct">जैसे</span> <span class="transl_class" id="1646" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="1647" title="Click to correct">मेरे</span>) <span class="transl_class" id="1648" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1649" title="Click to correct">गुजरना</span> <span class="transl_class" id="1650" title="Click to correct">पड़ता</span> <span class="transl_class" id="1651" title="Click to correct">है</span> | <span class="transl_class" id="1652" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="1653" title="Click to correct">जितनी</span> <span class="transl_class" id="1654" title="Click to correct">तीलियाँ</span> <span class="transl_class" id="1655" title="Click to correct">माचिस</span> <span class="transl_class" id="1656" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="1657" title="Click to correct">भरकर</span> <span class="transl_class" id="1658" title="Click to correct">फैक्ट्री</span> <span class="transl_class" id="1659" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1660" title="Click to correct">निकलती</span> <span class="transl_class" id="1661" title="Click to correct">हैं</span>, <span class="transl_class" id="1662" title="Click to correct">उतनी</span> <span class="transl_class" id="1663" title="Click to correct">उपभोक्ता</span> <span class="transl_class" id="1664" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="1665" title="Click to correct">पहुंचती</span> <span class="transl_class" id="1666" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="1667" title="Click to correct">हैं</span> | <span class="transl_class" id="1668" title="Click to correct">अतः</span> <span class="transl_class" id="1669" title="Click to correct">उन्होंने</span> <span class="transl_class" id="1670" title="Click to correct">कागज</span> <span class="transl_class" id="1671" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1672" title="Click to correct">छोटे</span> <span class="transl_class" id="1673" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1674" title="Click to correct">टुकड़े</span> <span class="transl_class" id="1675" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1676" title="Click to correct">अन्दर</span> <span class="transl_class" id="1677" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1678" title="Click to correct">डिब्बी</span> <span class="transl_class" id="1679" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="1680" title="Click to correct">बाहर</span> <span class="transl_class" id="1681" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1682" title="Click to correct">कवर</span> <span class="transl_class" id="1683" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1684" title="Click to correct">चिपकाना</span> <span class="transl_class" id="1685" title="Click to correct">शुरू</span> <span class="transl_class" id="1686" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="1687" title="Click to correct">दिया |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="1688" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="1689" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="1690" title="Click to correct">मालूम</span>, <span class="transl_class" id="1691" title="Click to correct">मेरे</span> <span class="transl_class" id="1692" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="1693" title="Click to correct">दिन</span> <span class="transl_class" id="1694" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1695" title="Click to correct">परीक्षण</span> <span class="transl_class" id="1696" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="1697" title="Click to correct">उनके</span> <span class="transl_class" id="1698" title="Click to correct">इस</span> <span class="transl_class" id="1699" title="Click to correct">निर्णय</span> <span class="transl_class" id="1700" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="1701" title="Click to correct">कितना</span> <span class="transl_class" id="1702" title="Click to correct">प्रभावित</span> <span class="transl_class" id="1703" title="Click to correct">किया</span> <span class="transl_class" id="1704" title="Click to correct">था |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="1705" title="Click to correct">तालाब</span> <span class="transl_class" id="1706" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1707" title="Click to correct">किनारे</span> <span class="transl_class" id="1708" title="Click to correct">पहुँच</span> <span class="transl_class" id="1709" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="1710" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="1711" title="Click to correct">सावधानी</span> <span class="transl_class" id="1712" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1713" title="Click to correct">इधर</span> <span class="transl_class" id="1714" title="Click to correct">उधर</span> <span class="transl_class" id="1715" title="Click to correct">देखा</span> | <span class="transl_class" id="1716" title="Click to correct">सत्यवती</span> <span class="transl_class" id="1717" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1718" title="Click to correct">पिताजी</span> <span class="transl_class" id="1719" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="1720" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="1721" title="Click to correct">निकले</span> <span class="transl_class" id="1722" title="Click to correct">जिन्हें</span> <span class="transl_class" id="1723" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="1724" title="Click to correct">पहचान</span> <span class="transl_class" id="1725" title="Click to correct">पाया</span> | <span class="transl_class" id="1726" title="Click to correct">पता</span> <span class="transl_class" id="1727" title="Click to correct">नहीं</span> , <span class="transl_class" id="1728" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="1729" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="1730" title="Click to correct">कितना</span> <span class="transl_class" id="1731" title="Click to correct">जानते</span> <span class="transl_class" id="1732" title="Click to correct">थे</span> , <span class="transl_class" id="1733" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="1734" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="1735" title="Click to correct">थोडा</span> <span class="transl_class" id="1736" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="1737" title="Click to correct">जोखिम</span> <span class="transl_class" id="1738" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="1739" title="Click to correct">लेना</span> <span class="transl_class" id="1740" title="Click to correct">चाहता</span> <span class="transl_class" id="1741" title="Click to correct">था |</span> <span class="transl_class" id="1742" title="Click to correct">जिस</span> <span class="transl_class" id="1743" title="Click to correct">पत्थर</span> <span class="transl_class" id="1744" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="1745" title="Click to correct">वे</span> <span class="transl_class" id="1746" title="Click to correct">ग्राहकों</span> <span class="transl_class" id="1747" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1748" title="Click to correct">कपड़ों</span> <span class="transl_class" id="1749" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1750" title="Click to correct">गट्ठर</span> <span class="transl_class" id="1751" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1752" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="1753" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="1754" title="Click to correct">कपड़ा</span> <span class="transl_class" id="1755" title="Click to correct">निकाल</span> <span class="transl_class" id="1756" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="1757" title="Click to correct">पछाड़</span> <span class="transl_class" id="1758" title="Click to correct">रहे</span> <span class="transl_class" id="1759" title="Click to correct">थे</span> , <span class="transl_class" id="1760" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="1761" title="Click to correct">पत्थर</span> <span class="transl_class" id="1762" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1763" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="1764" title="Click to correct">दूर</span> <span class="transl_class" id="1765" title="Click to correct">चले</span> <span class="transl_class" id="1766" title="Click to correct">गया</span> | <span class="transl_class" id="1767" title="Click to correct">इक्का</span> <span class="transl_class" id="1768" title="Click to correct">दुक्का</span> <span class="transl_class" id="1769" title="Click to correct">लोग</span> <span class="transl_class" id="1770" title="Click to correct">नहा</span> <span class="transl_class" id="1771" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="1772" title="Click to correct">रहे</span> <span class="transl_class" id="1773" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="1774" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="1775" title="Click to correct">भैंस</span> <span class="transl_class" id="1776" title="Click to correct">वाला</span> <span class="transl_class" id="1777" title="Click to correct">अपनी</span> <span class="transl_class" id="1778" title="Click to correct">भैंस</span> <span class="transl_class" id="1779" title="Click to correct">नहला</span> <span class="transl_class" id="1780" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="1781" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="1782" title="Click to correct">बस</span>, <span class="transl_class" id="1783" title="Click to correct">इतनी</span> <span class="transl_class" id="1784" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="1785" title="Click to correct">गतिविधियाँ</span> <span class="transl_class" id="1786" title="Click to correct">थी</span> <span class="transl_class" id="1787" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="1788" title="Click to correct">तालाब</span> <span class="transl_class" id="1789" title="Click to correct">में</span> | <span class="transl_class" id="1790" title="Click to correct">आखिर</span> <span class="transl_class" id="1791" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="1792" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="1793" title="Click to correct">गाँव</span> <span class="transl_class" id="1794" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="1795" title="Click to correct">तालाब</span> <span class="transl_class" id="1796" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="1797" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="1798" title="Click to correct">नहीं |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="1799" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="1800" title="Click to correct">सूने</span> <span class="transl_class" id="1801" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1802" title="Click to correct">कोने</span> <span class="transl_class" id="1803" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="1804" title="Click to correct">पहुँच</span> <span class="transl_class" id="1805" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="1806" title="Click to correct">मैने</span> <span class="transl_class" id="1807" title="Click to correct">कांपते</span> <span class="transl_class" id="1808" title="Click to correct">हाथों</span> <span class="transl_class" id="1809" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1810" title="Click to correct">माचिस</span> <span class="transl_class" id="1811" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1812" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="1813" title="Click to correct">तीली</span> <span class="transl_class" id="1814" title="Click to correct">निकाली</span> | <span class="transl_class" id="1815" title="Click to correct">ऊपर</span> <span class="transl_class" id="1816" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1817" title="Click to correct">खोके</span> <span class="transl_class" id="1818" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1819" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="1820" title="Click to correct">साइड</span> <span class="transl_class" id="1821" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1822" title="Click to correct">काली</span> <span class="transl_class" id="1823" title="Click to correct">पट्टी</span> <span class="transl_class" id="1824" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="1825" title="Click to correct">उसे</span> <span class="transl_class" id="1826" title="Click to correct">धीरे</span> <span class="transl_class" id="1827" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1828" title="Click to correct">पहले</span> <span class="transl_class" id="1830" title="Click to correct">रगड़ा | फिर</span> <span class="transl_class" id="1831" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="1832" title="Click to correct">क्षण</span> <span class="transl_class" id="1833" title="Click to correct">ध्यान</span> <span class="transl_class" id="1834" title="Click to correct">किया</span> <span class="transl_class" id="1835" title="Click to correct">क़ि</span> <span class="transl_class" id="1836" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="1837" title="Click to correct">कैसे</span> <span class="transl_class" id="1838" title="Click to correct">माचिस</span> <span class="transl_class" id="1839" title="Click to correct">जलाती</span> <span class="transl_class" id="1840" title="Click to correct">है</span> | <span class="transl_class" id="1841" title="Click to correct">दिल</span> <span class="transl_class" id="1842" title="Click to correct">कड़ा</span> <span class="transl_class" id="1843" title="Click to correct">करके</span> <span class="transl_class" id="1844" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="1845" title="Click to correct">झटके</span> <span class="transl_class" id="1846" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1847" title="Click to correct">तीली</span> <span class="transl_class" id="1848" title="Click to correct">पट्टी</span> <span class="transl_class" id="1849" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="1850" title="Click to correct">तेजी</span> <span class="transl_class" id="1851" title="Click to correct">से</span> रगड़ा |</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="1853" title="Click to correct">भर्र</span> <span class="transl_class" id="1854" title="Click to correct">र</span> <span class="transl_class" id="1855" title="Click to correct">र</span> " <span class="transl_class" id="1856" title="Click to correct">हलकी</span> <span class="transl_class" id="1857" title="Click to correct">सी</span> <span class="transl_class" id="1858" title="Click to correct">आवाज</span> <span class="transl_class" id="1859" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1860" title="Click to correct">साथ</span> <span class="transl_class" id="1861" title="Click to correct">माचिस</span> <span class="transl_class" id="1862" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="1863" title="Click to correct">तीली</span> <span class="transl_class" id="1864" title="Click to correct">जल</span> <span class="transl_class" id="1865" title="Click to correct">उठी |</span> <span class="transl_class" id="1866" title="Click to correct">तीली</span> <span class="transl_class" id="1867" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="1868" title="Click to correct">आग</span> <span class="transl_class" id="1869" title="Click to correct">धीरे</span> <span class="transl_class" id="1870" title="Click to correct">धीरे</span> <span class="transl_class" id="1871" title="Click to correct">करके</span> <span class="transl_class" id="1872" title="Click to correct">तीली</span> <span class="transl_class" id="1873" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1874" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="1875" title="Click to correct">छोर</span> <span class="transl_class" id="1876" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="1877" title="Click to correct">पहुंची</span> <span class="transl_class" id="1878" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="1879" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="1880" title="Click to correct">अंगूठे</span> <span class="transl_class" id="1881" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="1882" title="Click to correct">उंगली</span> <span class="transl_class" id="1883" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1884" title="Click to correct">पकड़ा</span> <span class="transl_class" id="1885" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="1886" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="1887" title="Click to correct">झटके</span> <span class="transl_class" id="1888" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1889" title="Click to correct">तीली</span> <span class="transl_class" id="1890" title="Click to correct">छोड़</span> <span class="transl_class" id="1891" title="Click to correct">दी</span> | <span class="transl_class" id="1892" title="Click to correct">गीली</span> <span class="transl_class" id="1893" title="Click to correct">घास</span> <span class="transl_class" id="1894" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="1895" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="1896" title="Click to correct">थोड़ा </span> <span class="transl_class" id="1897" title="Click to correct">धुआं</span> <span class="transl_class" id="1898" title="Click to correct">उड़ाकर</span> <span class="transl_class" id="1899" title="Click to correct">बुझ</span> <span class="transl_class" id="1900" title="Click to correct">गयी |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="1901" title="Click to correct">कितनी</span> <span class="transl_class" id="1902" title="Click to correct">बड़ी</span> <span class="transl_class" id="1903" title="Click to correct">उपलब्धि</span> <span class="transl_class" id="1904" title="Click to correct">थी</span> <span class="transl_class" id="1905" title="Click to correct">ये</span>,, <span class="transl_class" id="1906" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="1907" title="Click to correct">बता</span> <span class="transl_class" id="1908" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="1909" title="Click to correct">सकता</span> | <span class="transl_class" id="1910" title="Click to correct">अब</span> <span class="transl_class" id="1911" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="1912" title="Click to correct">केवल</span> <span class="transl_class" id="1913" title="Click to correct">बबन</span> <span class="transl_class" id="1914" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="1915" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="1916" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="1917" title="Click to correct">उन</span> <span class="transl_class" id="1918" title="Click to correct">बच्चों</span> <span class="transl_class" id="1919" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="1920" title="Click to correct">सूची</span> <span class="transl_class" id="1921" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="1922" title="Click to correct">थे</span> <span class="transl_class" id="1923" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="1924" title="Click to correct">आग</span> <span class="transl_class" id="1925" title="Click to correct">जला</span> <span class="transl_class" id="1926" title="Click to correct">सकते</span> <span class="transl_class" id="1927" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="1928" title="Click to correct">इस</span> <span class="transl_class" id="1929" title="Click to correct">परीक्षण</span> <span class="transl_class" id="1930" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="1931" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="1932" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="1933" title="Click to correct">उनकी</span> <span class="transl_class" id="1934" title="Click to correct">श्रेणी</span> <span class="transl_class" id="1935" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="1936" title="Click to correct">खड़ा</span> <span class="transl_class" id="1937" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="1938" title="Click to correct">दिया</span> <span class="transl_class" id="1939" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="1940" title="Click to correct">शायद</span> <span class="transl_class" id="1941" title="Click to correct">अनिल</span> <span class="transl_class" id="1942" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="1943" title="Click to correct">सुरेश</span> - <span class="transl_class" id="1944" title="Click to correct">बड़ा</span> <span class="transl_class" id="1945" title="Click to correct">सुरेश</span> - <span class="transl_class" id="1946" title="Click to correct">यह</span> <span class="transl_class" id="1947" title="Click to correct">काम</span> <span class="transl_class" id="1948" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="1949" title="Click to correct">पायें</span> } <span class="transl_class" id="1950" title="Click to correct">सोगा</span> <span class="transl_class" id="1951" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="1952" title="Click to correct">मगिन्द्र</span> ? <span class="transl_class" id="1953" title="Click to correct">मुश्किल</span> <span class="transl_class" id="1954" title="Click to correct">है</span> ....</div><div><br />
---<span class="transl_class" id="1955" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="1956" title="Click to correct">शशांक</span> ? <span class="transl_class" id="1957" title="Click to correct">उसे</span> <span class="transl_class" id="1958" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="1959" title="Click to correct">शायद</span> <span class="transl_class" id="1960" title="Click to correct">बरसों</span> <span class="transl_class" id="1961" title="Click to correct">लग</span> <span class="transl_class" id="1962" title="Click to correct">जायेंगे</span> - <span class="transl_class" id="1963" title="Click to correct">ये</span> <span class="transl_class" id="1964" title="Click to correct">उपलब्धि</span> <span class="transl_class" id="1965" title="Click to correct">हासिल</span> <span class="transl_class" id="1966" title="Click to correct">करने</span> <span class="transl_class" id="1967" title="Click to correct">में |</span><br />
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*************<br />
<br />
<span class="transl_class" id="1968" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="1969" title="Click to correct">चपटे</span> <span class="transl_class" id="1970" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1971" title="Click to correct">पत्थर</span> <span class="transl_class" id="1972" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="1973" title="Click to correct">गोल्ड</span> <span class="transl_class" id="1974" title="Click to correct">स्पॉट</span> <span class="transl_class" id="1975" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="1976" title="Click to correct">ढक्कन</span> <span class="transl_class" id="1977" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="1978" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="1979" title="Click to correct">कचूमर</span> <span class="transl_class" id="1980" title="Click to correct">निकाल</span> <span class="transl_class" id="1981" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="1982" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="1983" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="1984" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="1985" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="1986" title="Click to correct">हिदायत</span> <span class="transl_class" id="1987" title="Click to correct">दे</span> <span class="transl_class" id="1988" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="1989" title="Click to correct">था</span> -"<span class="transl_class" id="1990" title="Click to correct">अबे</span> <span class="transl_class" id="1991" title="Click to correct">साइड</span> <span class="transl_class" id="1992" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="1993" title="Click to correct">थोडा</span> <span class="transl_class" id="1994" title="Click to correct">धीरे</span> <span class="transl_class" id="1995" title="Click to correct">मार</span> | <span class="transl_class" id="1996" title="Click to correct">ढक्कन</span> <span class="transl_class" id="1997" title="Click to correct">टेढ़ा</span> <span class="transl_class" id="1998" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="1999" title="Click to correct">जायेगा</span> ... "</div><div><br />
<span class="transl_class" id="2000" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="2001" title="Click to correct">ईंट</span> <span class="transl_class" id="2002" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="2003" title="Click to correct">टुकड़े</span> <span class="transl_class" id="2004" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="2005" title="Click to correct">टूटते</span> <span class="transl_class" id="2006" title="Click to correct">टूटते</span> <span class="transl_class" id="2007" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="2008" title="Click to correct">ढक्कन</span> <span class="transl_class" id="2009" title="Click to correct">चपटा</span> <span class="transl_class" id="2010" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="2011" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="2012" title="Click to correct">गया</span> |<span class="transl_class" id="2013" title="Click to correct">अब</span> <span class="transl_class" id="2014" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="2015" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2016" title="Click to correct">चकती</span> <span class="transl_class" id="2017" title="Click to correct">जैसा</span> <span class="transl_class" id="2018" title="Click to correct">बन</span> <span class="transl_class" id="2019" title="Click to correct">गया</span> <span class="transl_class" id="2020" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="2021" title="Click to correct">बीच</span> <span class="transl_class" id="2022" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2023" title="Click to correct">लिखा</span> "<span class="transl_class" id="2024" title="Click to correct">गोल्ड</span> <span class="transl_class" id="2025" title="Click to correct">स्पॉट</span> " <span class="transl_class" id="2026" title="Click to correct">थोडा</span> <span class="transl_class" id="2027" title="Click to correct">धुंधला</span> <span class="transl_class" id="2028" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="2029" title="Click to correct">गया</span> <span class="transl_class" id="2030" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="2031" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="2032" title="Click to correct">फ़ैल</span> <span class="transl_class" id="2033" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="2034" title="Click to correct">गया</span> <span class="transl_class" id="2035" title="Click to correct">था |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="2036" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="2037" title="Click to correct">तूने</span> <span class="transl_class" id="2038" title="Click to correct">आज</span> <span class="transl_class" id="2039" title="Click to correct">माचिस</span> <span class="transl_class" id="2040" title="Click to correct">जलाई</span> ?" <span class="transl_class" id="2041" title="Click to correct">बबन</span> <span class="transl_class" id="2042" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="2043" title="Click to correct">पूछा |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="2044" title="Click to correct">हाँ</span> |"</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="2045" title="Click to correct">कितनी</span> <span class="transl_class" id="2046" title="Click to correct">देर</span> <span class="transl_class" id="2047" title="Click to correct">पकड़े </span><span class="transl_class" id="2048" title="Click to correct">रहा</span> ? <span class="transl_class" id="2049" title="Click to correct">जलाया</span> <span class="transl_class" id="2050" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="2051" title="Click to correct">छोड़</span> <span class="transl_class" id="2052" title="Click to correct">दिया</span> ?"</div><div><br />
" <span class="transl_class" id="2053" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="2054" title="Click to correct">काफी</span> <span class="transl_class" id="2055" title="Click to correct">देर</span> <span class="transl_class" id="2056" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="2057" title="Click to correct">पकड़े </span><span class="transl_class" id="2058" title="Click to correct">रहा</span> |"</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="2059" title="Click to correct">क्या</span> ? <span class="transl_class" id="2060" title="Click to correct">आखिर</span> <span class="transl_class" id="2061" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="2062" title="Click to correct">पकड़े </span><span class="transl_class" id="2063" title="Click to correct">रहा</span> ?"</div><div><br />
" <span class="transl_class" id="2064" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="2065" title="Click to correct">बे</span> <span class="transl_class" id="2066" title="Click to correct">काफी</span> <span class="transl_class" id="2067" title="Click to correct">देर</span> <span class="transl_class" id="2068" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="2069" title="Click to correct">पकड़े </span><span class="transl_class" id="2070" title="Click to correct">रहा</span> | <span class="transl_class" id="2071" title="Click to correct">आखिर</span> <span class="transl_class" id="2072" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="2073" title="Click to correct">पहुँचने</span> <span class="transl_class" id="2074" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="2075" title="Click to correct">थोड़ा </span><span class="transl_class" id="2076" title="Click to correct">पहले</span> <span class="transl_class" id="2077" title="Click to correct">छोड़</span> <span class="transl_class" id="2078" title="Click to correct">दिया</span> |"</div><div><br />
" <span class="transl_class" id="2079" title="Click to correct">शाबास</span> <span class="transl_class" id="2080" title="Click to correct">बहुत</span> <span class="transl_class" id="2081" title="Click to correct">सही</span> <span class="transl_class" id="2082" title="Click to correct">काम</span> <span class="transl_class" id="2083" title="Click to correct">किया</span> |<span class="transl_class" id="2084" title="Click to correct">अबे</span> <span class="transl_class" id="2085" title="Click to correct">हाथ</span> <span class="transl_class" id="2086" title="Click to correct">जल</span> <span class="transl_class" id="2087" title="Click to correct">जाता</span> <span class="transl_class" id="2088" title="Click to correct">तेरा</span> , <span class="transl_class" id="2089" title="Click to correct">अगर</span> <span class="transl_class" id="2090" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="2091" title="Click to correct">थोड़ी</span> <span class="transl_class" id="2092" title="Click to correct">देर</span> <span class="transl_class" id="2094" title="Click to correct">पकड़े रहता</span> <span class="transl_class" id="2095" title="Click to correct">तो</span> ..."</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="2096" title="Click to correct">गोल्ड</span> <span class="transl_class" id="2097" title="Click to correct">स्पॉट</span> " <span class="transl_class" id="2098" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="2099" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="2100" title="Click to correct">ढक्कन</span> <span class="transl_class" id="2101" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="2102" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="2103" title="Click to correct">उलट</span> <span class="transl_class" id="2104" title="Click to correct">पलट</span> <span class="transl_class" id="2105" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="2106" title="Click to correct">देख</span> <span class="transl_class" id="2107" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="2108" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="2109" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2110" title="Click to correct">सड़े</span> <span class="transl_class" id="2111" title="Click to correct">गले</span> <span class="transl_class" id="2112" title="Click to correct">लकड़ी</span> <span class="transl_class" id="2113" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="2114" title="Click to correct">फट्टे</span> <span class="transl_class" id="2115" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2116" title="Click to correct">जंग</span> <span class="transl_class" id="2117" title="Click to correct">लगी</span> <span class="transl_class" id="2118" title="Click to correct">कील</span> <span class="transl_class" id="2119" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="2120" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="2121" title="Click to correct">पत्थर</span> <span class="transl_class" id="2122" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="2123" title="Click to correct">मार</span> <span class="transl_class" id="2124" title="Click to correct">मार</span> <span class="transl_class" id="2125" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="2126" title="Click to correct">उसे</span> <span class="transl_class" id="2127" title="Click to correct">निकलने</span> <span class="transl_class" id="2128" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2129" title="Click to correct">सफल</span> <span class="transl_class" id="2130" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="2131" title="Click to correct">गया</span> |<span class="transl_class" id="2132" title="Click to correct">अब</span> <span class="transl_class" id="2133" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="2134" title="Click to correct">उसे</span> <span class="transl_class" id="2135" title="Click to correct">ठोंक</span> <span class="transl_class" id="2136" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="2137" title="Click to correct">सीधा</span> <span class="transl_class" id="2138" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="2139" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="2140" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="2141" title="Click to correct">तभी</span> <span class="transl_class" id="2142" title="Click to correct">दाँत </span> <span class="transl_class" id="2143" title="Click to correct">निकालता</span> <span class="transl_class" id="2144" title="Click to correct">हुआ</span> <span class="transl_class" id="2145" title="Click to correct">शशांक</span> <span class="transl_class" id="2146" title="Click to correct">आ</span> <span class="transl_class" id="2147" title="Click to correct">गया |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="2148" title="Click to correct">चल</span> <span class="transl_class" id="2149" title="Click to correct">बे</span> | <span class="transl_class" id="2150" title="Click to correct">ढक्कन</span> <span class="transl_class" id="2151" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="2152" title="Click to correct">बीच</span> <span class="transl_class" id="2153" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2154" title="Click to correct">दो</span> <span class="transl_class" id="2155" title="Click to correct">छेद</span> <span class="transl_class" id="2156" title="Click to correct">करना</span> <span class="transl_class" id="2157" title="Click to correct">है</span> |" बबन ने उसकी उपस्थिति को अनदेखा करते हुए कहा | </div><div><br />
"<span class="transl_class" id="2158" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="2159" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="2160" title="Click to correct">रहे</span> <span class="transl_class" id="2161" title="Click to correct">हो</span> ? " <span class="transl_class" id="2162" title="Click to correct">शशांक</span> <span class="transl_class" id="2163" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="2164" title="Click to correct">पूछा</span> | <span class="transl_class" id="2165" title="Click to correct">हम</span> <span class="transl_class" id="2166" title="Click to correct">तीनों</span> <span class="transl_class" id="2167" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2168" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="2169" title="Click to correct">किसी</span> <span class="transl_class" id="2170" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="2171" title="Click to correct">उसकी</span> <span class="transl_class" id="2172" title="Click to correct">बात</span> <span class="transl_class" id="2173" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="2174" title="Click to correct">ध्यान</span> <span class="transl_class" id="2175" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="2176" title="Click to correct">दिया</span> | <span class="transl_class" id="2177" title="Click to correct">दो</span> <span class="transl_class" id="2178" title="Click to correct">सपाट</span> <span class="transl_class" id="2179" title="Click to correct">पत्थरों</span> <span class="transl_class" id="2180" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="2181" title="Click to correct">पास</span> <span class="transl_class" id="2182" title="Click to correct">पास</span> <span class="transl_class" id="2183" title="Click to correct">रख</span> <span class="transl_class" id="2184" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="2185" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="2186" title="Click to correct">ऊपर</span> <span class="transl_class" id="2187" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="2188" title="Click to correct">ढक्कन</span> <span class="transl_class" id="2189" title="Click to correct">रख</span> <span class="transl_class" id="2190" title="Click to correct">दिया</span> <span class="transl_class" id="2191" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="2192" title="Click to correct">दोनों</span> <span class="transl_class" id="2193" title="Click to correct">तरफ</span> <span class="transl_class" id="2194" title="Click to correct">उंगली</span> <span class="transl_class" id="2195" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="2196" title="Click to correct">दबाकर</span> <span class="transl_class" id="2197" title="Click to correct">बैठ</span> <span class="transl_class" id="2198" title="Click to correct">गया</span> <span class="transl_class" id="2199" title="Click to correct">ढक्कन</span> <span class="transl_class" id="2200" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="2201" title="Click to correct">बीचों</span> <span class="transl_class" id="2202" title="Click to correct">बीच</span> <span class="transl_class" id="2203" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="2204" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="2205" title="Click to correct">कील</span> <span class="transl_class" id="2206" title="Click to correct">रखी</span> <span class="transl_class" id="2207" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="2208" title="Click to correct">पत्थर</span> <span class="transl_class" id="2209" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="2210" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2211" title="Click to correct">चोट</span> <span class="transl_class" id="2212" title="Click to correct">क़ी |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="2213" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="2214" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="2215" title="Click to correct">रहे</span> <span class="transl_class" id="2216" title="Click to correct">हो</span> ? " <span class="transl_class" id="2217" title="Click to correct">शशांक</span> <span class="transl_class" id="2218" title="Click to correct">ने</span> अनुत्तरित प्रश्न दोहराया | </div><div><br />
"<span class="transl_class" id="2221" title="Click to correct">हलुआ</span> <span class="transl_class" id="2222" title="Click to correct">बना</span> <span class="transl_class" id="2223" title="Click to correct">रहे</span> <span class="transl_class" id="2224" title="Click to correct">हैं</span> | <span class="transl_class" id="2225" title="Click to correct">खाना</span> <span class="transl_class" id="2226" title="Click to correct">है</span> ? " <span class="transl_class" id="2227" title="Click to correct">बबन</span> <span class="transl_class" id="2228" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="2229" title="Click to correct">जवाब</span> <span class="transl_class" id="2230" title="Click to correct">दिया |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="2231" title="Click to correct">चकरी</span> <span class="transl_class" id="2232" title="Click to correct">बना</span> <span class="transl_class" id="2233" title="Click to correct">रहे</span> <span class="transl_class" id="2234" title="Click to correct">हो</span> ? " <span class="transl_class" id="2235" title="Click to correct">शशांक</span> <span class="transl_class" id="2236" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="2237" title="Click to correct">पूछा</span> ." <span class="transl_class" id="2238" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="2239" title="Click to correct">ठोकूं</span> ? "</div><div><br />
" <span class="transl_class" id="2240" title="Click to correct">रहने</span> <span class="transl_class" id="2241" title="Click to correct">दे</span> | <span class="transl_class" id="2242" title="Click to correct">तू</span> <span class="transl_class" id="2243" title="Click to correct">किसी</span> <span class="transl_class" id="2244" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="2245" title="Click to correct">सर</span> <span class="transl_class" id="2246" title="Click to correct">फोड़ेगा</span> |" <span class="transl_class" id="2247" title="Click to correct">बबन</span> <span class="transl_class" id="2248" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="2249" title="Click to correct">यह</span> <span class="transl_class" id="2250" title="Click to correct">अविश्वास</span> <span class="transl_class" id="2251" title="Click to correct">बिला</span> <span class="transl_class" id="2252" title="Click to correct">वजह</span> <span class="transl_class" id="2253" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="2254" title="Click to correct">था |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="2255" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="2256" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="2257" title="Click to correct">थोडा</span> <span class="transl_class" id="2258" title="Click to correct">तरस</span> <span class="transl_class" id="2259" title="Click to correct">आ</span> <span class="transl_class" id="2260" title="Click to correct">गया</span> ,"<span class="transl_class" id="2261" title="Click to correct">ठीक</span> <span class="transl_class" id="2262" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="2263" title="Click to correct">तू</span> <span class="transl_class" id="2264" title="Click to correct">साइड</span> <span class="transl_class" id="2265" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="2266" title="Click to correct">पकड़</span> |"</div><div><br />
<span class="transl_class" id="2267" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="2268" title="Click to correct">खड़ा</span> <span class="transl_class" id="2269" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="2270" title="Click to correct">गया</span> <span class="transl_class" id="2271" title="Click to correct">शशांक</span> <span class="transl_class" id="2272" title="Click to correct">मेरी</span> <span class="transl_class" id="2273" title="Click to correct">जगह</span> <span class="transl_class" id="2274" title="Click to correct">बैठ</span> <span class="transl_class" id="2275" title="Click to correct">गया</span> | <span class="transl_class" id="2276" title="Click to correct">बबन</span> <span class="transl_class" id="2277" title="Click to correct">चिल्लाया</span>, " <span class="transl_class" id="2278" title="Click to correct">अबे</span>, <span class="transl_class" id="2279" title="Click to correct">मुंडी</span> <span class="transl_class" id="2280" title="Click to correct">पीछे</span> <span class="transl_class" id="2281" title="Click to correct">कर</span> | <span class="transl_class" id="2282" title="Click to correct">चश्मा</span> <span class="transl_class" id="2283" title="Click to correct">टूटेगा</span> ..."</div><div><br />
<span class="transl_class" id="2284" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="2285" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="2286" title="Click to correct">अगला</span> <span class="transl_class" id="2287" title="Click to correct">प्रहार</span> <span class="transl_class" id="2288" title="Click to correct">इतना</span> <span class="transl_class" id="2289" title="Click to correct">दमदार</span> <span class="transl_class" id="2290" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="2291" title="Click to correct">कि</span> "<span class="transl_class" id="2292" title="Click to correct">खच्च</span>" <span class="transl_class" id="2293" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="2294" title="Click to correct">आवाज</span> <span class="transl_class" id="2295" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="2296" title="Click to correct">साथ</span> <span class="transl_class" id="2297" title="Click to correct">कील</span> <span class="transl_class" id="2298" title="Click to correct">ढक्कन</span> <span class="transl_class" id="2299" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2300" title="Click to correct">घुस</span> <span class="transl_class" id="2301" title="Click to correct">गयी</span> <span class="transl_class" id="2302" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="2303" title="Click to correct">उंगली</span> <span class="transl_class" id="2304" title="Click to correct">पकड़</span> <span class="transl_class" id="2305" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="2306" title="Click to correct">शशांक</span> <span class="transl_class" id="2307" title="Click to correct">जोर</span> <span class="transl_class" id="2308" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="2309" title="Click to correct">उछला</span>,"<span class="transl_class" id="2310" title="Click to correct">आँ</span>, <span class="transl_class" id="2311" title="Click to correct">आँ</span> <span class="transl_class" id="2312" title="Click to correct">मर</span> <span class="transl_class" id="2313" title="Click to correct">गया</span> ... " | <span class="transl_class" id="2314" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="2315" title="Click to correct">झटकते</span> <span class="transl_class" id="2316" title="Click to correct">हाथ</span> <span class="transl_class" id="2317" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="2318" title="Click to correct">हरकत</span> <span class="transl_class" id="2319" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="2320" title="Click to correct">बीच</span> <span class="transl_class" id="2321" title="Click to correct">हमने</span> <span class="transl_class" id="2322" title="Click to correct">देखा</span>, <span class="transl_class" id="2323" title="Click to correct">उसकी</span> <span class="transl_class" id="2324" title="Click to correct">उंगली</span> <span class="transl_class" id="2325" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="2326" title="Click to correct">खून</span> <span class="transl_class" id="2327" title="Click to correct">निकल</span> <span class="transl_class" id="2328" title="Click to correct">आया</span> <span class="transl_class" id="2329" title="Click to correct">था |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="2330" title="Click to correct">अबे</span> , <span class="transl_class" id="2331" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="2332" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="2333" title="Click to correct">हुआ</span> | <span class="transl_class" id="2334" title="Click to correct">उंगली</span> <span class="transl_class" id="2335" title="Click to correct">चूस</span> ले |" <span class="transl_class" id="2337" title="Click to correct">बबन</span> <span class="transl_class" id="2338" title="Click to correct">चिल्लाया</span>, "<span class="transl_class" id="2339" title="Click to correct">चूस</span> <span class="transl_class" id="2340" title="Click to correct">ले</span> | <span class="transl_class" id="2341" title="Click to correct">खून</span> <span class="transl_class" id="2342" title="Click to correct">बंद</span> <span class="transl_class" id="2343" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="2344" title="Click to correct">जायेगा</span> |"</div><div><br />
" <span class="transl_class" id="2345" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="2346" title="Click to correct">जान</span> <span class="transl_class" id="2347" title="Click to correct">बुझकर</span> <span class="transl_class" id="2348" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="2349" title="Click to correct">मारा</span> | <span class="transl_class" id="2350" title="Click to correct">सच्ची</span>... " <span class="transl_class" id="2351" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="2352" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="2353" title="Click to correct">थोडा</span> <span class="transl_class" id="2354" title="Click to correct">घबरा</span> <span class="transl_class" id="2355" title="Click to correct">गया</span> | <span class="transl_class" id="2356" title="Click to correct">शशांक</span> <span class="transl_class" id="2357" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="2358" title="Click to correct">जोर</span> <span class="transl_class" id="2359" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="2360" title="Click to correct">चीख</span> <span class="transl_class" id="2361" title="Click to correct">सुनकर</span> <span class="transl_class" id="2362" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="2363" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="2364" title="Click to correct">घबरा</span> <span class="transl_class" id="2365" title="Click to correct">जाता</span> | <span class="transl_class" id="2366" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="2367" title="Click to correct">चिल्ला</span> <span class="transl_class" id="2368" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="2369" title="Click to correct">था</span> , "<span class="transl_class" id="2370" title="Click to correct">मम्मी</span>, <span class="transl_class" id="2371" title="Click to correct">मम्मी</span>, <span class="transl_class" id="2372" title="Click to correct">मम्मी</span> ......"</div><div><br />
<span class="transl_class" id="2373" title="Click to correct">इससे</span> <span class="transl_class" id="2374" title="Click to correct">पहले</span> <span class="transl_class" id="2375" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="2376" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="2377" title="Click to correct">बखेड़ा</span> <span class="transl_class" id="2378" title="Click to correct">खड़ा</span> <span class="transl_class" id="2379" title="Click to correct">होता</span> ,<span class="transl_class" id="2380" title="Click to correct">यानी</span> <span class="transl_class" id="2381" title="Click to correct">उसकी</span> <span class="transl_class" id="2382" title="Click to correct">पुकार</span> <span class="transl_class" id="2383" title="Click to correct">सुनकर</span> <span class="transl_class" id="2384" title="Click to correct">उसकी</span> <span class="transl_class" id="2385" title="Click to correct">मम्मी</span> <span class="transl_class" id="2386" title="Click to correct">अवतरित</span> <span class="transl_class" id="2387" title="Click to correct">होती</span>, <span class="transl_class" id="2388" title="Click to correct">आनन्</span> <span class="transl_class" id="2389" title="Click to correct">फानन</span> <span class="transl_class" id="2390" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2391" title="Click to correct">हम</span> <span class="transl_class" id="2392" title="Click to correct">तीनों</span> <span class="transl_class" id="2393" title="Click to correct">वहां</span> <span class="transl_class" id="2394" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="2395" title="Click to correct">भाग</span> <span class="transl_class" id="2396" title="Click to correct">खड़े</span> <span class="transl_class" id="2397" title="Click to correct">हुए |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="2398" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2399" title="Click to correct">दो</span> <span class="transl_class" id="2400" title="Click to correct">घंटे</span> <span class="transl_class" id="2401" title="Click to correct">बाद</span>, <span class="transl_class" id="2402" title="Click to correct">जब</span> <span class="transl_class" id="2403" title="Click to correct">तूफान</span> <span class="transl_class" id="2404" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="2405" title="Click to correct">सारी</span> <span class="transl_class" id="2406" title="Click to correct">आशंकाएं</span> <span class="transl_class" id="2407" title="Click to correct">शांत</span> <span class="transl_class" id="2408" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="2409" title="Click to correct">गयी</span> <span class="transl_class" id="2410" title="Click to correct">थी</span>, <span class="transl_class" id="2411" title="Click to correct">सूरज</span> <span class="transl_class" id="2412" title="Click to correct">डूब</span> <span class="transl_class" id="2413" title="Click to correct">चुका</span> <span class="transl_class" id="2414" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="2415" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="2416" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="2417" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2418" title="Click to correct">शिकायत</span> <span class="transl_class" id="2419" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="2420" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="2421" title="Click to correct">पहुंची</span> <span class="transl_class" id="2422" title="Click to correct">थी</span> , <span class="transl_class" id="2423" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="2424" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="2425" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2426" title="Click to correct">कोने</span> <span class="transl_class" id="2427" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2428" title="Click to correct">बैठकर</span> <span class="transl_class" id="2429" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="2430" title="Click to correct">ढक्कन</span> <span class="transl_class" id="2431" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="2432" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2433" title="Click to correct">छेद</span> <span class="transl_class" id="2434" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2435" title="Click to correct">सामान</span> <span class="transl_class" id="2436" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="2437" title="Click to correct">धागे</span> <span class="transl_class" id="2438" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="2439" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2440" title="Click to correct">छोर</span> <span class="transl_class" id="2441" title="Click to correct">डाला</span> | <span class="transl_class" id="2442" title="Click to correct">दूसरे</span> <span class="transl_class" id="2443" title="Click to correct">छेद</span> <span class="transl_class" id="2444" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2445" title="Click to correct">दूसरा</span> <span class="transl_class" id="2446" title="Click to correct">छोर</span> <span class="transl_class" id="2447" title="Click to correct">डालकर</span> <span class="transl_class" id="2448" title="Click to correct">गांठ</span> <span class="transl_class" id="2449" title="Click to correct">बाँध</span> <span class="transl_class" id="2450" title="Click to correct">दी</span> | <span class="transl_class" id="2451" title="Click to correct">चकरी</span> <span class="transl_class" id="2452" title="Click to correct">तैयार</span> <span class="transl_class" id="2453" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="2454" title="Click to correct">धागे</span> <span class="transl_class" id="2455" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="2456" title="Click to correct">दोनों</span> <span class="transl_class" id="2457" title="Click to correct">ओर</span> <span class="transl_class" id="2458" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2459" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2460" title="Click to correct">हाथ</span> <span class="transl_class" id="2461" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="2462" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2463" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2464" title="Click to correct">उंगली</span> <span class="transl_class" id="2465" title="Click to correct">डालकर</span> <span class="transl_class" id="2466" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="2467" title="Click to correct">उसे</span> <span class="transl_class" id="2468" title="Click to correct">धुमाने</span> <span class="transl_class" id="2469" title="Click to correct">लगा</span> | <span class="transl_class" id="2470" title="Click to correct">धागे</span> <span class="transl_class" id="2471" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="2472" title="Click to correct">ऐंठन</span> <span class="transl_class" id="2473" title="Click to correct">बढ़ते</span> <span class="transl_class" id="2474" title="Click to correct">गयी</span> | <span class="transl_class" id="2475" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="2476" title="Click to correct">दोनों</span> <span class="transl_class" id="2477" title="Click to correct">उंगलियाँ</span> <span class="transl_class" id="2478" title="Click to correct">चकरी</span> <span class="transl_class" id="2479" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="2480" title="Click to correct">पास</span> <span class="transl_class" id="2481" title="Click to correct">ला</span> <span class="transl_class" id="2482" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="2483" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="2484" title="Click to correct">मैने</span> <span class="transl_class" id="2485" title="Click to correct">उन्हें</span> <span class="transl_class" id="2486" title="Click to correct">दूर</span> <span class="transl_class" id="2487" title="Click to correct">किया</span> <span class="transl_class" id="2488" title="Click to correct">गोल्ड</span> <span class="transl_class" id="2489" title="Click to correct">स्पॉट</span> <span class="transl_class" id="2490" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="2491" title="Click to correct">ढक्कन</span> <span class="transl_class" id="2492" title="Click to correct">घूमने</span> <span class="transl_class" id="2493" title="Click to correct">लगा</span> .... ... <span class="transl_class" id="2494" title="Click to correct">तेज</span> ... <span class="transl_class" id="2495" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="2496" title="Click to correct">तेज</span> ..<br />
<span class="transl_class" id="2497" title="Click to correct">अब</span> <span class="transl_class" id="2498" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="2499" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="2500" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="2501" title="Click to correct">सब</span> <span class="transl_class" id="2502" title="Click to correct">भूल</span> <span class="transl_class" id="2503" title="Click to correct">गया</span> <span class="transl_class" id="2504" title="Click to correct">था</span> , <span class="transl_class" id="2505" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="2506" title="Click to correct">अचानक</span> <span class="transl_class" id="2507" title="Click to correct">ढक्कन</span> <span class="transl_class" id="2508" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2509" title="Click to correct">शशांक</span> <span class="transl_class" id="2510" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="2511" title="Click to correct">चेहरा</span> <span class="transl_class" id="2512" title="Click to correct">दिखने</span> <span class="transl_class" id="2513" title="Click to correct">लगा</span> ... <span class="transl_class" id="2514" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="2515" title="Click to correct">उसे</span> <span class="transl_class" id="2516" title="Click to correct">वाकई</span> <span class="transl_class" id="2517" title="Click to correct">चोट</span> <span class="transl_class" id="2518" title="Click to correct">लगी</span> <span class="transl_class" id="2519" title="Click to correct">थी</span> ? <span class="transl_class" id="2520" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="2521" title="Click to correct">सामान्य</span> <span class="transl_class" id="2522" title="Click to correct">धारणा</span> <span class="transl_class" id="2523" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="2524" title="Click to correct">मुताबिक</span> , <span class="transl_class" id="2525" title="Click to correct">ये</span> <span class="transl_class" id="2526" title="Click to correct">उसका</span> '<span class="transl_class" id="2527" title="Click to correct">नाज़ुकपन'</span> <span class="transl_class" id="2528" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="2529" title="Click to correct">था</span> ?<br />
<br />
*************<br />
<br />
"<span class="transl_class" id="2530" title="Click to correct">अगली</span> <span class="transl_class" id="2531" title="Click to correct">शाम</span> <span class="transl_class" id="2532" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="2533" title="Click to correct">जब</span> <span class="transl_class" id="2534" title="Click to correct">स्वर्ग</span> <span class="transl_class" id="2535" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="2536" title="Click to correct">घोड़ा </span><span class="transl_class" id="2537" title="Click to correct">घास</span> <span class="transl_class" id="2538" title="Click to correct">चरकर</span> <span class="transl_class" id="2539" title="Click to correct">उड़ा</span> <span class="transl_class" id="2540" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="2541" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="2542" title="Click to correct">आदमी</span> <span class="transl_class" id="2543" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="2544" title="Click to correct">लपक</span> <span class="transl_class" id="2545" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="2546" title="Click to correct">उसकी</span> <span class="transl_class" id="2547" title="Click to correct">पूँछ</span> <span class="transl_class" id="2548" title="Click to correct">पकड़</span> <span class="transl_class" id="2549" title="Click to correct">ली</span> | <span class="transl_class" id="2550" title="Click to correct">दूसरे</span> <span class="transl_class" id="2551" title="Click to correct">आदमी</span> <span class="transl_class" id="2552" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="2553" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="2554" title="Click to correct">पाँव</span> <span class="transl_class" id="2555" title="Click to correct">पकड़े </span><span class="transl_class" id="2556" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="2557" title="Click to correct">तीसरा</span> <span class="transl_class" id="2558" title="Click to correct">आदमी</span> <span class="transl_class" id="2559" title="Click to correct">दूसरे</span> <span class="transl_class" id="2560" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="2561" title="Click to correct">पाँव</span> <span class="transl_class" id="2562" title="Click to correct">पकड़कर</span> <span class="transl_class" id="2563" title="Click to correct">लटक</span> <span class="transl_class" id="2564" title="Click to correct">गया |</span> <span class="transl_class" id="2565" title="Click to correct">इस</span> <span class="transl_class" id="2566" title="Click to correct">तरह</span> <span class="transl_class" id="2567" title="Click to correct">सारा</span> <span class="transl_class" id="2568" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="2569" title="Click to correct">सारा</span> <span class="transl_class" id="2570" title="Click to correct">गाँव</span> <span class="transl_class" id="2571" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2572" title="Click to correct">दूसरे</span> <span class="transl_class" id="2573" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="2574" title="Click to correct">लटक</span> <span class="transl_class" id="2575" title="Click to correct">आकर</span> <span class="transl_class" id="2576" title="Click to correct">स्वर्ग</span> <span class="transl_class" id="2577" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="2578" title="Click to correct">ओर</span> <span class="transl_class" id="2579" title="Click to correct">चल</span> <span class="transl_class" id="2580" title="Click to correct">पड़ा</span> ..."</div><div><br />
<span class="transl_class" id="2581" title="Click to correct">सेक्टर</span> <span class="transl_class" id="2582" title="Click to correct">५</span> <span class="transl_class" id="2583" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="2584" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2585" title="Click to correct">२४</span> <span class="transl_class" id="2586" title="Click to correct">यूनिट</span> <span class="transl_class" id="2587" title="Click to correct">वाले</span> <span class="transl_class" id="2588" title="Click to correct">ब्लाक</span> <span class="transl_class" id="2589" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="2590" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2591" title="Click to correct">कोने</span> <span class="transl_class" id="2592" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2593" title="Click to correct">व्यास</span> <span class="transl_class" id="2594" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="2595" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2596" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="2597" title="Click to correct">किराए</span> <span class="transl_class" id="2598" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2599" title="Click to correct">लिया</span> <span class="transl_class" id="2600" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="2601" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="2602" title="Click to correct">जमीन</span> <span class="transl_class" id="2603" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="2604" title="Click to correct">था</span> - <span class="transl_class" id="2605" title="Click to correct">मेरा</span> <span class="transl_class" id="2606" title="Click to correct">मतलब</span>, <span class="transl_class" id="2607" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="2608" title="Click to correct">ऊपर</span> <span class="transl_class" id="2609" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2610" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="2611" title="Click to correct">मंजिल</span> <span class="transl_class" id="2612" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="2613" title="Click to correct">वहीँ</span> <span class="transl_class" id="2614" title="Click to correct">लक्ष्मी</span> <span class="transl_class" id="2615" title="Click to correct">भैया</span> <span class="transl_class" id="2616" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="2617" title="Click to correct">स्वर्ग</span> <span class="transl_class" id="2618" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="2619" title="Click to correct">सैर</span> <span class="transl_class" id="2620" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="2621" title="Click to correct">कहानी</span> <span class="transl_class" id="2622" title="Click to correct">सुना</span> <span class="transl_class" id="2623" title="Click to correct">रहे</span> <span class="transl_class" id="2624" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="2625" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="2626" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2627" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="2628" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="2629" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="2630" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="2631" title="Click to correct">था</span> |<span class="transl_class" id="2632" title="Click to correct">अगर</span> <span class="transl_class" id="2633" title="Click to correct">आप</span> <span class="transl_class" id="2634" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2635" title="Click to correct">वर्ग</span> <span class="transl_class" id="2636" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="2637" title="Click to correct">कल्पना</span> <span class="transl_class" id="2638" title="Click to correct">करें</span>, <span class="transl_class" id="2639" title="Click to correct">जिसकी</span> <span class="transl_class" id="2640" title="Click to correct">चारों</span> <span class="transl_class" id="2641" title="Click to correct">भुजाओं</span> <span class="transl_class" id="2642" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="2643" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2644" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2645" title="Click to correct">भवन</span> <span class="transl_class" id="2646" title="Click to correct">आपस</span> <span class="transl_class" id="2647" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2648" title="Click to correct">ऐसे</span> <span class="transl_class" id="2649" title="Click to correct">जुड़े</span> <span class="transl_class" id="2650" title="Click to correct">हों</span> <span class="transl_class" id="2651" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="2652" title="Click to correct">हवा</span> <span class="transl_class" id="2653" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="2654" title="Click to correct">न</span> <span class="transl_class" id="2655" title="Click to correct">प्रवेश</span> <span class="transl_class" id="2656" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="2657" title="Click to correct">सके</span> | <span class="transl_class" id="2658" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="2659" title="Click to correct">हर</span> <span class="transl_class" id="2660" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2661" title="Click to correct">भवन</span> <span class="transl_class" id="2662" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2663" title="Click to correct">तीन</span> <span class="transl_class" id="2664" title="Click to correct">तीन</span> <span class="transl_class" id="2665" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="2666" title="Click to correct">नीचे</span> <span class="transl_class" id="2667" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="2668" title="Click to correct">मंजिल</span> <span class="transl_class" id="2669" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2670" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="2671" title="Click to correct">तीन</span> <span class="transl_class" id="2672" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="2673" title="Click to correct">ऊपर</span> <span class="transl_class" id="2674" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="2675" title="Click to correct">मंजिल</span> <span class="transl_class" id="2676" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2677" title="Click to correct">हों</span> <span class="transl_class" id="2678" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="2679" title="Click to correct">गिनती</span> <span class="transl_class" id="2680" title="Click to correct">चौबीस</span> <span class="transl_class" id="2681" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="2682" title="Click to correct">पहुँच</span> <span class="transl_class" id="2683" title="Click to correct">जाती</span> <span class="transl_class" id="2684" title="Click to correct">है |</span> <span class="transl_class" id="2685" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="2686" title="Click to correct">आप</span> <span class="transl_class" id="2687" title="Click to correct">सोचेंगे</span> <span class="transl_class" id="2688" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="2689" title="Click to correct">अगर</span> <span class="transl_class" id="2690" title="Click to correct">वर्ग</span> <span class="transl_class" id="2691" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="2692" title="Click to correct">भुजाओं</span> <span class="transl_class" id="2693" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="2694" title="Click to correct">भवन</span> <span class="transl_class" id="2695" title="Click to correct">खड़े</span> <span class="transl_class" id="2696" title="Click to correct">हों</span> <span class="transl_class" id="2697" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="2698" title="Click to correct">बीच</span> <span class="transl_class" id="2699" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="2700" title="Click to correct">क्षेत्र</span> <span class="transl_class" id="2701" title="Click to correct">भला</span> <span class="transl_class" id="2702" title="Click to correct">किस</span> <span class="transl_class" id="2703" title="Click to correct">काम</span> <span class="transl_class" id="2704" title="Click to correct">आता</span> <span class="transl_class" id="2705" title="Click to correct">होगा</span> ? <span class="transl_class" id="2706" title="Click to correct">बीच</span> <span class="transl_class" id="2707" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="2708" title="Click to correct">क्षेत्र</span> <span class="transl_class" id="2709" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2710" title="Click to correct">बहुत</span> <span class="transl_class" id="2711" title="Click to correct">बड़ा</span> <span class="transl_class" id="2712" title="Click to correct">प्रांगण</span> <span class="transl_class" id="2713" title="Click to correct">होता</span> <span class="transl_class" id="2714" title="Click to correct">था</span>, <span class="transl_class" id="2715" title="Click to correct">जिसमें</span> <span class="transl_class" id="2716" title="Click to correct">बच्चे</span> <span class="transl_class" id="2717" title="Click to correct">खेल</span> <span class="transl_class" id="2718" title="Click to correct">सकें</span> , <span class="transl_class" id="2719" title="Click to correct">गृहणियां</span> <span class="transl_class" id="2720" title="Click to correct">गप</span> <span class="transl_class" id="2721" title="Click to correct">मार</span> <span class="transl_class" id="2722" title="Click to correct">सकें</span>, <span class="transl_class" id="2723" title="Click to correct">जिन</span> <span class="transl_class" id="2724" title="Click to correct">पुरुषों</span> <span class="transl_class" id="2725" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="2726" title="Click to correct">साइकिल</span> <span class="transl_class" id="2727" title="Click to correct">चोरों</span> <span class="transl_class" id="2728" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="2729" title="Click to correct">भय</span> <span class="transl_class" id="2730" title="Click to correct">हो</span>, <span class="transl_class" id="2731" title="Click to correct">वे</span> <span class="transl_class" id="2732" title="Click to correct">रात</span> <span class="transl_class" id="2733" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2734" title="Click to correct">साइकिल</span> <span class="transl_class" id="2735" title="Click to correct">खड़ा</span> <span class="transl_class" id="2736" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="2737" title="Click to correct">सकें |</span> <span class="transl_class" id="2738" title="Click to correct">इस</span> <span class="transl_class" id="2739" title="Click to correct">समय</span> <span class="transl_class" id="2740" title="Click to correct">वहाँ</span> <span class="transl_class" id="2741" title="Click to correct">सिगडियाँ</span> <span class="transl_class" id="2742" title="Click to correct">जल</span> <span class="transl_class" id="2743" title="Click to correct">रही</span> <span class="transl_class" id="2744" title="Click to correct">थी</span> - <span class="transl_class" id="2745" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2746" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="2747" title="Click to correct">तीन</span>-<span class="transl_class" id="2748" title="Click to correct">तीन</span> ! <span class="transl_class" id="2749" title="Click to correct">अजीब</span> <span class="transl_class" id="2750" title="Click to correct">बात</span> <span class="transl_class" id="2751" title="Click to correct">थी</span> <span class="transl_class" id="2752" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="2753" title="Click to correct">तीनों</span> <span class="transl_class" id="2754" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2755" title="Click to correct">लोग</span> <span class="transl_class" id="2756" title="Click to correct">सिगडियाँ</span> <span class="transl_class" id="2757" title="Click to correct">जलाने</span> <span class="transl_class" id="2758" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="2759" title="Click to correct">लिए</span> <span class="transl_class" id="2760" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="2761" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="2762" title="Click to correct">तरह</span> <span class="transl_class" id="2763" title="Click to correct">कागज़</span> <span class="transl_class" id="2764" title="Click to correct">नहीं</span>, <span class="transl_class" id="2765" title="Click to correct">मिट्टी</span> <span class="transl_class" id="2766" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="2767" title="Click to correct">तेल</span> <span class="transl_class" id="2768" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="2769" title="Click to correct">भीगी</span> , <span class="transl_class" id="2770" title="Click to correct">शायद</span> <span class="transl_class" id="2771" title="Click to correct">भिलाई</span> <span class="transl_class" id="2772" title="Click to correct">इस्पात</span> <span class="transl_class" id="2773" title="Click to correct">संयंत्र</span> <span class="transl_class" id="2774" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="2775" title="Click to correct">लायी</span> <span class="transl_class" id="2776" title="Click to correct">गई</span> <span class="transl_class" id="2777" title="Click to correct">जूट</span> <span class="transl_class" id="2778" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="2779" title="Click to correct">रस्सियाँ</span> <span class="transl_class" id="2780" title="Click to correct">जला</span> <span class="transl_class" id="2781" title="Click to correct">रहे</span> <span class="transl_class" id="2782" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="2783" title="Click to correct">जूट</span>, <span class="transl_class" id="2784" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="2785" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="2786" title="Click to correct">किसी</span> <span class="transl_class" id="2787" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="2788" title="Click to correct">तेल</span> <span class="transl_class" id="2789" title="Click to correct">पीने</span> <span class="transl_class" id="2790" title="Click to correct">वाली</span> <span class="transl_class" id="2791" title="Click to correct">मशीन</span> <span class="transl_class" id="2792" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="2793" title="Click to correct">ऑपरेटर</span> <span class="transl_class" id="2794" title="Click to correct">खाना</span> <span class="transl_class" id="2795" title="Click to correct">खाने</span> <span class="transl_class" id="2796" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="2797" title="Click to correct">पहले</span> <span class="transl_class" id="2798" title="Click to correct">हाथ</span> <span class="transl_class" id="2799" title="Click to correct">पोंछने</span> <span class="transl_class" id="2800" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="2801" title="Click to correct">लिए</span> <span class="transl_class" id="2802" title="Click to correct">इस्तेमाल</span> <span class="transl_class" id="2803" title="Click to correct">करता</span> <span class="transl_class" id="2804" title="Click to correct">होगा</span> | <span class="transl_class" id="2805" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="2806" title="Click to correct">परेशानी</span> <span class="transl_class" id="2807" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="2808" title="Click to correct">होती</span> <span class="transl_class" id="2809" title="Click to correct">उनसे</span> <span class="transl_class" id="2810" title="Click to correct">सिगडियाँ</span> <span class="transl_class" id="2811" title="Click to correct">जलाने</span> <span class="transl_class" id="2812" title="Click to correct">में</span> | <span class="transl_class" id="2813" title="Click to correct">वातावरण</span> <span class="transl_class" id="2814" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2815" title="Click to correct">जरुर</span> <span class="transl_class" id="2816" title="Click to correct">थोड़ी</span> <span class="transl_class" id="2817" title="Click to correct">बदबू</span> <span class="transl_class" id="2818" title="Click to correct">फैली</span> <span class="transl_class" id="2819" title="Click to correct">हुई</span> <span class="transl_class" id="2820" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="2821" title="Click to correct">यही</span> <span class="transl_class" id="2822" title="Click to correct">बदबू</span> <span class="transl_class" id="2823" title="Click to correct">पूरे</span> <span class="transl_class" id="2824" title="Click to correct">सिगड़ी</span> <span class="transl_class" id="2825" title="Click to correct">जलने</span> <span class="transl_class" id="2826" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="2827" title="Click to correct">व्याप्त</span> <span class="transl_class" id="2828" title="Click to correct">रहती</span> <span class="transl_class" id="2829" title="Click to correct">थी |</span> <span class="transl_class" id="2830" title="Click to correct">इसलिए</span> <span class="transl_class" id="2831" title="Click to correct">अगर</span> <span class="transl_class" id="2832" title="Click to correct">आप</span> <span class="transl_class" id="2833" title="Click to correct">तवे</span> <span class="transl_class" id="2834" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="2835" title="Click to correct">सिंकी</span> <span class="transl_class" id="2836" title="Click to correct">रोटी</span> <span class="transl_class" id="2837" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="2838" title="Click to correct">संतुष्ट</span> <span class="transl_class" id="2839" title="Click to correct">हों</span> <span class="transl_class" id="2840" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="2841" title="Click to correct">सब</span> <span class="transl_class" id="2842" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="2843" title="Click to correct">सही</span> <span class="transl_class" id="2844" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="2845" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="2846" title="Click to correct">अगर</span> <span class="transl_class" id="2847" title="Click to correct">आप</span> <span class="transl_class" id="2848" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="2849" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="2850" title="Click to correct">तरह</span> <span class="transl_class" id="2851" title="Click to correct">पहले</span> <span class="transl_class" id="2852" title="Click to correct">तवे</span> <span class="transl_class" id="2853" title="Click to correct">पर</span>, <span class="transl_class" id="2854" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="2855" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="2856" title="Click to correct">तवा</span> <span class="transl_class" id="2857" title="Click to correct">सिगड़ी</span> <span class="transl_class" id="2858" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="2859" title="Click to correct">उतार</span> <span class="transl_class" id="2860" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="2861" title="Click to correct">सीधे</span> <span class="transl_class" id="2862" title="Click to correct">कोयले</span> <span class="transl_class" id="2863" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="2864" title="Click to correct">रोटियां</span> <span class="transl_class" id="2865" title="Click to correct">सेंकने</span> <span class="transl_class" id="2866" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="2867" title="Click to correct">आदी</span> <span class="transl_class" id="2868" title="Click to correct">हों</span> <span class="transl_class" id="2869" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="2870" title="Click to correct">ऐसी</span> <span class="transl_class" id="2871" title="Click to correct">सिगड़ियों</span> <span class="transl_class" id="2872" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="2873" title="Click to correct">आप</span> <span class="transl_class" id="2874" title="Click to correct">रोटी</span> <span class="transl_class" id="2875" title="Click to correct">जरुर</span> <span class="transl_class" id="2876" title="Click to correct">सेंक</span> <span class="transl_class" id="2877" title="Click to correct">लेंगे</span>, <span class="transl_class" id="2878" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="2879" title="Click to correct">खा</span> <span class="transl_class" id="2880" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="2881" title="Click to correct">पाएंगे |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="2882" title="Click to correct">सिगड़ियों</span> <span class="transl_class" id="2883" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="2884" title="Click to correct">धुआं</span> <span class="transl_class" id="2885" title="Click to correct">आसमान</span> <span class="transl_class" id="2886" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="2887" title="Click to correct">ओर</span> <span class="transl_class" id="2888" title="Click to correct">बढ़</span> <span class="transl_class" id="2889" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="2890" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="2891" title="Click to correct">अचानक</span> <span class="transl_class" id="2892" title="Click to correct">आकाश</span> <span class="transl_class" id="2893" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2894" title="Click to correct">दूर</span> <span class="transl_class" id="2895" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="2896" title="Click to correct">कहीं</span> <span class="transl_class" id="2897" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="2898" title="Click to correct">स्वर</span> <span class="transl_class" id="2899" title="Click to correct">लहरीं</span> <span class="transl_class" id="2900" title="Click to correct">गूंजी</span> ,"<span class="transl_class" id="2901" title="Click to correct">सा</span> <span class="transl_class" id="2902" title="Click to correct">रे</span> <span class="transl_class" id="2903" title="Click to correct">गा</span> <span class="transl_class" id="2904" title="Click to correct">मा</span> <span class="transl_class" id="2905" title="Click to correct">पा</span> <span class="transl_class" id="2906" title="Click to correct">पा</span> <span class="transl_class" id="2907" title="Click to correct">पा</span> <span class="transl_class" id="2908" title="Click to correct">पा</span> <span class="transl_class" id="2909" title="Click to correct">पा</span> <span class="transl_class" id="2910" title="Click to correct">पा</span> <span class="transl_class" id="2911" title="Click to correct">पा</span> ....."</div><div><br />
<span class="transl_class" id="2912" title="Click to correct">वैसे</span> <span class="transl_class" id="2913" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="2914" title="Click to correct">इस</span> <span class="transl_class" id="2915" title="Click to correct">गाने</span> <span class="transl_class" id="2916" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="2917" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="2918" title="Click to correct">बार</span> <span class="transl_class" id="2919" title="Click to correct">बार</span> "<span class="transl_class" id="2920" title="Click to correct">पा</span> <span class="transl_class" id="2921" title="Click to correct">पा</span> <span class="transl_class" id="2922" title="Click to correct">पा</span> " <span class="transl_class" id="2923" title="Click to correct">आता</span> <span class="transl_class" id="2924" title="Click to correct">था</span>, <span class="transl_class" id="2925" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="2926" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="2927" title="Click to correct">लगा</span> <span class="transl_class" id="2928" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="2929" title="Click to correct">ये</span> <span class="transl_class" id="2930" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="2931" title="Click to correct">ज्यादा</span> <span class="transl_class" id="2932" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="2933" title="Click to correct">गया</span> <span class="transl_class" id="2934" title="Click to correct">है</span> | <span class="transl_class" id="2935" title="Click to correct">अभी</span> <span class="transl_class" id="2936" title="Click to correct">भी</span> " <span class="transl_class" id="2937" title="Click to correct">पा</span> <span class="transl_class" id="2938" title="Click to correct">पा</span> <span class="transl_class" id="2939" title="Click to correct">पा</span> <span class="transl_class" id="2940" title="Click to correct">पा</span> " <span class="transl_class" id="2941" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="2942" title="Click to correct">चल</span> <span class="transl_class" id="2943" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="2944" title="Click to correct">था |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="2945" title="Click to correct">रिकॉर्ड</span> <span class="transl_class" id="2946" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="2947" title="Click to correct">सुई</span> <span class="transl_class" id="2948" title="Click to correct">अटक</span> <span class="transl_class" id="2949" title="Click to correct">गयी</span> <span class="transl_class" id="2950" title="Click to correct">है</span> |" <span class="transl_class" id="2951" title="Click to correct">लक्ष्मी</span> <span class="transl_class" id="2952" title="Click to correct">भैया</span> <span class="transl_class" id="2953" title="Click to correct">बोले |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="2954" title="Click to correct">रिकॉर्ड</span> <span class="transl_class" id="2955" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="2956" title="Click to correct">सुई</span> ? <span class="transl_class" id="2957" title="Click to correct">क्यों</span> <span class="transl_class" id="2958" title="Click to correct">अटक</span> <span class="transl_class" id="2959" title="Click to correct">गयी</span> <span class="transl_class" id="2960" title="Click to correct">है</span> ? " <span class="transl_class" id="2961" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="2962" title="Click to correct">पूछा |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="2963" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="2964" title="Click to correct">सकता</span> <span class="transl_class" id="2965" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="2966" title="Click to correct">रिकॉर्ड</span> <span class="transl_class" id="2967" title="Click to correct">घिस</span> <span class="transl_class" id="2968" title="Click to correct">गया</span> <span class="transl_class" id="2969" title="Click to correct">हो</span> |"</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="2970" title="Click to correct">रिकॉर्ड</span> <span class="transl_class" id="2971" title="Click to correct">क्यों</span> <span class="transl_class" id="2972" title="Click to correct">घिस</span> <span class="transl_class" id="2973" title="Click to correct">गया</span> ?"</div><div><br />
<span class="transl_class" id="2974" title="Click to correct">लक्ष्मी</span> <span class="transl_class" id="2975" title="Click to correct">भैया</span> <span class="transl_class" id="2976" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="2977" title="Click to correct">देर</span> <span class="transl_class" id="2978" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="2979" title="Click to correct">सोचते</span> <span class="transl_class" id="2980" title="Click to correct">रहे |</span> <span class="transl_class" id="2981" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="2982" title="Click to correct">बोले</span>," <span class="transl_class" id="2983" title="Click to correct">जैसे</span> <span class="transl_class" id="2984" title="Click to correct">ज्यादा</span> <span class="transl_class" id="2985" title="Click to correct">चलने</span> <span class="transl_class" id="2986" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="2987" title="Click to correct">साइकिल</span> <span class="transl_class" id="2988" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="2989" title="Click to correct">टायर</span> <span class="transl_class" id="2990" title="Click to correct">घिस</span> <span class="transl_class" id="2991" title="Click to correct">जाता</span> <span class="transl_class" id="2992" title="Click to correct">है</span>, <span class="transl_class" id="2993" title="Click to correct">वैसे</span> <span class="transl_class" id="2994" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="2995" title="Click to correct">पचास</span> <span class="transl_class" id="2996" title="Click to correct">साठ</span> <span class="transl_class" id="2997" title="Click to correct">बार</span> <span class="transl_class" id="2998" title="Click to correct">चलने</span> <span class="transl_class" id="2999" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="3000" title="Click to correct">बाद</span> <span class="transl_class" id="3001" title="Click to correct">रिकॉर्ड</span> <span class="transl_class" id="3002" title="Click to correct">घिस</span> <span class="transl_class" id="3003" title="Click to correct">जाता</span> <span class="transl_class" id="3004" title="Click to correct">है</span> |"</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="3005" title="Click to correct">घिसे</span> <span class="transl_class" id="3006" title="Click to correct">रिकॉर्ड</span> <span class="transl_class" id="3007" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="3008" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="3009" title="Click to correct">करते</span> <span class="transl_class" id="3010" title="Click to correct">हैं</span> ? " <span class="transl_class" id="3011" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="3012" title="Click to correct">अटपटा</span> <span class="transl_class" id="3013" title="Click to correct">सवाल</span> <span class="transl_class" id="3014" title="Click to correct">पूछा</span>, "<span class="transl_class" id="3015" title="Click to correct">घिसा</span> <span class="transl_class" id="3016" title="Click to correct">साइकिल</span> <span class="transl_class" id="3017" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="3018" title="Click to correct">टायर</span> <span class="transl_class" id="3019" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="3020" title="Click to correct">हम</span> <span class="transl_class" id="3021" title="Click to correct">लोग</span> <span class="transl_class" id="3022" title="Click to correct">चला</span> <span class="transl_class" id="3023" title="Click to correct">लेते</span> <span class="transl_class" id="3024" title="Click to correct">हैं</span> |"<br /><br /></div><div>
"<span class="transl_class" id="3025" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="3026" title="Click to correct">पंचर</span> <span class="transl_class" id="3027" title="Click to correct">बनाने</span> <span class="transl_class" id="3028" title="Click to correct">वाले</span> <span class="transl_class" id="3029" title="Click to correct">लोग</span> <span class="transl_class" id="3030" title="Click to correct">गेटर</span> <span class="transl_class" id="3031" title="Click to correct">डालते</span> <span class="transl_class" id="3032" title="Click to correct">हैं</span> |" <span class="transl_class" id="3033" title="Click to correct">लक्ष्मी</span> <span class="transl_class" id="3034" title="Click to correct">भैया</span> <span class="transl_class" id="3035" title="Click to correct">बोले |</span></div><div><br /></div><div>
"<span class="transl_class" id="3036" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="3037" title="Click to correct">घिसा</span> <span class="transl_class" id="3038" title="Click to correct">रिकॉर्ड</span> <span class="transl_class" id="3039" title="Click to correct">किस</span> <span class="transl_class" id="3040" title="Click to correct">काम</span> <span class="transl_class" id="3041" title="Click to correct">आता</span> <span class="transl_class" id="3042" title="Click to correct">है</span> ?"<br />
<span class="transl_class" id="3043" title="Click to correct"><br /></span></div><div><span class="transl_class" title="Click to correct">लक्ष्मी</span> <span class="transl_class" id="3044" title="Click to correct">भैया</span> <span class="transl_class" id="3045" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="3046" title="Click to correct">सोच</span> <span class="transl_class" id="3047" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="3048" title="Click to correct">पड़</span> <span class="transl_class" id="3049" title="Click to correct">गए</span> ," <span class="transl_class" id="3050" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="3051" title="Click to correct">नहीं</span> | <span class="transl_class" id="3052" title="Click to correct">शायद</span> <span class="transl_class" id="3053" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="3054" title="Click to correct">लोग</span> <span class="transl_class" id="3055" title="Click to correct">उसमें</span> <span class="transl_class" id="3056" title="Click to correct">पेंटिंग</span> <span class="transl_class" id="3057" title="Click to correct">बना</span> <span class="transl_class" id="3058" title="Click to correct">लेते</span> <span class="transl_class" id="3059" title="Click to correct">हैं</span> |"</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="3060" title="Click to correct">अच्छा</span> ?"</div><div><br />
<span class="transl_class" id="3061" title="Click to correct">अचानक</span> <span class="transl_class" id="3062" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="3063" title="Click to correct">विचार</span> <span class="transl_class" id="3064" title="Click to correct">मेरे</span> <span class="transl_class" id="3065" title="Click to correct">मन</span> <span class="transl_class" id="3066" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="3067" title="Click to correct">कौंधा |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="3068" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="3069" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="3070" title="Click to correct">दामू</span> <span class="transl_class" id="3071" title="Click to correct">चाचा</span> <span class="transl_class" id="3072" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="3073" title="Click to correct">शादी</span> <span class="transl_class" id="3074" title="Click to correct">थी</span> - <span class="transl_class" id="3075" title="Click to correct">करीब</span> <span class="transl_class" id="3076" title="Click to correct">एक</span>-<span class="transl_class" id="3077" title="Click to correct">आध</span> <span class="transl_class" id="3078" title="Click to correct">साल</span> <span class="transl_class" id="3079" title="Click to correct">पहले</span> | <span class="transl_class" id="3080" title="Click to correct">पता</span> <span class="transl_class" id="3081" title="Click to correct">नहीं</span> , <span class="transl_class" id="3082" title="Click to correct">हर्ष</span> <span class="transl_class" id="3083" title="Click to correct">मामा</span> <span class="transl_class" id="3084" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="3085" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="3086" title="Click to correct">और</span>, <span class="transl_class" id="3087" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="3088" title="Click to correct">ग्रामोफोन</span> <span class="transl_class" id="3089" title="Click to correct">लेकर</span> <span class="transl_class" id="3090" title="Click to correct">आये</span> <span class="transl_class" id="3091" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="3092" title="Click to correct">उसमें</span> <span class="transl_class" id="3093" title="Click to correct">बड़े</span> <span class="transl_class" id="3094" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="3095" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="3096" title="Click to correct">भोंपू</span> <span class="transl_class" id="3097" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="3098" title="Click to correct">अलावा</span> <span class="transl_class" id="3099" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="3100" title="Click to correct">बात</span> <span class="transl_class" id="3101" title="Click to correct">आकर्षक</span> <span class="transl_class" id="3102" title="Click to correct">लगी</span>, <span class="transl_class" id="3103" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="3104" title="Click to correct">थी</span>, <span class="transl_class" id="3105" title="Click to correct">हवा</span> <span class="transl_class" id="3106" title="Click to correct">भरने</span> <span class="transl_class" id="3107" title="Click to correct">वाला</span> <span class="transl_class" id="3108" title="Click to correct">हँडल</span> | <span class="transl_class" id="3109" title="Click to correct">अस्तु</span> , <span class="transl_class" id="3110" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="3111" title="Click to correct">समय</span> <span class="transl_class" id="3112" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="3113" title="Click to correct">गाना</span> <span class="transl_class" id="3114" title="Click to correct">बज</span> <span class="transl_class" id="3115" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="3116" title="Click to correct">था</span> , " <span class="transl_class" id="3117" title="Click to correct">महबूबा</span>, <span class="transl_class" id="3118" title="Click to correct">महबूबा</span>, <span class="transl_class" id="3119" title="Click to correct">बना</span> <span class="transl_class" id="3120" title="Click to correct">दे</span> <span class="transl_class" id="3121" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="3122" title="Click to correct">दूल्हा</span>, <span class="transl_class" id="3123" title="Click to correct">जला</span> <span class="transl_class" id="3124" title="Click to correct">दे</span> <span class="transl_class" id="3125" title="Click to correct">मेरा</span> <span class="transl_class" id="3126" title="Click to correct">चूल्हा</span> .." <span class="transl_class" id="3127" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="3128" title="Click to correct">रिकॉर्ड</span> <span class="transl_class" id="3129" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="3130" title="Click to correct">हलकी</span> <span class="transl_class" id="3131" title="Click to correct">हलकी</span> "<span class="transl_class" id="3132" title="Click to correct">किर्र</span> .. <span class="transl_class" id="3133" title="Click to correct">किर्र</span>" <span class="transl_class" id="3134" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="3135" title="Click to correct">आवाज़</span> <span class="transl_class" id="3136" title="Click to correct">आ</span> <span class="transl_class" id="3137" title="Click to correct">रही</span> <span class="transl_class" id="3138" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="3139" title="Click to correct">उज्ज्वल</span> <span class="transl_class" id="3140" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="3141" title="Click to correct">पिताजी</span> <span class="transl_class" id="3142" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="3143" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="3144" title="Click to correct">धीमी</span> <span class="transl_class" id="3145" title="Click to correct">आवाज</span> <span class="transl_class" id="3146" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="3147" title="Click to correct">कहते</span> <span class="transl_class" id="3148" title="Click to correct">सुना</span> " <span class="transl_class" id="3149" title="Click to correct">रिकॉर्ड</span> <span class="transl_class" id="3150" title="Click to correct">घिस</span> <span class="transl_class" id="3151" title="Click to correct">गया</span> <span class="transl_class" id="3152" title="Click to correct">है</span> |"</div><div><br />
<span class="transl_class" id="3153" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="3154" title="Click to correct">हाँ</span> .. <span class="transl_class" id="3155" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="3156" title="Click to correct">बाद</span> <span class="transl_class" id="3157" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="3158" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="3159" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="3160" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="3161" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="3162" title="Click to correct">गोल</span> <span class="transl_class" id="3163" title="Click to correct">चकती</span> <span class="transl_class" id="3164" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="3165" title="Click to correct">बनी</span> <span class="transl_class" id="3166" title="Click to correct">पेटिंग</span> <span class="transl_class" id="3167" title="Click to correct">देखी</span> | <span class="transl_class" id="3168" title="Click to correct">समुद्र</span> <span class="transl_class" id="3169" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="3170" title="Click to correct">किनारे</span> <span class="transl_class" id="3171" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="3172" title="Click to correct">झोपड़ी </span>..., <span class="transl_class" id="3173" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="3174" title="Click to correct">आदमी</span> <span class="transl_class" id="3175" title="Click to correct">सर</span> <span class="transl_class" id="3176" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="3177" title="Click to correct">टोकनी</span> <span class="transl_class" id="3178" title="Click to correct">लिए</span> <span class="transl_class" id="3179" title="Click to correct">जा</span> <span class="transl_class" id="3180" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="3181" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="3182" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="3183" title="Click to correct">नदी</span> <span class="transl_class" id="3184" title="Click to correct">समुद्र</span> <span class="transl_class" id="3185" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="3186" title="Click to correct">मिल</span> <span class="transl_class" id="3187" title="Click to correct">रही</span> <span class="transl_class" id="3188" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="3189" title="Click to correct">सूरज</span> <span class="transl_class" id="3190" title="Click to correct">निकल</span> <span class="transl_class" id="3191" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="3192" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="3193" title="Click to correct">पंछी</span> <span class="transl_class" id="3194" title="Click to correct">आकाश</span> <span class="transl_class" id="3195" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="3196" title="Click to correct">उड़</span> <span class="transl_class" id="3197" title="Click to correct">रहे</span> <span class="transl_class" id="3198" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="3199" title="Click to correct">दूर</span> <span class="transl_class" id="3200" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="3201" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="3202" title="Click to correct">जहाज</span> <span class="transl_class" id="3203" title="Click to correct">आ</span> <span class="transl_class" id="3204" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="3205" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="3206" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="3207" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="3208" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="3209" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="3210" title="Click to correct">गोल</span> <span class="transl_class" id="3211" title="Click to correct">सी</span> <span class="transl_class" id="3212" title="Click to correct">चकती</span> <span class="transl_class" id="3213" title="Click to correct">वाली</span> <span class="transl_class" id="3214" title="Click to correct">पेंटिंग</span> <span class="transl_class" id="3215" title="Click to correct">में</span> ! <span class="transl_class" id="3216" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="3217" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="3218" title="Click to correct">दामू</span> <span class="transl_class" id="3219" title="Click to correct">चाचा</span> <span class="transl_class" id="3220" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="3221" title="Click to correct">शादी</span> <span class="transl_class" id="3222" title="Click to correct">वाला</span> <span class="transl_class" id="3223" title="Click to correct">रिकॉर्ड</span> <span class="transl_class" id="3224" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="3225" title="Click to correct">नहीं</span> ?<br />
<br /><span class="transl_class" id="3227" title="Click to correct">लक्ष्मी के बड़े भाई व्यास भैया तो</span> <span class="transl_class" id="3228" title="Click to correct">दो</span> <span class="transl_class" id="3229" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="3230" title="Click to correct">दस</span> <span class="transl_class" id="3231" title="Click to correct">वाली</span> <span class="transl_class" id="3232" title="Click to correct">सेकंड</span> <span class="transl_class" id="3233" title="Click to correct">शिफ्ट</span> <span class="transl_class" id="3234" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="3235" title="Click to correct">गए</span> <span class="transl_class" id="3236" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="3237" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="3238" title="Click to correct">याद</span> <span class="transl_class" id="3239" title="Click to correct">है</span>, <span class="transl_class" id="3240" title="Click to correct">जब</span> <span class="transl_class" id="3241" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="3242" title="Click to correct">दो</span> <span class="transl_class" id="3243" title="Click to correct">अंकल</span> <span class="transl_class" id="3244" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="3245" title="Click to correct">भैया</span> <span class="transl_class" id="3246" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="3247" title="Click to correct">अंकल</span> <span class="transl_class" id="3248" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="3249" title="Click to correct">भैया</span> <span class="transl_class" id="3250" title="Click to correct">मिलते</span>, <span class="transl_class" id="3251" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="3252" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="3253" title="Click to correct">भिलाई</span> <span class="transl_class" id="3254" title="Click to correct">इस्पात</span> <span class="transl_class" id="3255" title="Click to correct">संयंत्र</span> <span class="transl_class" id="3256" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="3257" title="Click to correct">कर्मचारी</span> <span class="transl_class" id="3258" title="Click to correct">थे</span>, <span class="transl_class" id="3259" title="Click to correct">पहला</span> <span class="transl_class" id="3260" title="Click to correct">सवाल</span> <span class="transl_class" id="3261" title="Click to correct">यही</span> <span class="transl_class" id="3262" title="Click to correct">करते</span>,"<span class="transl_class" id="3263" title="Click to correct">तो</span> ? <span class="transl_class" id="3264" title="Click to correct">आजकल</span> <span class="transl_class" id="3265" title="Click to correct">कौन</span> <span class="transl_class" id="3266" title="Click to correct">सी</span> <span class="transl_class" id="3267" title="Click to correct">शिफ्ट</span> <span class="transl_class" id="3268" title="Click to correct">चल</span> <span class="transl_class" id="3269" title="Click to correct">रही</span> <span class="transl_class" id="3270" title="Click to correct">है</span> ?" <span class="transl_class" id="3271" title="Click to correct">यहाँ</span> <span class="transl_class" id="3272" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="3273" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="3274" title="Click to correct">हम</span> <span class="transl_class" id="3275" title="Click to correct">दोस्त</span> - <span class="transl_class" id="3276" title="Click to correct">जैसे</span> <span class="transl_class" id="3277" title="Click to correct">छोटा</span> , <span class="transl_class" id="3278" title="Click to correct">सोंगा</span> <span class="transl_class" id="3279" title="Click to correct">मगिंदर</span> <span class="transl_class" id="3280" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="3281" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="3282" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="3283" title="Click to correct">मिलता</span> <span class="transl_class" id="3284" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="3285" title="Click to correct">पूछता</span>," <span class="transl_class" id="3286" title="Click to correct">तेरे</span> <span class="transl_class" id="3287" title="Click to correct">पिताजी</span> <span class="transl_class" id="3288" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="3289" title="Click to correct">कौन</span> <span class="transl_class" id="3290" title="Click to correct">सी</span> <span class="transl_class" id="3291" title="Click to correct">शिफ्ट</span> <span class="transl_class" id="3292" title="Click to correct">चल</span> <span class="transl_class" id="3293" title="Click to correct">रही</span> <span class="transl_class" id="3294" title="Click to correct">है</span> ? " <span class="transl_class" id="3295" title="Click to correct">अच्छा</span> ? <span class="transl_class" id="3296" title="Click to correct">नाईट</span> <span class="transl_class" id="3297" title="Click to correct">शिफ्ट</span> ? <span class="transl_class" id="3298" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="3299" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="3300" title="Click to correct">डर</span> <span class="transl_class" id="3301" title="Click to correct">लगता</span> <span class="transl_class" id="3302" title="Click to correct">होगा</span> |" <span class="transl_class" id="3303" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="3304" title="Click to correct">अनायास</span> <span class="transl_class" id="3305" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="3306" title="Click to correct">पता</span> <span class="transl_class" id="3307" title="Click to correct">चल</span> <span class="transl_class" id="3308" title="Click to correct">गया</span> <span class="transl_class" id="3309" title="Click to correct">था</span> , "<span class="transl_class" id="3310" title="Click to correct">सुबह</span> <span class="transl_class" id="3311" title="Click to correct">छः</span> <span class="transl_class" id="3312" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="3313" title="Click to correct">दो</span> - <span class="transl_class" id="3314" title="Click to correct">फर्स्ट</span> <span class="transl_class" id="3315" title="Click to correct">शिफ्ट</span> .. <span class="transl_class" id="3316" title="Click to correct">दो</span> <span class="transl_class" id="3317" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="3318" title="Click to correct">दस</span> -<span class="transl_class" id="3319" title="Click to correct">सेकंड</span> <span class="transl_class" id="3320" title="Click to correct">शिफ्ट</span> , <span class="transl_class" id="3321" title="Click to correct">रात</span> <span class="transl_class" id="3322" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="3323" title="Click to correct">दस</span> <span class="transl_class" id="3324" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="3325" title="Click to correct">छः</span> - <span class="transl_class" id="3326" title="Click to correct">नाईट</span> <span class="transl_class" id="3327" title="Click to correct">शिफ्ट |</span>"</div><div><br />
<span class="transl_class" id="3328" title="Click to correct">मेरे</span> <span class="transl_class" id="3329" title="Click to correct">ज्ञान</span> <span class="transl_class" id="3330" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="3331" title="Click to correct">शशांक</span> <span class="transl_class" id="3332" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="3333" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="3334" title="Click to correct">बढ़ोतरी</span> <span class="transl_class" id="3335" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="3336" title="Click to correct">दी</span> ,"<span class="transl_class" id="3337" title="Click to correct">मेरे</span> <span class="transl_class" id="3338" title="Click to correct">पापा</span> <span class="transl_class" id="3339" title="Click to correct">हरदम</span> <span class="transl_class" id="3340" title="Click to correct">जनरल</span> <span class="transl_class" id="3341" title="Click to correct">शिफ्ट</span> <span class="transl_class" id="3342" title="Click to correct">जाते</span> <span class="transl_class" id="3343" title="Click to correct">हैं</span> |"</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="3344" title="Click to correct">जनरल</span> <span class="transl_class" id="3345" title="Click to correct">शिफ्ट</span> ?" <span class="transl_class" id="3346" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="3347" title="Click to correct">लक्ष्मी</span> <span class="transl_class" id="3348" title="Click to correct">भैया</span> <span class="transl_class" id="3349" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="3350" title="Click to correct">पूछा |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="3351" title="Click to correct">हाँ</span>, <span class="transl_class" id="3352" title="Click to correct">आठ</span> <span class="transl_class" id="3353" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="3354" title="Click to correct">चार</span> " <span class="transl_class" id="3355" title="Click to correct">उन्होंने</span> <span class="transl_class" id="3356" title="Click to correct">बताया |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="3357" title="Click to correct">ऐसा</span> <span class="transl_class" id="3358" title="Click to correct">कौन</span> <span class="transl_class" id="3359" title="Click to correct">होता</span> <span class="transl_class" id="3360" title="Click to correct">है</span> , <span class="transl_class" id="3361" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="3362" title="Click to correct">हरदम</span> <span class="transl_class" id="3363" title="Click to correct">जनरल</span> <span class="transl_class" id="3364" title="Click to correct">शिफ्ट</span> <span class="transl_class" id="3365" title="Click to correct">जाता</span> <span class="transl_class" id="3366" title="Click to correct">है</span> ?"</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="3367" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="3368" title="Click to correct">लोग</span> <span class="transl_class" id="3369" title="Click to correct">ऑफिसर</span> <span class="transl_class" id="3370" title="Click to correct">होते</span> <span class="transl_class" id="3371" title="Click to correct">हैं</span> <span class="transl_class" id="3372" title="Click to correct">वो</span> | <span class="transl_class" id="3373" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="3374" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="3375" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="3376" title="Click to correct">ऑफिस</span> <span class="transl_class" id="3377" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="3378" title="Click to correct">काम</span> <span class="transl_class" id="3379" title="Click to correct">करने</span> <span class="transl_class" id="3380" title="Click to correct">वाले</span> | वैसे <span class="transl_class" id="3381" title="Click to correct">उनकी</span> <span class="transl_class" id="3382" title="Click to correct">ड्यूटी</span> <span class="transl_class" id="3383" title="Click to correct">नौ</span> <span class="transl_class" id="3384" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="3385" title="Click to correct">पाँच</span> <span class="transl_class" id="3386" title="Click to correct">बजे</span> <span class="transl_class" id="3387" title="Click to correct">होती</span> <span class="transl_class" id="3388" title="Click to correct">है</span> |"</div><div><br />
<span class="transl_class" id="3389" title="Click to correct">तभी</span> <span class="transl_class" id="3390" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="3391" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="3392" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="3393" title="Click to correct">सुबह</span> <span class="transl_class" id="3394" title="Click to correct">नौ</span> <span class="transl_class" id="3395" title="Click to correct">बजे</span> <span class="transl_class" id="3396" title="Click to correct">ऑफिस</span> <span class="transl_class" id="3397" title="Click to correct">जाती</span> <span class="transl_class" id="3398" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="3399" title="Click to correct">रहमान</span> <span class="transl_class" id="3400" title="Click to correct">रोज</span> <span class="transl_class" id="3401" title="Click to correct">सुबह</span> <span class="transl_class" id="3402" title="Click to correct">आठ</span> <span class="transl_class" id="3403" title="Click to correct">बजे</span> <span class="transl_class" id="3404" title="Click to correct">रिक्शा</span> <span class="transl_class" id="3405" title="Click to correct">लेकर</span> <span class="transl_class" id="3406" title="Click to correct">आ</span> <span class="transl_class" id="3407" title="Click to correct">जाता</span> <span class="transl_class" id="3408" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="3409" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="3410" title="Click to correct">सीट</span> <span class="transl_class" id="3411" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="3412" title="Click to correct">बैठा</span>, <span class="transl_class" id="3413" title="Click to correct">सर</span> <span class="transl_class" id="3414" title="Click to correct">झुकाए</span> <span class="transl_class" id="3415" title="Click to correct">इंतज़ार</span> <span class="transl_class" id="3416" title="Click to correct">करते</span> <span class="transl_class" id="3417" title="Click to correct">रहता</span> <span class="transl_class" id="3418" title="Click to correct">था |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="3419" title="Click to correct">सुबह</span> <span class="transl_class" id="3420" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="3421" title="Click to correct">चावल</span> <span class="transl_class" id="3422" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="3423" title="Click to correct">व्यास</span> <span class="transl_class" id="3424" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="3425" title="Click to correct">बघार</span> <span class="transl_class" id="3426" title="Click to correct">दिया</span> <span class="transl_class" id="3427" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="3428" title="Click to correct">कहानी</span> <span class="transl_class" id="3429" title="Click to correct">सुनते</span>-<span class="transl_class" id="3430" title="Click to correct">सुनते</span> <span class="transl_class" id="3431" title="Click to correct">हम</span> <span class="transl_class" id="3432" title="Click to correct">दोनों</span> <span class="transl_class" id="3433" title="Click to correct">बैठ</span> <span class="transl_class" id="3434" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="3435" title="Click to correct">वही</span> <span class="transl_class" id="3436" title="Click to correct">बघारे</span> <span class="transl_class" id="3437" title="Click to correct">भात</span> <span class="transl_class" id="3438" title="Click to correct">खा</span> <span class="transl_class" id="3439" title="Click to correct">रहे</span> <span class="transl_class" id="3440" title="Click to correct">थे |</span></div><div> <span class="transl_class" id="3441" title="Click to correct">अचानक</span> <span class="transl_class" id="3442" title="Click to correct">दो</span> <span class="transl_class" id="3443" title="Click to correct">नन्ही</span> <span class="transl_class" id="3444" title="Click to correct">लडकियाँ</span> <span class="transl_class" id="3445" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="3446" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="3447" title="Click to correct">उछलती</span> <span class="transl_class" id="3448" title="Click to correct">कूदती</span> <span class="transl_class" id="3449" title="Click to correct">घुसी</span> - <span class="transl_class" id="3450" title="Click to correct">कटोरा</span> <span class="transl_class" id="3451" title="Click to correct">कट</span> <span class="transl_class" id="3452" title="Click to correct">बाल</span> <span class="transl_class" id="3453" title="Click to correct">वाली</span> <span class="transl_class" id="3454" title="Click to correct">बालू</span> <span class="transl_class" id="3455" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="3456" title="Click to correct">उससे</span> <span class="transl_class" id="3457" title="Click to correct">थोड़ी</span> <span class="transl_class" id="3458" title="Click to correct">बड़ी</span> - <span class="transl_class" id="3459" title="Click to correct">गुड्डी |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="3460" title="Click to correct">पोहा</span> <span class="transl_class" id="3461" title="Click to correct">खा</span> <span class="transl_class" id="3462" title="Click to correct">रहे</span> <span class="transl_class" id="3463" title="Click to correct">हो</span> ?" <span class="transl_class" id="3464" title="Click to correct">बालू</span> <span class="transl_class" id="3465" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="3466" title="Click to correct">पूछा |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="3467" title="Click to correct">हाँ</span> " <span class="transl_class" id="3468" title="Click to correct">लक्ष्मी</span> <span class="transl_class" id="3469" title="Click to correct">भैया</span> <span class="transl_class" id="3470" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="3471" title="Click to correct">संक्षिप्त</span> <span class="transl_class" id="3472" title="Click to correct">सा</span> <span class="transl_class" id="3473" title="Click to correct">जवाब</span> <span class="transl_class" id="3474" title="Click to correct">दिया |</span></div><div><br />
" <span class="transl_class" id="3475" title="Click to correct">थिन्गू</span> " गुड्डी <span class="transl_class" id="3477" title="Click to correct">अंगूठा</span> <span class="transl_class" id="3478" title="Click to correct">दिखा</span> <span class="transl_class" id="3479" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="3480" title="Click to correct">बोली</span> ,"<span class="transl_class" id="3481" title="Click to correct">ये</span> <span class="transl_class" id="3482" title="Click to correct">पोहा</span> <span class="transl_class" id="3483" title="Click to correct">कहाँ</span> <span class="transl_class" id="3484" title="Click to correct">है</span> ? <span class="transl_class" id="3485" title="Click to correct">इसमें</span> <span class="transl_class" id="3486" title="Click to correct">फल्ली</span> <span class="transl_class" id="3487" title="Click to correct">दाना</span> <span class="transl_class" id="3488" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="3489" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="3490" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="3491" title="Click to correct">नहीं</span> |"</div><div><br />
" <span class="transl_class" id="3492" title="Click to correct">फल्ली</span> <span class="transl_class" id="3493" title="Click to correct">दाना</span> <span class="transl_class" id="3494" title="Click to correct">ख़तम</span> <span class="transl_class" id="3495" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="3496" title="Click to correct">गया</span> |" <span class="transl_class" id="3497" title="Click to correct">लक्ष्मी</span> <span class="transl_class" id="3498" title="Click to correct">भैया</span> <span class="transl_class" id="3499" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="3500" title="Click to correct">जवाब</span> <span class="transl_class" id="3501" title="Click to correct">दिया |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="3502" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="3503" title="Click to correct">बाज़ार</span> <span class="transl_class" id="3504" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="3505" title="Click to correct">ले</span> <span class="transl_class" id="3506" title="Click to correct">आना</span> <span class="transl_class" id="3507" title="Click to correct">था</span> |" <span class="transl_class" id="3508" title="Click to correct">बालू</span> <span class="transl_class" id="3509" title="Click to correct">बोली |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="3510" title="Click to correct">बाज़ार</span> <span class="transl_class" id="3511" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="3512" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="3513" title="Click to correct">ख़तम</span> <span class="transl_class" id="3514" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="3515" title="Click to correct">गया</span> |"<br />
"<span class="transl_class" id="3516" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="3517" title="Click to correct">बड़े</span> <span class="transl_class" id="3518" title="Click to correct">बाज़ार</span> <span class="transl_class" id="3519" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="3520" title="Click to correct">आना</span> <span class="transl_class" id="3521" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="3522" title="Click to correct">दूऊऊर</span> <span class="transl_class" id="3523" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="3524" title="Click to correct">बड़े</span> <span class="transl_class" id="3525" title="Click to correct">बाज़ार</span> <span class="transl_class" id="3526" title="Click to correct">से</span> |"</div><div><br />
<span class="transl_class" id="3527" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="3528" title="Click to correct">कहने</span> <span class="transl_class" id="3529" title="Click to correct">वाला</span> <span class="transl_class" id="3530" title="Click to correct">था</span> - <span class="transl_class" id="3531" title="Click to correct">सिविक</span> <span class="transl_class" id="3532" title="Click to correct">सेंटर</span> ? <span class="transl_class" id="3533" title="Click to correct">तभी</span> <span class="transl_class" id="3534" title="Click to correct">बालू</span> <span class="transl_class" id="3535" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="3536" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="3537" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="3538" title="Click to correct">किसी</span> <span class="transl_class" id="3539" title="Click to correct">दक्षिण</span> <span class="transl_class" id="3540" title="Click to correct">भारतीय</span> <span class="transl_class" id="3541" title="Click to correct">भाषा</span> <span class="transl_class" id="3542" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="3543" title="Click to correct">आवाज़</span> <span class="transl_class" id="3544" title="Click to correct">लगाई</span> | <span class="transl_class" id="3545" title="Click to correct">आंधी</span> <span class="transl_class" id="3546" title="Click to correct">तूफ़ान</span> <span class="transl_class" id="3547" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="3548" title="Click to correct">तरह</span> <span class="transl_class" id="3549" title="Click to correct">जैसी</span> <span class="transl_class" id="3550" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="3551" title="Click to correct">दोनों</span> <span class="transl_class" id="3552" title="Click to correct">लड़कियां</span> <span class="transl_class" id="3553" title="Click to correct">आई</span> <span class="transl_class" id="3554" title="Click to correct">थी</span>, <span class="transl_class" id="3555" title="Click to correct">वैसे</span> <span class="transl_class" id="3556" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="3557" title="Click to correct">वापिस</span> <span class="transl_class" id="3558" title="Click to correct">चले</span> <span class="transl_class" id="3559" title="Click to correct">गयीं |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="3560" title="Click to correct">अचानक</span> <span class="transl_class" id="3561" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="3562" title="Click to correct">घरघराहट</span> <span class="transl_class" id="3563" title="Click to correct">गूंजी</span> <span class="transl_class" id="3564" title="Click to correct">ऐसे</span> <span class="transl_class" id="3565" title="Click to correct">लगा</span> , <span class="transl_class" id="3566" title="Click to correct">मानो</span> <span class="transl_class" id="3567" title="Click to correct">छत</span> <span class="transl_class" id="3568" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="3569" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="3570" title="Click to correct">हवाई</span> <span class="transl_class" id="3571" title="Click to correct">जहाज</span> <span class="transl_class" id="3572" title="Click to correct">उड़</span> <span class="transl_class" id="3573" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="3574" title="Click to correct">हो</span> | <span class="transl_class" id="3575" title="Click to correct">अरे</span> <span class="transl_class" id="3576" title="Click to correct">नहीं</span> , <span class="transl_class" id="3577" title="Click to correct">ये</span> <span class="transl_class" id="3578" title="Click to correct">मेरा</span> <span class="transl_class" id="3579" title="Click to correct">नहीं</span>, <span class="transl_class" id="3580" title="Click to correct">व्यास</span> <span class="transl_class" id="3581" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="3582" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="3583" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="3584" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="3585" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="3586" title="Click to correct">भूल</span> <span class="transl_class" id="3587" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="3588" title="Click to correct">गया</span> <span class="transl_class" id="3589" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="3590" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="3591" title="Click to correct">ऊपर</span> <span class="transl_class" id="3592" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="3593" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="3594" title="Click to correct">मंजिल</span> <span class="transl_class" id="3595" title="Click to correct">है</span> , <span class="transl_class" id="3596" title="Click to correct">जहाँ</span> <span class="transl_class" id="3597" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="3598" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="3599" title="Click to correct">रहता</span> <span class="transl_class" id="3600" title="Click to correct">है |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="3601" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="3602" title="Click to correct">घुरघुराहट</span> <span class="transl_class" id="3603" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="3604" title="Click to correct">क्षण</span> <span class="transl_class" id="3605" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="3606" title="Click to correct">लिए</span> <span class="transl_class" id="3607" title="Click to correct">शांत</span> <span class="transl_class" id="3608" title="Click to correct">हुई</span>, <span class="transl_class" id="3609" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="3610" title="Click to correct">तेज</span> <span class="transl_class" id="3611" title="Click to correct">होकर</span> <span class="transl_class" id="3612" title="Click to correct">दूसरे</span> <span class="transl_class" id="3613" title="Click to correct">कोने</span> <span class="transl_class" id="3614" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="3615" title="Click to correct">जाकर</span> <span class="transl_class" id="3616" title="Click to correct">शांत</span> <span class="transl_class" id="3617" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="3618" title="Click to correct">गयी</span> | <span class="transl_class" id="3619" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="3620" title="Click to correct">प्रश्नवाचक</span> <span class="transl_class" id="3621" title="Click to correct">निगाहों</span> <span class="transl_class" id="3622" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="3623" title="Click to correct">लक्ष्मी</span> <span class="transl_class" id="3624" title="Click to correct">भैया</span> <span class="transl_class" id="3625" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="3626" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="3627" title="Click to correct">देखा |</span></div><div><br />
"शायद <span class="transl_class" id="3628" title="Click to correct">ऊपर</span> <span class="transl_class" id="3629" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="3630" title="Click to correct">लट्टू</span> <span class="transl_class" id="3631" title="Click to correct">चला</span> <span class="transl_class" id="3632" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="3633" title="Click to correct">है</span> " <span class="transl_class" id="3634" title="Click to correct">लक्ष्मी</span> <span class="transl_class" id="3635" title="Click to correct">भैया</span> <span class="transl_class" id="3636" title="Click to correct">बोले |</span><br />
<br />
*************<br />
<br />
<span class="transl_class" id="3637" title="Click to correct">लट्टू</span> <span class="transl_class" id="3638" title="Click to correct">कहो</span> <span class="transl_class" id="3639" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="3640" title="Click to correct">भौंरा</span> - <span class="transl_class" id="3641" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="3642" title="Click to correct">लोमहर्षक</span> <span class="transl_class" id="3643" title="Click to correct">खेल</span> <span class="transl_class" id="3644" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="3645" title="Click to correct">अपनी</span> <span class="transl_class" id="3646" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="3647" title="Click to correct">विधा</span>, <span class="transl_class" id="3648" title="Click to correct">कला</span> <span class="transl_class" id="3649" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="3650" title="Click to correct">ना</span> <span class="transl_class" id="3651" title="Click to correct">जाने</span> <span class="transl_class" id="3652" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="3653" title="Click to correct">क्या</span> - <span class="transl_class" id="3654" title="Click to correct">जिसमें</span> <span class="transl_class" id="3655" title="Click to correct">पारंगत</span> <span class="transl_class" id="3656" title="Click to correct">होने</span> <span class="transl_class" id="3657" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="3658" title="Click to correct">लिए</span> <span class="transl_class" id="3659" title="Click to correct">लगन</span> <span class="transl_class" id="3660" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="3661" title="Click to correct">कठिन</span> <span class="transl_class" id="3662" title="Click to correct">परिश्रम</span> <span class="transl_class" id="3663" title="Click to correct">करना</span> <span class="transl_class" id="3664" title="Click to correct">पड़ता</span> <span class="transl_class" id="3665" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="3666" title="Click to correct">जैसा</span> <span class="transl_class" id="3667" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="3668" title="Click to correct">ज्ञात</span> <span class="transl_class" id="3669" title="Click to correct">हुआ</span> , <span class="transl_class" id="3670" title="Click to correct">आग</span> <span class="transl_class" id="3671" title="Click to correct">जलाने</span> <span class="transl_class" id="3672" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="3673" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="3674" title="Click to correct">बढ़कर</span> <span class="transl_class" id="3675" title="Click to correct">थी</span>, <span class="transl_class" id="3676" title="Click to correct">लट्टू</span> <span class="transl_class" id="3677" title="Click to correct">चलाने</span>, <span class="transl_class" id="3678" title="Click to correct">नचाने</span>, <span class="transl_class" id="3679" title="Click to correct">घुमाने</span> <span class="transl_class" id="3680" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="3681" title="Click to correct">कला</span> ! <span class="transl_class" id="3682" title="Click to correct">अजी</span> <span class="transl_class" id="3683" title="Click to correct">उसकी</span> <span class="transl_class" id="3684" title="Click to correct">अपनी</span> <span class="transl_class" id="3685" title="Click to correct">सम्पूर्ण</span> <span class="transl_class" id="3686" title="Click to correct">शब्दावली</span> <span class="transl_class" id="3687" title="Click to correct">थी</span> - " <span class="transl_class" id="3688" title="Click to correct">लड़का</span> <span class="transl_class" id="3689" title="Click to correct">छाप</span>, <span class="transl_class" id="3690" title="Click to correct">लड़की</span> <span class="transl_class" id="3691" title="Click to correct">छाप</span>, <span class="transl_class" id="3692" title="Click to correct">उपरी</span> <span class="transl_class" id="3693" title="Click to correct">ऊपर</span>, <span class="transl_class" id="3694" title="Click to correct">गूच</span> , <span class="transl_class" id="3695" title="Click to correct">हप्पू</span>, <span class="transl_class" id="3696" title="Click to correct">कतरी</span> - <span class="transl_class" id="3697" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="3698" title="Click to correct">खेल</span> <span class="transl_class" id="3699" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="3700" title="Click to correct">शुरवात</span> <span class="transl_class" id="3701" title="Click to correct">होती</span> <span class="transl_class" id="3702" title="Click to correct">थी</span> - '<span class="transl_class" id="3703" title="Click to correct">हप्पू</span> <span class="transl_class" id="3704" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="3705" title="Click to correct">बम</span> <span class="transl_class" id="3706" title="Click to correct">बम</span> <span class="transl_class" id="3707" title="Click to correct">से ' ....</span><br />
<br />
<span class="transl_class" id="3708" title="Click to correct">अब</span> <span class="transl_class" id="3709" title="Click to correct">जैसे</span> <span class="transl_class" id="3710" title="Click to correct">आपको</span> <span class="transl_class" id="3711" title="Click to correct">याद</span> <span class="transl_class" id="3712" title="Click to correct">होगा</span> <span class="transl_class" id="3713" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="3714" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="3715" title="Click to correct">कहा</span> <span class="transl_class" id="3716" title="Click to correct">था</span> - <span class="transl_class" id="3717" title="Click to correct">गोल्ड</span> <span class="transl_class" id="3718" title="Click to correct">स्पॉट</span> <span class="transl_class" id="3719" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="3720" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="3721" title="Click to correct">ढक्कन</span> <span class="transl_class" id="3722" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="3723" title="Click to correct">बहुत</span> <span class="transl_class" id="3724" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="3725" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="3726" title="Click to correct">सकता</span> <span class="transl_class" id="3727" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="3728" title="Click to correct">उसका</span> <span class="transl_class" id="3729" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="3730" title="Click to correct">उपयोग</span> <span class="transl_class" id="3731" title="Click to correct">बहुत</span> <span class="transl_class" id="3732" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="3733" title="Click to correct">सामान्य</span> <span class="transl_class" id="3734" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="3735" title="Click to correct">लट्टू</span> <span class="transl_class" id="3736" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="3737" title="Click to correct">रस्सी</span> <span class="transl_class" id="3738" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="3739" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="3740" title="Click to correct">छोर</span> <span class="transl_class" id="3741" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="3742" title="Click to correct">गांठ</span> <span class="transl_class" id="3743" title="Click to correct">बांध</span> <span class="transl_class" id="3744" title="Click to correct">दी</span> <span class="transl_class" id="3745" title="Click to correct">जाती</span> <span class="transl_class" id="3746" title="Click to correct">थी |</span> <span class="transl_class" id="3747" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="3748" title="Click to correct">गोल्ड</span> <span class="transl_class" id="3749" title="Click to correct">स्पॉट</span> <span class="transl_class" id="3750" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="3751" title="Click to correct">कोका</span> <span class="transl_class" id="3752" title="Click to correct">कोला</span> <span class="transl_class" id="3753" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="3754" title="Click to correct">फैंटा</span> <span class="transl_class" id="3755" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="3756" title="Click to correct">टीन</span> <span class="transl_class" id="3757" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="3758" title="Click to correct">ढक्कन</span> <span class="transl_class" id="3759" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="3760" title="Click to correct">बीचों</span> <span class="transl_class" id="3761" title="Click to correct">बीच</span> <span class="transl_class" id="3762" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="3763" title="Click to correct">छेद</span> <span class="transl_class" id="3764" title="Click to correct">करके</span> <span class="transl_class" id="3765" title="Click to correct">लट्टू</span> <span class="transl_class" id="3766" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="3767" title="Click to correct">रस्सी</span> <span class="transl_class" id="3768" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="3769" title="Click to correct">घुसा</span> <span class="transl_class" id="3770" title="Click to correct">दिया</span> <span class="transl_class" id="3771" title="Click to correct">जाता</span> <span class="transl_class" id="3772" title="Click to correct">था | फिर </span> <span class="transl_class" id="3774" title="Click to correct">उसे</span> <span class="transl_class" id="3775" title="Click to correct">सरका</span> <span class="transl_class" id="3776" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="3777" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="3778" title="Click to correct">छोर</span> <span class="transl_class" id="3779" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="3780" title="Click to correct">ले</span> <span class="transl_class" id="3781" title="Click to correct">जाया</span> <span class="transl_class" id="3782" title="Click to correct">जाता</span> <span class="transl_class" id="3783" title="Click to correct">था</span>, <span class="transl_class" id="3784" title="Click to correct">जहाँ</span> '<span class="transl_class" id="3785" title="Click to correct">बड़ी</span>' <span class="transl_class" id="3786" title="Click to correct">गठान</span> <span class="transl_class" id="3787" title="Click to correct">बांधी</span> <span class="transl_class" id="3788" title="Click to correct">गयी</span> <span class="transl_class" id="3789" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="3790" title="Click to correct">उसे</span> <span class="transl_class" id="3791" title="Click to correct">वहां</span> <span class="transl_class" id="3792" title="Click to correct">अटका</span> <span class="transl_class" id="3793" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="3794" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="3795" title="Click to correct">आगे</span> <span class="transl_class" id="3796" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="3797" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="3798" title="Click to correct">गांठ</span> <span class="transl_class" id="3799" title="Click to correct">बांध</span> <span class="transl_class" id="3800" title="Click to correct">दी</span> <span class="transl_class" id="3801" title="Click to correct">जाती</span> <span class="transl_class" id="3802" title="Click to correct">थी</span> , <span class="transl_class" id="3803" title="Click to correct">ताकि</span> <span class="transl_class" id="3804" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="3805" title="Click to correct">ढक्कन</span> <span class="transl_class" id="3806" title="Click to correct">रस्सी</span> <span class="transl_class" id="3807" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="3808" title="Click to correct">न</span> <span class="transl_class" id="3809" title="Click to correct">सरके</span> <span class="transl_class" id="3810" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="3811" title="Click to correct">अपनी</span> <span class="transl_class" id="3812" title="Click to correct">जगह</span> <span class="transl_class" id="3813" title="Click to correct">स्थिर</span> <span class="transl_class" id="3814" title="Click to correct">रहे</span> | <span class="transl_class" id="3815" title="Click to correct">इस</span> <span class="transl_class" id="3816" title="Click to correct">तरह</span> <span class="transl_class" id="3817" title="Click to correct">रस्सी</span> <span class="transl_class" id="3818" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="3819" title="Click to correct">पकड़</span> <span class="transl_class" id="3820" title="Click to correct">या</span> '<span class="transl_class" id="3821" title="Click to correct">मूठ</span>' <span class="transl_class" id="3822" title="Click to correct">तैयार</span> <span class="transl_class" id="3823" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="3824" title="Click to correct">जाती</span> <span class="transl_class" id="3825" title="Click to correct">थी |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="3826" title="Click to correct">मगर</span> <span class="transl_class" id="3827" title="Click to correct">मेरे</span> <span class="transl_class" id="3828" title="Click to correct">पास</span> <span class="transl_class" id="3829" title="Click to correct">लट्टू</span> <span class="transl_class" id="3830" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="3831" title="Click to correct">नहीं</span> | <span class="transl_class" id="3832" title="Click to correct">देखते</span> <span class="transl_class" id="3833" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="3834" title="Click to correct">देखते</span> <span class="transl_class" id="3835" title="Click to correct">मेरे</span> <span class="transl_class" id="3836" title="Click to correct">कई</span> <span class="transl_class" id="3837" title="Click to correct">दोस्तों</span> <span class="transl_class" id="3838" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="3839" title="Click to correct">लट्टू </span><span class="transl_class" id="3840" title="Click to correct">चलाने</span> <span class="transl_class" id="3841" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="3842" title="Click to correct">उपलब्धि</span> <span class="transl_class" id="3843" title="Click to correct">हासिल</span> <span class="transl_class" id="3844" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="3845" title="Click to correct">ली</span> | <span class="transl_class" id="3846" title="Click to correct">बबन</span> <span class="transl_class" id="3847" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="3848" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="3849" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="3850" title="Click to correct">अलावा</span> <span class="transl_class" id="3851" title="Click to correct">सुरेश</span> <span class="transl_class" id="3852" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="3853" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="3854" title="Click to correct">लट्टू</span> <span class="transl_class" id="3855" title="Click to correct">चलाना</span> <span class="transl_class" id="3856" title="Click to correct">सीख</span> <span class="transl_class" id="3857" title="Click to correct">लिया</span> <span class="transl_class" id="3858" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="3859" title="Click to correct">सोगा</span> <span class="transl_class" id="3860" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="3861" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="3862" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="3863" title="Click to correct">मामा</span> <span class="transl_class" id="3864" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="3865" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="3866" title="Click to correct">लट्टू</span> <span class="transl_class" id="3867" title="Click to correct">दिया</span> <span class="transl_class" id="3868" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="3869" title="Click to correct">उसने</span> <span class="transl_class" id="3870" title="Click to correct">लड़की</span> <span class="transl_class" id="3871" title="Click to correct">छाप</span> <span class="transl_class" id="3872" title="Click to correct">चलाना</span> <span class="transl_class" id="3873" title="Click to correct">सीख</span> <span class="transl_class" id="3874" title="Click to correct">लिया</span> | <span class="transl_class" id="3875" title="Click to correct">आजकल</span> <span class="transl_class" id="3876" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="3877" title="Click to correct">लड़का</span> <span class="transl_class" id="3878" title="Click to correct">छाप</span> <span class="transl_class" id="3879" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="3880" title="Click to correct">कोशिश</span> <span class="transl_class" id="3881" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="3882" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="3883" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="3884" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="3885" title="Click to correct">दिन</span> <span class="transl_class" id="3886" title="Click to correct">अनिल</span> <span class="transl_class" id="3887" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="3888" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="3889" title="Click to correct">दावा</span> <span class="transl_class" id="3890" title="Click to correct">ठोंक</span> <span class="transl_class" id="3891" title="Click to correct">दिया</span> <span class="transl_class" id="3892" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="3893" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="3894" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="3895" title="Click to correct">लट्टू</span> <span class="transl_class" id="3896" title="Click to correct">चला</span> <span class="transl_class" id="3897" title="Click to correct">सकता</span> <span class="transl_class" id="3898" title="Click to correct">है</span> | <span class="transl_class" id="3899" title="Click to correct">छोटे</span> <span class="transl_class" id="3900" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="3901" title="Click to correct">कहना</span> <span class="transl_class" id="3902" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="3903" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="3904" title="Click to correct">वह</span> '<span class="transl_class" id="3905" title="Click to correct">कतरी</span>' <span class="transl_class" id="3906" title="Click to correct">चला</span> <span class="transl_class" id="3907" title="Click to correct">सकता</span> <span class="transl_class" id="3908" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="3909" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="3910" title="Click to correct">जल्दी</span> <span class="transl_class" id="3911" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="3912" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="3913" title="Click to correct">पूरी</span> <span class="transl_class" id="3914" title="Click to correct">तरह</span> <span class="transl_class" id="3915" title="Click to correct">चलाना</span> <span class="transl_class" id="3916" title="Click to correct">सीख</span> <span class="transl_class" id="3917" title="Click to correct">जायेगा |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="3918" title="Click to correct">हे</span> <span class="transl_class" id="3919" title="Click to correct">भगवान्</span> <span class="transl_class" id="3920" title="Click to correct">लगता</span> <span class="transl_class" id="3921" title="Click to correct">है</span>, <span class="transl_class" id="3922" title="Click to correct">मेरे</span> <span class="transl_class" id="3923" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="3924" title="Click to correct">शशांक</span> <span class="transl_class" id="3925" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="3926" title="Click to correct">सिवाय</span> <span class="transl_class" id="3927" title="Click to correct">सब</span> <span class="transl_class" id="3928" title="Click to correct">सीख</span> <span class="transl_class" id="3929" title="Click to correct">गए</span> <span class="transl_class" id="3930" title="Click to correct">हैं</span> <span class="transl_class" id="3931" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="3932" title="Click to correct">सीखने की प्रक्रिया में अग्रसर हैं | </span><span class="transl_class" id="3933" title="Click to correct">इससे</span> <span class="transl_class" id="3934" title="Click to correct">पहले</span> <span class="transl_class" id="3935" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="3936" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="3937" title="Click to correct">दिन</span> शशांक <span class="transl_class" id="3939" title="Click to correct">चश्मा</span> <span class="transl_class" id="3940" title="Click to correct">ठीक</span> <span class="transl_class" id="3941" title="Click to correct">करते</span>, <span class="transl_class" id="3942" title="Click to correct">बत्तीसी</span> <span class="transl_class" id="3943" title="Click to correct">दिखाते</span> <span class="transl_class" id="3944" title="Click to correct">हुए</span> <span class="transl_class" id="3945" title="Click to correct">उद्घोषणा </span><span class="transl_class" id="3946" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="3947" title="Click to correct">दे</span> ,<span class="transl_class" id="3948" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="3949" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="3950" title="Click to correct">करना</span> <span class="transl_class" id="3951" title="Click to correct">पड़ेगा</span> | <span class="transl_class" id="3952" title="Click to correct">वरना</span> <span class="transl_class" id="3953" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="3954" title="Click to correct">मुंह</span> <span class="transl_class" id="3955" title="Click to correct">दिखाने</span> <span class="transl_class" id="3956" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="3957" title="Click to correct">काबिल</span> <span class="transl_class" id="3958" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="3959" title="Click to correct">रहूँगा |</span></div><div><span class="transl_class" title="Click to correct"><br /></span></div><div>
<span class="transl_class" id="3960" title="Click to correct">बबलू</span> <span class="transl_class" id="3961" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="3962" title="Click to correct">पास</span> <span class="transl_class" id="3963" title="Click to correct">लट्टू</span> <span class="transl_class" id="3964" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="3965" title="Click to correct">था</span>, <span class="transl_class" id="3966" title="Click to correct">जिसकी</span> '<span class="transl_class" id="3967" title="Click to correct">नुक्की</span>' <span class="transl_class" id="3968" title="Click to correct">काफी</span> <span class="transl_class" id="3969" title="Click to correct">बड़ी</span> <span class="transl_class" id="3970" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="3971" title="Click to correct">जब</span> <span class="transl_class" id="3972" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="3973" title="Click to correct">स्कूल</span> <span class="transl_class" id="3974" title="Click to correct">जाता</span>, <span class="transl_class" id="3975" title="Click to correct">तब</span> <span class="transl_class" id="3976" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="3977" title="Click to correct">चोरी</span> <span class="transl_class" id="3978" title="Click to correct">छिपे</span> <span class="transl_class" id="3979" title="Click to correct">कोशिश</span> <span class="transl_class" id="3980" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="3981" title="Click to correct">सकता</span> <span class="transl_class" id="3982" title="Click to correct">था</span> , <span class="transl_class" id="3983" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="3984" title="Click to correct">हिम्मत</span> <span class="transl_class" id="3985" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="3986" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="3987" title="Click to correct">पड़ती</span> <span class="transl_class" id="3988" title="Click to correct">थी | </span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="3989" title="Click to correct">अगर</span> <span class="transl_class" id="3990" title="Click to correct">उन्हें</span> <span class="transl_class" id="3991" title="Click to correct">जरा</span> <span class="transl_class" id="3992" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="3993" title="Click to correct">भनक</span> <span class="transl_class" id="3994" title="Click to correct">पड़ती</span> <span class="transl_class" id="3995" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="3996" title="Click to correct">किसी</span> <span class="transl_class" id="3997" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="3998" title="Click to correct">उसका</span> <span class="transl_class" id="3999" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="4000" title="Click to correct">सामान</span> <span class="transl_class" id="4001" title="Click to correct">छुआ</span> <span class="transl_class" id="4002" title="Click to correct">है</span> , <span class="transl_class" id="4003" title="Click to correct">उसकी</span> <span class="transl_class" id="4004" title="Click to correct">लानत-</span><span class="transl_class" id="4005" title="Click to correct">मानत</span> <span class="transl_class" id="4006" title="Click to correct">तय</span> <span class="transl_class" id="4007" title="Click to correct">थी| |</span><br />
<br />
*************</div><div><br />
<span class="transl_class" id="4008" title="Click to correct">आशा</span> <span class="transl_class" id="4009" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="4010" title="Click to correct">बेबी</span> <span class="transl_class" id="4011" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="4012" title="Click to correct">चिढ़ाने </span><span class="transl_class" id="4013" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="4014" title="Click to correct">कोशिश</span> <span class="transl_class" id="4015" title="Click to correct">क़ी</span> ," <span class="transl_class" id="4016" title="Click to correct">बेबी</span> <span class="transl_class" id="4017" title="Click to correct">जलेबी</span> ..."</div><div><br />
<span class="transl_class" id="4018" title="Click to correct">बेबी</span> <span class="transl_class" id="4019" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="4020" title="Click to correct">करारा</span> <span class="transl_class" id="4021" title="Click to correct">जवाब</span> <span class="transl_class" id="4022" title="Click to correct">दिया</span> ,"<span class="transl_class" id="4023" title="Click to correct">आशा</span> , <span class="transl_class" id="4024" title="Click to correct">भाषा</span> ..." <span class="transl_class" id="4025" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="4026" title="Click to correct">जाते</span> <span class="transl_class" id="4027" title="Click to correct">जाते</span> <span class="transl_class" id="4028" title="Click to correct">दोहत्थड़</span> <span class="transl_class" id="4029" title="Click to correct">जड़</span> <span class="transl_class" id="4030" title="Click to correct">दिया</span> ,"... <span class="transl_class" id="4031" title="Click to correct">तमाशा</span> "</div><div><br />
<span class="transl_class" id="4032" title="Click to correct">मेरे</span> <span class="transl_class" id="4033" title="Click to correct">ज्ञान</span> <span class="transl_class" id="4034" title="Click to correct">चक्षु</span> <span class="transl_class" id="4035" title="Click to correct">अनायास</span> <span class="transl_class" id="4036" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="4037" title="Click to correct">खुल</span> <span class="transl_class" id="4038" title="Click to correct">गए</span> !!!</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="4039" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="4040" title="Click to correct">ये</span> <span class="transl_class" id="4041" title="Click to correct">बात</span> <span class="transl_class" id="4042" title="Click to correct">है</span> .." <span class="transl_class" id="4043" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="4044" title="Click to correct">मन</span> <span class="transl_class" id="4045" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="4046" title="Click to correct">मन</span> <span class="transl_class" id="4047" title="Click to correct">सोचा</span> ," <span class="transl_class" id="4048" title="Click to correct">अब</span> <span class="transl_class" id="4049" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="4050" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="4051" title="Click to correct">बोल</span> <span class="transl_class" id="4052" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="4053" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="4054" title="Click to correct">देखे</span> ..."</div><div><br />
<span class="transl_class" id="4055" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="4056" title="Click to correct">अगले</span> <span class="transl_class" id="4057" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="4058" title="Click to correct">दिन</span> <span class="transl_class" id="4059" title="Click to correct">शंकर</span> <span class="transl_class" id="4060" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="4061" title="Click to correct">भाई</span> <span class="transl_class" id="4062" title="Click to correct">अंकू</span> <span class="transl_class" id="4063" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="4064" title="Click to correct">मेरी</span> <span class="transl_class" id="4065" title="Click to correct">हाथापाई</span> <span class="transl_class" id="4066" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="4067" title="Click to correct">गयी</span> <span class="transl_class" id="4068" title="Click to correct">उसने</span> <span class="transl_class" id="4069" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="4070" title="Click to correct">चिढाने</span> <span class="transl_class" id="4071" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="4072" title="Click to correct">कोशिश</span> <span class="transl_class" id="4073" title="Click to correct">क़ी</span> ," <span class="transl_class" id="4074" title="Click to correct">छत्तीसगढ़िया</span> , <span class="transl_class" id="4075" title="Click to correct">बत्तीस</span> <span class="transl_class" id="4076" title="Click to correct">दांत</span>.."</div><div><br />
<span class="transl_class" id="4077" title="Click to correct">मेरे</span> <span class="transl_class" id="4078" title="Click to correct">मुंह</span> <span class="transl_class" id="4079" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="4080" title="Click to correct">वाक्यांश</span> <span class="transl_class" id="4081" title="Click to correct">प्रतिवाद</span> <span class="transl_class" id="4082" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="4083" title="Click to correct">रूप</span> <span class="transl_class" id="4084" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="4085" title="Click to correct">बरबस</span> <span class="transl_class" id="4086" title="Click to correct">फूट</span> <span class="transl_class" id="4087" title="Click to correct">पड़ा</span> ," <span class="transl_class" id="4088" title="Click to correct">बंगाली</span> <span class="transl_class" id="4089" title="Click to correct">बाबू</span> , <span class="transl_class" id="4090" title="Click to correct">सड़ी</span> <span class="transl_class" id="4091" title="Click to correct">मच्छी</span> <span class="transl_class" id="4092" title="Click to correct">खाबो</span>, <span class="transl_class" id="4093" title="Click to correct">हाथ</span> <span class="transl_class" id="4094" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="4095" title="Click to correct">लोटा</span>, <span class="transl_class" id="4096" title="Click to correct">मुंह</span> <span class="transl_class" id="4097" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="4098" title="Click to correct">धोता</span> |"<br />
<br />
<span class="transl_class" id="4099" title="Click to correct">नहीं</span>, <span class="transl_class" id="4100" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="4101" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="4102" title="Click to correct">वाल्मीकि</span> <span class="transl_class" id="4103" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="4104" title="Click to correct">था</span> , <span class="transl_class" id="4105" title="Click to correct">ना</span> <span class="transl_class" id="4106" title="Click to correct">ये</span> <span class="transl_class" id="4107" title="Click to correct">मेरी</span> <span class="transl_class" id="4108" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="4109" title="Click to correct">सर्वथा</span> <span class="transl_class" id="4110" title="Click to correct">अप्रकाशित</span>,<span class="transl_class" id="4111" title="Click to correct">अप्रसारित</span> , <span class="transl_class" id="4112" title="Click to correct">मौलिक</span> <span class="transl_class" id="4113" title="Click to correct">कवितावली</span> <span class="transl_class" id="4114" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="4115" title="Click to correct">बल्कि</span> <span class="transl_class" id="4116" title="Click to correct">ऐसे</span> <span class="transl_class" id="4117" title="Click to correct">जुमले</span> <span class="transl_class" id="4118" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="4119" title="Click to correct">जब</span> <span class="transl_class" id="4120" title="Click to correct">देखो</span> <span class="transl_class" id="4121" title="Click to correct">तब</span>, <span class="transl_class" id="4122" title="Click to correct">सड़क</span> <span class="transl_class" id="4123" title="Click to correct">इक्कीस</span> <span class="transl_class" id="4124" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="4125" title="Click to correct">बाइस</span> <span class="transl_class" id="4126" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="4127" title="Click to correct">बीच</span> <span class="transl_class" id="4128" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="4129" title="Click to correct">मैदान</span> <span class="transl_class" id="4130" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="4131" title="Click to correct">उछलते</span> <span class="transl_class" id="4132" title="Click to correct">रहते</span> <span class="transl_class" id="4133" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="4134" title="Click to correct">इतना</span> <span class="transl_class" id="4135" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="4136" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="4137" title="Click to correct">मालूम</span> <span class="transl_class" id="4138" title="Click to correct">चल</span> <span class="transl_class" id="4139" title="Click to correct">गया</span> <span class="transl_class" id="4140" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="4141" title="Click to correct">क़ि</span> <span class="transl_class" id="4142" title="Click to correct">सबके</span> <span class="transl_class" id="4143" title="Click to correct">ढोल</span> <span class="transl_class" id="4144" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="4145" title="Click to correct">पोल</span> <span class="transl_class" id="4146" title="Click to correct">है</span> | <span class="transl_class" id="4147" title="Click to correct">अगर</span> <span class="transl_class" id="4148" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="4149" title="Click to correct">तुम्हारे</span> <span class="transl_class" id="4150" title="Click to correct">गले</span> <span class="transl_class" id="4151" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="4152" title="Click to correct">लटका</span> <span class="transl_class" id="4153" title="Click to correct">ढोल</span> <span class="transl_class" id="4154" title="Click to correct">पीटना</span> <span class="transl_class" id="4155" title="Click to correct">चाहे</span> <span class="transl_class" id="4156" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="4157" title="Click to correct">तुम</span> <span class="transl_class" id="4158" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="4159" title="Click to correct">गले</span> <span class="transl_class" id="4160" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="4161" title="Click to correct">लटका</span> <span class="transl_class" id="4162" title="Click to correct">नगाड़ा</span> <span class="transl_class" id="4163" title="Click to correct">बजा</span> <span class="transl_class" id="4164" title="Click to correct">डालो |</span><br />
<br />
<span class="transl_class" id="4165" title="Click to correct">अब</span> <span class="transl_class" id="4166" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="4167" title="Click to correct">शराफत</span> <span class="transl_class" id="4168" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="4169" title="Click to correct">चक्का</span> <span class="transl_class" id="4170" title="Click to correct">चला</span> <span class="transl_class" id="4171" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="4172" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="4173" title="Click to correct">बबन</span> की <span class="transl_class" id="4175" title="Click to correct">बहनें</span> , <span class="transl_class" id="4176" title="Click to correct">संध्या</span> <span class="transl_class" id="4177" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="4178" title="Click to correct">सुषमा</span>, <span class="transl_class" id="4179" title="Click to correct">पाटिल</span> <span class="transl_class" id="4180" title="Click to correct">साहब</span> <span class="transl_class" id="4181" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="4182" title="Click to correct">लड़कियां</span> <span class="transl_class" id="4183" title="Click to correct">छोटी</span> <span class="transl_class" id="4184" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="4185" title="Click to correct">मधु</span> - <span class="transl_class" id="4186" title="Click to correct">रबर</span> <span class="transl_class" id="4187" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="4188" title="Click to correct">रिंग</span> <span class="transl_class" id="4189" title="Click to correct">से</span> "<span class="transl_class" id="4190" title="Click to correct">कैच</span>- <span class="transl_class" id="4191" title="Click to correct">कैच</span> " <span class="transl_class" id="4192" title="Click to correct">खेल</span> <span class="transl_class" id="4193" title="Click to correct">रहे</span> <span class="transl_class" id="4194" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="4195" title="Click to correct">अचानक</span> <span class="transl_class" id="4196" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="4197" title="Click to correct">रिंग</span> <span class="transl_class" id="4198" title="Click to correct">मेरे</span> <span class="transl_class" id="4199" title="Click to correct">पीठ</span> <span class="transl_class" id="4200" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="4201" title="Click to correct">टकराई</span> | <span class="transl_class" id="4202" title="Click to correct">छोटी</span> <span class="transl_class" id="4203" title="Click to correct">चिल्लाई</span> ,"<span class="transl_class" id="4204" title="Click to correct">छत्तीसगढ़िया</span> <span class="transl_class" id="4205" title="Click to correct">बत्तीस</span> <span class="transl_class" id="4206" title="Click to correct">दांत</span> ..."<br />
<br />
<span class="transl_class" id="4207" title="Click to correct">मेरा</span> <span class="transl_class" id="4208" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="4209" title="Click to correct">गुस्सा</span> <span class="transl_class" id="4210" title="Click to correct">बरपा</span> | <span class="transl_class" id="4211" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="4212" title="Click to correct">उसका</span> <span class="transl_class" id="4213" title="Click to correct">व्यंग्य</span> <span class="transl_class" id="4214" title="Click to correct">काटकर</span> <span class="transl_class" id="4215" title="Click to correct">फट</span> <span class="transl_class" id="4216" title="Click to correct">पड़ा</span>," <span class="transl_class" id="4217" title="Click to correct">ऊपर</span> <span class="transl_class" id="4218" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="4219" title="Click to correct">गिरी</span> <span class="transl_class" id="4220" title="Click to correct">लाठी</span>, <span class="transl_class" id="4221" title="Click to correct">सब</span> <span class="transl_class" id="4222" title="Click to correct">मर</span> <span class="transl_class" id="4223" title="Click to correct">गए</span> <span class="transl_class" id="4224" title="Click to correct">मराठी</span> .."</div><div><br />
<span class="transl_class" id="4225" title="Click to correct">बोलकर</span>, <span class="transl_class" id="4226" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="4227" title="Click to correct">चक्का</span> <span class="transl_class" id="4228" title="Click to correct">दोनों</span> <span class="transl_class" id="4229" title="Click to correct">हाथों</span> <span class="transl_class" id="4230" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="4231" title="Click to correct">उठाकर</span> <span class="transl_class" id="4232" title="Click to correct">भागा</span> | <span class="transl_class" id="4233" title="Click to correct">छोटी</span> <span class="transl_class" id="4234" title="Click to correct">सन्न</span> <span class="transl_class" id="4235" title="Click to correct">रह</span> <span class="transl_class" id="4236" title="Click to correct">गयी</span> | <span class="transl_class" id="4237" title="Click to correct">उसे</span> <span class="transl_class" id="4238" title="Click to correct">मुझसे</span> <span class="transl_class" id="4239" title="Click to correct">इस</span> <span class="transl_class" id="4240" title="Click to correct">तरह</span> <span class="transl_class" id="4241" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="4242" title="Click to correct">प्रतिवाद</span> की <span class="transl_class" id="4244" title="Click to correct">उम्मीद</span> <span class="transl_class" id="4245" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="4246" title="Click to correct">थी</span> |<span class="transl_class" id="4247" title="Click to correct">उसकी</span> <span class="transl_class" id="4248" title="Click to correct">प्रतिक्रियाएँ</span> <span class="transl_class" id="4249" title="Click to correct">मेरा</span> <span class="transl_class" id="4250" title="Click to correct">पीछा</span> <span class="transl_class" id="4251" title="Click to correct">करती</span> <span class="transl_class" id="4252" title="Click to correct">रही</span> ," <span class="transl_class" id="4253" title="Click to correct">बदमाश</span> , <span class="transl_class" id="4254" title="Click to correct">हरामी</span> ... बद्तमीज़ ... ! <span class="transl_class" id="4255" title="Click to correct">जवाब</span> <span class="transl_class" id="4256" title="Click to correct">देने</span> <span class="transl_class" id="4257" title="Click to correct">लगा</span> <span class="transl_class" id="4258" title="Click to correct">है</span> | <span class="transl_class" id="4259" title="Click to correct">आंटी</span> <span class="transl_class" id="4260" title="Click to correct">जी</span> (<span class="transl_class" id="4261" title="Click to correct">मेरी</span> <span class="transl_class" id="4262" title="Click to correct">माँ</span> ) <span class="transl_class" id="4263" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="4264" title="Click to correct">बताएँगे</span> ..."<br />
<br />
<span class="transl_class" id="4265" title="Click to correct">कई</span> <span class="transl_class" id="4266" title="Click to correct">बार</span> <span class="transl_class" id="4267" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="4268" title="Click to correct">लगा</span> <span class="transl_class" id="4269" title="Click to correct">क़ि</span> <span class="transl_class" id="4270" title="Click to correct">आक्रमण</span> <span class="transl_class" id="4271" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="4272" title="Click to correct">रक्षण</span> <span class="transl_class" id="4273" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="4274" title="Click to correct">सर्वोत्तम</span> <span class="transl_class" id="4275" title="Click to correct">तरीका</span> <span class="transl_class" id="4276" title="Click to correct">है</span> |<span class="transl_class" id="4277" title="Click to correct">अनिल</span> <span class="transl_class" id="4278" title="Click to correct">हरदम</span> <span class="transl_class" id="4279" title="Click to correct">मुस्कुराते</span> <span class="transl_class" id="4280" title="Click to correct">रहता</span> <span class="transl_class" id="4281" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="4282" title="Click to correct">उसकी</span> <span class="transl_class" id="4283" title="Click to correct">चाल</span> <span class="transl_class" id="4284" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="4285" title="Click to correct">पहलवान की</span> <span class="transl_class" id="4286" title="Click to correct">चाल</span> <span class="transl_class" id="4287" title="Click to correct">थी</span> |<span class="transl_class" id="4288" title="Click to correct">हाथ</span> <span class="transl_class" id="4289" title="Click to correct">बाकी</span> <span class="transl_class" id="4290" title="Click to correct">शरीर</span> <span class="transl_class" id="4291" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="4292" title="Click to correct">छह</span> <span class="transl_class" id="4293" title="Click to correct">इंच</span> <span class="transl_class" id="4294" title="Click to correct">दूर</span> , <span class="transl_class" id="4295" title="Click to correct">कोहनी</span> <span class="transl_class" id="4296" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="4297" title="Click to correct">समकोण</span> <span class="transl_class" id="4298" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="4299" title="Click to correct">मुड़े</span> <span class="transl_class" id="4300" title="Click to correct">होते</span> | "<span class="transl_class" id="4301" title="Click to correct">चोर</span> <span class="transl_class" id="4302" title="Click to correct">पुलिस</span>" <span class="transl_class" id="4303" title="Click to correct">खेलते</span> <span class="transl_class" id="4304" title="Click to correct">समय</span> <span class="transl_class" id="4305" title="Click to correct">हम</span> <span class="transl_class" id="4306" title="Click to correct">उसे</span> "<span class="transl_class" id="4307" title="Click to correct">पुलिस</span>" <span class="transl_class" id="4308" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="4309" title="Click to correct">बनाया</span> <span class="transl_class" id="4310" title="Click to correct">करते</span> <span class="transl_class" id="4311" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="4312" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="4313" title="Click to correct">मान</span> <span class="transl_class" id="4314" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="4315" title="Click to correct">जाता</span> | <span class="transl_class" id="4316" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="4317" title="Click to correct">दिन</span> <span class="transl_class" id="4318" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="4319" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="4320" title="Click to correct">चोर</span> <span class="transl_class" id="4321" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="4322" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="4323" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="4324" title="Click to correct">पुलिस | </span> <span class="transl_class" id="4325" title="Click to correct">बाकी</span> <span class="transl_class" id="4326" title="Click to correct">सबको</span> <span class="transl_class" id="4327" title="Click to correct">छोड़कर</span> <span class="transl_class" id="4328" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="4329" title="Click to correct">मेरे</span> <span class="transl_class" id="4330" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="4331" title="Click to correct">पीछे</span> <span class="transl_class" id="4332" title="Click to correct">पड़</span> <span class="transl_class" id="4333" title="Click to correct">गया</span> | <span class="transl_class" id="4334" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="4335" title="Click to correct">पकड़</span> <span class="transl_class" id="4336" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="4337" title="Click to correct">लिया</span> | <span class="transl_class" id="4338" title="Click to correct">सदानंद</span> <span class="transl_class" id="4339" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="4340" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="4341" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="4342" title="Click to correct">सामने</span> <span class="transl_class" id="4343" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="4344" title="Click to correct">खम्बा</span> <span class="transl_class" id="4345" title="Click to correct">पोलिस</span> <span class="transl_class" id="4346" title="Click to correct">स्टेशन</span> <span class="transl_class" id="4347" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="4348" title="Click to correct">अगर</span> <span class="transl_class" id="4349" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="4350" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="4351" title="Click to correct">खम्बे</span> <span class="transl_class" id="4352" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="4353" title="Click to correct">छुआ</span> <span class="transl_class" id="4354" title="Click to correct">देता</span> <span class="transl_class" id="4355" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="4356" title="Click to correct">मैं</span> "<span class="transl_class" id="4357" title="Click to correct">आउट</span> " <span class="transl_class" id="4358" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="4359" title="Click to correct">जाता</span> | <span class="transl_class" id="4360" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="4361" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="4362" title="Click to correct">घसीट</span> <span class="transl_class" id="4363" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="4364" title="Click to correct">खम्बे</span> <span class="transl_class" id="4365" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="4366" title="Click to correct">पास</span> <span class="transl_class" id="4367" title="Click to correct">ले</span> <span class="transl_class" id="4368" title="Click to correct">जाने</span> <span class="transl_class" id="4369" title="Click to correct">लगा</span> | <span class="transl_class" id="4370" title="Click to correct">उसकी</span> <span class="transl_class" id="4371" title="Click to correct">पकड़</span> <span class="transl_class" id="4372" title="Click to correct">वाकई</span> <span class="transl_class" id="4373" title="Click to correct">मजबूत</span> <span class="transl_class" id="4374" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="4375" title="Click to correct">मेरी</span> <span class="transl_class" id="4376" title="Click to correct">कलाइयाँ</span> <span class="transl_class" id="4377" title="Click to correct">सुन्न</span> <span class="transl_class" id="4378" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="4379" title="Click to correct">गयी |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="4380" title="Click to correct">चुटइय्याधारी</span> <span class="transl_class" id="4381" title="Click to correct">नाम</span> <span class="transl_class" id="4382" title="Click to correct">बिहारी</span> " <span class="transl_class" id="4383" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="4384" title="Click to correct">उसे</span> <span class="transl_class" id="4385" title="Click to correct">चिढाया |</span><span class="transl_class" id="4386" title="Click to correct">उसका</span> <span class="transl_class" id="4387" title="Click to correct">चेहरा</span> <span class="transl_class" id="4388" title="Click to correct">लाल</span> <span class="transl_class" id="4389" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="4390" title="Click to correct">गया | </span></div><div>
<br />
<span class="transl_class" id="4391" title="Click to correct">सोगा</span> , <span class="transl_class" id="4392" title="Click to correct">मगिंदर</span> , <span class="transl_class" id="4393" title="Click to correct">छोटा</span> <span class="transl_class" id="4394" title="Click to correct">सुरेश</span>, <span class="transl_class" id="4395" title="Click to correct">बड़ा</span> <span class="transl_class" id="4396" title="Click to correct">सुरेश</span> -<span class="transl_class" id="4397" title="Click to correct">सारे</span> <span class="transl_class" id="4398" title="Click to correct">दक्षिण</span> <span class="transl_class" id="4399" title="Click to correct">भारतीय</span> <span class="transl_class" id="4400" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="4401" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="4402" title="Click to correct">दर्जे</span> <span class="transl_class" id="4403" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="4404" title="Click to correct">डाल</span> <span class="transl_class" id="4405" title="Click to correct">दिए</span> <span class="transl_class" id="4406" title="Click to correct">गए</span> | <span class="transl_class" id="4407" title="Click to correct">उनकी</span> <span class="transl_class" id="4408" title="Click to correct">पहचान</span> <span class="transl_class" id="4409" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="4410" title="Click to correct">लिए</span> <span class="transl_class" id="4411" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="4412" title="Click to correct">कवितावली</span> <span class="transl_class" id="4413" title="Click to correct">नहीं</span>, <span class="transl_class" id="4414" title="Click to correct">केवल</span> <span class="transl_class" id="4415" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="4416" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="4417" title="Click to correct">शब्द</span> <span class="transl_class" id="4418" title="Click to correct">काफी</span> <span class="transl_class" id="4419" title="Click to correct">था</span> - "<span class="transl_class" id="4420" title="Click to correct">अन्ना</span>" | <span class="transl_class" id="4421" title="Click to correct">अब</span> <span class="transl_class" id="4422" title="Click to correct">इतनी</span> <span class="transl_class" id="4423" title="Click to correct">समझ</span> <span class="transl_class" id="4424" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="4425" title="Click to correct">थी</span> <span class="transl_class" id="4426" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="4427" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="4428" title="Click to correct">दक्षिण</span> <span class="transl_class" id="4429" title="Click to correct">भारत</span> <span class="transl_class" id="4430" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="4431" title="Click to correct">चार</span> - <span class="transl_class" id="4432" title="Click to correct">चार</span> <span class="transl_class" id="4433" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="4434" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="4435" title="Click to correct">बढ़कर</span> <span class="transl_class" id="4436" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="4437" title="Click to correct">पूर्ण</span> <span class="transl_class" id="4438" title="Click to correct">भाषाएँ</span> <span class="transl_class" id="4439" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="4440" title="Click to correct">संस्कृतियाँ</span> <span class="transl_class" id="4441" title="Click to correct">हैं</span> - <span class="transl_class" id="4442" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="4443" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="4444" title="Click to correct">दूसरे</span> <span class="transl_class" id="4445" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="4446" title="Click to correct">बिलकुल</span> <span class="transl_class" id="4447" title="Click to correct">जुदा</span> <span class="transl_class" id="4448" title="Click to correct">हैं</span> |</div><div><br />
<span class="transl_class" id="4449" title="Click to correct">इतना</span> <span class="transl_class" id="4450" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="4451" title="Click to correct">नहीं</span>, <span class="transl_class" id="4452" title="Click to correct">कई</span> <span class="transl_class" id="4453" title="Click to correct">बार</span> <span class="transl_class" id="4454" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="4455" title="Click to correct">पहचान</span> <span class="transl_class" id="4456" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="4457" title="Click to correct">अभाव</span> <span class="transl_class" id="4458" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="4459" title="Click to correct">जबरन</span> <span class="transl_class" id="4460" title="Click to correct">हमने</span> <span class="transl_class" id="4461" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="4462" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="4463" title="Click to correct">ठप्पा</span> <span class="transl_class" id="4464" title="Click to correct">उठाकर</span> <span class="transl_class" id="4465" title="Click to correct">जड़</span> <span class="transl_class" id="4466" title="Click to correct">दिया |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="4467" title="Click to correct">छोटा</span> <span class="transl_class" id="4468" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="4469" title="Click to correct">है</span> ? <span class="transl_class" id="4470" title="Click to correct">पता</span> <span class="transl_class" id="4471" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="4472" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="4473" title="Click to correct">नहीं</span> - <span class="transl_class" id="4474" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="4475" title="Click to correct">पंजाबी</span> <span class="transl_class" id="4476" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="4477" title="Click to correct">है</span> , <span class="transl_class" id="4478" title="Click to correct">क्योंकि</span> <span class="transl_class" id="4479" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="4480" title="Click to correct">सरदार</span> <span class="transl_class" id="4481" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="4482" title="Click to correct">है |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="4483" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="4484" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="4485" title="Click to correct">है</span> ?"</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="4486" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="4487" title="Click to correct">लोग</span> <span class="transl_class" id="4488" title="Click to correct">पहाड़ी</span> <span class="transl_class" id="4489" title="Click to correct">हैं</span> |" <span class="transl_class" id="4490" title="Click to correct">बेबी</span> <span class="transl_class" id="4491" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="4492" title="Click to correct">कहा</span> ."<span class="transl_class" id="4493" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="4494" title="Click to correct">दिन</span> <span class="transl_class" id="4495" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="4496" title="Click to correct">पिताजी</span> <span class="transl_class" id="4497" title="Click to correct">कह</span> <span class="transl_class" id="4498" title="Click to correct">रहे</span> <span class="transl_class" id="4499" title="Click to correct">थे</span> <span class="transl_class" id="4500" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="4501" title="Click to correct">हम</span> <span class="transl_class" id="4502" title="Click to correct">लोग</span> <span class="transl_class" id="4503" title="Click to correct">पहाड़</span> <span class="transl_class" id="4504" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="4505" title="Click to correct">चढ़ने</span> <span class="transl_class" id="4506" title="Click to correct">वाली</span> <span class="transl_class" id="4507" title="Click to correct">गाड़ी</span> <span class="transl_class" id="4508" title="Click to correct">खरीदेंगे</span> |"</div><div><br />
<span class="transl_class" id="4509" title="Click to correct">पहाड़ी</span> ? <span class="transl_class" id="4510" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="4511" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="4512" title="Click to correct">होता</span> <span class="transl_class" id="4513" title="Click to correct">है</span> ? <span class="transl_class" id="4514" title="Click to correct">पहाड़</span> <span class="transl_class" id="4515" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="4516" title="Click to correct">चढ़ने</span> <span class="transl_class" id="4517" title="Click to correct">वाले</span> <span class="transl_class" id="4518" title="Click to correct">लोग</span> <span class="transl_class" id="4519" title="Click to correct">पहाड़ी</span> ? <span class="transl_class" id="4520" title="Click to correct">बात</span> <span class="transl_class" id="4521" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="4522" title="Click to correct">जमी</span> <span class="transl_class" id="4523" title="Click to correct">नहीं |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="4524" title="Click to correct">तू</span> <span class="transl_class" id="4525" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="4526" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="4527" title="Click to correct">बे</span> ?" <span class="transl_class" id="4528" title="Click to correct">बबन</span> <span class="transl_class" id="4529" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="4530" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="4531" title="Click to correct">दिन</span> <span class="transl_class" id="4532" title="Click to correct">उससे</span> <span class="transl_class" id="4533" title="Click to correct">पूछा |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="4534" title="Click to correct">हिन्दू</span> " <span class="transl_class" id="4535" title="Click to correct">उसने</span> <span class="transl_class" id="4536" title="Click to correct">जवाब</span> <span class="transl_class" id="4537" title="Click to correct">दिया |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="4538" title="Click to correct">हिन्दू</span> ?"</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="4539" title="Click to correct">हाँ</span> , <span class="transl_class" id="4540" title="Click to correct">हिन्दू</span> " <span class="transl_class" id="4541" title="Click to correct">उसने</span> <span class="transl_class" id="4542" title="Click to correct">गर्व</span> <span class="transl_class" id="4543" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="4544" title="Click to correct">जवाब</span> <span class="transl_class" id="4545" title="Click to correct">दिया |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="4546" title="Click to correct">हम</span> <span class="transl_class" id="4547" title="Click to correct">सब</span> <span class="transl_class" id="4548" title="Click to correct">निरुत्तर</span> <span class="transl_class" id="4549" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="4550" title="Click to correct">गए |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="4551" title="Click to correct">अंततः</span> <span class="transl_class" id="4552" title="Click to correct">हमने</span> <span class="transl_class" id="4553" title="Click to correct">निष्कर्ष</span> <span class="transl_class" id="4554" title="Click to correct">निकाला</span> <span class="transl_class" id="4555" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="4556" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="4557" title="Click to correct">सिन्धी</span> <span class="transl_class" id="4558" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="4559" title="Click to correct">क्योंकि</span> <span class="transl_class" id="4560" title="Click to correct">औरों</span> <span class="transl_class" id="4561" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="4562" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="4563" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="4564" title="Click to correct">तरह</span> <span class="transl_class" id="4565" title="Click to correct">उसकी</span> <span class="transl_class" id="4566" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="4567" title="Click to correct">साडी</span> <span class="transl_class" id="4568" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="4569" title="Click to correct">पहनती</span> | <span class="transl_class" id="4570" title="Click to correct">शलवार</span> <span class="transl_class" id="4571" title="Click to correct">कमीज</span> <span class="transl_class" id="4572" title="Click to correct">पहनती</span> <span class="transl_class" id="4573" title="Click to correct">है</span> | <span class="transl_class" id="4574" title="Click to correct">जब</span> <span class="transl_class" id="4575" title="Click to correct">वे</span> <span class="transl_class" id="4576" title="Click to correct">पंजाबी</span> <span class="transl_class" id="4577" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="4578" title="Click to correct">हैं</span> <span class="transl_class" id="4579" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="4580" title="Click to correct">जरुर</span> <span class="transl_class" id="4581" title="Click to correct">सिन्धी</span> <span class="transl_class" id="4582" title="Click to correct">हैं |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="4583" title="Click to correct">निष्कर्ष</span> <span class="transl_class" id="4584" title="Click to correct">लिकालने</span> <span class="transl_class" id="4585" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="4586" title="Click to correct">देरी</span> <span class="transl_class" id="4587" title="Click to correct">भर</span> <span class="transl_class" id="4588" title="Click to correct">थी</span> <span class="transl_class" id="4589" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="4590" title="Click to correct">यह</span> <span class="transl_class" id="4591" title="Click to correct">लेबल</span> <span class="transl_class" id="4592" title="Click to correct">उसकी</span> <span class="transl_class" id="4593" title="Click to correct">पीठ</span> <span class="transl_class" id="4594" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="4595" title="Click to correct">चिपका</span> <span class="transl_class" id="4596" title="Click to correct">दिया</span> <span class="transl_class" id="4597" title="Click to correct">गया</span> | <span class="transl_class" id="4598" title="Click to correct">अगले</span> <span class="transl_class" id="4599" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="4600" title="Click to correct">दिन</span> <span class="transl_class" id="4601" title="Click to correct">सब</span> <span class="transl_class" id="4602" title="Click to correct">उसका</span> <span class="transl_class" id="4603" title="Click to correct">बेसब्री</span> <span class="transl_class" id="4604" title="Click to correct">से</span> मैदान में <span class="transl_class" id="4605" title="Click to correct">इंतज़ार</span> <span class="transl_class" id="4606" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="4607" title="Click to correct">रहे</span> <span class="transl_class" id="4608" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="4609" title="Click to correct">जैसे</span> <span class="transl_class" id="4610" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="4611" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="4612" title="Click to correct">आया</span> , <span class="transl_class" id="4613" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="4614" title="Click to correct">सुर</span> <span class="transl_class" id="4615" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="4616" title="Click to correct">उसका</span> <span class="transl_class" id="4617" title="Click to correct">स्वागत</span> <span class="transl_class" id="4618" title="Click to correct">किया</span> <span class="transl_class" id="4619" title="Click to correct">गया</span> ," <span class="transl_class" id="4620" title="Click to correct">चार</span> <span class="transl_class" id="4621" title="Click to correct">चवन्नी</span> <span class="transl_class" id="4622" title="Click to correct">थाली</span> <span class="transl_class" id="4623" title="Click to correct">में</span> , <span class="transl_class" id="4624" title="Click to correct">सिन्धी</span> <span class="transl_class" id="4625" title="Click to correct">बाबा</span> <span class="transl_class" id="4626" title="Click to correct">नाली</span> <span class="transl_class" id="4627" title="Click to correct">में</span> ... "</div><div><br />
<span class="transl_class" id="4628" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="4629" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="4630" title="Click to correct">लड़का</span> <span class="transl_class" id="4631" title="Click to correct">था</span>, <span class="transl_class" id="4632" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="4633" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="4634" title="Click to correct">था</span>, <span class="transl_class" id="4635" title="Click to correct">हम</span> <span class="transl_class" id="4636" title="Click to correct">कभी</span> <span class="transl_class" id="4637" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="4638" title="Click to correct">जान</span> <span class="transl_class" id="4639" title="Click to correct">पाए</span> | <span class="transl_class" id="4640" title="Click to correct">छोटे</span> <span class="transl_class" id="4641" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="4642" title="Click to correct">तरह</span> <span class="transl_class" id="4643" title="Click to correct">हमने</span> <span class="transl_class" id="4644" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="4645" title="Click to correct">उसकी</span> <span class="transl_class" id="4646" title="Click to correct">पीठ</span> <span class="transl_class" id="4647" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="4648" title="Click to correct">लेबल</span> <span class="transl_class" id="4649" title="Click to correct">चिपकाने</span> <span class="transl_class" id="4650" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="4651" title="Click to correct">कोशिश</span> <span class="transl_class" id="4652" title="Click to correct">की |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="4653" title="Click to correct">चार</span> <span class="transl_class" id="4654" title="Click to correct">चवन्नी</span> <span class="transl_class" id="4655" title="Click to correct">तेल</span> <span class="transl_class" id="4656" title="Click to correct">में</span> , <span class="transl_class" id="4657" title="Click to correct">सिन्धी</span> <span class="transl_class" id="4658" title="Click to correct">बाबा</span> <span class="transl_class" id="4659" title="Click to correct">जेल</span> <span class="transl_class" id="4660" title="Click to correct">में</span> ..."</div><div><br />
<span class="transl_class" id="4661" title="Click to correct">शशांक</span> <span class="transl_class" id="4662" title="Click to correct">बत्तीसी</span> <span class="transl_class" id="4663" title="Click to correct">फाड़कर</span> <span class="transl_class" id="4664" title="Click to correct">हंसा</span> , "<span class="transl_class" id="4665" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="4666" title="Click to correct">सिन्धी</span> <span class="transl_class" id="4667" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="4668" title="Click to correct">हूँ</span> |"</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="4669" title="Click to correct">बंगाली</span> <span class="transl_class" id="4670" title="Click to correct">बाबू</span> <span class="transl_class" id="4671" title="Click to correct">सदी</span> <span class="transl_class" id="4672" title="Click to correct">मच्छी</span> ..."</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="4673" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="4674" title="Click to correct">बंगाली</span> <span class="transl_class" id="4675" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="4676" title="Click to correct">हूँ</span> <span class="transl_class" id="4677" title="Click to correct">यार</span> |" उसका ठहाका सुनकर, बल्कि देखकर हम बौरा से गए | </div><div><br />
"<span class="transl_class" id="4678" title="Click to correct">ऊपर</span> <span class="transl_class" id="4679" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="4680" title="Click to correct">गिरी</span> ...."</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="4681" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="4682" title="Click to correct">मराठी</span> <span class="transl_class" id="4683" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="4684" title="Click to correct">हूँ</span> , <span class="transl_class" id="4685" title="Click to correct">हा</span> <span class="transl_class" id="4686" title="Click to correct">हा</span> <span class="transl_class" id="4687" title="Click to correct">हा</span> ..." अब सब बौखला गए | <span class="transl_class" id="4688" title="Click to correct">जरुर</span> <span class="transl_class" id="4689" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="4690" title="Click to correct">गधा</span> '<span class="transl_class" id="4691" title="Click to correct">अन्ना</span>' <span class="transl_class" id="4692" title="Click to correct">होगा |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="4693" title="Click to correct">अन्ना</span> ? <span class="transl_class" id="4694" title="Click to correct">अन्ना</span> <span class="transl_class" id="4695" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="4696" title="Click to correct">होता</span> <span class="transl_class" id="4697" title="Click to correct">है</span> ?" उसकी मासूमियत देखने लायक थी | </div><div><br />
<span class="transl_class" id="4698" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="4699" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="4700" title="Click to correct">पक्के</span> <span class="transl_class" id="4701" title="Click to correct">तौर</span> <span class="transl_class" id="4702" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="4703" title="Click to correct">बिहारी</span> <span class="transl_class" id="4704" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="4705" title="Click to correct">था | </span> <span class="transl_class" id="4706" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="4707" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="4708" title="Click to correct">था </span><span class="transl_class" id="4709" title="Click to correct">क्या</span> ?<br />
<br />
*************<br />
<br />
<span class="transl_class" id="4710" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="4711" title="Click to correct">हाथ</span> <span class="transl_class" id="4712" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="4713" title="Click to correct">बेलन</span> <span class="transl_class" id="4714" title="Click to correct">लिए</span> <span class="transl_class" id="4715" title="Click to correct">तैयार</span> <span class="transl_class" id="4716" title="Click to correct">खड़ी </span><span class="transl_class" id="4717" title="Click to correct">थी</span> ," <span class="transl_class" id="4718" title="Click to correct">हाँ</span> , <span class="transl_class" id="4719" title="Click to correct">हाँ</span> - <span class="transl_class" id="4720" title="Click to correct">आ</span> <span class="transl_class" id="4721" title="Click to correct">रोगहा</span> ( <span class="transl_class" id="4722" title="Click to correct">बदमाश</span>) .."</div><div><br />
<span class="transl_class" id="4723" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="4724" title="Click to correct">मोटी</span> <span class="transl_class" id="4725" title="Click to correct">बिल्ली</span> <span class="transl_class" id="4726" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="4727" title="Click to correct">हिम्मत</span> <span class="transl_class" id="4728" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="4729" title="Click to correct">देखो |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="4730" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="4731" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="4732" title="Click to correct">बिल्ली</span> <span class="transl_class" id="4733" title="Click to correct">होती</span> <span class="transl_class" id="4734" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="4735" title="Click to correct">पहली</span> <span class="transl_class" id="4736" title="Click to correct">बात</span>, <span class="transl_class" id="4737" title="Click to correct">दबे</span> <span class="transl_class" id="4738" title="Click to correct">पांव</span> <span class="transl_class" id="4739" title="Click to correct">रसोई</span> <span class="transl_class" id="4740" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="4741" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="4742" title="Click to correct">घुसती</span> | <span class="transl_class" id="4743" title="Click to correct">दूसरी</span> <span class="transl_class" id="4744" title="Click to correct">बात</span> , <span class="transl_class" id="4745" title="Click to correct">ज़रा</span> <span class="transl_class" id="4746" title="Click to correct">सी</span> <span class="transl_class" id="4747" title="Click to correct">आहट</span> <span class="transl_class" id="4748" title="Click to correct">मिलते</span> <span class="transl_class" id="4749" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="4750" title="Click to correct">दुम </span> <span class="transl_class" id="4751" title="Click to correct">दबा</span> <span class="transl_class" id="4752" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="4753" title="Click to correct">भाग</span> <span class="transl_class" id="4754" title="Click to correct">जाती | </span><span class="transl_class" id="4755" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="4756" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="4757" title="Click to correct">मोती</span> <span class="transl_class" id="4758" title="Click to correct">बिल्ली</span> ? <span class="transl_class" id="4759" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="4760" title="Click to correct">म्याऊ</span> <span class="transl_class" id="4761" title="Click to correct">म्याऊ</span> <span class="transl_class" id="4762" title="Click to correct">करती</span> <span class="transl_class" id="4763" title="Click to correct">हुई</span> <span class="transl_class" id="4764" title="Click to correct">अभी</span> <span class="transl_class" id="4765" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="4766" title="Click to correct">रंधनीखड़</span> (<span class="transl_class" id="4767" title="Click to correct">रसोईघर</span>) <span class="transl_class" id="4768" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="4769" title="Click to correct">खिड़की</span> <span class="transl_class" id="4770" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="4771" title="Click to correct">सलाख</span> <span class="transl_class" id="4772" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="4773" title="Click to correct">पंजे</span> <span class="transl_class" id="4774" title="Click to correct">रगड़</span> <span class="transl_class" id="4775" title="Click to correct">रही</span> <span class="transl_class" id="4776" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="4777" title="Click to correct">उसकी</span> <span class="transl_class" id="4778" title="Click to correct">मूंछें</span> <span class="transl_class" id="4779" title="Click to correct">हिल</span> <span class="transl_class" id="4780" title="Click to correct">रही</span> <span class="transl_class" id="4781" title="Click to correct">थी |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="4782" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="4783" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="4784" title="Click to correct">तानकर</span> <span class="transl_class" id="4785" title="Click to correct">ब्रह्मास्त्र</span> <span class="transl_class" id="4786" title="Click to correct">छोड़</span> <span class="transl_class" id="4787" title="Click to correct">दिया</span> | <span class="transl_class" id="4788" title="Click to correct">मोटी</span> <span class="transl_class" id="4789" title="Click to correct">बिल्ली</span> <span class="transl_class" id="4790" title="Click to correct">फुर्ती</span> <span class="transl_class" id="4791" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="4792" title="Click to correct">खिड़की</span> <span class="transl_class" id="4793" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="4794" title="Click to correct">नीचे</span> <span class="transl_class" id="4795" title="Click to correct">कूदकर</span> <span class="transl_class" id="4796" title="Click to correct">भाग</span> <span class="transl_class" id="4797" title="Click to correct">गयी |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="4798" title="Click to correct">जब</span> <span class="transl_class" id="4799" title="Click to correct">तब</span> <span class="transl_class" id="4800" title="Click to correct">बिल्लियाँ</span> <span class="transl_class" id="4801" title="Click to correct">चुपके</span> <span class="transl_class" id="4802" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="4803" title="Click to correct">रसोई</span> <span class="transl_class" id="4804" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="4805" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="4806" title="Click to correct">घुस</span> <span class="transl_class" id="4807" title="Click to correct">जाती</span> <span class="transl_class" id="4808" title="Click to correct">थी</span> <span class="transl_class" id="4809" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="4810" title="Click to correct">दूध</span> <span class="transl_class" id="4811" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="4812" title="Click to correct">गंजी</span> (<span class="transl_class" id="4813" title="Click to correct">पतीले</span>) <span class="transl_class" id="4814" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="4815" title="Click to correct">ढक्कन</span> <span class="transl_class" id="4816" title="Click to correct">हटाकर</span> <span class="transl_class" id="4817" title="Click to correct">दूध</span> <span class="transl_class" id="4818" title="Click to correct">पी</span> <span class="transl_class" id="4819" title="Click to correct">जाती</span> <span class="transl_class" id="4820" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="4821" title="Click to correct">आवारा</span> <span class="transl_class" id="4822" title="Click to correct">बिल्लियों</span> <span class="transl_class" id="4823" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="4824" title="Click to correct">यह</span> <span class="transl_class" id="4825" title="Click to correct">कारस्तानी</span> <span class="transl_class" id="4826" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="4827" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="4828" title="Click to correct">लिए</span> <span class="transl_class" id="4829" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="4830" title="Click to correct">नयी</span> <span class="transl_class" id="4831" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="4832" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="4833" title="Click to correct">ना</span> <span class="transl_class" id="4834" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="4835" title="Click to correct">यह</span> <span class="transl_class" id="4836" title="Click to correct">बरसों</span> <span class="transl_class" id="4837" title="Click to correct">बाद</span> <span class="transl_class" id="4838" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="4839" title="Click to correct">कभी</span> <span class="transl_class" id="4840" title="Click to correct">पुरानी</span> <span class="transl_class" id="4841" title="Click to correct">पड़ी | </span><span class="transl_class" id="4842" title="Click to correct">रसोई</span> <span class="transl_class" id="4843" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="4844" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="4845" title="Click to correct">खाना</span> <span class="transl_class" id="4846" title="Click to correct">बनाना</span> <span class="transl_class" id="4847" title="Click to correct">ख़तम</span> <span class="transl_class" id="4848" title="Click to correct">होने</span> <span class="transl_class" id="4849" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="4850" title="Click to correct">बाद</span> <span class="transl_class" id="4851" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="4852" title="Click to correct">खिड़की</span> <span class="transl_class" id="4853" title="Click to correct">बंद</span> <span class="transl_class" id="4854" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="4855" title="Click to correct">देती</span> <span class="transl_class" id="4856" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="4857" title="Click to correct">रात</span> <span class="transl_class" id="4858" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="4859" title="Click to correct">दोपहर</span> <span class="transl_class" id="4860" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="4861" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="4862" title="Click to correct">यह</span> <span class="transl_class" id="4863" title="Click to correct">निहायत</span> <span class="transl_class" id="4864" title="Click to correct">आवश्यक</span> <span class="transl_class" id="4865" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="4866" title="Click to correct">जाता</span> <span class="transl_class" id="4867" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="4868" title="Click to correct">दूध</span> <span class="transl_class" id="4869" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="4870" title="Click to correct">नहीं</span>, <span class="transl_class" id="4871" title="Click to correct">कई</span> <span class="transl_class" id="4872" title="Click to correct">बार</span> <span class="transl_class" id="4873" title="Click to correct">बिल्लियाँ</span> <span class="transl_class" id="4874" title="Click to correct">चीनी</span> <span class="transl_class" id="4875" title="Click to correct">मिट्टी</span> <span class="transl_class" id="4876" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="4877" title="Click to correct">कुण्डी</span> <span class="transl_class" id="4878" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="4879" title="Click to correct">जमाई</span> <span class="transl_class" id="4880" title="Click to correct">गयी</span> <span class="transl_class" id="4881" title="Click to correct">दही</span> <span class="transl_class" id="4882" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="4883" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="4884" title="Click to correct">मुंह</span> <span class="transl_class" id="4885" title="Click to correct">घुसा</span> <span class="transl_class" id="4886" title="Click to correct">देती</span> <span class="transl_class" id="4887" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="4888" title="Click to correct">हालाँकि</span> <span class="transl_class" id="4889" title="Click to correct">उनका</span> <span class="transl_class" id="4890" title="Click to correct">मुख्य</span> <span class="transl_class" id="4891" title="Click to correct">आकर्षण</span> <span class="transl_class" id="4892" title="Click to correct">दूध</span> <span class="transl_class" id="4893" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="4894" title="Click to correct">होता</span> <span class="transl_class" id="4895" title="Click to correct">था |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="4896" title="Click to correct">ठीक</span> <span class="transl_class" id="4897" title="Click to correct">है</span>,<span class="transl_class" id="4898" title="Click to correct">बाकी</span> <span class="transl_class" id="4899" title="Click to correct">सब</span> <span class="transl_class" id="4900" title="Click to correct">बिल्लियाँ</span> <span class="transl_class" id="4901" title="Click to correct">ये</span> <span class="transl_class" id="4902" title="Click to correct">सब</span> <span class="transl_class" id="4903" title="Click to correct">चुपके</span> <span class="transl_class" id="4904" title="Click to correct">चुपके</span> <span class="transl_class" id="4905" title="Click to correct">करती</span> <span class="transl_class" id="4906" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="4907" title="Click to correct">मगर</span> <span class="transl_class" id="4908" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="4909" title="Click to correct">दुस्साहसी</span> <span class="transl_class" id="4910" title="Click to correct">मोटी</span> <span class="transl_class" id="4911" title="Click to correct">बिल्ली</span> ? <span class="transl_class" id="4912" title="Click to correct">खिड़की</span> <span class="transl_class" id="4913" title="Click to correct">गलती</span> <span class="transl_class" id="4914" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="4915" title="Click to correct">खुली</span> <span class="transl_class" id="4916" title="Click to correct">रह</span> <span class="transl_class" id="4917" title="Click to correct">गयी</span> <span class="transl_class" id="4918" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="4919" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="4920" title="Click to correct">स्टोर</span> <span class="transl_class" id="4921" title="Click to correct">रूम</span> , <span class="transl_class" id="4922" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="4923" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="4924" title="Click to correct">रसोई</span> <span class="transl_class" id="4925" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="4926" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="4927" title="Click to correct">बगल</span> <span class="transl_class" id="4928" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="4929" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="4930" title="Click to correct">कमरा</span> <span class="transl_class" id="4931" title="Click to correct">था</span> , <span class="transl_class" id="4932" title="Click to correct">चावल</span> <span class="transl_class" id="4933" title="Click to correct">निकालने</span> <span class="transl_class" id="4934" title="Click to correct">गयी</span> <span class="transl_class" id="4935" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="4936" title="Click to correct">मोटी</span> <span class="transl_class" id="4937" title="Click to correct">बिल्ली</span> <span class="transl_class" id="4938" title="Click to correct">न</span> <span class="transl_class" id="4939" title="Click to correct">जाने</span> <span class="transl_class" id="4940" title="Click to correct">कहाँ</span> <span class="transl_class" id="4941" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="4942" title="Click to correct">प्रकट</span> <span class="transl_class" id="4943" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="4944" title="Click to correct">जाती</span> <span class="transl_class" id="4945" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="4946" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="4947" title="Click to correct">छलांग</span> <span class="transl_class" id="4948" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="4949" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="4950" title="Click to correct">रसोई</span> <span class="transl_class" id="4951" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="4952" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="4953" title="Click to correct">खिड़की</span> <span class="transl_class" id="4954" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="4955" title="Click to correct">पहुँच</span> <span class="transl_class" id="4956" title="Click to correct">जाती</span> <span class="transl_class" id="4957" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="4958" title="Click to correct">अब</span> <span class="transl_class" id="4959" title="Click to correct">यह</span> <span class="transl_class" id="4960" title="Click to correct">नियम</span> <span class="transl_class" id="4961" title="Click to correct">सा</span> <span class="transl_class" id="4962" title="Click to correct">बन</span> <span class="transl_class" id="4963" title="Click to correct">गया</span> <span class="transl_class" id="4964" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="4965" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="4966" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="4967" title="Click to correct">जब</span> <span class="transl_class" id="4968" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="4969" title="Click to correct">रसोई</span> <span class="transl_class" id="4970" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="4971" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="4972" title="Click to correct">घुसती</span> , <span class="transl_class" id="4973" title="Click to correct">पहले</span> <span class="transl_class" id="4974" title="Click to correct">जोर</span> <span class="transl_class" id="4975" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="4976" title="Click to correct">चिल्लाती</span> " <span class="transl_class" id="4977" title="Click to correct">छुर !</span>" |<span class="transl_class" id="4978" title="Click to correct">उनकी</span> <span class="transl_class" id="4979" title="Click to correct">देखा</span> <span class="transl_class" id="4980" title="Click to correct">देखी</span> <span class="transl_class" id="4981" title="Click to correct">हम</span> <span class="transl_class" id="4982" title="Click to correct">लोग</span> <span class="transl_class" id="4983" title="Click to correct">भी</span>, <span class="transl_class" id="4984" title="Click to correct">जब</span> <span class="transl_class" id="4985" title="Click to correct">रसोई</span> <span class="transl_class" id="4986" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="4987" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="4988" title="Click to correct">बाहर</span> <span class="transl_class" id="4989" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="4990" title="Click to correct">गुजरते</span>, <span class="transl_class" id="4991" title="Click to correct">अपने</span> <span class="transl_class" id="4992" title="Click to correct">आप</span> <span class="transl_class" id="4993" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="4994" title="Click to correct">रोक</span> <span class="transl_class" id="4995" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="4996" title="Click to correct">पाते</span> | <span class="transl_class" id="4998" title="Click to correct">मुँह </span><span class="transl_class" id="4999" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="5000" title="Click to correct">बरबस</span> <span class="transl_class" id="5001" title="Click to correct">निकल</span> <span class="transl_class" id="5002" title="Click to correct">जाता</span> "<span class="transl_class" id="5003" title="Click to correct">छुर</span>...!"<br />
<br />
*************<br />
<br />
<span class="transl_class" id="5004" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="5005" title="Click to correct">मालूम</span> <span class="transl_class" id="5006" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="5007" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="5008" title="Click to correct">आज</span> <span class="transl_class" id="5009" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="5010" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="5011" title="Click to correct">स्कूल</span> <span class="transl_class" id="5012" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="5013" title="Click to correct">छुट्टी</span> <span class="transl_class" id="5014" title="Click to correct">होगी</span> | <span class="transl_class" id="5015" title="Click to correct">कारण</span> <span class="transl_class" id="5016" title="Click to correct">अति</span> <span class="transl_class" id="5017" title="Click to correct">सामान्य</span> <span class="transl_class" id="5018" title="Click to correct">था</span> - <span class="transl_class" id="5019" title="Click to correct">क्योंकि</span> <span class="transl_class" id="5020" title="Click to correct">बेबी</span> , <span class="transl_class" id="5021" title="Click to correct">बबलू</span>, <span class="transl_class" id="5022" title="Click to correct">शशि</span>, <span class="transl_class" id="5023" title="Click to correct">कौशल</span> - <span class="transl_class" id="5024" title="Click to correct">सबके</span> <span class="transl_class" id="5025" title="Click to correct">स्कूल</span> <span class="transl_class" id="5026" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="5027" title="Click to correct">छुट्टी</span> <span class="transl_class" id="5028" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="5029" title="Click to correct">इसका</span> <span class="transl_class" id="5030" title="Click to correct">मतलब</span> <span class="transl_class" id="5031" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="5032" title="Click to correct">सकता</span> <span class="transl_class" id="5033" title="Click to correct">है</span>, <span class="transl_class" id="5034" title="Click to correct">आज</span> <span class="transl_class" id="5035" title="Click to correct">रविवार</span> <span class="transl_class" id="5036" title="Click to correct">हो</span> | <span class="transl_class" id="5037" title="Click to correct">अगर</span> <span class="transl_class" id="5038" title="Click to correct">व्यास</span> <span class="transl_class" id="5039" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="5040" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5041" title="Click to correct">आयें</span> <span class="transl_class" id="5042" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="5043" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="5044" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="5045" title="Click to correct">बोलें</span> ,"<span class="transl_class" id="5046" title="Click to correct">मामी</span>, <span class="transl_class" id="5047" title="Click to correct">सुपेला</span> <span class="transl_class" id="5048" title="Click to correct">बाज़ार</span> <span class="transl_class" id="5049" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="5050" title="Click to correct">कौन</span> <span class="transl_class" id="5051" title="Click to correct">सी</span> <span class="transl_class" id="5052" title="Click to correct">साग</span> <span class="transl_class" id="5053" title="Click to correct">भाजी</span> <span class="transl_class" id="5054" title="Click to correct">लाना</span> <span class="transl_class" id="5055" title="Click to correct">है</span> - <span class="transl_class" id="5056" title="Click to correct">बताओ</span> |" <span class="transl_class" id="5057" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="5058" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="5059" title="Click to correct">कागज़</span> <span class="transl_class" id="5060" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5061" title="Click to correct">लिस्ट</span> <span class="transl_class" id="5062" title="Click to correct">बनाकर</span> <span class="transl_class" id="5063" title="Click to correct">ले</span> <span class="transl_class" id="5064" title="Click to correct">जाएँ</span> - <span class="transl_class" id="5065" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="5066" title="Click to correct">समझो</span> <span class="transl_class" id="5067" title="Click to correct">आज</span> <span class="transl_class" id="5068" title="Click to correct">सुपेला</span> <span class="transl_class" id="5069" title="Click to correct">बाज़ार</span> <span class="transl_class" id="5070" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="5071" title="Click to correct">दिन</span> <span class="transl_class" id="5072" title="Click to correct">है</span> | <span class="transl_class" id="5073" title="Click to correct">इसका</span> <span class="transl_class" id="5074" title="Click to correct">मतलब</span> <span class="transl_class" id="5075" title="Click to correct">आज</span> <span class="transl_class" id="5076" title="Click to correct">इतवार</span> <span class="transl_class" id="5077" title="Click to correct">है |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="5078" title="Click to correct">इतवार</span> <span class="transl_class" id="5079" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="5080" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="5081" title="Click to correct">न</span> <span class="transl_class" id="5082" title="Click to correct">हो</span> - <span class="transl_class" id="5083" title="Click to correct">स्कूल</span> <span class="transl_class" id="5084" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="5085" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="5086" title="Click to correct">छुट्टी</span> <span class="transl_class" id="5087" title="Click to correct">है</span> | <span class="transl_class" id="5088" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="5089" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="5090" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5091" title="Click to correct">होगा</span> <span class="transl_class" id="5092" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="5093" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="5094" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="5095" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="5096" title="Click to correct">जाते</span> <span class="transl_class" id="5097" title="Click to correct">जाते</span> <span class="transl_class" id="5098" title="Click to correct">मेरे</span> <span class="transl_class" id="5099" title="Click to correct">कदम</span> <span class="transl_class" id="5100" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="5101" title="Click to correct">रफ़्तार</span> <span class="transl_class" id="5102" title="Click to correct">धीमी</span> <span class="transl_class" id="5103" title="Click to correct">पड़</span> <span class="transl_class" id="5104" title="Click to correct">गयी</span> | <span class="transl_class" id="5105" title="Click to correct">इसका</span> <span class="transl_class" id="5106" title="Click to correct">मतलब</span> <span class="transl_class" id="5107" title="Click to correct">है</span>, <span class="transl_class" id="5108" title="Click to correct">आज</span> <span class="transl_class" id="5109" title="Click to correct">उसकी</span> <span class="transl_class" id="5110" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="5111" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="5112" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="5113" title="Click to correct">छुट्टी</span> <span class="transl_class" id="5114" title="Click to correct">होगी</span> | <span class="transl_class" id="5115" title="Click to correct">जाऊं</span> <span class="transl_class" id="5116" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="5117" title="Click to correct">नहीं</span> ? <span class="transl_class" id="5118" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="5119" title="Click to correct">थोड़ी</span> <span class="transl_class" id="5120" title="Click to correct">देर</span> <span class="transl_class" id="5121" title="Click to correct">रुक</span> <span class="transl_class" id="5122" title="Click to correct">जाऊं</span> <span class="transl_class" id="5123" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="5124" title="Click to correct">रहमान</span> <span class="transl_class" id="5125" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="5126" title="Click to correct">रिक्शे</span> <span class="transl_class" id="5127" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="5128" title="Click to correct">इंतज़ार</span> <span class="transl_class" id="5129" title="Click to correct">करूँ ?</span> <span class="transl_class" id="5130" title="Click to correct">रहमान</span> <span class="transl_class" id="5131" title="Click to correct">सुबह</span> <span class="transl_class" id="5132" title="Click to correct">रिक्शा</span> <span class="transl_class" id="5133" title="Click to correct">लेकर</span> <span class="transl_class" id="5134" title="Click to correct">आता</span> <span class="transl_class" id="5135" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="5136" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="5137" title="Click to correct">मुन्ने</span> <span class="transl_class" id="5138" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="5139" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="5140" title="Click to correct">रिक्शे</span> <span class="transl_class" id="5141" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5142" title="Click to correct">ऑफिस</span> <span class="transl_class" id="5143" title="Click to correct">जाती</span> <span class="transl_class" id="5144" title="Click to correct">थी</span> |<span class="transl_class" id="5145" title="Click to correct">अगर</span> <span class="transl_class" id="5146" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="5147" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="5148" title="Click to correct">आया</span> <span class="transl_class" id="5149" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="5150" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="5151" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="5152" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="5153" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="5154" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="5155" title="Click to correct">छुट्टी</span> <span class="transl_class" id="5156" title="Click to correct">होगी |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="5157" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="5158" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="5159" title="Click to correct">देर</span> <span class="transl_class" id="5160" title="Click to correct">उहापोह</span> <span class="transl_class" id="5161" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5162" title="Click to correct">पड़े</span> <span class="transl_class" id="5163" title="Click to correct">रहा</span> | <span class="transl_class" id="5164" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="5165" title="Click to correct">हिम्मत</span> <span class="transl_class" id="5166" title="Click to correct">करके</span> <span class="transl_class" id="5167" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="5168" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="5169" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="5170" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="5171" title="Click to correct">पटरी</span> <span class="transl_class" id="5172" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="5173" title="Click to correct">पास</span> <span class="transl_class" id="5174" title="Click to correct">पहुंचा</span> | <span class="transl_class" id="5175" title="Click to correct">मुन्ने</span> <span class="transl_class" id="5176" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="5177" title="Click to correct">दादी</span> <span class="transl_class" id="5178" title="Click to correct">बाहर</span> <span class="transl_class" id="5179" title="Click to correct">बरामदे</span> <span class="transl_class" id="5180" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5181" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="5182" title="Click to correct">मूर्ति</span> <span class="transl_class" id="5183" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="5184" title="Click to correct">तरह</span> <span class="transl_class" id="5185" title="Click to correct">बैठी</span> <span class="transl_class" id="5186" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="5187" title="Click to correct">पता</span> <span class="transl_class" id="5188" title="Click to correct">नहीं</span>, <span class="transl_class" id="5189" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="5190" title="Click to correct">सोचते</span> <span class="transl_class" id="5191" title="Click to correct">हुए</span> <span class="transl_class" id="5192" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="5193" title="Click to correct">सारा</span> <span class="transl_class" id="5194" title="Click to correct">दिन</span> <span class="transl_class" id="5195" title="Click to correct">इसी</span> <span class="transl_class" id="5196" title="Click to correct">मुद्रा</span> <span class="transl_class" id="5197" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5198" title="Click to correct">बैठे</span> <span class="transl_class" id="5199" title="Click to correct">रहती</span> <span class="transl_class" id="5200" title="Click to correct">थी |</span><br />
<span class="transl_class" id="5201" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="5202" title="Click to correct">पटरी</span> <span class="transl_class" id="5203" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="5204" title="Click to correct">खड़े</span> <span class="transl_class" id="5205" title="Click to correct">होकर</span> <span class="transl_class" id="5206" title="Click to correct">आवाज़</span> <span class="transl_class" id="5207" title="Click to correct">लगाईं</span> ,"<span class="transl_class" id="5208" title="Click to correct">मुन्ना</span> ...."</div><div><br />
<span class="transl_class" id="5209" title="Click to correct">जिसका</span> <span class="transl_class" id="5210" title="Click to correct">डर</span> <span class="transl_class" id="5211" title="Click to correct">था</span> , <span class="transl_class" id="5212" title="Click to correct">वही</span> <span class="transl_class" id="5213" title="Click to correct">हुआ</span> | <span class="transl_class" id="5214" title="Click to correct">मुन्ने</span> <span class="transl_class" id="5215" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="5216" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="5217" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="5218" title="Click to correct">दरवाजा</span> <span class="transl_class" id="5219" title="Click to correct">खोला</span> <span class="transl_class" id="5220" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="5221" title="Click to correct">कहा</span> ,"<span class="transl_class" id="5222" title="Click to correct">अरे</span> <span class="transl_class" id="5223" title="Click to correct">टिल्लू</span> <span class="transl_class" id="5224" title="Click to correct">अन्दर</span> <span class="transl_class" id="5225" title="Click to correct">आ</span> <span class="transl_class" id="5226" title="Click to correct">जा</span> "</div><div><br />
<span class="transl_class" id="5227" title="Click to correct">अन्दर</span> <span class="transl_class" id="5228" title="Click to correct">जाने</span> <span class="transl_class" id="5229" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5230" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="5231" title="Click to correct">झिझक</span> <span class="transl_class" id="5232" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="5233" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="5234" title="Click to correct">अब</span> <span class="transl_class" id="5235" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="5236" title="Click to correct">चारा</span> <span class="transl_class" id="5237" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="5238" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="5239" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="5240" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="5241" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="5242" title="Click to correct">अन्दर</span> <span class="transl_class" id="5243" title="Click to correct">जाते</span> <span class="transl_class" id="5244" title="Click to correct">जाते</span> <span class="transl_class" id="5245" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="5246" title="Click to correct">पूछा</span> , "<span class="transl_class" id="5247" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="5248" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="5249" title="Click to correct">आंटी</span> ?"<br />
"<span class="transl_class" id="5250" title="Click to correct">हाँ</span> <span class="transl_class" id="5251" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="5252" title="Click to correct">ना</span> | <span class="transl_class" id="5253" title="Click to correct">अन्दर</span> <span class="transl_class" id="5254" title="Click to correct">आ</span> <span class="transl_class" id="5255" title="Click to correct">जा</span> |"</div><div><br />
<span class="transl_class" id="5256" title="Click to correct">अन्दर</span>, <span class="transl_class" id="5257" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="5258" title="Click to correct">कमरा</span> <span class="transl_class" id="5259" title="Click to correct">बैठक</span> <span class="transl_class" id="5260" title="Click to correct">होता</span> <span class="transl_class" id="5261" title="Click to correct">था</span> , <span class="transl_class" id="5262" title="Click to correct">वहीं</span> <span class="transl_class" id="5263" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="5264" title="Click to correct">सोफे</span> <span class="transl_class" id="5265" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="5266" title="Click to correct">बैठकर</span> <span class="transl_class" id="5267" title="Click to correct">मैं </span><span class="transl_class" id="5268" title="Click to correct">इंतज़ार</span> <span class="transl_class" id="5269" title="Click to correct">करने</span> <span class="transl_class" id="5270" title="Click to correct">लगा</span> | <span class="transl_class" id="5271" title="Click to correct">हाँ</span> , <span class="transl_class" id="5272" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="5273" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="5274" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="5275" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="5276" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="5277" title="Click to correct">कभी</span> <span class="transl_class" id="5278" title="Click to correct">डांटा</span> <span class="transl_class" id="5279" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="5280" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="5281" title="Click to correct">था | </span> <span class="transl_class" id="5282" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="5283" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="5284" title="Click to correct">हमेशा</span> <span class="transl_class" id="5285" title="Click to correct">उनसे</span> <span class="transl_class" id="5286" title="Click to correct">डर</span> <span class="transl_class" id="5287" title="Click to correct">लगता</span> <span class="transl_class" id="5288" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="5289" title="Click to correct">कारण</span> <span class="transl_class" id="5290" title="Click to correct">यह</span> <span class="transl_class" id="5291" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="5292" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="5293" title="Click to correct">मुन्ने</span> <span class="transl_class" id="5294" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="5295" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="5296" title="Click to correct">कभी</span> <span class="transl_class" id="5297" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="5298" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="5299" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="5300" title="Click to correct">नहलाये</span> <span class="transl_class" id="5301" title="Click to correct">बिना</span> <span class="transl_class" id="5302" title="Click to correct">बाहर</span> <span class="transl_class" id="5303" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="5304" title="Click to correct">जाने</span> <span class="transl_class" id="5305" title="Click to correct">देती</span> <span class="transl_class" id="5306" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="5307" title="Click to correct">इतना</span> <span class="transl_class" id="5308" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="5309" title="Click to correct">नहीं</span>, <span class="transl_class" id="5310" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="5311" title="Click to correct">सुनिश्चित</span> <span class="transl_class" id="5312" title="Click to correct">करती</span> <span class="transl_class" id="5313" title="Click to correct">थी</span> <span class="transl_class" id="5314" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="5315" title="Click to correct">मुन्ने</span> <span class="transl_class" id="5316" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="5317" title="Click to correct">नाश्ता</span> <span class="transl_class" id="5318" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="5319" title="Click to correct">लिया</span> <span class="transl_class" id="5320" title="Click to correct">है</span> | <span class="transl_class" id="5321" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="5322" title="Click to correct">उसके</span> "<span class="transl_class" id="5323" title="Click to correct">होम</span> <span class="transl_class" id="5324" title="Click to correct">वर्क</span>" <span class="transl_class" id="5325" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="5326" title="Click to correct">कापी</span> <span class="transl_class" id="5327" title="Click to correct">देखकर</span> <span class="transl_class" id="5328" title="Click to correct">यह</span> <span class="transl_class" id="5329" title="Click to correct">तय</span> <span class="transl_class" id="5330" title="Click to correct">करती</span> <span class="transl_class" id="5331" title="Click to correct">थी</span> <span class="transl_class" id="5332" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="5333" title="Click to correct">मुन्ने</span> <span class="transl_class" id="5334" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="5335" title="Click to correct">गृह</span> <span class="transl_class" id="5336" title="Click to correct">कार्य</span> <span class="transl_class" id="5337" title="Click to correct">ख़तम</span> <span class="transl_class" id="5338" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="5339" title="Click to correct">लिया</span> <span class="transl_class" id="5340" title="Click to correct">है</span> | <span class="transl_class" id="5341" title="Click to correct">अगर</span> <span class="transl_class" id="5342" title="Click to correct">इतना</span> <span class="transl_class" id="5343" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="5344" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="5345" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="5346" title="Click to correct">खैर</span> <span class="transl_class" id="5347" title="Click to correct">मना</span> <span class="transl_class" id="5348" title="Click to correct">लेते</span> | <span class="transl_class" id="5349" title="Click to correct">अगर</span> <span class="transl_class" id="5350" title="Click to correct">उसका</span> <span class="transl_class" id="5351" title="Click to correct">गृह</span> <span class="transl_class" id="5352" title="Click to correct">कार्य</span> <span class="transl_class" id="5353" title="Click to correct">पूरा</span> <span class="transl_class" id="5354" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="5355" title="Click to correct">होता</span> <span class="transl_class" id="5356" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="5357" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="5358" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="5359" title="Click to correct">बाहर</span> <span class="transl_class" id="5360" title="Click to correct">जाने</span> <span class="transl_class" id="5361" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="5362" title="Click to correct">पहले</span> <span class="transl_class" id="5363" title="Click to correct">गृह</span> <span class="transl_class" id="5364" title="Click to correct">कार्य</span> <span class="transl_class" id="5365" title="Click to correct">ख़तम</span> <span class="transl_class" id="5366" title="Click to correct">कराती</span> <span class="transl_class" id="5367" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="5368" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="5369" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="5370" title="Click to correct">साथ</span> <span class="transl_class" id="5371" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5372" title="Click to correct">बैठा</span> <span class="transl_class" id="5373" title="Click to correct">देती |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="5374" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="5375" title="Click to correct">गृह</span> <span class="transl_class" id="5376" title="Click to correct">कार्य</span> <span class="transl_class" id="5377" title="Click to correct">ज्यादातर</span> <span class="transl_class" id="5378" title="Click to correct">ड्राइंग</span> <span class="transl_class" id="5379" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="5380" title="Click to correct">होता</span> | <span class="transl_class" id="5381" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="5382" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="5383" title="Click to correct">चित्र</span> <span class="transl_class" id="5384" title="Click to correct">बनाता</span> <span class="transl_class" id="5385" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="5386" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="5387" title="Click to correct">रंग</span> <span class="transl_class" id="5388" title="Click to correct">भरने</span> <span class="transl_class" id="5389" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5390" title="Click to correct">उसकी</span> <span class="transl_class" id="5391" title="Click to correct">मदद</span> <span class="transl_class" id="5392" title="Click to correct">करता |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5393" title="Click to correct">सूरज</span> <span class="transl_class" id="5394" title="Click to correct">किस</span> <span class="transl_class" id="5395" title="Click to correct">रंग</span> <span class="transl_class" id="5396" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="5397" title="Click to correct">होता</span> <span class="transl_class" id="5398" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="5399" title="Click to correct">बे</span> ?"</div><div><br />
<span class="transl_class" id="5400" title="Click to correct">पहले</span> <span class="transl_class" id="5401" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="5402" title="Click to correct">पीला</span> <span class="transl_class" id="5403" title="Click to correct">रंग</span> <span class="transl_class" id="5404" title="Click to correct">रंगता</span> , <span class="transl_class" id="5405" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="5406" title="Click to correct">निराश</span> <span class="transl_class" id="5407" title="Click to correct">होकर</span> <span class="transl_class" id="5408" title="Click to correct">कहता</span> ,"<span class="transl_class" id="5409" title="Click to correct">पीला</span> <span class="transl_class" id="5410" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="5411" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="5412" title="Click to correct">होता</span> | <span class="transl_class" id="5413" title="Click to correct">कौन</span> <span class="transl_class" id="5414" title="Click to correct">सा</span> <span class="transl_class" id="5415" title="Click to correct">रंग</span> <span class="transl_class" id="5416" title="Click to correct">होता</span> <span class="transl_class" id="5417" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="5418" title="Click to correct">टुल्लू</span> ?"</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5419" title="Click to correct">पता</span> <span class="transl_class" id="5420" title="Click to correct">नहीं</span> |" <span class="transl_class" id="5421" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="5422" title="Click to correct">कहता</span> , "<span class="transl_class" id="5423" title="Click to correct">कहना</span> <span class="transl_class" id="5424" title="Click to correct">मुश्किल</span> <span class="transl_class" id="5425" title="Click to correct">है</span> | <span class="transl_class" id="5426" title="Click to correct">सूरज</span> <span class="transl_class" id="5427" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="5428" title="Click to correct">देख</span> <span class="transl_class" id="5429" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="5430" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="5431" title="Click to correct">सकते</span> <span class="transl_class" id="5432" title="Click to correct">ना</span> |<span class="transl_class" id="5433" title="Click to correct">आँख</span> <span class="transl_class" id="5434" title="Click to correct">जलने</span> <span class="transl_class" id="5435" title="Click to correct">लगती</span> <span class="transl_class" id="5436" title="Click to correct">है</span> |"</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5437" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="5438" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="5439" title="Click to correct">करें</span> ? <span class="transl_class" id="5440" title="Click to correct">इसे</span> <span class="transl_class" id="5441" title="Click to correct">ऐसे</span> <span class="transl_class" id="5442" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="5443" title="Click to correct">छोड़</span> <span class="transl_class" id="5444" title="Click to correct">दें</span> ? "</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5445" title="Click to correct">सुबह</span> <span class="transl_class" id="5446" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="5447" title="Click to correct">सूरज</span> <span class="transl_class" id="5448" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="5449" title="Click to correct">देख</span> <span class="transl_class" id="5450" title="Click to correct">सकते</span> <span class="transl_class" id="5451" title="Click to correct">हैं</span> <span class="transl_class" id="5452" title="Click to correct">उसका</span> <span class="transl_class" id="5453" title="Click to correct">रंग</span> <span class="transl_class" id="5454" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="5455" title="Click to correct">लाल</span> <span class="transl_class" id="5456" title="Click to correct">होता</span> <span class="transl_class" id="5457" title="Click to correct">है</span> |"</div><div><br />
<span class="transl_class" id="5458" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="5459" title="Click to correct">पीले</span> <span class="transl_class" id="5460" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="5461" title="Click to correct">लाल</span> <span class="transl_class" id="5462" title="Click to correct">रंग</span> <span class="transl_class" id="5463" title="Click to correct">मलने</span> <span class="transl_class" id="5464" title="Click to correct">लगता</span> ....</div><div><br />
... <span class="transl_class" id="5465" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="5466" title="Click to correct">आज</span> <span class="transl_class" id="5467" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="5468" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="5469" title="Click to correct">सो</span> <span class="transl_class" id="5470" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="5471" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="5472" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="5473" title="Click to correct">उठा</span> <span class="transl_class" id="5474" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="5475" title="Click to correct">उसकी</span> <span class="transl_class" id="5476" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="5477" title="Click to correct">बगल</span> <span class="transl_class" id="5478" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="5479" title="Click to correct">कमरे</span> <span class="transl_class" id="5480" title="Click to correct">से</span>, <span class="transl_class" id="5481" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="5482" title="Click to correct">उनका</span> '<span class="transl_class" id="5483" title="Click to correct">पंखा</span> <span class="transl_class" id="5484" title="Click to correct">खड़</span>' <span class="transl_class" id="5485" title="Click to correct">या</span> '<span class="transl_class" id="5486" title="Click to correct">शयन</span> <span class="transl_class" id="5487" title="Click to correct">कक्ष</span>' <span class="transl_class" id="5488" title="Click to correct">होता</span> , <span class="transl_class" id="5489" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="5490" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="5491" title="Click to correct">उठाने</span> <span class="transl_class" id="5492" title="Click to correct">लगी</span> ,"<span class="transl_class" id="5493" title="Click to correct">उठ</span> <span class="transl_class" id="5494" title="Click to correct">बेटा</span>, <span class="transl_class" id="5495" title="Click to correct">सुबह</span> <span class="transl_class" id="5496" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="5497" title="Click to correct">गयी</span> <span class="transl_class" id="5498" title="Click to correct">देख</span> | <span class="transl_class" id="5499" title="Click to correct">टिल्लू </span> <span class="transl_class" id="5500" title="Click to correct">नहा</span> <span class="transl_class" id="5501" title="Click to correct">धोकर</span>, <span class="transl_class" id="5502" title="Click to correct">नाश्ता</span> <span class="transl_class" id="5503" title="Click to correct">करके</span> <span class="transl_class" id="5504" title="Click to correct">आ</span> <span class="transl_class" id="5505" title="Click to correct">गया</span> <span class="transl_class" id="5506" title="Click to correct">है</span> ..."</div><div><br />
<span class="transl_class" id="5507" title="Click to correct">यह</span> <span class="transl_class" id="5508" title="Click to correct">बात</span> <span class="transl_class" id="5509" title="Click to correct">अर्ध</span> <span class="transl_class" id="5510" title="Click to correct">सत्य</span> <span class="transl_class" id="5511" title="Click to correct">थी |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="5512" title="Click to correct">अस्तु</span> , <span class="transl_class" id="5513" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="5514" title="Click to correct">बैठक</span> <span class="transl_class" id="5515" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5516" title="Click to correct">बैठा</span> <span class="transl_class" id="5517" title="Click to correct">इंतज़ार</span> <span class="transl_class" id="5518" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="5519" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="5520" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="5521" title="Click to correct">बैठक</span> <span class="transl_class" id="5522" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="5523" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="5524" title="Click to correct">छोर</span> <span class="transl_class" id="5525" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="5526" title="Click to correct">लेकर</span> <span class="transl_class" id="5527" title="Click to correct">दूसरे</span> <span class="transl_class" id="5528" title="Click to correct">छोर</span> <span class="transl_class" id="5529" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="5530" title="Click to correct">पलंग</span> <span class="transl_class" id="5531" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="5532" title="Click to correct">निवाड</span> <span class="transl_class" id="5533" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="5534" title="Click to correct">रस्सी</span> <span class="transl_class" id="5535" title="Click to correct">झूलती</span> <span class="transl_class" id="5536" title="Click to correct">हुई</span> <span class="transl_class" id="5537" title="Click to correct">लटकी</span> <span class="transl_class" id="5538" title="Click to correct">थी</span>, <span class="transl_class" id="5539" title="Click to correct">जिसके</span> <span class="transl_class" id="5540" title="Click to correct">बीचों</span> <span class="transl_class" id="5541" title="Click to correct">बीच</span> <span class="transl_class" id="5542" title="Click to correct">पुराने</span> <span class="transl_class" id="5543" title="Click to correct">चादर</span> <span class="transl_class" id="5544" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="5545" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="5546" title="Click to correct">पोटलीनुमा</span> <span class="transl_class" id="5547" title="Click to correct">पालना</span> <span class="transl_class" id="5548" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="5549" title="Click to correct">उसमें</span> <span class="transl_class" id="5550" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="5551" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="5552" title="Click to correct">नन्ही</span> <span class="transl_class" id="5553" title="Click to correct">सी</span> <span class="transl_class" id="5554" title="Click to correct">बहन</span> <span class="transl_class" id="5555" title="Click to correct">पिंकी</span> <span class="transl_class" id="5556" title="Click to correct">सो</span> <span class="transl_class" id="5557" title="Click to correct">रही</span> <span class="transl_class" id="5558" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="5559" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="5560" title="Click to correct">देखा</span> , <span class="transl_class" id="5561" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="5562" title="Click to correct">बैठक</span> <span class="transl_class" id="5563" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5564" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="5565" title="Click to correct">रिकॉर्ड</span> <span class="transl_class" id="5566" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="5567" title="Click to correct">ओर</span> <span class="transl_class" id="5568" title="Click to correct">टंगा</span> <span class="transl_class" id="5569" title="Click to correct">हुआ</span> <span class="transl_class" id="5570" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="5571" title="Click to correct">वही</span> <span class="transl_class" id="5572" title="Click to correct">रिकॉर्ड</span> <span class="transl_class" id="5573" title="Click to correct">जिस</span> <span class="transl_class" id="5574" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="5575" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="5576" title="Click to correct">चित्र</span> <span class="transl_class" id="5577" title="Click to correct">बना</span> <span class="transl_class" id="5578" title="Click to correct">हुआ</span> <span class="transl_class" id="5579" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="5580" title="Click to correct">वही</span>, <span class="transl_class" id="5581" title="Click to correct">जिसमें</span> <span class="transl_class" id="5582" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="5583" title="Click to correct">नदी</span> <span class="transl_class" id="5584" title="Click to correct">समुद्र</span> <span class="transl_class" id="5585" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="5586" title="Click to correct">मिल</span> <span class="transl_class" id="5587" title="Click to correct">रही</span> <span class="transl_class" id="5588" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="5589" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="5590" title="Click to correct">आदमी</span> <span class="transl_class" id="5591" title="Click to correct">सर</span> <span class="transl_class" id="5592" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="5593" title="Click to correct">टोकरी</span> <span class="transl_class" id="5594" title="Click to correct">लिए</span> <span class="transl_class" id="5595" title="Click to correct">जा</span> <span class="transl_class" id="5596" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="5597" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="5598" title="Click to correct">सूरज</span> <span class="transl_class" id="5599" title="Click to correct">निकल</span> <span class="transl_class" id="5600" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="5601" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="5602" title="Click to correct">दूर</span> <span class="transl_class" id="5603" title="Click to correct">समुद्र</span> <span class="transl_class" id="5604" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5605" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="5606" title="Click to correct">जहाज</span> <span class="transl_class" id="5607" title="Click to correct">जा</span> <span class="transl_class" id="5608" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="5609" title="Click to correct">था |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="5610" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="5611" title="Click to correct">मेरी</span> <span class="transl_class" id="5612" title="Click to correct">निगाह</span> <span class="transl_class" id="5613" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="5614" title="Click to correct">बगल</span> <span class="transl_class" id="5615" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="5616" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="5617" title="Click to correct">फोटो</span> <span class="transl_class" id="5618" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="5619" title="Click to correct">अटक</span> <span class="transl_class" id="5620" title="Click to correct">गयी |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="5621" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="5622" title="Click to correct">लड़का</span> <span class="transl_class" id="5623" title="Click to correct">हाथ</span> <span class="transl_class" id="5624" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5625" title="Click to correct">फूलों</span> <span class="transl_class" id="5626" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="5627" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="5628" title="Click to correct">गुलदस्ता</span> <span class="transl_class" id="5629" title="Click to correct">लिए</span> <span class="transl_class" id="5630" title="Click to correct">बैठा</span> <span class="transl_class" id="5631" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="5632" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="5633" title="Click to correct">मुस्कुरा</span> <span class="transl_class" id="5634" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="5635" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="5636" title="Click to correct">फोटो</span> <span class="transl_class" id="5637" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="5638" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="5639" title="Click to correct">फूलों</span> <span class="transl_class" id="5640" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="5641" title="Click to correct">माला</span> <span class="transl_class" id="5642" title="Click to correct">लटकी</span> <span class="transl_class" id="5643" title="Click to correct">थी</span>, <span class="transl_class" id="5644" title="Click to correct">जिसके</span> <span class="transl_class" id="5645" title="Click to correct">फ़ूल</span> <span class="transl_class" id="5646" title="Click to correct">सूख</span> <span class="transl_class" id="5647" title="Click to correct">गए</span> <span class="transl_class" id="5648" title="Click to correct">थे |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5649" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="5650" title="Click to correct">यह</span> <span class="transl_class" id="5651" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="5652" title="Click to correct">है</span> ? "<span class="transl_class" id="5653" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="5654" title="Click to correct">मुन्ना</span>, <span class="transl_class" id="5655" title="Click to correct">थोडा</span> <span class="transl_class" id="5656" title="Click to correct">अजीब</span> <span class="transl_class" id="5657" title="Click to correct">लग</span> <span class="transl_class" id="5658" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="5659" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="5660" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="5661" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="5662" title="Click to correct">पास</span> <span class="transl_class" id="5663" title="Click to correct">जाकर</span> <span class="transl_class" id="5664" title="Click to correct">देखने</span> <span class="transl_class" id="5665" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="5666" title="Click to correct">कोशिश</span> <span class="transl_class" id="5667" title="Click to correct">क़ी</span> | <span class="transl_class" id="5668" title="Click to correct">तभी</span> <span class="transl_class" id="5669" title="Click to correct">नींद</span> <span class="transl_class" id="5670" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="5671" title="Click to correct">जागकर</span> <span class="transl_class" id="5672" title="Click to correct">पिंकी</span> <span class="transl_class" id="5673" title="Click to correct">रोने</span> <span class="transl_class" id="5674" title="Click to correct">लगी |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="5675" title="Click to correct">रेडियो</span> <span class="transl_class" id="5676" title="Click to correct">सीलोन</span> <span class="transl_class" id="5677" title="Click to correct">से</span> "<span class="transl_class" id="5678" title="Click to correct">आप</span> <span class="transl_class" id="5679" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="5680" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="5681" title="Click to correct">गीत</span>" <span class="transl_class" id="5682" title="Click to correct">कार्यक्रम</span> <span class="transl_class" id="5683" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5684" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="5685" title="Click to correct">धीमी</span> <span class="transl_class" id="5686" title="Click to correct">आवाज़</span> <span class="transl_class" id="5687" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5688" title="Click to correct">गाना</span> <span class="transl_class" id="5689" title="Click to correct">बज</span> <span class="transl_class" id="5690" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="5691" title="Click to correct">था |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5692" title="Click to correct">आंटी</span> , <span class="transl_class" id="5693" title="Click to correct">पिंकी</span> <span class="transl_class" id="5694" title="Click to correct">रो</span> <span class="transl_class" id="5695" title="Click to correct">रही</span> <span class="transl_class" id="5696" title="Click to correct">है</span> |" <span class="transl_class" id="5697" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="5698" title="Click to correct">आवाज़</span> <span class="transl_class" id="5699" title="Click to correct">दी |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5700" title="Click to correct">हाँ</span> <span class="transl_class" id="5701" title="Click to correct">टिल्लू </span>, <span class="transl_class" id="5702" title="Click to correct">थोडा</span>, <span class="transl_class" id="5703" title="Click to correct">झूला</span> <span class="transl_class" id="5704" title="Click to correct">झुला</span> <span class="transl_class" id="5705" title="Click to correct">दे</span> |" मुन्ना की माँ मुझे 'टिल्लू' ही कहती थी | </div><div><br />
<span class="transl_class" id="5706" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="5707" title="Click to correct">झूला</span> <span class="transl_class" id="5708" title="Click to correct">हलके</span> <span class="transl_class" id="5709" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="5710" title="Click to correct">खींचा </span> <span class="transl_class" id="5711" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="5712" title="Click to correct">छोड़</span> <span class="transl_class" id="5713" title="Click to correct">दिया</span> | <span class="transl_class" id="5714" title="Click to correct">पिंकी</span> <span class="transl_class" id="5715" title="Click to correct">थोड़ी</span> <span class="transl_class" id="5716" title="Click to correct">देर</span> <span class="transl_class" id="5717" title="Click to correct">चुप</span> <span class="transl_class" id="5718" title="Click to correct">रही</span>, <span class="transl_class" id="5719" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="5720" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="5721" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="5722" title="Click to correct">रोने</span> <span class="transl_class" id="5723" title="Click to correct">लगी |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="5724" title="Click to correct">मुन्ने</span> <span class="transl_class" id="5725" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="5726" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="5727" title="Click to correct">रसोई</span> <span class="transl_class" id="5728" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="5729" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="5730" title="Click to correct">आई</span> <span class="transl_class" id="5731" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="5732" title="Click to correct">उसे</span> <span class="transl_class" id="5733" title="Click to correct">उठाकर</span> <span class="transl_class" id="5734" title="Click to correct">अपने</span> <span class="transl_class" id="5735" title="Click to correct">साथ</span> <span class="transl_class" id="5736" title="Click to correct">ले</span> <span class="transl_class" id="5737" title="Click to correct">गयी |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="5738" title="Click to correct">थोड़ी</span> <span class="transl_class" id="5739" title="Click to correct">देर</span> <span class="transl_class" id="5740" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5741" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="5742" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="5743" title="Click to correct">आ</span> <span class="transl_class" id="5744" title="Click to correct">गया |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5745" title="Click to correct">बाहर</span> <span class="transl_class" id="5746" title="Click to correct">चलें</span> ?" <span class="transl_class" id="5747" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="5748" title="Click to correct">धीमे</span> <span class="transl_class" id="5749" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="5750" title="Click to correct">पूछा |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5751" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="5752" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="5753" title="Click to correct">खेलने</span> <span class="transl_class" id="5754" title="Click to correct">जाऊं</span> ?" <span class="transl_class" id="5755" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="5756" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="5757" title="Click to correct">पूछा |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5758" title="Click to correct">ठीक</span> <span class="transl_class" id="5759" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="5760" title="Click to correct">बेटा</span> | <span class="transl_class" id="5761" title="Click to correct">ज्यादा</span> <span class="transl_class" id="5762" title="Click to correct">दूर</span> <span class="transl_class" id="5763" title="Click to correct">मत</span> <span class="transl_class" id="5764" title="Click to correct">जाना</span> <span class="transl_class" id="5765" title="Click to correct">नाश्ता</span> <span class="transl_class" id="5766" title="Click to correct">बन</span> <span class="transl_class" id="5767" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="5768" title="Click to correct">है</span> |"</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5769" title="Click to correct">सस्ते</span> <span class="transl_class" id="5770" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5771" title="Click to correct">छूट</span> <span class="transl_class" id="5772" title="Click to correct">गए</span> <span class="transl_class" id="5773" title="Click to correct">आज</span> |" <span class="transl_class" id="5774" title="Click to correct">दोनों</span> <span class="transl_class" id="5775" title="Click to correct">उछलते</span> <span class="transl_class" id="5776" title="Click to correct">हुए</span> <span class="transl_class" id="5777" title="Click to correct">बाहर</span> <span class="transl_class" id="5778" title="Click to correct">आ</span> <span class="transl_class" id="5779" title="Click to correct">गए |</span><br />
<br />
*************<br />
<br />
<span class="transl_class" id="5780" title="Click to correct">मुझे</span> <span class="transl_class" id="5781" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="5782" title="Click to correct">पूछना</span> <span class="transl_class" id="5783" title="Click to correct">था</span> - <span class="transl_class" id="5784" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="5785" title="Click to correct">रिकॉर्ड</span> <span class="transl_class" id="5786" title="Click to correct">वाला</span> <span class="transl_class" id="5787" title="Click to correct">सवाल</span> <span class="transl_class" id="5788" title="Click to correct">नहीं </span> - <span class="transl_class" id="5789" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="5790" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="5791" title="Click to correct">रिकार्ड</span> <span class="transl_class" id="5792" title="Click to correct">दीवार</span> <span class="transl_class" id="5793" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="5794" title="Click to correct">लटका</span> <span class="transl_class" id="5795" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="5796" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="5797" title="Click to correct">दामू</span> <span class="transl_class" id="5798" title="Click to correct">चाचा</span> <span class="transl_class" id="5799" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="5800" title="Click to correct">शादी</span> <span class="transl_class" id="5801" title="Click to correct">वाला</span> <span class="transl_class" id="5802" title="Click to correct">रिकार्ड</span> <span class="transl_class" id="5803" title="Click to correct">है</span> | <span class="transl_class" id="5804" title="Click to correct">मेरी</span> <span class="transl_class" id="5805" title="Click to correct">कल्पना</span> <span class="transl_class" id="5806" title="Click to correct">शक्ति</span> <span class="transl_class" id="5807" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5808" title="Click to correct">रिकार्ड</span> <span class="transl_class" id="5809" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="5810" title="Click to correct">बगल</span> <span class="transl_class" id="5811" title="Click to correct">वाले</span> <span class="transl_class" id="5812" title="Click to correct">फोटो</span> <span class="transl_class" id="5813" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="5814" title="Click to correct">ध्यान</span> <span class="transl_class" id="5815" title="Click to correct">आ</span> <span class="transl_class" id="5816" title="Click to correct">गया</span> | <span class="transl_class" id="5817" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="5818" title="Click to correct">दूसरा</span> <span class="transl_class" id="5819" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="5820" title="Click to correct">सवाल</span> <span class="transl_class" id="5821" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="5822" title="Click to correct">पूछ</span> <span class="transl_class" id="5823" title="Click to correct">डाला |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5824" title="Click to correct">मुन्ना</span>, <span class="transl_class" id="5825" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="5826" title="Click to correct">दीवार</span> <span class="transl_class" id="5827" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="5828" title="Click to correct">टंगी</span> <span class="transl_class" id="5829" title="Click to correct">फोटो</span> <span class="transl_class" id="5830" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5831" title="Click to correct">फ़ूल</span> <span class="transl_class" id="5832" title="Click to correct">क्यों</span> <span class="transl_class" id="5833" title="Click to correct">लटका</span> <span class="transl_class" id="5834" title="Click to correct">था</span> ?"</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5835" title="Click to correct">कौन</span> <span class="transl_class" id="5836" title="Click to correct">सी</span> <span class="transl_class" id="5837" title="Click to correct">फोटो</span> ?"</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5838" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="5839" title="Click to correct">रिकार्ड</span> <span class="transl_class" id="5840" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="5841" title="Click to correct">बगल</span> <span class="transl_class" id="5842" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5843" title="Click to correct">टंगी</span> <span class="transl_class" id="5844" title="Click to correct">तेरी</span> <span class="transl_class" id="5845" title="Click to correct">फोटो</span> |"</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5846" title="Click to correct">मेरी</span> <span class="transl_class" id="5847" title="Click to correct">फोटो</span> ? <span class="transl_class" id="5848" title="Click to correct">धत</span>, <span class="transl_class" id="5849" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="5850" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="5851" title="Click to correct">मेरे</span> <span class="transl_class" id="5852" title="Click to correct">भाई</span> <span class="transl_class" id="5853" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="5854" title="Click to correct">फोटो</span> <span class="transl_class" id="5855" title="Click to correct">है</span> |"</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5856" title="Click to correct">तेरा</span> <span class="transl_class" id="5857" title="Click to correct">भाई</span> ? <span class="transl_class" id="5858" title="Click to correct">कभी</span> <span class="transl_class" id="5859" title="Click to correct">देखा</span> <span class="transl_class" id="5860" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="5861" title="Click to correct">कहाँ</span> <span class="transl_class" id="5862" title="Click to correct">रहता</span> <span class="transl_class" id="5863" title="Click to correct">है</span> ?"</div><div><br />
" <span class="transl_class" id="5864" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="5865" title="Click to correct">मर</span> <span class="transl_class" id="5866" title="Click to correct">गया</span> ....."<br />
<br />
*************<br />
<br />
<span class="transl_class" id="5867" title="Click to correct">अभी</span> <span class="transl_class" id="5868" title="Click to correct">मुन्ना</span> <span class="transl_class" id="5869" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="5870" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="5871" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="5872" title="Click to correct">बाहर</span> <span class="transl_class" id="5873" title="Click to correct">निकले</span> <span class="transl_class" id="5874" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="5875" title="Click to correct">थे</span> <span class="transl_class" id="5876" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="5877" title="Click to correct">सामने</span> <span class="transl_class" id="5878" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="5879" title="Click to correct">बबन</span> <span class="transl_class" id="5880" title="Click to correct">आता</span> <span class="transl_class" id="5881" title="Click to correct">दिखाई</span> <span class="transl_class" id="5882" title="Click to correct">दिया</span> | <span class="transl_class" id="5883" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="5884" title="Click to correct">मुंह</span> <span class="transl_class" id="5885" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5886" title="Click to correct">हैज़</span> <span class="transl_class" id="5887" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="5888" title="Click to correct">पत्ते</span> <span class="transl_class" id="5889" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="5890" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="5891" title="Click to correct">पूंगी</span> दबी <span class="transl_class" id="5892" title="Click to correct">थी |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5893" title="Click to correct">पूं</span>, <span class="transl_class" id="5894" title="Click to correct">पाऊँ</span> <span class="transl_class" id="5895" title="Click to correct">पूं</span> " <span class="transl_class" id="5896" title="Click to correct">उसने</span> <span class="transl_class" id="5897" title="Click to correct">हमें</span> <span class="transl_class" id="5898" title="Click to correct">देखकर</span> <span class="transl_class" id="5899" title="Click to correct">पूंगी</span> <span class="transl_class" id="5900" title="Click to correct">बजाई |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="5901" title="Click to correct">हम</span> <span class="transl_class" id="5902" title="Click to correct">लोग</span> <span class="transl_class" id="5903" title="Click to correct">झटपट</span> <span class="transl_class" id="5904" title="Click to correct">पाटिल</span> <span class="transl_class" id="5905" title="Click to correct">साहब</span> <span class="transl_class" id="5906" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="5907" title="Click to correct">पास</span> <span class="transl_class" id="5908" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="5909" title="Click to correct">नाली</span> <span class="transl_class" id="5910" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5911" title="Click to correct">कूदे</span> | <span class="transl_class" id="5912" title="Click to correct">हैज़</span> <span class="transl_class" id="5913" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="5914" title="Click to correct">एक-</span><span class="transl_class" id="5915" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="5916" title="Click to correct">पत्ती</span> <span class="transl_class" id="5917" title="Click to correct">तोड़ी</span> , <span class="transl_class" id="5918" title="Click to correct">आनन्</span> <span class="transl_class" id="5919" title="Click to correct">फानन</span> <span class="transl_class" id="5920" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5921" title="Click to correct">उसे</span> <span class="transl_class" id="5922" title="Click to correct">मोड़ा</span> , <span class="transl_class" id="5923" title="Click to correct">संकरे</span> <span class="transl_class" id="5924" title="Click to correct">छोर</span> <span class="transl_class" id="5925" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="5926" title="Click to correct">दबाकर</span> <span class="transl_class" id="5927" title="Click to correct">चपटा</span> <span class="transl_class" id="5928" title="Click to correct">किया</span> <span class="transl_class" id="5929" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="5930" title="Click to correct">शुरू</span> <span class="transl_class" id="5931" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="5932" title="Click to correct">गए |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5933" title="Click to correct">पूं</span>, <span class="transl_class" id="5934" title="Click to correct">पूं</span> <span class="transl_class" id="5935" title="Click to correct">पूं</span> "</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5936" title="Click to correct">पाऊँ</span>, <span class="transl_class" id="5937" title="Click to correct">फट</span>, <span class="transl_class" id="5938" title="Click to correct">पाऊँ</span> , <span class="transl_class" id="5939" title="Click to correct">फट</span>, <span class="transl_class" id="5940" title="Click to correct">पूं</span>, <span class="transl_class" id="5941" title="Click to correct">पूं</span>, <span class="transl_class" id="5942" title="Click to correct">पूं</span> "</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5943" title="Click to correct">पूं</span>, <span class="transl_class" id="5944" title="Click to correct">पूं</span>, <span class="transl_class" id="5945" title="Click to correct">पूं</span>" <span class="transl_class" id="5946" title="Click to correct">उसने</span> <span class="transl_class" id="5947" title="Click to correct">अभिवादन</span> <span class="transl_class" id="5948" title="Click to correct">किया |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5949" title="Click to correct">पों</span>, <span class="transl_class" id="5950" title="Click to correct">पूं</span>, <span class="transl_class" id="5951" title="Click to correct">पूं</span>" ,"<span class="transl_class" id="5952" title="Click to correct">पूं</span>, <span class="transl_class" id="5953" title="Click to correct">पूं</span>, <span class="transl_class" id="5954" title="Click to correct">पूं</span>" <span class="transl_class" id="5955" title="Click to correct">हमने</span> <span class="transl_class" id="5956" title="Click to correct">प्रत्युत्तर</span> <span class="transl_class" id="5957" title="Click to correct">दिया |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5958" title="Click to correct">पूं</span>, <span class="transl_class" id="5959" title="Click to correct">पूं</span>, <span class="transl_class" id="5960" title="Click to correct">पूं</span>" " <span class="transl_class" id="5961" title="Click to correct">पूं</span>, <span class="transl_class" id="5962" title="Click to correct">पूं</span>, <span class="transl_class" id="5963" title="Click to correct">पूं</span>" , "<span class="transl_class" id="5964" title="Click to correct">पूं</span>, <span class="transl_class" id="5965" title="Click to correct">पूं</span>, <span class="transl_class" id="5966" title="Click to correct">पूं</span>" <span class="transl_class" id="5967" title="Click to correct">हम</span> <span class="transl_class" id="5968" title="Click to correct">सुर</span> <span class="transl_class" id="5969" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="5970" title="Click to correct">सुर</span> <span class="transl_class" id="5971" title="Click to correct">मिलाते</span> <span class="transl_class" id="5972" title="Click to correct">हुए</span> <span class="transl_class" id="5973" title="Click to correct">सड़क</span> <span class="transl_class" id="5974" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="5975" title="Click to correct">छोटी</span> <span class="transl_class" id="5976" title="Click to correct">पुलिया</span> <span class="transl_class" id="5977" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="5978" title="Click to correct">ओर</span> <span class="transl_class" id="5979" title="Click to correct">चल</span> <span class="transl_class" id="5980" title="Click to correct">पड़े |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5981" title="Click to correct">पूं</span> <span class="transl_class" id="5982" title="Click to correct">पूं</span> <span class="transl_class" id="5983" title="Click to correct">पूं</span>" , "<span class="transl_class" id="5984" title="Click to correct">पूं</span>, <span class="transl_class" id="5985" title="Click to correct">पूं</span> , <span class="transl_class" id="5986" title="Click to correct">पूं</span> " , "<span class="transl_class" id="5987" title="Click to correct">पूं</span> , <span class="transl_class" id="5988" title="Click to correct">पूं</span>, <span class="transl_class" id="5989" title="Click to correct">पूं</span>"</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="5990" title="Click to correct">पूं</span>SSS , <span class="transl_class" id="5991" title="Click to correct">पूं</span>SSS , <span class="transl_class" id="5992" title="Click to correct">पूं</span>SS " <span class="transl_class" id="5993" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="5994" title="Click to correct">आवाज़</span> <span class="transl_class" id="5995" title="Click to correct">हमारे</span> <span class="transl_class" id="5996" title="Click to correct">पीछे</span> <span class="transl_class" id="5997" title="Click to correct">गूंजी</span> <span class="transl_class" id="5998" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="5999" title="Click to correct">हमारी</span> <span class="transl_class" id="6000" title="Click to correct">पूंगी</span> <span class="transl_class" id="6001" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="6002" title="Click to correct">सम्मिलित</span> <span class="transl_class" id="6003" title="Click to correct">आवाज़</span> <span class="transl_class" id="6004" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="6005" title="Click to correct">कम</span> <span class="transl_class" id="6006" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="6007" title="Click to correct">कम</span> <span class="transl_class" id="6008" title="Click to correct">पांच</span> <span class="transl_class" id="6009" title="Click to correct">गुनी</span> ज्यादा <span class="transl_class" id="6010" title="Click to correct">बुलंद</span> <span class="transl_class" id="6011" title="Click to correct">थी |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="6012" title="Click to correct">हमने</span> <span class="transl_class" id="6013" title="Click to correct">पीछे</span> <span class="transl_class" id="6014" title="Click to correct">मुड़कर</span> <span class="transl_class" id="6015" title="Click to correct">देखा</span>, | <span class="transl_class" id="6016" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="6017" title="Click to correct">पूंगी</span>, <span class="transl_class" id="6018" title="Click to correct">बल्कि</span> <span class="transl_class" id="6019" title="Click to correct">तुतरू</span> <span class="transl_class" id="6020" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="6021" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="6022" title="Click to correct">कम</span> <span class="transl_class" id="6023" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="6024" title="Click to correct">कम</span> <span class="transl_class" id="6025" title="Click to correct">दस</span> <span class="transl_class" id="6026" title="Click to correct">गुना</span> <span class="transl_class" id="6027" title="Click to correct">बड़ा</span> <span class="transl_class" id="6028" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="6029" title="Click to correct">उसे</span> <span class="transl_class" id="6030" title="Click to correct">छोटी</span> <span class="transl_class" id="6031" title="Click to correct">शहनाई</span> <span class="transl_class" id="6032" title="Click to correct">कहा</span> <span class="transl_class" id="6033" title="Click to correct">जाये</span> <span class="transl_class" id="6034" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="6035" title="Click to correct">अतिशयोक्ति</span> <span class="transl_class" id="6036" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="6037" title="Click to correct">होगी |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="6038" title="Click to correct">हमें</span> <span class="transl_class" id="6039" title="Click to correct">देखकर</span> <span class="transl_class" id="6040" title="Click to correct">फेरी</span> <span class="transl_class" id="6041" title="Click to correct">वाले</span> <span class="transl_class" id="6042" title="Click to correct">की</span> तुतरू की<span class="transl_class" id="6043" title="Click to correct">आवाज़</span> <span class="transl_class" id="6044" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="6045" title="Click to correct">तेज</span> <span class="transl_class" id="6046" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="6047" title="Click to correct">गयी</span> <span class="transl_class" id="6048" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="6049" title="Click to correct">उसने</span> <span class="transl_class" id="6050" title="Click to correct">दूसरे</span> <span class="transl_class" id="6051" title="Click to correct">हाथ</span> <span class="transl_class" id="6052" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="6053" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="6054" title="Click to correct">झुनझुना</span> <span class="transl_class" id="6055" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="6056" title="Click to correct">बजाया</span></div><div>
"<span class="transl_class" id="6057" title="Click to correct">पूं</span>, <span class="transl_class" id="6058" title="Click to correct">पूं</span>, <span class="transl_class" id="6059" title="Click to correct">पू</span>, " "<span class="transl_class" id="6060" title="Click to correct">झं</span>, <span class="transl_class" id="6061" title="Click to correct">झं</span> <span class="transl_class" id="6062" title="Click to correct">झं</span> " |</div><div><br />
<span class="transl_class" id="6063" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="6064" title="Click to correct">झुनझुना</span> <span class="transl_class" id="6065" title="Click to correct">नहीं</span> , <span class="transl_class" id="6066" title="Click to correct">शायद</span> "<span class="transl_class" id="6067" title="Click to correct">घुनघुना</span>" <span class="transl_class" id="6068" title="Click to correct">था |</span> <span class="transl_class" id="6069" title="Click to correct">मेरा</span> <span class="transl_class" id="6070" title="Click to correct">मतलब</span>, <span class="transl_class" id="6071" title="Click to correct">अगर</span> <span class="transl_class" id="6072" title="Click to correct">आप</span> <span class="transl_class" id="6073" title="Click to correct">किसी</span> <span class="transl_class" id="6074" title="Click to correct">गुब्बारे</span> <span class="transl_class" id="6075" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="6076" title="Click to correct">कंकड़</span> <span class="transl_class" id="6077" title="Click to correct">भरकर</span>, <span class="transl_class" id="6078" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="6079" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="6080" title="Click to correct">छोर</span> <span class="transl_class" id="6081" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="6082" title="Click to correct">बांस</span> <span class="transl_class" id="6083" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="6084" title="Click to correct">पतली</span> <span class="transl_class" id="6085" title="Click to correct">डंडी</span> <span class="transl_class" id="6086" title="Click to correct">बांधकर</span> <span class="transl_class" id="6087" title="Click to correct">हिलाएं</span> <span class="transl_class" id="6088" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="6089" title="Click to correct">उसे</span> <span class="transl_class" id="6090" title="Click to correct">आप</span> <span class="transl_class" id="6091" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="6092" title="Click to correct">कहेंगे</span> ? <span class="transl_class" id="6093" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="6094" title="Click to correct">पास</span> <span class="transl_class" id="6095" title="Click to correct">धातु</span> , <span class="transl_class" id="6096" title="Click to correct">शायद</span> <span class="transl_class" id="6097" title="Click to correct">टीन</span> <span class="transl_class" id="6098" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="6099" title="Click to correct">बना</span> <span class="transl_class" id="6100" title="Click to correct">झुनझुना</span> <span class="transl_class" id="6101" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="6102" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="6103" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="6104" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="6105" title="Click to correct">बड़े</span> <span class="transl_class" id="6106" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="6107" title="Click to correct">बोर्ड</span> <span class="transl_class" id="6108" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="6109" title="Click to correct">कहीं</span> <span class="transl_class" id="6110" title="Click to correct">लटका</span> <span class="transl_class" id="6111" title="Click to correct">हुआ</span> <span class="transl_class" id="6112" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="6113" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="6114" title="Click to correct">बोर्ड</span> <span class="transl_class" id="6115" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="6116" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="6117" title="Click to correct">ढेर</span> <span class="transl_class" id="6118" title="Click to correct">सारी</span> <span class="transl_class" id="6119" title="Click to correct">चीजें</span> <span class="transl_class" id="6120" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="6121" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="6122" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="6123" title="Click to correct">सीटी</span> - <span class="transl_class" id="6124" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="6125" title="Click to correct">टीन</span> <span class="transl_class" id="6126" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="6127" title="Click to correct">बनी</span> <span class="transl_class" id="6128" title="Click to correct">होती</span> <span class="transl_class" id="6129" title="Click to correct">थी</span> <span class="transl_class" id="6130" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="6131" title="Click to correct">जिसके</span> <span class="transl_class" id="6132" title="Click to correct">अन्दर</span> <span class="transl_class" id="6133" title="Click to correct">छोटे</span> <span class="transl_class" id="6134" title="Click to correct">बेर</span> <span class="transl_class" id="6135" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="6136" title="Click to correct">हलकी</span> <span class="transl_class" id="6137" title="Click to correct">गुठली</span> <span class="transl_class" id="6138" title="Click to correct">होती</span> <span class="transl_class" id="6139" title="Click to correct">थी</span> , <span class="transl_class" id="6140" title="Click to correct">रंग</span> <span class="transl_class" id="6141" title="Click to correct">बिरंगे</span> <span class="transl_class" id="6142" title="Click to correct">कागज़</span> <span class="transl_class" id="6143" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="6144" title="Click to correct">फिरकियाँ</span> - <span class="transl_class" id="6145" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="6146" title="Click to correct">हवा</span> <span class="transl_class" id="6147" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6148" title="Click to correct">साथ</span> <span class="transl_class" id="6149" title="Click to correct">हौले</span> <span class="transl_class" id="6150" title="Click to correct">हौले</span> <span class="transl_class" id="6151" title="Click to correct">घूम</span> <span class="transl_class" id="6152" title="Click to correct">रही</span> <span class="transl_class" id="6153" title="Click to correct">थी</span> - <span class="transl_class" id="6154" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="6155" title="Click to correct">वामावर्त</span> , <span class="transl_class" id="6156" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="6157" title="Click to correct">दक्षिणावर्त</span> | <span class="transl_class" id="6158" title="Click to correct">लड़कियों</span> <span class="transl_class" id="6159" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6160" title="Click to correct">लिए</span> <span class="transl_class" id="6161" title="Click to correct">पतले</span> <span class="transl_class" id="6162" title="Click to correct">प्लास्टिक</span> <span class="transl_class" id="6163" title="Click to correct">की</span>, <span class="transl_class" id="6164" title="Click to correct">सांचे</span> <span class="transl_class" id="6165" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="6166" title="Click to correct">ढली</span> <span class="transl_class" id="6167" title="Click to correct">गुडिया</span> <span class="transl_class" id="6168" title="Click to correct">होती</span> <span class="transl_class" id="6169" title="Click to correct">थी</span>, <span class="transl_class" id="6170" title="Click to correct">जिसके</span> <span class="transl_class" id="6171" title="Click to correct">पांवों</span> <span class="transl_class" id="6172" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="6173" title="Click to correct">ओर</span> <span class="transl_class" id="6174" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="6175" title="Click to correct">गोल</span>, <span class="transl_class" id="6176" title="Click to correct">छोटी</span> <span class="transl_class" id="6177" title="Click to correct">सी</span> <span class="transl_class" id="6178" title="Click to correct">सीटी</span> <span class="transl_class" id="6179" title="Click to correct">लगी</span> <span class="transl_class" id="6180" title="Click to correct">होती</span> <span class="transl_class" id="6181" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="6182" title="Click to correct">महिलाओं</span> <span class="transl_class" id="6183" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6184" title="Click to correct">लिए</span> <span class="transl_class" id="6185" title="Click to correct">बालों</span> <span class="transl_class" id="6186" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="6187" title="Click to correct">लगाने</span> <span class="transl_class" id="6188" title="Click to correct">वाले</span> <span class="transl_class" id="6189" title="Click to correct">क्लिप</span> <span class="transl_class" id="6190" title="Click to correct">और</span> "<span class="transl_class" id="6191" title="Click to correct">बाल</span> <span class="transl_class" id="6192" title="Click to correct">चोटिया</span> " <span class="transl_class" id="6193" title="Click to correct">थी |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="6194" title="Click to correct">बाल</span> <span class="transl_class" id="6195" title="Click to correct">चोटिया</span> " - <span class="transl_class" id="6196" title="Click to correct">हाँ. </span><span class="transl_class" id="6197" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="6198" title="Click to correct">ज़माना</span> <span class="transl_class" id="6199" title="Click to correct">था</span> - <span class="transl_class" id="6200" title="Click to correct">महिलाओं</span> <span class="transl_class" id="6201" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="6202" title="Click to correct">लड़कियों</span> <span class="transl_class" id="6203" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6204" title="Click to correct">लिए</span> <span class="transl_class" id="6205" title="Click to correct">लम्बे</span> <span class="transl_class" id="6206" title="Click to correct">बालों</span> <span class="transl_class" id="6207" title="Click to correct">का</span> ! "<span class="transl_class" id="6208" title="Click to correct">उम्र</span> <span class="transl_class" id="6209" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="6210" title="Click to correct">सत्रह</span> <span class="transl_class" id="6211" title="Click to correct">साल</span> <span class="transl_class" id="6212" title="Click to correct">कितनी</span> <span class="transl_class" id="6213" title="Click to correct">लम्बी</span> <span class="transl_class" id="6214" title="Click to correct">चोटी</span> <span class="transl_class" id="6215" title="Click to correct">है</span> ..." <span class="transl_class" id="6216" title="Click to correct">जिन</span> <span class="transl_class" id="6217" title="Click to correct">महिलाओं</span> <span class="transl_class" id="6218" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6219" title="Click to correct">बाल</span> <span class="transl_class" id="6220" title="Click to correct">रीठा</span> , <span class="transl_class" id="6221" title="Click to correct">शिकाकाई</span> <span class="transl_class" id="6222" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="6223" title="Click to correct">पीली</span> <span class="transl_class" id="6224" title="Click to correct">मिट्टी</span> <span class="transl_class" id="6225" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="6226" title="Click to correct">धोने</span> <span class="transl_class" id="6227" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="6228" title="Click to correct">आंवला</span> <span class="transl_class" id="6229" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="6230" title="Click to correct">नारियल</span> <span class="transl_class" id="6231" title="Click to correct">तेल</span> <span class="transl_class" id="6232" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6233" title="Click to correct">बावजूद</span> <span class="transl_class" id="6234" title="Click to correct">लम्बे</span> <span class="transl_class" id="6235" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="6236" title="Click to correct">होते</span> <span class="transl_class" id="6237" title="Click to correct">थे</span> , <span class="transl_class" id="6238" title="Click to correct">उनके</span> <span class="transl_class" id="6239" title="Click to correct">लिए</span> "<span class="transl_class" id="6240" title="Click to correct">बाल</span> <span class="transl_class" id="6241" title="Click to correct">चोटिया</span> " <span class="transl_class" id="6242" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="6243" title="Click to correct">लम्बे</span> <span class="transl_class" id="6244" title="Click to correct">बाल</span> <span class="transl_class" id="6245" title="Click to correct">थे</span> - <span class="transl_class" id="6246" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="6247" title="Click to correct">फेरी</span> <span class="transl_class" id="6248" title="Click to correct">वालों</span> <span class="transl_class" id="6249" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6250" title="Click to correct">बोर्ड</span> <span class="transl_class" id="6251" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6252" title="Click to correct">अभिन्न</span> <span class="transl_class" id="6253" title="Click to correct">अंग</span> <span class="transl_class" id="6254" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="6255" title="Click to correct">उनके</span> <span class="transl_class" id="6256" title="Click to correct">पास</span> <span class="transl_class" id="6257" title="Click to correct">पुरुषों</span> <span class="transl_class" id="6258" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6259" title="Click to correct">लिए</span> <span class="transl_class" id="6260" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="6261" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="6262" title="Click to correct">होता</span> <span class="transl_class" id="6263" title="Click to correct">था</span> - <span class="transl_class" id="6264" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="6265" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="6266" title="Click to correct">नहीं</span> | <span class="transl_class" id="6267" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="6268" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="6269" title="Click to correct">पुरुषों</span> <span class="transl_class" id="6270" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="6271" title="Click to correct">फेरी</span> <span class="transl_class" id="6272" title="Click to correct">वालों</span> <span class="transl_class" id="6273" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="6274" title="Click to correct">विश्वास</span> <span class="transl_class" id="6275" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="6276" title="Click to correct">होता</span> <span class="transl_class" id="6277" title="Click to correct">था</span> , <span class="transl_class" id="6278" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="6279" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="6280" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="6281" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="6282" title="Click to correct">नहीं</span>, <span class="transl_class" id="6283" title="Click to correct">बल्कि</span> <span class="transl_class" id="6284" title="Click to correct">काम</span> <span class="transl_class" id="6285" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="6286" title="Click to correct">जाते</span> <span class="transl_class" id="6287" title="Click to correct">थे</span>, <span class="transl_class" id="6288" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="6289" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="6290" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="6291" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="6292" title="Click to correct">प्रसाधन</span> <span class="transl_class" id="6293" title="Click to correct">उपयोग</span> <span class="transl_class" id="6294" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="6295" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="6296" title="Click to correct">लाते</span> <span class="transl_class" id="6297" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="6298" title="Click to correct">न</span> <span class="transl_class" id="6299" title="Click to correct">खिलौनों</span> <span class="transl_class" id="6300" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="6301" title="Click to correct">खेलते</span> <span class="transl_class" id="6302" title="Click to correct">थे</span> , <span class="transl_class" id="6303" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="6304" title="Click to correct">उनके</span> <span class="transl_class" id="6305" title="Click to correct">लिए</span> <span class="transl_class" id="6306" title="Click to correct">फेरी वाले </span><span class="transl_class" id="6307" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="6308" title="Click to correct">सस्ती</span> <span class="transl_class" id="6309" title="Click to correct">चीज</span> <span class="transl_class" id="6310" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="6311" title="Click to correct">बना</span> <span class="transl_class" id="6312" title="Click to correct">पाते</span> <span class="transl_class" id="6313" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="6314" title="Click to correct">राजेश</span> <span class="transl_class" id="6315" title="Click to correct">खन्ना</span> <span class="transl_class" id="6316" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="6317" title="Click to correct">आशा</span> <span class="transl_class" id="6318" title="Click to correct">पारेख</span> <span class="transl_class" id="6319" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6320" title="Click to correct">फोटो</span> <span class="transl_class" id="6321" title="Click to correct">लगे</span> <span class="transl_class" id="6322" title="Click to correct">काले</span> <span class="transl_class" id="6323" title="Click to correct">बटुए</span> <span class="transl_class" id="6324" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="6325" title="Click to correct">काले</span> <span class="transl_class" id="6326" title="Click to correct">चश्मे</span> , <span class="transl_class" id="6327" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="6328" title="Click to correct">कड़ा</span> <span class="transl_class" id="6329" title="Click to correct">जरुर</span> <span class="transl_class" id="6330" title="Click to correct">सुपेला</span> <span class="transl_class" id="6331" title="Click to correct">बाज़ार</span> <span class="transl_class" id="6332" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6333" title="Click to correct">फेरी</span> <span class="transl_class" id="6334" title="Click to correct">वालों</span> <span class="transl_class" id="6335" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6336" title="Click to correct">पास</span> <span class="transl_class" id="6337" title="Click to correct">दिख</span> <span class="transl_class" id="6338" title="Click to correct">जाता</span> <span class="transl_class" id="6339" title="Click to correct">था</span> , <span class="transl_class" id="6340" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="6341" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="6342" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="6343" title="Click to correct">जगह</span> <span class="transl_class" id="6344" title="Click to correct">बैठे</span> <span class="transl_class" id="6345" title="Click to correct">रहते</span> <span class="transl_class" id="6346" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="6347" title="Click to correct">सड़कों</span> <span class="transl_class" id="6348" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="6349" title="Click to correct">घूमते</span> <span class="transl_class" id="6350" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="6351" title="Click to correct">थे |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="6352" title="Click to correct">पों</span>, <span class="transl_class" id="6353" title="Click to correct">पूं</span> <span class="transl_class" id="6354" title="Click to correct">पूं</span>, <span class="transl_class" id="6355" title="Click to correct">घन</span> <span class="transl_class" id="6356" title="Click to correct">घन</span> <span class="transl_class" id="6357" title="Click to correct">घन</span> " <span class="transl_class" id="6358" title="Click to correct">फेरी</span> <span class="transl_class" id="6359" title="Click to correct">वाले</span> <span class="transl_class" id="6360" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="6361" title="Click to correct">सम्मान</span> <span class="transl_class" id="6362" title="Click to correct">करते</span> <span class="transl_class" id="6363" title="Click to correct">हमने</span> <span class="transl_class" id="6364" title="Click to correct">उसे</span> <span class="transl_class" id="6365" title="Click to correct">जाने</span> <span class="transl_class" id="6366" title="Click to correct">दिया</span> | <span class="transl_class" id="6367" title="Click to correct">जब</span> <span class="transl_class" id="6368" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="6369" title="Click to correct">सामने</span> <span class="transl_class" id="6370" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="6371" title="Click to correct">गुजरा</span> <span class="transl_class" id="6372" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="6373" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="6374" title="Click to correct">देखा</span> ...</div><div><br /></div><div> <span class="transl_class" id="6375" title="Click to correct">अरे</span> <span class="transl_class" id="6376" title="Click to correct">हाँ</span> .. <span class="transl_class" id="6377" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="6378" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="6379" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="6380" title="Click to correct">बताना</span> <span class="transl_class" id="6381" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="6382" title="Click to correct">भूल</span> <span class="transl_class" id="6383" title="Click to correct">गया</span> <span class="transl_class" id="6384" title="Click to correct">था</span> ...</div><div><br /></div><div>
<span class="transl_class" id="6385" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="6386" title="Click to correct">बोर्ड</span> <span class="transl_class" id="6387" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="6388" title="Click to correct">लट्टू</span> <span class="transl_class" id="6389" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="6390" title="Click to correct">रस्सियाँ</span>, <span class="transl_class" id="6391" title="Click to correct">सफ़ेद</span> <span class="transl_class" id="6392" title="Click to correct">रस्सियाँ</span>, <span class="transl_class" id="6393" title="Click to correct">जिन</span> <span class="transl_class" id="6394" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="6395" title="Click to correct">लाल</span> , <span class="transl_class" id="6396" title="Click to correct">नीले</span> <span class="transl_class" id="6397" title="Click to correct">धागों</span> <span class="transl_class" id="6398" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="6399" title="Click to correct">धारियां</span> <span class="transl_class" id="6400" title="Click to correct">थीं</span>, <span class="transl_class" id="6401" title="Click to correct">झूल</span> <span class="transl_class" id="6402" title="Click to correct">रही</span> <span class="transl_class" id="6403" title="Click to correct">थी</span> ...<br />
<br />
<span class="transl_class" id="6404" title="Click to correct">फेरी</span> <span class="transl_class" id="6405" title="Click to correct">वाला</span> <span class="transl_class" id="6406" title="Click to correct">चलते</span> <span class="transl_class" id="6407" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="6408" title="Click to correct">रहा</span> | <span class="transl_class" id="6409" title="Click to correct">हम</span> <span class="transl_class" id="6410" title="Click to correct">उसे</span> <span class="transl_class" id="6411" title="Click to correct">सड़क</span> <span class="transl_class" id="6412" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6413" title="Click to correct">अंतिम</span> <span class="transl_class" id="6414" title="Click to correct">छोर</span> <span class="transl_class" id="6415" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="6416" title="Click to correct">जाते</span> <span class="transl_class" id="6417" title="Click to correct">हुए</span> <span class="transl_class" id="6418" title="Click to correct">देखते</span> <span class="transl_class" id="6419" title="Click to correct">रहे</span> | <span class="transl_class" id="6420" title="Click to correct">जब</span> <span class="transl_class" id="6421" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="6422" title="Click to correct">छोटी</span> <span class="transl_class" id="6423" title="Click to correct">पुलिया</span> <span class="transl_class" id="6424" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="6425" title="Click to correct">पार</span> <span class="transl_class" id="6426" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="6427" title="Click to correct">गया</span> <span class="transl_class" id="6428" title="Click to correct">तो</span> हम <span class="transl_class" id="6429" title="Click to correct">वहीँ</span> <span class="transl_class" id="6430" title="Click to correct">ठिठक</span> <span class="transl_class" id="6431" title="Click to correct">गए |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="6432" title="Click to correct">आखिर</span> <span class="transl_class" id="6433" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="6434" title="Click to correct">पास</span> <span class="transl_class" id="6435" title="Click to correct">ऐसा</span> <span class="transl_class" id="6436" title="Click to correct">कौन</span> <span class="transl_class" id="6437" title="Click to correct">सा</span> <span class="transl_class" id="6438" title="Click to correct">खिलौना</span> <span class="transl_class" id="6439" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="6440" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="6441" title="Click to correct">हमें</span> <span class="transl_class" id="6442" title="Click to correct">मन्त्र</span> <span class="transl_class" id="6443" title="Click to correct">मुग्ध</span> <span class="transl_class" id="6444" title="Click to correct">करता</span> ? <span class="transl_class" id="6445" title="Click to correct">झुनझुना</span> ? <span class="transl_class" id="6446" title="Click to correct">घुनघुना</span> ? <span class="transl_class" id="6447" title="Click to correct">कौन</span> <span class="transl_class" id="6448" title="Click to correct">सी</span> <span class="transl_class" id="6449" title="Click to correct">बड़ी</span> <span class="transl_class" id="6450" title="Click to correct">बात</span> <span class="transl_class" id="6451" title="Click to correct">है</span> ? <span class="transl_class" id="6452" title="Click to correct">जब</span> <span class="transl_class" id="6453" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="6454" title="Click to correct">तोरई</span> <span class="transl_class" id="6455" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="6456" title="Click to correct">फल</span> , <span class="transl_class" id="6457" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="6458" title="Click to correct">पहुँच</span> <span class="transl_class" id="6459" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6460" title="Click to correct">बाहर</span> <span class="transl_class" id="6461" title="Click to correct">होता</span> , <span class="transl_class" id="6462" title="Click to correct">पक़</span> <span class="transl_class" id="6463" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="6464" title="Click to correct">बेल</span> <span class="transl_class" id="6465" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="6466" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="6467" title="Click to correct">लटके</span> <span class="transl_class" id="6468" title="Click to correct">लटके</span> <span class="transl_class" id="6469" title="Click to correct">सूख</span> <span class="transl_class" id="6470" title="Click to correct">जाता</span> <span class="transl_class" id="6471" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="6472" title="Click to correct">गिर</span> <span class="transl_class" id="6473" title="Click to correct">जाता</span> <span class="transl_class" id="6474" title="Click to correct">उसे</span> <span class="transl_class" id="6475" title="Click to correct">हिलाकर</span> <span class="transl_class" id="6476" title="Click to correct">देखो</span> - <span class="transl_class" id="6477" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="6478" title="Click to correct">झुनझुने</span> <span class="transl_class" id="6479" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="6480" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="6481" title="Click to correct">अच्छा</span> <span class="transl_class" id="6482" title="Click to correct">बजता</span> <span class="transl_class" id="6483" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="6484" title="Click to correct">आखिर</span> <span class="transl_class" id="6485" title="Click to correct">गुब्बारे</span> <span class="transl_class" id="6486" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="6487" title="Click to correct">कंकड़</span> <span class="transl_class" id="6488" title="Click to correct">भरकर</span> <span class="transl_class" id="6489" title="Click to correct">तुम</span> <span class="transl_class" id="6490" title="Click to correct">छोटे</span> <span class="transl_class" id="6491" title="Click to correct">बच्चों</span> <span class="transl_class" id="6492" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="6493" title="Click to correct">उल्लू</span> <span class="transl_class" id="6494" title="Click to correct">बना</span> <span class="transl_class" id="6495" title="Click to correct">सकते</span> <span class="transl_class" id="6496" title="Click to correct">हो</span> , <span class="transl_class" id="6497" title="Click to correct">हमें</span> <span class="transl_class" id="6498" title="Click to correct">नहीं</span> | <span class="transl_class" id="6499" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="6500" title="Click to correct">कागज़</span> <span class="transl_class" id="6501" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="6502" title="Click to correct">फिरकी</span> ? <span class="transl_class" id="6503" title="Click to correct">हाँ</span> , <span class="transl_class" id="6504" title="Click to correct">कितना</span> <span class="transl_class" id="6505" title="Click to correct">आसान</span> <span class="transl_class" id="6506" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="6507" title="Click to correct">उसे</span> <span class="transl_class" id="6508" title="Click to correct">बनाना</span> | <span class="transl_class" id="6509" title="Click to correct">कैंची</span> , <span class="transl_class" id="6510" title="Click to correct">कागज़</span> , <span class="transl_class" id="6511" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="6512" title="Click to correct">आल</span> <span class="transl_class" id="6513" title="Click to correct">पिन</span> <span class="transl_class" id="6514" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="6515" title="Click to correct">गन्ने</span> <span class="transl_class" id="6516" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6517" title="Click to correct">फूल</span> <span class="transl_class" id="6518" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="6519" title="Click to correct">सरकंडा</span> = <span class="transl_class" id="6520" title="Click to correct">इतना</span> <span class="transl_class" id="6521" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="6522" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="6523" title="Click to correct">चाहिए</span> | <span class="transl_class" id="6524" title="Click to correct">यह</span> <span class="transl_class" id="6525" title="Click to correct">बात</span> <span class="transl_class" id="6526" title="Click to correct">अलग</span> <span class="transl_class" id="6527" title="Click to correct">थी</span> <span class="transl_class" id="6528" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="6529" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="6530" title="Click to correct">में</span>, <span class="transl_class" id="6531" title="Click to correct">किसी</span> <span class="transl_class" id="6532" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6533" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="6534" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="6535" title="Click to correct">में</span> , <span class="transl_class" id="6536" title="Click to correct">कैंची</span> <span class="transl_class" id="6537" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="6538" title="Click to correct">थी</span>, <span class="transl_class" id="6539" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="6540" title="Click to correct">हमें</span> <span class="transl_class" id="6541" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="6542" title="Click to correct">हाथ</span> <span class="transl_class" id="6543" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="6544" title="Click to correct">लगाने</span> <span class="transl_class" id="6545" title="Click to correct">देता</span> <span class="transl_class" id="6546" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="6547" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="6548" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="6549" title="Click to correct">बच्चों</span> <span class="transl_class" id="6550" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6551" title="Click to correct">हाथ</span> <span class="transl_class" id="6552" title="Click to correct">कट</span> <span class="transl_class" id="6553" title="Click to correct">जायेंगे</span> , <span class="transl_class" id="6554" title="Click to correct">या</span> , <span class="transl_class" id="6555" title="Click to correct">मूँछ</span> <span class="transl_class" id="6556" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="6557" title="Click to correct">कपडे</span> <span class="transl_class" id="6558" title="Click to correct">काटने</span> <span class="transl_class" id="6559" title="Click to correct">वाली</span> <span class="transl_class" id="6560" title="Click to correct">कैंची</span> <span class="transl_class" id="6561" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="6562" title="Click to correct">धार</span> <span class="transl_class" id="6563" title="Click to correct">खराब</span> <span class="transl_class" id="6564" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="6565" title="Click to correct">जाएगी</span> | <span class="transl_class" id="6566" title="Click to correct">आल</span> <span class="transl_class" id="6567" title="Click to correct">पिन</span> <span class="transl_class" id="6568" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="6569" title="Click to correct">मिलना</span> <span class="transl_class" id="6570" title="Click to correct">थोडा</span> <span class="transl_class" id="6571" title="Click to correct">सा</span> <span class="transl_class" id="6572" title="Click to correct">मुश्किल</span> <span class="transl_class" id="6573" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="6574" title="Click to correct">गन्ने</span> <span class="transl_class" id="6575" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6576" title="Click to correct">सरकंडे</span> <span class="transl_class" id="6577" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="6578" title="Click to correct">जगह</span> <span class="transl_class" id="6579" title="Click to correct">सींक</span> <span class="transl_class" id="6580" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="6581" title="Click to correct">झाड़ू</span> <span class="transl_class" id="6582" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6583" title="Click to correct">तिनके</span> <span class="transl_class" id="6584" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="6585" title="Click to correct">काम</span> <span class="transl_class" id="6586" title="Click to correct">चलाना</span> <span class="transl_class" id="6587" title="Click to correct">पड़ता</span> <span class="transl_class" id="6588" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="6589" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="6590" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="6591" title="Click to correct">चोरी</span> <span class="transl_class" id="6592" title="Click to correct">छिपे</span> - <span class="transl_class" id="6593" title="Click to correct">अगर</span> <span class="transl_class" id="6594" title="Click to correct">माँ</span> <span class="transl_class" id="6595" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="6596" title="Click to correct">देख</span> <span class="transl_class" id="6597" title="Click to correct">लिया</span> <span class="transl_class" id="6598" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="6599" title="Click to correct">उसी</span> <span class="transl_class" id="6600" title="Click to correct">झाड़ू</span> <span class="transl_class" id="6601" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="6602" title="Click to correct">पिटाई</span> <span class="transl_class" id="6603" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="6604" title="Click to correct">जाती</span> <span class="transl_class" id="6605" title="Click to correct">थी |</span></div><div><br />
... <span class="transl_class" id="6606" title="Click to correct">हाँ</span>, <span class="transl_class" id="6607" title="Click to correct">काग़ज़</span> <span class="transl_class" id="6608" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="6609" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="6610" title="Click to correct">कमी</span> <span class="transl_class" id="6611" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="6612" title="Click to correct">थी</span> .....</div><div><br />
..... <span class="transl_class" id="6613" title="Click to correct">अचानक</span> <span class="transl_class" id="6614" title="Click to correct">सड़क</span> <span class="transl_class" id="6615" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="6616" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="6617" title="Click to correct">टेम्पो</span> <span class="transl_class" id="6618" title="Click to correct">मुड़ा</span> <span class="transl_class" id="6619" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="6620" title="Click to correct">हम</span> <span class="transl_class" id="6621" title="Click to correct">तीनों</span> <span class="transl_class" id="6622" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="6623" title="Click to correct">पीछे</span> <span class="transl_class" id="6624" title="Click to correct">पीछे</span> <span class="transl_class" id="6625" title="Click to correct">दौड़</span> <span class="transl_class" id="6626" title="Click to correct">पड़े |</span></div><div><br />टेम्पो <span class="transl_class" id="6628" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6629" title="Click to correct">दोनों</span> <span class="transl_class" id="6630" title="Click to correct">तरफ</span> <span class="transl_class" id="6631" title="Click to correct">बड़े</span>-<span class="transl_class" id="6632" title="Click to correct">बड़े</span> <span class="transl_class" id="6633" title="Click to correct">पोस्टर</span> <span class="transl_class" id="6634" title="Click to correct">लटके</span> <span class="transl_class" id="6635" title="Click to correct">हुए</span> <span class="transl_class" id="6636" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="6637" title="Click to correct">ऊपर</span> <span class="transl_class" id="6638" title="Click to correct">भोंपू</span> <span class="transl_class" id="6639" title="Click to correct">लगा</span> <span class="transl_class" id="6640" title="Click to correct">हुआ</span> <span class="transl_class" id="6641" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="6642" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="6643" title="Click to correct">किस</span> <span class="transl_class" id="6644" title="Click to correct">पिक्चर</span> <span class="transl_class" id="6645" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="6646" title="Click to correct">प्रचार</span> <span class="transl_class" id="6647" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="6648" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="6649" title="Click to correct">था</span>, <span class="transl_class" id="6650" title="Click to correct">हमें</span> <span class="transl_class" id="6651" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="6652" title="Click to correct">सरोकार</span> <span class="transl_class" id="6653" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="6654" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="6655" title="Click to correct">हम</span> <span class="transl_class" id="6656" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="6657" title="Click to correct">बस</span>, '<span class="transl_class" id="6658" title="Click to correct">फोरम</span>' <span class="transl_class" id="6659" title="Click to correct">बटोरने</span> <span class="transl_class" id="6660" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6661" title="Click to correct">लिए</span> <span class="transl_class" id="6662" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="6663" title="Click to correct">पीछे</span> <span class="transl_class" id="6664" title="Click to correct">दौड़</span> <span class="transl_class" id="6665" title="Click to correct">पड़े</span> | <span class="transl_class" id="6666" title="Click to correct">अन्दर</span> <span class="transl_class" id="6667" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="6668" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="6669" title="Click to correct">आदमी</span> <span class="transl_class" id="6670" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="6671" title="Click to correct">हाथ</span> <span class="transl_class" id="6672" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="6673" title="Click to correct">पांच</span> <span class="transl_class" id="6674" title="Click to correct">छः</span> '<span class="transl_class" id="6675" title="Click to correct">फॉर्म</span>' <span class="transl_class" id="6676" title="Click to correct">हवा</span> <span class="transl_class" id="6677" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="6678" title="Click to correct">उछाला</span> <span class="transl_class" id="6679" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="6680" title="Click to correct">हम</span> <span class="transl_class" id="6681" title="Click to correct">टूट</span> <span class="transl_class" id="6682" title="Click to correct">पड़े</span> <span class="transl_class" id="6683" title="Click to correct">पता</span> <span class="transl_class" id="6684" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="6685" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="6686" title="Click to correct">चला</span> <span class="transl_class" id="6687" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="6688" title="Click to correct">भोंपू</span> <span class="transl_class" id="6689" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="6690" title="Click to correct">आवाज़</span> <span class="transl_class" id="6691" title="Click to correct">सुनकर</span>, <span class="transl_class" id="6692" title="Click to correct">सोगा</span> <span class="transl_class" id="6693" title="Click to correct">मगिन्द्र</span>, <span class="transl_class" id="6694" title="Click to correct">छोटा</span> , <span class="transl_class" id="6695" title="Click to correct">सुरेश</span> - <span class="transl_class" id="6696" title="Click to correct">सब</span> <span class="transl_class" id="6697" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="6698" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="6699" title="Click to correct">भागकर</span> <span class="transl_class" id="6700" title="Click to correct">टेम्पो</span> <span class="transl_class" id="6701" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6702" title="Click to correct">पीछे</span> <span class="transl_class" id="6703" title="Click to correct">हवा</span> <span class="transl_class" id="6704" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="6705" title="Click to correct">तैर</span> <span class="transl_class" id="6706" title="Click to correct">रहे</span> <span class="transl_class" id="6707" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="6708" title="Click to correct">जाहिर</span> <span class="transl_class" id="6709" title="Click to correct">है</span>, <span class="transl_class" id="6710" title="Click to correct">कुछ</span> '<span class="transl_class" id="6711" title="Click to correct">फॉर्म</span>' <span class="transl_class" id="6712" title="Click to correct">छीना</span> <span class="transl_class" id="6713" title="Click to correct">झपटी</span> <span class="transl_class" id="6714" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="6715" title="Click to correct">फट</span> <span class="transl_class" id="6716" title="Click to correct">गए</span> , <span class="transl_class" id="6717" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="6718" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="6719" title="Click to correct">अक्षत</span> <span class="transl_class" id="6720" title="Click to correct">हैज़</span> <span class="transl_class" id="6721" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="6722" title="Click to correct">झाडी</span> <span class="transl_class" id="6723" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="6724" title="Click to correct">अटक</span> <span class="transl_class" id="6725" title="Click to correct">गए</span> | <span class="transl_class" id="6726" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="6727" title="Click to correct">बबन</span> <span class="transl_class" id="6728" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="6729" title="Click to correct">दुस्साहस</span> <span class="transl_class" id="6730" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="6731" title="Click to correct">देखो</span> - <span class="transl_class" id="6732" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="6733" title="Click to correct">टेम्पो</span> <span class="transl_class" id="6734" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6735" title="Click to correct">पीछे</span> <span class="transl_class" id="6736" title="Click to correct">लटक</span> <span class="transl_class" id="6737" title="Click to correct">गया</span> | <span class="transl_class" id="6738" title="Click to correct">अन्दर</span> <span class="transl_class" id="6739" title="Click to correct">आदमी</span> <span class="transl_class" id="6740" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="6741" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="6742" title="Click to correct">बेशरम</span> <span class="transl_class" id="6743" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="6744" title="Click to correct">डंडी</span> <span class="transl_class" id="6745" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="6746" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="6747" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="6748" title="Click to correct">वार</span> <span class="transl_class" id="6749" title="Click to correct">किया</span> , <span class="transl_class" id="6750" title="Click to correct">जिसे</span> <span class="transl_class" id="6751" title="Click to correct">उसने</span> <span class="transl_class" id="6752" title="Click to correct">झेल</span> <span class="transl_class" id="6753" title="Click to correct">लिया</span> | <span class="transl_class" id="6754" title="Click to correct">इतना</span> <span class="transl_class" id="6755" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="6756" title="Click to correct">नहीं</span>, <span class="transl_class" id="6757" title="Click to correct">उसने</span> <span class="transl_class" id="6758" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="6759" title="Click to correct">दूसरे</span> <span class="transl_class" id="6760" title="Click to correct">हाथ</span> <span class="transl_class" id="6761" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="6762" title="Click to correct">पकड़े</span> '<span class="transl_class" id="6763" title="Click to correct">फोरम</span>' <span class="transl_class" id="6764" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="6765" title="Click to correct">झपट्टा</span> <span class="transl_class" id="6766" title="Click to correct">मारा</span> <span class="transl_class" id="6767" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="6768" title="Click to correct">अगले</span> <span class="transl_class" id="6769" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="6770" title="Click to correct">क्षण</span> <span class="transl_class" id="6771" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="6772" title="Click to correct">हाथ</span> <span class="transl_class" id="6773" title="Click to correct">में</span> '<span class="transl_class" id="6774" title="Click to correct">फोरम</span>' <span class="transl_class" id="6775" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="6776" title="Click to correct">पूरा</span> <span class="transl_class" id="6777" title="Click to correct">गट्ठा</span> <span class="transl_class" id="6778" title="Click to correct">था</span> ...| उसने फुर्ती से फॉर्म का वह समूचा गट्ठर हवा में उछाल दिया |</div><div><br />
... <span class="transl_class" id="6779" title="Click to correct">एक</span> , <span class="transl_class" id="6780" title="Click to correct">दो</span> , <span class="transl_class" id="6781" title="Click to correct">तीन</span>.... <span class="transl_class" id="6782" title="Click to correct">दस</span> .., <span class="transl_class" id="6783" title="Click to correct">बारह</span> ..., <span class="transl_class" id="6784" title="Click to correct">यानि</span> <span class="transl_class" id="6785" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="6786" title="Click to correct">जितने</span> <span class="transl_class" id="6787" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="6788" title="Click to correct">हमें</span> <span class="transl_class" id="6789" title="Click to correct">गिनती</span> <span class="transl_class" id="6790" title="Click to correct">आती</span> <span class="transl_class" id="6791" title="Click to correct">थी</span>, <span class="transl_class" id="6792" title="Click to correct">उतने</span> '<span class="transl_class" id="6793" title="Click to correct">फोरम</span>' <span class="transl_class" id="6794" title="Click to correct">हमारे</span> <span class="transl_class" id="6795" title="Click to correct">पास</span> <span class="transl_class" id="6796" title="Click to correct">थे</span> ...</div><div><br />
... <span class="transl_class" id="6797" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="6798" title="Click to correct">काग़ज़</span> <span class="transl_class" id="6799" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="6800" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="6801" title="Click to correct">कमी</span> <span class="transl_class" id="6802" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="6803" title="Click to correct">थी</span> ...</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="6804" title="Click to correct">कौन</span> <span class="transl_class" id="6805" title="Click to correct">सी</span> <span class="transl_class" id="6806" title="Click to correct">पिक्चर</span> <span class="transl_class" id="6807" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="6808" title="Click to correct">बे</span> ? <span class="transl_class" id="6809" title="Click to correct">देख</span> <span class="transl_class" id="6810" title="Click to correct">जरा</span> ?" <span class="transl_class" id="6811" title="Click to correct">सोगा</span> <span class="transl_class" id="6812" title="Click to correct">बोला |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="6813" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="6814" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="6815" title="Click to correct">पिक्चर</span> <span class="transl_class" id="6816" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="6817" title="Click to correct">तो</span> '<span class="transl_class" id="6818" title="Click to correct">फोरम</span>' <span class="transl_class" id="6819" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="6820" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="6821" title="Click to correct">पिक्चर</span> <span class="transl_class" id="6822" title="Click to correct">का</span> '<span class="transl_class" id="6823" title="Click to correct">फोरम</span>' <span class="transl_class" id="6824" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="6825" title="Click to correct">बहुरंगी</span> <span class="transl_class" id="6826" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="6827" title="Click to correct">चिकना</span> , <span class="transl_class" id="6828" title="Click to correct">मोटे</span> <span class="transl_class" id="6829" title="Click to correct">काग़ज़</span> <span class="transl_class" id="6830" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="6831" title="Click to correct">होता</span> <span class="transl_class" id="6832" title="Click to correct">था</span> } <span class="transl_class" id="6833" title="Click to correct">यह</span> <span class="transl_class" id="6834" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="6835" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="6836" title="Click to correct">रंगी</span>, <span class="transl_class" id="6837" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="6838" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="6839" title="Click to correct">लाल</span> <span class="transl_class" id="6840" title="Click to correct">या</span> <span class="transl_class" id="6841" title="Click to correct">हरा</span> <span class="transl_class" id="6842" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="6843" title="Click to correct">पतले</span> <span class="transl_class" id="6844" title="Click to correct">काग़ज़</span> <span class="transl_class" id="6845" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="6846" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="6847" title="Click to correct">हाँ </span>, <span class="transl_class" id="6848" title="Click to correct">उसमें</span> <span class="transl_class" id="6849" title="Click to correct">आदमी</span> <span class="transl_class" id="6850" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="6851" title="Click to correct">ज्यादा</span> <span class="transl_class" id="6852" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="6853" title="Click to correct">जानवरों</span> <span class="transl_class" id="6854" title="Click to correct">क़ी</span> <span class="transl_class" id="6855" title="Click to correct">तस्वीरें</span> <span class="transl_class" id="6856" title="Click to correct">थी</span> ... !</div><div><br />
...... <span class="transl_class" id="6857" title="Click to correct">सर्कस</span> ....<br />
<br />
*************<br />
<br />
'<span class="transl_class" id="6858" title="Click to correct">रेमन</span> <span class="transl_class" id="6859" title="Click to correct">सरकस</span> ' <span class="transl_class" id="6860" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="6861" title="Click to correct">भिलाई</span> <span class="transl_class" id="6862" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="6863" title="Click to correct">धूम</span> <span class="transl_class" id="6864" title="Click to correct">मचा</span> <span class="transl_class" id="6865" title="Click to correct">दी</span> <span class="transl_class" id="6866" title="Click to correct">थी</span> ... </div><div><br />
<span class="transl_class" id="6867" title="Click to correct">जहाँ</span> <span class="transl_class" id="6868" title="Click to correct">देखो</span> <span class="transl_class" id="6869" title="Click to correct">वहां</span> <span class="transl_class" id="6870" title="Click to correct">सर्कस</span> <span class="transl_class" id="6871" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6872" title="Click to correct">पोस्टर</span> <span class="transl_class" id="6873" title="Click to correct">लगे</span> <span class="transl_class" id="6874" title="Click to correct">दिखाई</span> <span class="transl_class" id="6875" title="Click to correct">दे</span> <span class="transl_class" id="6876" title="Click to correct">जाते</span> <span class="transl_class" id="6877" title="Click to correct">थे</span> |<span class="transl_class" id="6878" title="Click to correct">रस्सी</span> <span class="transl_class" id="6879" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="6880" title="Click to correct">चलती</span> <span class="transl_class" id="6881" title="Click to correct">लड़की</span> , <span class="transl_class" id="6882" title="Click to correct">झूले</span> <span class="transl_class" id="6883" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="6884" title="Click to correct">करतब</span> <span class="transl_class" id="6885" title="Click to correct">दिखाते</span> <span class="transl_class" id="6886" title="Click to correct">जांबाज़</span>, <span class="transl_class" id="6887" title="Click to correct">शेरों</span> <span class="transl_class" id="6888" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="6889" title="Click to correct">घिरा</span> <span class="transl_class" id="6890" title="Click to correct">रिंग</span> <span class="transl_class" id="6891" title="Click to correct">मास्टर</span> , <span class="transl_class" id="6892" title="Click to correct">नाक</span> <span class="transl_class" id="6893" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="6894" title="Click to correct">टमाटर</span> <span class="transl_class" id="6895" title="Click to correct">लगाये</span> <span class="transl_class" id="6896" title="Click to correct">जोकर</span> - <span class="transl_class" id="6897" title="Click to correct">सब</span> <span class="transl_class" id="6898" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="6899" title="Click to correct">आकर्षक</span> <span class="transl_class" id="6900" title="Click to correct">था | </span><span class="transl_class" id="6901" title="Click to correct">लेकिन</span> <span class="transl_class" id="6902" title="Click to correct">इन</span> <span class="transl_class" id="6903" title="Click to correct">सबके</span> <span class="transl_class" id="6904" title="Click to correct">अलावा</span> <span class="transl_class" id="6905" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="6906" title="Click to correct">खेल</span> <span class="transl_class" id="6907" title="Click to correct">ऐसा</span> <span class="transl_class" id="6908" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="6909" title="Click to correct">जिस</span> <span class="transl_class" id="6910" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="6911" title="Click to correct">सब</span> <span class="transl_class" id="6912" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="6913" title="Click to correct">आँखें</span> <span class="transl_class" id="6914" title="Click to correct">टिक</span> <span class="transl_class" id="6915" title="Click to correct">जाती</span> <span class="transl_class" id="6916" title="Click to correct">थी |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="6917" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="6918" title="Click to correct">हाथी</span> <span class="transl_class" id="6919" title="Click to correct">वाकई</span> <span class="transl_class" id="6920" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="6921" title="Click to correct">बोतल</span> <span class="transl_class" id="6922" title="Click to correct">गिनता</span> <span class="transl_class" id="6923" title="Click to correct">है</span> ?" <span class="transl_class" id="6924" title="Click to correct">मेरी</span> <span class="transl_class" id="6925" title="Click to correct">आँखें</span> <span class="transl_class" id="6926" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="6927" title="Click to correct">पोस्टर</span> <span class="transl_class" id="6928" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="6929" title="Click to correct">टिकी</span> <span class="transl_class" id="6930" title="Click to correct">थी</span> <span class="transl_class" id="6931" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="6932" title="Click to correct">छोटी</span> <span class="transl_class" id="6933" title="Click to correct">पुलिया</span> <span class="transl_class" id="6934" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6935" title="Click to correct">पास</span> <span class="transl_class" id="6936" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="6937" title="Click to correct">सडक</span> <span class="transl_class" id="6938" title="Click to correct">तीन</span> <span class="transl_class" id="6939" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="6940" title="Click to correct">कोने</span> <span class="transl_class" id="6941" title="Click to correct">वाले</span> <span class="transl_class" id="6942" title="Click to correct">ट्रांसफोर्मर</span> <span class="transl_class" id="6943" title="Click to correct">कक्ष</span> <span class="transl_class" id="6944" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="6945" title="Click to correct">दीवार</span> <span class="transl_class" id="6946" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="6947" title="Click to correct">चिपका</span> <span class="transl_class" id="6948" title="Click to correct">था |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="6949" title="Click to correct">हाँ</span>, <span class="transl_class" id="6950" title="Click to correct">हाँ</span>" <span class="transl_class" id="6951" title="Click to correct">सोगा</span> <span class="transl_class" id="6952" title="Click to correct">उछला |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="6953" title="Click to correct">ठीक</span> <span class="transl_class" id="6954" title="Click to correct">गिनता</span> <span class="transl_class" id="6955" title="Click to correct">है</span> ?"<span class="transl_class" id="6956" title="Click to correct">मैंने</span> <span class="transl_class" id="6957" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="6958" title="Click to correct">पूछा |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="6959" title="Click to correct">हाँ</span>, <span class="transl_class" id="6960" title="Click to correct">हाँ</span> " <span class="transl_class" id="6961" title="Click to correct">उसने</span> <span class="transl_class" id="6962" title="Click to correct">सर</span> <span class="transl_class" id="6963" title="Click to correct">हिलाया |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="6964" title="Click to correct">बबन</span> <span class="transl_class" id="6965" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="6966" title="Click to correct">शक</span> <span class="transl_class" id="6967" title="Click to correct">हुआ</span> ,"<span class="transl_class" id="6968" title="Click to correct">तुझे</span> <span class="transl_class" id="6969" title="Click to correct">गिनती</span> <span class="transl_class" id="6970" title="Click to correct">आती</span> <span class="transl_class" id="6971" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="6972" title="Click to correct">बे</span> ?"</div><div><br />
<span class="transl_class" id="6973" title="Click to correct">सोगा</span> <span class="transl_class" id="6974" title="Click to correct">बगलें</span> <span class="transl_class" id="6975" title="Click to correct">झाँक</span> <span class="transl_class" id="6976" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="6977" title="Click to correct">था |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="6978" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="6979" title="Click to correct">तुझे</span> <span class="transl_class" id="6980" title="Click to correct">किसने</span> <span class="transl_class" id="6981" title="Click to correct">कहा</span> ? <span class="transl_class" id="6982" title="Click to correct">तेरे</span> <span class="transl_class" id="6983" title="Click to correct">मामा</span> <span class="transl_class" id="6984" title="Click to correct">ने</span> ?" <span class="transl_class" id="6985" title="Click to correct">बबन</span> <span class="transl_class" id="6986" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="6987" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="6988" title="Click to correct">पूछा |</span></div><div><br />
" <span class="transl_class" id="6989" title="Click to correct">सब</span> <span class="transl_class" id="6990" title="Click to correct">लोग</span> <span class="transl_class" id="6991" title="Click to correct">ताली</span> <span class="transl_class" id="6992" title="Click to correct">बजा</span> <span class="transl_class" id="6993" title="Click to correct">रहे</span> <span class="transl_class" id="6994" title="Click to correct">थे</span> |" <span class="transl_class" id="6995" title="Click to correct">सोगा</span> <span class="transl_class" id="6996" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="6997" title="Click to correct">जवाब</span> <span class="transl_class" id="6998" title="Click to correct">दिया |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="6999" title="Click to correct">अब</span> <span class="transl_class" id="7000" title="Click to correct">बबन</span> <span class="transl_class" id="7001" title="Click to correct">निरुत्तर</span> <span class="transl_class" id="7002" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="7003" title="Click to correct">गया</span> | <span class="transl_class" id="7004" title="Click to correct">आखिर</span> <span class="transl_class" id="7005" title="Click to correct">इतने</span> <span class="transl_class" id="7006" title="Click to correct">सारे</span> <span class="transl_class" id="7007" title="Click to correct">लोग</span> <span class="transl_class" id="7008" title="Click to correct">बेवकूफ</span> <span class="transl_class" id="7009" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="7010" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="7011" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="7012" title="Click to correct">सकते |</span><br />
<br />
<span class="transl_class" id="7013" title="Click to correct">छोटी</span> <span class="transl_class" id="7014" title="Click to correct">पुलिया</span> <span class="transl_class" id="7015" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="7016" title="Click to correct">जितने</span> <span class="transl_class" id="7017" title="Click to correct">बच्चे</span> <span class="transl_class" id="7018" title="Click to correct">बैठ</span> <span class="transl_class" id="7019" title="Click to correct">सकते</span> <span class="transl_class" id="7020" title="Click to correct">थे</span>, <span class="transl_class" id="7021" title="Click to correct">उससे</span> <span class="transl_class" id="7022" title="Click to correct">कहीं</span> <span class="transl_class" id="7023" title="Click to correct">ज्यादा</span> , <span class="transl_class" id="7024" title="Click to correct">बहुत</span> <span class="transl_class" id="7025" title="Click to correct">ज्यादा</span> <span class="transl_class" id="7026" title="Click to correct">लोग</span> <span class="transl_class" id="7027" title="Click to correct">बैठे</span> <span class="transl_class" id="7028" title="Click to correct">थे</span> | <span class="transl_class" id="7029" title="Click to correct">मैं</span>, <span class="transl_class" id="7030" title="Click to correct">छोटा</span> <span class="transl_class" id="7031" title="Click to correct">सुरेश</span>, <span class="transl_class" id="7032" title="Click to correct">बड़ा</span> <span class="transl_class" id="7033" title="Click to correct">सुरेश</span>, <span class="transl_class" id="7034" title="Click to correct">सोंगा</span> , <span class="transl_class" id="7035" title="Click to correct">मगिन्द्र</span>, <span class="transl_class" id="7036" title="Click to correct">छोटा</span>, <span class="transl_class" id="7037" title="Click to correct">मुन्ना</span>, <span class="transl_class" id="7038" title="Click to correct">बबन</span>, <span class="transl_class" id="7039" title="Click to correct">अनिल</span> <span class="transl_class" id="7040" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="7041" title="Click to correct">शशांक</span> ... <span class="transl_class" id="7042" title="Click to correct">सब</span> <span class="transl_class" id="7043" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="7044" title="Click to correct">आँखें</span> <span class="transl_class" id="7045" title="Click to correct">दूर</span> <span class="transl_class" id="7046" title="Click to correct">क्षितिज</span> <span class="transl_class" id="7047" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="7048" title="Click to correct">टिकी</span> <span class="transl_class" id="7049" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="7050" title="Click to correct">दूर</span>, <span class="transl_class" id="7051" title="Click to correct">बहुत</span> <span class="transl_class" id="7052" title="Click to correct">दूर</span> ... <span class="transl_class" id="7053" title="Click to correct">रेल</span> <span class="transl_class" id="7054" title="Click to correct">पटरी</span> <span class="transl_class" id="7055" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="7056" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="7057" title="Click to correct">पार</span> , <span class="transl_class" id="7058" title="Click to correct">जहाँ</span> <span class="transl_class" id="7059" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="7060" title="Click to correct">दूसरी</span> <span class="transl_class" id="7061" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="7062" title="Click to correct">दुनिया</span> <span class="transl_class" id="7063" title="Click to correct">बसती</span> <span class="transl_class" id="7064" title="Click to correct">थी |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="7065" title="Click to correct">अँधेरा</span> <span class="transl_class" id="7066" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="7067" title="Click to correct">चुका</span> <span class="transl_class" id="7068" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="7069" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="7070" title="Click to correct">सबको</span> <span class="transl_class" id="7071" title="Click to correct">बेसब्री</span> <span class="transl_class" id="7072" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="7073" title="Click to correct">इंतज़ार</span> <span class="transl_class" id="7074" title="Click to correct">था</span> .....</div><div><br />
"<span class="transl_class" id="7075" title="Click to correct">देख</span> <span class="transl_class" id="7076" title="Click to correct">बे</span>, <span class="transl_class" id="7077" title="Click to correct">देख</span> ..." <span class="transl_class" id="7078" title="Click to correct">अंततः</span> <span class="transl_class" id="7079" title="Click to correct">छोटा</span> <span class="transl_class" id="7080" title="Click to correct">सुरेश</span> <span class="transl_class" id="7081" title="Click to correct">चिल्लाया</span> ,"<span class="transl_class" id="7082" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="7083" title="Click to correct">देख</span> ..."</div><div><br />
<span class="transl_class" id="7084" title="Click to correct">रेल</span> <span class="transl_class" id="7085" title="Click to correct">पटरी</span> <span class="transl_class" id="7086" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="7087" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="7088" title="Click to correct">पार</span> <span class="transl_class" id="7089" title="Click to correct">से</span>, पूर्णतः अज्ञात ब्रह्माण्ड से - <span class="transl_class" id="7097" title="Click to correct">प्रकाश</span> <span class="transl_class" id="7098" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="7099" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="7100" title="Click to correct">पुंज</span> <span class="transl_class" id="7101" title="Click to correct">उठा</span> <span class="transl_class" id="7102" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="7103" title="Click to correct">सारी</span> <span class="transl_class" id="7104" title="Click to correct">सीमाओं</span> <span class="transl_class" id="7105" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="7106" title="Click to correct">लांघते</span> <span class="transl_class" id="7107" title="Click to correct">हुए</span> <span class="transl_class" id="7108" title="Click to correct">सीधे</span> <span class="transl_class" id="7109" title="Click to correct">आकाश</span> <span class="transl_class" id="7110" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="7111" title="Click to correct">ओर</span> <span class="transl_class" id="7112" title="Click to correct">बढ़</span> <span class="transl_class" id="7113" title="Click to correct">गया |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="7114" title="Click to correct">देख</span> <span class="transl_class" id="7115" title="Click to correct">बे</span> <span class="transl_class" id="7116" title="Click to correct">देख</span>, <span class="transl_class" id="7117" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="7118" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="7119" title="Click to correct">चाँद</span> <span class="transl_class" id="7120" title="Click to correct">तक</span> <span class="transl_class" id="7121" title="Click to correct">जा</span> <span class="transl_class" id="7122" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="7123" title="Click to correct">है</span> |" <span class="transl_class" id="7124" title="Click to correct">अनिल</span> <span class="transl_class" id="7125" title="Click to correct">चिल्लाया |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="7126" title="Click to correct">सब</span> <span class="transl_class" id="7127" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="7128" title="Click to correct">निगाहें</span> <span class="transl_class" id="7129" title="Click to correct">उस</span> <span class="transl_class" id="7130" title="Click to correct">प्रकाश</span> <span class="transl_class" id="7131" title="Click to correct">पुंज</span> <span class="transl_class" id="7132" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="7133" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="7134" title="Click to correct">टिकी</span> <span class="transl_class" id="7135" title="Click to correct">थी |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="7136" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="7137" title="Click to correct">बे</span>, <span class="transl_class" id="7138" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="7139" title="Click to correct">चाँद</span> <span class="transl_class" id="7140" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="7141" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="7142" title="Click to correct">आगे</span> <span class="transl_class" id="7143" title="Click to correct">जा</span> <span class="transl_class" id="7144" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="7145" title="Click to correct">है</span> | <span class="transl_class" id="7146" title="Click to correct">शायद</span> <span class="transl_class" id="7147" title="Click to correct">सीधे</span> <span class="transl_class" id="7148" title="Click to correct">स्वर्ग</span> <span class="transl_class" id="7149" title="Click to correct">तक</span> |"</div><div><br />
<span class="transl_class" id="7150" title="Click to correct">स्वर्ग</span> ? <span class="transl_class" id="7151" title="Click to correct">अचानक</span> <span class="transl_class" id="7152" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="7153" title="Click to correct">विचार</span> <span class="transl_class" id="7154" title="Click to correct">मेरे</span> <span class="transl_class" id="7155" title="Click to correct">मन</span> <span class="transl_class" id="7156" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="7157" title="Click to correct">कौंधा</span> | <span class="transl_class" id="7158" title="Click to correct">लेकिन</span> <span class="transl_class" id="7159" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="7160" title="Click to correct">जीभ</span> <span class="transl_class" id="7161" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="7162" title="Click to correct">आते</span> <span class="transl_class" id="7163" title="Click to correct">आते</span> <span class="transl_class" id="7164" title="Click to correct">अटक</span> <span class="transl_class" id="7165" title="Click to correct">गया |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="7166" title="Click to correct">अच्छा</span> <span class="transl_class" id="7167" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="7168" title="Click to correct">हुआ</span> <span class="transl_class" id="7169" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="7170" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="7171" title="Click to correct">ख्याल</span> <span class="transl_class" id="7172" title="Click to correct">जबान</span> <span class="transl_class" id="7173" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="7174" title="Click to correct">टपका</span> <span class="transl_class" id="7175" title="Click to correct">नहीं</span> | <span class="transl_class" id="7176" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="7177" title="Click to correct">ना</span> <span class="transl_class" id="7178" title="Click to correct">टपकने</span> <span class="transl_class" id="7179" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="7180" title="Click to correct">कारण</span> <span class="transl_class" id="7181" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="7182" title="Click to correct">था</span> ?</div><div><br />
<span class="transl_class" id="7183" title="Click to correct">अचानक</span> <span class="transl_class" id="7184" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="7185" title="Click to correct">दूसरा</span> <span class="transl_class" id="7186" title="Click to correct">प्रकाश</span> <span class="transl_class" id="7187" title="Click to correct">पुंज</span> <span class="transl_class" id="7188" title="Click to correct">आकाश</span> <span class="transl_class" id="7189" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="7190" title="Click to correct">दिखाई</span> <span class="transl_class" id="7191" title="Click to correct">दिया</span> | <span class="transl_class" id="7192" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="7193" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="7194" title="Click to correct">सर्कस</span> <span class="transl_class" id="7195" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="7196" title="Click to correct">तम्बू</span> <span class="transl_class" id="7197" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="7198" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="7199" title="Click to correct">आ</span> <span class="transl_class" id="7200" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="7201" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="7202" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="7203" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="7204" title="Click to correct">उतना</span> <span class="transl_class" id="7205" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="7206" title="Click to correct">शक्तिशाली</span> <span class="transl_class" id="7207" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="7208" title="Click to correct">ऐसा</span> <span class="transl_class" id="7209" title="Click to correct">लगने</span> <span class="transl_class" id="7210" title="Click to correct">लगा</span>, <span class="transl_class" id="7211" title="Click to correct">दोनों</span> <span class="transl_class" id="7212" title="Click to correct">आकाश</span> <span class="transl_class" id="7213" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="7214" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="7215" title="Click to correct">दूसरे</span> <span class="transl_class" id="7216" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="7217" title="Click to correct">पीछा</span> <span class="transl_class" id="7218" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="7219" title="Click to correct">रहे</span> <span class="transl_class" id="7220" title="Click to correct">हों |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="7221" title="Click to correct">शशांक</span> " तिलस्मयी संसार का जंजाल भंग करती हुई एक महिला की आवाज़ गूँजी | </div><div><br />
<span class="transl_class" id="7227" title="Click to correct">सम्मोहन</span> <span class="transl_class" id="7228" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="7229" title="Click to correct">बाहर</span> <span class="transl_class" id="7230" title="Click to correct">निकल</span> <span class="transl_class" id="7231" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="7232" title="Click to correct">शशांक</span> <span class="transl_class" id="7233" title="Click to correct">चश्मा</span> <span class="transl_class" id="7234" title="Click to correct">सम्हालते</span> <span class="transl_class" id="7235" title="Click to correct">हुए</span> <span class="transl_class" id="7236" title="Click to correct">भागा</span> | <span class="transl_class" id="7237" title="Click to correct">चश्मा</span> <span class="transl_class" id="7238" title="Click to correct">लगाए</span> <span class="transl_class" id="7239" title="Click to correct">हुए</span> <span class="transl_class" id="7240" title="Click to correct">उसकी</span> <span class="transl_class" id="7241" title="Click to correct">मम्मी</span> <span class="transl_class" id="7242" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="7243" title="Click to correct">गंभीर</span> <span class="transl_class" id="7244" title="Click to correct">चेहरा</span> <span class="transl_class" id="7245" title="Click to correct">देखकर</span> <span class="transl_class" id="7246" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="7247" title="Click to correct">पल</span> <span class="transl_class" id="7248" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="7249" title="Click to correct">लिए</span> <span class="transl_class" id="7250" title="Click to correct">हम</span> <span class="transl_class" id="7251" title="Click to correct">सब</span> <span class="transl_class" id="7252" title="Click to correct">सहम</span> <span class="transl_class" id="7253" title="Click to correct">गए</span> | <span class="transl_class" id="7254" title="Click to correct">उसकी</span> <span class="transl_class" id="7255" title="Click to correct">मम्मी</span> <span class="transl_class" id="7256" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="7257" title="Click to correct">पचास</span> <span class="transl_class" id="7258" title="Click to correct">मीटर</span> <span class="transl_class" id="7259" title="Click to correct">दूर</span> <span class="transl_class" id="7260" title="Click to correct">खड़ी</span> <span class="transl_class" id="7261" title="Click to correct">थी</span> | <span class="transl_class" id="7262" title="Click to correct">शायद</span> <span class="transl_class" id="7263" title="Click to correct">थोड़ी</span> <span class="transl_class" id="7264" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="7265" title="Click to correct">पास</span> <span class="transl_class" id="7266" title="Click to correct">आती</span> <span class="transl_class" id="7267" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="7268" title="Click to correct">हम</span> <span class="transl_class" id="7269" title="Click to correct">सब</span> <span class="transl_class" id="7270" title="Click to correct">लोग</span> <span class="transl_class" id="7271" title="Click to correct">पिघल</span> <span class="transl_class" id="7272" title="Click to correct">गए</span> <span class="transl_class" id="7273" title="Click to correct">होते |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="7274" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="7275" title="Click to correct">यह</span> <span class="transl_class" id="7276" title="Click to correct">केवल</span> <span class="transl_class" id="7277" title="Click to correct">दो</span> <span class="transl_class" id="7278" title="Click to correct">मिनट</span> <span class="transl_class" id="7279" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="7280" title="Click to correct">अंतराल</span> <span class="transl_class" id="7281" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="7282" title="Click to correct">शशांक</span> <span class="transl_class" id="7283" title="Click to correct">अंतर्ध्यान</span> <span class="transl_class" id="7284" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="7285" title="Click to correct">चुका</span> <span class="transl_class" id="7286" title="Click to correct">था</span> | <span class="transl_class" id="7287" title="Click to correct">दूर</span> <span class="transl_class" id="7288" title="Click to correct">सर्कस</span> <span class="transl_class" id="7289" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="7290" title="Click to correct">शो</span> <span class="transl_class" id="7291" title="Click to correct">शुरू</span> <span class="transl_class" id="7292" title="Click to correct">होने</span> <span class="transl_class" id="7293" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="7294" title="Click to correct">पहले</span> <span class="transl_class" id="7295" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="7296" title="Click to correct">साज़</span> <span class="transl_class" id="7297" title="Click to correct">बजने</span> <span class="transl_class" id="7298" title="Click to correct">लगे |</span> <span class="transl_class" id="7299" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="7300" title="Click to correct">दोनों</span> <span class="transl_class" id="7301" title="Click to correct">प्रकाश</span> <span class="transl_class" id="7302" title="Click to correct">पुंज</span> <span class="transl_class" id="7303" title="Click to correct">गायब</span> <span class="transl_class" id="7304" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="7305" title="Click to correct">गए</span> <span class="transl_class" id="7306" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="7307" title="Click to correct">हमें</span> <span class="transl_class" id="7308" title="Click to correct">अहसास</span> <span class="transl_class" id="7309" title="Click to correct">हुआ</span> <span class="transl_class" id="7310" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="7311" title="Click to correct">अँधेरा</span> <span class="transl_class" id="7312" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="7313" title="Click to correct">गया</span> <span class="transl_class" id="7314" title="Click to correct">है |</span></div><div><br />
"<span class="transl_class" id="7315" title="Click to correct">रात</span> <span class="transl_class" id="7316" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="7317" title="Click to correct">नौ</span> <span class="transl_class" id="7318" title="Click to correct">बजे</span> <span class="transl_class" id="7319" title="Click to correct">फिर</span> <span class="transl_class" id="7320" title="Click to correct">लाईट</span> <span class="transl_class" id="7321" title="Click to correct">दिखेगी</span> |" <span class="transl_class" id="7322" title="Click to correct">बड़ा</span> <span class="transl_class" id="7323" title="Click to correct">सुरेश</span> <span class="transl_class" id="7324" title="Click to correct">बोला</span> ," <span class="transl_class" id="7325" title="Click to correct">नाईट</span> <span class="transl_class" id="7326" title="Click to correct">शो</span> <span class="transl_class" id="7327" title="Click to correct">शुरू</span> <span class="transl_class" id="7328" title="Click to correct">होने</span> <span class="transl_class" id="7329" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="7330" title="Click to correct">टाइम</span> |"</div><div><br />
" <span class="transl_class" id="7331" title="Click to correct">नौ</span> <span class="transl_class" id="7332" title="Click to correct">बजे</span> ? <span class="transl_class" id="7333" title="Click to correct">नौ</span> <span class="transl_class" id="7334" title="Click to correct">बजे</span> <span class="transl_class" id="7335" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="7336" title="Click to correct">मैं</span> <span class="transl_class" id="7337" title="Click to correct">सो</span> <span class="transl_class" id="7338" title="Click to correct">जाता</span> <span class="transl_class" id="7339" title="Click to correct">हूँ</span> |" <span class="transl_class" id="7340" title="Click to correct">छोटा</span> <span class="transl_class" id="7341" title="Click to correct">बोला |</span></div><div><br />
<span class="transl_class" id="7342" title="Click to correct">सबने</span> <span class="transl_class" id="7343" title="Click to correct">अपने</span> <span class="transl_class" id="7344" title="Click to correct">अपने</span> <span class="transl_class" id="7345" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="7346" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="7347" title="Click to correct">राह</span> <span class="transl_class" id="7348" title="Click to correct">ली</span> | <span class="transl_class" id="7349" title="Click to correct">वह</span> <span class="transl_class" id="7350" title="Click to correct">सवाल</span> <span class="transl_class" id="7351" title="Click to correct">अब</span> <span class="transl_class" id="7352" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="7353" title="Click to correct">मेरे</span> <span class="transl_class" id="7354" title="Click to correct">मन</span> <span class="transl_class" id="7355" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="7356" title="Click to correct">कौंध</span> <span class="transl_class" id="7357" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="7358" title="Click to correct">था</span> - <span class="transl_class" id="7359" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="7360" title="Click to correct">यक्ष</span> <span class="transl_class" id="7361" title="Click to correct">प्रश्न</span> <span class="transl_class" id="7362" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="7363" title="Click to correct">तरह |</span><br />
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(क्रमशः )<br />
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</div></div>Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-24283346750873781372010-04-17T14:45:00.000-07:002021-12-26T10:06:57.276-08:00हनुमान का पाताल पराक्रमहनुमान जी विचारमग्न बैठे हुए थे वे अभी भी विस्मित थे कि आखिर यह संभव कैसे हो पाया उनकी निगाह धाखा कैसे खा गयी बार बार रात का दृश्य उनकी आँखों के सम्मुख घूम रहा था<br /><span class=""></span><br />सबसे पहले अंगद रात के अँधेरे मैं उनके सामने आया<br />"हनुमान जी , मुझे अन्दर जाने दीजिये मुझे अभी अभी गुप्त सुचना मिली है कि ...."<br />"पर युवराज, आप सुबह तक रुक जाइये प्रभु इस समय विश्राम कर रहे हैं "<br />" नहीं हनुमान जी, यह सुचना तत्काल राम जी तक पहुँचाना है विलंब का कोई प्रश्न ही नहीं है "<br />"एक क्षण रुको मैं विभीषण को पुकारता हूँ आप पहले उनसे परामर्श कर लें कि क्या इस समय प्रभु को जगाना उचित है "<br />हनुमान ने एक क्षण के लिए विभीषण के खेमे की ओर सर घुमाया वे उन्हें आवाज देना ही चाहते थे कि एक सरसराहट सी हुई उनके सामने से अंगद अंतर्ध्यान हो गए<br />हनुमान जी आश्चर्य में पड़ गए , "कहाँ गए युवराज ?"<br />"अंगद जी युवराज अंगद जी " हनुमान जी ने हलके से आवाज दी ताकि प्रभु तक वह आवाज न पहुंचे पर वहां अंगद होते तो जवाब देते वहां तो सिर्फ हवा थी दो घडी हनुमान विस्मय सरोवर में गोता <span class="">लगाते रहे </span><br />"समझ गया मैं " हनुमान जी ने सर हिलाया ," तो मायावी राक्षस यहाँ तक पहुँच गए अब मुझे सावधान रहना पड़ेगा "<br />वह अमावस्या की घोर अँधेरी रात थी हाथों हाथ सुझाई नहीं देता था वानर सेना समुद्र तट पर दूर दूर तक पसर गयी थी दिन के युद्ध से सब थके हुए थे नींद सबके लिए आवश्यक थी केवल हनुमान जी की आँखों से नीद कोसों दूर थी प्रभु की रक्षा की जिम्मेदारी जो उनके सर पर थी उन्होंने अपनी पूंछ लम्बी करके एक बड़ा सा दायरा बनाया था और फिर पूछ बढा बढा कर एक ऊपर दूसरी परत जमाते हुए, दायरा संकुचित करते गए फिर जब दायरा छोटा रह गया तो ऊपर खुद बैठ गए यह एक सुरक्षित किला था जिसके अन्दर राम और लक्ष्मण सो रहे थे और जिस किले के ऊपर हनुमान जी बैठे हों , भला उससे सुरक्षित किला और क्या होगा ? उस किले को भेद पाना असंभव था<br /><br />पर आज की इस घटना ने हनुमान जी को चौंका दिया यह सही था कि युद्ध करीब करीब अपने अंतिम चरण में था हताशा में रावण कुछ भी कर सकता था इसलिए और ज्यादा सावधान रहने की आवश्यकता थी और मायावी राक्षसों के लिए रूप बदलना कोई बड़ी बात नहीं थी सच कहा जाये तो इस भयानक कष्ट का आरंभ ही छद्म वेश से हुआ था वैसे तो चतुर हनुमान जी राक्षसों की इस कला से भली भांति परिचित थे, पर अभी अभी वे चकमा खा गए थे<br /><br />"चलो अच्छा हुआ " हनुमान जी ने राहत की साँस ली , "बाल बाल बचे "<br />फ़िर हनुमान जी के मन में विचार कौंधा ," विभीषण का नाम सुनते ही वह मायावी छू मंतर हो गया इसका मतलब है कि उसे मालूम था , विभीषण इस छद्म कला को आसानी से पहचान लेंगे क्यों ना आज रात को लोगों को पहचानने में विभीषण की ही मदद ली जाए वैसे भी उनका खेमा पास में ही है "<br />सोचते विचारते ही एक घडी और बीत गयी अचानक उनके सामने सुग्रीव प्रकट हुए<br />"महाराज आप ? इस समय ?" हनुमान जी आश्चर्यचकित रह गए<br />"हाँ हनुमान , तुम आज सतर्क रहना "<br />" महाराज, प्रभु कि रक्षा में तो मैं वैसे भी कोई ढिलाई नहीं बरतता "<br />"मैं जानता हूँ पर आज की रात और ज्यादा सतर्कता की आवश्यकता है यही बात मैं प्रभु को भी बताना चाहता हूँ "<br />अब हनुमान के दिमाग की घंटी बजी उन्होंने सुग्रीव को ध्यान से देखा, "नहीं वे तो महाराज सुग्रीव ही थे " उन्हें पहचानने में वे भूल नहीं कर सकते<br />"क्या देख रहे हो हनुमान एक एक पल कीमती है " सुग्रीव ने कहा<br />"एक क्षण रुकें महाराज अगर आप बुरा ना मानें तो मैं विभीषण जी को आपके साथ कर देता हूँ अन्दर अँधेरा है आपको तो मालूम है, राक्षसों की आँखें अँधेरे मैं देखने की अभ्यस्त होती हैं केवल एक क्षण रुकें मैं यहीं से विभीषण जी को आवाज देता हूँ " हनुमान जी ने आवाज देने के लिए सर घुमाया ही था कि उन्हें एक सरसराहट सुनाई दी , जैसे कोई सांप तेजी से गुजरा हो उन्होंने झटके से मुंह मोडा और सामने से महाराज सुग्रीव गायब थे<br />अब वहां केवल अन्धकार था - घना अन्धकार<br />हनुमान जी सन्नाटे में आ गए आज एक ही रात में वे दूसरी बार धोखा खाते-खाते बच गए<br />"हे प्रभु यह क्या हो रहा है ?" हनुमान जी ने गहरी सांस ली उन्होंने आकाश की और देखा ढेर सारे तारे टिमटिमा रहे थे तारों की स्थिति से हनुमान जी ने अंदाज लगाया , रात अभी बहुत बाकी थी<br /><br />"और कितनी परीक्षा देनी पड़ेगी भगवन , आज की रात " हनुमान जी सोचने लगे ऐसा कोई भी अस्त्र या शस्त्र नहीं था, जिसकी काट हनुमान जी के पास ना हो ऐसा कोई भी योद्धा नहीं था , रावण समेत , जिससे हनुमान जी कभी भी विचलित हुए हों पर अब इस माया विद्या से हनुमान जी असमंजस में पड़ गए उन्हें लगने लगा की इस विद्या में उनका ज्ञान राक्षसों से काफी कम है अब वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि आज चाहे जो हो जाये , चाहे भगवान् विष्णु ही क्यों ना आ जाये , वे विभीषण की मदद से पहचान करके ही उन्हें अन्दर जाने देंगे<br />"क्या सोच रहे हो हनुमान ?" अचानक उन्हें विभीषण का स्वर सुनाई दिया सामने विभीषण ही तो थे अब हनुमान जी की जान में जान आई<br />"मैं कच्ची नींद में था " विभीषण आगे बोले," कि मुझे तुम्हारा स्वर सुनाई दिया तुम शायद किसी से बातें कर रहे थे फिर मेरा जिक्र आया मेरी जिज्ञासा जाग उठी इसलिए मैं ही खुद चला आया "<br /><br />"हे भगवान् विभीषण, अब आपको देखकर मेरी जान में जान आई है आज तो मैं दो बार चकमा खाते खाते बचा हनुमान जी बोले<br />हनुमान जी ने सारी बातें कह सुनाई सुनकर विभीषण सोचने लगे, फिर बोले, "इसका मतलब सारण की सुचना सही थी "<br />"क्या सुचना ?" हनुमान जी ने पूछा<br />"यही कि रावण आज अहिरावण से मिलने गया था "<br />"अहिरावण ?" हनुमान जी ने पूछा "हाँ, अहिरावण, पाताल लोक का राजा रावण का एक और भाई पराक्रमी मायावी अहिरावण मैंने इस सुचना को गंभीरता से नहीं लिया था मुझे लगता था, अहिरावण दिन के युद्ध में हिस्सा लेगा और हमारे योद्धा उससे निपट लेंगे ;पर वह तो छद्म युद्ध में उतर आया हनुमान, तुम चिंता मत करो मैं उसका छल अच्छी तरह जानता हूँ आज सारी रात मैं तुम्हारे साथ रूककर यही पहरा दूंगा लेकिन एक क्षण रुको मेरे ख्याल से प्रभु को सावधान कर देना उचित है ताकि वे कल के लिए रणनीति तैयार कर लें सुबह बताने के लिए वक्त नहीं रहेगा और अचानक अहिरावण तबाही मचा देगा रणनीति बनाना आवश्यक है "<br />"चाहे हजार अहिरावण आ जाएँ , हनुमान उन्हें पीस कर रख देगा " हनुमान जी तैश में आ गए<br /><br />"ज्यादा जोश में मत आओ हनुमान जी इस समय बुद्धि का इस्तेमाल करना है रणनीति बनाना है कम से कम प्रभु को इसकी सुचना दे देना आवश्यक है फिर वे जैसा उचित समझें तुम क्या सोचते हो ?"<br />"आप ठीक कहते हैं " हनुमान जी पूंछ का घेरा थोडा ढीला करके कहा<br />विभीषण पूंछ थोडी सी उठाकर अन्दर घुस गए अभी आधी घडी भी नहीं बीती थी कि अचानक उनके सामने विभीषण प्रकट हो गए<br />"हनुमान जी , हनुमान जी "<br />हनुमान जी को हतप्रभ रह गए ,"विभीषण जी, आप पूंछ के घेरे से बाहर कैसे निकले ?"<br />"पूछ के घेरे से ?"<br />"हाँ , आप राम और लक्ष्मण से मिलने अन्दर गए थे "<br />"मैं अन्दर गया था ? मैं तो शाम से लंका मैं अपने गुप्तचरों से मंत्रणा करने गया था अभी अभी लौटा हूँ "<br />"अरे नहीं, आप प्रभु को अहिरावण की सुचना देने अभी तो अन्दर गए थे 'अहिरावण ? वही तो सुचना देने मैं अभी आपके और प्रभु के पास आया हूँ "<br />-----------------------------------------------------<br />चारों तरफ अफरा तफरी मची थी चारों ओर वानर सेना के योद्धा दो दो चार चार के ग्रुप में इकठ्ठा होकर बातें कर रहे थे घुमा फिरा कर सब एक ही प्रश्न कर रहे थे आखिर हनुमान जी से गलती कैसे हो गयी हनुमान जी तो बुद्धिमानों में अग्रणी थे रात को उनकी मेधा को क्या हो गया ?<br /><br />"हनुमान, मैं तुम्हे दोष नहीं देता " महाराज सुग्रीव बोले ,"राक्षस बड़े मायावी होते हैं पर जब आपके मन में शंका आई थी तो आप कम से कम हमें जगा देते हमें आवाज दे देते आपके साथ यही बड़ी मुश्किल है कई बार आप समस्या से अपने आप अकेले जूझते रहते हैं ठीक है आप समर्थ हैं पर इस समय तो हमें एक दूसरे के साथ रहना है तनिक सोचिये अगर आप हमें जगा देते , पहली बार नहीं तो दूसरी बार धोखा होने पर, तो क्या मजाल वह कायर राक्षस पास भी फटकता पर आप उस मुश्किल से आप ही निपटने में लगे रहे "<br />हनुमान जी ने हाथ जोड़कर रुंधे स्वर में कहा,"मुझे अकेला छोड़ दें महाराज "<br />"उसे अकेला छोड़ दीजिये सुग्रीव जी " विभीषण ने भी कहा,"गलती मेरी थी मुझे लंका में मंत्रणा करने के बजाये, सूचना मिलते ही तुंरत यहाँ आ जाना था "<br />सब से अलग होकर बार बार हनुमान जी उस धरती पर घूम रहे थे जहाँ राम और लक्ष्मण सोये हुए थे अचानक उन्हें ज़मीन पर एक छोटा सुराख़ दिखा वे सुराख़ ध्यान से देखने लगे उन्हें आसपास की जमीन पोली सी लगी ऐसे लगा कि किसी ने जल्दी जल्दी में मिटटी के एक परत से कोई गड्ढा ढंका हो उन्होंने जमीन में एक लात जमाई आसपास की मिट्टी भरभराकर गिर पड़ी सामने एक सुरंग उन्हें साफ नज़र आने लगी<br />उनके कानों में विभीषण की बात गूंजने लगी ।" अहिरावण पाताल लोक का राजा है " सबकी दबी जुबान की बात याद आई ."आखिर हनुमान से ये गलती कैसे हो सकती है ?" सुग्रीव की बात गूंजी ,"आप कई बार कोई कार्य अकेले , अपने आप करना पसंद करते हैं " उनका क्रोध दस गुना बढ़ गया<br />"अगर ये मेरी गलती है तो मैं ही इसे ठीक करूँगा " उन्होंने गहरी सांस ली और किसी से बिना कुछ कहे सुरंग में छलांग लगा दी<br />--------------------------------------------<br />हनुमान जी सुरंग में बढ़ते ही चले गए वह संकरी सुरंग, कुछ दूर जाने के पश्चात् क्रमशः चौडी होने लगी अचानक हनुमान जी को सुरंग के अंत में प्रकाश दिखाई देने लगा हनुमान जी की रफ्तार बढ़ने लगी आगे जाकर सुरंग समकोण पर मुड गयी जैसे ही हनुमान जी ने वो मोड़ पार किया, माया नगरी उनकी नज़रों के सामने थी<br />मारुति के कौतूहल का अंत नहीं था<br />"क्या यही पाताल नगरी है ?" मारुति ने मन ही मन सोचा,"यह तो स्वर्ग से भी सुन्दर है "<br />वैसे लंका नगरी भी काफी सुन्दर थी, पर यह तो उससे भी बढ़कर है मुख्य बात तो यह थी कि चूँकि यह पाताल में थी, इसलिए सूर्य का प्रकाश पहुँच पाना संभव नहीं था उसके बावजूद न केवल नगरी पुर्णतः प्रकाशमान थी, अपितु फूल फल ,पेड़ पौधों की कमी नही थी यह देखकर मारुति आश्चर्य में पड़ गए<br />लेकिन राम और लक्ष्मण का ख्याल आते ही हनुमान जी क्रोध से भर गए<br />----------<br />पाताल नगरी के बाहर के जंगल में एक वृक्ष पर हनुमानजी छिपकर बैठ गए जब उन्होंने पाताल नगरी पर पुनः नज़र दौडाई तो उन्हें वह दिन याद आया जब सीता की खोज में वे लंका गए थे तब भी वे भव्य लंका नगरी देखकर विस्मय में पड़ गए थे उस दिन भी वह कार्य करना था , जिसके सम्बन्ध में उन्हें थोडी भी जानकारी नहीं थी सीता की खोज का कार्य थोडा मुश्किल इसलिए भी था, कि उन्होंने जानकी को पूर्व में केवल एक बार ही दूर से देखा था और जानकी तो उन्हें जानती भी नहीं थी<br />किन्तु आज का कार्य कुछ कम मुश्किल नहीं था आज भी उनको अपना कार्य गुप्तचरी से ही प्रारंभ करना था अचानक मारुति का ह्रदय एक आशंका से धड़क उठा कहीं ऐसा तो नहीं कि उस राक्षस ने राम और लक्ष्मण का वध ही कर दिया हो ? आखिर उसे क्यों अपने शत्रु से मोह होगा ? सीता अति सुन्दर नारी थी और उनकी झिड़कियों के बावजूद रावण उनका मोह अपने मन से निकाल नहीं पाया था पर राम और लक्ष्मण तो अहिरावण या रावण के शत्रु थे उन्हें जीवित रखना यानि अपनी मौत को दावत देना था कहीं ऐसा तो नहीं कि ....<br />मारुति फिर क्रोध से भर गए अगर ऐसा हुआ , तो वे इस नगरी को तहस नहस कर डालेंगे<br />-------------------<br />हनुमानजी ने देखा , पाताल नगरी ऊँचे ऊँचे परकोटों से घिरी हुई थी परकोटों की दीवार के चारों ओर खाइयाँ खुदी हुई थी राक्षस लगातार पहरा दे रहे थे<br />"किसका भय है उनको ?" हनुमानजी ने मन ही मन सोचा ," पाताल तक पहुँच पाना वैसे भी असंभव है "<br />अलग- अलग दिशाओं से टेढ़े मेढ़े रास्ते पाताल नगरी की ओर जाते थे मुख्य द्वार से थोड़ी ही दूरी पर वे रास्ते मुख्य पथ पर समाहित हो जाते थे मुख्य द्वार एक काफी ऊँचा दरवाजा था , जिस पर कोई मुस्तैदी से पहरा दे रहा था<br />फिर हनुमानजी ने जो देखा, उनके विस्मय का पार न रहा उन्होंने अपनी आँखें मल-मल कर देखी फिर भी उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था<br />हाँ, वह सच था<br />मुख्य द्वार का रक्षक एक वानर था एक बालक वानर, जिसके चेहरे पर तेज चमक रहा था अगर एक बालक , वह भी वानर, को राक्षसों की नगरी के मुख्य द्वार की रक्षा का अधिभार दे दिया जाये, यह वाकई विलक्षण बात थी अहिरावण कोई बेवकूफ नहीं, अव्वल दर्जे का धूर्त था इसका अर्थ हुआ कि यह वानर बालक जरुर अद्भुत शक्तियों का मालिक होगा पर ये भी क्या कम अचंभित करने वाली बात थी कि ऐसी विलक्षण शक्ति का मालिक , यह वानर यहाँ राक्षस राज का पहरेदार है कौन है ये बालक ? किसका पुत्र है ये ? यह ठीक है कि वानर ब्रहांड में हर जगह व्याप्त हैं, किन्तु हनुमान को हरेक विलक्षण वानर के बारे में सारी जानकारी थी सच तो ये था कि वे सब महाराजा सुग्रीव के निमंत्रण पर इस समय वानर सेना में शामिल होकर युद्ध में हिस्सा ले रहे थे<br />उनके सामने सबसे पहली पहेली थी कि किसी तरह इस वानर बालक को चकमा देकर अन्दर कैसे घुसा जाये ? एक चतुर जासूस की तरह हनुमान जी चाहते थे कि बिना किसी चेतावनी या पूर्व सूचना के, राक्षसों को बेखबर रखकर सारी जानकारी जल्दी से जल्दी कैसे एकत्र की जाये इस उद्देश्य के लिए बल प्रयोग घातक था<br />अब ? लंका में तो हनुमानजी ने रात में प्रवेश किया था यहाँ एक एक क्षण कीमती था और अभी तो सुबह ही हुई थी वैसे पाताल लोक बिना सूर्य प्रकाश के जिस तरह प्रकाशमान था, ऐसा लगता नहीं था कि यहाँ कभी अँधेरा भी होता होगा<br />मुख्य द्वार के पास के एक वाटिका के वृक्ष में चढ़कर हनुमानजी सारी गतिविधियाँ देखने लगे थोड़ी ही देर में एक एक करके गाड़ियाँ मुख्य रास्तों से आती दिखाई दी उन गाड़ियों को बैल खींच रहे थे ऐसा लग रहा था कि उन गाड़ियों में किसी उत्सव की तैयारी के सामान लदे हुए हैं किसी गाड़ी में फूलों का ढेर रखा था तो किसी गाड़ी में टोकनी भर भर के फल रखे हुए थे किसी गाड़ी में ढेर सारे थाल और पत्तल थे तो किस गाड़ी में मिठाइयों के बड़े बड़े डिब्बे रखे थे कोई गाड़ी नारियल से लदी हुई थी तो कोई केले से किसी गाड़ी में ढेर सारे दीपक थे तो किसी गाड़ी में घी से भरे पीपे किसी गाड़ी में रंग बिरंगे ध्वज थे तो किसी गाड़ी में ढेर सारे वाद्य यंत्र वह वानर पुत्र बड़ी ही सावधानी से एक एक गाड़ी ध्यान से देखता और फिर उन्हें अन्दर जाने देता फल यह हुआ कि गाड़ियों की कतार लम्बी होने लगी<br />"अरे भाई , मुहूर्त निकला जा रहा है जल्दी करो " बैलों को चाबुक मारता हुआ पीछे से एक गाड़ीवान चिल्लाया वह वानर पुत्र सुनी अनसुनी करता हुआ अपने कार्य में एकाग्रता से लगे रहा<br />"ऐसे अति सावधान प्रहरी की दृष्टि से बचकर घुस पाना असंभव है " हनुमानजी ने मन ही मन सोचा फिर भी उन्होंने भाग्य आजमाने का निर्णय लिया वे अति सूक्ष्म रूप धारण करके एक गाडी में कूद गए वह गाड़ी फूलों से भरी थी हनुमान जी ने अपना आकार एक मच्छर की तरह छोटा कर लिया था वे फूलों के बीच अच्छी तरह छुप गए थे<br />गाड़ी धीरे धीरे चलती हुई द्वार के पास पहुंची हनुमानजी के ह्रदय की धड़कन बढ़ गयी अब वह वानर पुत्र सावधानी से उसी गाडी का निरीक्षण कर रहा था<br />अचानक उसने हनुमानजी को पकड़कर उठा लिया<br />"मैं आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा था पिताजी " उस बालक ने कहा ,"मैं जानता था, कोई आये या ना आये , आप जरुर आयेंगे "<br />उस वानर पुत्र ने जो कहा वह हनुमान जी के पल्ले नहीं पड़ा परन्तु अब उस बात पर सोच विचार करने का समय भी तो नहीं था हनुमानजी तुरंत अपने असली रूप में आ गए सारी भीड़ सकते में आ गयी<br />वानर पुत्र ने चिल्ला कर कहा,"सब के सब अन्दर नगर में जाओ जल्दी करो जल्दी ...."<br />सब के सब आनन् फानन में गाड़ियाँ हांकते हुए नगर के अन्दर चले गए उस वानर पुत्र ने जोर लगाकर तेजी से एक बड़े पहिये का हत्था घुमाना शुरू किया कल पुर्जों की चरमर चूं के साथ अगले ही पल मुख्य द्वार बंद हो गया<br />अब वानर पुत्र ने जल्दी से नगर के मुख्य द्वार पर ताला जड़ दिया और हनुमानजी से कहा ," यह द्वार आपके लिए नहीं खुल सकता आप शत्रु हैं, मित्र नहीं मुझे हराए बिना आप अन्दर तो जा नहीं सकते "<br />हनुमान जी ध्यान से उस वानर को देखने लगे उन्हें इस तरह घूरते देखकर वानर पुत्र ने कहा,"ऐसे क्या देख रहे हैं ? आप अपने स्वामी के लिए स्वामी भक्त हैं, में अपने मालिक के लिए वफादार हूँ इसमें बुरा क्या है ? दोनों अपनी जगह सही हैं रही बात उस प्रयोजन की, जिसके लिए आप आये हैं , तो आप मुझे हराए बिना तो अन्दर जा नहीं सकते पिता जी "<br />अब हनुमानजी की त्यौरियां चढ़ गयी उनके क्रोध का ठिकाना नहीं था तिस पर यह बालक उन्हें बार बार पिता जी कह रहा है नादान कहीं का - फिर उन्हें लगा कि कहीं यह उन्हें कोई और तो नहीं समझ रहा है भौंहें चढ़ाकर वे बोले," ऐ नादान बालक, तू किससे बात कर रहा है इसका भान भी है तुझे ?"<br />"हाँ, आप यहाँ राम और लक्ष्मण जी की खोज में आये हैं न ? आपके सिवाय भला और किसके लिए यह संभव है मैं जानता हूँ, आप मेरे पिताजी हनुमानजी हैं " वह वानर पुत्र बोला<br /><br />"हाँ , मैं हनुमान हूँ पर किसी ने तुम्हें भरमाया है मैं तो बाल ब्रह्मचारी हूँ किसने बताया कि मैं तुम्हारा पिता हूँ ? "<br />"मेरी माँ ने " वह वानर पुत्र बोला<br />"यह सब गलत है वत्स तुम ही सोचो यह संभव कैसे है ? कौन है वो नारी जिसे तुम माँ कह रहे हो?"<br />"क्या करेंगे जानकर ?" वह वानर पुत्र बोला ," आप मेरी बातों पर यकीन भला क्यों करेंगे ? पर मुझे ख़ुशी है कि रणभूमि मैं ही सही , आज मैं अपने पिता से मिल तो पाया "<br />"ऐ नादान बालक बातें घुमाना फिराना छोड़कर सच बताओ कैसे संभव हो सकता है यह ?"<br />उस बालक ने कहा ," वह एक मस्त्य कन्या है एक जलचर मत्स्य नारी जब आप ने लंका में आग लगाकर श्रम मिटाने के लिए सागर में डुबकी लगाई थी, तो आपके शरीर से पसीने कि दो बूंदें गिरी मेरी माँ ने वो बूंदें पी ली उसके प्रभाव से वे गर्भवती हो गयी और उनसे मेरा जन्म हुआ "<br /><br />हनुमान जी के ह्रदय में वात्सल्य उमड़ आया पर यह वक्त भावनाओं में बहने का नहीं था उधर वह वानर पुत्र कह रहा था ," मेरा नाम मकर ध्वज है हम जलचर हैं और पाताल लोक के प्राणी हैं इस लिए अहिरावण हमारे स्वामी हैं "<br />हनुमानजी ने कठोर बनते हुए कहा ," वत्स, अगर तू मेरा पुत्र है तो चल, मेरी सहायता कर "<br /><span class=""></span><br />मकर ध्वज ने हाथ जोड़कर कहा ,"स्वामी भक्ति मैंने आपसे ही सीखी है पिताजी आप अन्दर जाना चाहते हैं, मुझे हरा दीजिये आपके लिए बड़ी बात नहीं है आप बल और बुद्धि के सागर हैं परन्तु जब तब मुझमें शक्ति है, मैं आपको अन्दर जाने नहीं दूंगा "<br />"नहीं?" हनुमानजी क्रोधित होकर बोले<br />"बिलकुल नहीं" वानर पुत्र बोला<br />हनुमानजी ने बाएं हाथ की मुष्टिका से एक जम कर प्रहार किया उनके अनुमान के हिसाब से एक हठी बालक के लिए उतना ही बल प्रयोग काफी था : लेकिन, हुआ कुछ और उन्हें लगा उन्होंने एक कठोर शिला पर अपनी मुट्ठी जड़ दी हो अगले ही क्षण वानर पुत्र ने उछलकर अपने घुटनों से उनकी छाती पर प्रहार किया भीषण युद्ध छिड़ गया जल्दी ही हनुमान जी को ज्ञात हो गया कि आखिर अहिरावण ने उस बालक को द्वारपाल क्यों नियुक्त किया था ! हनुमानजी को यह भी ज्ञात हो गया क़ि शक्ति में उनका पुत्र उनसे कम नहीं था उसकी चुस्ती, फुर्ती और ताकत देखकर कपीश हैरत में पड़ गए उधर समय निकला जा रहा था<br /><br />"अब मान भी लीजिये पिताजी क़ि मैं आपका पुत्र हूँ " उसने हनुमानजी पर प्रहार करते हुए कहा<br /><br />"अगर मेरे पुत्र हो तो धर्म का साथ दो, अधर्म का नहीं " हनुमानजी ने एक हाथ से उसका प्रहार रोककर दूसरे हाथ की मुष्टिका से उसके मस्तक पर घूंसा जड़ दिया<br />"मेरे लिए स्वामी भक्ति ही धर्म है जब तक आप मुझे हरा नहीं देते , मैं आपका मार्ग रोककर रखूँगा " आनन् फानन में उस बालक ने पास के उद्यान से एक साल का वृक्ष उखाड़ लिया<br />"नादान बालक, तुम्हे मालूम नहीं क़ि अनजाने में तुम कितना बड़ा अनर्थ कर रहे हो मान जाओ , यह धर्म नहीं अधर्म है "<br /><span class=""></span><br />हनुमानजी ने उसी उद्यान से एक भारी शिला उखाड़ ली और तैयार हो गए दोनों ने एक साथ ही आपने अपने अस्त्र छोड़े हनुमानजी की शिला प्रहार को साल के वृक्ष ने किसी तरह रोका, पर उस वृक्ष के दो टुकड़े हो गए<br />"अच्छा पिताजी, एक रास्ता है जिससे आपका भी धर्म रह जायेगा और मेरा भी मैं आपको बता सकता हूँ क़ि आप मुझे कैसे हरा सकते हैं पर प्रयत्न आपको खुद करना होगा मैं आपको अपनी ओर से कोई मौका नहीं दूंगा अगर आप मुझे मेरी पूंछ से बांध दें तो मैं बेबस हो जाऊंगा "<br />हनुमानजी मकरध्वज की बात पूरी होते न होते उस पर झपट पड़े जैसे ही वे पूंछ की ओर लपके, मकरध्वज ने जमकर एक लात जमाई और हनुमानजी का जबड़ा हिल गया अब मकरध्वज हनुमानजी पर टूट पड़ा दोनों फिर एक बार गुत्थम गुत्था हो गए हनुमानजी ने फुर्ती से एक लंगड़ी चलाई मकरध्वज लडखडाया उसके सम्हलने के पहले हनुमानजी ने उसकी पूंछ पकड़कर खिंची मकरध्वज आकाश देखने लगा इतना ही हनुमानजी के लिए काफी था दोनों पाँव के बीच से पूंछ ले जाकर पहले उन्होए फुर्ती से उसके पाँव बाँध दिए अब मकरध्वज हिल नहीं सकता था फिर भी वह हाथ चलाकर हनुमान पर प्रहार करने की कोशिश करते रहा हनुमान नि उसकी पूंछ छोड़ी नहीं और मौका पाते ही उसके दोनों हाथ पकड़ लिए और आनन फानन में उसके हाथ भी बाँध दिए<br /><br />" तो पुत्र , अब जल्दी से बताओ राम और लक्ष्मण कहाँ हैं ?" हनुमानजी ने कड़क कर पूछा मकरध्वज के मुंह से बोल नहीं फूटे<br />"तो स्वामी भक्ति अभी गयी नहीं है ठीक है मैं ही पता लगा लूँगा " जाते जाते हनुमानजी ने उसे एक और ठोकर जड़ दी<br />मुख्य द्वार अभी भी बंद था, पर हनुमानजी के लिए ये कोई बहुत बड़ी बाधा नहीं थी देखते ही देखते वे किले की दीवार पर चढ़ गए और अन्दर छलांग लगा दी<br />--------------<br />मुख्य द्वार पर जो कुछ हुआ , उसकी जानकारी कुछ लोगों को थी, जिन्हें अंतिम क्षणों में मकरध्वज ने चिल्लाकर अन्दर जाने को कहा था हालाँकि परिणाम उन्हें भी ज्ञात नहीं था किन्तु उन लोगों को ऐसी घटना एक महत्वहीन हलकी फुलकी घटना से ज्यादा कुछ नहीं लगी उन्हें मकरध्वज पर पूरा विश्वास था और आखिर कोई सिरफिरा ही अहिरावण से टकराने के बारे में सोच सकता था ज्यादातर लोगों को लगा कि वह कपि कोई व्यापारी था जो बिना कर दिए अन्दर घुसना चाहता था या तो कोई अभिमान में चूर योद्धा , जो लोगों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हो या ये हो सकता था कि यह भी उस मनोरंजन का एक अंग हो जो शहर के अन्दर हो रहा था<br />मनोरंजन ?<br />बिल्ली के आकार के शरीर वाले हनुमान ने किले के मुंडेर से क्या देखा ?<br /><br />नगर के मुख्य पथ पर दूर दूर तक लोग खड़े हुए थे योद्धाओं के हाथ में पताकाएँ थी, जिन्हें वे सागर की लहरों की तरह हवा में लहरा रहे थे रह रह कर हवा में तुरही और भेरी की स्वर लहरियां गूंज उठती थी लोग अहिरावण की जय जयकार से आकाश गूंजा रहे थे और उस पथ पर एक के बाद एक कई पंक्ति में अनेक योद्धा नगाड़े और भेरियां बजाते चल रहे थे<br />उनके पीछे एक रथ में पहाड़ की तरह अहिरावण विराजमान था हनुमानजी ने रावण का आकर्षक व्यक्तित्व देखा था अहिरावण मानो रावण से भी दो कदम आगे था उसके क्रूर चेहरे को देखकर किसी भी शत्रु का खून जम सकता था लोग मार्ग के दोनों तरफ से उस पर फूल और अक्षत की बौछार कर रहे थे<br />फूल और अक्षत की बौछार तो वे उसके अगले रथ पर भी कर रहे थे ,पर किसी अन्य कारण से तो उस अगले रथ पर ब्रह्म राक्षसों का एक समूह बैठा था जो निरंतर मंत्रोच्चार कर रहा था रह रह कर उसमें से कोई ब्राह्मन शंख फूंक देता था और क्या देखा हनुमान ने उस रथ में ?हनुमान जी की आँखें मानो जम सी गयी<br />उस रथ पर राम और लक्ष्मण अधलेटे बैठे हुए थे - मिट्टी के पुतलों की तरह उनकी आँखें खुली थी या बंद ? उनके माथे पर लाल सिंदूर पुता हुआ था उनके गले में लाल फूलों की ढेर साड़ी मालाएं थीं मालाओं के उस पहाड़ में वे छुप से गए थे उन्हें रक्त लाल वस्त्र पहनाया गया था उनके दोनों तरफ हाथ में लम्बी लम्बी तलवारें लिए योद्धा खड़े थे<br />क्या होने वाला था यह ?<br />हनुमान जी ने पथ पर दूर तक नज़र दौड़ाई उनकी दृष्टि सड़क की सजावट और लोगों की भीड़ का पीछा करते दूर निकल गयी जहाँ वह समाप्त होती थी , वहां उन्हें मंदिर का एक कंगूरा दिखाई दिया , जिस पर एक लाल रंग का ध्वज लहरा रहा था<br />अब हनुमानजी के मन में विचार कौंध गया इसमें लेशमात्र भी संदेह की गुंजाइश नहीं रह गयी थी उन्हें ज्ञात हो गया था कि क्या होने वाला है लेकिन अब भविष्य के उस उपक्रम को बदलने की भारी जिम्मेदारी उनके कंधे पर थी उन्होंने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया कि नादान बालक की बेतुकी जिद के बावजूद वे समय पर पहुँच गए पर वह समय कम था<br /><span class=""></span><br />अगले ही क्षण वे एक भवन की छत से दूसरे भवन पर छलांग लगाते हुए मंदिर की और बढ़ चले उनकी इस हरकत से बेखबर लोग अहिरावण क़ी जय जयकार कर रहे थे क्या हो चुका था, उससे वे बेखबर थे वह केवल मकरध्वज जानता था जो मुख्य द्वार पर बेबस बंधा हुआ था वे इस बात से भी अनभिज्ञ थे कि निकट भविष्य के गर्भ में क्या छुपा है ?<br />-----------------------------------<br />वानर सेना पूरी तरह से हतोत्साहित थी पहले ही राम और लक्ष्मण का अपहरण हो चूका था और अब हनुमानजी भी गायब थे जितने मुंह उतनी बातें<br />"मुझे लगता है, हनुमानजी आत्म ग्लानि से भरकर ...." एक वानर ने लोगों के एक अनुमान को डरते डरते वाणी दे ही डाली<br />"नहीं, नहीं" दूसरे वानर ने तुरंत प्रतिवाद किया ," बजरंगबली के बारे में ऐसे विचार मन में लाना ही अपराध है वे कभी भी कठिनाइयों से मुंह नहीं मोड़ते "<br /><br />अचानक वानर सेना में अफवाह फ़ैल गयी कि राक्षसों ने हनुमानजी का भी अपहरण कर लिया है घबराकर वे विभिन्न दिशाओं में भागने लगे<br /><span class=""></span><br />महाराज सुग्रीव सुबह से ये सब देख रहे थे क्रोध से वे चिल्लाये ," जहाँ हो वहीँ रुक जाओ तुरंत ...."<br />सारे के सारे वानरों के कदम जम गए<br />"वापिस आओ " उनका दूसरा आदेश था<br />"एकत्रित हो यहाँ "सरे वानर सर झुकाए वहां एकत्रित होने लगे<br />"तुम वानर सैनिक हो या फिर मिट्टी के खिलौने ? भूल गए, अमृत मंथन के समय देवताओं ने तुम्हें सहायता के लिए आमंत्रित किया था महाराज बाली के समय के वे दिन भूल गए जब वानर सैनिकों का डंका सारे ब्रह्माण्ड में बजता था ? "<br /><span class=""></span><br />महाराज सुग्रीव गुस्से में और कुछ कहते , पर जाम्बवान ने बात सम्हाल ली<br /><br />"महाराज, अगर आप आज्ञा दें तो मैं वानरों से कुछ कहूँ ?"सुग्रीव की आज्ञा पाकर बूढ़े जाम्बवान ने कहना शुरू किया ," लगता है, आप लोग हनुमान जी को लेकर चिंतित हैं एक बात याद रखें बजरंगबली मुसीबतों से घबराते नहीं, बल्कि उन पर टूट पड़ते हैं इसलिए वे इस हालत में पलायन करेंगे, ऐसा सोचा ही नहीं जा सकता रही बात उनके अपहरण की राक्षसों की सेना उनका अपहरण करके कभी भी मुसीबत बुलाने का विचार स्वप्न में भी नहीं करेंगे एक बार उनको ब्रह्म अस्त्र में बांधकर वे भुगत चुके हैं तो आप ही सोचिये, ऐसी परिस्थिति में हनुमानजी का अंतर्ध्यान होना किस बात का सूचक है ?"<br /><span class=""></span><br />सारे वानर शांत थे केवल पृष्ठभूमि में सागर की लहरों की आवाज़ सुनाई दे रही थी एक वानर ने हिम्मत करके कहा ," तो क्या बजरंगी राम और लक्ष्मण की खोज में लगे हैं ?"<br />"खोज में नहीं, बल्कि उन्हें बचाने गए हैं " जाम्बवान ने कहा ," ऐसे में हम सब का कर्त्तव्य क्या है ? क्या हम कायरों की तरह भाग जाएँ ?"<br />"नहीं " युवराज अंगद ने कहा ," हमें हनुमानजी की सहायता करने जाना होगा "<br /><span class=""></span><br />वानरराज सुग्रीव ने आज्ञा दी ," पहले हमें यह पता लगाना है कि प्रभु राम और लक्ष्मण कहाँ हैं ? हो सकता है, हनुमानजी उसी दिशा में गए हों ये भी हो सकता है कि खोजते हुए वे विपरीत दिशा में चले गए हों , पर वे स्वयं अपनी सहायता कर सकते हैं किन्तु प्रभु का तो अपहरण हुआ है विभीषण जी, आपके गुप्तचर क्या कहते हैं ?"<br />------------------------<br /><span class=""></span><br />लंका में सब शांत था उस दिन युद्ध नहीं हुआ केवल रावण और उनके मंत्री जानते थे कि राम और लक्ष्मण कहाँ हैं पर उन्होंने सब कुछ गुप्त रखने का निर्णय लिया था वे चाहते थे कि राम और लक्ष्मण का तुरंत वध कर दिया जाये किन्तु और मित्रों की सलाह पर अहिरावण अपनी कुल देवी , महामाया चंडी को राम और लक्ष्मण की बलि चढाने का निश्चय कर चुका था<br /><span class=""></span><br />रावण की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था वह डूबते हुए सूरज की प्रतीक्षा कर रहा था बार बार झरोखे से वह बाहर देख रहा था<br />"क्या बात है प्राणनाथ ?" मंदोदरी ने पूछा ,"आज युद्ध नहीं हुआ ?"<br />रावण अपनी ख़ुशी छुपा नहीं पा रहा था उसने कोई जवाब नहीं दिया मंदोदरी ने फिर पूछा ,"क्या कारण है ?"<br />रावण ने पलटकर जवाब दिया ,"क्यों ? मुझे खुश देखकर तुम्हें ख़ुशी नहीं होती ?" फिर थोडा संयत होकर कहा ,"उस डूबते सूरज को देख रही हो ?"<br /><br />"हाँ" मंदोदरी ने कहा ,"वह तो रोज डूबता है "<br /><br />"सूरज इक्ष्वाकु कुल का कुल देवता है " रावण ने कहा ,"आज यह अपने साथ पुरे कुल को ले डूबने के लिए आतुर है "वह जल्दी से जल्दी सीता को यह समाचार देने के लिए उतावला हो रहा था<br />---------------<br /><span class=""></span><br />हनुमानजी ने चारों ओर घूमकर देखा ,मंदिर के द्वार बंद थे मुख्य द्वार पर पुजारी जी जुलूस के पहुँचने की प्रतीक्षा कर रहे थे चारों और रक्षक हाथ में नंगी तलवारें लिए पहरा दे रहे थे<br />हनुमानजी ने सूक्ष्म रूप में ही मंदिर के पास के वट वृक्ष से कंगूरे पर छलांग लगाई दीवारों के सहारे वे नीचे उतर गए और अन्दर जाने का मार्ग खोजने लगे जल्दी ही उन्हें कुण्ड दिखाई दिया जिसका जल मूर्ति के स्नान के लिए और पूजा के अन्य कार्यों के लिए प्रयुक्त होता था कल के द्वारा जल अन्दर पहुँचाया जाता था उस संकीर्ण मार्ग से होकर किसी तरह हनुमानजी अन्दर जा पहुंचे<br /><span class=""></span><br />मायामाया देवी की भव्य प्रतिमा थी मंदिर में उस वक्त कोई भी नहीं था मूर्ति के सम्मुख पांच दीपक जल रहे थे , जिनकी लौ छत छू रही थी हनुमानजी ने पहले मूर्ति को प्रणाम किया सामने देवी को चढाने के लिए नैवेद्य ,फल,मिष्ठान्न और कई खाद्य सामग्री रखी हुई थी उसे देखकर हनुमानजी को लगा कि उनकी भूख जाग गयी है परन्तु वह वक्त खोने का नहीं था मूर्ति की प्रदक्षिणा करते हुए वे उसके पीछे चले गए वहीँ उन्हें उपाय सूझ गया<br />--------------------------------------------<br /><span class=""></span><br />भयावह अहिरावण मूर्ति के सम्मुख शांत बैठा था उसकी लाल लाल आँखें मूर्ति पर टिकी हुई थी राम और लक्ष्मण अभी भी मूर्छित ही थे उनके माथे पर लाल सिंदूर पुता था और ढेर सारी मालाएँ अभी भी उनके गले पर थी उनके सम्मुख जल्लाद तलवारें लिए मुस्तैद खड़े थे राक्षस पंडित मंत्रोच्चार कर रहे थे मुहूर्त के हिसाब से संध्या काल में राम और लक्ष्मण की बलि देनी थी<br /><br />पाताल लोक में सूर्य की किरणों के न पहुँच पाने के कारण पंडित काल का हिसाब अपने ढंग से करते थे इसके लिए वे तेल से जलते हुए दीपक द्वारा तेल की खपत या जल पात्र से टपकते हुए जल या अन्य विधियों से समय की गणना करते थे इस समय वे पांच जलते हुए दीपक और उसके तेल की मात्रा समय की सूचना दे रही थी<br /><span class=""></span><br />अंततः पूजा समाप्त हुई और सब लोग खड़े हो गए राम और लक्ष्मण अभी भी मूर्छित लेटे थे<br /><br />"देवी माँ, आपका तुच्छ भक्त अहिरावण आपको प्रणाम करता है " अहिरावण ने हाथ जोड़कर कहा , " एक छोटी सी बलि आप स्वीकार करें माता "<br />जल्लादों की मुट्ठियाँ तलवारों पर कस गयी<br /><br />"रे मूर्ख", मूर्ति से आवाज़ गूंजी , " भला बिना स्नान कराये कहीं बलि चढ़ाई जाती है ?"सारे के सारे लोग हतप्रभ रह गए - क्या ? ये मोटी आवाज़ तो मूर्ति से ही आई है तो क्या माता आज स्वम्भू आ गयी ? लोग सकते में आ गए मानो उन्हें लकवा मार गया था<br /><br />"कुछ सुना तुमने ?" मूर्ति से आवाज़ आई पुजारी तुरन्त भागे भागे गए और उन्होंने जल कुण्ड से पानी के कलश भर लिए एक बड़े से पात्र का इंतजाम किया गया उस पर राम और लक्ष्मण को लिटाया गया और कलश के जल की धार उन पर छोड़ी गयी इससे हुआ यह कि राम और लक्ष्मण की बेहोशी टूट गयी<br />अहिरावण ने कहा, "माते, क्षमा करें अब हम बलि के लिए तैयार हैं "<br /><span class=""></span><br />मूर्ति से फिर मोटी आवाज़ आई," रे मूर्खाधिपति तुझे बलि की पड़ी है मेरी क्षुधा की तुम्हें कोई चिंता नहीं पहेल मुझे पंचामृत अर्पित कर , नैवेद्य चढ़ा फिर मैं बलि स्वीकार करुँगी "<br /><span class=""></span><br />राम और लक्ष्मण यह दृश्य देख रहे थे उन्हें कुछ समझ में आ रहा था और कुछ नहीं किन्तु इस बात से वे आश्चर्यचकित थे कि मूर्ति की आवाज़ जरुर कहीं सुनी है उस सबला नारी कंठ से निकली आवाज़ और बजरंगबली की आवाज़ के लहजे में काफी समानता थी पंडितों ने आनन फानन में पेय पदार्थ से भरा पात्र मूर्ति के मुंह में लगाया मूर्ति सारा का सारा पेय गटगट करके पी गयी<br /><br />"माते, अब बली स्वीकार करें " अहिरावण ने फिर विनती की<br /><br />"तलवार मुझे दो मूर्ख जब मैं यहाँ स्वयं उपस्थित हूँ तो तुम्हारे ये जल्लाद क्यों कष्ट करेंगे ?तलवार मेरे सामने रखो "जल्लादों ने अपनी तलवार मूर्ति के सामने रख दी<br />"रे दुष्ट, तुझे क्या अपनी तलवार बड़ी प्यारी है ? इसे भी दे "अहिरावण ने अपनी तलवार भी मूर्ति के सम्मुख रख दी<br /><span class=""></span><br />पांच दीपक की लौ तेजी से छत छू रही थी पूरे मंदिर में और कोई प्रकाश स्त्रोत नहीं था<br /><br />अचानक हवा का तीव्र झोंका आया , मानों किसी ने तेज फूंक मारी हो पाँच दीपक एक साथ बुझ गए और घुप्प अँधेरा छा गया जब लोगों की आँखें अँधेरे में देखने की अभ्यस्त हुई, उन्होंने देखा , मूर्ति के सामने एक विशालकाय कपि खड़ा है उसके दोनों हाथों में तलवारें हैं अहिरावण तेजी से तलवारों के ढेर की ओर लपका हनुमान के तलवार के एक प्रहार से उसका कवच कट गया और विशालकाय शारीर लडखडाया पर गिरते गिरते भी उसने एक तलवार उठा ली वह हनुमानजी की ओर लपका हनुमान के मुकाबले वह अँधेरे में देखने का ज्यादा अभ्यस्त था उसने हनुमान पर तलवार चलाई हनुमानजी हवा में उछले और बिजली की फुर्ती से फिर उस पर वार किया इस बार अहिरावण की तलवार टूट गयी हनुमानजी जी को ज्ञात था कि वह तलवारों के ढेर की ओर लपकेगा इससे पहले कि वह ढेर तक पहुँच पाता , पीछे से हनुमानजी ने प्रहार किया और उसका सर धड से अलग कर डाला<br /><br />"प्रभु जी , जल्दी तलवार लेकर मेरे साथ चलिए " हनुमानजी ने राम और लक्ष्मण से कहा दोनों भाइयों ने दो दो तलवारें हाथ में ले ली सारे के सारे पहरेदार उन पर टूट पड़े लेकिन अहिरावण के शरीर से बहती रक्त की नदी ने सबका मनोबल ही डूबा दिया था<br /><br />---------------------------------------------<br /><span class=""></span><br />मकर धवज, वह वानर पुत्र , जो थोड़े ही समय पहले मुख्य द्वार पर बंधा पड़ा था , अब सिंहासन पर विराजमान था पाताल लोक के लोगों ने उसे अपना सम्राट चुन लिया इसमें राम और लक्ष्मण की भी सम्मति थी<br /><br />" पिताजी आप मुझे क्षमा करें " मकरध्वज ने हाथ जोड़कर कहा ,"आप कुछ दिन यहाँ रुक कर हमारा आतिथ्य स्वीकार करें "<br /><br />"ठीक है पुत्र" हनुमानजी का ह्रदय भर आया , "न्याय पूर्वक राज्य करो हमारा तत्काल जाना अति आवश्यक है "<br />यह मकरध्वज भी भली भांति जानता था युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ था<br />----------------Vijayhttp://www.blogger.com/profile/01357639687361149937noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3646822331792498542.post-38212012187076895342009-10-13T23:47:00.367-07:002022-09-01T07:56:52.580-07:00अगले बरस फ़िर आना गणपति - २<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">जब मैं सिगडी को गौर से देखता , तो मुझे लगता कि सिगडी पानी की बाल्टी से बनती है | नीचे के हिस्से को काट कर एक बड़ा सा छेद बनाओ , बीच के हिस्से में लोहे की कुछ सरिया घुसाओ और अन्दर के हिस्से में मिट्टी की एक परत लगा दो - बन गयी सिगडी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"माँ सिगडी क्या बाल्टी से बनती है ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
लोहे की सरिया के ऊपर माँ ने पहले लकडी के कोयले की एक परत लगाई | फिर बी एस पी से को-ओपेराटिव में मिलने वाले कोक कोयले से बाकी हिस्सा भर दिया | कोक कोयला भूल गए आप ?<br />
<br />
भिलाई इस्पात संयंत्र में इस्तेमाल हुआ कोयला, जो कि आकार में काफी छोटा हो जाता था और फिर किसी और प्रक्रिया के काबिल नहीं रहता था - को ओपेराटिव के जरिये बंटवा दिया जाता था , ताकि भिलाई वासी उससे अपना खाना बना सकें | वही तो था कोक कोयला ! सो लकडी कोयले के ऊपर कोक कोयले की परत, पहले छोटे कोयले के टुकड़े , फिर बड़े कोयले के टुकड़े | फिर माँ नीचे की सुराख़ में रद्दी काग़ज़ भर देती | रद्दी काग़ज़ , जो ज्यादातर स्कूल जाने वाले बच्चों, बबलू , बेबी या कौशल, शशि के पुराने साल के स्कूल की कॉपी ,घर का किराना सामान खरीदने पर मिले कागज के थैले या टुकड़े , या तो फिर किसी सिनेमा या सर्कस के फार्म, जो मैं विज्ञापन करने वाले टेंपो के पीछे दौड़कर बटोरता था | रद्दी कागज के साथ साथ सूखे पत्ते , पतली पतली लकडी की डालियाँ और टुकड़े, जो कि घर के घेरे (बाड़ी - सच तो यह है कि 'बाड़ी' लोगों ने छोटे के परिवार के आने के बाद उनसे सीख कर इस्तेमाल करना शुरू किया था वर्ना सब 'घेरा' ही कहते थे | ) में बहुतायत मिल जाते थे - क्योंकि घर में पेड़ पौधों की कमी तो थी नहीं |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
आने वाले वर्षों में परतें वही रही पर तकनीक थोडी रचनात्मक हो गयी | लकडी के कोयले की खपत कम करने के लिए माँ ने 'गोबर लड्डू' का प्रयोग शुरू किया जो इतना सफल रहा कि देखा देखी अडोस पड़ोस के कई लोगों ने वह तकनीक अपना ली | यह माँ का अपना आविष्कार था | प्रायः एक दो बार इस्तेमाल के बाद एस पी के कोक चूरे चूरे हो जाते थे और किसी काम के नहीं रहते थे | इतना ही नहीं, थोड़े दिनों बाद लोगों को शिकायत होने लगी कि को ओपेराटिव से मिलने वाले कोक का आकार लघु से लघुतर होते जा रहा है | माँ कोक के चूरे को गाय के गोबर में मिलाकर लड्डू बनाकर सुखा लेती थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
दूसरे, जब लोगों को बी एस पी के कोक से शिकायत होने लगी और हमें तो कोक मिलना ही बंद हो गया | हमें सोगा के मामा की फेक्टरी का पता चला जो केम्प में कहीं थी | वे लोग बी एस पी से मिलने वाले कोक को ब्लेक में खरीद लेते थे और उसे पिघलाकर और कुछ रसायन मिलाकर बेलनाकार सांचे में ढाल देते थे | क्या अच्छी शकल थी उनकी ! बी एस पी का कोयला बे-आकार , बेढंगा , छोटा या बड़ा होता था | वे बेलनाकार कोयले, एक ही सांचे के ढले एक ही आकार के, सुडौल होते | अगर फर्श पर लुढ़का दो तो दूर तक लुढ़कते चले जाते थे | इतना ही नहीं, उनसे कम धुआं निकलता और वे बड़ी आसानी से आग पकड़ लेते | माँ को उतनी मशक्कत नहीं करनी पड़ती |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
माँ ने "डब्बी" (माचिस) से तीली निकाली और सिगडी के कागज़ में में आग लगा दी | धुआं निकलने लगा माँ ने एक पुठ्ठे से ऊपर से धौंकना शुरू किया दूसरा पुट्ठा पकड़ कर मैं धौंकने लगा | बारिश के दिन थे | लकडियाँ थोडी गीली थी |धुआं ज्यादा निकल रहा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"माँ , सिगडी क्या बाल्टी से बनती है ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
देखा, मैंने कहा था न - कितना आसान था ये अनुमान लगाना |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
जो आसान नहीं था , वो मैंने पूछ डाला ," माँ, मुझे गणेश जी की आरती सिखाओ ना | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अरे, अभी मुझे नहाने जाने दे | तुम्हारे बाबूजी के लिए नाश्ता बनाना है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अभी सिखाओ न |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"भगवान् की आरती कोई बिना नहाए सिखाता है ? मुझे नहाने जाने दो | तब तक तू सिगडी देखते रह और अगर बुझने लगे तो हवा करते रह |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
माँ नहाने चली गयी | सिगडी का धुआ ख़त्म हुआ और कोयलों ने आग पकड़ ली | "चट चट" की आवाज आने लगी |जब तक माँ नहा कर आती , उपरी परत के कोयले भी लाल होने लगे थे | माँ ने जल्दी से थोड़े और कोयले डाले और सिगडी उठा कर अन्दर ले जाने लगी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"माँ , मुझे आरती सिखाओ न |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अभी तेरे बाबूजी के लिए जल्दी नाश्ता बनाना है ..."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अचानक चट की आवाज के साथ एक कोक का टुकडा हवा में उछला और मेरे बगल से निकल गया | बाल बाल बचे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अरे, लगी तो नहीं तुझे ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"नहीं माँ |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"लगी हो तो बता बेटा | बरनाल लगा देती हूँ | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
माँ की सारी सहानुभूति रसोई घर मैं घुसते ही बदल गयी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
माँ के पीछे पीछे मैं भी रंधनीखंड़ में घुस गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ हाँ, वहीँ रह | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">हे भगवान्, मैं बिना नहाये अन्दर घुसने की धृष्टता कर रहा था |मैं दहलीज पर ठिठक गया |<br />
"भगवान् की आरती सीखना है तो जा जल्दी नहा कर आ | बिना नहाये कोई आरती सीखता है ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
------------------</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
माँ नाश्ता बना चुकी | बाबूजी नाश्ता खा कर कॉलेज जा चुके और मैं नहा चुका |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अब मैं रसोई घर मैं घुस सकता था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सब की माँओं को मैंने चाकू से सब्जी काटते देखा था | उस समय तक हमारे घर मैं चाकू नहीं था | एक हँसिया था जो प्रायः किसी काम का नहीं था | माँ फरसुल से ही सारी सब्जी काट लेती थी -आलू से लेकर कभी कभार मछली तक | यहाँ तक कि अचार डालने के समय आम भी | पर इसी गर्मियों मैं रामलाल सुपेला बाजार से एक आम काटने का सरौता खरीदकर लाये थे जो कि, गर्मियों में अचार के दिनों में ही एक नेता की तरह दर्शन देता था | बाकी दिनों स्टोर रूम के किसी कोने में सोया रहता था |आम आदमी की तरह पिसने वाला तो बेचारा फरसुल था जो कटहल और गन्ना तो क्या कभी कभी रस्सी भी काटता था | काटने का एक और राजसी औजार सरौता था जो बैठक में सौंफ की ट्रे पर पड़े रहता था और सिर्फ राजसी काम, यानी कि सुपारी काटने का काम करता था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
इस समय माँ अपने काले रंग के पीढे पर बैठी फरसुल से आलू काट रही थी | मोटी लकडी का बना वह पीढा माँ का ही आसन था | रसोई घर में माँ के कई साल , बल्कि दशक इसी पीढे पर बैठकर गुजर गए | माँ पीढे में बैठे या तो कुछ करते रहती या गंज या बटलोही में सब्जी , भात या दाल उबलते देखते रहती और ना जाने क्या सोचते रहती |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"माँ आरती ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
" हाँ बोल जय गणेश , जय गणेश जय गणेश देवा |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"जय गणेश , जय गणेश जय गणेश देवा ..."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"माता जाकी पार्वती पिता महादेवा "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अच्छा ", मैंने सोचा ,"पार्वती गणेश जी की माँ थी | " माँ का नाम भी तो पार्वती था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"लाडूअन के भोग लगे संत करे सेवा ..."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मेरी आँखों के सामने मार्केट का गणेश और उसके मुहूर्त के समय पंडित जी की लड़ाई का दृश्य घूम गाया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
यहाँ तक तो आसान था , पर आगे की पंक्तियाँ थोडी मुश्किल थी ...</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"एक दंत दाया दंत चार भुजाधारी ...</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैं जोश से चिल्लाया , "एक दंत दाया दंत ....", फिर अटक गया," माँ , दंत क्या होता है ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"दंत याने दांत ..."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"चार भुजा ..." माँ स्टोर रूम से से खल बट्टा ले आई और गरम मसाला कूटने लगी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"माँ , भुजा याने क्या ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मसाला कूटते कूटते माँ को भी छींकें आने लगी और मुझे भी |माँ भन्ना कर बोली,"बाहर जाकर खेल तो | आज के लिए इतना काफी है |बाकी कल ||"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">जाते जाते माँ बोली," भुजा याने हाथ गणेश जी के चार हाथ हैं न ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उस दिन जब शाम को आरती हुई तो पहले चार लाइनों में मेरी आवाज सबसे ऊँची थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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"ताश के बावन पत्ते , पंजे छक्के सत्ते, सब के सब हरजाई , मैं लुट गया राम दुहाई ..."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
ना तो मुझे ये मालूम था कि परदे पर गाने वाला पात्र असीत सेन है और ना ही मुझे कोई दिलचस्पी थी | बोरे में बैठकर मैं ऊँघ रहा था और सामने हिलते परदे पर जो आ रहा था, देख रहा था | पीछे सिनेमा का प्रोजेक्टर 'किर्र - किर्र ' की आवाज करते घूम रहा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तुझे नींद आ रही है ?" बेबी ने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ", मैंने कहा, "घर कब चलेंगे ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मुश्किल ये थी कि हम बीच मैं बैठे थे | हमारे आसपास ढेर सारे लोग बोरा बिछाकर दो दो या चार चार के ग्रुप में , या सपरिवार बैठे थे या यूँ कहें कि पसरे हुए थे और उठने के मूड में नहीं थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पिक्चर इतनी बेकार तो नहीं है " बेबी ने कहा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ रे", जवाब दिया उसकी पक्की सहेली इंदु ने ,"कम से कम इस बार ईस्टमेन कलर दिखा रहे हैं |"<br />
वह आगे कुछ कहती , इससे पहले पीछे से लोगों ने "श ... श ॥ " की आवाज लगाईं | हमें अहसास दिलाया की हम भारी भीड़ में धंसे हैं और लोगों की तन्मयता में बाधा पड रही है | को ऑपरेटिव के सामने का वह मैदान , जहाँ कोयला बंटता था, इतना भर गया था कि एक कोने में गुपचुप, मूंगफली और कुल्फी वाले भी गैस बत्ती जलाकर ठेला लेकर खड़े थे | </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
कोई न कोई फिल्म दिखाना गणेश पूजा का अभिन्न अंग था आयोजकों ने पिछले साल प्रदर्शित हुई फिल्म "तमन्ना " को चुना था | </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कब जायेंगे ?" मैंने फुसफुसाकर पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"बस ये रील ख़तम होने दो " बेबी ने धीमी आवाज में जवाब दिया | मेरा सब्र छलका जा रहा था | इसे रील ख़तम होने का इंतज़ार क्यों है ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
जवाब जल्दी ही मिल गया | एक बच्चा नींद से जागकर रो पड़ा | उसकी माँ उसे चुप कराने लगी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पहले तो भीड़ ने छोटी "हो", "हो" की आवाज की | पर जब वह महिला बच्चे को लेकर उठी और उसके सर की परछाई परदे पर पड़ी तो वह छोटी "हो, हो" बड़ी "हो, हो" में बदल गयी | पीछे से किसी शरारती ने सीटी भी बजाई | प्रोजेक्टर बंद भी नहीं हो सकता था | जब तक महिला का सर एक अवांछित पात्र की तरह परदे की छवि का अंग बना रहा , "हो, हो" की आवाज पृष्ठभूमि का संगीत देते रही |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
राम राम करके रील ख़तम हुई | प्रोजेक्टर एक ही था | जब तक नयी रील लोड होती , इतना तो समय था कि लोग सिगरेट वगैरह पीने या पांव की झुनझुनी ठीक करने उठ कर बाहर जा सकते | हमने भी अपना बोरिया (बिस्तर नहीं ) उठाया और बाहर आ गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पिक्चर उतनी बोर तो नहीं थी| " जाहिर था, इंदु का आने मन नहीं था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तुझे देखना है तो देख रे | " बेबी बोली |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"नहीं घर चलते हैं |" वह फिर बोली ,"अब राजेश खन्ना कि पिक्चर तो दिखा नहीं सकते |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"शायद अगले साल दिखायेंगे | इस साल तो ज्यादा चंदा हुआ नहीं ""फिर भी कम से कम कलर पिक्चर तो थी |" इंदु इस बात से खुश थी ,"कल मेरा फेंसी ड्रेस है तू आएगी देखने ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ रे " बेबी बोली |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उसे तो आना ही था , वरना मुझे लेकर कौन जाता ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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अगर ड्रेस-रिहर्सल के शब्द जुदा कर दिए जाएँ तो मुझे यही कहना है कि मुझे रिहर्सल पांच बार कराई गयी और मेरी पोशाक ऐन प्रस्थान के पूर्व तीन बार बदली गयी | रिहर्सल की जिम्मेदारी शशि ने अपने ऊपर ली | मुझे "ठक-ठक " हथौडे से पीटने की और फिर थाली से कौर मुंह में ले जाने का कई बार अभ्यास कराया गया | पर हर बार मैं कुछ ना कुछ भूल जाता था - शब्द नहीं, हरकत !</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मुझसे नहीं हो सकता |" मैं निराश हो गया|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"एक बार, सिर्फ एक बार और कोशिश करते हैं |" शशि दीदी ने हिम्मत छोड़ी नहीं थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"जाने दो उसे जैसे बोलना है बोलने दो |" कौशल भैया अपने आँगन की कुटिया से चिल्लाये |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"चलो जान छूटी | " मैंने मन ही मन राहत की सांस ली |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तो यह था रिहर्सल का हिस्सा | अब ड्रेस पर आते हैं | यूँ तो बाबूजी ने कुछ ही दिन पहले मेरे लिए सिविक सेंटर से एक "टेरीकाट" की रेडीमेड ड्रेस ली थी, पर धुलाई के वक्त माँ का ऐसा हाथ पडा कि पहली धुलाई में ही वह सिकुड़ गई | एकाध बार मै पहनकर खेलने भी गया - पर छोटी ने "चुस्त पेंट " कहकर चिढाया और फिर मैंने पहनना ही बंद कर दिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"इसके तो सारे कपडे छोटे हो गए हैं |" माँ ने अपनी टीने की पेटी खोली, जिसमें वो अपने और बच्चों के अच्छे कपडे रखती थी , जो हम सिर्फ त्योहारों में या किसी उत्सव में पहनते थे |बबलू की आँख बचाकर शशि ने उसका एक पेंट मुझे पहना कर देखा पर वह इतना ढीला था कि बेल्ट का आखिरी छेद भी उसे मेरी कमर में रोक पाने में नाकामयाब था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
कपडे की समस्या किसी तरह सुलझी | मैं बेबी का हाथ थामे घर से निकल ही रहा था कि श्यामलाल मामा ने छींक दिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ये तो पूरा सरदार दीख रहा है | " वे हँस कर बोले |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मेरा झालर नहीं उतरा था | माँ चाहती थी कि और बच्चों की तरह मेरा झालर भी राजिम में उतारा जाए | पर किसी कारणवश, बाबूजी काफी व्यस्त थे | फल यह हुआ कि मेरे बाल इतने बड़े बड़े हो गए थे सरदारों की तरह मुझे जूडा बनाना पड़ता था | तिस पर मेरे दाहिने हाथ में एक कडा था (कड़े की कहानी "अक्षर ज्ञान" में )|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
फल यह हुआ कि अगले ही पल मेरे सर पर हरे रंग का, चटाई का बना एक फेल्ट हेट था, जिसे मुन्ना "जानी मेरा नाम" की टोपी कहता था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
-------------------</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तो स्टेज के पीछे मैं ऊँघ रहा था | मैं अकेला ही नहीं, जितने छोटे बच्चे स्टेज के पीछे अपनी बारी का इन्तजार कर रहे थे , सभी झपकी ले रहे थे | समय नौ से दस, दस से ग्यारह हो चला था | आखिर तभी मुझे किसी ने झकझोरा, और मैं हडबडा कर उठा | सिन्धी आटा चक्की वाला मेरी बांह को कंधे के पास से पकड़कर लगभग धकेलते हुए स्टेज के पास ले गया | फिर उसने माइक का पेंच ढीला करके उसकी ऊंचाई मेरे हिसाब से ठीक की |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ठक ठक ठक ठक करे ठठेरा ...." मैंने रेलगाडी दौडाई |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अभी रुको| ", उसने मेरे मुंह पर हाथ रखा ,"अभी पर्दा तो उठने दो |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
फिर उसने मेरा नाम पूछा बेबी ने मुझे बता ही दिया था कि कोई मेरा नाम पूछे तो मुझे स्कूल का नाम बताना है |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">"विजय सिंह ठाकुर "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पर्दा उठा , दूसरे माइक से उस युवक ने कहा ," जब तक फेंसी ड्रेस के हमारे अगले प्रतियोगी तैयार होते हैं, आपको विजय सिंह ठाकुर एक कविता सुनायेंगे |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">समझ रहे हैं न आप | बच्चों की प्रतिभा का उपयोग रिक्त स्थान को भरने के लिए किया जा रहा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पता नहीं क्या हुआ - मेरी आँखों के सामने इतने सारे सर थे | उसमें बेबी कहाँ है ? बेबी तो नहीं, पर दीपक की दादी जरूर दीख गयी और ? मुन्ना की माँ भी है | सब मेरी ओर देख रहे हैं | जल्दी से भागो यहाँ से |<br />
मुझे कुछ एक्टिंग याद आई, कुछ नहीं, पर शब्द जरुर याद थे -</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<span> </span>"ठक ठक ठक ठक करे ठठेरा ,<br />
<span> </span>पतला थाल बनाता है |<br />
<span> </span>जिस थाली मैं खाना<br />
<span> </span>मेरा शाम सबेरे आता है | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
लोग तालियाँ बजाते रहे |<br />
मैं खड़े रहा वहीँ पर |<br />
पर्दा गिर चुका था |<br />
और मैं हीरो बन गया था .....</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
---------------------</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मुझे क्या मालूम था कि हीरो बनना इतना आसान है !</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> बेबी मुझे स्टेज से नीचे ले आई |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
स्टेज पर निर्मला छत्तीसगढ़ी की तरह साडी ,करधन और बड़ी बड़ी चांदी की चूडियाँ पहन कर स्टेज पर थी<br />
"हमन छत्तीसगढ़ के हन ..."<br />
बस, फँसी ड्रेस मैं एक या दो लाइने ही तो बोलनी होती है |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पर स्टेज पर क्या चल रहा है, किसी को कोई सरोकार नहीं था | कम से कम इक्कीस और बाइस सड़क वालों को तो बिलकुल नहीं - जो वहां उपस्थित थे | मैं उनसे घिरा हुआ था और उनके उटपटांग प्रश्नों की बौछार का सामना कर रहा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"टुल्लू, तुझे डर नहीं लगा ?" मुन्ना की माँ ने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"डर ? किससे ? क्यों आंटी ? " यह प्रश्न ही मेरे पल्ले नहीं पडा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तुझे ये किसने सिखाया ?" शंकर की बहन डॉली ने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ये तो पच्चीस सड़क की एक बहनजी ने लिखकर दिया था | नाम ? नाम तो पता नहीं | हाथ पांव हिलाना शशि ने आज सिखाया था |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तुमने बहुत अच्छा कहा बेटा ! एक हमार मुन्ना हे .... एक बार फिर सुनाई दे हमका ..."दीपक की दादी काला चश्मा ठीक करते हुए बोली |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मंच पर एक मोटा आदमी सिकंदर की वेश भूषा पहन कर कह रहा था ,"भिलाई का लो .... हा हा हा हा ..." वह अट्टाहास कर रहा था | इधर इक्कीस बाइस सड़क के लोगों की ख़ास फरमाइश पर मैं फिर एक बार सुना रहा था ,"ठक ठक ठक ठक करे ठठेरा ..."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
-----------------</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ठक ठक ठक ठक करे ठठेरा .... ठठेरा का मतलब क्या होता है बे ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैं बबन और मुन्ना बेशरम के झुरमुट मैं घुसे , एक बेशरम की टहनी में बैठकर झूला झूल रहे थे | बबन के इन शब्दों में छिपी ईर्ष्या मैं साफ़ भांप गया था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ठठेरा याने ॥ बर्तन बनाने वाला |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्या झोला झक्कड़ गाना है? " बबन बडबडाया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"गाना नहीं, कविता ..." मैंने टोका |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ हाँ वही | मैं रहता तो सुनाता -<br />
<span> </span>कल्लू मटल्लू दो भाई थे |<br />
<span> </span>कुत्ते की झोपडी में सो रहे थे |<br />
<span> </span>कुत्ते ने लात मारी , रो रहे थे |<br />
<span> </span>बिल्ली ने 'शू' मारी , धो रहे थे |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हा हा हा ..." मुन्ना हंसा ," और मै रहता तो सुनाता ,<br /><span> </span>"एक दो तीन, दादू की मशीन |<br />
<span> </span>दादू गया दिल्ली, वहां से लाया बिल्ली |<br />
<span> </span>बिल्ली गयी पूना , वहां से लाई चूना |<br />
<span> </span>चूना बड़ा कड़वा , पान वाला भडुआ | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
----------------------<br /><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
इस नौटंकी का अगला दृश्य ये था कि मुझे ईनाम लेना सिखाया गया |<br />
जिन बच्चों ने स्टेज पर थोबडा दिखाया था, सब को ईनाम मिल रहा था | उन दिनों मार्केट का गणेश इसी धूम धाम से मनाया जाता था | अगर सबको ईनाम नहीं भी मिलता, अगर वे केवल प्रथम द्वितीय और तृतीय को ही ईनाम देते , तो भी निश्चित था कि मुझे कोई ना कोई पुरस्कार जरुर मिलता | आखिर ऐसे भी बच्चे थे , जिहोने "मछली जल की रानी ..." सुनाया था | कुछ बच्चे तो भूल भी गए थे और तो और ... कुछ बच्चे तो रोने भी लगे थे ...</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
कुछ भी हो, ये मेरी ज़िन्दगी का प्रथम ईनाम था और मुझे पुरस्कार ग्रहण करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा था |<br />
"पहले जाकर उनके सामने हाथ जोड़ना ..."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"वैसे ही जैसे गणेश भगवान् के सामने जोड़ते हैं ?" मैंने जिज्ञासा की |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तो ? प्रणाम और कितने प्रकार का होता है ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मंदिर मैं कुछ लोग बजरंगबली के आगे दंडवत भी करते हैं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
कौशल भैया ने सर पीट लिया ,"तुझे जो मैं बता रहा हूँ वो सुन ... फिर वो जब ईनाम देंगे तो झपट कर मत लेना | आराम से पकड़ना | फिर उनके सामने ईनाम को सर से लगाना | अगर भारी है तो तुम खुद झुक जाना | ऐसे ..."<br />
"भारी क्या होगा ?" बेबी बोली ,"बच्चों को तो कोपी, पेन्सिल और रबर ही मिलता है ..."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
कौशल भैया ने बात अनसुनी कर दी, " फिर जो लोग सामने बैठे होंगे ... उनके सामने झुकना | हो सकता है , फोटोग्राफर तुम्हारी फोटो भी खींच दे ... "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
... पर फोटोग्राफर ने मेरी फोटो नहीं खिंची | वह कला स्टूडियो वाला ही तो था | जिनकी उसने फोटो खिंची थी , गणेश पूजा के बाद कई दिनों तक उनकी फोटो उसने अपनी दूकान के शो केस में लगाकर रखा |सत्यवती से मिलने जाने के समय, बेबी जब भी उस दूकान के सामने से गुजरती, हर फोटो को ध्यान से देखती | मेरी फोटो उसने वाकई नहीं खिंची थी | आखिर इतने सारे तो बच्चे थे - "मछली जल की रानी" से लेकर रोने वाले तक - वह किस किस की फोटो खींचता ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पुरस्कार में मुझे कॉपी पेन्सिल और रबर ही मिला | वह दो लाइन की कॉपी थी , जिसके पर हाथी की तस्वीर बनी थी और अंग्रेजी में - जैसा मुझे लक्ष्मी भैया ने बताया - "अलंकार" लिखा था | पर उनका कहना था कि "अलंकार" का "ए" तो "कैपिटल" होना चाहिए, "स्माल" नहीं | हलके हरे पीले रंग की कॉपी अगले एक साल तक इधर या उधर भटकते रही, जब तक कि पहली कक्षा में मेने उसे "शुद्धलेख" की कॉपी ना बना ली |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
लाल- काली पट्टियों वाली पेन्सिल और रबर भी अगले साल तक मेरे पास बने रहे | रबर एकदम चौकोर<br />
था , काजू कतली के टुकड़े जैसा और उसमें एक बदक की तस्वीर बनी थी | पर स्कूल में एक दिन वह रबर अचानक ऐसे गायब हो गया जैसे गधे के सर से सींग | या तो मेरे खीसे से खिसक गया, या किसी ने चुरा लिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
-----------------<br /><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
और वो दिन अचानक आ गया |<br /><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
शाम को स्कूल से आने के बाद कौशल भैया ने बस्ता एक ओर पटका, स्कूल के कपडे बदले, हाथ मुंह धोया और काम पर लग गए | आँगन में माँ सिगडी जला रही थी | वहां से चुपचाप माचिस की डब्बी उठाकर परछी में आ गए , जहां गणेश भगवन बैठे थे | जिस थाली में गणेश भगवन का दिया रखा था, वहां आखिरी बार दिया जलाया | अगरबत्ती के पाकेट से दो अगरबत्ती निकाल कर संगमरमर के स्टैंड में लगाया | वे इतनी जल्दी में थे कि कोई फूल भी नहीं चढाया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
माँ पीछे पीछे आ गयी | कौशल भैया आरती की तैयारी करते सामान भी समेटते जा रहे थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
माँ दो मिनट खड़े देखते रही | फिर पूछ ही लिया ,"सब कुछ समेट रहे हो ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ माँ आज गणेश जी को ठंडा करना है | अनंत चतुर्दशी है न ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अचानक वातावरण टनों भारी हो गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
गणेश चतुर्थी की तो स्कूल में छुट्टी होती थी, पर अनंत चतुर्दशी की नहीं | शायद इसलिए माँ को आभास नहीं हुआ |वास्तविकता तो ये थी कि दस दिन किस तरह पंख लगाकर उड़ गए, किसी को पता नहीं चला | माँ लपक कर बैठक में टंगे बाबूलाल चतुर्वेदी का पंचांग उतर लायी और ध्यान से देखने लगी | फिर ज्यादा सूझा नहीं तो बगल में बैठे लक्ष्मी भैया से बोली,"देख तो बेटा आज चतुर्दशी है क्या ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"चतुर्दशी" क्या होती है , ये तो मुझे मालूम नहीं था | माँ ने अगर ये प्रश्न मुझसे पूछ होता तो मैं इसका जवाब जानता था - आज गणेश जी की विदाई का दिन है |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
दोपहर को ही तो मैं मार्केट के गणेश जी को विदा कर के आया था - पर आते वक्त मेरा मन बार बार कह रहा था - नहीं, घर के गणेश जी को शायद आज विदा नहीं करना है | शायद आज नहीं .... पर मेरा मन आशंका से घिरा हुआ था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
------------------<br /><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
दोपहर को ,जब लोग या तो नींद की झपकी ले रहे थे , या स्कूल में थे - हमारी नज़रों के सामने मार्केट के गणेश भगवान् को उठाया गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मार्केट में ट्रक के पास हम लोग ठगे से खड़े देख रहे थे | लोग नाच रहे थे, गा रहे थे, गुलाल उडा रहे थे | यहाँ तक कि आम के पेड़ के नीचे बरसों से बैठा राजा मोची अपना काम छोड़कर और विनम्र रिक्शे वाला गफूर अपने रिक्शे के साथ आ गया | पान वाले पंडित के हाथ तो चल रहे थे , पर आँखें वहीँ लगी थी | गोप की दुकान वाला बूढा कुरते बनियान में ही अपनी दूकान छोड़कर ट्रक के पास खडा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
हमारे देखते देखते , वह सिंहासन, जिस पर गणपति पूरे दस दिन विराजमान थे , सूना हो गया | बी एस पी के ट्रक के पीछे का कवर खोलकर लकडी के फट्टों से ढलवा रास्ता बनाया गया था | गणेश जी को तख्त समेत एक ट्राली में बड़ी ही सावधानी से रखा गया | प्रतिस्थापना के समय हुए झगडे को देखकर आयोजकों ने पंडित के पचडे में न पड़ने का निर्णय लिया | अनिल डेरी के मालिक के पिताजी ने ही कुछ मन्त्र पढ़ा , वही काफी था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बसंत होटल वाला आज फिर बूंदी बाँट रहा था | अपनी तरफ से मैंने मुन्ना , छोटा , बबन और सुरेश को चेतावनी दे दी थी | उसके बावजूद बबन बाज नहीं आया और दोनों हाथ पसारकर लालची जैसे बूंदी का प्रसाद ले आया | मुझे मालूम था कि वो घर पहुँचते पहुँचते "औ औ " करके उलटी करेगा , तब अकल आयेगी कि टुल्लू सच बोल रहा था |<br /><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
"कहाँ जा रहे हैं गणेश लेकर ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"शिवनाथ नदी जा रहे हैं | चलना है ?" ट्रक के ऊपर से बाटा के जूते की दुकान वाले ने कहा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ हाँ चलते हैं |" बबन लपका |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ऐसे नहीं, रस्ते भर नाचना पड़ेगा |आता है नाचना ?"सरकारी आटा चक्की वाली ने पूछा | </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"थोडा थोडा आता है| "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ठीक है, नाच के बताओ |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">बबन ने थोडा आगे पीछे हाथ पांव हिलाके, कमर मटका कर दिखाया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ठीक है , आ जाओ ऊपर |" चक्की वाले ने हाथ दिया|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
'मत जाओ बे | गुम जायेगा |" मुन्ना वहीँ से चिल्लाया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अरे कुछ नहीं | ", साईकिल दूकान वाला बोला ,"शाम को वापिस आ जायेंगे | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बबन ने उछलकर हाथ थामा और ट्रक के चक्के पर पांव जमाकर दो तीन बार ऊपर चढ़ने की कोशिश की , पर हर बार वह फिसल जाता था | अचानक ट्रक का इंजन भरभराया और ट्रक स्टार्ट हो गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"गणपति बाप्पा " अनिल डेरी वाले ने नारा लगाया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मोरिया " नारों ने आकाश गूंजा दिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अपनी पांच नंबर की कार के पास हाथ बाँधकर खड़े डाक्टर जैन गणेश भगवान् को जाते हुए देखते रहे |<br />
...यह सवाल अब मुंह बाए खडा था - क्या घर के गणेश को भी आज ही विदा करना है ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
----------------------<br /><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
"अभी कोई घर में नहीं है बेटा | थोडी देर रुक जाओ तुम्हारे बाबूजी को आने दो " माँ ने विनती भरे स्वर में कहा |<br />
"नहीं माँ , अँधेरा होने के पहले गणेश जी को ठंडा करना है | सूरज डूब रहा है | वक्त ही कहाँ है ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />इस शाम की आरती में पहली बार कोई बच्चा नहीं था | सब तो बाहर खेल में मशगूल थे | घर लौटती चिडिया की आवाजों के साथ उनके खेलने की किलकारियां हवा में गूंज रही थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वह नारियल, जो गणेश भगवान् के सिंहासन के पास पहले दिन रखा गया था , उसे कौशल भैया आँगन में ले गए और संड़सी से उसका जल्दी जल्दी बूच निकाला | माँ ने उसे समेट के आँगन में आम के पेड़ के चबूतरे में राख के ढेर के पास रख दिया | अब ये बर्तन मांजने के काम आएगा | छिला हुआ नारियल कौशल भैया ने एक थैले में रखा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मुझे पहले बताना था, मैं कुछ बना देती |" माँ टिन के डब्बे टटोल रही थी, जिसमें उसने बेसन के सेव और गुड के लड्डू बनाकर रखे थे | पता नहीं, कितने लड्डू बाकी थे, क्योंकि माँ की नजर बचाकर हम चोरी चोरी बीच बीच में उसमें हाथ साफ़ कर लेते थे | दूसरे बिस्कुट के डब्बे में कुछ अडिसा जरुर बाकी थे | आनन फानन में माँ ने पंखाखड में जाकर बैंगनी रंग की गोदरेज की अलमारी खोली |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
गोदरेज की वह अलमारी हम लोगों के लिए किसी खजाने से कम नहीं थी | उसमें माँ के गहने , कीमती कपडे , बाबूजी के दो तीन कोट, बच्चों को मिले प्रमाणपत्र , पुराने जमाने के - चाँदी और सोने के सिक्के तो थे ही, साथ ही काजू और किशमिश तथा बड़े से डब्बे में एक या दो मिठाई पेड़े, पेठे , काजू कतली - भी होती थी | जब घर में कोई अति विशिष्ठ आगंतुक आता था , तो उससे बाबूजी बैठक में बात करते रहते | फिर बातचीत के बीच मैं चाय बनाती माँ से चुपके से कहते, "शर्मा जी के लिए चाय के साथ मिठाई भी भिजवा देना | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तब माँ बिस्तर के गद्दे के नीचे से चाबी निकालकर दरवाजा खोलती | मेहमान के साथ साथ सब बच्चों को, अगर वे घर में होते तो - थोडी बहुत मिठाई मिल जाती और थोडी बहुत मशक्क्त के बाद किसी तरह माँ फिर अलमारी में ताला लगाकर चाभी गद्दे के नीचे डाल देती और हम बच्चे फिर किसी ऐसे विशिष्ठ आगंतुक के दुबारा आने का इंतज़ार करते |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
आज अनंत चतुर्दशी के दिन- गणेश जी की विदाई के समय वह अलमारी खुल गयी | माँ ने पेड़े का आधा किलो का पूरा भरा डिब्बा - जो कुछ दिन पहले बाबूजी दुर्ग के जलाराम की दुकान से लाये थे , कौशल भैया की उसी झोली में डाल दिया जिसमें नारियल तथा और मिठाइयां थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
कैसी आरती थी वो ? सफ़ेद शंख बजाने वाला भी कोई नहीं था | ना तो कोई कप के ढक्कन बजा रहा था , ना कोई चम्मच से थाली बजा रहा था | न तो गणेश भगवन का जयघोष हुआ | ना ही आरती के बाद दिए की लौ छूकर मस्तक तक छुआने के लिए बच्चों की धक्का मुक्की हुई |अब तक तो पहले चार लाइनों में मेरी आवाज शायद सबसे ऊँची होती थी, पर आज मानो जीभ तालू से चिपक गयी थी |<br />
<br />
बहुत सावधानी से गणेश भगवान के पूजा के अवशिष्ट - अगरबत्ती की राख और डंठल, सूखे, मुरझाये फूल ,बचे हुए पुराने प्रसाद , कौशल भैया ने सावधानी से सामान के एक थैले में डाल दिया | स्टोर रूम में चावल के दो बड़े बड़े टिन के बक्से थे | माँ ने उसमें से थोड़े चावल निकाले फिर मुझे कहा ," जा तो बेटा, घेरे से दूब लेकर आना |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"दूब ? "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ, ऐसी घास, जिस पर किसी का पांव ना पड़ा हो | ना आदमी का, न जानवर का |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"और चिडिया का ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
कौशल भैया झल्लाकर बोले,"किसे भेज रहे हो माँ ? इसे कुछ समझ भी है ? मैं लेकर आता हूँ |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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सीढियों से उतारते समय केवल दो ही लोग थे - मैं और कौशल भैया | तालाब के पास पहुँचते पहुँचते ये संख्या बीस तक जा पहुंची थी |<br /><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
फिर से शुरू करते हैं | कौशल भैया ने सावधानी से गणेश भगवन को पीठे समेत उठाया | सब कुछ सूना सूना लग रहा था | हाथी अभी भी सूँड उठाये खडा था | क्रेप और झिल्ली पेपर की सजावट ज्यों की त्यों थी | कोपरे में फव्व्वारा आज नहीं चला | पीतल के फूलदान में सजावट के प्लास्टिक के फूल वैसे ही रखे थे |<br />
शायद वे सजीव होते तो वे भी चल पड़ते |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
हाँ, माँ ने चुपचाप शंख उठाकर पंखाखंड में भगवान् के सामने रख दिए (जहाँ अगले साल तक वह यों पड़ा रहा |अगले साल जब उसकी नींद टूटी तो उसने देखा कि उसका एक और छोटा भाई वहां पड़ा है , जिस पर 'सुखराम सिंह ठाकुर' लिखा है .... अस्तु ...)</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
" जा न बेटा, तू भी जा " माँ ने मेरा ध्यान भंग किया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />बबलू मैदान के दूर वाले कोने मैं फुटबाल खेल रहा था | शायद कौशल भैया को इससे कोई सरोकार नहीं था | वे गणेश उठाकर चल ही पड़े थे , पर समस्या उन दो झोलों की थी | एक को तो गणेश जी के साथ ही तिरोहित करना था - उसमें पूजे के अवशिष्ट थे | द्सरे में प्रसाद और पूजा के लिए एक थाली, अगरबत्ती , नारियल , माचिस , गंगाजल और दूब रखे थे | अब मेरी जिम्मदारी थी कि मैं उन झोलों को सवधानी से उठाऊ | कौशल भैया की अनिच्छा चेहरे पर साफ़ झलक रही थी | वे मुझे "जकला" (अनाड़ी ) ही समझाते थे , पर मज़बूरी थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"सम्हाल के ले जाना बेटा " ये हिदायत माँ ने मुझे दी या कौशल भैया को - पता नहीं | हाँ, मैंने मुड़ कर देखा, उनकी आँखें जरुर डबडबा आई थी | पीछे लक्ष्मी भैया भी धिसटते घिसटते सीढ़ी के पास तक आ गए थे | उससे आगे वे जा नहीं सकते थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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"मुझे भी जाना है " संजीवनी बोली |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"माँ , देख तो ये जाना चाहती है " बेबी ने उसे रोकते हुए कहा |<br />
"नहीं बेटी मत जा लड़कियां नहीं जाती " माँ ने उसे सम्हाला |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बाद में मैं माँ की इन बातों को समझ पाया - जो किसी रुढी या परंपरा की लकीर नहीं, बल्कि यथार्थ से भरा निर्णय होता था ...<br />
<br />
घर से छोटी पुलिया के बीच की दूरी कितनी रही होगी - मुश्किल से ७५ मीटर |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
जिन बच्चों ने देखा, सभी मन्त्र मुग्ध से खींचे चले आये ...</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
छह सात बच्चे रेस टीप खेल रहे थे | खंभे में सर छिपाकर छोटा का बड़ा भाई रमेश दाम दे रहा था | बच्चे इधर उधर भाग कर छिप रहे थे | कोई हैज में , कोई सड़क पर खड़ी मुन्ना के पिताजी की जावा के पीछे , कोई गेट की आड़ में .... कौशल को गणेश लेकर जाते देख कर सब अपनी अपनी जगह से बाहर निकल आये | यह बात बेमानी ही थी कि विनोद पहला टीप हुआ और मनोज ने रमेश को 'रेस' कर दिया | सब के सब खेलना भूल गए | अपने घर के बाहर बंडू अकेला लट्टू चला रहा था | लट्टू और रस्सी अपने घर में फेंक कर वह भागता हुआ चला आया | बात फैलते देर नहीं लगी और मैदान के दूसरे छोर में, जहाँ बबलू और दूसरे लड़के फुटबाल खेल रहे थे , खेल वहीँ बंद हो गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
नहीं आई तो लड़कियां | संध्या, सुषमा ,मीना का "आमलेट - चाकलेट " का लंगडी बिल्लस का खेल जरुर थोडा प्रभावित हुआ | रस्सी कूदती लड़किया जरुर थोडी ठिठकी, पर विसर्जन के उस जलूस में कोई शामिल नहीं हुआ | माँ की बात मानो रेखांकित हो रही थी ," ... लड़कियां नहीं जाती - विसर्जन में |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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दौड़ते भागते बंडू ने नारा लगाया ," गणपति बब्बा ...."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
और बब्बा - यानी कि दीपक के बब्बा हाथ में छड़ी पकड़कर भीड़ को जाते हुए देख रहे थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"जल्दी जाओ भैया सूरज डूब रहा है| " वे मुस्कुरा रहे थे|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
एक और आदमी मुस्कुरा रहा था | किसी की नज़र उस पर नहीं पड़ी, क्योंकि भीड़ थोडी आगे बढ़ गयी थी |<br />
मैंने पलट कर देखा वह छोटी पुलिया के पास खडा था | सांवला सा चेहरा - पस्सेने से भीगी बालों की एक लट चेहरे पर झूल रही थी | बगल में एक झोला दबाये ठिठक कर वह मुस्कुराते हुए अपनी कृति को जाते हुए देख रहा था |मेरी इच्छा तो हुई कि वह भी शामिल हो जाये, जिसने अपने हाथों से मिट्टी को मूर्त रूप दिया था |<br />
हाँ , वही तो था - कांशी राम |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
.... काम ख़तम करके अपने घर सुपेला की ओर जा रहा था | वह मुझे लगा, अभी वह आएगा - आ जायेगा - सब के साथ जयघोष करेगा | मैंने कई बार पीछे मुड़कर देखा पर वह नहीं आया | जहाँ खडा था , वहीँ से उसने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और फिर मुड़कर अपने घर की ओर चल पड़ा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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शाला नंबर आठ के पीछे रामलीला मैदान और दाहिनी ओर तालाब था | शाम तो क्या दिन के समय भी तालाब सूना ही रहता था | सबके घर में नल थे , तालाब में कौन नहाये | सत्यवती के पिताजी जरुर सुबह सुबह किनारे के पत्थर पर कपडे पटक पटक कर बटन तोड़ते थे | बाकी जो लोग , जिनके घर गाय या भैस थी , जैसे छोटा और विनोद के घर - उनके चरवाहे जरुर दो तीन दिन में या मालिक की मांग पर - उन्हें तालाब में नहला देते थे | पर घर में गाँव से आने वाले कई मेहमान - जिन्हें बंद कमरे में बाल्टी या नल के पानी से नहाना अच्छा नहीं लगता था - जैसे कि बलराम मामा - वे जरुर तालाब में डुबकी लगाना पसंद करते थे ...</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"...जा तो बेटा , इन्हें तरिया (तालाब) दिखा ला |" माँ मुझे निर्देश देती | मुझे ख़ुशी ही होती- उनका मार्गदर्शन करने में | तालाब के किनारे आम ,महुआ , हर्रा और बहेडा के पेड़ थे, जिनके तने से ढेरों गोंद निकलता था | कई बार स्कूल की आधी छुट्टी में शाला नंबर आठ के बच्चे शिक्षक और चुगलखोर लड़कियों की आँख बचाकर आते और पत्थर या गुलेल से या तो उड़ने वाले तोतों को निशाना बनाते या महुआ या हर्रा के हरे गोल -गोल फल तोड़ते , जिनके खोल काफी कड़े होते | फिर वे नुकीले पत्थर से उसका खोल तोड़ते ही रहते कि आधी छुट्टी ख़तम होने की घंटी बज जाती | फिर सारे के सारे सब कुछ छोड़ के स्कूल की ओर दौड़ पड़ते |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
एक दिन मैंने मुन्ना को बताया कि बाज़ार से आने के समय मैं बेबी के साथ तालाब के किनारे से आया था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्या बात कर रहा है ?" वह बोला ,"शाम को मत आया कर ऐसे |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्यों ? क्या बात है ?" मैंने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"भू भू भूत पकड़ लेगा |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्या ? कौन ?" मैंने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उसने कसम खा कर बताया कि एक बार उसके राजा चाचा , जो कभी कभार तालाब के किनारे मछली पकड़ने जाया करते थे , उन्होंने एक दिन शाम को वहां भू भू भूत देखा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"भू भू भूत क्या होता है ?" मैंने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अरे बाप रे मुझे डर लगता है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
और वो भाग गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
शाम को मैंने बेबी से पूछा ,"भू भू भू क्या होता है ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वह चौंक गयी ,"कौन बताता है तुझे ये सब बातें ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कोई नहीं, बस मेरे मन में ऐसे ही आया |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ऐसे कैसे आया ? जरुर मुन्ना ने बताया होगा उसकी माँ से बोलना पड़ेगा |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"नहीं सच्ची, मेरे मन में ऐसे ही आया | मैंने चंदामामा में फोटो देखा था | क्या होता है, भू भू भूत ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वह कुछ देर सोचते रही फिर बोली,"मरने के बाद आदमी भूत बन जाता है | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पर मरने के बाद तो आदमी भगवान् के पास चले जाता है | " मैं बोला |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"जो लोग भगवान् के पास नहीं पहुँच पाते वो भूत बन जाते हैं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
--------------</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
जो लोग भगवान् के पास नहीं पहुँच पाते , वो भूत बन जाते हैं ...</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
....तालाब के किनारे भूत रहते हैं ....</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
....हम लोग गणेश भगवान को विदा करने उसी तालाब की ओर बढ़ रहे थे ....</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
शाला नंबर आठ के पास से गुजरते समय इक्कीस सड़क के भी कुछ लोग जुड़ गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बीस सड़क के पास ही वह खडा था - वसंत , कौशल भैया का दोस्त - बंछोर साहब का अर्ध विक्षिप्त भाई<br />
"कौशलेन्द्र, गणपति को लेकर कहाँ जा रहे हो भाई ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
" आज विसर्जन है न |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अरे हाँ मार्केट का गणेश तो चले गया इसे कहाँ डुबाओगे ? "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"डुबाओगे", यह सुनते ही बंडू को तैश आ गया पर बंछोर के उस भाई को सब जानते थे उसकी बहकी बहकी बात को किसी ने बुरा नहीं माना |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />
"मेरी बात मानो, शिवनाथ नदी मत जाओ बगल में तो अपना तालाब है न " वह अपनी ओर से सलाह दिए जा रहा था|</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"वहीँ तो जा रहे हैं " मनोज ने बताया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
" हाँ भाई इसी में समझदारी है मैं भी चलता हूँ तुम्हारे साथ |" और बसंत भी पायजामा सम्हालते हुए हमारे साथ हो लिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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अस्ताचलगामी सूरज की अन्तिम रौशनी में तालाब के किनारे , उस समय भी मेला सा लगा था ना जाने कितने लोग अपने अपने गणेश को विदा करने आये थे पर बात क्या थी ? सब के सब चुप क्यों थे ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
??????</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
॥उसी शाम के धुंधलके में किसी ने मेरा हाथ पकड़ लिया , कस के ....... इतने जोर से कि कलाई के चारों ओर खून जमता महसूस हुआ |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"झोले में क्या है बचुआ ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"???"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"छोड़ दो उसे " कौशल भैया बोले |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"आप अपना गणेश पकडे रहिये बाबू साहेब | गिर जायेगा तो टूट जायेगा | " उसका साथी वहीँ से ठहाका लगा कर हंसा | चार छह और साए हमारी ओर बढ़ने लगे | ये तो पूरा ग्रुप था उन गुंडों का ...</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"परसाद है ना इसमें ? हमका दई दो " उस मुछ वाले को तो मैंने कभी आस पड़ोस में देखा नहीं था | ये तो पान वाले पंडित की बोली बोल रहा था | सोना चांदी, पैसा कौडी कुछ नही , सिर्फ़ भगवान् के प्रसाद की लूट खसोट ....<br />
"पहले पूजा हो जाने तो दो | फिर प्रसाद भी मिल जायेगा |" कौशल भैया बोले |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"फेर वही बात | हमरे पास टेम नहीं है | आप चार घंटा लगा के पूजा कीजिये पांडे जी | हमका परसाद का झोला दे दो और छुट्टी करो |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वसंत बीच में आ गया ," देखो भाई मंदिर में भी परसाद तो पूजा के बाद ही मिलता है न | " उसने भोलेपन से हाथ छूकर समझाने की कोशिश की |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पायजामा लाल पिद्दी ! हट यहाँ से |"उस आदमी के हलके धक्के से ही लड़खड़कर बसंत नीचे गिर पड़ा | चारों ओर सन्नाटा छा गया सुई पटक सन्नाटा ....सबके पावों में कील ठुक गयी | जुबान पर ताला लग गया ......</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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....और तभी एक वायुयान आकाश से गुजरा ....</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वह ज़माना था, जब भिलाई के आसमान से हवाई जहाज गुजरता, तो ट्रैफिक , जो कि आम तौर पर साईकिल या स्कूटर पर होता, ठहर जाता और सब की निगाहें ऊपर उठ जाती | कई बार, भरी दुपहरी में मैं हवाई जहाज की " घों घों" सुनते ही खाना छोड़कर चिलचिलाती धूप में हवाई जहाज की एक झलक पाने के लिए नंगे पाँव बाहर दौडा था | मैं अकेला नहीं होता | सारे बच्चे सड़क पर होते | बच्चे ही नहीं, बब्बा भी अपनी छड़ी लेकर सड़क पर दिखाई देते | हवाई जहाज देखते ही हम एक दूसरे को दिखाते , "वो जा रहा है ......"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
....तो इस समय शाम के धुंधलके में एक हवाई जहाज आसमान से गुजरा, थोड़े पास से... उसकी लाल पीली बत्तियां आकाश में फडफडा रही थी | सबका ध्यान ऊपर की ओर था | मुझे कुछ दिखाई दिया, जो किसी ने नहीं देखा .... पता नहीं क्यों...?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
...हवाई जहाज से एक धब्बा प्रकट हुआ ....बिंदु के आकार का धब्बा धीरे धीरे बड़ा होते गया ....... थोडा नीचे आते आते ही वह एक पैराशूट मैं बदल गया ....उस धुंधलके में भी केवल एक ही झलक काफी थी | उस हवाबाज को पहचानने के लिए ... और उस बहु परिचित चेहरे को तो तो मीलों दूर से पहचाना जा सकता था ...</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
....ओह, एक मिनट | सिर्फ एक मिनट ...मैं कुछ भूल गया था .... तीन शैतान भाइयों के बारे में तो मैंने आपको बताया ही नहीं....</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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गणेश विसर्जन का जुलुस पूरा रिवाइन्ड करने की जरुरत नहीं, सिर्फ वही दृश्य देखिये, जब वह इक्कीस सड़क के बगल से गुजरा था | कोने के घर में एक अधेड़ बंगाली औरत अपने घेरे से चिपक कर जूलूस जाते देख रही थी ....वह तीन शैतान भाइयों की माँ थी ...पीछे एक मोटी लड़की बरामदे में बैठी थी, वह इनकी बहन पूर्णिमा थी |<br />
नहीं, वे वे तीन नहीं ,चार भाई थे, पर तपन को हम बाकी तीन के पिंजरे में नहीं डाल सकते थे | तपन एक समझदार , जिम्मेदार, नौकरीपेशा , सिगरेट फूंकने वाले, हमेशा सफ़ेद कपडे पहनने वाले संजीदा युवक थे | पर उनके तीनों छोटे भाई ? दुल्लू की एक झलक तो देखी ही थी आपने.... उससे बढ़कर था उसका बड़ा भाई नुक्कू .... और उन सब का बड़ा भाई था सप्पन ......</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
...और वही सप्पन था जो आकाश से टपक पड़ा था ..... ! .... एक दम सही समय पर ..... ! शायद उसके टपकने का इससे बेहतर समय हो ही नहीं सकता था ......</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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तो मैंने कहा , जब एक वायुयान आसमान में पास से गुजरा तो सबकी निगाहें ऊपर थी ...<br />
"तडाक ....." इस भयंकर शब्द ने उनका ध्यान भंग किया | जब निगाह पंख कटे पंछी की तरह जमीन पर लौटी और उस आवाज़ की ओर घूमी तो गोधूलि बेला की उस आभा में में उन्हें एक सांवला सा चेहरा दिखाई दिया | सबने देखा, सप्पन खडा हुआ था -मुट्ठियाँ भिची हुए, शारीर का वजन दोनों पावों पर बराबर, एक आक्रामक मुक्केबाज की मुद्रा में .... जिसने वसंत को धक्का दिया था , वह मवाली खुद धूल चाट रहा था !</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
चोट खाए सांप की तरह उसने उठने की कोशिश की | पर इससे पहले कि वह सम्हालता ,, सप्पन ने लपककर उसका कालर पकड़ लिया और धकलेते हुए ले गया | सारे गुंडे सप्पन पर पिल पड़े ,"मारो साले को ....."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सप्पन ने उसी मवाली को आती हुई भीड़ पर ही धकेल दिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
इस चिंगारी ने मानों सबमें जोश भर दिया | सबकी मुट्ठियों ने मुक्के का रूप ले लिया | अब वहां कौशल और मेरे सिवाय कोई दर्शक था ही नहीं |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
ऐसा अंधड़, औघड़ , लेकिन चौतरफा आक्रमण अनपेक्षित था | एक दादा वहां से भाग खडा हुआ | उसको भागते देखकर दूसरो की हिम्मत टूट गयी | दूसरे दादा ने किसी तरह अपने आप को छुडाया और वो भी भागा | सारे के सारे शाला नंबर ८ की इमारत की और भागे और अंतर्ध्यान हो गए | लड़कों ने कुछ दूर तक उनका पीछा किया, फिर वापिस लौट आये | उनको और भी काम करना था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सप्पन वहीँ मेढ़ पर खड़े होकर चिल्ला चिल्ला कर उहें ललकारते रहा ," साले,भुखमरे ! सुपेला के सूअर !! बच्चों पे दादागिरी झाड़ते हो ? फिर सेक्टर २ में दिखे तो टांग तोड़ दूंगा| "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बरसों हम लोग वहीँ गणेश का विसर्जन करते रहे | किसी न किसी रूप में कोई न कोई आवारा युवकों का ग्रुप आते ही रहा | कभी बोरिया से, कभी सुपेला से, कभी सेक्टर २ की ही नाले के पास वाले २४ यूनिट या ट्यूबलर शेड से | कोई ग्रुप कम उद्दंड होता, कोई ज्यादा | भगवान् कभी किसी सप्पन को भेज देते , कभी हमें ही अपने आप निपटने छोड़ देते | जब विसर्जन की जिम्मेदारी मेरे ऊपर आई तो मैं मुंह अँधेरे ही अकेले निकल पड़ता था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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एक साफ़ सुथरा स्थान चुनकर गणेश भगवान् को रख दिया गया | दिए जलाने मैं काफी मुश्किल आई | शाम का मौसम था | ठंडी, तेज हवाएं चल रही थी | कौशल भैया एक एक कर के माचिस की तीली निकालते रहे | आग की लौ दिए तक पहुँचने क़े पहले ही बुझ जाती | अब दो तीन लोगों ने अपने हाथ की आड़ बनाई और हलके अँधेरे को चीरता दीपक जल उठा | शायद एक घंटा पहले उसकी लौ उतनी आभा नहीं बिखेरती, जितनी डूबता सूरज की लालिमा में अब बिखेर रही थी | आम,, महुआ और हर्रा के वृक्षों में लौटती चिडियों का चहचहाना तेज - और तेज होते जा रहा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अचानक एक सनसनाता हुआ पत्थर आया और तालाब की मेढ़ से टकरा कर उछला और हमारे सर के ऊपर से होता हुआ तालाब के पानी में जा गिरा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"....छपाक ....."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
थोड़ी ही दूर खडा सप्पन वापिस तालाब की मेढ़ की ओर भागा ...<br />
"तुम लोग तैयारी करो, मैं देखता हूँ सालों को |" वह वहीँ से चिल्लाया | वह मेढ़ पर तिरछा भागकर कुछ दूर निकल गया , हमारी भीड़ से दूर | वैसे भी तालाब की मेढ़ इतनी ऊँची थी कि अगर कोई दूर से देखे तो तालाब के जल के पास खडा व्यक्ति दिखाई नहीं देता था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
खैर , गणेश जी की आखिरी आरती शुरू हुई | वैसे भी मुझे चार लाइनों से ज्यादा आरती आती नहीं थी | मेरी निगाह एक पल गणेश जी के चेहरे पर पड़ती | दिए की फडफडाती लौ में उनके चेहरे पर उदासी के भाव साफ़ झलक रहे थे | फिर मेरी निगाह मुंडेर पर जाती , जहाँ सप्प्नन अकेला पत्थर चला रहा था | पर नहीं, वह अकेला नहीं था | बब्बन और मुन्ना कब भीड़ से गायब हो गए , मुझे पता ही नहीं चला | वे भी सप्पन के दायें बाएं खड़े पत्थर फेंक रहे थे और आने वाले पत्थर से उछल उछल कर बच रहे थे | पर नन्हे हाथों में कितनी जान है, उन्हें शीघ्र पता चल गया | अ़ब वे उसके लिए पत्थरों का ढेर लगाते जा रहे थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कहाँ देख रहा है ?" कौशल भैया बोले , "दिया बुझ जायेगा, जल्दी कर | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पूजा की थाली मेरे सामने थी | मुझे पूजा की आरती लेनी थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
दिया गणेश जी के पीढे पर रखकर कौशल भैया सावधानी से पानी में उतरे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तभी उछालते कूदते , खिलखिलाते मुन्ना और बब्बन वापिस आ गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"टुल्लू , टुल्लू, ! सप्पन का एक पत्थर पड़ा साले की खोपडी में ... टनं से आवाज़ आई और भाग गए सूअर !"<br />
ठिठकते क़दमों से अँधेरे में सप्पन भी नीचे आ रहा था , पर उसकी निगाहें बार बार पीछे मुड़कर देख रही थी |<br />
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कौशल भैया पानी में आगे बढ़ते ही जा रहे थे | अब पानी उनकी कमर तक आ गया था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"आगे मत जाओ कौशलेन्द्र | " वसंत वहीँ से चिल्लाया ,"आगे लद्दी है यार | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
हिलते पानी में दिए के प्रकाश में गणेश भगवान् की छवि दिख रही थी |ऊपर आकाश में बादलों के पीछे से चाँद का छोटा सा टुकडा दिख रहा था | सब तालाब के किनारे दम साधे देख रहे थे | कौशल भैया ने पीढा धीरे धीरे पानी में डुबाया | एक क्षण के लिए जलता दिया पानी में तैरा और अगले ही क्षण घुप्प अन्धकार छा गया | गणेश भगवान् अपने धाम को चले गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"गणपति बब्बा ...."बंडू जोर से चीखा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
" मोरिया ...."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"उच्चा वर्षी ...." उसने फिर आवाज़ बुलंद की |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"लोकारिया ...." तालाब के आसपास खड़े वे सारे लोगों ने, जो अपना अपना गणेश ठंडा करने आये थे, एक स्वर मैं हुंकार भरी | जाते जाते गणपति ने उनकी वो आवाज वापिस कर दी जो एक घंटा पहले छिन गयी थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
दूर हनुमान मंदिर से शाम की आरती की घंटे घड़ियाल और शंख की ध्वनि से वातावरण गुंजायमान हो रहा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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जी. ई. सी. का वह रेडियो अब तक अच्छा खासा चलता था | मीडियम वेव , शॉर्ट वेव १ और शॉर्ट वेव २ - कुल तीन बेंड थे | रायपुर स्टेशन की प्रातःकालीन सभा शुरू के साढ़े छः बजे शुरू होती थी | प्रायः वह उस समय प्रातः पाली में स्कूल जाने वाले लोगों के लिए घड़ी का काम करता था | पहले ३-४ मिनट तो "टी री री री री ' काफी देर तक बजते रहता था | फिर मिर्जा मसूद या किशन गंगेले आकर तारीख बताते थे - पहले भारतीय कैलेंडर 'शक संवत्' में, फिर 'तदनुसार 'अंग्रेजी ' कैलेंडर में और जैसे ही शहनाई बजती, घर में मानो अफरा-तफरी मच जाती | प्रातः पाली में जाने वाले लोगों के हाथ, पाँव जुबान सब तेजी से चलते | बबलू भैया की हेयर स्टाइल "फुग्गा कट" को आखिरी टच देने का समय आता और बेबी की बेल्ट , पता नहीं, कहाँ चले जाती | पूछना यानी माँ को बम के गोले छोड़ने की दावत देना होता | माँ को काफी काम होता था | बगैर नहाये माँ रसोई घर में नहीं घुसती थी - और नहाने के काम तो घर में झाड़ू लगाने के बाद ही होगा न ! फिर पानी भी भरना होता , क्योंकि नल चले जाता | सिगड़ी जलाना एक बड़ा काम था | ऊपर से बच्चे अगर पूछें,"माँ सुई धागा किधर है ? बटन टूट गया है " तो माँ की त्यौरियां चढ़ना नितांत स्वाभाविक था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
और सबसे बड़ी मुसीबत तब आती , जब जूते पहनने के समय पता चलता कि मोजा ही नदारद है | मोजे के गायब होने का प्रसंग जल्दी ही - अभी तो रेडियो की बात चल रही थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
हाँ , तो रेडियो में बाबूजी सुबह आठ बजे का समाचार सुनते सुनते काम पर निकल जाते | रेडियो पंखाखंड में रखा हुआ था , हम बच्चों की पहुँच से ऊपर,.. ऊपर के खाने में माँ शाम को चौपाल सुनती थी - बरसाती भैया और बिसाहू भाई की पेशकश पर ! बाकी लोगों को - बेसब्री से इंतज़ार होता था - बुध की शाम का जब बिनाका गीत माला का आठ बजे बिगुल बजता था , "तू तुन तू रु तू तू तू ता रा रा ता रा रा" | आस पड़ोस से ये स्वर लहरी सारे वातावरण में गूंजती थी | उसी समय चौपाल ख़तम होता और कौशल भैया लपक कर फटाफट मीडियम वेव से शोर्ट वेव २ का बैंड बदलते - ठक ठक - रेडियो के बाएं तरफ की घुंडी को दो बार घुमाते | उस समय बाबूजी की हिदायत दरकिनार कर दी जाती - हिदायत यह थी कि रेडियो बंद करके बेंड बदलो; लेकिन उस समय बाबूजी घर में होते नहीं थे | हर एक गाना निकलते निकलते लोग राहत की सांस लेते - चलो सोलह से पंद्रह पंद्रह से चौदहवीं पायदान निर्विघ्न संपन्न हुई | आठवीं पायदान के आस पास , यानी साढ़े आठ बजे , सब लोग चौकन्ने हो जाते | जैसे ही छोटी पुलिया के पास से बाबूजी के स्कूटर की आवाज सुनाई देती , कौशल भैया उछल कर रेडियो बंद कर देते और सब अपने अपने काम में मशगुल हो जाते, मानो कुछ हुआ ही नहीं | इस फुर्तीले एक्शन में कौशल भैया फिर से नॉब को तीसरे बैंड से पहले बैंड में ऐंठना न भूलते |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
गाना सुनने का माँ को भी थोड़ा शौक था , पर रसोई का काम कौन करे ? उन दिनों उनको एक गाना बहुत पसंद आता था ,"मुन्ने की अम्मा यह तो बता तेरे बचुए के अब्बा का नाम क्या है ?" लोकप्रियता के ग्राफ में यह गाना ऊपर नीचे होते रहता था | चूँकि लोकप्रियता के पायदान उल्टे क्रम में बजाये जाते थे , माँ के लिए अच्छा होता अगर इस गाने की लोकप्रियता कम हो जाती | तब वह बाबूजी के आने के पहले रेडियो के पास खड़े होकर यह गाना सुन सकती थी | अगर इसकी लोक्र्पियता बढती, तो उन्हें रंधनीखड़ (रसोईघर) की खिड़की खोलनी पड़ती थी ताकि जब बाबूजी रेडियो पर पौने नौ का समाचार सुनें, वो पड़ोसियों के रेडियो से यह गाना सुन सके |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
एक दिन गज़ब हो गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बाबूजी ने रेडियो पर हाथ रख दिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्या ? यह तो भट्टी की तरह तप रहा है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
चोरी पकड़ी गयी थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्या सुन रहे थे कौशल ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कुछ नहीं बाबूजी , रेडियो न्यूज़ रील आ रही थी |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अरे हाँ आज तो बुधवार है " बाबूजी अचानक बोले ,"तुम लोगों को बिनाका गीत माला नहीं सुनना है ?"<br />
सब सर झुकाए चुपचाप कुछ न कुछ पढ़ रहे थे - सिवाय मेरे और संजीवनी के | हम दूसरो का चेहरा देख रहे थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पर यह इतना गरम क्यों हो गया है ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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तो रेडियो गरम इसलिए हो गया था कि उसे बीमारी ने जकड लिया था | उस दिन के बाद वह रेडियो थोडी देर चलकर ही गरम हो जाता था | इतना गरम कि माँ अगर चाहती तो सिगड़ी के बजाय गाना सनते सुनते रेडियो पर रोटी सेंक सकती थी - एक पंथ दो काज | पर अब सब डर गए थे कि कहीं अन्दर का कोई वाल्व वगैरह पिघल मत जाए |अब रेडियो दस मिनट के लिए चलता और उसे अगले दस मिनट बंद करना पड़ता | </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">अगले ही हफ्ते बाबूजी को तीन चार दिनों के लिए भोपाल जाना पड़ा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"आइडिया ... "घर के कारीगर कौशल भैया को अनूठा उपाय सूझा | रेडिओ हालाँकि पंखाखड में रखा था , पर इस सन्दर्भ में पंखाखंड का पंखा किसी काम का नहीं था | बैठक में हरे रंग का एक टेबल पंखा था जो एक सौ बीस अंश में घूम घूम कर हवा फेंकता था | वैसे पीछे उसकी टोंटी खींच दी जाये तो वो एक जगह खड़ा भी रहता था कौशल भैया ने रेडियो और पंखे का भरत मिलाप करा दिया | काम आसान नहीं था |<br />
एरियल का जालीदार तार , एक पट्टी की शकल में बैठक से होकर ही जाता था | हरे रंग का वह टेबल पंखा बैठक में ही रखा था | एरियल के जालीदार तार से एक पतला काले रंग का एरियल का दूसरा तार निकलता था जो रेडियो के पीछे लगा था | सब कुछ बैठक में स्थानांतरित करना पड़ा जहाँ पंखा लगा था | पीछे से पंखे की घुंडी खींच कर उसे एक स्थिति में खड़ा किया गया | तीन नंबर पर पूरी रफ्तार से पंखा रेडियो पर हवा फेंक रहा था | रेडियो के सामने घुटनों के बल बैठे कौशल भैया सुई वाली घुंडी बेधड़क घुमा रहे थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"बड़े मियां घर नहीं, हमें किसी का डर नहीं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पीली रौशनी की पट्टी में लाल सुई इधर उधर भाग रही थी पर रेडियो सीलोन मिल नहीं रहा था | रेडियो पीकिंग,रेडियो जर्मन , रेडियो पाकिस्तान - सब मिल रहे थे | सारे पड़ोसियों के रेडियो एक सुर में गाना गा रहे थे | आखिर हमारे रेडियो ने भी उनके सुर में सुर मिला ही दिया ,"बदन पे सितारे लपेटे हुए , ऐ जाने तमन्ना किधर जा रही हो... "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सब के चेहरे पर मुस्कान आई | कौशल भैया ने पसीना पोंछा | माँ अभी भी 'रंधनी खड़' ( रसोई घर ) में खाना बना रही थी | </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">काश ये मुस्कान चिस्थायी होती !</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैं रेडियो के पिछवाडे पर खड़ा था | पीछे के ढक्कन की झिर्रियों से मुझे जलते हुए ढेर सारे वाल्वों की झलक मिल रही थी | ऐसा लग रहा था कि संगीत के साथ वे वाल्व थिरक रहे हैं | अचानक सारे वाल्व बुझ गए और अँधेरा छा गया | कौशल भैया ने बांयी घुंडी घुमाकर रेडियो बंद कर दिया | सब कुछ शांत ...</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उस चुप्पी का असर ऐसा ह्रदयांकारी था कि मां भी रसोई घर से निकलकर आ गयी " क्या हुआ ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कुछ नहीं रेडियो गरम हो गया है | उसे ठंडा होने दो |" हरे रंग के पंखे की भी सीमिततायें थीं | </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
और तभी, उसी वक्त पड़ोस के सारे रेडियो एक सुर में गा उठे ,"मुन्ने की अम्मा , यह तो बता ...."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मुझे मुन्ने की अम्मा सुनने दो ..." मां बोली | </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"खाना बन गया ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ बन गया केवल दाल घोंटना बाकी है | रेडियो चालू करो |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ऐसा करो , आप थोड़ी देर चहलकदमी कर के आओ " कौशल भैया झुंझलाकर बोले ,"सब घर में रेडियो बज रहा है और वो भैस वाले विनोद के घर तो भोंपू की तरह गमगमा रहा है ..."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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कांशीराम मुन्ना के घर काम करने आता था , पर हमारे घर से उसे बड़ा लगाव था | हम लोगों के घर के लिए उसका योगदान काफी बड़ा था - शायद बाहरी लोगों के सम्मिलित योगदानों से भी काफी बड़ा |<br />
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तीन चार साल पहले की बात है | एक दिन घनघोर बारिश हो रही थी | कांशीराम और रामलाल सुपेला से लौट रहे थे | पच्चीस सड़क के पास आते आते बारिश बूंदा बांदी में बदल गयी | इन दिनों लोग जब एक घर से दूसरे घर स्थानांतरित होते थे तो अपना गेट तो साथ में लेकर जाते थे पर अपने पीछे मेहनत से बनाया बगीचा छोड़ जाते थे| हफ्तों तक, जब तक नया मकान मालिक नहीं आ जाता , आवारा गाय और भैसों की दावत हुआ करती थी (जोप्रायः आवारा नहीं होते थे , पर उनके मालिक जान बूझ्कर खुला छोड़ देते थे ) |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तो ऐसे ही कोने वाले घर में रामलाल और कांशीराम ने देखा कि मेहंदी की झाड़ियाँ लगी हैं | अपने छत्ते में उन्होंने दो पौधे छुपाये और बाइस सड़क के घर नंबर '१० ब' में गेट के दोनों बाजु रोप दिए | आगे जो कुछ हुआ उसने बड़े बड़े वनस्पतिशास्त्रियों को दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर कर दिया | वे पौधे बढ़ते चले गए | पौधों से उन्होंने एक पेड़ की शकल ले ली और एक दूसरे की ओर झुक गए | उनकी शाखाएं आपस में मिल गयीऔर उन्होंने गेट के ऊपर एक मेहराब सा बना दिया ,"घर नंबर १० ब में आपका स्वागत है ...."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ये कैसे हुआ ठाकुर साहब ? आपको विश्वास है , ये मेहंदी का पेड़ है ? पर मेहंदी का तो पेड़ होता नहीं, उसकी तो केवल झाड़ियाँ होती हैं जिनकी ऊंचाई पांच फीट से ज्यादा नहीं होती.... "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पर वे तो बाकायदा बारह फीट ऊँचे पेड़ थे जिनके तने कम से कम चार इंच मोटे थे | वाकई में वे मेहंदी के पेड़ थे - सुर्ख लाल रंग की मेहंदी के ! बरसों तक आस पड़ोस की लड़कियां मेहंदी की पत्तियां तोड़कर ले जाती थी | कई कई बरसों के अन्तराल में जब तीनों बहनें एक एक करके विदा हुई तो उनके हाथ इन्ही दो पेड़ की मेहंदी से रँगे थे !<br />
ये दूसरी बात है कि उन मेहंदी के पदों की छाया में कोई गुलाब का पौधा कभी नहीं पनप पाया |अजीब विडम्बना थी कि जितने गुलाब के पौधे रोपे , सब में कई कई महीनों में केवल एक फ़ूल लगता था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तो उन दिनों , मुन्ना के घर से बीच बीच में कई बार हमारे घर कांशी राम आता था | एक बड़े से पत्थर में वो मिटटी रुन्धते रहता था | हाँ, वो कुछ बना रहा था ,, शायद कोई मूर्ति !</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्या बना रहे हो काशी राम ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
जवाब में कांशी राम सिर्फ मुस्कुरा देता था | बनाने को तो वो काफी कुछ बना सकता था | मुन्ना के घर के आँगन में, उसके दोनों चाचा - दामू चाचा और उज्जवल के पिताजी के लिए झोपड़ी कांशीराम ने ही बनाई थी | अक्सर उनके घर वह मुख्यतः झोपड़ियों की मरम्मत करने आता था, जो कि वर्षा के दिन में अनिवार्य हो जाती थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
घर के घेरे के उत्तर पूर्वी कोने में गन्ने का झुरमुट था | उस झुरमुट के बगल की मिटटी एकदम काली मिटटी थी जिस पर उन दिनों श्याम लाल ने जमीन खोदकर शक्कर कंद लगा दिए थे | वहीँ से काशी राम ने गीली मिटटी निकाली, पूरी मेहनत से एक एक कंकड़ साफ़ किया| फिर सनी हुई मिटटी मैं उसने थोड़े से पुआल मिला दिए | बांस की दो खपच्ची ली और उनके सहारे मिट्टी के उस ढेर को वह आकार देने लगा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बारिश के दिन थे | धूप कभी आती , कभी नहीं | जिन दिनों धूप आती, वह सब से पहले गेट खोलकर आता और उस ढांचे को, जो पत्थर के एक सलेट पर रखा था , धूप मैं सूखने के लिए रख देता | शाम को फिर से पानी डालकर गीला कर देता | गोरखधंधा मुझे समझ में नहीं आ रहा था | जब उसे गीला ही करना था तो धूप में सुखा क्यों रहा था | उसमें हलकी सी दरार दीखते ही उसके चेहरे में शिकन आ जाती थी और वह थोडी और गीली मिट्टी से उसे भरने का प्रयत्न करता |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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गुहा साहब रेडियो को ध्यान से देखते रहे | पहले आगे से, फिर साइड से | साइड की बायीं घुंडी, जो "फाइन ट्यूनिंग" के नाम पर उल्लू बनाने का काम करती थी , को आगे से पीछे पूरा घुमाया फिर पीछे जाकर "ठक ठक" की ..... |<br />
बाबूजी जब पौने नौ का समाचार भी निर्विघ्न पूरा नहीं सुन पाते थे तो अब उन्हें लगा कि रेडियो का इलाज अनिवार्य है | रविवार को उन दिनों घर में मेला सा लगे रहता था | वैसे भी घर में रहने वाले लोग ही कम नहीं थे, पर रविवार को माँ को कई लोगों के लिए कई कई बार कई कप चाय बनानी पड़ती थी | लोग आते, बातें करते, विचार विमर्श करते, सलाहों का आदान प्रदान करते , ठहाका लगाकर हँसते और फिर बाल कटाने या सुपेला बाज़ार सब्जी लेने या मंदिर की ओर चले जाते |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उनमें ही एक सज्जन १७ सड़क के गुहा थे | थे तो वे भिलाई इस्पात संयंत्र के कर्मचारी ही, पर उन्हें इन कारीगरी का, खासकर बिजली के उपकरणों से खेलने का , काफी शौक था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ठीक है ठाकुर साहब" वे बोले ,"अभी तो खोलने के औजार मेरे पास नहीं हैं | अगर आप चाहें तो इसे हमको दे दीजिये | हम घर में जाकर इसका अच्छे से मरम्मत करेगा |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बंगाली दादा ने "मरम्मत" इस लहजे से कहा था, जैसे धोबी कपडों की धुलाई करता है | एक क्षण बाबूजी भी सोच में पड गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उन्हें सोचते देखकर बंगाली दादा बोले,"ठीक है एक काम करते हैं | हम संध्या काल को सामान लेकर यहीं आएगा | देखते हैं क्या गड़बड़ है ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अपनी बात के मुताबिक, शाम को गुहा साहब हरे रंग के रेगजीन झोले में अपना अंजर पंजर लेकर आ गए | उसमें पेंचकस से लेकर ढेर सारे वायर का जंजाल और काला टेप , सब कुछ था | बैठक में रोगी को बैठा दिया गया | चाय की ट्रे माँ ने मुझे थमा दी थी | चाय देकर मैं वहीँ खड़े रहा | वे एक हाथ में टॉर्च पकड़कर, दुसरे हाथ में स्क्रू ड्राइवर से पीछे का कवर खोल रहे थे |<br />
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कवर खोलकर उन्होंने हाथ अन्दर डाला | जादूगर तो टोप से खरगोश निकालते हैं | जब गुहा साहब का हाथ बाहर आया तो ......</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
.....पूंछ पकड़ कर मरे हुए प्राणी को हवा में झुलाते हुए वे इतना ही बोले , "ठाकुर साहब , चूहा ..... "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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माँ के क्रोध का पारावार ना था | चूहों ने उनकी नाक में दम कर दिया था | अब आप समझ गए होंगे कि रोज सुबह बबलू , बेबी या शशि को मोजा क्यों खोजना पड़ता था | अगर केवल मोजे इधर या उधर होते तो कोई बात नहीं थी - अगर उन्हें चूहे चबाने की कोशिश न करते ; जो कि प्रायः वे नहीं करते थे | गनीमत थी कि उनका स्वाद उन्हें पसंद नहीं था - नहीं तो बात और बिगड़ जाती |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
कौशल भैया की आँगन की कुटिया की छत पर पर माँ उरद दाल की बड़ी बनाकर सुखाने रखती थी | अगर वो शाम को उन्हें उतारना भूल जाती तो रात में चूहों का महाभोज होता | </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
रात को हलकी खटपट की आवाज़ होती और माँ बड़बडाती ,"हाँ हाँ अब्बड सत्ती जात हें रोगहा मन (काफी बदमाशी कर रहे हैं , शैतान आन दे इतवार (रविवार आने दो) फेर देखबे (फिर देखना) |"<br />
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पर अजीब बात थी कि रामलाल या श्यामलाल मामा , या व्यास, जो रविवार को सुपेला बाज़ार से पूरे परिवार के लिए सप्ताह भर की सब्जी लेने जाते , माँ की पुरजोर हिदायत के बावजूद 'मुसुआ दवाई ' (चूहे मार दवा) लाना भूल ही जाते | सब कुछ लाते वे, आलू से लेकर चौलाई भाजी तक - कई बार अनपेक्षित चीज़ें भी , जैसे तीन फुट की मछली, या चुकंदर , जिसे खाकर सबके होंठ जामुनी हो गए थे - पर हर बार वे वही चीज भूल जाते जिसकी माँ को सख्त जरुरत होती |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
जैसे ही उनकी साइकिल गेट के बाहर रूकती, मैं लपककर जाता ,"चूहा दवाई लाये ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />वे सर पीट लेते ," में सोच ही रहा था कि क्या लेना भूल रहा हूँ, क्या भूल रहा हूँ पर देख, दीदी को मत बताना | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
और सब्जी का झोला अन्दर खाली करते करते माँ के पूछने से पहले ही वे बोलते ,"क्या बताऊँ दीदी ? वो चूहे मार दवाई वाला डोकरा (बुढऊ) सुपेला बाज़ार से ही गायब हो गया क्यों ? पता नहीं, शायद, हाँ शायद ...."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
और रामलाल के इस "शायद" ने माँ के कोसने के वाक्यांश को भी बदल दिया अब वो कहती ," ... पंद्रह बीस दिन बाद .....के बाद देखना "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">सालों साल माँ चूहों से परेशान रहती थी, उन्हें कोसती थी, पर साल में एक बार उन्ही दिनों उनकी भाषा बदल जाती थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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सेक्टर २ बाज़ार के कुछ हिस्से ऐसे थे जिनका स्वरुप बरसों नहीं बदला था | उनमे एक हिस्सा था , सब्जी बाज़ार का | छोटे पंडित की पान की दूकान थी, बड़े पंडित की सब्जी की दूकान | बड़े पंडित की सब्जी की दूकान के बगल में महाराष्ट्रियन बहनों की सब्जी की दुकान थी, जिसमें से एक बहन शशि दीदी के स्कूल में शायद उनके आगे पीछे की कक्षा में पढ़ती थी | पर छोटे पंडित के पान दुकान की बगल वाली दुकान कभी भी नहीं जम पायी | हर दो तीन साल में कोई नया मालिक एक नयी दूकान लेकर वहां आ जाता था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तो उन दिनों वहां शंकर होटल था , जहाँ बाबूजी ने बेबी को एक दर्ज़न आलू गुंडा लेने भेजा था | उन दिनों से लेकर काफी समय तक मेरे शब्दकोष में होटल का मतलब रेस्टारेंट होता था, क्योंकि भिलाई के सारे 'होटल' एक भिलाई होटल को छोड़कर - रेस्टारेंट ही थे | यहाँ तक कि मैं भिलाई होटल को भी एक रेस्टारेंट ही समझता था | जब लोग कहते थे कि सड़क के शर्मा अंकल भिलाई होटल में मैनेजर हैं, तो मैं उन्हें रसोइयों का मुखिया समझता था और यह बात मेरी समझ से परे थी कि उनको लेने और छोड़ने जीप क्यों आती है ? आखिर क्या है उनमें कि पूरे सड़क इक्कीस और बाइस मैं, केवल उनके ही घर फोन लगा है ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
शंकर होटल मैं, कांच के शो केस में , जैसे किसी ज्वेलरी की दूकान में गहने या कीमती खिलौनों की दूकान में खिलौने रखे होते हैं, वैसे ही मक्खियाँ भिनभिनाती जलेबी, बालूशाही , भजिया आलू गुंडा रखे थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"गरम बनाकर देना भैया " बेबी ने कहा | ये बाबूजी की हिदायत थी, जिसे बेबी ने सिर्फ दोहराया था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैंने देखा, बेबी के हाथ की मुठ्ठी कस कर बंधी है मुझे मालूम था, मुट्ठी के अन्दर पैसे हैं पर बेबी इतने जोर से जकड कर क्यों रखती है ? जब मुट्ठी खोलेगी तो मुझे मालूम था कि उनके हाथ में सिक्के का पूरा छप्पा बन जायेगा | अगर वो नोट हुए तो नोट तुड़ मुड़ जायेंगे | अगर गर्मी के दिन हुए तो नोट पसीने से भींग जायेंगे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तभी मेरी नज़र रेक में पड़े ब्रेड के पैकेट पर पड़ी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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ब्रेड अजेंडा में नहीं था | माँ ने पहले तो डांट का पूरा पीपा बेबी के सर उडेल दिया कि जो चीज मंगाई नहीं थी , वह लेकर क्यों आ गयी ? उसने उसे तुंरत वापिस करके आने को कहा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"नहीं, आजकल वो वापिस नहीं लेते ,माँ |", माँ का रौद्र रूप देखकर बेबी कांपती आवाज़ में बोली |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्यों नहीं लेते ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"आजकल कोई भी वापिस नहीं लेता | हर दुकान के बाहर लिखा रहता है ,'बिका सामान वापिस नहीं होगा' |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अच्छा ? मैं देखती हूँ , कैसे वापिस नहीं होगा चल , बता कौन है दुकान वाला ", माँ पूरे लड़ने के मूड में थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पंडित के बाजू वाली दूकान है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैंने मिन्नत की ,"रहने दो न माँ |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
किसी तरह माँ मान गयी | वे मेहमान, जिनके लिए बाबूजी ने आलू गुंडा मंगाया था , नाश्ता करके चले गए | फिर भी कुछ आलू गुंडा बच गए थे | माँ वैसे भी होटल का कोई सामान खाती नहीं थी | ना ही वह बड़ों से उम्मीद करती थी कि वे होटल का सामान खाएं | जितने आलू गुंडे बाकी थे, उसने उनके टुकड़े करके बच्चों मैं बाँट दिया | फिर ब्रेड भी बाँट दिए | आज हम दूध, बल्कि चाय रोटी की जगह चाय ब्रेड खा रहे थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"माँ गुस्सा क्यों हो रही थी ?" मैंने बेबी से पूछा चाय में भींगकर ब्रेड फ़ूल गया था | मैं चम्मच से खाना सीख रहा था| अगर चम्मच मैं कौर नहीं आता, तो में उंगली से हलके धक्के से ड़ाल देता |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ब्रेड खाना अच्छा थोडी होता है ? और ये लोग तो बासी ब्रेड बेचते हैं | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हम लोग भी तो रात की रोटी चाय के साथ खाते हैं | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अरे नहीं | ब्रेड बनाने के लिए पहले वैसे आटा सडाते हैं | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"आटा सडाते हैं ? औ... औ ..."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"और सड़े आटे का वो ब्रेड बड़ी दुकान में ना बिके तो दो तीन दिन बाद इसे होटल में भेज देते हैं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"सड़े आटे का ब्रेड तीन चार दिन बाद होटल में ? औ औ ......"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"और वहां भी नहीं बिके तो सुबह जो 'ट्रिन ट्रिन ' घंटी बजाकर ब्रेड" बेचने वाला आता है न, उसके पास बेच देते है | "<br />
"औ ... औ ... औ ..."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मालूम है, ब्रेड के लिए आटा कैसे गूंथते हैं ? ब्रेड का आटा पांव से गूंथते हैं | बेकरी में लोग पांव से दबा दबाकर आता गूंथते हैं | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"औ ॥ औ... औ...."अचानक मेरे पेट में जोर से मरोड़ उठी और मैने उलटी कर दी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उलटी करने वाला मैं अकेला नहीं था बबलू और संजीवनी ने भी उलटी कर दी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बेबी को नए सिरे से डांट पड़ी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
इस बार डांटने वाले बाबूजी थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पता नहीं, ये ब्रेड में कुछ था या आलू गुंडा में | तुम को देख कर गरम आलू गुंडा लाने कहा था न ? देखा था अपनी आँख से ? या तुम्हे उल्लू बनाकर चार सौ बीस लोगों ने ठंडा, पुराना सडा आलू गुंडा मिला दिया था ? होश था तुमको कुछ ? कोई जरुरत नहीं, शंकर होटल से आइन्दा कुछ लाने की .... "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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साल में एक बार गणेश भगवान् स्वर्ग से उतरकर धरती पर आते हैं , एक आम आदमी के घर में रहते हैं और ग्यारहवें दिन अपने धाम वापिस चले जाते हैं | ये तो थी सदियों से चलने वाली व्यक्तिगत धारा | इस निजी परंपरा को करीब अस्सी नब्बे साल पहले तिलक ने सार्वजानिक स्वरुप का अमली जामा पहनाया था | आस पड़ोस के लोग मिलकर भगवान् के लिए एक छोटा सा घर बनाते हैं , उसके सामने अपने दुःख सुख कहते हैं , मिल जुलकर भगवान् का मनोरंजन करते हैं और फिर ग्यारहवें दिन भगवान् को अगले साल फिर आने का न्योता देकर विदा कर देते हैं |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैं भाग्यशाली था कि वर्षों तक मैंने गणेश पूजा के दोनों स्वरुप काफी निकट से देखे और यह तो मेरी याददाश्त में पैठने वाला पहला साल था | अंतिम क्षणों तक मुझे बिलकुल आभास नहीं था कि काशीराम जो मूर्ति बना रहा है, वो गणेश भगवान् की है | होता भी कैसे ? गणेश भगवान की सूँड ही नदारद थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
घर में बैठक में एक फोटो थी, जिसमें बाल कृष्ण के हाथ बंधे हुए थे और उनको गणेश भगवान अपने हाथों से लड्डू खिला रहे थे | यह देखकर दरवाजे पर खड़ी माँ यशोदा के हाथ से पूजा के फूल की थाली छूट गयी थी | फिर पंखाखंड में पूजा के खाने मैं लक्ष्मी की फोटो थी, जिनके हाथ से सोने के सिक्के झड़ रहे थे | उनके बांयी ओर सरस्वती देवी और दाहिनी ओर गणेश जी बैठे थे | कहने का तात्पर्य यह कि उस समय मैं गणेश जीके स्वरुप से अनजान नहीं था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
आखिरकार एक दिन काशीराम ने मूर्ति के मुंह में एक लम्बा सा तार घुसाया , उसे मोडा , फिर आकार पसंद नहीं आया तो फिर मोडा और मिट्टी की परत चढानी शुरू की |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
चतुर्थी के एक दिन पहले तीजा था | कौशल भैया सुबह से माँ से 'कोपरे' की मांग कर रहे थे '| कोपरा' , यानी कि बड़ा सा पीतल का थालनुमा बर्तन | घर का जो छोटा कोपरा था, उसमें तो माँ रोज रोटी के लिए आटा सानती थी | इसके अलावा घर मैं एक बड़ा, पीतल का चमचमाता भारी 'कोपरा' था तीज त्यौहार के समय माँ उसका उपयोग 'अडीसा' के लिए आटा सानने के लिए करती थी | 'अडीसा' एक चावल के आटे और गुड़ से बना पकवान होता था | अब माँ ने तीजा के लिए उसी कोपरे का उपयोग कर लिया था | शाम तक मेहमान आते रहे | मेहमान क्या - महिलाओं का त्यौहार था , इसलिए माँ की हिस्सेदारी आवश्यक थी | इसके ऊपर माँ का निर्जला उपवास भी था | शाम तक कौशल भैया मांग करते रहे और उनका स्वर और ज्यादा झुंझलाहट से भरते चले गया | अंततः शाम को माँ 'मिसराइन' ,'कांता',डाक्टरनी , 'कल्याणी' और गुड्डा की माँ के साथ मंदिर चले गयी तो शशि दीदी ने 'कोपरे' का बचाखुचा आटा एक गंजी (दूध का बर्तन) मैं डाला और कोपरे को नारियल के बूच से रगड़ रगड़ कर धोया | थोडी ही देर में कोपरा चमचमा उठा | पर कौशल भैया कर क्या रहे थे ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
शुरुवात उन्होंने होली के रंग से की | थोडा बहुत लगाया होगा, बात जमी नहीं | उनके पास में जो पैंट के डिब्बे थे, उनमें काले , सफ़ेद और पीले ही रंग थे | वो भला क्या काम आते ? अरे, जूते यानी पदत्राण भी तो सुनहरे होने चाहिए | उन्होंने चूने के रंग टटोले, बात कुछ जमी नहीं हारकर उन्होंने अपने वाटर कलर का डिब्बा उठाया | काम काफी मेहनत का था ब्रश पतले थे और थोडा रंग लगाते ही सूख जाते | पर कौशल भैया लगे रहे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">थोड़ी ही देर में कांशीराम के मिट्टी की उस मूर्ति में गणेश भगवान् की छवि स्पष्ट दिखने लगी | </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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जब से मार्केट के गणेश पूजा के व्यवस्थापक सबके घर से एक एक रूपये चंदा मांगकर गए थे, सारे बच्चे उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे | आखिरकार वह दिन आ ही गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
रोज की तरह हम लोग मैदान में खेल रहे थे | एक कोने में इक्कीस सड़क का राजू , यानी 'लाल टमाटर' निशु का भाई पतंग उड़ा रहा था | निशु का शरारती लड़कों ने जीना हराम कर दिया था , क्योंकि वह एकदम गोरी चिट्टी थी, लेकिन थी रुई के बोरे की तरह फूली फूली | जैसे ही वह घर से निकलती, शरारती दुल्लू ,संजू या मंजीत किसी कोने से आवाज निकालते,"लाल टमाटर" और फिर सियार की 'हुआँ हुआँ' की तरह सारे शैतान लड़के शुरू हो जाते,"लाल टमाटर, लाल टमाटर " | और तो और, अपेक्षाकृत शांत गोगे ,टीटू और रीटू भी शामिल हो जाते,"लाल टमाटर लाल ...टमाटर..." | राजू की माँ ने एक दिन लड़कों को प्यार से समझाया , दूसरे दिन धमकाया , तीसरे दिन पीटा , पर कुछ असर नहीं हुआ | इसलिए राजू अधिकतर और लड़कों से थोड़ा कटा रहता था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
शंकर हाथ छोड़कर साइकिल चलाते हुए आया और राजू के पास आकर , साइकिल घुमाकर बोला "अबे, मार्केट का गणेश आ गया है |" </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">दुल्लू राजू के पास ही लट्टू चला रहा था "मोट्टे टी टी पोट्टे "वह हिकारत से बोला ," इतनी जल्दी कैसे आ सकता है ?"गणेश का नाम सुनते ही हम बच्चों के कान खड़े हो गए थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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सब्जी बाज़ार के पीछे , सच कहूँ तो कल तक तो धोबी के कपडे सूखते थे | इसका मतलब सत्यवती के पिताजी को कपडे सुखाने के लिए कोई और जगह खोजनी पड़ेगी | अब वह जगह जो कल तक टूटी फूटी ईंटों का मंच थी , वह रंगीन परदों, लाल कालीन ,और टेंट से ढँक गयी थी | मंच के ठीक बगल में गणेश जी के लिए लकडी का सिंहासन बनाया गया था | उस पर गणेश जी विराजमान भी थे | उनके सिर के पीछे एक चक्र निरंतर घूम रहा था |<br />
सब कुछ ठीक था, केवल एक बात खल रही थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
गणेश जी का मुंह ढंका हुआ था | एक पीले रंग का कपडा गणेश जी के मुंह पर बंधा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्यों बंधा है कपडा ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्योंकि अभी मुहूर्त नहीं निकला है " चक्की वाले ने जवाब दिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
- देखो, सडा सामान बेचने वाला ,शंकर होटल वाला , कैसी बेशर्मी से बूंदी की एक पूरी परात प्रसाद के रूप में बांटने के लिए खडा है | मेरा मन घृणा से भर गया | हाथ में पिचके हुए एल्यूमिनियम का पात्र लिए एक कोने मैं भिखारी भी ललचाई नज़र से देख रहे थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पास से गुजरते हुए बबन ने पूछ ही लिया ,"प्रसाद कब मिलेगा ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अभी मुहूर्त नहीं निकला है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
कुछ लोग रंग बिरंगी पोशाक पहने कुर्सी पर बैठे थे | उन्हें भी मुहूर्त निकलने का इंतज़ार था , ताकि वे माइक पर आरती गा सकें | अरे हाँ, माइक के बारे में बताना ही भूल गया | दो बड़े बड़े माइक मंच के दोनों कोनों पर लगे थे उनसे तार निकल कर चार बड़े बड़े भोंपुओं पर लगे थे | सिन्धी आटा चक्की वाला बारी बारी से दोनों माइक पर गया | मुझे उम्मीद थी कि वह कहेगा कि मुहूर्त कब और कैसे निकलेगा | उसके बजाय उसने कहना शुरू किया ,"हेल्लो वन टू थ्री , हेलो माइक टेस्टिंग वन टू थ्री हेलो वन टू थ्री "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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बाज़ार वालों की बेवकूफी से दो पंडित आपस में लड़ पड़े |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उस समय सेक्टर २ के मंदिर के प्रांगण में दो ही मंदिर थे - एक दुर्गा माँ का और एक हनुमान जी का | हनुमान जी की पुरानी मूर्ति एक बरगद के पेड़ की जड़ से जुडी हुई थी | उनके दर्शन के लिए तीन चार सीढ़ी उतरकर नीचे जाना पड़ता था | उस मंदिर का पुजारी अपेक्षकृत बुजुर्ग था | वैसे वे काफी शांत स्वभाव के थे और शाम के आठ साढ़े आठ बजे, जब लोगों का मंदिर आना जाना कम हो जाता था , तो शंख बजाय करते थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
दुर्गा मंदिर का पुजारी युवा तो था, पर उन्हें कम सुनाई देता था | साथ ही वे कुछ सनकी और गुस्सालू प्रवृत्ति के भी थे | दोनों में ठंडी तनातनी की वजह शायद ये थी कि एक तीसरा मंदिर , जो कि दुर्गा मंदिर के ठीक सामने तेजी से बन रहा था , जो शायद शिव जी का मंदिर था - उसकी पुरोहिताई दोनों करना चाहते थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
परंपरागत ढंग से पूजन के लिए बुजुर्ग होने के नाते हनुमान मंदिर के पुजारी को बुलाने अनिल डेरी वाला लम्ब्रेटा लेकर गया | वे मंदिर में मिले नहीं | शायद किसी रिश्तेदार से मिलने सुपेला निकल गए थे | एक जिम्मेदार सिपाही की तरह अनिल डेरी वाले युवक ने हार नहीं मानी और वे सुपेला जा पहुंचे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
इसी बीच देर होती देखकर "सिंह टेलर" वाले सरदारजी ने सलाह दी कि बटुक, यानी कि दुर्गा मंदिर के पुजारी को ही बुला लिया जाए | संयोग ये कि दोनों पंडित एक ही साथ , एक ही समय गणेश जी के मंडप पर पूजा कराने जा पहुंचे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मार्केट वाले आयोजक मुश्किल में पड़ गए | पूजा के लिए दक्षिणा की राशि कोई छोटी मोटी रकम होती तो थी नहीं | अब जब कि एक के बदले दो-दो पंडित एक साथ आ गए थे , दक्षिणा की राशि बँट जाने का सीधा-सीधा अंदेशा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हिन्दुस्तान में पंडित का धंधा तब भी कोई लाभप्रद पेशा नहीं था | केवल सम्मान ही जुड़ा था उसमें | सच्ची बात तो यह थी कि उसे पेशा कहना उन्हें काफी अपमानजनक लगता था | किन्तु आमदनी नगण्य थी |जो कुछ मिलता, ऐसे ही पूजा अर्चना के समय ही दक्षिणा के बतौर मिलता |तो गणेश जी का नकाब उतारने की होड़ में दो पंडित आपस में लड़ पड़े - पूरी सुसंस्कृत शब्दावली के साथ |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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घर में एक लकडी की बहुत ही बड़ी मेज थी | इतनी बड़ी कि कौशल भैया भी उसे अकेले नहीं उठा सकते थे | वह बैठक के एक कोने में रखी थी | उसे किसी तरह आडा करके परछी में लाया गया | परछी के करीब बीचों बीच एक बड़ी सी बल्ली थी , जिसमें लोहे की छड़ के चार हूक निकले थे | हम उसमें लकडी का झुला फंसाकर झूल सकते थे | शायद जब हम छोटे रहे होंगे तो माँ हमें उस झूले में रखकर काम करती होगी | अभी भी कभी कभार, खासकर छुट्टियों के दिन किसी का मूड आता तो झूला लग जाता था | उसमें हम बैठकर झूलने का आनंद उठाते | पर प्रतिदिन यह हो पाना संभव नहीं था | कौन उसे रोज लगाये और उतारे क्योंकि, रात को वह जगह खाली ही करनी पड़ती थी ताकि दो तीन लोग चटाई या दरी बिछाकर सो सकें | उसके पीछे , दीवार से सटाकर वह मेज लगाई गयी थी | उसके ऊपर एक लकडी का छोटा स्टूल रखा गया था, जिसके चार पांव में से एक पांव थोडा सा, करीब आधा इंच छोटा था और वो हमेश डगमग डगमग किया करता था | गणेश जी का सिंहासन ना डोले, इसलिए उसके अपंग पांव के नीचे कागज़ को मोड़ तोड़कर एक परत लगाई गयी थी | वो कोपरा जिसे शशि दीदी ने रगड़ रगड़ कर चमकाया था ,, सिंहासन के सामने रखे थे और उसमें फव्वारा चल रहा था | घर में एक छोटा फव्वारा था, जिससे नारंगी रंग की एक रबर की पाइप जुडी थी | ध्यान से देखने पर पता चलता कि वह पाइप मेज के नीच विलुप्त हो गयी है ,जहाँ उसका दूसरा छोर एक पानी के बाल्टी में डूबा था | मेज में टेबल क्लॉथ की जगह जमीन तक झूलती हुई एक चादर रखी थी, जिसने सब कुछ ढँक रखा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बैठक के तीन खानों वाले आले में ढेर सारे खिलौने थे } उसमें जो खुशकिस्मत थे , उन सब को गणेश जी के दरबार की शोभा बढाने के लिए प्रस्तुत किया गया | स्प्रिंग के सहारे सर हिलाने वाले लकडी के खिलौने, एक नर और एक नारी, चीनी मिट्टी के खिलौने, यानि हाथी शेर और बदक, जो कुछ ही दिनों पूर्व आये थे ; प्लास्टिक के यूकेलिप्टस और गुलाब के फुल जो पीतल के नक्काशीदार फूलदान में थे; मिट्टी के बने अनार,सीताफल और आम - जो कि बैठक के उपर में लगी खूंटी से टंगे रहते थे | एक खिलौने का सफ़ेद रंग का पंखा भी था जो बैटरी की छोटी मोटर से चलता था | हालाँकि उसकी धुरी ढीली हो गयी थी और इसलिए वह मोटर के अक्ष में फिर नहीं हो पा रहा था कौशल भैया ने काफी कोशिश की, पर वह फिट हो ही नहीं पाया | अगर वह चलता तो शायद शोभा में चार चाँद जोड़ देता |<br />
शशि ने क्रेप और झिल्ली पेपर से झालर बनाये और उन्हें गणेश जी के आसन के चारों ओर बने मंडल में सावधानी से चिपका दिया | बाबूजी के डर के कारण बापू के तीन बंदरों को हाथ लगाने की जुर्रत किसी ने नहीं की |<br /><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पंखाखंड में दीवार से लग कर कुल चार खाने थे | सबसे ऊपर के खाने में तीन बैंड का रेडियो था | बीच के खाने में रामायण, भगवान् की तस्वीरें , संगमरमर का एक अगरबत्ती का स्टैंड तो था , एक सफ़ेद रंग का शंख भी रखा था |<br />
उस दिन तक मुझे मालूम नहीं था कि वह शंख बजता भी है या नहीं |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तो बड़ी मेज ऊपर स्टूल, फिर एक पीढा रखकर गणेश भगवान् का मंच बनाया गया था | उसके ऊपर पहले लाल रंग का कपडा बिछाया गया | सबसे बड़ी समस्या थी, वह पर्दा | हाँ, वह पर्दा बैठक को घर के बाकी हिस्सों से अलग करता था | ज़मीन से करीब एक फ़ुट ऊपर लटका पर्दा माँ की लक्ष्मण रेखा था ..... आज उस लक्ष्मण रेखा ने मुझे धर्मसंकट में ड़ाल दिया था .....</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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"टुल्लू तेरे घर में गणेश बैठा रहे हैं न ?" बाज़ार से आते समय मुन्ना ने मुझसे पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सब बच्चे मेरी ओर हैरत से देखने लगे | मैं हाँ बोलूं या न ? अगर ना कहूँ, तो ये झूठ होगा |अगर हाँ कहूँ तो मुझे मालूम था कि उनकी अगली मांग क्या होगी ? ऐसी मांग जो मेरे लिए पूरा कर पाना टेढी खीर होता |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मुझे चुप देख कर उसने कहा ,"मुझे कांशी राम ने बताया है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मुझे नहीं मालूम " मैंने मरे स्वर में जवाब दिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
""चल , चल देखते हैं तेरे घर का गणेश " बबन उछला |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ, हाँ चल चल " शशांक और छोटा भी उत्साहित थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अभी नहीं " मैंने बड़ी मुश्किल से उन्हें रोका |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्यों नहीं ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अभी मेरे घर के गणेश के मुंह में कपडा बंधा है "मुझे इससे बेहतर जवाब ही नहीं सूझा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कब हटायेंगे कपडा ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"शायद शाम को अभी मेरे घर के गणेश का मुहूर्त नहीं निकला है "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
.....और शाम को मैं खेलने भी नहीं गया | इस डर से कि कोई बच्चा गणेश देखने की जिद्द ना पकड़ ले | ओह..., माँ की लक्ष्मण रेखा ....<br />
घर में बाहरी बच्चों के आने के लिए माँ के कुछ नियम थे | पहला - जूते चप्पल बरामदे में उतर कर ,दरवाजे के पास रखे पायदान में पांव पोछकर अन्दर घुसो | दूसरा, किसी हालत में , किसी भी हालत में लक्ष्मण रेखा यानी वो पांच फुट लम्बा, अढ़ाई फुट चौड़ा पर्दा लांघने की इजाज़त नहीं है | </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
लक्ष्मण रेखा लांघने की अनुमति बड़ों को भी नहीं थी | हाँ, कभी बाबूजी के कोई दोस्त सपत्नीक पधारते तो जरुर माँ उस महिला को अन्दर गप मारने बुला लेती |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">...अब क्या होगा ? गणेश भगवान् तो परछी में थे ....</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">लक्ष्मण रेखा के उस पार ...</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
--------------</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
शंख बजाना आता है आपको ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
यदि नहीं, तो आपको लगता होगा, इसमें रखा ही क्या है ? मुंह से लगाओ, फूंक मारो , अपने आप चींख मारेगा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैंने भी वही सोचा था | शंख को मुंह से लगाया , फूंक मारी | ऊपर से श्याम लाल मामा और हवा भर रहे थे ," हाँ हाँ , बस ऐसे ही लगे रहो | हाँ हाँ, अभी थोडा सा बजा ..."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैंने मुंह हटाकर पूछ लिया ,"थोडा सा बजा था ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मुझे पूरा अंदेशा था कि वह हरगिज नहीं बजा है | हवा ऊपर से घुसकर नीचे से पूरी पूरी निकल रही थी | मैंने फिर से कोशिश की |<br />
अब बबलू से रहा नहीं गया | उसने शंख छीन लिया ,"तुझसे नहीं बजने वाला |अब मैं कोशिश करता हूँ |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">श्यामलाल ने अब बबलू को वही तरीका सिखाया, जो थोडी देर पहले मुझे सिखाया था | बबलू ने भी एक बार कोशिश की | हवा निकल गयी | दूसरी बार कोशिश की , फिर हवा निकली |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैंने झपट्टा मारकर शंख छिनने की कोशिश की, मगर बबलू ने मुझे परे धकेल दिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तीसरी बार बबलू ने फिर कोशिश की .....</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
... इस बार शंख बज उठा ......</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
.......इतनी जोर से बजा शंख कि उसकी आवाज़ से पूरी २२ सड़क गूंज उठी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
.......देखते ही देखते घर से बच्चे निकालने लगे और उनके पाँव खुद-ब-खुद घर नंबर १० ब की ओर बढ़ने लगे .......</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
....... माँ भी पिघल गयी और लक्ष्मण रेखा का तेज मद्धिम पड़ गया ......</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
ढेर सारे बच्चे परछी में इकठ्ठा होने लगे "इंगलिश मीडियम चाय गरम " वाली किकी, छोटा, रमेश, मुन्ना , सोगा, मगिन्द्र, सुरेश, मोटा गिरीश , दीपक सड़क के दूसरे छोर में रहने वाला अनिल....इक्कीस सड़क के अंकु और टिंकू- सब के सब परछी में भर गए |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
घर में कौशल, शशि और बेबी को कभी तीन कप ईनाम में मिले थे | हाँ, उन दिनों ईनाम में कांसे और ताम्बे के कप मिलते थे | उनके दो ढक्कनों से पूजा के लिए अच्छी खासी घंटी बन गयी | घर में जितने थाली और चम्मच थे, किसी ना किसी बच्चे के हाथ में थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"गणेश भगवान् की ......"....और जयघोष से सारी सड़क गूंज उठी | जब आरती शुरू हुई तो मुझे ज्ञात हुआ कि आरती का एक भी शब्द मुझे आता नहीं था ...</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
----------------------------</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
....और एक दिन फिर मेरी वजह से बेबी को बेभाव की डांट पड़ गयी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
फिर माँ ने उसे सामान लेने भेजा , फिर से मैं उनके साथ लटक गया | फिर से गलती मेरी थी और डांट उनको पड़ गयी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वैसे तो चंद्राकर किराना स्टोर से घर में महीने का सामान आता था , जिसका बाबूजी चंद्राकर के दुकान में जाकर भुगतान कर देते थे | फिर भी कई बार कुछ न कुछ महीने के बीच में ख़तम हो जाता था | कभी चाय पत्ती तो कभी फल्ली दाना कभी नमक तो कभी जीरा, कभी हल्दी तो कभी खड़ी मिर्च | बाबूजी माँ से हमेशा ठीक अंदाज से लिस्ट बनाने कहते थे , शशि दीदी हमेशा मदद करती थी , पर जहाँ लोगों का आना जाना , रहनाअनिश्चित हो , वहां हिसाब रखना भी मुश्किल था | और फिर सब्जी तो हमेशा ताजी ही लेनी पड़ती थी भले | सुपेला बाज़ार से हफ्ते की सब्जी कोई ना कोई ले आता था फिर भी कभी लहसुन चाहिए होता था तो कभी अदरक |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
आज फिर बेबी ने हाथ में कसकर मुठ्ठी बांधी थी | को-ओपरेटिव की दुकान से हमने नमक का पैकेट ख़रीदा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"चलो, थोडा गणेश देखकर आयें ?" मैंने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"चलो , देखते हैं | क्या होने वाला है आज कल में ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पहले हम लोगों ने गणेश भगवान को प्रणाम किया | वाह , क्या भव्य प्रतिमा थी | सर के पीछे का चक्र घूमे जा रहा था | लगता है, पंखा लगा रखा था और उनकी सवारी चूहे को तो देखो - क्या मोटा है - बिलकुल गणेश जी जैसे और कितने प्यार से लड्डू खाए जा रहा है | पर गणेश जी का एक दांत टूट कैसे गया ? किसी को पता भी नहीं चला ? बाप रे ... मैं बता दूँ ? क्या फायदा - बोलेंगे - 'हमने पहले ही देख लिया है बालक...' अभी भी बेबी के एक हाथ की मुट्ठी कस कर बँधी थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैंने अपने मन की बात कह दी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"आप कस कर मुट्ठी क्यों बंधे रहते हैं ? आप ठीक से प्रणाम भी नहीं कर पा रहे हैं |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मेरे हाथ में पैसा है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मुझे मालूम है |", मैं बोला |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"तो कहाँ रखूं ? फ्रॉक में जेब तो होती नहीं | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
" मेरी हाफ पेंट में तो जेब है |" मैंने कहा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उनको बात जंच गयी | उन्होंने मेरी जेब में बचा हुआ दस पैसे का सिक्का ड़ाल दिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अभी दिन के समय गणेश जी के मंडप में कुछ नहीं हो रहा था | फिर भी एक गंजा आदमी मंच के पास रजिस्टर लेकर बैठा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तभी वहां निर्मला दिख गयी - बंछोर साहब की लड़की - बेबी की पक्की सहेली | </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"निर्मला " बेबी ने वहीँ से आवाज़ दी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
निर्मला से ही पता चला कि परसों फेंसी ड्रेस है | निर्मला वहां फेंसी ड्रेस के लिए नाम लिखाने आई है |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वह आदमी , जो मंच के पास बैठा है, वह फेंसी ड्रेस के लिए नाम लिख रहा है |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
" तू क्या बनेगी ?" बेबी ने उससे पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"मैं तो छत्तीसगढी बाई बनूँगी | आसान है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
निर्मला तो चले गयी | बेबी वहीँ खड़ी सोच में पड़ गयी | फिर वह उस आदमी के पास गयी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"आप तो ठाकुर साहब की बेटी हैं न " उस आदमी ने बेबी को पहचान लिया ," क्या नाम है आपका ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"सुधा ठाकुर" सर हिलाकर उस आदमी ने बेबी का नाम दर्ज कर लिया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अच्छा, क्या बनेंगी आप ?"<br />
बेबी थोडी देर तक सोच में पड़े रही | फिर बोली ,"अंकल , मेरा नाम काट दो |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कोई बात नहीं वैसे हम बच्चों का भी आइटम रख रहे हैं | ये आपका भाई कुछ करना चाहेगा ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बेबी बोली,"हाँ | जरुर इसका नाम लिख दो "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"क्या नाम है इसका ?"बेबी कुछ कहती, इससे पहले मैं बोला ," मेरा घर का नाम टुल्लू .... "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बेबी बात काट कर बोली," विजय - विजय सिंह ठाकुर है इसके स्कूल का नाम |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैने सफाई दी ,"वैसे मैं अगले साल स्कूल जाऊंगा |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
रास्ते में मैंने बेबी से कहा," आप सत्यवती से पूछ के देखो | आजकल उनके पिताजी धोने के बाद कपडे कहाँ सुखा रहे है | कपडे सुखाने की जगह तो गणेश जी बैठे हैं |"<br />
"ठीक है स्कूल में पूछ लूँगी | वैसे दस दिन की ही तो बात है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
------------------</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
घर में माँ बिफर पड़ी थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"बायीं जेब देख तो ... अब दाई जेब देख ..."</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मुझे बांया दांया कुछ पता नहीं था | बेबी जब ऐसा कुछ कहती तो जो जेब मैं टटोल रहा होता, उसकी उलटी जेब देखता |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
ऐसा मैंने तीन बार किया , पर पैसा होता तो मिलता | मैंने कमीज के पाकेट में हाथ डालकर देखा | पैसा वहां भी नहीं था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बेबस बेबी रुआंसी हो गयी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ये टुरी (छोकरी) ...." माँ का गुस्सा बेबी पर बरस रहा था | इस आग के बीच में मैं घर से निकल पड़ा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पैसा कहाँ गिर गया ?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैं अँधेरे में घास पर जमीन पर देखते हुए चींटी की चाल से आगे बढा | बीच बीच मैं ठिठक जाता | चलते चलते मैं छोटी पुलिया के पास पहुँच गया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मुझे पीछे किसी के क़दमों आहट सुनाई दी | पीछे बेबी खड़ी थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कहाँ जा रहे हो ?" बेबी ने पूछा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"आपको डांट पड़ी ना पैसा गिर गया न |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
" तो क्या करेंगे ? "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
" मैं खोज रहा हूँ शायद रास्ते में कहीं गिर गया होगा | मिल गया तो माँ का गुस्सा शांत हो जायेगा |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"अब तो अँधेरा हो गया | कहीं दिखाई भी नहीं देगा | कल सुबह सुबह उठ के खोजें ? रात को तो किसी को दिखाई नहीं देगा | कोई नहीं उठाएगा |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मुझे बात थोडी सी जँची ,"ठीक है | आप मुझे बहुत सुबह उठा देना | आपके स्कूल जाने के बहुत पहले |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ठीक अभी चल मेरे साथ |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैं बेबी का हाथ थामे चल पड़ा ...</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
-----------------</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वह महिला हमें अन्दर ले गयी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अन्दर एक कोने मैं केवल एक टेबल लैंप जल रहा था |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ये मेरा भाई है बहनजी " बेबी ने कहा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"कितने साल का है " महिला ने काले फ्रेम के मोटे चश्मे के पीछे से मुझे घूरते हुए कहा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
" साढ़े पांच या छः "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ठीक है " महिला ने कहा फिर,एक मोटी सी किताब में खो गयी | अचानक बोली ,"बोलो बच्चे - ठक ठक ठक ठक करे ठठेरा - बोलो बोलो |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ठक ठक ठक ठक करे ठठेरा " मैंने कहा |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पतला थाल बनाता है - बोलो |" </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"पतला थाल बनाता है | " मैंने दोहराया |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"जिस थाली में खाना मेरा - शाम सबेरे आता है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"जिस थाली में खाना मेरा ... शाम सबेरे आता है | "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"शाबास - अब पूरा बोलो "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"ठक ठक ठक ठक करे ठठेरा , पतला थाल बनाता है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"हाँ आगे ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"जिस थाली में खाना मेरा शाम सबेरे आता है |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"शाब्बास " फिर वो बेबी को देखकर बोली ,"बस हो गया |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"बहनजी , आप लिखकर दे देंगे ?"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
"जरुरत नहीं है इसे याद हो गया |", फिर सोचकर बोली,"वैसे तुम चाहो तो लिख लो |"</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उन्होंने एक कागज़ का पुर्जा और पेन दिया | उस लम्बे से पुर्जे में बेबी ने चारों लाइने लिख ली और अपनी मुट्ठी में भींज लिया - कस के ......</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
-----------------------</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तो जब भगवान् एक मेहमान बनकर घर में आये थे तो जाहिर है, उनके लिए जगह बनानी ही थी | गणेश भगवान् परछी पर विराजमान हुए जहाँ हम लोग बैठकर खाना खाते थे | और रात को व्यास और लक्ष्मी भैया , और कभी शकुन आती थी तो शकुन - चटाई बिछाकर सोते थे | या तो गाँव से आने वाले मेहमान या श्यामलाल या रामलाल मामा दरी बिछाकर सोते थे | तो हुआ ये कि रामलाल और श्यामलाल घर के बाहर सोने लगे | माँ को शकुन का परछी में सोना वैसे भी पसंद नहीं था | उसके लिए पंखाखड में जगह बनाई गयी , जहाँ ज्यादातर लड़कियां ही थी | मुझे मचोली समेत किक मारकर बाहर किया गया | मतलब मेरी खाट , यानी कि मचोली खड़ी हो गयी , और बिस्तर गोल कर दिया गया - अगले ग्यारह दिनों के लिए मैं बैठक में बाबूजी और बबलू के साथ सोने लगा | कौशल भैया तो आँगन में ही जमे रहते थे | बैठक में जो जगह बाकी थी - वहां कोई एक मेहमान सो जाते थे | गणपति के दिनों में कभी हरप्रसाद जरुर एकाध दिन की छुट्टी लेकर आते थे | बाकी सब खेती किसानी में लग जाते थे , क्योंकि वह बारिश का महीना था | अगर और कोई मेहमान आता तो माँ उसे चाय नाश्ता देकर , फिर टेंपो का किराया देकर मुझे हिदायत देती कि मैं उसे मस्जिद तक छोड़ आऊं और बता दूँ कि टेंपो कहाँ से पकड़ते हैं | ताकि वे टेंपो पकड़ कर बत्तीस बंगला जा सकें जहाँ माँ के "बलदाऊ काका " रहा करते थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
रात को सब कुछ ठीक चलता, पर जब जोर की बारिश आती तो रामलाल और श्यामलाल को भागकर , बिस्तर गोल करके, खाट लादकर बरामदे में आना पड़ता |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पर किसी को गणपति से कोई शिकायत नहीं थी | ऐसा लगता था कि भगवान् घर में खुशियाँ लेकर आये हैं | सुबह जरुर स्कूल जाने के लिए भागम भाग मची रहती थी | इसलिए सुबह की आरती में प्रायः कौशल भैया अकेले ही रहते थे | मेरी उपस्थिति नगण्य थी , क्योंकि मुझे तो आरती आती ही नहीं थी | बाबूजी , जो जल्दी जल्दी नहाने के बाद पंखाखड में रखे भगवान् की आरती के लिए अगर बत्ती घुमाते थे , एक अगर बत्ती गणेश भगवान् के आगे भी जला देते थे और थाली में कुछ सिक्के डाल देते थे | जब सुबह गणेश भगवान् की आरती के समय कौशल भैया "गणेश भगवान् की" का नारा लगाते थे तो "जय" कहने वाले केवल मैं और कौशल भैया ही होते थे |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
क्योंकि संजीवनी तब तक सोते रहती थी |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
और जब कौशल भैया आरती गाते थे तो मैं थाली से "टन - टन" बजाने के साथ साथ "औं औं" की आवाज में सुर से सुर मिलाने के , और कुछ नहीं करता था | इस चक्कर में मैने अपने स्टील की खाने की थाली को चम्मच से इतने जोर से बजाया कि वह बीच से पिचक सी गयी | यह बात अलग थी कि इससे मुझे ही फायदा हुआ | अब खाने के वक्त रोटी का इन्तजार करते समय मैं थाली गोल गोल घुमा सकता था - एक चक्र की तरह | लेकिन शाम का माहौल कुछ और ही होता | अब सड़क में करीब सबको पता चल गया था कि हमारे घर गणेश बैठा है | खेलने के बाद लोग हाथ पांव धोकर नियम से हमारे घर आ जाते | जब दोपहर को केले वाला ठेला घर के बाहर से गुजरता तो माँ रोज एक दर्जन केला ले लेती , ताकि उसके गोल गोल टुकड़े काट कर शाम को प्रसाद बनाया जा सके |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
पूजा के पहले तथा बाद बच्चे बातें करते रहते और हंसते रहते | जो बड़े और संजीदा बच्चे थे , वे टेबल पर रखी "पराग" या "चंदामामा" पढ़ते | कई कई बार ऐसा भी होता कि कई कई लोग मिलकर एक ही पत्रिका पढ़ते | कोई एक पेज आगे , कोई एक पेज पीछे कई बार कोई 'पराग' की 'छोटू लम्बू ' या 'बुद्धुराम' जैसे कार्टून ऊँची आवाज में पढता तथा सब लोग देखते रहते और हंसते रहते |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
ऐसा तब तक चलता , जब एक एक बच्चों का नाम ले लेकर उनकी माँ या बड़े भाई बहन घर से नहीं पुकारते | कई बार तो बच्चे तब भी जाने को तैयार नहीं होते | तब उन्हें खुद चलकर हमारे घर आना पड़ता | बच्चे तब भी नहीं हिलते तो उन्हें "दरवाजा बंद होने " की धमकी दी जाती | माँ को यह अच्छा लगता तथा गणेश भगवान् मुस्कुराते रहते |</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
लेकिन एक बात मुझे खल रही थी .......मुझे आरती नहीं आती .... नहीं आती ... नहीं आती ....</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">------------------------ </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> (क्रमशः)<br />
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