हनुमान जी विचारमग्न बैठे हुए थे वे अभी भी विस्मित थे कि आखिर यह संभव कैसे हो पाया उनकी निगाह धाखा कैसे खा गयी बार बार रात का दृश्य उनकी आँखों के सम्मुख घूम रहा था
सबसे पहले अंगद रात के अँधेरे मैं उनके सामने आया
"हनुमान जी , मुझे अन्दर जाने दीजिये मुझे अभी अभी गुप्त सुचना मिली है कि ...."
"पर युवराज, आप सुबह तक रुक जाइये प्रभु इस समय विश्राम कर रहे हैं "
" नहीं हनुमान जी, यह सुचना तत्काल राम जी तक पहुँचाना है विलंब का कोई प्रश्न ही नहीं है "
"एक क्षण रुको मैं विभीषण को पुकारता हूँ आप पहले उनसे परामर्श कर लें कि क्या इस समय प्रभु को जगाना उचित है "
हनुमान ने एक क्षण के लिए विभीषण के खेमे की ओर सर घुमाया वे उन्हें आवाज देना ही चाहते थे कि एक सरसराहट सी हुई उनके सामने से अंगद अंतर्ध्यान हो गए
हनुमान जी आश्चर्य में पड़ गए , "कहाँ गए युवराज ?"
"अंगद जी युवराज अंगद जी " हनुमान जी ने हलके से आवाज दी ताकि प्रभु तक वह आवाज न पहुंचे पर वहां अंगद होते तो जवाब देते वहां तो सिर्फ हवा थी दो घडी हनुमान विस्मय सरोवर में गोता लगाते रहे
"समझ गया मैं " हनुमान जी ने सर हिलाया ," तो मायावी राक्षस यहाँ तक पहुँच गए अब मुझे सावधान रहना पड़ेगा "
वह अमावस्या की घोर अँधेरी रात थी हाथों हाथ सुझाई नहीं देता था वानर सेना समुद्र तट पर दूर दूर तक पसर गयी थी दिन के युद्ध से सब थके हुए थे नींद सबके लिए आवश्यक थी केवल हनुमान जी की आँखों से नीद कोसों दूर थी प्रभु की रक्षा की जिम्मेदारी जो उनके सर पर थी उन्होंने अपनी पूंछ लम्बी करके एक बड़ा सा दायरा बनाया था और फिर पूछ बढा बढा कर एक ऊपर दूसरी परत जमाते हुए, दायरा संकुचित करते गए फिर जब दायरा छोटा रह गया तो ऊपर खुद बैठ गए यह एक सुरक्षित किला था जिसके अन्दर राम और लक्ष्मण सो रहे थे और जिस किले के ऊपर हनुमान जी बैठे हों , भला उससे सुरक्षित किला और क्या होगा ? उस किले को भेद पाना असंभव था
पर आज की इस घटना ने हनुमान जी को चौंका दिया यह सही था कि युद्ध करीब करीब अपने अंतिम चरण में था हताशा में रावण कुछ भी कर सकता था इसलिए और ज्यादा सावधान रहने की आवश्यकता थी और मायावी राक्षसों के लिए रूप बदलना कोई बड़ी बात नहीं थी सच कहा जाये तो इस भयानक कष्ट का आरंभ ही छद्म वेश से हुआ था वैसे तो चतुर हनुमान जी राक्षसों की इस कला से भली भांति परिचित थे, पर अभी अभी वे चकमा खा गए थे
"चलो अच्छा हुआ " हनुमान जी ने राहत की साँस ली , "बाल बाल बचे "
फ़िर हनुमान जी के मन में विचार कौंधा ," विभीषण का नाम सुनते ही वह मायावी छू मंतर हो गया इसका मतलब है कि उसे मालूम था , विभीषण इस छद्म कला को आसानी से पहचान लेंगे क्यों ना आज रात को लोगों को पहचानने में विभीषण की ही मदद ली जाए वैसे भी उनका खेमा पास में ही है "
सोचते विचारते ही एक घडी और बीत गयी अचानक उनके सामने सुग्रीव प्रकट हुए
"महाराज आप ? इस समय ?" हनुमान जी आश्चर्यचकित रह गए
"हाँ हनुमान , तुम आज सतर्क रहना "
" महाराज, प्रभु कि रक्षा में तो मैं वैसे भी कोई ढिलाई नहीं बरतता "
"मैं जानता हूँ पर आज की रात और ज्यादा सतर्कता की आवश्यकता है यही बात मैं प्रभु को भी बताना चाहता हूँ "
अब हनुमान के दिमाग की घंटी बजी उन्होंने सुग्रीव को ध्यान से देखा, "नहीं वे तो महाराज सुग्रीव ही थे " उन्हें पहचानने में वे भूल नहीं कर सकते
"क्या देख रहे हो हनुमान एक एक पल कीमती है " सुग्रीव ने कहा
"एक क्षण रुकें महाराज अगर आप बुरा ना मानें तो मैं विभीषण जी को आपके साथ कर देता हूँ अन्दर अँधेरा है आपको तो मालूम है, राक्षसों की आँखें अँधेरे मैं देखने की अभ्यस्त होती हैं केवल एक क्षण रुकें मैं यहीं से विभीषण जी को आवाज देता हूँ " हनुमान जी ने आवाज देने के लिए सर घुमाया ही था कि उन्हें एक सरसराहट सुनाई दी , जैसे कोई सांप तेजी से गुजरा हो उन्होंने झटके से मुंह मोडा और सामने से महाराज सुग्रीव गायब थे
अब वहां केवल अन्धकार था - घना अन्धकार
हनुमान जी सन्नाटे में आ गए आज एक ही रात में वे दूसरी बार धोखा खाते-खाते बच गए
"हे प्रभु यह क्या हो रहा है ?" हनुमान जी ने गहरी सांस ली उन्होंने आकाश की और देखा ढेर सारे तारे टिमटिमा रहे थे तारों की स्थिति से हनुमान जी ने अंदाज लगाया , रात अभी बहुत बाकी थी
"और कितनी परीक्षा देनी पड़ेगी भगवन , आज की रात " हनुमान जी सोचने लगे ऐसा कोई भी अस्त्र या शस्त्र नहीं था, जिसकी काट हनुमान जी के पास ना हो ऐसा कोई भी योद्धा नहीं था , रावण समेत , जिससे हनुमान जी कभी भी विचलित हुए हों पर अब इस माया विद्या से हनुमान जी असमंजस में पड़ गए उन्हें लगने लगा की इस विद्या में उनका ज्ञान राक्षसों से काफी कम है अब वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि आज चाहे जो हो जाये , चाहे भगवान् विष्णु ही क्यों ना आ जाये , वे विभीषण की मदद से पहचान करके ही उन्हें अन्दर जाने देंगे
"क्या सोच रहे हो हनुमान ?" अचानक उन्हें विभीषण का स्वर सुनाई दिया सामने विभीषण ही तो थे अब हनुमान जी की जान में जान आई
"मैं कच्ची नींद में था " विभीषण आगे बोले," कि मुझे तुम्हारा स्वर सुनाई दिया तुम शायद किसी से बातें कर रहे थे फिर मेरा जिक्र आया मेरी जिज्ञासा जाग उठी इसलिए मैं ही खुद चला आया "
"हे भगवान् विभीषण, अब आपको देखकर मेरी जान में जान आई है आज तो मैं दो बार चकमा खाते खाते बचा हनुमान जी बोले
हनुमान जी ने सारी बातें कह सुनाई सुनकर विभीषण सोचने लगे, फिर बोले, "इसका मतलब सारण की सुचना सही थी "
"क्या सुचना ?" हनुमान जी ने पूछा
"यही कि रावण आज अहिरावण से मिलने गया था "
"अहिरावण ?" हनुमान जी ने पूछा "हाँ, अहिरावण, पाताल लोक का राजा रावण का एक और भाई पराक्रमी मायावी अहिरावण मैंने इस सुचना को गंभीरता से नहीं लिया था मुझे लगता था, अहिरावण दिन के युद्ध में हिस्सा लेगा और हमारे योद्धा उससे निपट लेंगे ;पर वह तो छद्म युद्ध में उतर आया हनुमान, तुम चिंता मत करो मैं उसका छल अच्छी तरह जानता हूँ आज सारी रात मैं तुम्हारे साथ रूककर यही पहरा दूंगा लेकिन एक क्षण रुको मेरे ख्याल से प्रभु को सावधान कर देना उचित है ताकि वे कल के लिए रणनीति तैयार कर लें सुबह बताने के लिए वक्त नहीं रहेगा और अचानक अहिरावण तबाही मचा देगा रणनीति बनाना आवश्यक है "
"चाहे हजार अहिरावण आ जाएँ , हनुमान उन्हें पीस कर रख देगा " हनुमान जी तैश में आ गए
"ज्यादा जोश में मत आओ हनुमान जी इस समय बुद्धि का इस्तेमाल करना है रणनीति बनाना है कम से कम प्रभु को इसकी सुचना दे देना आवश्यक है फिर वे जैसा उचित समझें तुम क्या सोचते हो ?"
"आप ठीक कहते हैं " हनुमान जी पूंछ का घेरा थोडा ढीला करके कहा
विभीषण पूंछ थोडी सी उठाकर अन्दर घुस गए अभी आधी घडी भी नहीं बीती थी कि अचानक उनके सामने विभीषण प्रकट हो गए
"हनुमान जी , हनुमान जी "
हनुमान जी को हतप्रभ रह गए ,"विभीषण जी, आप पूंछ के घेरे से बाहर कैसे निकले ?"
"पूछ के घेरे से ?"
"हाँ , आप राम और लक्ष्मण से मिलने अन्दर गए थे "
"मैं अन्दर गया था ? मैं तो शाम से लंका मैं अपने गुप्तचरों से मंत्रणा करने गया था अभी अभी लौटा हूँ "
"अरे नहीं, आप प्रभु को अहिरावण की सुचना देने अभी तो अन्दर गए थे 'अहिरावण ? वही तो सुचना देने मैं अभी आपके और प्रभु के पास आया हूँ "
-----------------------------------------------------
चारों तरफ अफरा तफरी मची थी चारों ओर वानर सेना के योद्धा दो दो चार चार के ग्रुप में इकठ्ठा होकर बातें कर रहे थे घुमा फिरा कर सब एक ही प्रश्न कर रहे थे आखिर हनुमान जी से गलती कैसे हो गयी हनुमान जी तो बुद्धिमानों में अग्रणी थे रात को उनकी मेधा को क्या हो गया ?
"हनुमान, मैं तुम्हे दोष नहीं देता " महाराज सुग्रीव बोले ,"राक्षस बड़े मायावी होते हैं पर जब आपके मन में शंका आई थी तो आप कम से कम हमें जगा देते हमें आवाज दे देते आपके साथ यही बड़ी मुश्किल है कई बार आप समस्या से अपने आप अकेले जूझते रहते हैं ठीक है आप समर्थ हैं पर इस समय तो हमें एक दूसरे के साथ रहना है तनिक सोचिये अगर आप हमें जगा देते , पहली बार नहीं तो दूसरी बार धोखा होने पर, तो क्या मजाल वह कायर राक्षस पास भी फटकता पर आप उस मुश्किल से आप ही निपटने में लगे रहे "
हनुमान जी ने हाथ जोड़कर रुंधे स्वर में कहा,"मुझे अकेला छोड़ दें महाराज "
"उसे अकेला छोड़ दीजिये सुग्रीव जी " विभीषण ने भी कहा,"गलती मेरी थी मुझे लंका में मंत्रणा करने के बजाये, सूचना मिलते ही तुंरत यहाँ आ जाना था "
सब से अलग होकर बार बार हनुमान जी उस धरती पर घूम रहे थे जहाँ राम और लक्ष्मण सोये हुए थे अचानक उन्हें ज़मीन पर एक छोटा सुराख़ दिखा वे सुराख़ ध्यान से देखने लगे उन्हें आसपास की जमीन पोली सी लगी ऐसे लगा कि किसी ने जल्दी जल्दी में मिटटी के एक परत से कोई गड्ढा ढंका हो उन्होंने जमीन में एक लात जमाई आसपास की मिट्टी भरभराकर गिर पड़ी सामने एक सुरंग उन्हें साफ नज़र आने लगी
उनके कानों में विभीषण की बात गूंजने लगी ।" अहिरावण पाताल लोक का राजा है " सबकी दबी जुबान की बात याद आई ."आखिर हनुमान से ये गलती कैसे हो सकती है ?" सुग्रीव की बात गूंजी ,"आप कई बार कोई कार्य अकेले , अपने आप करना पसंद करते हैं " उनका क्रोध दस गुना बढ़ गया
"अगर ये मेरी गलती है तो मैं ही इसे ठीक करूँगा " उन्होंने गहरी सांस ली और किसी से बिना कुछ कहे सुरंग में छलांग लगा दी
--------------------------------------------
हनुमान जी सुरंग में बढ़ते ही चले गए वह संकरी सुरंग, कुछ दूर जाने के पश्चात् क्रमशः चौडी होने लगी अचानक हनुमान जी को सुरंग के अंत में प्रकाश दिखाई देने लगा हनुमान जी की रफ्तार बढ़ने लगी आगे जाकर सुरंग समकोण पर मुड गयी जैसे ही हनुमान जी ने वो मोड़ पार किया, माया नगरी उनकी नज़रों के सामने थी
मारुति के कौतूहल का अंत नहीं था
"क्या यही पाताल नगरी है ?" मारुति ने मन ही मन सोचा,"यह तो स्वर्ग से भी सुन्दर है "
वैसे लंका नगरी भी काफी सुन्दर थी, पर यह तो उससे भी बढ़कर है मुख्य बात तो यह थी कि चूँकि यह पाताल में थी, इसलिए सूर्य का प्रकाश पहुँच पाना संभव नहीं था उसके बावजूद न केवल नगरी पुर्णतः प्रकाशमान थी, अपितु फूल फल ,पेड़ पौधों की कमी नही थी यह देखकर मारुति आश्चर्य में पड़ गए
लेकिन राम और लक्ष्मण का ख्याल आते ही हनुमान जी क्रोध से भर गए
----------
पाताल नगरी के बाहर के जंगल में एक वृक्ष पर हनुमानजी छिपकर बैठ गए जब उन्होंने पाताल नगरी पर पुनः नज़र दौडाई तो उन्हें वह दिन याद आया जब सीता की खोज में वे लंका गए थे तब भी वे भव्य लंका नगरी देखकर विस्मय में पड़ गए थे उस दिन भी वह कार्य करना था , जिसके सम्बन्ध में उन्हें थोडी भी जानकारी नहीं थी सीता की खोज का कार्य थोडा मुश्किल इसलिए भी था, कि उन्होंने जानकी को पूर्व में केवल एक बार ही दूर से देखा था और जानकी तो उन्हें जानती भी नहीं थी
किन्तु आज का कार्य कुछ कम मुश्किल नहीं था आज भी उनको अपना कार्य गुप्तचरी से ही प्रारंभ करना था अचानक मारुति का ह्रदय एक आशंका से धड़क उठा कहीं ऐसा तो नहीं कि उस राक्षस ने राम और लक्ष्मण का वध ही कर दिया हो ? आखिर उसे क्यों अपने शत्रु से मोह होगा ? सीता अति सुन्दर नारी थी और उनकी झिड़कियों के बावजूद रावण उनका मोह अपने मन से निकाल नहीं पाया था पर राम और लक्ष्मण तो अहिरावण या रावण के शत्रु थे उन्हें जीवित रखना यानि अपनी मौत को दावत देना था कहीं ऐसा तो नहीं कि ....
मारुति फिर क्रोध से भर गए अगर ऐसा हुआ , तो वे इस नगरी को तहस नहस कर डालेंगे
-------------------
हनुमानजी ने देखा , पाताल नगरी ऊँचे ऊँचे परकोटों से घिरी हुई थी परकोटों की दीवार के चारों ओर खाइयाँ खुदी हुई थी राक्षस लगातार पहरा दे रहे थे
"किसका भय है उनको ?" हनुमानजी ने मन ही मन सोचा ," पाताल तक पहुँच पाना वैसे भी असंभव है "
अलग- अलग दिशाओं से टेढ़े मेढ़े रास्ते पाताल नगरी की ओर जाते थे मुख्य द्वार से थोड़ी ही दूरी पर वे रास्ते मुख्य पथ पर समाहित हो जाते थे मुख्य द्वार एक काफी ऊँचा दरवाजा था , जिस पर कोई मुस्तैदी से पहरा दे रहा था
फिर हनुमानजी ने जो देखा, उनके विस्मय का पार न रहा उन्होंने अपनी आँखें मल-मल कर देखी फिर भी उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था
हाँ, वह सच था
मुख्य द्वार का रक्षक एक वानर था एक बालक वानर, जिसके चेहरे पर तेज चमक रहा था अगर एक बालक , वह भी वानर, को राक्षसों की नगरी के मुख्य द्वार की रक्षा का अधिभार दे दिया जाये, यह वाकई विलक्षण बात थी अहिरावण कोई बेवकूफ नहीं, अव्वल दर्जे का धूर्त था इसका अर्थ हुआ कि यह वानर बालक जरुर अद्भुत शक्तियों का मालिक होगा पर ये भी क्या कम अचंभित करने वाली बात थी कि ऐसी विलक्षण शक्ति का मालिक , यह वानर यहाँ राक्षस राज का पहरेदार है कौन है ये बालक ? किसका पुत्र है ये ? यह ठीक है कि वानर ब्रहांड में हर जगह व्याप्त हैं, किन्तु हनुमान को हरेक विलक्षण वानर के बारे में सारी जानकारी थी सच तो ये था कि वे सब महाराजा सुग्रीव के निमंत्रण पर इस समय वानर सेना में शामिल होकर युद्ध में हिस्सा ले रहे थे
उनके सामने सबसे पहली पहेली थी कि किसी तरह इस वानर बालक को चकमा देकर अन्दर कैसे घुसा जाये ? एक चतुर जासूस की तरह हनुमान जी चाहते थे कि बिना किसी चेतावनी या पूर्व सूचना के, राक्षसों को बेखबर रखकर सारी जानकारी जल्दी से जल्दी कैसे एकत्र की जाये इस उद्देश्य के लिए बल प्रयोग घातक था
अब ? लंका में तो हनुमानजी ने रात में प्रवेश किया था यहाँ एक एक क्षण कीमती था और अभी तो सुबह ही हुई थी वैसे पाताल लोक बिना सूर्य प्रकाश के जिस तरह प्रकाशमान था, ऐसा लगता नहीं था कि यहाँ कभी अँधेरा भी होता होगा
मुख्य द्वार के पास के एक वाटिका के वृक्ष में चढ़कर हनुमानजी सारी गतिविधियाँ देखने लगे थोड़ी ही देर में एक एक करके गाड़ियाँ मुख्य रास्तों से आती दिखाई दी उन गाड़ियों को बैल खींच रहे थे ऐसा लग रहा था कि उन गाड़ियों में किसी उत्सव की तैयारी के सामान लदे हुए हैं किसी गाड़ी में फूलों का ढेर रखा था तो किसी गाड़ी में टोकनी भर भर के फल रखे हुए थे किसी गाड़ी में ढेर सारे थाल और पत्तल थे तो किस गाड़ी में मिठाइयों के बड़े बड़े डिब्बे रखे थे कोई गाड़ी नारियल से लदी हुई थी तो कोई केले से किसी गाड़ी में ढेर सारे दीपक थे तो किसी गाड़ी में घी से भरे पीपे किसी गाड़ी में रंग बिरंगे ध्वज थे तो किसी गाड़ी में ढेर सारे वाद्य यंत्र वह वानर पुत्र बड़ी ही सावधानी से एक एक गाड़ी ध्यान से देखता और फिर उन्हें अन्दर जाने देता फल यह हुआ कि गाड़ियों की कतार लम्बी होने लगी
"अरे भाई , मुहूर्त निकला जा रहा है जल्दी करो " बैलों को चाबुक मारता हुआ पीछे से एक गाड़ीवान चिल्लाया वह वानर पुत्र सुनी अनसुनी करता हुआ अपने कार्य में एकाग्रता से लगे रहा
"ऐसे अति सावधान प्रहरी की दृष्टि से बचकर घुस पाना असंभव है " हनुमानजी ने मन ही मन सोचा फिर भी उन्होंने भाग्य आजमाने का निर्णय लिया वे अति सूक्ष्म रूप धारण करके एक गाडी में कूद गए वह गाड़ी फूलों से भरी थी हनुमान जी ने अपना आकार एक मच्छर की तरह छोटा कर लिया था वे फूलों के बीच अच्छी तरह छुप गए थे
गाड़ी धीरे धीरे चलती हुई द्वार के पास पहुंची हनुमानजी के ह्रदय की धड़कन बढ़ गयी अब वह वानर पुत्र सावधानी से उसी गाडी का निरीक्षण कर रहा था
अचानक उसने हनुमानजी को पकड़कर उठा लिया
"मैं आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा था पिताजी " उस बालक ने कहा ,"मैं जानता था, कोई आये या ना आये , आप जरुर आयेंगे "
उस वानर पुत्र ने जो कहा वह हनुमान जी के पल्ले नहीं पड़ा परन्तु अब उस बात पर सोच विचार करने का समय भी तो नहीं था हनुमानजी तुरंत अपने असली रूप में आ गए सारी भीड़ सकते में आ गयी
वानर पुत्र ने चिल्ला कर कहा,"सब के सब अन्दर नगर में जाओ जल्दी करो जल्दी ...."
सब के सब आनन् फानन में गाड़ियाँ हांकते हुए नगर के अन्दर चले गए उस वानर पुत्र ने जोर लगाकर तेजी से एक बड़े पहिये का हत्था घुमाना शुरू किया कल पुर्जों की चरमर चूं के साथ अगले ही पल मुख्य द्वार बंद हो गया
अब वानर पुत्र ने जल्दी से नगर के मुख्य द्वार पर ताला जड़ दिया और हनुमानजी से कहा ," यह द्वार आपके लिए नहीं खुल सकता आप शत्रु हैं, मित्र नहीं मुझे हराए बिना आप अन्दर तो जा नहीं सकते "
हनुमान जी ध्यान से उस वानर को देखने लगे उन्हें इस तरह घूरते देखकर वानर पुत्र ने कहा,"ऐसे क्या देख रहे हैं ? आप अपने स्वामी के लिए स्वामी भक्त हैं, में अपने मालिक के लिए वफादार हूँ इसमें बुरा क्या है ? दोनों अपनी जगह सही हैं रही बात उस प्रयोजन की, जिसके लिए आप आये हैं , तो आप मुझे हराए बिना तो अन्दर जा नहीं सकते पिता जी "
अब हनुमानजी की त्यौरियां चढ़ गयी उनके क्रोध का ठिकाना नहीं था तिस पर यह बालक उन्हें बार बार पिता जी कह रहा है नादान कहीं का - फिर उन्हें लगा कि कहीं यह उन्हें कोई और तो नहीं समझ रहा है भौंहें चढ़ाकर वे बोले," ऐ नादान बालक, तू किससे बात कर रहा है इसका भान भी है तुझे ?"
"हाँ, आप यहाँ राम और लक्ष्मण जी की खोज में आये हैं न ? आपके सिवाय भला और किसके लिए यह संभव है मैं जानता हूँ, आप मेरे पिताजी हनुमानजी हैं " वह वानर पुत्र बोला
"हाँ , मैं हनुमान हूँ पर किसी ने तुम्हें भरमाया है मैं तो बाल ब्रह्मचारी हूँ किसने बताया कि मैं तुम्हारा पिता हूँ ? "
"मेरी माँ ने " वह वानर पुत्र बोला
"यह सब गलत है वत्स तुम ही सोचो यह संभव कैसे है ? कौन है वो नारी जिसे तुम माँ कह रहे हो?"
"क्या करेंगे जानकर ?" वह वानर पुत्र बोला ," आप मेरी बातों पर यकीन भला क्यों करेंगे ? पर मुझे ख़ुशी है कि रणभूमि मैं ही सही , आज मैं अपने पिता से मिल तो पाया "
"ऐ नादान बालक बातें घुमाना फिराना छोड़कर सच बताओ कैसे संभव हो सकता है यह ?"
उस बालक ने कहा ," वह एक मस्त्य कन्या है एक जलचर मत्स्य नारी जब आप ने लंका में आग लगाकर श्रम मिटाने के लिए सागर में डुबकी लगाई थी, तो आपके शरीर से पसीने कि दो बूंदें गिरी मेरी माँ ने वो बूंदें पी ली उसके प्रभाव से वे गर्भवती हो गयी और उनसे मेरा जन्म हुआ "
हनुमान जी के ह्रदय में वात्सल्य उमड़ आया पर यह वक्त भावनाओं में बहने का नहीं था उधर वह वानर पुत्र कह रहा था ," मेरा नाम मकर ध्वज है हम जलचर हैं और पाताल लोक के प्राणी हैं इस लिए अहिरावण हमारे स्वामी हैं "
हनुमानजी ने कठोर बनते हुए कहा ," वत्स, अगर तू मेरा पुत्र है तो चल, मेरी सहायता कर "
मकर ध्वज ने हाथ जोड़कर कहा ,"स्वामी भक्ति मैंने आपसे ही सीखी है पिताजी आप अन्दर जाना चाहते हैं, मुझे हरा दीजिये आपके लिए बड़ी बात नहीं है आप बल और बुद्धि के सागर हैं परन्तु जब तब मुझमें शक्ति है, मैं आपको अन्दर जाने नहीं दूंगा "
"नहीं?" हनुमानजी क्रोधित होकर बोले
"बिलकुल नहीं" वानर पुत्र बोला
हनुमानजी ने बाएं हाथ की मुष्टिका से एक जम कर प्रहार किया उनके अनुमान के हिसाब से एक हठी बालक के लिए उतना ही बल प्रयोग काफी था : लेकिन, हुआ कुछ और उन्हें लगा उन्होंने एक कठोर शिला पर अपनी मुट्ठी जड़ दी हो अगले ही क्षण वानर पुत्र ने उछलकर अपने घुटनों से उनकी छाती पर प्रहार किया भीषण युद्ध छिड़ गया जल्दी ही हनुमान जी को ज्ञात हो गया कि आखिर अहिरावण ने उस बालक को द्वारपाल क्यों नियुक्त किया था ! हनुमानजी को यह भी ज्ञात हो गया क़ि शक्ति में उनका पुत्र उनसे कम नहीं था उसकी चुस्ती, फुर्ती और ताकत देखकर कपीश हैरत में पड़ गए उधर समय निकला जा रहा था
"अब मान भी लीजिये पिताजी क़ि मैं आपका पुत्र हूँ " उसने हनुमानजी पर प्रहार करते हुए कहा
"अगर मेरे पुत्र हो तो धर्म का साथ दो, अधर्म का नहीं " हनुमानजी ने एक हाथ से उसका प्रहार रोककर दूसरे हाथ की मुष्टिका से उसके मस्तक पर घूंसा जड़ दिया
"मेरे लिए स्वामी भक्ति ही धर्म है जब तक आप मुझे हरा नहीं देते , मैं आपका मार्ग रोककर रखूँगा " आनन् फानन में उस बालक ने पास के उद्यान से एक साल का वृक्ष उखाड़ लिया
"नादान बालक, तुम्हे मालूम नहीं क़ि अनजाने में तुम कितना बड़ा अनर्थ कर रहे हो मान जाओ , यह धर्म नहीं अधर्म है "
हनुमानजी ने उसी उद्यान से एक भारी शिला उखाड़ ली और तैयार हो गए दोनों ने एक साथ ही आपने अपने अस्त्र छोड़े हनुमानजी की शिला प्रहार को साल के वृक्ष ने किसी तरह रोका, पर उस वृक्ष के दो टुकड़े हो गए
"अच्छा पिताजी, एक रास्ता है जिससे आपका भी धर्म रह जायेगा और मेरा भी मैं आपको बता सकता हूँ क़ि आप मुझे कैसे हरा सकते हैं पर प्रयत्न आपको खुद करना होगा मैं आपको अपनी ओर से कोई मौका नहीं दूंगा अगर आप मुझे मेरी पूंछ से बांध दें तो मैं बेबस हो जाऊंगा "
हनुमानजी मकरध्वज की बात पूरी होते न होते उस पर झपट पड़े जैसे ही वे पूंछ की ओर लपके, मकरध्वज ने जमकर एक लात जमाई और हनुमानजी का जबड़ा हिल गया अब मकरध्वज हनुमानजी पर टूट पड़ा दोनों फिर एक बार गुत्थम गुत्था हो गए हनुमानजी ने फुर्ती से एक लंगड़ी चलाई मकरध्वज लडखडाया उसके सम्हलने के पहले हनुमानजी ने उसकी पूंछ पकड़कर खिंची मकरध्वज आकाश देखने लगा इतना ही हनुमानजी के लिए काफी था दोनों पाँव के बीच से पूंछ ले जाकर पहले उन्होए फुर्ती से उसके पाँव बाँध दिए अब मकरध्वज हिल नहीं सकता था फिर भी वह हाथ चलाकर हनुमान पर प्रहार करने की कोशिश करते रहा हनुमान नि उसकी पूंछ छोड़ी नहीं और मौका पाते ही उसके दोनों हाथ पकड़ लिए और आनन फानन में उसके हाथ भी बाँध दिए
" तो पुत्र , अब जल्दी से बताओ राम और लक्ष्मण कहाँ हैं ?" हनुमानजी ने कड़क कर पूछा मकरध्वज के मुंह से बोल नहीं फूटे
"तो स्वामी भक्ति अभी गयी नहीं है ठीक है मैं ही पता लगा लूँगा " जाते जाते हनुमानजी ने उसे एक और ठोकर जड़ दी
मुख्य द्वार अभी भी बंद था, पर हनुमानजी के लिए ये कोई बहुत बड़ी बाधा नहीं थी देखते ही देखते वे किले की दीवार पर चढ़ गए और अन्दर छलांग लगा दी
--------------
मुख्य द्वार पर जो कुछ हुआ , उसकी जानकारी कुछ लोगों को थी, जिन्हें अंतिम क्षणों में मकरध्वज ने चिल्लाकर अन्दर जाने को कहा था हालाँकि परिणाम उन्हें भी ज्ञात नहीं था किन्तु उन लोगों को ऐसी घटना एक महत्वहीन हलकी फुलकी घटना से ज्यादा कुछ नहीं लगी उन्हें मकरध्वज पर पूरा विश्वास था और आखिर कोई सिरफिरा ही अहिरावण से टकराने के बारे में सोच सकता था ज्यादातर लोगों को लगा कि वह कपि कोई व्यापारी था जो बिना कर दिए अन्दर घुसना चाहता था या तो कोई अभिमान में चूर योद्धा , जो लोगों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हो या ये हो सकता था कि यह भी उस मनोरंजन का एक अंग हो जो शहर के अन्दर हो रहा था
मनोरंजन ?
बिल्ली के आकार के शरीर वाले हनुमान ने किले के मुंडेर से क्या देखा ?
नगर के मुख्य पथ पर दूर दूर तक लोग खड़े हुए थे योद्धाओं के हाथ में पताकाएँ थी, जिन्हें वे सागर की लहरों की तरह हवा में लहरा रहे थे रह रह कर हवा में तुरही और भेरी की स्वर लहरियां गूंज उठती थी लोग अहिरावण की जय जयकार से आकाश गूंजा रहे थे और उस पथ पर एक के बाद एक कई पंक्ति में अनेक योद्धा नगाड़े और भेरियां बजाते चल रहे थे
उनके पीछे एक रथ में पहाड़ की तरह अहिरावण विराजमान था हनुमानजी ने रावण का आकर्षक व्यक्तित्व देखा था अहिरावण मानो रावण से भी दो कदम आगे था उसके क्रूर चेहरे को देखकर किसी भी शत्रु का खून जम सकता था लोग मार्ग के दोनों तरफ से उस पर फूल और अक्षत की बौछार कर रहे थे
फूल और अक्षत की बौछार तो वे उसके अगले रथ पर भी कर रहे थे ,पर किसी अन्य कारण से तो उस अगले रथ पर ब्रह्म राक्षसों का एक समूह बैठा था जो निरंतर मंत्रोच्चार कर रहा था रह रह कर उसमें से कोई ब्राह्मन शंख फूंक देता था और क्या देखा हनुमान ने उस रथ में ?हनुमान जी की आँखें मानो जम सी गयी
उस रथ पर राम और लक्ष्मण अधलेटे बैठे हुए थे - मिट्टी के पुतलों की तरह उनकी आँखें खुली थी या बंद ? उनके माथे पर लाल सिंदूर पुता हुआ था उनके गले में लाल फूलों की ढेर साड़ी मालाएं थीं मालाओं के उस पहाड़ में वे छुप से गए थे उन्हें रक्त लाल वस्त्र पहनाया गया था उनके दोनों तरफ हाथ में लम्बी लम्बी तलवारें लिए योद्धा खड़े थे
क्या होने वाला था यह ?
हनुमान जी ने पथ पर दूर तक नज़र दौड़ाई उनकी दृष्टि सड़क की सजावट और लोगों की भीड़ का पीछा करते दूर निकल गयी जहाँ वह समाप्त होती थी , वहां उन्हें मंदिर का एक कंगूरा दिखाई दिया , जिस पर एक लाल रंग का ध्वज लहरा रहा था
अब हनुमानजी के मन में विचार कौंध गया इसमें लेशमात्र भी संदेह की गुंजाइश नहीं रह गयी थी उन्हें ज्ञात हो गया था कि क्या होने वाला है लेकिन अब भविष्य के उस उपक्रम को बदलने की भारी जिम्मेदारी उनके कंधे पर थी उन्होंने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया कि नादान बालक की बेतुकी जिद के बावजूद वे समय पर पहुँच गए पर वह समय कम था
अगले ही क्षण वे एक भवन की छत से दूसरे भवन पर छलांग लगाते हुए मंदिर की और बढ़ चले उनकी इस हरकत से बेखबर लोग अहिरावण क़ी जय जयकार कर रहे थे क्या हो चुका था, उससे वे बेखबर थे वह केवल मकरध्वज जानता था जो मुख्य द्वार पर बेबस बंधा हुआ था वे इस बात से भी अनभिज्ञ थे कि निकट भविष्य के गर्भ में क्या छुपा है ?
-----------------------------------
वानर सेना पूरी तरह से हतोत्साहित थी पहले ही राम और लक्ष्मण का अपहरण हो चूका था और अब हनुमानजी भी गायब थे जितने मुंह उतनी बातें
"मुझे लगता है, हनुमानजी आत्म ग्लानि से भरकर ...." एक वानर ने लोगों के एक अनुमान को डरते डरते वाणी दे ही डाली
"नहीं, नहीं" दूसरे वानर ने तुरंत प्रतिवाद किया ," बजरंगबली के बारे में ऐसे विचार मन में लाना ही अपराध है वे कभी भी कठिनाइयों से मुंह नहीं मोड़ते "
अचानक वानर सेना में अफवाह फ़ैल गयी कि राक्षसों ने हनुमानजी का भी अपहरण कर लिया है घबराकर वे विभिन्न दिशाओं में भागने लगे
महाराज सुग्रीव सुबह से ये सब देख रहे थे क्रोध से वे चिल्लाये ," जहाँ हो वहीँ रुक जाओ तुरंत ...."
सारे के सारे वानरों के कदम जम गए
"वापिस आओ " उनका दूसरा आदेश था
"एकत्रित हो यहाँ "सरे वानर सर झुकाए वहां एकत्रित होने लगे
"तुम वानर सैनिक हो या फिर मिट्टी के खिलौने ? भूल गए, अमृत मंथन के समय देवताओं ने तुम्हें सहायता के लिए आमंत्रित किया था महाराज बाली के समय के वे दिन भूल गए जब वानर सैनिकों का डंका सारे ब्रह्माण्ड में बजता था ? "
महाराज सुग्रीव गुस्से में और कुछ कहते , पर जाम्बवान ने बात सम्हाल ली
"महाराज, अगर आप आज्ञा दें तो मैं वानरों से कुछ कहूँ ?"सुग्रीव की आज्ञा पाकर बूढ़े जाम्बवान ने कहना शुरू किया ," लगता है, आप लोग हनुमान जी को लेकर चिंतित हैं एक बात याद रखें बजरंगबली मुसीबतों से घबराते नहीं, बल्कि उन पर टूट पड़ते हैं इसलिए वे इस हालत में पलायन करेंगे, ऐसा सोचा ही नहीं जा सकता रही बात उनके अपहरण की राक्षसों की सेना उनका अपहरण करके कभी भी मुसीबत बुलाने का विचार स्वप्न में भी नहीं करेंगे एक बार उनको ब्रह्म अस्त्र में बांधकर वे भुगत चुके हैं तो आप ही सोचिये, ऐसी परिस्थिति में हनुमानजी का अंतर्ध्यान होना किस बात का सूचक है ?"
सारे वानर शांत थे केवल पृष्ठभूमि में सागर की लहरों की आवाज़ सुनाई दे रही थी एक वानर ने हिम्मत करके कहा ," तो क्या बजरंगी राम और लक्ष्मण की खोज में लगे हैं ?"
"खोज में नहीं, बल्कि उन्हें बचाने गए हैं " जाम्बवान ने कहा ," ऐसे में हम सब का कर्त्तव्य क्या है ? क्या हम कायरों की तरह भाग जाएँ ?"
"नहीं " युवराज अंगद ने कहा ," हमें हनुमानजी की सहायता करने जाना होगा "
वानरराज सुग्रीव ने आज्ञा दी ," पहले हमें यह पता लगाना है कि प्रभु राम और लक्ष्मण कहाँ हैं ? हो सकता है, हनुमानजी उसी दिशा में गए हों ये भी हो सकता है कि खोजते हुए वे विपरीत दिशा में चले गए हों , पर वे स्वयं अपनी सहायता कर सकते हैं किन्तु प्रभु का तो अपहरण हुआ है विभीषण जी, आपके गुप्तचर क्या कहते हैं ?"
------------------------
लंका में सब शांत था उस दिन युद्ध नहीं हुआ केवल रावण और उनके मंत्री जानते थे कि राम और लक्ष्मण कहाँ हैं पर उन्होंने सब कुछ गुप्त रखने का निर्णय लिया था वे चाहते थे कि राम और लक्ष्मण का तुरंत वध कर दिया जाये किन्तु और मित्रों की सलाह पर अहिरावण अपनी कुल देवी , महामाया चंडी को राम और लक्ष्मण की बलि चढाने का निश्चय कर चुका था
रावण की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था वह डूबते हुए सूरज की प्रतीक्षा कर रहा था बार बार झरोखे से वह बाहर देख रहा था
"क्या बात है प्राणनाथ ?" मंदोदरी ने पूछा ,"आज युद्ध नहीं हुआ ?"
रावण अपनी ख़ुशी छुपा नहीं पा रहा था उसने कोई जवाब नहीं दिया मंदोदरी ने फिर पूछा ,"क्या कारण है ?"
रावण ने पलटकर जवाब दिया ,"क्यों ? मुझे खुश देखकर तुम्हें ख़ुशी नहीं होती ?" फिर थोडा संयत होकर कहा ,"उस डूबते सूरज को देख रही हो ?"
"हाँ" मंदोदरी ने कहा ,"वह तो रोज डूबता है "
"सूरज इक्ष्वाकु कुल का कुल देवता है " रावण ने कहा ,"आज यह अपने साथ पुरे कुल को ले डूबने के लिए आतुर है "वह जल्दी से जल्दी सीता को यह समाचार देने के लिए उतावला हो रहा था
---------------
हनुमानजी ने चारों ओर घूमकर देखा ,मंदिर के द्वार बंद थे मुख्य द्वार पर पुजारी जी जुलूस के पहुँचने की प्रतीक्षा कर रहे थे चारों और रक्षक हाथ में नंगी तलवारें लिए पहरा दे रहे थे
हनुमानजी ने सूक्ष्म रूप में ही मंदिर के पास के वट वृक्ष से कंगूरे पर छलांग लगाई दीवारों के सहारे वे नीचे उतर गए और अन्दर जाने का मार्ग खोजने लगे जल्दी ही उन्हें कुण्ड दिखाई दिया जिसका जल मूर्ति के स्नान के लिए और पूजा के अन्य कार्यों के लिए प्रयुक्त होता था कल के द्वारा जल अन्दर पहुँचाया जाता था उस संकीर्ण मार्ग से होकर किसी तरह हनुमानजी अन्दर जा पहुंचे
मायामाया देवी की भव्य प्रतिमा थी मंदिर में उस वक्त कोई भी नहीं था मूर्ति के सम्मुख पांच दीपक जल रहे थे , जिनकी लौ छत छू रही थी हनुमानजी ने पहले मूर्ति को प्रणाम किया सामने देवी को चढाने के लिए नैवेद्य ,फल,मिष्ठान्न और कई खाद्य सामग्री रखी हुई थी उसे देखकर हनुमानजी को लगा कि उनकी भूख जाग गयी है परन्तु वह वक्त खोने का नहीं था मूर्ति की प्रदक्षिणा करते हुए वे उसके पीछे चले गए वहीँ उन्हें उपाय सूझ गया
--------------------------------------------
भयावह अहिरावण मूर्ति के सम्मुख शांत बैठा था उसकी लाल लाल आँखें मूर्ति पर टिकी हुई थी राम और लक्ष्मण अभी भी मूर्छित ही थे उनके माथे पर लाल सिंदूर पुता था और ढेर सारी मालाएँ अभी भी उनके गले पर थी उनके सम्मुख जल्लाद तलवारें लिए मुस्तैद खड़े थे राक्षस पंडित मंत्रोच्चार कर रहे थे मुहूर्त के हिसाब से संध्या काल में राम और लक्ष्मण की बलि देनी थी
पाताल लोक में सूर्य की किरणों के न पहुँच पाने के कारण पंडित काल का हिसाब अपने ढंग से करते थे इसके लिए वे तेल से जलते हुए दीपक द्वारा तेल की खपत या जल पात्र से टपकते हुए जल या अन्य विधियों से समय की गणना करते थे इस समय वे पांच जलते हुए दीपक और उसके तेल की मात्रा समय की सूचना दे रही थी
अंततः पूजा समाप्त हुई और सब लोग खड़े हो गए राम और लक्ष्मण अभी भी मूर्छित लेटे थे
"देवी माँ, आपका तुच्छ भक्त अहिरावण आपको प्रणाम करता है " अहिरावण ने हाथ जोड़कर कहा , " एक छोटी सी बलि आप स्वीकार करें माता "
जल्लादों की मुट्ठियाँ तलवारों पर कस गयी
"रे मूर्ख", मूर्ति से आवाज़ गूंजी , " भला बिना स्नान कराये कहीं बलि चढ़ाई जाती है ?"सारे के सारे लोग हतप्रभ रह गए - क्या ? ये मोटी आवाज़ तो मूर्ति से ही आई है तो क्या माता आज स्वम्भू आ गयी ? लोग सकते में आ गए मानो उन्हें लकवा मार गया था
"कुछ सुना तुमने ?" मूर्ति से आवाज़ आई पुजारी तुरन्त भागे भागे गए और उन्होंने जल कुण्ड से पानी के कलश भर लिए एक बड़े से पात्र का इंतजाम किया गया उस पर राम और लक्ष्मण को लिटाया गया और कलश के जल की धार उन पर छोड़ी गयी इससे हुआ यह कि राम और लक्ष्मण की बेहोशी टूट गयी
अहिरावण ने कहा, "माते, क्षमा करें अब हम बलि के लिए तैयार हैं "
मूर्ति से फिर मोटी आवाज़ आई," रे मूर्खाधिपति तुझे बलि की पड़ी है मेरी क्षुधा की तुम्हें कोई चिंता नहीं पहेल मुझे पंचामृत अर्पित कर , नैवेद्य चढ़ा फिर मैं बलि स्वीकार करुँगी "
राम और लक्ष्मण यह दृश्य देख रहे थे उन्हें कुछ समझ में आ रहा था और कुछ नहीं किन्तु इस बात से वे आश्चर्यचकित थे कि मूर्ति की आवाज़ जरुर कहीं सुनी है उस सबला नारी कंठ से निकली आवाज़ और बजरंगबली की आवाज़ के लहजे में काफी समानता थी पंडितों ने आनन फानन में पेय पदार्थ से भरा पात्र मूर्ति के मुंह में लगाया मूर्ति सारा का सारा पेय गटगट करके पी गयी
"माते, अब बली स्वीकार करें " अहिरावण ने फिर विनती की
"तलवार मुझे दो मूर्ख जब मैं यहाँ स्वयं उपस्थित हूँ तो तुम्हारे ये जल्लाद क्यों कष्ट करेंगे ?तलवार मेरे सामने रखो "जल्लादों ने अपनी तलवार मूर्ति के सामने रख दी
"रे दुष्ट, तुझे क्या अपनी तलवार बड़ी प्यारी है ? इसे भी दे "अहिरावण ने अपनी तलवार भी मूर्ति के सम्मुख रख दी
पांच दीपक की लौ तेजी से छत छू रही थी पूरे मंदिर में और कोई प्रकाश स्त्रोत नहीं था
अचानक हवा का तीव्र झोंका आया , मानों किसी ने तेज फूंक मारी हो पाँच दीपक एक साथ बुझ गए और घुप्प अँधेरा छा गया जब लोगों की आँखें अँधेरे में देखने की अभ्यस्त हुई, उन्होंने देखा , मूर्ति के सामने एक विशालकाय कपि खड़ा है उसके दोनों हाथों में तलवारें हैं अहिरावण तेजी से तलवारों के ढेर की ओर लपका हनुमान के तलवार के एक प्रहार से उसका कवच कट गया और विशालकाय शारीर लडखडाया पर गिरते गिरते भी उसने एक तलवार उठा ली वह हनुमानजी की ओर लपका हनुमान के मुकाबले वह अँधेरे में देखने का ज्यादा अभ्यस्त था उसने हनुमान पर तलवार चलाई हनुमानजी हवा में उछले और बिजली की फुर्ती से फिर उस पर वार किया इस बार अहिरावण की तलवार टूट गयी हनुमानजी जी को ज्ञात था कि वह तलवारों के ढेर की ओर लपकेगा इससे पहले कि वह ढेर तक पहुँच पाता , पीछे से हनुमानजी ने प्रहार किया और उसका सर धड से अलग कर डाला
"प्रभु जी , जल्दी तलवार लेकर मेरे साथ चलिए " हनुमानजी ने राम और लक्ष्मण से कहा दोनों भाइयों ने दो दो तलवारें हाथ में ले ली सारे के सारे पहरेदार उन पर टूट पड़े लेकिन अहिरावण के शरीर से बहती रक्त की नदी ने सबका मनोबल ही डूबा दिया था
---------------------------------------------
मकर धवज, वह वानर पुत्र , जो थोड़े ही समय पहले मुख्य द्वार पर बंधा पड़ा था , अब सिंहासन पर विराजमान था पाताल लोक के लोगों ने उसे अपना सम्राट चुन लिया इसमें राम और लक्ष्मण की भी सम्मति थी
" पिताजी आप मुझे क्षमा करें " मकरध्वज ने हाथ जोड़कर कहा ,"आप कुछ दिन यहाँ रुक कर हमारा आतिथ्य स्वीकार करें "
"ठीक है पुत्र" हनुमानजी का ह्रदय भर आया , "न्याय पूर्वक राज्य करो हमारा तत्काल जाना अति आवश्यक है "
यह मकरध्वज भी भली भांति जानता था युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ था
----------------