हर एक हिन्दू के घर में किसी भगवान् की कोई मूर्ति या चित्र हो या न हो, किन्तु एक प्रतिमा या तस्वीर पूजा गृह में अवश्य मिल जाएगी | इसमें हनुमान जी एक हाथ में पर्वत उठाये गमन करते नज़र आते हैं | जब भारत ने कोरोना का टीका ब्राज़ील को भेजा था , तब ब्राज़ील के आभार पत्र में वही छवि अंकित थी | सदियों से यह तस्वीर हिन्दुओं को संकट की घडी में प्रेरणा देते आयी है |
यह एक तरह से रामायण का न्यूनतम बिंदु था, जहाँ आशा की एक किरण भी दिखाई नहीं देती थी | सब कुछ ठहर सा गया था | अधर्म की विजय स्पष्ट थी | तब हनुमान जी के इस पराक्रम से मानो धर्म में नवजीवन का संचार हुआ था |
राम कथा को कई महाकवियों ने महाकाव्य के रूप में परिणित किया है | तुलसी रामायण की कहानी काफी अलग है | बाकी तीनों रामायण की कहानी और घटनाएं काफी कुछ मिलती हैं | अर्थात कम्ब रामायण और कृत्तिवास रामायण वाल्मीकि रामायण से काफी प्रभावित हैं | राम और लक्ष्मण के साथ सारी वानरसेना बेसुध होती है | विभीषण बचे रहते हैं | जांबवान रास्ता दिखाते हैं | चार औषधियों का जिक्र होता है | और अंत में राक्षसों और वानरों की मृत्यु का अंतर स्पष्ट किया गया है |
अब कवियों की कल्पना ने इस घटना के वर्णन को नए आयाम दिए हैं | उनका तुलनात्मक अध्ययन अपने आप में एक रोचक दिग्दर्शन कराता है |
माना जाता है कि वाल्मीकि रामायण छह शताब्दी ईसा पूर्व के कालखंड में लिखी गयी थी | इसलिए इसे आदि काव्य भी कहते हैं | इस रामायण के अनुसार मेघनाद के ब्रह्मास्त्र के असर से श्री रामचंद्र जी भी अछूते नहीं थे |
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तुलसीदास जी की इस रामायण में यह प्रसंग सबसे अलग है | इसमें केवल लक्ष्मण ही मूर्छित होते हैं | एक गुप्तचर का उल्लेख है | छल कपट है | फिर भारत की महिमा का वर्णन है जिसका उल्लेख किसी और रामायण में नहीं है |
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बांग्ला में लिखी कृत्तिवास रामायण का बंगाल में वही दर्जा है जो उत्तर भारत में तुलसी रामायण - "रामचरित मानस" का है | यह ग्रन्थ बंगाल के भक्त कवि कृत्तिवास ओझा ने पंद्रहवी शताब्दी में लिखा था - तुलसीदास जी के 'राम चरित मानस' से करीब एक सदी पहले | चारों रामायणों के वृत्तांत में इस रामायण में यह प्रसंग सबसे ज्यादा विस्तृत और नाटकीयता से भरपूर है | और तो और - इस रामायण के अनुसार हनुमान जी पूरा पर्वत उठाकर नहीं लाते, अपितु पर्वत की ही मदद से औषधियां चुन कर लाते हैं |
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कम्ब रामायण तमिल के सुप्रसिद्ध कवि कम्बन द्वारा बारहवीं शताब्दी में लिखा गया है | इस प्रसंग के पूर्व कम्ब खर के पुत्र के पराक्रम का उल्लेख करते हैं जो किसी रामायण में नहीं है | उनके वर्णन के हिसाब से हनुमान जी यहाँ सबसे लम्बी दूरी लांघते हैं | उनके वृत्तांत में श्री रघुनाथ जी घायल नहीं होते, किन्तु लक्ष्मण के वियोग के कारण मूर्छित जरूर हो जाते हैं | हनुमान जी के संजीवनी बूटी लाने के पूर्व ही उनकी मूर्छा टूट जाती है |
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