शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

कि मैं कुछ कहूँ

क्या करें ? हिन्दी भूल जायें ?
डायनोसौर की हड्डियाँ ढोने से क्या फायदा ? अगर बच्चे हिन्दी पढ़ें तो बिगड़ जायेंगे हिन्दी फिल्मों की भाषा 'हिंगलिश' हो गई है । जसदेव सिंह और सुशील दोषी की कमेंट्री इतिहास में दफ़न हो गई है । शरद जोशी ? हरिशंकर परसाई ? कौन थे वे ? और तो और , राष्ट्रीय समाचार पत्र भी अब 'हिंगलिश' में पत्रकारिता करते हैं - क्योंकि लोग वही बोलते और समझते हैं । तथाकथित हिंदी में जितने ज्यादा अंग्रेजी शब्द, मनुष्य उतना ही विद्वान् माना जाता है तो क्यों न गंवार का ठप्पा सबके माथे से मिटा दिया जाये पूरी भाषा को ही दफन कर दिया जाये
पर हिन्दी को सदा के लिए सलाम बोलने के पहले मैं एक बार इससे गले मिलना चाहता हूँ । अपनी बात कहना चाहता हूँ । अपनी जेब से तुड़े मुड़े पन्ने निकाल कर आपको दिखाना चाहता हूँ । वो मेरे भारत की तस्वीर है । आपकी तस्वीर कुछ भिन्न हो सकती है । मैं वादा करता हूँ , एक आखिरी बार उन पन्नों को पूरी नज़र से देखने के बाद मैं उन्हें फाड़कर हवा में उड़ा दूंगा ।
पहला पृष्ठ भिलाई का है, जिसे नेहरू जी ने "छोटा भारत" कहा था । पता नहीं क्यों ? शायद उनके मिनी भारत में , जो छत्तीसगढ़ के बीच में था, छत्तीसगढ़ ही शामिल नही था और माँ और बाबूजी तो छत्तीसगढ़ी थे .....

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