सोमवार, 3 जनवरी 2022

कोहली की कप्तानी में आखिर खराबी क्या है ?

आज भारत और दक्षिण अफ्रीका के मध्य दूसरा टेस्ट शुरू हुआ और विराट कोहली पीठ के दर्द के कारण खेल नहीं रहे हैं | बहुत से लोग ये शंका ज़ाहिर करेंगे कि कहीं कोहली जानबूझकर तो ऐसा नहीं कर रहे हैं | आखिर पिछले चार महीनों से कप्तानी को लेकर जो विवाद चल रहा है, उसने लोगों को एक ऐसी  सूक्ष्मदर्शी पकड़ा दी  है, जिसके द्रारा वे  कोहली  से जुडी  छोटी से छोटी बात की भी वे विवेचना कर सकें और कहीं न कहीं कप्तानी विवाद से जोड़ सकें | 

कोहली आखिर कैसे कप्तान हैं, उसे समझने से पहले ये समझाना आवश्यक है कि कोहली कैसे इंसान हैं | दस साल पहले २०११-१२ को भारतीय टीम ऑस्ट्रेलियाई दौरे में ४-० से बुरी तरह परास्त हुई थी | एडिलेड के चौथे टेस्ट में कोहली शतक से दो रन दूर  थे| दूसरे छोर पर इशांत शर्मा थे | वैसे तो इशांत शर्मा ने उनका अच्छा साथ दिया था, लेकिन किसी भी क्षण पारी का अंत हो सकता था | कोहली ने गेंद मिड विकेट की और धकेली | पहला रन तेज़ी से पूरा किया | दूसरा रन, यानी शतकीय रन दौड़ते- दौड़ते ही उन्होंने उल्लास में भरकर बल्ला उठा दिया |  तब इयान चैपल कमेंटरी कर रहे थे | उनके मुंह से निकला, "क्या कोहली रन पूरा करने के बाद अपनी  प्रफुल्लता  व्यक्त नहीं कर सकते थे ?"

वास्तव में वो बहुत ही मुश्किल दौरा था | भारतीय टीम के पास ऐसा कुछ भी नहीं था, जिससे टीम को कभी मुस्कुराने का मौका भी  मिले |  ऐसे में कोहली के दिमाग पर उनके दिल की भावनाएं हावी हो गयी | वे अपने दिल के विचार कभी भी अपने अंदर नहीं रखते, बल्कि उसे जाहिर कर ही देते हैं | चाहे वो स्टीव स्मिथ का एल. बी. डब्ल्यू।  के रिव्यू लेने के पहले पेवेलियन की ओर देखकर संकेत की प्रतीक्षा का मामला हो या फिर करूण नायर के तिहरे शतक के बाद भी प्रेस में रहाणे को उनके ऊपर तरजीह देने की बात | और अभी कुछ दिन पहले दक्षिण अफ्रीका जाने के पूर्व की प्रेस कांफ्रेंस ने तो हंगामा खड़ा कर दिया | 

किसी ज़माने में रोहित शर्मा उनके सबसे अच्छे दोस्त रहे | पता नहीं, किस अनबन को मीडिया ने इतना तूल दे दिया | बात दो बीवियों की एक दूसरे को अपने सोशियल मीडिया अकाउंट से 'अनफ्रेंड' करने से हुई और समाचार बनाने वालों को मसाला मिल  गया | रवि शास्त्री ने ठीक ही कहा था कि लगता है, मैदान के अंदर खिलाड़यों के प्रदर्शन से ज्यादा मैदान के बाहर महिलाओं की अनबन में मीडिया को ज्यादा दिलचस्पी है | ऐसे मौकों पर रवि शास्त्री कोहली के साथ ही खड़े नज़र आते रहे | क्या  बुराई है इसमें ? किसी प्रशिक्षक का काम टीम तोडना तो नहीं होता |  

कुंबले के साथ उनकी तकरार  नए ज़माने की नयी सोच का ही नतीजा था  | आज खिलाडी कोई तपस्वी नहीं होता कि खेल  के सिवाय उनकी कोई और ज़िन्दगी न हो | कि एक मैच ख़त्म होते ही वह दूसरे मैच की तैयारी की मानसिकता बना ले | जीत हो या हार, मैदान में पूरा ध्यान लगाने के पश्चात वह थोड़ी आज़ादी चाहता है | वह जानता है कि खुली हवा में सांस लेने के पहले ही अगला दौरा या मैच आ जायेगा | अगर चुना जाए तो भी तनाव, न चुना जाये तो भी कुण्ठा | 

वैसे खेल के दौरान  समर्पण की भावना खिलाडियों में कूट-कूट कर भरी है और इस मामले में कोहली उनका नेतृत्व करते नज़र आते हैं | यही कारण है कि शुरू से ही उन्होंने पांच गेंदबाजों की जो रणनीति  बनाई, उससे कभी पीछे नहीं हटे | इतना ही नहीं, वे पांच गेंदबाजों  के दल भी पिच और श्रृंखला , स्पिन लेने वाली एशियाई पिचों वाली या उछाल भरी तेज़ पिच के हिसाब से बदलते रहे | ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था | 

शायद यही कारण है कि उन  खिलाडियों को , जो आंकड़ों की किताबों में सर्वोत्तम थे , पर पिच के हिसाब से उतने प्रभावी नहीं हो सकते थे जितना एक पिच के अनुकूल गेंद करने वाला नौसीखिया हो सकता था , बाहर बैठना पड़ा | उनके गले यह बात नहीं उतरी  कि कोहली  के लिए जीत ही सर्वोपरि थी और है | अगर वह टीम में कोई फेरबदल या बदलाव चाहता है तो वह विपक्षी की रणनीति को पलटने या उनकी ही बिल्ली की पूँछ मरोड़ने के लिए होता है, जिससे वह उन्हें ही  'म्याऊं' कर सके | 

 जीत के इस महत्त्व को उन्होंने खुद पर भी लागू किया | पिछले वर्ष आई. पी. एल. के दौरान अपनी कप्तानी छोड़ दी | टी. २० की कप्तानी छोड़ने के पीछे भी उन्होंने वही तर्क दिया | जो खिलाड़ी अपने प्रदर्शन से टीम का प्रेरणास्त्रोत न बन सके, उसके लिए बेहतर है कि पहले अपने प्रदर्शन पर ध्यान दे, ताकि टीम के अंदर और बाहर कोई उस पर उंगली ना उठा सके | 

अगर अश्विन को उन्होंने सफ़ेद गेंद वाले मैचों से बाहर रखा तो वह एक रणनीति के तहत था | ताकि टेस्ट मैचों के दौरान वे फिट और ऊर्जा से भरपूर  रहें , सफ़ेद गेंदों की गेंदबाजी की आवश्यकता और प्रदर्शन उनके टेस्ट मैचों की गेंदबाजी को प्रभावित न करे और वे "ओवर एक्सपोज़ " न हों ताकि उनकी गेंदबाज़ी की धार टेस्ट मैचों में बरकरार रहे |  

ऐसा नहीं लगता कि कोई उनका पसंदीदा खिलाडी था या है | जो फिटनेस टेस्ट पास न कर पाए, चाहे वह ऋषभ पंत हो या रोहित शर्मा, टीम में उनके लिए जगह नहीं है | अगर उनके लिए टीम सर्वोपरि नहीं होती तो शिखर धवन अब भी तीनों फॉर्मेट में खेलता, इशांत की जगह हर टेस्ट में पक्की  रहती और चहल सफ़ेद गेंदों वाले मैच के साथ साथ टेस्ट टीम के भी स्थायी सदस्य रहते | एक-दो अपवादों को छोड़कर नए खिलाड़ियों को मौका देने में उन्होंने कभी देर नहीं लगाईं | 

विजय शंकर के बारे में काफी कुछ कहा गया | हर कप्तान का स्वप्न होता है कि उनकी टीम में , खासकर एक दिवसीय टीम में ज्यादा से ज्यादा हरफनमौला खिलाडी रहे | इसलिए अगर उन्होंने रायडू के बदले विजय शंकर को चुना तो कोई गलत  नहीं किया | 

आलोचकों ने सुर में सुर मिलाया कि पिछले वर्ष के ऑस्ट्रेलियाई दौरे ने ये दर्शा दिया कि कोहली के बिना भी टीम जीत सकती है | किन्तु उस जीत के पीछे कोहली की दूरदर्शिता को सबने नज़रअंदाज किया | सामान्य परिस्थितियों में नटराजन और वाशिंगटन सुन्दर को टी २० के बाद भारत लौट जाना चाहिए था | लेकिन टीम मैनेजमेंट ने उन्हें साथ रखा | सैनी कई विदेशी दौरों से भारतीय टीम की नेट गेंदबाज़ी का हिस्सा रहे थे | ये एक तरह  कोहली की ही दूरदर्शिता थी, जो उन्होंने नेट गेंदबाज़ों के रूप में उन गेंदबाज़ों को भी साथ ले  जाने का फैसला किया जो भविष्य में कभी भी टीम का हिस्सा बन सकते थे | 

अफ़सोस की बात ये है कि कोहली के खिलाफ उन खिलाड़ियों ने बिगुल फूंका जिन्हें  कोहली ने बहुत ज्यादा, बल्कि जरुरत से ज्यादा ही लम्बी रस्सी दी | सूत्रों की मानें तो रहाणे और पुजारा ने सितम्बर में ही भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को पत्र लिखकर बगावत का बिगुल फूँक दिया था | उनका कोहली ने इस कदर समर्थन किया कि आज कोई भी उनका उदाहरण देकर कोहली पर पक्षपात का आरोप लगा सकता है | हो सकता है, उस समय कोहली ने उन्हें अपने प्रदर्शन सुधारने को कहा हो और उनके मन में असुरक्षा की भावना आ गयी हो | आज तो कोहली टीम में नहीं थे | उसके पूर्व भी न्यूज़ीलैंड के खिलाफ एक मैच में कोहली टीम में नहीं थे |  उन पर कोई दबाव नहीं था | फिर क्यों उनका प्रदर्शन उत्कृष्ट नहीं रहा ? उन्हें किस किस्म का कप्तान चाहिए या फिर उन्हें खुद कप्तानी करनी है ?
 
इन तीन खिलाडियों के सिवाय शायद बाहर बैठे तीन खिलाडी कोहली को अपने खेल जीवन के लिए कोस सकते हैं - कुलदीप यादव, रायड़ू  और करुण नायर | उम्र अभी भी कुलदीप के साथ है | वे वापसी कर सकते हैं | भारतीय टीम से बाहर होने के बाद करुण नायर को भारत 'ए' टीम में काफी मौके मिले | हाँ , रायड़ू जरूर दुर्भाग्यशाली रहे | 

तो जिस कोहली को एक खिलाड़ी  के रूप में समझने के लिए इयान चेपल की उपरोक्त पक्तियां काफी हैं, कोहली की  कप्तानी का सार उन्हीं इयान चेपल की ये पंक्तिया बयान करती हैं ,"आज तक मैंने क्रिकेट के  किसी भी कप्तान को विरोधी खिलाड़ी के आउट होने पर कभी इतना उल्लास मनाते नहीं देखा |"

बिलकुल, कहे के मैदान में वे डूब आते है उनकी नज़र लक्ष्य पर ही होती है | 














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